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328 :: मूकमाटी-मीमांसा
मन्तव्य है :
"भूख और भूख की आड़ में/चबायी गयी चीजों का अक्स उनके दाँतों पर ढूँढ़ना/बेकार है/समाजवाद उनकी जुबान पर अपनी सुरक्षा का/एक आधुनिक मुहावरा है ।/मगर मैं जानता हूँ कि मेरे देश का समाजवाद/मालगोदाम में लटकती हुई उन बाल्टियों की तरह है जिस पर 'आग' लिखा है।
और उनमें बालू और पानी भरा है।" तात्पर्य स्पष्ट है कि आज समाजवाद का नारा पूँजीपतियों, भ्रष्ट राजनेताओं ने अपने सुरक्षा कवच के रूप में अपना लिया है। वे गरीबों की भूख का सौदा करते हैं और वह भी उस शातिर बदमाश की तरह जो दुष्कृत्य तो करता है किन्तु कोई सबूत नहीं छोड़ता। हमारे देश में समाजवाद उसी तरह खोखला हो गया है जिस तरह मालगोदाम में लटकी हुई बाल्टियाँ, जिनके ऊपर आग लिखा होता है किन्तु अन्दर बालू और पानी भरा होता है । कथन से ही स्पष्ट है कि जो बाहर प्रदर्शित किया जाता है वह अन्दर नहीं होता और समाजवाद स्पष्टत: बाह्य और अन्तर की एकात्म व्यवस्था है । यदि भेद है तो समाजवाद हो ही नहीं सकता। यदि समाजवाद के लक्ष्यों को यथार्थ में पाना है तो आचार्यश्री के इन वचनों का समादर करना होगा:
“अब धन-संग्रह नहीं,/जन-संग्रह करो !/और/लोभ के वशीभूत हो अंधाधुन्ध संकलित का/समुचित वितरण करो/अन्यथा, धनहीनों में/चोरी के भाव जागते हैं, जागे हैं।/चोरी मत करो, चोरी मत करो यह कहना केवल/धर्म का नाटक है/उपरिल सभ्यता"उपचार ! चोर इतने पापी नहीं होते/जितने कि/चोरों को पैदा करने वाले । तुम स्वयं चोर हो/चोरों को पालते हो/और
चोरों के जनक भी।" (पृ. ४६७-४६८) अर्थात् अब धन-संग्रह के स्थान पर जन-संग्रह करो जिससे कि जनहित हो सके, ऐसे कार्य करो । लोभ के वशीभूत होकर जो तुमने अँधाधुन्ध सम्पदा एकत्र की है, उसका समुचित वितरण करो। ऐसा नहीं होने पर धनहीनों (गरीबों) में चोरी के भाव जागते हैं, जागे हैं। चोरी मत करो - चोरी मत करो, यह कहना केवल धर्म का नाटक, बाह्य सभ्यता मात्र बनकर रह गया है, क्योंकि हमारा आचरण चोर बनने के लिए व्यक्तियों को प्रेरणा देता है । वास्तव में चोर इतने पापी नहीं होते जितने कि चोरों को पैदा करने वाले । जो संचयी हैं वे स्वयं चोर हैं। चोरों को वे ही पालते हैं और चोरों को उत्पन्न भी वे ही करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने सोच-विचार को बदलें। किसी शायर ने ठीक ही लिखा
"कोठियों से मत आँकिए मुल्क की मैयार
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है ॥" 'समाजवाद' में क्रान्ति को कोई स्थान नहीं है । यह तो पूरी तरह स्वैच्छिक शान्ति की व्यवस्था है जो "महाजनो येन गत: स पन्थाः" की नीति पर चलती है । इसीलिए सच्चा समाजवादी भावना करता है :