Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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वहलि, मुरुंडि, सबरी, पारिसीहि, णाणादसेहि विदेस परिमंडियाहिं, इंगियचिंतिय, पत्थिय, वियाणियाहिं, सदेसणे वत्थगहिय वेसाहिं णिउणकुसलाहिं, विणियाहि, चेड़िया चकवाल वरिसधरं कंचइज महतरगवंद परिक्खित्ते, हत्थाओहत्थं साहिज. माणे, अंकाओअंक परिभुजमाणे उवलालिजमाणे रम्मंसि मणिकोटिमतलांस परि. गिजमाणे २ णिवाय णिव्याघायंसि गिरिकंदरमल्लीणेव चंपगपायवे सुहंसुहेण यदुइ ॥ ७३ ॥ तएणं तस्स मेहस्सकुमाररस अम्मापियरो अणुपुन्वेण
णामकरणंच पज्जेमणंच पचंकमाणंच चोलोषणयंच महया २ इड्डीसकारसमुदाएणं देशकी, अरव देशकी,पुलिंद देशकी, पक्षण देशकी, वडिल देश की, मुरंड देशकी, सबर देशकी, पारमी देशकी, इरान देशकी यो विविध प्रकार के देश विदेशकी दासियों मेघकुमार के मुख के चिन्ह,चिंता व प्रार्थना से जानकर पर कार्य करते अपनेरदेशके वस्त्रों पहिनकर निपुण व कुशल,कार्य दक्षदासियों व बडरकंचुकीजनों मेघकुपारकी आसपास रहने लगे. वह एक हाथ में से दूसरे के हाथ में जाता हुवा, एक की गोद में से दूसरे की गोद में आनंद करता हुवा, लालपाल कराता हुवा, मणि जडित अंगम में व्याघात रहित पर्वत की गुफा में बढता हुवा।
मालती व चंपक वृक्ष समान सुख पूर्वक बढने लगा ॥ ७३ ।। तत्पश्चात् मेघकुमार के मातपिताने अनुक्रम से 24 12 नाम स्थापना, झुले स्थापना, पादचलन, अन्नप्रासन, शिखा [चोटी ] रखना, इत्यादि कार्यों में बहुत द्व्या
पटमांग-माताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 488,
उक्षिप्त (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन +8
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