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पंक्तियों को जीवन का मूलाधार माना जा सकता है :
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मूकमाटी-मीमांसा :: 303
" किसी कार्य को सम्पन्न करते समय / अनुकूलता की प्रतीक्षा करना सही पुरुषार्थ नहीं है ।” (पृ. १३)
'पुरुष' यानी आत्मा - परमात्मा है / 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य - प्रयोजन है आत्मा को छोड़कर / सब पदार्थों को विस्मृत करना ही सही पुरुषार्थ है ।” (पृ. ३४६)
इसमें सेठ के द्वारा किए गए अनेक प्रश्न कवि के सम्मुख रहे हैं, सभी का समाधान वे एक आध्यात्मिक, दार्शनिक व्याख्याता, संवेदनशील कवि की भाँति करते हैं । हम अपनी सीमा से भलीभाँति परिचित हैं तथा इसकी समीक्षा भी अन्य महाकाव्य की भाँति नहीं की जा सकती - इसका सम्यक् बोध हमें है । यही कारण है कि हिन्दी महाकाव्य परम्परा में मुक्त छन्द - प्रस्तुति और नवीन विषय (कथ्य) के कारण इस महाकाव्य को दार्शनिक कवि की एक विलक्षण उपलब्धि मानते हैं । मुक्तछन्द में छन्दबद्धता जैसी लय, प्रवाह है, भीतरी अन्विति से सम्पूर्ण काव्य रोचक सम्मुख नतमस्तक 1
है | हम
पृ. १
निशा का अवसान
उषा की शान हो रही है!