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मूकमाटी-मीमांसा :: 285 भरा पड़ा है । जो उद्धरण यहाँ लिए हैं, वे थोड़े हैं और जो छूटे हैं, वे अपेक्षाकृत विशाल हैं, महत्त्वपूर्ण हैं - इस दृष्टि से इसके प्रति लेखक की एक बेबसी है - विस्तारभय की ।
नगर सेठ द्वारा बन्धन-मुक्ति हेतु मिट्टी के घड़े को प्रधानता और आदर देने से स्वर्णकलश उद्विग्न और उत्तप्त हो जाता है और वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए आतंकवादियों का एक दल आहूत करता है, जो सक्रिय होकर, नगर सेठ के परिवार में त्राहि-त्राहि मचा देता है। स्वर्णकलश और आतंकवाद आज के जीवन के ताज़े सन्दर्भ हैं। महाकवि निराला ने भी शोषक वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में गुलाब को तथा शोषित वर्ग के प्रतीक के रूप में कुकुरमुत्ता,
सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, की कल्पना की है । कवि विद्यासागरजी यहाँ उसी परिकल्पना को साकार रूप देते हैं और युग सन्दर्भ में आज के प्रसंगों के अनुरूप आधुनिक समाज व्यवस्था के विश्लेषण द्वारा उसका समाधान प्रस्तुत करते हैं, उनकी काव्य लक्षणा और व्यंजना पद्धति से सम्भव हो सकी है ।
यदि हम समता के धनी श्रमण का वेश धारण करें तो जीवन में न तो कठिनाई आएगी और न ही विषमतावरन् धरती पर स्वर्ग का अवतरण होगा :
" श्रमण का भेष धारण कर, / अभय का हाथ उठा कर,
शरणागत को आशीष देने की अपेक्षा, / अन्याय मार्ग का अनुसरण करने वाले रावण जैसे शत्रुओं पर / रणांगण में कूदकर / राम जैसे
श्रम-शीलों का हाथ उठाना ही / कलियुग में सत्-युग ला सकता है,
धरती पर यहीं पर / स्वर्ग को उतार सकता है ।" (पृ. ३६१-३६२)
'मूकमाटी' की कथावस्तु में काव्य की गरिमा, कथ्य में धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म की त्रिवेणी, विचारों, भावों एवं चिन्तन में प्रेरणादायक स्फुरण, मुक्त छन्द की मनोरम काव्य शैली में लोक प्रचलित मुहावरे, बीजाक्षरों का चमत्कार, मन्त्र विद्या की आधार भित्ति, आयुर्वेद का प्रयोग, प्रतीक और मिथकों की योजना, अंकों का चमत्कार एवं आधुनिक जीवन में विज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग तथा मानवीय जीवन में उपजी नई-नई अवधारणाओं आदि सभी का समावेश किया गया है | यह आधुनिक जीवन का अभिनवशास्त्र तो है ही, मानव जीवन का महाकाव्य भी है जिसमें मानवीय जीवन की क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं, धारणाओं, अवधारणाओं आदि का सूक्ष्म विवेचन सहज, सरल, मनोरम काव्य शैली में किया गया है। इसका शिल्प उच्च कोटि का बन पड़ा है।
माटी की महिमा अनन्त है । उसका बखान नहीं किया जा सकता है
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“कहाँ तक कही जाय माटी की महिमा, / तुला कहाँ है वह, / तौलें कैसे ? किससे तुलना करें माटी की / यहाँ पर ? / तोल-मोल का अर्थ द्रव्य से नहीं, / वरन्/भाव, गुण-धर्म से है ।" (पृ. ४०६)
मूकमाटी, जो मानव जीवन का पर्याय है, में मानवीय जीवन की सभी धारणाओं, हलचलों, धड़कनों, परिकल्पनाओं, उद्भावनाओं एवं धारणाओं का संगम है । लेखक का यह सन्त कवि विद्यासागरजी के चरणों में श्रद्धा सुमन के एक गुलदस्ते का एक पुष्प है । नमामि ।
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