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272 :: मूकमाटी-मीमांसा
यहाँ तक की कवि ने समकालीन समय में बढ़ते हुए आतंकवाद पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त की है :
"जब तक जीवित है आतंकवाद / शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह, / ये आँखें अब / आतंकवाद को देख नहीं सकतीं,
ये कान अब / आतंक का नाम सुन नहीं सकते,
यह जीवन भी कृत संकल्पित है कि / उसका रहे या इसका यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा । " (पृ. ४४१ )
हम देखते हैं कि आज यह सम्पूर्ण सृष्टि अनेक संकटों के दौर से गुज़र रही है, जिसमें विश्वास का संकट सबसे बड़ा संकट है । अराजकताओं की जननी एक प्रकार से अविश्वास ही है। आचार्यश्री ने 'विश्वास भाव' को हृदय में भरने के लिए प्रेरित किया है :
" क्षेत्र की नहीं, / आचरण की दृष्टि से ....
इसीलिए इन / शब्दों पर विश्वास लाओ, / हाँ, हाँ !! विश्वास को अनुभूति मिलेगी / अवश्य मिलेगी मगर / मार्ग में नहीं, मंज़िल पर !" (पृ. ४८७-४८८)
इस तरह हम देखते हैं कि आचार्यश्री की यह कृति अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । समकालीन समय में जीवन में उत्पन्न हो रही नानाविध समस्याओं का समाधान कवि ने जिस सरलता से किया है वह अपने आप में एकदम सामयिक और सार्थक है । दूसरी ओर इसमें समकालीन समय के जिन शाश्वत मूल्यों के संकट को उठाकर उनका समाधान किया गया है, वह भी एकदम सामयिक है। आज हम देखते हैं कि चारों ओर जीवन मूल्यों का जिस तीव्रता के साथ ह्रास हो रहा है, उसको रोकने के लिए आचार्यश्री की यह कृति अपने अनूठे उपायों का अनुक्रम करती है। 'मूकमाटी' पाश्चात्य सभ्यता के कारण पनप रहे भौतिकवाद को रोकने का एक सशक्त माध्यम भी है, जो इस बात की ओर संकेत करती है कि जीवन का सार भोग में नहीं अपितु योग में है; आसक्ति में नहीं विरक्ति में है; विराधन में नहीं आराधन में है और यही कारण है कि 'मूकमाटी' साहित्य जगत् में कालजयी होने की सशक्त दावेदार रचना बन गई है।
आचार्यश्री की 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी कविता के क्षेत्र में जिन मान बिन्दुओं को लेकर उपस्थित हुई है, उसने जीवन में हताशा, पराजय और कुण्ठा के स्थान पर जिस आशा, पुरुषार्थ और स्थाई मूल्यों का संचार किया, वह अपने आप में अन्यतम ही माना जाएगा। 'मूकमाटी' हमें आदर्शवादी समाज की संरचना की दृष्टि देती है, सदाचरण की शिक्षा देती है और साथ ही साथ एक ऐसी जीवन दृष्टि भी प्रदान करती है जिससे व्यक्ति साधक की श्रेणी में पहुँच जाता है । डॉ. भागचन्द्र जैन ‘भास्कर' की कृति 'मूकमाटी : एक दार्शनिक महाकृति' के अनुसार : "आधुनिकता की परम्परा से हटकर 'मूकमाटी' महाकाव्य ने सामुदायिक चेतना की पृष्ठभूमि में आध्यात्मिक अभ्युत्थान को जिस रूप में उन्मेषित किया है, वह वास्तव में बेजोड़ है।" इस रूप में 'मूकमाटी' नई कविता का एक सशक्त हस्ताक्षर है ।
कुल मिलाकर 'मूकमाटी' के विषय में इतना कहना ही पर्याप्त होगा :
१. 'मूकमाटी' आधुनिक युग का एक ऐसा महाकाव्य है जिसमें सामयिक समस्याओं का समाधान अत्यन्त सरलता साथ किया गया है।
२. विज्ञान के इस विनाशकारी युग में इस कृति के माध्यम से ऐसे सूत्रों का सूत्रपात हुआ है जिसे अंगीकार कर इस विश्वव्यापी विनाश को रोका जा सकता है। विश्व शान्ति स्थापित करने में ये सूत्र मूलमन्त्र हैं ।