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जैन संस्कृत महाकाव्य
प्रातर्जातस्फुरणमरुणस्योदये चन्द्रबिम्बा
दाकृष्याब्जं सपदि कमलां स्वांकतल्पीचकार ॥१०.८४ जयशेखर ने रात्रि का भी बहुधा मानवीरूप में चित्रण किया है। रात्रि के अन्धकार में ऋजु-वक्र आदि आकृतियों तथा कृष्ण, पीत आदि रंगों का विवेक स्वतः समाप्त हो जाता है । कवि ने रात्रि पर क्रान्तिकारी योगिनी का कर्म आरोपित किया है, जो 'वर्णव्यवस्था के कृत्रिम किन्तु बद्धमूल भेद को मिटा कर जग में अद्वैत की स्थापना के लिये अवतरित हुई है"। रात्रि की कालिमा तथा चन्द्रमा के प्रकाश का अन्तमिलन प्राकृतिक सौन्दर्य का हृदयहारी दृश्य है। कवि ने समासोक्ति तथा अर्थान्तरन्यास के द्वारा रात्रि तथा चन्द्रमा को कलहशील दम्पती के रूप में चित्रित किया है । चन्द्रमा जगत् में उज्ज्वलता का प्रसार करना चाहता है किन्तु उसकी पत्नी (रात्रि) उसे अन्धकार से पोतने को कटिबद्ध है । कलासम्पन्न पुरुष (चन्द्रमा) को भी स्वानुकूल स्त्री भाग्य से मिलती है"। चन्द्रोदय, सूर्योदय आदि के अन्तर्गत समासोक्ति का उदार प्रयोग, प्रकृति के मानवीकरण के प्रति कवि के पक्षपात का प्रमाण है।
__ अधिकांश कालिदासोत्तर कवियों की भांति जयशेखर ने प्रकृति के अलंकृत चित्रण को अधिक महत्त्व दिया है। परन्तु जैनकुमारसम्भव के प्रकृतिचित्रण की विशेषता यह है कि वह यमक आदि की दुरूहता से आक्रान्त नहीं है और म उसमें कुरुचिपूर्ण शृंगारिकता का समावेश है। इसलिये जयशेखर के विभिन्न प्रकृतिवर्णनों का अपना आकर्षण है । वस्तुतः जयशेखर प्रकृति के ललित कल्पनापूर्ण चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त है।
रात्रि की कालिमा में छिटके तारे मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं । कवि का अनुमान है कि रात्रि, गजचर्मावृत तथा मुण्डमालाधारी शंकर की विभूति से सम्पन्न है। उसकी कालिमा शंकर का गजचर्म है तथा तारे असंख्य अस्थिखण्ड हैं, जो श्मशान में उनके चारों तरफ बिखरे रहते हैं।
अभुक्त भूतेशतनोविभूति भौती तमोभिः स्फुटतारकौघा। विभिन्नकालच्छविदन्तिदैत्यचर्मावृतेर्भूरिनरास्थिभाजः ॥ ६.३.
रात्रि की कालिमा को लेकर कवि ने नाना कमनीय कल्पनाएँ की हैं । ३४. किं योगिनीयं धृतनीलकन्था तमस्विनी तारकशंखभूषा ।
वर्णव्यवस्थामधूय सर्वामभेदवादं जगतस्ततान ॥ जैनकुमारसम्भव, ६.८. ३५. तितांसति श्वत्यमिहेन्दुरस्य जाया निशा दित्सति कालिमानम् ।
अहो कलत्रं हृदयानुयायि कलानिधीनामपि भाग्यलभ्यम् ॥ ६.६. ३६. जैनकुमारसम्भव, ६.१४, ६.१६, ११.१, ११.४, ११.७, ११.६२, तथा ६.६६, ७१.