________________
48 :: मूकमाटी-मीमांसा बराबर बनी रहती है। सबसे अच्छी बात यह है कि कवि ने कहीं भी भाषा को जटिल नहीं होने दिया है। सरलता और सहज भावाभिव्यक्ति निरन्तर बनी रहती है।
___दूसरे खण्ड का नाम 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं है। माटी जल के साथ मिलकर क्या रूप धारण करती है?
"माटी के प्राणों में जा,/पानी ने वहाँ/नव-प्राण पाया है, ज्ञानी के पदों में जा/अज्ञानी ने जहाँ/नव-ज्ञान पाया है। अस्थिर को स्थिरता मिली/अचिर को चिरता मिली
नव-नूतन परिवर्तन"!" (पृ. ८९) माटी की बात करते-करते कवि की कल्पना बहुत दूर-दूर तक घूम कर आ जाती है । पश्चिमी सभ्यता और भारतीय संस्कृति के अन्तर को चरितार्थ करने लगती है । कुम्भकार माटी को नया रूप, आकार देता है। व्यंजना और अभिधा की बात करते-करते कवि साहित्य की परिभाषा देते हुए कहते हैं :
"हित से जो युक्त - समन्वित होता है/वह सहित माना है/और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो
सही साहित्य वही है ।" (पृ. १११) जीवन की सुख-शान्ति का उपदेश देते हुए कहा गया है :
"जीवन को मत रण बनाओ/प्रकृति माँ का न मन दुखाओ।" (पृ. १४९) कवि रसों की बात करते हुए कहता है :
"करुणा-रस जीवन का प्राण है/...वात्सल्य-जीवन का त्राण है
...शान्त-रस जीवन का गान है ।" (पृ. १५९) नौ और निन्यानवे की संख्या को लेकर कवि ने अनेक पदों की रचना की है। उन संख्याओं के माध्यम से अनेक दार्शनिक तथ्यों का विवेचन भी किया है।
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के माध्यम से सौन्दर्य लाने में कवि को पूरी सफलता मिली है। साथ ही संगीत और लय भी प्रतिध्वनित है।
"जब उतारा गया वह/वसन्त के तन पर से/कफ़न "कफ़न 'कफ़न
यहाँ गल रही है केवल/तपन "तपन "तपन"!"(पृ. १८१) शब्दों में अक्षरों के उलट-फेर से चमत्कार करने का प्रयास भी दिखाई देता है।
तीसरा खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' है। इसका प्रारम्भ बड़े दार्शनिक ढंग से हुआ है । धरती पर जब प्रलय होता है तो वह जल के कारण होता है । वह उसको शीतलता का लोभ दे उसका सर्वस्व लूट लेता है। धरती का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। उसका वसुन्धरा रूप नष्ट हो जाता है । जल रत्नाकर बनकर धरती के वैभव को नष्ट कर देता है । अन्तरकथाओं का निरूपण भी इस काव्य की विशेषता है । कवि ने उनका समावेश बहुत ही सहज ढंग से किया
. "लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन/रावण हो या सीता