Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि श्रीमिश्रीमल 'मधुकर': जीवन-वृत्त: १३
काम-क्रोध मद मत्सर लोभथी, कपटी कुटिल कठोर ।
इत्यादिक अवगुण कर हूँ भर्यो, उदय कर्म के जोर । ध० तेज प्रताप तुमारो प्रगटे, मुज हिवड़ा में श्राय ।
तो हूं प्रातम निज गुण संभालने, अनंत बली कहिवाय । ध. 'भानू' नृप 'सुव्रता' जननी तणो, अंगजात अभिराम ।
'विनयचन्द' ने बल्लभ तू प्रभु, सुध चेतन गुणधाम । ध०
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[ राग-रेखता] कुंथु जिनराज ! तू ऐसो, नहीं कोई देव तो जैसो।
त्रिलोकी-नाथ तू कहिये, हमारी बांह दृढ़ गहिए । कु. भवोदधि डूबतो तारो, कृपानिधि प्रासरो थारो।
भरोसा आपको भारी, विचारो विरुद उपकारी । कु. उमाहो मिलन को तोसों, न राखो प्रांतरो मोसों।
जैसी सिद्ध अवस्था तेरी, तैसी चैतन्यता मेरी । कु. करम-भ्रम जाल को दपट्यो, विषय सुख ममत में लपट्यो ।
भ्रम्यो हुँ चहूं गती माही, उदयकर्म भ्रम की छाही । कु. उदय को जोर जौलों, न छूटे विषय सुख तौलों ।
कृपा गुरुदेव की पाई, निजातम भावना भाई । कु. अजब अनुभूति उर जागी, सुरत निज रूप में लागी ।
तुम्हीं हम एकता जाणू, द्वैत भ्रम कल्पना मानू । कु. 'श्रीदेवी' 'सूर' नृप नन्दा, अहो सरवज्ञ सुख कन्दा ।
'विनयचन्द' लीन तुम गुन में, न व्यापे अविद्या मन में । कु.
[श्री नवकार जपो मन रंगे-यह देशी ] श्री महावीर नमो वरनाणी, शासन जेहनो जाणरे प्राणी ।
धन-धन जनक सिद्धारथ'राजा,धन 'त्रसलादे'मात रे प्राणी । श्री. ज्यां सुत जायो गोद खिलायो, 'वर्धमान' विख्यात रे प्राणी ।
प्रवचन सार विचार हिया में, कीजे अरथ प्रमाण रे प्राणी । श्री. सूत्र विनय आचार तपस्या, चार प्रकार समाध रे प्राणी ।
ते करिये भवसागर तरिये, आतम भाव अराध रे प्राणी । श्री. ज्यों कंचन तिहुँ काल कहीजे, भूषण नाम अनेक रे प्राणी।
त्यों जग जीव चराचर जोनी, है चेतन गुण एक रे प्राणी । श्री. अपनो श्राप विषै थिर अातम, 'सोहं हंस कहाय रे प्राणी ।
केवल ब्रह्म पदारथ परिचय, पुद्गल भरम मिटाय रे प्राणी । श्री.
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