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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
(प्रथम खण्ड)
अमर जैन शहीदों तथा प्रमुखत: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व
राजस्थान के जैन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय
डॉ. कपूरचंद जैन डॉ. (श्रीमती) ज्योति जैन
प्रकाशक प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रेरणा : सराकोद्धारक परम पूज्य उपाध्याय 108 मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज लेखक : डॉ० कपूरचंद जैन , डॉ० (श्रीमती) ज्योति जैन
स्टाफ क्वार्टर 6, कुन्द-कुन्द जैन (पी०जी०) कालेज
खतौली -251201 (उ०प्र०) प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित सामग्री का कोई भी अंश केन्द्र या राज्यशासन की पेंशन या ऐसे ही किसी अन्य लाभ की प्राप्ति हेतु दावे के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
पुण्यार्जक श्री सुमति चन्द्र जी, देवेन्द्र कुमार, निर्मल कुमार, मनीष कुमार जैन
बजाज बैटरीज, छीपीटोला, आगरा (उ०प्र०) श्री श्रीचन्द जैन, शील सेफ इण्डस्ट्रीज, देहली गेट, किशनपुरी, मेरठ (उ०प्र०) फोन : 0121-2519339,2530014 (O), 2217331(R) बह्मचारिणी महावीरी देवी पाटौदी,
श्री कमल कुमार, अशोक कुमार, दिलीप कुमार, प्रदीप कुमार जी पाटौदी
... साड़म (बोकारो) झारखण्ड © : प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर प्रथम संस्करण : 1100 प्रतियाँ, 2003 ई० मूल्य : 200/- (पुनः प्रकाशन हेतु)
प्राप्ति स्थान - 1. प्राच्य श्रमण भारती
12/ए, निकट जैन मन्दिर, प्रेमपुरी, मुजफ्फरनगर-251001 (उ०प्र०)
फोन : 0131-2450228, 2408901 2. श्रुत संवर्द्धन संस्थान
प्रथम तल, 247, दिल्ली रोड़,
मेरठ-250002, फोन : 0121-2527665. 3. श्री दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र ज्ञान स्थली
भूडबराल, परतापुर, दिल्ली रोड़, मेरठ
फोन : 0121-2440485 मुद्रक : दीप प्रिंटर्स
70-ए, रामा रोड़, इंडस्ट्रियल एरिया, नई दिल्ली-110015 फोन : 011-25925099, 30923335
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जैन साहित्य में राष्ट्र कल्याण की भावना
सम्पूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्रसामान्यतपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवान् जिनेन्द्रः।।
-आचार्य पूज्यपाद, शान्तिभक्ति
999
सर्वपक्षपातेषु स्वदेशपक्षपातो महान्
- आचार्य सोमदेवसूरि, यशस्तिलकचम्पू
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कौमें जाग उठती हैं, अक्सर इन्हीं अफसानों से
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आचार्य परम्परा वाल ब्रह्माचारी, प्रशान्त मूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) उत्तर
जन्म तिथि - कार्तिक वदी एकादशी वि०सं० – 1945 (सन् 1888) जन्म स्थान - ग्राम-छाणी, जिला - उदयपुर (राजस्थान) जन्म नाम
श्री केदलदास जैन पिता का नाम श्री भागचन्द जैन माता का नाम - श्रीमती माणिकबाई क्षुल्लक दीक्षा - सन् 1922 (वि०सं० 1979) स्थान
गढ़ी जिला-बासबाड़ा (राजस्थान) मुनि दीक्षा भाद्र शुक्ला 14 संवत् 1980 (सन् 1923) स्थान
सागवाड़ा, जिला डूगरपुर (राजस्थान) आचार्य पद सन् 1926 स्थान
गिरीडीह (झारखंड प्रान्त) समाधिमरण - 17 मई 1944 ज्येष्ठवदी दशमी
सागवाड़ा (राजस्थान)
स्थान
परम पूज्य आचार्य 108 श्री सूर्य-सागर जी महाराज
जन्म तिथि . कार्तिक शुक्ला नवमी वि०सं०1940 (सन् 1883) जन्म स्थान - प्रेमसर, जिला - ग्वालियर (मप्र) जन्म नाम
श्री हजारीलाल जैन पिता का नाम - श्री हीरालाल जैन गाता का नाम - श्रीमती गैंदाबाई ऐलक दीक्षा - विस- 1981 (सन् 1924)(आ शान्तिसागर जी से) स्थान
इन्दौर (मध्य प्रदेश) मुनि दीक्षा - मर्गासर बदी ग्यारस वि.स. 1981 (सन् 1924)
51 दिन पश्चात् आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) से स्थान
हाटपीपल्या,जिला-देवास (म.प्र.) आचार्य पद वि० सं० 1985 (सन् 1928)
कोडरमा (झारखण्ड) समाधिमरण - वि० स० 2009(14 जुलाई 1952) स्थान
- डालमिया नगर (झारखण्ड) साहित्य क्षेत्र में - 33 ग्रन्थों की रचना की।
स्थान
परम पूज्य आचार्य 108 श्री विजयसागर जी महाराज
जन्म तिथि ___ - वि० सं० 1938 माघ सुदी 8 गुरुवार जन्म स्थान सिरोली, जिला - ग्वालियर (मध्य प्रदेश) जन्म नाम - श्री चोखेलाल जैन पिता का नाम श्री मानिक चन्द जैन माता का नाम श्रीमती लक्ष्मी बाई क्षुल्लक दीक्षा इटावा (उत्तर प्रदेश) ऐलक दीक्षा मथुरा (उत्तर प्रदेश) मुनि दीक्षा मारोठ (जि.नागौर.राजस्थान) आचार्य श्री सूर्यसागर जी से समाधि तिथि 20 दिसम्बर 1962 स्थान
मुरार, जिला - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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परम पूज्य आचार्य 108 श्री विमलसागर जी महाराज (गिल्ड ताले)
जन्म तिथि - पाष शुक्ला द्वितीया विस 18सन । जन्म स्थान गाम मोहना जिला - ग्वालियर मध्य पदश जन्म नाम
श्री किशोरीलाल जैन पिता का नाम - श्री भीकमवन्द जन माता का नाम श्रीमती मथुरादेवी जैन क्षुल्लक दीक्षा - वि.स. 1993 सन 19 आ. विजयसागर जीस स्थान
ग्राम - पाटन जिला - झालावाडा राजस्थान मुनि दीक्षा वि.स. 2000-आ-विजयगागरजी म. स्थान
कोटा (राजस्थान आचार्य पद ___ - मन् 1973 स्थान - हाड़ाती समाधिमरण 13 अप्रैल 1973 (वि० स० 2030 स्थान ..सागोद,जिला-कोटा (राजरथान,
मासोपतासी, समाधिसम्राट परम पूज्य आचार्रा 108 श्री सुमतिसागर जी महाराज
जन्मतिथि - वि० सं० 1974 आसोज शुक्ला चतुर्थी (सन 1917) जन्म स्थान गाम - श्यामपुरा, जिला - मुरैना (मध्य प्रदेश) जन्म नाम
श्री नत्थीलाल जैन पिता का नाम श्री छिददूलाल जैन माता का नाम - श्रीमती चिरौजा देवी जैन ऐलक दीक्षा वि.स. 2025 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (सन 1969) स्थान
मुरेना (मध्य प्रदेश) आ० विमलसागर जी से ऐलक नाम
श्री वीरसागर जी मुनि दीक्षा वि. स. 2025 अगहन वदी द्वादशी सन 1953) स्थान
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश) आचार्य पद - ज्येष्ठ सुदी 5 वि.स.2030 अप्रैल 13 सन 1973 स्थान
मुरैना (म.प्र.) आ विमलसागर जी (भिण्डवाले) महाराज से। समाधिमरण - क्वार वदी 13 दि.3.10.94 स्थान - सोनागिर सिद्धक्षेत्र, जिला दतिया (मध्य प्रदेश
सराकोद्धारक परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञान सागर जी महाराज
जन्म तिथि - वैशाख शुक्ल द्वितीया. वि.स. 2014,
मई 1. सन 1957 जन्म स्थान
गुरैना (मध्य प्रदेश) जन्म नाम
श्री उमेश कुमार जैन पिता का नाम
श्री शातिलाल जैन माता का नाम
श्रीमती अशर्फी जैन ब्रह्मचर्य व्रत - सन1974 क्षुल्लक दीक्षा सोनागिर जी. 5.11.1976 क्षु दीक्षोपरान्त नाम - क्षु श्री गुणसागर जी क्षुल्लक दीक्षा गुरु - आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज मुनि दीक्षा
सोनागिर जी महावीर जयन्ती,
चैत सुदी त्रयोदसी 313.1988 मुनि दीक्षोपरान्त नाम - मुनि श्री ज्ञानसागर जी दीक्षा गुरु
आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज उपाध्याय पद
सरधना. 30.11989
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बाल ब्रह्मचारी, प्रशान्त मूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी)
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परम पूज्य आचार्य 108 श्री सूर्यसागर जी महाराज
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परम पूज्य आचार्य 108 श्री विजयसागर जी महाराज
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परम पूज्य आचार्य 108 श्री विमलसागर जी महाराज .
(भिण्ड वाले)
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मासोपवासी समाधिसम्राट परम पूज्य आचार्य _108 श्री सुमतिसागर जी महाराज
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हमारे प्रेरणा स्रोत
सन्त शिरोमणि आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज
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हमारे प्रेरणा स्रोत जिनके आशीर्वाद से यह गुरुतर कार्य सम्पन्न हुआ
सराकोद्धारक परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आचार्य शान्तिसागर (छाणी) और उनकी परम्परा
बीसवीं सदी में दिगम्बर जैन मुनि परम्परा कुछ अवरूद्ध सी हो गई थी, विशेषतः उत्तर भारत में। शास्त्रों में मुनि-महाराजों के जिस स्वरूप का अध्ययन करते थे, उसका दर्शन असम्भव सा था। इस असम्भव को दो महान आचार्यों ने सम्भव बनाया, दोनों सूर्यों का उदय लगभग समकालिक हुआ, जिनकी परम्परा से आज हम मुनिराजों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं और अपने मनुष्य जन्म को ध्य मानते हैं।
ये दो आचार्य हैं चारित्रचक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) और प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी)। कैसा संयोग है कि दोनों ही शान्ति के सागर हैं। दोनों ही आचार्यों ने भारतभर में मुनि धर्म व मुनि परम्परा को वृद्धिगत किया। दोनों आचार्यों में परस्पर में अत्यधिक मेल था, यहाँ तक कि ब्यावर (राजस्थान) में दोनों का ससंघ एक साथ चातुर्मास हुआ था।
प्रशान्तमूर्ति आचार्य शान्ति सागर जी का जन्म कार्तिक बदी एकादशी वि•स• 1945 (सन् 1888) को ग्राम छाणी जिला उदयपुर (राजस्थान) में हुआ था, पर सम्पूर्ण भारत में परिभ्रमण कर भव्य जीवों को उपदेश देते हुए सम्पूर्ण भारतवर्ष, विशेषतः उत्तर भारत को इन्होंने अपना भ्रमण क्षेत्र बनाया। उनके बचपन का नाम केवलदास था, जिसे उन्होंने वास्तव में अन्वयार्थक (केवल अद्वितीय, अनोखा, अकेला) बना दिया। वि•स• 1979 (सन् 1922) में गढ़ी, जिला बाँसवाड़ा (राजस्थान) में क्षुल्लक दीक्षा एवं भाद्र शुक्ला 14 संवत 1980 (सन् 1923) सागवाड़ा (राजस्थान) में मुनि दीक्षा तदुपरान्त वि•स• 1983 (सन् 1926) में गिरीडीह (बिहार प्रान्त) में आचार्य पद प्राप्त किया। दीक्षोपरान्त आचार्य महाराज ने अनेकत बिहार किया। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। मृत्यु के बाद छाती पीटने की प्रथा, दहेज प्रथा, बलि प्रथा आदि का उन्होंने डटकर विरोध किया। छाणी के जमींदार ने तो उनके अहिंसा व्याख्यान से प्रभावित होकर अपने राज्य में सदैव के लिए हिंसा का निषेध करा दिया था और अहिंसा धर्म अंगीकार कर लिया था।
आचार्य पर घोर उपसर्ग हुए, जिन्हें उन्होंने समताभाव से सहा। उन्होंने 'मूलाराधना', 'आगमदर्पण', 'शान्तिशतक', 'शान्ती सुधसागर' आदि ग्रन्थों का संकलन/प्रणयन किया, जिन्हें समाज ने प्रकाशित कराया, जिससे आज हमारी श्रुत परम्परा सुरक्षित और वृद्धिगत है। ज्येष्ठ बदी दशमी वि.स. 2001 (17 मई सन् 1944) सागवाड़ा (राजस्थान) में आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का समाधिमरण हुआ।
इनके अनेक शिष्य हुए, जिनमें आचार्य सूर्यसागर जी बहुश्रुत विद्वान थे। आचार्य सूर्यसागर जी का जन्म कार्तिक शुक्ला नवमी वि.स. 1940 (सन् 1883) में प्रेमसर, जिला ग्वालियर (म०प्र०) में हुआ था। वि•स• 1981 (सन् 1924) में ऐलक दीक्षा इन्दौर में, तत्पश्चात 51 दिन बाद मुनि दीक्षा हाट
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
पिपल्या जिला मालवा ( म०प्र०) में आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ( छाणी) से प्राप्त की । दिगम्बर जैन परम्परा से जैन साहित्य को सुदृढ़ एवं स्थायी बना सके हैं। आचार्य सूर्यसागर जी उनमें से एक थे । उन्होंने लगभग 35 ग्रन्थों का संकलन / प्रणयन किया और समाज ने उन्हें प्रकाशित कराया। 'संयमप्रकाश' उनका अद्वितीय वृहत ग्रन्थ है, जिसके दो भागों (दस किरणों) में श्रमण और श्रावक के कर्तव्यों का विस्तार से विवेचन है । संयमप्रकाश सचमुच में संयम का प्रकाश करने वाला है, चाहे श्रावक का संयम हो चाहे श्रमण का । वि०स० 2001 (14 जुलाई 1952) में डालमिया नगर ( बिहार ) में उनका समाधिमरण हुआ ।
परम्परा के तीसरे आचार्य 108 श्री विजयसागर जी महाराज का जन्म वि०स० 1938 माघ सुदी 8 गुरूवार (सन् 1881) में सिरोली ( म०प्र०) में हुआ था । इन्होंने इटावा (उ०प्र०) में क्षुल्लक दीक्षा एवं मथुरा (उ०प्र०) में ऐलक दीक्षा ग्रहण की थी तथा मारोठ (राजस्थान) में आचार्य श्री सूर्यसागर जी से मुनि दीक्षा ली थी। आचार्य सूर्यसागर जी का आचार्य पद पूज्य मुनि श्री विजयसागर महाराज को लश्कर में दिया गया था। आचार्य विजयसागर जी महाराज परम तपस्वी वचनसिद्ध आचार्य | कहा जाता है कि एक गांव में खारे पानी का कुंआ था, लोगों ने आचार्य श्री से कहा कि हम सभी ग्रामवासियों को खारा पानी पीना पड़ता है, आचार्य श्री ने सहज रूप से कहा, "देखो पानी खारा नहीं मीठा है", उसी समय कुछ लोग कुएं पर गये और आश्चर्य पानी खारा नहीं मीठा था। आपके ऊपर उपसर्ग आये, जिन्हें आपने शान्तीभाव से सहा, आपका समाधि मरण वि०स० 2019 (20 दिसम्बर 1962) में मुरार (ग्वालियर) में हुआ ।
आचार्य विजयसागर जी के शिष्यों में आचार्य विमलसागर जी सुयोग्य शिष्य हुए। आचार्य विमल सागर जी का जन्म पौष बदी शुक्ला द्वितीया वि०स० 1948 ( सन् 1891 ) में ग्राम मोहना, जिला ग्वालियर (म०प्र०) में हुआ था। आपने क्षुल्लक दीक्षा एवं मुनि दीक्षा (वि.स. 2000 में) आचार्य श्री विजयसागर जी महाराज से ग्रहण की। आप प्रतिभाशाली आचार्य थे। आपके सदुपदेश से अनेकों जिनालयों का निर्माण और जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा हुई। आपके सान्निध्य में अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं व गजरथ महोत्सव सम्पन्न हुए । भिण्ड नगर को आपकी विशेष देन है। आपका जन्म मोहना ( म०प्र०) में तथा पालन-पोषण पीरोठ में हुआ, अतः आप 'पीरोठवाले महाराज' साथ ही भिण्ड नगर में अनेक जिनबिम्बों की स्थापना कराने के कारण भिण्ड वाले महाराज' के नाम से विख्यात रहे हैं। आचार्य विजयसागर जी ने अपना आचार्य पद विमलसागर जी महाराज (भिण्ड) को सन् 1973 में हाड़ौती जिले में दिया ।
आचार्य विमलसागर जी ने अनेक दीक्षाएं दी उनके शिष्यों में आचार्य सुमतिसागर जी, आचार्य निर्मल सागर जी, आचार्य कुन्थुसागर जी मुनि ज्ञानसागर जी आदि अतिप्रसिद्ध हैं । आचार्य विमलसागर जी महाराज ने अपना आचार्य पद ब्र० ईश्वरलाल जी के हाथ पत्रा द्वारा सुमतिसागर जी को दिया था। आचार्य विमलसागर जी महाराज का समाधिमरण 13 अप्रैल 1973 ( वि०स० 2030 ) में सांगोद, जिला कोटा (राजस्थान) में हुआ था ।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) परम्परा के पांचवे आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज का जन्म वि.स. 1974 (सन् 1917) आसोज शुक्ला चतुर्थी को ग्राम श्यामपुरा जिला मुरैना (म.प्र.) में हुआ था। आपने ऐलक दीक्षा वि•स• 2025 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को रेवाडी (हरियाणा) में मुनि दीक्षा वि•स• 2025 अगहन बदी द्वादशी (सन् 1968) में गाजियाबाद (उ०प्र०) में ग्रहण की। आचार्य सुमतिसागर जी कठोर तपस्वी और आर्षमार्गानुयायी थे। आपने अनेक कष्टों और आपदायों को सहने के बाद दिगम्बरी दीक्षा धरण की थी। आपके जीवन में अनेक उपसर्ग और चमत्कार हुए। पंडित मक्खनलाल जी मुरैना जैसे अद्भुत विद्वानों का संसर्ग आपको मिला। आप मासोपवासी कहे जाते थे। आपके उपदेश से अनेक आर्षमार्गानुयायी ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ। सोनागिर स्थित त्यागी व्रती आश्रम आपको कीर्तिपताका पफहरा रहा है। आपने शताधिक दीक्षाएं अब तक प्रदान की थी। आपके प्रसिद्ध शिष्यों में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज प्रमुख है। ऐसे आचार्यों, उपाध्यायों, मुनिवरों, गुरुवरों को शत्-शत् नमन, शत्-शत् वन्दन।
सन् 1957 ई. में मध्य प्रदेश के मुरैना शहर में उपाध्याय जी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम श्री शान्तिलाल जी एवं माता का नाम श्रीमती अशर्फी है। इनके बचपन का नाम उमेश कुमार था। इनके दो भाई और बहने हैं। भाइयों का नाम श्री राकेश कुमार एवं प्रदीप कुमार है तथा बहनों के नाम सुश्री मीना एवं अनिता है। आपने 5.11.1976 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी में आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी तथा आपको क्षुल्लक गुणसागर नाम मिला था। 12 वर्षों तक निर्दोष क्षुल्लक की चर्या पालने के बाद आपको आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज ने 31.3.88 को सोनागिर सिद्धक्षेत्र में मुनि दीक्षा देकर श्री ज्ञानसागर जी महाराज नाम से अलंकृत किया। सरधना में 30-1-89 को आपको उपाध्याय पद प्रदान किया गया। उपाध्यायश्री के चरण-कमल जहां पड़ते हैं वहां जंगल में मंगल चरितार्थ हो जाता है।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन उमेश से उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज सफरनामा
एक अनेकान्तिक साधक का
एकान्त, एकाग्र और सयंमी जीवन की विलक्षण मानवीय प्रतीति बन कर एक संकल्पशील के रूप में उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज जब लोक जीवन में अवतरित हुए तो यह धरती उद्भासित हो गयी उनकी तपस्या की प्रभा और त्याग की क्रांति से। त्याग, तितिक्षा और वैराग्य की सांस्कृतिक धरोहर के धनी तीर्थंकरों की श्रृंखला को पल्लवित और पुष्पित करती दिगम्बर मनि परम्परा की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्रभावशा शाली कडी के रूप में पज्य उपाध्याय श्री ने अपने आभामण्डल से समग्र मानवीय चेतना को एक अभिनव संदृष्टि दी है और संवाद की नई वर्णमाला की रचना करते हुए उन मानवीय आख्यों की संस्थापना की है जिनमें एक तपस्वी के विवेक, एक योगी के संयम और युगचेतना की क्रान्तिदर्शी दृष्टि की त्रिवेणी कासमवा है। गुरुदेव की उपदेश-वाणी प्रत्येक मनुष्य का झंकृत करसही है क्योंकि वह अन्त:स्फूर्त है और है सहज तथा सामान्य - ऊहापोह से मुक्त, सहजग्राह्य और बोधगम्य जो मनुष्य को ज्ञान और पाण्डित्य के अहंकार से मुक्त कर मानवीय सद्भाव का पर्याय बनाने में सतत् प्रवृत्त है। यह वाणी वर्गोदय के विरूद्ध एक ऐसी वैचारिक क्रान्ति है जहाँ सभी के विकास के पूर्ण अवसर हैं, बन्धनों से मुक्ति का अह्वान है, जीवन समभाव है, जाति-समभाव है जो निरन्तर दीपित हो रही हैउनकी जगकल्याणी और जनकल्याणी दीप्ति से।
चम्बल के पारदर्शी नीर और उसकी गहराई ने मुरैना में वि.सं 2014 वैशाख सुदी दोयज को जन्मे बालक उमेश को पिच्छि कमण्डलु की मैत्री के साथ अपने बचपन की उस बुनियाद को मजबूत कराया जिसने उसे निवृत्ति मार्ग का सहज, पर समर्पित पथिक बना दिया। शहर में आने वाले हर साधु-साध्वी के प्रति बचपन से विकसित हुए अनुराग ने माता अशर्फी बाई और पिता शान्तिलाल को तो हर पल सशंकित किया पर बालक उमेश का आध्यात्मिक अनुराग प्रतिक्षण पल्लवित एवं पुष्पित होता गया और इसकी परिणति हुई सन् 1974 में उस प्रतीक्षित फैसले से जब किशोर उमेश ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया, दो वर्षों बाद पांच नवम्बर उन्नीस सौ छिहत्तर को ब्रह्मचारी उमेश ने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की आ. श्री सुमतिसागर जी से। उमेश से रूपान्तरित हए क्षललक गणसागर ने बारह वर्षों तक पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य पं. लक्ष्मीकान्त जी झा, पं. बलभद्र जी पाठक, पं. जीवनलाल जी अग्निहोत्री आदि विद्वानों की सान्निधि में न्याय, व्याकरण एवं सिद्धान्त के अनेक ग्रन्थों का चिन्तन-मनन भी सफलतापूर्वक किया।
क्षुल्लक गुणसागर जी की साधना यात्रा ललितपुर, सागर तथा जबलपुर में इस युग के महान सन्त पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी की पावन सान्निधि के मध्य धवला की तत्त्व सम्पदा के सागर में अवगाहन करने में समर्पित हुई। दार्शनिक अवधारणों की पौर्वात्य पृष्ठभूमि की गहरी समझ के साथ-साथ क्षुल्लक जी ने पाश्चात्य चिन्तकों के विचारों को भी आत्मसात् किया एवं भाषा तथा साहित्य के ग्रन्थों का भी अध्ययन किया ताकि अपने चिन्तन का नवनीत जनमानस के सम्मुख आसान और बोधगम्य भाषा में वस्तुपरकता के साथ पहुँचाया जा सके। क्षुल्लक जी का निस्पृही, विद्यानुरागी मन जैन दर्शन के गूढ रहस्यों के सन्धान में रत रहा
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और प्रारम्भ हुआ संवाद का एक नया चरण। चाहे चंदेरी की सिद्धान्त-वाचना हो या ललितपुर की न्याय-विद्या-वाचना या मुंगावली की विद्वत्संगोष्ठी या फिर खनियांधाना की सिद्धान्त-वाचना, प्राचीन अवधारणाओं के नये और सरल अर्थ प्रतिपादित हए. परिभाषित हए और हए संप्रेषित भी जन-जन तक। यह तो प्रज्ञान का प्रभाषित होता वह पक्ष था, जिसकी रोशनी से दिग्-दिगन्त आलोकित हो रहा था। पर दूसरा-तीसरा....चौथा.... न जाने और कितने पथ/आयाम, साथ-साथ चेतना की ऊर्ध्वगामिता के साथ जुड़ रहे थे, साधक की प्रयोग धर्मिता को ऊर्जस्विता कर रहे थे - शायद साधक भी अनजान था अपने आत्म-पुरूषार्थी प्रक्रम से। चाहे संघस्थ मुनियों, क्षुल्लकों, ऐलकों की वैयावृत्ति का वात्सल्य पक्ष हो या तपश्चरण की कठिन
और बहुआयामी साधना, क्षुल्लक गुणसागर की आत्म-शोधन-यात्रा अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ अग्रसर रही, अपने उत्कर्ष की तलाश में। ___ महावीर जयन्ती के पावन प्रसंग पर इकत्तीस मार्च उन्नीस सौ अठासी को क्षुल्लक श्री ने आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज से सोनागिर सिद्धक्षेत्र (दतिया म.प्र.) में मुनि धर्म की दीक्षा ग्रहण की और तब आविर्भाव हुआ उस युवा, क्रान्तिदृष्टा तपस्वी का जिसे मुनि ज्ञानासागर के रूप में युग ने पहचाना और उनका गुणानुवाद किया।
साधना के निर्ग्रन्थ रूप में प्रतिष्ठित इस दिगम्बर मुनि ने जहाँ आत्म-शोधन के अनेक प्रयोग किए, साधना के नये मानदण्ड संस्थापित किए, उदात्त चिन्तन की ऊर्जस्वी धारा को प्रवाह मानकर तत्वज्ञान को नूतन व्याख्याओं से समृद्ध किया वहीं पर अपनी करूणा, आत्मीयता और संवेगशीलता को जन-जन तक विस्तीर्ण कर भगवान महावीर की "सत्वेषु मैत्री" की अवधारणा को पुष्पित, पल्लवित और संवर्द्धित भी किया। मध्यप्रदेश की प्रज्ञान-स्थली सागर में मुनिराज का प्रथम चातुर्मास, तपश्चर्या की कर्मस्थली बना और यहीं से शुरू हुआ आध्यात्मिक अन्तर्यात्रा का वह अर्थ जिसने प्रत्येक कालखण्ड में नये-नये अर्थ गढ़े और संवेदनाओं की समझ को साधना की शैली में अन्तर्लीन कर तात्विक परिष्कार के नव-बिम्बों के सतरंगी इन्द्रधनुष को आध्यात्मिक क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया।
आगामी वर्षों में मुनि ज्ञानसागर जी ने जिनवाणी के आराधकों से स्थापित किया एक सार्थक संवाद ताकि आगम-ग्रन्थों में निबद्ध रहस्यों को सामान्य जनों तक बोधगम्य भाषा और शैली में सम्प्रेषित किया जा सके। सरधना, शाहपुर, खेकड़ा, गया, रांची, अम्बिकापुर, बड़ागांव, दिल्ली, मेरठ, अलवर, तिजारा, मथुरा आदि स्थानों पर विद्वत्-संगोष्ठियों के आयोजनों ने बहुत से अनुत्तरित प्रश्नों के जहां एक ओर उत्तर खोजे वहीं दूसरी
और शोध एवं समीक्षा के लिए नये सन्दर्भ भी परिभाषित किये। अनुपलब्ध ग्रन्थों के पुनर्प्रकाशन की समस्या को इस ज्ञान-पिपासु ने समझा परखा और सराहा। इस क्षेत्र में गहन अभिरूचि के कारण सर्वप्रथम बहुश्रुत श्रमण परम्परा के अनुपलब्ध प्रामाणिक शोध-ग्रन्थ स्व. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वारा सर्जित साहित्य सम्पदा, "तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा" (चारों भाग) के पुनर्प्रकाशन की प्रेरणा की, जिसे सुधी श्रावकों ने अत्यल्प समयावधि में परिपूर्ण भी किया।
पुनर्प्रकाशन यह अनुष्ठान श्रमण-परम्परा पर काल के प्रभाव से पड़ी धूल को हटा कर उन रत्नों को जिनवाणी के साधकों के सम्मुख ला रहा है जो विस्मृत से हो रहे थे। पूज्य गुरूदेव की मंगल प्रेरणा से प्राच्य
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) के अवधान में पाचास से अधिक ग्रन्थों का प्रकाशन/पुनर्प्रकाशन, लगभग चार वर्षों की अल्पावधि में हुआ है, जिसमें तिलोयपण्णती, जैनशासन, जैनधर्म आदि अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस क्रम को गति देते हुए पूज्य उपाध्याय श्री ने आधुनिक कालखण्ड में भुला दिये गये संतों एवं विद्वानों के कृतित्व से समाज को परिचित कराने का भी गुरूकार्य किया है, जिसकी परिणति स्वरूप आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ है, जिसके प्रकाशन से एक ओर विस्मृत से हो रहे उस अत्यन्त पुरातन साधक से समाज का परिचय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में दिगम्बर श्रमण परम्परा को उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में अभिवृद्धि करने का गुरू-कार्य किया था, तो दूसरी ओर उनकी समृद्ध एवं टैशस्वी शिष्य परम्परा से भी समाज को रू-बरू कराया। सुप्रसिद्ध जैनदर्शन-विद स्व. पं. महेन्द्र कुमार जैन न्यायाचार्य की स्मृति में एक विशाल स्मृति-ग्रन्थ के प्रकाशन की प्रेरणा कर मात्र एक जिनवाणी-आराधक का गुणानुवाद ही नहीं हुआ, प्रत्युत नयी पीढ़ी को उस महान साधक के अवदानों से परिचित भी कराने का अनुष्ठान पूर्ण हुआ। इस श्रृंखला में स्व. डॉ. हीरालाल जी जैन, स्व. डॉ. ए.एन. उपाध्ये आदि विश्रुत विद्वानों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोधपरक संगोष्ठियों की आयोजना के प्रस्तावों को पूज्य श्री ने एक ओर अपना मंगल आशीर्वाद दिया है दूसरी ओर जैन पुरातत्व के गौरवशाली पन्नों पर प्राचीन भारतीय इतिहासवेत्ताओं एवं पुरातत्त्वविदों को कंकाली टीले, मथुरा और कुतुबमीनार के अनबूझ रहस्यों की परतों को कुरेदने और उसकी वैभव सम्पदा से वर्तमान का परिचय कराने जैसा ऐतिहासिक कार्य भी पूज्य गुरुवर के मंगल आशीर्वाद से ही संभव हो सका है।
इस तप:पूत ने वैचारिक क्रान्ति का उद्घोष किया है इस आशा और विश्वास के साथ कि आम आदमी के समीप पहुँचने के लिए उसे उसकी प्रतिदिन की समस्याओं से मुक्ति दिलाने के उपाय भी संस्तुति करने होंगे। तनावों से मुक्ति कैसे हो, व्यसन मुक्त जीवन कैसे जिएं, पारिवारिक सम्बन्धों में सौहार्द कैसे स्थापित हो तथा शाकाहार को जीवन-शैली के रूप में कैसे प्रतिष्ठापित किया जाय, आदि यक्ष प्रश्नों को बुद्धिजीवियों, प्रशासकों, पत्रकारों, अधिवक्ताओं, शासकीय, अर्द्ध-शासकीय एवं निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों व अधिकारियों, व्यवसायियों, छात्रों-छात्राओं आदि के साथ परिचर्चाओं, कार्यशालाओं, गोष्ठियों के माध्यम से उत्तरित कराने के लिए एक ओर एक रचनात्मक संवाद स्थापित किया तो दूसरी ओर श्रमण संस्कृति के नियामक तत्वों एवं अस्मिता के मानदण्डों से जन-जन को दीक्षित कर उन्हें जैनत्व की उस जीवन शैली से भी परिचित कराया जो उनके जीवन की प्रामाणिकता को सर्वसाधारण के मध्य संस्थापित करती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की अनुभव सम्पन्न प्रज्ञान सम्पदा को, गुरुवर ने आपदमस्तक झिंझोड़ा है, जिसकी अद्यतन प्रस्तुति अतिशय क्षेत्र तिजारा में आयोजित जैन चिकित्सकों की विशाल संगोष्ठी थी जिसमें भारत के सुदूरवर्ती प्रदेशों से आये साधर्मी चिकित्सक बन्धुओं ने अहिंसक चिकित्सा पद्धति के लिये एक कारगर कार्ययोजना को ठोस रूप दिया
और सम्पूर्ण मानवता की प्रेमपूण सेवा के लिये पूज्य श्री की सन्निधि में अपनी वचनबद्धता को रेखांकित किया, जो श्लाघ्य है स्तुत्य है।
पूज्य श्री ने समाज को एक युगान्तर बोध कराया-भूले बिसरे सराक भाइयों को समाज की मुख्य धारा में जोड़कर सराक भाइयों के बीच अरण्यों में चातुर्मास कर उनके साथ संवाद स्थापित किया, उनकी समस्याओं को समझा-परखा और समाज का आह्वान किया, उनको अपनाने के लिये। पूज्य श्री की प्रेरणा से सराकोत्थान
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का एक नया युग प्रारम्भ हुआ है जिसके कुछ प्रतीक है उस क्षेत्र में निर्मित हो रहे नये जिनालय तथा सराक केन्द्र एवं औषाधालय आदि जहाँ धार्मिक तथा लौकिक शिक्षण की व्यवस्था की जा रही है।
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इस आदर्श तपस्वी और महान विचारक के द्वारा धर्म के वास्तविक स्वरूप की प्रतिष्ठा एवं रूढ़ियों के समापन में सन्नद्ध सत्य की शाश्वतता के अनुसंधित्सुओं / जिज्ञासुओं के प्रति अनुराग के प्रति सभी नतमस्तक हैं। जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्द्धन संस्थान के अवधान में सम्मानित करने की योजना का क्रियान्वयन पूज्य उपाध्याय श्री के मंगल आर्शीवाद एवं प्रेरणा से सम्भव हो सका है। यह संस्थान प्रतिवर्ष श्रमण परम्परा के विभिन्न आयामों में किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिये पांच वरिष्ठ जैन विद्वानों को इकतीस हजार रूपयों की राशि से सम्मानित कर रहा है। संस्थान के उक्त प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना करते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री सुन्दरसिंह जी भण्डारी ने तिजारा में पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था कि विलुप्त हो रही श्रमण परम्परा के साधकों के प्रज्ञान गुणानुवाद की आवश्यकता को इस तपोनिष्ठ साधक पहचान कर तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमण्डित करने में महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है वह इस देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है, जिसके प्रति युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परम्परा ऋणी रहेगी। गुणानुवाद के प्रतिष्ठापन के इस प्रक्रम को अधिक सामयिक बनाने के उद्देश्य से श्रमण परम्परा के चतुर्दिक विकास में सम्पूर्णता में किये गये अवदानों के राष्ट्रीय स्तर पर किय गये आंकलन के आधार पर एक लाख रूपयों की राशि के पुरस्कार का आयोजन इक्कीसवीं सदी की सम्भवत: पहली रचनात्मक श्रमण घटना होगी। पूज्य गुरूदेव का मानना है कि प्रतिभा और संस्कार के बीजों को प्रारम्भ से ही पहचान कर संवर्द्धित किया जाना इस युग की आवश्यकता है। इस सुविचार को राँची से प्रतिभा सम्मान समारोह के माध्यम से विकसित किया गया जिसमें प्रत्येक वय के समस्त प्रतिभाशाली छात्र - छात्राओं का सम्मान, बिना किसी जाति / धर्म के भेद-भाव के किया गया। गुणानुवाद की यह यात्रा गुरुदेव के बिहार से विहार के साथ प्रत्येक ग्राम, जनपद और नगरमें विहार कर रही है और नयी पीढ़ी को विद्यालयों से विश्वविधालयों तक प्रेरित कर रही है, स्फूर्त कर रही है।
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परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज वर्तमान युग के एक ऐसे युवा दृष्टा, क्रान्तिकारी विचारक, जीवन- सर्जक और आचारनिष्ठ दिगम्बर संत हैं जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की आत्यांतिक गहराइयों, अनुभूतियों एवं साधना की अनन्त ऊंचाइयों तथा आगम प्रामाण्य उद्भूत हो मानवीय चिन्तन के सहज परिष्कार में सन्नद्ध हैं। पूज्य गुरूदेव के उपदेश हमेशा जीवन समस्याओं / सन्दर्भों की गहनतम गुत्थियों के मर्म का संस्पर्श करते हैं, जीवन को उनकी समग्रता में जानने और समझने की कला से परिचित कराते हैं। उनके साधनामय तेजस्वी जीवन को शब्दों की परिधि में बाँधना सम्भव नहीं है, हाँ उसमें अवगाहन करने की कोमल अनुभूतियाँ अवश्य शब्दतीत हैं। उनका चिन्तन फलक देश, काल, सम्प्रदाय, जाति, धर्म - सबसे दूर, प्राणिमात्र को समाहित करता है, एक युग बोध देता है, नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, वैश्विक मानव की अवधारणा को ठोस आधार देता है जहाँ दूर-दूर तक कहीं भी दुरूहता नहीं है, जो है, वह है, भाव-प्रवणता, सम्प्रेषणीयता और रत्नत्रयों के उत्कर्ष से विकसित हुआ उनका प्रखर तेजोमय व्यक्तित्व, जो बन गया है करूणा, समता और अनेकान्त का एक जीवन्त दस्तावेज |
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन पूज्य उपाध्याय श्री का जीवन, क्रान्ति का श्लोक है, साधना और मुक्ति का दिव्य छन्द है तथा है मानवीय मूल्यों की वन्दना एवं जन-चेतना के सर्जनात्मक परिष्कार एवं उनके मानसिक सौन्दर्य एवं ऐश्वर्य के विकास का वह भागीरथ प्रयत्न जो स्तुत्य है, वंदनीय है और है जाति, वर्ग, सम्प्रदाय भेद से परे पूरी इन्सानी जमात की बेहतरी एवं उसके बीच "सत्वेषु मैत्री" की संस्थापना को समर्पित एक छोटा, पर बहुत स्थिर और मजबूती भरा कदम। गुरूदेव तो वीतराग साधना पथ के पथिक हैं, निरामय हैं, निर्ग्रन्थ हैं, दर्शन, ज्ञान और आचार की त्रिवेणी हैं। वे क्रान्तिदृष्टा हैं और परिष्कृत चिन्तन के विचारों के प्रणेता हैं। महाव्रतों की साधना में रचे-बसे उपाध्याय श्री की संवेदनाएं मानव मन की गुत्थियों को खोलती हैं और तन्द्रा में डूबे मनुज को आपाद-मस्तक झिंझोड़ने की ताकत रखती हैं। परम पूज्य उपाध्याय श्री के सन्देश युगों-युगों तक सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमारी प्रमाद-मूर्छा को तोड़ें, हमें अन्धकार से दूर प्रकाश के उत्स के बीच जाने को मार्ग बताते रहें, हमारी जड़ता की इति कर हमें गतिशील बनाएं, सभ्य, शालीन एवं सुसंस्कृत बनाते रहें, यही हमारे मंगलभाव हैं, हमारे चित्त की अभिव्यक्ति है, हमारी प्रार्थना है।
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आशीर्वचन
तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने इस कर्मभूमि रूप युग का प्रारम्भ करते हुए असि, मषि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प इन छह कर्मों का उपदेश दिया था। उन्होंने ही काशी, कोसल, कलिंग, वंग, करहाटक, कर्नाटक, चोल, केरल, मालव, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र वनवास, द्रविड, आन्ध्र काम्बोज, केकय, शूरसेन, विदर्भ मगध, दशार्ण आदि जनपदों की व्यवस्था कर हा ! मा ! और धिक् ! इन तीन दण्डों का विधान किया था। ब्राह्मी को सर्वप्रथम लिपि का ज्ञान देने के कारण आज भी 'विश्व की मूल लिपि ब्राह्मी है' ऐसा भाषा वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। भगवान् ऋषभदेव का मार्कण्डेय, कूर्म, वाराह, ब्रह्माण्ड, विष्णु, स्कन्ध आदि पुराणों के साथ श्रीमद् भागवत के पंचम स्कन्ध में विस्तार से वर्णन हुआ है। कहा गया है कि -' नाभिराय और मरुदेवी के पुत्र महायोगी ऋषभदेव हुए। उनके सौ पुत्र थे, जिनमें भरत सबसे ज्येष्ठ थे, उन्हीं भरत के नाम पर यह देश भारतवर्ष कहलाता है। '
बाहुबली द्वारा अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए भरत से लड़ा गया युद्ध इस युग का प्रथम युद्ध कहा जाता है परन्तु यह युद्ध अहिंसक था । अहिंसक युद्ध, जिसकी अवधारणा अनेकान्तवादी जैनधर्म की देन है उसकी आज भी महती आवश्यकता है। आज हमारे देश में जो गणतंत्र /लोकतंत्र - व्यवस्था है, वह भगवान् महावीर के काल में भी थी। अनेक जैन राजा, मंत्री, दीवान, सेनापति, कोषाध्यक्ष आदि हुए, जिन्होंने भारत के राजनैतिक विकास में अपना महान् योगदान दिया था।
हमारा देश प्राचीन काल से ही सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है, जो हमारी समृद्धि और विपुल प्राकृतिक सम्पदा का सूचक है। इसी समृद्धि के कारण विदेशी आक्रान्ता यहाँ आये और उन्होंने हमारे देश को खूब लूटा - खसोटा | 'ईस्ट इण्डिया कम्पनी' ने तो अपना ऐसा विस्तार किया कि अधिकांश भारत को अपने अधीन कर लिया। आजादी के लिए अनेक छोटे-मोटे प्रयास होते रहे किन्तु 1857 में एक संगठित क्रान्ति हुई, जिसकी अगुआ झॉसी की रानी लक्ष्मीबाई बनी। 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। ' के रूप में उनकी यशोगाथा आज भी जन-जन में गाई जाती है।
महारानी लक्ष्मीबाई को तो आज सभी जानते हैं, किन्तु आर्थिक संघर्ष से भी जूझ रही लक्ष्मीबाई को खजाना खोलकर सहायता करने वाले ग्वालियर नरेश के खजांची अमर शहीद अमर चंद बांठिया को शायद ही कोई जानता हो । इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि किस प्रकार फांसी देने के बाद तीन दिन तक उनका शव ग्वालियर के सर्राफा बाजार के नीम पर लटकाये रखा गया था। 1857 की ही क्रान्ति में बहादुर शाह जफर के मित्र लाला हुकुमचंद जैन, हांसी व उनके भतीजे फकीरचंद जैन को उन्हीं की कोठी के आगे फांसी पर लटका दिया गया था।
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जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है । किन्तु राष्ट्र के सम्मान पर जब भी आंच आई जैन-धर्मावलम्बी कभी पीछे नहीं रहे। भारत की आजादी के आन्दोलन में लगभग 20 जैन शहीदों ने अपना बलिदान देकर आजादी के
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन मार्ग को प्रशस्त किया था। प्रस्तुत पुस्तक में इनका परिचय दिया गया है। इनके अतिरिक्त भी और शहीद हो सकते हैं, जिनकी खोज जारी रहनी चाहिए।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में लिखा है कि - 'जब मैं विदेश जाने लगा तो मेरी माता मुझे भेजने को तैयार नहीं हुई क्योंकि उन्हें डर था कि विदेश में जाकर यह (मैं) मांसभक्षण, मदिरापान, परस्त्री सेवन करने लगेगा। सभी माँ को समझाकर हार गये। बड़ी विकट समस्या थी। तब एक जैन मुनि आये और उन्होंने मुझे इन तीनों चीजों के त्याग की प्रतिज्ञा दिलवाई, तब माँ ने मुझे जाने की आज्ञा दी।' इतना प्रभाव था जैन मुनियों का। गांधी जी के अनुसार उनके जीवन पर जिन तीन व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा उनमें श्रीमद् राजचन्द्र प्रमुख हैं। श्रीमद् राजचन्द्र जैन थे, वे शतावधानी थे तथा बम्बई में हीरे-जवाहरात का व्यापार करते थे। जब गांधी जी का झुकाव ईसाई धर्म की ओर हुआ तब श्रीमद् राजचन्द्र से उन्होंने 33 प्रश्न पूंछे। श्रीमद् राजचन्द्र के उत्तरों से सन्तुष्ट होकर गांधीजी अपने स्वधर्म में दृढ़ हो गये।
भारत वर्ष की आजादी में अमर शहीद भगतसिंह, चन्द्रशेखर, ऊधम सिंह आदि शहीदों तथा गणेश शंकर विद्यार्थी, विनायक दामोदर जैसे क्रान्तिकारियों को तो सभी जानते हैं किन्तु मोती चन्द्र शाह, उदयचंद जैन, साबूलाल जैन जैसे शहीदों और अर्जुन लाल सेठी जैसे सहस्रों क्रान्तिकारियों को कम ही लोग जानते हैं। इनका सुसम्बद्ध इतिहास लिखा जाना आज भी बाकी है। पंजाब केसरी लाल लाजपतराय की दादी जैन थीं और वे किसी साधु को भोजन कराये बिना भोजन नहीं करती थीं। गांधी जी की दाण्डी यात्रा के समय महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराभाई ने किया था।
जैन पत्रकारिता के पितामह बाबू ज्योति प्रसाद जैन, देवबन्द ने 1930 में जब 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' लेख उर्दू भाषा में 'जैन प्रदीप' में छापा तो उनकी जमानत जब्त हो गई, जैन प्रदीप की प्रतियां जब्त कर ली गईं और पत्र का प्रकाशन बन्द कर दिया गया। इसी प्रकार श्री श्याम लाल पाण्डवीय की पत्रिका
और श्री कल्याण कुमार 'शशि' की पुस्तक भी अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई थी। अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं ने आजादी के विषय में निर्भीक होकर समाचार दिये तथा कुछ ने तो स्वदेशी के विषय में विज्ञापन तक निकाले थे। जैन सन्देश, मथुरा ने जनवरी 1947 में स्वतंत्रता विषयक लगभग 100 पृष्ठीय एक विशेषांक निकाला था जो आज महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है।
पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य, पं. फूलचंद जी सिद्धान्त शास्त्री, पं. खुशालचंद जी गोरावाला जैसे जैन विद्धानों ने जेल की दारुण यातनाएं सही थीं। कहा जाता है कि 1942 में वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय के सभी छात्र बागी हो गये थे। भारतवर्ष का संविधान बनाने वाली संविधान निर्मातृ सभा में श्री रतनलाल मालवीय (जैन), श्री अजित प्रसाद जैन, श्री भवानी अर्जुन खीमजी, श्री बलवन्त सिंह मेहता और श्री कुसुमकान्त जैन ये पाँच जैन सदस्य थे। हमारे संविधान में 'जीव मात्र के प्रति दया भाव' को भारतीय नागरिकों का मूल कर्त्तव्य बताया गया है।
जैन महिलाओं ने भी आजादी के आन्दोलन में महती भूमिका निभाई थी। इस विषय में डॉ० ज्योति जैन की 'स्वराज्य और जैन महिलायें' पुस्तक काफी पहले प्रकाशित हो चुकी है। लेखक दम्पति के अनुसार लगभग पाँच हजार जैन जेल गये। सहस्राधिक पुरुष ऐसे भी हैं, जो जेल नहीं जा सके किन्तु उन्होंने आर्थिक
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
xxvii आदि सहायता कर स्वतंत्रता आन्दोलन को गतिमान् बनाया था। जैन समाज का इतना योगदान होने पर भी इन सबकी कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी। हमारी बहुत इच्छा थी कि ऐसा कोई काम हो, जिससे देश की आजादी के आन्दोलन तथा राजनैतिक क्षेत्र में जैन समाज के योगदान को रेखांकित किया जा सके।
डा. कपूरचंद जैन और डा. ज्योति जैन हमारे पास दिल्ली आये और बताया कि हम 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' विषय पर काम कर रहे हैं तथा उसका एक खण्ड तैयार है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के जैन स्वतंत्रता सेनानियों के परिचय हैं। ऐसे दो खण्ड और तैयार करने हैं।
लेखक दम्पति ने जैन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की स्मृति सम्पूर्ण राजनैतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में आयोजित कर एक अभूतपूर्व कार्य किया है। इस दुरुह कार्य में इनका विगत दश वर्षीय अथक श्रम प्रशंसनीय है। इस प्रकार के शोधकार्य से जैन समाज का इतिहास सुदृढ़ होता है अत: इस कार्य को करने वाले इस दम्पति को मेरा आशीर्वाद है, यह संस्कृति और समाज के अभ्युत्थान में सतत समर्पित रहकर साहित्य सपर्या करते हए अपना कल्याण करें।
उपाध्याय ज्ञानसागर
18.11.02 छीपीटोला, आगरा
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प्रकाशकीय
परमपूज्य सराकोद्धारक उपाध्यायरत्न 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से स्थापित प्राच्य श्रमण भारती ने अपनी ग्यारह वर्ष की अल्पवय में ही जैन साहित्य-संस्कृतिइतिहास - दर्शन - पुरातत्त्व - कथा सम्बन्धी लगभग अस्सी पुस्तकों का प्रकाशन कर जैन साहित्य के विकास में महनीय योगदान दिया है। आज कम्प्यूटर और इन्टरनेट के युग में भी पुस्तकों की महत्ता कम करके नहीं आंकी जानी चाहिए। पूज्य उपाध्याय श्री की सदैव प्रेरणा रहती है कि प्राच्य श्रमण भारती को जैन आगम के गम्भीर विषयों के साथ-साथ लोकोपयोगी सरल साहित्य का भी प्रकाशन करना चाहिए। इतना ही नहीं बाल साहित्य के प्रकाशन की भी उनकी प्रेरणा रहती है। हम इस कसौटी पर कितने खरे उतरे हैं, इसका निर्णय आप जैसे गुणानुरागी पाठकों पर छोड़ते हैं।
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विद्वदनुरागी और साहित्य पारखी पूज्य उपाध्याय श्री के पास जब हम 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' पुस्तक की पाण्डुलिपि लेकर गये तो उन्होंने इसके प्रकाशन हेतु अपना वरद् आशीर्वाद हमें दिया, तदनुरूप यह पुस्तक आपके कर-कमलों में देते हुए हमें असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है।
योगेश कुमार जैन
भारतीय साहित्य और संस्कृति के विकास में जैन समाज ने अपना अनल्प योगदान दिया है। देश की समृद्धि में हमारा समाज सदैव अग्रिम पांक्तेय रहा है। यह बात अलग है कि उसका जितना मूल्यांकन होना चाहिए था, उतना हुआ नहीं। राष्ट्रीय चेतना में यह समाज सदैव अग्रणी रहा है। राष्ट्रीय आन्दोलन में भी हमारे समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कुछ फांसी के फंदे पर झूले तो कुछ को गोलियों का शिकार होना पड़ा। कुछ ने जेल की कठोर यातनायें सहीं तो कुछ परिवार- विहीन हो गये। कुछ की लिखी कवितायें या पुस्तकें जब्त कर ली गईं तो कुछ पत्रिकाओं की जमानतें जब्त हो गईं। महिलायें भी इस काम में पीछे नहीं रहीं। अनेक लोगों ने बाहर से आन्दोलन को गतिमान बनाये रखा। इस विषय पर अनेक समाजों के इतिहास तो सामने आये किन्तु जैन समाज की स्वतंत्रता आन्दोलन में क्या भूमिका रही इस विषय पर कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं आई थी। डॉ॰ कपूरचंद और डॉ० ज्योति जैन ने श्रम - समय और बहु अर्थ साध्य प्रस्तुत पुस्तक लिखकर इस कमी को पूरा किया है। डाक्टरद्वय की योजनानुसार पुस्तक तीन खण्डों में लिखी जानी है, जिसका यह प्रथम खण्ड है, हम आशा करते हैं कि शेष दो खण्ड भी शीघ्र प्रकाशित होंगे।
अध्यक्ष
लेखक दम्पति के हम आभारी हैं, जिन्होंने हमारी संस्था को अपनी पुस्तक के प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की है। श्रीमान् सुमत प्रसाद जैन, बजाज बैटरी, आगरा, श्री श्रीचंद जैन, शील सेफ इण्डस्ट्रीज़, मेरठ एवं ब्र० महावीरी देवी पाटौदी, साढम (बोकारो) ने आर्थिक सहयोग देकर इस कार्य को सुगम बनाया है। हम आशा करते हैं कि इनका ऐसा ही सहयोग प्राच्य श्रमण भारती को सदैव मिलता रहेगा। मनोहर लाल जी ने बड़े ही मनोयोग पूर्वक इसका मुद्रण किया है। संस्था के सभी पदाधिकारियों का आभार व्यक्त करता हूँ, जिनका अमूल्य सहयोग हमें सदैव मिलता रहता है।
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प्राच्य श्रमण भारती
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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रविन्द्र कुमार जैन (नावले वाले )
मंत्री
प्राच्य श्रमण भारती
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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उपक्रम
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ 1857 ई0 की जनक्रान्ति से माना जाता है। 1857 से 1947 ई0 के मध्य के 90 वर्षों में न जाने कितने शहीदों ने अपनी शहादत देकर आजादी के वृक्ष को सींचा, न जाने कितने क्रान्तिकारियों ने अपने रक्त से क्रान्तिज्वाला को प्रज्वलित रखा और न जाने कितने स्वातंत्र्य-प्रेमियों ने जेलों की सीखचों में बन्द रहकर दारुण यातनायें सहीं। ऐसे व्यक्तियों के अवदान को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए जिन्होंने जेल से बाहर रहकर भी स्वतंत्रता के वृक्ष की जड़ों को मजबूती प्रदान की। आजादी के बाद कुछ का ही इतिहास लिखा जा सका। बहुसंख्य देशप्रेमी ऐसे हैं, जिनके सन्दर्भ में कहीं कोई चर्चा तक नहीं है।
आजादी के आन्दोलन में भाग लेने वाले प्रत्येक देशप्रेमी की अपनी अलग कहानी है, अलग गाथा है। पुरानी स्मृतियां हैं, दु:खद अनुभव हैं। परिवार की बर्बादी है और शरीर पर आजादी की इबारतें हैं। किन्हीं के चेहरे पर, किन्हीं की पीठ पर, किन्हीं के पेट पर तो किन्हीं के पैरों पर इन इबारतों के निशान हैं। कोई परिवार से छूटा तो कोई शिक्षा से। कितने ही देशप्रेमी कितने ही दिन भूखे पेट रहे, जेल में कंकर-पत्थर मिली रोटियां खाईं वह भी अशुद्ध। किसी ने खाईं तो बीमार पड़ गया, कोई बिना खाये ही दो-दो दिन भूखा रहा। किसी ने प्रतिवाद किया तो कोड़े खाये, किसी को गुनहखाने में डाल दिया गया। पर आजादी के ये दीवाने झुके नहीं।
आजादी के आन्दोलन में न जाति-पांति का भेद था न छोटे बड़े का। न गरीब-अमीर की भावना थी न ऊँच-नीच का भाव था। सभी का एक ही लक्ष्य था-'हमें देश को आजाद कराना है, हमें आजादी चाहिए, मर जायेंगे, मिट जायेंगे पर आजादी लेकर ही रहेंगे।' फांसी के फन्दे और गोलियों की बौछार उन्हें भयभीत नहीं कर सकी, जेल की दीवारें उन्हें रोक नहीं सकी, जंजीरें बांध नहीं सकी, डंडे कुचल नहीं सके और परिवार की बर्बादी उन्हें अपने गन्तव्य से विचलित नहीं कर सकी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वतंत्रता आन्दोलन तथा शहीदों/सेनानियों पर बहुत कुछ लिखा गया। स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जातियों के योगदान पर पृथक्-पृथक् पुस्तकें भी लिखी गईं, परन्तु जैन समाज के योगदान पर कोई पुस्तक नहीं लिखी गई।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मावलम्बियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। अनेक जैन शहीदों ने अपना बलिदान देकर आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया तो अनेकों ने जेल की दारुण यातनायें सहीं। अनेक माताओं की गोदें सूनी हो गईं तो अनेक बहिनों के माथे का सिन्दूर पुंछ गया। ऐसे लोगों का भी बहुत योगदान रहा जिन्होंने बाहर से आन्दोलन को सशक्त बनाया, जेल गये व्यक्तियों के परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था की। जैन समाज धनिक समाज रहा है, अत: जितना आर्थिक अवदान इस समाज ने दिया, शायद ही किसी समाज ने दिया हो।
भारत के संविधान निर्माण और आजाद हिन्द फौज में भी जैनों ने महती भूमिका निभाई थी। जैन पत्र-पत्रिकाओं ने भी इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। कुछ पत्रों ने अपने आजादी सम्बन्धी विशेषांक निकाले तो कुछ ने स्वदेशी भावना सम्बन्धी विज्ञापन भी प्रकाशित किये थे। अनेक पत्रों में प्रकाशित
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
लेखों के कारण उनकी जमानतें जब्त हो गई थीं। स्वदेशी का प्रचार करने के लिये जैन बन्धुओं ने अपने मंदिरों में स्वदेशी, हाथ से कती धोती / साड़ी पहनकर ही पूजा-अर्चना करने का प्रचार किया था और मंदिरों में धोती/साड़ी की व्यवस्था भी की थी।
जैन समाज में इतिहास-लेखन के प्रति उदासीनता ही रही है। जैन आचार्यों, सम्राटों, सेनानायकों, कोषाध्यक्षों, मंत्रियों, साहित्यकारों और कवियों तक का प्रामाणिक इतिहास हमारे पास नहीं है । यहाँ तक कि जो हमारे सामने हाल ही में घटा है उसके लेखन की ओर भी हम गम्भीर नहीं हैं। जो वर्तमान में हो रहा है उसका तक इतिहास हम नहीं लिख रहे हैं। यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है। कौन जानता है कि आजादी के बाद के पचास वर्षों में लगभग 35 सांसद, 4 राज्यपाल, 8 मुख्यमंत्री, 4 राजदूत, अनेक वैज्ञानिक और उच्च पदों पर जैन समाज के व्यक्ति आसीन हो चुके हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा में लगभग 50 जैन विधायक अब तक निर्वाचित हुए हैं।
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स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले जैन वीरों का इतिहास आजादी के तत्काल बाद लिखा जाना चाहिए था। पर हमारे अन्वेषकों, विद्वानों, पंडितों, श्रीमानों का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया? यह विचारणीय विषय है। यद्यपि जैन समाज की शीर्ष संस्थाओं में लगभग 10 बार ऐसे प्रस्ताव पास हुए कि ऐसा काम होना चाहिए पर वे प्रस्ताव प्रस्ताव ही रहे । जब कि जबलपुर, सागर, दमोह, ललितपुर, टीकमगढ़, जयपुर आदि ऐसे जिले हैं जहाँ के जैन सेनानियों पर स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं।
लगभग दस वर्ष पूर्व हम दम्पती ने 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' जैसे अछूते विषय पर लिखने का विचार कर सामग्री का संकलन प्रारम्भ किया था। विचार था कि 100-125 पृष्ठ की एक पुस्तक इस विषय पर तैयार कर प्रकाशित की जाये। पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद का ही प्रतिफल है कि ग्रन्थ को तीन खण्डों में प्रकाशित करने की योजना बनानी पड़ी।
प्रथम खण्ड में अमर जैन शहीदों के परिचय के साथ ही विशेषत: मध्यप्रेदश, उत्तरप्रदेश व राजस्थान के जैन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय दिया जा रहा है। दूसरे खण्ड में अन्य प्रदेशों के सेनानियों के साथ ही उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश व राजस्थान के अवशिष्ट सेनानियों के परिचय देने की तथा तीसरे खण्ड में स्वतंत्र चिन्तन के साथ ही जेलयात्रा न कर अन्य प्रकार से सहयोग देने वाले जैन देशप्रेमियों का परिचय देने की योजना है।
प्रस्तुत खण्ड में 'बोलते शब्द चित्र' नाम से एक विस्तृत भूमिका दी जा रही है जिसमें भगवान् ऋषभदेव से लेकर 1857 ई0 तक के जैन राजाओं, मंत्रियों, सेनापतियों, कोषाध्यक्षों, दीवानों, दुर्गपालों आदि का परिचय दिया गया है साथ ही कुछ विशिष्ट जैन राजनैतिक व्यक्तियों का भी इसमें परिचय दिया गया है । विस्तार भय से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का ही उल्लेख इस उपक्रम में किया गया है। 'स्वतंत्रता आन्दोलन : एक सिंहावलोकन' में 1857 से 1947 तक की प्रमुख घटनाओं को दर्शाया गया है। साथ ही स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रमुख घटनाओं को वर्षवार एक अलग उपक्रम में भी दिखाया गया है।
'अमर जैन शहीद' उपक्रम में लगभग 20 जैन शहीदों का सप्रमाण परिचय दिया गया है। जितने उपलब्ध हो सके हैं उतने चित्र भी दिये गये हैं। कुछ और जैन शहीदों के परिचय और चित्र हेतु प्रयास जारी है।
'जैन स्वतंत्रता सेनानी' उपक्रम में उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश व राजस्थान के जैन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय दिया गया है। उत्तरांचल व छत्तीसगढ़ क्रमशः उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में समाहित हैं। इनमें
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
Xxxi अधिकांश जेलयात्री हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने भूमिगत रहने वालों को भी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया है, अत: उनका परिचय भी इसी अध्याय में समाविष्ट है।
परिशिष्टों में कुछ लेख हमने यथावत् दिये हैं। स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी एक ऐसा महाविद्यालय है, जहाँ के लगभग सभी छात्र 1942 के आन्दोलन में क्रान्तिकारी हो गये थे। इन छात्रों का लेखा-जोखा वहीं के छात्र रहे श्री देवेन्द्र जैन ने 'जैन सन्देश', राष्ट्रीय अंक (जनवरी, 1947) में प्रस्तुत किया था, जिसे हमने यथावत् दिया है। 'राष्ट्रीयता क्या है?' शीर्षक लेख पं0 चैनसुखदास न्यायतीर्थ ने लिखा था जो 'जैन सन्देश' के उक्त अंक में छपा था, उसे भी यथावत् दे दिया गया है। एक जब्तशुदा लेख के अन्तर्गत देवबन्द के बाबू ज्योति प्रसाद जैन का 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' लेख दिया गया है जो देवबन्द से प्रकाशित 'जैन प्रदीप' (उर्दू) में अप्रैल एवं मई-जून 1930 के अंकों में छपा था। इस लेख के कारण पत्र की जमानत जब्त हो गई थी और पत्र भी बन्द हो गया था। 'स्त्रियां राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं?' शीर्षक लेख 'जैन महिलादर्श' के अगस्त 1946 के अंक में छपा था, जिसे भी यथावत् दिया जा रहा है।
भारत के संविधान निर्माण में जैनों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। संविधान सभा के पाँच जैन सदस्यों की प्रामाणिक जानकारी हमें मिली है जिनमें श्री कुसुमकान्त जैन सभा के सम्भवतः सबसे कम उम्र के सदस्य थे। श्री कुसुमकान्त जैन और श्री बलवन्त सिंह मेहता अभी हमारे बीच हैं, यह जैन समाज के लिए परम सौभाग्य की बात है। श्री मेहता 8 फरवरी 2000 को शतायु होकर एक सौ एक वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। राजस्थान के डॉ0 राजमल कासलीवाल, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के निजी चिकित्सक रहे थे। श्रीमती रमाबेन आदि महिलायें आजाद हिन्द फौज की सदस्यायें रही थीं। 'आजाद हिन्द फौज में जैन' शीर्षक लेख में हमने उनके इसी अवदान को रेखांकित करने का प्रयास किया है। 'राष्ट्रीय आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं का योगदान' लेख में जैन पत्र-पत्रिकाओं के अवदान को रेखांकित किया गया है, कि किस प्रकार जैन पत्रकार बिना किसी भय के आन्दोलन के सन्दर्भ में समाचार/लेख आदि देते रहे। इस विषय में अन्य भी बहुत सामग्री हमारे पास उपलब्ध है, जिसे विस्तार भय से नहीं दिया गया है।
अन्त में आधारभूत ग्रन्थों की सूची दी गई है। इसमें अधिकांशतः वे ही ग्रन्थ उल्लिखित हैं जिनका उपयोग हुआ है। ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जिनका अध्ययन तो किया गया पर जिनमें कोई सामग्री नहीं मिली। सामान्यतः ऐसे ग्रन्थों का उल्लेख नहीं किया गया है। अनेक ग्रन्थ कई दशकों पूर्व प्रकाशित हुए थे जिनकी प्रतियां नहीं मिल सकी, ऐसी दशा में पूरे के पूरे ग्रन्थ की फोटोस्टेट करानी पड़ी, जो हमारे पास सुरक्षित हैं। जिन ग्रन्थों का अनेक बार उल्लेख किया गया है उनके लिए कुछ संक्षिप्त संकेत बनाये हैं, जिन्हें ग्रन्थारम्भ में दे दिया गया है।
सामग्री का लेखन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि जो कुछ संकलित हुआ है उसे यथासम्भव सुरक्षित रखा जाये और उतनी ही काट-छांट की जाये जो स्पष्टता और सुबोधता के लिए
आवश्यक हो। अपनी तरफ से कुछ भी नया हमने नहीं जोड़ा है क्योंकि यह हमारे कार्यक्षेत्र से बाहर है। किसी इतिहास लेखक को यह करना भी नहीं चाहिए। हम उन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी नहीं हैं। हमें तो जो लिखित और व्यक्तियों के श्रीमुख से मिला उसे ही प्रस्तुत किया है।
यह समस्या थी कि किसकी स्मृतियों को छोड़ा जाये, किसके अनुभवों को न लिखें। एक-एक परिचय को अन्तिम रूप देते समय घंटों का समय इसी बहस में निकला है। सामग्री बढ़ने की चिन्ता थी पर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अन्दर एक लोभ बैठा था कि आजादी की आधी शताब्दी बीत जाने पर यह कार्य हो रहा है बाद में कोई करेगा? यह निश्चित नहीं। स्वतंत्रता की इन साक्षात् मूर्तियों की परम्परा भी समाप्तप्राय: है, फिर शायद ये स्मृतियां, ये अनुभव, ये घटनायें, यह इतिहास न मिले, अत: सरल भाषा में जितना जरूरी और आवश्यक था, वह हमने लिखा है।
स्वतंत्रता सेनानियों के ये परिचय अलग-अलग समय, अलग-अलग तिथि तथा अलग-अलग आधार पर लिखे गये हैं अतः इनकी भाषा-शैली में अन्तर होना स्वाभाविक है। निवेदन है कि प्रत्येक परिचय को एक स्वतंत्र इकाई मानकर पढ़ा जाये।
प्रामाणिकता
प्रस्तुत ग्रन्थ में जो भी सामग्री दी है, उसकी प्रामाणिकता का विशेष ध्यान रखा है। स्वाधीनता आन्दोलन में जैन ही नहीं प्रत्येक सेनानी ने किसी लाभ के वशीभूत होकर नहीं, अपितु भारत माता को आजाद कराने की कर्तव्य-भावना से भाग लिया था। आजादी के बाद इसको भुनाने का जैन समाज के लोगों ने कभी प्रयत्न नहीं किया, न ही अपने नाम स्वाधीनता सेनानियों की सूची में जुड़वाने के प्रयत्न किये, अनेक ने तो सरकार द्वारा दी गई जमीन आदि को लेने से भी इन्कार कर दिया, फलतः अनेक जैन सेनानियों के नाम सरकारी पेंशन या अन्य सुविधा प्राप्त सूचियों में नहीं आ पाये। ऐसी दशा में उनकी पहचान करना और कठिन हो गया।
___ इस कार्य को करने के लिए हमने जैन समाज तथा उसके उपसम्प्रदायों के इतिहास ग्रन्थ देखे हैं, साथ ही विभिन्न सरकारी सूचियों, पुस्तकों, सन्दर्भो का आश्रय लिया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से भी प्रचर सामग्री प्राप्त हुई है। मध्यप्रदेश शासन द्वारा पांच खण्डों में प्रकाशित 'मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक' महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों की अनेक सूचियां भी हमें मिली हैं।
___23 जनवरी 1947 को प्रकाशित 'जैन सन्देश' का लगभग 100 पृष्ठीय राष्ट्रीय अंक इस विषय का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। इस अंक में उस समय वर्तमान और दिवंगत हो चुके लगभग पूरे भारत, विशेषतः हिन्दीभाषी क्षेत्रों के अनेक जैन स्वतंत्रता सेनानियों के परिचय हैं। जब देश आजाद भी नहीं हुआ था तब इस प्रकार के अंक का प्रकाशन सचमुच साहसपूर्ण कार्य था। उस समय आज की तरह पेंशनादि के लिए झूठे नामों को जुड़वाना भी सम्भव नहीं था। इस अंक से हमें प्रचुर सामग्री प्राप्त हुई है।
'उत्तर प्रदेश और जैनधर्म' में उत्तरप्रदेश के जैन सेनानियों की एक प्रामाणिक सूची डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन ने 1974 में प्रकाशित की थी। सूची के अन्त में लिखा है-'जो विशेष रूप से उल्लेखनीय थे और जिनके विषय में निश्चित रूप से ज्ञात हो सका उन्हीं का उल्लेख ऊपर किया गया है।'
श्री सुमनेश जोशी का 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी' ग्रन्थ राजस्थान के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। 850 पृष्ठीय इस ग्रन्थ में अनेक जैन सेनानियों का भी परिचय है। अनेक जैन शहीदों/सेनानियों पर स्वतंत्र पुस्तकें/अभिनन्दन ग्रन्थ/स्मृति ग्रन्थ/स्मारिकायें आदि प्रकाशित हुई हैं। दैनिक-पाक्षिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में भी सेनानियों पर काफी कुछ लिखा गया है। उनका संकलन कर उपयोग किया है।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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जितने सेनानियों के पते प्राप्त हो सके उन्हें पत्र दिये, जिनमें अधिकांश वापिस आ गये। लगभग तीन हजार पत्रों का आदान-प्रदान हमें इस कार्य के लिए करना पड़ा है।
सामग्री की प्रामाणिकता बनाये रखने के लिए जिस पुस्तक/लेख/पत्र-पत्रिका आदि से आधारभूत सामग्री ग्रहण की गई है, उसका उल्लेख कर दिया गया है एवं उन्हीं का उल्लेख सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में किया गया है। जहाँ एक निश्चित पृष्ठ से सामग्री का संचयन किया गया है, वहाँ पृष्ठ संख्या दे दी गई है। जहाँ एक ही पुस्तक/पत्र-पत्रिका आदि के अनेक स्थानों से सामग्री का संचयन किया गया है वहां पृष्ठ संख्या न देकर उसका नामोल्लेख किया गया है।
परम्परानुसार अनेक आलोचक बन्धु कह सकते हैं कि इस विषय में अमुक-अमुक सामग्री और होनी चाहिए थी तथा अमुक नहीं होनी चाहिए थी। उनका कहना सच भी है। वस्तुतः इतिहास अपना अवगुण्ठन एक साथ नहीं खोलता। परत-दर-परत इतिहास की तहें निकलती रहती हैं। अन्वेषक नये तथ्यों का अन्वेषण कर नई-नई स्थापनायें करते रहते हैं। हम आशा करते हैं कि अन्य बन्धु भी अपने अन्वेषणों से इस कार्य को आगे बढ़ाकर जैन समाज के गौरव में अभिवृद्धि करेंगे।
जिन सेनानियों का परिचय कम है उन्हें लग सकता है कि अधिक होना चाहिए था। पर हम उन्हें विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हमने राग-द्वेष से परे रहकर, जो कुछ हमारे सामने था उसी के आधार पर प्रस्तुत सामग्री प्रस्तुत की है। हाँ यहाँ सेनानियों के राजनैतिक और धार्मिक क्रियाकलापों को ही मुख्य आधार बनाया है।
__ हम उन सेनानियों से क्षमाप्रार्थी हैं जिनसे यहाँ प्रमाण हेतु प्रमाणपत्र मंगाने पड़े। क्योंकि यहाँ जो लिखा है, साधार ही लिखा है। इस हेतु लाखों पृष्ठों की सामग्री का अध्ययन करना पड़ा है। लगभग दस हजार पृष्ठों की फोटोकापी भी करानी पड़ी है।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ही अनेक जैन सेनानियों के परिचय हमारे पास हैं परन्तु कोई प्रमाण नहीं है अत: उनके परिचय इस खण्ड में नहीं दिये गये हैं। प्रमाण मिलते ही अगले खण्ड में उन्हें दिया जायेगा। साथ ही ऐसे अनेक नाम भी हैं, जिनके प्रमाण तो हैं पर परिचय प्राप्त नहीं हो सके हैं, उनका परिचय भी अगले खण्ड में देने की योजना है। हमारे पास ऐसे अनेक लेख संगृहीत हैं, जो स्वतंत्रता संग्राम में जैनों के अवदान को रेखांकित करने वाले हैं, इनका प्रकाशन भी आगामी खण्डों में करने की योजना है।
पाठकों से
पुस्तक के सन्दर्भ में कुछ निवेदन आपसे करना है। यदि किसी जैन शहीद या स्वतंत्रता सेनानी के सन्दर्भ में कोई जानकारी आपके पास है तो सप्रमाण हमें भेजकर अनुग्रहीत कीजियेगा। साथ ही इस पुस्तक में उल्लिखित शहीदों/सेनानियों के सन्दर्भ में कोई जानकारी हो तो उसे भी भेजकर अनुग्रहीत करें।
उपनाम के कारण लेखन कार्य में बड़ी समस्या हुई है। अनेक जैन बन्धु अपने नाम के आगे जैन न लिखकर उपनाम-सिंघई, सेठी, कासलीवाल, वैद, मालवीय, मलैया, पाटनी, चौधरी, पोरवाल, शाह, मेहता, पटवा, लबेंचू आदि लिखते हैं। कुछ बन्धु नाम के आगे कुछ लिखते ही नहीं। ऐसी दशा में सेनानी का परिचय तभी दिया गया है जब उनके जैन होने का पूर्ण पता कर लिया गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन विदेशी एवं हिन्दीतर व्यक्तियों के नामों के हिन्दी रूपान्तरण सभी स्थानों पर एक से उपलब्ध नहीं होते, अतः ऐसे रूपान्तरणों में लिपि सम्बन्धी अन्तर हो सकते हैं। इसी प्रकार सेनानियों के नामों तथा उनके जन्मस्थान आदि के नामों में भी लिपि सम्बन्धी अन्तर हो सकते हैं।
__ हमें शहीदों/सेनानियों/प्रमुख व्यक्तियों के जन्म-मृत्यु, जेल-यात्रा आदि की जो तिथियाँ मिलीं, वे ईस्वी सन्/विक्रम संवत्/वीर निर्वाण संवत् आदि में मिली हैं। एकरूपता लाने के लिए यहाँ यथासम्भव ईस्वी सन् का प्रयोग किया है अतः गणना में महीनों का अन्तर हो सकता है। कुछ घटनाओं की तिथियाँ अलग-अलग पुस्तकों में अलग-अलग हैं, यद्यपि एकरूपता का पूरा प्रयास किया गया है, फिर भी कहीं-कहीं अन्तर हो सकता है।
सेनानियों का परिचय देते समय हमने दो बातों का विशेषतः उल्लेख किया है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी तथा द्वितीय जैन धर्म/दर्शन/साहित्य/संस्कृति के प्रति उनकी आस्था और उसके विकास के लिए कृत कार्य। बाकी परिचय संक्षेप में दिया है।
अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के दर्शन और उनसे साक्षात्कार का सौभाग्य हमें मिला है। अपनी जेल यात्राओं की दर्दभरी कहानियां तथा तात्कालिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में उन्होंने जानकारी प्रदान की थी। ऐसे स्थानों पर आधार हेतु साक्षात्कार (सा0) का प्रयोग किया है। अनेक सेनानियों ने हमारे आग्रह करने पर अपना परिचय व चित्र भेजे हैं उनके लिए आधार में यहाँ स्वप्रेषित परिचय (स्व0 प०) का प्रयोग किया है।
पहले सेनानियों का परिचय प्रदेशवार दे रहे थे, पर एक सेनानी बाद में दूसरे प्रदेश में चला गया या दो बार अलग-अलग प्रदेशों की जेलों में रहा तो उसे किस प्रदेश का माना जाये? ऐसी अनेक समस्यायें हमारे सामने थीं, अत: अकारादि क्रम से सेनानियों का परिचय दिया जा रहा है।
स्वर्गीय (स्व0) शब्द उन्हीं सेनानियों के लिए प्रयुक्त किया है जिनके निधन की निश्चित जानकारी हमें प्राप्त हो गई है। यद्यपि इनमें अनेक ऐसे हैं जिनका निधन हो गया है पर निश्चित सूचना के अभाव में उन्हें स्वर्गीय नहीं लिखा है।
मध्य प्रदेश में 1949 में 'भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन' चला। शासन ने उसमें भाग लेने वालों को स्वतंत्रता सेनानी माना है अत: उनका उल्लेख हमने भी इस ग्रन्थ में किया है। साथ ही 'गोवा मुक्ति आन्दोलन' में जेल जाने वालों का उल्लेख भी इस ग्रन्थ में किया गया है।
कुछ सेनानियों के निवास स्थान का स्पष्ट उल्लेख न मिल पाने के कारण उनके जिले के नाम से उनका उल्लेख किया गया है। यात्रायें
इस कार्य को करने के लिए हमें जबलपुर, दमोह, सागर, छिन्दवाड़ा, रामटेक, कुण्डलपुर, झांसी, ललितपुर, वाराणसी, जयपुर, उदयपुर, ब्यावर, अलवर, सहारनपुर, रुड़की, मेरठ, आगरा, भोपाल, सतना, मुम्बई, देवबन्द, नेमावर, कानपुर कोटा, टीकमगढ़, सिवनी, नैनपुर, केवलारी, डिण्डोरी, दिल्ली आदि अर्धशताधिक स्थानों की यात्रायें करना पड़ी हैं। दिल्ली तो अनेक बार जाना हुआ। इन यात्राओं में बड़े खट्टे-मीठे अनुभव हुए। कुछ स्थानों पर तो हमें लोगों ने 'चंदा उगाहने वाला पंडित' समझा और सौ-दो सौ रुपये देने की पेशकश कर टालना चाहा। अपना प्रयोजन बताने पर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या कोई
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
व्यक्ति ऐसी खोज करने में भी परिश्रम कर सकता है। अस्तु, अधिकांश स्थानों पर लोगों ने भरपूर सहयोग दिया। सभी की चर्चा विस्तारमय से करना सम्भव नहीं है, फिर भी कुछ के नाम देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं।
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11-12 दिसम्बर 1994 को सहारनपुर में प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के जब दर्शन किये तो वे जिस आत्मीयता से मिले वह शब्दातीत है। उनके ये शब्द आज भी कानों में गूंज रहे हैं, 'आप जो श्राद्ध जैन सेनानियों का कर रहे हैं वह अनूठा है।' सहारनपुर में प्राचार्य डॉ0 रूपचंद जैन, बाबू विशाल चंद जैन, डॉ० रामशब्द सिंह, श्री अखिलेख मिश्र आदि का विशेष सहयोग रहा। लौटते हुए रुड़की में डॉ0 अशोक जैन का आतिथ्य भी हमने स्वीकार किया। छह मई 1995 को पुनः श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय की पुस्तकों के अन्वेषण हेतु गये। पुस्तकें तो मिलीं पर जमानत के बाद।
देवबन्द के श्री कुलभूषण जैन ने अपने दादा स्व0 ज्योति प्रसाद के जब्तशुदा लेख की मूल उर्दू कापी की फोटो स्टेट सरलता से हमें प्रदान कर दी। छिन्दवाड़ा और डिण्डोरी प्रवास के दौरान श्री प्रबोधचंद, एडवोकेट और श्री राजू भैय्या के पारिवारिक जनों ने जो आवभगत की वह हमारी स्मृति-मंजूषा के अमूल्य रत्न बन गये हैं।
आभार
XXXV
जबलपुर में 'मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ' के संस्थापक- मंत्री श्री रतनचंद जैन ने अपनी संचित सामग्री का अवलोकन जिस सरलता से कराया। उससे लगा कि दुनिया में आज भी सरल और सहृदय लोग हैं। फिर तो पत्रों का सिलसिला निरन्तर चलता रहा। वे कार्य के प्रति उत्साहित करते रहे। खेद है कि इस ग्रन्थ को देखे बिना ही वे स्वर्ग सिधार गये। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
राष्ट्रीय अभिलेखागार तथा राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली भी अनेक बार जाना हुआ, वहाँ के अधिकारियों व कर्मचारियों ने जो सहृदयता दिखाई उसके लिए आभारी हैं। उदयपुर में श्री नाथूराम जैन, एडवोकेट ने संविधान की मूल प्रति से भ० महावीर के चित्र का फोटोग्राफ करवाने में अनुपम सहयोग दिया। दमोह के श्री सिंघई संतोष कुमार ने कुण्डलपुर प्रवास में आवासादि की उत्तम व्यवस्था की। दिल्ली प्रवास में प्रसिद्ध गांधीवादी श्री फूलचंद जैन ने दिल्ली जेल के स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी दी। प्रसन्नता का विषय है कि श्री फूलचंद जैन की पुस्तक 'बन्दीनामा' के तीन खण्ड प्रकाशित हो गये हैं।
'लौकिकानां हि साधूनामर्थं वागनुवर्तते । ऋषीणां पुनराद्यानां वाचमर्थोऽनुधावति ॥ '
सन्तशिरोमणि परमपूज्य दिगम्बर जैनाचार्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद न मिला होता तो यह कार्य इतने विशाल और प्रामाणिक रूप में न हो पाता। हमने लगभग 100-125 पृष्ठों में सेनानियों की एक सूची मात्र छापने का विचार किया था, किन्तु 1993 में श्रवणबेलगोल से लौटते हुए हम अचानक आचार्यश्री के दर्शनार्थ रामटेक उतर गये। चर्चा के दौरान हमने अपनी योजना बताई और कहा कि 'हम कुछ समय से सामग्री का संकलन कर रहे हैं।' तब आचार्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि 'ग्रन्थ की विशालता की चिन्ता मत करो, दो या तीन खण्ड भी निकालना पड़ें तो कोई बात नहीं, पर सभी सामग्री प्रामाणिक होना चाहिए' सच है, लौकिक सत्पुरुषों की वाणी अर्ध के पीछे चलती है परन्तु आद्य अर्थात् महाऋषियों की वाणी के पीछे-पीछे अर्थ स्वयं चलता है
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सचमुच ऐसा ही हुआ। इतनी सामग्री संकलित हो गई है कि इसे तीन खण्डों में प्रकाशित करने की योजना है। पूज्य आचार्यश्री के चरणों में बारम्बार कोटिशः नमोऽस्तु।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज के संघस्थ पुज्य ऐलक अभयसागर जी महाराज (सम्प्रति-मनि श्री अभय सागर जी महाराज) के हमने दर्शन भी नहीं किये थे, तब उन्होंने विभिन्न लोगों को प्रेरणा देकर एतद्विषयक सामग्री भिजवाना प्रारम्भ कर दिया था। इतनी अधिक सामग्री का संकलन होना उन्हीं की प्रेरणा का प्रतिफल है। पूज्य मुनिश्री के चरणों में कोटिशः नमोऽस्तु।
__ पूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज ने जब हमारी पुस्तक 'अमर जैन शहीद' का दिल्ली के परेड ग्राउण्ड में लोकार्पण किया था, तब असीम प्रसन्नता व्यक्त की थी और कार्य की त्वरा के प्रति प्रेरित किया था। उनके श्रीचरणों में पुनः पुनः नमोऽस्तु।
ग्रन्थ की पाण्डुलिपि लगभग 3-4 वर्ष पूर्व तैयार हो गई थी और किसी प्रकाशक की राह देख रही थी। परमपूज्य सराकोद्धारक उपाध्यायरत्न श्री ज्ञानसागर जी महाराज की दृष्टि इस ओर पड़ी। उन्हीं के आशीर्वाद से इसका प्रकाशन सम्भव हुआ है। पूज्य उपाध्यायश्री जैन विद्या और विद्वानों के संरक्षण का जो कार्य कर रहे हैं, वह युगों-युगों तक स्मरण किया जायेगा, उनके श्रीचरणों में अनन्तश: नमोऽस्तु।
य मनि श्री क्षमासागर जी महाराज, मनि श्री सधासागर जी महाराज, मनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज, मुनि श्री विनीतसागर जी महाराज, मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री गम्भीरसागर जी महाराज का आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहा है, उनके श्रीचरणों में अनेकशः नमोऽस्तु-इच्छामि।
जिन पुस्तकों/पत्र-पत्रिकाओं/आलेखों से यह पुस्तक तैयार हुई है, उनके लेखकों के हम आभारी हैं। वस्तुतः तो यह कार्य उन्हीं का है। उन रिश्तेदारों/मित्रों/परिचितों/अपरिचितों का आभार न मानें तो कृतघ्नता होगी, जिन्होंने अपने व्यस्त समय में से समय निकालकर हमारे पत्रों के उत्तर दिये हैं। जिस स्थान के सेनानी का पता चला वहीं के अपने रिश्तेदार/परिचित/मित्र को तत्काल पत्र लिख डाला। कुछ ने जबाब दिया, कुछ ने झुंझलाकर लिखा कि-'आपको क्या जरूरत आन पड़ी है, यह काम करने की। आज स्वतंत्रता सेनानी अपनी देशसेवा का नगदीकरण करा रहे हैं, उनके पुत्र तक देशसेवा के बदले सुख-सुविधायें भोग रहे हैं क्या यह उचित है?' आदि-आदि। कुछ ने लिखा कि 'उस समय जो भी जेल गये थे, वह आज सेनानी बने हए हैं।' कुछ ने हमारे पत्र बिना अपनी कोई टिप्पणी किये वापिस भेज दिये और कुछ ने तो कुछ लिखना ही उचित नहीं समझा। शताधिक पत्र ऐसे भी हैं जो पता गलत होने/परिवर्तित होने से वापिस आ गये। पर या स्वयं अपने आप ही पत्रादि देकर सहयोग करने वालों तथा सेनानियों के पुत्र-पुत्रियों/रिश्तेदारों आदि का उल्लेख यथा स्थान कर दिया गया है। अंग्रेजी, उर्दू, मराठी आदि भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद कर सहयोग करने वाले महानुभावों के भी यथास्थान उल्लेख कर दिये हैं। हम उनसे उपकृत हुए हैं। हमारे सामने समस्या यह है कि किसका नाम पहले दें, किसका बाद में? अतः हम अकारादि क्रम से सभी बन्धुओं के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
श्री अरुण कुमार शास्त्री, ब्यावर, श्री अभय कुमार जैन, अकोना, श्री अभिनन्दन सांधेलीय, पाटन, श्री आनन्द गोयल, भिण्ड, श्री आलोक कुमार जैन, नरसिंहपुर, श्री मौ0 उमर, खतौली, डॉ) कमलेश कुमार जैन, वाराणसी, श्री कमलेश बी० गांधी, सूरत, श्री कुबेर चंद जैन, मण्डला, श्री कुसुमकान्त जैन, सदस्य
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन संविधान सभा, इन्दौर, डॉ0 कैलाश नारद, जबलपुर, श्री खेमचंद स्वदेशी, तेंदूखेड़ा सगौनी, श्री गोर्धनदास जैन, आगरा, श्री जमनालाल जैन, सारनाथ, डॉ0 जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर, ब्र० जयनिशान्त जैन, टीकमगढ़, श्री डालचंद जैन, पूर्व सासंद, सागर, श्री दलीचंद जैन, रतलाम, श्री दिनेश कुमार जैन, मेरठ, श्री दिलीप कुमार जैन, श्री दीपचंद जैन, भोपाल, डॉ0 (श्रीमती) दुर्गा जैन, जबलपुर, श्री दुलीचंद जैन, देवरी, श्री देशदीपक जैन, कुरावली, श्री धन्यकुमार जैन, वाराणसी, डॉ0 नन्दलाल जैन, रीवां, प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश, फिरोजाबाद, एड० नरेन्द्र भण्डारी, सागर, श्री नरेश दिवाकर, विधायक, सिवनी, श्री नरेश कुमार जैन, पटना, श्री निर्मल कुमार
या, श्री पदम कुमार जैन, सागर, एड० पदम कुमार जैन, अजमेर, डॉ० पद्मजा पाटील, कोल्हापुर, वैद्य पन्नालाल 'सरल' फिरोजाबाद, श्री पी० जी० उमाठे, रायपुर, एड० पी० सी० चौधरी, गरोठ, डॉ0 प्रकाशचंद जैन, सागर, डॉ0 प्रमोद शंकर झा, खतौली, श्री प्रवीण जैन 'विद्या' मेरठ, श्री प्रेम कुमार जैन, विदिशा, श्री फूलचंद भदौरा, टीकमगढ़, श्री फूलचंद 'मधुर' सागर, पं0 बच्चू लाल शास्त्री, कानपुर, श्री बागमल बांठिया, कोटा, डॉ0 बाहुबली जैन, ललितपुर, श्री भीकमचंद सिंघवी, गोटेगांव, श्री मनोज कुमार 'निर्लिप्त' अलीगढ़, श्री महावीर प्रसाद जैन, अलवर, श्री महेन्द्र कुमार कठरया, ललितपुर, इ० महेन्द्र कुमार जैन, मेरठ, श्री महेन्द्र कुमार जैन, हरदा, श्री महेश कुमार 'बरमुण्डा', ब्र० माणिक चन्द्र चंवरे, कारंजा, श्री मुकेश कुमार जैन, नरसिंहपुर, श्री मुलायम चंद जैन, टडा, श्री यशवन्त कुमार शास्त्री, दमोह, डॉ0 रतनचंद जैन, भोपाल, डॉ० रत्नलाल जैन, हांसी, श्री रवीन्द्र मालव, ग्वालियर, श्री राकेश बजाज, खतौली, श्री राकेश कुमार जैन, शहपुरा, एड० रामजीत जैन, ग्वालियर, श्री रामस्वरूप जैन, खैरगढ़, मा० रिखव चंद जैन, आगरा, श्री रूपकिशोर जैन, इन्दौर, श्री आर) एस0 कोठारी, कारंजा, स्व0 पं0 वंशीधर शास्त्री, बीना, श्री विजयकुमार जैन, खुरई, श्री विपिन जैन, नरसिंहपुर, श्री विनोद जैन, सहारनपुर, श्री विनोद जैन, सी० ए०, गोंदिया, श्री विनोद सौगानी, जयपुर, श्री विभव कुमार जैन, बीना, श्री विमल चोरडिया, पूर्व सांसद, मन्दसौर, सौ० विमला जैन, नागपुर, श्री वीरेन्द्र कुमार जैन, ग्वालियर, डॉ० वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ, श्री शिखर चंद जैन, आगरा, श्री शरत जैन, भोपाल, डॉ0 शशिकान्त जैन, लखनऊ, डॉ0 श्रीरंजन सूरिदेव, पटना, डॉ0 श्री मोहन कंसल, खतौली, श्री शैलेन्द्र जैन, छतरपुर, स्व0 श्री एस० के० जैन, साहू जैन ट्रस्ट, दिल्ली, श्री संजय जैन, लोधीखेड़ा, श्री संजय जैन 'मैक्स', इन्दौर, डॉ0 सत्यप्रकाश जैन, दिल्ली, सौ० सरयू दफ्तरी, मुम्बई, श्री सुगन चंद जैन, गोटेगांव, श्री सुनील कुमार जैन, छिन्दवाड़ा, श्री सुभाष जैन, सुमत मेडीकल, सागर, श्री सुमत कुमार जैन, सी० ए०, झाँसी, श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, जैना वाच, खतौली, श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, नरसिंहपुर, स्व० श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, छतरपुर, डॉ. सुरेश चंद जैन, वाराणसी, श्री सुरेश जैन, आई० ए० एस०, भोपाल, इ० सुरेश चंद जैन, छिन्दवाड़ा, एड० श्रीमती स्नेहलता जैन, जोधपुर, श्री हजारीमल बांठिया, कानपुर, श्री ज्ञानचंद खिन्दूका, जयपुर, श्री ज्ञानसिंह लोढा, इन्दौर।
श्री मनोज कुमार गुप्ता, कु० वैशाली जैन, कु० पूनम जैन, कु० मोनिका कंसल आदि ने पुन:-पुन: पाण्डुलिपि तैयार करने में सहयोग दिया है। हमारे पुत्र चि० कार्तिक और अनिकेत ने इधर-उधर बिखरे कार्डों को क्रम से लगाते हुए समय-असमय लेखन कार्य में सहायता की है। इन सभी के मंगलमय भविष्य के प्रति शुभाषीः।
प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री का संकलन 'श्री कैलाशचंद जैन स्मृति न्यास' द्वारा किया गया और प्रकाशन प्राच्य श्रमण भारती द्वारा किया जा रहा है। प्राच्य श्रमण भारती जैन विद्याओं के प्रकाशन - क्षेत्र में उभरती हुई
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
संस्था है, जिसने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन किया है। संस्था के अध्यक्ष श्री योगेश कुमार जैन, खतौली, मंत्री श्री रवीन्द्र कुमार जैन (नावले वाले) तथा कोषाध्यक्ष श्री मनीष जैन ( शाहपुर वाले), मुजफ्फरनगर बधाई के पात्र हैं।
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श्री अनिल कुमार जैन, बाम्बे - सागर रोडवेज, नागपुर ने कम्प्यूटर कार्य हेतु अर्थ - साहाय्य प्रदान कर इस कार्य को सुगम बनाया है उनके इस साहित्य- प्रेम के आभारी हैं।
श्री कमलेश कपिल ने बड़े ही मनोयोग पूर्वक शब्द - संयोजन का कार्य किया है। मुद्रण में श्री मनोहरलाल जैन ने जो तत्परता दिखाई है उसके लिए इन दोनों महानुभावों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
अन्त में आपसे यही अनुरोध करना है कि इस पुस्तक में जो कुछ वरेण्य फूल हैं वे सब अपने पूज्य आचार्यों, गुरुजनों, महानुभावों, मित्रों और सहयोगियों के आशीर्वाद और शुभकामनाओं के फल हैं और जो कुछ अवरेण्य शूल हैं वे सब हमारे अपने हैं। आशा है हमारी वस्तु हमें लौटाने की सदाशयता आप दिखायेंगे।
'गच्छन्तः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनाः तत्र समादधति सज्जनाः ।।'
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कपूर चंद जैन श्रीमती ज्योति जैन
राष्ट्रीयता
प्रत्येक देश को स्वाधीन रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है। उस अधिकार को जो छीनना चाहे,
उसका सम्पूर्ण शक्ति लगाकर सामना करना ही राष्ट्रीयता है।
प० चैनसुखदास न्यायतीर्थ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
1.
