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94 :: मूकमाटी-मीमांसा यात्रा रहती है । यह यात्रा भेद से अभेद की ओर, वेद से अवेद की ओर बढ़ती है :
"जल और जवलनशील अनल में/अन्तर शेष रहता ही नहीं साधक की अन्तर-दृष्टि में/निरन्तर साधना की यात्रा भेद से अभेद की ओर/वेद से अवेद की ओर/बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए
अन्यथा,/वह यात्रा नाम की है/यात्रा की शुरूआत अभी नहीं हुई है।" (पृ. २६७) 'मूकमाटी' का चौथा खण्ड है ‘अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख'। इसमें वर्णित है कि अवा में कुम्भ कई दिन तक तपता रहा फिर कुम्भकार पके कुम्भ को बाहर निकालता है और श्रद्धालु नगर-सेठ के सेवक को देता है ताकि इसमें भरे जल से गुरु का पाद-प्रक्षालन हो और उनकी प्यास बुझ जाए। लेने से पहले सेवक कुम्भ को सात बार बजाता है। साधु की आहार-दान प्रक्रिया में भक्ति, हर्ष, विषाद, धर्मोपदेश, पूजा, उपासना के उपकरण आदि की व्याख्या आती है । काव्य में स्वर्णकलश की उपेक्षा कर मिट्टी के घड़े का वर्णन है। इस अपमान का बदला लेने के लिए स्वर्णकलश एक दल बना लेता है, जो त्राहि-त्राहि मचा लेता है । यह स्वर्णकलश और इसका आतंक मचाना युग सन्दर्भ की दृष्टि से सार्थक है। इसमें लेखक बताता है कि जब तक धरती पर आतंकवाद है तब तक यहाँ शान्ति नहीं हो सकती है :
"जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकतीं,
ये कान अब/आतंक का नाम सुन नहीं सकते।” (पृ. ४४१) यह कैसा युग है ? क्या असत्य शासक बनेगा और सत्य शासित होगा ? क्या आज वास्तविक हीरों की हार हो जाएगी और काँच की ही चकाचौंध छा जाएगी ?
"यह कैसा काल आ गया,/क्या असत्य शासक बनेगा अब ? क्या सत्य शासित होगा?/हाय रे जौहरी के हाट में आज हीरक-हार की हार !/हाय रे, काँच की चकाचौंध में
मरी जा रही-/हीरे की झगझगाहट !" (पृ. ४६९-४७०) क्या सत्य आत्मसमर्पण करेगा असत्य के सामने और सती व्यभिचारिणी के पीछे-पीछे चलेगी ? कवि के अनुसार बुरा समय समाप्त होगा और जीवन फिर से मंगलमय बनेगा । अमंगल भाव टल जाएँगे और आशा की किरण फूट पड़ेगी। सब के जीवन की लता पुन: सुख में हरी-भरी हो जाएगी। आतंकवाद के पश्चात् अनन्तवाद का श्रीगणेश होगा:
"आतंकवाद का अन्त/और/अनन्तवाद का श्रीगणेश !" (पृ. ४७८) भारतीय दर्शन की ऐसी मान्यता और परम्परा रही है कि भौतिक जीवन नश्वर है, अत: प्रबुद्ध प्राणी सांसारिक सुखों और वैभव के पीछे नहीं दौड़ते थे। वे सदैव आध्यात्मिक चिन्तन-मनन में लगे रहते थे परन्तु यह ऋषि-परम्परा अब इस काल में लुप्तप्राय है । आज भी यदि व्यक्ति सामाजिक दायित्व को समझे, समभाव और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की बात करे तो अधिकांश दुःख और कलुष मिट जाएँगे।
इस काव्य में भारतीय चिन्तन पद्धति को लिया गया है । इस काव्य का आधार दर्शन है । 'मूकमाटी' में जीवन दर्शन की व्याख्या है, इसके साथ ही प्रकृति का चित्रण प्रांजल रूप में है । साहित्य की परिभाषा भी इसमें मिलती है।