________________
नयी कविता से अलग : 'मूकमाटी'
डॉ. (श्रीमती) कृष्णा रैणा स्वाधीनता प्राप्ति के लिए संघर्ष और स्वाधीनता की प्राप्ति आज के भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाएँ हैं। इनसे देश का इतिहास ही बदल गया, यहाँ की परिस्थिति बदली, परिवेश बदला और यहाँ का साहित्य बदला । सन् १९४३ ई. में अज्ञेय के सम्पादकत्व में प्रयोगवादी कविताओं का एक संकलन ‘तार सप्तक' नाम से प्रकाशित हुआ था जिससे प्रयोगवादी कविता का आरम्भ माना जाता है । स्वयं अज्ञेय ने 'प्रयोगवाद' नाम स्वीकार नहीं किया था। 'तार सप्तक' की भूमिका में उनके ये शब्द बड़े वज़नदार हैं : “सातों कवि एक दूसरे से परिचित हैं किन्तु इससे यह परिणाम न निकाला जाए कि वे कविता के किसी स्कूल के कवि हैं या किसी साहित्य जगत् के, किसी गुट अथवा दल के सदस्य या समर्थक हैं बल्कि उनके तो एकत्र होने का कारण यही है कि वे किसी मंज़िल पर पहुँचे हुए नहीं हैं, अभी राही हैं। राही नहीं - राहों के अन्वेषी हैं। सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर उनकी राय अलग-अलग है। प्रत्येक युग की कविता अपने युग की परिस्थितियों की देन होती है । कवि अपने युग सत्य को प्रस्तुत करना चाहता है।' सन् १९५१ ई. में 'दूसरा सप्तक' के प्रकाशन से कविता का नया दौर चला जिसे 'नयी कविता' नाम दिया गया । कुछ लोग नयी कविता और प्रयोगवादी कविता को एक प्रकार की कविता मानते हैं परन्तु मेरे विचार से नयी कविता अपने पहले की कविता से एकदम भिन्न है।
नयी कविता ने यथार्थ को अभिव्यक्ति दी। इस कविता में भोगा हुआ यथार्थ तथा अनुभूत सत्य है । इसमें कवि ने परस्पर विरोधी जटिल और जीवन के उलझे हुए सन्दर्भ भी लिए हैं। नया कवि नए मूल्यों की तलाश में है। उसके लिए पुराने मूल्य विघटित हो गए हैं और मिथ्या पड़ गए हैं। आधुनिक कविता का मूल्यांकन' (पृ. ८७) में डॉ. इन्द्रनाथ मदान के अनुसार : "नयी कविता का उद्देश्य जीवन की नवीन परिस्थिति, उसके नवीन स्वरों एवं धरातलों को व्यक्त सत्य की दृष्टि से अभिव्यक्ति देना है।'' 'हिन्दी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य' (पृ.१४१) में अज्ञेय ने लिखा है : "नयी कविता का फलक जीवन का विस्तृत सन्दर्भ बन गया। इसमें मानव की पुन: प्रतिष्ठा की खोज है । नयी कविता सबसे पहले एक नयी मन:स्थिति का प्रतिबिम्ब है-एक नए मूड का, एक नए राग सम्बन्ध का।" इस कविता में नवीन जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए आग्रह है और विशेष रूप से मूल्यों की स्थिति में ही इस कविता ने व्यक्ति और समाज को लिया है । आधुनिकता इसका प्राणतत्त्व है । नए कवियों ने पुराने और परम्परागत मूल्यों को अप्रासंगिक माना । मान्यताओं के आगे प्रश्नचिह्न लग गए । इसमें मनुष्य के भीतरी दर्द को लिया गया है और उसे यथार्थ दृष्टि से आँका गया । इस सन्दर्भ में यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के साहित्य पर अस्तित्ववादी दर्शन का प्रभाव भी देखने में आता है । कवि क्षण के प्रति पूरी तरह सचेत है। वह भीड़ में रहकर भीड़ से अलग है, रिश्तों में रहकर रिश्तों से तटस्थ है। वह अपने को अकेला अनुभव करता है । परन्तु जहाँ हम एक ओर कविता में मूल्यहीनता की ऊब, कुण्ठा, रिक्तता, सन्त्रास और घुटन की हवा पाते हैं वहीं हमारी सन्त काव्यधारा भी अजस्र रूप से प्रवाहित है।
भारत वर्ष में सन्त परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है । यदि हम भारत के इतिहास और साहित्य के इतिहास को देखें तो ज्ञात होगा कि यहाँ समय-समय पर सन्तों ने अपनी सरल, सहज वाणी द्वारा आध्यात्मिक अनुभवों को आम आदमी तक पहुँचाया है । आज यदि कबीर या तुलसी के साहित्य की प्रासंगिकता की बात की जाती है तो यह साहित्य इसी कारण प्रासंगिक है, क्योंकि यह आम आदमी के लिए है और आम आदमी की भाषा में है । आज का युग सत्य भी कुछ-कुछ उनके युग सत्यों से मिलता है। इन कवियों ने जो बात की, प्रेम, अध्यात्म, समन्वय, ज्ञान, आस्था