2.
3
4.
संकेत सूची
उपक्रम : एक
बोलते शब्द चित्र
उपक्रम : दो
उपक्रम : तीन
स्वतंत्रता आन्दोलन : एक सिंहावलोकन
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उपक्रम : चार
अनुक्रमणिका
स्वतंत्रता संग्राम की कुछ प्रमुख घटनायें
अमर जैन शहीद
(1) अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन (2) अमर शहीद फकीरचंद जैन (3) अमर शहीद अमरचंद बांठिया (4) अमर शहीद मोतीचंद शाह
(5) अमर शहीद सिंघई प्रेमचंद जैन
(6) अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर
(7) अमर शहीद वीर उदयचंद जैन
( 8 )
अमर शहीद साबूलाल जैन बैसाखिया
( 9 ) अमर शहीद कुमारी जयावती संघवी ( 10 ) अमर शहीद नाथालाल शाह (11) अमर शहीद अण्णा पत्रावले ( 12 ) अमर शहीद मगनलाल ओसवाल ( 13 ) अमर शहीद भूपाल अणस्कुरे ( 14 ) अमर शहीद कन्धीलाल जैन (15) अमर शहीद मुलायमचंद जैन ( 16 ) अमर शहीद चौधरी भैयालाल (17) अमर शहीद चौथमल भण्डारी (18) अमर शहीद भूपाल पंडित
( 19 ) अमर शहीद भारमल
( 20 ) अमर शहीद हरिश्चन्द्र दगडोबा जैन
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2 O 2 N NKF = = = ∞∞
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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5. उपक्रम : पाँच
जैन स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती अंगूरी देवी जैन श्री अक्षयकुमार जैन सेठ अचल सिंह श्री अजित कुमार जैन बाबू अजित प्रसाद जैन श्री अबीरचंद जैन श्री अभयकुमार जैन श्री अभयकुमार जैन श्री अभयकुमार जैन श्री अभयमल जैन श्री अभिनन्दन कुमार टडैया श्री अमीरचंद जैन श्री अमीरचंद जैन श्री अमीरचंद जैन श्री अमृतलाल चंचल श्री अमृतलाल शास्त्री श्री अमोलकचंद जैन श्री अमोलकचंद जैन श्री अमोलकचंद जैन श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय श्री अयोध्याप्रसाद जैन श्री अर्जुनलाल सेठी श्री अवन्तीलाल जैन श्री अशोक सिंघई श्री आनन्दराव जैन श्री आनंदी लाल जैन श्री इन्द्रमल बाफना श्री ईश्वर चंद जैन श्री उगमराज मोहनोत श्री उत्तमचंद जैन श्री उत्तमचंद जैन श्री उत्तमचंद जैन कठरया बाबू उत्तमचंद वकील श्री उत्तमचंद वासल
श्री उमराव सिंह ढावरिया श्री उम्मेदीलाल जैन श्री एन. कुमार जैन श्री कंचनलाल जैन श्री कज्जूलाल पोरवाल श्री कन्छेदीलाल डेरिया श्री सिंघई कन्छेदीलाल जैन श्री कन्छेदीलाल जैन श्री कन्हैयालाल कटलाना श्री कन्हैयालाल जैन श्री कन्हैयालाल जैन श्री कन्हैयालाल नागोरी श्री कन्हैयालाल परमहंस श्री कन्हैयालाल जैन श्री वैद्य कन्हैयालाल जैन श्री कन्हैयालाल उर्फ मथुरालाल श्री कपूरचंद छाबड़ा श्री कपूरचंद जैन श्री कपूरचंद जैन श्री डा. कपूरचंद जैन श्री कपूरचंद जैन श्री कपूरचंद जैन चौधरी श्री कपूरचंद पाटनी श्री कमलचंद जैन श्री कमलाकान्त जैन श्रीमती कमला जैन श्रीमती कमला देवी कविवर कल्याणकमार 'शशि' श्री कल्याणदास जैन श्री कल्याणमल जैन श्री कस्तूरचंद जैन श्री कस्तूरचंद जैन श्री कामताप्रसाद शास्त्री श्री कालूराम जैन
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120
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री सिंघई कालूराम जैन
128 श्री बाबू किशनलाल जैन 129 श्री किशनलाल शाह
129 श्री सिंघई कुन्जीलाल जैन 129 श्री कुन्दनलाल जैन
129 श्री कुन्दनलाल जैन नायक 129 श्री कुन्दनलाल मलैया
130 श्री कुन्दनलाल समैया (जैन) 130 श्री कुसुमकान्त जैन
130 श्री केवलचंद जैन श्री केवलचंद जैन
133 श्रीमती केशरबाई
134 श्री केशरीमल जैन
134 श्री कैलाशचंद जैन
134 श्री कोमलचंद जैन
134 श्री कोमलचंद जैन
134 श्री कोमलचंद जैन श्री कोमलचंद जैन श्री सिंघई कोमलचंद जैन श्री कोमलचंद जैन श्री कोमलचंद जैन 'आजाद' 135 श्री खुमान जैन
136 प्रो० खुशालचंद गोरावाला 136 श्री सिंघई (दादा) खूबचंद जी खादी वाले 138 श्री खूबचंद जैन 'पुष्प' 139 श्री खूबचंद बैसाखिया
140 श्री खेमचंद जैन
140 श्री खेमचंद जैन
140 श्री खेमचंद जैन 'स्वदेशी' 140 श्री गंगाधर जैन
141 श्रीमती गंगाबाई जैन
141 श्री गजाधर जैन उर्फ श्री नाथूराम 141 श्री गटोलेलाल भायजी
141 श्री गनेशीलाल जी 'बाबा'
142 श्री गप्पूलाल उर्फ उमरावमल आजाद 142 श्री गुणधरलाल जैन 'निर्भय' 142
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श्री गुलझारीलाल जगाती श्री गुलजारीलाल जैन श्री वैद्य गुलझारीलाल जैन श्री गुलाबचंद कासलीवाल श्री गुलाबचंद जैन श्री गुलाबचंद जैन श्री गुलाबचंद जैन श्री गुलाबचंद जैन 'वैद्य' श्री गुलाबचंद जैन 'हलवाई' श्री गुलाबचंद सिंघई श्री गुलाबचंद सेठ श्री गेंदमल देशलहरा श्री गेंदमल पोखरना श्री गेंदालाल छाबडा श्री गेंदालाल जैन श्री गेंदालाल जैन श्री गोकलचंद जैन श्री गोकुलचंद जैन श्री गोकुलचंद जैन श्री गोकुलचंद जैन श्री गोकुलचंद सिंघई श्री गोपालदास जैन श्री गोपाललाल कोटिया श्री गोपीचंद जैन श्री गोपीलाल जैन श्री गोर्धनदास जैन श्री गोविन्ददास जैन श्री गोविन्ददास सिंघई श्रीमती गोविन्ददेवी पटुआ श्री गोविन्दराम जैन श्री गौतमप्रसाद गिल्ला श्री चन्दनमल जैन श्री चन्दनमल कूमठ श्री चन्द्रभूषण पुरुषोत्तम बानाईत श्री चन्द्रसेन जैन 'नेताजी' श्री चम्पालाल फूलफगर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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श्री चाँदमल चोरडिया श्री चाँदमल जैन श्री चाँदमल मेहता श्री चितरंजन कुमार श्री चिन्तामन जैन श्री चिन्तामन जैन बाबू चिम्मनलाल जैन 'नेताजी' श्री चिरंजीलाल वैद्य श्री चुन्नालाल जैन श्री चुनीलाल जैन श्री चुन्नीलाल जैन श्री चुन्नीलाल जैन बाबू चेतराम जैन श्री चैनदास लोढ़ा श्री छक्कीलाल जैन श्री छक्कीलाल जैन लोडुवा श्री छीतरमल जैन श्री छोटेलाल जैन श्री छोटेलाल जैन श्री छोटेलाल 'भास्कर' श्री छोटेलाल उर्फ रतनचन्द मलैया श्री जड़ावचंद जैन श्री जड़ावचंद जैन श्री जयकुमार जैन सिंघई जवाहरलाल जैन श्री जिनेद्रकुमार मलैया श्री जीतमल लूणिया श्री जीवनचंद जैन श्री जुगमंदिर दास जैन श्री जुगलकिशोर जैन श्री जोरावर सिंह जैन श्री जौहरीलाल झांझरिया श्री ज्ञानचंद जैन श्री ज्ञानचंद जैन श्री ज्ञान चंद जैन श्री ज्ञानचंद जैन
श्री ज्ञानचंद जैन 'ज्ञानेन्द्र' श्री ज्ञानप्रकाश काला श्री ज्ञानीचंद मॉडल श्री झब्बूलाल जैन श्री बाबू झूमनलाल जैन श्री टीकमचंद जैन पहाडिया श्री टीकाराम जैन श्री टीकाराम 'विनोदी' श्री टेकचंद जैन श्री डाडमचंद डोषी श्री डालचंद जैन श्री डालचंद जैन श्री डालचंद जैन श्रीमंत सेठ श्री डालचंद जैन श्री डालिमचंद सेठिया श्री ताजबहादुर महनोत श्री ताराचंद जैन श्री ताराचंद जैन श्री ताराचंद जैन श्री ताराचंद जैन श्री ताराचंद जैन कासलीवाल डॉ. ताराचंद पांड्या श्रीमती ताराबाई जैन कासलीवाल श्री तिलकचन्द्र तिरपंखिया श्री थानमल जैन श्री दयाचंद जैन श्री दयाचंद जैन (बागडी) श्री दयालचंद जैन सेठ दरबारीलाल श्री दलीचंद जैन श्री दलीपचंद जैन श्री दालचंद जैन श्री दालचंद जैन या डालचंद जैन श्री दालचंद जैन श्री दालचंद जैन श्री दालचंद सिंघई
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205 205 205 205 206
191
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री दिगम्बरराव जैन, खड़के श्री दीपचंद गोठी श्री दीपचंद जैन श्री दीपचंद जैन श्री दीपचंद बख्शी श्री दीपचंद मलैया श्री दुलीचंद ओसवाल श्री दुलीचंद जैन श्री दुलीचंद जैन श्री दुलीचंद जैन श्री दुलीचंद भाई मेहता श्री दूनीचंद जैन श्री देवराज सिंघी बाबू देवेन्द्रकुमार जैन श्री देशदीपक जैन श्री दौलतराम भंडारी श्री धनवन्त सिंह जैन श्री धन्नालाल गुढ़ा श्री धन्नालाल जैन श्री धन्नालाल जैन श्री धन्नालाल जैन श्री धन्नालाल जैन श्री धन्नालाल शाह श्री धन्यकुमार जैन श्री धर्मचंद जैन श्री धर्मचंद जैन सवाई सिंघई श्री धर्मचंद जैन श्री धीरजमल के तुरखिया श्री नगीनमल जैन श्री नत्थू जैन श्री नत्थूलाल नारद श्री नथमल चोरडिया श्री नथमल लोढ़ा श्री नन्दलाल पारख श्रीमती नन्हीबाई जैन श्री नन्हेलाल जैन
206
191 191 192 192 192 192
श्री नन्हेलाल जैन श्री नन्हेलाल जैन श्री नन्हेलाल बुखारिया श्री नरहर कोठारी श्री नरेन्द्रकुमार जैन श्री नरेन्द्र गोयल डॉ. नरेन्द्र विद्यार्थी श्री नाथमल मेहता श्री नाथूराम श्री नाथूराम पुजारी श्री नाथूलाल जैन श्री नाथूसाव जैन सिघई नानकचंद्र जैन श्री नारायणदास श्री नारायणदास जैन श्री नारायणदास जैन श्री नारायणदास जैन श्री निर्मलकुमार जैन श्री निर्मलकुमार जैन श्री निर्मलचंद जैन श्री नेमचंद जैन श्री 108 आचार्य नेमिसागर जी महाराज श्री नेमीचंद आंचलिया श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन सिंघई नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन श्री नेमीचंद जैन कासलीवाल लाला नेमीचंद मीतल श्री पंचमलाल जैन
206 206 207 207 207 208 208
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xliv
श्री पंचमलाल जैन
श्री पंचमलाल बैसाखिया
श्री पंचमसिंह जैन
श्री पदमकुमार जैन
श्री पदमचंद जैन
क्षुल्लक पदमसागर जी महाराज
श्री पन्नालाल जैन
श्री पन्नालाल जैन
श्री पन्नालाल जैन
श्री पन्नालाल जैन (सेठ)
वैद्य पन्नालाल जैन 'सरल'
श्री पन्नालाल डेरिया
श्री पन्नालाल पाईया
श्री पन्नालाल बासल
श्री परमानन्द सिंघई
पं० परमेष्ठीदास जैन
श्री पांडुरंग गजानन्द राव उमाठे
श्री पीतमचंद जैन
श्री पुखराज सिंघी
श्री पुखराज उर्फ पुष्पेन्द्रकुमार
श्रीमती पुष्पादेवी कोटेचा
श्री पूनमचंद नाहर
श्री पूनमचंद पटवा
ब्र. पूरणचंद लुहाड़िया
श्री पूरनचंद जैन
श्री. पूरनचंद जैन
श्री पूरनचंद जैन
श्री प्रकाशचंद जैन
श्री प्रकाशचंद जैन
श्री प्रतापसिंह लूणिया
श्री प्रभाचंद जैन
श्री प्रभाषचंद जैन
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श्री प्रेमचंद 'उस्ताद'
श्री प्रेमचंद कापड़िया
श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन
212
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226
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
226
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228
श्रीमती फूलकुँअरबाई चोरड़िया
228
श्री फूलचंद (गोयल) अग्रवाल जैन 229
श्री फूलचंद जैन
230
श्री फूलचंद जैन
231
231
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श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन
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श्री प्रेमसुख झांझरिया
श्री प्यारचंद कासलीवाल
श्री फकीरचंद जैन
श्री फूलचंद जैन
श्री फूलचंद जैन 'मधुर'
श्री फूलचंद पोरवाल
श्री फूलचंद बाफना
डॉ० फूलचंद भदौरा
श्री फूलचंद मोरहा
पं० फूलचंद सिद्धान्ताचार्य
श्री बंगालीमल जैन
श्री बंशीधर वैसाखिया
पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य
श्री बंशीलाल जैन
श्री बरदीचंद जैन
बंशीलाल लुहाडिया
श्री बलवंतसिंह मेहता
श्री बलीराम जैन
श्री बसन्तलाल जैन
श्री बसन्तीलाल जैन
श्री बागमल जैन
श्री बागमल बांठिया
श्री बापूलाल चौधरी
श्री बाबू भाई
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श्री बाबूराम जैन
श्री बाबूराम जैन 'कागजी '
श्री बाबूलाल घी वाले
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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श्री बाबूलाल जैन डेरिया श्री बाबूलाल जैन श्री बाबूलाल जैन श्री बाबूलाल जैन
बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन बाबूलाल जैन
बाबूलाल जैन (पथरिया वाले) श्री बाबूलाल जैन (मोदी)
बाबूलाल जैन श्री बाबूलाल जैन 'रत्न' श्री बाबूलाल झाझरिया श्री बाबूलाल पलन्दी 'पद्मश्री' बाबूलाल पाटोदी श्री बाबूलाल मलैया श्री बाबूलाल संघी श्री बाबूलाल सिंघई डॉ बालचंद जैन श्री बालचंद जैन श्री बालचंद जैन डॉ. बाहुबलकुमार जैन पंडित बेचरदास जीवराज डोसी श्री भंवरमल सिंघी श्री भंवरलाल जैन श्री भंवरलाल जैन श्री भंवरलाल जैन श्री भागचंद जैन श्री भागचंद जैन
250 251
श्री भागचंद जैन श्री भागचंद जैन वैद्य श्री भानुकुमार जैन श्री भीकमचंद जैन श्री भीकमचंद सिंघवी श्री पं० भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री श्री भूरेलाल बया श्री भेरूलाल वेदमूथा श्री भैयालाल गणपति देशकर श्री भैयालाल जैन श्री भैयालाल जैन 'नेताजी' श्री भैयालाल परवार श्री भोलानाथ जैन श्री मंगलचंद जैन श्री मंगलचंद सिंघवी श्री मगनलाल कोठारी श्री मगनलाल गोइल श्री मथुराप्रसाद वैद्य विद्यार्थी मथुरालाल श्री मदनलाल जैन श्री मन्नालाल जैन पंचोलिया श्री मयाचंद जटाले श्री महावीरप्रसाद जैन श्री महावीरप्रसाद जैन श्री महेन्द्रकुमार मानव श्री महेन्द्र जी श्री महेशचंद जैन आयुर्वेदाचार्य श्री मांगीलाल उर्फ महेन्द्रकुमार श्री मांगीलाल जैन श्री मांगीलाल सदासुख पाटनी श्री माखनलाल जैन 'बन्दी' श्री माणकलाल जैन श्री माणकलाल जैन श्री माणकलाल जैन श्री माणिकचंद जैन पाटनी श्री माधवसिंह जैन 'संत'
268 268 269
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280 281 281 282 282
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श्री मानकचंद 'मुल्ला' जैन श्री मानमल जैन श्री मानमल जैन श्री मानमल मार्तण्ड हकीम मानिकचंद जैन बाबू मानिकचंद जैन श्री मामचंद जैन श्री मिठूलाल जैन श्री मिठूलाल जैन श्री मिठूलाल जैन श्री मिठूलाल नायक श्री मिश्रीलाल गंगवाल श्री मिश्रीलाल जैन श्री मुकुन्दीलाल बघेरवाल श्री मुत्रालाल जैन श्री मुन्नालाल जैन श्री मुलायमचंद जैन श्री मुलामचंद जैन श्री मुलायमचंद जैन श्री मुलायमचंद जैन श्री मुलायमचंद जैन श्री मुलायमचंद जैन श्री मुलायमचंद जैन 'हलवाई' साव मूलचंद जैन श्री मूलचंद सिंघई श्री मेघराज जैन श्री मेरुलाल जैन मास्टर मोतीलाल श्री मोतीलाल जैन श्री मोतीलाल जैन श्री मोतीलाल जैन श्री मोतीलाल जैन श्री मोतीलाल जैन श्री मोतीलाल जैन पं० मोतीलाल जैन शास्त्री सेठ श्री मोतीलाल जैन
स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री मोतीलाल टडैया
296 श्री मोतीलाल तेजावत
296 श्री मोहनलाल जैन श्री मोहनलाल बाकलीवाल 298 श्री मौजीवाल जैन
298 'श्री यादवचंद जैन
298 श्री रंगलाल जैन (बोकाडिया) 298 श्री रघुवर दयाल जैन
298 श्री रघुवर प्रसाद मोदी
299 श्री रघुवीरसिंह जैन श्री रतनचंद काष्ठिया
301 श्री रतनचंद गोटिया (जैन) 302 सिंघई रतनचंद जैन
302 सेठ रतनचंद जैन श्री रतनचंद जैन
303 श्री रतनचंद जैन
303 श्री रतनचंद जैन 'चंदेरा'
306 सवाई सिंघई श्री रतनचंद जैन 307 वैद्य रतनचंद जैन श्री रतनचंद जैन
309 श्री रतनचंद जैन
309 श्री रतनचंद जैन
309 श्री रतनलाल कर्णावट जैन
310 सेठ रतनलाल जैन
310 श्री रतनलाल जैन
310 बाबू रतनलाल जैन
310 श्री रतनलाल बंसल श्री रतनलाल मालवीय
312 श्री रमेशचंद जैन श्री रमेशचंद जैन घोडावत श्री रवीन्द्रनाथ जैन श्री राजकुमार जैन श्री राजधर जैन
317 श्री राजधर जैन भाई राजधरलाल जैन डॉ. राजमल कासलीवाल
289
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316 316 316 317
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317
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री राजमल कोठरी
318
श्री राजमल कोठारी
318
श्री राजमल जालोरी
318
श्री राजमल जैन
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श्री राजमल जैन
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श्री राजाराम उर्फ राजेन्द्रकुमार जैन 319
श्री राजाराम बजाज
319
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332
श्री राजेन्द्रकुमार महनोत
श्री रामचंद जैन कर्नावट
श्री रामचंद भाई शाह
श्री रामचंद सिंगल
श्री रामचरण जैन
श्री रामचरण लाल जैन कुलैथ
श्री रामजीलाल जैन
श्री रामबाबू जैन
श्री रामराव जैन
श्री रामलाल नायक
श्री रामलाल पोखरना
शाह श्री रामलाल मास्टर
श्री रामस्वरूप जैन
श्री रामस्वरूप 'भारतीय'
श्री रायचंद नागड़ा
श्री रूपचंद जैन
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श्री रूपचंद जैन
सेठ श्री रूपचंद जैन
श्री रूपचंद जैन
श्री रूपचंद जैन
श्री रूपचंद पाटणी (जैन)
श्री रूपचंद बजाज
श्री रूपचंद सौगानी, एडवोकेट
श्री रोशनलाल बोर्दिया
श्री लक्ष्मण जैन
श्री लक्ष्मीचंद जैन
श्री लक्ष्मीचंद जैन
श्री लक्ष्मीचंद जैन
श्री लक्ष्मीचंद जैन
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श्री लक्ष्मीचंद जैन
श्री लक्ष्मीचंद नारद
श्री लक्ष्मीचंद समैया
श्री लक्ष्मीचंद सोधिया
श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन
श्री लक्ष्मीलाल जैन
श्री लाजपतराय जैन
श्री बाबू लाभचंद छजलानी
श्री लालचंद चोरड़िया
नगर सेठ श्री लालचंद जैन
श्री लालचंद सोनी
श्री लीलाधर सराफ
पडित लोकमणि जैन
श्री वृन्दावन इमलिया
श्री वामनराव जैन ( खड़के)
श्री विजयकुमार जैन
श्री विजयचंद जैन
श्री विमलकुमार चोरड़िया
श्री विरधीचंद गोयल
श्री विश्वराम जैन
श्री वीरचंद जैन
श्री शंकरलाल करलाना
श्री शंकरलाल जैन
श्री शंकरलाल उर्फ ज्ञानचंद जैन
श्री शंकरलाल जैन
श्री शंकरलाल जैन
श्री शांतिलाल आजाद
श्री शांतिलाल जैन
श्री शांतिलाल जैन ( जव्हेरी)
श्री शांतिलाल जैन
श्री शांतिलाल जैन
श्री शांतिस्वरूप 'कुसुम'
सिंघई शिखरचंद जैन
श्री शिखरचंद जैन
श्री शिखरचंद जैन
सिंघई शिखरचंद जैन
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श्री शिखरचंद जैन
349 श्री शिखरचंद जैन मिठया 349 श्री शिखरचंद बर्डिया
350 श्री शिवप्रसाद जैन श्री शिवप्रसाद सिंघई
350 श्री शीतलप्रसाद जैन श्री पं० शीलचंद जैन शास्त्री श्रीमती शीलवती मित्तल श्री शुभचंद जैन श्री शेखरचंद जैन श्री शोभालाल जैन श्री श्याम बिहारी लाल जैन श्री श्यामलाल जैन
355 श्री श्यामलाल जैन
355 श्री श्यामलाल जैन
355 श्री श्यामलाल जैन 'सत्यार्थी' 356 श्री श्यामलाल पाण्डवीय श्री श्रीचंद जैन श्री संपतलाल लूंकड चौधरी सगुनचंद जैन श्रीमती सज्जन देवी महनोत 360 लाला सन्तकमार जैन श्री सन्तलाल जैन श्रीमती सरदार कुंवर बाई लूणिया । 360 श्री सरदार सिंह महनोत
361 समाधिस्थ आर्यिका सर्वती बाई श्री सवाईमल जैन
362 श्री सागरचंद जैन श्री सागरचंद जैन श्री सागरमल जैन श्री साधूलाल जैन
363 श्री साबूलाल कामरेड़
363 श्री साबूलाल जैन
364 श्री सिद्धराज ढढ्ढा
364 श्री सुखलाल इमलिया
365 श्री सुखलाल जैन
365
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सिंघई सुगमचंद जैन
365 श्री सुजानमल जैन
366 श्री सुन्दरलाल चौधरी
366 श्री सुन्दरलाल छजलानी श्री सुन्दरलाल जैन श्री सुन्दरलाल जैन श्री सुमतचंद सौंधिया श्री सुमतिचंद जैन श्री सुमेरचंद जैन
369 श्री सुरेन्द्रकुमार जैन श्री सुरेशचंद सिंघई श्री सुहागमल जैन
371 श्री सूरजचंद जैन
371 श्री सूरजमल गंगवाल श्री सूरजमल जैन
372 श्री सूरजमल लुक्कड़
372 श्री सेजमल जैन श्री सोहनलाल जैन श्री सोहनलाल जैन
373 श्री सौभाग्यमल जैन
373 श्री सौभाग्यमल जैन
373 श्री सौभाग्यमल जैन
373 श्री सौभागमल पोरवाल जैन श्री सौभाग्य सिंह चोरड़िया श्री स्वरूपचंद जैन
374 श्री स्वरूपचंद सिंघई
375 भाई हंसकुमार जैन
375 श्री हंसराज कोठारी श्री हजारीलाल जैन
375 श्री हजारीलाल जैन 'मस्ते' 375 भास्टर हरदयाल जैन
376 श्री हरिश्चन्द्र जैन श्री हरिश्चन्द्र मालू (जैन) 376 डॉ. हरीन्द्रभूषण जैन श्री हरीभाऊ कोठारी
377 श्री हीरालाल कोठारी
358 358
358
360 360
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363 363
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
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श्री हीरालाल जैन
श्री हुकुमचंद जैन श्री हीरालाल जैन
श्री हुकुमचंद जैन श्री हीरालाल जैन
श्री हुकुमचंद बड़घरिया श्री हीरालाल जैन
380 श्री हीरालाल जैन
श्री हुकुमचंद बुखारिया 'तन्मय'
380 श्री हीरालाल जैन
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श्री हुक्मचंद नारद श्री हुकुमचंद जैन
श्री हुक्मीचंद पोरवाल श्री हुकुमचंद जैन
श्री लाला हुलाशचंद जैन 6. परिशिष्ट-एक : संविधान सभा और जैन 7. परिशिष्ट-दो : आजाद हिन्द फौज और जैन 8. परिशिष्ट-तीन : स्वतंत्रता संग्राम और जैन पत्रकारिता 9. परिशिष्ट चार : विशिष्ट-लेख-राष्ट्रीयता क्या है 10. परिशिष्ट-पांच : विशिष्ट लेख-अगस्त आन्दोलन और स्याद्वाद विद्यालय, काशी 11. परिशिष्ट-छह : विशिष्ट लेख-स्त्रियां क्रान्ति में भाग लें या नहीं 12. परिशिष्ट-सात : जब्तशुदा लेख-भगवान् महावीर और महात्मा गांधी 13. सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
संकेत-सूची
आ)
उ0 प्र0 ती० दि)
पृ0 भ०
म0 प्र0
आधार (वे ग्रन्थ, पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख, समाचार, साक्षात्कार, सामानपत्र, ताम्रपत्र, प्रमाणपत्र, व्यक्तिगत पत्र आदि, जिनके आधार पर वह इतिवृत्त लिखा गया है।) ईस्वी सन् उत्तर प्रदेश तीर्थकर दिगम्बर (विशेषत: भूमिका में प्रयुक्त) पृष्ठ भगवान् मध्य प्रदेश राजस्थान राष्ट्रीय आन्दोलन विक्रम संवत् वीर निर्वाण संवत् साक्षात्कार स्वर्गीय स्वप्रेषित परिचय (हमारे विशेष अनुरोध पर स्वयं माननीय स्वतंत्रता सेनानी अथवा उनके सम्बन्धी/मित्रों/हितैषियों द्वारा प्रेषित परिचय) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
राज)
रा) आO वि) सं) वी0 नि0 सं0
सा०
स्व०
स्व0 प0
स्व) सं0 से)
अ) वा० आ0 दी0 इ) अ) ओ0 उ0 प्र0 जै0 ध) ख) इ) ख) जै0 इ० गो0 अ0 ग्र0
पुस्तकों के लिए प्रयुक्त संकेत-सूची
अजमेर वार्षिकी एवं व्यक्ति परिचय, 1976-77 आजादी के दीवाने, सागर के स्वतंत्रता सेनानी इतिहास की अमरबेल ओसवाल, भाग/पृष्ठ उत्तर प्रदेश और जैन धर्म श्री दि0 जैन खरौआ समाज का इतिहास खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास गोर्धनदास अभिनन्दन ग्रन्थ
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गो) जै) इ०
जै० इ0
जै० ग
जै०जा० अ०
जै) जै0 यु0
जै० स० रा० अ०
जै० स० वृ० इ०
जै० से० ना० अ०
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भ) म० स्मृ म०प्र० स्व0 सै0
म० स०
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रा० स्व० से०
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वि०) अ)
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स० स०
स्व) आ) श
स्व) स) ज)
स्व) स) पा
स्व० स० म०
स्व) स) हो)
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रजत- नीराजना
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी
रुहेलखण्ड कुमाऊँ जैन डायरेक्टरी
लबेंचू समाज का इतिहास
वरैया जैन समाज इतिहास
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गोलालारे जैन जाति का इतिहास जैसवाल जैन इतिहास
जैन गजट
जैन जागरण
अग्रदूत
जैसवाल जैन : एक युग एक प्रतीक
जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी, 1947)
जैन समाज का वृहद् इतिहास
जैन सेनानियों का नागरिक अभिनन्दन (पुस्तिका), फिरोजाबाद (उ0प्र0)
पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
परवार जैन समाज का इतिहास
भगवान् महावीर स्मृति ग्रन्थ
मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, भाग / पृष्ठ
मध्यप्रदेश सन्देश (स्वाधीनता आन्दोलन विशेषांक ), 15 अगस्त 1987
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
विद्वत् अभिनन्दन ग्रन्थ
विन्ध्य प्रदेश के राज्यों का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास
सहारनपुर सन्दर्भ, भाग / पृष्ठ
स्वाधीनता आन्दोलन में शहडोल का योगदान
स्वतंत्रता संग्राम और जबलपुर नगर
स्वाधीनता संग्राम और हमारे सेनानी, पाटन तहसील
मन्दसौर जिले में स्वतंत्रता संग्राम
होशंगाबाद जिले का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास
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है। अन्य
नोट
: प्रस्तुत संकेत सूची में उन्हीं पुस्तकों के नाम दिये हैं, जिनका अनेक बार उल्लेख हुआ पुस्तकों के नाम तत् तत् स्थानों पर दिये गये हैं। पुस्तकों के लेखक, प्रकाशक, संस्करण आदि की जानकारी हेतु कृपया 'सन्दर्भ ग्रन्थ सूची' देखें।
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प्रथम खण्ड
उपक्रम : एक
बोलते शब्द-चित्र सृष्टि अनादि और अनन्त है। इस दृश्यमान् जगत् में काल का चक्र सदा घूमता रहता है उसके छह भाग हैं |-- अति सुखरूप, 2- सुखरूप, 3-सुख-दु:खरूप, 4- दु:ख-सुखरूप, 5- दु:खरूप और 6- अति दुःखरूप। जिस प्रकार चलती हुई गाड़ी के पहिये का प्रत्येक भाग नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आता-जाता रहता है, वैसे ही ये छह भाग भी क्रमवार सदा घूमते रहते हैं, अर्थात् एक बार जगत् सुख से दु:ख की ओर जाता है तो दूसरी बार दु:ख से सुख की ओर बढ़ता है। सुख से दु:ख की ओर जाने को अवसर्पिणी काल
अवनति (हास) का काल कहते हैं और द:ख से सख की ओर जाने को उत्सर्पिणी काल या उत्थान (विकास) का काल कहते हैं। इन दोनों कालों की अवधि लाखों-करोड़ों वर्षों से भी अधिक है। वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है, जिसके प्रारम्भ के चार भाग बीत गये हैं। अब हम उसके पाँचवें भाग 'दु:खरूप' (दुषमा) से गुजर रहे हैं। प्रथम तीन भागों में भोगभूमि थी। मनुष्य जीवन की वह प्रकृत्याश्रित आदिम अवस्था थी। सारी इच्छायें कल्पवृक्षों से पूर्ण हो जाती थीं। तीसरे भाग के अन्त में भोगभूमि का अवसान होने लगा। कालचक्र के इन परिवर्तनों को देखकर लोग शंकित और भयभीत होने लगे। अतएव उन्होंने स्वयं जनसमूहों में रहना प्रारम्भ किया। मानव जीवन में सामाजिक वैधानिकता का अंकुरण हुआ। सामाजिक जीवन की नींव यहीं से पड़ी माननी चाहिए। ऐसे समय में अपनी बुद्धि एवं बल के माध्यम से जिन्होंने समाज का नेतृत्व किया, वे 'कुलकर' कहलाये। ऐसे चौदह कुलकर हुए जिनमें प्रथम प्रतिश्रुति और अन्तिम नाभिराय थे। भगवान् ऋषभदेव
नाभिराय और मरुदेवी के पुत्र ऋषभदेव हुए, जो इस युग में जैनधर्म के प्रवर्तक थे। वैदिक परम्परानुसार ऋषभदेव भगवान् विष्णु के एक अवतार हैं। जैनेतर साहित्य में श्रीमद्भागवत् का नाम उल्लेखनीय है, इसके पाँचवे स्कन्ध में ऋषभदेव का चरित्र विस्तार से चित्रित है। यह वर्णन जैन साहित्य के वर्णन से कुछ-कुछ मिलता हुआ है। उसमें लिखा है कि 'जब ब्रह्मा ने देखा कि मनुष्य संख्या नहीं बढ़ी तो उन्होंने मनु और सत्यरूपा को उत्पन्न किया। उनके प्रियव्रत नाम का लड़का हुआ। प्रियव्रत का पुत्र आग्नीध्र हुआ। आग्नीध्र के घर नाभि ने जन्म लिया। नाभि ने मरुदेवी से विवाह किया और उनसे ऋषभदेव उत्पन्न हुए। ऋषभेव ने जयन्ती नाम की भार्या से सौ पुत्र उत्पन्न किये और बड़े पुत्र भरत का राज्याभिषेक करके संन्यास ले लिया। वे दिगम्बर वेष में नग्न विचरण करते थे। उनका कामदेव के समान सुन्दर शरीर मलिन हो गया था। उन्होंने आजगर व्रत ले लिया था' आदि।
इस अध्याय का मूल आधार प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें', 'पुरुदेव चम्पू का आलोचनात्मक परिशीलन', 'जैन साहित्य
और इतिहास : पूर्व पीठिका', 'जैन धर्म', 'राजपूताने के जैन वीर', 'मौर्य साम्राज्य के जैन वीर', 'संक्षिप्त जैन इतिहास', 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि', 'जैन संस्कृति और राजस्थान', 'History of Jainism', आदि पुस्तकें हैं। परन्तु समय का निर्धारण 'प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें' के आधार पर किया गया है। विशेष अध्ययन और सन्दर्भ के इच्छुक पाठकों को उक्त पुस्तकें देखना चाहिए।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वेदों मे भी ऋषभदेव की उपासना की गई है, उन्हें अग्नि, केशी, वातरशना आदि के रूप में स्तुत किया गया है। 'ऋग्वेद' के एक मंत्र में कहा गया है- 'मिष्टभाषी, ज्ञानी, स्तुति योग्य वृषभ को साधक मन्त्रों द्वारा वर्धित करो। वे स्तोता को नहीं छोड़ते।' दिगम्बर जैन परम्परा से सम्बन्धित ऋग्वेद का महत्त्वपूर्ण सूक्त केशी (10/136) सूक्त है, जिसमें वातरशना मुनियों का उल्लेख है। वातरशना का अर्थ है, 'वायु जिनकी मेखला है।' दिगम्बर का अर्थ है 'दिशायें जिनका अम्बर-वस्त्र हैं।' इस प्रकार दोनों शब्द एक ही भाव के सूचक हैं। वातरशना मुनियों को 'मलधारी' सूचित किया गया है
'मुनयो वातरशना पिशांगा: वसते मला:।' जैन परम्परा में मुनियों का स्नान वर्जित है। ज्ञात होता है कि स्नान न करने के कारण तथा केशों के बढ़ जाने के कारण उन्हें मलधारी कहा गया है। डॉ0 मंगलदेव शास्त्री ने 'भारतीय संस्कृति का विकास' (औपनिषद् धारा) पृष्ठ 180 पर लिखा है- "ऋग्वेद के सूक्त 10/136 में मुनियों का अनोखा वर्णन मिलता है, उनको मृत्तिका को धारण करते हुए पिंगल वर्ण और केशी='प्रकीर्ण-केश' इत्यादि कहा गया है। यह वर्णन
श्रीमद्भागवत् (पंचम स्कन्ध) में दिये हुए जैनियों के आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव के वर्णन से अत्यन्त समानता रखता है। वहाँ स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि 'ऋषभदेव ने वातरशना मुनियों के धर्मों को प्रकट करने की इच्छा से अवतार लिया था।" भरत से भारत
पुराणों में भी ऋषभदेव का वर्णन हुआ है। पुराणों के अनुसार स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत या आग्नीध्र हुए उनके पुत्र नाभि हुए और उनके पुत्र ऋषभदेव हुए। ऋषभदेव के पुत्र भरत हुए, जिनके नाम पर इसे भारतवर्ष कहते हैं। लिंगपुराण (अध्याय 47) में कहा गया है
'नाभेनिसर्ग वक्ष्यामि हिमांकोऽस्मिन्निबोधत। नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्यां महामतिः।। ऋषभं पार्थिव श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूजितम्। ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रः शताग्रजः।। सोऽभिषिच्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः।'
हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भरताय न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः।।' ऐसा ही वर्णन कुछ शब्दों के हेर-फेर के साथ मार्कण्डेय पुराण, कूर्म पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, वाराह पुराण, विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण, श्रीमद्भागवत् आदि में आया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
सिन्धु घाटी से प्राप्त देवी-देवताओं की मूर्तियों के आधार पर यह कहने के पर्याप्त आधार हैं कि उन दिनों ऋषभदेव की पूजा होती थी। हड़प्पा और मोहन-जोदड़ों में कुछ मूर्तियाँ 'योगी', 'वृषभ' और 'नग्न'
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प्रथम खण्ड
किया
मिली हैं। प्रसिद्ध इतिहासविद् श्री रामप्रसाद चन्दा ने माडर्नरिव्यू, जून 1932 में प्रकाशित लेख में कहा है'सिन्धु घाटी से प्राप्त मोहरों पर बैठी अवस्था में अंकित देवताओं की मूर्तियां ही योग की मुद्रा में नहीं हैं किन्तु खड़ी अवस्था में अंकित मूर्तियां भी योग की कायोत्सर्ग मुद्रा को बतलाती हैं। मथुरा म्यूजियम में दूसरी शती की कायोत्सर्ग में स्थित एक ऋषभदेव जिन की मूर्ति है। इस मूर्ति की शैली से सिन्धु से प्राप्त मोहरों पर अंकित खड़ी हुई देवमूर्तियों की शैली बिल्कुल मिलती है। ...ऋषभ या वृषभ का अर्थ होता है बैल और ऋषभदेव तीर्थंकर का चिह्न बैल है। मोहर नं0 3 से 5 तक के ऊपर अंकित देवमूर्तियों के साथ बैल भी अंकित है जो ऋषभ का पूर्ण रूप हो सकता है।' इतिहासकार डॉ0 राधा कुमुद मुखर्जी ने भी श्री रामप्रसाद चन्दा के उक्त मत को मान्य किया है।
ऋग्वेद में 'शिश्नदेवाः' पद आया है। इन्द्रदेव से प्रार्थना की गई है कि 'शिश्नदेव' हमारे यज्ञ में विघ्न न डालें आदि। प्रायः विद्वानों ने 'शिश्नदेवाः' का अर्थ शिश्न को देवता मानने वाले अर्थात लिंगपजक है। किन्तु स्व) पं) कैलाशचंद्र शास्त्री ने 'जैनधर्म', पृष्ठ 21 पर इसका दूसरा अर्थ-'शिश्नयुक्त देवता को मानने वाले अर्थात् नग्न देवताओं को पूजने वाले' भी किया है। यह अर्थ समीचीन जान पड़ता है। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि वैदिक व सिन्धु घाटी युग में ऋषभदेव की पूजा होती थी।
यह सब लिखने का आशय यह है कि ऋषभदेव वेदोल्लिखित होने के साथ ही वेद पूर्व भी हैं और वे ही भारतीय साहित्य-विद्या-कला-राजनीति के प्रथम उपदेष्टा हैं, उन्होंने ही राज्य-व्यवस्था का बड़ा सफल सूत्रपात किया था। उन्होंने विभिन्न जनपद, ग्राम, खेट, कर्वट तथा साम, दान, दण्ड, भेद आदि नीतियों की स्थापना की थी। धर्म के अनुसार मनुष्य जाति एक है, अतः किसी प्रकार की उच्चता-नीचता का प्रश्न ही नहीं, मात्र वृत्ति या आजीविका को व्यवस्थित रूप देने के लिए ऋषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्णों की व्यवस्था की थी। ब्राह्मण वर्ण की स्थापना आगे चलकर चक्रवर्ती भरत ने की। यह सारी व्यवस्था कर्म से ही थी। ऋषभदेव ने असि (तलवार), मसि (लेखनकला), कृषि (खेती), वाणिज्य (व्यापार) विद्या (लिपि व अंक ज्ञान) और शिल्प (विभिन्न कलायें) इन छह कर्मों का उपदेश देकर मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा दी थी। यहीं से मानव जीवन में राज्य, समाज, धर्म और अर्थ संस्थाओं का वैधानिक विकास तीव्रता से हुआ। इन सबका ध्येय समाज को सुसंस्कृत और सुख-सम्पन्न बनाना था। विश्व की मूल लिपि ब्राह्मी
ऋषभदेव का मानव समाज को जो अवदान है उसमें लिपि और अंक का ज्ञान प्रमुख है। 'तिलोयपण्णत्ति', 'महापुराण' आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में उल्लेख है कि ऋषभदेव के सौ पुत्र तथा ब्राह्मी और सुन्दरी दो कन्यायें थीं। एक समय ब्राह्मी उनकी दाहिनी ओर और सुन्दरी बायीं ओर बैठी थी। ऋषभदेव ने ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराया, अत: लिपि बायों से दायीं ओर लिखी जाती है। सुन्दरी को उन्होंने अंक विद्या सिखायी, अत: अंक दायों से बायीं ओर इकाई, दहाई... के रूप में लिखे जाते हैं। बाह्मी को सर्वप्रथम लिपि का ज्ञान देने के कारण विश्व की मूल लिपि ब्राह्मी कहलाती है। भरतादि पुत्रों को उन्होंने नाट्यशास्त्र आदि विषयों की शिक्षा दी थी। (विस्तृत अध्ययन के लिए महापुराण देखें)।
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4
एक अहिंसक युद्ध
युद्ध और अहिंसक, बड़ी विरोधी बात है यह, पर इतिहास में एक ऐसा युद्ध भी हुआ जो पूर्णत: अहिंसक था। ऋषभदेव जब वैराग्य धारण कर तपस्यार्थ वन चले गये, तब उनके दो पुत्रों भरत और बाहुबली के मध्य शक्तिपरीक्षण हुआ। भरत चक्रवर्ती होने के कारण दिग्विजय कर लौटे तो उनका चक्र अयोध्या के बाहर ही रुक गया । पुरोहितों ने बताया कि अभी आपने अपने भाइयों को नहीं जीता है। तब भरत ने भाइयों के पास सन्देश भेजा। भाइयों ने भाई के शासन में रहना स्वीकार नहीं किया और वैराग्य धारण कर लिया। भरत के एक भाई बाहुबली उस समय पोदनपुर के राजा थे। वे युद्ध के लिए तैयार हो गये। दोनों ओर की सेनायें युद्धभूमि में पहुंच गई। रणभेरी बज उठी। भयानक युद्ध की विभीषिका सामने खड़ी थी, पर एक क्षण में दृश्य बदल गया ।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
दोनों पक्षों के मंत्रियों ने विचार-विमर्श कर प्रस्ताव रखा कि आप दोनों चरमशरीरी ( इसी भव से मोक्ष जाने वाले) हैं, अत: आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा, व्यर्थ ही इस युद्ध में सेना मारी जायेगी। अच्छा यह होगा कि आप दोनों भाई जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और बाहुयुद्ध करके हार-जीत का निर्णय कर लें। अन्त में दोनों पक्षों की सहमति से भरत और बाहुबली के बीच में युद्ध हुए। चूंकि बाहुबली बलिष्ठ और ऊँचे थे, अतः तीनों में उनकी ही विजय हुई। इस पर भरत अपना चक्र बाहुबली पर चला दिया, किन्तु चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा कर लौट आया। भाई के इस व्यवहार को देखकर बाहुबली को वैराग्य हो गया। वे समस्त राज-पाट त्यागकर तपस्या करने वन चले गये। उन्होंने खड़े-खड़े एक वर्ष तक कठोर तपस्या की। उनके पैरों व हाथों पर लतायें लिपट गईं और पैरों में दीमकों ने वामियाँ बना लीं। इस प्रकार बिना किसी हिंसा के इस युद्ध में हार-जीत का निर्णय हो गया।
बाहुबली द्वारा जीतकर भी राज्य का त्याग कर तपस्यार्थ चले जाना अपने आप में त्याग और स्वातन्त्र्य-प्रियता का अनुपम उदाहरण है। अन्य तीर्थंकर
ऋषभदेव के बाद इस परम्परा में तेईस तीर्थङ्कर और हुए। रामायण या भगवान् राम की घटनायें बीसवें तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के काल में हुईं। जैन परम्परा में राम के स्थान पर उनके दूसरे नाम पद्म का अधिक प्रयोग हुआ है। पद्म (राम) को आधार बनाकर पद्मपुराण, पद्मचरित आदि अनेक पुराणों / काव्यों की रचनायें हुईं।
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महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध कौरव - पाण्डव युद्ध बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के समय हुआ । श्रीकृष्ण इन्हीं नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। नेमिनाथ के दूसरे नाम 'अरिष्टनेमि' का प्रयोग वैदिक साहित्य में बहुधा हुआ है। कौरव - पाण्डवों को भी आधार बनाकर जैन परम्परा में प्रचुर साहित्य का निर्माण हुआ । तेइसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का समय 877-777 ईसा पूर्व लगभग निश्चित है। पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष हैं। पार्श्वनाथ के निर्वाण के 250 वर्ष बाद महावीर का निर्वाण हुआ था।
भगवान् महावीर और भारत के गणतन्त्र
भारतवर्ष में आज जो गणतन्त्र परम्परा है वह भगवान् महावीर के काल में भी थी। महावीर का जन्म
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प्रथम खण्ड
कुण्डलपुर (कुण्डपुर, कुण्डनगर, कुण्डग्राम, वसुकुण्ड या क्षत्रियकुण्ड) में लगभग 600 ई0पू0 में हुआ था। कुण्डलपुर या कुण्डग्राम वैशाली के समीप था। उस समय वैशाली अत्यन्त जन-धन सम्पन्न नगरी थी और तत्कालीन सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न वज्जिगण-संघ (जिसमें लिच्छवि, ज्ञातृक, विदेह, मल्ल आदि अनेक स्वाधीनता प्रेमी गण सम्मिलित थे) की राजधानी थी। ज्ञातृकवंशी व्रात्य क्षत्रियों के गण का केन्द्र कुण्डग्राम था, जिसके स्वामी और गणपति राजा सर्वार्थ थे, उनकी पत्नी का नाम श्रीमती था। यह दम्पति श्रमणों का उपासक और तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की परम्परा का अनुयायी था। इनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजा सिद्धार्थ थे। इनका ज्ञातृक वंश एवं गण उस समय इतना प्रतिष्ठित एवं शक्तिसम्पन्न था कि वज्जिगण संघ के प्रधान, वैशाली के अधिपति लिच्छवि शिरोमणि महाराज चेटक ने अपनी पत्री प्रियकारिणी त्रिशल सिद्धार्थ के साथ कर दिया था जिनसे वर्द्धमान का जन्म हुआ, वीर, अतिवीर, सन्मति एवं महावीर उनके अपरनाम हैं। लोक प्रचलन में आजकल वर्द्धमान के लिए महावीर ही अधिक प्रचलित है।
12 वर्ष की कठोर साधना के बाद भ) महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अपने अमृतमयी उपदेशों से उन्होंने जन-जन को कल्याण का मार्ग दिखाया। उन्होंने चन्दनबाला के हाथ से आहार (भोजन) ग्रहण कर स्त्रियों को गौरवान्वित किया था। महावीर के स्वजन परिजन महाराज चेटक, सेनापति सिंहभद्र आदि
| किसी रूप में तत्कालीन गणतन्त्रों से सम्बद्ध थे। महावीर का निर्वाण 527 ई0 पू0 में हुआ।
भगवान् महावीर के अनन्य भक्तों में मगध नरेश श्रेणिक बिम्बसार का स्थान सर्वोपरि है। महावीर की तपस्या और साधना का स्थान अधिकांश समय में मगध ही रहा। श्रेणिक बिम्बसार के सुशासन और उत्तम राज्य व्यवस्था का श्रेय मंत्रीश्वर अभय कुमार को है। नन्द-मौर्य युग (लगभग 500-200 ई० पू०)
नन्दमौर्य युग (लगभग 500-200 ई0 पू0) में जैनधर्म को पूरा राज्याश्रय प्राप्त रहा। इस युग के अनेक राजा जैन थे। इस वंश में नन्दिवर्धन (लगभग 449-407 ई0 पू0) बड़ा प्रतापी राजा हुआ। महावीर निर्वाण संवत् 103 (ई0पू0 424) में उसने कलिंग देश पर विजय प्राप्त की थी और उस राष्ट्र के इष्टदेवता 'कलिंग जिन' (या अग्रजिन अर्थात् आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव) की प्रतिमा को वहां से ले आया था तथा उसे अपनी राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में स्थापित किया था। नन्दिवर्धन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी 'महानन्दिन' भी बड़ा प्रतापी एवं शक्तिशाली राजा था, उसने लगभग 44 वर्ष राज्य किया, कुल परम्परानुसार वह स्वयं जैनधर्म का अनुयायी था तथा उसके अनेक मंत्री और कर्मचारी भी जैन थे।
महानन्दिन के उपरान्त मगध में घटित घरेलू राज्य क्रान्ति का लाभ उठाकर एक साहसी एवं चतुर युवक महापद्म ने राज्य सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया। महापद्म एवं उसके पुत्र/परिजन भी जैनधर्म के अनुयायी थे। इस काल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना यूनानी सम्राट सिकन्दर महान् का पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण था. जिसके अनेक अच्छे-बरे परिणाम हए। इन यनानियों को सीमान्त के गान्धार, तक्षशिला आदि नगरों के निकटवर्ती अन्य प्रदेशों में ही नहीं अपित सम्पर्ण पंजाब और सिन्ध में यत्र-तत्र अनेक नग्न (दिगम्बर) निर्ग्रन्थ साधु मिले थे, जिनका उन्होंने 'जिम्नोसोफिस्ट', 'जिम्नेटाइजेनोइ' आदि नामों से उल्लेख किया है। ये शब्द तत्कालीन एवं तत् प्रदेशीय दिगम्बर जैन मुनियों के लिए प्रयुक्त होते थे। कहा जाता है कि सम्राट् सिकन्दर कल्याण मुनि' को अपने साथ ले गये थे, वहीं उनका समाधिमरण हुआ था।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन ई0 पू0 चौथी शताब्दी के अन्तिम पाद के प्रारम्भ में एक महान् राज्यक्रान्ति हुई, जिसमें नन्दवंश का नाश कर मौर्यवंश की स्थापना हई। इसका श्रेय चाणक्य को दिया जाता है, जिसने वीर चन्द्रगुप्त के सहयोग से युद्धनीति का आश्रय लेकर सबल और सुदृढ़ राज्य स्थापित किया था। कहा जाता है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का अपना कुल 'मोरिय' आचार्य भद्रबाहु श्रुतकेवली का भक्त था। जैन ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त को उन मुकुटबद्ध माण्डलिक सम्राटों में अन्तिम कहा गया है, जिन्होंने दीक्षा लेकर जीवन का अन्तिम भाग जैन मुनि के रूप में व्यतीत किया था। श्रवणबेलगोल में चन्द्रगुप्त वसदि में उनका अन्तिम समय व्यतीत
हुआ था।
चन्द्रगुप्त के बाद राज्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बिन्दुसार हुआ। बिन्दुसार के बाद उसका पुत्र अशोक राज्य का उत्तराधिकारी बना। 'प्रियदर्शी', 'देवानां प्रिय' आदि उसकी उपाधियाँ थीं। पिता के शासन काल में वह उज्जयिनी का शासक रहा था, उस समय उसने समीपवर्ती विदिशा के एक जैन श्रेष्ठी की रूपगुण सम्पन्न 'असन्ध्यमित्रा' नाम्नी कन्या से विवाह कर लिया था, जिससे कुणाल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था। ई0 पू0 262 के लगभग अपने राज्य के आठवें वर्ष में एक विशाल सेना लेकर अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध हुआ। लाखों सैनिक मृत्यु के घाट उतार दिये गये। कलिंग राज्य पराजित हुआ। अशोक की विजय कीर्ति सर्वत्र फैल गई। परन्तु इस भयंकर नरसंहार को देखकर अहिंसामूलक जैनधर्म के संस्कारों में पले अशोक की आत्मा तिलमिला उठी, उसने प्रतिज्ञा की कि 'भविष्य में वह रक्तपातपूर्ण युद्धों से सर्वथा विरत रहेगा।'
सामान्यतः यह माना जाता है कि अशोक बौद्धधर्म का अनुयायी था और उसने बौद्धधर्म के प्रचार प्रसार एवं उन्नति के लिए अनेक कार्य किये। इसका आधार अशोक के वे शिलालेख हैं, जो उसके नाम से प्रसिद्ध हैं। परन्तु ऐसे भी कई विद्वान् हैं, जो इन सब शिलालेखों को केवल अशोक द्वारा लिखाया गया नहीं मानते अपितु उनमें से कुछ का श्रेय उसके पौत्र सम्प्रति को देते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि इन शिलालेखों का भाव और तद्गत विचार बौद्धधर्म की अपेक्षा जैनधर्म के अधिक निकट हैं। अशोक यदि पूरे जीवन भर नहीं तो कम से कम अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में अवश्य जैन था। उसके धर्मचक्र में 24 आरे 24 तीर्थङ्करों के प्रतीक हैं। इसी तरह अशोक चक्र में बना सिंह भगवान् महावीर के चिह्न का द्योतक है।
अशोक का पुत्र कुणाल हुआ। कुणाल की महारानी कंचनमाला से सम्राट् सम्प्रति का जन्म हुआ, जो ई0पू0 230 के लगभग सिंहासनारूढ़ हुआ था। विसेन्ट स्मिथ के अनुसार सम्प्रति ने अरब, ईरान आदि यवन देशों में भी जैन संस्कृति के केन्द्र या संस्थान स्थापित किये थे। उसने अनेक देशों में जैन साधुओं को धर्म प्रचार के लिए भी भेजा था। खारवेल विक्रम युग (लगभग ई० पू० 200 से सन् 200 तक)
सम्राट् ऐल खारवेल के समय जैनधर्म फला-फूला। दूसरी शती ई0 पू0 का यह सर्वाधिक प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। कलिंग देश (वर्तमान उड़ीसा) के साथ जैन धर्म का सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीन रहा है। भगवान् ऋषभदेव का समवसरण यहाँ आया था, तीर्थंकर अरहनाथ की प्रथम पारणा यहाँ हुई। भगवान् महावीर का पदार्पण भी यहां हुआ था। खारवेल का प्रसिद्ध शिलालेख खण्डगिरि-उदयगिरि पर्वत पर कृत्रिम गुहामन्दिर के मुख एवं छत पर सत्रह पंक्तियों में लगभग चौरासी वर्गफीट के विस्तार में उत्कीर्ण है। लेख की लिपि
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प्रथम खण्ड
7
ब्राह्मी और भाषा जैन प्राकृत है। इसमें सर्वप्रथम अरहन्तों और सिद्धों को नमस्कार किया गया है, जो प्रथम और द्वितीय परमेष्ठी हैं। इस शिलालेख में महावीर निर्वाण संवत् के साथ उल्लेख है कि खारखेल ने बारहवें वर्ष में मगध पर आक्रमण किया और नन्दराज द्वारा कलिंग से ले जायी गई कलिंग जिन प्रतिमा एवं बहुमूल्य रत्नों को लेकर अपनी राजधानी प्रवेश किया।
यथा - 'नमो अरहंतानं (1) नमो सवसिद्धानं..
नन्दराजनीतं च कलिंगजिनं संनिवेस..
.वारसमे च वसे..
गहरतनान पडिहारेहिं
अंगमागध वसुं च नेयाति' (पंक्ति 12 ) ।
तेरहवें वर्ष में खारवेल ने अनेक अर्हन्मन्दिर बनवाये और श्रमणों के लिए एक विशाल सभा मण्डप बनवाया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस लेख को अंकित कराने वाला खारवेल जैनधर्म का अनुयायी और परम जिनभक्त था। इसका पूरा परिवार, अनेक राजपुरुष तथा प्रतिष्ठित प्रजाजन भी जैन भक्त थे। गंग-कदम्ब-पल्लव- चालुक्य
वर्तमान कर्नाटक (मैसूर) पर लगभग एक हजार वर्ष पर्यन्त अविच्छिन्न शासन करने वाला वंश गंगवंश था। इस वंश का जैनधर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। इस वंश में अनेक प्रतापी जैन राजा भी हुए । यह उनकी नीति - परायणता और धार्मिकता का ही परिणाम था कि यह राजवंश इतना दीर्घजीवी रहा। अनुश्रुतियों के अनुसार भ० ऋषभदेव के इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या के एक राजा हरिश्चन्द्र थे, जिनके पुत्र भरत की पत्नी विजय महादेवी से गंगदत्त का जन्म हुआ, उसी के नाम पर यह वंश गंगवंश, गांगेय या जाह्नवेय कहलाया। गंग का एक वंशज विष्णुगुप्त अहिच्छत्रा का राजा हुआ । उसका वंशज श्रीदत्त, श्रीदत्त का वंशज कम्प और कम्प का पुत्र पद्मनाभ हुआ। उसके राज्य पर जब उज्जयिनी के राजा ने आक्रमण किया तो पद्मनाभ ने अपने दो पुत्रों दद्दिग और माधव को कुछ राजचिह्नों सहित विदेश भेज दिया। ये बालक घूमते-घामते कर्नाटक के पेरूर नामक स्थान पर पहुँचे जहाँ एक जिनालय में मुनिराज सिंहनन्दि के दर्शन किये। सिंहनन्दि के आशीर्वाद से दद्दिग और माधव ने लगभग 188 ई0 में बाणमण्डल में उक्त राजवंश की नींव डालीं। एक शिलालेख में सिंहनन्दि को 'दक्षिणदेशवासीगंगमहीमण्डलीककुलसमुद्धरणः श्रीमूलसंघनाथो' कहा गया है। एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार गंगराजकुमारों ने नन्दगिरि को अपना दुर्ग बनाया था।
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माधव का पुत्र और उत्तराधिकारी किरियमाधव द्वितीय हुआ । उसका उत्तराधिकारी हरिवर्मन पृथ्वीगंग तंदगल माधव→अविनीत गंग हुआ। यह राजा बड़ा पराक्रमी और धर्मात्मा था, कहा जाता है कि किशोर वय में ही एक बार उसने जिनेन्द्र की प्रतिमा को शिर पर धारण करके भयंकर बाढ़ से बिफरती काबेरी नदी को अकेले पार किया था। सुप्रसिद्ध दिगम्बराचार्य देवनन्दि पूज्यपाद को इस राजा ने अपने पुत्र युवराज दुर्विनीत का शिक्षक नियुक्त किया था। अभिलेखों में अविनीत को विद्वज्जनों में प्रमुख कहा गया है। लिखा गया है 'इस नरेश के हृदय में महान् जिनेन्द्र के चरण अचल मेरु के समान स्थिर थे।' दुर्विनीत अपने गुरु पूज्यपाद का पदानुसरण करने में अपने आपको धन्य मानता था ।
दुर्विनीत के उपरान्त उसका प्रथम पुत्र पोलवीर तदुपरान्त द्वितीय पुत्र मुष्कर राजा हुआ, जिसके समय में जैनधर्म गंगवाडी का राजधर्म था। उसका पुत्र श्रीविक्रम भूविक्रम के पश्चात् शिवकुमार प्रथम राजा बना, जिसने 670 ई0 में अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। इसके बाद उसका पुत्र राचमल्ल
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन एरेगंग→ श्रीपुरुष राजसिंहासन पर बैठा। लगभग 50 वर्ष शासन करने के बाद उसने अपने पुत्र शिवमार द्वितीय सैगोत को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया। यह बड़ा वीर, पराक्रमी, और जैनधर्म का महान् संरक्षक
और भक्त राजा था। शिवमार के पुत्र युवराज मारसिंह की मृत्यु शिवमार के जीवनकाल में ही हो गई। अतः शिवमार का भाई विजयादित्य और विजयादित्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सत्यवाक्य राजगद्दी पर बैठा। इधर शिवमार के छोटे पुत्र पृथ्वीपति प्रथम ने भी राज्य के एक भाग पर अपना अधिकार कर लिया था। अत: गंगराज्य दो शाखाओं में विभक्त हो गया । गंगवंश के राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम (815-853 ई0), राचमल्ल सत्यवाक्य द्वितीय (870-890 ई0), राचमल्ल सत्यवाक्य तृतीय (लगभग 920 ई0) आदि प्रतापी राजा हुए। इसी वंश के एक राजा गंगराज मरुलदेव (953-961 ई0) को शिलालेखों में 'जिनचरणकमल चञ्चरीक' कहा गया है। मरुलदेव का सौतेला भाई मारसिंह (961-974 ई0) भी बड़ा प्रतापी राजा था। एक अभिलेख में उसे 'भुवनैकमंगल-जिनेन्द्र-नित्याभिषेक-रत्नकलश' बताया गया है।
गंगवंश के सन्ध्याकाल में सत्यवाक्य चतुर्थ का अद्वितीय मंत्री एवं महासेनापति चामुण्डराय
) अपनी वीरता, सत्यनिष्ठा एवं जिनेन्द्र भक्ति के कारण अमर हो गया है। चामुण्डराय महान् राजनीतिज्ञ, कवि, ग्रन्थकार, सिद्धान्तज्ञ एवं संस्कृत-प्राकृत भाषाओं का अशेष ज्ञाता था, इन्हीं की प्रेरणा से आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने गोम्मटसार जैसे महान् सिद्धान्त ग्रन्थ की रचना की थी। चामुण्डराय ने अनेक मूर्तियों एवं मन्दिरों के निर्माण के साथ ही श्रवणबेलगोल में चन्द्रगिरि पर्वत पर चामुण्डराय वसति में इन्द्रनीलमणि की तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। चामुण्डराय ने अपनी माता काललदेवी की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवणबेलगोल में भगवान् बाहुबली की विश्व प्रसिद्ध लगभग 57 फीट ऊँची प्रतिमा की स्थापना की थी।
दक्षिण भारत के कदम्ब और पल्लव वंश के राजाओं के राज्यकाल में भी जैनधर्म को प्रश्रय प्राप्त रहा। पल्लवों का राज्यचिह्न वृषभ था, इसी कारण वे वृषभध्वज कहलाते थे। इससे इस अनुमान को पर्याप्त आधार मिलता है कि पल्लववंशी राजा ऋषभदेव के उपासक रहे होंगे। इस वंश में बाद के अनेक राजा शैव हो गये थे, जिन्होंने अनेक जैन मन्दिरों को शैव मन्दिरों में परिवर्तित करा दिया था।
सम्राट् पुलकेशिन् द्वितीय सत्याश्रय पृथ्वीवल्लभ (608-642 ई0) चालुक्य वंश का सबसे महान् सम्राट् था। प्राय: पूरे दक्षिण भारत पर उसका अधिकार था। यह राजा जैनधर्म का प्रबल पोषक था। अपनी दिग्विजय के उपरान्त राजधानी वातापी में प्रवेश करने पर उसने अपने गुरु पण्डित रविकीर्ति को उदार दान देकर सम्मानित किया था, जिसके उपलक्ष्य में रविकीर्ति ने ऐहोल की 'मेगुती' पहाड़ी पर स्थित जैन मन्दिर की दीवार पर उत्कीर्ण कलापूर्ण संस्कृत प्रशस्ति रची थी, इस प्रशस्ति में कालिदास, भारवि का नाम आया है। यथा
येनायोजि नवेऽश्म स्थिरमर्थ विधौ विवेकिना जिनवेश्म।
सः विजयतां रविकीर्तिः कविताश्रित कालिदासभारविकीर्तिः।। राष्ट्रकूट-चोल- उत्तरवर्ती चालुक्य-कलचुरि
राष्ट्रकूटवंशीय राजाओं में सम्राट् अमोघवर्ष प्रथम महान् राजा हुआ। 821 ई0 में मान्यखेट में इनका
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प्रथम खण्ड
राज्याभिषेक हुआ था। इतिहासकारों का मत है कि राष्ट्रकूट नरेशों में अमोघवर्ष जैनधर्म का महान् संरक्षक था और सम्भवतः उसने स्वयं जैनधर्म धारण किया था। आचार्य जिनसेन स्वामी सम्राट् के धर्मगुरु और राजगुरु थे। प्रसिद्ध जैनाचार्य गुणभद्र ने लिखा है कि - 'स्वगुरु भगवज्जिनसेनाचार्य के चरणकमलों में प्रणाम करके अमोघवर्ष नृपति स्वयं को पवित्र और धन्य मानता था।' यथा
9
'संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोऽहमद्येत्यलम्।'
इसके शासनकाल में अनेक जैन ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। कहा तो यहाँ तक जाता है कि इसके राज्य में जैनधर्म ही राष्ट्रधर्म था।
अमोघवर्ष का सेनापति वीर बंकेयरस जैन था और उसने कोन्नूर में एक भव्य जिनालय बनवाया था. जिसकी व्यवस्था के लिए राजा ने तलेपूर नाम का पूरा ग्राम व अन्य ग्रामों की भूमि प्रदान की थी। राष्ट्रकूट वंश के ही इन्द्र तृतीय (914-922 ई0 ) के सेनापति नरसिंह और श्रीविजय दोनों जैन थे। श्रीविजय तो जीवन के अन्तिम भाग में संसार का परित्याग करके जैन मुनि बन गये थे।
राष्ट्रकूट वंशीय कृष्ण तृतीय के महामात्य भरत जैन धर्मावलम्बी ब्राह्मण थे। भरत के पुत्र नन्न इसी सम्राट् के गृहमंत्री थे। 'नागकुमार चरित' नामक ग्रन्थ की रचना महाकवि पुष्पदन्त ने नन्न के मन्दिर (महल) में रहते हुए ही की। राष्ट्रकूट वंश के अन्तिम राजा कृष्ण तृतीय का पौत्र इन्द्रचतुर्थ था हेमावती तथा श्रवणबेलगोल की चन्द्रगिरि की गन्धवारण बसदि के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यह राजा बड़ा वीर और युद्ध - विजेता था। 982 ई0 में चैत्र शुक्ल अष्टमी, सोमवार के दिन इसने समाधिमरण किया था। इस प्रकार राष्ट्रकूट युग में जैनधर्म, विशेषत: दिगम्बर जैनधर्म सम्पूर्ण दक्षिणापथ में प्रधान धर्म था।
9 वीं शताब्दी ई0 में विजयालम चोल ने तंजौर को राजधानी बनाकर अपने वंश की स्थापना की और चोल राज्य का पुनरुत्थान किया। इस वंश के कोलुत्तुंग चोल (1074-1123 ई0 ) के प्रश्रय अनेक जैन धार्मिक और साहित्यिक कार्य हुए थे। उत्तरवर्ती चालुक्य नरेश तैलपदेव आहवमल्ल के महादण्डनायक वीर नागदेव की धर्मपत्नी महासती अत्तिमब्बे का नाम आज भी दक्षिण भारत में सम्मान के साथ लिया जाता है। महासती ने अपने सतीत्व के प्रभाव से कुछ समय के लिए उफनती गोदावरी को स्थिर कर दिया था। अत्तिमब्बे ने स्वर्ण एवं रत्नों की पन्द्रह सौ जिनप्रतिमायें बनवाकर विभिन्न मंदिरों में प्रतिष्ठापित की थीं और शान्तिपुराण (कन्नडी ) की एक हजार प्रतियां लिखाकर विभिन्न शास्त्रभंडारों में वितरित की थीं। इस वंश के जयसिंह द्वितीय आचार्य वादिराजसूरि के परम भक्त थे। जयसिंह के पुत्र सोमेश्वर प्रथम को एक शिलालेख में स्याद्वाद मत का अनुयायी कहा गया है। इसके उत्तराधिकारी सोमेश्वर द्वितीय भुवनैकमल्ल ने शान्तिनाथ जिनालय का निर्माण कराया था। भुवनैकमल्ल के दण्डाधिप शान्तिनाथ को परम जिनभक्त कहा गया है। इसी प्रकार कुन्तल देश के राजा कीर्तिदेव की महारानी माललदेवी पुरुजिनपति ऋषभदेव की परम भक्त थीं ।
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कलचुरि राजाओं के समय में भी जैनधर्म को काफी प्रश्रय प्राप्त रहा। कहा जाता है कि इस वंश का आदि पुरुष कीर्तिवीर्य था, जिसने जैनमुनि के रूप में तपस्या करके कर्मों को नष्ट किया था। 'कल' शब्द का अर्थ 'कर्म' भी है और 'देह' भी, अतएव देह दमन द्वारा कर्मों को चूर करने वाले व्यक्ति के वंशज कलचुरि कहलाये। इस वंश का महाशक्तिशाली सम्राट् बिज्जल ( 1167 ई0) हुआ। कुलप्रवृत्ति के अनुसार
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वह जैन धर्मानुयायी था। इस राजा के एक साले बासव ने 'लिगांयत' अपरनाम 'वीर शैव मत' की स्थापना की थी। बासव की बहिन पद्मावती राजा को जैनधर्म से च्युत तो न कर सकी पर राजकार्य से उसे असावधान बना दिया। अन्ततः बासव द्वारा राजा की हत्या हो गई। एक मत के अनुसार बिज्जल ने विरक्त होकर अपने पुत्र सोमेश्वर को राज्य सौंप दिया और शेष जीवन धर्मसाधना में बिताया। बिज्जल का सेनापति रचिमय्य भी जैन था। उसका ध्वजचिह्न वृषभ था। अतः यह 'वृषभध्वज' भी कहलाता था। इसने अरसियकेरे नगर में एक सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण कराया था। होयसल राजवंश
दक्षिण भारत के ही एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली होयसल वंश की स्थापना जैनाचार्य सुदत्त वर्धमान के आशीर्वाद से हुई थी। इस वंश का संस्थापक 'सल' कर्णाटक की पर्वतीय जाति का एक आभिजात्य किन्तु विपन्न कुल में उत्पन्न वीर युवक था। सौभाग्यवश सल सुदत्त वर्धमान के पास पहुँच गया और शिष्य बन गया। एक दिन एक 'शार्दूल' गुरु के ऊपर झपटा। वीर सल ने सिंह को मार गिराया, प्रसन्न हो गुरु ने उसे स्वतन्त्र राज्य की स्थापना का आशीर्वाद दिया। यह घटना 1006 ई0 के लगभग की है, तभी से सल 'पोयसल' कहलाने लगा, जो कालान्तर में परिवर्तित होकर 'होयसल' हो गया। इस प्रकार सल द्वारा स्थापित राज्य/देश होयसल कहलाया। इस वंश में विष्णुवर्धन 'होयसल' नाम का प्रतापी राजा परम वैष्णव था किन्तु उसकी पट्टमहिषी महारानी शान्तला देवी अपनी सुन्दरता एवं संगीत, वाद्य, नृत्य आदि कलाओं के लिए प्रख्यात थीं साथ ही परम जिनभक्त और धर्मपरायण थीं। इनकी माता माचिकब्बे भी परम जिनभक्त और धर्मपरायण थीं। उन्होंने शान्तला देवी के निधन से विरक्त होकर श्रवणबेलगोल में जाकर अपने गुरुओं प्रभाचंद्र आदि की उपस्थिति में एक माह के अनशन पूर्वक समाधिमरण किया था।
विष्णुवर्धन होयसल के सेनापति गंगराज युद्धविजेता, परम स्वामिभक्त और जिनभक्त थे। अनेक उपाधियों के साथ श्रीजैनधर्मामृताम्बुधि-प्रवर्धन-सुधाकर' और 'सम्यक्त्व-रत्नाकर' जैसी उनकी उपाधियाँ थीं। शिलालेखों में गंगराज की तुलना गोम्मट प्रतिष्ठापक महाराज चामुण्डराय से की गई है। गंगराज ने गोम्मटेश्वर का परकोटा और श्रवणबेलगोल के निकट 'जिननाथपुर' नामक जैन नगर बसाया था। उन्हें विष्णुवर्धन होयसल महाराज का 'राज्योत्कर्षकर्ता' कहा गया है। विष्णुवर्धन के दान-दण्डाधीश पुणिसमय्य दण्डनायक एवं मंत्री मरियाने और भरत, दण्डाधिनाथ इम्मड़ि बिट्टिमय्य आदि भी धर्मात्मा जैन वीर थे। उत्तर भारत (लगभग 200 ई० से 1250 ई०)
उत्तर भारत के मथुरा, अहिच्छत्रा, हस्तिनापुर आदि जैन संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। चौथीं शताब्दी ई0 से छठी शताब्दी के मध्य तक उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य सर्वोपरि राज्य शक्ति था। गुप्त नरेश वैष्णव धर्मानुयायी थे पर जैन धर्म के प्रति भी वे असहिष्णु नहीं थे, उस समय जैन धर्म को राज्याश्रय प्राप्त नहीं था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में क्षपणक का नाम आया है जो सम्भवतः दिगम्बर जैन मुनि थे। यथा
धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंहशंकुवेतालभट्टघटकपरकालिदासा:। ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य।।
-ज्योतिर्विदाभरण, 22/10
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प्रथम खण्ड
जैन परम्परानुसार आचार्य सिद्धसेन (प्रथम) ही गुप्तकालीन क्षपणक थे। कहा जाता है कि अमरकोषकार अमरसिंह भी जैन थे और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिरि नियुक्तियों के रचयिता जैनाचार्य भद्रबाहु के बड़े भाई थे।
दिल्ली के तोमर वंश में अनंगपाल तृतीय (1132 ई0) का राज्यमंत्री नट्टलसाहु बड़ा धर्मात्मा था, जिसने दिल्ली में भ0 आदिनाथ का कलापूर्ण मन्दिर बनवाया था। इसी मन्दिर और उसके आसपास के जैन व हिन्दू मन्दिरों को ध्वस्त करके कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुब्बतुल इस्लाम मस्जिद, वर्तमान कुतुबमीनार के पास बनवाई थी। नट्टलसाहु के आश्रय में श्रीधर ने पार्श्वनाथचरित्र (अपभ्रंश) की रचना की थी।
उपेन्द्र अपरनाम कृष्णराज या गजराज ने 9वीं शती के उत्तरार्ध में मालवा देश की धारानगरी में परमार राज्य की स्थापना की थी। उसका उत्तराधिकारी सीयक द्वितीय उपनाम हर्ष, प्रतापी नरेश और स्वतन्त्र राज्य का स्वामी था। अपने पोषित पुत्र मुंज को राज्य देकर 974 ई0 के लगभग सीयक परमार ने एक जैनाचार्य से मुनिदीक्षा लेकर शेष जीवन एक जैन साधु के रूप में व्यतीत किया था। प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रन्थों में मुंज के सम्बन्ध में अनेक कथायें मिलती हैं। अनेक संस्कृत कवियों का वह प्रश्रय दाता था, जिनमें जैन कवि धनपाल भी थे। इससे यह स्पष्ट है कि मुंज जैन नहीं तो जैनधर्म का पोषक अवश्य था। मुंज के पुत्र एवं उत्तराधिकारी भोजदेव परमार (1010-1053 ई0) के समय धारानगरी दि0 जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र थी। अमितगति, माणिक्यनन्दी, नयनन्दि, प्रभाचन्द्र आदि दिग्गज जैनाचार्यों ने भोज से आश्रय और सम्मान प्राप्त किया था। इसी समय धारा के पास नलकच्छपुर (नालछा) में प्रसिद्ध विद्वान् पण्डित प्रवर आशाधर ने एक विशाल विद्यापीठ की स्थापना की थी और 1225 से 1245 के बीच अनेक जैन ग्रन्थों की रचना की थी।
ग्वालियर के कच्छपघात या कच्छपघटवंशी राजाओं में सम्राट महिचन्द्र ने 956 ई0 में सुहोनिया में एक जिनमन्दिर बनवाया था। 12वीं शताब्दी के मध्य के लगभग तक कच्छपघात राजाओं का शासन ग्वालियर प्रदेश में चलता रहा। स्वयं ग्वालियर दुर्ग (गोपाचल) में उनके द्वारा प्रतिष्ठित उस काल की तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की विशाल प्रतिमा आज भी विद्यमान है जो विश्व की एक पत्थर से निर्मित सबसे विशाल पद्मासन मूर्ति है।
राजस्थान के मेवाड़ की राजधानी चित्रकूटपुर (वर्तमान चित्तौड़) के राजाओं का कुलधर्म शैव था किन्तु जैन धर्म के प्रति वे बड़े सहिष्णु थे। उनके अनेक मंत्री, दीवान, भण्डारी, सामन्त, सरदार आदि जैन थे। कहा जाता है कि मेवाड़ राज्य में दुर्ग की वृद्धि के लिए जब-जब उसकी नींव रखी जाती थी तो साथ ही एक जैन मन्दिर बनवाने की प्रथा थी। दशवीं शताब्दी में राजा शक्ति कुमार के समय में चित्तौड़ का प्रसिद्ध जैन जयस्तम्भ सम्भवतः मूल रूप में बना था। मेवाड़ के प्रसिद्ध जैन तीर्थ केसरियानाथ (ऋषभदेव) को जैन ही नहीं शैव, वैष्णव और भील लोग आज भी पूजते हैं।
बंगाल और कलिंग (उड़ीसा) भी प्राचीन काल से जैनधर्म के गढ़ रहे हैं। बंगाल, बिहार, उड़ीसा के अनेक भागों में प्राचीन जैन श्रावकों के वंशज आज भी हैं, इन्हें आजकल 'सराक' कहा जाता है और
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन ये अब पुन: जैनधर्म में लौट आये हैं। ये लोग पार्श्वनाथ के पूजक हैं। इनके गोत्रों के नाम तीर्थङ्करों के नाम पर हैं। ये मांस मदिरा का सेवन नहीं करते व कुछ-कुछ रात्रि भोजन के भी त्यागी हैं।
उड़ीसा में ऐल खारवेल के बाद दो तीन शताब्दियों तक उसके वंशजों का राज्य चलता रहा। कलिंग जिन की प्रतिमा को लेकर उड़ीसा और मगध का द्वन्द्व प्रसिद्ध ही है।
जैनाचार्य अकलंकदेव के समय (7वीं शती लगभग) कलिंगनरेश हिमशीतल महायानी बौद्ध था पर उसकी राजमहिषी मदनावती परम जिनभक्त थीं। कार्तिकी अष्टाह्निका के समय प्रथम रथ निकालने को लेकर जब विवाद हुआ तो भट्टाकलंकदेव सौभाग्य से वहाँ पहुँच गये। जैनों व बौद्धों का शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें जैनों की विजय हुई।
कलचुरियों के शासनकाल में महाकौशल प्रदेश में जैन शिल्प और स्थापत्य कला का अभूतपूर्व विकास हुआ था। चन्देल काल में खजुराहो में 84 विशाल मन्दिर बने थे, जिनमें अब लगभग आधे शेष हैं। इनमें 32 जैन मन्दिर भी बने थे। चन्देल राजा यद्यपि शिवभक्त थे तथापि वे सर्वधर्म सहिष्णु थे। इनके शासन काल में देवगढ़, खजुराहो, अहार, बानपुर, पपौरा, चन्देरी आदि नगरों में समृद्ध जैन बस्तियाँ थीं, और अनेक तीर्थो, मन्दिरों, शास्त्रों का निर्माण भी हुआ था।
12-13वीं शताब्दी में बुन्देलखण्ड में एक दानी धर्मात्मा हुआ, जिसने सैकड़ों जिनमन्दिर बनवाये थे। अनेक कुओं, तालाबों एवं बावडियों का भी उसने निर्माण कराया था। तत्कालीन राजाओं का पूरा-पूरा आश्रय उसे प्राप्त था। इसका सही नाम क्या था ? कोई नहीं जानता, पर किंवदन्तियों के अनुसार वह भैंसे पर तेल के कुप्पे लादकर व्यापार करता था। एक दिन वह जंगल में बैठा था। उसने देखा कि उसके भैंसे के खुर की लोहे की नाल सोने की हो गयी है। आश्चर्यचकित होकर उसने इधर-उधर खोज की तो उसे पारस-पथरी मिल गई, जिससे वह शीघ्र धनकुबेर हो गया। अपने भाग्य विधाता भैंसा या पाड़ा के कारण वह भैंसाशाह या पाड़ाशाह नाम से ही विख्यात हो गया। उसने विपुल दान दिया। कहा जाता है कि अन्त में अपने समाप्त
से वह इतना ऊब गया कि पारस-पथरी को गहरे तालाब में फेंककर सन्तोष की सॉस ली। __पश्चिम भारत (वर्तमान गुजरात) का गिरनार महाभारतकालीन बाइसवें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि या नेमिनाथ, जिनका वेदों में अनेक बार उल्लेख है, की निर्वाण स्थली है। शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध सभी धर्म यहाँ फले-फूले। 8वीं शती के आरम्भ से लेकर 10वीं शती के प्रथम पाद तक राष्ट्रकूट गोविन्द तृतीय के वंशज मान्यखेट के सम्राटों के प्रतिनिधियों के रूप में गुजरात के बहुभाग के स्वतन्त्र शासक रहे। गुजरात के जैन सम्राट् अमोघवर्ष का चचेराभाई लाटाधिप कर्कराज सुवर्णवर्ष जैन धर्म का भक्त था। अपने एक ताम्रशासन द्वारा उसने 821 ई0 में नवसारी की जैन विद्यापीठ को भूमि आदि का प्रभूत दान दिया था। अन्य भी अनेक जैन राजा यहां हुए। सौराष्ट्र, भड़ौंच, आदि शहर आज भी जैनियों के गढ़ हैं। गुजरात में तत्कालीन जो स्थानीय राज्यवंश उदय में आये उनमें जैनधर्म की दृष्टि से चाबड़ा, चापोत्कट आदि वंश महत्त्वपूर्ण हैं। चावड़ा वंश के संस्थापक वनराज ने अपने गुरु जैनाचार्य शीलगुण सूरि के आशीर्वाद से मैत्रकों का उच्छेद करके 745 ई0 में अपने राज्य की स्थापना की थी। गुरुदक्षिणा में जब उसने पूरा राज्य देना चाहा तो गुरु ने एक सुन्दर जिन मन्दिर मात्र बनवाने के लिए कहा। तब वनराज ने 'पंचासार पार्श्वनाथ जिनालय' का निर्माण कराया था।
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प्रथम खण्ड
गुजरात के प्रतापी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ( 1010-1062 ई0) का कृपापात्र एवं स्वामिभक्त अमात्य पोरवाड़वंशी जैन श्रेष्ठि विमलशाह था, जिसने अपने राजा के लिए अनेक युद्ध किये थे। इसने ही आबू पर्वत पर विश्वविख्यात भगवान् आदिनाथ का मन्दिर बनवाया था।
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उक्त भीम प्रथम का पौत्र चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज (1094 1143 ई0) बड़ा उदार राजा था। वह महादेव का उपासक था तो महावीर का भी भक्त था। जैन तीर्थ शत्रुञ्जय की यात्रा कर उसने आदिनाथ जिनालय को बारह ग्राम समर्पित किये थे । हेमचन्द्राचार्य ने इस राजा के लिए ही 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ रचा था। इसी राजा ने उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' की उपाधि प्रदान की थी।
जयसिंह के बाद कुमारपाल सोलंकी 1143 ई0 में गुजरात के सिंहासन पर बैठा उसके गुरु आचार्य हेमचन्द्र थे। कुमारपाल की 1150 ई0 की चित्तौड़ प्रशस्ति के रचयिता दिगम्बराचार्य जयकीर्ति के शिष्य रामकीर्ति मुनि थे। कुमारपाल पहले शैव था । किन्तु हेमचन्द्र के उपदेश से उसने 1154 ई0 में जैनधर्म स्वीकार कर लिया गया था। उसने शत्रुञ्जय और गिरनार की यात्रा की थी । इतिहासकारों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की हैं और अशोक महान् से इसकी तुलना की है। आचार्य हेमचन्द्र के अकस्मात् स्वर्गवास होने पर वियोग में 6 माह बाद ही कुमारपाल की मृत्यु हो गई थी। एक मत के अनुसार आचार्य की मृत्यु के 32 दिन बाद स्वयं उसके भतीजे अजयपाल ने विष देकर उसकी हत्या कर दी। अजयपाल जैनधर्म का बड़ा विद्वेषी था। उसके एक जैन मंत्री यशपाल ने 'मोहपराजय नाटक' लिखा है।
गुजरात के धोलका (धवलपुरी) के सामन्त वीरधवल एवं उसके उत्तराधिकारी बीसलदेव बघेले के मंत्री भ्रातृद्वय वस्तुपाल और तेजपाल का नाम अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के कारण अमर हो गया है। मंत्रीश्वर वस्तुपाल ने गुजरात के स्वराज्य को नष्ट होने से बचाने के लिए अपने जीवन में त्रेसठ बार युद्धभूमि में गुर्जर - सैन्य का संचालन किया था। आबू (देलवाड़ा) के विश्वविख्यात कलाधाम नेमिनाथ का अद्वितीय मन्दिर उसने 1232 ई0 में करोड़ों रुपये व्यय करके बनवाया था। उसने अनेक मन्दिरों और मस्जिदों को भी दान दिया था। 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह' से विदित होता है कि बीसलदेव बघेले के शासनकाल 1257 ई0 में भीषण दुर्भिक्ष पड़ने पर जगडूशाह ने दुष्काल की सहायतार्थ लाखों मूड़ (रुपया) तत्कालीन शासकों को दिये थे।
मध्यकाल पूर्वार्ध (लगभग 1200 - 1550 ई०)
अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल (1296 1316 ई0 ) में राजधानी दिल्ली के सेठ पूरणचन्द का सुल्तान के दरबार में प्रतिष्ठित स्थान था । 'सुकृतसागर' ग्रन्थ में उनके लिए 'अलाउद्दीनशाखनिमान्यः ' पद का प्रयोग किया गया है। पूरणचन्द के निवेदन पर भट्टारक माधवसेन ने दिल्ली दरबार में शास्त्रार्थ भी किया था। दिल्ली में इसी समय में सेठ दिवाराय, रत्नपरीक्षक ठक्कर फेरु, पाटन के सेठ समराशाह आदि हुए, जो राजमान्य थे।
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मालवा की राजधानी इन दिनों ( 1387 1564 ई0 ) माण्डू थी। मालवा के राजमन्त्रियों के प्रसिद्धवंश में उत्पन्न मंत्रीश्वर मण्डन, सुल्तान होशंगशाह गोरी (1405 - 32 ) का महाप्रधान था। वह सर्वविद्याविशारद था और उसने श्रृंगार मण्डन' आदि कई ग्रन्थों की रचना की थी। मण्डन तथा उसके चचेरे
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन भाई धनदराज, भतीजे पुंजराज आदि का तत्कालीन जैन धार्मिक व्यक्तियों में उल्लेख आचार्य श्रुतकीर्ति ने अपने 'धर्मपरीक्षा' नामक ग्रन्थ में किया है।
आगरा के निकट चन्द्रवाड़ (चन्द्रपाठ) को चन्द्रपाल चौहान ने अपनी राजधानी बनाया था। इसके राज्य में रायबड्डिय, रपरी, हथिकन्त, शौरीपुर, आगरा आदि कई अन्य नगर या दुर्ग थे। चन्द्रपाल स्वयं जैनी था और उसका दीवान रामसिंह हारुल भी जैन था। चन्द्रपाल के उत्तराधिकारी भरतपाल→अभयपाल जाहड़ का प्रधानमंत्री अमृतपाल था, जो जिनभक्त, सप्त व्यसन विरक्त, दयालु और परोपकारी था। अमृतपाल का पुत्र साहु सोड, उसका पुत्र रत्नपाल (रल्हण) राज्य के नगरसेठ थे। रत्नपाल का अनुज कृष्णादित्य (कण्ह) प्रधानमंत्री एवं सेनापति था। दिल्ली के गुलाम सुल्तानों के विरुद्ध इस जैन वीर ने कई सफल युद्ध किये
थे, अनेक जिन मन्दिरों का निर्माण कराया था व कवि लक्ष्मण (लाख) से अपभ्रंश भाषा में 'अणव्रत रत्नप्रदीप' नामक धर्मग्रन्थ की रचना 1256 ई0 में करायी थी। यह वंश अनेक वर्षों तक राज्यमान्य और राजमन्त्रियों का वंश रहा। कहा जाता है कि चन्द्रवाड़ में 51 जैन प्रतिष्ठायें हुई थीं।
इटावा (वर्तमान मैनपुरी) जिले के करहल नगर में भी चौहान सामन्त राजा भोजराज का राज्य था, जिसके मंत्री यदुवंशी अमरसिंह जैनधर्म के पालक थे। उन्होंने 1414 ई0 में वहाँ रत्नमयी जिनबिम्ब का निर्माण कराकर विशाल प्रतिष्ठा महोत्सव कराया था।
फीरोज तुगलक के शासन के अन्तिम वर्षों में उद्धरणदेव तोमर ने ग्वालियर पर अधिकार करके अपना राज्य स्थापित किया था। उसके प्रतापी पुत्र वीरमदेव या वीरसिंह तोमर (1395-1422) ने राज्य को सुसंगठित करके स्वतंत्र और शक्तिशाली बनाया। बाद में गणपति देव, डूंगरसिंह, कीर्तिसिंह या करणसिंह, मानसिंह (1479-1518 ई0) और विक्रमादित्य क्रमशः राजा हुए।
वीरमदेव के महामात्य जैसवाल कुलभूषण जैनधर्मानुयायी कुशराज थे, जिन्होंने ग्वालियर में चन्द्रप्रभु जिनेन्द्र का भव्य मन्दिर बनवाया था। इन्हीं ने पद्मनाभ कायस्थ से 'यशोधरचरित्र' अपरनाम 'दयासुन्दर विधान' नामक सुन्दर काव्य की रचना करवायी थी।
ग्वालियर में विद्यमान विशालकाय जिन प्रतिमाओं के निर्माण का श्रेय डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह तोमर राजाओं को जाता है। आदिनाथ की प्रतिमा बावनगजा कहलाती है, जो लगभग 50 फीट ऊँची है। लगभग 33 वर्ष इनके निर्माण में लगे। संघपति काला ने डूंगरसिंह के राज्य (1440 ई0) में स्वगुरु भट्टारक यश:कीर्तिदेव के उपदेश से भ0 आदिनाथ की प्रतिष्ठा प्रतिष्ठाचार्य पं0 रइधू से करायी थी। रइधू महान् साहित्यकार और अपभ्रंश के लगभग 30 ग्रंथों के रचयिता थे।
राजस्थान में मेवाड़ के प्रसिद्ध नगर चित्तौड़ के शासक तेजसिंह (1206 ई0) की रानी जयतल्लदेवी परम जिनभक्त थीं। उन्होंने चित्तौड़ दुर्ग के भीतर 1265 ई0 के लगभग पार्श्वनाथ का सुन्दर जिनालय बनवाया था। रानी के धर्मात्मा पुत्र वीरकेसरी रावल समरसिंह ने मुनि अमितसिंह के उपदेश से अपने राज्य में जीवहिंसा बंद करा दी थी।
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प्रथम खण्ड
रणथम्भौर का राणा हम्मीरदेव, जैन विद्वानों द्वारा रचित 'हमीर महाकाव्य', 'हम्मीर रासो' जैसे जैन काव्यों का नायक है। 14वीं सदी के उत्तरार्ध में साहजीजा बघेरवाल ने चित्तौड़ के अद्वितीय कीर्ति स्तम्भ (जैन जयस्तम्भ) का जीर्णोद्धार कराया था। कुछ विद्वानों का मत है कि यह स्तम्भ साहजीजा ने ही बनवाया था। यह स्तम्भ पत्थर से निर्मित है और इसमें सात खाने (मंजिलें) हैं। कहा जाता है कि इसी से प्रेरणा लेकर लगभग 100 वर्ष पश्चात् राणाकुम्भा ने अपना जयस्तम्भ बनवाया था। राणा के अनेक राजपुरुष जैन थे।
महाराणा कुम्भा के समय की सर्वश्रेष्ठ कला उपलब्धि रणकपुर में आदिनाथ का मन्दिर है, जिसमें 1444 स्तम्भ, 44 मोड़, 24 मण्डप और 54 देवकुलिकायें हैं। इसके बनाने में 65 वर्ष लगे। इसके निर्माता राणा कुम्भा के कृपापात्र सेठ धन्नाशाह पोरवाल थे, जिन्होंने 1433 में महाराणा से ही इसका शिलान्यास कराया था। राणा ने तब 22 लाख रुपये दान में दिये थे। लगभग इसी समय मुण्डासा (राजस्थान) के राव शिवसिंह के राज्यश्रेष्ठी शाह जीवराज पापड़ीवाल ने अनेक प्रतिष्ठायें कराकर लाखों की संख्या में जैन प्रतिमाएं सर्वत्र भेजी थीं। राणासांगा के पुत्र रत्न सिंह के मंत्री कर्माशाह ने, जिन्हें एक शिलालेख में- श्रीरत्नसिंहराज्ये राज्यव्यापारभार-धौरेय' कहा गया है, शत्रुञ्जय का जीर्णोद्धार कराया था।
मेवाड़ के इतिहास में आशाशाह और उसकी वीर माता का नाम अमर हो गया है। महाराणा रत्नसिंह की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई विक्रमाजीत गद्दी पर बैठा, किन्तु वह अयोग्य था और उसका छोटा भाई उदयसिंह नन्हा बालक था। अत: सरदारों ने विक्रमाजीत को गद्दी से उतारकर दासीपुत्र बनवीर को राणा बना दिया। बनवीर ने विक्रमाजीत की हत्या कर जब उदयसिंह की हत्या करनी चाही तो पन्ना धाय अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बाहर ले आयी। पन्ना आश्रय की खोज में अनेक सामन्त-सरदारों के पास भटकी पर अत्याचारी बनवीर के भय से कोई तैयार नहीं हआ। अन्ततः वह कम्भलमेर पहंची जहाँ का दर्गपाल आशाशाह (जैन) था। आशाशाह भी जब अपनी असमर्थता जाहिर करने लगा तो उसकी वीर माता कुपित होकर भूखी सिंहनी की भाँति आशाशाह का प्राणान्त करने उस पर झपटी और कहा -'तू कैसा पुत्र है जो विपत्ति में किसी के काम नहीं आता, तुझे जीने का अधिकार नहीं।' आशाशाह गद्गद होकर वीर जननी के चरणों में गिर पड़ा। आशाशाह ने कुमार को अपना भतीजा कहकर प्रसिद्ध किया। कुछ समय बाद अन्य सामन्तों की सहायता से उदयसिंह ने चित्तौड़ का सिंहासन प्राप्त कर लिया।
मण्डौर के राव रिधमल तथा राव जोधा का दीवान बच्छराज बड़ा चतुर, साहसी और महत्त्वाकांक्षी था। 1488 ई0 में बीकानेर के संस्थापक राव बीका का भी यह दीवान रहा। बच्छराज ने जैनधर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किये थे। बच्छराज के वंशज ही बच्छावत कहलाये। बच्छराज के पुत्र करमसिंह, वरसिंह, पौत्र नगराज, प्रपौत्र संग्राम आदि बीका के उत्तराधिकारियों के दीवान रहे। मारवाड़ के मोहनोत भण्डारी आदि कई प्रसिद्ध जैन वंशों का उदय इसी समय हुआ और उन्होंने राज्य के प्रतिष्ठित पदों पर कार्य करके उसके उत्कर्ष में भारी योगदान दिया।
मध्यकाल में ही विजयपुर राज्य के राजाओं का कुलधर्म हिन्दू था पर प्रजा का बहुभाग जैन था। बुक्काराय प्रथम (1365-1377 ई0) के समक्ष जब भव्यों (जैनों) व भक्तों (वैष्णवों) में हुए संघर्ष को लाया गया तो उन्होंने सभी प्रमुखों को एकत्र करके जैनियों का हाथ वैष्णवों के हाथ में दिया और घोषणा की
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16
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 'हमारे राज्य में जैनदर्शन और वैष्णवदर्शन के बीच किसी प्रकार का भेद नहीं है। जैन दर्शन पूर्ववत् पंचमहाशब्द और कलश का अधिकारी है और रहेगा। ऐसे बुक्काराय का प्रधानमंत्री और सेनापति जैन वीर बैचप था। वह और उसके तीन वीर पुत्र ही राज्य के प्रमुख सैन्य संचालक थे।
हरिहर द्वितीय (1377--1404) का राज्यकाल बैचप व उसके पुत्रों/पौत्रों के लौकिक तथा जैन धार्मिक क्रिया-कलापों से भरा है। सम्राट् की महारानी बुक्कवे जिनभक्त थीं। देवराय द्वितीय (1419-1446 ई)) के उपराजा कार्कल नरेश वीर पाण्ड्य ने 1432 में बाहुबली की प्रतिमा निर्मित करायी थी, जिसके प्रतिष्ठा महोत्सव समारोह में स्वयं देवराय सम्मिलित हुए थे। उस काल के प्रतिष्ठित जैन गुरु श्रुतमुनि की काव्यमय प्रशस्ति श्रवणबेलगोल की सिद्धर-बसदि के एक स्तम्भ पर 1433 में उत्कीर्ण की गई थी।
हरिहर द्वितीय के सामन्त एवं उपराजा कुलशेखर आलुपेन्द्रदेव ने 1385 में पार्श्वनाथ का मन्दिर मूडबिद्री में बनवाया था। तौलव देश की राजकुमारी देवमति ने श्रुतपंचमी व्रत के उद्यापन में धवल, जयधवल, महाधवल (महाधवल) की ताड़पत्रीय प्रतियां लिखाकर मूडबिद्री की सिद्धान्त-बसदि में स्थापित की थीं। सम्राट् कृष्णदेव राय (1509--1539) विजयपुर नरेशों में सर्वाधिक प्रतापी सम्राट् थे। उन्होंने अनेक जिनालयों को दान दिया था। दक्षिण भारत में अन्य राजाओं के आश्रय में भी जैनधर्म फला-फूला। जिनमें मंत्री पद्मनाभ, सेनापति मंगरस, रानी काललदेवी, वीरय्य नायक आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। मध्यकाल उत्तरार्ध (लगभग 1556-1755 ई०)
मुगल साम्राज्यकाल में जैनधर्म का ह्रास और विकास दोनों हुए। पानीपत के युद्ध में लोदी सुल्तानों को समाप्त करके दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर बाबर ने मुगलराज्य की नींव डाली थी। बाबर के बाद हुमायूं उसका उत्तराधिकारी बना। उसका पुत्र अकबर (1556-1605) मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। रणकाराव, भारमल्ल, टोडरसाहू, हीरानन्द, कर्मचन्द बच्छावत आदि अनेक प्रतिष्ठित जैन व्यक्ति अकबर के कृपापात्र थे। आचार्य 'हीरविजय' की प्रसिद्धि सुनकर सम्राट ने 1581 ई0 में उन्हें आमन्त्रित करके 'जगद्गुरु' की उपाधि से विभूषित किया था। अकबर के समय अनेक जैन प्रभावक सन्त हुए, अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ और लगभग दो दर्जन जैन साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक कृतियों का सृजन किया। अकबर के मित्र और प्रमुख अमात्य अबुल फजल ने 'आइने अकबरी' में जैनों और जैनध र्म का विवरण दिया है। 'आइने अकबरी' में अकबर की कुछ उक्तियां संकलित है यथा- 'यह उचित नहीं है कि मनुष्य अपने उदर को पशओं की कब्र बनायें' आदि।
__ अकबर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी जहाँगीर (1605-1627 ई)) जिनसिंहसूरि (यति मानसिंह) आदि जैन गुरुओं के साथ चर्चा किया करते थे। इनको उसने 'युगप्रधान' की उपाधि भी प्रदान की थी। इसी समय पण्डित बनारसी दास ने आगरा में विद्वद्गोष्ठी प्रारम्भ की थी। शाहजहाँ (1628-1658 ई0) के काल में दिल्ली में लालकिले के सामने लालमन्दिर का निर्माण हुआ था, जो उर्दू (सेना की छावनी) मन्दिर या लश्करी मन्दिर भी कहलाता था, क्योंकि वह शाही सेना के जैन सैनिकों एवं अन्य राज्यकर्मियों की प्रार्थना पर सम्राट के प्रश्रय में उसकी अनुमति-पूर्वक बना था। औरंगजेब (1658-1707 ई0) के शासन में मथुरा, वाराणसी, दिल्ली आदि के अनेक जैन मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवा दी गयीं थीं।
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प्रथम खण्ड
उत्तर मध्यकाल के राजपूत राज्य
उत्तर मध्यकाल में मेवाड़ (उदयपुर), जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, बूंदी आदि में राजपूत राजाओं का शासन था। उनके द्वारा शासित क्षेत्रों में जैनियों की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी थी। राजागण जैन मुनियों, यतियों
और विद्वानों का आदर करते थे। इन राज्यों में भी दीवान, भण्डारी, कोठारी आदि उच्च पदों पर जैनी नियुक्त होते थे।
