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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वेदों मे भी ऋषभदेव की उपासना की गई है, उन्हें अग्नि, केशी, वातरशना आदि के रूप में स्तुत किया गया है। 'ऋग्वेद' के एक मंत्र में कहा गया है- 'मिष्टभाषी, ज्ञानी, स्तुति योग्य वृषभ को साधक मन्त्रों द्वारा वर्धित करो। वे स्तोता को नहीं छोड़ते।' दिगम्बर जैन परम्परा से सम्बन्धित ऋग्वेद का महत्त्वपूर्ण सूक्त केशी (10/136) सूक्त है, जिसमें वातरशना मुनियों का उल्लेख है। वातरशना का अर्थ है, 'वायु जिनकी मेखला है।' दिगम्बर का अर्थ है 'दिशायें जिनका अम्बर-वस्त्र हैं।' इस प्रकार दोनों शब्द एक ही भाव के सूचक हैं। वातरशना मुनियों को 'मलधारी' सूचित किया गया है
'मुनयो वातरशना पिशांगा: वसते मला:।' जैन परम्परा में मुनियों का स्नान वर्जित है। ज्ञात होता है कि स्नान न करने के कारण तथा केशों के बढ़ जाने के कारण उन्हें मलधारी कहा गया है। डॉ0 मंगलदेव शास्त्री ने 'भारतीय संस्कृति का विकास' (औपनिषद् धारा) पृष्ठ 180 पर लिखा है- "ऋग्वेद के सूक्त 10/136 में मुनियों का अनोखा वर्णन मिलता है, उनको मृत्तिका को धारण करते हुए पिंगल वर्ण और केशी='प्रकीर्ण-केश' इत्यादि कहा गया है। यह वर्णन
श्रीमद्भागवत् (पंचम स्कन्ध) में दिये हुए जैनियों के आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव के वर्णन से अत्यन्त समानता रखता है। वहाँ स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि 'ऋषभदेव ने वातरशना मुनियों के धर्मों को प्रकट करने की इच्छा से अवतार लिया था।" भरत से भारत
पुराणों में भी ऋषभदेव का वर्णन हुआ है। पुराणों के अनुसार स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत या आग्नीध्र हुए उनके पुत्र नाभि हुए और उनके पुत्र ऋषभदेव हुए। ऋषभदेव के पुत्र भरत हुए, जिनके नाम पर इसे भारतवर्ष कहते हैं। लिंगपुराण (अध्याय 47) में कहा गया है
'नाभेनिसर्ग वक्ष्यामि हिमांकोऽस्मिन्निबोधत। नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्यां महामतिः।। ऋषभं पार्थिव श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूजितम्। ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रः शताग्रजः।। सोऽभिषिच्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः।'
हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भरताय न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः।।' ऐसा ही वर्णन कुछ शब्दों के हेर-फेर के साथ मार्कण्डेय पुराण, कूर्म पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, वाराह पुराण, विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण, श्रीमद्भागवत् आदि में आया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
सिन्धु घाटी से प्राप्त देवी-देवताओं की मूर्तियों के आधार पर यह कहने के पर्याप्त आधार हैं कि उन दिनों ऋषभदेव की पूजा होती थी। हड़प्पा और मोहन-जोदड़ों में कुछ मूर्तियाँ 'योगी', 'वृषभ' और 'नग्न'
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