Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 374
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 297 होते-होते बचे। इस आन्दोलन की जानकारी हर गांव पर मिलता रहता था। अत: पूज्य बापू के आदेशानुसार व आस-पास की रियासतों में तेजी के साथ फैल गयी। 1929 में ईडर रियासत के खेड़ ब्रह्मा गांव में तेजावत भील तेजावत जी के साथ सैकड़ों की तादाद में इकट्ठे जी ने स्वयं अपने आपको गिरप्तार करवाया। वहां से होकर आते जाते रहते थे। उन्हें ईडर भिजवाया गया। ईडर रियासत न आबू धीरे-धीरे यह आंदोलन सिरोही, दांता, पालनपुर, ए0जी0जी0 को यह सूचना देते हुए लिखा कि हमारी ईडर, विजयनगर आदि रियासतों की जनता में भी फैल रियासत इन्हें नहीं रखना चाहती है, अत: आप जहां गया। इस प्रकार आदिवासी जनता के साथ भील नेता उचित समझें वहां भिजवा दें। इसी प्रकार दूसरी रियासतों विजयनगर रियासत के नीमड़ा गांव के पास पहुंच गये। ने भी उन्हें रखने से साफ इंकार कर दिया। अन्ततः वहां मेवाड़ रियासत की मिलेट्री व अन्य रियासतों की वे उदयपुर में 6 अगस्त 1920 से लेकर 23 अप्रैल पुलिस अपने-अपने अधिकारियों के साथ मौजूद थी। 1936 तक लगभग सात वर्ष जेल में रहे। जेल से वहां अन्य रियासतों की सरकारों व जनता के बीच रिहा होने के बाद भी उन्हें उदयपुर शहर में नजरबंद लगान व बेगार को लेकर सुलह की बात चल रही रखा गया। थी। इस कारण जनता शान्त थी। 1036 में प्रजामण्डल आन्दोलन में तेजावत जी अचानक मिलेट्री ने निहत्थी जनता पर मशीनगनों पुन: गिरफ्तार हुये। 1940 में जब उन्हें पता चला कि से फायरिंग प्रारम्भ कर दी। वहीं पर लगभग एक हजार भोमट के भील दुष्काल के कारण जानवरों को मारकर दो सौ से अधिक व्यक्ति शहीद हो गये। श्री तेजावत खाने लगे हैं तो वे वहां राज्य सरकार की आज्ञा के के भी पांव में गोली व छर्रे लगे थे। भील उसी समय बिना चले गये। अन्तत: सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें उठाकर भूमिगत (गुप्त) हो गये, वे 1929 तक उदयपुर लाकर उनके मकान पर पहरा बैठा दिया जो यानि 8 वर्ष तक गुप्त रहे। वह जगह जहां हत्याकांड 1947 क रहा। हुआ था वे दरख्त आज भी उन गोलियों की गवाही 1951-52 में आप साहडा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए खड़े हुये थे पर नेहरू जी के इस बीच सरकार ने किसी व्यक्ति का सिर समझाने पर कि आप वृद्ध हैं, एक कर्मठ कांग्रेस काटकर जनता में यह भ्रम फैला दिया कि मोतीलाल सिपाही के नाते आप कांग्रेसी उम्मीदवार के पक्ष में को मार दिया गया है और यह उनका सिर है। यह अपना नाम उठा लीजिए, आप चुनाव मैदान से इनके आन्दोलन को कमजोर करने की एक चाल थी। हट गये थे। 5 नवम्बर 1963 को आदिवासियों तेजावत जी की खोज में उदयपुर, सिरोही, ईडर आदि का यह मसीहा सदा-सदा के लिए इस संसार से राज्यों की सरकारों ने कई गांवों में आग लगा दी। इसमें चला गया। अनेक जानवर भी जलकर मरे, गरीबों का जो नुकसान आपके पत्र मोहनलाल तेजावत भी आपके हुआ सो अलग। मेवाड राज्य की सेना छह माह सिरोहा कदमों पर चले और उन्होंने भी जेल की दारुण यातनाये में डेरा डाले रही पर तेजावत 'जी को गिरफ्तार नहीं होती। किया जा सका। आरा (1) रा) ३) सै0, पृ0 - 176-179 (2) इ) 0 ओ), इस आंदोलन का पूरा पता पूज्य बापू को श्री भाग-2, '11) - 401 (3) राजस्थान और जैन संस्कृति, पृ0-341 मणीलाल कोठारी. अहमदाबाद के जरिये समय-समय (4) राजस्थान में स्वतता संघर्ष, पृ0-144 For Private And Personal Use Only

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