मेवाड़ राज्य में राणासांगा का मित्र भारमल कावड़िया था, जिसे राजा ने अलवर से बुलाकर रणथम्भौर का दुर्गपाल नियुक्त किया था। बाद में राणासांगा के पुत्र उदयसिंह के शासनारम्भ में वह प्रधानमंत्री के पद पर प्रतिष्ठित हुआ। 1567 ई0 में जब सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तब राजा उदयसिंह ने उदयपुर नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया था।
दानवीर भामाशाह के नाम से कौन परिचित नहीं होगा। भामाशाह भारमल के पुत्र थे। उन्होंने मेवाड़ ही नहीं देश की स्वाधीनता में महती भूमिका निभाई थी। 'मेवाड़ोद्धारक' उनकी उपाधि थी। भामाशाह उदयसिंह के समय से ही राज्य के दीवान एवं प्रधानमंत्री थे। जब हल्दी घाटी के युद्ध में राणाप्रताप पराजित हो गये और जंगल व पहाड़ों में भटककर स्वदेश परित्याग का संकल्प किया तब स्वदेशभक्त और स्वामिभक्त भामाशाह राजा का रास्ता रोककर खड़ा हो गये और देशोद्धार के लिए उन्हें उत्साहित करने लगे। राणा ने कहा 'न मेरे पास धन है, न सैनिक और न साथी। किस बलबूते पर मैं देशोद्धार का प्रयत्न करूँ', भामाशाह ने तत्काल विपुल द्रव्य उनके चरणों में समर्पित कर दिया, इतना कि जिससे 25000 सैनिकों का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। यह सब धन भामाशाह का अपना पैतृक एवं स्वयं उपार्जित किया हुआ था। इस अप्रत्याशित उदारता और सहायता से हर्ष विभोर राजा ने भामाशाह को गले लगा लिया और दूने उत्साह से मुगलों को बाहर करने में जुट गया। उसने अनेक युद्ध लड़े, जिनमें भामाशाह और उसका भाई ताराचन्द सदैव राजा के साथ रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि मुगल सैनिकों के पैर उखड़ने लगे और 1586 ई0 तक दशवर्ष के भीतर चित्तौड़ और मांडलगढ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ पर राणा का पुनः अधिकार हो गया। भामाशाह का जन्म 1547 ई0 और निधन 1600 ई0 के लगभग हआ था। भामाशाह स्वामिभक्त, दानवीर होने के साथ-साथ जैनधर्म पर प्रगाढ़ श्रद्धा रखने वाला था। भामाशाह के पुत्र जीवाशाह और पौत्र अक्षयराज अपने पिता की भांति मंत्री और दीवान रहे।
औरंगजेब की हिन्दू और जैन विरोधी असहिष्णु नीति तथा जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह की विध वा एवं पुत्रों के साथ किये गये अन्यायपूर्ण बर्ताव से जब राजपूत भड़क उठे, तब मेवाड़ के वीर राजा राजसिंह ने एक कड़ा पत्र औरंगजेब को लिखा। इस समय राजसिंह के प्रधानमंत्री संघवी दयालदास नामक जैन वीर थे, जो भारी योद्धा और कुशल सैन्य-संचालक भी थे। संघवी दयालदास ने 1677 ई0 में छाणी ग्राम में एक पाषाणमयी जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी और उदयपुर में एक जिनमन्दिर बनवाया था, जिसके निर्माण में एक पैसा कम दस लाख रुपया लगा था।
जोधपुर राज्य में मेहता रामचन्द, मेहता अचलोजी, मेहता जयमल, मेहता नैणसी (नयनसिंह) आदि प्रमुख दीवान/प्रधानमंत्री रहे। जोधपुर के ही भण्डारी वंशीय जैन, कलम और तलवार के धनी होने के
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
साथ-साथ परम जिनभक्त और राजभक्त थे। भण्डारी राज्यभण्डार के प्रबन्धक होने से भण्डारी कहलाये । इस वंश के लोग राव जोधा (1427-1489 ई0 ) के समय मारवाड़ में आकर बसे थे। जोधपुर नरेश अजीतसिंह (1680-1725 ई0) के समय रघुनाथ भण्डारी राज्य के दीवान थे। वह उदार और दानो थे । उस समय लोक- कहावत चल पड़ी थी कि 'अजीत तो दिल्ली का बादशाह हो गया और रघुनाथ जोधपुर का राजा हो गया। जोधपुर राजघराने में भंडारी वंश के खिमसी, विजय, अनूपसिंह, पोमसिंह, सूरतराम, रतनसिंह आदि सूबेदार - सेनापति - दीवान पदों पर रहे। ये सभी जैनधर्म के परमभक्त थे।
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1727 ई0 में सवाई जयसिंह ने जयपुर नगर का निर्माण कराया। इससे पूर्व आमेर उनकी राजधानी थी। सवाई जयसिंह के वंश कछवाहा राजपूत के संस्थापक साढ़ेदेव थे। उनके राजमंत्री निर्भयराम या अभयराम छाबड़ा गोत्रीय खण्डेलवाल जैन थे। इनके समय में जैन धर्म और जैनी खूब फले-फूले । राज्य के मंत्री, दीवान तथा उच्चपदस्थ कर्मचारी जैन होते रहे। इस राज्य के लगभग पचास जैन मंत्रियों के स्पष्ट उल्लेख वंशावलियों में मिलते हैं। शताधिक जैन साहित्यकारों ने जयपुर राज्य के प्रश्रय में प्रभूत साहित्य रचा। राज्य के आमेर, जयपुर, टोडा, सांगानेर, चाकसू, जोबनेर, झुंझनू, मौजमाबाद आदि अनेक नगर जैनधर्म के प्रसिद्ध केन्द्र रहे हैं, जैन तीर्थ और जैन मन्दिर तो यहां अनेक हैं ही।
आमेर राज्य के महामंत्री मोहनदास भांवसा, राजा जयसिंह के दीवान संघी कल्याणदास, महाराज रामसिंह के दीवान बल्लूशाह छाबड़ा, महाराज बिशनसिंह (1689-1700) के दीवान विमलदास छाबड़ा तथा उनके पुत्र रामचन्द्र छाबड़ा, फतहचंद छाबड़ा, किशनचन्द्र छाबड़ा आदि दीवान जैन थे। 1717 से 1733 तक सवाई जयसिंह के दीवान राव जगराम पाण्ड्या, उनके पुत्र कृपाराम पाण्ड्या, फतहराम पाण्ड्या. भगतराम पाण्ड्या (1735-1743) भी दीवान रहे। इसी समय के एक दीवान श्री विजयराम छाबड़ा या विजयराम तोतूका भी उल्लेखनीय हैं, जिनके संदर्भ में महाराज ने एक ताम्रपत्र में लिखा था 'तुम्हें शाबासी है, तुमने कछवाहों के धर्म की रक्षा की है, यह राज्यवंश तुमसे कभी उऋण नहीं हो सकता और जो पायेगा तुम्हारे साथ बांटकर खायेगा।'
सवाई जयसिंह के ही समय में ताराचन्द विलाला, नैनसुख, श्रीचंद छाबड़ा, कनीराम वैद ( 1750-1763), केसरी सिंह कासलीवाल (1756-1760 ) आदि जयपुर के दीवान रहे। जैन साहित्यकार दौलतराम कासलीवाल 1720 के लगभग राज्यसेवा में नियुक्त हुए थे। वे दीवान भी रहे और उन्होंने हिन्दी आदिपुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण आदि ग्रन्थों की रचना की है।
दक्षिण भारत में विजयनगर राज्य में बेंकट द्वितीय के महालेखाकार राय - करणिक - देवरस ने 1630 ई० में मलेयूर पर्वत की पार्श्वनाथ वसदि में जिन मुनियों के बिम्ब स्थापित किये थे। कर्णाटक में मैसूर का ओडेयर वंश भी प्राचीन गंगवंश की ही एक शाखा थी। ये राजा स्वयं को गोम्मटेश प्रतिष्ठापक महाराज चामुण्डराय का वंशज भी बताते हैं। पहले यह राज्य जैनधर्मानुयायी था, बाद में कुछ राजाओं द्वारा शैव-वैष्णव धर्म स्वीकार कर लेने पर भी मैसूर के राजा स्वयं को गोम्मटेश का संरक्षक बताते रहे। मैसूर नरेश देवराज ओडेयर ने 1674 में जैन साधुओं के नित्य आहार दान हेतु श्रवणबेलगोल के भट्टारक जी को मदने ग्राम दान में दिया था। इसी तरह कृष्णराज ओडेयर ने भी श्रवणबेलगोल आकर गोम्मटेश के दर्शन कर भरपूर दान दिया था, जो इन राजाओं की जैन धर्म के प्रति श्रद्धा को अभिव्यक्त करता है।
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प्रथम खण्ड
___19 आधुनिक युग (लगभग 1756 से 1947 ई०)
आधुनिक युग के देशी राज्यों में भी पूर्व की भाँति जैन भारी संख्या में उच्च पदों पर आसीन रहे। विस्तार भय से अत्यंत संक्षेप में ही उनका परिचय यहाँ दिया जा रहा है। मेवाड़ोद्धारक भामाशाह के संबंधी कर्मचन्द बच्छावत के वंशज अगरचंद बच्छावत को मेवाड़ के राणा अरिसिंह द्वितीय ने माण्डलगढ़ का दुर्गपाल तथा उस जिले का शासनाधिकारी बनाया था। बाद में वह राणा के मंत्री भी बन गये। अगरचंद के ज्येष्ठ पुत्र देवीचन्द जहाजपुर दुर्ग के शासक रहे। मेहता शेरसिंह, मेहता गोकुलचंद, मेहता पन्नालाल, सोमचन्द गांधी, शिवदास गांधी, मेहता मालदास, मेहता नाथजी, मेहता लक्ष्मीचंद, मेहता जोरावर सिंह आदि उदयपुर के राजाओं के मंत्री/ किलेदार आदि रहे थे।
जोधपुर राज्य में भी मेहता वंश राज्य के दीवान पद पर रहा। इनमें मेहता सवाईराम, सरदारमल, ज्ञानमल, नवलमल, रामदास, चैनसिंह उल्लेखनीय हैं। इसी तरह जोधपुर राज्य में भण्डारी वंश भी दीवान : शासक कोषाध्यक्ष आदि पदों पर रहा। इनमें गंगाराम, लक्ष्मीचंद, बहादुरमल, किशनमल के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्दुराज सिंघवी और धनराज सिंघवी सेनापति आदि पदों पर रहे थे।
बीकानेर राज्य के महाराज अनूपसिंह (1669-1698) से खरतरगच्छाचार्य जिनचन्द्रसूरि का पत्राचार चलता था। यहीं के राजा सूरतसिंह (1787-1828) के दीवान अमर चन्द्र सुराना थे। कहा जाता है कि उन्हें झूठा आरोप लगाकर मृत्युदण्ड दे दिया गया था। जैसलमेर राज्य के राजा मूलराज या मूलसिंह ने, जो 1761 में गद्दी पर बैठे, मेहता स्वरूप सिंह को अपना प्रधानमंत्री बनाया। एक कुचक्र के तहत स्वरूप सिंह की भी हत्या कर दी गई। स्वरूप सिंह के पुत्र मेहता सालिमसिंह को मूलराज ने अपना मन्त्री बनाया था। सालिमसिंह ने अपने पिता के हत्यारों से चुन-चुनकर बदला लिया। राजा मूलराज द्वारा अंग्रेजों से सन्धि करने का भी सालिमसिंह ने विरोध किया था।
जयपुर राज्य में भी इस युग में अनेक जैन दीवान होते रहे। खण्डेलवाल जैन सदाराम के पुत्र दीवान रतनचन्द साह 1756 से 1768 तक दीवान रहे। इन्हीं दीवान ने जयपुर में अपने भाई बधीचंद के नाम से एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था। अनन्तराम खिन्दूका, बालचंद छाबड़ा, नैनसुख खिन्दूका, संघी नन्द लाल गोधा, जयचन्द साह, संघी मोतीराम गोधा, भीवचन्द छाबड़ा, जयचन्द छाबड़ा, अमरचन्द सोगानी, जीवराज संघी, मोहनराम संघी, श्योजीलाल पाटनी, भगतराम बगड़ा, राव भवानीराम, सदासुख छाबड़ा, अमरचंद पाटनी, रामचन्द्र या राजचन्द्र छाबड़ा, मन्नालाल छाबड़ा, कृपाराम छाबड़ा, लिखमीचंद छाबड़ा, नोनदराम खिन्दूका, संघी हुकुमचन्द, मानक लाल ओसवाल आदि जयपुर राज्य के दीवान रहे।
भरतपुर राज्य में राजा सूरजमल के काल में चांदुवाड़गोत्रीय संघई मयाराम राज्य के पोतदार (खजांची) और महाराज के मोदी थे। इनके पुत्र संघई फतहचन्द भी उन पदों पर रहे। फतहचन्द के आश्रित एवं सहायक पोतदार पण्डित नथमल विलाला ने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी, जिनमें 1767 में लिखित 'सिद्धान्तसार दीपक' प्रमुख है। यह रचना उन्होंने फतहचन्द के पुत्र जगन्नाथ के प्रबोध के लिए की थी।
मैसूर राज्य पर जब टीपू सुल्तान को हराकर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तब पुराने राजवंश के राजकुमार इम्मडि कृष्णराज ओडेयर को गद्दी सौंप दी। धर्मस्थल के जैन प्रमुख कोमार हेग्गडे की प्रार्थना पर राजा ने पूर्व प्रदत्त ग्रामादि दे दिये थे। इस राजा ने 1828 के लगभग केलसूर के जिनमंदिर में चन्द्रप्रभु,
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन विजयदेव (पार्श्वनाथ) और ज्वालामालिनी देवी की प्रतिमाएँ पुनः प्रतिष्ठित कराई थीं, जो इसकी जैन धर्म के प्रति श्रद्धा का प्रमाण है। कृष्णराज ओडेयर के प्रधान अंगरक्षक राजा देवराज अरसु राज्यसेवा से अवकाश प्राप्त कर जीवन के अन्तिम दिनों में श्रवणबेलगोल में भगवान् गोम्मटेश के चरणों में रहने लगे थे। मैसूर राज्य के प्रसिद्ध विद्वान् पण्डित देवचन्द्र राज्य में करणिक के पद पर प्रतिष्ठित थे। 1804 में जब कर्नल मेकेन्जी कनकगिरि का सर्वेक्षण करने आया तो पण्डित जी उसके सम्पर्क में आये। कर्नल ने राजा से उन्हें सहायक के रूप में मांगा। इसी कारण पण्डित देवचन्द्र 'कर्नल मेकेन्जी के पण्डित' नाम से विख्यात हुए।
जैन राजनैतिक व्यक्तियों में कटक के मंजु चौधरी का नाम भी विशेष उल्लेखनीय है। जैन धर्म । साहित्य / संस्कृति । कला के लिए विख्यात बुन्देलखण्ड के ललितपुर जिले के नहरोनी तहसील के कुम्हेणी ग्राम में मंजु चौधरी का जन्म एक साधारण जैन परिवार में हुआ। बाल्यावस्था में माता-पिता का निधन हो गया, जो था वह जुए में हरा दिया। अन्ततः पैदल ही एक दिन के अन्तराल से रोटी खाते, मजदूरी करते 1740-45 के लगभग नागपुर पहुंचे। वहाँ छोटा-मोटा धन्धा किया, भाग्य और पुरुषार्थ ने साथ दिया तो राजा मुकुन्ददेव के दरबार में पैठ बना ली। अपनी बुद्धिमत्ता और साहस के बल पर वे मराठा सरदार रघुजी भोंसले के मोदी और इतने विश्वासपात्र बन गये कि भोंसले ने इन्हें कटक के राजा के दरबार में चौधरी नियुक्त कर दिया। बाद में उन्होंने बंगाल के नवाब से युद्ध का निश्चय किया। नवाब डरकर भाग गया तब भोंसले और राजा मुकुन्ददेव ने उन्हें दीवान बना दिया। राज्य की ओर से उन्हें कटक में जागीरदारी मिली तथा एक बाजार भी उपहार स्वरूप मिला जो आज भी चौधरी बाजार कहलाता है। आपने खण्डगिरि पर 1760 के लगभग एक जैन मन्दिर बनवाया था। मंजु चौधरी के बाद उनका भान्जा भवानीदास चौध री (भवानी दादू) उनके पद पर प्रतिष्ठित हुआ। उसके बाद भवानी का छोटा भाई तुलसी दादू चौधरी हुआ।
लखनऊ में 'राजा' पदवी से विभूषित तथा राजमान्य राजा बच्छराज नाहटा ने नगर में प्रसिद्ध श्वेताम्बर जैन मंदिर बनवाया था। दिल्ली के राजा हरसुखराय मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय (1759-1806) के शाही खजाञ्ची और जौहरी नियुक्त हुए थे। हरसुखराय के पुत्र राजा सगुन चन्द भी पिता की तरह खजाञ्ची थे। इन्होंने अनेक जैन मंदिर बनवाये, जिनमें हस्तिनापुर का प्रसिद्ध प्राचीन जैन मंदिर भो है। अवध के नबाब वाजिद अली शाह ने सेठ सगुनचन्द का विशाल स्वर्णजटित चित्र बनवाकर उन्हें भंट किया था।
राजस्थान के किशनगढ़ राज्य के चौधरी रत्नपाल नामक जैन सामन्त वहाँ के राजा से रुष्ट होकर बुन्देलखण्ड (वर्तमान म0प्र0) के चन्देरी में आ बसे थे। बाद में वहाँ के राजा से इन्हें जागीर व चौधराहट मिली। इनका परिवार बहुत समय तक चौधरी होता आया। इसी वंश में चौधरी हिरदै सहाय हुए जिनकी 'सवाई' और 'राजधर' उपाधियां थीं। सिंघई सभासिंह भी चन्देरी के प्रधान कारकुन थे, इन्होंने थूवान जी में 35 फीट ऊँची देशी पाषाण की भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। इन्हीं सभासिंह ने चन्दरी की प्रसिद्ध चौबीसी बनवाई थी।
इनके अतिरिक्त भी अनेक राजमान्य जैन व्यक्ति इस काल में हुए जिनमें राजा लक्ष्मण दास, प्रसिद्ध हिन्दी लेखक राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द, राय बद्रीदास, डिप्टी कालेराय, पण्डित प्रभुदास, सेठ मूलचंद सोनी, सेठ माणिकचन्द जे0पी0, राजा चन्दैया हेगड़े, सर सेठ हुकुमचंद, सर मोतीसागर, राजा बहादुर सिंह सिंघी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
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प्रथम खण्ड
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आजादी के आन्दोलन में अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले शहीद अमरचंद बांठिया को 1857 में ग्वालियर में तथा लाला हुकुमचंद जैन को हांसी में फांसी की सजा दी गई थी। अमर शहीद मोतीचंद को आरा के महन्त-हत्याकांड में शूली पर लटका दिया गया था।
महात्मा गांधी जब विलायत जाने लगे और उनकी माता ने मांसाहार, मदिरापान आदि के भय से भंजने से इंकार कर दिया तब एक जैन साधु वेचरजी स्वामी ने गांधी जी को मदिरापान आदि न करने की प्रतिज्ञा दिलायी थी। इसी प्रकार गांधी जी के जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले जो तीन पुरुष थे, उनमें रायचंद भाई (जैन) प्रमुख थे। धार्मिक, शंकाओं का समाधान गांधी जी रायचंद भाई से ही प्राप्त करते थे।
1942 के आन्दोलन में वीर उदयचंद, वीर साबूलाल, वीर प्रेमचन्द, वीर मगनलाल ओसवाल, कुर) जयावती संघवी, श्री नत्थालाल शाह आदि गोली लगने से मारे गये। लगभग 5 हजार जैनों ने स्वतंत्रता के आन्दोलन में जेल की दारुण यातनायें सहीं। इस बीच किन्हीं के पारिवारिक जन मारे गये तो किसी की आजीविका छिन गई। अनेक जैन ऐसे भी हैं जिन्हें जेल जाने का सौभाग्य नहीं मिल सका, उन्होंने भूमिगत रहकर काम किया। अल्पवय के कारण भी अनेक स्वतंत्रता प्रेमी जैन जेल नहीं जा सके। सहस्राधिक जैन ऐसे भी हैं जो जेल तो नहीं गये पर बाहर से आन्दोलन को अपना नैतिक समर्थन दिया। जैन या अजैन किसी के भी जेल जाने पर उनके परिवार के भरण-पोषण की व्यवस्था करना भी अनेकों का लक्ष्य था। ऐसे व्यक्तियों का एक लम्बा इतिहास हमारे सामने है। इस प्रकार भारतीय राजनैतिक क्षितिज में जैन समाज का योगदान अपना उदाहरण आप है।
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जेल में पर्युषण पर्व जल अवधि में दो बार पर्युषण पर्व आये। सन् 1942 में जिला-जेल, मंडलेश्वर में मनाया। 10-12 जैन बंधु थे, पर्व के दिनों में बिना देवदर्शन के भोजन नहीं करने के कारण स्थानीय मंदिर जी से भगवान् की प्रतिमा जी लाने की अनुमति मिल गई, अतः प्रतिदिन सुबह शांति से अभिषेक पूजन होता, दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र का पठन और शाम को सामायिक। इन दिनों अपने ही हाथों बना शुद्ध भोजन एक बार लेते थे। इसी प्रकार सन् 1943 में केन्द्रीय कारागार, इंदौर में भी प्रतिमा जी लाने की अनुमति मिल गई थी, वहां शुद्ध भोजन शहर से आ जाता था। मिश्रीलाल जी गंगवाल, जो बाद में मध्यभारत के मुख्यमंत्री रहे और बाबूलाल जी पाटौदी के होने से पर्व में बड़ा आनंद रहा।
-कमल चंद जैन, एडवोकेट सनावद् (म0प्र0) के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
उपक्रम : दो
स्वतंत्रता आन्दोलन : एक सिंहावलोकन हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही 'सोने की चिड़िया' कहा जाता रहा है, जो इसकी समृद्धि और विपुल प्राकृतिक सम्पदा का सूचक है। इस समृद्धि की कहानी सुनकर यूरोप में पुर्तगालियों ने सबसे पहले भारत से व्यापार सम्बन्ध बढ़ाना प्रारम्भ किया। भारत से व्यापार के सभी मार्गों पर तुर्कों का आधिपत्य था, इसीलिए पुर्तगालियों को नये समुद्री मार्ग की खोज करनी पड़ी। 'वास्को-डि-गामा' नामक पुर्तगाली अफ्रीका महाद्वीप के चक्कर लगाता हुआ 20 मई 1498 को कालीकट पहुँचा और वहाँ के राजा जमोरिन से एक संधि की। सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पुर्तगालियों ने भारत से जोर-शोर से व्यापार करना आरम्भ कर दिया। पुर्तगालियों की देखा-देखी हालैण्ड, इंग्लैंण्ड और फ्रांस के व्यापारियों ने भारत से व्यापार करने का निश्चय किया। लार्ड मेयर की अध्यक्षता में 22 दिसम्बर 1599 को अंग्रेज व्यापारियों ने इस उद्देश्य से एक संस्था की स्थापना करने का निर्णय लिया। 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटिश सम्राज्ञी ने भारत से व्यापार करने के लिए अंग्रेज व्यापारियों को अधिकार पत्र (Charter) दिया, जिसके द्वारा 'ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी' का निर्माण किया गया। 1664 में लुई चौदहवें ने भारत से व्यापार करने के लिए 'फ्रेञ्च ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना की।
इस प्रकार सत्रहवीं शताब्दी तक भारत से अनेक यूरोपीय देशों ने अपने व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ा लिये थे। फलत: उनमें आपस में प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष होने लगा। पहली मुठभेड़ में पुर्तगाल और हालैण्ड के व्यापारी समाप्त हो गये। व्यापारिक और राजनैतिक प्रभुत्व के लिए लड़ाई मुख्यतः अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य हुई, जिसमें फ्रांसीसी हार गये। इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय नबाबों और राजाओं को हराकर अपना राजनैतिक प्रभुत्व जमाना प्रारम्भ कर दिया। प्लासी और बक्सर के युद्धों के बाद, बंगाल, बिहार और उड़ीसा के शासन पर कम्पनी का आधिपत्य हो गया तथा दिल्ली का बादशाह उनका पेंशनर बन गया। 1773 से 1856 तक कम्पनी ने देशी रियासतों से छोटी-बड़ी लडाइयां लड़ीं और उन्हें परास्त करके विस्तृत भू-भाग को अपने अधिकार में ले लिया।
तदनन्तर अंग्रेज अत्यन्त सस्ते दामों पर कच्चा माल इंग्लैण्ड भेजने लगे और वहाँ निर्मित सामान भारत में अधिक मूल्य पर विक्रय करने लगे। अंग्रेजों की इस नीति से इंग्लैंड के उद्योगों की तो उन्नति हुई, लेकिन भारतीय व्यापार, वाणिज्य और उद्योग-धन्धे पूरी तरह चौपट हो गये। अंग्रेजों की भू-राजस्व तथा भूमि सम्बन्ध ी नीतियों के कारण भारतीय किसान विपन्न हो गये और प्रशासनिक दबाव तथा अन्य कारणों से जमींदार भी असंतुष्ट हो गये। 19वीं शती के पूर्वार्द्ध में ईसाई मिशनरियों ने भारत में अपना-अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। चिकित्सा, मानव सेवा, शिक्षा तथा सुदूर ग्रामीण इलाकों में लोगों को जीवनोपयोगी सुविधायें देने के बहाने उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास किया।
ईसाई मिशनरियों द्वारा अशिक्षित तथा निर्धन ग्रामवासियों का व्यापक पैमाने पर कराया जाने वाला धर्मान्तरण हिन्दू तथा इस्लाम धर्मावलम्बियों के लिए चिन्ता का विषय बन गया। सार्वजनिक स्थानों पर
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प्रथम खण्ड
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भारतीयों के साथ किये जाने वाले अपमानजनक व्यवहार, रेल डाक-तार तथा अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों की शुरूआत मन्दिरों का प्रबन्ध अपने हाथ में लेने, विधवा विवाह को कानूनी आधार प्रदान करने, सती प्रथा पर रोक लगाने, ईसाई बनने पर भी पैतृक सम्पत्ति को हिस्सा मिलने का कानून, सैनिकों को विदेश भेजने जैसे कार्यों ने भारतीय जनमानस तथा धार्मिक भावनाओं को आहत किया।
राजनैतिक क्षेत्र में डलहौजी नामक अंग्रेज गवर्नर जनरल की विलय नीति ने सर्वाधिक असंतोष फैलाया। डलहौजी के शासनकाल में सतारा, सम्भलपुर, उदयपुर, जैतपुर, झांसी तथा नागपुर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। अबध के नबाब वाजिद अली शाह, नाना साहब पेशवा बाजीराव के द्वितीय पुत्र) तथा मुगल सम्राट् बहादुर शाह द्वितीय के प्रति अंग्रेजों की नीति ने बहुत से शासकों को विरोधी बना दिया । प्रशासन में भारतीयों के साथ भेदभाव, न्याय प्रणाली में निहित दोष तथा भारतीयों की उपेक्षा ने असंतोष को और भड़काया।
सेना में भारतीयों की स्थिति बहुत खराब थी। वेतन तथा पदों के सम्बन्ध में भारतीयों को अंग्रेजों के बहुत नीचे रखा जाता था। अंग्रेज अधिकारी सामान्य गलतियों पर भी भारतीय सैनिकों को कठोर दण्ड देते थे। 1857 में चर्बी युक्त कारतूसों के प्रयोग के आदेश ने सैनिक असंतोष की अग्नि में पूर्णाहुति डाल दी और प्लासी युद्ध पश्चात् 100 वर्षों तक एकत्र हुए कारणों से विस्फोट हो गया, जिसे इतिहास में प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा गया और जिसका आरम्भ बैरकपुर की सैनिक छावनी में एक घटना से हुआ। 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डे नामक भारतीय सैनिक ने चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरोध में परेड के समय अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी। मंगल पाण्डे पर मुकदमा चला और अन्ततः उसे फाँसी दे दी गई। मंगल पाण्डे के बलिदान की खबर से देशभर में सैनिक छावनियों में असंतोष चरम सीमा पर पहुँच गया। मेरठ छावनी में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया । चर्बीयुक्त कारतूसों का प्रयोग करने से मना करने पर सैनिकों को निःशस्त्र कर बन्दी बना लिया गया। 10 मई को सैनिकों ने खुली बगावत करके और अपने साथियों को कारागार से मुक्त कराकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। सैनिकों ने लालकिले सहित महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा कर लिया और विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए बहादुरशाह जफर को सहमत कर लिया।
11 मई से 31 मई 1857 तक दिल्ली, फिरोजपुर, इटावा, बुलन्दशहर, मुरादाबाद, जून में ग्वालियर, झाँसी, इलाहाबाद, . फैजाबाद, लखनऊ, राजस्थान तथा मध्य भारत एवं जुलाई में इन्दौर, महू, सागर और पंजाब में विद्रोह फैल गया। अबध में बेगम हजरत महल, कानपुर में नाना साहब, इलाहाबाद में मौलवी लियाकत अली, जगदीशपुर में कुँअर अली तथा झाँसी में लक्ष्मीबाई ने विद्रोह का नेतृत्व किया। सितम्बर 1857 तक अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया और बहादुरशाह को देश से निर्वासित करके बर्मा भेज दिया। 19 जनवरी 1858 को बहादुर शाह जफर के सहयोगी लाला हुकुमचंद जैन, उनके तेरह वर्षीय भतीजे फकीर चंद और मिर्जा मुनीर बेग को फाँसी पर लटका दिया गया। 6 दिसम्बर तक कानपुर पर भी अंग्रेजों का फिर से कब्जा हो गया। बेगम हजरत महल तथा नाना साहब अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आये और नेपाल की ओर जाकर भूमिगत हो गये । झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं। लक्ष्मीबाई के बलिदान के चार दिन बाद ही 22 जून 1858 को ग्वालियर के सिंधिया राजा के खजांची अमरचंद बांठिया को लक्ष्मीबाई की सहायता करने के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया गया। तात्या टोपे को विश्वासघात करके पकड़ लिया गया और 18 अप्रैल 1859 को फाँसी पर लटका दिया गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन धीरे-धीरे एकता, संगठन, नीति और दृढ़ता के बल पर अंग्रेजों ने इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबा दिया। उल्लेखनीय है कि विद्रोह के समय भारतीय सेना अंग्रेजों से सात गुनी अधिक थी। विद्रोहियों के साथ नागरिकों की सहानुभूति, दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार तथा यातायात के साधन भंग होने के बाद भी विद्रोह दबाने में अंग्रेजों की सफलता आश्चर्यजनक थी।
इस संग्राम ने जहां भारत में नवजागरण युग का सूत्रपात किया और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की ऐसी सुदृढ़ नींव रखी जिस पर आज के भारत की भव्य अट्टालिका खड़ी हुई है। वहीं दूसरी ओर अंग्रेज सरकार ने भी सतर्क होकर वास्तविकता और उग्र भारतीय मानसिकता को पहचाना, जिसके परिणाम स्वरूप इंग्लैंड की संसद ने एक कानून पासकर भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया। इसके तहत अब शासन व्यवस्था कम्पनी के हाथ से सीधे इंग्लैंड की महारानी के पास पहुंच गई। भारत के गवर्नर जनरल के स्थान पर वाइसराय के पद की घोषणा की गई।
इस घोषणा के बाद भारत का नेतृत्व 'भारत-सचिव' के पास पहुंच गया, जिसके सहयोग हेतु एक भारत परिषद् बनाई गई। भारत-सचिव का मुख्यालय लन्दन में था, जो सिर्फ ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के प्रति उत्तरदायी था, किन्तु इसका समस्त खर्च भारत की जनता उठाती थी। इसका प्रतिनिधि वाइसराय था, जो ब्रिटिश संसद द्वारा निर्धारित नीतियों के तहत भारत का शासन चलाता था।
उक्त घोषणा के अधीन भारत का शासन दो धाराओं में बंट गया। एक धारा सीधी ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण की थी एवं दूसरी धारा 562 रजवाड़ों की थी, जिनके ब्रिटिश राजा के साथ संधिगत सम्बन्ध थे। इनमें कुछ रजवाड़े तो बहुत छोटे (लगभग । वर्ग कि0मी0 एवं आबादी लगभग 100) एवं हैदराबाद जैसे, कुछ बहुत बड़े थे जिनका क्षेत्रफल ब्रिटेन से अधिक था।
आम जनता की बात शासन के समक्ष रखने के सदैव प्रयत्न होते रहे। 1851 में कलकत्ता में 'ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन' की स्थापना की गई। इसी तरह 1852 में 'बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन', 1852 में ही 'मद्रास नेटिव एसोसिएशन' सन 1867 में 'पूजा सार्वजनिक सभा', 1876 में 'इण्डियन एसोसिएशन' और 1881 में मद्रास में 'महाजन सभा' की स्थापना की गई। शासन के सामने जनता का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए अखिल भारतीय स्तर की संस्था की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसको कार्यरूप में परिवर्तित करने का काम एक अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अफसर 'एलेन ओक्टेवियन ह्यूम' ने किया, जिसने देशभर के चोटी के नेताओं से सम्पर्क किया और उन्हें एक मंच पर लाकर 1885 में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना की। स्थापना अधिवेशन गोकलदास तेजपाल संस्कत कॉलेज. बम्बई में दिनांक 28 से 30 दिसम्बर 1885 को हआ. इसमें देश के 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। भाग लेने वालों में से कुछ थे। उमेश चन्द्र बनर्जी, दादाभाई नौरोजी, काशीनाथ त्रयंवक तैलंग, फिरोजशाह मेहता, एस0 सुब्रह्मण्यम् अय्यर, पी0 आनंद चानू, दीनशा एदलजी वाचा, गोपाल गणेश आकरकर, जी0 सुब्रह्मण्यम् अय्यर, एम0 वीर राघवाचार्य, एन0जी0चंद्रावरकर, रहमतुल्ला, एम0सयानी आदि और सरकारी अधिकारी विलियम वैडरबर्न और महादेव गोविन्द रानाडे। श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, जो उस समय के चर्चित नेता थे, इस सम्मेलन में भाग नहीं ले सके, क्योंकि उसी समय उन्होंने कलकत्ता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया था।
अधिवेशन गोकुल
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प्रथम खण्ड
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अंग्रेजों के 'दमन', 'फूट डालो एवं राज करो' की नीति के कारण जन-मानस का नैतिक बल गिरना प्रारम्भ हो गया था। जनमानस की मानसिकता देशहित में बनी रहे, इस भावना से देशभक्तों ने सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों को देशभक्ति का प्रचार माध्यम बनाया। ये स्वतः ही अंग्रेजों का माध्यम बन गए।
1886 के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हर क्षण राष्ट्रीय कांग्रेस का योगदान बढ़ता गया। 1886 में कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। अधिवेशन की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की। देश के करीब 450 प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया। इस अधिवेशन में यह बात जोर देकर कही गई कि 'भारत का दारिद्र्य अंग्रेजों द्वारा भारत का शोषण एवं भारत के धन को इंग्लैण्ड ले जाने का परिणाम है।'
कांग्रेस के प्रारम्भिक 20 वर्ष 1885-1905 'नरम दौर' के वर्ष माने जाते हैं। इस दौरान इस मंच से प्रशासन में भारतीयों को अधिकाधिक अधिकार देने, विधानसभाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने, भारतीयों की उच्च सरकारी पदों पर भर्ती, सिविल सर्विस परीक्षायें भारत में ही आयोजित कराने, सेना पर होने वाले भारी खर्च का विरोध, भारतीय धन को विदेश ले जाने का विरोध, भाषण एवं बोलने की आजादी, लोक कल्याण की योजनाओं का विस्तार एवं शिक्षा-प्रसार आदि की चर्चा एवं मांग की गई।
प्रारम्भ में कांग्रेस में अंग्रेज अफसर भी भाग लेते थे। जार्ज यूले (1888) सर विलियम वेडरवर्न (188) ). एल्फ्रेड (1894), सर हेनरी काटन (1904) तो कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। किन्तु अंग्रेजों को इस संस्था के कार्यक्रमों में अंग्रेज-विरोध नजर आने लगा, फलत: उन्होंने किसी भी अधिकारी को इस संस्था से जुड़ने (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष) पर रोक लगा दी। इसे राजद्रोही संगठन करार दिया गया। इसे अल्पसंख्यकों का एक संगठन बताया गया। यह भी कहा गया कि 'यह भारत की जनता का न तो प्रतिनिधित्व करता है और न उसके हित की बात करता है, फलत: आम आदमी को इससे दूर रहना चाहिए।' राष्ट्रीय कांग्रेस की समुद्रपारीय इकाई ब्रिटेन में भी समर्थन पाने में समर्थ हई। ब्रिटिश पार्लियामेंट में भी भारत में सुधार लागू करने के प्रयास सदस्यों द्वारा किये गये किन्तु बहुमत के बल से वह असफल रहे।
उन्नीसवीं सदी के अन्त में भारत की जनता को भारी कष्ट झेलना पड़े। देश का बड़ा भाग अकाल के गाल में आ गया, लाखों लोग इससे प्रभावित हुये, कई लाख लोग मर गये, गरीबी सबसे प्रमुख सवाल बन गया, लोगों को लगा कि इस सबके लिये ब्रिटिश शासन एवं उसकी नीतियां जिम्मेदार हैं, इससे सार्वजनिक मंचा पर शासन की तीखी आलोचना प्रारम्भ हुई, राष्ट्रीय आन्दोलन में एक नई विचारधारा का जन्म हुआ। कांग्रेस की नीतियों की आलोचना 'राजनीतिक भिक्षावृत्ति' कहकर की गई। नवोदित नेताओं, जिनमें बालगंगाध र तिलक, लाला लाजपतराय एवं विपिन चन्द्र पाल प्रमुख थे, ने कहा -'सरकार से भलाई की आशा करने के बजाय जनता को अपने बल पर भरोसा करना होगा।' उन्होंने कहा कि- 'प्रशासन से सुधार की मांग करना पर्याप्त नहीं है, स्वराज्य अपरिहार्य है।' इसी तारतम्य में बालगंगाधर तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा'- दिया। इसी समय उनका समाचार पत्र 'केसरी' राष्ट्रीय पत्र के रूप में स्थापित हुआ। जन जागरण को निरन्तर जीवित रखने के लिए धार्मिक आयोजनों का उपयोग किया गया। महाराष्ट्र में घर-घर में मनाया जाने वाला 'गणेश महोत्सव' इसका आधार बना। स्वेदशी उद्योगों को प्रोत्साहन देने के निमित्त स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की बात प्रचारित की गई। विदेशी वस्तुओं का
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
विरोध किया गया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। विदेशी वस्तुओं को बेचने वाली दुकानों पर धरने आयोजित किये गये । देश की महिलाओं ने सामूहिक रूप से पहली बार राजनैतिक मामलों में सड़कों पर अपना अस्तित्व पूरी शक्ति से जताया एवं बड़ी सफलता प्राप्त की। 1905 के आते-आते राष्ट्रीय आन्दोलन जन आन्दोलन बन गया। लाखों लोग उससे जुड़ गये और स्वतंत्रता प्राप्त करना उनका एक मात्र लक्ष्य बन
गया।
1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने वाराणसी में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की, उन्होंने 'स्वदेशी और बहिष्कार' आन्दोलन का जोरदार समर्थन किया। इस आन्दोलन से जन चेतना बढ़ी। पहली बार देश की आर्थिक नीति की दिशा में विचार हुआ। इससे स्वदेशी उद्योगों की स्थापना में मदद मिली। स्वेदशी वस्तुएं बेचने वाली दुकानें स्थापित करना 'देशभक्ति का प्रतीक और ब्रिटेन के विरुद्ध संघर्ष का हिस्सा' बन गया। इसी तारतम्य में तमिलनाडु के राष्ट्रवादी नेता पी0ओ0 चिदंबरम् पिल्लई ने 'स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी' की स्थापना की।
1906 में कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। दादाभाई नौरोजी ने उसकी अध्यक्षता की। नरम और गरम दल का विचार-संघर्ष चरम सीमा पर था। इस अधिवेशन में यह बात उभर कर सामने आई कि अब कांग्रेस की रुचि प्रशासन के सुधार को आगे बढ़ाकर कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे स्वशासित उपनिवेशों की तरह की सरकार में है। ये देश ब्रिटेन के आधिपत्य में थे जबकि शासन जनता से चुने गये प्रतिनिधि यों की सरकार के पास था।
जहाँ एक ओर प्रदर्शन और प्रस्तावों से स्वतंत्रता प्राप्ति की बात आगे बढ़ रही थी, वहीं देश में एक वर्ग ऐसा भी था जो ब्रिटिश शासन को बल के जरिए उखाड़ फेंकने में विश्वास करता था । उसके अधिकांश सदस्य नौजवान थे। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियां उन्हें भड़काती थीं। ये संगठन महाराष्ट्र और बंगाल
में
अधिक सक्रिय रहे। महाराष्ट्र में इनका संगठन 'अभिनव भारत सोसायटी' एवं बंगाल में 'अनुशीलन समिति' के नाम से जाना जाता था। इन संगठनों ने बदनाम ब्रिटिश अफसरों, पुलिस अफसरों, मजिस्ट्रेटों, मुखबिरों, गवर्नरों तथा वायसरायों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यवाही की । क्रांतिकारी संगठन के सदस्य सदैव कम रहे किन्तु उन्हें जन मानस का श्रद्धायुक्त समर्थन मिलता रहा। जनता की निगाह में उनकी इज्जत मंच पर भाषण देने वालों से सदैव ही अधिक रही।
क्रांतिकारी संगठनों के खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने 1908 में मुजफ्फरपुर में एक घोड़ागाडी पर इस अनुमान से बम फेंके कि इसमें ब्रिटिश जज जा रहा है, वह जज आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को कड़ी एवं लम्बी सजा देने के लिए प्रख्यात था। भाग्य उसके साथ था, वह गाड़ी में नहीं था, फलत: दो अंग्रेज महिलाओं, जो गाड़ी में सफर कर रही थीं, की मृत्यु हो गई। चाकी ने आत्महत्या कर ली एवं खुदीराम बोस को फाँसी दे दी गई। इस घटना के बाद क्रांतिकारियों की जोर-शोर से तलाश प्रारंभ हुई। कलकत्ता के मणितल्ला गार्डन (जिसका उपयोग क्रांतिकारी बम बनाने एवं हथियार प्रशिक्षण में करते थे ) पर पुलिस ने छापा मारा, अनेक क्रांतिकारी पकड़े गये, जिनमें अरविंद घोष एवं वारीन्द्र कुमार घोष प्रमुख थे। कुछ को आजीवन कारावास हुआ एवं अरविन्द घोष ने राजनैतिक गतिविधियों से सन्यास ग्रहण कर पांडिचेरी में आश्रम की स्थापना की। क्रांतिकारियों ने ढाका के मजिस्ट्रेट तथा नासिक एवं तिन्नेवेली के . कलेक्टरों को गोली से मार डाला। 1912 में वायसराय हार्डिंग की हत्या का प्रयत्न चांदनी चौक में उनके जलूस पर बम फेंक कर किया गया।
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प्रथम खण्ड
27 क्रांतिकारियों के संगठन भारत के बाहर लंदन, पेरिस, बर्लिन, उत्तरी अमेरिका में भी सक्रिय रहे थे। उन्होंने क्रांतिकारी विचारों को प्रचारित करने के लिए पत्र-पत्रिकाएं निकालीं एवं क्रांतिकारियों से सम्पर्क किया। इसमें संलग्न रहे। कुछ प्रमुख क्रांतिकारी हैं- श्याम जी वर्मा, मैडम कामा, मदाम भिकाजी बरकत उल्लाह, बी0बी0एस0 आयंगार, लाला हरदयाल, रास बिहारी बोस, सोहनसिंह भकना, विनायक दामोदर सावरकर, उनैतुल्ला सिंधी एवं मानवेन्द्र नाथ राय एवं मदन लाल धींगड़ा आदि।
1907 में 1857 के संघर्ष का 50वाँ वर्ष पड़ता था। केन्द्रीय शासन इस बारे में आवश्यकता से अधिक सावधान रहा था। उसे भय था कि इस समय देश में पुनः देशव्यापी दूसरा व्यापक विद्रोह भड़क सकता है। शासन कांग्रेस के 'नरम विचार धारा' के लोगों से आश्वस्त था, किन्तु गरम दल के सभी नेताओं को उनके कार्यक्षेत्र से अलग कर दिया गया। बाल गंगाधर तिलक एवं लाला लाजपतराय को गिरफ्तार कर बर्मा भेज दिया गया। विपिन चन्द्र पाल को भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इन सब के बाबजूद भी देश में अनेक जगह प्रदर्शन हुए, पुलिस को उन्हें शान्त करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा। तिन्नेवेली (तमिलनाडु) में एक सभा पर राजाज्ञा का विरोध करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई। चार लोग घटना स्थल पर ही शहीद हो गये।
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के दौरान क्रांतिकारी दलों ने सशस्त्र विद्रोह से ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए भारत में भारी मात्रा में चोरी छिपे हथियार लाने का प्रयत्न किया। बाधा जतीन, जो विदेशों से प्राप्त हथियारों से सत्ता को उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे, उन्हें मार दिया गया। इन सबकी भनक सरकार को पूर्व में ही लग गई थी। बहुत से पकड़े गये, अनेकों को आजीवन कारावास एवं अनेकों को फाँसी की सजा दी गई। जिन्हें फाँसी हुई, उनमें 19 वर्ष का करतार सिंह सरांगा भी था। काबुल में क्रांतिकारी दल ने स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार स्थापित की। इसके राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप सिंह एवं प्रधानमंत्री बरकत उल्लाह बने। यद्यपि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां किसी बड़ी सफलता को प्राप्त करने में असफल रहीं, किन्तु उनकी निर्भयता से भारत की जनता को बल मिला।
1914 में यूरोप के साम्राज्यवादी देशों के दो विरोधी गुटों के बीच शत्रुता के कारण प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ जो 1918 तक चला। ब्रिटेन ने इस युद्ध में भारतीय सिपाहियों एवं साधनों का पूरा उपयोग अपने हित में किया, यद्यपि भारत का कोई हित इससे संबंधित नहीं था।
सरकार ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया। उसका एक उद्देश्य हिन्दू और मुसलमानों में फूट डालना था। वह अपने इस उद्देश्य में सफल भी हुई, जिसका परिणाम था मुस्लिम लीग की स्थापना। इस संस्था का जन्म 1906 में मुसलमानों के एक सम्प्रदाय के प्रमुख आगा खां एवं ढाका के नबाब सलीमुल्ला के प्रयास से हुआ। इस संस्था को सदैव अंग्रेजों की शह मिलती रही। आगे चलकर यही भारत के बंटवारे का कारण बनी।
1917 में भारत मंत्री एडविन मान्टेग्यू ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत में 'उत्तरदायी सरकार' स्थापित करने के उद्देश्य से धीरे-धीरे 'स्वशासित संस्थाओं' की स्थापना की बात कही। इससे प्रभावित होकर भारतीय नेताओं ने ब्रिटेन के युद्ध-प्रयासों में मदद की। ब्रिटेन की यह घोषणा जल्दी ही झूठी साबित हो गई, जब 1918 में 'मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट' प्रकाशित हुई, जिसमें यह कहा गया कि भारतीय जनता उत्तरदायी शासन चलाने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन में समर्थ नहीं है।' इस रिपोर्ट में प्रारम्भ किये जाने वाले सुधारों की भी चर्चा थी। इन सुधारों पर विचार करने के लिए बम्बई में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया, जिसकी अध्यक्षता सैयद हसन इमाम ने की। इस अधिवेशन में सुधारों को घोर निराशाजनक बताया गया।
1915 में भारत के राजनैतिक वातावरण में एक नये व्यक्ति का प्रवेश हुआ, जिसने आतताइयों से लड़ने का एक अहिंसक तरीका ईजाद किया था, जिसे 'सत्याग्रह' कहा गया एवं जिसका अफ्रीका में सफल प्रयोग हो चुका था। यह नया व्यक्तित्व था मोहनदास करमचन्द गाँधी। गाँधी जी अपने 'सत्याग्रह' का झंडा अफ्रीका में गाड़ चुके थे। भारत आकर उन्होंने आरंभिक संघर्ष चंपारण (बिहार) से प्रारंभ किया। वह वहां किसानों को अत्याचार से मुक्त कराने हेतु गये थे। 1917 में सरकार ने उन्हें चंपारण छोड़कर जाने का आदेश दिया, पर उन्होंने नहीं माना। अन्ततः सरकार ने अत्याचारों की जांच की एवं उनका निराकरण किया। यह गाँधी जी की भारत में पहली राजनैतिक सफलता थी। इस सफलता के बाद लगभग
राजनैतिक परिवेश धीरे-धीरे उनके चारों ओर इकट्ठा होने लगा एवं वह केन्द्र बिन्दु बन गये।
गाँधी जी ने आन्दोलन को नई दिशा देने एवं उसे जन-जन से सम्बन्धित करने के लिये अस्पृश्यता की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाया। उच्च जातियों द्वारा 'अछूत' समझे जाने वाले लाखों लोगों का जीवन उठाने, उन्हें सामाजिक मान्यता प्रदान करने के कार्य में वह जुट गये। उन्होंने अपने पत्र का नाम भी 'हरिजन' रखा। उन्होंने अपने आश्रम में अपने अनुयायियों को वह सब कार्य करने की प्रेरणा दी जो उच्च जाति के लोग नहीं करते थे, जिसमें अन्य कार्यों के साथ शौचालय साफ करने का काम भी था।
सार्वजनिक जीवन में जुड़ने के पूर्व गांधी जी ने देश के प्रत्येक हिस्से का सघन दौरा किया, उन्होंने पाया कि गांव नितान्त दयनीय स्थिति में हैं। वहां श्रम का मूल्य ही नहीं है। उनके पास काम भी नहीं है। हर हाथ को काम देने के लिए उन्होंने खादी का प्रचार किया। गांधी जी ने प्रत्येक कांग्रेसी एवं राष्ट्रभक्त को खादी पहनने की प्रेरणा दी। आगे चलकर खादी. आन्दोलन का आवश्यक अंग बन गई। गांधी जी ने चरखे को भी इतना प्रोत्साहन दिया कि आगे चलकर वह झंडे का 'केन्द्र-चिह्न' बन गया। खादी के प्रचार से गांवों की माली हालत बदली, साथ ही स्वतन्त्रता आन्दोलन। स्वदेशी भावना गांव गांव तक पहुंच गयी। इससे स्वाधीनता आन्दोलन को व्यापकता एवं जन-जन से जुड़ाव प्राप्त हुआ।
1919 में मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड के सुधारों के अन्तर्गत विधान मण्डलों का निर्माण किया गया किन्तु उसके अधिकार न के बराबर रहे। इसी समय 'रोलेक्ट एक्ट' बना, जिसके अनुसार बिना किसी मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को जेल में डालने का अधिकार शासन के पास सरक्षित था। इसका विरोध हुआ। कई नेताओं एवं विधान परिषद् के सदस्यों ने इस्तीफे दिये। मुहम्मद अली जिन्ना (बाद में पाकिस्तान के संस्थापक) ने अपने इस्तीफे में कहा 'जो सरकार शांतिकाल में ऐसे कानून को स्वीकार करती है वह अपने को सभ्य सरकार कहलाने का हक खो देती है।' इस कानून के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को 'राष्ट्रीय अपमान दिवस' मनाया गया। सारे देश में व्यापक रूप से प्रदर्शन एवं हडतालें आयोजित की गईं।
___10 अप्रैल 1919 को दो राष्ट्रवादी नेता श्री सत्यपाल और डॉ) सैफुद्दीन किचलू गिरफ्तार कर लिये गये। 13 अप्रैल 1919 को इनकी गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के पास एक छोटे से पार्क, 'जलियांवाला
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प्रथम खण्ड
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बाग' में एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में भारी संख्या में स्त्री, पुरुष एवं बच्चे उपस्थित थे। सभा चल ही रही थी कि उसी समय जनरल डायर अपने सैनिकों को लेकर सभा स्थल पर पहुंचा एवं बिना किसी सूचना के सभा पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। गोलियां 10 मिनट तक तब तक चलती रहीं जब तक सैनिकों की गोलियां समाप्त नहीं हो गईं। इसके बाद सैनिक वहां से ऐसे चले गये जैसे कुछ हुआ ही नहीं। 10 मिनट के इस हादसे में एक हजार से अधिक स्वाधीनता प्रेमी मारे गये एवं दो हजार से अधिक घायल हुये। इसी बाग में एक कोने में एक कुआँ है। आदमी अपनी जान बचाने उसमें कूदते गये इस प्रकार वह कुआँ मनुष्यों को जीवित समाधि बन गया। बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं। इस काण्ड की जाँच-समिति के सामने डायर ने बड़ी बेहूदगी से कहा था कि 'उसने यह सब जनता को सबक सिखाने के लिये किया है यदि सभा चालू रहती तो वह सबकी हत्या कर दता।'
जलियांवाला काण्ड की तीखी प्रतिक्रिया पूरे देश में हुई। सरकार का दमन-चक्र बढ़ता गया। पंजाब में सड़क पर लोगों को रेंगने के लिये मजबूर किया गया। सार्वजनिक स्थान पर कोड़े लगाये गये, अखबार बन्द कर दिये गये, संपादकों को गिरफ्तार कर लिया गया। नोबल पुरस्कार विजेता 'रवीन्द्रनाथ ठाकुर' ने. जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने 'सर' को उपाधि से विभषित किया था, वाइसराय को पत्र लिखकर सर की उपाधि वापस कर दी।
अगस्त 1919 में कांग्रेस का अधिवेशन अमृतसर में हुआ। अमृतसर में ही जलियांवाला बाग है। अधिवेशन की अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की। पहली बार अधिवेशन में भारी संख्या में किसानों ने भाग 'लया। 1920 में नागपुर अधिवेशन में गाँधी जी की प्रेरणा से 15000 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया। अब संविधान की प्रथम धारा हुई, 'सभी न्यायोचित और शांतिमय साधनों में भारतीय जनता द्वारा स्वराज प्राप्त करना।' जनता के आन्दोलन को एक नया शब्द 'असहयोग आन्दोलन दया गया। यह नाम आन्दोलन के तरीके के कारण ही दिया गया था। इस आन्दोलन का जनमानस पर मार्गभक प्रभाव यह पड़ा कि जहां पहले लोग ब्रिटिश पदवियाँ प्राप्त करना अपना गौरव समझते थे वहां अब ये पदवियां वापिस की जाने लगीं। गांधी जी ने 'कैसरे हिन्द' पदक लौटा दिया। सुब्रह्मण्यम् अय्यर ने 'सर' की उपाधि वापिस कर दी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर पहले ही इसे वापिस कर चुके थे। विधान परिषदों के चुनाव में अधिकांश लोगों ने वोट नहीं डाले। हजारों विद्यार्थियों और अध्यापकों ने स्कूल, कॉलेज छोड़ दिय। राष्ट्रवादियों द्वारा अपनी संस्थायें प्रारम्भ की गई। दिल्ली में जामिया मिलिया और वाराणसी में काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई। वर्तमान में दोनों विश्वविद्यालय हैं।
यह आन्दोलन काफी सफल रहा। 1921 के समाप्त होने तक 50 हजार से अधिक लोग जेलों में बंद हो गयं थे, इनमें अधिकांश देश के नेता थे। किन्तु प्रणेता जेल के बाहर थे। इसी समय केरल में किसानों ने अपना आन्दोलन इतना व्यापक किया कि उसे सरकार ने विद्रोह के रूप में माना। 'मोपला विद्रोह' के नाम से विख्यात इस विद्रोह को सेना की मदद से बर्बरता पूर्वक दबाया गया। 2000 से अधिक लोग मारे गये। करीब 15000 गिरफ्तार किये गय। अमानवीयता इस हद तक थी कि जब कैदियों को रेल के बैगन से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा रहा था तो इतने अधिक कैदी बैगन में लूंस दिये गये कि 67 मोपलाओं की दम
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन घुटने से ही मृत्यु हो गई। इस विद्रोह में मोपलों ने भी भयंकर हिंसा की थी। उन्होंने न केवल अंग्रेजों को मारा था, अपितु हजारों हिन्दू स्वदेशवासियों को भी मौत के घाट उतार दिया था।
फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के 'चौरा-चौरी' स्थान में लोग एक प्रदर्शन में भाग ले रहे थे। छेडखानी की कोई वारदात न होने पर भी पलिस ने गोली चला दी। गस्से में आकर लोगों ने टेशन को घेर लिया, जहाँ भीड़ के दबाव के कारण गोली चलाने वाले पुलिसकर्मी अपनी सुरक्षा हेतु पहुंच गये थे. उन्होंने प्रवेश दरवाजे को. जो लकडी का था. भीतर से बंद कर लिया था। भीड ने पलिस स्टेशन में आग लगा दी, फलत: 22 व्यक्ति अन्दर ही जलकर मर गया
इस हिंसक काण्ड के कारण गांधीजी ने अपना आन्दोलन वापिस ले लिया। गांधीजी के इस निर्णय की व्यापक आलोचना हुई। विश्व इतिहास का यह पहला उदाहरण था कि आन्दोलन उस समय वापिस लिया गया जब वह अपनी चरम सीमा पर था। किन्तु बाद में यह सिद्ध हुआ कि गांधीजी का यह निर्णय उनके अद्वितीय नैतिक साहस और जनमानस में उनके गहरे प्रभाव को सिद्ध करने में समर्थ हुआ। सरकार ने इसका लाभ उठाकर मार्च 1922 में गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें छह साल की सजा सुनाई गई।
असहयोग आन्दोलन करीब 2 वर्ष तक देश को आंदोलित करता रहा। इस आन्दोलन से राष्ट्रीय आन्दोलन शहरों की सीमा को लांघकर गांव-गांव तक पहुंचा। हर वर्ग के लोग इसमें शामिल हो गये। एक नया नारा जो इस आन्दोलन में व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ, वह था -'हिन्दू- मुसलमान की जय', यह नारा अंग्रेजों की पृथकता की नीति का सार्वजनिक जवाब था।
आन्दोलन के वापिस लेने के बाद विधान परिषदों के संदर्भ में दो धारणायें उपजीं। एक थी उनसे अपने को हटाना एवं दुसरी थी विधान परिषदों में जाकर सरकार का प्रबल विरोध और सरकार द्वारा कानून न बना पाने की स्थिति निर्मित करना। दूसरी धारणा के लोगों ने अपना लक्ष्य प्राप्त भी किया। उन्होंने ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रस्तुत उनकी नीतियों तथा प्रस्तावों के संबंध में परिषट् की सम्मति प्राप्त करना लगभग असंभव कर दिया।
फरवरी 1924 में गांधी जी जेल से छूटे। उन्होंने खादी का प्रचार, हिन्दू मुस्लिम एकता मजबूत करना, अस्पृश्यता को दूर करना आदि कार्यक्रम प्रारम्भ किये। उन्होंने प्रत्यक कांग्रेसी को प्रतिमाह 2000 गज सूत कातने पर बल दिया। खादी का विकास ग्रामोत्थान कार्यक्रम के साथ जग-जागरण एवं आर्थिक स्वतंत्रता का मूलाधार बना। इसस सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वतंत्रता आन्दोलन का सन्देश पहुंचना प्रारम्भ हो गया।
असहयोग आन्दोलन को वापिस लिये जाने से युवा वर्ग में आक्रोश का भाव उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। सचिन सान्याल, जोगेश चटर्जी जैसे लोगों ने मिलकर 'हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन' नामक संस्था की स्थापना की। इसका पहला धमाका हरदोई से लखनऊ जा रही रेल को काकोरी में रोककर शासकीय खजाना लूटकर, पार्टी के लिये धन इकट्ठा करने के रूप में हुआ। उस समय रेल ब्रिटिश शासन की प्रतीक थी। उसमें ऐसी घटना से उसकी सत्ता की शक्तिहीनता का संकेत था। जैसा स्वभाविक था, घटना के बाद क्रान्तिकारियों की जोर-शोर से तलाश हुई, कई लोग गिरफ्तार हुए, 'काकोरी षड्यंत्र' के तहत उन पर मुकदमा चला। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशनसिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को मृत्युदंड दिया गया। एक चर्चित सदस्य चन्द्रशेखर आजाद पकड़े नहीं जा सके, उन्होंने दूसरे क्रान्तिकारियों से मिलकर नये संगठन की
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प्रथम खण्ड
नींव डाली। 1928 में स्थापित इस संगठन का नाम था "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी'। इसी संगठन के एक प्रमुख नेता थे, सरदार भगत सिंह।
1928 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में करांची में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस ने जनता से कर न देने को कहा। इस क्रम का सर्वाधिक प्रभावी आन्दोलन गुजरात में बारडोली में दृआ। किसानों ने कर न अदा करने की घोषणा की। फलतः सरकार कर वसूलन में असमर्थ रही।
___ 30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में साइमन कमीशन के बहिष्कार को लेकर आयोजित जुलूस का नेतृत्व कर रह पंजाब केसरी लाला लाजपतराय का लाठी चार्ज के दौरान बेरहमी से पीटा गया, जिससे कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। उस समय पुलिस दल का नेतृत्व ब्रिटिश अफसर 'साण्डर्स' कर रहा था। क्रान्तिकारियों ने उसे अमृतसर में गोली से उड़ा दिया।
जनता का मनोबल बढ़ाने के लिये एवं गूंगी सरकार के कान खोलने के लिए, सर्वाधिक सुरक्षित जगह केन्द्रीय विधानसभा में 8 अप्रैल 1928 को दो बम फेंके गये। बमों से किसी को मारने का कोई उद्देश्य नहीं था, फलतः खाली स्थान पर इन्हें फेंका गया। बम फेंकने वालों ने भागने की भी कोई कोशिश नहीं की। भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके इस प्रयास से पूरे देश में उनकी भारी प्रशंसा हुई। वे आख्यान पुरुष के रूप में स्थापित हुए। बम काण्ड के बाद जो मुकदमा चला उसमें भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी हुई एवं अन्य सात को आजीवन कारावास हुआ। घटना के सूत्रधार आजाद अब भी शासन की पकड़ से बाहर थे। बाद में इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क में उन्हें पुलिस ने घेर लिया। एक को घेरने सैकड़ों की संख्या में पुलिस थी। मुकाबला बहादुरी से हुआ। पुलिस कप्तान अपने कुछ अंग्रेज सहयोगियों के साथ घायल हो गया, आजाद भी शहीद हो गये। उस समय खौफ इतना था कि मरने के बाद भी कोई पास जाने को तब तक तैयार नहीं हुआ जब तक कि आजाद के मृत शरीर पर अनेक गोलियां नहीं चलाई गईं।
क्रान्तिकारियों के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना 1930 में घटी। 18 अप्रैल 1930 को 'इण्डियन रिपब्लिक आर्मी' के क्रांतिकारियों ने सूर्यसेन के नेतृत्व में चटगांव के पुलिस शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया। कुछ समय तक चटगांव ब्रिटिश शासन से मुक्त रहा। दिसम्बर 1930 में सोन क्रान्तिकारियों विनय बोस, बालद गुप्ता और दिनेश गुप्ता ने कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश कर ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक की हत्या कर दी।
चटगांव विद्रोह के अधिकांश कार्यकर्ता घटना के बाद भाग निकले थे। उनमें से सूर्यसेन और तारकेश्वर को मृत्युदण्ड दिया गया। संगठन की दो महत्त्वपूर्ण युवा सदस्थायें भी थीं, इनमें प्रीतिलता बट्टेदार ने आत्म हत्या कर ली एवं कल्पना दत्त को आजीवन कारावास हुआ।
12 मार्च 1930 'दांडी मार्च' के कारण स्मरण किया जाता रहगा, उस दिन महात्मा गांधी 79 स्वयंसेवकों के साथ नमक पर लगाये गये कर को वापिस लेने की मांग करते हुए, समुद्र किनारे जाकर नमक बनाने के उद्देश्य से, ‘सावरमती आश्रम' (अहमदाबाद) से पैदल निकले. वह आगे बढ़ते गये एवं उनके पीछे कारवां बढ़ता गया। ) अप्रैल 1930 को गांधी जी दांडी पहुँचे। वहाँ उन्लान यमद्रतट से एक मुट्ठी नमक उठाकर 'कानून' तोड़ा। यह आन्दालन देशव्यापी बना। लगभग एक लाख लोग इस आन्दालन में गिरफ्तार किये
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन गये। 'दांडी मार्च' में महिलाओं का नेतृत्व सरलादेवी साराभाई ने किया था। मध्यप्रदेश में इसी समय 'जंगल सत्याग्रह' अपनी चरम सीमा पर था।
राष्ट्रीय आन्दोलन के दो चमकते सितारे पं0 जवाहर लाल नेहरू एवं सुभाष चन्द्र बोस ने आम जनता को यह समझाया कि उनकी समस्त परेशानियों का मूल कारण ब्रिटिश सत्ता है। नेहरू एवं सुभाष समाज के बिल्कुल अलग वर्गों से आये थे। नेहरू का पारिवारिक वातावरण उस समय के सम्पन्न लोगों से सम्बन्धित था जबकि सुभाष का सम्बन्ध सामान्य वर्ग से था।
सुभाषचंद्र बोस 1920 में 'इंडियन सिविल सर्विस' की प्रतिष्ठित परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का डंका बजा चुके थे। उस समय किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति का इस परीक्षा में चुना जाना गौरव की बात मानी जाती थी, किन्तु नेताजी ने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से दुखी होकर इस सेवा से इस्तीफा दे दिया।
परतंत्र भारत का यह एक मात्र उदाहरण था जब किसी व्यक्ति ने इस सेवा में चुने जाने के बाद उसे लात मार दी हो। उनके इस कार्य से वह राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ते ही शीर्ष नेताओं के बीच पहुंच गये। उनका पूरा जीवन देदीप्यमान रहा। महात्मा गाँधी के विरोध के बाबजूद उन्होंने महात्मा गाँधी के समर्थन से खड़े प्रत्याशी पट्टाभिसीतारमैया के विरोध में कांग्रेस का चुनाव लड़ा एवं विजयी हुये। उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न त्रिपुरी कांग्रेस का अधिवेशन कांग्रेस का चर्चित अधिवेशन रहा था। उनकी कार्यपद्धति एवं महात्मा गाँधी के कार्यक्रम में तादात्म्य नहीं बैठ सका, फलत: वह कांग्रेस से अलग हो गये। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें कलकत्ता में अपने निवास पर नजरबन्द कर दिया गया। इस नजरबन्दी से वह सफलता पूर्वक निकलकर देश के बाहर चले गये एवं ब्रिटिश विरोधी खेमे का नेतृत्व करने वाले जर्मनी के तानाशाह से बर्लिन में मिले।
ब्रिटिश साम्राज्य में 562 रियासतें थीं, इनके अधिकांश शासक अच्छे नहीं थे, प्रजा दु:खी थी, उन पर दोहरा नियंत्रण था। पड़ोस के प्रदेशों में जन चेतना का संचार देख उनमें भी जनतांत्रिक अधिकारों और जनतांत्रिक सरकार की मांग उठने लगी। वे राज्यों के शासकों के भोग-विलास की खुलकर निन्दा करने लगे। इन सबके लिये प्रजामण्डलों की स्थापना हुई। आरंभिक प्रजामण्डल विजय सिंह पथिक, माणिकलाल वर्मा के नेतृत्व में राजस्थान की रियासतों में स्थापित किये गये। रियासतों के इन सभी संगठनों का एक अखिल भारतीय संगठन 'आल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांग्रेस' के रूप में 1927 में बना। भावनगर प्रजामण्डल के अध्यक्ष वल्लभ मेहता इसके सचिव बने। इस संगठन के माध्यम से मांग की गई कि भारतीय रियासतों को भारतीय राष्ट्र का अंग माना जाना चाहिये। चौथे दशक तक रियासतों में जन आन्दोलन काफी शक्तिशाली बन गया था। राजस्थान में जयनारायण व्यास, जमनालाल बजाज, उड़ीसा में सारंगधर दास, त्रावणकोर में एनी मस्करों तथा पद्मयथान पिल्लई, जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला, हैदराबाद में स्वामी दयानन्द तीर्थ आदि ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। राजाओं द्वारा इनका दमन किया गया। पटियाला में आन्दोलन के नेता, प्रजामण्डल प्रमुख सेवासिंह ठिकीवाला को जेल में इतनी यातनाएं दी गईं कि वहीं उनकी मृत्यु हो गयी।
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प्रथम खण्ड
33
कांग्रेस ने प्रारम्भ में रियासतों के मामले में तटस्थता का रुख अख्तियार किया था, यद्यपि नेता रियासतों में जाते रहे तथा मांग का समर्थन भी करते रहे, किन्तु 1938 में सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस अधिवेशन में यह घोषणा की गई कि पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रियासतों सहित समूचे देश के लिए है। यह भी स्पष्ट किया गया कि रियासतें देश का हिस्सा हैं, उनकी जनता के हित और शेष देश की जनता के हित एक से हैं।
सितंबर 1939 में हिटलर ने पोलैंड की सेना को रौंदकर द्वितीय विश्वयुद्ध का सूत्रपात किया। इस युद्ध के कारण पूरा विश्व दो भागों में बंट गया। एक तरफ मित्र राष्ट्र फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका एवं सावियत संघ (रूस) थे, दूसरी तरफ धुरी राष्ट्रों में जर्मनी, इटली, एवं जापान थे। वस्तुतः इस युद्ध के एक तरफ तानाशाही शक्तियां थीं तो दूसरी तरफ लोकतांत्रिक। भारत का इस युद्ध से कुछ लेना-देना नहीं था, फिर भी ब्रिटेन का उपनिवेश होने के कारण ब्रिटेन ने भारत की जनता की सलाह लिये बिना ही उसे इस युद्ध में शामिल कर लिया। कांग्रेस ने मांग की कि तुरन्त राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाए एवं युद्ध समाप्त होते ही भारत को पूर्ण स्वतंत्र करने का वचन दिया जाये। ब्रिटेन ने यह मांग अस्वीकार कर दी। उस समय प्रान्तों में चुने हुए मंत्रिमंडल, जिनके पास एकदम सीमित अधिकार थे. अस्तित्व में थे। ब्रिटेन के निर्णय के विरोध में उन्होंने इस्तीफे दे दिये।
भारत को जबरन युद्ध में शामिल करने के विरुद्ध मार्च 1940 में देशव्यापी प्रदर्शन किये गये। कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस ने 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आन्दोलन प्रारम्भ किया, इस आन्दोलन का अर्थ था कि कांग्रेस द्वारा चुने गये सत्याग्रही एक-एक करके सार्वजनिक स्थानों पर पहुंचेंगे, युद्ध के खिलाफ भाषण देंगे, लोकमत तैयार करेंगे एवं गिरफ्तारी देंगे। इस आंदोलन के चुने हए पहले सत्याग्रही विनोबा भावे थे। थोडे ही समय में 25000 सत्याग्रही गिरफ्तार होकर जेल में बंद हो गये। इनमें कांग्रेस के अधिकांश प्रमुख नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य (बाद में भारत के प्रथम गवर्नर जनरल), जी0बी0 गाडगिल, सरोजनी नायडू, जी0बी0मावलंकर, अरुणा आसफ अली आदि थे।
1942 के आरम्भ में युद्ध में ब्रिटेन का पलड़ा हल्का पड़ने पर उसकी सेनाओं को भारी क्षति उठानी पड़ी, फलतः उसने भारतीय नेताओं से बात करने के लिए सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भेजा। यह मिशन असफल रहा क्योंकि वास्तव में ब्रिटेन राष्ट्रीय सरकार की स्थापना को तैयार ही नहीं था। उन्होंने (सर क्रिप्स ने) संविधान सभा की मांग तो स्वीकार की किन्तु साथ ही यह भी कहा कि राजाओं द्वारा नामजद व्यक्ति ही उसके प्रतिनिधि होंगे। जनता को संविधान सभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।
क्रिप्स मिशन की असफलता के साथ ही भारतीय जनता का 'तीसरा महान् संघर्ष' शुरू हुआ। इस संघर्ष को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है। 8 अगस्त 1942 को भारतीय कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें कहा गया था कि 'आजादी एवं जनतंत्र की विजय के लिए फासिस्ट देशों तथा जापान के विरुद्ध लड़ रहे मित्र राष्ट्रों के लिये यह जरूरी है कि भारत को जल्दी से स्वाधीनता मिल जाये।' प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि 'स्वतंत्र हो जाने पर भारत अपने सम्पूर्ण साधनों से उन देशों के साथ महायुद्ध में शामिल हो जायेगा, जो फासिज्म और साम्राज्यवादी आक्रमण के खिलाफ संघर्ष कर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
रहे हैं।' इस प्रस्ताव के पास हो जाने पर गांधी जी ने अपने संक्षिप्त सारगर्भित भाषण में कहा था- 'मैं आपको एक संक्षिप्त मंत्र देता हूं। इसे हृदय में आप पक्का बिठा लीजिए और अपनी प्रत्येक सांस के साथ इसे व्यक्त होने दीजिए, मंत्र है- " करो या मरो" और " भारत छोड़ो।" इस प्रयास में हम या तो आजाद होंगे या मर जायेंगे । '
9 अगस्त के प्रातः कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गये। उन्हें देश के विभिन्न भागों में बन्द कर दिया गया। कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। देश के हर हिस्से में हड़तालें हुईं, प्रदर्शन हुये, गोलियां चलीं, लाठी चार्ज हुआ, अश्रुगैस छोड़ी गई, सारे देश में गिरफ्तारियां हुईं। लोगों ने सरकारी सम्पत्ति पर हमले किये, रेल पटरियां तोड़ी गईं और डाकतार व्यवस्था में रुकावटें पैदा की गईं। अनेक स्थानों पर जनता की पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई। आन्दोलन के समाचार प्रकाशित करना प्रतिबंधित कर दिया गया, फिर भी गुप्त समाचार पत्र छपते और बंटते रहे। वर्ष के अन्त में लगभग 60000 स्वाधीनता सेनानी विभिन्न जेलों में बन्द कर दिये गये। सैकड़ों की मृत्यु हुई। मरने वालों में वृद्ध, बच्चे, महिलाएं सभी थे।
प्रदर्शन में भाग लेने के कारण 73 वर्षीय मातंगिनी हाजरा को तमलुक (बंगाल) में, 13 वर्ष की कनकलता बरुआ को गोहपुर (आसाम) में, 19 वर्षीय साबूलाल जैन को गढ़ाकोटा, सागर (म0प्र0) में, उदयचंद जैन को मण्डला (म0प्र) में गोली से उड़ा दिया गया। पटना में सात तरुण विद्यार्थियों एवं अन्य सैकड़ों की गोली लगने से मौत हुई। देश के कुछ भाग जैसे उत्तर प्रदेश में बलिया, बंगाल में तमलुक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारावाद, उड़ीसा में बालासौर तथा थलचर आदि ब्रिटिश शासन से मुक्त कर लिये गये और वहां जनता की समानान्तर सरकारें बनीं। पूरे महायुद्ध के दौरान जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ अली, एम0एम0 जोशी, राम मनोहर लोहिया आदि अनेक नेताओं द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रहीं ।
इसी दौरान बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा। शासन ने कोई व्यवस्था नहीं की। जिस कारण लगभग 30 लाख लोग अकाल ही काल के गाल में समाहित हो गए। कहा जाता है कि यह अकाल संसार का सबसे बड़ा मानव कृत अकाल था । जहाँ एक ओर हजारों की तादाद में स्त्री, पुरुष और बच्चे भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा था। यह अकाल सरकार की दमन नीति का ही एक अंग था। विदेशी शासन के अभिशाप की इससे अधिक नृशंस मिसाल नहीं मिल
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कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार 34 लाख व्यक्ति इस अकाल में भूख से मरे और लगभग 46 प्रतिशत आबादी को भंयकर बीमारियां हुईं।
दूसरे विश्वयुद्ध के प्रारम्भिक चरण में जापान को भारी सफलता मिली, सिंगापुर तक उसका अबाध कब्जा हो गया। हजारों ब्रिटिश सैनिकों को, जिनमें भारतीय सैनिक ही अधिक थे, आत्मसमर्पण करना पड़ा। इन सैनिकों की मदद से 'आजाद हिन्द फौज' की स्थापना, जनरल मोहन सिंह ने की। इसी बीच 1941 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से एक पनडुब्बी में यात्रा कर सिंगापुर पहुंचे। उस समय आजाद हिन्द फौज में 45000 सिपाही थे। 1943 में नेताजी ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार की घोषणा की। उनका यह ऐतिहासिक भाषण जापान के सहयोग से विश्वभर में प्रसारित किया गया। इसमें उन्होंने यह प्रसिद्ध नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'। इसके बाद सभी ने सुभाषचंद्र बोस को
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प्रथम खण्ड
35
'नेताजी' उपनाम से पुकारना प्रारम्भ कर दिया। 1944 में नेताजी अंडमान निकोबार गये। उन्होंने वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया। आजाद हिन्द फौज के कुछ दस्ते मणिपुर (इम्फाल) तक पहुंचे।
___ 'आजाद हिन्द फौज' की सफलता आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि अणुबमों के आक्रमण से जापान परास्त हो गया था और फौज को रसद मिलना बन्द हो गया था। साथ ही फौज के सैनिक भारी संख्या में या तो मार दिये गये या गिरफ्तार कर लिये गये। 'आजाद हिन्द फौज' की संरचना ने ब्रिटिश सरकार पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव डाला कि भारतीय सिपाहियों के शासन से विमुख हो जाने पर उसकी हालत दयनीय बन सकती है।
'आजाद हिन्द फौज' के गिरफ्तार अफसरों शाह नबाज खान पी0के0सहगल जी0एस0 ढिल्लो आदि पर लाल किले में मुकदमा चलाया गया। शासन के इस कार्य का देशव्यापी विरोध हुआ। फरवरी 1946 में इण्डियन नेवी के नाविकों ने अनेक स्थानों पर विद्रोह किया। नेवी कर्मचारियों ने भी उनका साथ दिया। नाविकों, उनके समर्थकों एवं पुलिस के बीच संघर्ष में बम्बई में लगभग 300 व्यक्ति मारे गये। स्थिति अत्यधिक विस्फोटक हो जाती यदि सरदार पटेल ने मध्यस्थता कर मामले को नहीं संभाला होता, क्योंकि युद्ध के विद्रोही नाविक, अपनी भारी दूरी तक मार करने वाली तोपों का उपयोग करने को तैयार थे और बम्बई शहर का बहुत बड़ा हिस्सा उनकी मार में था।
निरन्तर आन्दोलन एवं उसे प्राप्त भारी समर्थन के कारण ब्रिटिश गुप्तचर विभाग इस नतीजे पर पहुंचा कि यदि उचित समाधान शीघ्र नहीं हुआ तो यह आन्दोलन हिंसक दौर में पहुंच सकता है और उस स्थिति में गोरी चमड़ी ही खतरे में पड़ सकती है। गांधी जी के बीमार होने से उन्हें आगाखां महल, जिसमें वह कैद थे एवं जहां 22 फरवरी 1944 को गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा का देहान्त हो गया था, से छोड़ दिया गया। यह गांधी जी की अन्तिम जेल-यात्रा थी। उन्होंने अपने जीवन के लगभग 2388 दिन जेल में बिताए थे।
1945 में लार्ड वेवेल, जो उस समय भारत के गवर्नर जनरल थे, ने यह घोषणा की कि निकट भविष्य में भारत को 'स्वायत्त शासन' प्रदान करने के लिये शिमला में सम्बन्धित पक्षों का एक सम्मेलन बुलाया जायेगा। उस समय सभी नेता जेल में थे। सभी को छोड़ दिया गया। शिमला सम्मेलन विफल रहा। जुलाई 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हुए, जिसमें सत्ता परिवर्तन हो गया। लेवर सरकार सत्ता में आई, उसने भारत की समस्या को गम्भीरता से हल करने पर विचार किया। भारत--सचिव ने घोषणा की 'भारत की स्वाधीनता पर विचार करने के लिए एक संसदीय आयोग शीघ्र ही भारत की यात्रा करेगा।' यह संसदीय प्रतिनिधि मण्डल बाद में 'केबीनेट मिशन' के रूप में जाना गया। मुस्लिम लीग अलग राज्य की मांग पर लगातार जोर दे रही थी। प्रतिनिधि मण्डल भारत आया, उसने अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को अलग राज्य देने की मांग मंजूर कर ली। अत: मुस्लिम लीग ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया किन्तु कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।
'केबीनेट मिशन' की योजना के अनुसार जब कांग्रेस, लीग एवं सरकार में संविधान की बात चल रही थी, तब अचानक लीग ने अपनी रणनीति बदल दी। वह 'केबिनेट मिशन योजना' की स्वीकृति से मुकर गई और 10 आस्त 1947 को 'सीधी कार्यवाही' दिवस मनाने की घोषणा कर दी। यह साम्प्रदायिक दंगों का निमंत्रण था। इसके साथ ही पूरे देश में दंगों का दौर प्रारम्भ हो गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन मार्च 1947 में वेवेल के स्थान पर लार्ड माउण्टबेटन वाइसराय बनकर भारत आये थे। उन्होंने भारत-विभाजन घोषित कर दिया। जिन प्रान्तों में मुसलमानों का बहुमत था, उनको मिलाकर पाकिस्तान बना दिया गया। 14-15 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि में भारत स्वतंत्र हो गया।
स्वतंत्रता के दिन जब पूरा देश सदियों की गुलामी से मुक्त होकर खुशियां मना रहा था तब शांति का मसीहा, अहिंसा का पुजारी, स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रधार बंगाल में 'नोआखली' में दंगों के पीड़ितों के गहरे जख्मों पर मरहम पट्टी कर रहा था। बी0बी0सी0 के संवाददाता ने जब देश को सन्देश देने की बात गांधी जी से कही तो उन्होंने कहा- 'दुनियां से कह दो गांधी अंग्रेजी नहीं जानता।'
000 - राष्ट्रगान में जैन हमारे देश का राष्ट्रगान 'जनगणमन-अधिनायक जय हे' है। इसके रचयिता विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं। इसका सर्वप्रथम गायन 27 दिसम्बर 1911 को 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के अधिवेशन में हुआ था। स्वतंत्रता के पश्चात् 24 जनवरी 1950 को यह राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृत हुआ। इस गान में पाँच खण्ड हैं, किन्तु पहला खण्ड ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृत है। इसके दूसरे खण्ड में जैन शब्द भी आया है। सम्पूर्ण राष्ट्रगान इस प्रकार हैजनगणमन-अधिनायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। जनगण-पथपरिचायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय है।। विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधितरंग घोर तिमिरघन निबिड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे तब शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे, जाग्रत छिल तब अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
गाहे तव जय गाथा। दु:स्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके, जनगण-मंगलदायक जय हे भारत-भाग्यविधाता।
स्नेहमयी तुमि माता। जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। जनगण-दु:खत्रायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। अहरह तव आह्वान प्रचारित, शनि तव उदार वाणी जय हे,जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हिंदु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान रिव्रस्टानी रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले, परब पश्चिम आसे तव सिंहासन - पाशे गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवन रस ढाले।
प्रेमहार हय गाथा। तव करुणारुण-रागे निद्रित भारत जागे जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारत-भाग्यविधाता।
तव चरणे नत माथा। जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। जय जय जय हे, जय राजेश्वर, भारत-भाग्यविधाता। पतन-अभ्युदय-बंधुर पन्था, युगयुगधावित यात्री, जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हे चिरसारथि, तव रथचक्रे-मखरित पथ दिन रात्रि दारुण-विप्लव- माझे , तव शंखध्वनि बाजे ,
संकटदु: खत्राता।
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1857
1958
प्रथम खण्ड
उपक्रम : तीन
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
प्रथम स्वाधीनता संघर्ष ।
( इस संघर्ष के लिए 31 मई तारीख तय की गई थी, पर सेना द्वारा मेरठ में चरबी वाले कारतूसों को खोलने से मना करने आदि पर 10 मई को ही सशस्त्र विद्रोह प्रारम्भ हो गया । ) (19 जनवरी) अमर शहीद लाला हुकुमचन्द जैन, मिर्जा मुनीर बेग व फकीरचन्द जैन को हांसी में फांसी ।
1858
1858
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1898-99
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1914-1918
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1919
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(18 जून ) महारानी लक्ष्मीबाई का बलिदान ।
(22 जून) ग्वालियर के खजांची अमरचन्द बांठिया को ग्वालियर के सराफा में नीम के पेड़ पर लटकाकर फांसी ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विधिवत् स्थापना (यद्यपि इसकी नींव 1883 में ही रखी जा चुकी थी।) दिसम्बर 1885 में बम्बई में इसका प्रथम अधिवेशन हुआ, जिसमें 72 प्रतिनिधि शामिल हुए।
बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में 'होमरूल बिल' या 'होमरूल स्कीम' पास।
चाफेकर बन्धुओं (दामोदर हरि, वासुदेव हरि, बालकृष्ण हरि) को रेंड हल्ला में फांसी । बंग-भंग आन्दोलन ।
मुस्लिम लीग की स्थापना ।
सूरत में सम्पन्न कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस, उदारवादी (नरम दल) तथा ग्रवादी (गरम दल) दलों में विभाजित ।
खुदीराम बोस (आयु 16 वर्ष) को फांसी की सजा ।
प्रथम विश्वयुद्ध या महायुद्ध ।
अमर शहीद मोतीचन्द शाह को आरा के महन्त हत्याकाण्ड में फांसी को सता
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महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से वापिस आये। प्रथम महायुद्ध के बीच गांधी जी न युद्ध प्रयासों में अंग्रेजी सरकार की पूरी सहायता की. सरकार ने उन्हें 'कंसरे हिन्द स्वर्णपदक से विभूषित किया।
रोलेक्ट एक्ट, जस्टिस्ट रोलर के सभापतित्व में बना। इस एक्ट के अन्तर्गत देश में आन्तरिक शान्ति बनाये रखने के बहाने अंग्रेज नौकरशाही जिसको चाह, जब तक चाहे, बिना कोई मुकदमा आदि चलाये जेल में डाले रख सकती थी। सरकार को इस दमन नीति ने ही गांधी जी को राजभक्त से विद्रोही बना दिया।
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1919
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1920-21
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन (13 अप्रैल) जलियां वाला बाग काण्ड (इस काण्ड में ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडबर्ड हैरी डायर ने निहत्थी जनता पर तब तक गोली चलवाई जब तक सारा बारूद समाप्त नहीं हो गया)। लाला लाजपतराय की अध्यक्षता में कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन, जिसमें कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने की बात तय की। बाद में नागपुर में हुए वार्षिक अधिवेशन में उक्त मत की पुष्टि की गई। असहयोग आन्दोलन के फलस्वरूप स्वदेशी का प्रचार और भावना बढ़ी, विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी, शराब की दुकानों पर पिकेटिंग की गयी। गाँधी जी द्वारा (अंग्रेजों द्वारा प्रथम महायुद्ध के समय प्रदत्त) 'केसरे हिन्द' खिताब वापिस। साथ ही सैकड़ों लोगों द्वारा ब्रिटिश सरकार से मिले खिताब वापिस। (31 जुलाई) लोकमान्य तिलक का बम्बई में देहावसान। (17 नव0) प्रिंस ऑफ वेल्स का बम्बई आगमन, विरोध में बम्बई में हड़ताल। असहयोग आन्दोलन में लगभग 50 हजार व्यक्तियों द्वारा गिरफ्तारियाँ दी गईं। (अगस्त) मालावार में 'मोपला विद्रोह', जिसमें मोपलों ने अंग्रेजों के साथ अनेक हिन्दू स्वदेशवासियों की हत्या कर दी। (5 फरवरी) गोरखपुर जिले का 'चौरा चौरी काण्ड', जिसमें क्रोध से उतावली भीड़ ने पुलिस के 22 आदमियों को थाने के अन्दर जला दिया। तब गांधी जी ने तत्काल आन्दोलन बन्द करने का आदेश दिया। पं0 मोतीलाल नेहरू व चितरंजन दास द्वारा 'स्वराज्य दल' का संगठन। कांग्रेस द्वारा मद्रास अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य' घोषित। 'काकोरी रेल काण्ड' में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल तथा रोशनसिंह को क्रमश: गोंडा, फैजाबाद, गोरखपुर तथा इलाहाबाद जेल में फाँसी। (30 अक्टूबर) साइमन कमीशन के भारत आगमन पर 'साइमन वापिस जाओ' के नारे लगाते लाला लाजपतराय पर पुलिस की लाठियों की बौछार, उनका अमर वाक्य-'मेरे ऊपर जो लाठियों के प्रहार किये गये हैं, वही एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य की शवपेटी में कीलें साबित होंगे।' प्रसिद्ध हुआ। (17 नव0) लाला लाजपतराय का बलिदान। पटेल के नेतृत्व में सूरत जिले के बारडोली के किसानों को लगान बन्दी सत्याग्रह में आशातीत सफलता, तभी से पटेल 'सरदार पटेल' कहलाये। (23 सित)) जतीनदास की राजनैतिक बन्दियों से किये जाने वाले दुर्व्यवहार के विरोध में 62 दिन तक भूख हड़ताल कर 63वें दिन मृत्यु।
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(11 फरवरी) कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा गांधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दिया गया। (12 मार्च) गांधी जी का दांडी मार्च प्रारम्भा गांधी जी अपने साथ चुने हुए 79 अनुयायियों को लेकर चले और 200 मील की यात्रा उन्होंने 24 दिन में पूरी की, इस यात्रा में महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराभाई ने किया था। महिलायें पहली बार गांधी जी के आह्वान पर हजारों की संख्या में जेल गईं। (6 अप्रैल) यात्रा के अन्त में उन्होंने नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया। सारे देश में जगह-जगह नमक बनाकर कानून तोड़ा गया। (23 अप्रैल) पेशावर में सत्याग्रह के दौरान सैकड़ों पठानों को अमानवीय नृशंसता के साथ भून दिया गया। (12 नवम्बर) लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ, जो 19 जनवरी 1931 तक चला। (27 फरवरी) इलाहाबाद के अल्फ्रेंड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद का बलिदान। (5 मार्च) 'गांधी-इर्विन समझौता', जिसके अनुसार सभी अहिंसक राजनैतिक बन्दी रिहा किये जायेगें, आन्दोलन स्थगित। (23 मार्च) सांडर्स हत्याकाण्ड में भगतसिंह, सुखदेव तथा शिवनारायण राजगुरु को लाहौर जेल में फाँसी। (7 सितम्बर से । दिसम्बर) लन्दन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन। गांधी इर्विन समझौता लागू न होने तथा बातचीत असफल होने से पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ। (16 अगस्त) साम्प्रदायिक पंचाट (कम्युनल एवार्ड) प्रकाशित। इसमें सम्प्रदायों के आधार पर पृथक्-पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गयी थी। भारतीय समाज के जितने तरह के विभाजन सम्भव थे वे सभी पंचाट ने करने का प्रयास किया। (नव-दिस0) लन्दन में तीसरा गोलमेज सम्मेलन। (जून) गांधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित, पर व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाते रहने का आदेश। (अप्रैल) सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित। (सित0) द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ होने पर भारत के वायसराय द्वारा केन्द्रीय या प्रान्तीय विध न मण्डलों की सलाह के बिना ही भारत द्वारा जर्मनी के विरुद्ध ब्रिटेन के साथ लड़ाई में शामिल होने की घोषणा। (21 जून) ऊधमसिंह को लन्दन में फाँसी। (अगस्त) मुस्लिम लीग द्वारा अपने लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान-प्रस्ताव पारित। (नव0) गांधी जी द्वारा सीमित व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारम्भ। प्रथम सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे (इस सत्याग्रह में लगभग 25 हजार नेता जेल गये)
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40.
