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श्री अरविन्द की 'सावित्री' और आचार्य विद्यासागर की 'मूकमाटी': एक तुलनात्मक दृष्टि
डॉ. देवकीनन्दन श्रीवास्तव स्वरूप, प्रेरणा, भावभूमि, प्रतिपाद्य विषय, पात्र योजना, भाषा शैली, प्रतीक विधान, विचारधारा और सन्देश इत्यादि विविध पक्षों का पारस्परिक वैभिन्य होते हुए भी श्री अरविन्द की सावित्री' और आचार्य विद्यासागर का 'मूकमाटी' महाकाव्य भारतीय वाङ्मय की अध्यात्मपरक काव्य परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इसी दृष्टि से इन दोनों काव्यकृतियों की सापेक्षिक तुलनात्मक चर्चा सम्भव है।
श्री अरविन्द की 'सावित्री' एक संसिद्ध ऋषि की योगपरक मधुमती भूमिका में अवतरित आर्ष महाकाव्य हैं, जो एक साथ ही महाकाव्य और प्रतीकात्मक गाथा भी है और उसकी मूल प्रेरणा वैदिक एवं पौराणिक वाङ्मय में विद्यमान है । 'मूकमाटी' एक मनीषी जैन मुनि-आचार्य का प्रगीतात्मक प्रबन्धकाव्य है जिसकी मूल प्रेरणा जैन दर्शन के अध्यात्मचिन्तन में है। 'सावित्री' की कथावस्तु का स्रोत महाभारत का प्रख्यात सावित्री उपाख्यान है, जिसे कवि ने एक विशिष्ट प्रतीकात्मक अर्थवत्ता प्रदान की है। 'मूकमाटी' की कथावस्तु मुख्यतः कवि कल्पना प्रसूत है, जिसके माध्यम से उसने 'माटी' के मौन की सूक्ष्म गाथा के रूप में धरती की वेदना को मुखर किया है। 'सावित्री' का मुख्य प्रतिपाद्य मर्त्य प्रकृति का अमरत्व में रूपान्तर है । 'मूकमाटी' का प्रतिपाद्य आज की आतंकवादी एवं कुण्ठाग्रस्त मनोवृत्तियों के स्थान में उदात्त नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा है । 'सावित्री' के पात्र प्रख्यात, पौराणिक एवं ऐतिहासिक व्यक्ति होते हुए भी प्रतीकात्मक रहस्यमयता के स्तर पर नवीन हो उठे हैं । 'मूकमाटी' के पात्र सूक्ष्म एवं प्रतीकात्मक होते हुए भी जीवन की विभिन्न मन:स्थितियों के प्रतिनिधि रूप में जीवन्त हो उठे हैं।
'सावित्री' का परम सन्देश प्रकृति के सर्वांगीण रूपान्तर द्वारा दिव्य वैश्व प्रेम का शाश्वत आदर्श है। 'मूकमाटी' का चरम सन्देश वैश्व अहिंसा के माध्यम से जन-जन व्यापी करुणा एवं संवेदना का जागरण है। 'सावित्री' अतिमानसिक भावभूमि पर अतिमानव के दिव्य अवतरण का काव्य है । 'मूकमाटी' उच्चतर मानसिक भावभूमि पर लघुमानव की सूक्ष्म एवं उदात्त महिमा का काव्य है । 'सावित्री' में आंग्ल भाषा की प्रकृति के अनुरूप शब्द शिल्प, अर्थ व्यंजना, मुक्त छन्द विधान एवं लय-संगीत का निर्वाह हुआ है । 'मूकमाटी' में हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुरूप वर्ण मैत्री, अर्थ सरणि, मुक्त वृत्त विधान एवं लय की अभिव्यक्ति हुई है। 'सावित्री' में शास्त्रनिष्ठ (क्लॉसिकल) अभिजात प्रतिपादन पद्धति की छाप है। 'मूकमाटी' में लोकनिष्ठ जनचेतना की संवाहक प्रयोग परम्परा का प्रवाह है । 'सावित्री' में योग, दर्शन, विज्ञान एवं अध्यात्म के अनेक गूढ़ रहस्यों का अद्भुत समन्वय हुआ है । 'मूकमाटी' में जैन दर्शन के अनुरूप मानवतावादी नैतिकता तथा जैन ध्यान-साधना की आध्यात्मिक मनोभूमि का स्पन्दन है।
सावित्री' प्रज्ञा प्रधान ऋचाकाव्य की कोटि में आता है जिसमें पराचेतना के अतिमानसिक चिदानन्द के स्तर पर दिव्य रस की निष्पत्ति हुई है । 'मूकमाटी' मननप्रधान संवेदनापरक काव्य है, जिसमें ऊर्वोन्मुख एवं अन्तर्मुखी चेतना के विश्वव्यापी प्रशान्ति के स्तर पर श्रेष्ठ भावयोग का निर्वाह हुआ है।
'सावित्री' प्रेम-सौन्दर्य-आनन्दपरक संचरण भूमि पर परम ऋत्, चित् एवं सत्य के साक्षात्कार का महिम मन्त्रकाव्य है। 'मूकमाटी' नीति, दर्शन, अहिंसा एवं करुणापरक भावबोध के धरातल पर यथार्थ युग चेतना के घटाटोप के भीतर से झाँकते हुए भावी मानव कल्याण के आह्वान का सन्देश काव्य है । 'सावित्री' परम व्योम की चिन्मय तन्मयता के स्पन्दन से अणु-अणु, परमाणु-परमाणु के भागवत रूपान्तर का उद्घोषक भविष्यगामी विकास यात्रा का संवाहक उद्गीथ है। 'मूकमाटी' वसुन्धरा की रज-रज के कण-कण की ऊर्जा में व्याप्त उसकी चिदम्बरा संवेदन धारा