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'मूकमाटी' : हिन्दी का नवीनतम महाकाव्य
डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल हिन्दी महाकाव्य लिखने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। जबसे महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने महाकवि स्वयम्भू के ‘पउम चरिउ' को हिन्दी का प्रथम महाकाव्य घोषित किया, हिन्दी में महाकाव्य लिखने की परम्परा आठवीं-नवमीं शताब्दी तक पहुँच गई । महाकवि स्वयम्भू के पश्चात् अपभ्रंश में, जिसे प्राचीन हिन्दी कहा जाता है, जैन कवियों ने बीसों काव्य लिखे, जिनमें ग्यारहवीं शताब्दी में महाकवि वीर द्वारा वीर-शृंगार रस प्रधान 'जंबूसामी चरिउ', धनपाल द्वारा निबद्ध 'भविसयत्त कहा, यश:कीर्ति द्वारा 'चंदप्पह चरिउ' एवं जयमित्र हल का 'बड्ढमाण चरिउ' के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। महाकवि रइधू ने अपभ्रंश में बीसों काव्य लिखकर एक कीर्तिमान् स्थापित किया । अपभ्रंश भाषा के अतिरिक्त हिन्दी में जायसी ने 'पदमावत' काव्य लिखा, ब्रह्म जिनदास ने 'रामरास' जैसा महाकाव्य हिन्दी में लिखकर इस काव्य परम्परा को आगे बढ़ाया। महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस' जैसा लोकप्रिय महाकाव्य हिन्दी जगत् को उपलब्ध कराया।
विगत पचास वर्षों में पचास से भी अधिक प्रबन्ध काव्य लिखे गए जिनमें 'प्रियप्रवास, 'कामायनी, 'वर्धमान' जैसे महाकाव्यों के नाम उल्लेखनीय हैं। भगवान महावीर के पच्चीस सौवें परिनिर्वाण महोत्सव पर महावीर के जीवन पर आधारित पाँच-छह महाकाव्य लिखे गए। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की जीवन कथा पर आधारित 'ऋषभायन' महाकाव्य लिखकर डॉ. छोटेलाल शर्मा 'नागेन्द्र' ने महाकाव्यों की परम्परा को और भी आगे बढ़ाया। इसी तरह सन् १९८८ में आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने हिन्दी में एक महाकाव्य लिखने का गौरव प्राप्त किया।
___ परमपूज्य आचार्य विद्यासागरजी अपने चिन्तन, मनन, तपश्चरण एवं सतत लेखन के लिए प्रसिद्ध युवा आचार्य हैं। उनकी वाणी में आकर्षण है तथा लेखनी में जादू है । सतत तपश्चर्या में लीन रहने पर भी 'मूकमाटी' जैसे महाकाव्य की रचना उनकी अद्भुत लेखनशक्ति का परिचायक है। कन्नड़भाषी होने पर भी संस्कृत एवं हिन्दी आदि में उनकी लेखनी अनवरत रूप से चलती रहती है । अब तक संस्कृत में पाँच शतक तथा हिन्दी में आपकी चार काव्य कृतियाँ, विभिन्न ग्रन्थों के पद्यानुवाद, अनेक शतक एवं प्रवचन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे राष्ट्रीय जैन सन्त हैं और ग्राम, नगर एवं तीर्थ क्षेत्रों में विहार करते हुए जन-जन को सम्यक् मार्ग पर चलने के लिए अपने वचनामृत पिलाते रहते
'कामायनी' महाकाव्य को छोड़कर अब तक जितने भी महाकाव्य लिखे गए हैं, वे सब पौराणिक कथानकों के आधार पर निबद्ध महाकाव्य हैं। 'कामायनी' का आधार शतपथ ब्राह्मण, वेद एवं पुराणों में लिखित सामग्री है ।
'मूकमाटी' हिन्दी का ऐसा नवीनतम महाकाव्य है जिसका नायक न तो त्रेसठ शलाका महापुरुषों में से है, न कोई पुण्यशील महापुरुष है, न ही राजपुरुष है और न कोई श्रेष्ठिवर्ग में से है । किन्तु, अब तक की महाकाव्यों की परम्पराओं से हटकर आचार्यश्री ने 'मूकमाटी' काव्य की नायिका माटी को बनाया है। काव्य में नायक का स्थान किसी एक को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह काव्य के अन्तिम अध्याय तक नायिका के साथ नहीं रह पाता । यद्यपि काव्य में शिल्पी कुम्भकार तीन सर्ग तक नायक की भूमिका निभाता है तथा चतुर्थ सर्ग में नायक का स्थान सेठ ले लेता है। इन तीन पात्रों के अतिरिक्त और भी बहुत से पात्र बीच में आकर अपनी भूमिका निभाकर चले जाते हैं।
___इस महाकाव्य में धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म के सार को मुक्त छन्दों में निबद्ध करके काव्यरचना को नया स्वरूप प्रदान किया गया है । इसके वर्णन घटना प्रधान न होकर भाव प्रधान हैं। महाकवि की चिन्तनशील विचारों पर आधारित कथावस्तु पाठक को एक नई दृष्टि प्रदान करती है।
प्रस्तुत महाकाव्य केवल चार सर्गों में विभक्त है। ये सर्ग सर्ग ही हैं खण्ड नहीं, जैसा कि महाकाव्य की प्रस्तावना