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मूकमाटी-मीमांसा : कवि ने अपनी इस कृति में महाकवि भवभूति की भाँति 'करुण' रस को जीवन का प्राण स्वीकारा है । 'वात्सल्य' रस को जीवन का त्राण और 'शान्त' रस को जीवन का गान माना है (पृ. १५९) ।
इस कृति में कवि ने गणित का भी बड़ा सूक्ष्म निदर्शन प्रस्तुत किया है- '९९ के चक्कर' को सिद्ध करते हुए कवि ने अन्त में हर प्रकार ९ ही शेष दिखाया है, यथा
“९९ x २ = १९८, १+९+८ = १८, १+८ =९
या
९ x २ = १८,_१+ ८ = ९ ।” (पृ. १६६-१६७)
अर्थात् हमारा ध्येय ९ ही है। इसका तात्पर्य कवि ने नव-जीवन के स्रोत से लिया है। इसी प्रकार ६३ और ३६ का भी उदाहरण दिया है । ६३ की व्याख्या करते हुए कवि ने माना है - एक-दूसरे के सुख-दु:ख में परस्पर भाग लेना सज्जनता की पहचान है, लेकिन जब ६३ का विलोम परिणमन होता है तो ३६ का आगमन होता है । फिर क्या बताना ! ३६ के आगे एक और तीन की संख्या जुड़ जाती है। कुल मिलाकर ३६३ मतों का उद्भव होता है, जो परस्पर एक- - दूसरे खून के प्यासे होते हैं, जिनका दर्शन सुलभ है आज इस धरती पर ।
'ही' और 'भी' इन दोनों बीजाक्षरों का दर्शन कवि ने मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया है :
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'ही' एकान्तवाद का समर्थक है / 'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक । हम ही सब कुछ हैं/यूँ कहता है 'ही' सदा, / तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो ! और,/'भी' का कहना है कि / हम भी हैं / तुम भी हो / सब कुछ ! 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को/ 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सबको, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है/ 'भी' वस्तु के भीतरी भाग को भी छूता है, 'ही' पश्चिमी सभ्यता है / 'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता । " (पृ. १७२-१७३)
कवि की उपर्युक्त पंक्तियों में लोकमंगल की समुज्ज्वल भावना मुखरित हुई है।
काव्य का तीसरा अध्याय 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' है । मन, क्रम (काया / शरीर), वचन से पुण्य सोचना, पुण्य करना और पुण्य बोलना ही पुण्य का पालन है । काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर का त्याग ही पाप
प्रक्षालन है।
इस खण्ड में कवि ने मिट्टी की विकास कथा की उपलब्धि दिखाई है । कवि ने इस अध्याय में न्याय पथ का पथिक बनने का महान् सन्देश प्रेषित किया है । अन्याय पक्ष के विलय के लिए और न्याय पक्ष की विजय के लिए यह कवि का सत्प्रयास ही कहा जाएगा ।
कवि ने यहाँ नारी को समस्त गुणों का आधार माना है । वह वासना की शुक्ति नहीं, साक्षात् त्याग और मुक्ति है। नारी के प्रत्येक पर्याय शब्द की नित्य नूतन, अनूठी और मौलिक व्यंजना प्रस्तुत की है। इनमें कुछ शब्द जैसे-नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, मातृ, अंगना आदि हैं ।
कवि नवीनता के वरण के लिए प्रस्तुत है । नवीनता ही लोक मंगल का मूल है जिसका यशोगान हमारे अन्य वरेण्य कवियों ने भी किया है। 'मूकमाटी' का एक दृश्य देखें :
"कलियाँ छवियाँ घुल-1
खुल खिल पड़ीं / पवन की हँसियों में, ल-मिल गईं / गगन की गलियों में,