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86 :: मूकमाटी-मीमांसा
यही कारण है, कि यहाँ/कोई पिता-पितामह, पुरुष नहीं है जो सब की आधार-शिला हो,/सब की जननी/मात्र मातृतत्त्व है। ...इसीलिए इस जीवन में/माता का मान-सम्मान हो,
उसी का जय-गान हो सदा,/धन्य!" (पृ. २०६) ___ यहाँ आचार्यश्री ने मातृ शक्ति के उदात्त आदर्श को प्रस्तुत किया है। भारत में जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बड़ा समझा गया है : “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी'' । पृथ्वी की समस्त शक्तियों के विकास के लिए नारी, पत्नी व माता के रूप में अन्त:प्रेरणा देने वाली है । नारी का एक नाम महिला भी है। महिला शब्द की व्युत्पत्ति मह+इलच+आ= महिला बताई गई है । मह का अर्थ पूजा है । पूज्य होने के कारण स्त्री का नाम 'महिला' पड़ा। आचार्यश्री कहते हैं :
"जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है, 'महिला' कहलाती वह ।/जो निराधार हुआ, निरालम्ब,/आधार का भूखा जीवन के प्रति उदासीन - हतोत्साही हुआ/उस पुरुष में../मही यानी धरती घृति-धारिणी जननी के प्रति/अपूर्व आस्था जगाती है। और पुरुष को रास्ता बताती है/सही-सही गन्तव्य का
महिला कहलाती वह !" (पृ. २०२) यही नहीं नारी पति की मार्गदर्शिका है। पति के लिए पावन प्रेम ही उसे देवी बनाता है। सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए जरूरी है कि पति-पत्नी जीवन के सुख-दुःख एक साथ झेलें । पति-पत्नी का प्रेम मर्यादा एवं आदर्श पर आधारित होता है । सृष्टि के प्रमुख दो तत्त्व हैं-पुरुष और प्रकृति । पुरुष सृष्टि का मुख्य तत्त्व है, जिसके संयोग से प्रकृति विश्व की सृष्टि करती है। आचार्य श्री विद्यासागरजी के शब्दों में :
"पुरुष और प्रकृति/इन दोनों के खेल का नाम ही संसार है, यह कहना,/मूढ़ता है, मोह की महिमा मात्र ! खेल खेलने वाला तो पुरुष है/और/प्रकृति खिलौना मात्र ! स्वयं को खिलौना बनाना/कोई खेल नहीं है, विशेष खिलाड़ी की बात है यह !/...'प्रकृति का प्रेम पाये बिना,
पुरुष का पुरुषार्थ फलता नहीं।” (पृ. ३९४-३९५) पुरुष और प्रकृति सनातन हैं। उनके योग से ही सृष्टि चल रही है। प्रकृति सृष्टिकर्ती है । वह जननी है । नारी की महिमा के गायक सन्त कवि आचार्य विद्यासागरजी भारत की नैतिक एवं आर्थिक प्रगति में नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानते हैं। वह नारी को भारतीय संस्कृति के बलिष्ठ, पवित्र एवं दृढ़ सिद्धान्तों से सज्जित एवं निम्न व दूषित प्रवृत्तियों से अनायास मुक्त, सीता व सावित्री के रूप में प्रतिष्ठित देखना चाहते हैं। आचार्यश्री ने 'मूकमाटी' महाकाव्य में जिस नारी विषयक अवधारणा को नवीन दृष्टि प्रदान की है, वह आज के वैज्ञानिक युग में प्रासंगिक है व स्तुत्य है।