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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
मैं जब तक राजनीति में था, उठापटक भी यदि में कराया, तभी से आपका जीवन राजनीति से धर्म कोई होती थी, तो बहुत ही मर्यादा के साथ होती थी। की ओर मुड़ गया। आपने स्वयं स्वीकार किया है कि कभी राजनीति के अन्दर हमने विरोधी पक्ष वालों से -'उसके बाद अनेक अवसर चुनाव लड़ने के आये भी संघर्ष नहीं किया। हमारा जो भी संघर्ष रहता था, पर मेरे हृदय ने राजनीति में जाना स्वीकार नहीं किया। वह नीतियों का रहता था। द्वन्द-युद्ध नहीं होता था और उन महाराज (विद्यानन्द जी) के आशीर्वाद स्वरूप मैंने हम लोग आपस में मिल-जुलकर प्रेम और सद्भाव राजनीति के गन्दे नाले को छोड़कर उनके चिन्तन में से व्यवहार करते थे। वह राजनीति आज समाप्त हो प्रवेश किया।' गई है। इसलिए जीवन में कभी कल्पना भी नहीं कर सदैव स्पष्ट और निर्भीक वक्ता पाटोदी जी इन्दौर सकता कि कोई सन्त, यदि वह सन्त है, तो मुझे कभी एवं देश की लगभग 100 संस्थाओं से जुड़े है। 1957 कहेगा कि तुम पुनः राजनीति में आओ........... अगर में आपने इन्दौर नगर में विभिन्न अशासकीय कोई कह भी दे, तो आज की स्थिति में तो मैं राजनीति महाविद्यालयों की स्थापना की और कराई। इन्दौर में प्रवेश नहीं करूंगा।'
विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु अर्थसंग्रह के आप सिर पर सदैव गांधी टोपी और खद्दर के कपड़े प्रमुख कर्ता-धर्ता थे। इन्दौर में अशासकीय क्षेत्र में धारण करने वाले पाटोदी जी ने इसका कारण पॉलिटेकनिक की स्थापना आपने ही करवायी थी। अन्य बताया -'गांधी जी की एक आंधी चली थी। इस गांध प्रमुख सामाजिक कार्य हैं - कैंसर चिकित्सालय एवं ो की आंधी ने देश के नौजवानों के रक्त के अन्दर दन्त चिकित्सा महाविद्यालय के निर्माण में योगदान, एक नया प्रवाह दिया था। उस प्रवाह का यह परिणाम इन्दौर में नर्मदा लाने का प्रयत्न. 'माता विजासन' की था कि हमने बहुत कम उम्र में यानी जब मैं 19 साल टेकरी के निर्माण हेतु प्रयास, श्री बाल विनय मन्दिर', का था, तब गांधी जी के आन्दोलन से प्रेरित होकर 'देवी अहिल्या शिशु विहार,' 'श्री क्लाथ मार्केट कन्या यह नियम लिया कि हम हथकती खादी ही पहनेंगे। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय' एवं 'कन्या वाणिज्य तब से आज तक मुझे याद नहीं आता कि मैंने खादी . महाविद्यालय' की स्थापना एवं संचालन। इन्दौर क्लाथ के सिवाय किसी दूसरे वस्त्र को धारण किया होगा। मार्केट कोआपराबैंलि0 की स्थापना एवं अध्यक्षता, .......... यह टोपी मेरी नहीं, गांधी की टोपी है। इस 'सरूपचंद हुकुमचंद पारमार्थिक ट्रस्ट' एवं 'त्रिलोक चंद टोपी को मैं जीवन भर इज्जत के साथ निभाऊँगा, ऐसा कल्याण मल ट्रस्ट' के ट्रस्टी के रूप में अनेक मेरा विचार है, प्रण है।'
पारमार्थिक संस्थाओं का संचालन। मुक्ताकाश रंगमंच सक्रिय रचनात्मक ऊर्जा के धनी पाटोदी जी की स्थापना, गुमाश्तानगर एवं नेमीनगर की स्थापना 1971 में राजनीति से हटकर समाजसेवा के कार्य में आदि। आये, वहाँ भी आप ऊँचाइयों की चरम सीमा पर पहुंचे। जैन समाजसेवी के रूप में पाटोदी जी युगों युगों समाज विशेषत: जैन समाज के आप कण्ठहार हैं। तक स्मरण किये जायेंगे। आप अ0भा0 दि0 जैन समाजसेवा की ओर मोडने का श्रेय आप पूज्य आचार्य महासमिति के अनेक वर्षों तक महामंत्री रहे हैं। इन्दौर विद्यानन्द जी महाराज को देते हैं। 1967 में जब आप में गोम्मटगिरि नामक नवीन तीर्थक्षेत्र की स्थापना आपके विधान सभा चुनाव हार गये तब आचार्य श्री के पास अथक परिश्रम का मूर्तरूप है। बावनगजा की 84 फुट आगरा गये और फिर आचार्य श्री का चातुर्मास इन्दौर ऊँची भ) आदिनाथ की प्रतिमा के जीर्णोद्धार में भी
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