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन (जनवरी) सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर जर्मनी पहुंचे। (मार्च) सुभाषचंद्र बोस द्वारा बर्लिन रेडियो से अपना पहला सन्देश प्रसारित। बम्बई में 5 अगस्त को कांग्रेस कार्यकारिणी और 7 अगस्त को महासमिति की बैठक। (8 अगस्त. रात्रि) 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित। गांधी जी द्वारा 'करो या मरो' संघर्ष की घोषणा। (1) अगस्त को तड़के) गांधी जी एवं कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्य गिरफ्तार। पुराने नेताओं के गिरफ्तार होने पर युवकों द्वारा आन्दोलन का नेतृत्व। (सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1942 के आन्दोलन में 1028 व्यक्ति मरे और 3200 घायल हुए। 1942 के आखिरी पाँच महीनों में 60 हजार से अधिक व्यक्ति गिरफ्तार किये गये और 18 हजार को बिना कोई मुकदमा चलाये जेलों में भेज दिया गया। गैर सरकारी अनुमानों के अनुसार मृतकों की ही संख्या 10 हजार से 40 हजार के बीच थी, घायलों और जेल यात्रियों की संख्या लाखों में थी)। (16 अगस्त) मण्डला (म0प्र0) में उदयचन्द जैन (19 वर्ष) की पुलिस की गोली से शहादत। (22 अगस्त) गढ़ाकोटा में साबूलाल जैन की पुलिस की गोली से शहादत। (10 फरवरी) गांधी जी द्वारा आगाखां पैलेस में, जहाँ वह नजरबंद थे, 21 दिन का उपवास। 6 मई 1944 को गांधी जी रिहा हुए। बंगाल का दुर्भिक्ष। इस दुर्भिक्ष को संसार का सबसे बड़ा मानव कृत दुर्भिक्ष कहा गया है। एक तरफ अनाज के भण्डारों में अनाज सड़ रहा था, दूसरी ओर अकाल पड़ा था। कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार लगभग 34 लाख व्यक्ति इस अकाल में भूख से मारे गये, लगभग 46 प्रतिशत आबादी भयंकर बीमारियों की शिकार हुई। कहा जाता है कि महायुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार को आंशका थी कि यदि बंगाल पर जापान का हमला हआ तो नेताजी सभाष चन्द बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज के कारण बंगाल की जनता ब्रिटिश सरकार की सहायता न कर हमलावरों की सहायता करेगी। अत: उसने भीषण अकाल की स्थिति पैदा कर दी। (18 फरवरी) बम्बई में नौसेना के एक भाग द्वारा अंग्रेज अफसरों के विरुद्ध विद्रोह। मद्रास, करांची और कलकत्ता में भी नौसेना द्वारा विद्रोह।
अगस्त) हीरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम डाले जाने और जापान द्वारा हथियार डाल दर पर विश्वयुद्ध समाप्त। ( 19 सितम्बर ) भारत में आम चुनावों की घोषणा तथा ब्रिटिश संसद में सम्राट् द्वारा- 'भारतीय जनमत के नेताओं के सहयोग से भारत में पूर्ण स्वराज्य को यथाशीघ्र स्थापना के पूरे प्रयास क अश्वासन।'
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श्री श्व
अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन की स्मृति में, हांसी (हरियाणा) में निर्मित लाला हुकुमचंद जैन पार्क बीच में उनका स्टेच्यू लगा है।
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अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन की कोठी का बाह्य भाग, जिसके सामने उन्हें फांसी दी गई थी।
चित्र सौजन्य - श्री अजित कुमार जैन, हांसी (हरियाणा)
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शिला
अमर शहीद अमर चंद बांठिया
ग्वालियर (म०प्र०) के सर्राफा बाजार का नीम का पेड़, जिस पर लटकाकर 1857 के अमर शहीद अमरचंद बांठिया को फांसी दी गई
थी उनका शव तीन दिन तक लटका रहा था
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चित्र साभार-'अमर शहीद अमर चंद बांठिया' पुस्तक से चित्र नगरपालिका संग्रहालय, ग्वालियर (म0प0 ) में है।
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Mana
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Pahsaaichibasinipalaviasbaithilndian
अमर शहीद अमर चंद बांठिया का ग्वालियर के सर्राफा बाजार
(जहाँ उन्हें फांसी दी गई थी) में स्थित स्टेच्यू चित्र सौजन्य-श्री वीरेन्द्र कुमार जैन, ग्वालियर (म0प्र0)
अमर शहीद अण्णा साहेब पत्रावले का सांगली (महाराष्ट्र)
स्थित स्टेच्यू चित्र सौजन्य-श्री आर. एन. बालोल, सांगली (महाराष्ट्र)
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H
A2008
A
PHER
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अमर शहीद वीर भूपाल अण्णाप्पा अणस्कुरे
अमर शहीद सिंघई प्रेमचंद जैन दमोह (म.प्र.), जिन्हें जेल में जहर दिया गया था।
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चित्र माभार--सन्मति ( पराठी), अगस्त १९५७
चित्र सौजन्य- श्री संतोष कमार सिंघई, दमोह (म.प्र.)
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कीम
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Dainita
अमर शहीद वीर उदयचंद जैन का स्मारक मण्डला (म०प्र०) अमर शहीद वीर उदयचंद जैन का एक और स्मारक, मण्डला (म०प्र०)
चित्र सौजन्य-श्री कुबेरचंद जैन, कुबेर मेडीकल स्टोर, मण्डला ( म०प्र० )
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लजन स्मारक १६४
सागर (म०प्र०) में निर्मित अमर शहीद साबूलाल जैन स्मारक का प्रवेश द्वार
सागर ( म०प०) में निर्मित अमर शहीद साबूलाल जैन स्मारक
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'वीरसावलाल जन
गढ़ाकोटा (सागर) (म०प्र०) में निर्मित अमर शहीद साबूलाल जैन स्मारक
चित्र सौजन्य-श्री डालचंद जैन, सागर ( म०प्र०)
अमर शहीद साबूलाल जैन गढ़ाकोटा, सागर (म०प्र०)
चित्र सौजन्य-श्री डालचंद जैन, सागर ( म0प्र0)
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सिग्राम सेनानी परिचयपत्र
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स्वतंत्रतासग्राम सेनानी परिक
सिलौड़ा सिहोरा) जबलपुरन प्र.) शहीद श्री कन्धीलाल मटरूठालजी जैन स्व. वनवारीलाल दालचन्द्र राय
॥ शरदा प्रसादछोटेलाल राय " नन्दलाल कंठलाल राय । बाबूलाल बिहारीलाल जैत
फलदगणेशप्रसादसोती डोटेलाल मातेराम सोनी न "सन्तरामलल्लराम सोनी
दादुरामनाथूराम तिवारी " नर्मदाप्रसाद साधूराम दुबे "संधीलाल बब्बूलालअवस्थी " अम्बिका प्रसादसरयप्रसाढ़गोत्या, श्रीमतीसुन्दरचाई अम्बिका प्रसारनीतम श्री लक्ष्मीदास नारायनदास राय " जगदीश प्रसादहरदेव प्रसाद राय 1 प्रेमदनकालास राय (सोनेलाल रामाधीन राय
हरचंद हरदेव प्रसाद राय " कुंजबिहारीगजाधर प्रसाद राय " चन्द्रमान रधुनाथ प्रसाद राय " सावलाल माधोप्रसाद सोनी " टिललाईराम छोटेलाल रजक
छदाभीलाल जवाहरलालदहायत 2 सीटेलाल दादुराम बर्मन " रामनाथ जगन बदई .
" तीरथ प्रसाद अम्बिका प्रसाद गौतम सिलोंडी (जबलपुर) म०प्र० में निर्मित शहीद स्तम्भ (बगल के चित्र) में अकिंत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिचय क्रमाङ्क । पर शहीद
कन्धीलाल मटरूलाल जैन का नाम अंकित है।
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सिलोंडी (जबलपूर) म०प्र० में निर्मित शहीद स्तम्भ जिसमें अमर
शहीद कन्धीलाल जैन का नाम अंकित है।
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प्रथम खण्ड
1946 47 1947
1947
1947
देशभर में भीषण साम्प्रदायिक दंगे। (20 फरवरी) ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटनी द्वारा हर हालत में जून 1948 से पहले भारत में ब्रिटिश शासन का अन्त कर सत्ता जिम्मेदार भारतीय हाथों में सौंपने की घोषणा। (मार्च) वायसराय लार्ड माउण्टबेटन का भारत आगमन और 15 अगस्त 1947 को भारतीय हाथों में सत्ता सौंपने की घोषणा। माउण्टबेटन द्वारा विभाजन की योजना तैयार। विवशतावश कांग्रेस द्वारा योजना को स्वीकारोक्ति, पर गांधी जी द्वारा विरोध करते हुए घोषणा कि 'भारत का विभाजन मेरे शव पर ही हो सकेगा।' (18 जुलाई) 'भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम' ब्रिटिश संसद में पास, जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 से भारत और पाकिस्तान दो 'डोमीनियनों' की स्थापना हो जायेगी, आदि। (15 अगस्त) भारत स्वतन्त्र राष्ट्र घोषित, सारे देश में स्वतन्त्रता का जश्न।
000
1947
1947
भारतीय संविधान में प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव और । ।
समान भ्रातृत्व की भावना
अनुच्छेद 51-ए भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य (ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो
धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं। हमारी मिली-जुली संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसको बनाए
रखें। (छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और
उसका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। (झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें। (अ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत्
प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरन्तर नई उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए ऊँचा उठता जाए।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
उपक्रम: चार
अमर जैन शहीद
अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन (कानूनगो) 1857 का स्वातन्त्र्य समर भारतीय राजनैतिक इतिहास की अविस्मरणीय घटना है। यद्यपि इतिहास के कुछ ग्रन्थों में इसका वर्णन मात्र सिपाही विद्रोह या गदर के नाम से किया गया है, किन्तु यह अक्षरशः सत्य है कि भारतवर्ष की स्वतन्त्रता की नींव तभी पड़ चुकी थी। विदेशी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध ऐसा व्यापक एवं संगठित विद्रोह अभूतपूर्व था। इस समर में अंग्रेज छावनियों के भारतीय सैनिकों का ही नहीं, राजच्युत अथवा असन्तुष्ट अनेक राजा-महाराजाओं, बादशाह-नवाबों, जमींदारों- ताल्लुकदारों का ही नहीं, सर्व साधारण जनता का भी सक्रिय सहयोग रहा है। विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने व विदेशी शासकों को देश से खदेड़ने का यह जबरदस्त अभियान था। इस समर में छावनियां नष्ट की गईं, जेलखाने तोड़े गये, सैकड़ों छोटे-बड़े खूनी संघर्ष हुए, भयंकर रक्तपात हुआ, अनगिनत सैनिकों का संहार हुआ, अनेक माताओं को गोदें सूनी हो गईं, अबलाओं का सिन्दूर पुछ गया। यद्यपि अनेक कारणों से यह समर सफल नहीं हो सका, पर आजादी के लिए तड़प का बीज-बपन इस समर में हो गया था।
इस स्वातन्त्र्य समर में हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख आदि सभी जातियों व धर्मों के देशभक्तों ने अपना योगदान दिया। अंग्रेजी सरकार को जिस व्यक्ति के सन्दर्भ में थोड़ा सा भी यह ज्ञात हुआ कि इसका सम्बन्ध विद्रोह से है, उसे सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। अनेक देशभक्तों को सरेआम कोड़े लगाये गये, तो अनेक के परिवार नष्ट कर दिये गये, सम्पत्तियां लूट ली गईं, पर ये देशभक्त झुके नहीं। आज भारतवर्ष की स्वतन्त्रता का महल इन्हीं देशभक्तों एवं अमर शहीदों के बलिदान पर खड़ा है।
1857 के इस क्रान्ति-यज्ञ में अपने जीवन की आहुति देने वालों में दो अमर जैन शहीद भी थे। प्रथम लाला हुकुमचंद जैन और दूसरे थे श्री अमर चन्द बांठिया।
लाला हुकुमचंद जैन का जन्म 1816 में हांसी (हिसार) हरियाणा के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में श्री दुनीचंद जैन के घर हुआ। आपका गोत्र गोयल और जाति अग्रवाल जैन थी। आपकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई। जन्मजात प्रतिभा के धनी हुकुमचन्द जी की फारसी और गणित में विशेष रुचि थी, इन विषयों पर आपने कई पुस्तकें भी लिखीं। अपनी शिक्षा एवं प्रतिभा के बल पर आपने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के दरबार में उच्च पद प्राप्त कर लिया और बादशाह के साथ आपके बहुत अच्छे सम्बन्ध हो गये।
1841 में मुगल बादशाह ने आपको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो एवम् प्रबन्धकर्ता नियुक्त किया। आप सात वर्ष तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे, फिर इलाके के प्रबन्ध के लिए हांसी लौट आये। इस बीच अंग्रेजों ने हरियाणा प्रान्त को अपने अधीन कर लिया। हुकुमचंद जी ब्रिटिश शासन में कानूनगो बने रहे, पर आपकी भावनायें सदैव अंग्रेजों के विरुद्ध रहीं।
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प्रथम खण्ड
श्री जैन उच्च कोटि के दानी, उदार हृदय और परोपकारी थे, आपने गांवों में मन्दिरों, शिवालयों, कुओं व तालाबों का निर्माण कराया तथा टूटे हुए मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया।
1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब लाला हुकुमचंद की देशप्रेम की भावना अंगडाई लेने लगी। दिल्ली में आयोजित देशभक्त नेताओं के उस सम्मेलन में, जिसमें तात्या टोपे भी उपस्थित थे, हुकुमचंद जी उपस्थित थे। बहादुरशाह जफर से उनके गहरे सम्बन्ध पहले ही थे अतः आपने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने की पेशकश की। आपने उपस्थित नेताओं और बहादुरशाह जफर को विश्वास दिलाया कि 'वे इस स्वतंत्रता संग्राम में अपना तन-मन और धन सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हैं।' हुकुमचंद जी की इस घोषणा के उत्तर में मुगल बादशाह ने लाला हुकुमचंद को विश्वास दिलाया कि वे अपनी सेना, गोला-बारूद तथा हर तरह की युद्ध सामग्री सहायता स्वरूप पहुँचायेंगे। हुकुमचंद जी इस आश्वासन को लेकर हांसी आ गये।
हांसी पहुंचते ही आपने देशभक्त वीरों को एकत्रित किया और जब अंग्रेजों की सेना हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही थी, तब उस पर हमला किया और उसे भारी हानि पहुंचाई। आपके और आपके साथियों के पास जो युद्ध सामग्री थी वह अत्यन्त थोड़ी थी, हथियार भी साधारण किस्म के थे, दुर्भाग्य से जिस बादशाही सहायता का भरोसा आप किये बैठे थे, वह भी नहीं पहुँची, फिर भी आपके नेतृत्व में जो वीरतापूर्ण संघर्ष हुआ वह एक मिशाल है। इस घटना से आप हतोत्साहित नहीं हुए, अपितु अंग्रेजों को परास्त करने के उपाय खोजने लगे।
लाला हुकुमचंद व उनके साथी मिर्जा मुनीर बेग ने गुप्त रूप से एक पत्र फारसी भाषा में मुगल सम्राट को लिखा (कहा जाता है कि यह पत्र खून से लिखा गया था)*, जिसमें उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास दिलाया, साथ ही अंग्रेजों के विरुद्ध अपने घृणा के भाव व्यक्त किये थे और अपने लिए युद्ध-सामग्री की मांग की थी। लाला हुकुमचंद मुगल सम्राट के उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए हांसी का प्रबन्ध स्वयं सम्हालने लगे। किन्तु दिल्ली से पत्र का उत्तर ही नहीं आया। इसी बीच दिल्ली पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट गिरफ्तार कर लिये गये।
___15 नवम्बर 1857 को बादशाह की व्यक्तिगत फाइलों की जांच के दौरान लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला वह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। यह पत्र दिल्ली के कमिश्नर श्री सी०एस० सॉडर्स ने हिसार के कमिश्नर श्री नव कार्टलैन्ड को भेज दिया और लिखा कि- 'इनके विरुद्ध शीघ्र ही कठोर कार्यवाही की जाये।'
इस पत्र की प्राप्ति के लिए हमने राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली के अनेक चक्कर लगाये, रजिस्टर्ड पत्र भी डाले, अन्त में अभिलेखागार ने अपने पत्र दि०6 नवम्बर 1995 संख्या मि० सं० 9/2/1/90 पी० ए० में लिखा कि-'इस विभाग में उक्त विषय सं सम्बन्धित विस्तृत खोज की गई, परन्तु वाछित पत्र उपलब्ध नहीं हो सका। आपको यह सुझाव दिया जाता है कि आप निदेशक अभिलेखागार, हरियाणा से सम्पर्क करें। शायद उनके पास वांछित सूचना प्राप्त हो सके।' निदेशक, अभिलेखागार, हरियाणा से सम्पर्क करने पर उन्होंने अपने पत्र 20 फरवरी 1996 संख्या 11/6-91 अभि० 453 में लिखा कि 'कार्यालय में आकर यहाँ उपलब्ध अभिलेखों में वांछित पत्र की खोज कर लें।'
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
पत्र प्राप्त होते ही कलेक्टर एक सैनिक दस्ते को लेकर हांसी पहुंचे और हुकुमचंद तथा मिर्जा मुनीर बेग के मकानों पर छापे मारे गये। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, साथ में हुकुमचंद जी के 13 वर्षीय भतीजे फकीर चंद को भी गिरफ्तार कर लिया गया। हिसार लाकर इन पर मुकदमा चला, एक सरसरी और दिखावटी कार्यवाही के पश्चात् 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट जॉन एकिंसन ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना दी। फकीर चंद को मुक्त कर दिया गया।
19 जनवरी 1858 को लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को लाला हुकुमचंद के मकान के सामने (जहाँ नगर पालिका हांसी ने 22-1-1961 को इस शहीद की पावन स्मृति में 'अमर शहीद हुकुमचंद पार्क' की स्थापना की है। ) फांसी दे दी गई। क्रूरता की पराकाष्ठा तो तब हुई जब लाला जी के भतीजे फकीर चंद को, जिसे अदालत ने बरी कर दिया था, जबरदस्ती पकड़कर फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
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भारतवर्ष के इतिहास का वह क्रूरतम अध्याय था। अंग्रेजों की क्रोधाग्नि इतने से भी शान्त नहीं हुई। इनके रिश्तेदारों को इनके शव अन्तिम संस्कार हेतु नहीं दिये गये, अपितु उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए लाला हुकुमचंद के शव को जैनधर्म के विरुद्ध भंगियों द्वारा दफनाया गया और मिर्जा मुनीर बेग के शव को मुस्लिम परम्पराओं के विरुद्ध जला दिया गया।
शहीद होने के समय हुकुमचंद जी अपने दो पुत्रों को छोड़ गये थे जिनमें न्यामत सिंह की आयु आठ वर्ष और सुगनचंद की आयु मात्र उन्नीस दिन थी। आपकी धर्मपत्नी दोनों बच्चों को लेकर आश्रय के लिए गुप्त रूप से किसी सम्बन्धी के यहाँ चलीं गईं। प्रशासन उन्हें खोजता रहा पर सफल नहीं हुआ।
लाला जी के बाद उनकी सम्पत्ति कौड़ियों के भाव नीलाम कर दी गई। उनकी सम्पन्नता का परिचय इसी से मिल जाता है कि लगभग 9000 एकड़ जमीन उनके पास थी। अन्य वस्तुओं में लगभग 400 तोले सोना 3300 तोला चांदी, 1300 चांदी के सिक्के, 107 मोहरें आदि ।
हरियाणा के प्रसिद्ध कवि श्री उदय भानु 'हंस' ने ठीक ही लिखा है
'हांसी की सड़क विशाल थी, हो गई लहू से लाल थी । यह नर-पिशाच का काम था, बर्बरता का परिणाम था। श्री हुकुमचन्द रणवीर था, संग मिर्जा मुनीर बेग था । दोनों स्वदेश के भक्त थे, जनसेवा में अनुरक्त थे। कोल्हु में पिसवाये गये, टिकटी पर लटकाये गये। हिन्दू को दफनाया गया, मुस्लिम शव झुलसाया गया। कितने जन पकड़े घेरकर, फिर बड़ पीपल के पेड़ पर । कीलों से टँके गरीब थे, ईसा के नये सलीब थे। '
लाला हुकुमचन्द जैन जैसे अमर शहीदों पर केवल जैन समाज को ही नहीं सम्पूर्ण भारतीय समाज को गर्व है। लाला हुकुमचंद की स्मृति में हांसी नगरपालिका ने 1961 में अमर शहीद हुकुमचन्द पार्क बनवाया, जिसमें लाला जी की आदमकद प्रतिमा लगी है।
आ0- (1) Who's who of Indian Martyrs. Volume III. Page, 56, 57 (2) सन् सतावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग 3, पृष्ठ 68 70 (3) डॉ० रत्नलाल जैन, हाँसी का आलेख (4) शोधादर्श, फरवरी 1986 (5) The Martyrs, Page 10-13 (6) जैन दर्पण, दिसम्बर 1995 (7) अमृतपुत्र, पृष्ठ 27 एवं 73
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प्रथम खण्ड
अमर शहीद फकीरचंद जैन भारतवर्ष में स्वातन्त्र्य समर में हजारों निरपराध मारे गये, और यदि सच कहा जाये तो सारे निरपराध ही मारे गये, आखिर अपनी आजादी की मांग करना कोई अपराध तो नहीं है। ऐसे ही निरपराधियों में थे 13 वर्षीय अमर शहीद फकीरचंद जैन। फकीरचंद अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन के भतीजे थे। हुकुमचंद जैन ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हुकुमचंद जैन हांसी के कानूनगो थे, बहादुरशाह जफर से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, उनके दरबार में श्री जैन सात वर्ष रहे फिर हांसी (हरियाणा) के कानूनगो होकर आप अपने गृहनगर हांसी लौट आये। आपने मिर्जा मुनीर बेग के साथ एक पत्र बहादुरशाह जफर को लिखा, जिसमें अंग्रेजों के प्रति घृणा और उनके विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास बहादुरशाह जफर को दिलाया था। जब दिल्ली पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तब बहादरशाह जफर की फाइलों में यह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। तत्काल हकमचंद जी को गिरफ्तार कर लिया गया, साथ में उनके भतीजे फकीरचंद को भी। 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना दी। फकीर चंद को मुक्त कर दिया गया।
10 जनवरी 1858 को हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को हांसी में लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फांसी दे दी गई। 13 वर्षीय फकीरचंद इस दृश्य को भारी जनता के साथ ही खड़े-खड़े देख रहे थे, पर अचानक यह क्या हुआ ? गोराशाही ने बिना किसी अपराध के, बिना किसी वारन्ट के उन्हें पकड़ा और वहीं फांसी पर लटका दिया। इस प्रकार अल्पवय में ही यह आजादी का दीवाना शहीद हो गया।
आ)- (1) Who's who of Indian Martyrs, Volume III, Page, 56.57 (2) सन् सत्तावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग 3, पृष्ठ 68-70 (3) डॉ० रललाल जैन, हाँसी का आलेख (4) शोधादर्श. फरवरी 1986 (5) The Martyrs, Page 10-13 (6) जैन दर्पण, दिसम्बर 1995 (7) अमृतपुत्र, पृष्ठ 27 एवं 73
000
महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलाई उसकी प्रेरणा उन्हें अपने वैष्णव और जैन संस्कारों से मिली थी। गांधी जी जब अध्ययनार्थ विदेश जाने लगे और उनकी माता ने उन्हें इस भय से भेजने में आना-कानी की, कि विदेश में जाकर यह माँस-मदिरा भक्षण करेगा तब जैन मुनि बेचरजी स्वामी ने उन्हें माँसादि सेवन न करने की प्रतिज्ञा दिलाई थी। स्वयं गांधी जी ने लिखा है'बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियों में से बने हुए एक जैन साधु थे, ............उन्होंने मदद की। वे बोले-'मैं इस लड़के से इन तीनों चीजों के व्रत लिवाऊँगा। फिर इसे जाने देने में कोई हानि नहीं होगी।' उन्होंने प्रतिज्ञा लिवाई और मैंने माँस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। माताजी ने आज्ञा दी।'
- सत्य के प्रयोग, पृ० 32
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद अमरचंद बांठिया भारतवर्ष का प्रथम सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम 1857 ई0 में प्रारम्भ हुआ था। इसे स्वाधीनता संग्राम की आधारशिला कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस संग्राम में जहाँ महारानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, मंगल पांडे आदि शहीदों ने अपनी कुर्बानी देकर आजादी का मार्ग प्रशस्त किया, वहीं सहस्रों रईसों और साहूकारों
जोरियों के मुंह खोलकर संग्राम को दृढता प्रदान की। तत्कालीन ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष अमर शहीद अमरचंद बांठिया ऐसे ही देशभक्त महापुरुषों में से थे, जिन्होंने 1857 के महामसर में जूझ रहे क्रान्तिवीरों को संकट के समय आर्थिक सहायता देकर मुक्ति-संघर्ष के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।
अमरचंद बांठिया के पूर्वज बांठिया गोत्र के आदि पुरुष श्री जगदेव पंवार (परमार) क्षत्रिय ने 9-10वीं शताब्दी 5 अन्य मतानसार जगदेव के पत्र या पौत्र माधव देव/माधवदास ने 12वीं शताब्दी) में जैनाचार्य भावदेव सूरि से प्रबोध पाकर जैन धर्म अंगीकार किया था और ओसवाल जाति में शामिल हुए थे। कुछ इतिहासकार विक्रम की 12 वीं शताब्दी में रणथम्भौर के राजा लालसिंह पँवार के पुत्रों द्वारा जैनाचार्य विजय बल्लभ सूरि से प्रतिबोध पाकर जैन धर्म अंगीकार कर लेने से उनके ज्येष्ठ पुत्र बंठ से बांठिया गोत्र की उत्पत्ति मानते हैं। कुछ इतिहासकार माधवदेव द्वारा दानवीरता की अनुकरणीय परम्परा का श्रीगणेश करने के कारण (धनादि को बांटने के कारण) बांटिया बांठिया उपनाम की प्रसिद्धि मानते हैं। स्पष्ट है कि अमरचंद जी को दानवीरता का गुण जन्मजात ही मिला था। अमरचंद बांठिया का परिवार व्यापार/व्यवसाय हेतु सन् 1835 (वि०सं० 1892) में फलवृद्धि (फलौदी) में भूमि से प्रकट हुई चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा के चल समारोह में अनेक संघपतियों के परिवार के साथ बीकानेर से ग्वालियर आया और यहीं बस गया। प्रतिमा की प्रतिष्ठा ग्वालियर के हृदय स्थल सर्राफा बाजार के शिखरबन्द जिनालय में संवत् 1893 में हुई थी।
अमरचंद के दादा का नाम खुशालचंद एवं पिता का नाम अबीरचंद था। अमरचंद अपने सात भाइयों (श्री जालमसिंह, सालमसिंह, ज्ञानचंद, खूबचंद, सवलसिंह, मानसिंह, अमरचंद) में सबसे छोटे थे।
अमरचंद बांठिया में धर्मनिष्ठा, दानशीलता, सेवाभावना, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता आदि गुण जन्मजात थे, यही कारण था कि सिन्धिया राज्य के पोद्दार श्री वृद्धिचंद संचेती, जो जैन समाज के अध्यक्ष भी थे, ने अमरचंद को ग्वालियर राज्य के प्रधान राजकोष गंगाजली के कोषालय पर सदर मुनीम (प्रधान कोषाध्यक्ष) बनवा दिया। उस समय सिन्धिया नरेश 'मोती वाले राजा' के नाम से जाने जाते थे। 'गंगाजली' में अटूट धन संचय था, जिसका अनुमान स्वयं सिंधिया नरेशों को भी नहीं था। विपुल धनराशि से भरे इस खजाने पर चांवोमों घण्टे सशस्त्र पुलिस बल का कड़ा पहरा रहता था। कहा जाता है कि ग्वालियर राजघराने में उन दिनों पीढियों स यह आन चली आ रही थी कि न तो कोई राजा अपने राजकोष की सम्पत्ति को देख ही सकता था और न उसमें से कुछ निकाल ही सकता था, अत: गंगाजली की सदैव वृद्धि होती रहती थी। इस अकूत धन संचय को कोषाध्यक्ष के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था।
अमरचंद बांठिया इस खजाने के रक्षक ही नहीं ज्ञाता भी थे, वे चाहते तो अपने लिए मनचाही रत्न राशियाँ निकालकर कभी भी धनकुबेर बन सकते थे। पर बांठिया जी तो जैन धर्म के पक्के अनुयायी थे, जो राजकोष का एक पैसा भी अपने उपयोग में लाना घोर पाप समझते थे।
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प्रथम खण्ड
47
बांठिया जी की दैनिक चर्या बड़ी नियमित थी। प्रातः उठकर जिनेन्द्र देव की अर्चना और यदि कोई मुनि / साधक विराजमान हों तो उनके उपदेश सुनना, समय पर कोषालय जाना, सूर्यास्त से पूर्व भोजन और रात्रि नौ बजे शयन उनके यान्त्रिक जीवन के अंग थे।
'गंगाजली' के खजांची पद को सुशोभित करने के कारण बांठिया जी का आत्मीय परिचय बड़े-बड़े राज्याधिकारियों से हो जाना स्वाभाविक ही था। सेना के अनेक अधिकारियों का आवागमन कोषालय में प्राय: होता रहता था। बांठिया जी के सरल स्वभाव और सादगी ने सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। चर्चा- प्रचर्चा में अंग्रेजों द्वारा भारतवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों की भी चर्चा होती थी। एक दिन एक सेनाधिकारी ने कहा कि 'आपको भी भारत माँ को दासता से मुक्त कराने के लिए हथियार उठा लेना चाहिए। ' बांठिया जी ने कहा- 'भाई अपनी शारीरिक विषमताओं के कारण में हथियार तो नहीं उठा सकता पर समय आने पर ऐसा काम करूँगा, जिससे क्रांन्ति के पुजारियों को शक्ति मिलेगी और उनके हौसले बुलन्द हो जावेंगे। '
ध्यातव्य है कि अंग्रेजों के विरुद्ध जहाँ कहीं भी युद्ध छिड़ता था, वे भारतीय सैनिकों को ही सर्वप्रथम युद्ध की आग में झोंक देते थे। एक वयोवृद्ध सन्यासी ने अमरचंद बांठिया से चर्चा में 1857 के पूर्व की एक घटना सुनाते हुए कहा कि - 700 बंगाली सैनिकों की एक रेजीमेन्ट को अंग्रेज अफसरों ने इसलिए गोलियों से भून दिया था, कि उन्होंने बैलों पर चढ़कर जाने से मना कर दिया था।' ज्ञातव्य है कि भारतीय संस्कृति में गाय हमारी माता है और उसके पुत्र बैल पर चढ़कर जाना पाप माना जाता है। सैनिकों ने इसी कारण बैल की पीठ पर बैठने से मना कर दिया था। यह भी ध्यातव्य है कि गाय बैल की चर्बी लगे कारतूस को मुंह से खोलने के लिए मना करने पर हजारों निरपराध सैनिकों को अंग्रेज अधिकारियों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया था।
ऐसी ही अनेक घटनाओं को सुन-सुनकर बांठिया जी का हृदय भी देश की आजादी के लिए तड़फडाने लगा। इधर मुनिराज के प्रवचन में भी उन्होंने एक दिन सुना कि 'जो दूसरों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे, उसी का जन्म सार्थक है, वह मरणोपरान्त अमर रह सकता है।' यह सुनकर बांठिया जी का निश्चय दृढ से दृढतर और दृढतर से दृढतम हो गया। उन्होंने तय किया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए मुझे जो भी समर्पित करना पड़े, करूँगा। यह अवसर शीघ्र ही उनके सामने आ गया।
1857 की क्रान्ति के समय महारानी लक्ष्मीबाई उनके सेना नायक राव साहब और तात्या टोपे आदि क्रान्तिवीर ग्वालियर के रणक्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध डटे हुए थे, परन्तु लक्ष्मीबाई के सैनिकों और ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों को कई माह से वेतन नहीं मिला था, न ही राशन- पानी का समुचित प्रबन्ध हो सका था। तब बांठिया जी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए क्रान्तिकारियों की मदद की और ग्वालियर का राजकोष लक्ष्मीबाई के संकेत पर विद्रोहियों के हवाले कर दिया।
ग्वालियर राज्य से सम्बन्धित 1857 के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली, राजकीय अभिलेखागार, भोपाल आदि में उपलब्ध हैं। डॉ० जगदीश प्रसाद शर्मा, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने इन दस्तावेजों और अनेक सरकारी रिकार्डों के आधार पर विस्तृत विवरण 'अमर शहीद : अमरचंद बांठिया ' पुस्तक में प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार- 1857 में क्रान्तिकारी सेना जो अंग्रेजी सत्ता को देश
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन से उखाड़ फेंकने हेतु कटिबद्ध होकर ग्वालियर पहुंची थी, राशन पानी के अभाव में उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय हो रही थी। सेनाओं को महीनों से वेतन प्राप्त नहीं हुआ था। 2 जून 1858 को राव साहब ने अमरचंद बांठिया को कहा कि उन्हें सैनिकों का वेतन आदि भुगतान करना है, क्या वे इसमें सहयोग करेंगे अथवा नहीं ? (ग्वालियर रेजीडेंसी फाइल, राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली) तत्कालीन परिस्थितियों में राजकीय कोषागार के अध्यक्ष अमरचंद बांठिया का निर्णय एक महत्त्वपूर्ण निर्णय था, उन्होंने वीरांगना लक्ष्मीबाई की क्रान्तिकारी सेनाओं के सहायतार्थ एक एसा साहसिक निर्णय लिया जिसका सीधा सा अर्थ उनके अपने जीवन की आहुति से था। अमरचंद बांठिया ने राव साहब के साथ स्वेच्छापूर्वक सहयोग किया तथा राव साहब प्रशासनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ग्वालियर के राजकीय कोषागार से समूची धनराशि प्राप्त करने में सफल हो सके। सेन्ट्रल इण्डिया ऐजेंसी आफिस में ग्वालियर रेजीडेंसी की एक फाइल में उपलब्ध विवरण के अनुसार - '5 जून 1858 के दिन राव साहब राजमहल गये तथा अमरचंद बांठिया से गंगाजली' कोष की चाबियां लेकर उसका दृश्यावलोकन किया। तत्पश्चात् दूसरे दिन जब राव साहब बड़े सबेरे ही राजमहल पहुँचे तो अमरचंद उनकी अगवानी के लिए मौजूद थे। गंगाजली कोष से धनराशि लेकर क्रान्तिकारी सैनिकों को 5-5 माह का वेतन वितरित किया गया।'
महारानी बैजाबाई की सेनाओं के सन्दर्भ में भी ऐसा ही एक विवरण मिलता है। जब नरबर में बैजाबाई की फौज संकट की स्थिति में थी, तब उनके फौजी भी ग्वालियर आकर अपने-अपने घोड़े तथा 5 महीने की पगार लेकर लौट गये। इस प्रकार बांठिया जी के सहयोग से संकट ग्रस्त फौजों ने राहत की सांस ली। अमरचंद बांठिया से प्राप्त धनराशि से बाकी सैनिकों को भी उनका वेतन दे दिया गया (ग्वालियर रेजीडेंसी फाइल, 126!, राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली)। 'हिस्ट्री ऑफ दी इण्डिया म्यूटिनी,' भाग-2 के अनुसार भी अमरचंद बांठिया के कारण ही क्रान्तिकारी नेता अपनी सेनाओं को पगार तथा ग्रेच्युटी के भुगतान के रूप में पुरस्कृत कर सके थे। (डा० जगदीश प्रसाद शर्मा का उक्त लेख)।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि 1857 की क्रान्ति के समय यदि अमरचंद बांठिया ने क्रान्तिवीरां की इस प्रकार आर्थिक सहायता न की होती, तो उन वीरों के सामने कैसी स्थिति उत्पन्न होती, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। क्रान्तिकारी सेनाओं को काफी समय से वेतन नहीं मिला था, उनके राशन-पानी की भी व्यवस्था नहीं हो रही थी। इस कारण निश्चय ही क्रान्तिकारियों के संघर्ष में क्षमता, साहस और उत्साह की कमी आती और लक्ष्मीबाई, राव साहब व तात्या टोपे को संघर्ष जारी रखना कठिन पड़ जाता। यद्यपि बांठिया जी के साहसिक निर्णय के पीछे उनकी अदम्य देशभक्ति की भावना छिपी हुई थी, परन्तु अंग्रेजी शब्दकोष में तो इसका अर्थ था "देशद्रोह" या "राजद्रोह" और उसका प्रतिफल था "सजा-ए-मौत''।
अमरचंद बांठिया से प्राप्त इस सहायता से क्रान्तिकारियों के हौसले बुलंद हो गये और उन्होंने अंग्रेजी सेनाओं के दाँत खट्टे कर दिये और ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। बौखलाये हुए ह्यूरोज ने चारों ओर से ग्वालियर पर आक्रमण की योजना बनाई।
योजनानुसार ह्यूरोज ने 16 जून को मोरार छावनी पर पूरी शक्ति से आक्रमण किया। 17 जून को ब्रिगेडियर स्मिथ से राव साहब व तात्या टोपे का कड़ा मुकाबला हुआ। लक्ष्मीबाई इस समय आगरा की तरफ से आये सैनिकों से मोर्चा ले रही थीं। दूसरे दिन स्मिथ ने पूरी तैयारी से फिर आक्रमण किया। रानी लक्ष्मीबाई
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प्रथम खण्ड
ने अपनी दो सहायक सहेलियों के साथ पुरुषों की वेश-भूषा में आकर सेना की कमान संभाली। युद्ध निर्णायक हुआ, जिसमें रानी को संगीन गोली एवं तलवार से घाव लगे तथा उनकी सहेली की भी गोली से मृत्यु हो गयी। यद्यपि आक्रमणकर्ताओं को भी रानी के द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया, किन्तु घावों से वे मूर्च्छित हो गईं। साथियों द्वारा उन्हें पास ही बाबा गंगादास के बगीचे में ले जाया गया, जहाँ वे वीरगति को प्राप्त हुईं। शीघ्र ही उनका तथा सहेली का दाह-संस्कार कर दिया गया।
लक्ष्मीबाई के इस गौरवमय ऐतिहासिक बलिदान के चार दिन बाद ही 22 जून 1858 को ग्वालियर में ही राजद्रोह के अपराध में न्याय का ढोंग रचकर लश्कर के भीड़ भरे सर्राफा बाजार में ब्रिगेडियर नैपियर द्वारा नीम के पेड़ से लटकाकर अमरचंद बांठिया को फाँसी दे दी गई।
बांठिया जी की फांसी का विवरण ग्वालियर राज्य के हिस्टोरिकल रिकार्ड में उपलब्ध दस्तावेज के आधार पर इस प्रकार है- 'जिन लोगों को कठोर दंड दिया गया उनमें से एक था सिन्धिया का खजांची अमरचंद बांठिया, जिसने विद्रोहियों को खजाना सौंप दिया था। बांठिया को सर्राफा बाजार में नीम के पेड़ से टाँगकर फाँसी दी गई और एक कठोर चेतावनी के रूप में उसका शरीर बहुत दिनों (तीन दिन) तक वहीं लटकाये रखा गया।'
इस प्रकार इस जैन शहीद ने आजादी की मशाल जलाये रखने के लिए कुर्बानी दी, जिसका प्रतिफल हम आजादी के रूप में भोग रहे हैं। ग्वालियर के सर्राफा बाजार में वह नीम आज भी है। इसी नीम के नीचे अमरचंद बांठिया का एक स्टेच्यू हाल ही में स्थापित किया गया है।
आ) - ( सन् सतावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग-2, पृ० 49-51 (2)म0 स0, 15 अगस्त 1987, पृष्ठ अ69-71 (3)अमर शहीद अमर चंद बांठिया (4) शोधादर्श, फरवरी 1987 (5) जैन प्रतीक, जून 1996 (6) इ0 अ0 ओ0, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 381 (7) The Martyrs, Page 31-33 (8) अमृतपुत्र, पृष्ठ 29 एवं 75ए (9) नई दुनियां, (इन्दौर) 11-8-1997 एवं 3-9-1997, (10) चौथा संसार (इन्दौर) 11-8-1997
000
भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति सम्मान की भावना
अनुच्छेद 51 (क)
भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह - (क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का
आदर करें, (ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय
में संजोए रखें और उनका पालन करें, (ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें, (घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद मोतीचंद शाह भारतीय स्वातन्त्र्य-समर का मध्यकाल था वह, उन दिनों अंग्रेजो भारत छोड़ो' और 'इंकलाब जिन्दाबाद' जैसे नारे तो दूर 'वन्दे मातरम्' जैसा सात्विक और स्वदेश पूजा की भावना के प्रतीक शब्द का उच्चारण भी बड़े जीवट की बात समझी जाती थी। जो नेता सार्वजनिक मंचो से 'औपनिवेशिक स्वराज्य' की माँग रखते थे, उन्हें गर्म दल का समझा जाता था और उनसे किसी प्रकार का सम्पर्क रखना भी खतरनाक बात समझी जाती थी।
ऐसे समय में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री अर्जुन लाल सेठी अपनी जयपुर राज्य की पन्द्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी छोड़कर क्रान्ति-यज्ञ में कूद पड़े। उन्होंने जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना की। कहने को तो यह धार्मिक शिक्षा का केन्द्र था किन्तु वहाँ क्रान्तिकारी ही पैदा किये जाते थे। 'जिस विद्यालय का संस्थापक स्वयं क्रान्तिकारी हो उस विद्यालय को क्रान्ति की ज्वाला भड़काने से कैसे रोका जा सकता है।'
सेठी जी एक बार 'दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा' के अधिवेशन में मुख्य वक्ता के रूप में महाराष्ट्र के सांगली शहर गये। वहाँ उनकी भेंट दो तरुणों से हुई। एक थे श्री देवचन्द्र, जो बाद में दिगम्बर जैन समाज के बहुत बड़े आचार्य, आचार्य समन्तभद्र के नाम से विख्यात हुए और जिन्होंने महाराष्ट्र में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। दूसरे थे अमर शहीद मोतीचंद शाह।
हुतात्मा मोतीचंद का जन्म 1890 में सोलापूर (महाराष्ट्र) जिले के करकंब ग्राम में सेठ पदमसी शाह के घर हुआ। माँ का नाम गंगू बाई था। सेठ पदमसी अत्यन्त निर्धन होते हुए भी संतोष-वृत्ति के धनी थे। वे न्याय से आजीविका कमाने तथा दयालु अन्त:करण वाले सीधे साधे छोटे से व्यवसायी थे। बालक की आँखों में मोती सी चमक देखकर ही माता ने बालक का नाम मोतीचंद रखा। परिवार की यह खुशी अधिक दिन तक स्थायी नहीं रह सकी। अल्पावस्था में ही मोतीचंद पितच्छाया-विहीन हो गये। फलत: मामा और मौसी के घर उनका लालन-पालन हुआ। मराठी की चौथी कक्षा तक अध्ययन करने के बाद पेट भरने के लिए उन्हें किसी पुरानी मिल में मजदूरी का काम करना पड़ा, पर ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ज्ञान की प्यास जागृत रही, कुछ-कुछ अध्ययन वे करते ही रहे। व्यायाम, तैरना, लाठी चलाना आदि के साथ-साथ देशभक्तों के चरित्रों को पढ़ने का उन्हें विशेष शौक था। देश की क्रान्ति से सम्बन्धित अनेक गीत-कवितायें उन्हें मुखाग्र थ। ___ इसी बीच दुधनी से पढ़ाई के लिए सोलापूर आकर रह रहे बालक देवचन्द्र (जो बाद में समन्तभद्र महाराज बने) से मोतीचंद की मुलाकात हो गई। मुलाकात मित्रता और मित्रता प्रगाढ़ता में परिणत हुई। इस समय महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक द्वारा प्रारम्भ किये गये 'स्वदेशी आन्दोलन' का बहुत बोलबाला था। जन-सामान्य, विशेषत: युवा मन पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा था। जगह-जगह सभायें होती थीं, जिनमें स्वतन्त्र भारत की घोषणा और 'वन्दे मातरम्' का जयघोष होता था।
बालक मोतीचंद और देवचंद इन समारोहों में अक्सर जाया करते थे। इन्हीं दिनों उनकी मुलाकात एक तीसरे साथी श्री रावजी देवचंद से हुई। तीनों ने मिलकर 'जैन बालोत्तेजक समाज' की स्थापना की और शुक्रवार पीठ के बड़े मंदिर के पीछे देहलान में बालकों के इकट्ठा होने का स्थान निश्चित हुआ। हरिभाई देवकरण और उनके भाई जीवराज जी भी इसमें मिल गये। धीरे-धीरे चालीस-पचास विद्यार्थियों का संगठन बन गया।
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प्रथम खण्ड
51
आपस में पुस्तकों के आदान-प्रदान व साप्ताहिक सभाओं आदि से विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ता गया । मोतीचंद अपनी वाक्पटुता, निर्भीकता और गंभीर गर्जना के कारण अनायास ही इनके नेता बन गये। वे विद्यार्थियों के बीच देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं और आदोलनों के बारे में बताते थे। मोतीचंद और देवचंद अकेले में बैठकर आंदोलन के बारे में सोचते थे। इनके बैठने के स्थान श्री कस्तूरचंद बोरामणीकर तथा कभी-कभी रावजी देवचंद के घर हुआ करते थे । विदेशी वस्त्रों का उपयोग नहीं करना, विदेशी शक्कर नहीं खाना आदि प्रतिज्ञायें ये लोग किया करते थे। सोलापूर की देखा-देखी अन्य स्थानों पर भी 'जैन बालोत्तेजक समाज' की स्थापना हुई।
1906 के आसपास लोकमान्य तिलक स्वदेशी का प्रचार करने के लिए सोलापूर आये। एक स्वयं सेवक के नाते मोतीचंद उनसे मिले और इकट्ठी की गयी कमाई स्वदेशी प्रचार के लिए तिलक जी को समर्पित कर दी, साथ ही अपने 'बालोत्तेजक समाज' की स्थापना की जानकारी तिलक जी को दी। इसी समय तिलक जी के कर-कमलों से मैकेनिक थियेटर में 'बालोत्तेजक समाज' की विधिवत् स्थापना हुई।
मोतीचंद, देवचंद और उनके अधिकांश साथियों का जन्म जैनकुल में हुआ था । पारिवारिक संस्कार जैन धर्म से आप्लावित थे। भोगों के प्रति विरक्ति स्वाभाविक ही थी। एक दिन मोतीचंद ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लेने का विचार अपने मन में किया और अपने लंगोटिया यार देवचंद को बताया। 'जीवन की साधना के बीच ब्रह्मचर्य ही उत्तम साधना है।' इसका विश्वास मोतीचंद से पहले देवचंद को हो चुका था, अतः उन्होंने मोतीचंद के विचारों का अन्त:करण से स्वागत किया और कुन्थलगिरि जाकर बाल ब्रह्मचारी देशभूषण, कुलभूषण भगवान् के चरणों में एक-दूसरे की साक्षी पूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया ।
1910 के आसपास रावजी देवचंद मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षा प्राप्ति हेतु बम्बई के विल्सन कॉलेज में चले गये। बाद में उन्होंनें फर्ग्युसन कॉलेज, पूना में शिक्षा प्राप्त की । मोतीचंद ने अपने ज्ञानार्जन की हवस दिन-रात किताबें पढ़कर ही पूरी की। इसी बीच 'दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा', सांगली के अधिवेशन का समाचार मोतीचंद ने पढ़ा और जाना कि प्रमुख व्यक्ति के रूप में जयपुर के पंडित अर्जुन लाल सेठी आ रहे हैं। सभा का अधिवेशन शोलापुर के श्री हीराचंद अमीचंद गाँधी की अध्यक्षता में होने वाला था । सेठी जी के बारे में उन दिनों बड़ी ख्याति फैल चुकी थी कि वे बी०ए० तक लौकिक शिक्षा प्राप्त अत्यन्त बुद्धिमान्, प्रतिभासम्पन्न, ओजस्वी वक्ता, लेखक, पत्रकार, अर्थसम्पन्न, धार्मिक ज्ञान प्राप्त, जैन शिक्षा प्रचार समिति नामक शिक्षण संस्था तथा बोर्डिंग चलाने वाले व्यक्ति हैं। उनसे मिलने की अभिलाषा लिये मोतीचंद और देवचंद सांगली अधिवेशन में उपस्थित हुए। सेठी जी का समाज और राष्ट्र सेवा की भावना से ओत-प्रोत व्याख्यान सुनकर दोनों तरुणों ने विचार किया कि हमारी आशा-अपेक्षायें इनके पास रहकर पूर्ण हो सकती हैं। दोनों ने अपने विचार सेठी जी को बताये, सेठी जी ने जयपुर आने को कहा ।
सब लोग एक साथ जयपुर पहुँचने की अपेक्षा धीरे-धीरे पहुँचे, ऐसा विचार कर तय हुआ कि पहिले देवचंद और माणिकचंद पहुँचे, बाद में मोतीचंद अन्य साथियों के साथ पहुँचेंगे। योजनानुसार तीनों जयपुर पहुँचे, साथ में श्री बालचंद शहा आदि भी थे। जयपुर की उक्त संस्था में कुछ राजपूत विद्यार्थी भी थे। राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केशरी सिंह बारहठ के दो तेजस्वी बालक प्रताप सिंह एवं जोरावर सिंह भी हाँ पढ़ते थे।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन इसी बीच सेठी जी की मुलाकात पं० विष्णुदत्त शर्मा से हुई। शर्मा जी स्थान-स्थान पर पहुंचकर सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्याख्यान देने वाले एक सीधे-साधे ब्राह्मण उपदेशक जान पड़ते थे, किन्तु वास्तव में उनका कार्य था देश के स्वाधीनता युद्ध के लिए सैनिकों की भरती करना। अपने इस कार्य की पूर्ति के लिए शर्मा जी भिन्न-भिन्न स्कूलों/कालेजों और गुरुकुलों/पाठशालाओं में घूमा करते थे। इन स्थानों पर उन्हें जो भी ऐसा युवक दिखाई देता, जिसके नेत्रों में दीप्ति और मुख पर दृढ़ता होती, उसी को वे अपने पंथ में दीक्षित कर लिया करते थे।
इसी प्रकार घूमते-घामते वे एक दिन जयपुर के उक्त विद्यालय में पहुँचे, सेठी जी से मुलाकात हुई, दोनों का रास्ता एक था, दोनों ने एक दूसरे को पहिचाना, एक दूसरे की भावनाओं को अनुभव किया और परस्पर गहरे मित्र हो गये। शर्मा जी विद्यालय में क्रान्तिकारी व्याख्यान देने लगे, जो विद्यार्थियों के हृदय में भारी उथल-पुथल मचाते थे।
शर्मा जी और सेठी जी के मुख से देश की दुर्गति का हाल सुन-सुन कर इन नवयुवकों का हृदय क्षोभ और वेदना से भरता गया। उन्होंने भारत माँ को स्वतन्त्र कराने का बीड़ा उठाया और क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित होने का निश्चय किया। ग्रीष्मावकाश में बारहट जी के ग्राम में जाकर गोली चलाना, लाठी चलाना आदि की शिक्षा इन नवयुवकों ने ली और क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित हो गये।
उस समय क्रान्तिकारी दल का काम अर्थाभाव के कारण ठप्प होता जा रहा था। अतः इन युवकों ने किसी देशद्रोही धनिक को मारकर धन लाने का निश्चय किया। बंगाल में ऐसी घटनाओं का उदाहरण इनके सामने था ही। तय हुआ कि 'निमेज' जिला-शाहाबाद (बिहार) के महन्त का धन हस्तगत किया जाये। इस काम के अगुआ थे पं० विष्णुदत्त शर्मा। अन्य लोगों में थे जोरावार सिंह, मोतीचंद, माणिकचंद और जयचंद। जोरावर सिंह ने ऐन मौके पर स्वयं न जाकर अपने एक साथी को भेज दिया। यद्यपि योजना यह थी कि 'महन्त के मुँह में कपड़ा भरकर चाबी ले ली जाये और तिजोरी से माल निकालकर भाग आया जाये।' किन्तु वहाँ जाकर इन लोगों ने महन्त को मार दिया और चाबी ले ली। दुर्भाग्य! कि तिजोरी खोलने पर वह खाली मिली। यह घटना 20 मार्च 1913 की है। घटना के बाद डकैतों की छानबीन हुई, पर कुछ पता नहीं चल सका। इधर जयपुर के विद्यालय की हालत खस्ता होने लगी थी।
इस घटना के कुछ दिनों बाद ही सेठी जी जयपुर का विद्यालय छोड़कर इन्दौर चले गये और वहाँ त्रिलोकचंद जैन हाई स्कूल में काम करने लगे। यहाँ पर उनके साथ शिव नारायण द्विवेदी नामक एक युवक भी रहता था। एक दिन अकस्मात् ही इन्दौर की पुलिस ने इस युवक की तलाशी ली तो उसके पास कुछ क्रान्तिकारी पर्चे निकले। युवक को गिरफ्तार कर लिया गया, उसी से पुलिस को जयपुर के विद्यालय में संगठित क्रान्तिकारी दल तथा निमेज के महन्त की हत्या का सुराग हाथ लग गया।
इधर मोतीचंद सेठी जी के साथ रोजाना की तरह घूमने निकले। मोतीचंद ने सेठी जी से प्रश्न किया 'यदि जैनों को प्राण-दण्ड मिले, तो वे मृत्यु का आलिंगन कैसे करें।' सेठी जी ने इसका उत्तर दिया ही था कि पुलिस ने घेरा डालकर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। अब सेठी जी की समझ में आया कि मोतीचंद ऐसा प्रश्न क्यों कर रहा था। बाद में पं० विष्णुदत्त शर्मा, माणिकचंद आदि को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
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प्रथम खण्ड
अर्जुन लाल सेठी का नाम दिल्ली बम षड्यन्त्र में होने से वे सरकार की नजरों में पहले ही चढ़े थे, पर ठोस सबूत न होने से पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पा रही थी। उनके गिरफ्तार होते ही हलचल मच गई। मोतीचंद की ओर से केस लड़ने के लिए उनके मामा माणिक चंद ने सोलापूर से कुछ फण्ड इकट्ठा किया। श्री अजित प्रसाद एडवोकेट से सलाह ली गई, अन्त में सेशन कोर्ट ने उन्हे फाँसी की सजा सुना दी। उच्च न्यायालय में अपील की गई पर वहाँ भी सजा को बरकरार रखा गया। पं० विष्णुदत्त शर्मा को 10 वर्ष के कालापानी की सजा मिली। अर्जुन लाल सेठी को यद्यपि सबूत के अभाव में दण्ड नहीं दिया जा सका, पर उन्हें जयपुर लाकर जेल में डाल दिया गया। विधि की विडम्बना देखिये कि जयपुर सरकार ने न तो उन्हें मुक्त ही किया और न ही उनके अपराध की सूचना ही उन्हें दी गई। अन्त में वे बेलूर जेल भेज दिये गये, जहाँ पर उन्होंने दर्शन और पूजा के लिए जैन मूर्ति न दिये जाने के कारण छप्पन दिन का निराहार व्रत किया।
मोतीचंद जी ने जेल से अपने अंतिम दिनों में रक्त से एक पत्र* अपने मित्रों के नाम लिखा था। फाँसी से पूर्व जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि 'प्रथम मुझे फाँसी से पूर्व जैन प्रतिमा के दर्शन कराये जायें, द्वितीय मुझे दिगम्बर (नग्न) अवस्था में फाँसी दी जाये।' पर यह जेल के नियमों के प्रतिकूल होने के कारण सम्भव नहीं हुआ। फाँसी से पूर्व उनका वजन 10-11 पौण्ड बढ़ गया था। मोतीचंद जी के एक साथी सोलापूर निवासी श्री बालचंद नानचंद शहा, जो फाँसी के समय वहाँ मौजूद थे, ने उन्हें प्रातः 4 बजे से पूर्व ही भ० पार्श्वनाथ की मूर्ति के दर्शन करा दिये थे। सामायिक और तत्त्वार्थसूत्र का पाठ मोतीचंद जी ने किया और समाधिमरण का पाठ बालचंद जी ने सुनाया था। Who's who of Indian Martyrs, Vol. I, Page 234' के अनुसार फाँसी की तिथि मार्च 1915 है।
1951 में व्याबर से प्रकाशित 'राजस्थानी आजादी के दीवाने' पुस्तक के लेखक श्री हरिप्रसाद अग्रवाल ने मोतीचंद के साहस के सन्दर्भ में लिखा है- 'केवल एक ही घटना से उसके साहस का पता चल जाता है, जब वह क्रान्तिकारी दल का नेतृत्व कर रहा था, उन्हीं दिनों उसका ऑपरेशन हुआ, डॉक्टर की राय थी कि ऑपरेशन क्लोरोफार्म सुंघाकर किया जाये, ताकि पीड़ा न हो। किन्तु वह तो पीड़ा का प्रत्यक्ष अनुभव करने को प्रस्तुत रहता था। उसकी जिद के कारण ऑपरेशन बिना बेहोश किये ही हुआ और उसने उफ तक न की। डॉक्टर भी दाँतो तले उंगली दबाकर रह गया।.........फाँसी की रस्सी का उसने प्रसन्नतापूर्वक आलिंगन किया और मृत्यु के समय तक बलिदान की खुशी में उसका वजन कई पौण्ड बढ़ चुका था।'(पृष्ठ 113-114)
श्री मोतीचंद और अर्जुन लाल सेठी के अन्य शिष्यों के सन्दर्भ में प्रसिद्ध विप्लववादी श्री शचीन्द्र नाथ सान्याल ने 'बन्दी जीवन', द्वितीय भाग, पृष्ठ-137 में लिखा है- 'जैन धर्मावलम्बी होते हुए भी उन्होंने कर्तव्य की खातिर देश के मंगल के लिए सशस्त्र विप्लव का मार्ग पकड़ा था। महन्त के खून के अपराध में वे भी जब फाँसी की कोठरी में कैद थे, तब उन्होंने भी जीवन-मरण के वैसे ही सन्धिस्थल से अपने विप्लव के
यह पत्र मराठी भाषा में है, जो 'सन्मति', दिसम्बर 1952 के अंक में छपा है। (अंक हमारे पास सुरक्षित है) सम्पादकीय नोट के अनुसार यह पत्र उन्हें मोतीचंद के मित्र श्री वाना०शहा से प्राप्त हुआ था। 'हुतात्मा मोतीचंद' के लेखक ब्र० माणिकचंद ज० चवरे ने हमारे नाम अपने पत्र दि0 27.9.95 में भी यही लिखा है कि यह पत्र उन्हें श्री बालचंद नानचंद शहा से पढ़ने को मिला था। दि० 24-1-96 के पत्रानुसार चवरे जी ने यह पत्र स्वयं पढ़ा है, देखा है। पत्र के लिए चवरे जी ने बहुत प्रयत्न किया पर प्राप्त नहीं हो सका है। श्री बालचंद नानचंद शहा और श्री चवरे जी का भी देहावसान हो जाने से पत्र-प्राप्ति प्रायः अशक्य लगती है।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन साथियों के पास जो पत्र भेजा था, उसका सार कुछ ऐसा था - भाई मरने से डरे नहीं, और जीवन की भी कोई साध नहीं है, भगवान् जब, जहाँ, जैसी अवस्था में रखेंगे, वैसी ही अवस्था में सन्तुष्ट रहेंगे।' इन दो युवकों में से एक का नाम था मोतीचंद और दूसरे का नाम था माणिकचन्द्र या जयचंद। इन सभी विप्लवियों के मन के तार ऐसे ऊँचे सुर में बँधे थे, जो प्रायः साधु और फकीरों के बीच ही पाया जाता है।' (द्र०-'जैन जागरण के अग्रदूत', पृष्ठ 366-67)
कैसा आत्म-सन्तोष, कैसी निश्चिन्तता और मृत्यु के प्रति कैसी निष्कपट उपेक्षा का भाव। यह किसी जैन धर्मानुयायी में ही सम्भव है। -
सेठी जी अपने इस जांबाज और वफादार शिष्य को बहुत स्नेह करते थे, इनकी मौत पर उन्हें बहुत सदमा पहुंचा। मोतीचन्द्र की पवित्र-स्मृति में सेठी जी ने अपनी कन्या का विवाह महाराष्ट्र के एक युवक से इस पवित्र भावना से कर दिया था कि 'मैंने जिस प्रान्त और जिस समाज का सपूत देश को बलि चढ़ाया है, उस प्रान्त को अपनी कन्या अर्पण कर दूँ। सम्भव है उससे भी कोई मोती जैसा पुत्ररत्न उत्पन्न होकर देश पर न्योछावर हो सके।'
मोतीचंद के जयपुर विद्यालय के सहपाठी और जेल-जीवन के साथी, सम्प्रति बम्बई प्रवासी, श्री कृष्णलाल वर्मा ने 'अमर शहीद श्रीयुत् मोतीचंद शाह के संस्मरण' शीर्षक से अनेक संस्मरण लिखे हैं, जो 'क्रान्तिवीर हुतात्मा मोतीचंद' पुस्तक में पृष्ठ 45 से 73 तक छपे हैं। 'सन्मति' (मराठी) के अगस्त 1957 के अंक में भी ये संस्मरण छपे हैं। उनमें से कुछ संस्मरण यहाँ प्रस्तुत हैं।
मोतीचंद ने विद्यार्थी जीवन में, जब वे क्रान्तिकारियों में शामिल हो गये थे, पर्युषण में दस उपवास किये थे। जेल में वर्मा जी ने पूछा-'आपने उपवास क्यों किये थे?' मोतीचंद ने कहा-'ऐसा तो कोई नियम नहीं है कि राष्ट्रीय कार्यकर्ता धर्म कार्य न करें और यदि दूसरी दृष्टि से देखा जाये तो ये धार्मिक व्रत, उपवास उस कठोर जीवन के लिए तैयारी ही हैं, जो राष्ट्रीय सेवक के लिए आवश्यक हैं। राष्ट्रसेवक को, जो षड्यन्त्रकारी पार्टी का सदस्य हो, हर तरह की तकलीफ सहन करने की आदत डालना चाहिए। उसे भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, मार या और भी सभी तरह के दु:ख, जिनकी सम्भावना हो सकती है, हँसते-हँसते सहने की आदत होना चाहिए। जैनधर्म में जो बाईस परीषह बताये गये हैं, उन सभी को जो सानन्द सहता है और राष्ट्र को आजाद करने के काम में लगा रहता है, वही सच्चा राष्ट्र सेवक है, वही सच्चा साधु है, वही सच्चा त्यागी है।' (पृष्ठ-60)
वर्मा जी के यह पूछने पर कि महन्त के समान निर्दोष व्यक्तियों को मारने से क्या मिलता है? मोतीचंद ने कहा-'पार्टियाँ चलाने के लिए धन की जरूरत है। वह धन ऐसे व्यक्तियों से ही जबरदस्ती मारकर या लूट कर प्राप्त किया जा सकता है। यह माना कि ऐसे लोग सीधे किसी अपराध के अपराधी नहीं होते, परन्तु उनका यह अपराध क्या कम है कि वे देश के काम के लिए धन नहीं देते। अगर कोई सरकारी अधिकारी इनके पास जाता है तो बड़ी खुशी से उनके लिए थैली का मुँह खोल देते हैं, परन्तु देशभक्त की बात छोड़ो, किसी गरीब और लाचार आदमी को भी दो पैसे निकालकर देते इनकी त्योरियों पर बल पड़ जाता है।' ___ मैंने पूछा - 'देश में लाखों धनवान तो हैं, फिर बेचारे महंत को ही आप लोगों ने क्यों पसन्द किया?'
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प्रथम खण्ड
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उन्होंने कहा- बड़े काम को सिद्ध करने के लिए अनेक ऐसे काम भी करने पड़ जाते हैं, जिनका करना सामान्यतया अपराध या अनुचित माना जाता है। जिन्होंने राज्य स्थापित किये हैं, उन्होंने सैकड़ों ही नहीं हजारों निर्दोषों की जाने ली थीं। इतिहास इस बात का साक्षी है। परन्तु आज तक क्या किसी इतिहासकार ने यह लिखा कि उन्होंने अनुचित काम किया था। समय आयगा तब हमारे काम भी उत्तम समझे जायेंगे।' (पृष्ठ-68)
(फाँसी से पूर्व) मैंने (वर्मा जी ने) पूछा-'अपने साथियों को या देशवासियों को कुछ सन्देश देना चाहते हैं?'
