Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 478
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-पाँच : विशिष्ट लेख अगस्त आन्दोलन और स्याद्वाद विद्यालय काशी श्री स्याद्वाद महाविद्यालय जैन समाज का ऐसा महाविद्यालय है जिसने वर्तमान पीढ़ी के अधिकांश विद्वान दिये हैं। 1942 के आन्दोलन में यह विद्यालय जैन क्रान्तिकारियों का गढ़ था। 23 जनवरी 1947 को प्रकाशित 'जैन सन्देश' के राष्ट्रीय अंक में श्री देवेन्द्र जी का उक्त लेख छपा था, जिससे हम अविकल यहाँ दे रहे हैं। 9 अगस्त 1942 हमारे स्वातंत्र्य संग्राम के इतिहास की अमर घटना है। भारतीय इतिहास के पिछले समस्त गौरवशाली अध्याय इस दिन के घटना प्रवाह की भूमिका भर हैं। 'अगस्त आन्दोलन' किसने प्रारम्भ किया यह एक विवादग्रस्त बात है। पर यह सबने स्वीकार किया है कि उसके संचालक थे विद्यार्थी और उनके द्वारा प्रेरित ग्रामीण जनता। हमें अच्छी तरह स्मरण है कि 42 के 9 अगस्त के प्रभात में आकाश काली घटाओं से आच्छन्न था। वर्षा की रिमझिम बूंदों में किसी ने कल्पना न की थी कि ब्रिटिश बंदूकों की गोलियाँ उन पर सहसा बरस पड़ेंगी। वर्षा की बूंदों का स्वागत गृहस्थों ने अपने घरों में किया और ब्रिटिश संगीनों का सामना छात्रों ने खुली सड़कों पर किया। उस दिन समूचा देश क्रांति की ज्वाला में जल उठा था। आज अन्त:कालीन सरकार यदि सचमच में भारतीय स्वतंत्रता का द्वार प्रशस्त करती है तो हमें यह भी स्वीकार करना पडेगा कि उक्त द्वार यदि किसी ने खोला, तो 9 अगस्त ने ! पहिले दो दिन प्रायः हड़ताल और जुलूसों में बीते। इसमें विद्यालय के छात्र न केवल जुलूस में थे अपितु उन्होंने उनमें प्रमुख भाग लिया। उन्होंने सस्कृत की छोटी से छोटी पाठशाला से लेकर, क्वींस कालिज तक, हड़ताल के लिये धावा बोला। पर्चे छापे और बांटे। अभी तक हमारे सामने यही कार्यक्रम था। लेकिन पश्चात् सबका ध्यान गुप्तकार्यों की ओर गया। छात्रसंघ की बैठक हुई। सबने भाई बालचन्द जी को कप्तान चुना। चंदा हुआ, कुछ समितियां बनीं। यह भी निश्चय हुआ कि इसका सम्पर्क बड़े संगठनों से स्थापित कर लिया जाय। __ अब छात्रों ने अपना कार्य क्षेत्र गांवों को बनाया। इसमें छोटे से लेकर बड़े सभी लड़कों ने भाग लिया। जैन इतिहास की यह पहली ही क्रान्तिकारी घटना होगी, जब उसके छात्रों ने धर्म क्षेत्र की तरह अपनी वीरता और निर्भीकता का परिचय राजनीति के क्षेत्र में भी दिया। इसमें सबसे अधिक कठिनाई उन छात्रों को आती थी जो दूसरे प्रान्त के थे। बनारस के आसपास की स्थिति का ज्ञान न होने से कभी-कभी वे भटक भी जाते थे। एक बार तो ऐसा हआ कि लोग रातभर चलते रहे और जब लक्ष्य पर पहुँचे तो पता चला कि वहाँ कार्य समाप्त हो चुका है। कभी ये क्रांतिकारी वीर चढ़ी हुई गंगा की लहरों पर नौका खेते होते और कभी खेतों की अनजान पगडंडियों में अंधेरी और बदली भरी रातों नंगे चलते होते ! खाने को सावन की कच्ची भुटियाँ और चने। कभी गुड़ मिल गया, तो समझिये भाग्य खुल गये। For Private And Personal Use Only

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