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'मूकमाटी' के शब्द साधक प्रत्ययों का मूल्यांकन
श्रीमती मिथिलेश कुमारी 'मूकमाटी' जैन मुनि श्री विद्यासागर द्वारा रचित मौलिक महाकाव्य है। इस कृति की भाषा में प्रयोग स्थान की दृष्टि से निम्नलिखित दो प्रकार के शब्द साधक प्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं :
१. पूर्व प्रत्यय २. परप्रत्यय शब्द से पहले लगने वाले शब्दांश 'पूर्व प्रत्यय' कहलाते हैं। पूर्व प्रत्ययों के दो प्रकार के प्रकार्य हैं :
१. शब्द के मूल अर्थ को बदल देना २. शब्द कोटियों का निर्माण तथा निर्धारण करना ।
इस काव्यकृति में प्रयुक्त पूर्व प्रत्यय उपर्युक्त दोनों प्रकार के प्रकार्यों को स्पष्ट करते हैं। कृति में रचनास्तर पर निम्नलिखित दो प्रकार के पूर्व प्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं :
१. एकल पूर्व प्रत्यय २. दोहरे पूर्व प्रत्यय
'मूकमाटी' में दोहरे पूर्व प्रत्यय बहुत कम संख्या में प्रयुक्त हुए हैं। जो एकल पूर्व प्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं, वे प्राय: संस्कृत मूल के हैं। एक से अधिक पूर्व प्रत्ययों का सह-प्रयोग 'दोहरे पूर्व प्रत्यय' कहलाता है। 'मूकमाटी' में प्रयुक्त कुछ दोहरे पूर्व प्रत्यय हैं - अविचल (पृ. १७), अविलम्ब (पृ. ४५), आविर्माण (पृ. ३२०)।
उपर्युक्त शब्दों में अवि' तथा 'आवि' दोहरे पूर्व प्रत्यय हैं। इनकी रचना-प्रक्रिया निम्नलिखित है : अ + वि = अवि, आ + वि = आवि 'मूकमाटी' में निम्नलिखित दो प्रकार के एकल पूर्व प्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं :
१. एक अर्थ को व्यक्त करने वाला एक पूर्व प्रत्यय । २. एकाधिक अर्थों को व्यक्त करने वाला एक पूर्व प्रत्यय ।
३. एक अर्थ को व्यक्त करने वाले अनेक पूर्व प्रत्यय ।
उक्त रचना में एकार्थी पूर्व प्रत्ययों का सबसे अधिक प्रयोग हुआ है । भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से आदर्श अथवा मानक भाषा की यही स्थिति होती है । एकार्थी पूर्व प्रत्यय मानक हिन्दी के हैं। संस्कृत में भी इनका प्रयोग हुआ है। 'मूकमाटी' में प्रयुक्त प्रमुख एकल पूर्व प्रत्यय निम्नलिखित हैं :
अ-आ, स-सु, प्र-परि, अप-उप, प्रति-अभि, अधि-उद्-उत्-उ, नि-नी, सम-अनु, अन-ना। ... उपर्युक्त एकल पूर्व प्रत्यय एकार्थी हैं। सपूत तथा सुयश जैसे शब्दों में 'स' तथा 'सु' एकार्थी हैं। सपूत, सफल एवं सरस आदि शब्दों में प्रयुक्त 'स' पूर्व प्रत्यय अलग-अलग अर्थों को व्यक्त कर रहा है। सपूत' शब्द में प्रयुक्त 'स' पूर्व प्रत्यय का अर्थ शोभन या सुन्दर है जबकि सफल तथा सरस शब्दों में प्रयुक्त 'स' पूर्व प्रत्यय सहित का अर्थ दे रहा है। उपर्युक्त एकल पूर्व प्रत्यय मूल शब्द के अर्थ को बदल देते हैं। 'अ-अन-ना'पूर्व प्रत्यय निषेधार्थक हैं। इनमें 'ना' अरबी-फारसी का पूर्व प्रत्यय है।
_ 'मूकमाटी' रचना में कुछ पूर्व प्रत्यय ऐसे भी प्रयुक्त हुए हैं जो एकाधिक अर्थों को व्यक्त करते हैं। 'निर्-निवि'आदि पूर्व प्रत्यय निम्नलिखित शब्दों में एक से अधिक अर्थों को व्यक्त कर रहे हैं। 'निहारती' (पृ. ४२), 'विराजती' (पृ. ४२), 'विमल' (पृ. ४८), 'निवेदन' (पृ.४५), 'निरन्तर' (पृ. ११), 'नियोग' (पृ. ६), 'नीराग' (पृ. ४८४), जीवन का निर्वाह' नहीं/'निर्माण' होता है (पृ. ४३), 'निर्देशिका' (पृ. १०३), 'निरभिमान' (पृ. ३२०), 'निर्ग्रन्थ' (पृ. ६४), 'विराधना' (पृ. ३७)।
'विराजती' शब्द में प्रयुक्त 'वि' पूर्व प्रत्यय तथा 'विराधना' में प्रयुक्त पूर्व प्रत्यय पृथक्-पृथक् अर्थों को व्यक्त कर रहे हैं। पहला 'वि' पूर्व प्रत्यय विशेषार्थी है तथा दूसरा 'वि' पूर्व प्रत्यय निषेधार्थी । नियोग या नीराग में प्रयुक्त