वे बोले -"मेरा फाँसी पर लटकना ही मेरा सन्देश होगा। मुझे फाँसी क्यों हुई? इसका कारण जानकर देशभक्त लोग कहेंगे, 'एक निर्दोष मारा गया', अंग्रेज के गुलाम कहेंगे- 'जैसा किया वैसा पाया'। सम्भव है कुछ जैनी लोग कहेंगे, 'जैनियों की नाक कटवा दिया।' पर जवान लोग, जिनके खून गरम हैं और जो अपनी जननी-जन्मभूमि से प्यार करते हैं, कुछ न बोलेंगे, मन ही मन संकल्प करेंगे कि, हम जब तक इस खून का बदला न लेंगे, अंग्रेजों को भारत से न निकालेंगे, तब तक चैन से न बैठेंगे।' उनकी यह प्रतिज्ञा मुझे स्वर्ग में भी संतोष देगी।" (पृष्ठ-72)
आ):- (I)Who's. who of Indian Martyrs. vol.1, Page 234 (2) जै0 स0 रा0 अ0 (3)जैन जागरण के अग्रदूत, (4) क्रान्तिवीर हुतात्मा मोतीचन्द्र (5)सन्मति (मराठी), दिसम्बर 1952 तथा अगस्त 1957 के अंक (6) राजस्थानी आजादी के दीवाने,पृष्ठ बी० 113-114 (7) पं० माणिक चंद जी चंवरे, कारजां के अनेक पत्र।
000
अहिंसक युद्ध 'अहिंसक युद्ध' परस्पर विरोधी बात लगती है यह, पर इतिहास में एक ऐसा भी युद्ध हुआ जो पूर्णत: अहिंसक था। ऋषभदेव वैराग्य धारण कर जब तपस्यार्थ वन चले गये तब उनके दो पुत्रों भरत और बाहुबली के बीच राज्य विस्तार की सीमा को लेकर युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं। दोनों ओर की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हो गईं। तब दोनों पक्षों के मंत्रियों ने परस्पर विचार किया कि ये दोनों भाई बलिष्ठ हैं, अतः क्यों न आपस में लड़कर हार-जीत का निर्णय कर लें, व्यर्थ सेना क्यों मारी जावे। मंत्रियों का प्रस्ताव मान दोनों में मल्ल, जल और दृष्टि युद्ध हुए, जिनमें बाहुबली विजयी हुए, पर उन्होंने जीतकर भी सन्यास ले लिया। अहिंसा के बल पर स्वराज्य प्राप्ति से इस घटना का औचित्य सिद्ध हो जाता है।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद सिंघई प्रेमचंद जैन दमोह (म0प्र0) जिले के एक छोटे से ग्राम सेमरा बुजुर्ग में उस दिन प्रेम की बरसात होने लगी, सारे गांव में सुख छा गया, जिस दिन भारतमाता से प्रेम करने वाले अमर शहीद प्रेमचंद का जन्म सिंघई सुखलाल एवं माता सिरदार बहू के आंगन में हुआ।
सिंघई प्रेमचंद जैन बचपन से ही उत्साही, लगनशील, निर्भीक, प्रतिभाशाली एवं होनहार युवक थे। सुखलाल जी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी बालक प्रेमचंद को उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने के लिए दमोह के महाराणा प्रताप हाईस्कूल में भेज दिया।
दिसम्बर 1933 में पूज्य महात्मा गांधी का दमोह नगर में आगमन हुआ। प्रेमचंद 16 कि0मी0 चलकर उनका भाषण सुनने दमोह आये, कहते हैं इसके बाद वे लौटकर गांव नहीं गये और दमोह में ही आजादी के महायज्ञ में कूद पड़े। जंगल सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, मादक वस्तुओं के विक्रय केन्द्रों पर धरना, नमक सत्याग्रह, झण्डा फहराना आदि साहसिक कार्यों में भाग लेने के परिणामस्वरूप सिंघई जी को स्कूल से निकाल दिया गया। तब आप खादी-प्रचार, अछूतोद्धार और गांव-गांव में डुग्गी बजाकर गांधी जी के सन्देशों का प्रचार करने लगे। देशभक्ति की ऐसी लगन देखकर श्री रणछोड़ शंकर धगट आपको गांधी आश्रम, मेरठ ले गये।
मेरठ में आप तीन वर्ष रहकर 1937 में लौटे और श्री प्रेम शंकर धगट, सिंघई गोकल चंद, श्री रघुवर प्रसाद मोदी, श्री बाबू लाल पलन्दी आदि के साथ सक्रिय एवं कर्मठ कांग्रेस कार्यकर्ता बन गये, जिससे स्थानीय प्रशासन आपके नाम से थर्राने लगा।
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होते ही, युद्ध में भाग लेने के लिए सैनिकों की जगह-जगह भर्ती होने लगी। दमोह भी इससे अछूता नहीं रहा। सागर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फारुख दमोह पधारे, उन्होंने टाउन हाल के प्रांगण में सेना में भर्ती हेतु जनसमुदाय को सम्बोधित किया। इस जनसमूह में लगभग 6 हजार श्रोतागण एकत्रित थे। रईस, जागीरदार, मालगुजार, तालुकेदार विशेष आमन्त्रण द्वारा बुलाये गये थे और उन्हें प्रथम श्रेणी की कुर्सियां प्राप्त थीं। अभी कमिश्नर का भाषण चल ही रहा था कि अचानक भीड़ में से सिंह-गर्जना करते हुए सिंघई प्रेमचंद ने कहा -'यह युद्ध हमारे देश के हित में नहीं है, हमें कोई मदद नहीं करना है, युद्ध ब्रिटिश राज्य की सुरक्षा के लिए लड़ा जा रहा है, हम इसका बहिष्कार करते हैं।'
इस ललकार से डिप्टी कमिश्नर क्रोध से आग-बबूला हो गया। उसके आदेश से तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर श्री जगदीश अवस्थी ने प्रेमचंद जी को गिरफ्तार कर लिया। पर यह क्या ? प्रेमचंद जी के गिरफ्तार होते ही जनसमुदाय उखड़ गया। सभा में गड़बड़ी उत्पन्न हो गई। जनसमुदाय की उत्तेजना देख डिप्टी कमिश्नर ने तत्काल प्रेमचंद को मंच पर बुलाया और कहा- 'इन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है, इन्हें तो मैंने अपने पास बलाया था, अब ये भाषण देंगे।'
प्रेमचंद जी ने अपने भाषण में कहा- 'भाइयो ! यह युद्ध ब्रिटिश सरकार की सुरक्षा के लिए लड़ा जा रहा है। इसमें देशवासियों का हित नहीं है। यह फिरंगियों की चाल है। अत: कोई सेना में भर्ती नहीं होना और न इन्हें आर्थिक मदद ही करना।' इस सम्बोधन के पश्चात् जनसमूह ने 'सिंघई प्रेमचंद जिन्दाबाद', 'प्रेमचंद की जय' के नारों के साथ आपको कन्धों पर उठा लिया और गांधी चौक में ले आये, यहाँ जनता फिर
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प्रथम खण्ड
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आमसभा के रूप में परिणत हो गई। डिप्टी कमिश्नर पुलिस बल के संरक्षण में किसी तरह जान
बचाकर भागा।
महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये व्यक्तिगत आन्दोलन में प्रेमचंद जी ने 14 जनवरी 1941 को हटा तहसील के प्रसिद्ध मेला 'सरसूमा' में, जहाँ अत्यधिक जनसमुदाय संक्रान्ति के पर्व के कारण एकत्रित होता है, सत्याग्रह किया। ब्रिटिश शासन के विरोध में उन्होंने ओजस्वी भाषण देने के बाद युद्ध विरोधी नारे लगाये, परिणामस्वरूप आपको गिरफ्तार कर दमोह लाया गया। मि) राजन न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमा चला, आपको 4 माह के कारावास की सजा दी गई और सागर जेल भेज दिया गया। कुछ दिन बाद आपको नागपुर जेल में स्थानान्तरित कर दिया गया।
इसे 'विधि की बिडम्बना कहें या सिंघई जी को भारत माँ की स्वाधीनता की बलिवेदी पर प्राणोत्सर्ग करने का सौभाग्य !' जिस डिप्टी कमिश्नर फारुख को प्रेमचंद जी के कारण दमोह से जान बचाकर भागना पड़ा था, वही स्थानान्तरित होकर नागपुर जेल में पहुंच गया। जेल में निरीक्षण के समय उसने सिंघई जी को देखा, पूर्व स्मृतियां उद्बुद्ध हो गईं, फारुख आग-बबूला हो गया, उसे लगा 'शिकार आज जाल में स्वयं फंसा पड़ा है, अब देखूंगा इसे, निकालूंगा इसका आजादपना, ऐसी मौत मारूंगा जो किसी को पता भी न चले। '
उस समय प्रेमचंद जी के कारावास की अवधि कुछ ही शेष रह गई थी। डिप्टी कमिश्नर ने उन्हें पहले ही जेल से मुक्त कर दिया। अन्तिम दिन विशेष आग्रह पूर्वक उन्हें भोजन कराया गया। सिंघई जी क्या समझते कि- ‘जिस भोजन को वे प्रेमपूर्वक कर रहे हैं, उसमें उनकी मृत्यु उन्हें परोसी गई है।' उन्हें नागपुर से दमोह जाने के लिए टिकटादि की व्यवस्था कर ट्रेन में बैठा दिया गया। ज्यों-ज्यों रास्ता बीतता गया, उनके शरीर में कमजोरी आती गई।
इधर दमोह में पता चला कि - 'सिंघई जी को मुक्त कर दिया गया है, और वह ट्रेन से दमोह आ रहे हैं', जनता स्वागत के लिए स्टेशन की ओर दौड़ पड़ी। भव्य स्वागत की तैयारियां होने लगीं। भाषण के लिए मंच बनाया जाने लगा। तय समय पर ट्रेन स्टेशन पर रुकी। पर यह क्या ? प्रेमचंद जी को पहचानना भी भारी हो रहा था। प्रेमचंद, प्रेमचंद नहीं लग रहे थे । जनता का सारा उत्साह ठण्डा पड़ गया, स्वागत - सम्मान के सारे आयोजन रद्द कर दिये गये।
जैसे-तैसे उन्हें घर पहुंचाया गया। क्षण-क्षण उनका शरीर कृश होता गया। नगर के सभी चिकित्सकों ने मुआयना किया और एक मत से निर्णय दिया कि - ' इन्हें दिया गया विष शरीर में इतना फैल चुका है कि इसे दवाइयों द्वारा हटा पाना असम्भव है।' 9 मई 1941 ( कुछ पुस्तकों में उनके निधन की तिथि 6 अप्रैल 1941 दी गई है) के सायं 7 बजे का क्रूर काल भी आ पहुंचा। संध्या की रक्तिम आभा फैलने लगी, सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा था, मानो सोच रहा हो, 'भारत माँ के इस वीर सपूत का अवसान मैं नहीं देख पाऊंगा, मैं भले ही अस्त हो जाऊँ।' भारत माँ का यह पूत सदा-सदा के लिए चला गया।
दावाग्नि की तरह पूरे शहर में यह समाचार फैल गया । दमोह और आस-पास की जनता एकत्रित हो गई। सभी ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अन्तिम विदाई दी। धू-धू कर चिता जलने लगी। सिंघई जी मरकर भी अमर हो गये, वे अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं। जैन समाज ही नहीं, पूरा देश उनकी शहादत से गौरवान्वित है। मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, खण्ड 2, पृष्ठ 77 पर लिखा है- 'भारत छोड़ो' आन्दोलन
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के समय भी दमोह की जनता ने स्वतंत्रता के संघर्ष में अपने दो नवयुवकों का बलिदान देकर आजादी के दीप को प्रज्वलित किया। सिंघई प्रेमचंद और यशवंत सिंह नामक वे दो युवक हैं, जो दमोह में आजादी के संघर्ष में शहीद हो गये।'
25 अगस्त 1992 को मध्य प्रदेश के आवास एवं पर्यावरण राज्यमंत्री श्री जयन्त कुमार मलैया ने दमोह की एक सभा में घोषणा की थी कि- 'अमर शहीद यशवन्त सिंह और प्रेमचंद की मूर्तियां इसी साल दमोह में म0प्र0शासन के खर्चे से लगेंगी।' (देखें 'जनसत्ता' नई दिल्ली, 26 अगस्त 1992)
आ0 (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग 2, पृष्ठ 85 तथा 77 (2) श्रद्धा सुमन, स्मारिका- युवक क्रान्ति संगठन, दमोह (3) श्री संतोष सिंघई एवं श्री प्रेमचंद विद्यार्थी, दमोह, द्वारा प्रेषित परिचय (4) शहीद गाथा, पृष्ठ 25-27 (5) प0 जै) इ), पृ0 517 (6) जनसत्ता, नई दिल्ली, 26 अगस्त 1992 (7) नवभारत, इन्दौर, 27-8-1997
000
हमारा गौरव
पाठशाला में फर्नीचर बनाने का काम चल रहा था। कुछ लकड़ी के टुकड़े यहां-वहां पड़े थे, उनको उठाकर पं0 गोपालदास जी बरैया की पत्नी ने एक चौकी बनवा ली। पं0 जी ने पूछा-'यह चौकी कहां से आई?' पत्नी ने कहा 'लकड़ी के फालतू ढुकड़े पड़े थे, उनकी बनवा ली है।' पं0 जी ने कहा 'वह लकड़ी तो पाठशला की थी।' इतना कहकर उन्होंने मजदूर की मजदूरी और लकड़ी के दाम पाठशाला में जमा करा दिये।
छप्पन दिन का निराहार व्रत श्री अर्जुन लाल सेठी को उनके अपराध की सूचना दिये बिना जयपुर जेल में बंद कर दिया गया, बाद में बैलूर जेल भेज दिया गया, जहां उन्होंने दर्शन और पूजा के लिए जैन मूर्ति न दिये जाने के कारण छप्पन दिन का निराहार व्रत किया।
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प्रथम खण्ड
___
59 अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर
'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। "
झण्डा ऊँचा रहे हमारा।।' श्री श्यामलाल पार्षद द्वारा रचित यह गीत हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रेरणा गीत बना था। इस गीत को गाते हुए न जाने कितने नौजवान आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े थे। अपने झण्डे को ऊँचा रखने के लिए ही तो हमारे शहीदों ने अपनी कुर्बानियाँ दी थीं। तिरंगा आज भी हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है। यही तिरंगा राष्ट्र- ध्वज हमारी कीर्ति को दिग्-दिगन्त व्यापिनी बनाता हुआ आज भी शान से लहरा रहा है।
'इसकी शान न जाने पाये।
चाहे जान भले ही जाये।।' यह मूल-मंत्र आज भी हमें राष्ट्र-ध्वज पर मर-मिटने की प्रेरणा देता है। इसी राष्ट्र-ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इसकी शान को बनाये रखा था।
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य का एक छोटा सा ग्राम है 'कडवी शिवापूर'। मात्र 1500 लोगों की आबादी वाला यह ग्राम बेलगाँव जिले की मुरगुड तहसील में आता है। 'हमारे स्वतन्त्रता-आन्दोलन के नायक केवल शहरी ही नहीं रहे, निपट ग्रामीण क्षेत्र के शहीदों / क्रान्तिकारियों । स्वतन्त्रता सेनानियों ने भी इस आजादी-लता को अपने रक्त से सींचा है' इस उक्ति को चरितार्थ करने वाले साताप्पा का जन्म इसी कडवी शिवापूर में एक सामान्य जैन किसान परिवार में 1914 में हुआ। उनके पिता का नाम भरमाप्पा था।
साताप्पा उन दिनों मात्र 16 वर्ष का था, तभी 1930 का असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ। इस आन्दोलन में जगह-जगह स्वयं सेवक संघ बनाये जा रहे थे। बालक साताप्पा ने भी अपना नाम मुरगुड के एक दल में लिखा दिया और यहीं से शुरू हुई उसकी क्रान्तिकारी यात्रा, जिसने 1942 में देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कराकर ही विराम लिया।
राष्ट्रीय जन-जागरण के लिए साताप्पा निरन्तर गतिशील रहे। पास-पड़ोस के ग्रामों में जन-जागरण का सन्देश पहुँचाने का काम उन्हें सदैव सौंपा जाता रहा। धीरे-धीरे अपने गाँव कडवी शिवापूर के लोगों को तैयार कर उन्होंने एक 'स्वयं सेवक पंथ' बना लिया। यह पंथ रोज कोई न कोई कार्यक्रम करता : जागृत रहे। रोज रात्रि में बैठकर कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जाती थी। सरकारी अधिकारियों को इसकी खबर लगना स्वाभाविक था। साताप्पा को अनेक बार अनेक तरह की धमकियां दी गईं, तरह-तरह से डराया गया, पर वे रुके नहीं। 1940 में वे दो बार जेल में बन्द कर दिये गये, पर इससे भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई, अपितु दिन-प्रतिदिन उनकी देश-प्रेम की भावना उग्र और दृढ़ होती गई। सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 लिखता है -'सुमारे अट्ठाबीस वर्षाचा भरदार छातीचा ऊँचा पुरा उत्साही नि पाणीदार साताप्पा कडवी शिवापूरचंच नव्हे तर मुरगुड महालाच भूषण व स्फूर्ति-स्थान बनला होता।' अर्थात् करीब 28 साल का चौड़े सीने का ऊँचा-पूरा उत्साही व पानीदार (तेज या उग्र स्वभावी) साताप्पा केवल कडवी शिवापूर का ही नहीं मुरगुड का भी भूषण था। ___ अगस्त 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में 9 अगस्त को बापू ने 'करो या मरो' की घोषणा की और वे बन्दी बना लिये गये, साथ ही सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता भी बन्दी बना लिये गये, तो जनता अपने विवेक
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के अनुसार आन्दोलन चलाने लगी। जगह-जगह जुलूस, गिरफ्तारियाँ, धरना आम बात हो गई। इस आन्दोलन की यह विशेषता थी कि यह छोटे से छोटे गाँवों तक में फैल गया था। तब कडवी शिवापूर इससे अछूता कैसे रहता।
12 अगस्त 1942 को गाँव के लोगों ने साताप्पा के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला। निपट देहाती भी अब 'स्वराज्य' जैसे सम्मानपर्ण शब्दों का अर्थ जानने लगे थे. वे जानते थे कि स्वराज्य का अर्थ है. ग्राम की स्वतन्त्रता. प्रदेश की स्वतन्त्रता, देश की स्वतन्त्रता और स्वयं हमारी स्वतन्त्रता। जुलूस ने स्थानीय ग्राम-पंचायत (मराठी भाषा में चावडी) पर पहुँच कर एक सभा का रूप ले लिया, सभा के अन्त में 'ग्राम-स्वातन्त्र्य' की घोषणा की गई और ग्राम पंचायत के ऊपर तिरंगा धवज फहरा दिया गया। ग्राम-पंचायत में जितने भी दस्तावेज थे, उन पर कब्जा कर लिया गया और वहाँ नियुक्त सरकारी कारिन्दों को पंचायत छोड़ने पर विवश कर दिया गया। बेचारे कर्मचारी जान बचाकर भागे।
सरकारी कर्मचारियों ने मुरगुड जाकर घटना की सारी जानकारी पुलिस-प्रशासन को दी। 15 अगस्त 1942 को पुलिस-प्रशासन ने लगभग 50 बन्दूकधारी और 10-15 लाठीधारी पुलिसवालों का दल बड़े सबेरे शिवापूर भेजा। इधर 50-60 युवकों की टोली सबेरे ही गाँव में साताप्पा के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकाल रही थी। गीत गाते और नारे लगाते युवकों का दल शान्तिपूर्वक ग्राम-पंचायत की ओर चला जा रहा था। दल के आगे साताप्पा राष्ट्रीय ध्वज लेकर चल रहे थे।
बन्दूकधारी पुलिस दल ने युवकों को घेर लिया। युवक दल ने अपने ऊपर संकट आया जानकर जोर से जयकारा लगाया – 'भारत माता की जय'। युवक जान रहे थे कि साक्षात् मृत्यु उनके सामने खड़ी है, फिर भी उनका उत्साह ठण्डा नहीं पड़ा, अपितु हृदय आनन्द से भर गया। शिवापूर की जनता इन युवकों का साथ दे रही थी। पाषाण हृदय सशस्त्र पुलिस-दानवों ने स्वातन्त्र्योत्सुक नि:शस्त्र मानवों पर क्रूर हास्य किया। बड़ा ही हृदय-द्रावक दृश्य था वह। एक पुलिस अधिकारी गरजा--
'तुम्हारा झण्डा नीचे करो नहीं तो नाहक गोली खाओगे' पर साताप्पा झुके नहीं, उन्होंने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा'चाहे जान भले ही चली जावे, झण्डा नीचा नहीं करेंगे'
अंग्रेज अधिकारी इस उत्तर से और अधिक चिढ़ गया। उसने मजिस्ट्रेट का हुक्म दिखाया और गरज कर कहा
'फिर कहता हूँ, नाहक मारे जाओगे, झण्डा नीचा करो' वीर साताप्पा ने कड़ककर प्रत्युत्तर दिया'प्राण गेलातरी बेहेत्तर, पण झेंडा खाली घेणार नाही, घेऊँ देणार नाही' इधर सारे युवक गर्जना करने लगे'तिरंगी झेंड्याचा विजय असो।
स्वतंत्र भारताचा विजय असो।।'
यह सुनकर अफसर आग-बबूला हो गया। साताप्पा ने ध्वज को अपने से अलग नहीं किया, न ही नीचे की ओर झुकाया। बौखला कर अंग्रेज अफसर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। धांय.....धाय....दो तीन गोलियां
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प्रथम खण्ड चलीं, जो आगे खड़े साताप्पा को लगीं। उनकी छाती से रक्त की धार फूट पड़ी और मुँह से 'वन्दे मातरम्'। साताप्पा नीचे गिर पड़े। बालाप्पा आडिन, गुंडाप्पा पटगुंदी, सावंत जोडही, रुद्राप्पा मंगली, गंगाप्पा अरबल्ली, महादेव टोपण्णावर आदि अनेक युवक गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेज अफसर ने ग्राम-पंचायत पर कब्जा कर लिया।
खुन से लथपथ साताप्पा को घर लाया गया। पर वे तो इस नश्वर देह को त्यागकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए पुनर्जन्म धारण करने हेतु प्रयाण कर चुके थे। वे मरकर भी अमर हो गये।
कडवी शिवापूर में जिस स्थान पर उन्हें शहादत प्राप्त हुई थी, उस स्थान पर उनकी स्मृति में खड़ा स्मारक आज भी उनकी कीर्ति कथा कह रहा है। 'सन्मति' (मराठी) लिखता है
___-क्र कालानं त्याचं फुलतं जीवन हिरावलं होतं, पण त्याला हुतात्म्यानं तेजस्वी मरण देऊन। कडवी शिवापूरच्याव नव्हे तर भारतीय स्वातंत्र्याच्या इतिहासांत अमर केलं यात शंका नाही।'
आ)-(1) सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 (2) भारतीय स्वातन्त्र्यलढ्यातील जैनांचे योगदान (मराठी), पृष्ठ-39
भगवान् महावीर ने हमें अहिंसा का उपदेश दिया, जो आज भी विश्व के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना 2500 वर्ष पूर्व था। विश्व में मानवता के लिए इससे बड़ा सिद्धांत नहीं हो सकता। अहिंसा
क आन्दोलन की शक्ति बना। गांधी जी, पं0 जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा जी ने भी अपनी नीतियां बनाते समय जैन सिद्धांतों की ओर देखा था। हमारी विदेश नीति भी महावीर के सिद्धांतों पर ही आधारित है। चाहे नि:शस्त्रीकरण की बात करें या गुट निरपेक्षता की अथवा पर्यावरण सुधार की, यही सिद्धांत हमारे सामने रहता है। जब हम चुनौतियों को देखते हैं, तो हमारे सामने एक ही रास्ता रह जाता है और वह है अहिंसा का। आज विदेशी शक्तियाँ भी महसस करती हैं कि मानवता को बचाने के लिए अहिंसा ही एकमात्र रास्ता है।
- प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी 18 अप्रैल 1989 को महावीर वनस्थली के उद्घाटन पर
प्रदत्त भाषण का अंश
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद वीर उदयचंद जैन
भारत वर्ष की आजादी के लिए 1857 ई० से प्रारम्भ हुए 1947 तक के 90 वर्ष के संघर्ष में न जाने कितने वीरों ने अपनी कुर्बानियां दीं, कितने देशभक्तों ने जेल की दारुण यातनायें भोगीं। इस बीच अनेक आन्दोलन, सत्याग्रह, अहिंसक संघर्ष हुए, किन्तु 1942 का 'करो या मरो' आन्दोलन निर्णायक सिद्ध हुआ। इसी आन्दोलन के अमर शहीद हैं वीर उदय चंद जैन ।
प्राचीन महाकौशल और आज के मध्य प्रदेश का प्राचीन और प्रसिद्ध नगर है मण्डला | नर्मदा मैया कल-कल निनाद करती हुई यहाँ से गुजरती हैं। यह वही मण्डला है, जहाँ शंकराचार्य ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था, पर आज लोग मण्डला को अमर शहीद वीर उदयचंद की शहादत के कारण जानते हैं।
मण्डला नगर के पास ही नर्मदा मैया के दूसरे तट पर बसा है महाराजपुर ग्राम । इसी ग्राम के निवासी थे वीर उदयचंद जैन, जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पवय में सीने पर गोली खाकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था।
उदयचंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को हुआ। आपके पिता का नाम सेठ त्रिलोकचंद एवं माता का नाम श्रीमती खिलौना बाई था। उदय चंद की प्रारम्भिक शिक्षा महाराजपुर में हुई। 1936-37 में आगे अध्ययन के लिए वे जगन्नाथ हाई स्कूल (वर्तमान नाम- जगन्नाथ शासकीय बहुद्देशीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक शाला ) मण्डला में प्रविष्ट हुए ।
उदयचंद मेधावी छात्र तो थे ही, अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये। तब वे हाई स्कूल के छात्र थे। उदय चंद बलिष्ठ और ऊंचे थे, हाकी उनका प्रिय खेल था । विज्ञान और गणित में उनकी अत्यधिक अभिरुचि थी। अपना काम स्वयं करने की प्रवृत्ति बचपन से ही थी। वे अत्यन्त मितव्ययी, ओजस्वी वक्ता और प्रायः मौन रहने वाले थे।
मण्डला नगर में आजादी की लड़ाई 1933 में ही उग्र रूप धारण कर चुकी थी, जब पूज्य बापू की चरण-रज इस नगर में पड़ी थी। 1939 में नेताजी सुभाष चंद बोस के आने से आंदोलन को और अधिक बल मिला।
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1942 के आन्दोलन ने सारे देश को झकझोर दिया। 'करो या मरो' का नारा बुलन्द हुआ। मण्डला नगर भी पीछे नहीं रहा। यहाँ के शीर्षस्थ नेता पंडित गिरिजा शंकर अग्निहोत्री अन्य नेताओं के साथ जेल में बन्द किये जा चुके थे। ऐसी दशा में कार्यकर्ताओं को अपने विवेक से निर्णय लेना था। 14 अगस्त 1942 को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुरा प्रसाद यादव के आह्वान पर जगन्नाथ हाई स्कूल के छात्रों ने हड़ताल कर दी। उन्होंने कक्षाओं का बहिष्कार किया। उदय चंद मैट्रिक के छात्र थे। उदय चंद के चचेरे भाई कालूराम जी भी उनके साथ पढ़ते थे। शाम को कालूराम जी घर लौट गये पर उदय चंद घर वापिस नहीं गये, वे अपने साथियों से सलाह मशविरा करते रहे। उन्होंने श्री हनुमान प्रसाद अग्रवाल, श्री जीवन लाल घोष के निवास स्थानों पर सलाह की। पुलिस को सम्भवतः इन नौजवानों की गतिविधियों की भनक पड़ चुकी थी।
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प्रथम खण्ड
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14 अगस्त 1942 की शाम की गतिविधियों के सन्दर्भ में उदयचंद के एक साथी- प्रो0 चित्रभूषण श्रीवास्तव, शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, जबलपुर (म0प्र0), ने अपने संस्मरण 'एक अन्तरंग प्रसङ्ग : अमर शहीद वीर उदय चंद के संग' में लिखा है- “14 अगस्त 1942 की शाम को मैं और उदय चंद नवजीवन क्लब से निकले। हम घूमने जा रहे थे। शाम के करीब 6 बजे होंगे। आकाश में बादल थे। पानी बरस कर निकल चुका था। हम लोग तहसील, कचहरी के पास पहुँचे ही थे कि वजनदार बूट पहने सिपाहियों के दल के मार्च की आवाज सुनाई दी। आगे देखा तो सशस्त्र सिपाहियों की एक टुकड़ी नीली वर्दी पहने, कंधों पर संगीन लगी बन्दूकें रखे, सड़क पर नगर की ओर बढ़ी चली आ रही थी। दल नायक बाजू से चलता हु आदेश देता जा रहा था --'लेफ्ट राइट-लेफ्ट..........।' हम दोनों सडक से पटरी पर आ गये। दल उसी चुस्ती से आगे बढ़ गया। बरगद के पेड़ के पास चौराहे पर रुका और वहाँ बन्दूकें दागी गईंहवाई फायर हुए। गोली चलने की आवाजें सुनकर हम दोनों ने, जो टाऊन हाल के पास पहुंच रहे थे, मुड़कर देखा, किंचित् भयभीत से। तभी दल नायक ने कुछ आदेश दिया और पुलिस दल कमानियाँ गेट की ओर मुड़कर फिर रूट मार्च पर आगे बढ़ गया। यह सब शायद जनता को आतंकित करने के लिए किया गया प्रदर्शन था।"
वातावरण गम्भीर किन्तु शान्त था। उदय ने गम्भीर स्वर में आक्रोश से कहा- "ये गोली क्यों चला रहे हैं ? क्या इनकी गोलियों से आन्दोलन रुक जायेगा ? क्या पुलिस किसी को भी गोली मार सकती है? आखिर ये भी भारतीय हैं। इनके मन में भी देश के लिए तो प्रेम होना चाहिये!" ___ मैंने कहा था "हाँ होना तो चाहिये पर सरकार के नौकर हैं न ? जो आदेश होगा वही तो करेंगे। आज्ञा पालन न करने पर सजा या नौकरी से निकाले जाने का डर भी तो होगा इन्हें। आज्ञा पालन भी तो इनका कर्तव्य है।"
भावावेश में उदय के उद्गार थे- “भगतसिंह और चन्द्रशेखर कभी पुलिस से नहीं डरे। डरना कायरता है। निडर होकर हर एक को दमन का मुकाबला करना चाहिये, यह हमारा कर्तव्य है यदि हम सीना खोल कर खड़े हो जायें तो ?"
इस पर मुझे याद है- मैंने कहा था- "हो सकता है जनता को दबाने के लिए गोली चलाई जाये। क्या कह सकते हैं कि क्या होगा ? उन्हें जो सरकारी आदेश होगा वही करेंगे।" आदि।
रात में भी उदयचंद घर नहीं गये अतः 15 अगस्त 1942 के प्रातः बाबूराम जी उदय चंद की तलाश में मण्डला आये। उन्हें पता चला कि नर्मदा गंज से जुलूस प्रारम्भ होने वाला है, वे वहां चले गये। वहीं पर उनकी भेंट उदय चंद से हुई। जुलूस का गन्तव्य जिलाधीश कार्यालय था। वहीं पर जुलूस सभा में परिवर्तित हो गया। तत्कालीन मण्डला नगर के हिसाब से यह जुलूस बहुत बड़ा था। सभा को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुराप्रसाद यादव ने संबोधित किया। तब सभा की बागडोर उदय चंद ने सम्हाली, उन्होंने लोगों से पत्थर नहीं फेंकने का आग्रह किया। इसी बीच पुलिस ने बर्बरता से लाठी चलानी शुरू कर दी। अनेक लोग पुलिस की लाठी के शिकार हुए। दोनों भाईयों को लाठियों की मार पड़ी। जुलूस तितर-बितर हो गया। उदयचंद ने बाबूराम को पीछे हटने का निर्देश दिया। बाबूराम इतवारी बाजार की ओर चले गये
और घूमकर लकड़ी के पुल पर से होते हुए फतह दरवाजा प्राथमिक शाला के सामने पहुंच गये। तब पुलिस ने हवा में गोलियां चला दीं और लोगों को हट जाने का आदेश दिया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री गोपाल प्रसाद तिवारी ने अपने संस्मरण- 'मैंने देखी है उदयचंद जैन की शहादत' में लिखा है- '...........(जब) लोग भागने लगे तब मैंने श्री उदयचंद जैन से कहा कि-"कहीं ऊँचे स्थान पर खड़े होकर जनता को प्रदर्शन करते रहने को कहो, मैं भीड़ में घुसकर लोगों को इकट्ठा करता हूँ।" इस पर श्री उदय चंद कुएं की पनघट पर चढ़ गये और जनता से शान्तिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने का अनुरोध करने लगे। जनता पुनः इकट्ठी होकर नारे लगाने लगी। लोग रोष में थे किन्तु प्रदर्शन शान्तिपूर्ण था। मजिस्ट्रेट श्री मालवीय ने पुनः लोगों से घर चले जाने की चेतावनी दी, अन्यथा गोली चलाने की मंशा बताई।'
पुलिस की ज्यादतियों को श्री सरमन लाल गौतम और श्री विजय दत्त झा बर्दाश्त नहीं कर पाये और उन्होंने पुलिस को बुरी तरह लताड़ा। उप जिलाधीश ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। वीर उदय चंद ने अपनी छाती खोल दी। उन्होंने कमीज को फाड़ते हुए खींचा, जिससे कमीज का बटन टूट गया, उन्होंने पुलिस को ललकारा कि 'गोली चला दी जाये, वे उसे झेलने के लिए तैयार हैं' इस समय वे केसरिया रंग की आधे बाजू की खादी की कमीज और धोती पहने हुए थे। पुलिस की गोली चली वे इसको झेलने के लिए उचके और गोली पेट को चीरते हुए शरीर में घुस गई। 'भारत माता की जय', 'तिरंगे झंडे की जय' के साथ उदयचंद गिर पड़े और खून की नदी बह चली। वे बेहोश हो गये थे। लोग उन्हें उठाने के लिए दौड़े, लेकिन पुलिस ने लोगों को आगे नहीं बढ़ने दिया। लोग जहां के तहां खड़े रह गये। पुलिस ने लाठियों का स्ट्रेचर बनाया और उस पर उदय चंद के बेहोश और खून से लथपथ शरीर को डाल दिया। पुलिस उन्हें कुछ ही दूरी पर स्थित शासकीय अस्पताल ले गई। बाबूराम को महाराजपुर के एक बुजुर्ग सज्जन महाराजपुर ले गये। भीड़ अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। लोग पुलिस के खून के प्यासे हो उठे थे।
पुलिस के घेरे में चिकित्सालय में उदय चंद की शल्य चिकित्सा की गई। उन्हें समीप के पेइंग वार्ड में ले जाया गया। छोटे-छोटे समूहों में पुलिस ने लोगों को उनके दर्शन करने दिये। लोगों ने उनके पैर छुए। नगर के सभी वर्गों के लोग अस्पताल की ओर दौड़ पड़े, कुटुम्बीजन दौड़े। शल्य चिकित्सा के उपरांत भी वे होश में नहीं आये। सभी लगातार 'भारत माता की जय', 'भारतवर्ष आजाद होगा' आदि नारे लगा रहे थे। मण्डला और आसपास के इलाके में तहलका मच गया। वे 15 अगस्त 1942 की रात्रि को तड़पते रहे और 16 अगस्त 1942 की प्रातः वीरगति को प्राप्त हो गये। उदय चंद मरकर भी अमर हो गये। ___ जिलाधीश श्री गजाधर सिंह तिवारी और पुलिस अधीक्षक श्री खान ने उदयचंद के पिताजी सेठ श्री त्रिलोकचंद को अपने निवास पर बुलाया। जिलाधीश ने उनसे कहा था कि 'अमर शहीद के शव का चुपचाप दाहसंस्कार कर दिया जाये।' त्रिलोक चन्द जी ने दृढ़तापूर्वक इसका विरोध किया। नगर निवासी प्रशासन से क्रुद्ध हो गये थे। हिंसा की आशंका से स्थानीय प्रशासन आतंकित हो उठा था। नगर के प्रतिष्ठित वकील श्री असगर अली और महाराजपुर के मुंशी इब्राहीम खान ने क्रमशः मण्डला और महाराजपुर के नागरिकों की ओर से स्थानीय प्रशासन को आश्वस्त किया कि 'शवयात्रा के जुलूस में हिंसा नहीं भड़केगी। हाँ! यदि पुलिस जुलूस में शामिल हुई तो खून-खराबा रोका नहीं जा सकेगा।' मण्डला नगर स्तब्ध था। वह अपने सपूत को अन्तिम विदा देते हुए रो रहा था।
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प्रथम खण्ड
शवयात्रा का जुलूस अस्पताल से प्रातः 10.30-11.00 बजे के बीच प्रारम्भ हुआ। मण्डला और आस-पास के नागरिकों की भीड़ को पुलिस कभी नहीं संभाल पाती, पर जुलूस में पुलिस नहीं थी। तत्कालीन तहसीलदार श्री चौहान शवयात्रा में शामिल हुए थे। मण्डला के इतिहास में इतनी बड़ी शवयात्रा कभी नहीं निकली। नगर के सभी जाति-वर्ग के लोग शवयात्रा में शामिल थे। कहा जाता है कि लगभग नौ हजार लोग उनकी शवयात्रा में शामिल थे। उस समय मण्डला मात्र 12 हजार की बस्ती थी। अमर शहीद का शव तिरंगे में लिपटा हुआ था। भीड़ नारे लगाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। रपटा होते हुए शवयात्रा का जुलूस बंजर नदी के किनारे स्थित श्मशान घाट पर पहुँचा। लगभग 2 बजे उनके पार्थिव को चिता पर रखा गया। श्री चेतराम चौधरी ने बिलखते हुए हृदय पर पत्थर रखकर उनका अग्नि संस्कार किया। चिता धू धू कर धधक उठी, उनका पार्थिव शरीर देखते-देखते भस्म हो गया।
उनकी कीर्ति को चिरस्थायी बनाने के लिए उदय चौक पर त्रिकोणाकार लाल लाट (पत्थर) का 'उदय स्तम्भ' बना है। समीप ही नगर पालिका, मण्डला द्वारा निर्मित 'उदय प्राथमिक विद्यालय' बना है। जगन्नाथ हाई स्कूल में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। महाराजपुर में उनका समाधि स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष 16 अगस्त को मेला लगता है और इस अमर शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है। मण्डला के प्रखर कवि श्री मुरारी लाल के शब्दों में
'अमर वीर माँ का दुलारा उदय प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय पन्द्रह अगस्त सन् बयालीस की बात नहीं भूल सकता वो खूनी प्रभात जहाँ से हुआ शहीद प्यारा उदय खुले वक्ष पर झेल गोली का बार गुलामी की जंजीर पर कर प्रहार किया माँ के ऋण का चुकारा उदय सिखाया हमें मर के जीने का मोल मरण क्षण लो 'जयहिन्द' 'जयहिन्द' बोल बना पथ प्रदर्शक हमारा उदय प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय हम सब मिल आपस के बैरों को भल चढ़ाते तेरी कब पर आज फूल नमन हो स्वीकृत हमारा उदय
प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय।"
(देखें- साप्ताहिक हिन्दुस्तान, 16 अगस्त, 1992, पृष्ठ 28) आ0- (1) म0 प्र0) स्व0 सै0, भाग 1, पृष्ठ 204 (2) साप्ताहिक हिंदुस्तान, 16 अगस्त 1992, पृष्ठ 28 (3) म0 , 15 अगस्त 1987 (4) जै0 स0 रा0 अ0 (5) नवीन दुनियां, जबलपुर- 15 अगस्त 1992 (6) अनेक स्मारिकायें (7) शहीद गाथा, पृष्ठ । से 29 (8) क्रान्ति कथायें, पृ0 788 (9) नई दुनियां, इन्दौर, 2-8-1997
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद साबूलाल जैन बैसाखिया अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र0) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबलाल ने स्थानीय स्कल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अत: असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई।
1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था। स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे।
__ बुन्देलखण्ड का हृदय 'सागर' आजादी की इस बयार से अछूता कैसे रहता। सागर शहर ही नहीं पूरे जिले में इस आन्दोलन ने एक क्रांति ला दी थी। प्रायः प्रतिदिन हड़ताल, जुलूस और आम सभायें हो रही थीं। छात्रों की भागीदारी भी इसमें कम नहीं थी, वे स्कूल छोड़-छोड़कर आजादी की इस लड़ाई में कूद पड़े थे।
22 अगस्त 1942 को गढ़ाकोटा में एक वृहत् सभा का आयोजन हुआ। सर्व सम्मति से तय हुआ कि 'अंग्रेजी शासन तन्त्र का प्रतीक पलिस थाना यहाँ है. अत: इस पर ही तिरंगा झंडा फहराया जाये।' तत्काल ही उस सभा ने एक जुलूस का रूप ले लिया। जुलूस का नेतृत्व गढ़ाकोटा की वीरांगना पार्वतीबाई कर रहीं थीं। जुलूस में लगभग ढाई हजार स्त्री-पुरुष थे। यह संख्या किसी बड़े शहर के लिए कम प्रतीत हो सकती है, पर गढ़ाकोटा जैसे कस्बे में इतना बड़ा जुलूस शायद ही कभी निकला हो।
___'भारत माता की जय', 'इंकलाब जिन्दाबाद', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आदि नारे लगाता हुआ जुलूस पुलिस थाने पहुँचा। सैकड़ों नवयुवक हाथ में तिरंगा लिये, 'पहले मैं झंडा चढाऊँ !' 'पहले झंडा मैं चढाऊँ!' इस भावना से आगे बढ़े जा रहे थे। इधर पुलिस को जुलूस की सूचना पहले ही मिल गई थी, वह प्रतिरोध को तैयार थी। जब युवकों ने झंडा चढ़ाने का प्रयत्न शुरू किया तब पुलिस ने चेतावनी दी, पर आजादी के मतवाले कहाँ मानने वाले थे। पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। लाठी खाकर भी आजादी के दीवाने गिरते रहे और आगे बढ़ते रहे, पर अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए।
भीड़ को अनियन्त्रित देखकर पुलिस सब-इन्सपेक्टर गया प्रसाद खरे तथा कुछ अन्य सिपाहियों ने गोलियां चलाना प्रारम्भ कर दिया। पर गोलियों की परवाह किसे थी। साबूलाल भी हाथ में झंडा लिये थे, वे जानते थे कि थोड़ा भी आगे बढ़ना, मौत को आमन्त्रण देना है। जीवन की समाप्ति है। किन्तु 'जो घर से ही कफन बांधकर चला हो, उसे जीवन का मोह रोक नहीं सकता, वह तो क्षण-क्षण अपनी मृत्यु प्रेमिका सं मिलने को विह्वल रहता है।' साबूलाल अपने चार-पाँच साथियों के साथ आगे बढ़े, वे यूनियन जेक
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प्रथम खण्ड
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निकालकर तिरंगा ध्वज लगाने की कोशिश में लगे हुए थे। पर धांय-धांय-धांय तीन गोलियां चलीं और वे वहीं ढेर हो गये, अनेक लोग गिरफ्तार कर लिए गये।
साबूलाल, कुंजीलाल और पं0 धनीराम दुबे को गोलियां लगीं थीं, अत: उन्हें तुरन्त सागर अस्पताल भेजा गया। पं०) धनीराम और श्री कुंजीलाल तो बच गये पर साबूलाल मरकर भी अमर हो गये। 24 अगस्त 1942 को प्रात:काल उनके शव का जुलूस निकाला गया। जनता ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अन्तिम विदाई दी।
___1942 के आंदोलन में सागर जिले में सिर्फ साबूलाल ही शहीद हुए। इस सम्बन्ध में 'मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक', भाग-2, पृष्ठ 6 पर लिखा है- 'इस आन्दोलन (1942) में भारतीय अधिकारियों की सूझ-बूझ से सागर नगर में तो कोई दुर्घटना नहीं घटी, किन्तु जिले के एक छोटे से स्थान गढ़ाकोटा में अवश्य
ड हो गया, जिसमें एक छात्र शहीद हुआ। यह घटना इस प्रकार बताई जाती है कि 22 अगस्त 1942 को एक बड़ा जुलूस गढ़ाकोटा नगर में निकाला गया, जो नगर के प्रमुख भागों से होता हुआ थाने की
ओर बढ़ने लगा। इस जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसके फलस्वरूप एक छात्र श्री साबूलाल जैन शहीद हो गया।'
साबूलाल की शहादत ने विद्रोह की ऐसी ज्वाला भड़काई जिसने 1947 में देश को आजाद कराकर ही दम लिया।
अमर शहीद की स्मृति में सागर (म0प्र0) में एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण किया गया है, गढ़ाकोटा के प्राइमरी स्कूल का नाम साबूलाल के नाम पर रखा गया है। गुजरात राज्य शाला पाठ्यपुस्तक मण्डल. गांधीनगर द्वारा प्रकाशित, गुजरात में कक्षा-7 की हिन्दी विषय की निर्धारित पाठ्यपुस्तक में 'आजादी की राह पर' शीर्षक से साबूलाल पर एक पाठ दिया गया है।
आ0- (1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग- 2, पृष्ठ 6 (2) विन्ध्य वाणी, शहीद अंक, (1948) (3) प0 जै) इ.). पृष्ठ 517 (4) अनेकान्त पथ, भोपाल 17-9-1992 (5) शहीद गाथा, पृष्ठ 12 (6) शोधादर्श, फरवरी 1988, पृष्ठ 27-29 (7) हिन्दी कक्षा-7 (गुजरात) पृष्ठ 118-121 (8) क्रांति कथायें, पृष्ठ 785 (9) पद्माकर स्मारिका, पृ० 36-37 (10) म0 स0. 15 अगस्न 198. पृष्ठ ब 14-16 (11) नई दुनियां, इन्दौर, 19-11-1998
טבם
'पूर्ण स्वराज्य कहने में आशय यह है कि वह जितना किसी राजा के लिए होगा उतना ही किमान पं. लिए, जितना किसी धनवान-जमींदार के लिए होगा, उतना ही भूमिहीन खेतिहर के लिए, जितना हिन्दी के लिए, उतना ही मुसलमानों के लिए, जितना जैन, यहूदी और सिक्ख लोगों के लिए होगा, उतना ही पारसियों ओर ईसाइयों के लिए। उसमें जाति-पांति, धर्म अथवा दरजे के भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं होगा।'
- महात्मा गांधी पूर्ण स्वराज्य का अर्थ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद कुमारी जयावती संघवी अहमदाबाद (गुजरात) की कुमारी जयावती संघवी भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की वह दीपशिखा थीं जो अपना पूरा प्रकाश अभी दे भी नहीं पायीं थीं कि जीवन का अवसान हो गया। जयावती का जन्म 1924 में अहमदाबाद में हुआ था। 5 अप्रैल 1943 को अहमदाबाद नगर में ब्रिटिश शासन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला जा रहा था। प्रमुख रूप से यह जुलूस कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का ही था। इसमें प्रमुख भूमिका जयावती संघवी निभा रही थीं। जुलूस आगे बढ़ता जा रहा था,पर यह क्या? अचानक पुलिस ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़ना प्रारम्भ कर दिया। स्वाभाविक था कि गोले आगे को छोड़े गये, अत: नेतृत्व करती जयावती पर इस गैस का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनकी मृत्यु हो गयी।
आ0- (1) क्रान्ति कथाएँ, पृ० 808 (2) शोधादर्श, फरवरी 1987
000
“मैं नहीं सारा राष्ट्र जैन है": श्रीमती इन्दिरा गांधी बात फरवरी, 1981 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी श्रवणबेलगोला में 'भगवान् बाहुबली महामस्तकाभिषेक समारोह' के अवसर पर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर दिल्ली लौट आईं थीं। संसद में बहस के दौरान कुछ संसद सदस्यों ने अनकी इस यात्रा पर आपत्ति की तो श्रीमती गाँधी ने कहा-''मैं महान् भारतीय विचारों की एक प्रमुख धारा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने वहाँ गई थी। जिसने भारतीय इतिहास व संस्कृति पर गहरा प्रभाव छोड़ा है और स्वतन्त्रता संग्राम में अपनाए गए तरीके भी इससे प्रभावित हुए हैं। गाँधी जी भी जैन तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित अहिंसा व अपरिग्रह के सिद्धान्तों से प्रभावित हुए थे।"
इस पर एक ससंद सदस्य ने व्यंग्य करते हुए प्रश्न किया कि-'क्या आप जैन हो गईं हैं?' तब श्रीमती गाँधी ने गर्जना के साथ उत्तर दिया- 'केवल मैं ही नहीं सारा राष्ट्र जैन है, क्योंकि हमारा राष्ट्र अहिंसावादी है और जैन धर्म अहिंसा में विश्वास रखता है। जैन धर्म के आदर्श के रास्ते को हम नहीं छोड़ेंगे।'' यह सुनकर प्रश्नकर्ता बगलें झाँकने लगे।
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प्रथम खण्ड
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___ अमर शहीद नाथालाल शाह उर्फ नत्थालाल शाह भारतीय स्वातन्त्र्य समर में 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक सिद्ध हुआ। इसी आन्दोलन के एक शहीद थे श्री नाथालाल या नत्थालाल शाह। नत्थालाल का जन्म अहमदाबाद के निकटस्थ ग्राम रामपुरा में श्री सोमचन्द्र शाह के घर 1923 में हुआ था। अपने छात्र जीवन में उन्होंने आजादी के आन्दोलन में भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई, परिणाम स्वरूप अगस्त 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया, जहाँ 9 नवम्बर 1943 को उन्होंने शहादत प्राप्त की। आ) (1) क्रान्ति कथायें, पृष्ठ 1142,(2) शोधादर्श, फरवरी 1987
000
सत्य से भिन्न कोई परमेश्वर है, ऐसा मैंने कभी अनुभव नहीं किया। यदि इन प्रकरणों के पन्ने-पन्ने से यह प्रतीति न हुई हो कि सत्यमय बनने का एक मात्र मार्ग अहिंसा ही है, तो मैं इस प्रयत्न को व्यर्थ समझता हूँ। प्रयत्न चाहे व्यर्थ हो, किन्तु वचन व्यर्थ नहीं हैं। मेरी अहिंसा सच्ची होने पर भी कच्ची है, अपूर्ण है। अतएव हज़ारों सूर्यों को इकट्ठा करने से भी जिस सत्य रूपी सूर्य के तेज का पूरा माप नहीं निकल सकता, सत्य की मेरी झांकी ऐसे सूर्य की केवल एक किरण के दर्शन के समान ही है। आज तक के अपने प्रयोगों के अन्त में मैं इतना तो अवश्य कह सकता हूँ कि सत्य का संपूर्ण दर्शन संपूर्ण अहिंसा के बिना असंभव है।
- महात्मा गांधी (आत्मकथा, पृष्ठ-431)
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद अण्णा पत्रावले
" अध्यापको ! नौकरियाँ छोड़ दो और देश को स्वतन्त्र कराने के लिए क्रान्ति कार्य में शामिल हो जाओ । 'अंग्रेजो यहाँ से भागो।' ऐसी घोषणा कर अंग्रेजों को जला दो।" अपनी तिमाही परीक्षा की कापी में यह लिखकर 1942 के आन्दोलन में कूद पड़ने वाले 17 वर्षीय नौजवान अमर शहीद अण्णा पत्रावले या अण्णासाहेब पत्रावले को आज हम भले ही भूल गये हों, पर भारतीय स्वातन्त्र्य समर के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा।
1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' एक ऐसा निर्णायक आन्दोलन था, जिसमें हजारों नहीं लाखों की संख्या में नौजवान विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़कर कूद पड़े थे। 'करो या मरो' उनका मूल मंत्र था। इसी आन्दोलन में भारत माँ पर अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले अण्णा साहब भी शहीद हो गये थे।
अण्णा पत्रावले का जन्म 22 नवम्बर 1925 को हातकणंगले, जिला-सांगली (महाराष्ट्र) में अपने नाना के घर एक जैन परिवार में हुआ। माँ इन्दिरा उस दिन सचमुच इन्दिरा = लोकमाता बन गईं जब अण्णा साहब ने उनकी कोख से जन्म लिया। पिता एगमंद्राप्पा व्यंकाप्पा उस दिन बहुत प्रसन्न थे। नाना के घर बधाईयाँ बज रहीं थीं। अण्णा साहब बचपन से ही होनहार, स्वावलम्बी और स्वातन्त्र्य - प्रिय बालक थे। उनकी बुद्धिमत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने हाई स्कूल छात्रवृत्ति प्राप्त की थी। प्रतिदिन व्यायाम करना उनका शौक था, जिसके कारण उनका शरीर सुदृढ़ था और चेहरे पर विशेष कान्ति ।
अंग्रेजी की चौथी कक्षा में वार्षिक परीक्षा सिर पर होने पर भी उन्होंने फरवरी में महात्मा गाँधी के हरिजन साप्ताहिक से संगृहीत चुनिंदा लेखों की छोटी-सी पुस्तक पढ़ी। यहीं से अण्णा साहब के विचार क्रान्ति में बदल गये। वे देश को आजाद कराने के लिए छटपटाने लगे। अगले वर्ष अगस्त में तिमाही परीक्षा के पेपर में उक्त वाक्य (अध्यापको !) लिखकर चले आये और क्रान्ति - यज्ञ में कूद पड़े ।
1942 में सांगली स्टेशन चौक की सभा पर सरकार ने गोलीबारी की। अनेक लोग घायल हुए। घायलों की सेवा सुश्रूषा का गुरुतर भार कौन ? यह यक्ष - प्रश्न सबके सामने मुँह बाये खड़ा था। अण्णा साहब आगे बढ़े और उन्होंने कहा- 'यह कार्य हम करेंगे।' पुलिस को जब पता चला तो पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट ने उनके पिता पर बढ़े जुल्म ढाये, यहाँ तक कि उनका घर-बार तक जब्त करने की धमकी दी, पर भारत मैया के चरणों में ही अपने जीवन को समर्पित करने वाले क्या ऐसी धमकियों से डरे हैं? अण्णा साहब डरे नहीं, अपितु और अधिक खुलकर क्रान्तिकारियों का साथ देने लगे, वे क्रान्तिकारियों की गोपनीय बैठकों में भी शरीक होने लगे।
सांगली की बुरुड गली में क्रान्तिकारियों की एक बैठक चल रही थी । अण्णा साहब भी इस बैठक में मौजूद थे। पुलिस को किसी प्रकार इसकी भनक लग गई। सूँघती हुई पुलिस पहले गली और फिर मकान तक पहुँच गई। अचानक छापा मारा गया, क्रान्तिकारियों को पकड़ लिया गया और उन्हें सात महीने की सजा देकर सांगली जेल में बन्द कर दिया गया। इसी समय श्री बसन्त दादा पाटिल (जो बाद में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने) भी इसी जेल में जाये।
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'जेल की दारुण यातनाओं के भीषण कष्ट को तो किसी तरह दबाया जा सकता है, पर दिल में देश को आजाद कराने की जो क्रान्ति-ज्वाला जल रही है, उसकी जलन को दबाया जाना सम्भव नहीं।' जेल में
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प्रथम खण्ड बन्द इन क्रान्तिकारियों को भी चैन नहीं था, वे किसी भी कीमत पर बाहर निकलकर क्रान्ति की ज्वाला को प्रज्ज्वलित रखना चाह रहे थे। वे जानते थे कि भागने पर पकड़े गये तो मौत के सिवा कुछ नहीं मिलेगा, पर उनका मानना था कि हमारी मौत के बाद भी देश आजाद हो जाये तो ऐसी मौत सार्थक है।
सोलह क्रान्तिकारियों ने जेल से भागने की योजना बनाई। योजनानुसार लघुशंका का बहाना बनाकर पहरेदार को दरवाजा खोलने को कहा गया। दरवाजा खुलते ही पहरेदार की बन्दूक छीन ली गई और क्रान्तिकारी जेल की दीवार से छलांग लगाकर भागे। इधर शोर-शराबा हुआ। पता लगते ही पुलिस भी पीछे पीछे भागी। क्रान्तिकारियों में कोई कृष्णा नदी के पानी में डबकी लगा गया तो कोई सांगलवाडी क भागा। कुछ हरिपुर की ओर प्रयाण कर गये। अण्णा साहब को तैरना नहीं आता था अतः वे समडोली की ओर भागे। जुलाई का महीना और बरसात के कारण गीली मिट्टी। अण्णा साहब के पैर मिट्टी में सन गये थे, दौड़ने की बात तो दूर चलने में भी परेशानी हो रही थी। तभी धाय......धाय......गोली चली और अण्णा साहब वहीं शहीद हो गये। वह कर दिन था 24 जलाई 1943 ई० ___आजादी के बाद सांगली के एक चौक को 'हुतात्मा अण्णा पत्रावले चौक' नाम दिया गया है और यहीं हाईस्कूल के समीप उनकी प्रतिमा (स्टेच्यू) लगी है। ___Who's who of Indian Martyres, Vol. I, Page 272 पर अण्णा साहब पत्रावले के सन्दर्भ में लिखा गया है- 'Took part in the Quit India Movement (1942). Arrested and sentenced to a term of imprisonment. shot and killed on July 24, 1943, while trying to escape from the Sangli Jail.'
आ) - (1) Who's who of Indian Martyres, Vol. I, Page 271-272 (2) सन्मति (मराठी), अगस्त 1957
गांधी जी के जीवन में प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत श्रीमद् रायचन्द्र का गहरा प्रभाव था। जब दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को हिन्दू धर्म पर अनेक शंकाएँ हुईं और उनकी आस्था डिगने लगी तब अपनी लगभग 33 शंकाएँ गांधी जी ने रायचन्द्र को भेजी। राजचन्द्र जी ने उनके जो उत्तर दिए उनसे गांधी जी की सत्य और अहिंसा में दृढ़ आस्था हो गई। स्वयं गांधी जी ने लिखा है - 'मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं ; रायचन्द भाई ने अपने सजीव सम्पर्क से, टॉलस्टाय ने 'बैकुण्ठ तेरे हृदय में' नामक अपनी पुस्तक से और रस्किन ने 'अन्टु दिस लास्ट'-सर्वोदय नामक पस्तक से मझे चकित कर दिया।" (आत्मकथा. प० 76)
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद मगनलाल ओसवाल अमर शहीद मगनलाल ओसवाल की शहादत भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। मगनलाल ओसवाल का जन्म 1906 ई० में जावरा (म०प्र०) में हुआ था। आपके पिता श्री हीरालाल ओसवाल इन्दौर में व्यवसाय करते थे। मोरसली गली में उनकी छोटी सी किराने की दुकान थी। मगनलाल अपने पिता की इकलौती संतान थे। ओसवाल जी की शिक्षा-दीक्षा अधिक नहीं हुई, मिडिल पास करने के उपरान्त आप पिताजी के साथ दुकान पर बैठने
1942 में जब 'भारत छोड़ो आन्दोलन' छिड़ा तब आपकी शादी हो चुकी थी, आप गृहस्थ बन गये थे और पिता भी। पर आजादी के दीवानों को क्या परिवार के बन्धन बाँध सके हैं?
'करो या मरो' के मूल मंत्र वाला अगस्त 1942 का आन्दोलन निर्णायक था, देश के सभी हिस्सों में इसकी गूंज थी, आजादी के दीवाने जगह-जगह भारत माँ को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए स्वयं बेड़ियाँ पहिन रहे थे, जेल की उन्हें परवाह न थी, माताओं की गोदें सूनी हो रहीं थीं और युवतियों की मांगें। इन्दौर शहर इस आन्दोलन में भला कैसे पीछे रहता। रोज सभायें, जुलूस, नारेबाजी, गिरपतारियाँ, गोली-डंडे चल रहे थे। इसी क्रम में 6 सितम्बर 1942 को एक जुलूस इन्दौर में निकला। इसका नेतृत्व श्री पुरुषोत्तम लाल 'विजय' कर रहे थे। जुलूस में लगभग 2-3 हजार लोग थे। जुलूस शान्त था। श्री मगन लाल भी आगे चलते हुए नारे लगाते जा रहे थे। 'भारत माता की जय', 'महात्मा गाँधी की जय', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो', 'इंकलाब जिन्दाबाद'.........आदि।
जब जुलूस सर्राफा बाजार में पहुँचा तो भारी संख्या में पुलिस आ गई और जुलूस को चारों तरफ से घेर लिया। सभी शान्त थे, पर बर्बरता की तो कोई सीमा नहीं, यह सदैव अपना घिनौना और वीभत्स चेहरा लिए ही प्रकट होती है। पुलिस ने अचानक इन अहिंसक सत्याग्रहियों पर लाठियों और गोलियों की बौछार शुरू कर दी। एक तरफ सभी निहत्थे थे, दूसरी तरफ थीं लाठियाँ और गोलियाँ। एक तरफ सभी शान्त थे, दूसरी तरफ थीं भद्दी-भद्दी गालियाँ। इन्दौर का सर्राफा बाजार जिन्होंने देखा है, वे जानते हैं कि इसकी सड़कें बड़ी संकरी हैं। पुलिस ने दोनों ओर से घेरकर सत्याग्रहियों को इतना पीटा कि बन्दूकें भी सहम गईं।
__ इस गोली चालन में कुछ इधर-उधर बिखर गये, कुछ को गोलियाँ लगीं तो कुछ को लाठियाँ, कुछ जमे रहे, लाठियाँ खाते रहे, कुछ गिर पड़े। मगन लाल की जाँघ में तभी एक गोली लगी, वे वहीं गिर पड़े और जब बेहोश नहीं हुए-'भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत.......' के नारे लगाते रहे। पुलिस की निर्दयता ने उस समय निर्दयता को भी पीछे छोड़ दिया जब कुछ पुलिस वालों ने निहत्थे, बेहोश पड़े मगन लाल पर जूतों की ठोड़े मारी।
जुलूस के संचालक श्री पुरुषोत्तम लाल 'विजय' को उनके 15-20 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। मगन लाल को भी गिरफ्तार किया गया, पर समस्या थी, घायल अवस्था में कहाँ ले जाया जाये? अन्त में पुलिस उन्हें तत्कालीन महाराजा तुकोजी राव अस्पताल ले गई। चारों ओर पहरा बैठा दिया गया। डाक्टरों ने ऑपरेशन किया, जाँघ से गोली निकाली, काफी बड़ा घाव हो गया और यह घाव अन्त तक भरा नहीं जा सका। मगनलाल
अस्पताल में रहे. पलिस का पहरा रहा. घाव कभी भरता सा लगता. फिर बढ़ जाता। ऐसी ही आँख-मिचौनी चलती रही और लगभग सवा तीन बरस निकल गये। मगनलाल बिस्तर पर पड़े रोज नये समाचार सुनते, नई घटना, नई गिरफ्तारी, पर वह नहीं सुन सके जिसके लिए वे जी रहे थे, वह था, देश की आजादी का समाचार। वे सोचते 'काश! मैं उठकर भाग पाता। काश! यह घाव न होता तो अंग्रेजों को यहाँ से भगाकर ही दम लेता, पर सोचा कभी पूरा हुआ है क्या ?' ____ 23 दिसम्बर 1945 को आजादी का यह दीवाना देश की आजादी का सपना अपने हृदय में छिपाये हुए वीरगति को प्राप्त हो गया।
___ आ)- (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग 4, पृष्ठ 34 (2) क्रान्तिकथायें, पृष्ठ 788 (3) म0 स), 15 अगस्त 1987, पृष्ठ अ-2700 एवं ब-49 (4) नवभारत, भोपाल, 6 जुलाई 1997
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प्रथम खण्ड
___73 अमर शहीद भूपाल अणस्कुरे भारतीय स्वातन्त्र्य-समर में गरीब-अमीर, छोटे-बड़े, बालक-जवान, जवान-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, उद्योगपतिव्यवसायी, खेतिहर मजदूर, ग्राम-नगर निवासी, शिक्षित-अशिक्षित, सभी लोगों ने अपनी शक्त्यनुसार भरपूर सहयोग दिया। ज्यादातर तो ऐसे रहे जो अपना नाम प्रख्यात कराये बिना ही मातृभूमि की बलि-वेदी पर शहीद हो गये। सच कहें तो हमारी आजादी-अट्टालिका की नींव के पत्थर वे ही हैं। ऐसे शहीदों में श्री भूपाल अणस्कुरे का नाम अग्रगण्य है।
___ श्री भूपाल अण्णाप्पा अणस्कुरे या भूपाल अणस्कुरे का जन्म कोल्हापुर (महाराष्ट्र) जिले के ठिकपुर्ली ग्राम (ता० राधानगरी) में 1927 में हुआ। मराठी की छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने, जगह-जगह लगने वाले हाट-बाजारों में दाल-चावल बेचने का काम शुरू किया। उनकी गरीबी ने ही उन्हें इस प्रकार का कार्य करने को मजबूर किया, पर दिल में देशहित के लिए भी कुछ करने की तमन्ना थी। 'दिल की जो तमन्ना बलवती होती है, वह समय आने पर अपना रास्ता खोज लेती है' यह कहावत अणस्कुरे जी के सन्दर्भ में पूर्णत: चरितार्थ हुई। एक दिन सांगली के श्री पी० बी० पाटील से उनकी मुलाकात हुई, मुलाकात
में बढ़ी और परिचय प्रगाढ़ता में। इसी प्रगाढ़ता के कारण वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में भूमिगत रहकर कार्य करने लगे। दिन में प्रकट रूप में वे कुछ कर नहीं सकते थे अत: भूमिगत क्रान्तिकारियों को सहयोग करने का जिम्मा उन पर सौंपा गया। क्रान्तिकारियों तक खाना पहुँचाना, उनकी दवा आदि की व्यवस्था करना उनके मुख्य कार्य थे। कभी-कभी तो रात के दो-दो बजे तक स्वयं अपने हाथों से खाना बनाकर भूमिगत कार्यकर्ताओं तक पहुँचाते थे।
____ गाँव से कोल्हापुर आकर वे रहने लगे थे। इस निपट गरीबी में एक कमरे से बड़ा मकान लेना उनके लिए कदापि सम्भव नहीं था फिर भी उस छोटे से स्थान को भी देशहित समर्पित करने की उनकी तमन्ना थी। अणस्कुरे जी का यह एकाकी कमरा कोल्हापुर के नये पूल के पास संकरी गली में था। 'पुलिस को कभी यह कल्पना भी नहीं हो सकेगी कि इस प्रकार के मात्र एक कमरे वाले मकान में रहने वाला भी कोई अपने पास अस्त्र शस्त्र रखने का जोखिम उठायेगा।' यह सोचकर भूपाल जी ने अपने पास अस्त्र-शस्त्र रखना प्रारम्भ कर दिया। रात्रि के अँधेरे में भूमिगत क्रान्तिकारियों के पास अस्त्र-शस्त्र पहुँचाना उनका प्रमुख कार्य बन गया, पर पुलिस कब चूकने वाली थी। पुलिस की नजर उन पर पड़ी, अणस्कुरे जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा दायर किया गया।
पुलिस के अनगिनत अत्याचारों और गहन पिटाई से उनके अंग-अंग टूट गये। दायें हाथ की हड्डी फटकर उसमें पस पड़ गया, वेदना पर वेदना, अत्याचार पर अत्याचार, मार पर मार, यातनाओं पर यातनाएं। ऐसे में अणस्कुरे जी ने शायद एक ही बचने का उपाय सोचा, 'अभी पुलिस के गवाह बन जाओ, जज के सामने बयान बदल देंगे। कम से कम कुछ समय के लिए तो यातनाओं से छुटकारा मिलेगा, बाद में मौत तो निश्चित है ही।'
योजनानुसार वे 'माफी के साक्षीदार' (पुलिस के गवाह) बन गये। पुलिस द्वारा जानबूझकर उनकी बीमारी से की गई उपेक्षा, टूटा और निराश मन, अपनों से मिलने की चाह, मित्रों को भी सब कुछ बताने की इच्छा, ये सब भावनायें उन्हें झकझोर रहीं थीं। उन्होंने मित्रों से मिलने की इच्छा प्रकट की। बड़े प्रयत्न के बाद
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74
स्वतंत्रता संग्राम में जैन अन्त में बड़े जेल के दवाखाने में आने पर उनकी मित्रों से भेंट हुई। तब अणस्कुरे जी ने कहा-'पी० बी०! मैं माफी का साक्षीदार (पुलिस का गवाह) बन गया हूँ। क्या इसलिए नाराज हो? मेरी आधी बीमारी तो तुम लोगों की प्रतारणा है। मैं सच कह रहा हूँ कि हाथ की असहनीय वेदना से ही मजबूरन यह करना पड़ा है। दोस्तों की जबरदस्ती और जेल से छूटने पर रोगमुक्त होने की उम्मीद से माफी का गवाह बनने की अर्जी मैंने दी है। पर..........'
उचित समय पर मुकदमा शुरू हुआ। अन्तिम जवाब में जज महोदय के सामने अणस्कुरे जी ने पुलिस विरोधी और क्रान्तिकारियों के पक्ष में बयान दिये। उल्टी गवाही से पुलिस भौंचक्की रह गई। अब को पुलिस के अत्याचार उन पर और अधिक बढ़ गये। उन्हें यम-यातनाओं (कठोर-कष्टों) का सामना करना पड़ा। पीड़ा बढ़ती गई, बीमारी बढ़ती गई और बढ़ती गई मन की 'निराशा। उन्हें छुड़ाने के बहुतेरे प्रयत्न किये गये। बीमारी की हालत में अन्त में उन्हें पाँच हजार की जमानत पर छोड़ा जाना तय हुआ। कोल्हापुर के श्री बापूसाहेब श्रीमंधर मिरजे जी ने पाँच हजार रुपयों की जमानत पर उन्हें छुड़ाया। मिरज में उनका उपचार जारी रहा। पर पुलिस द्वारा की गई इतनी तीव्र पिटाई और घाव की निरन्तर जानबूझकर की गई उपेक्षा के कारण उपचार का कोई असर नहीं हुआ। अन्त में 1945 के आषाढ़ मास में जिस दिन उन पर पुनः मुकदमा चलने वाला था उस दिन अणस्कुरे जी देश की आजादी का सपना दिल में ही संजोये शहीद हो गये।
अणस्कुरे जी के छोटे भाई को 1945 के सांगाव अधिवेशन में श्रीदेव जी के हाथ से 'कोल्हापुर प्रजा परिषद्' की ओर से शील्ड प्रदान की गई थी। आ०-सन्मति (मराठी), अगस्त 1957
000
| शहीदों की शौर्यगाथा किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान सम्पत्ति होती है। उनके गौरवमय बलिदानों
का पुण्य स्मरण युवकों की धमनियों में देशभक्ति का रक्त संचारित कर उनमें अन्याय, अनाचार, अभाव, गरीबी, शोषण, उत्पीड़न और असमानता को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने की अमोघ शक्ति उत्पन्न करता है, जिससे वे देश निर्माण के रथ को विद्युत गति से खींचने लगते हैं। जो राष्ट्र अपने शहीदों की कुर्बानियों का गुण-गान नहीं करता, वह अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता।
___ -रघुबीर सहाय (मध्य प्रदेश संदेश, 15 अगस्त 1987)
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प्रथम खण्ड
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75
अमर शहीद कन्धीलाल जैन
भारत की आजादी के इतिहास में 1930 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन मील का पत्थर सिद्ध हुआ था। ग्यारह फरवरी 1930 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया था। गाँधी जी ने बहुतेरे प्रयास किये कि वायसराय कांग्रेस की न्यायोचित माँगों को मान लें। जब बात नहीं बनी तो गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को अपना ऐतिहासिक दाण्डी मार्च' प्रारम्भ किया। इस मार्च में गाँधी जी के साथ चुने हुए 79 अनुयायी गये थे। 200 मील की यात्रा गाँधी जी ने 24 दिन में पैदल चलकर पूरी की थी। इस यात्रा में महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराबाई ने किया था (देखें - 'स्वराज्य और जैन महिलायें', पृ० 26, 'महिलायें और स्वराज्य' पृष्ठ 177 ) 1 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन का सूत्रपात किया था।
ध्यातव्य है कि सरकार ने नमक पर कर दुगुना कर दिया था। जब कि भारत जैसे गरीब देश की जनता का नमक सबसे अधिक काम आने वाला और सबसे अधिक सस्ता खाद्य है। गरीब जनता को जब कुछ नहीं मिलता तो वह नमक की एक डली के साथ ही अपना भोजन कर लेती है। निजी रूप समुद्र के पानी से नमक बनाना कानूनी जुर्म था। गाँधी जी द्वारा कानून तोड़ने के बाद प्रतीक स्वरूप जगह - जगह नमक बनाया जाने लगा और इस काले कानून को खुलेआम भंग किया गया। शराब बंदी ओर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार भी इस आदोलन में शामिल किये गये। पुरुष और महिलायें इस आंदोलन में हजारों की संख्या में जेल गईं। लगभग 50-60 हजार लोग जेल गये । यहाँ तक कि सरकार को नई जेलें बनानी पड़ीं।
मध्य प्रदेश में नमक सत्याग्रह के साथ-साथ जंगल सत्याग्रह भी प्रारम्भ हुआ था, जो यहाँ की विशेष भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल था । यहाँ की जनता के लिए वनों का विशेष महत्त्व है, उस पर लगे हुए अन्याय पूर्ण प्रतिबन्ध ही विदेशी शासन के प्रतीक थे। म०प्र० में नमक बनाने का कोई स्थान नहीं, अत: यहाँ जनता ने 'जंगल-कानून' ' तोड़कर 'नमक- कानून' तोड़ा था। इसी कानून को तोड़ने वाले अमर शहीद कन्धीलाल जैन का जन्म 1894 में सिलोंड़ी (जबलपुर - मध्यप्रदेश) कस्बे के सेठ मटरूलाल के यहाँ हुआ। अन्य लोगों के साथ कन्धीलाल भी झण्डा उठाकर गाँव-गाँव घूमे और जँगल कानून भंग किया। पुलिस ने इन लोगों पर लाठियों और कोड़ों से प्रहार किये पर गिरफ्तार किसी को भी नहीं किया। इधर जनता ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई । सिलोंड़ी और आस-पास के लोगों ने पुलिस का सामाजिक बहिष्कार किया। जनता ने अंग्रेजी सिक्के (कल्दार) को मुद्रा मानने से इंकार कर दिया और सिलोंड़ी मण्डल को पूर्ण स्वतन्त्र घोषित कर दिया। गाँव की पुलिस चौकी के सिपाही भाग खड़े हुए और आला अफसरों को इसकी सूचना दी गई।
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अराजकता को दबाने के लिए जिले के अधिकारियों ने एस०डी०ओ० छत्तर सिंह को विशेष पुलिस बल के साथ भेजा और कोड़े मारने तथा लाठीचार्ज का अधिकार उसे दिया । छत्तर सिंह 12 सितम्बर 1930 को सिलोंड़ी पहुँचा और ग्राम में 'मार्शल लॉ' लागू कर दिया । खुलेआम जनता को मारा गया और तरह-तरह की धमकियां दी गईं। चुनौती भरे स्वर में छत्तर सिंह ने कहा कि 'है कोई माई का लाल, जो सत्याग्रह करने की कोशिश करे' कन्धीलाल ने इस चुनौती को स्वीकार किया। अपनी गृहस्थी और अबोध बच्चों की परवाह न कर उन्होंने 15 सितम्बर को संकीर्तन समापन के जुलूस का नेतृत्व किया, वे जुलूस के आगे-आगे नारे लगाते चल रहे थे। जब यह जुलूस पुलिस चौकी (वर्तमान में माध्यमिक कन्या पाठशाला भवन) की ओर बढ़ रहा
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन था तो पुलिस ने उसे रोका, इस पर कुछ कहा सुनी हुई और अचानक पुलिस ने लाठीचार्ज करना प्रारम्भ कर दिया। कन्धीलाल पर अनगिनत लाठियों के वार पड़े पर उन्होंने झण्डा अपनी छाती से लगाकर उसकी रक्षा की। पुलिस ने झण्डा छीनना चाहा, पर छीन नहीं सकी। लाठी का एक वार कन्धीलाल के सिर पर पड़ा और वह सदा-सदा के लिए भारत मैया की गोद में सो गये। ___ इधर जनता हिंसात्मक प्रतिशोध पर उतर आई। पर ग्राम के माननीय चौधरी बनवारी लाल राय के साहसिक हस्तक्षेप से मामला शान्त हुआ। 15 सितम्बर 1931 को कन्धीलाल की प्रथम पुण्यतिथि पर बलिदान दिवस मनाया गया और सिलोंडी के सत्याग्रह स्थल (गल्ला बाजार) पर विशाल समूह के बीच मालगुजार गंगाप्रसाद ने शहीद कन्धीलाल जैन की स्मृति में वट वृक्ष (बरगद) रोपा जो आज भी है। इसी सत्याग्रह स्थल पर 'जय स्तम्भ निर्माण समिति', सिलोंडी ने 1983 में शहीद-स्तम्भ निर्मित कराया है।
जबलपुर के वयोवृद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और 'मध्य प्रदेश स्वतंत्रता सेनानी संघ' के संस्थापक-मंत्री श्री रतन चंद जैन के निवास पर उनके दर्शनार्थ जब हम गये तो उपरोक्त सारा लिखित वर्णन उन्होंने हमें दिया। श्री जैन ने उपरोक्त वृत्तान्त श्री कन्धीलाल जैन के पारिवारिक जनों से मिलकर प्राप्त किया था, जो सम्प्रति जबलपुर में रहते हैं। शहीद स्तम्भ का चित्र जिसमें कन्धीलाल जी का नाम सबसे ऊपर है, इसी पुस्तक में प्रकाशित है।
__ आ0-(1) वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री रतन चंद जैन, जबलपुर द्वारा प्रदत्त परिचय (2) शहीद स्तम्भ का चित्र जिसमें अमर शहीद कन्धीलाल का नाम सबसे ऊपर है।
000
जैन इतिहास-विद्या अभी भी बहुत कुछ अविकसित एवं प्रारम्भिक अवस्था में है। सामग्री विपुल है, किन्तु इतस्ततः इतनी बिखरी हुई है कि उस सबको एकत्रित कर, शोध-खोजपूर्वक उसे व्यवस्थित करना और इतिहास निर्माण में उसका सम्यक् उपयोग करना एक-दो व्यक्तियों का कार्य नहीं है, वरन् किसी साधन सम्पन्न संस्था में कार्यकर्ताओं के सुगठित दल द्वारा कई दशकों में सम्पादित होने वाला कार्य है।
- सुप्रसिद्ध इतिहासविद् डॉ. ज्योति प्रसाद जैन
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प्रथम खण्ड
___77 अमर शहीद मुलायमचंद जैन जबलपुर (म०प्र०) के अमर शहीद मुलायमचंद जैन एक क्रान्तिकारी के हमशक्ल होने के कारण शहादत को प्राप्त हो गये। मुलायम चंद जैन, पुत्र-श्री भैयालाल पुजारी, जबलपुर के लार्डगंज में अपनी छोटी-सी कपड़े की दुकान चलाकर जीविकोपार्जन करते थे। अपनी पारिवारिक मजबूरियों के कारण मुलायम चंद स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग तो नहीं ले पाते थे, पर उनकी हृदय की भावनायें तो आजादी के लिए हिलोरे लेती ही रहती थीं, वे खादी पहनते थे, संध्या के समय दुकान पर कांग्रेसी मित्रों का जमावड़ा होता था। दो-तीन दैनिक-पत्र वे दुकान पर मँगवाया करते थे, उन पर चर्चा होती थी, गर्मागर्म राजनैतिक बहसें होती थीं। यह बात पुलिस की निगाहों में आ चुकी थी, पर बिना आरोप के पुलिस कुछ कर नहीं पा रही थी। एक रात अचानक पुलिस उन्हें पकड़ ले गई और जेल में बन्द कर दिया। बाद में पता चला कि पुलिस एक ऐसे आदमी की तलाश कर रही थी,जो वेष बदलकर पुलिस को चकमे दे रहा था। मुलायम चंद का चेहरा उससे मिलता जुलता था अतः पुलिस ने संदेह में उन्हें पकड़ लिया।
जेल में साधारण पूछताछ के बाद जब मुलायमचंद कुछ नहीं बता सके, (बताते भी क्या ?) तो उन्हें भीषण यातनायें दी गईं। बर्बरतापूर्वक उनकी पिटाई की गई। यह क्रम लगातार नौ दिन तक चलता रहा। नौ दिन बाद जब वे छोड़े गये तो उनका शरीर इस योग्य नहीं रह गया था कि वह परतन्त्र भारत में साँस ले सके । वे मुँह से खाना नहीं खा पाते थे, पेशाब में निरन्तर खून आता था, उठने-बैठने में शरीर असमर्थ हो चुका था। एक माह तक जिन्दगी और मौत की आँख-मिचौली चलती रही। मुलायम चंद के पारिवारिक जनों/मित्रों/सहयोगियों/समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों ने भरसक प्रयत्न किये पर मुलायमचंद को बचाया नहीं जा सका। इस प्रकार यह आजादी का प्रेमी अमर शहीद बिना किसी प्रमाणित अपराध के ही शहादत को प्राप्त हो गया। यह घटना 1942-43 की है।
आ) (1) प0 जै0 इ.), पृष्ठ 518 (2) घटना के प्रत्यक्षदर्शी वयोवृद्ध स्वतन्त्रता सेनानी श्री रतन चंद जैन, जबलपुर द्वारा प्रेषित
घटना क्रमा
000
हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित होने के बाद जब राणाप्रताप ने स्वदेश परित्याग का संकल्प लिया तब स्वदेशभक्त और स्वामीभक्त भामाशाह राणाप्रताप का रास्ता रोककर खड़ा हो गया और देशोद्धार के लिये उन्हें उत्साहित करने लगा। राणा ने कहा-'न मेरे पास धन है, न सैनिक और न साथी। किस बलबूते पर मैं देशोद्धार का प्रयत्न करूँ।' भामाशाह ने तत्काल विपुलद्रव्य उनके चरणों में समर्पित कर दिया। वह द्रव्य इतना था जिससे 25000 सैनिकों का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सकता था।
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78
स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद चौधरी भैयालाल नाटा कद, गठीला बदन, गौर वर्ण और चेहरे पर जवानी की आभा, यही व्यक्तित्व था अमर शहीद चौधरी भैयालाल का। भैयालाल का जन्म 1886 में मध्यप्रदेश के दमोह नगर में पिता श्री हुआ। 1908 के बंग-भंग के समय से ही वे राजनीति में सक्रिय हो गये थे। देश को आजाद देखने की उनमें ललक थी। संगठन की अद्भुत क्षमता के धनी चौधरी जी 1920-21 में दमोह के कांग्रेस जनों में अग्रणी थे। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर राव तिलक को दमोह में आमन्त्रित किया, पर शासन की ओर से सभा पर पाबन्दी लगा दी गई। चौधरी जी इससे निराश होने वाले नहीं थे। उन्होंने 20 मील दूर श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र कुण्डलपुर की सुरम्य पहाड़ियों के मैदान में सभा कराई और अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया। शासन जनता पर इनके प्रभाव से परेशान था।
। प्रथम विश्वयुद्ध के समय जब दमोह में रेटिंग ऑफिसर सैन्यदल में जनता की भर्ती करने आया और उसने म्युनिसिपल कार्यालय में अपना भाषण दिया, तब चौधरी जी ने विरोध स्वरूप भाषण के लिए समय मांगा। जब समय नहीं दिया गया तो उन्होंने धन्यवाद देने के बहाने समय मांगा। अंत में सीमित समय देने पर चौधरी जी ने 'सेना में भर्ती होने का विरोध किया और अगले दिन तिलक मैदान में सभा का ऐलान कर दिया। दूसरे दिन की सभा में जनता को इस सेना में भर्ती न होने की चेतावनी दी गई, नेताओं का तर्क था कि यह युद्ध हमारे देश के हित में नहीं है और न ही हमारे हितों के लिए लड़ा जा रहा है।
इस अपराध के कारण चौधरी जी पर राजद्रोह का मुकदमा चला। इस मुकदमे में सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि सरकारी पक्ष से एक भी गवाह पूरे दमोह शहर व देहात में नहीं मिला, परन्तु चौधरी जी के पक्ष में दो हजार लोगों ने गवाही देने को अपने नाम दिये। सरकारी दबाव पड़ने पर भी जब कोई व्यक्ति गवाह के रूप में नहीं मिला तो बहुत दिनों तक मुकदमा टालते हुए अन्त में मुकदमा खारिज कर दिया गया।
इसी बीच प्रान्तीय सरकार द्वारा सागर जिले के 'रतोना' ग्राम में बूचड़खाना खोले जाने का प्रस्ताव आया। सागर के साथ दमोह जिले में भी इसका डटकर विरोध किया गया, चौधरी जी इस विरोध में अग्रिम पंक्ति में थे। अंत में बूचड़खाने का कार्य बंद करा दिया गया।
शहीद गाथा. पस्तक में 'शहीद चौधरी भैया लाल' के लेखक श्री कपर चंद विद्यार्थी ने एक घटना का उल्लेख किया है जो चौधरी जी के दबंग व्यक्तित्व को प्रकट करती है। 'चौधरी जी ने असहयोग में भाग लिया
और प्रत्येक दकानदार से विदेशी कपडा बेचने का बहिष्कार कराया। एक धनी-मानी, विदेशी कपड़ों का प्रधान व्यापारी मना करने पर भी चोरी से रातों-रात कपड़ा बेचता और दिन को लम्बी-चौडी बातें करता। जब चौधरी जी को पता चला तो वे उसी दुकान के सामने अनशन पर बैठ गये और 3-4 दिन लगातार बैठते रहे, अन्त में दुकानदार ने महाबली होते हुए भी क्षमा मांगी। आखिर चौधरी जी ने छठे दिन अनशन तोड़ा।'
चौधरी जी जब कलकत्ता कांग्रेस की किसी मीटिंग में भाग लेकर लौट रहे थे तब मिर्जापुर के आस-पास दो अंग्रेज सैनिकों से ट्रेन में ही उनका विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि अंग्रेज सैनिकों ने गोली चला दी। इलाहाबाद जंक्शन पर गाड़ी खड़ी होने पर लाश को बाहर निकाला गया और पुलिस के संरक्षण में दाह-संस्कार कर दिया गया। परिवार वालों को तार द्वारा सूचना दी गई, जो दो दिन बाद उन्हें मिली। परिजन यह दुखद समाचार सुनकर इलाहाबाद पहुँचे, परन्तु पुलिस ने कोई निश्चयात्मक उत्तर नहीं दिया और
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प्रथम खण्ड
79 खिड़की से टकराकर मृत्यु होने की बात कहकर टाल दिया। इस घटना के साक्षी कुछ लोगों को ढूँढकर जब परिवार वालों ने पता लगाया तो. दो अंग्रेज सैनिकों को वाद-विवाद में हराने और उनके द्वारा प्राण-हनन का पता लगा जो चौधरी जी के स्वभाव से सत्य ही है।
यद्यपि 'परवार जैन समाज का इतिहास', पृष्ठ 519 एवं 'शहीद गाथा', पृष्ठ 28-30 में चौधरी जी को शहीद लिखा गया है। परन्तु 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक', भाग 2,पृष्ठ 87 पर उन्हें स्वतन्त्रता सेनानी ही लिखा गया है। यथा '.........सन् 1908 में बंग-भंग के समय से स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। सन् 1917 में बन्दी। सन् 1922 में एक यात्रा में आकस्मिक स्वर्गवास।'
आ)-(1) शहीद गाथा, पृष्ठ 28-30, (2) प) जै() इ), पृ0 519, (3) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ 87, (4) चौथा संसार, इन्दौर 27-8-1997 (5) ज्ञानोदय, मई 1952 अंक
000
प्राचीन पुरुषों के गुणों को कौन कह सकता यहाँ। सम्पूर्ण सागर नीर यों घट मध्य रह सकता कहाँ।
- राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त
विस्मए अज़मते माजी को न महम्मिल समझो। वो में जाग जाती हैं अक्सर इन अफसानों से।।
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना। सर्वलोकधृतं गर्भं यथावत्संप्रकाशयेत्।।
स्वजातिपूर्वजानां तु यो न जानाति सम्भवम्। स भवेत् पुंश्चलीपुत्रसदृशः पितृवेदकः॥
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद चौथमल भण्डारी
1942 के 'भारत छोडो आन्दोलन' में जेल में ही अपना जीवन भारत माता के चरणों में समर्पित करने वाले अमर शहीद चौथमल भण्डारी का जन्म 3 जुलाई 1926 को ग्राम कायथा, जिला - उज्जैन (म०प्र०) में हुआ । इनके पिता का नाम श्री केशरी मल भण्डारी था जो आस-पास की जनता में अत्यन्त लोकप्रिय थे। माता धार्मिक स्वभाव वाली समाज सेविका महिला थीं। किशोरावस्था में ही भण्डारी जी जुलूसों और सभाओं में जाने लगे थे। सिर पर सफेद टोपी, धोती और कुर्ता, यही वेषभूषा थी चौथमल भण्डारी की।
भण्डारी जी ने महिदपुर क्रान्ति में भाग लिया था। श्री विनायक राव व्यास इनके क्रान्तिकारी साथी थे। 1942 के आन्दोलन में भण्डारी जी को 20 अगस्त 1942 को बन्दी बना लिया गया। 22 जुलाई 1943 को इन्दौर जेल में ही उनकी किसी कारणवश मृत्यु हो गई। शव यात्रा इन्दौर में निकाली गई थी, जिसमें अनेक कांग्रेसी नेता सम्मिलित हुए थे।
इन्दौर (म०प्र०) से प्रकाशित होने वाले 'जैन प्रतीक' (मासिक) ने अपने जुलाई 1996 के अंक में 'जैन समाज का गौरव : अमर शहीद चौथमल भण्डारी' शीर्षक से एक सचित्र लेख प्रकाशित किया है जिसके अनुसार इन्दौर का सर्राफा बाजार प्रति गुरुवार को अमर शहीद के सम्मान में बन्द रहता था। इनके पिता को अल्प समय के लिए पेंशन भी मिली थी। लेख के अनुसार 'शासन ने इनकी (चौथमल भण्डारी की ) स्मृति में इन्दौर में शहीद चौथमल उद्यान ( जो आज नहीं) तथा कायथा इनकी जन्मस्थली पर शासकीय आयुर्वेदिक औषधालय बनाया था, किन्तु आज इस आयुर्वेदिक औषधालय पर इनके नाम का स्मृति पटल नहीं है । इन्दौर उद्यान के बाद एक मार्ग का नाम 'शहीद चौथमल भण्डारी' रखा था।' (पृष्ठ-4) 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक', भाग 4, पृष्ठ 162 पर चौथमल भण्डारी जी का नाम स्वतन्त्रता सेनानियों की सूची में है। इस सूची के अनुसार भण्डारी जी ने दि० 3 जून 1942 से 24 सितम्बर 1942 तक कारावास भोगा था। नई दुनिया, इन्दौर में प्रकाशित एक संक्षिप्त परिचय में भी चौथमल भंडारी को शहीद लिखा गया है।
-
आ०- (1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग 4, पृष्ठ 162, (2) जैन प्रतीक, इन्दौर, जुलाई 1996, (3) नई दुनियां, इन्दौर, 31-12-1997
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श्री अर्जुनलाल सेठी के वफादार और जांवाज शिष्य वीर मोतीचन्द जैन की फाँसी की सजा हो गई। मोतीचन्द महाराष्ट्रियन जैन थे। सेठी जी को बहुत सदमा पहुँचा । मोतीचन्द की पवित्र स्मृति में सेठी जी ने अपनी कन्या का विवाह महाराष्ट्र के एक युवक से इस पवित्र भावना से कर दिया कि " मैंने जिस प्रान्त और जिस समाज का सपूत देश को बलि चढ़ाया है उस प्रान्त को अपनी कन्या अर्पण कर दूँ। सम्भव है उससे भी कोई मोती जैसा पुत्र रत्न उत्पन्न होकर देश पर न्यौछावर हो सके । "
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प्रथम खण्ड
अमर शहीद भूपाल पंडित अगस्त 1957 के 'सन्मति' (मराठी) में प्रकाशित 'स्वातन्त्र्य युद्धांतील अहिंसेचा वीर हुतात्मा श्री भूपाल पंडित' संक्षिप्त लेख के अनुसार पाँच बार जेलयात्रा करने वाले और अन्त में पराधीनता की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीर हुतात्मा भूपाल पंडित असामान्य गुणों के धनी थे। वे अनायास ही किसी के कब्जे में आने वाले नहीं थे। उनमें गजब का बल था। अंधनिष्ठा और अंधभक्ति उनके पास नहीं थी। हर बात को सत्य और तर्क की कसौटी पर कसना उनका स्वभाव था। इसी स्वभाव के कारण देश की आजादी के क्रान्ति-यज्ञ में वे कूद पड़े।
__पंडित जी एक स्वतन्त्र बुद्धि के धारक, सत्याग्रह के लिए सदैव तैयार रहने वाले क्रान्तिकारी थे। अपने ऊपर दायर मुकदमा और शिवाजी दंगल मुकदमे के आरोपियों को छुड़ाने के लिए उन्होंने 'राम के पार' पर उपोषण शुरू किया था। खालसा में तीन बार, हैदराबाद संस्थान में एक बार और कोल्हापुर में एक बार इस
बार उन्होंने जेल यात्रायें कीं। उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ महाराष्ट्र न होकर पूरा देश ही था। ब्रिटिश राज
ज जहाँ कहीं भी वे जुल्म और अत्याचार देखते, आपे से बाहर हो जाते और उस अत्याचार को दूर करने का प्रयत्न करते रहते। यही कारण था कि जब उन्होंने कोल्हापुर में रहते हुए हैदराबाद में अत्याचारों के सन्दर्भ में सुना तो तत्काल हैदराबाद गये और वहीं जेल में बन्द कर दिये गये। हैदराबाद जेल से छूटते ही कोल्हापुर आये और आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने न केवल स्वयं ही आन्दोलन में भाग लिया अपितु अन्य भी अनेक लोगों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, उनमें गजब की नेतृत्व क्षमता थी। पंडित जी रात-दिन जन-जागरण का कार्य करते रहे और अन्त में शहीद हुए। कुरुंदवाड संस्थान में मोर्चा निकालने में उनका बड़ा हाथ था। भूपाल पंडित सेनापति बापट जी के प्राण-यज्ञ-दल में एक बड़े सेनानी थे। सेनापति बापट जी भूपाल पंडित पर पुत्रवत् प्रेम करते थे। आ). सन्मति (मराठी), अगस्त 1957
. ..
