Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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स्वामीजी के प्रिय पद
राग-[काफी-देसी-होरी नी]
श्रेयांस जिनन्द सुमर रे। चेतन जाण कल्याण करन को, आन मिल्यो अवसर रे।। शास्त्र प्रमाण पिछान प्रभू गुण, मन चंचल थिर कर रे । श्रे० १ सास उसास बिलास भजन को, दृढ़ विश्वास पकर रे। अजपाभ्यास प्रकाश हिये बिच, सो सुमरन जिनवर रे । श्रे० २ कंद्रप क्रोध लोभ मद माया, ये सबही परहर रे । सम्यक्-दृष्टि सहज सुख प्रगटे, ज्ञान दशा अनुसर रे । श्रे० ३ झूठ प्रपंच जोबन तन धन अरु, सजन सनेही घर रे । छिन में छोड़ चले पर भव को, बांध सुभासुभ थर रे । श्रे. ४ मानस जनम पदारथ जाकी, पासा करत अमर रे । ते पूरब सुकृत कर पायो, मरम-परम दिल धर रे । श्रे०५ 'विश्वसैन' 'विस्नाराणी' को, नंदन तू न बिसर रे । सहज मिटे अज्ञान अविद्या, मुक्ति पंथ पग भर रे। श्रे०६ तू अविकार विचार श्रातम गुन, भव-जंजाल न पर रे। पुद्गल चाह मिटाय 'विनयचन्द', ते जिन तू न अवर रे । श्रे. ७
धरम जिनेश्वर मुझ हिवडे बसो, प्यारो प्राण समान । कबहुं न बिसरू' हो चितारू नहीं, सदा अखंडित ध्यान । ध. १ ज्यू पनिहारी कुम्भ न वीसरे, नटवो नृत्य निदान । पलक न विसरे हो पदमनि पियुभणी, चकवी न विसरे भान । ध० २ ज्यू लोभी मन धन की लालसा, भोगी के मन भोग । रोगी के मन माने औषधी, जोगी के मन जोग | ध० ३ इण पर लागी हो पूरण प्रीतड़ी, जाव जीव परियंत । भव-भव चाहूं हो न पड़े अांतरो, भव भञ्जन भगवंत । घ० ४
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