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102 :: मूकमाटी-मीमांसा
'ही' और 'भी' :
साहित्य
कला :
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'ही' पश्चिमी सभ्यता है / 'भी' है भारतीय संस्कृति...।” (पृ. १७३) “जिस के अवलोकन से/ सुख का समुद्भव - सम्पादन हो ।” (पृ. १११) 'कला मात्र से जीवन में / सुख-शान्ति सम्पन्नता आती है ।” (पृ. ३९६)
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'नारी' : आचार्यश्री ने नारी की महिमा को स्वीकारा है। उसके पर्यायवाची शब्दों के व्युत्पत्तिपरक व्याकरणिक अर्थों से नवीन अवधारणाएँ स्थापित की हैं। नारी याने मित्र, महिला याने मार्गदर्शक, अबला याने वर्तमान में लाने वाली, स्त्री याने पुरुष को संयत करने वाली, अंगना याने शरीर ही नहीं आत्मा को बतलाने वाली, कुमारी याने सम्पत्तिदात्री, सुता याने सुख-सुविधाओं का स्रोत, दुहिता याने अपना और पति दोनों का हित साधने वाली और मातृ याने ज्ञाता और ज्ञेय की धारिणी (पृ.२०१-२०७) । इन अर्थों में कवि की प्रतिभा का चमत्कार लक्षित होता है।
दण्ड संहिता :
"प्राणदण्ड से /औरों को तो शिक्षा मिलती है, / परन्तु
जिसे दण्ड दिया जा रहा है / उसकी उन्नति का अवसर ही समाप्त । दण्डसंहिता इसको माने या न माने,
क्रूर अपराधी को / क्रूरता से दण्डित करना भी
एक अपराध है,/ न्याय मार्ग से स्खलित होना है ।" (पृ. ४३१ )
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चिकित्साशास्त्र : ‘स्वस्थ तन स्वस्थ मन' के मन्त्र का समर्थन करने वाले सन्त कवि ने एलोपैथिक चिकित्सा की अपेक्षा आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार का समर्थन किया है। माटी सब रोगों का उपचार है (पृ. ४०५-४०६) । इसी प्रकार मणि, मुक्ता, हीरा, पुखराज, स्फटिक, माणिक और नीलम आदि असाध्य रोगों के उपचारक हैं
(पृ. ४११-४१२) तथा चन्दन, घृत, तैल और दुग्ध दाह-रोग नाशक हैं (पृ. ४१३-४१४) ।
संगीत : संगीत के सप्त स्वरों की व्याख्या कवि ने यों की है।
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" सा रे ग म यानी / सभी प्रकार के दु:ख पध यानी ! पद - स्वभाव / नि यानी नहीं,
दु:ख आत्मा का स्वभाव - धर्म नहीं हो सकता । " (पृ. ३०५ ) वाद्य के अर्थ में नवीनता है :
"धा" धिन् धिन धा / वेतन- भिन्ना चेतन - भिन्ना,...
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ता" तिन तिन ता / का तन चिन्ता, का तन" चिन्ता ?" (पृ. ३०६ )
संस्कृति : मंगल कलश को संस्कारित करते समय शिल्पी ने जो संख्याओं का अंकन और चित्रों का चित्रणं किया, वह भारतीय कला के उत्कृष्ट नमूने हैं । ९ का अंक अविनश्वरता, ९९ के अंक नश्वरता के, ६३ के अंक त्रिषष्ठिशलाका पुरुषों के, ३६ के अंक विरोध के और ३६३ के अंक संघर्ष के द्योतक हैं। कलश पर सिंह, श्वान, कच्छप और खरगोश के, चन्द्र-बिन्दुयुक्त ओंकार और स्वस्तिक आदि को अंकित कर कवि ने सोद्देश्य कला को प्रश्रय दिया है (पृ. १६६-१७६) । 'कर पर कर दो', 'मैं दो गला', 'मर, हम मरहम बनें' और 'प्रमाद पथिक का परम शत्रु है' जैसे आलेख प्रबोध के हेतु हैं। कलश के गले में लिखित 'ही' का अक्षर एकान्त दर्शन का और 'भी' का अक्षर अनेकान्त दर्शन
है।
विज्ञान : जल-प्लावन के द्वारा सागर ने धरती पर अत्याचार किया । धरती के मित्र इन्द्र ने बादलों पर वज्र प्रहार किया । बादलों ने विद्युत् प्रहार किया, गड़गड़ाहट से सौर मण्डल बहरा हो गया । बादलों ने ओलावृष्टि की।