जिस संविधान का देशवासियों के जीवन, उनके लक्ष्यों और आकांक्षाओं से कोई सरोकार नहीं होता, वह खोखला रह जाता है, उससे देशवासियों की अवनति होती है। लोगों के मन-मस्तिष्क को ऊँचे लक्ष्यों की ओर केन्द्रित करना संविधान का लक्ष्य होना चाहिए।
--पं0 जवाहर लाल नेहरू (संविधान सभा, 8 नवम्बर, 1948)
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अमर शहीद भारमल
'सन्मति', (मराठी) के ही अगस्त 1957 के अंक में प्रकाशित संक्षिप्त लेख के अनुसार 16 दिसम्बर 1942 को पुलिस की गोली से तत्काल ही अमर शहीद भारमल का देहावसान हो गया था। Who's who of Indian martyrs, vol. I, Page 43 के अनुसार 'भारमल का जन्म 1927 के लगभग ग्राम मुरगुड, तालुका - कागल, जिला कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में हुआ। उनके पिता का नाम श्री रामचन्द्र भारमल था। वे कक्षा 7 के विद्यार्थी थे तभी उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने कागल की ट्रेजरी पर (लूटने के लिए) हमला किया, पुलिस द्वारा पकड़े गये और उसी दिन पुलिस की गोली से मारे गये। यह घटना 13 दिसम्बर 1942 की है।'
आ) (1) Whos' who of Indian myrtyrs, Vol. 1, Page 43 ( 2 ) सन्गति (मराठी), अगस्त 1957
मैं इस मंच पर खड़े होकर यह घोषणा करता हूँ कि आज हम पर जो लाठी चार्ज हुआ है, वह अंग्रेजी साम्राज्य का अन्त निकट आने की सूचना देता है- मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की एक-एक कील सिद्ध होगी।
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अमर शहीद लाला लाजपत राय
इस देश की आजादी, एकता और अखण्डता की रक्षार्थ, शहीदों की स्मृति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए उनके बलिदान - स्थलों पर स्मारक बनाना, सभाएं आयोजित करना, जन-जागरण रैलियाँ निकालना, डाक टिकट जारी करना एवं स्मारिकायें प्रकाशित करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
रघुवीर सहाय (मध्य प्रदेश सन्देश, 15 अगस्त 1987 )
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प्रथम खण्ड
अमर शहीद हरिश्चन्द्र दगडोबा जैन भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में हैदराबाद मुक्ति संग्राम का भी बड़ा महत्त्व है। हैदराबाद को निजाम- राज से मुक्ति दिलाने के लिए भी देशप्रेमियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। इसी संग्राम के अमर शहीद हैं श्री हरिश्चन्द्र दगडोवा जैन। महाराष्ट्र के परभणी जिले के मानवत कस्बे में हरिश्चन्द्र जी सपरिवार रहते थे। 1937 में हरिश्चन्द्र जी के एक भाई को रझाकारों ने छल से मार दिया था। इतने पर भी हरिश्चन्द्र हतोत्साहित नहीं हुए। वे समय-समय पर राज्याधिकारियों से लोहा लेते रहे। हैदराबाद मुक्ति संग्राम के समय वे धर्माबाद (जिला-नांदेड) जाकर बस गये थे। वहाँ उन्होंने स्वामी रामानन्द तीर्थ जैसे प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व में काम किया।
स्वामी जी के प्रमुख साथी श्री गोविन्द राव पानसरे के सहकारी बनकर हरिश्चन्द्र जी आन्दोलन करते रहे। 1946 के अक्टूबर में निजाम सरकार ने गोविन्दराव तथा हरिश्चन्द्र जी को उनके अन्य साथियों के साथ हिरासत में ले लिया। जैसे-तैसे वहाँ से छूटकर सभी जा रहे थे कि धर्माबाद से 7-8 किलोमीटर कुंडलवाडी ग्राम में रझाकारों ने सबको घेर लिया। घटना स्थल पर ही श्री गोविन्दराव धराशाई हो गये। हरिश्चन्द्र जी भी मार से काफी जख्मी हो चुके थे, फलस्वरूप दो-तीन दिन बाद ही वे शहीद हो गये। हरिश्चन्द्र जी के पुत्र श्री मधुकर राव भी स्वतंत्रता सेनानी हैं।
आ0 (1) श्री मधुकर हरिश्चन्द्र जैन, मानवत द्वारा प्रेषित परिचय (2) भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील जैनांचे योगदान (मराठी), पृ.) 154
00
माता (देश) और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण देना ही में पसन्द करता हूँ।
मेरा फांसी पर लटकना ही मेरा संदेश होगा।
आपने केवल मेरी माता की ही बात सोची है, परन्तु मेरी माँ की भी माँ, हम सबकी माँ, भारत माता की बात नहीं सोची।
- अमर शहीद मोतीचंद
भूतदया जैनों का मुख्य तत्त्व है। मैं सब अहिंसावादी लोगों को जैन समझता हूँ।
मुझे दुनियां को कोई नई चीज नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आये हैं।
__ - महात्मा गांधी
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...स्वतंत्रता संग्राम में जैन
उपक्रम : पाँच
जैन स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती अंगूरी देवी जैन प्राप्त करने के लिए आग भड़क उठी थी। 1930 के पर्यषण पर्व, वीर निर्वाण संवत् 2519, अपने सत्याग्रह में वे महिलायें, जो कभी पर्दे के बाहर आगरा पर्यषण-प्रवास के दौरान मैं अनंत चतुर्दशी के निकलने की सोच भी नहीं सकती थीं, वो भी अपने दिन सायंकाल 'साहित्य कुंज' में प्रविष्ठ हुआ, एक देश की खातिर सब बंधन तोड़, स्वतंत्रता की लड़ाई
वृद्ध महिला ने बड़े प्रेम से में कूद पड़ी। मैंने सैकड़ों महिलाओं को घर से बैठाया, मुझे समझते देर न निकाल कर एकत्रित किया और उनका नेतृत्व किया लगी कि यही देश हित तैयार । मुझे आगरा जिला का चौथा डिक्टेटर नियुक्त किया हैं गरदन कटाने के लिए' का गया।' आह्वान करने वाली श्रीमती नमक सत्याग्रह आंदोलन में श्रीमती जैन ने अंगरी देवी हैं। इनको देखकर कोतवाली पर धरना दिया, पुलिस के प्रहार के कारण
कौन कह सकता है कि इस काफी चोटें आयीं और छ: माह की सजा व जुर्माना सम्भ्रान्त महिला ने जेल की कठोर यातनायें सही होगीं हुआ। जेल से रिहा होकर आप फिर कार्य में जुट और देश की आजादी के लिए सब कुछ होते हए भी गयीं। गोरी सरकार द्वारा सभा पर पाबंदी होने पर भी अपना सुख उन्होंने छोड़ दिया होगा ? परन्तु यह सच आपने 26 जनवरी को 'सैनिक प्रेस' की छत पर खड़े है। श्रीमती अंगूरी देवी जैन आगरा के प्रसिद्ध होकर भाषण दिया। इस सभा में सैकड़ों भाई बहिन स्वाधीनता सेनानी, साहित्यकार, पत्रकार, संस्कृतिकर्मी, एकत्रित हुए थे। पुलिस ने इस सभा में लाठी चार्ज जैन-साहित्योद्धारक, प्रकाशक और श्री बनारसी दास किया, जिससे सभा भंग हो गयी, चारों तरफ पुलिस चतुर्वेदी के शब्दों में अखिल भारत के चोटी के की लाल पगड़ी दिखाई दे रही थी। पुलिस ने आपको हिन्दी सेवक' स्व0 महेन्द्र जी (जिनका परिचय इसी गिरफ्तार कर लिया। साथ में आपकी बड़ी पुत्री पद्मा ग्रंथ में है) की पत्नी हैं।
भी थी। आपको गिरफ्तार कर कोतवाली ले जाया श्रीमती अंगूरी देवी का जन्म 19 जनवरी 1910 गया, सारे रास्ते आप नारे लगाती रहीं 'इंकलाब को श्री होतीलाल जैन के यहां कासगंज में हुआ। जिंदाबाद' दरोगा मुहम्मद अली डंडे फटकारता रहा आपने कक्षा 5 तक पढ़ाई की। 22 मई 1922 में और कहता रहा कि 'चुप रहिये' लेकिन आपकी आगरा के महान् देशभक्त महेन्द्र जी के साथ आपका आवाज कम नहीं पड़ी, यहां से आपको जिला जेल विवाह हुआ।
भेजा गया, आप उस समय गर्भवती थीं। फिर भी छ: अपने अतीत में डूबते हुए श्रीमती जैन ने माह की सख्त सजा सुनाई गई, जेल में पुत्री पद्मा भी बताया कि 'उन दिनों स्त्रियों में शिक्षा की कमी थी। साथ रहीं। पर्दा प्रथा चरम सीमा पर थी। मेरे पति ने स्वयं मझे 1932 के बाद के समय में सत्याग्रह कुछ पढ़ाया और पर्दा छुडाकर स्वतंत्रता संग्राम में अपने मंथरगति में आ गया, वहीं अंदर ही अंदर हिंसात्मक साथ सम्मिलित कर लिया। इस समय भारत में स्वतंत्रता गतिविधियों ने भो जन्म ले लिया था। आपकं निर्देशन
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प्रथम खण्ड
85 में थाना छत्ता में बम फेंका गया, टेलीफोन की तार कुर्सी हथियाने का। पार्टियां धर्म के नाम पर जातिवाद व्यवस्था भंग कर दी गई, टूंडला स्टेशन पर रेल की व देश का विखंडन न करें। आज हम एकता की बागियां जला दी गयीं, पोस्ट आफिस फंके गये, इस बजाय अनेकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। देश तरह अनेक हिंसात्मक गतिविधियों का सफल निर्देशन विभाजित हो रहा है, जाति भेद में हम बंटे जा रहे हैं। आपने किया
अनेकता एवं विभाजन के इस प्रवाह को रोकने की 1041-42 का व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन जरूरत है। समाज सेवी संस्थाओं, यवाओं तथा अंग्रेजों को सहयाग न देने के रूप में आंरभ हुआ। देशभक्तों को आगे आने की आज अत्यधिक 'भारत छोड़ो आन्दोलन' ने तो पूरे देश में आग ही आवश्यकता है।' लगा दी। इसस एक भारी तूफान उठ खड़ा हुआ, सारा
अपनी जेल यात्रा का कोई संस्मरण सुनाने का दश आदालित हो उठा, धडाधड़ गिरफ्तारियां होने आग्रह करने पर उन्होंने कहा कि -- 'जब हम सभी लगी. विदशी कपडों की होली जलाई जाने लगी, सत महिलायें काम निपटाकर रात में एक साथ बैठतीं तो कातनः चरखा चलाना एवं खादी का प्रचार-प्रसार कोई न कोई कविता आदि सुनाती थीं, मैंने भी एक हुआ।
कविता बनाई थी।' श्रीमती जैन ने स्वयं यह कविता 1946-48 के मध्य में सांप्रदायिक दंगे भड़क
सुनाईउठे, आपके पति इन दिनों जेल में नजरबंद थे, उनका
जेल मत समझो री बहनो निर्देश था कि 'मेरे सभी कार्यकर्ताओं के परिवारों की
जेल जाने के लिए सहायता व देखभाल करें' इन सब में आप अनवरत
कृष्ण मंदिर है वहां
प्रसाद पाने के लिए। लगी रहीं। घर-घर जाकर उनकी सहायता की साथ ही सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया
दो समय प्रसाद भी मिलता नहीं
बराबर नियम से आज की पीढ़ी को आप क्या संदेश देना
एक चमचा दाल, चाहेंगी' हमारे यह कहने पर आपने कहा कि-- 'मैं
रोटी पांच खाने के लिये। बहत थोड़ी सी शिक्षा ही ग्रहण कर पायी पर उस
हापुड़ के पापड़ से बढ़कर समय इतना मतलब अवश्य समझती थी कि देश को
रोटियां हैं जेल की आजाद कराना है, मैं अनपढ़ तथा पढ़े-लिखे सभी से
दाल क्या? जीरा जल, यह कहना चाहूँगी कि वो इस देश के मूल्यों को
कब्जी मिटाने के लिये। पहचानें, इस धरोहर को सहेज कर रखें एवं इसके
यहां कोई बेकार बैठ सकता है नहीं विकास के लिये उठ खड़े हों, यह देश हमारा है, इस
चक्र भी है कृष्ण का चक्की चलाने के लिये। देश को अपना समझें, पहचानें, विदेशी फैशन को न
शरम है गर, चोरी चारी कर अपनायें। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को सहेज कर
जावें जेल में रखें।'
देश हित तैयार हैं __ अंगूरी देवी जी की वेदना है कि 'राजनैतिक
गरदन कटाने के लिये। पार्टियां धर्म को सड़क पर ला रही हैं।
आ0-(1) साक्षात्कार (2) उ0 प्र0 जै0 ध0, पृ0 89 धर्म बौद्धिक ज्ञान व मनशुद्धि का साधन है न कि (3) जै0 स0 रा) अ) (4) गो0 अ0 ग्र), पृ0 218
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री अक्षयकुमार जैन
1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर भोपाल (म0 प्र0) के श्री अक्षयकमार जैन, सेठ जी के नेतृत्व में आगरा में उसका जोरदार विरोध पुत्र श्री मानकलाल का जन्म 1922 में हआ। 1948 किया गया। 1930 के नमक सत्याग्रह में आपने भाग के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन के सक्रिय लिया और गिरफ्तार कर लिये गये। यह सेठ जी की कार्यकर्ता रहे श्री जैन ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिगत प्रथम जेल यात्रा थी। सेठ जी ने 'नैतिक जीवन दर्पण' रहकर कार्य किया। शासन ने सम्मान पत्र प्रदान कर में स्वयं अपना परिचय देते हुए लिखा हैआपको सम्मानित किया है।
'मुझे आज भी वह दृश्य भुलाये नहीं भूलता आ)-(I) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृ0 09 कि हजारों स्त्री-पुरुषों की भीड़ मेरे साथ नमक
कानून तोड़ने के लिए चल दी थी। हमने कई जगह सेठ अचलसिंह
नमक बनाकर कानून तोड़ा। फलत: मुझे गिरफ्तार कर आगरा (उ0प्र0) से लगभग 25 वर्ष तक लिया गया। इस अपराध में मुझे 6 माह की जेल और लोकसभा सदस्य रहे, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, 500 रुपये जुर्माना किया गया'
कर्मठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 1932 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी 22 फरवरी सेठ अचलसिंह का जन्म 1932 को मुझे गिरफ्तार किया गया। इस बार मुझे
5 मई 1895 को आगरा के अलग-अलग धाराओं में 18 माह की जेल एवं 500 रुप - रोशन मोहल्ले में हुआ, उनक जर्माना किया गया। इस लम्बी जेल यात्रा में मुझे
पिता का नाम श्री पीतममल विकट शारीरिक कष्ट हुआ। मेरा स्वास्थ्य बिगड़ गया था, जो प्रसिद्ध पहलवान थे, क भ कर टर्ड हो गया था जो आ.
अत: सेठ जी को उच्च नैतिक तक बरकरार है। इधर मैं जेल में था उधर मेरे पिता एवं शारीरिक बल विरासत में मिला, उनकी माता
तुल्य ज्येष्ठ भ्राता सेठ बलवन्तराय का स्वर्गवास हो श्रीमती स्वरूपा बाई धर्मपरायण महिला थीं।
गया।.......... "जेल में मेरा जैनाभ्यास" नामक पुस्तक सेठ जी की शिक्षा-दीक्षा गवर्नमेंट हाई स्कूल मेरे इन्हीं दिनों के अध्ययन और परिश्रम का फल है।' एवं राजपूत कालेज, आगरा में हुई। बाद में आप कृषि 'चंकि मेरी रुचि जनसेवा में थी इसलिए बडे कालेज, कानपुर तथा नैनी भी अध्ययनार्थ गये किन्तु भ्राता की मत्य के बाद सारा व्यापार ढप्प पड़ गया। राष्ट्र प्रेम के कारण अध्ययन छोड़ आजादी की लड़ाई 1933 में मैं जेल से छूट कर आया तो अपने सारे में कूद पड़े।
कारोबार को बन्द करके पूरी तरह कांग्रेस की सेवा में सेठ जी ने 1916 के लखनऊ कांग्रेस लग गया। 1934 में मैनें एक लाख रुपयों की धनराशि अधिवेशन में भाग लिया। 1918 में वे आगरा कांग्रेस से अचल ट्रस्ट की स्थापना की, जिसका उद्घाटन कमेटी के सदस्य बने। 1921 से 30 तक आगरा शहर मानवीय गोविन्द वल्लभ पन्त ने किया था।..... कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष तथा 1930 से 1947 तक 1935 में मैंने मोतीलाल नेहरू स्मारक भवन का अध्यक्ष पद पर रहे। 1943 से 1945 तक आप निर्माण कराया, जिसका शिलान्यास कांग्रेस अध्यक्ष प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी में आगरा नगर की ओर से श्री राजेन्द्र प्रसाद ने किया था।.......... 1937-38 में प्रतिनिधि भी रहे थे।
आगरा जिले में नशीली वस्तुओं की खपत बढ़ने से
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प्रथम खण्ड चिन्तित होकर मैंने 10 अप्रैल 1939 को "आगरा किया। उस दिन का ऐतिहासिक दिन कितना मनोहारी मद्य निषेद्य बोर्ड" की स्थापना की।'
था, यह मैं आज भी नहीं भूला हूँ। हजारों की भीड़ 1940 में महात्मा गांधी द्वारा पुनः सत्याग्रह उमडी पड रही थी। सबके मख पर हर्ष एवं मन आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। इस बार गांधी जी ने प्रफुल्लित थे। झंडारोहण कार्यक्रम में 'वन्देमातरम्' और सामूहिक सत्याग्रह के स्थान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह 'झंडा गायन' के पश्चात् स्वतंत्रता के संबंध में मैंने करने का आदेश दिया। लेकिन चूंकि गांधी जी का जो भाषण दिया था वह संघर्ष के बाद मिली सफलता आदेश था और व्यक्तिगत सत्याग्रह पर बैठने वाले को के उदगार थे, जिसे सुनकर लोगों में जोश भर गया अपने क्षेत्र का जनप्रिय होना भी आवश्यक था। था। उन्होंने करतल ध्वनि कर अपना हर्ष एवं उत्साह इसलिए लौट फिरकर सर्वप्रथम मेरा नाम ही आया। प्रकट किया। उस समय मझे भी लगा था कि मैंने सहर्ष अपनी स्वीकृति दे दी। मैंने सत्याग्रह पर स्वाधीनता आन्दोलन की संघर्ष-साधना में राष्ट्र की बैठने का निर्णय 15 दिसम्बर 1940 को लिया और ओर से मेरी भी विजय हुई है।' इसकी सूचना अधिकारियों को भेज दी। फलस्वरूप
1946 में आप आगरा नगर की ओर से प्रान्तीय मुझे मेरे बंगले से गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय
धारा सभा के लिए चुने गये और 1952 तक इस पद मुझे एक वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड दिया
पर रहे। 1952 में प्रथम लोकसभा के गठन से ही गया।'
1977 तक लगातार आप आगरा से लोकसभा सदस्य 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी आपने
आपन निर्वाचित होते रहे, पर 1977 में पराजय का मुंह जेल यात्रा की। इस सन्दर्भ में आपने स्वयं लिखा है
देखना पड़ा। इसके बाद आपने अपने नाती श्री निहाल ...........मुझे गिरफ्तार किया गया तथा जेल भेज ।
सिंह को चुनाव में उतारा और वे भी भारी बहुमत से दिया गया। जेल में इस बार मेरे कूल्हे का दर्द बहुत
विजयी हुए। बढ़ गया था, इसलिए मेरा स्वास्थ्य निरन्तर गिरता गया, यहाँ तक कि मेरा वजन जेल में 50 पौंड कम
1924 में स्वराज्य पार्टी के टिकट पर तत्कालीन हो गया। अन्त में 1944 में ढाई वर्ष जेल में रखने के विधान पारषद् का सदस्यता हतु आप चुने गये थे।
तिलक स्वराज्य फण्ड व गांधी स्मारक राष्ट्रीय काप के बाद मुझे स्वतः छोड़ दिया गया' 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के
लिए क्रमश: 25 हजार व साढ़े चार लाख रुपया संस्मरण को सेठ जी ने इस प्रकार व्यक्त किया है
आपने आगरा से एकत्रित कराया था। आप आगरा ..........पूरे देश में उल्लास पूर्वक 15 अगस्त को ।
न विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य रहे थे। 1953 में स्वतत्रता दिवस मनाया गया। उस दिन आगरा नगर में आपक सयाजकत्व में आगरा में अखिल भारतीय भी स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। मैं चंकि नगर कांग्रेस काग्र स' का आधवशन हुआ था, जिसम कमेटी का अध्यक्ष था. 14.15 अगस्त की रात को पं0 जवाहर लाल नेहरू व पं०) गोविन्द वल्लभ पन्न! 12 बजे मैंने किनारी बाजार के चौराहे पर ऐलान पधारे थे। 1954 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री किया कि आज हमारा देश स्वतंत्र हो गया है. अतः चाऊ एन) लाई के आगरा पधारने पर आपने उनका हजारों के हर्पित-उल्लसित जन-समूह के समक्ष मैंने ही भव्य स्वागत किया था। पाकिस्तान से आये शरणार्थिवा आगरा के रामलीला मैदान में प्रात: 7 बजे झण्डारोहण की भी आपने हर सम्भव मदद की थी। बिहार के
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भूकम्प, आसाम की बाढ़ आन्ध्र के भूकम्प आदि में भी आपने अपनी ओर से हजारों रुपया देकर सहायता की थी।
सेठ अचल सिंह ने ग्रामों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1928 में आपने 'अचल ग्राम सेवा संघ' की स्थापना की थी, जिसने अपनी शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य सेवाओं से ग्रामों में क्रान्ति कर दी थी। 1935 में आपने एक लाख रुपये का 'अचल ट्रस्ट' बनाया था, जिससे वाचनालय, पुस्तकालय आदि अनेक गतिविधियों का संचालन होता था ।
पशुकल्याण के क्षेत्र में सेठ जी का योगदान अविस्मरणीय है। साम्प्रदायिक सद्भावना बनाने में आप सदैव अग्रणी रहे। 1931 में हुए दंगे में आप पर ईंट पत्थरों से हमले हुए, सिर में घातक चोटें आई फिर भी आप अडिग सेनानी की भांति डटे रहे। सेठ जी लोकहित व जनसेवा के कार्यों के लिए धन एकत्र करने का कार्य अपने हाथ में लेते थे और लोग भी उन्हें मुक्त हस्त से दान देते थे। सेठ जी की धन संग्रह करने की क्षमता देखकर श्री कृष्णदत्त पालीवाल उन्हें आगरा का 'जमना लाल बजाज' कहकर सम्बोधित करते थे।
सेठ अचल सिंह के मन-मस्तिष्क को जो बात सबसे अधिक चिन्तित करती रही वह थी व्यक्ति-समाज और देश में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई अनैतिकता और नैतिक मूल्यों का तेजी से होता ह्रास। उनका मानना था कि जब तक हमारे राष्ट्रीय चरित्र का उत्थान नहीं होगा तब तक भारत की उन्नति नहीं हो सकती । उन्होंने समाज से भ्रष्टाचार, तस्करी, मिलावट, लूट एवं अनैतिक आचार आदि को मिटाने के लिए आगरा से ही एक प्रयोग शुरू किया, इसके लिए उन्होंने 1964 में 'नैतिक नागरिक संघ' की स्थापना की थी। आगे चलकर 1978 में उन्होंने घोषणा की थी कि 'आगरा जनपद में उन नागरिकों का सार्वजनिक
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
अभिनन्दन किया जाय जो किसी भी क्षेत्र में नैतिक मूल्यों व सदाचार पर आधारित साफ सुथरा जीवन व्यतीत कर रहे हों। '
पं() जवाहर लाल नेहरू से आपका घनिष्ठ संबंध था। 1929 में पं0 मोतीलाल नेहरू एक मुकदमें के संदर्भ में आगरा आये । सेठ जी उनसे मिलने गये। पं0 जी ने हंसते हुए कहा- 'अब आपको अपनी सेठाई छोड़कर देश के लिए कष्ट उठाने होंगे', सेठ जी ने तत्काल उत्तर दिया 'मैं देश सेवा के लिए तैयार हूँ और उस मार्ग में आने वाले हर संकट को सहन करूँगा । '
इन्दौर में सम्पन्न अ०भा) कांग्रेस कमेटी के जनरल अधिवेशन में भाग लेने सेठ जी पहुँचे, वहाँ भारी भीड़ थी। पं0 जवाहर लाल नेहरू भाषण दे रह थे। उनकी निगाह जब सेठ जी पर पड़ी तो तत्काल बोले 'आगरे का मोटा ताज जन-समुद्र की लहरों में फंसा हुआ है-- मैं जनता से निवेदन करता हूँ, उन्हें मंच पर आने दिया जाय
इसी प्रकार एक बार नेहरू जी विदेश यात्रा से वापिस आये। सेठ जी माला लेकर अभिवादन करने सबसे आगे पहुँच गये। हवाई जहाज से उतरते हुए नेहरू जी ने कहा- 'सेठ जी क्या आज आप राष्ट्रपति हैं?' (सेठ अचल सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 50 )
सेठ जी जैनधर्म के कट्टर अनुयायी थे, 1936 में अजमेर में हुए द्वितीय ओसवाल जैन महासम्मेलन के आप सभापति चुने गये थे। 'ओसवाल सुधारक' का प्रकाशन आपकी देखरेख में ही होता था । भ) महावीर 2500वां निर्वाण महोत्सव समिति के भी आप सदस्य थे। आपने स्वयं लिखा है- 'मेरे जीवन पर महावीर स्वामी एवं जैनधर्म के गुरुओं-सन्तों का प्रभाव मेरे विद्यार्थी जीवन में ही पड़ चुका था । ' 'जेल में मेरा जैनाभ्यास' पुस्तक आपने जैन दर्शन की अनेक पुस्तकें पढ़ने के बाद लिखी थी। 450 पृष्ठों
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प्रथम खण्ड
की इस पुस्तक में 70 शीर्षक हैं। जैनधर्म के प्रति उनकी गहन आस्था को लक्ष्य कर ही प्रसिद्ध पत्रकार श्री यशपाल जैन ने लिखा है 'सेठ जी में तड़प है कि जैन समाज ऊँचा उठे' (अभि) ग्र0), पृ0 62 ) सेठ जी की रचनाओं में 'जेल में मेरा जैनाभ्यास' के अतिरिक्त 1930 में लिखी 'सफल साधना' भी उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक राजनैतिक लेख भी लिखे हैं। 'नैतिक जीवन दर्पण' को सेठ जी की संक्षिप्त आत्मकथा कहा जा सकता है।
आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भगवती देवी में वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक सद्गृहिणी में होना चाहिए। निर्भयता, तेजस्विता और राष्ट्रप्रेम उनमें कूट-कूट कर भरे थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी वे पीछे नहीं रहीं। इस सन्दर्भ में सेठ जी ने लिखा है
'मेरे जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि जब-जब मैं भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल गया तब मेरी धर्मपत्नी ने मेरी अनुपस्थिति में महिला आन्दोलन चलाकर देश सेवा में मुझे सहयोग दिया । ' 1930 में जब सेट जी सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये तब सदर में एक बड़ा जुलूस निकाला गया। श्रीमती भगवती देवी ने कोतवाली के सामने हँसते-हँसते फूलों की माला पहनाई और हर्ष के साथ विदाई दी। श्रीमती भगवती देवी का निधन 18 जून 1949 को हुआ पर उससे पूर्व ही सेठानी जी ने 1946 में ही अपनी चल-अचल सम्पत्ति का वसीयतनामा एक महिला शिक्षण संस्थान के लिए कर दिया था। 29 जनवरी 1949 को श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के कर-कमलों द्वारा 'भगवती देवी जैन शिक्षण संस्थान' का उद्घाटन हुआ। आज यह 'भगवती देवी जैन पोस्ट ग्रेजुएट कालेज' के नाम से आगरा वि० वि० का उत्कृष्ट महिला कालेज है। सेठानी जी की इच्छानुसार ही आपने 1952 में अपने भतीजे नरेन्द्र सिंह उर्फ मुन्ना बाबू को तत्कालीन गृहमंत्री माननीय गोविन्द
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वल्लभ पन्त और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन की उपस्थिति में गोद लिया था। श्री मुन्ना बाबू इस समय उक्त कालेज के प्रबन्धक हैं। दि0 21/9/96 को अपने आगरा प्रवास के दौरान जब में मा0 रिखब चंद जैन (आगरा) के साथ श्री मुन्ना बाबू से मिलने गया तो यह देखकर दंग रह गया कि करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक होते हुए भी मुन्ना बाबू अपने हाथों से कालेज की बैन्चों की बैल्डिंग कर रहे थे।
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सेठ जी की कुछ मौलिक विशेषतायें थीं. वे कभी कोई सार्वजनिक चुनाव नहीं हारे, सदैव शुद्ध खादी के वस्त्र धारण करते थे, आगरा में अनेक नेताओं की मूर्तियाँ उन्होंने स्थापित करवाईं। 1971 में इन्दिरा गांधी के समाजवाद के नारे पर उन्होंने 'सेठ' पदवी लिखना बन्द कर दिया था। 'नैतिक पतन' को देखकर वे सदैव चिन्तित रहा करते थे। पूज्य बापू और नेहरू जी से जब-तब उनका पत्राचार होता रहता था। बापू द्वारा 1935 सेठ जी को लिखा गया पत्र निम्न है
राष्ट्रपिता म0 गांधी द्वारा सन् 1935 में लिखा
वर्धा, 19-2-35
गया पत्र
भाई अचलसिंह,
समय
आप एक एम0एल0 सी0 क्यों लिखते हैं? बहुत हि अनुचित लगता है। उत्तर लिखाते आपका खत मेरे सामने होने के कारण मेरी आँख छपी हुई चीज पर पड़ी, और यह देखा । इतने बड़े हर्फी में भी लेटरहेड नहीं छापे जाते ।
सुअर की बात पढ़कर मैं तो व्याकुल- चित्त बन गया हूँ। आपके खत को आज ही पहूँचा । उसका उत्तर ऐसे ही देता हूँ। क्या आपने यह दृश्य पहले हि देखा ? कितने हरिजन थे ? यह देखकर आपने कुछ किया ? यदि किया तो उन लोगों ने क्या उत्तर दिया यदि जिन्दा सुअर को आग में डालते थे तो
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क्या वह चिखते नहीं थे ? आप इस बारे में सूक्ष्म निरीक्षण करके मुझे लिखें। यदि यह प्रथा हरिजनों में सर्वसाधारण है तो हमारे बड़ा आन्दोलन करना होगा।
अगर जैसे आप लिखते हैं वैसे हर जगह होता होगा तो यह भयंकर पाप हरिजनों का नहीं हमारा है, वैसा मैं मानूंगा हमने उसकी घोर उपेक्षा की है उसका हि यह परिणाम हो सकता है।
आपका
मो० क० गाँधी
(नोट- पत्र में जिस प्रकार की भाषा है। वह वैसी ही दे दी है। ) (साभार- सेठ अचल सिंह अभि0 ग्रन्थ, पृष्ठ 105 )
सेठ जी को अपने जीवन में अनेक सम्मान मिले, 1974 में एक वृहद् अभिनन्दन ग्रन्थ उन्हें भेंट किया गया था। जिसके सम्पादक श्री प्रताप चंद जैसवाल हैं। 22 दिसम्बर 1983 को सेठ जी का निधन हो गया।
आ)- (1) सेठ अचल सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ, (2) नैतिक जीवन दर्पण (3) अचल चरित, (4) इ० अ० ओ० 2/393 (5) जै० स० रा० अ० ( 6 ) गो० अ० ग्र०, पृ0 217 218 (7) उ0प्र0 जै) ध०, पृ0 89 ( 8 ) अमर उजाला, आगरा (9) जिनवाणी, जनवरी 1984
हुआ ।
21
वर्ष की अल्पायु स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
श्री अजितकुमार जैन
श्री अजितकुमार जैन का जन्म उत्तर प्रदेश के ग्राम- कैलगुंवा, तहसीलमहरौनी, जिला झांसी में संभ्रान्त नागरिक, धर्मप्रेमी श्रीमान् पंडित मुन्नालाल जैन सतभैया के घर दिनांक 24 अक्टूबर 1914 को
में ही आप 1941 के व्यक्तिगत
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
सत्याग्रह में आप कार्य करते रहे तथा 1942 में जब बापू ने 'करो या मरो' का नारा दिया तब आंदोलन के कारण इनका तथा भगवानदास जोशी, कैलगुवां का वारंट कटा । आप फरार ( भूमिगत) होकर ओरछा राज्य स्टेट में आकर 'ओरछा सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य बने और 'ओरछा सेवक संघ मंडल' ग्राम कारी के मंत्रीपद पर कार्य करने लगे। तभी आप पं० श्री लालाराम बाजपेई, पं० चतुर्भुज पाठक, नारायणदास खरे, बाबूलाल मामुलिया, सुन्नु लाल नापित आदि के संपर्क में आये।
अपना राजनैतिक परिचय व अपने संस्मरण देते हुए आपने लिखा है- 'जब मैं भूमिगत रहकर कार्य कर रहा था तब तहसीलदार श्री राज बहादुर सिंह उर्फ हंटर बहादुर का दौरा हुआ, उसमें बेगार में साहब बहादुर तथा उनके स्टाफ के लेटने के वास्ते चर्मकारों के यहां से खटिया, कुम्हारों के यहाँ से मिट्टी के कोरे बर्तन, ढीमरों को पानी भरने के लिए तथा साहब बहादुर की पालकी उठाने के लिए पकड़ लिया जाता था तथा बनियों के यहां से भोजन सामग्री आदि बेगार में आती थी। तहसीलदार का स्वागत ऐसे होता था जैसे किसी दूल्हे का स्वागत हो रहा हो, बैण्ड बाजे के साथ ग्राम के संभ्रान्त नागरिकों को लेने जाना पड़ता था । पालकी में सवार तहसीलदार जैसे दूल्हा हो, प्रत्येक घर पर उनका टीका होता था, जो साहब बहादुर की जेब खर्च के काम आता था, परंतु मजदूरों की मजदूरी नहीं दी जाती थी न ही बनियों को रसद का पैसा । यदि दिया भी गया तो साल छः महीने बाद, वह भी आधा-अधूरा ।
मेरे विरोध करने पर तहसीलदार ने राजा से शिकायत की जिसके परिणामस्वरूप मुझे गिरफ्तार कर मोहनगढ़ में बंद रखा गया ।
'राजपूत सेवा संघ' राजा जागीरदारों द्वारा बनाया गया गुट था। जिसका विरोध करने पर मुझे इतना
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प्रथम खण्ड पीटा गया कि मैं तीन दिन तक बेहोश रहा, शरीर में उसके संरक्षक पद पर रहा। हरिजन सेवक संघ का अनेक चोटें आयीं जो आज भी बद्दल होने पर उक्त सदस्य रहने के कारण हरिजनों को मंदिर-प्रवेश घटना की याद दिला देती हैं। मैं टीकमगढ़ शहर से कराने में अग्रणी रहा। अन्य राजनैतिक, सामाजिक नौ मील दूर इन्टीरियल में था। जब टीकमगढ़ श्री आंदोलनों में समय-समय पर समर्पण की भावना से सरदार सिंह तथा श्री मगनलाल गोइल्ल को खबर सक्रिय योगदान देता रहा।' मिली तब वह ग्राम कारी आये और मुझे बेहोशी की पिता से विरासत में प्राप्त गरीबी, राष्ट्रहित में हालत में खटिया पर रखकर टीकमगढ़ अस्पताल में समर्पित जवानी और बुढ़ापे में पुत्री और उसके बच्चों भर्ती करवाया।'
का भार, क्षीण होती आंखें, समाज की उदासीनता इन ___1946 में उत्तरदायी शासन प्राप्ति हेतु चरखारी सबने श्री जैन को तोड़ दिया है। हम उनके दीर्घायुष्य जेल में जाना पड़ा। चरखारी जेल में 2 माह 10 दिन की कामना करते हैं। तक बंद रहा। जेल से छूटने के बाद सरीला, बाबनी, आ0 (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, 2/125, (2) स्व) प0 बिजावर, छतरपुर, मैहर, पन्ना, नागोद आदि स्थानों
बाबू अजितप्रसाद जैन । पर जाकर आंदोलन हेतु लोगों को तैयार करता रहा।'
भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के सदस्य रहे, जीवन का सबसे दुखद पहलू बताते हुये श्री सहारनपुर (उ0प्र0) के बाबू अजितप्रसाद जैन का जैन ने लिखा है-'जब मैं जेल में बंद था तब मेरी जन्म 6 अक्टूबर 1902 को मेरठ (उ0 प्र0) में पत्नी श्रीमती कस्तूरी देवी बीमार पड़ी। मुझे मिलने के
हुआ। आपके पिता का नाम लिये पैरोल पर जाकर इलाज के लिये कहा गया
श्री मुकुन्दलाल तथा माता लेकिन मैंने बाकी के साथियों को छोड़कर जाना
का नाम दुर्गा देवी था। ग्यारह उचित नहीं समझा। आखिरकार वह स्वर्ग सिधार
भाई- बहिनों में आप आठवीं गयी, मुझे मिल ही न सकी। अमानत के रूप में एक
सन्तान थे। सात बहिनों के पुत्री पुष्पा देवी को ग्यारह माह का छोड़ गयी,
बाद जन्म होने के कारण जिसका पालन किया और फिर उसका विवाह किया
आपका लालन-पालन बहुत था परन्तु उसके पति ने इंदौर जाकर दूसरी शादी कर लाड़-प्यार से हुआ। आपकी शिक्षा मेरठ, मसूरी, ली। वह परित्यक्ता, उसके सभी बाल बच्चे मेरे साथ सहारनपर, लखनऊ आदि शहरों में हुई। लखनऊ से रह रहे हैं व मेरे ही आश्रित हैं।'
वकालात की परीक्षा पास कर आप सहारनपुर में अपने राजनैतिक कार्यों को बताते हुए आपने वकालात करने लगे और वहीं के स्थायी निवासी हो लिखा है-'ओरछा राज्य में जितने भी राजनैतिक आंदोलन गये। छात्र जीवन में आपने आन्दोलनों में भाग लिया। चलाये गये उन सब में मैं भागीदार रहा। रचनात्मक 1925-26 के आस-पास आपने राजनीति में प्रवेश कार्यों के अन्तर्गत विदेशी वस्त्रों का त्याग कराया। किया। अस्पृश्यता निवारण में अग्रणी रहा। उसी के फलस्वरूप अछूतोद्धार, चरखा चलाना आदि कार्य उन समाज से बहिष्कृत रहा। 1946 में विद्यार्थी आंदोलन दिनों की राजनीति के महत्त्वपूर्ण अंग थे, सहारनपुर में विद्यार्थियों का साहस बंधाया तथा आंदोलन में में इस प्रकार के रचनात्मक कार्यों का प्रारम्भ 1921 साथ रहा। 'वीर बाल मंडल' का गठन किया तथा में हो गया था। बाबू झुम्मन लाल जैन इसके अगुआ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन थे। 1926 के बाद अजितप्रसाद जी भी इसमें सक्रिय निकाला गया। तत्काल प्रशासन ने धारा 144 लगा दी, हा गय। 1927-28 में उनके इस प्रकार के कार्यो पर श्री जैन कहाँ मानने वाले थे, अपने अनेक साथियों की चरम परिणति तब हुई जब जैनियों ने उन्हें जाति के साथ उन्होंने धारा 144 तोड़ी और गिरफ्तार हुए से बहिष्कृत करने का विचार किया। इस सन्दर्भ में आपके गिरफ्तार होने पर श्रीमती सरजू प्रभादेवी एवं श्री जैन के साथी श्री हीरा वल्लभ त्रिपाठी ने एक जावित्री देवी ने भाषण दिये थे। दिसम्बर 1932 में साक्षात्कार में बताया था कि '1927-28 में सहारनपुर धारा 144 तोड़ने के अपराध में आपका पुन: गिरफ्तार में एक सहभोज का आयोजन किया गया जिसमें कोई कर लिया गया और 4 माह की सजा सुनाई गई। वहाँ जाति. वर्णादि का भेद नहीं रखा गया। मौलाना मंजुरुल से छूटने के बाद आपन श्री खुरशैदी लाल के साथ पुनः नबी. अजित प्रसाद जैन व मैं सहभोज में सक्रिय थे, सत्याग्रह कर दिया, फलतः पुन: गिरफ्तार हुए और जेल अत: तीनों का उलेमाओं, जैनियों और पण्डितों ने से तभी छूटे जब आन्दोलन शान्त हो गया। जाति से निकालने का प्रयत्न किया, परन्तु उन्हें सहारनपुर के साथ-साथ आप तहसील देवबंद सफलता न मिल सकी।
में भी सक्रिय रहे थे। 12-4-1930 को देवबन्द में सहारनपुर में जब 1927 में कांग्रेस का विधि एक कांफ्रेंस हुई! देवबंद के हाकिम इलाका बाबुराम वत् गठन हुआ तो उसमें श्री जैन सक्रिय कार्यकर्ता यादव ने घोषणा की थी- 'जो देवबन्ट में जलसा थ। 1928 में श्री जेन कलकत्ता कांग्रेस में सम्मिलित करेगा उसे हन्टर से पिटवाऊँगा,' अजितप्रसाद जी ने हुए। 1924) में जब महात्मा गांधी सहारनपुर आये तो यह चुनौती स्वीकार की, वे लालता प्रसाद अख्तर,
अजितप्रसाद जैन का स्वागत समिति का मंत्री बनाया मौलाना अब्दुल वहीद और लगभग चार सौ कांग्रेसियों गया। उन्हीं के प्रयास से गांधी जी को दस हजार के साथ कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए देवबन्द पहुंचे। रुपये की थैली भेंट की गई।
सभा में जोशीला भाषण दिया, परिणामत: आपका गांधी जी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा मार्च गिरफ्तार कर लिया गया। 5-3-1931 में जब गांधी 1930 में साबरमती आश्रम से प्रारम्भ हुई। इस यात्रा इरविन समझौता हो गया तब आप रिहा कर दिये गये। के प्रारम्भ होते ही समस्त देश में हलचल मच गई, 12 अगस्त 1934 को श्री हीरा वल्लभ त्रिपाठी सहारनपुर जनपद पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा। की अध्यक्षता में सहारनपुर नगर कांग्रेस कमेटी के 8 मार्च को विशाल सभा का आयोजन सहारनपुर में चुनाव हुए। अजित प्रसाद जी इसमें प्रधान चुने किया गया जिसकी अध्यक्षता श्री जैन ने की थी। गये इसी वर्ष जिला कांग्रेस कमेटी में आप प्रतिनिधि 13 मई 1930 को सहारनपुर के सैयद अब्बास तैय्यब चुने गये। को गिरफ्तार कर लिया गया इसके विरोध में जुबली 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत पार्क में एक जलसा हुआ, जिसमें 14 मई की केन्द्र और प्रान्तों में अलग-अलग सरकार बनाने की हड़ताल का ऐलान किया गया। यह जलसा ।। बजे व्यवस्था थी। यह अधिनियम पहली अप्रैल 1937 से तक चला, इसमें अजित प्रसाद जी ने जोशीला भाषण लागू होना था। इसमें मुसलमानों के लिए अलग से दिया था।
निर्वाचन की व्यवस्था की गई थी। 1936 में ____ जनवरी 1932 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की यू0पी0असेम्बली के चुनाव कांग्रेस ने मुस्लिम लीग गिरफ्तारी के बाद सहारनपुर में एक विशाल जुलूस के साथ मिलकर लड़े थे। सहारनपुर जनपद में नये
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प्रथम खण्ड
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एक्ट के अन्तर्गत एक के स्थान पर तीन हिन्दू सीटें 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय हो गई थीं। नगरीय सीट पर भारी बहुमत से श्री जैन सहारनपुर का जिला कलेक्टर लॉयड जनता को विजयी हुए थे।
अच्छी शिक्षा देना चाहता था। अत: 30 अगस्त श्री जैन किसान कानून के विशेषज्ञ माने जाते 1942 को उसने पुलिस तथा होमगार्डों को साथ थे। वे सहाकारिता आन्दोलन से भी जुड़े रहे। 1938 लेकर सहारनपुर जेल को घेर लिया। जेल में इस के आस पास सरकार ने आपको रूस जाने का समय श्री जैन, ठा0 फूलसिंह और सेठ दामोदर दास पासपोर्ट नहीं दिया, परन्तु उ0प्र0 सरकार के नाराज थे। लॉयड ने बन्दियों को अपने-अपने स्थान पर होने पर केन्द्र सरकार को यह देना पड़ा था और जाने का आदेश दिया परन्तु सभी बंदी एक स्थान श्री जैन विदेश यात्रा पर गये थे। उ0प्र0 में जमींदारी पर इकट्ठे हो गये। स्थिति की गम्भीरता को समझते उन्मलन में भी आपने सक्रिय भमिका निभाई थी। इस हुए वह उस समय तो वापिस चला गया, परन्तु पुनः सन्दर्भ में प्रसिद्ध साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी रात के ग्यारह बजे जेल पहुँचा और बैठक में बंदी श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है- 'सारा सत्याग्रहियों पर लाठी चार्ज करवाया। झगडा होने पर किसान कानून उनकी प्रतिभा का बल पाकर सजीव जेल में खतरे की घण्टी बज गई और लॉयड हुआ। संसार भर की किसान समस्या का अध्ययन नौ आदमियों को जेल से ले गया तथा उनका करने के लिए जब वे विदेश गये तो जर्मनी के एक स्थानान्तरण मेरठ जेल में करा दिया, इनमें सम्भवतः पत्रकार ने उन्हें- "संसार के सबसे बड़े कानून कं श्री जैन भी थे। प्रमुख विधाता'' (किसान कानून पर 2400 संशोधन अपने जेल जीवन के विशद अनुभव श्री जैन आये थे) कहा था। आज (1947) जमींदारी की ने रोचक ढंग से वर्णित किये हैं। कुछ अंश हम यहाँ जब्ती के बारे में यूपी0 जो महान् अनुष्ठान कर रही दे रहे हैं-'मुझे सहारनपुर से हरदोई स्थानान्तरित कर है उसके वे मुख्य अंग हैं।'
दिया गया था, जहाँ मैनें अपने जीवन के कुछ सबसे 16-17 दिसम्बर 1939 को मुजफ्फराबाद में सुखद क्षण जिये........ गणेश शंकर विद्यार्थी हमें छोटे पांचवां जिला राजनैतिक सम्मेलन हुआ, इसमें आयोजित भाई की तरह स्नेह करते थे। ....... मुझे जेल में कभी किसान सम्मेलन की अध्यक्षता अजित प्रसाद ने की कोई परेशानी या परिवार से विछोह महसूस नहीं थी। इस राजनैतिक सम्मेलन में कुल चार प्रस्ताव हुआ। .....मुझे खूब याद है कि जेल से जाते हुए पारित हुए थे, जिनमें तीन पर आपने जोशीले भाषण गणेश शंकर विद्यार्थी की आखों में आंसू थे। मेरे रिहा दिये थे।
न हो सकने के कारण उनकी अपनी जेल से छूटने 8 सितम्बर 1941 को सहारनपर में सत्याग्रह की खुशी मद्धिम हो गई थी। ....हमारी जेल में झगडे करते हुए आप गिरफ्तार हए, आपको खतरनाक कैदी बहुत होते थे। ...मुझे याद है कि पुलिस आई0 जी0 मानते हए फतेहगढ़ जेल भेजा गया था। 1942 के की यात्रा के दौरान बहुत नारेबाजी हुई थी और हम में प्रारम्भ में सहारनपुर के दस व्यक्तियों को उग्रवादी से जो इस नारेबाजी के नेता थे, उन्हें एकान्त कोठरियों भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. में भेज दिया गया था। में भी उन्हीं में से एक था।' आपको भी वहराइच में दिये गये भाषण के आधार 1946 में कैबिनेट योजना के अन्तर्गत हुए चुनावों पर गिरफ्तार कर लिया गया था।
में हिन्दू सीट के अन्तर्गत आप सहारनुपर से चुने गये।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन इसी समय संविधान निर्मातृ सभा के लिए भी आप चुने
श्री अभयकुमार जैन गये जहां आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
श्री अभयकुमार जैन का जन्म 1912 में हुआ। आजादी के बाद देश के निर्माण में भी आपने आपके पिता का नाम श्री कल्याणदास था। कल्याणदास महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 में हुए प्रथम आम
। जी ग्राम-वैर, तहसील-मैहर चुनावों में आप सहारनपुर-मुजफ्फरनगर से लोकसभा
में कांग्रेस का काम गुप्त रूप के सदस्य चुने गये।
से करते थे। जबलपुर त्रिपुरी 1957 में भी आप संसद सदस्य
अधिवेशन में जाने से राजा सहारनपुर-मुजफ्फरनगर से चुने गये थे। केन्द्रीय सरकार
साहब नाराज हो गये और में आप पुनर्वास, खाद्य एवं कृषिमंत्री भी रहे थे।
लाखों रुपया, जो मैहर और 1961-64 में आप उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष,
बैर में दुकान का था, वसूल 1965-66 में केरल के राज्यपाल और 1968-74 में नहीं होने दिया और जो जमीन थी वह भी जब्त राज्यसभा सदस्य रहे थे। सहारनपुर में गूगों-बहरों के करके अपने नौकरों को दे दी। लिए एक विद्यालय की स्थापना भी आपने की थी। श्री जैन ने अपने परिचय में लिखा है- '1939 'सेवानिधि ट्रस्ट' के आप एकमात्र ट्रस्टी थे। 'यू0 पी0 में रक्षाबन्धन के समय पहला झंडा निकला, जबकि टिनेक्सी एक्ट' व 'रफी अहमद किदवई का जीवन उस समय शोर था, कि राजा सा) मैहर ने पुलिस को चरित्र' पुस्तकों के साथ-साथ आपके अनेक लेख आज्ञा दे दी है कि 'जो झंडा उठावे उसको गोली मार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। 2 जनवरी, 1977 दो।' हम लोग आजाद चौक मैहर में दीवानों की तरह को कन्सर जैसे असाध्य रोग से आपका देहावसान हो गया। झंडा लिये राष्ट्रगीत गाते मौत का इन्तजार कर रहे थे,
आ) (I)- जै0स0रा0अ0, (2)- स0स), I/ 146-188, एस0पी0 साल आये और मेरे सीने पर पिस्तौल लगाकर 538, 544,554 आदि, (3)- स0स0, 2:248-258, (4) उ0प्र0 जवा) पृ)-86. (5)- भारत को संविधान निर्मात गरजे कि 'तुमने झंडा किसकी आज्ञा से निकाला है। सभा का फाल्ड किया बड़ा चित्र इसी पुस्तक में देखें, जिसमें श्री मैंने कहा- 'आज्ञा गुलामों को लेनी पड़ती है, हम तो अजित प्रसाद जैन का चित्र है।
आजाद हैं'। इस पर एस0पी0 ने पकड़ लिया और श्री अबीरचंद जैन
झंडा मांगा परन्तु जब तक हम लोगों के हाथों में श्री अबीरचंद जैन, पत्र-श्री पन्नालाल का जन्म हथकड़ी नहीं पड़ी, झंडा लिये हुए चार हजार जनता 1900 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 के का हमारा जुलूस दीवान नागेन्द्रनाथ के बंगले पर आन्दोलन में आप अपने पुत्र श्री हीरालाल द्वारा पहुंचा। दीवान ने एस0पी0 को बुरे शब्दों में गाली दी भूमिगत होकर तोड-फोड के कार्य करने और गिरफ्तार फिर हम लोगों को (छ: आदमियों को) कोतवाली न होने पर बंधक के रूप में बन्दी बनाये गये थे। जेल ले जाकर बन्द कर दिया गया। से पुत्र को आत्म समर्पण न करने की प्रेरणा देते रहे। फिर हम लोगों के ऊपर मुकदमा चला जिसमें अन्तत: श्री हीरालाल के गिरफ्तार होने पर 5 माह दो वर्ष की सजा तथा 100 रु0 जुर्माना सुना दिया बाद रिहा किये गये।
गया और हम लोग जेल भेज दिये गये। जेल में हम ___ आ॥ (1) म0 प्र0 स्व) सैः), भाग ।, पृष्ठ 29, (2). लोगों पर डाकुओं और कातिलों द्वारा नाना प्रकार के स्वा) सा) ज), पृप्त 83
अत्याचार होने लगे। अत्याचार सहन न होने पर हम
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प्रथम खण्ड
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सबने मिलकर अनशन शुरू कर दिया और सातवें सदस्य रहे। लम्बी बीमारी के पश्चात् दिनांक अनशन पर जब डाक्टर ने रिपोर्ट दी कि, ये सब मर 17-1-1983 को आपका स्वर्गवास हो गया। जायेंगे, तब जाकर अत्याचार कम हए इस तरह मैहर आ)- (1) म0प्र() स्व) सै0, भाग जेल में एक वर्ष छ: माह बिताये।'
नरेश दिवाकर द्वारा प्रेषित परिचय। ___ आ)-(1) म) प्र) स्वा) सै), भाग 5. पृ0 256 (2) स्वः)
श्री अभयकुमार जैन पा, (3) अनेक प्रमाण पत्र (4) वि0 स्व0 स) इ), पृ0-344
व्यवसाय से चिकित्सक और 'अग्रगामी' जैसे श्री अभयकुमार जैन
राष्ट्रीय पत्रों के प्रकाशक, कटनी, जिला-जबलपुर 'अब्बू' उपनाम से विख्यात श्री अभयकुमार जैन, (म0प्र0) के श्री अभयकुमार जैन, पुत्र-श्री बारे लाल पुत्र-श्री गुलाबचन्द जैन का जन्म 7 सित0 1913 को का जन्म 1904 में हुआ। आयर्वेद तथा होम्योपैथी
सिवनी (म0प्र0) में हुआ। चिकित्सा में महारत प्राप्त श्री जैन 1920 से ही 1937 में आपने कांग्रेस स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय हो गये थे। 1930 के की सदस्यता ग्रहण की। जंगल सत्याग्रह में भाग लेने पर आप जबलपुर तथा 1942 के भारत छोडो मंडला जेलों में लगभग साढ़े सात माह बंद रहे।
आन्दोलन में आपने भाग 1934 में 'आदर्श' तथा 1938 में 'अग्रगामी' नामक लिया तथा सिवनी, राष्ट्रीय पत्रों का प्रकाशन आपने किया था।
आ) - (I) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ 29, (2) | छिन्द बाड़ा, नागपुर,
जैस) रा() अ01 जबलपुर जेलों में डेढ़ वर्ष का कारावास भोगा। सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित करने वाले श्री जैन में
श्री अभयमल जैन देश सेवा, ईमानदारी, राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा 'मारवाड़ लोक परिषद्' के संस्थापकों में एक कूट-कूट कर भरी थी।
श्री अभयमल जैन का जन्म जोधपर (राजस्थान) में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1906 ई.) में हुआ। शिक्षा समाप्त कर वे जोधपुर स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता
रेलवे- कार्यालय में नौकरी करने लगे। राष्ट्रीय भावना आन्दोलन में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर
से ओत-प्रोत श्री जैन ने 1928 से खादी पहनना शुरू से आपको ताम्रपत्र भेंटकर सम्मानित किया था। इसी
किया और 1932 में जब श्री जयनारायण व्यास ने
पुष्कर में मारवाड़ राजनैतिक सम्मेलन बुलाया तो श्री प्रकार दिगम्बर जैन समाज की ओर से भी सम्मान पत्र
जैन उसमें भाग लेने गये, हुआ वही जिसकी उन्हें भेंटकर आपको सम्मानित किया गया था। शासकीय
आशंका थी, उन्हें राजद्रोहात्मक कार्यों में भाग लेने उपाधि महाविद्यालय, सिवनी की ओर से भी आपको
का अपराधी मानकर नौकरी से निकाल दिया गया। अभिनंदन पत्र भेंट किया गया था।
अब वह खुलकर सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने वर्ष 1975-76 में आप बीस सूत्रीय आर्थिक लगे। कागज स्टेशनरी की जो दुकान उन्होंने खोली कार्यक्रम समिति के सदस्य, 1981 से 83 तक जिला वह राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गई। 1936 इंदिरा कांग्रेस कमेटी, सिवनी के कार्यकारी अध्यक्ष, में आपने अपने सहयोगी श्री मानमल जैन और श्री वर्ष 1982 में जिला थोक उपभोक्ता भण्डार के छगनराज चौपासनी के साथ छात्रों की शुल्क वृद्धि
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन और बाई जी के तालाब के मसले को लेकर
श्री अमीरचंद जैन आन्दोलन किया। सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लेने पर अपनी कविताओं से राष्ट्रीयता की अलख जगाने आपको एक वर्ष परबतसर के किले में रहना पड़ा, वाले, मण्डला (म0प्र0) के श्री अमीरचंद जैन उग्रवक्ता मारवाड़ लोक परिषद् के 1940 के आन्दोलन में और कर्मठ सिपाही रहे हैं। आप अपने अग्रज श्री आप सक्रिय रहे, 1942 के आन्दोलन में आप दो श्यामलाल जी के साथ आन्दोलन में सक्रिय हुए। आशा वर्ष जेल में रहे। जोधपुर की अनेक सामाजिक और थी कि श्यामलाल जी के जेल जाने पर आप शान्त हो राजनैतिक संस्थाओं की स्थापना में आपकी सक्रिय जावेंगे, पर आप नहीं माने। 1941 एवं 1942 के भूमिका रही। देश की आजादी का शीघ्र सपना देखने आन्दोलनों में आपको जेल यात्रायें करनी पड़ीं, 1942 वाले श्रद्धय अभयमल जी आजादी के मात्र एक माह में आप डेढ़ वर्ष जेल में रहे। आप प्रचार सामग्री प्रेस पूर्व जुलाई 1947 में आजादी का भावी जश्न में छापकर दिया करते थे। देशवासियों को छोड़कर पंचतत्त्व में विलीन हो गये। आ0 (1) जै) स0 रा0 अ0 आ) (1) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृ0-344
श्री अमीरचंद जैन (2) रा) स्व। स), पा)-6800
जबलपुर (म0प्र0) के श्री अमीरचंद जैन, श्री अभिनंदनकुमार टडैया
पुत्र- श्री कस्तूरचन्द का जन्म 1920 में हुआ। ललितपुर (उ0प्र()) निवासी, प्रसिद्ध टडैया
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में होशंगाबाद में
आप बन्दी बना लिये गये। आपने होशंगाबाद तथा परिवार में संट पन्नालाल जी के पुत्र श्री अभिनंदन
अकोला जेल में 2 माह का कारावास भोगा। कुमार टडैया के राष्ट्रीय विचार कॉलेज जीवन से ही रहे हैं।
आ0-(1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-1 , पृष्ठ 29 1942 के राष्ट्रव्यापी जन
श्री अमीरचंद जैन आंदोलन में सम्मिलित होने बालाघाट (म0प्र0) के श्री अमीरचंद जैन, पुत्र के कारण आप एक वर्ष श्री फदालीलाल जैन का जन्म 1920 में नरसिंहपुर कारावास और 100 रुपये (म0प्र0) में हुआ। दस वर्ष की उम्र में ही आप
| के दंड से दंडित होकर झांसी नमक सत्याग्रह के समय मंडला में स्वाधीनता आन्दोलन जेल में रहे। टडैया जी जिले के प्रसिद्ध वकीलों की ओर आकृष्ट हुए। 1932 में प्रभातफेरी निकालने में से हैं। आप जिला कांग्रेस एवं मंडल कांग्रेस के के आरोप में आपको बेतों की सजा दी गई। 1941 में सदस्य रहे हैं। जैनाजैन जनता पर आपका अच्छा व्यक्तिगत सत्याग्रह में 4 माह की नजरबन्दी तथा प्रभाव है। आप कई संस्थाओं की प्रगति से जुडे 1942 में लगभग 3 वर्ष जबलपुर जेल में आपने हए हैं। आपका जीवन सादा है। सही जिंदगी की काटे। 'वनवासी सेवा मण्डल' के आप सक्रिय कार्यकर्ता तलाश में और सत्य की खोज में आप सदैव लगे रहे। 1949 के बाद आप नरसिंहपुर से बालाघाट चले गये। रहते हैं।
___22 अगस्त 1997 को दैनिक भास्कर, जबलपुर ___ आ)-(1) रा) नी), पृ0-64, (2) जै0 स) रा0 अ0, को दिये एक साक्षात्कार में आपने कहा था- 'उस (3) डॉ.) बाहुबली कुमार द्वारा प्रेषित परिचय
समय हमारा सपना था कि देश आजाद होने के बाद
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प्रथम खण्ड
97 भारत में हमें एक खुशहाल देश देखने को मिलेगा। जन्म सात जुलाई 1919 को बमराना, जिला-झाँसी हुआ भी यही, आजादी के समय इस देश में सुई का
(उ0 प्र0) में हुआ। अल्पवय भी कारखाना नहीं था, सिंचाई व्यवस्था, विद्युत संयंत्र,
में ही आपको मातृ-पितृ शिक्षा का भी कोई खास फैलाव नहीं था। पंचवर्षीय
वियोग सहना पड़ा। योजनाओं द्वारा हमने कल कारखाने लगाये........ किन्तु
आपने ललितपुर, आज देश में चारित्रिक गिरावट हुई है। रिश्वतखोरों,
साढूमल, बरुआसागर आदि बेईमानों, घोटालों की बू आज हमें हर तरफ दिखाई दे
स्थानों पर शिक्षा ग्रहण की रही है। .... इस गहन अंधकार को दूर करने वाला
और उच्च शिक्षा के लिए कोई सूरज अवश्य निकलेगा।'
वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय पहुंचे, जहाँ ___ आ3- (1)म0प्र0स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ 170, (2) दैनिक से आपने न्यायतीर्थ और जैनदर्शनाचार्य की परीक्षायें
उत्तीर्ण की। भास्कर, जबलपुर, 22 अगस्त 1997
स्याद्वाद महाविद्यालय 1942 में क्रान्तिकारियों श्री अमृतलाल चंचल
का गढ़ था। विद्यालय के सभी छात्र आजादी के राष्ट्रीय गीतों के प्रसिद्ध लेखक श्री अमृतलाल आन्दोलन में शरीक हुए थे और अधिकांश ने गिरफ्तार चंचल, पुत्र-श्री हजारीलाल का जन्म 9 नवम्बर होकर जेल की दारुण यातनायें सही थीं। शास्त्री जी
1913 को टिमरनी, जिला- ने अपने 21-9-1994 के पत्र में स्वयं लिखा है-'सन् होशंगाबाद (म0प्र0) में हुआ। 1942 के राष्ट्रीय आन्दोलन में स्याद्वाद महाविद्यालय बाद में आप गाडरवारा, के छोटे-बड़े सभी छात्रों ने सक्रिय भाग लिया था। जिला- नरसिंहपुर (म0प्र0) सभी को भिन्न-भिन्न काम सौंपे गये थे। पिस्तौलों की आकर बस गये। जब रक्षा तथा आगन्तुक नेताओं की व्यवस्था का भार मुझे आप इन्टरमीडिएट में सौंपा गया था। ......इक्कीस दिन तक हम तीनों
अध्ययनरत थे तभी से विद्यार्थी (शास्त्री जी, श्री घनश्यामदास व श्री गुलाब चंद) आन्दोलन में सक्रिय हो गये। 1932 के आन्दोलन में हवालात में बंद रहे। श्री गणेशदास जैन ने जमानत आपने हरदा में सत्याग्रह किया, गिरफ्तार हुए और देकर हमें छुड़ाया। उस समय जमानत देने वाले नहीं साढ़े सात माह का कारावास भोगा। आपने अनेक मिलते थे... राष्ट्रीय और जैन कवितायें लिखीं साथ ही सौभाग्य का विषय है कि जिस स्याद्वाद 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' और 'भक्तामर' का हिन्दी महाविद्यालय में आपने अध्ययन किया और क्रान्तिकारी पद्यानुवाद किया है।
गतिविधियों में भाग लिया. उसी विद्यालय में आप ___आ0 (1) म0प्र0 स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ 137 1944 में अध्यापन कार्य करने लगे तथा 195) तक (2) स्व) प0
कार्य किया। 1960 से 1980 तक सम्पूर्णानन्द श्री अमृतलाल जैन शास्त्री
संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, 1981 से 1988 जैन साहित्य के तलस्पर्शी विद्वान, सकवि तथा 1993 से 1996 तक आपने जैन विश्वभारती पं0 अमृतलाल शास्त्री, पुत्र-श्री बुद्धिसेन जैन का (सम्प्रति मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूं (राजस्थान ।
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98
स्वतंत्रता संग्राम में जैन में अध्यापन कार्य किया। 1989 से 1992 तक आप उन्हें देखकर डर गया, फलत: मंदिर के पास से ही प्राच्य प्राकृत संस्कृत विद्यापीठ, अहमदनगर (महाराष्ट्र) मैंने पिस्तौलें गंगा में फेंक दी। सी0 आई0 डी0 के लोगों में रहे।
ने पहले मुझे गालियां दीं फिर रात नौ बजे पुलिस आई जैन संस्कृत साहित्य के सर्वोत्कृष्ट विद्वान् और मुझे व अन्य 15-20 छात्रों को गिरफ्तार करके प) जी ने द्रव्यसंग्रह, चन्द्रप्रभचरितम्, तत्त्वसंसिद्धि ले जाने लगी। मुहल्ले के लोग मेरे समर्थन में बाहर जैसे दुरूह ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया है। अनेक निकल आये। सभी ने कहा “यह लड़का बड़ा भोला अनुसन्धानपरक शोध-लेख आपके प्रकाशित हो चुके है यह तो बाहर भी नहीं निकलता।" पर पुलिस नहीं हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में भी आप साहित्य-साधना मानी। मुझे 21 दिन हवालात की सजा दी गई थी।' में संलग्न हैं। हाल ही में आपको 'श्रुत संवर्धन ट्रस्ट' 'अपने जेल जीवन के कुछ संस्मरण सुनायें' द्वारा इकतीस हजार के पुरस्कार से सम्मानित किया हमारे ऐसा कहने पर पं0 जी बोले-'हवालात में गया है।
बी0 एच) यू0 के अशोक, जो 16 वर्ष के थे और बी0 दिनांक 25-5-97 को वाराणसी में भगवान् एस0 सी0 के छात्र थे, हमारे साथ ही बन्द हुए थे प्रात: पार्श्वनाथ के जन्म स्थान भेलूपुर जैन धर्मशाला में उनके पिता आये और उनका तथा 4 अन्य हम लोगों वयोवृद्ध और कृशकाय पूज्य पं0 जी से हमने एक का भोजन लाये, उस दिन तो शान्ति से भोजन किया। साक्षात्कार लिया। इस अवसर पर डॉ कमलेश कुमार, बाद में जेल में वैसा भोजन नसीब नहीं हुआ।' पं0 जी डॉ) फूलचंद प्रेमी, डॉ.) सुरेशचंद जैन तथा पं0 जी कुछ द्रवित से होकर बोले-'भैय्या! जेल तो जेल है, के सुपुत्र श्री अशोक कुमार जैन भी मौजूद थे। दु:ख ही दु:ख था उन दिनों जेलों में। आज की जेलें
हमारे यह प्रश्न करने पर कि-'आप स्वतंत्रता तो सुनते हैं बहुत अच्छी हैं। उन दिनों राजनैतिक आन्दोलन में कैसे कूद पड़े' श्रद्वेय पं0 जी ने कहा कि कैदियों तक को मार खानी पड़ती थी। मैं तो एक समय 'मैं ही क्या 1942 के आन्दोलन में स्याद्वाद भोजन करता था। कम्बल ऐसे थे कि पहली रात जो महाविद्यालय, वाराणसी के शत-प्रतिशत छात्र आंदोलन दो कम्बल मिले थे उनमें एक बिछाया दूसरा ओढ़ा। में सक्रिय थे। मैं स्याद्वाद महाविद्यालय का सबसे सीध जब लेटा तो लगा कि आलपिनें चुभ रहीं हैं।' । छात्र था। मैं बाहर बहुत कम जाता था इसलिए मुझे प) जी ने आगे कहा- 'बाद में हमें श्री हरिश्चन्द्र ऐसे काम सौंपे जाते थे जो अन्दर रहकर ही करने पड़ें। वकील, श्री गणेशदास जैन रहीस व एक बैरिस्टर छुड़ाने मैं सीधा और भोला-भाला था, अत: विद्यालय के गये थे।'
अधिकारी व पुलिस मुझ पर क्रान्तिकारी होने का अन्त में मैंने एक प्रश्न और कर दिया 'पं0 जी विश्वास नहीं करते थे। एक बार मुझे छह पिस्तौलें आपके साथ पं0 खुशाल चंद गोरावाला जी भी थे, जो सुरक्षा के लिए सांपी गईं और कहा गया कि छेदीलाल बाद में सम्पूर्णानन्द जी के खास व्यक्ति रहे, राजनैतिक के मंदिर (यह मंदिर आज भी भदैनी घाट, वाराणसी क्षेत्र में उनकी लम्बी पहुँच भी थी, फिर आपने पेंशन में एकदम गंगा के किनारे है। गंगा की लहरें बरसात लेना क्यों स्वीकार नहीं किया।' निस्पृही पं) जी में इसकी दीवारों का छूती जाती हैं) में छिपा आओ। बोले-'वह तो आज भी हो सकता है। पर न तब पेंशन मैं लेकर गया, भोला भाला होने से सी0 आई0 डी0 लेने की इच्छा हुई थी और न आज भी है। देश को के आदमियों तक न मुझ पर शंका नहीं की, पर मैं किया सो किया, उसे क्या भुनाना ?'
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प्रथम खण्ड
99 हमने ऐसे निस्पृही व्यक्तित्व को प्रणाम कर अपने 6 मास का कारावास तथा 100) जुर्माने की सजा जीवन को कृतकृत्य माना।
पायी। 1942 की महाक्रान्ति के दिनों में आप ग्वालियर आ) (1) जो) स) रा) अ0 (2) वि0 अ0), पृष्ठ 183 राज्य में थे। पहिले आप वहीं गिरफ्तार हुए, उसके बाद (3) साक्षात्कार 25-5-1997 (4) स्व) प० ।
वहां से निष्कासित होते ही हैलैटशाही के शिकार होकर श्री अमोलकचंद जैन
25 दिसम्बर 1944 तक नजरबन्द रहे। बाद में भी आप मुगल साम्राज्य के अन्तिम दिनों में बंगाल की युक्त प्रान्त के शिक्षा, सम्पत्ति, सूचना तथा श्रम विभाग
___ के सहज सरस्वती सेवक मंत्री बाबू सम्पूर्णानन्द जी के तरफ से आकर एक संभ्रान्त जैन ओसवाल कुल
प्राइवेट सेक्रेटरी रहे। श्री जैन (1) अफीसर आन बनारस में बस गया था। इसी शाखा के वंशधरों में ।
पर्सनल स्टाफ, मुख्यमंत्री, यू0 पी0 1948-51 (2) से एक कुल ‘बालूजी के
आनरेरी निदेशक, सूचना विभाग, उ0 प्र0 (3) सचिव, फर्श' मुहल्ले में रहने लगा।
उ0 प्र0 कांग्रेस पार्लियामेन्ट्री बोर्ड (4) उप मुख्य इसी घर में 11 जनवरी 1907
सचेतक, राज्यसभा 1952-56 आदि अनेक विशिष्ट को श्री अमोलकचंद जैन का
पदों पर रहे। आपने पूर्वी जर्मनी, हॉलैण्ड, बेल्जियम, जन्म हुआ था। 1929 में
फ्रांस, इटली आदि अनेक देशों की यात्रायें की थीं। प्रथम श्रेणी में वकालात पास
अनेक भारतीय दलों का नेतृत्व आपने किया था। अनेक करने के बाद आपकी
जैन मंदिरों/धर्मशालाओं का उद्घाटन भी आपने किया वकालात खूब चल पड़ी थी। आपकी युक्ति और
था। देहली में महावीर जयन्ती के संयोजक भी आप प्रतिभा की छाप अदालत में स्पष्ट थी। 1930 का रहे थे। आप नैतिकता और स्पष्टवादिता के लिए स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ होते ही इस युवक वकील ने
विख्यात थे। सभी राजनैतिक मुकदमे मुफ्त में लड़े। फलत:
आ)-(1) जै) सा) रा0 अ0 (2) पुत्र श्री वीरेन्द्र कुमार नौकरशाही की नजरों में खटक गया। जेल में हुए
द्वारा प्रेपित पत्र 2-12-98 एवं परिचय अत्याचारों के भण्डाफोड़ को लेकर सरकार ने इन पर दफा 500 में मुकदमा चलाया और 500 रु0
श्री अमोलकचंद जैन जुर्माने की सजा दी। यद्यपि आप अपील में निर्दोष कद से ठिगने किन्तु भारी भरकम व्यक्तित्व के सिद्ध हुए तथापि ब्रिटिश साम्राज्यशाही का एक-एक धनी, खण्डवा (म0प्र0) के श्री अमोलकचंद जैन, दोष आपको स्पष्ट हो गया और उसका अन्त करने पुत्र.- श्री छोटू जैन का जन्म । फरवरी 1908 में हुआ। के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हो गये।
आपने मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की तथा युवावस्था में श्री जैन दैनंदिन राजनीति में भाग लेने लगे और ही राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। 1937 में श्री गोविन्दवल्लभ पन्त की अध्यक्षता में हुए जंगल सत्याग्रह में निमाड़ में अन्य कार्यकर्ताओं जिला राजनैतिक सम्मेलन के प्रधानमंत्री हए। इसके बाद के गिरफ्तार होने पर आपने जिले के डिक्टेटर 38-39 में आप युक्त प्रान्त (वर्तमान उ0प्र0) के की हैसियत से आंदोलन कुछ समय के लिए शिक्षामंत्री बा) सम्पूर्णानन्द जी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे। संचालित किया था। आप अनेक वर्षों तक जिला 1942 में आपने व्यक्तिगत सत्यागह में भाग लिया और कांग्रेस कमेटी के मंत्री और प्रांत के सदस्य भी
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100
स्वतंत्रता संग्राम में जैन रहे। 1942 के आन्दोलन में आप एक रात अचानक करते थे। कहा जाता है कि आपके दादा दिगम्बरावस्था गिरफ्तार कर लिए गये और खण्डवा और जबलपुर में जिन दर्शन करते थे। जब आप साढ़े तीन वर्ष के की जेलों में लगभग 1 वर्ष तक रहे।
थे तब दादा जी का देहावसान होने से आपकी आ)- (1)-म0 प्र0 स्व0 सै), भाग 4, पृष्ठ 9 (2)-जै0 दादी आपको लेकर कोसीकलां (मथुरा) उ0प्र0 में स) रा) अ), पृष्ठ 74
आ गई थीं। श्री अमोलकचंद जैन
गोयलीय जी की प्रारम्भिक शिक्षा चौरासी श्री अमोलकचंद जैन का जन्म 1916 में रीवां (मथुरा) में हुई जहां उन्होंने मध्यमा तक अध्ययन (म0प्र0) में हुआ, आपके पिता का नाम श्री लक्ष्मीचंद किया। आपकी आजीविका और राजनीति में प्रवेश जैन था। आपने माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। आप
के संदर्भ में आपके पुत्र श्री श्रीकान्त गोयलीय ने जो 1935 से 1942 तक आंदोलनों में सक्रिय रहे। इस संस्मरण (तीर्थङ्कर नव0-दि0 1977) लिखा है। उसे दौरान आपने भूमिगत रहकर आंदोलनों को गति प्रदान हम यहाँ यथावत उद्धृत कर रहे हैं। की। आपने सुचारु रूप से पार्टी का संगठनात्मक 'अपने पूर्वजों के नाम को रोशन करने के कार्य किया और अंग्रेजी सरकार को दिखा दिया कि लिए पिता जी दिल्ली आ गये। बाबा की बुआ भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक देश-प्रेमी है। (बैरिस्टर चम्पतराय जी की बहन मीरो) के
आपकी अनेक पुस्तकें शासन ने जब्त कर ली। वात्सल्यपूर्ण निर्देशन में उन्होंने एक छोटा सा मकान स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आप व्यावसायिक एवं लिया और बजाजे का पुश्तैनी कार्य संभाला। उनकी धार्मिक कार्यों में अपनी रुचि अनुसार संलग्न हैं। मिठास और ईमानदारी पर ग्राहक रीझे रहते थे। आ0-म) प्र) स्व0 सै0, 5/255
कारोबार चल निकला। सुबह-शाम सामायिक, स्वाध्याय
और जिन-दर्शन उनका स्वभाव हो गया। श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय
__ पहाड़ी धीरज (दिल्ली) में ताऊजी (श्री नन्हेंमल सिर पर टोपी, मंझोला कद, कसरती देह, जी जैन) के सहयोग से 'जैन संगठन लाइब्रेरी सभा' गेहुआ रंग, गठे हुए अंग, भरी हुई सजग मुखाकृति, की स्थापना की और उसके मंच से सामाजिक, विरलश्मश्रु, वाणी में ओज, शैली में गम्भीरता और राजनैतिक और साहित्यिक उत्सव किये। हिन्दी- उर्द
निरालापन, यही व्यक्तित्व था साहित्य एवं भारतीय इतिहास के उद्धरण उनके भाषणों वाणी के जादूगर श्रद्धेय श्री में प्रवाह लाते। वे वाणी के जादूगर हो गये। अयोध्याप्रसाद गोयलीय का। दिल्ली के पहाडी धीरज और चाँदनी चौक ने
जैन समाज में जागृति उन्हें अपना राजनैतिक नेता माना। एक बार वे चाँदनी का शंखनाद करने वाले चौक की विशाल जनसभा में धाराप्रवाह भाषण दे रहे 'वीर, अनेकान्त' जैसे प्रगतिवादी थे। 'देहलवी टकसाली जुबान और मौके के चुस्त शेर'
' पत्रों के सम्पादक गोयलीय भीड़ को भारतमाता की बेड़ियाँ तोड़ने पर जोश भर जी का जन्म 7 दिसम्बर 1902 को वर्तमान हरियाणा रहे थे। पुलिस- उच्चाधिकारी ने अदालत में कहा था के बादशाहपुर, जिला-गुडगांवा में हुआ था। आपके - "गोयलीय साहब को सभा में गिरफ्तार करना बहुत पिता श्री रामशरणदास खानदानी बजाजे का व्यवसाय मुश्किल था। आप अवाम पर छाये हुए थे। पूरी भीड़
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प्रथम खण्ड
101 हम पर टूट पड़ती; अत: मीटिंग खत्म होने पर गोयलीय थी। कारावास पिता जी आत्मशुद्धि के लिए गये थे। जी को गिरफ्तार करना मुनासिब समझा।" जेल से वे चुपचाप घर आ गये। लाला शंकर लाल
आदरणीय ताऊजी (लाला नन्हेमल जी) और और श्री आसफअली घर पर मिलने आये। पिताजी पिताजी दिल्ली में एक साथ गिरफ्तार हुए। दादी ने के त्याग एवं देशसेवा की सराहना की। श्री देवदास अपने बेटों को जी भरकर आशीर्वाद दिया और कहा, गाँधी ने गाँधी आश्रम में पिता जी को सर्विस देनी "मैंने तुम्हें इसीलिए (आज के लिए) जना था।" जनता चाही; किन्तु उन्होंने देश सेवा का मुआवजा स्वीकार ने जयजयकार की।
नहीं किया। ताऊजी और पिताजी दिल्ली के प्रथम उनका दिल्ली के क्रान्तिकारियों से बहुत घनिष्ठ नमक-सत्याग्रही थे। दिल्ली में सबसे पहले नमक सम्पर्क था। अपने ओजस्वी विचारों से वे आजीवन बनाकर उन्होंने बेचा। महामना मालवीय जी ने स्वयं कारावास जाने वाले थे। पार्लियामेन्ट में साइमन कमीशन उनसे नमक खरीदा था।
पर बम फेंका जाएगा, इसकी जानकारी उन्हें बहुत पिता जी ने 3 साल की 'सी' क्लास पहले से थी। उनके राजनैतिक शिष्यों में क्रान्तिकारी बामशक्कत कैद सहर्ष मंजर की। जेल में वे मंज बँटते. श्री विमल प्रसाद जैन और श्री रामसिंह प्रमुख हैं। चक्की चलाते। छह माह पिताजी ने रोटी नमक और वे श्री अर्जुनलाल जी सेठी से बहुत प्रभावित पानी से लगाकर खायी। उनके मौन सत्याग्रह पर जेल थे। सेठीजी पर उनके लिखे संस्मरण ('जैन जागरण अधिकारियों का ध्यान गया। अलग से बिना प्याज की के अग्रदूत' भारतीय ज्ञानपीठ काशी) बहुत सजीव सब्जी बनने लगी। जेल में समय का उपयोग अध्ययन एवं मार्मिक बने हैं।' में किया। सर इकबाल की 'बांगेदरा' और 'बालेजबरील' गोयलीय जी लगभग 15 वर्ष भारतीय साहित्य जल म पढ़ डाली। अल्लामा इकबाल का की प्रसिद्ध प्रकाशिका संस्था. भारतीय ज्ञानपीठ के 'कलाम-ओ-फलसफा', उनकी भाषा, वाणी और अवैतनिक मंत्री रहे। यहीं उन्होंने ज्ञानपीठ की प्रसिद्ध जिन्दगी का ओढ़ना बिछौना हो गया। मास्टर काबुलसिंह पत्रिका 'ज्ञानोदय' का सम्पादन किया। वे 'वीर' और जी और कौमी श्री गोपालसिंह उनके मौण्टगुमरी और 'अनेकान्त' के भी सम्पादक रहे। गोयलीय जी अपने मियाँवली जेल के खास साथियों में थे। शहीदों के जीवन में कितने ईमानदार थे यह बताने के लिए शहीद भगतसिंह की सीट पर पिताजी को 12 घंटे रहने 'विकास' और 'नया जीवन' के सम्पादक श्री अखिलेश का फख हासिल है।
शर्मा का निम्न संस्मरण ही पर्याप्त है। ___कारावास के अनुभवों को पिता ने अपनी “सन् 1953 में भारतीय ज्ञानपीठ कार्यालय कहानी की पुस्तकों 'गहरे पानी पैठ', 'जिन खोजा (काशी) का जाना हुआ। वहाँ गोयलीयजी डालमिया तिन पाइयां', 'कुछ मोती कुछ सीप' और 'लो कहानी नगर से पधारे हुए थे। गोयलीयजी अपने कार्यालय में सुनो' (सभी भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित) थे। आराम का वक्त था। वे अपने बिस्तरे पर विश्राम में पिरोया है। ये अनुभव अब साहित्य की बहुमूल्य कर रहे थे। उसी समय 'ज्ञानपीठ' के तत्कालीन थाती हैं।
मैंनेजर आये। आदेशानुसार तकिये के पास रखा उनके जेल से छूटने का दिल्ली वासी बहुत लिफाफा और रखी हुई दुअन्नी उठा ली। मुझे लिफाफे बेताबी से इन्तजार कर रहे थे। भव्य स्वागत योजना पर रखी दुअन्नी की बात समझ में नहीं आयी।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन कार्यालय में मैंनेजर से बातचीत के दौरान पूछा। नहीं पढ़ा जाता।" जवाब सुनकर मैं खिसियाना-सा खड़ा मैंनेजर ने बताया- "मंत्रीजी, व्यक्तिगत डाक में रह गया। घर आकर गैरत ने तख्ती और उर्दू का कायदा ज्ञानपीठ का पोस्टेज खर्च नहीं करते हैं। दुअन्नी लाने को मजबूर कर दिया।"... टिकट के लिए दी है।"
बाद में आप प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार शेरसिंह गोयलीयजी हिन्दी, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, 'नाज' के साथ मुशायरों में जाने लगे। गोयलीय जी अंग्रेजी, आदि के उद्भट विद्वान् थे। नाटक, कविता, की रगों में राष्ट्रीयता और जिनभक्ति का लहू दौड़ा कहानी, निबन्ध आदि सभी विधाओं में उनकी करता था उनकी एक नज्म यहाँ दृष्टव्य है, जो उन्होंने अप्रतिहत गति थी। इतिहास और पुरातत्त्व के वे खोजी बैरिस्टर चम्पतराय के स्वागतार्थ 21 जनवरी 1927 विद्वान् थे। 'दास' और 'तखल्लुस' उपनाम से उन्होंने को कही थीउर्दू शायरी को बहुत कुछ दिया है। गोयलीयजी ने उर्दू
'मकताँ हैं बेमिसाल हैं और लाजवाब हैं कैसे सीखी उन्हीं की जुबानी सुनिये
हुस्ने सिफाते दहर में खुद इन्तख्वाब हैं। "मेरे अज्ञात हितैषी !
पीरी में भी नमनूमे अहदे शबाब हैं। न जाने इस वक्त तुम कहाँ हो ? न मैं तुम्हें गोयाकि जैन कौम के एक आफताब हैं।' जानता हूँ और न तुम मुझे जानते हो, फिर भी तुम
जैन साहित्य और संस्कृति का क्रमबद्ध और कभी-कभी याद आते रहते हो। बकौल फिराक
प्रामाणिक इतिहास न होने की पीड़ा गोयलीय जी को गोरखपुरी
सदैव सालती रही। जिसकी अभिव्यक्ति 'जैन जागरण मुद्दतें गुजरी तेरी याद भी आई न हमें। के अग्रदत' में निम्न शब्दों में हुई हैऔर हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं।।
हमारे यहाँ तीर्थङ्करों का प्रामाणिक जीवन-चरित्र तुम्हें तो 27 जनवरी 1921 की वह रात स्मरण नहीं, आचार्यों के कार्य-कलाप की तालिका नहीं, नहीं होगी, जबकि तुमने मुझे अन्धा कहा था। मगर जैन संघ के लोकोपयोगी कार्यों की सूची नहीं; मैं वह रात अभी तक नहीं भला हँ। रौलेट एक्ट के जैन-सम्राटों, सेनानायकों, मंत्रियों के बल पराक्रम और आन्दोलन से प्रभावित होकर मई 1919 में शासनप्रणाली का कोई लेखा नहीं, साहित्यिकों एवं चौरासी-मथरा-महाविद्यालय से मध्यमा की पढाई कवियों का कोई परिचय नहीं। और-तो- और. छोडकर मैं आ गया था और कांग्रेस कार्यों में हमारी आँखों के सामने कल-परसों गुजरने वाली मन-ही-मन दिलचस्पी लेने लगा था। उन्हीं दिनों विभूतियों का कहीं उल्लेख नहीं है; और ये जो सम्भवतः 26 जनवरी 1921 ई0 की बात है, रात को दो-चार बड़े-बूढ़े मौतकी चौखट पर खड़े हैं; इनसे चाँदनी-चौक से गुजरते समय बल्लीमारान के कोने भी हमने इनके अनुभवों को नहीं सुना है, और पर चिपके हुए कांग्रेस के उर्दू पोस्टर को खड़े हुए शायद भविष्य में दस-पाँच पीढ़ी में जन्म लेकर मर बहत से लोग पढ़ रहे थे। मैं भी उत्सुकतावश वहाँ जाने वालों तक के लिए परिचय लिखने का उत्साह पहुँचा और उर्दू से अनभिज्ञ होने के कारण तुमसे पूछ हमारे समाज को नहीं होगा। बैठा "बड़े भाई ! इसमें क्या लिखा हुआ है?" तुमने प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आँखों के फौरन जवाब दिया- "अमां अन्धे हो, इतना साफ पोस्टर सामने निरन्तर गुजर रहा है, उसे ही यदि हम
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प्रथम खण्ड
103 बटोरकर रख सकें, तो शायद इसी बटोरनमें कुछ
श्री अयोध्याप्रसाद जैन जवाहरपारे भी आगे की पीढ़ी के हाथ लग जाएँ'। श्री अयोध्याप्रसाद जैन का जन्म 1916 में
_ 'जैन जागरण के अग्रदूत' को वे 4 भागों में राजगढ़ (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता श्री मोहनलाल निकालना चाहते थे। पर एक ही निकल पाया। उनका जी थे। आपने 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लेने अन्य साहित्य है
के कारण 4 माह 18 दिन का कारावास बिलासपर प्रकाशित-- 1. मौर्य साम्राज्य के जैन वीर, जेल में भोगा। पुलिस द्वारा मारपीट किये जाने के 2. राजपूताने के जैन वीर, 3. 'दास'-पुष्पांजलि, कारण हाथ की उंगलियों को क्षति पहुंची। इतना ही 4. शेर-ओ-शायरी, 5. शेर-ओ-सुखन (5 भाग), नहीं आपको 15 दिन गुनहखाने की सजा भी हुई। 6. शाइरी के नयेदौर (5 भाग), 7. शाइरी के नये 30-5-1996 को आपका निधन हो गया। मोड (5 भाग), 8. नग्मये हरम, 9. उस्तादाना कमाल, आ)-(1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग 3, पृष्ठ 207, 10. हँसो तो फूल झंडे, 11. गहरे पानी पैठ, 12. जिन (2)पत्र- डॉ0 नन्दलाल जैन रीवां, दि0 13-6-1996 खोजा तिन पाइयाँ, 13. कुछ मोती कुछ सीप, 14. लो कहानी सुनो, 15. मुगल बादशाहों की कहानी खुद
श्री अर्जुनलाल सेठी उनकी जुबानी।
क्रान्तिकारी, देशभक्त, सुधारवादी, समाजसेवी, __ अप्रकाशित-1. शराफत नही छोडूंगा, 2. हैदराबाद
स्वतंत्रचेता, अध्यापक, लेखक, कवि, पत्रकार, वक्ता, दरबार के रहस्य, 3. पाकिस्तान के निर्माताओं की
बहुभाषाविद्, दारिद्र्यव्रती, कहानी खुद उनकी जबानी, 4. उमर खैय्याम की
जैनधर्म, गीता और इस्लाम रुबाइयात, 5. बेदाग हीरे-विषयवार अशआ
के उद्भट विद्वान् पण्डित (2 भागों में)।
अर्जुनलाल सेठी का जन्म गोयलीय जी को जीवन में अनेक
9 सितंबर 1880 ई0 को पुरस्कार/ सम्मान मिले। जिनमें प्रमुख हैं- उत्तरप्रदेश
जयपुर (राजस्थान) में हुआ। सरकार द्वारा 'शेर ओ सुखन', 'शेर-ओ-शाइरी' तथा
अर्जुनलाल सेठी के 'कुछ मोती कुछ सीप' पर पुरस्कार। हरियाणा सरकार पिता का नाम श्री जवाहर लाल सेठी और पितामह द्वारा 'मगल बादशाहों की कहानी खद उनकी का नाम श्री भवानीदास सेठी था। भवानीदास सेठी जबानी' पर पुरस्कार। चण्डीगढ में दशाला ओढाकर दिल्ली (वैद्यवाड़ा) में रहते थे। अन्तिम मुगल बादशाह तथा 500/- की राशि भेंटकर सार्वजनिक सम्मान. बहादुर शाह जफर के शहजादों के साथ उनके मैत्री केन्द्र तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानी सम्बन्ध थे। सेठी जी का कारोबार गुमाश्ते देखते थे, होने से ताम्रपत्र से सम्मान आदि।
फिर भी अपने प्रभाव और परिचय के बल गोयलीय जी का जीवन एक ऐसे तपस्वी और पर उनका अच्छा कारोबार चलता था। पत्नी और साधक का जीवन रहा है जिसने जीवन में आये बच्चे के निधन के बाद 1845 ई0 में आपको झंझावातों को चुपचाप सहा और आपत्तियों का विषपान यकायक स्वप्न दिखाई देने लगे। स्वप्न में कोई करते हुए भी साहित्यामृत प्रदान किया।
बार-बार दिल्ली छोड़ने का आग्रह करने लगा। पहले ___आ- (1) तीर्थङ्कर, नव-दिस) 1977, (2) जै0 जा0 तो कोई ध्यान नहीं दिया गया, किन्तु बार-बार जब अ), (3) विद्वत् अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 179, (4) दिवंगत हिन्दी सेवी, भाग । पृष्ठ 58 आदि, (5) जैन सन्देश, अगस्त 1990" यही वाक्य दुहराया जाने लगा तो इसे आने वाली
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104
स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपत्ति का संकेत समझ भवानीदास जी दिल्ली ठिकाने की कामदारी का पद सम्भालना पड़ा। अभी छोड़कर जयपुर चले गये।
आप पूरी तरह से काम सम्भाल भी नहीं पाये थे कि जयपुर में भवानीदास जी ने अपना दूसरा चौमूं ठिकाने में ए0जी0जी0 का पदार्पण हुआ। स्टेट विवाह किया और उससे श्री जवाहरलाल सेठी का ने औकात से भी ज्यादा उसका स्वागत किया, फिर जन्म हुआ। जवाहरलाल जी ने मैट्रिक तक शिक्षा भी उसने कह ही दिया, 'These are Rustics (ये प्राप्त की और जयपुर राज्य के चौD ठिकाने के गंवार हैं)। सेठी जी के हृदय पर अंग्रेजी राज्य का कामदार (दीवान) और कौन्सिल के सेक्रेटरी पद पर यह पहला आघात था। नियुक्त हुए, उनका विवाह जयपुर राज्य के प्रतिष्ठित सेठी जी का विवाह 1903 के आसपास श्री
और सम्मानित श्री मोहनलाल नाजिम की पुत्री पांचो हमनाम की पुत्री गुलाबदेवी से हुआ। 1904 में देवी से हुआ, जिनकी कोख से श्री अर्जुनलाल सेठी उनका पहला पुत्र प्रकाश हुआ जो 1924 में अचानक का जन्म हुआ।
स्वर्ग सिधार गया। उनकी 6 संतानें और हुईं। जिनमें छह फुट लम्बा कद, चौड़ा वक्ष, गेहुँआ रंग, चार पुत्रियां और 2 पुत्र हैं। चिपके हुए गाल, सुतवां नाक, चमकीली आंखें, सेठी जी के सहपाठियों में सप्रसिद्ध लेखक ऊँचा माथा, सुन्दर चश्मा, खद्दर का ढीला-ढाला श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी भी थे। 1904 में सेठी जी कुर्ता, सिर पर टोपी, यही पहचान थी उन दिनों श्री दिगम्बर जैन महासभा द्वारा संचालित मथुरा (उ0प्र0) सेठी की।
के विद्यालय में शिक्षक हो गये। 1905 में उन्होंने सेठी जी में बाल्यावस्था से ही लोकसेवा के बंगाल के स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया वे सूरत चिह्न प्रकट होने लगे थे। घर आया भिक्षु कभी की तूफानी कांग्रेस में भी शामिल हुए। खाली हाथ नहीं जाता था। सभाओं में व्याख्यान, 1907 में सेठी जी ने जयपुर में जैन विद्यालय नाटकों में भाग, जैन प्रदीप का प्रकाशन, विद्या की स्थापना की। कहने को तो यह विद्यालय था, पर प्रचारिणी सभा की स्थापना, साथी बालकों पर अनुशासन, वास्तव में यह क्रान्तिकारियों की टकसाल थी। अमर हिन्दी जैन गजट में लेखों का प्रकाशन आदि कार्य शहीद मोतीचंद, क्रान्तिकारी माणिकचंद, जयचंद, आपने लगभग 13-14 वर्ष की उम्र में ही प्रारम्भ देवचंद (आचार्य समन्तभद्र). जोरावर सिंह आदि कर डाले थे।
इसी विद्यालय के छात्र थे। स्वतंत्र राष्ट्र के उपासक संस्कत की शिक्षा आपको घर पर ही प्राप्त हुई जैन-अजैन इसमें अध्ययन करते थे। इस विद्यालय का थी। जैनधर्म की शिक्षा के सन्दर्भ में श्री चिमनलाल महत्त्व इसलिए और बढ़ जाता है कि उस समय काशी वक्ता को आप अपना गुरु मानते थे। संस्कृत, प्राकृत, विद्यापीठ या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी, फारसी, हिन्दी, अरबी, पालि, उर्दू आदि चेतना सम्पन्न विद्यालयों की स्थापना नहीं हुई थी। भाषाओं पर आपका समान अधिकार था।
1905 से 1912 तक के सभी क्रान्तिकारी सेठी जी ने 1898 में मैट्रिक और 1902 में आन्दोलनों में सेठी जी ने भाग लिया। आरा मंदिर के बी0ए)पास किया। उन दिनों बी0ए0पास बड़ी मुश्किल महन्त की हत्या में आप प्रमुख अभियुक्त थे से मिलते थे। आपकी जयपुर राज्य में निजामत (इस घटना का विशेष विवरण अमर शहीद मोतीचंद (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) पद पर नियुक्ति होने वाली थी के परिचय में देखें)। उत्तर भारत का सबसे बड़ा कि 1902 में ही पिता जी की मृत्यु हो जाने से चौमूं काण्ड, जो 'दिल्ली षडयन्त्र' के नाम से जाना जाता
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क्रान्तिकारी श्री अर्जुन लाल सेठी के दो दुर्लभ चित्र
चित्र सौजन्य-श्री ज्ञानचंद खिन्दूका, जयपुर (राज.)
