________________
'मूकमाटी': एक अनूठी काव्यानुभूति
जवाहर लाल दर्डा
आचार्य विद्यासागर रचित महाकाव्य 'मूकमाटी' एक ऐसा काव्य है जो अनुभूति के उच्चस्तर पर पाठक को ले जाता है। सीधी, सरल परन्तु गहन अर्थभरी यह काव्य शैली मन को आकृष्ट करती है और हम काव्यानन्द में डूब जाते हैं । इस काव्य में अध्यात्म इस तरह से गूंथा है कि मानों वह कोमल, सुगन्ध से भरपूर सुमनों की एक माला है। उसमें अलंकारों की छटा के साथ सजीव वार्तालाप है, जो अर्थपूर्ण है । आत्म-विशुद्धि की मंज़िलों पर पग चलते हुए लोकमंगल को साधने में यह काव्य निश्चित ही मदद करता है। यह एक अनूठी काव्यानूभूति है । इस काव्य में शब्दालंकार और अर्थालंकार अनगिनत हैं। माटी की वेदना और कथा इतनी करुणा से विद्यासागरजी ने व्यक्त की है कि काव्यरसिक भावनाओं में एकरूप हो जाता है। यही इस काव्य की श्रेष्ठता है ।
'मूकमाटी' का चार खण्डों में कवि के द्वारा किया हुआ विभाजन इतना सफल हुआ है कि एक-दूसरे में वे मिले-जुले हैं। इस काव्य की विशेषता यह है कि इसमें जीवन के शाश्वत सत्य बड़ी सहजता से व्यक्त किए हैं। इनमें से कुछ शाश्वत सत्य इस प्रकार हैं
:
" बहना ही जीवन है । " (पृ. २)
" सत्ता शाश्वत होती है।" (पृ. ७)
“जैसी संगति मिलती है/ वैसी मति होती है।” (पृ. ८)
66
'असत्य की सही पहचान ही / सत्य का अवधान है।" (पृ. ९)
"आस्था के बिना रास्ता नहीं । " (पृ. १० )
“संघर्षमय जीवन का उपसंहार / नियम रूप से / हर्षमय होता है ।" (पृ. १४)
'लक्ष्य की ओर बढ़ना ही / सम्प्रेषण का सही स्वरूप है ।" (पृ. २२)
O
" दया का होना ही / जीव-विज्ञान का / सम्यक् परिचय है।” (पृ. ३७)
O
"दम सुख है, सुख का स्रोत / मद दु:ख है, सुख की मौत ।” (पृ. १०२ ) ० "पुरुष होता है भोक्ता / और / भोग्या होती प्रकृति । " (पृ. ३९१)
O
“बन्धन रूप तन,/मन और वचन का / आमूल मिट जाना ही मोक्ष है ।" (पृ. ४८६ )
O
D
O
O
O
ם
आशा है यह काव्य पढ़कर नास्तिक व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तन होगा और वह इस काव्य में धर्म-दर्शन तथा अध्यात्म देख पाएगा, यही इस काव्य की सफलता है । इस प्रेरणादायी साहित्य के रचयिता आचार्य विद्यासागरजी को मैं विनम्र प्रणाम कर उनकी रचना का न केवल स्वागत करता हूँ बल्कि प्रशंसा भी करता हूँ ।
इस तरह का महाकाव्य प्रसिद्ध कर 'भारतीय ज्ञानपीठ' ने अपनी उज्ज्वल परम्परा कायम रखी है । यह सचमुच प्रशंसनीय प्रयास है ।
O