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138 :: मूकमाटी-मीमांसा कई उर्दू, अरबी, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है। पर ये ग्रामीण या उर्दू आदि के शब्द स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त होने से भाषा की शोभा ही बने हैं। कवि ने अपने भावों को अधिक स्पष्ट करने के लिए, लोकभोग्य बनाने के लिए उपमा, रूपक, उदाहरण, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का एवं बिम्ब-प्रतीकों का बड़ा ही सुन्दर प्रयोग किया है। प्रकृति चित्रण में भी अलंकारों का प्रयोग किया है । कृति में अनेक अलंकारों के उदाहरण अंकित हैं । यहाँ कुछ उदाहरण ही प्रस्तुत हैं :
0 "कुशल लेखक को भी,/जो नई निबवाली/लेखनी ले लिखता है
लेखन के आदि में/खुरदरापन ही/अनुभूत होता है।” (पृ. २४) . "सावरणा-साभरणा/लज्जा का अनुभव करती,
नवविवाहिता तनूदरा/यूँघट में से झाँकती-सी"।" (पृ. ३०) ० "उछलती हुई उपयोग की परिणति वह/करुणा है/नहर की भाँति !"(पृ. १५५) 0 "सिंह और श्वान का चित्रण भी/बिना बोले ही सन्देश दे रहा है।" (पृ. १६९) 0 "कभी कराल काला राहू/प्रभा-पुंज भानु को भी/पूरा निगलता हुआ दिखा,
कभी-कभार भानु भी वह/अनल उगलता हुआ दिखा।" (पृ. १८२) . "दधि-धवला साड़ी पहने/पहली वाली बदली वह
ऊपर से/साधनारत साध्वी-सी लगती है।" (पृ. १९९) 0 "इससे पिछली, बिचली बदली ने/पलाश की हँसी-सी साड़ी पहनी।" (पृ. २००) . "प्रभाकर के कर-परस पाकर/अधरों पर मन्द-मुस्कान ले
सरवर में सरोजिनी खिलती हैं।" (पृ. २१५) "रणभेरी सुनकर/रणांगन में कूदने वाले/स्वाभिमानी स्वराज्य-प्रेमी लोहित-लोचन उद्भट-सम/या/तप्त लौह-पिण्ड पर
घन-प्रहार से, चट-चट छूटते/स्फुलिंग अनुचटन-सम ।" (पृ. २४३) 0 “आज का यह दृश्य/ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि
ग्रह-नक्षत्र-ताराओं समेत/रवि और शशि
मेरु-पर्वत की प्रदक्षिणा दे रहे हैं।” (पृ. ३२३) कवि नए युग के बिम्ब-प्रतीकों को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत कर कविता को नए युगबोध से युक्त बना सका है :
0 "मस्तक के बल भू-कणों ने भी/ओलों को टक्कर देकर
उछाल दिया शून्य में/बहुत दूर"धरती के कक्ष के बाहर, 'आर्यभट्ट, रोहिणी' आदिक/उपग्रहों को उछाल देता है
यथा प्रक्षेपास्त्र!" (पृ. २५०) 0 “यह घटना-क्रम/घण्टों तक चलता रहा "लगातार,
इसके सामने 'स्टार-वार'/जो इन दिनों चर्चा का विषय बना है
विशेष महत्त्व नहीं रखता।" (पृ. २५१) 0 "उड़ रहे हैं भू-कण !/सो"ऐसा लग रहा, कि/हनूमान अपने सर पर
हिमालय ले उड़ रहा हो !" (पृ. २५१)