नेताजी सुभाष चंद बोस के निजी चिकित्सक रहे कर्नल डॉ० राजमल कासलीवाल
चित्र सौजन्य-श्री ज्ञानचंद जैन खिन्दूका, जयपुर (राज.)
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पं. जवाहर लाल नेहरू के साथ स्वतंत्रता सेनानी, सांसद सेठ अचल सिंह जी:
(हाथ जोडे हुए), आगरा (उ०प्र०)
।
आगरा (उ०प्र०) के बी.डी. जैन डिग्री कालेज में स्थित अमर दम्पति सेठ अचल सिंह एवं
उनकी धर्मपत्नी श्रीमती भगवती देवी के स्टेच्यू चित्र सौजन्य से-श्री नरेन्द्र कुमार उर्फ मुन्ना बाबू
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MARA
भारतीय संविधान निर्मातृ-सभा के सदस्य, स्वतंत्रता सेनानी श्री कुसुमकान्त जैन, इन्दौर, दि० ।। 3 1989 को महामहिम राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण से
अपनी एक पुस्तक का विमोचन कराते हुए
सागर (म०प्र०) में 1974 में एक समारोह में माननीय मोरार जी देसाई के साथ
स्वतंत्रता सेनानी पं० फूलचन्द जी सिद्धान्ताचार्य
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प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ स्वतंत्रता सेनानी पं० खुशाल चंद गांरावाला ( एकदम बायें )
2
प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी से अपनी पुस्तक 'कोई अछूत नहीं' पर सम्मति लेते स्वतंत्रता सेनानी, विधायक डॉ. नरेन्द्र विद्यार्थी, छतरपुर (म०प्र०)
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महामहिम राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण के साथ स्वतंत्रता सेनानी
श्री नरेन्द्र कुमार जैन, देहरादून (उ०प्र०)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश चंद सेठी के साथ स्वतंत्रता
सेनानी श्री प्रेमचंद जैन, छिन्दवाड़ा (म०प्र०)
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स्वतंत्रता सेनानी डा० फूलचंद भदौरा, ढोकमगढ़ (म०प्र०)
महामहिम राष्ट्रपति श्री व्ही. व्ही. गिरि से अमर शहीद नारायण दास खरे का स्मारक बनाने हेतु निवेदन करते हुए
महामहिम राष्ट्रपति श्री आर वेंकटरमण से 'पद्मश्री' अलंकरण प्राप्त करते हुए स्वतंत्रता सेनानी श्री बाबूलाल जी पाटोदी
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प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू के साथ स्वतंत्रता सेनानी एवं
पूर्व मुख्यमंत्री भैया मिश्रीलाल जी गंगवाल।
R
प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ स्वतंत्रता सेनानी, सांसद श्री विमल कुमार
चोरडिया, भानपुरा (म०प्र०) (बगल में काले कोट में)।
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NERAL
53
प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू के साथ स्वतंत्रता सेनानी, तत्कालीन वित्त एवं समाजसेवा
मंत्री, मध्यप्रदेश श्री महेन्द्र कुमार 'मानव' (नेहरू जी के साथ धोती पहने हुए )।
4 दिसम्बर 1952 को खण्डवा (म-प्र०) में प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू एवं विजयलक्ष्मी
पण्डित का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता सेनानी श्री रायचंद नागड़ा, खण्डवा (म०प्र०)
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प्रथम खण्ड
105 है, और जिसमें भारत के वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर मोर्चा लेने का साहस सेठी जी ने ही किया था, सेठी बम फेंका गया था, के मुख्य सूत्रधारों में आपका जी जितने क्रान्तिकारी थे, उससे कहीं अधिक धार्मिक नाम था।
और दार्शनिक भी थे। उनका अंतिम भाषण 13 1914 में सेठी जी को जयपुर में नजरबन्द अगस्त 1939 को 'जैनिज्म तथा सोशलिज्म' पर कर दिया गया। जब उनकी नजरबंदी से सारे भारत ब्यावर में हुआ था। उन्होंने जैनधर्म पर अनेक लेख में तहलका मचा तो उन्हें मद्रास प्रेसीडेन्सी के वैलूर एवं पुस्तकें लिखीं। जिनमें 'महेन्द्र कुमार नाटक', जेल में भेज दिया गया, जहाँ जिनदर्शन न होने पर 'मदन पराजय नाटक', पारस यज्ञ पूजा' आदि अति वे 70 दिन, एक मत के अनुसार 56 दिन निराहार प्रसिद्ध रही हैं। अनेक स्तोत्रों आदि की भी रचनायें रहे। 1920 में आप जेल से छुटे और अजमेर को उन्होंने की थीं। वे अपने अन्तिम समय तक धर्म अपना कार्यक्षेत्र बनाया, वहीं से कांग्रेसी तथा क्रान्तिकारी और राष्ट्रहित की साधना करते रहे। गतिविधियों का संचालन किया। 1921 के सविनय सेठी जी अपनी स्वरचित तुकबन्दी को प्रायः अवज्ञा आन्दोलन में अजमेर में हिन्दू मुस्लिम एकता गाया करते थे, जिसमें उनका समूचा क्रान्तिदर्शी का अभतपर्व उदाहरण प्रस्तत किया। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी जीवन-दर्शन समाया हुआ हैचन्द्रशेखर को अजमेर में सेठी जी ने छिपाया था कब आयेगा वह दिन की बनूं साधू बिहारी। (घटना का विशेष विवरण आगे है)।
दुनियां में कोई चीज मुझे थिर नहीं पाती। 5 जुलाई 1934 को स्वयं महात्मा गांधी अजमेर और आयु मेरी यूं ही तो बीतती जाती।। में सेठी जी के घर गये। सितम्बर 1934 में आप मस्तक पै खड़ी मौत वह सब ही को है आती। राजपूताना व मध्यभारत प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के राजा हो महाराणा, या हो रंक भिखारी।। प्रान्तपति चुने गये।
कब................। - 1935 में प्रान्तीय झगड़ों से बचने की दृष्टि से सर्वस्व लगाके मैं करूँ देश की सेवा। आपने अफ्रीका जाने का विचार किया, किन्तु पासपोर्ट
घर-घर में जाके मैं रखूगा ज्ञान का मेवा।। बनने के बाद भी जा नहीं सके। 1936 में मिल
दु:खों का सभी जीवों का हो जायेगा छेवा। मजदूरों की हड़ताल के अवसर पर आप पुनः अति सक्रिय राजनीति में आये पर अपनी असंतुष्ट वृत्ति में
भारत में न देखूगा कोई मूर्ख-अनारी। मानसिक असन्तुलन के कारण मजदूरों का अधिक
कब...................। हित न कर सके।
सेठी जी स्वयं लेखक थे, राजनीति एवं धर्म 1937 में खण्डवा (म0प्र0) में हुई जैन परिषद् पर अनेक लेख उन्होंने लिखे पर अपने बारे में कहीं के सम्मेलन में आप सम्मिलित हुए थे। इस सन्दर्भ कुछ नहीं लिखा। हमें सेठी जी के जीवन के सन्दर्भ में जैनमित्र (1938 ई0 वैशाख वदी 13) लिखता में जो सामग्री प्राप्त हुई है उसमें श्री अयोध्या प्रसाद है- '..... आपका भाषण बहुत तात्त्विक व मर्मभेदी 'गोयलीय' द्वारा लिखित 'जैन जागरण के अग्रदूत' होता था। आप पं) गोपालदास के समय के वक्ता प्रमुख है। गोयलीय जी सेठी के साथ काफी समय हैं। आप गोम्मटसार व समयसार के मर्मी हैं।' 1939 रहे थे। उन्होंने सेठी जी का जीवन-चरित उनसे में रतरे नैरीपन के साथ कांग्रेस कमान्ड के विरुद्ध पूछकर लिखना भी चाहा, पर सफल नहीं हुए।
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106
-स्वतंत्रता संग्राम में जैन गोयलीय जी ने संस्मरणात्मक शैली में जो लिखा है, 1916-17 में अम्बाला में जैन वेदी प्रतिष्ठा वह सेठी जी के पूर्ण व्यक्तित्व को प्रकट करने में थी। बाबू अजित प्रसाद लखनऊ वाले वहाँ पधारे थे, सक्षम नहीं है। फिर भी वह सामग्री प्रामाणिक है वे सेठी के छुटकारे के लिये प्रयत्न कर रहे थे,
और आगे सेठी जी के जीवन के सन्दर्भ में हम जो पाण्डाल में उनका प्रभावशाली भाषण हुआ। आर्थिक घटनाएं दे रहे हैं उनका प्रमुख आधार गोयलीय जी सहायतार्थ उन्होंने सेठी जी के छपे चित्र बेचे, जनता की उक्त पुस्तक ही है। यद्यपि अन्य जगहों से ने अपनी शक्ति के अनुसार मुल्य देकर उन्हें खरीदा जितना सम्भव हुआ, घटनाओं की प्रामाणिकता जांच था। जब 'सेठी जी को मुक्त करो' आन्दोलन प्रबल ली गई है। हमारे जैसे अल्पज्ञ उनके व्यक्तित्व के हुआ तो कुछ शर्तों के साथ भारत सरकार उन्हें साथ न्याय कर सकेंगे? इसमें सन्देह है फिर भी जो छोड़ने को तैयार हो गई किन्तु सेठी जी ने सशर्त सामने है, उसी आधार पर लिखा जा रहा है। यहाँ रिहा होना ठकरा दिया। केवल राजनैतिक घटनाओं का ही उल्लेख है। 1912 में चांदनी चौक में जब लार्ड हार्डिंग पर
। सेठी जी राजनैतिक चिन्तन में इतने तल्लीन बम फेंका गया तो दिल्ली के मास्टर अमीरचंद को
का रहते थे कि उन्हें मुश्किल से 2-1 घण्टे ही नींद उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया, उनके मकान
11 आती थी। उन्हें तपोमूर्ति कहा जाय तो कोई आश्चर्य के आसपास छदम वेष में पलिस लगा दी गई ताकि
__ की बात नहीं। अन्य क्रांतिकारियों को भी पकडा जा सके। सेठी जी अमीरचंद जी से मिलने दिल्ली आये। स्टेशन पर ही अमीरचंद जी की नजरबंदी की सूचना गप्तचरों से उन्हें सेठी जी जिनदर्शन किये बगैर भोजन नहीं मिल गई। पर मिलना आवश्यक था। सेठी जी साहूकार करते थे, वैलूर जेल में जिनदर्शन की सुविधा न होने के वेष में अमीर चंद जी के दरवाजे पर पहुँचे और के कारण उन्होंने भोजन का त्याग कर दिया और वैसी ही आवाज लगाने लगे जैसी साहूकार कर्जदार इतने दृढ़ रहे कि 70 दिन तक निराहार रहे। अन्त को लगाता है। पुलिस ने पूछा तो सेठी जी ने कहा में सरकार को झुकना पड़ा और प्रसिद्ध शिक्षाविद् - 'हजरत पर एक डेढ़ वर्ष से रुपया पावना है, लेकिन तथा स्वतंत्रता सेनानी महात्मा भगवानदीन ने जेल में देने का नाम नहीं लेते. रोजाना कोई न कोई घिस्सा जिन प्रतिबिम्ब विराजमान कराया, तब उनका उपवास देते रहते हैं। मैं आज नावा वसूल करके ही जाऊँगा।' समाप्त हुआ। इस सन्दर्भ में 'वीर निकलंक' (अक्टू) पुलिस ने और भी शह दे दी- 'बड़ा बदमाश है, जो 1993) को दिये अपने एक साक्षात्कार में सेठी जी लिया जा सके वसल कर लो। इसे तो फांसी लगने की पुत्री 80वर्षीया सरस्वती देवी जी ने बताया था वाली है।'
कि-'हम मूर्ति जयपुर से ले गये थे।' भारत के मास्टर जी ने सेठी जी की आवाज पहचान राजनैतिक बन्दियों में यह प्रथम उदाहरण था, इसलिए ली, वे ऊपर से ही बोले- 'तुम नीचे से ही शोर क्यों भारतीय नेताओं ने 'भारत का जिन्दा मेकस्वनी' मचा रहे हो, भले आदमियों की तरह चाहो तो ऊपर कहकर उनका अभिनन्दन किया था। आकर बात कर सकते हो'। दोनों भले आदमियों ने जो विचार विमर्श करना था कर लिया।
जयपुर अढ़ाई शती समारोह (1978) के अवसर पर प्रकाशित 'जयपुर- दर्शन' ग्रन्थ (पृष्ठ ।10)
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प्रथम खण्ड
लिखता है कि- 'राजस्थान के (बाद में) मुख्यमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री ने सेठी जी के यह कहने पर कि“ आँख बंद कर आजादी की लड़ाई के समुद्र में कूद जाओ तो तुम तिर जाओगे"। 7 दिसम्बर 1927 को अपना सरकारी महत्त्वपूर्ण पद त्याग दिया था। ★
★
* 1920 में छह वर्षों की जेल के बाद सेठी जी मुक्त होकर पूना होते हुए बम्बई जा रहे थे। पूना स्टेशन पर बाल गंगाधर राव तिलक द्वारा सेठी जी का अभूतपूर्व स्वागत किया गया। तिलक जी इतने भावविभोर हुए कि उन्होंने अपने गले का रेशमी दुपट्टा सेठी जी के गले में डाल दिया और अभिनन्दन करते हुए कहा- 'आज महाराष्ट्रवासी सेठी जी को अपने बीच देखकर फूले नहीं समाते । ऐसे महान् त्यागी, देशभक्त और कठोर तपस्वी का स्वागत करते हुए महाराष्ट्र आज अपने को धन्य समझता है। ' ★ ★
वेलूर जेल
मुक्त होने के बाद जब सेठी जी इन्दौर पहुंचे तो उनके सम्मान में छात्रों ने बग्घी के घोड़े खोल दिये और खुद गाड़ी में घोड़ों की जगह जुतकर बग्घी को खींचा। उन जोशीले नौजवानों में से मेरा आशिक रहा है। ' श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी थे। ⭑
*
*
1922 में सेठी जी को भेंट की गई गांधी टोपी नीलाम करने पर 1500/- रु0 में बिकी थी। ⭑ ★ ★
कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में सेठी जी के अनुयायियों का बहुमत हो गया। वहाँ हुए चुनाव को जब वर्किंग कमेटी ने रद्द कर दिया तो सेठी जी के नेतृत्व में लोग सत्याग्रह पर बैठ गये। स्वयंसेवकों ने सेठी जी को लाठियों से मारा, वे घायल हो गये तब उन्हें देखने गांधी जी पं() मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय, पं( ) जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू,
107
शौकत अली आदि के साथ उनके निवास पर पहुंचे और सेठी जी से कहा- 'मुझे आपके चोट लगने का भारी दुःख है उसके प्रायश्चित स्वरूप मैं उपवास करना चाहता हूँ।' सेठी जी के समझाने पर गांधी जी ने उपवास के संकल्प का त्याग करते हुए कहा - ' आप धर्मशास्त्र के ज्ञान में मेरे गुरुतुल्य हैं। '
★
★
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★ सेठी जी शायरी का भी अच्छा शौक रखते थे। बातचीत के बीच मुंह का जायका बदलने और वातावरण नीरस न होने देने के लिए 'गालिब', 'जौक' आदि के शेर सुनाते थे। गोयलीय जी ने एक संस्मरण में उनके इस व्यक्तित्व को उजागर किया है। गोयलीय जी ने लिखा है- (सेठी जी) एक दिन जो मौज में आये तो बोले
1
बेटा, हम भी तुकबन्दी कर लेते हैं। ' ' तुकबन्दी कैसी आप तो अच्छी खासी कविता कह लेते हैं। मैंने बचपन में आपकी बनाई कई कवितायें पढ़ी हैं। 'कब आयगा बोह दिन कि बनूँ साधु बिहारी' मुझे खास तौर से पसन्द थी।
वे हंसकर बोले- 'अच्छा तो बदमाश तू बचपन
'यह तो आपकी महती कृपा है, जो आप इस सम्बोधन से मुझे कृत कृत्य कर रहे हैं। हाँ, एक अकिंचन भक्त मैं आपका अवश्य रहा हूँ।'
"
अच्छा तो बच्चू यह बात है जो दौड़-दौड़कर तुम जयपुर और अजमेर जाते रहे हो, और हजार ठिकाने छोड़कर मैं तुम्हारे पास ठहरने को मजबूर हुआ हूँ।'
'जी, आप शायद अपना कोई ताजा कलाम सुनाना चाह रहे थे ! '
'ताजा तो नहीं है, 5-6 वर्ष पूर्व कही गई, एक तुकबन्दी है। कुछ दोस्तों ने इस समस्या की - 'देखें कहाँ-कहाँ पै हथेली लगायेंगे' पूर्ति करने को मजबूर
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108
स्वतंत्रता संग्राम में जैन कर दिया। 10-15 मिनट तबीयत पै जोर दिया तो उक्त कविता न हिन्दी है, न उर्दू, न इसे कोई ये पक्तियाँ मुंह से निकल पड़ी
शायराना अहमियत ही दी जा सकती है। सचमुच मन्दिर में कैद करते हैं ताले ठुका दिये,
तुकबन्दी है। मगर यह तुकबन्दी किस वातावरण में मस्जिद में उसी हबीब के परदे लगा दिये,
कही गई और क्यों कही गई, यह पसेमंजर
मुझे मालूम था। उसका तसब्बुर मस्तिष्क में था ही, पूछा सबब तो ऐंठ के पोथे दिखा दिये,
बस कुछ न पूछिये-एक-एक पंक्ति पर तड़प-तड़प वाइजने चीख-चीख सिपारे सुना दिये।
गया। महफिल में बेहिजाब हम आँखें लड़ायेंगे।
___बात यह थी कि सेठी जी के एक शिष्य देखों कहाँ-कहाँ पै हथेली लगायेंगे।।
मोतीचन्द जैन को फाँसी दे दी गई थी। वह महाराष्ट्रीय वाइजसे जाके पूछा कि मय है हराम क्यों, जैन था। सेठीजी को उससे बहुत स्नेह था। अपने बोला कि 'मेरे सामने लेते हो नाम क्यों'। वफादार और जाँबाज शिष्य की मौत पर उन्हें बहुत जन्नत की तलाश में है बूढ़ा इमाम क्यों, सदमा पहुँचा ! मगर कर भी क्या सकते थे ? खुल जाये राजेमक्फी पीले न जाम क्यों ? 5 वर्ष बाद जब वे जेल से मुक्त होकर आये तो मयख्वार, उस खुदा को भी एक्शा पिलायेंगे।
मोतीचन्द की पवित्र स्मृति में सेठीजी ने अपनी कन्या देखें कहाँ-कहाँ पै हथेली लगायेंगे।
का विवाह महाराष्ट्र के एक युवक से इस पवित्र
भावना से कर दिया कि मैंने जिस प्रान्त और जिस अर्थात् मेरे प्यारे को किसी ने ताले में बन्द
समाज का सपूत देश को बलि चढ़ाया है, उस प्रान्त कर दिया है तो किसी ने उसे परदों में छिपा दिया
को अपनी कन्या अर्पण कर दूँ। सम्भव है उससे कोई है। कारण पूछने पर धर्मशास्त्रों के पोथे दिखा दिये
मोती जैसा पुत्ररत्न उत्पन्न होकर देशपर न्यौछावर हो कि इनके वारण्ट पर इन्हें बन्दी बनाया है, किन्तु इन
सके। मूों ने यह नहीं समझा कि उसका हुस्न हजार पर्दो में नहीं छिप सकता। न जाने दें मुझे मन्दिरों और
यह सम्बन्ध उक्त पवित्र भावना के साथ-साथ मस्जिदों में। मैं तो खले आकाश के नीचे खडा अन्तर्जातीय और अन्तन्तिीय भी था। जैनों में यह होकर उसको निहारूँगा, देखें कहाँ-कहाँ पर ये लोग नया उदारहण था और हर नये कार्य से रूढ़िवादियों बन्दिशें लगायेंगे ?
को चिढ़ होती है। अतः सेठीजी जाति से बहिष्कृत देव-दर्शन और शास्त्र-श्रवण का अधिकार
- भी किये गये और मन्दिर प्रवेश पर भी रोक लगा मानवमात्र को क्यों नहीं ? क्यों चन्द आदमी दस दी गई। (इस सन्दर्भ में जैन पत्र-पत्रिकाओं में उस अमृत-सुरा के ठेकेदार बने हुए हैं। अध्यात्म-सरा समय काफी बावेला मचा था। 'दिगम्बर जैन' 1919 पीकर तु-मैं का भेद भल जाने का सभी को अधिकार ई0, वर्ष 13 अंक 4, लिखता है-'अभी खण्डेलवाल है। यह सुधा पीते ही आत्मा और परमात्मा के बीच पंचायत ने पं0 अर्जुनलाल सेठी का जाति व्यवहार का व्यवधान मिट जायगा। हम तो स्वयं भी पियेंगे, बन्द कर दिया है। सेठी जी खण्डेलवाल हैं और अपने प्यारे को भी पिलायेंगे और एकाकार हो आपने अपनी एक पुत्री का विवाह हुमड जाति में जायेंगे। ओ! धर्म के ठेकेदारो, तुम कहाँ कहाँ पर किया है। ....यह कार्य धर्म विरुद्ध तो नहीं है परन्तु अपनी टाँग अढ़ाते फिरोगे ?
जाति बन्धन विरुद्ध अवश्य है।....)
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प्रथम खण्ड
इसी वातावरण के आस-पास कुछ मनचलों ने तत्काल उक्त मजाकिया समस्यापूर्ति करने को मजबूर कर दिया। हृदय के भावों को जो आग्रह की हवा लगी तो भड़क उठे और उक्त पंक्तियाँ मुँह से निकल पड़ीं।
★
सेठी जी प्रखर देशभक्त होने के साथ-साथ उग्र समाज सुधारक भी थे। केवल व्याख्यान देकर या लेख लिखकर उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं होती थी, वे अपने प्रत्येक विचार को साकार देखना चाहते थे जयपुर और इन्दौर के गुरुकुल इसके उदारहण हैं। सेठी जी हरिजन मंदिर प्रवेश के समर्थक थे। ★ ★
★
एक दिन सेठी जी और गोयलीय जी साथ सो रहे थे, प्रातः उठकर गोयलीय जी ने जब सेठी जी को नहीं पाया तो बड़े उद्विग्न हुए । तीन चार दिन बाद सेठी जी लौटकर आये तो गोयलीय जी ने कहाआप भी खूब हैं। कोई मरे या जिए आपको क्या ?'
4
सेठी जी ने हंसकर कहा- 'पहले पूरी बात तो सुनो' फिर उन्होंने कहना प्रारम्भ किया- ( उस दिन ) 'सुबह बाहर जाकर जो अखबार पढ़ा तो मेरे हाथों के तोते उड़ गये। तुमने भी चन्द्रशेखर आजाद का अजमेर में गिरफ्तार होने का संवाद पढ़ा होगा। संवाद क्या था, मेरे लिए तो मृत्यु संदेश था। आजाद को मैंने ही एक गुप्त स्थान पर ठहराया हुआ था । उसका मेरे यहाँ से गिरफ्तार हो जाने का अर्थ मेरी नैतिक मृत्यु थी, मेरी सारी तपस्या निष्फल हो जाती ! दुनियाँ क्या कहती कि सेठी भी उसकी सुरक्षा का यथोचित प्रबन्ध न कर सका।'
'बस इसी न्यूज को पढ़कर मैं तुमको बगैर सूचित किये ही छद्म रूप में वास्तविक बात जाँचने को अजमेर पहुँचा। शुक्र है कि उसको सही सलामत पाया। पुलिस ने उसके धोखे किसी और को मेरे
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यहाँ से पकड़ लिया था। अब उसको स्थानान्तर करके आया हूँ।'
⭑
★
★
जाब के स्थानकवासी जैन समाज ने मुनि धनीराम जी की प्रेरणा से पंचकूले में एक गुरुकुल की स्थापना की। उसके संचालकों की इच्छा थी कि गुरुकुल का भार सेठी जी ले लें। किसी तरह सेठी जी राजी हुए। वे चाहते थे कि पंचकूला को क्रान्तिकारियों का केन्द्र बनाया जाये और फरार देश भक्तों को उसके पहाड़ी इलाकों में छिपाने का प्रबन्ध किया जाय। तदनुरूप कुछ कार्य भी किया गया, परिणामतः इस गुरुकुल से भी सेठी जी का सम्बन्ध विच्छेद हो गया। ★ ★ सेठी जी दारिद्र्यव्रती थे। वे तमाम जीवन गरीबी से जूझते रहे और अपने परिवार को भी इस गरीबी में रहने को मजबूर किया। वे चाहते तो अन्य नेताओं की तरह सुख-चैन से रह सकते थे, पर उनके पास तो किसी का दिया हुआ भी जो कुछ आता था वह देश सेवा के यज्ञ में होम हो जाता था। उनके इस दारिद्र्यव्रत का एक संस्मरण, जो श्री गोयलीय जी ने यहाँ दृष्टव्य हैलिखा है,
★
-
'मैं सन् 32 में कारागार से मुक्त होने के बाद सेठीजी की चरण-रज लेने अजमेर पहुँचा। वहाँ जाकर जो उनकी स्थिति देखी, उससे कई घण्टे सुबक- सुबक कर रोता रहा । सर्वस्व होम देने के बाद, जिन्दगी भर स्वयं भी देश - सेवा में जूझते रहने के कारण घरेलू स्थिति भयावह हो उठी ! आर्थिक स्रोत सब सूखे हुए और 8.10 प्राणियों के भरण-पोषण की समस्या । मौत के सामने भी घुटने न टेकने वाला सेठी स्वयं तो न झुका, पर उसकी कमर झुक गई। उसमें वह तनाव और बाँकपन देखने में न आया। घर का वातावरण मुझसे ओझल नहीं रह सका । तभी बरफ बेचने वाले ने रबड़ी मलाई की बरफ की चटखारेदार आवाज दी तो बच्चों
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के मुँह में पानी भर आया और सेठी जी से बरफ बन पड़े उतनी कर, मगर सेवा करते-करते एक दिन दिलवाने की जिद करने लगे। मगर चील के घोंसले निरा सेवक बनकर न रह जाना पड़े इसके लिए सदैव में माँस कहाँ ? वे चुपचाप थोड़ी देर तो बच्चों का सावधान रहना।" रोना-बिलखना देखते-सुनते रहे। जब न रहा गया तो मुझसे बोले- "गोयलीय! तुम बहुत अच्छा व्याख्यान सेठी जी राजनैतिक क्षेत्र में ही पीड़ित नहीं रहे, दे लेते हो, आज इन बच्चों को बरफ की अनुपयोगिता वे पारिवारिक भरण-पोषण की चिन्ता में भी जीवन पर एक स्पीच दो !"
के अन्तिम श्वास तक गलते रहे। यौवन काल में ही मैंने कहा- “सेठीजी, कहीं बच्चे भी इस तरह देशसेवा में कूद पड़े। पूर्वजों का जो संचित था वह की सीख मानते हैं। खासकर, बरफ, चूरन और मिठाई स्वराज्य के दाव पर लगा दिया। बुढ़ापे में सहायता के संबंध में।"
तो दूर 30/- रु0 मासिक वेतन पर भी वे मंहगे समझे सेठी जी के अब तेवर बदल चुके थे ! बोले- गये। उनकी इस दयनीय स्थिति का पता श्री "तो इन्हें यह समझाओ कि तुम्हारे नालायक पिता कुछ अयोध्याप्रसाद गोयलीय को लिखे निम्न पत्र से कमाते-धमाते नहीं हैं, और जो तुम्हारे बाबा छोड़ गये चलता हैथे उसे भी ये स्वाहा कर चुके हैं।"
अजमेर ___मैं सहम कर बोला-- "सेठीजी, अभी इनमें इतनी
17 अगस्त 1937 समझ ही कहाँ है जो समझाने से मान सकें।" बन्धुवर,
बोले- "नालायक, यह भी नहीं समझेंगे, वह - मैं कल यहाँ आया, जयपुर में बीमार हो गया भी नहीं समझेंगे तो फिर मैं क्या करूँ? सरकारी नौकर था। मेरी तन्दुरुस्ती खराब हो ही गई। दर असल में को 20 वर्ष में पैंशन मिल जाती है और वह अपने मैं दिलोदिमाग खो ही चुका। यहाँ आपका पत्र रखा बच्चों का निश्चिन्त होकर भरण-पोषण करता है। मैंने हुआ मिला। आपने जो कुछ लिखा है-- वाकई वह अपनी एक-एक हड्डी गलाकर रख दी तब भी वैसा ही है, जो मैं समझ चुका था। ठीक ही है श्रद्धा क्या मुझे इनके भरण-पोषण की चिन्ता से मुक्ति नहीं और प्रेम-भावना असमर्थ, अशक्त के प्रति कभी मिलेगी ?"
किसी की न रही और न रहेगी। भूल इतनी-सी मेरी मैं क्या जवाब देता। हिचकी बंध गई- है कि मैंने अपने को 30/- रु0 का नौकर न
मुझे रोता देखकर बोले- "गधे, मेरी हालते जार समझा।................... से कुछ नसीहत ले। अन्धों की तरह कएँ में मत कद। गोयली जी, सच है रुपये का दासत्व नरक से वर्ना जिन्दगीभर रोता रहेगा। मेरा क्या है मैं तो मिट बढ़कर है और रुपया तो दास भी बनाता है।....... चुका
एक व्यक्ति के सहारे रहना न मेरे लिए इष्ट मेरे बच्चों पर जो गजरेगी उससे मैं वाकिफ हूँ, है न उपादेय। नौकरी तो 30 रु0 की यहाँ भी मिल उनकी आँखों के आँसू पौंछने का भी किसी को ही जायेगी मुझे तो एक उद्देश्य सताता है और यह वही अहसास न होगा।
है जो शायद शपथ खाकर मैंने आपसे उभय पक्ष के लेकिन मैं नहीं चाहता कि त इस तरह की बचनों के साथ जयपुर में प्रकट किया था। मेरे बच्चे गलतियाँ दोहराये। देश और समाज की सेवा जितनी आनासागर में डुबो दिये जाएँ, कुछ परवाह नहीं । मेरा
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प्रथम खण्ड
कतल कर दिया जाये फबहा (बहुत अच्छा)। अन्न मजहबी दीवानों ने सेठी जी को दफना दिया। उनके कष्ट, जल कष्ट, वायु कष्ट ,...........आवं...............। परिवार वालों को तीन दिन बाद उनकी मृत्यु का संवाद
......मैं तो जैनधर्म और उस राजनीति मिला। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और धर्मत महात्मा का प्रचार करूँगा जो आपसे कई बार स्पष्ट हो चुके भगवानदीन ने लिखा है- "अर्जुनलाल सेठी को हम हैं। जो बड़वानी पर ले गये वे ही आगे का रास्ता · आदमी कहें या देश की आजादी का दीवाना कहें, खोलंग।...............
हम अर्जुनलाल सेठी को हिन्दुस्तानी कहें या आजादी _ सेठी के दीपक का परवाना कहें, जो अपने 25 वर्ष के
इकलौते बेटे को मौत के बिस्तर पर छोड़कर पा) सुन्दर 1937-40 के आसपास सेठी जी राजनैतिक
और लाल के एक मामूली तार पर दौड़ा हुआ बम्बई पहुँचता घात-प्रतिघाता से इतने क्षत-विक्षत हो चुके थे कि
है और बेटे के मर जाने के बाद भी उसे देश का सचमुच अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। वे
काम छोड़कर घर लौटने की जल्दी नहीं होती" राजस्थान प्रान्तीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। कांग्रेस हाई कमाण्ड नहीं चाहता था कि राजपताने की बागडोर सेठी देशबन्धु चित्तरंजनदास जी ने सेठी जी के सन्दर्भ जी के हाथ में रहे। कांग्रेस-चुनाव में खद्दर के कपड़े में कहा था- आप (सेठी जी) के जन्म का उपयुक्त कली-कवाडियों को पहनाकर सेठी जी के प्रतिद्वन्दी स्थान राजस्थान नहीं था। आप बंगाल में जन्म लेते तो को बांट दिलवाये गये फिर भी सेठी जी विजयी हए। देखते कि बंगाल आपका कितना सम्मान करता है। जब वे बन्दी बनाकर रेल द्वारा ले जाये जाने लगे तो जनता इंजन कं आग लेट गई। महात्मा गांधी अजमेर प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य और विद्यार्थी जीवन आये तो सेठी जी उनके यहाँ नहीं गये, महात्मा जी में सेठी जी के शिष्य रहे आचार्य समन्तभद्र ने लिखा ही उनके घर आये। इतनी दृढ स्थिति को हाई कमाण्ड है- 'सेठी जी हिन्दू थे, मुसलमान थे, जैन थे या क्या कैस वर्दास्त करता। सेठी जी का राजनैतिक जीवन थे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें जलाया गया समाप्त करने के लिए कई लाख रुपया व्यय किया या दफनाया गया, यह भी दुनियावी बातें हैं। सेठी जी गया. अनेक दांव पंच खेले गये और इस प्रकार इस इन सबसे ऊपर थे.... वे अपना काम करते रहे। उनका क्रान्तिकारी की राजनैतिक हत्या कर दी गई। कर्म ही धर्म था।
जीवन के अन्तिम समय में राजनैतिक और भारत में अंग्रेजी राज' के लेखक पं0 सुन्दर आर्थिक दु:श्चिन्ताओं के कारण सेठी जी का मानसिक लाल जी तथा महात्मा भगवानदीन जी ने एक संयुक्त सन्तुलन खराब हो गया। जब कहीं आश्रय नहीं मिला वक्तव्य में 26 अक्टूबर 1948 (विश्वमित्र दैनिक, तां 30 रुपया मासिक पर अजमेर में मुस्लिम बच्चों दिल्ली संस्करण) को कहा था- 'हम दोनों सेठी जी को पढ़ाने पर मजबूर हो गये। अपने ही लोगों के को उनके पब्लिक जीवन के करीब-करीब शुरू होने तिरस्कार का उनके हृदय पर ऐसा आघात लगा कि से जानते थे। हममें व उनमें घनिष्ट संबंध था। हम उन्होंने घर आना-जाना भी बन्द कर दिया। 22 दिसम्बर उन्हें देश की महान् से महान् आत्माओं में से एक 1941 को वे इस स्वार्थी संसार से प्रयाण कर गये। गिनते हैं। जिनकी लगन, जिनका त्याग, जिनकी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन तपस्या और जिनके बलिदान की बदौलत ही देश को करके हैदराबाद से बाहर कर दिया गया, तो कानून आज यह दिन देखना नसीब हुआ।'
तोड़कर वापस हैदराबाद में प्रवेश किया। सिक्खों के ___ आO-(1) रा0 स्व0 से0, पृ0 340 (2) जै0 जा0 अ0 प्रसिद्ध, पवित्र स्थान 'नांदेड' में आपको पुनः गिरफ्तार (3) जै) सा) रा0 अ0 (4) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृ0 कर लिया गया और जेल की कोठरी में ठंस कर 340, (5) अजमेर वार्षिकी एवं व्यक्ति परिचय (6) जयपुर दर्शन (7) वीर, 22-4-1989 (8) वीर निकलंक, अक्टू0 1993 तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। जेल में आपके साथ हिन्दुस्तान (दैनिक), 17-2--1986 (9) जै0 स0 वृ0 इ0, पृ0 202 मध्यप्रदेश के भूतपूर्व स्पीकर श्री घनश्याम सिंह भी (10) राजस्थानी आजादी के दीवाने (11) जनसत्ता (दैनिक) थे। हैदराबाद आन्दोलन ने आपके जीवन में जोश 1-10-1997, (12) दैनिक भास्कर, (इन्दौर) 1-10-1997,
भर दिया था। वहाँ से आने के पश्चात् आप सक्रिय (1) जैन गजट, 7-1-1918, (14) जैनमित्र, 1938, (15) दिगम्बर जैन, 1918-1919, के अनेक अंक, आदि।
रूप से देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
ग्वालियर राज्य में 'सार्वजनिक सभा' जो उस समय श्री अवन्तीलाल जैन
कांग्रेस की पर्याय थी, में सम्मिलित होकर आपने अपनी ही नगरी उज्जयिनी में अखबार संगठन का कार्य तीव्र गति से किया। के हॉकर से नगरपालिका के अध्यक्ष तक की 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में गांधी जी
यात्रा तय करने वाले प्रसिद्ध ने करो या मरो का आह्वान किया। यह आह्वान क्रान्तिकारी, पत्रकार, हवा की तरह देश भर में फैल गया। श्री जैन ने उसे अ०भा० स्वतंत्रता संग्राम
आत्मसात किया और उज्जैन में बड़े नेताओं. सर्वश्री सेनानी संगठन के सचिव श्री कन्हैयालाल मनाना, शिवशंकर रावल, वी0वी0 अवन्ती लाल जैन, पुत्र-श्री आयाचित, स्वामी रामानंद, केशवलाल गुप्ता आदि रामलाल का जन्म 1 अगस्त के साथ कार्य किया। जब सभी गिरफ्तार हो गये तब 1922 में हुआ। 11 वर्ष
पूरे आंदोलन का संचालन आपने बड़ी वीरता के की उम्र में ही पिता का देहावसान हो गया, फलतः
साथ किया। इस आन्दोलन के दौर में पुलिस के माता केशरवाई ने कठिन परिस्थितियों में अवन्ती
अत्याचार से देशभर में हजारों लोग मार डाले गये व लाल का भरण-पोषण किया। संघर्षमय जीवन में श्री
हजारों को जेल में लूंस दिया गया था। जैन ने अल्पायु में ही अखबार के हॉकर के रूप में
अवंतीलाल जी को भी कुचल देने व गिरफ्तारी जीवनयात्रा प्रारम्भ की, साथ में पढ़ाई भी जारी रखी।
. के आदेश हुए। आप. जनक्रान्ति को चलाने की गरज बाद के दिनों में वे उज्जैन नगरपालिका में दिन के
से भूमिगत हो गए। लेकिन आन्दोलन पूरी गति से || बजे से 5 बजे तक नौकरी और शाम 6 बजे से
बराबर चलता रहा। उन दिनों एक दिन भी ऐसा नहीं प्रात:काल 6 बजे तक मिल में कार्य करते रहे।
गया कि जुलूस और सभाएं अवन्तीलाल जैन के 1938-39 में हैदराबाद में निजाम के विरुद्ध नेतत्व में नहीं हुई हों। पलिस के अत्याचार भी बहुत समस्त भारत में जोश था, आर्य समाज की जागृति से
हुए जिनको सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हण्टर, प्रभावित होकर छात्र जीवन में ही श्री जैन ने विद्यार्थियों कोडों की मार, खन-खराबा के अतिरिक्त लोगों पर का संगठन बनाया, 'हैदराबाद चलो' का जत्था तैयार घोडे दौडाए जाते थे, लेकिन आप अपने लक्ष्य से नहीं किया और हैदराबाद जा पहुँचे। वहाँ आपको गिरफ्तार डिगे व संकटों को सहते रहे।
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प्रथम खण्ड
113 आपने युवकों का एक दल बनाकर रेल की के वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता श्री त्रयम्बक दामोदर, मध्य पटरियों को उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने का भारत के दो भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री तख्तमल जैन व दृढ़ संकल्प लेकर कार्यक्रम शुरू कर दिया। उज्जैन, लीलाधर जोशी तथा उज्जैन नगर कांग्रेस के अध्यक्ष कोटा, मुरैना, ग्वालियर और भोपाल क्षेत्र के अनेक बनारसी दास जैन आदि प्रमुख नेताओं ने बचाव हिस्सों में पटरियों को उखाड़ कर रेलों के आवागमन समिति बनाई। वकीलों की ओर से बचाव की पैरवी को रोक दिया गया व टेलीफोन के तारों को काट-काट का नेतृत्व तत्कालीन एडवोकेट जनरल माननीय कर सारी कार्य प्रणाली को ठप्प कर दिया गया। श्री के0एल0 चितले ने किया था। करीब एक वर्ष
इसी बीच उज्जैन में एक जुलूस का नेतृत्व तक मुकदमा चला और 1943 के अन्त में अवन्तीलाल करते हुए पुलिस ने आपको गिरफ्तार कर लिया। व उनके साथियों को छोड़ दिया गया। उज्जैन व ग्वालियर की जेलों में रखने के बाद भारत की आजादी के लिए क्रांतिकारी प्रवृत्तियों, मुंगावली में बनाई गई नजरबन्द जेल में आपको भेज उग्र स्वभाव, तोड़-फोड़ और मौका आनं पर हिंसा दिया गया। 6 माह के बाद भी जब आप अपने लक्ष्य करने में भी आगे रहने के कारण आप कम्युनिस्ट से विचलित न हुए तो ब्रिटिश शासन के सुपुर्द कर पार्टी में सम्मिलित हो गये। आपने उज्जैन, रतलाम, दिया गया। आपको इन्दौर रेसीडेण्सी जेल में भेज ग्वालियर व बम्बई में बड़े-बड़े मजदूर आंदोलनों का दिया गया और रेल की पटरियां उखाडने, टेलीफोन सफलता से संचालन किया। इसके बाद कम्युनिस्ट
और टेलीग्राफ के तार काटने व देशद्रोह के आरोप में पार्टी के टिकिट पर ही आप उज्जैन नगरपालिका के मुकदमों की कार्यवाही शुरू कर दी गई। आप इन्दौर सदस्य और बाद में निर्विरोध अध्यक्ष चुन गये।। रेसीडेण्सी जेल में बंद थे और मुकदमा चल रहा था आजादी के बाद से ही आप 'नई दुनियां' से भोपाल में। श्री जैन राजनीतिक कैदी थे किन्तु सुलूक सम्बद्ध हैं। हरिजनों के लिए आपने बहुत कार्य किये किया जाता था जघन्य हत्या के आरोपियों की तरह। हैं। आपने तीन बार विदेश यात्रा की है। आप उज्जैन दोनों हाथों में भारी-भरकम हथकडियां डाल कर जिला सहकार संघ के अध्यक्ष (1958), उज्जैन सुनवाई के लिए भोपाल ले जाया जाता था। एक बार जिला केन्द्रीय बैंक के चेयरमैन (1954 से 1964) भोपाल ले जाते समय एक पुलिस अधिकारी ने उज्जैन जिला भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष (1967) आपसे कुछ अपमानजनक शब्द कह दिये। बस फिर आदि पदों पर रहे। आपका अनेक बार राष्ट्रीय स्तर पर क्या था, उस अधिकारी की श्री जैन ने हथकड़ियों सम्मान हुआ है। से जकड़े हाथों से ही मार्ग में ऐसी मरम्मत की, कि
1983 में आपका 'हीरक जयन्ती अभिनन्दन वह अधमरा सा हो गया और उसे अस्पताल में कुछ समारोह आयोजित हुआ था। इस अवसर पर एक दिनों के लिए भर्ती कराया गया।
सचित्र स्मारिका प्रकाशित हुई है। जिसमें आपके मुकदमें की सुनवाई के समय सबके सम्मुख बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का आकलन किया एक ही प्रश्न था। 'फांसी या कैद ?'
गया है। पूरे मालव अञ्चल में आप 'भाई साब' के कैसे मुकदमें से निकाला जावे।' इसके लिए नाम से पुकारे जाते हैं।। देश-प्रेमियों के दो दल गठित हुए। एक वकीलों का
आ()- (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ- 157,
(1) अवन्ती पुत्र : अबंतीलाल जैन, होरक जयन्तो स्मारिका, (3) और दूसरा नेताओं का। इस ऐतिहासिक, बहुचर्चित नई दुनिया, 5-11-1997 तमा ३ 5-1998. (1) दैनिक भास्कर, मुकदमें से बचाव के लिए तत्कालीन ग्वालियर राज्य ।। 8. 1998 आदि
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री अशोक सिंघई
आपको गिरफ्तार कर मुंगावली जेल में रखा गया। सागर (म0प्र0) के श्री अशोक सिंघई, पुत्र-श्री गांधी जी के चरण-चिह्नों पर चलकर बाफना जी रज्जू लाल ने सन् 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में लोगों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सदा प्रेरित करते 2 माह का कारावास भोगा।
रहे। गांव-गांव जाकर लोगों को रूढ़ियों से मुक्त आ)- (!) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-8, (2) आ0 कराने, नशाबन्दी तथा शिक्षा के प्रति रुचि लेने के दी0, पृष्ठ 30
लिए आप उत्साहित करते रहे। श्री आनंदराव जैन
आ)-(1) मा0 प्र0 स्व) सै), 4/213, (2) स्व० स) म),
पृष्ठ-142 मुल्ताई, जिला-बैतूल (म0 प्र0) के श्री र आनन्द राव जैन, पुत्र-श्री नारायण राव का जन्म श्री ईश्वरचन्द्र जैन उर्फ वंशीलाल जैन 1914 में हुआ। 1938 में आप ब्रिटिश सेवा छोड़कर चलती ट्रेन को रोककर उसके इंजन पर राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हुए। 25-9-1941 से 1 माह ध्वज फहराने वाले श्री ईश्वरचन्द्र उर्फ वंशीलाल तक आप बैतूल जेल में रहे। 1942 के आन्दोलन में
जैन का जन्म पिपरिया कलां, भी आप 15 दिन नजरबन्द रहे थे।
जिला-जबलपुर (म0प्र0) में आ)-(1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-5, पृ0 141
हुआ। आपके पिता का नाम श्री आनंदीलाल जैन
श्री कन्छेदीलाल जैन था। आप इन्दौर (म0प्र0) के श्री आनंदीलाल जैन, पुत्र
1930 से ही सविनय अवज्ञा श्री शैतानमल का जन्म 20 अप्रैल 1926 को हुआ।
आंदोलन में दादा बद्रीनाथ आपने एम0 ए0 (अर्थशास्त्र) की उपाधि प्राप्त की।
दुबे के नेतृत्व में सक्रिय हो स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता रहे श्री जैन को गये थे। नमक-कानून भंग करने के दौरान पुलिस के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार निर्मम लाठी प्रहार से आपका शरीर लहूलुहान हो कर लिया गया और लगभग 15 माह के कारावास गया। पुन: जंगल सत्याग्रह और विदेशी वस्त्र की सजा दी गयी। आपके बड़े भाई श्री गेंदालाल जी बहिष्कार आंदोलन में भाग लिया। ट्रेन पर आरूढ़ ने भी जेलयात्रा की।
होकर गाडरवारा स्टेशन के समीप जंजीर खींचकर आ) - (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ-) ट्रेन रोकी और 'भारत माता की जय' के नारे लगाते श्री इन्द्रमल बाफना
हुए, हाथ में तिरंगा झंडा लिए आप तेजी से इंजन के श्री इन्द्रमल बाफना का जन्म सीतामऊ, जिला
समीप पहुँचे और उस पर तिरंगा ध्वज फहराने में मंदसौर (म0प्र0) में 1915 में हुआ। आपके पिता
सफल हो गये। ट्रेन के यात्रियों में खासा कौतूहल का नाम श्री थावरचंद था। आपका कार्यक्षेत्र सीतामऊ फैल गया। पुलिस दौड़ी और इस 'बागी' युवक को स्टेट ही रहा, किन्तु अनेक बार आप स्टेट से बाहर गिरफ्तार कर केन्द्रीय कारागार जबलपुर भेज दिया ग्वालियर स्टेट व सदर राजस्थान में जाकर भी गया, जहां आपको दिनांक 30 सितम्बर 1932 से आंदोलन में भाग लेते रहे। इंदौर रहकर भी आपने 8 मार्च 1933 तक कठोर यातनायें भोगनी पड़ी। आंदोलन में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन में जेल से मुक्त होने पर कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में
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प्रथम खण्ड
115 कार्यरत रहे। मंडलेश्वर एवं जनपद सभासद भी आप भारत छोड़ो आन्दोलन में जुलूस निकलवाने, क्रान्तिकारी बाद में रहे।
नारे लगवाने तथा सरकार विरोधी गतिविधियों में आ) (I) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-30, भाग लेने के कारण आप गिरफ्तार कर लिए गये, (2) स्व) स) पा), पृष्ठ-107. (3) श्री राकश जन, शहपुरा द्वारा फलतः 6 माह के कारावास का दण्ड भोगा। प्रेषित परिचय
आ0 - (1) म0 प्र) स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-203, श्री उगमराज मोहनोत
(2) जै) स) रा0 अ) विधि स्नातक श्री उगमराज मोहनोत का जन्म
श्री उत्तमचंद जैन 25 जुलाई 1925 को श्री मूलराज के घर जोधपुर जबलपुर (म0प्र0) के श्री उत्तमचंद जैन, (राजस्थान) में हुआ। 1940 में लोक परिषद् के पुत्र-श्री मूलचंद ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन आन्दोलन में आपने वानर सेना के स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया, फलत: आप गिरफ्तार कर लिये गये में कार्य किया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में और कारावास में डाल दिये गये। आप दसवीं कक्षा के छात्र थे, वहाँ से गिरफ्तार कर आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग--1, पृष्ठ-31 (2) आपको भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत डेढ़ वर्ष की स्व) स) जा), पृष्ठ-85 सजा दी गई व अमानुषिक पीड़ायें दी गईं। तलाशी श्री उत्तमचंद जैन कठरया में पुलिस घर का समान ले गई। जेल से छूटने के
श्री उत्तमचंद कठरया का जन्म 1-11-1919 में बाद स्कूलों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया फिर
उत्तमधाना (ललितपुर) उ0प्र0 में हुआ । आपके भी आपने किसी तरह एम0ए0 एल0एल0बी0 तक
पिता का नाम श्री मुरलीधर शिक्षा ग्रहण की। आपके पिता पुलिस विभाग में कार्य
जैन था। करते थे, लेकिन पुत्र की राजद्रोही प्रवृत्तियों के कारण
कठरया जी को राष्ट्रीय उनकी तरक्की रोक दी गई।
जन आन्दोलन में कार्यरत होने आ) (I) रा) स्व0 से), पृ0-711
की प्रेरणा अपने अग्रज श्री श्री उत्तमचंद जैन
नन्दकिशोर कठरया से मिली। नगर कांग्रेस के मंत्री रहे, पिण्डरई, जिला
। श्री रामेश्वर प्रसाद शर्मा के मण्डला (म0प्र0) के श्री उत्तमचंद जैन, पुत्र श्री नेतृत्व में आपने अपने ग्राम उत्तमधाना में जनजागृति
कुञ्जीलाल का जन्म 15 का श्रीगणेश किया। चर्खा, स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार फरवरी 1924 को और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में योगदान दिया। ग्राम-कदवा, तहसील. बण्डा, 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सम्मिलित होकर जिला-सागर (म0प्र0) में तिरंगा झंडा हाथ में लेकर रक्षा-बंधन के अवसर पर हआ। स्थानीय उच्च नेताओं सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार होकर वर्ष भर का की प्रेरणा पाकर आप राष्ट्रीय कठोर कारावास तथा 100/- का अर्थ दण्ड आपने आंदोलन में सक्रिय हए। भोगा। 29-3-1994 को आपका निधन हो गया।
आO-(1) र) नी0, पृष्ठ-22, (2) जै0 स0 रा0 अ0, 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आप गांव-गांव ।
(3) डॉ) बाहुबली जैन द्वारा प्रेषित परिचय (4) श्री महेन्द्र कुमार जाकर आंदोलन का प्रचार करते रहे। 1942 के कठरया द्वाया प्रेषित परिचय।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन बाबू उत्तमचंद वकील
नजरबंद कर दिये गये। देश की आजादी के बाद आगरा के निकट बरारा ग्राम के रहने वाले आप समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। दो वर्ष बाबू उत्तमचंद वकील, पुत्र-श्री उमराव सिंह जैन तक आप प्रान्तीय सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री रहे। 1936 से राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रकाश में आये। आप कांग्रेस ढावरिया जी लगभग 5 वर्ष ग्राम पंचायत के सरपंच, कमेटी के पदाधिकारी रहे। 1940 के आंदोलन में 4 वर्ष पंचायत समिति के प्रधान तथा 1962 से 1967 आप नजरबंद कर लिए गये और लगभग एक वर्ष तक राज्य विधान सभा के सदस्य रहे। आजादी के जेल में रहे। 1942 के आन्दोलन में भी आपको बाद भी आप अनेक बार जेल गये।। 9 अगस्त को ही गिरफ्तार कर लिया गया और मई आ)- (1) रा) स्वा) से0, पृष्ठ 5।। (2) जैन संस्कृति 1944 में छोड़ा गया। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित ।
और राजस्थान, पृष्ठ-343. (3) इ) अ) ओ), 2/401 वकील सा0 ने उस समय किसानों का बड़ा संगठन
श्री उम्मेदीलाल जैन खड़ा किया था।
ग्राम साधन खोड़ा, तहसील-किरावली, आ) (1) प0 इ०, पृष्ठ 139, (2) जै0 स0 रा) अ0, जिला-आगरा (उ0प्र0) के श्री उम्मेदीलाल जैन ने (3) उ0 प्र0 जै) 40, पृ) 92, (4) श्री महावीर प्रसाद अलवर
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था द्वारा प्रेषित परिचय, (5) गो0 अ0 ग्र0, पृ0-218 . 219
और जेल के दारुण दुख झेले थे। आप मण्डल कांग्रेस श्री उत्तमचंद वासल
कमेटी के सदस्य भी रहे थे। मण्डल कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे, पिण्डरई,
___ आO-(1) गो) अ) ग्रा), पृ0-219 जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री उत्तमचंद वासल
श्री एन० कुमार जैन तत्कालीन नेताओं में अग्रगण्य रहे हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन इटारसी (म0 प्र0) के श्री एन0 कुमार जैन, में सक्रियता से आपने भाग लिया, फलतः गिरफ्तार पुत्र-श्री कालूराम जैन का जन्म बाबई (माखननगर) हुए और 6 माह की जेल यात्रा की।
में चार जनवरी 1913 को हुआ। आपकी शिक्षा मैट्रिक आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ)
तक हो पाई थी कि स्वतंत्रता आन्दोलन की राह में श्री उमरावसिंह ढावरिया
ऐसे निकले कि फिर आगे पढ़ने का नाम ही नहीं लिया। मेवाड़ प्रजा-मण्डल आन्दोलन से संबद्ध रहे।
र आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार के होने के बावजूद श्री उमरावसिंह ढावरिया का जन्म बनेड़ा (राजस्थान) मा आपन र
भी आपने युवकों की टोलियों बनाकर, गांव-गांव जाकर के जैन ओसवाल परिवार में हआ। बनेडा और उदयपर स्वतंत्रता की अलख जगाई। बाबई पुलिस थाने और में शिक्षा प्राप्त ढावरिया जी विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराने के जुर्म में अंग्रेजों राजनीति में कद पडे. उन्होंने पिछड़ी जातियों में ने श्री जैन को 1938 में गिरफ्तार कर 6 माह के लिए शिक्षाप्रसार का काम हाथ में लिया और प्रजामण्डल होशंगाबाद जेल भेज दिया किंतु श्री जैन जेल से भी के तत्त्वावधान में किसानों और मजदूरों के संगठन आंदोलन की गतिविधियां चलाते रहे। का कार्य सम्हाला। 'अखिल भारतीय देशी राज्य लोक 1942 के आंदोलन में तो श्री जैन ने अद्भुत परिषद्' के सदस्य रहे ढावरिया जी 1942 के भारत साहस का परिचय दिया। बागड़ा रेलवे स्टेशन को अपने छोड़ो आंदोलन में भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत 6 कब्जे में ले लिया तथा भारी तोड़फोड़ की एवं स्टेशन माह के लिए इसवाल और उदयपुर की जेलों में मास्टर को कमरे में बंद कर उसकी जबर्दस्त पिटाई
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प्रथम खण्ड
117 की। अंगेजों ने स्थिति से निपटने के लिए इटारसी और श्री कज्जूलाल पोरवाल जैन पचमढ़ी से सेना भेजी तथा इन्हें गिरफ्तार किया गया।
नाथद्वारा (उदयपुर) राजस्थान के श्री कज्जू 16 महीने श्री जैन को नजरबंद रखा गया, पहले लाल पोरवाल जैन, पत्र श्री-हीरालाल ने 1942 के होशगांबाद तथा बाद में अकोला जेल ले जाया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और उदयपुर श्री रामकृष्ण बजाज, कमलनयन बजाज, बसंतदादा जेल में 6 माह की सजा काटी। नाईक, नरेन्द्र तिड़के और ठाकुर निरंजन सिंह से इनका
आ()-(1) रा0 स्व0 से0, पृ0-495 जेल में संपर्क हुआ। श्री एन० कुमार रामकृष्ण बजाज के संपर्क में आने के बाद महात्मा गांधी के भी संपर्क
श्री कन्छेदीलाल डेरिया में आए। अकोला जेल से बांस की सीढ़ी बनाकर जेल बाबई, जिला-होशंगाबाद (म0 प्र0) के श्री कूदकर भागे तथा नेहरू जी को नागपुर जाकर संदेश कन्छेदीलाल डेरिया, पुत्र-श्री मन्नूलाल डेरिया का दिया किंतु नागपुर में फिर गिरफ्तार कर लिये गये। जन्म वि0 सं0 1952 (सन् 1895) में हुआ। 1930
गांधीजी से श्री जैन इतने ज्यादा प्रभावित हए से आप कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गये। कि बाबई स्थित शनीचरे मोहल्ले की अंग्रेजी कपडे 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में आप की पूरी दुकान को आग लगा दी। फिर जीवन पर्यन्त होशंगाबाद जेल में 15 दिन नजरबंद रहे। 1942 के ये खादी ही पहनते रहे। श्री जैन 1935 से ही कांग्रेस आन्दोलन में भी आपने जेल यात्रा की थी। 17 वर्ष में आ गये थे। गरीब साथियों की समय-समय पर मदद की उम्र से ही आन्दोलन में सक्रिय रहे डेरियाजी करना इनका मुख्य उद्देश्य था। बाबई में 1953 में एक का निधन कार्तिक शुक्ल 3 वि0 सं0 2036 (सन् ससज्जित अस्पताल बनाकर उन्होंने सरकार को दान 1979) में हो गया। आपके पत्र व भाई भी जेलयात्री किया जो आज भी चल रहा है। श्री जैन में स्वतंत्रता रहे हैं। की भावना कट-कट कर भरी थी। उन्होंने जीवन पर्यन्त आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-5, पृ0 326, (2) केन्द्र एवं राज्य सरकार की श्रद्धा निधि या अन्य कोई स्व) स) हो), पृ} 115 सुविधा प्राप्त नहीं की। 15 अगस्त 72 को दिल्ली
सिंघई श्री कन्छेदीलाल जैन में श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र भेंट दिया था।
सिंघई कन्छेदीलाल जैन, पुत्र-श्री गल्लीलाल जैन 26 जनवरी 1975 को बम्बई में आपका देहावसान
का जन्म 1920 में तेंदूखेड़ा, जिला-नरसिंहपुर हो गया।
(म0प्र0) में हुआ। प्राथमिक आ0-(1) म) प्र) स्वा) सै0, 5/325 (2) स्व0 सा)
कक्षा में अध्ययन के समय हो।) पा) 117, (3) दैनिक जागरण (भोपाल), 22 अगस्त 1997
ही आप राष्ट्रीय आन्दोलन में श्री कंचनलाल जैन
कूद पड़े और 1930 के सागर (म0प्र0) के श्री कंचनलाल जैन, पुत्र
आन्दोलन में भाग लिया। श्री छोटे लाल का जन्म 1924 में हुआ। 1942 के भारत
1942 के आन्दोलन में आपने छोड़ो आन्दालन में आपने 6 माह का कारावास
सत्याग्रह किया और गिरफ्तार भोगा।
हुए। आपने लगभग 10 माह ___आ) (1) म. प्र) स्व0 सै), भाग 2, पृष्ठ 10, का कारावास नरसिंहपुर, होशंगाबाद, मण्डला एवं (2) आ() दी), पृष्ठ 31
जबलपुर की जेलों में काटा। देश की आजादी के बाद
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सेठ गोविन्ददास जी के हाथों आपने ताम्रपत्र प्राप्त किया। 21-9-1996 को आपका देहावसान हो गया।
आ0- (1)- म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-137, (2) स्वतंत्रता सेनानी श्री खेमचंद स्वदेशी द्वारा प्रेषित परिचय श्री कछेदीलाल जैन
बण्डा, जिला - सागर ( म०प्र०) निवासी श्री कन्छेदीलाल जैन, पुत्र - श्री रामलाल ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया व 14 माह का कारावास भोगा। आपका निधन 1972 में हो गया।
आ) - ( 1 ) - म० प्र०) स्व० सं०, भाग 2, पृष्ठ 10, (2) आ दी, पृ0 31
श्री कन्हैयालाल कटलाना
श्री कन्हैयालाल कटलाना प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी स्व () शंकरलाल कटलाना ( इनका परिचय अन्यत्र दिया गया है) के अनुज हैं। आप उग्र स्वभाव के आंदोलनकारी रहे। आपका जन्म 1909 में श्री मोतीलाल कटलाना के घर हुआ। 15 वर्ष की अल्प आयु में ही आप स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये और पढ़ाई छोड़, क्रातिकारी का बाना धारण कर लिया। सीतामऊ (जहां आपका जन्म हुआ) से परिवार सहित निर्वासित हुए। अनेक बार पुलिस से सीधे-सीधे टकराते रहे। स्टेट की पुलिस, जिस पर अंग्रेजियत का वर्चस्व था, श्री कन्हैया लाल कटलाना के आंदोलनकारी रवैये से सदा परेशान रही। आंदोलन को प्रखर बनाने में श्री कटलाना का योगदान महत्त्वपूर्ण था। भारत छोड़ो आंदोलन में आप अपने भाई के साथ मुंगावली जेल में रहे। जेल में भी आपका रवैया पुलिस के प्रति आक्रामक ही रहा। जेल से छूटने के बाद आप मंदसौर में ही स्थायी रूप से बस गये। छुआछूत आंदोलन में भाग लेने के कारण आप जाति से भी निष्कासित करें दिये गये थे।
आ) (1) ० प्र० स्व0 सं0 भाग 4, पृष्ठ 213. (2) स्व० स० म० पृ० 139-140
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श्री कन्हैयालाल जैन
अपने कठिन परिश्रम से जीविकोपार्जन करने वाले, जबलपुर (म0प्र0) के श्री कन्हैयालाल जैन, पुत्र श्री अबीरचन्द ( अमीरचन्द ) ने 1932 के आन्दोलन में भाग लिया तथा 6 माह का कारावास भोगा ।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आण ( 1 ) म० प्र०) स्व०) सै0 भाग 1, पृष्ठ 32, (2) स्त्र(0) स) ज०, पृ0 86
अवस्था के कारण में आकर बस गये।
श्री कन्हैयालाल जैन
भरी जवानी में प्रथम प्रसवोद्यता नवविवाहिता प्रियतमा के भी प्रेम को ठुकराकर भारत माँ से प्यार करने वाले श्री कन्हैयालाल जैन का जन्म 26 अगस्त 1910 को चिकसंतर, में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कल्याण दास जैन था। आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की। पिता की जर्जर आप मुरार, ग्वालियर (म0प्र0)
9 अगस्त को जब गांधी जी द्वारा 'करो या मरो' का नारा दिया गया तब आपने मुरार छावनी की फौज से बगावत करने वाले सैनिकों को मुरार नदी पर तिरंगा झण्डा देकर उन्हें भी आजादी के लिये प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अंग्रेजों की फौजों द्वारा बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया। जिससे आपके दोनों पैरों को काफी चोटें आईं और आप आजीवन परेशान रहे।
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29 अगस्त 1942 को एक जुलूस के रूप में अपने अन्य सहयोगियों के साथ मुरार थाने पर जाकर आपने गिरफ्तारी दी, जहाँ से आपको ग्वालियर कारावास में भेज दिया गया और कुछ दिनों के बाद सबलगढ़ स्थानान्तरित कर दिया गया, जहां से 25 मई 1943 को आप आजाद हुए। देश की आजादी के बाद
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प्रथम खण्ड भी आप देशहित में समर्पित रहे, अत: अन्त तक भी आप अनेक बार जेल गये पर एक दो रात अपने परिवार के भरण-पोषण हेतु स्थाई साधन नहीं रखकर छोड़ दिये गये, किन्तु शक्कर ब्लैक का विरोध कर सके।
करने पर आपको गिरफ्तार कर लम्बी अवधि के लिये आप जितने कर्मठ थे उतने ही सादगी जेल की सजा दी गई, बाद में श्री सीताराम जाज की पसन्द भी थे। 18 मई 1976 को आपका देहावसान पैरवी पर 10 दिन की सजा भुगतकर मुक्त हो गये हो गया।
और छूटते ही फिर आंदोलन में कूद पड़े। आ0 (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग 4, पृष्ठ 234, 1942 के आंदोलन में वरिष्ठ नेताओं के गिरफ्तार (2) जै(10. पृष्ठ 85. (3) जै) जै) यु), पृ.) 228, (4)- पुत्र
हो जाने के कारण नागोरी जी अपने युवादल द्वारा दिलीप कमार द्वारा प्रेपित परिचय
स्वतंत्रता आंदोलन को चालू रखे रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति श्री कन्हैयालाल नागोरी के पश्चात् भी आपने जनजागरण में स्वयं को जावद क्षेत्र से म0 प्र0 विधानसभा सदस्य रहे सक्रिय रखा। आप 1972-77 तक जावद क्षेत्र के
विधायक रहे। श्री कन्हैयालाल नागोरी, पुत्र-श्री नथमल नागोरी का
आ0-(1) स्व0 स0) म0, पृष्ठ-151-152 ॥ जन्म 6 फरवरी 1921 को जमुनियां कला,
श्री कन्हैयालाल परमहंस जिला मन्दसौर (म0 प्र0) इन्दौर (म0प्र0) के श्री कन्हैयालाल परमहंस, में हुआ। आपने 21 वर्ष की पुत्र-श्री नन्दराम जैन का जन्म 25 सितम्बर 1915 युवा आयु में स्वतन्त्रता को हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आपने सेनानी बद्रीदत्त भटट के नेतत्व सक्रिय भाग लिया एवं 15 माह 9 दिन का कारावास
भोगा। में स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू किया। श्री जगदीश ऐरन, दशरथ लाल नागर,
आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै०, भाग 4, पृष्ठ 12 बलदेवदास बैरागी, भागीरथ जी पाटीदार आदि युवा
श्री कन्हैयालाल जैन साथियों सहित जुलूस निकालना, सांमतशाही और अंग्रेजों
श्री कन्हैयालाल जैन, पुत्र-श्री नारायण जैन का के विरुद्ध नारे लगाना, पोस्टर लगाना, सूचनाएं प्रसारित
जन्म 1904 ई0 में हुआ। आपने मैट्रिक तक शिक्षा करना आदि आपके प्रमुख काम थे।
ग्रहण की। 1930 से ही आप स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय
हो गये थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आपने आंदोलन के दौरान अनेक बार सेनानियों को भाग लिया, फलत: गिरफ्तार हुये और जबलपुर जेल या तो गिरफ्तार कर लिया जाता था या फिर किन्हीं में 8 माह का कारावास भोगा। कारणों से उन्हें भूमिगत हो जाना पड़ता था. तब इस
आ()- (1) म0 प्र() स्व) सै0, भाग 1, पृष्ठ 32, (2) स्व)
१०० यवा दल को सक्रिय होकर मोर्चा सम्हालना पड़ता था। श्री नागोरी की सक्रियता उस समय सराहनीय
वैद्य कन्हैयालाल जैन होती थी। पुलिस इन पर डण्डे बरसाती और पकड़
जिनका सारा परिवार ही स्वाधीनता आन्दोलन
में जेल गया, ऐसे कानपुर (उ0प्र0) के वैद्य कन्हैया कर दूर जंगल में छोड़ आती थी। किन्तु अगले दिन
लाल के सन्दर्भ में 2-3 बार कानपुर यात्रा करने के ये फिर सक्रिय होकर आंदोलन करने हेतु प्रगट हो
बाद जो ज्ञात हुआ उसके अनुसार वैद्य जी का जन्म जाते थे।
वि0 सं0 1940 (1883 ई0) में शेरकोट,
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन जिला-बिजनौर (उ0प्र0) में को वटा देवी मेले पर बकरों की बलि दी जाती थी, हआ। पिता का नाम श्री वैद्य जी ने अनेक लोगों के साथ मिलकर उसे बन्द पूरनमल जैन था। आपके कराया था। आपका निधन 5-11-1956 को कानपुर पूर्वज जयपुर राज्य से शेरकोट में हुआ।
आ0 (1) जै। स) रा) अ0, (2) वैद्य जी के प्रिय शिष्य आकर बसे थे। आपके पूर्वज
पं0 बच्चू लाल जी जैन, कानपुर द्वारा प्रदत्त परिचय। श्री दीपचंद जी ने हकीम
का व्यवसाय अपनाया और श्री कन्हैयालाल उर्फ मथुरालाल जैन दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गये। उनके पूर्वजों ने 1857 इन्दौर (म0प्र0) के श्री कन्हैयालाल उर्फ के गदर में भाग लिया था। वैद्य कन्हैयालाल का मथुरालाल जैन, पुत्र-श्री रूपचंद का जन्म 2 जुलाई वैद्यकी परीक्षा में प्रथम स्थान आने पर अम्बाला छावनी 1930 को हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में महासभा के जलसे में सम्मान हुआ था। में आपने भाग लिया। फलत: 2 माह की अवधि
अपने वैद्यकीय व्यवसाय को प्रतिष्ठा की चरम तक गिरफ्तार रहे। आजादी के बाद शासन ने आपको सीमा पर पहुंचाने वाले कन्हैयालाल जी स्वतंत्रता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।
आंदोलन में भी उतनी ही तल्लीनता से सक्रिय रहे। आ0- (1) म) प्र) स्व0 सै), भाग 4, पृष्ट 121 1930 के आन्दोलन में उन्हें छह मास का कारावास मिला। 'जैन सन्देश' के अनुसार वे सच्चे अर्थों में
श्री कपूरचंद छाबड़ा दशभक्त थे। उनकी पत्नी श्रीमती गंगा बाई, पत्र महेशचंद्र 1913 के आसपास जन्मे, जयपुर (राज)) के व सुन्दरलाल सभी जेल यात्री हैं। आप कुछ दिन श्री कपूरचंद छाबड़ा 1932 में सत्याग्रह करने अजमेर बम्बई भी रहे। 'जैन संदेश' लिखता है-'पूज्य बाल गये और वहीं गिरफ्तार कर नौ माह जेल में रखे गंगाधर तिलक के द्वारा चलाये स्वदेशी आन्दोलन के गये। 1939 के प्रजामण्डल आन्दोलन में भी आपने समय आप बम्बई में स्वदेशी व्रत धारण कर चुके भाग लिया, पर पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी। हैं। 1930 के आन्दोलन में आप छह मास के लिए आजीवन खद्दरधारी श्री छाबडा जनता की सेवा के जेल जा चुके हैं। हमेशा कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में लिए सदैव तैयार रहने से बड़े लोकप्रिय रहे हैं। शरीक होते हैं। म्यूनिसिपल बोर्ड कानपुर के मेम्बर
आ)-(1) रा) स्था) से0, पृ0-6(03 भी रह चुके हैं।' आपको प्रवचन का शौक था। बड़े मंदिर कानपुर
श्री कपूरचंद जैन में सदैव शास्त्र पढ़ते थे। शुद्ध औषधियाँ व्रती श्रावकों
___ गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री कपूरचंद को मिलें इस हेतु आपने एक औषधालय की स्थापना जैन, पुत्र- श्री दरबारीलाल जेन 1942 के भारत छोड़ो की थी। कानपुर में अनेक संस्थाओं से आप सम्बद्ध आन्दोलन में 15 दिन नजरबन्दी में रहे। रहे हैं। अनेक संस्थाओं की स्थापना भी आपने की है। आ()-(1) म) प्र) स्व0 70, भाग-2, पृष्ठ-11, (2)आ।
1040 में जब आपके पुत्र सन्दर लाल जी दी), पृ0-32 गिरफ्तार कर लिये गये, तब आप जेल में ही थे।
श्री कपूरचंद जैन 2 माह बाद वीर शासन जयंती के दिन मझले पुत्र श्री कपूरचंद जैन का जन्म 1921 में सैदपुर, महेश चंद को भी जेल भेज दिया गया, तब भी आप जिला-ललितपर (प) में आ आपके पिता श्री विचलित नहीं हुए। कानपुर में चैत्र शुक्ल अष्टमी पल्टराम थे। आपने श्री विजय कृष्ण शर्मा के साथ
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प्रथम खण्ड
गोपनीय क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया और 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल यात्रा की। आपको 6 माह की सजा और 15 रू0 अर्थदंड हुआ। आप झांसी तथा बारावकी जेलों में रहे। भारत आजाद होने के बाद भी देशप्रेम की खातिर आप 1948-49 तक प्रांतीय रक्षा दल में रहे।
आ) (1) ० नी०, पृ0-49
डॉ० कपूरचंद जैन
सागर (म0प्र0) के डॉ0 कपूरचंद जैन, पुत्र- श्री नन्हे लाल का जन्म 1919 में हुआ। आपने नागपुर में मेडीकल कॉलेज में अध्ययन के समय शासकीय भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, फलतः नागपुर में 15 दिन नजरबन्द रहे। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण शासकीय सेवा से भी आप वंचित रहे । आ) (1) म0प्र0) स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 14, आ दी०, पृ० 35
(2)
श्री कपूरचंद जैन
मागर (म()()) के श्री कपूरचंद जैन, पुत्र- श्री हीरालाल जैन का जन्म 1924 में हुआ। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर आप 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय हो गये और 6 माह का कारावास भोगा । आए (1) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृ0 4, (2) आ 30.50 32
श्री कपूरचंद जैन चौधरी
श्री कपूरचंद चौधरी, पुत्र - श्री दरबारीलाल चौधरी का जन्म दमोह (म0प्र0) में 16-10-1916 को हुआ। आपके चाचा श्री भैयालाल चौधरी दमोह में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख रहे हैं, जिनकी कलकत्ता- कांग्रेस मीटिंग से लौटते समय हत्या कर दी गई थी। श्री कपूरचंद चौधरी ने विदेशी वस्त्र बहिष्कार आन्दोलन में भाग लिया। 1942 के आन्दोलन में एक आम सभा गाँधी चौक में दि० 14-8-1942
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को हुई । डिक्टेटर के रूप में भाषण देते हुए आप गिरफ्तार कर लिये गये और दि० 15-8-1942 को जबलपुर जेल भेज दिये गये, जहाँ आपको नाना साहब गोखले, श्री के0 देशमुख, राजेन्द्र प्रसाद मालपाणी, छक्कीलाल गुप्ता, जनरल आवारी जैसे नेताओं के सम्पर्क में रहने का अवसर मिला। सरकारी अभिलेखों के आधार पर आपको दो वर्ष छः माह के कारावास की सजा भुगतनी पड़ी। श्री चौधरी कपड़े का व्यवसाय करते हैं।
आ(0) - (1) म) प्र() स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 79, (2) श्री संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय |
श्री कपूरचंद पाटनी
'जैन जगत' और 'सुधारक' जैसे पत्रों के सम्पादक रहे श्री कपूरचंद पाटनी, पुत्र - श्री पं0) चन्द्रपाल पाटनी का जन्म 30 जनवरी 1901 को जयपुर (राजस्थान) में हुआ। आपने पं0 अर्जुनलाल सेठी के क्रान्तिकारी विद्यालय, वर्धमान जैन विद्यालय जयपुर में शिक्षा प्राप्त की। सेठी जी का विद्यालय जब इन्दौर चला गया तो आपने महाराजा कालेज, जयपुर में शिक्षा प्राप्त की।
1926 में गांधी जी की प्रेरणा से श्री जमना लाल बजाज की देखरेख में पाटनी जी ने खादी का काम संभाला, साथ में हरिजन सेवा का काम भी करते रहे। 1927 में आप चर्खा संघ में सम्मिलित हो गये। 1933 में आपने इस संघ से त्यागपत्र दे दिया।
पाटनी जी का हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। जहाँ-कहीं पाटनी जी उपस्थित होते वहाँ के प्रस्ताव उनकी कलम से ही लिखे जाते थे। 1931 में अनाज पर कर लगाने के विरोध में जयपुर में जोरदार जन आन्दोलन हुआ। उन्हीं दिनों जयपुर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना हुई, दोनों में पाटनी जी की महती भूमिका रही। पाटनी जी प्रजामंडल के आजीवन वफादार सेवक रहे। वे उसके संस्थापक
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन और प्रथम मंत्री थे। पाटनी जी को पद और प्रसिद्धि
श्री कमलचंद जैन की कभी लालसा नहीं रही। वे ठोस काम करने श्री कमलचंद जैन, पुत्र- श्री चम्पालाल जैन का वाले व्यवहारिक राष्ट्रकर्मी थे। पाटनी जी मतभेदों को जन्म 4-11-1916 को सनावद, जिला- पश्चिम मिटाकर, विरोधियों को मिलाकर समीप लाने के
निमाड़ (म0प्र0) में हुआ, काम में सिद्धहस्त थे।
आपने बी0 ए0, एल0 एल0 पाटनी जी ने जयपुर सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर
बी0 इन्दौर से की। राष्ट्रीय हिस्सा लिया, फलत: गिरफ्तार हुए. और छह माह के
आन्दोलन में भाग लेने कठोर कारावास की सजा आपने भोगी। बाद में
के सन्दर्भ में आपने स्वयं प्रजामंडल और सरकार के बीच जो समझौता हुआ
लिखा है। उसमें पाटनी जी जमनालाल बजाज के विश्वासपात्र
'सन् 40 में कानून साथी थे।
की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् मैं इन्दौर से अपने मुभाषी एवं व्यवहार कुशल पाटनी जी की घर सनावद लौट आया. वकालत प्रारंभ की. साथ संगठन शक्ति अपूर्व थी। वे सही अर्थ में जयपुर की ही नगर प्रजामंडल का सदस्य भी बन गया, सन् जन-जागृति के सूत्रधार थे। वे पदलिप्सा से सदैव 41-42 में प्रजामंडल का अध्यक्ष बना और भारत छोड़ो दर रहे। पं0 हीरालाल शास्त्री ने अपनी आत्मकथा में आंदोलन का नगर में नेतत्व किया। धारा 144 तोडकर लिखा है- 'पाटनी जी ने स्वयं को सदैव पद से दूर सभा करने के जुर्म में 25 अगस्त 42 को बंदी बनाकर रखाः उन्होंने जयपुर राज्य की लोकप्रिय सरकार में मुझे और मेरे दो साथियों को जिला जेल मंडलेश्वर मंत्री पद लेने से भी इंकार कर दिया था।' प्रजामंडल भेज दिया गया, वहां 2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर कं शास्त्री जी और पाटनी जी प्रमुख संचालक थे। पर अन्य साथियों के साथ जेल तोड़कर भागने के कहा जाता है -'अगर शास्त्री जी हृदय थे तो पाटनी अपराध में दिनांक 11-10-42 को भा) द0 वि0 की जी उसके मस्तिष्क।'
धारा 147, 224 और 353 के अंतर्गत दो-दो वर्ष जेन समाज से भी पाटनी जी घनिष्ठ रूप में की सश्रम सजा हुई और हमें पैरों में डंडा-बेड़ियां डाल जुड़े थे। वे 'आल इण्डिया जैन एसोसिएशन' और दी गईं, जो 6-7 माह बाद ही हटीं। बाद में भारत 'आल इण्डिया जैन पोलिटिकल कांफ्रेन्स' के प्रान्तीय रक्षा कानून की धारा 38 (1 ए) के अंतर्गत भी एक सचिव थे। 26 सितम्बर 1946 को 45 वर्ष की वर्ष की सजा दी गई, उपरोक्त तीन धाराओं की सजा अल्प आयु में ही देश की आजादी का स्वप्न लिए साथ-साथ चलनी थी, अत: कल 3 वर्ष की सजा हई। यह सेनानी सदा-सदा के लिए सो गया। 1950 के चंकि । वर्ष से अधिक की सजा वाले मंडलेश्वर जेल लगभग, जयपुर कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर में नहीं रखे जाते थे, अत: मुझे अपने कछ साथियों 'कपूरचंद पाटनी द्वार' का निर्माण कर आपका स्मरण के साथ दि0 7-11-42 को केन्द्रीय कारागार. इंदौर किया गया था।
भेज दिया गया। आ) (1) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ 342 इंदौर नरेश और हमारे नेताओं के बीच समझौता (2) जै) सर) रा() अ), पृष्ठ-71. (3) जै) स0 वृ0 इ0, पृ0 203, (4) रा) स्य) से), पृष्ठ 552 (5) राजस्थानी आजादी के दीवाने हो जाने से दिनांक 29-11-43 को सभी राजनैतिक पृष्ठ 131-132
बंदियों की रिहाई के साथ मैं भी रिहा हो गया। रिहाई
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प्रथम खण्ड
123 के बाद रचनात्मक कार्यों में भाग लिया। जैन समाज गया और उन्होंने दरवाजा खिड़की तोड़ने का प्रयत्न द्वारा संचालित हाईस्कूल को सेठ मायाचंद जी से ढाई किया। एकाध घंटे की जोर आजमाइश के बाद दरवाजा लाख का दान दिलाने में सफल हुआ। सनावद में टूट गया और अधिकांश सत्याग्रही बाहर आ गये। सहकारी नागरिक बैंक की स्थापना कराई और 3 वर्ष पुलिस के जवान मारे डर के गटर में छिप गये। विचार उसका अध्यक्ष रहा।' जेल तोडने की घटना का विस्तार हआ कि पलिस की बर्बरता नगरवासियों को दिखाई से वर्णन करते हुए आपने लिखा है
जाए, अतः सत्याग्रही जत्था प्रमुख दरवाजे की ओर ___ जिला जेल मंडलेश्वर में युवा और बुजुर्ग दोनों बढ़ा, चौकीदार ने रोकना चाहा, किन्तु 'गांधी जी की प्रकार के सत्याग्रही थे। युवाओं के बीच चिंतन चल जय' के साथ जैसे ही चार पांच व्यक्तियों ने हाथ से रहा था कि जेल में रोटियाँ खाने ही नहीं आये हैं, धक्का दिया कि प्रमुख दरवाजे का एक ऊपरी भाग बैठे-बैठे क्या होगा, कुछ करना चाहिए। जेल में धड़ाम से नीचे गिर गया। सत्याग्रहियों के लिये केवल एक ही कमरा था जो सत्याग्रही कस्बे की अनजान गलियों में करीब 20 X.30 का होगा। सत्याग्रही आते रहे, जिले इधर-उधर भटक न जाएं इसलिए बैजनाथ जी महोदय से भी और कुछ इन्दौर से भी। रात्रि में कमरे का के नेतृत्व में सत्याग्रही आगे बढ़े। पटवारी वकील दरवाजा बंद हो जाता था अत: टट्टी पेशाब के लिए के यहां अच्छी रोशनी देखकर गांधी जयन्ती मनाने कमरे में ही बनी दो फुट ऊंची दीवाल के पीछे जाना के लिए सत्याग्रही वहीं रुक गये। घायल चार साथियों होता था अतएव रात्रि में दुर्गध के मारे सो सकना की मरहम-पट्टी करवाई। इतने में एक बड़ी पुलिस मुश्किल हो गया था।रात्रि में शुद्धि के लिए बाहर जाने टुकड़ी लेकर डी0 आई0 जी0 वहां आ गये और के लिए जेल अधिकारी से कमरे का दरवाजा खुला हमें घेर लिया, हवाई फायर किया, जिससे गांव की रखने के लिए कहा गया। जेल मैनुअल में ऐसी छूट जमा भीड भाग गई, बचे सत्याग्रही, उन्होंने पलिस देने की व्यवस्था न होने से अधिकारी ने अपनी की घेराबंदी में जेल लौटने से मना कर दिया- 'चाहे असमर्थता जाहिर की, तो सूचना देकर सत्याग्रही जान चली जाय'। गतिरोध को दर करने के लिए दरवाजा खुला रखने लगे, कुछ भाई बाहर भी सोने नेताओं और पुलिस अधिकारियों में बातचीत हुईं, लगे। जेल अधिकारी ने वस्तुस्थिति से उच्च अधि एक घंटे बाद तय हुआ कि सारी पुलिस लौट जाय। कारियों को अवगत कराते हुए मार्गदर्शन चाहा। खुले एक भी पुलिस साथ न हो, हम अपने ढंग से वापस वातावरण में 5-6 दिन ही रहे होंगे कि इन्दौर से इंस्पेक्टर जेल लौट जायेंगे। इस प्रकार राष्ट्रीय गीत गाते हए जनरल ऑफ जेल्स का आदेश आया कि 'कानून का वापस जेल लौटे जहां दरवाजे पर पलिस फोर्स लगी सख्ती से पालन किया जाए और किसी भी सत्याग्रही थी। हमारे लौटते ही अधिकारियों ने चैन की सांस को रात्रि में कमरे से बाहर न जाने दिया जाए'। आदेश ली। जेल में ही मजिस्ट्रेट के सामने मुकदमा चला के पालन में पुलिस फोर्स आई और शाम होते ही .
