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कालिदास पर्याय कोश
परतेऽपि परश्चासि विधाता वेध सामपि ।। 2/14 अच्छों से भी अच्छे और सृष्टि करने वाले प्रजापतियों के भी सृष्टि करने वाले
हैं।
इत्यद्भुतैकप्रभवः प्रभावात्प्रसिद्धनेपथ्य विधेर्विधाता।। 7/36 अपनी शक्ति से संसार के सभी सिंगार को बनाने वाले और सदा अनोखा ही करने वाले महादेव जी। तमभ्यगच्छत्प्रथमो विधाता श्रीवत्सलक्ष्मा पुरुषश्च साक्षात्। 7/43
ब्रह्मा और विष्णु ने शिवजी [शंकर जी] के सामने आकर। 14. विश्वयोनि-ब्रह्मा।
सर्ग शेष प्रणयनाद्विश्वयोनेरनन्तरम्।। 6/9
ब्रह्मा के सृष्टि कर चुकने पर, इन्हीं ऋषियों ने ही सृष्टि की थी। 15. विश्वसृज-ब्रह्मा।
सा निर्मिता विश्वसृजा प्रयत्नादेकस्थ सौन्दर्यदिदृक्षयेव॥ 1/49 पार्वती जी को देखकर ऐसा जान पड़ता था, कि संसार को बनाने वाले ब्रह्माजी पृथ्वी पर की सारी सुन्दरता को उसमें देखना चाहते थे। प्रायेण सामग्य विधौ गुणानां पराङ्मुखी विश्वसृजः प्रवृत्तिः। 3/28 ब्रह्माजी की कुछ ऐसी बान ही पड़ गई है, कि वे किसी भी वस्तु में पूरे गुण भरते
ही नहीं। 16. वेधस :-पुं० [विद्धातीति, विधान विधाओ वेध च' इति असि वेधादेशश्च
सोपसर्ग धातोः] ब्रह्मा। प्रसादा भिमुखो वेधाः प्रत्युवाच दिवौकसः।। 2/16 दयालु ब्रह्माजी जिस समय देवताओं से बोलने लगे। कुले प्रसूतिः प्रथमस्य वेधसस्त्रिलोक सौंदर्यमि वोदितं वपुः। 5/4 ब्रह्मा के वंश में तो आपका जन्म, शरीर भी आपका ऐसा सुंदर, मानो तीनों लोकों की सुन्दरता आप में ही लाकर भरी हो। नून मात्मसदृशी प्रकल्पिता वेधसा हि गुणदोषयोर्गतिः।। 8/66 सचमुच ब्रह्मा ने गुण और दोष की कुछ चाल ही ऐसी बनाई है, कि गुण तो ऊँचे
पर रहता और दोष नीचे की ओर चला जाता है। 17. शतपत्रयोनि :-ब्रह्मा।
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