Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 489
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 412 स्वतंत्रता संग्राम में जैन रोता है, भूख-प्यास का सवाल पेश करता है, तो बिना पूँछ- प्रतीत किये जेल में लूंस दिया जाता है। अगर ज्यादा शोर मचाता है तो ठोकरें मारकर गिरा दिया जाता है, सच है न तड़पने की इजाजत है न फरियाद की है। घुट के मर जाऊँ यह मर्जी मेरे सैय्याद की है।। बेकारी का रोना कहां तक रोया जाय, न कोई तिजारत है, न धंधा, जिसको देखो वह ही बेकारी का शाकी है, मुफलिसी का शिकार, फिर ऐसी हालत में क्या किया जाये, कहां जाया जाये, ऐसे वक्त में कौन संभाल करेगा ? हमको तो गरीबी की वजह से अपना प्यारा धर्म भी छोड़ना पड़ रहा है। लाखों भारतवर्ष के लाल ईसाइयों की गोद में चले जा रहे हैं। हा भगवान! न हम दीन के रहे और न दुनियां के। एक सदी में सारी दुनियां की लड़ाई में जितने इन्सान मर सकते हैं। इससे बहुत ज्यादा सिर्फ हमारे देश के अन्दर दस साल में भूख की वजह से मर जाते हैं। यह कितना बड़ा गजब है जो आला खानदान की औरतें हैं वह घर की चाहर दीवार के अन्दर भूख के मारे तड़फ कर प्राण पहले ही दे देती हैं, लेकिन किसी के आगे हाथ नहीं पसार सकती। अब ऐसी हालत में हमारा उद्धार कौन करेगा, हमारी मुसीबतों का खात्मा किस आत्मा के जरिये होगा और हमको आजादी कौन दिलायेगा ? बस यह एक सवाल हिन्दुस्तानियों के रूबरू आता है कि फौरी ही एक महान् आत्मा यानि महात्मा गांधी जी का जहूर होता है, बैरिस्टरी पास कर लेने के बाद आपको एक महान् जैन विद्वान् कवि रायचन्द्र जी शतावधानी की सोहबत मिलती है और आप आत्मबल प्राप्त करके कहते हैं कि हिन्दुस्तान की मुसीबतों का खात्मा मैं करूँगा और मैं ही मुल्क को आजादी दिलाऊँगा, इस काम में मैं अपने को हर तरह से कुर्बान करूँगा। चूंकि सब इन्सान एक बराबर हैं, वह गोरे हों या काले, ब्राह्मण हों या शूद्र, छूत हों या अछूत, गरीब हों या अमीर, गर्ज सब कोई हक बराबर है, इन्सानी दर्जा एक है, एक को क्या हक है कि जब छह करोड़ हिन्दुस्तानी भर पेट खाना भी नहीं खा सकते, तो वह लाखों रुपया सालाना ऐसे गरीब देश से तनखाह के नाम से वसूल करे। यह अजीब तमाशा है कि घर वाले घर से बाहर मारे-मारे फिरें और दूसरे लोग बड़े-बड़े महलों में ऐशो आराम की जिन्दगी गुजारें। महात्मा जी अपनी डायरी में तहरीर फरमाते हैं कि "सबसे ज्यादा सन्तोष तो मुझे कवि रायचन्द्र भाई के लेक्चरों से ही मिला है। उनके मजामीन मेरे ख्याल से सबके लिये मुफीद हैं। उनका चाल चलन टालस्टाय की तरह आला दर्जे का था।" महात्मा गांधी फिर कहते हैं कि "मुझ पर तीन महापुरुषों ने गहरी छाप डाली है। टालस्टाय, रस्किन और रायचन्द्र भाई। टालस्टाय ने अपनी एक किताब व कुछ खतों किताबत से, रस्किन ने 'अन्टु दि लास्ट' किताब, जिसका नाम मैनें गुजराती में 'सर्वोदय' रखा है, से और रायचन्द्र भाई से तो मेरा बहुत संबंध हो गया था। जब 1897 ई0 में मैं जनूबी अफरीका में था तब मुझको चन्द ईसाई लोगों के साथ अपने कामकाज की वजह से मिलना होता था। वह लोग बहुत साफ रहते थे और धर्मात्मा था दूसरे धर्म वालों को ईसाई बनाना ही इनका काम था। मुझे भी ईसाई बन जाने के लिये कहा गया, लेकिन मैंने अपने दिल में पक्का इरादा कर लिया कि जब तक हिन्दू धर्म को न समझ लूँ, तब तक बाप-दादा के धर्म को नहीं छोडूंगा। हिन्दू धर्म पर For Private And Personal Use Only

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