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कालिदास पर्याय कोश यद्वा तनोति विस्तारयति, तन्+तनोतरनश्च वः' इति चिक् अनश्च व] खाल, चर्म। न्यस्ताक्षरा धातुरसेन यत्र मूर्जत्वचः कुञ्जरबिन्दुशोणः। 1/7 इस पर्वत पर उत्पन्न होने वाले जिन भाजपत्रों पर लिखे हुए अक्षर हाथी की सूंड़ पर बनी हुई लाल बुंदकियों जैसे दिखाई पड़ते हैं। इदमूचुरनूचामाः प्रीति कण्टकित त्वचः। 6/15 प्रेम से पुलकित शरीर वाले सप्तऋषियों ने शंकरजी का पूजन करके उनसे कहा।
अदूर
1. अदूर :-नजदीक, पास, निकट।
स्मरस्तथा भूतमयुग्म नेत्रम् पश्यन्न दूरान्मनसाप्य पृष्यम्। 3/51 तीन नेत्र वाले शंकर का जो रूप बुद्धि और मन से भी परे था, उसी रूप को इतने
पास से देखकर कामदेव के।। 2. अन्तिक :-वि० [अन्तः सामीप्यं विद्यतेऽस्य। अन्त+ठन् तस्य+इक्] पास,
निकट। विधुरां ज्वलनाति सर्जनान्ननु मां प्रापयपत्युरन्तिकम्।4/32
मेरा दाह करके मुझे मेरे पति के पास पहुँचा दो। 3. अभ्याश :-त्रि० [अभिमुखे नाऽस्य व्याप्यते, असू व्याप्तो घञ्] नजदीक,
पास, निकट। चूतयष्टिरिवाभ्याशे मधौपरभृतोन्मुखी। 6/2 कोयल की बोली में वसन्त के पास-अपना संदेश भेजती हुई आम की डाल
शोभा देती है। 4. आसन्न :-[भू०क०कृ०] [आ+सह+क्त] निकट, पास।
कदाचिदासन्न सखी मुखेन सा मनोरथमं पितरं मनस्विनी। 5/6 हिमालय तो पार्वती जी के मन की बात जानते ही थे, इसी बीच एक दिन पार्वती जी ने अपनी प्यारी सखी से कहला कर अपने पिता जी से पुछवाया। आसन्न पाणि ग्रहणेति पित्रोरुमाविशेषोच्छ्वसितं बभूव। 7/4
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