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मूकमाटी-मीमांसा :: 385
"अविलम्ब उदयाचल पर चढ़ कर भी/विलम्ब से अस्ताचल को छू पाते
दिनकर को/अपनी यात्रा पूर्ण करने में/अधिक समय लग रहा है।" (पृ. १७८) __ जैसे-जैसे ऋतुएँ बदलती हैं प्रकृति का स्वरूप भी बदलने लगता है । ग्रीष्म की तपन आरम्भ होते ही लचकती लतिका की मृदुता, पक्व फलों की मधुता, मन्द पवन का झोंका, पल-पल पत्रों की करतल ध्वनियाँ सब कुछ खो जाती हैं। फिर तपन के बाद आकाश में बादल छाने लगते हैं :
"सागर से गागर भर-भर/अपार जल के निकेत हुई हैं। गजगामिनी, भ्रम-भामिनी/दुबली-पतली कटि वाली
गगन की गली में अबला-सी/तीन बदली निकल पड़ी हैं।" (पृ. १९९) ____ कवि ने इस महाकाव्य में प्राय: सभी रसों का समावेश किया है किन्तु उसका प्रिय रस शृंगार, शान्त और करुण है । शिल्पी के माध्यम से वह शृंगार को सम्बोधित करता है :
"हे शृंगार !/स्वीकार करो या न करो
यह तथ्य है कि,/हर प्राणी सुख का प्यासा है।" (पृ. १४१) एक महान् साधक सन्त होने के कारण कवि करुण रस और करुणा का पूर्ण चित्रण एवं सम्यक् विश्लेषण करते हैं। किन्तु वे करुण रस में शान्त रस के अन्तर्भाव को स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार करुण रस एक नदी की तरह है जो दाह को मिटाता है :
"करुणा तरल है, बहती है/पर से प्रभावित होती है झट -सी।
शान्त-रस किसी बहाव में/बहता नहीं कभी।” (पृ.१५६-१५७) काव्य की दृष्टि से इस कृति में अलंकारों की छटा तो देखते ही बनती है। प्रायः सभी अलंकारों का प्रयोग इस कृति में किया गया है। इसके अतिरिक्त स्थान-स्थान पर मुहावरों का भी सुष्ठु प्रयोग हुआ है।
कवि के लिए सबसे अधिक आकर्षण का केन्द्र शब्दों की साधना है । वह शब्दों का प्रचलित अर्थों में प्रयोग करते हुए भी उसकी पुनर्व्याख्या करता है । व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के अन्तरंग अर्थों को भी व्यक्त किया गया है, यथा :
0 "जो/मह यानी मंगलमय माहौल/महोत्सव जीवन में लाती है
'महिला' कहलाती वह।"(पृ. २०२) 0 "जो अव यानी/ अवगम-ज्ञानज्योति लाती है,
तिमिर-तामसता मिटाकर/जीवन को जागृत करती है
अबला कहलाती है वह !" (पृ. २०३) इसके अतिरिक्त इस महाकाव्य में बीजाक्षरों, मन्त्र साधना, आयुर्वेद के प्रयोग एवं अंक विद्या के चमत्कारों की अनेक रूपता भी दिखाई पड़ती है जो साधक सन्त कवि के विपुल ज्ञान और उसकी बहुज्ञता का परिचायक है।
निष्कर्ष रूप में यह महाकाव्य मानवीय बुद्धि का एक ऐसा अद्भुत चमत्कार है जिसमें काव्य, साहित्य, अध्यात्म साधना के सभी रूप समाहित हो गए हैं। प्रज्ञा और काव्य प्रतिभा के अद्भुत संयोग से ही इस तरह की कालजयी कृति की रचना होती है।