__ और 33 साथियों को धारा 147, 224, 353, सत्याग्रहियों को कमरे में बंद करने लगी। सब लोग ,
लाग भा0द0वि0 के अंतर्गत 2-2 वर्ष की साथ-साथ कमरे में बंद हो गये किन्तु चार व्यक्तियों ने कमरे -
१९. चलने वाली सश्रम सजा हुई।' में बंद होने से मना कर दिया। उन्हें अन्य कमरे में
आ(-(1) म0प्र0 स्व०सै०, भाग-4, पृष्ठ 83, बंद करने के लिए पुलिस ने जो बर्बर व्यवहार किया, (2) स्व-प्रेषित परिचय/संस्मरण, (3) नवभारत (इन्दौर), 4 उसे देखकर कमरे में बंद सत्याग्रहियों में आक्रोश फैल सितम्बर, 1997
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री कमलाकान्त जैन
राष्ट्रव्यापी 1942 के जन-आन्दोलन में आपने सक्रिय थांदला, जिला-- झाबुआ (म0प्र0) के भाग लिया और भारत रक्षा कानून की दफा 56 के श्री कमलाकान्त जैन, पुत्र-- श्री टेकचन्द जैन का अन्तर्गत जेल में 5 माह रहीं। आपने दफा 144 को जन्म 1912 में हुआ। माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त भंग करके जुलूसों का नेतृत्व भी किया था। सभाबन्दी श्री जैन 1934 से ही स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय कानून भंग करके सभा में भाषण देने के कारण हो गये थे। 1942 के आन्दोलन में गिरफ्तारी के आपको साबरमती जेल में रहना पड़ा। पश्चात् आप राज्य से निष्कासित कर दिये गये। . आप प्रगतिशील विचारों की शिक्षित महिला शासन ने ताम्रपत्र देकर आपको सम्मानित किया है। थीं। आपने धर्म-न्याय और साहित्य का खूब अध्ययन आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ 137 किया था और कविता लेखन के क्षेत्र में विशेष
सफलता प्राप्त की थी। साहित्यिक प्रतिभा के कारण श्रीमती कमला जैन
ही आपको 'राष्ट्रभाषा कोविद्' की उपाधि से अलंकृत श्रीमती कमला जैन पुत्री-श्री किशोरीलाल जैन किया गया। आप न केवल अच्छा लिखती थीं मलावली ग्राम, तहसील-लक्ष्मणगढ़ (अलवर) की
बल्कि कविता भी बहुत जल्दी बनाती थीं। इनकी रंहने वाली थीं। आपके पति
रचनायें 'सुधा', 'कमला' आदि साहित्यिक पत्रिकाओं का छोटी आयु में ही देहान्त में निकलती रहती थीं। सौम्यता, सरलता के साथ हो गया था। उसके बाद आपने सेवापरायणता आपके विशिष्ट गुण थे। 21 अप्रैल देश की सेवा में कार्य किया। 2000 को ललितपुर (उ0प्र0) में आपका निधन हो 1946 में अलवर राज्य गया।
प्रजामंडल के आन्दोलन 'गेर आ0- (1) वि0 अ0, पृष्ठ-227, (2) ) नी), पृष्ठ 32
IN जिम्मेदार मिनिस्टरो कुर्सी (3) जैन प्रचारक, जून 2000 छोड़ो' में आपको भी अन्य महिलाओं के साथ पुलिस ने पकड़कर जंगलों में छोड़ दिया। स्वतंत्र
कविवर कल्याणकुमार 'शशि' भारत में राजस्थान सरकार ने आपको स्वतंत्रता सेनानी
'अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान घोषित किया है।
की' का आह्वान करने वाले, सरस्वती पुत्र, जिन्हें
कल्याच कवित्व शक्ति नैसर्गिक देन आ0- (1) प0 इ०, पृष्ठ 138
के रूप में मिली और जिनकी श्रीमती कमला देवी
प्रत्युत्पन्न मति ने कवित्व श्रीमती कमला देवी ने राष्ट्रीय आन्दोलन में
प्रवाह को और वेग से जैन नारियों को गौरव और गरिमा के पद पर
बढ़ाया, ऐसे कविवर श्री सुशोभित कराया। आपका जन्म ललितपुर (उ0प्र0)
शशि जी का जन्म उत्तर में 1915 के आसपास हुआ। आपके पति पं0
... प्रदेश के रामपुर नगर में परमेष्ठी दास जी (इनका परिचय इसी पुस्तक में 8 मार्च, 1908 में हुआ। पिता श्री बी0एल0जैन अन्यत्र देखें) सरत और साबरमती जेलों में बंद रहे सदगहस्थ थे। शशि जी न तो कोई डिग्री या उपाधि थे। तात्कालिक नारी वर्ग को अभिनव दिशा देते हुए प्राप्त विद्यार्थी रहे और न किसी महाविद्यालय या
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प्रथम खण्ड
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विश्वविद्यालय में उन्होंने अध्ययन ही किया। अमरता के पात्रों को नया प्राण देती है।' वे निरन्तर 'वैद्यक' की शिक्षा अवश्य ग्रहण की और 1932 ऐसे पंथ को ही शोधते रहे, जिससे आदमी को में स्वयं की जैन फार्मेसी में चिकित्सा कार्य करके अमरत्व मिल जाये। जैनमित्र, प्रदीप, जैन महिलादर्श, दवाओं का निर्माण और विक्रय करते रहे। उच्च आदर्श जैन चरितमाला आदि अनेक पत्रों के संपादन शिक्षा के लिये रामपुर से बाहर इसीलिए न जा सके से शशि जी अनेक वर्षों तक जुड़े रहे। कि अल्पायु (4 वर्ष) में आपको पिता का वियोग शशि जी ने जिन दिनों यौवन की देहरी पर हुआ और एक विषम आर्थिक संकट के संक्रमण पांव रखा तो उन्होंने देखा 'देश अंग्रेजों से पराधीन काल से आपका गुजरना पड़ा। परन्तु संघर्षा ने है. हमें स्वतंत्र बोलने-कहने का अधिकार नहीं।' आपकी कवित्व शक्ति को स्वर तथा प्राण दिये और
आजादी के लिए पूरे देश में आन्दोलन चल रहा था। !! वर्ष की अवस्था से आप कवितायें रचने लगे।
हजारों नौनिहालों के साथ शशि जी भी आजादी की शशि जी ने 1926 के आसपास से प्रौढ़ काव्य
लड़ाई में कूद पड़े। अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद रचना प्रारंभ की। कविता आपके लिये कल्पना लोक से उनकी भेंट हई, 1930 में एक अंग्रेज एस0 पी0 की वस्तु नहीं थी बल्कि इसी धरती से जन्म लेने के ऊपर बम फेंकने के अपराध में शशि जी । वर्ष वाली सौरभमय चेतना थी, काव्य प्रणयन मनोविनोद-हेतु
रावलपिंडी व कश्मीर जेल में रहे। जेल में आपको नहीं था बल्कि राष्ट्र और राष्ट्रीय विकास का हेतु कडी यातनायें सहनी पड़ी। था। उनकी कविता का आदर्श था
शशि जी गांधी जी के व्यक्तित्व से सर्वाधिक 'मैं मानव हूं मानवता को,
प्रभावित हुए, यह प्रभाव उनके समग्र जीवन में देखा मानूंगा महान् वरदान।
जा सकता है। सत्य, अहिंसा, न्याय, जीव दया और आजीवन सम्मुख रखूगा,
स्वाभिमान के प्रति शशि जी जीवन भर सजग रहे। मानव का आर्दश महान्।।'
कड़वी होने पर भी सच बात कहने में कभी हिचक उन्होंने इस आदर्श का जीवन भर पालन नहीं दिखाई। शशि जी की रचनायें गांधी जी से किया। धर्म, जाति और देश की संकीर्णता से उठकर प्रभावित थीं। जैसेवे जीवन भर यही बात कहते रहे।
'बड़े-बड़े अरमानों से, यह आजादी आई। । उनकी रचना 'हृदय की आग' (रचनाओं का बड़े-बड़े बलिदानों से, यह स्वतंत्रता पाई।। संग्रह) बर्बर अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई। यह कवि गांधी जी का स्वप्न भला, साकार कहां हो पाया का प्रथम पुस्तकाकार प्रकाशन था। आगे चलकर अब उसमें भी घाटा है जो पाया कमा कमाया।।' 'कलम', 'मेरी आराधना', 'खराद', 'मुर्दा अजायब आपका उद्देश्य शिक्षा का प्रसार रहा। इस उद्देश्य घर', 'देवगढ़ दर्शन', 'जैन समाज दर्पण', 'कविता हेतु आपने रामपुर में जैन इंटर कॉलेज की स्थापना में कुंज', 'पांखुरिया' (कविता संग्रह), 'अहिक्षेत्र बड़ा हाथ बंटाया तथा जैन लाइब्रेरी की स्थापना पार्श्वनाथ-शौरीपुर वटेश्वर पूजन' आदि लगभग करायी। 1940 में रामपुर में हिन्दी के प्रचारार्थ 22 जैन एवं जैनेतर पुस्तकें समय-समय पर प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य गोष्ठी' की स्थापना आपने की थी। हुईं। शशि जी की निश्चित मान्यता थी- 'मृत्यु जीवन पर्यन्त आप पुस्तकालय एवं इंटर कॉलेज के
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अध्यक्ष रहे। आप हिन्दी उच्चत्तर माध्यमिक कन्या विद्यालय के ऑनरेरी मैनेजर एवं डिस्ट्रिक्ट जेल रामपुर के विजीटर भी रहे।
समाज को पैनी दृष्टि से देखने वाले शशि जी को भारतीय समाज ने बहुत अधिक सम्मानित किया । शशि जी के 50 से भी अधिक अभिनंदन हुये। 1964 में जैन समाज, रामपुर द्वारा 'आशुकवि' की उपाधि तथा 1968 में राजकीय महाविद्यालय, रामपुर (उ0प्र0) द्वारा अभिनंदन पत्र आपको भेंट किया गया था। उ() प्र() के राज्यपाल श्री मा(0) चेन्नारेड्डी ने 1975 में आपको सम्मानित किया था। लखनऊ में 'काव्यश्री' (1985) की उपाधि से भी आप अलंकृत हुए थे। कविवर शशि जी रामपुर और बाहर की बीसियों संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं। उनकी सेवाओं को समाज कभी भुला नहीं सकेगा।
शशि जी आशु कवि के रूप में भारत भर में विख्यात रहे हैं, साहित्यिक उपलब्धियों से संपन्न होते हुए भी वे विज्ञापन और प्रशंसा से सदैव दूर रहे फिर भी कस्तूरी की सुगंध की भांति उनकी ख्याति सर्वत्र फैल गयी।
डॉ0 नंद किशोर त्रिपाठी ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से 'शशि व्यक्तित्व और कृतित्व' विषय पर 1988 में शोध कार्य किया। आनन्द साहित्य संस्थान रामपुर ने 'शशि और उनका काव्य' नाम से शशि जी के समग्र साहित्यिक जीवन पर एक पुस्तक प्रकाशित की है।
शशि जी कुशल मौन साधक थे उन्हीं के शब्दों में 'शायद उनकी मूक साधना का कोई कभी मूल्यांकन करे'
यह कोरा कागद है । मैं तो भूलों का चिरदास हूं अपने उत्तरदायित्वों से अब लेता अवकाश हूं
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
शायद कोई आंके क्षमता मेरी मूक उड़ान की ।
अत्याचार कलम मत सहना
तुझे कसम ईमान की ।
परम यशस्वी शशि जी का एक स्कूटर दुर्घटना में 9 सितम्बर 1988 को आल इंडिया मेडिकल इन्स्टीट्यूट, दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन से जैन समाज और हिन्दी साहित्याकाश ने एक नक्षत्र खो दिया।
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(आ) (1) वि० अ०), पृष्ठ 211, (2) जैन सन्देश 6/10/1988, (3) आधुनिक जैन कवि, (4) जै) स) रा0 अ
श्री कल्याणदास जैन
सतना (म0प्र0) के श्री कल्याणदास जैन का जन्म 1904 में हुआ, आपके पिता श्री लखपतराय जैन थे। श्री जैन ने माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त की। स्वतंत्रता आंदोलन के आप वीर सिपाही रहे। 1930 के आंदोलन में आप सक्रिय रहे। देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत श्री जैन ने 2 वर्ष का कारावास व 100 रु0 के अर्थदण्ड की सजा भोगी ।
आ( ) ( 1 ) मु0) प्र) स्व() सै(0), भाग-5, पृष्ठ 257
श्री कल्याणमल जैन
दौसा ( राजस्थान) के श्री कल्याणमल जैन का जन्म दिनांक 20 जून 1915 को टोंक में हुआ था । आपके पिता श्री सुन्दरलाल जैन साधारण परिवार से संबंधित थे। जब आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में ग्रहण की तब सारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और आपकी उम्र मात्र 16 वर्ष की थी उस समय श्री जैन देशभक्ति से ओतप्रोत होकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के पम्पलेट दुकानों पर वितरित करते थे ।
भारत माता के इस सपूत ने 18 मार्च 1939 में श्री लालचन्द जी के नेतृत्व में चांदपोल बाजार में
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प्रथम खण्ड
127 तिरंगा झण्डा निकाला तो सरकार ने इन्हें गिरफ्तार बताया कि श्री गंधू गौड़ तथा गिरधारी लाल सोनी करके जेल में लूंस दिया तथा चाकसू के पास गढ़ की प्रेरणा से 1929-30 में आप स्वाधीनता आन्दोलन में बन्द कर दिया। यहां पर पूर्व में ही श्री रामकरण में कूद पड़े। 1942 में डिण्डोरी से गोरखपुर रोड़ पर जोशी एवं अन्य तीन सौ व्यक्ति बन्द थे। करीब 5वें मील पर धावाधार एवं कुकुरामठ के आसपास + माह की जेल भुगतकर जब बाहर आए तो श्री आप गिरफ्तार कर लिये गये। कुकुरामठ में आपने जमनालाल जी बजाज के नेतृत्व में संगठित होकर भाषणबाजी और कांग्रेस का प्रचार किया था। तिरंगा स्वतंत्रता संग्राम के पुनीत कार्य में लग गये। झंडा आपके हाथ में था। और लोग भी गिरफ्तार हुए
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आप जलदाय विभाग थे, जिनमें एक कोल आदिवासी भी था। आप तीन में हैल्पर की नौकरी करके जीवन यापन करते रहे दिन डिण्डोरी जेल में रहे। आपने तितराही, पाटन, तथा जब सरकार ने आपको स्वतंत्रता सेनानी घोषित वल्लापुर आदि ग्रामों में स्वतंत्रता का प्रचार किया किया तब उससे प्राप्त पेंशन से अपने परिवार का था। लगान न देने का प्रचार करने के कारण भी जीवन यापन करते रहे। दिनांक 20 फरवरी 1994 आप अनेक बार गिरफ्तार होते-होते बचे थे। को स्वतंत्रता संग्राम का यह सेनानी एवं दौसा का
आO-(1) स्व) प0, (2) अनेक सम्मान पत्र। गर्व हमेशा के लिए हम सबको छोड़कर चला गया।
श्री कस्तूरचंद जैन आ) (1) जैन गजट, 17/3/1994, (2) श्री संतोष
श्री कस्तूरचंद जैन के पिता का नाम श्री सिंघई, दमाह द्वारा प्रेपित परिचय
पूर्णचंद जैन था। आपका जन्म सागर (म0प्र0) में श्री कस्तूरचंद जैन
हुआ। 1932 के नमक सत्याग्रह में आप अहमदाबाद आजादी के दीवानों को कैसे-कैसे कष्ट झेलने में गिरफ्तार हुए थे। सागर के स्वतंत्रता सेनानियों की पड़े और आज भी झेल रहे हैं, इसके प्रत्यक्ष सूची में आपका नाम दर्ज है। आपके अनुज श्री उदाहरण हैं श्री कस्तूरचंद
पदम कुमार जैन सराफ (सागर) सक्रिय सेनानी रहे जैन, जो पूज्य आचार्य श्री
हैं उनका विस्तृत परिचय इसी ग्रन्थ में है।
आ) (1) आ) दी), पृ0 11, (2) श्री पदम कुमार जैन विद्यासागर जी महाराज के
द्वारा प्रपित परिचय डिण्डोरी (मण्डला) प्रवास के समय, कई किलोमीटर
श्री कामताप्रसाद शास्त्री चार पहिये के ढेले पर दमोह (म0प्र0) के श्री कामताप्रसाद शास्त्री,
बैठकर उनके दर्शनार्थ आये। पुत्र-श्री मूलचंद जैन का जन्म 1-1-1915 ई0 को श्री जैन एक छोटे से ग्राम- गोरखपुर (डिण्डोरी) में
मा हुआ। मिडिल पास कर अकेले रहते हैं। अधिक उम्र होने से शरीर शिथिल
आपने कटनी के प्रसिद्ध जैन पड़ गया है, आखों से दिखाई नहीं देता। एक दुर्घटना
विद्यालय में अध्ययन किया, के कारण चलने-फिरने में असमर्थ हैं फिर भी
अनन्तर बनारस के जैन शासन से कोई सहायता उन्हें नहीं मिल रही है।
क्रान्तिकारियों के गढ़ स्याद्वाद श्री जैन का जन्म 1912 के चैत्र महीने में
महाविद्यालय में अध्ययनार्थ हुआ, पिता का नाम श्री कन्हैया लाल जैन था। आपने
चले गये और वहाँ से शास्त्री
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन पास कर लौटे। 1940 में आपने श्री गणेश वर्णी 4 माह का कारावास भोगा था। 1972 में आपका संस्कृत महाविद्यालय मोराजी, सागर में नौकरी कर निधन हो गया। ली। किन्तु 42 के आन्दोलन में भाग लेने हेतु आपने आO- (1) आO) दी0, पृष्ठ-33, (2) म0 प्र0 स्व) सै0, नौकरी भी छोड़ दी।
भाग-2, पृष्ठ 12 शास्त्री जी प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय विचारधारा के
सिंघर्ड कालराम जैन रहे हैं। 1926 में सम्भवतः पूरे विश्व में दमोह ऐसा सिंघई कालूराम जैन, पुत्र-श्री दरबारीलाल जैन शहर था, जहाँ शराब बंदी हुई थी। शास्त्री जी ने इस का जन्म 1897 में पाटन, जिला-जबलपुर (म0 प्र0) आन्दोलन में पिकेटिंग कर शराब की दुकानें बन्द में हआ। पाटन में आपने 1930 से 1934 तक सविनय करवाई थीं। नमक सत्याग्रह व जंगल सत्याग्रह में अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रमों एवं राष्ट्रीय महासभा आपने कटनी में रहते हुए भाग लिया, पुलिस द्वारा के प्रसार में योग दिया। आपके शांत एवं अहिंसावादी पकड़े गये पर छोड़ दिये गये। 32-33 में आप सिद्धान्त के सम्बन्ध में पं0 कामताप्रसाद बबेले ने कहा स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस चले गये, वहीं आपने था कि 'जब विलायती वस्त्रों की दकान पर स्वयंसेवक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री मन्मथनाथ गुप्त के सहयोग धरना दे रहे थे और कतिपय देशघातक उनके शरीरों से क्रान्तिकारी पार्टी में पिस्तौल चलाना, बम फेकना, पर चरण रखते हुए आगे बढे. तब देशभक्तों के क्रोध तैरना, पेड़ पर चढ़ना आदि कार्यों का अभ्यास का पार नहीं था, वे हिंसात्मक प्रतिशोध पर उतर आये किया। आप कुछ समय दिल्ली भी रहे, वहां आपने थे। किन्त सिंघई कालूराम जी के सामयिक हस्तक्षेप पर्चे बांटने का काम किया। देश के बड़े नेताओं के तथा उनके टाय गांधी जी की शांत नीति का स्मरण दर्शन आपने यहीं किये।
दिलाने पर सभी शांत हुए।' पिण्डरई (जिला-मण्डला) में जंगल कटवाने
1935 में आप कटनी चले गये और वहां की और जैसीनगर में कोतवाली जलाने के प्रयास में राष्टीय गतिविधियों में सतत भाग लेते रहे। 1940 में 4-9-42 को आप गिरफ्तार कर सागर जेल भेज दिये व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया। इसके अन्तर्गत आपने गये, जहाँ नौ माह की सजा दी गई। अन्य साथियों के
13 जनवरी 1941 को सत्याग्रह-यात्रा पर दिल्ली के साथ आपने सागर जेल के फासी घर को तोड़ दिया, लिये प्रस्थान किया। मार्ग-स्थित ग्रामों में युद्ध-विरोध दीवारों पर तिरंगे बना दिये, बगीचा उजाड़ दिया, अत: सन्देश एवं स्वतंत्रता संग्राम की हंकार गंजाते हएआपको जबलपुर जेल स्थानान्तरित कर दिया गया। स्लीमनाबाद, सिहोरा, मझौली. संग्रामपर, दमोह, बांसा जेल से आने के बाद भी आप सभी आन्दोलनों में होते द्वारा
प सभा आन्दालना में होते हुए 10 फरवरी 1941 को रौंड ग्राम पहुंचे। वहीं भाग लेते रहे व कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे। सम्प्रति आप पलिस द्वारा गिरफ्तार कर सागर ले जाये गये, शास्त्री जी धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन में संलग्न है। जहां आपको छह मास का कारावास एवं 100 रुपय आ)-(1) म) प्रा) स्वा) सै0, भाग-2,पृष्ठ-80, (2) श्री.
का अर्थ दण्ड हुआ। आपने नागपुर कारागार में उक्त संताप सिंघई, दमाह द्वारा प्रषित परिचय, (3) स्व0 प0
छह मास का कारावास काटा। द्वितीय बार आप 1942 श्री कालूराम जैन
की जनक्रांति के दौरान गिरफ्तार किये गये और केन्द्रीय रहली. जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री कारागार में दि0 12-8-1942 से जनवरी 1944 तक कालूराम जैन, पुत्र-श्री टुण्ड ने 1932 के आन्दोलन में बन्दी रहे। 'जैन सन्देश' लिखता है कि- 'सिंघई जी
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प्रथम खण्ड
के गिरफ्तार होने पर कटनी शहर में नौ दिन की गजब की हड़ताल हुई थी । ' 1945 में आप पाटन आ गये और तहसील कांग्रेस के अध्यक्ष हुये। आपकी मृत्यु 51 वर्ष की आयु में एक आकस्मिक रोग से दि0 29 फरवरी 1948 को हो गयी।
आ)- (1) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ 116, (2) स्वा() स प), पृ0-115, (3) जै० स० रा० अ० ।
बाबू किशनलाल जैन
प्रसिद्ध जैन क्रान्तिकारी श्री बाबू किशनलाल जैन, पुत्र- श्री रघुनाथ, हार्डी बम काण्ड अभियुक्त रहे हैं। जिला-आगरा (उ0 प्र0) निवासी श्री जैन 1930 के आन्दोलन में जेल गये। 1940 के आन्दोलन में नजरबंद रहे। 1942 के आन्दोलन में आपने 2 वर्ष की जेल काटी। आपका नाम क्रान्तिकारियों की सूची में था, अतः 1942 के आन्दोलन में 9 अगस्त से पहले ही आपको गिरफ्तार कर लिया गया था। 1943 में क्रान्तिकारी होने के कारण फतेहगढ़ जेल भेजा
गया था।
(आ) - (1) प० इ), पृष्ठ 141, (2) गो० अ० ग्र0, पृष्ठ 219-220, (3) जै० स० रा० अ), (4) उ0 प्र0 जै) ध), पृष्ठ 90 (5) श्री महावीर प्रसाद जैन, अलवर द्वारा प्रेषित परिचय।
श्री किशनलाल शाह
1952 से 62 तक कांग्रेस और 1967 से 72 तक स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर राजस्थान विधान सभा के सदस्य तथा नागौर जिला कांग्रेस कमेटी के वर्षों तक अध्यक्ष/मंत्री रहे ग्राम-नावाँ ( कुचामन रोड़), जिला - नागौर (राजस्थान) के श्री किशनलाल शाह ने कानपुर में अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लिया था और सजायें भोगी थीं। एल0 एल0 बी) करने के बाद आप मारवाड़ लोकपरिषद् के सक्रिय सदस्य हो गये और बाद में महामंत्री भी रहे। सामन्त शाही एवं जागीरदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए आपने किसान आन्दोलनों का संगठन किया
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और जिले में जागीरदारों का मुकाबला किया। 14 मार्च 1947 को डाबड़ा हत्याकाण्ड में सामन्ती तत्त्वों द्वारा आप बुरी तरह घायल कर दिये गये । विधि की विडम्बना देखिये कि शासन ने आपको ही अभियुक्त बनाकर, खून और कत्ल के अभियोग में गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया था।
आ) (1) रा) स्व() से०, पृ0 712
सिंघई कुन्जीलाल जैन
शाहगढ़, जिला - सागर (म0प्र0) के श्री सिंघई कुन्जी लाल जैन 1918 से कांग्रेस के कार्यों में सदैव भाग लेते रहे और पांच साल तक कांग्रेस कमेटी के सभापति रहे । आप 1930 में एक साल के लिये जेल यात्री रहे व 1932 में भी जेल गये, जिसमें छह मास का कारावास व 200 रुपये जुर्माना हुआ था।
आ)- (1) जै) स० रा० अ०, पृष्ठ 53
श्री कुन्दनलाल जैन
दमोह (म0प्र0) के श्री कुन्दनलाल जैन, पुत्रश्री सिंघई छोटेलाल 1930 से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने जबलपुर में भाग लिया, परिणामत: जबलपुर जिले से निष्कासित किये गये। आपने 1 वर्ष 7 माह का कारावास भोगा। 65 वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हो गया।
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै) भाग-2, पृष्ठ-80
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श्री कुन्दनलाल जैन नायक
देवरी, जिला - सागर (म0प्र0)) निवासी श्री कुन्दन लाल जैन, पुत्र - श्री मिट्ठूलाल जैन का जन्म 1914 में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने 13 माह का कारावास सागर जेल में भोगा । आप सच्चे गांधीवादी और खद्दरधारी थे, विनोबाजी के भूदान आंदोलन में आपने 2 एकड़ जमीन दान में दी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन थी। आप जीवनपर्यन्त सर्वोदय से जुड़े रहे। 1969
श्री कुसुमकान्त जैन में आपका निधन हो गया।
भारतीय संविधान निर्मातृ परिषद्, भारतीय परिषद् ____ आ0- (1) आ0 दी0, पृष्ठ-34, (2) म) प्रा) स्व0 सै0, एवं मध्यभारत विधान सभा में सदस्य रहे श्री भाग-2, पृष्ठ 14
कुसुमकान्त जैन का जन्म श्री कुन्दनलाल मलैया
23 जुलाई 1921 ई0 को कर्मठ कार्यकर्ता श्री मलैया जी उन सपूतों में
थांदला, जिला- झाबुआ अग्रणी थे, जिन्होंने देश को आजाद कराने में अपना
(म0प्र0) में हुआ। आपके तन-मन-धन होम कर दिया। आपका जन्म स्थान
पिता का नाम श्री पूरनचंद साढूमल (जिला-ललितपुर) उ0प्र0 है। आपके पिता
जैन था। का नाम श्री मोहन लाल मलैया था। 1941 में 6 माह
श्री जैन की प्रारम्भिक शिक्षा की सजा और 100/- का अर्थदंड आपने भोगा। 1942
धर्मदास जैन विद्यालय में हुई। यहां प्रधान अध्यापक में भी एक वर्ष की सजा और 100/- का अर्थदंड
श्री बालेश्वर दयाल थे, जो परम राष्ट्रभक्त थे, और
जिन्होंने आदिवासियों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान पाया, इस प्रकार आप दो बार कारावास में रहे। गांधीवादी विचारधारा के प्रतीक इस स्वतंत्रता संग्राम
दिया है, उन्होंने बालक कुसुमकान्त के कोमल मन
में राष्ट-प्रेम का बीजारोपण किया जो कालान्तर में एक सेनानी ने इस प्रकार शारीरिक यातनाओं के साथ-साथ
लहलहाते पौधे के रूप में परिवर्तित हो गया। यही आर्थिक क्षति भी स्वीकार की थी।
कारण था कि जब 1936 में ब्रिटिश सम्राट् की रजत आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0, (2) र0 नी0, पृ0-85
जयन्ती स्कूल में धूमधाम से मनाने का आदेश लेकर श्री कन्दनलाल समैया (जैन) अंग्रेज पोलिटिकल ऐजेन्ट थान्दला पहुंचा तो श्री जैन
जबलपुर नगर कांग्रेस कमेटी के मंत्री व ने साहस से आगे बढ़कर उसका प्रबल विरोध किया कोषाध्यक्ष रहे श्री कुन्दनलाल समैया (जैन), पुत्र-श्री व रजत जयन्ती का बहिष्कार करने हेतु विद्यार्थियों खबचन्द जैन का जन्म 1919 में बीना (सागर) म0 को संगठित किया, परिणामस्वरूप आपको थांदला प्र0 में हुआ। सत्याग्रह आन्दोलनों को गतिमान् बनाने छोड़ना पड़ा। कोप का शिकार आपका परिवार ही नहीं के लिए छोटे बालकों की वानर सेना के साथ आप बना बल्कि विद्यालय को भी ब्रिटिश सीमा के बाहर 1930 से ही सक्रिय हो गये थे। 1932 में सत्याग्रह जाना पड़ा। आपका अध्ययन अस्त-व्यस्त हो गया। इन्हीं करते हुए गिरफ्तार किये गये व 3 माह जेल में रहे। मुसीबतों के बीच श्री जैन ने 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में गाडरवारा में प्रयाग' की विशारद परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। गिरफ्तार किये गये तथा लगभग डेढ वर्ष तक जेल देशप्रेम की लौ दिल में दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। में रहे। नेशनल स्काउट्स के सदस्य के रूप में आपने कुछ दिन विदर्भ केसरी श्री ब्रिजलाल वियाणी उसके राष्टीय कार्यों में सहयोगी रहे। 1939 में हई के राष्ट्रीय साप्ताहिक 'नव राजस्थान' में भी कार्य किया त्रिपुरी कांग्रेस में निष्ठापूर्वक स्वयंसेवक का कार्य तथा फौजपुर (महाराष्ट्र) में आयोजित अ0 भा0 राष्ट्रीय आपने किया था।
कांग्रेस के खुले अधिवेशन में भाग लिया। खादी पहनने ___ आ()- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-35, (2) का व्रत तो पूर्व में ही ले चुके थे, जिसे आज तक स्व) स) ज0, पृ0-89
निभा रहे हैं।
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प्रथम खण्ड
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आप जब 'साहित्यरत्न' का अध्ययन करने तब वे म0 भा० देशी राज्य लोक परिषद के इन्दौर पहुंचे तो वहां मजदूर संघ के माध्यम से ट्रेड अध्यक्ष थे। बापू ने मुझे व्यक्तिगत सत्याग्रह की यूनियन का कार्य प्रारम्भ किया। प्रजामण्डल नेताओं अनुमति तो नहीं दी लेकिन पंचमहाल में से भी सम्पर्क हुआ। होल्कर राज्य में उन दिनों सत्याग्रहियों की सभा की आवश्यक तैयारियां करने सभाबंदी का आदेश जारी था। इसके विरोध में श्री के लिए वालिंटियर घोषित कर दिया। सभा से हजारीलाल जड़िया ने आमरण अनशन प्रारम्भ किया, पूर्व मैं स्थल पर झाडू लगाता, दरी बिछवाता, उनके आन्दोलन को गति देने हेतु श्री जैन ने शहर मंच एवं माइक व्यवस्था देखता। लोग मुझे सीमा के बाहर दशहरा मैदान पर आयोजित सभाओं में देखने आते कि बाप ने किसे वालिटियर नियक्तकिया। हिस्सेदारी की, फलतः आपको राज्य सीमा से निर्वासित इंदौर, झाबुआ, देवास, रतलाम आदि रियासतों कर दिया गया। आप इन्दौर से उज्जैन तथा वहां से में मेरा प्रवेश भी प्रतिबंधित था, इसलिए मैं ट्रेन से इन अजमेर पहुंचे। वहाँ श्री जयनारायण व्यास, शहरों के स्टेशन पर पहुंचता। स्थानीय साथी आकर माणिक्यलाल वर्मा आदि क्रान्तिकारी नेताओं के मिल लेते, प्रचार सामग्री उनके सुपुर्द कर अगले सम्पर्क में आए। उनके निर्देशानुसार राजपूताना तथा स्टेशन के लिए रवाना हो जाता। बीमा एजेंट रहते हुए पड़ोसी मालवा के छोटे राज्यों में आपने कांग्रेस व मैं कोट-पैंट पहने रहता, इसलिए किसी को मुझ पर प्रजामण्डलों का प्रचार-कार्य किया। शौकत उस्मानी शक भी नहीं होता। जिसे अंग्रेज हुकूमत आपत्तिजनक तथा प्रसिद्ध क्रान्तिकारी एम0 एन0 राय के सम्पर्क सामग्री मानती थी, उस सारे प्रचार साहित्य का बंडल में भी आप आए।
भी मैं ट्रेन के दूसरे डिब्बे में छोड़ देता था, जिससे 1939 40 में आप गृहनगर उज्जैन लौट आए यदि मुझे पकड़ भी लिया जाए तो पुलिस मेरे पास से और मजदूर संगठन की गतिविधियां प्रारम्भ की। कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं कर पाए। पुलिस तलाशी में श्री जैन के घर से कम्युनिस्ट सितंबर 1940 से जनवरी 41 तक इसी तरह कार्य साहित्य बरामद हुआ, अतः शान्ति भंग तथा युद्ध किया। प्रयासों में बाधा डालने के अपराध में उन्हें छ: माह गुजराती समझ और बोल लेता था, इसलिए की सजा मिली और जेल में बंद कर दिया गया। जेल 1942 में मुंबई से प्रकाशित 'वंदेमातरम्' (गुजराती) से छूटने पर आप दोहद पहुंचे और इसी स्थान को समाचार-पत्र में, 250 रु0 महीने की नौकरी मिल गई। अपना कार्यक्षेत्र चुना।
9 अगस्त 42 को बापू ने भारत छोड़ो, करो-मरो का __ दैनिक भास्कर, इन्दौर, 15 अगस्त 1997 को आह्वान किया। गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद सभी दिये एक साक्षात्कार में आपने कहा है- 'आजादी सत्याग्रही भूमिगत हो गए। मुझे बम ले जाने, आगजनी
आंदोलन में मेरी भी दिली इच्छा थी कि बापू मुझे करने के निर्देश मिले। मैंने स्पष्ट इंकार कर दिया कि व्यक्तिगत सत्याग्रह की अनुमति दें। इंदौर, झाबुआ जैनी हूं, ऐसा काम नहीं करूंगा। अन्ना सा सहस्त्रबुद्धे, आदि देशी रियासत होने के कारण मैं पंचमहाल बै0 पुरुषोत्तम त्रिकमदास, बै0 गूजर, सेठ शूरजी (गुजरात) में सक्रिय था। वहां के कांग्रेस जिला बल्लभदास ये चारों प्रचार सामग्री तैयार करते, उसे अध्यक्ष माणकलाल गांधी ने स्पष्ट इंकार कर दिया विभिन्न क्षेत्रों में मैं उक्त तरीके से पहुंचाता रहा। कि तुम सत्याग्रह नहीं कर सकते। मैं वर्धा में 21 वर्ष की उम्र थी, तब मैंने तय किया कि अब आचार्य नरेन्द्र देव की मदद से गांधीजी से मिला। गिरफ्तारी दूंगा। गोधरा कलेक्टर मुझे पत्रकार होने के
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132
स्वतंत्रता संग्राम में जैन कारण पहचानते थे। मुझे मेरी मर्जी से साबरमती के प्रति जाग्रति पैदा हो गई। जन आक्रोश के समक्ष जेल भेजकर 'ए' श्रेणी में रखा। जिन 18 'ए' श्रेणी झाबुआ नरेश ने घुटने टेक दिए। लोकप्रिय मंत्रिमंडल कैदियों के साथ रहा, उनमें पुरुषोत्तम गणेश मावलंकर की घोषणा करने को उन्हें बाध्य होना पड़ा। भी थे। तब अच्युत पटवर्धन, डॉ केसकर, मोहनलाल 18-1-1948 को मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की, कुसुमकान्त गौतम, अरुणा आसफ अली पर लाखों के इनाम थे। जैन भी उनमें एक थे। श्री जैन उस समय भारत में इन सबसे मेरा परिचय हुआ। डॉ केसकर ने इच्छा सबसे कम उम्र के केबिनेट मंत्री थे। जाहिर की कि पं नेहरू से मुलाकात की व्यवस्था मई 1948 में मध्य भारत राज्य का गठन हुआ, कराइए। उन्होंने वेशभूषा बदली, अब वे प्रो0 मेहता हो जिसमें इन्दौर, ग्वालियर के अतिरिक्त मालवा के गए। मुंबई से उन्हें लेकर मैं उदयपुर पहुंचा, छोटे-बड़े 20 रजवाड़ों का विलीनीकरण किया डी0एफ0ओ0 मुरड़िया के बंगले में प्रो० मेहता के गया। लीलाधर जोशी मध्य भारत के प्रथम रूप में ठहराया। डॉ) केसकर की लिखी चिट्ठी प्रधानमंत्री चुने गए। श्री जोशी ने कुसुमकांत जैन को लेकर मैं उदयपुर में सभा मंच पर पहुंचा, जैसे-तैसे अपने मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री नियुक्त किया। माहनलाल सुखाड़िया ने नेहरू तक डॉ0 केसकर की श्री कालूराम जी विरुल द्वारा संविधान सभा से चिट्ठी पहुंचाई, वे तुरंत नीचे आए। योजना मुताबिक इस्तीफा दिये जाने पर छोटी रियासतें जैसे झाबुआ, में लक्ष्मीविलास गेस्ट हाउस पर किराए की कार बडवानी, धार, रतलाम आदि ग्रुप के प्रतिनिधि-रूप लेकर पहुंचा। नेहरू आए, बैठे। मुरड़िया दंग रह गए में श्री कुसुमकान्त जैन का निर्वाचन भारतीय संविधान अपने यहाँ नेहरू को देखकर। नेहरू-केसकर मुलाकात निर्मातृ परिषद् के लिए हुआ। उन्होंने भारतीय संविध चालीस मिनट चली, मैं फिर उसी तरह नेहरू को न पर हस्ताक्षर किये तथा 26 जनवरी 1950 तक इस छोड़ आया।'
महान् संविधान निर्मातृ संस्था के सदस्य रहकर पुनः अगस्त क्रान्ति के दौरान श्री जैन भूमिगत हो अपने प्रदेश में लौट आये। श्री जैन संविधान निर्मातृ गए और भेष बदलकर प्रचार सामग्री पहुंचाते रहे, बाद परिषद् के सदस्य के अलावा भारतीय संसद में गिरफ्तार होना उचित समझा। अतः जैसे ही आप (प्राविजनल) के भी सदस्य रहे और उनकी मध्य मार्च 43 में दोहद रेलवे स्टेशन पर प्रगट हुए, भारत भारत विधानसभा की सदस्यता भी यथावत् रही। रक्षा नियम के अन्तर्गत नजरबंद कर साबरमती जेल यह समय श्री जैन के चरम राजनैतिक उत्कर्ष भेज दिया गया, वहां दादा साहब मावलंकर आदि का समय था। बाबू राजेन्द्र प्रसाद, पंडित नेहरू, नेताओं से उनका संपर्क हुआ। तीन माह के बाद जैसे सरदार पटेल आदि महान् नेताओं के साथ भारतीय ही जेल से रिहाई हुई, बम्बई शासन द्वारा संविधान पर अपने हस्ताक्षर कर श्री जैन इतिहास में उनको पंचमहाल जिले में प्रवेश न करने की आज्ञा अमर हो गये। मिनिस्टर, सांसद व विधायक तो हजारों थमा दी गई।
हुए और प्रजातंत्र में होते रहेंगे लेकिन देश का प्रथम 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ तो संविधान बनाने का गौरव जिन व्यक्तियों को प्राप्त एक माह बाद ही श्री जैन झाबुआ लौट आए। यहां हुआ, उन महान् संविधान निर्माताओं की विशिष्ट आकर उन्होंने उत्तरदायी शासन की प्राप्ति का आन्दोलन पंक्ति में स्थापित होने का महान् गौरव थांदला के इस छेड़ दिया और अल्पकाल में ही जनता एवं आदिवासियों युवक स्वतंत्रता सेनानी को सिर्फ 28 वर्ष की अल्प में एसी आग फंकी कि उनके मन में अपने अधिकारों आयु में मिला, यह श्री जैन के जीवन की महान्
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प्रथम खण्ड
133 ऐतिहासिक घटना है, जिसे युग-युग तक वर्तमान व किया था। स्मारिका का प्रकाशन 'श्री कुसुमकान्त आने वाली पीढ़ियां याद करती रहेंगी और प्रेरणा जैन अभिनन्दन समिति', दिल्ली ने किया है। 1992 लेंगी।
में आपके नाम पर एक लोकोपकारी ट्रस्ट की 1948 से 51 तक आप विधानसभा के सदस्य स्थापना की गई है। 1992 में ही देवी अहिल्ला रहे। राज्य की यातायात नीति बनाने वाली महत्त्वपूर्ण विश्वविद्यालय, इन्दौर की एम०फिल() उपाधि हेतु शासकीय समिति के सदस्य, पब्लिक एकाउण्ट्स कु0 ऋचा गर्ग ने एक लघुशोध प्रबन्ध 'स्वतत्रता कमेटी के वर्षों तक चेयरमैन, रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी सेनानी श्री कुसुमकांत जैन' श्री जे0सी0 उपाध्याय के सदस्य एवं पश्चिमी रेलवे सलाहकार समिति के के निर्देशन में प्रस्तुत कर उपाधि प्राप्त की है। सदस्य के नाते अपनी बहुमुखी सेवाएं प्रदेश को देते आजादी की स्वर्ण जयन्ती पर आयोजित अनेक रहे। आप प्रदेश कांग्रेस समिति के भी सदस्य रहे। विशिष्ट समारोहों में आपको सम्मानित किया गया है। आप रतलाम जिले के आलोट क्षेत्र से 1952के आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ 14, (2) श्री आम चनाव में पन: भारी बहमत से विधायक चने कुसुमकांत जैन अभिनन्दन स्मारिका, (3) दैनिक भास्कर (भोपाल) गये थे।
24/3/89, (4) अनेक प्रमाणपत्र सम्मान पत्र आदि।, (5)
जनसत्ता (दिल्ली) 10.01/1997, (6) दैनिक भास्कर (इन्दौर) विधानसभा की ओर से श्री जैन स्पीकर के 15/8/1997 साथ संसदीय कार्य प्रणाली के अध्ययन हेतु लंदन भेजे गए जहां 7 सप्ताह तक ब्रिटिश संसद प्रणाली
श्री केवलचंद जैन का अध्ययन किया। इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड एवं अन्य
पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री यूरोपियन व पश्चिमी एशिया के देशों की यात्रायें
केवलचंद जैन, पुत्र-सेठ मुलायमचंद जैन का नाम आपने की। लंदन निवास के दौरान बी0बी0सी0 के
तत्कालीन रईसों में गिना जाता था, पर अपने काम की
परवाह न कर केवलचंद जी ने 1942 के भारत निमंत्रण पर श्री जैन ने एक ब्राडकास्ट कर अपने
छोड़ो आन्दोलन में खुलकर भाग लिया, गिरफ्तार अनुभव सुनाये थे।
हुए और मण्डला जेल में 6 माह का कारावास नवम्बर 1956 में विशाल मध्य प्रदेश बना। श्री जैन मध्य प्रदेश विधान सभा के सदस्य हुए और की भी सजा मिली थी। रईस होते हुए भी आपने
आपको भोगना पड़ा। आपको 14 दिन की गुनहखाने अप्रैल 1957 तक विधानसभा में बने रहे। 1957 में
म अपने साथियों के साथ बी0 और सी0 क्लास जेला अखिल भारतीय कांग्रेस का खुला अधिवेशन इदौर में रहना ही पसन्द किया था। में हआ. जिसके आयोजन में । सहयोग श्री जैन
सहयाग श्रा जन
आ-(1) म0 प्र) स्व० सै0, भाग-।, पृष्ठ 204, (21 का था।
सा) रा0 अ01 ____ आपके सम्मान में अनेक समारोह हुए, अनेक धार्मिक संस्थाओं से भी आप सम्बद्ध रहे हैं।
श्री केवलचंद जैन 11 मार्च 1989 को राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन
गौरझामर, जिला सागर (म0प्र)। के श्री केवा राष्ट्रपति महामहिम श्री आर0वेंकटरमन ने पुष्प-माला चंद जैन, पुत्र-श्री हीरालाल का जन्म 19!| E
और शाल ओढाकर आपको सम्मानित किया। इस हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दालन में आप अवसर पर आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक लगभग 8 माह का कारावास भोगा।
आ)-(1) म) प्र) स्व) ), भाग 2 पृष्ठ 14,12 सचित्र स्मारिका का विमोचन भी राष्ट्रपति जी ने दी पाठ
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134
स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्रीमती केशरबाई
में सक्रिय हो गये थे। 20 सितम्बर 1930 को सरसावा श्रीमती केशरबाई का जन्म अक्टूबर 1915 में में कांग्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया। उसको हुआ था। आपके पति श्री मोतीलाल जैन ललितपर सफल बनाने में श्री झुम्मनलाल, दीपचंद, जम्बूप्रसाद (उ0प्र0) निवासी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के महान जैन एवं आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस कार्य में जहां किशोरों-नौजवानों ने अपना योगदान किया सम्मेलन की सारी तैयारी हो गई तब 19-9-1930 वहां ललितपर की यह नारी-नारी जाति के लिए गौरव का सरकार ने दफा 144 लागू कर सम्मलन न किय बनीं। 1936 में गांधी जी की प्रेरणा से वे रणक्षेत्र में जाने की घोषणा कर दी, तो कान्फ्रेन्स का स्थान जमना कूद पड़ी। ऐसी उम्र में जब नारी केवल भंगार एवं के पुल पर निर्धारित किया गया, परन्तु जत्थे और घर की चार दीवारी तक ही सीमित रहती थी, केशरबाई -
सत्याग्रही 20 सित) को सरसावा में एकत्रित हो गये। लोकलाज भारत-माता के चरणों में अर्पित कर,
सम्मेलन न होने देने के लिए जमीदारों और हरिजनों
की सहायता से सम्मेलन में भाग लेने वालों की पिटाई समाज के बन्धन तोड़ कर, नारी-जाति को जाग्रत करने
की गई। तभी एक पुलिस के सिपाही द्वारा वैद्य रामनाथ में जुट गईं। इस नवयौवना को अलख जगाते देख
को यह सूचना मिली कि वैद्य रामनाथ, प्रभुदयाल, नौजवानों को भी आजादी की लड़ाई लड़ने की प्रेरणा
झुम्मनलाल, जम्बूप्रसाद जैन एवं कैलाश चंद जैन को मिली थी।
सामने आने पर गोली मार देने के आदेश हो गये हैं। 1941 के व्यत्तिगत सत्याग्रह में केशरबाई एक
इनमें चार व्यक्ति फरार हो गये, आपको सूचना न मिल माह कारावास में रहीं। आपके पति भी कांग्रेस कार्यकर्ता
पाने के कारण पुलिस ने आपको पकड़कर बहुत मारा, थे। अन्याय के प्रति संघर्ष की आवाज बुलंद करने
आवाज बुलद करन आपको अनेक चोटें आईं। वाले इस दम्पति की कुछ वर्ष पूर्व चोरों ने हत्या कर
आ)- (1) स) स), पृष्ठ ।/176, (2) जैस) रा) अ0, दी थी।
___ (3) उ) प्रा) जै) 40, पृष्ठ-86 आ)- (1) र) नी0, पृ0-39, (2) जै) स) रा) अ, (3) डा) बाहुबली कुमार द्वारा प्रेषित विवरण।
श्री कोमलचंद जैन श्री केशरीमल जैन
श्री कोमलचंद जैन, पुत्र - श्री ईश्वरीप्रसाद जैन
___ का जन्म 1918 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 इच्छावर, जिला-सीहोर (म0प्र0) के श्री :
के भारत छोड़ो आंदोलन में आप गिरफ्तार कर लिये केशरीमल जैन, पुत्र-श्री भंवरलाल जैन का जन्म
न गये और 9 माह जेल में रखे गये।
र 1--7-1925 को हुआ। इण्टरमीडिएट, साहित्यरत्न आदि
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-37, उपाधिधारी श्री जैन ने भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन (2) स्व0 स0 जा), पृष्ठ-90 में भाग लिया एवं 13-1-49 से 6-2-49 तक कारावास की कठोर यातनायें भोगी।
श्री कोमलचंद जैन आ) (1) म प्र) स्वा) सै), भाग-5, पृष्ठ 39
श्री कोमलचंद जैन, पुत्र-श्री उदयचंद जैन का
जन्म 1930 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 श्री कैलाशचंद जैन
के भारत छोड़ो आन्दोलन में 12 वर्ष की आयु में सरसावा, जिला-सहारनपुर (उ0प्र0) वे आपने भाग लिया तथा 20 दिन जबलपुर जेल में काटे श्री कैलाशचंद जैन ने 1942 के आंदोलन में 6 माह आ)- (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-37, की सख्त कैद भोगी थी। 1930 से ही आप आन्दोलन (2) स्व0 स0 जा), पृष्ठ-9)
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श्री कोमलचंद जैन
श्री कोमलचंद जैन, पुत्र - श्री खुशालचंद जैन का जन्म 1925 में कटनी ( (म0प्र0) में हुआ। आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की। भारत छोड़ो आन्दोलन में 5 सितम्बर 1942 से 1 जून 1943 तक आप करावास में रहे। 1972 में आपका स्वर्गवास हो गया।
(आ) ( 1 ) म0प्र0 स्वा) सै0 भाग 1, पृ०-37
श्री कोमलचंद जैन
छतरपुर (म0प्र0)) के श्री कोमलचंद जैन, पुत्र- श्री खूबचंद जैन का जन्म 1916 में हुआ । आपने 'नमक सत्याग्रह' तथा 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भाग लिया। 1942 में 21 अगस्त को आप गिरफ्तार हुए एवं 18 जनवरी 1943 तक जबलपुर जेल में रखे गये।
(1) म० प्र०) स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 107
आ
सिंघई कोमलचंद जैन
सिंघई कोमलचंद जैन, पुत्र- श्री खूबचंद जैन का जन्म 14-12-1924 को वारासिवनी ( बालाघाट )
म0प्र0) हुआ। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने भाग लिया। आप सत्याग्रहियों के निवास, भोजन एवं भाषण आदि की व्यवस्था करते रहे।
स्वयं भी भाषण देने लगे। आपने वानर सेना में भी काम
किया। शराब की दुकानों पर पिकेटिंग आदि आपके प्रमुख काम थे। 1942 के आन्दोलन में आप 15 अगस्त को रात 12 बजे गिरफ्तार कर लिये गये। पहले डिटेंशन में रखे गये फिर बालाघाट जेल में तीन दिन रहे। बाद में सेन्ट्रल जेल नागपुर भेज दिये गये, जहाँ से 3 अक्टूबर 1943 को मुक्त हुए। आजादी के बाद आप
135
समाज सेवा के कार्यों से जुड़े रहे। आप मंडल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं।
आ() (1) म) प्र() स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-173, (2)
स्व० प०
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श्री कोमलचंद जैन
श्री कोमलचंद जैन, पुत्र श्री खेमचंद जैन का जन्म 5 जुलाई 1920 को करेली, जिला नरसिंहपुर (म0प्र0)
हुआ। आठवीं
संग्राम
तक शिक्षा ग्रहण कर मं आप स्वतंत्रता सक्रिय हो गये। 1942 में 1 वर्ष का कारावास आपने होशंगाबाद एवं जबलपुर सेन्ट्रल जेल में भोगा। 1973 गया।
छ
में आपका निधन हो
आ) ( 1 ) म) प्र0) स्व() सै(0) भाग-1, पृष्ठ 138, (2) स्वदेशी श्री खेमचंद द्वारा प्रेषित परिचय, (3) पुत्र विपिन जैन द्वारा प्रेषित परिचय |
श्री कोमलचंद जैन 'आजाद'
सिवनी (म() प्र0) नगर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे श्री कोमलचंद जैन 'आजाद', पुत्र- श्री हुकुमचंद जैन का जन्म | मई 1922 को ग्राम छपारा, जिला- सिवनी (मप्र)) में हुआ। आपने मिडिल तक शिक्षा ग्रहण की। 1941 के आन्दोलन में आप सक्रिय रहे. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप कान्हीवाड़ा ग्राम में गिरफ्तार हुए तथा सिवनी एवं जबलपुर की जेलों में 1 वर्ष का कारावास भोगा। जेल में पुलिस की लाठियों से आपके हाथ, पैर व सिर में चोटें आयीं। 17-7-91 को आपका निधन हो गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आ)- (I) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-228, __ आपके पूर्वजों में श्री चिन्तामणी शाह को (2) श्री नरेश दिवाकर द्वारा प्रेषित परिचय।
'गोरा' जागीर से मड़ावरा में रहने का आग्रह किया
गया था और वे आग्रह को स्वीकार कर मड़ावरा आ श्री खुमान जैन
गये थे। इसीलिये चिन्तामणी शाह का परिवार 'गोरावाला' दलपतपुर, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री के नाम से विख्यात हो गया। 1857 की गदर के बाद खुमान जैन, पुत्र-श्री आधार ने भारत छोड़ो आंदोलन यह परिवार बिट्रिश बर्बरता का शिकार हुआ। इस में माह का कारावास काटा। 1960 में आपका प्रकार चिन्तामणी शाह के वंशधर उमराव शाह निधन हो गया।
जागीरदार से साधारण साहूकार रह गये। इस वंश में आ (I) आ) दी), पृष्ठ-36, (2) म0 प्र0 स्व0 सै0, जन्में गोरावाला जी में क्रांति की भावना जन्म जात भाग , पृष्ठ-16
होना स्वाभाविक ही था। 1930 में गोरावाला जी प्रो० खुशालचंद गोरावाला
सत्याग्रही स्वयंसेवक बने। 1932 में विलिंगडन
शाही के दमन के समय वाराणसी के टाउनहाल में परतंत्र भारत में विवाह न करने की प्रतिज्ञा
एल0 ओवेन द्वारा किये गये गोलीकांड के समय करने वाले, क्षु० गणेश प्रसाद जी वर्णी के अत्यन्त
आपको मृत समझ लिया गया था, क्योंकि पास ही प्रिय पात्र, हिन्दी भाषा को
में खड़े श्री योगेश्वर प्रसाद को गोली लगी थी। 'भारती' नाम देने के
स्वतन्त्रता आंदोलन के समय आप महात्मा पक्षधर प्रो0 खुशाल-चंद
गांधी से अत्यधिक प्रभावित रहे। 1941-42 के आंदोलनों गो रावाला का जन्म
में आपकी जेलयात्रा के संबंध में 'जैन सन्देश, राष्ट्रीय 22 सितम्बर 1917 को
अंक (जनवरी 1947)' लिखता हैमड़ावरा, जिला-ललितपुर
..........28 वर्ष का यह युवक सन 41 के (उ0 प्र0) में हुआ। आपके
व्यक्तिगत सत्याग्रह में तूफान की तरह प्रसिद्धि में आया पिता श्री फुन्दीलाल गोरावाला जमींदार व जागीरदार ।
और आते ही प्रान्तीय नेताओं की अगली पंक्ति में जा हुआ करते थे। गोरावाला जी को सात वर्ष की
पहुँचा। आपने उस समय कांग्रेस के सत्याग्रह आंदोलन अवस्था में मातृ-वियोग सहन करना पड़ा। .
। के मुख्य संचालक और युक्त प्रांतीय कांग्रेस कमेटी साढूमल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्तकर 1928 में उन्होंने
। के सेक्रेटरी के रूप में जो प्रान्त की राष्ट्रीय सेवा की, वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय में प्रवेश लिया।
वह प्रान्त के इतिहास में एक मिसाल बन गई है। जिस यहीं उन्होंने पूज्य वर्णी जी, पं0 कैलाश चंद शास्त्री
वेग और योग्यता से आपने आदोलन का संगठन किया, और पं0 राजेन्द्र कुमार के सान्निध्य में 1937 में कांग्रेस को अवांछनीय तत्त्वों से मुक्त किया. उससे प्रान्त वी) एच) यू) सेबी0ए) और गवर्नमेन्ट संस्कृत का रिकार्ड शानदार हो गया। ऐसे अवसर पर देश को कालेज (अब सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय) जिनकी आवश्यकता होती है, सरकार को भी उनकी से साहित्याचार्य की उपाधियाँ एक साथ प्राप्त आवश्यकता होती है। पलिस की आंखों में बराबर की। वे जैन समाज के सम्भवतः ऐसे पहले धुल झोंकते हुए भी आप जुलाई सन् 41 में पकड़े व्यक्ति थे, जिन्होंने दो उपाधियाँ एक साथ गये। दफा 129 में दो माह नजरबंद रखकर दफा 39 प्राप्त की।
में चार माह की सजा हुई। उसके पश्चात् सन् 42
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प्रथम खण्ड
137 के आंदोलन में नेताओं की गिरफ्तारी के समय आप 'वरांग-चरित' की भूमिका में अनुवाद-गत' भी गिरफ्तार कर लिए गये और कई वर्ष तक आप शीर्षक से आपने लिखा है किसरकार के मेहमान रहे। वहाँ से निकलने के बाद भी 'सन् 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह का आप कांग्रेस में सक्रिय कार्य करते आ रहे हैं। .... संचालन करते हुए जब जुलाई के महीने में नजरबंद कुछ समय के लिए आप आरा के जैन कालेज में होने पर जेल में विराम मिला तो पुन: अपने जीवनव्यापी भी प्रोफेसर हो गये थे, लेकिन एक दिन वहाँ के व्यवसाय की स्मृति आयी। फलतः जेल के अधिकारियों प्रिंसिपल के द्वारा राष्ट्रीय नेताओं की शान में कछ से चर्चा करके मैंने पूज्य भाई पं0 कैलाशचन्द्र जी को अपशब्द कहने पर तत्काल कालेज छोड़ दिया। इस लिखा कि वे कतिपय पुस्तकों के साथ मेरे महानिबन्ध पर कालेज के सारे विद्यार्थियों ने हडताल कर दी। "प्राचीन भारत में भूस्वामित्व'' के लिए शोध की गयी तीन दिन तक अधिकारियों के अनवरत प्रयत्नों के सामग्री तथा वरांग-चरित के प्रारब्ध अनुवाद को भी बाबजद भी जब हडताल न खली तो आपने ही जमा करा देवें। क्योंकि जब भाई ने इसकी भूमिका विद्यार्थियों को समझाकर संस्था के हित की दृष्टि से के अनुवाद के विषय में मुझसे कुछ पूछा था तभी हड़ताल खुलवाई। आरा से आकर यू0पी0 के शिक्षामंत्री से मेरे मन में इसका भारती में रूपान्तर करने की भावना बा) सम्पूर्णानन्द जी आदि के कहने पर आप पुनः हा गया था तथा सन् 40 का गामया में सद्यः समागत विद्यापीठ में अध्यापन कार्य करने लगे हैं।'
संघ के प्रधान कार्यालय चौरासी, मथुरा में इसका
मंगलाचरण भी किया था किन्तु इसके बाद ही राष्ट्रपिता महापुरुषों का जेल जाना भी लोककल्याण के
गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की चर्चा जोर से प्रारम्भ लिए होता है। जेल के दिनों में आपने 'वरांग-चरित'
कर दी थी और वर्षा समाप्त होते-होते ही वह आरम्भ ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद किया। आपका विचार था
भी हो गया था। फलतः विद्यापीठ की नीति के अनुसार कि हिन्दी का नाम हिन्दी न होकर 'भारती' होना
हम पीठ के अध्यापक तथा छात्र इसके संगठन में लग चाहिए। यह आपका मौलिक चिन्तन कहा जाना चाहिए।
गये और मूल-वरांगचरित के समान उसकी अनुवाद आपके ही शब्दों में
कल्पना को भी तिरोहित होना पड़ा। जब उक्त 'उत्तर भारत की भाषा का हिन्दी' नाम भ्रामक पुस्तक-पत्रादि जेल द्वार पर पहच ता आध
चे तो अधिकारियों ने है। इस नाम का प्रयोग उन्होंने (विदेशी यात्री-मुस्लिम उन सबको महीनों रोके रखा और बार-बार कहने पर विजेता) किया है जो इस देश तथा इसकी संस्कृति अन्त में मझे प्रथमगच्छक और वरांगचरित पजा-पाठ
और भाषा से अपरिचित थे। उन्होंने अज्ञान में एक की संस्कृत पुस्तकें समझकर दे दिये, क्योंकि उन्हें प्रान्त सिन्ध (हिन्द) का नाम देश पर लाद दिया तो आशा थी कि इनको पढ़कर मेरी राजद्रोह की प्रवृत्ति विश्वमान्य प्रथा के अनुसार यहां के वासियों को बढ़ेगी नहीं। हिन्दू तथा उनकी भाषा को हिन्दी कह दिया। यह यतः कागज सुलभ नहीं था। अत: एक बार राष्ट्र 'भारत' है तो राष्ट्रभाषा भी 'भारती' ही होनी पूरा ग्रन्थ पढ़ गया। पढ़ जाने के बाद फिर समय काटने चाहिए, क्योंकि जर्मनी की जर्मन, फ्रांस की फ्रैंच, का प्रश्न हुआ और काफी प्रयत्न करने पर अपने लिए इंग्लैण्ड की इंगलिश, रूस की रसियन आदि भाषाएं जमा हुयी कोरी कापियों में से दो-तीन पा सका। हैं। सांगोपांग-विवेचन के लिए दृष्टव्य लेखक का तीन-चार सर्ग लिख पाया था कि मेरे ऊपर राजद्रोह लेख। (जनवाणी '49)'
उभारने के लिए मुकदमा चलने लगा और दूसरे-चौथे
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138
स्वतंत्रता संग्राम में जैन रोज होने वाली पेशियों के कारण अनुवाद का कार्य अपने किसी पुत्र-पुत्री या रिश्तेदार को कहीं नहीं लगाया। स्थगित हो गया। बाद में मुझे सजा भी हो गयी और यही कारण था कि आप अनेक बार उस संस्था के केन्द्रीय जेल में भेज दिया गया। फलतः इस जेल द्वार कुलपति होते-होते रह गये। पर वरांगचरित और गुच्छक भी मुझसे बिछुड़ गये। डॉ0 सम्पूर्णानन्द के अत्यन्त प्रिय व्यक्तियों यहां पर भी काफी संघर्ष के बाद 42 की जनवरी में रहे गोरावाला जी ने 1952 में उ0प्र0 कांग्रेस के अन्त में मुझे वरांगचरित और कापियां मिलीं। फिर महासचिव पद से त्यागपत्र दे दिया. उसके बाद वे कार्य प्रारम्भ किया और चार-पांच सर्ग लिखने के बाद कभी सक्रिय राजनीति में नहीं रहे। 1947 में देश के जेल मुक्त हो गया। बाहर आने पर इसकी जेल से आजाद हो जाने के बाद ही 1950 में उन्होंने सरला भी बुरी हालत हुई। क्योंकि यह महान् राजनैतिक तनाव देवी से विवाह किया। वह भी मित्रों के भारी जोर देने का समय था। प्रयाग की अखिल भा0का0 कमेटी का पर। अधिवेशन, उसके बाद आगामी आन्दोलन की तैयारी
स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थिति से गोरावाला आदि ऐसे कार्य थे कि मैं वरांगचरित को छू भी न
जी काफी चिन्तित रहा करते थे, क्योंकि इस विद्यालय सका। वरांगचरित की शुभ घड़ी तब आयी जब 42
___ की स्थापना उनके पूज्य गुरु गणेशप्रसाद जी वर्णी ने में पुन: नजरबन्द हुआ और सन् 43 के अन्त में जब
की थी। जैन समाज और साहित्य की जो सेवा गोरावाला नजरबन्दों को कुटुम्बियों से मिलने तथा पत्र-व्यवहार
जी ने की वह इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर लिखी की सुविधा मिली। अबकी बार ज्यों ही पुस्तक और
जाएगी। वे भा०दि0 जैन संघ, मथुरा, अ0भा0 दि0 जैन कागज हाथ लगे त्यों ही इसमें लग गया और लगभग
विद्वत्परिषद्, गणेशवर्णी जैन ग्रन्थमाला, सन्मति जैन | मास में अनुवाद को समाप्त कर डाला।'
निकेतन, नरिया, वाराणसी आदि संस्थानों से सदैव जुड़े 1942 के आन्दोलन में आपकी जन्मपत्री व
रहे। 'जैन-सन्देश' का सम्पादन और प्रकाशन भी उन्होंने प्रमाण-पत्र आदि जब्त कर लिये गये थे जो 1945
अनेक वर्षो तक किया था। में जेल से छूटने पर मिले। आपने एम0वी0 कालेज,
अपने मौलिक विचारों के कारण सदैव फिरोजाबाद में अध्यापन कार्य किया, किन्तु महात्मा
चर्चा में रहे गोरावाला जी के पास जब हम गांधी के आह्वान पर वहां की सवैतनिक नौकरी छोड़कर काशी विद्यापीठ में अवैतनिक कार्य करने आ गये।
25-5-1997 को गये और प्रस्तुत पुस्तक लिखने
की चर्चा की तो उन्होंने असीम प्रसन्नता व्यक्त की वहीं 1916 में प्रोफेसर इन्चार्ज, लाइब्रेरी बने। गोरावाला जी अपनी स्पष्टवादिता और न्यायप्रियता के लिए
थी। काल का चक्र किसी को नहीं छोड़ता। विख्यात थे। 1961 में काशी विद्यापीठ के मान्य 10 जनवरी 1999 को गोरावाला जी शांतभाव से विश्वविद्यालय हो जाने पर विद्यापीठ में भाई-भतीजावाद
चिरनिद्रा में लीन हो गये।
आ)- (1) वि0 अ{), पृ0-168 (2) प0 जै0 इ0, काफी बढ़ गया। गोरावाला जी ने इसका खुलकर विरोध
पृ0 - 265, (3) जै0 स0 रा) अ) (4) वरांग-चरित (5) किया। वे कहा करते थे- 'एक कम योग्यता वाले जैन-सन्देश, 17 मार्च 199) (6) र) नी0, पृ0-77 व्यक्ति को कहीं भी कोई पद दिया जाना एक योग्य व्यक्ति के हक को मारना है।' यही कारण है कि सिंघई (दादा) खूबचंद जी खादी वाले विद्यापीठ में जहां उनके साथ के तमाम लोगों के अंग्रेजों के लिए बेहद भारी पड़ने वाले दादा पुत्र पुत्रियां आदि विभिन्न पदों पर आसीन हैं, आपने खूबचंद जी, जबलपुर (म0प्र0) के माने हुए खादी
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प्रथम खण्ड
139
प्रचारक थे। खादी प्रचार को ही माध्यम बनाकर वे आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृ0-38 राष्ट्रीय कार्यों में सम्मिलित हुए, खादी का ही व्यापार ।
(2) स्व) स) ज), पृ.)-92 (3) प) जै) इ०, पृ)- 420
(4) जबलपुर गजरथ स्मारिका, 1993, पृ0-46 (5) सिंघई किया, इसलिए 'खादी वाले' कहलाने लगे। रतनचंद जी द्वारा प्रेषित परिचय।
दादा जी का जन्म 1907 में जबलपुर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री छबलाल था। 1942 के भारत
श्री खूबचंद जैन 'पुष्प' छोड़ो आंदोलन में भूमिगत कार्यकर्ताओं से सम्पर्क रहा
'पुष्प' उपनाम धारक श्री खूबचंद जैन का
जन्म, वि0स0 1981 (सन् 1924) में पिपरई और उनकी हर तरह से सहायता आपने की तथा
(ललितपुर) उ0प्र0 में श्री आन्दालन को उग्र बनाये रखने के लिए प्रेरक परचे
खुशालचंद जी मोदी के यहाँ छपवाकर वितरित किये। भमिगत रहे श्री सत्येन्द्र मिश्र
हुआ। कम उम्र में ही आप की सलाह पर, छोटे फुहारे पर निषेधाज्ञा भंग करके
राष्ट्रभावना से युक्त कवितायें सभा की अध्यक्षता कर उसे संबोधित करते हुए आप
लिखने लगे। आप कविताओं पकड़े गये। पुलिस द्वारा शारीरिक यातनायें दी गईं तथा
को सुना- सुनाकर देशप्रेम अर्थदण्ड सहित एक वर्ष की सजा हुई।
के प्रति लोगों की भावनाओं ___ 35 वर्ष के युवा खूबचंद ने हार नहीं मानी
को उभारते हुये ललितपुर में और कहा-'अर्थदण्ड नहीं दंगा चाहे जितनी भी यातनायें बंदी बना लिये गये। 1942 में आपको दफा 144 सहनी पड़ें'. फिर क्या था? अर्थदण्ड वसलने के लिए तोड़ने एवं विद्रोही कविता पाठ के कारण 6 माह इनकी दुकान भी कुर्क कर ली गई।
की कठोर सजा तथा 500/- 'जुर्माना हुआ। जुर्माना आजादी के बाद आप कांग्रेस के अनन्य भक्त
अदा न करने पर 6 माह की और कठोर सजा
भोगनी पड़ी। अनेक सत्याग्रहों में भी आपने भाग रहे। धार्मिक और सामाजिक कार्यों में योगदान करना
लिया। वर्तमान दशा पर आपका कहना है--- आपका स्वभाव था। जबलपुर के प्रसिद्ध जैन तीर्थ
'गांव भटक गये, पांव बहक गये, 'पिसनहारी की मढ़िया' की पहाड़ी पर पत्थरों की कहीं छांव विश्राम नहीं है। बड़ी-बड़ी चट्टानों को खुद हटवाकर मैदान बनवाया,
बापू तेरे स्वप्नों का,
अब कोई सेवाग्राम नहीं है।।' इसीलिए आप 'शिलाचार्य' कहलाने लगे, उस मैदान
'दिशाहीन हैं न्यायमार्ग सब, में आपने एक चौबीसी का भी निर्माण कराया तथा
अपनापन वीरान हो गया। तब चालीस हजार रुपये दान में दिये थे। आपका किसे पुकारूँ, कौन सुनेगा,
हर राही अनजान हो गया।।' निधन 1990 में हो गया।
'बापू तेरी अवधपुरी में, अपने कुटुम्बियों की आर्थिक सहायता भी आप
अब तो कोई राम नहीं है। करते थे। मढिया जी में व्रती आश्रम, भेड़ाघाट जैन बापू तेरे स्वप्नों का, मंदिर का जीर्णोद्धार, नन्दीश्वर द्वीप रचना आदि में
अब कोई सेवाग्राम नहीं है।।' आपका भारी योगदान रहा। आपके उत्तराधिकारी सुपुत्र
सम्प्रति आप मण्डी बामोरा (सागर) म0प्र0 में श्री राजेन्द्र कुमार जबलपुर में अब भी 'महाकौशल रह रह है।
आ).. (1) जै) स) रा) 0 (2) () नी), पृ0-40 खादी भंडार' चलाते हैं।
(3) स्व) :
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.स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री खूबचंद बैसाखिया
श्री खेमचंद जैन रहली, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री पिण्डरई, जिला- मण्डला (म0प्र0) के खूबचंद बैसाखिया, पुत्र-श्री भोलानाथ बैसाखिया ने श्री खेमचंद जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल का जीवन आजादी 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया व 9 का अलख जगाते बीता। हर समय- हर काम को तैयार माह का कारावास भोगा। आपका निधन 1964 में हो गया। खेमचंद जी सदैव रचनात्मक कार्यों से जुड़े रहे। 1942
आ०-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृ0-16 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने खुलकर भाग लिया, (2) आ0 दी0, पृ0-36
तोड़-फोड़ की, गिरफ्तार हुए और 2 वर्ष 6 माह की श्री खेमचंद जैन
कठोर कैद तथा 100/- रु0 का अर्थदण्ड आपको
भोगना पड़ा। जेल में भी कठोर से कठोर यातनायें बलेह, जिला-सागर (मध्यप्रदेश) के श्री खेमचंद
आपको दी जाती रहीं पर आप झुके नहीं। जैन, पुत्र-श्री कोमलचंद जैन का जन्म 10 फरवरी
आ0-(1) मर) प्र0 स्व0 सै0, भाग-1. पृ0-205 (2) जै0 1928 ई0 को हुआ। आपने
स0 रा0 अ01 बताया कि 'मेरे पिता बलेह के कर्मठ कार्यकर्ता थे, 1929
श्री खेमचंद जैन 'स्वदेशी' एवं 33 में उन्होंने विदेशी पिता की स्वदेशी भावना के कारण जिनका | वस्त्रों की होली जलाई थी, वंश ही स्वदेशी कहलाने लगा, ऐसे श्री खेमचंद गांधी जी के दमोह आगमन
स्वदेशी, पुत्र श्री मोहनलाल पर उनके साथ रहे थे व
स्वदेशी का जन्म 6-8-1923 चरखा आश्रम खोला था। उन्हीं से विरासत में मुझे
को तेंदूखेड़ा, जिला नरसिंहपुर स्वाधीनता की भावना मिली। 1939 का त्रिपुरी
(म0प्र0) में हुआ, आप अधिवेशन मुझे देखने को मिला था, 1942 के
त्रिपुरी कांग्रेस के अधिवेशन आन्दोलन में मुझे अपने 35 साथियों के साथ
से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय गिरफ्तार कर लिया गया। मैंने 23 सितम्बर से 15
हो गये थे। राष्ट्रीय सत्याग्रह अक्टूबर 42 तक का कारावास तथा 75/- का के लिये आपने जनमत तैयार किया। अपनी गिरफ्तारी अर्थदण्ड भोगा था। जेल में बडी अमानषिक यातनायें के सन्दर्भ में आपने लिखा है कि- '1942 ई0 में दी जाती थीं। सबसे विचित्र वहां शौच क्रिया का मैंने जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। वन विभाग एवं जाना था। हमें 12-12 लोगों को हथकड़ी पहनाकर पुलिस द्वारा गिरफ्तार हुआ, पुलिस हथकड़ी डालकर शौच क्रिया हेतु हवालात से बाहर ले जाया जाता था। ग्राम-सहजपुर से बरसात में ही पुलिस थाना केसली बाद में सागर के कलेक्टर से शिकायत करने पर ले गई। केसली से 60 किमी0 पदयात्रा कर तहसील हथकडी खोलने की अनुमति मिली थी।' श्री जैन रहली, जिला-सागर लाया गया और रहली अदालत म0प्र0 स्वतंत्रता सेनानी संघ, के सम्भागीय मंत्री व ने मुझे 4 माह की कड़ी कैद की सजा तथा जिला स्वतंत्रता सेनानी संघ, दमोह के कोषाध्यक्ष हैं। 10/- रु0 अर्थदण्ड दिया। सागर जेल में कठोर - आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-2, 90-16 (2) स्व) यातनायें हँसते-हँसते झेली, पुलिस की मार से सिर 10 व अनेक चित्र।
फूट गया था, उस समय मेरी आयु 18 वर्ष की थी।
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प्रथम खण्ड
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे साथी यह कविता गाते थे
'खड़ी रहेगी, पुलिस फौज अरु, पड़े रहेंगे, सब हथियार
थोड़े दिन में दिखता है यह
डूब जायेगी ये सरकार पकड़ना हो तो पकड़ ले जालिम सुना रहे हैं, सरे बाजार
अब न टिकेगी, हिन्द देश में
पाखंडी जालिम सरकार
गूँजे आजादी का नाद इंकलाब जिन्दाबाद धन शोषण की क्रूर कहानी पूँजीपतियों की नादानी
हमें हमेशा रहेगी याद इंकलाब जिन्दाबाद लाठी गोली सेण्ट्रल जेल जालिम का है अन्तिम खेल कर ले मनमानी सैय्याद
इंकलाब जिंदाबाद ये मजदूरो और किसानो भावी राज्य तुम्हारा जानो
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उजड़े घर होंगे आजाद इंकलाब जिंदाबाद। '
आ- (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-1, पृ0-139 (2)
स्व) प()
श्री गंगाधर जैन
श्री गंगाधर जैन का जन्म 1909 में प्रभात पट्टन, जिला - बैतूल (म0प्र0) में हुआ, आपके पिता का नाम श्री बाला जी था, आपने कक्षा 4 तक शिक्षा ग्रहण की। 1930 के देशव्यापी कांग्रेस आंदोलन में बड़े ही उत्साहपूर्वक आपने भाग लिया। 1 वर्ष की कडी सजा एवं 75रु (0) के अर्थदंड की सजा आपको मिली, जिसे
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आपने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आपमें देशभक्ति की भावना कूटकूट कर भरी थी ।
आ( ) ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-5, पृ0-150
श्रीमती गंगाबाई जैन
कानपुर (उ0प्र0) की श्रीमती गंगाबाई जैन प्रसिद्ध देशभक्त वैद्य कन्हैयालाल जी ( इनका परिचय इसी पुस्तक में अन्यत्र देखें) की धर्मपत्नी थीं, श्रीमती जैन, उनके पति और दो पुत्र जेल यात्री रहे हैं। शिक्षा प्रसार-प्रचार के लिए समर्पित श्रीमती जैन अपने पति के साथ कन्धे कन्धा मिलाकर आन्दोलन में सक्रिय रहीं। जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक लिखता है - 'आपको स्वदेशी से बड़ा प्रेम था । आपके कारण जैन समाज की तथा नगर की स्त्रियों में स्वदेशी का काफी प्रचार हुआ। 1931 के आन्दोलन में जब कानपुर में यू०पी० कांग्रेस का जलसा श्रद्धेय बा0 पुरुषोत्तम दास जी टण्डन के सभापतित्व में हुआ था, उसकी स्वागताध्यक्षा बनने के कारण आपको छह मास का कारावास हुआ था।'
(आ) - (1) जै० स० रा० अ) (2) पं(0) बच्चू लाल जी द्वारा प्रदत्त परिचय |
श्री गजाधर जैन उर्फ श्री नाथूराम छतरपुर (म0प्र0) के श्री गजाधर जैन उर्फ श्री नाथूराम पुत्र - श्री गुलाबराय जैन का जन्म 1906 में हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में आप 1942 से ही सक्रिय हो गये थे। 1947 में गंज कैम्प में । माह का कारावास आपने भोगा ।
आ) - ( 1 ) म0प्र0 स्व() सै0, भाग-2 प0 107
श्री गटोलेलाल भायजी
भायजी' उपनाम से विख्यात, सागर (म0प्र0) के श्री गटोलेलाल ने अहमदाबाद कांग्रेस में बीना के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। 1929 में रेलवे सत्याग्रह में भाग लेने के कारण आपने 15 दिन की
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142
स्वतंत्रता संग्राम में जैन जेल यात्रा की । उस समय जेलों में राजनैतिक
मैनपुरी (उ0प्र0) प्रवासी श्री कैदियों के साथ इतना कड़ा व्यवहार किया जाता था
गुणधरलाल जैन, पुत्र-श्री कि 20 सेर ( किलो) अनाज पीसने के बाद भी
वंशीधर जैन का जन्म आपको प्रतिदिन गुनाहखाने में बन्द कर दिया जाता
15 अगस्त 1885 को हुआ। था। 1942 के आन्दोलन में भी आपने एक वर्ष का
श्री जैन को नमक कानून कारावास भोगा।
भंग आंदोलन में भाग लेने आ) (1) जै0 स0 रा) अ।
के कारण एक वर्ष का कठिन श्री गनेशीलाल जी 'बाबा'
कारावास भोगना पड़ा था। आप गांधी इरविन समझौता
होने पर छूट पाये थे। बन्दी जीवन में परिवार की 'बाबा' उपनाम से प्रख्यात श्री गनेशीलाल जी,
, आर्थिक स्थिति बिगड़ गई, फलतः कायमगंज का मकान बीना (म0प्रा0) निवासी थे। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह
भी बेच देना पड़ा। इतने पर भी आर्थिक स्थिति नहीं में आप तीन बार जेल गये। बीना के आप प्रमुख कांग्रेस
सुधरी तो सपरिवार बम्बई प्रवास के लिए बाध्य होना कार्यकर्ताओं में एक थे। लगातार जेल यात्रा ने आपका
पड़ा, वहाँ भी चार वर्ष जीवन के लिए संघर्ष करने स्वास्थ्य चौपट कर दिया। तीसरी बार जेल से रिहा
पर कोई स्थाई साधन न जुटा सके और कुरावली 1942 होने के थोड़े ही दिन बाद हृदयगति अवरुद्ध हो जाने
में वापिस आना पड़ा। 'जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक' के कारण आपका स्वर्गवास हो गया।
लिखता है कि- 'उस समय इनके बच्चे बहत छोटे आ0-(1) श्रद्धेय प0 वंशीधर जी द्वारा प्रेषित परिचय।
थे, घर में इनके अतिरिक्त कमाने वाला कोई नहीं था, (2) जै0 स) रा0 अ0
फिर भी सबकी उपेक्षा करते हए अपने हृदय में उठते श्री गप्पूलाल उर्फ उमरावमल आजाद हुए उद्गारों को न रोक सके, इस पर भी सरकार ने
जयपुर (राजस्थान) के श्री गप्पूलाल उर्फ इन पर 100 रु0 जुर्माना और कर दिया, जो इनकी उमरावमल आजाद का जन्म अगस्त 1928 में हुआ। स्थिति के बाहर की चीज थी। इस बीच काफी कर्ज 14 वर्ष की उम्र में आजाद जी ने आन्दोलन में भाग बढ़ गया और विवश होकर इन्हें अपना एक मकान लेना प्रारम्भ किया। पर्चे बांटना, बुलेटिन घर-घर भी बेच देना पड़ा।' 17 मई 1969 को आपका निध पहुंचाना उनके प्रमुख कार्य थे। एक दिन पुलिस ने न हो गया। इतना पीटा कि सदैव के लिए उनके दायें हाथ और आपके पुत्र श्री देशदीपक जैन, 1942 के बाएं पैर की हड्डी टूट गई। उन्हें अपने स्कूल से आंदोलन में जेल गये थे, जिनका परिचय इसी ग्रन्थ भी निकाल दिया गया। आजाद जी आगरा, इन्दौर, में अन्यत्र देखें। रतलाम कोटा आदि में क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ0- (1) जै0 स0, रा0 अ0 (2) उ0प्रा) जै0 40 भी रहे थे।
पृ०-93 (3) पुत्र श्री देश दीपक जैन द्वारा प्रेषित परिचय। आO-(1) रा० स्व0 से0, पृ0-603
श्री गुलझारीलाल जगाती श्री गुणधरलाल जैन 'निर्भय'
'नेताजी' उपनाम से प्रसिद्ध श्री गुलझारीलाल 'निर्भय' उपनामधारी, कायमगंज, जिला- जगाती का जन्म वैशाख सुदी पंचमी, संवत् 1972 फरुक्खाबाद (उ0प्र0) निवासी और कुरावली, जिला (1915 ई0), को टड़ा, तहसील-देवरी, जिला-सागर
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प्रथम खण्ड
143
(म0प्र0) में हुआ। आपके अपनी विनम्रता, ईमानदारी और राष्ट्रीय भावना के पिता का नाम श्री सुन्दरलाल लिए भी दूर-दूर तक विख्यात थे। 1941 के आन्दोलन जैन था, जो अत्यन्त निर्धन में आपको नजरबन्द कर लिया गया था। थे। फलतः जगाती जी की 1941 में जब जनता से जबरन बारफण्ड वसूल शिक्षा अत्यल्प, कक्षा 4 तक किया जा रहा था। तब आप नगर की चुंगी विभाग के
ही हो सकी। 1941 से ही चेयरमैन थे। अंग्रेजी शासन ने स्थानीय चुंगी
--- आप रचनात्मक कार्यों में (नगरपालिका) में एतद् विषयक प्रस्ताव पारित कराने संलग्न हो गये। पूज्य बापू के करो या मरो के पर जोर डाला। चेयरमैन गुलझारीलाल तथा अगस्त 42 के आन्दोलन में आपने बढ़-चढ़कर पं0 श्यामलाल व लाला टुण्डामल जी ने प्रस्ताव हिस्सा लिया, जगह-जगह भाषणबाजी के कारण पारित नहीं होने दिया, फलतः तीनों को गिरफ्तार आप 'नेताजी' कहे जाने लगे, गिरफ्तार हुए और 9 करके जेल में भेज दिया गया। वैद्य जी एक माह माह की कड़ी जेल- यातना भुगती। जेल से आने के कारावास में रहे। बाद भी आप अपनी ओजस्वी वाणी से स्वतंत्रता का आ)- (1) जै0 स0, रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 जै0, 20, प्रचार करते रहे व आजादी के दीवानों को उद्वलित प0-90 (3) अमृत, पृष्ठ 24, (4) प) इ0, पृ0-140 करते रहे।
देश की आजादी के बाद स्वाधीनता सेनानियों श्री गुलाबचंद कासलीवाल का सम्मान, देर से ही सही, हुआ। 'नेताजी' को 1956 से 1972 तक राजस्थान सरकार के माननीय सेठ गोविन्ददास जी, सांसद (जबलपुर) ने एडवोकेट जनरल तथा राजस्थान विधानसभा के सदस्य ताम्रपत्र प्रदान कर सम्मानित किया।
रहे श्री गुलाबचंद कासलीवाल, पुत्र- श्री पूर्णचन्द्र आ0 (1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृ0-19 कासलीवाल का जन्म 16 जौलाई 1909 को जयपुर (2) स्व) पा
(राजस्थान) में हुआ। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय __श्री गुलजारीलाल जैन
से एम0ए0, एल0एल0बी0 की परीक्षाएं उत्तीर्ण की ग्राम सिरोहा, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री और 1932 में जयपुर में वकालत प्रारंभ की। 1934 गुलजारीलाल जैन, पत्र- श्री दरियावप्रसाद ने 1942 से 1936 तक आपने हरिजन बस्तियों में शिक्षा-प्रसार के भारत छोड़ो आन्दोलन में 6 माह का कारावास भोगा। व समाज सुधार का कार्य किया।
आ) (1) म) प्र.) स्व० सै0, भाग-2, पृ0-19 10 फरवरी 1939 की रात्री को जब पंडित (2) आ() दी0, पृ0-39
हीरालाल शास्त्री के निवास स्थान पर 'जयपुर राज्य
प्रजामंडल' की कार्यकारिणी के समस्त सदस्यों को वैद्य गुलझारीलाल जैन
गिरफ्तार किया गया उस समय पुलिस के घेरे के बीच फिरोजाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन रहे। श्री वैद्य गुलझारीलाल, फिरोजाबाद (उ0प्र0) के
से प्रजामंडल के तमाम गुप्त कागजात लेकर आप प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे। आप वैद्य नौबतराम निकल गये थे। प्रजामंडल की कार्यकारिणी ने सत्याग्रह गलझारीलाल के नाम से विख्यात थे। वैद्य जी संचालन की जिम्मेदारी श्री कासलीवाल को सौंपी।
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन सत्याग्रह संचालन के संबंध में आप दो बार राष्ट्रपिता कासलीवाल जी 1946 में नगरपालिका के महात्मा गांधी से मिले। गांधीजी ने जयपुर राज्य अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1946 से 51 तक वे राजकीय, प्रजामंडल के सत्याग्रह संचालन की प्रशंसा में उन्हें राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सौ से अधिक एक पत्र लिखकर दिया। दूसरी बार मिलने पर संस्थाओं और समितियों के अध्यक्ष, संरक्षक, सलाहकार गांधीजी ने सत्याग्रह बंद करने की आज्ञा दी। जयपुर और सदस्य रहे। जयपुर के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने सत्याग्रह बंद होने पर श्री कासलीवास खादी उत्पादन स्वागत समिति के एक संयोजक के रूप में महत्त्वपूर्ण के कार्य में लग गए।
कार्य किया। 1942 में जयपुर राज्य प्रजामंडल ने ब्रिटिश अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद् के विरोधी आंदोलन के लिए जो नीति स्वीकार की थी उदयपुर अधिवेशन में श्री कासलीवाल ने ही सबसे उससे असंतुष्ट होकर कासलीवाल जी ने प्रजामंडल पहले राजपूताने की सभी रियासतों को मिलाकर एक से त्यागपत्र दे दिया और अपने अन्य साथियों के साथ राज्य बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसे सर्व सम्मति आजाद मोर्चे में शामिल हो गए। आजाद मोर्चे का से स्वीकृत किया गया था। कार्यालय आपके निवास पर ही था। आजाद मोर्चे ने कासलीवाल जी 1952 में जयपुर शहर से राज्य भारत छोडो आंदोलन के रूप में स्वतंत्रता संग्राम को विधानसभा के लिए कांग्रेस टिकट पर सदस्य चुने गए। जयपुर राज्य के कोने-कोने में फैलाया। आंदोलन में एसेम्बली में वे कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे। इसके काफी तेजी आ गई थी। 9 सितम्बर 1942 को श्री अतिरिक्त वे अरबन इम्प्रूवमेंट बोर्ड के अध्यक्ष बनाए कासलीवाल के मकान की 6 घंटे तक तलाशी होती गए और अंत में 1956 में राज्य के एडवोकेट जनरल रही। अंत में वे गिरफ्तार कर लिए गए तथा 6 महीने बने। तक जेल में रहे, जिसमें दो हफ्ते की कालकोठरी की कासलीवाल जी सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया के भी सजा उन्हें दी गई।
एडवोकेट, रायल-इंडियन सोसाइटी, लंदन के फैलो, भारत छोडो आंदोलन समाप्त होने पर अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन आफ जरिस्टस के सदस्य बार श्रा कासलीवाल पुनः प्रजामंडल में सम्मिलित हो गए।
एसोशिएशन आफ इंडिया के फाउन्डर मेम्बर तथा
आजीवन सदस्य रहे थे। वे निरंतर कई वर्षों तक जयपुर राज्य प्रजामंडल के ना
आ()- (1) रा) स्व) से0. पृष्ठ-553. (2) जै0 सा वृ) कोषाध्यक्ष रहे। उन्होंने प्रजामंडल की राज्यव्यापी सभी ।
| समा इ), पृष्ठ- 205 प्रवृत्तियों में उत्साह से भाग लिया। 1943-44 में प्रजामंडल ने श्री कासलीवाल को जयपुर नगरपालिका
श्री गुलाबचंद जैन के लिए खडा किया और वे विजयी हए। 1945 में 1939 में जब कांग्रेस के गांधीवादी वर्ग ने जयपुर में लेजिसलेटिव कौंसिल और रिप्रिजेंटेटिव
। तत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष एसेम्बली के चुनाव हुए।कासलीवाल जी जयपुर से
नेताजी सुभाषचंद बोस को लेजिसलेटिव कौंसिल के प्रत्याशी थे। जयपुर शहर के
सहयोग न देकर उनके चुनाव का श्रेय भी श्री कासलीवाल को ही था। जयपुर
नेतृत्व को चुनौती दी और शहर से प्रजामंडल के सभी प्रत्याशी विजयी हुए। श्री
उसके फलस्वरूप नेताजी ने कासलीवाल लेजिसलेटिव कौंसिल में प्रजामंडल के
अपने अनुयायियों सहित मुख्य सचेतक थे।
कांग्रेस का परित्याग कर
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प्रथम खण्ड
145 'अग्रगामी दल' (फारवर्ड ब्लाक) निर्मित किया तब आO- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-20, पाटन, जिला-जबलपुर (म0प्र0) से भी अनेक (2) आ() दी0, पृष्ठ 39 कांग्रेस-कर्मी उसमें कूद पड़े। तरुण राष्ट्रीय कार्यकर्ता
श्री गुलाबचंद जैन श्री गुलाबचंद, पुत्र श्री मूलचंद जैन भी इसी उग्र श्री गुलाबचंद, पुत्र-श्री रूपचंद का जन्म 1913 विचारधारा के अनुगामी बने। आपका जन्म 2 सितम्बर में म0प्र0 के रायपुर जिले में हुआ था। आपने 1921 का शहपुरा (म0प्र)) में हुआ था। शहपुरा क्षेत्र माध्यमिक शिक्षा ही ग्रहण कर पाई। देश की स्वतंत्रता के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आप अग्रणी रहे। 1942 की रक्षा में तत्पर श्री जैन ने राष्ट्रीय आंदोलन में की जनक्रांति के दौरान कांग्रेस की अपने सूत्रधारों भाग लिया और 8 माह 13 दिन का कारावास भोगा के आकस्मिक बंदी बना लिये जाने से पथ निश्चित
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-3, पृष्ठ-20 नहीं कर पा रहे थे। इसी बीच भूमिगत कार्यकर्ता श्री नानक चंद नामदेव और टीकाराम ‘विनोदी' शहपुरा
श्री गुलाबचंद जैन 'वैद्य' आय। वे गुप्त रूप से खैरी के ठाकुर मोहन सिंह के श्री गुलाबचंद जैन ढाना, जिला-सागर यहाँ ठहराये गये, उन्होंने क्रांति का संदेश स्थानीय (म0 प्र0) के निवासी हैं। आपके पिता का नाम श्री कार्यकर्ताओं को दिया। तोड़-फोड़ की योजनायें बनायी
वलजूराम था। अपना परिचय जा रही थी। इसी बीच श्री गलाब चंद पलिस द्वार
देते हुए आपने लिखा है कि एकाएक गिरफ्तार कर लिये गये तथा केन्द्रीय कारागार
'मैं राष्ट्रप्रेम की पवित्र भावना जबलपुर भेज दिये गये। वहाँ आप सितम्बर 1942
से प्रेरित होकर राष्ट्रीय कांग्रेस से नवम्बर 1943 तक भारत रक्षा कानून की धारा 129)
से सन् 1930 से ही जुड़ गया व 20 के अन्तर्गत बन्दी रहे। जेल से मुक्त होने पर
था परन्तु सक्रिय कार्य करने आप कांग्रेस संगठन में जुट गये। स्वतंत्रता के पूर्व 1945
का मौका 1941-42 के दौरान से 47 तक आप परगना कांग्रेस के मंत्री रहे थे। मिला। उन दिनों स्वराज्य की तूफानी लहर चल रही स्वतंत्रता के पश्चात् आर्थिक कारणों से आप सार्वजनिक थी। प्रभात फेरियां, झंडा वंदन, सभायें, चरखा कातने राजनीति से विरक्त हो गये थे।
आदि के प्रोग्राम होते रहते थे। अंग्रेजी सरकार ने आ) (1) म) प्र) स्व) से), भाग-1, पृष्ठ-41, गांव-गांव में डिफेंस सोसायटियां बनाकर जनता के (2) श्री राकेश जैन, शहपुरा द्वारा प्रेषित परिचय, (3) स्वा) सर)
दमन का कार्यक्रम बनाया था। सरकार तो जैसे पा), पुर) ३
मानों बौखला ही गयी थी। स्वराज्य का नाम लेने पर श्री गुलाबचंद जैन
लाठी गोली का सामना हो जाता था। सागर (म0प्र0) के श्री गुलाबचंद जैन, पुत्र- एक दिन हमारे ग्राम में डिफेंस के नाम पर श्री नानूराम जैन का जन्म 1920 में हुआ। आप सभा हुई, गांव के सभी प्रतिष्ठित आदमी बुलाये गये प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण कर 1942 के भारत सबको कुर्सियां डाली गयीं, बीच में अंग्रेज डी0एस0पी0 छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय हो गये। आपने बम बनाने बैठा, उसने मेरा नाम लेकर पुकारा और कहा-"टुम में सहयोग दिया, गिरफ्तार हुये व 3 वर्ष का गांव का गुंडा हाय। टुम लोगों को अंग्रेजी सरकार के कारावास तथा 100/ रु) का अर्थदण्ड भोगा। बाद खिलाफ भड़काता हाय, अखबार सुनाता हाय, और में आप जबलपुर प्रवासी हो गये।
अफवाहें फैलाता हाय। हम तुम्हारा गर्दन टोड़ डेगा।"
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- स्वतंत्रता संग्राम में जैन मैं भी जवाब देने वाला था पर लोगों ने रोक दिया। प्रेम से सम्बन्धित सहस्राधिक कवितायें छपी। एक इसके बाद सभा भंग कर दी गई। उन दिनों मेरे मित्र गीत की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैंव सहयोगी भूमिगत थे।
'जेल गांधी गये हैं हमारे लिये , मेरे मित्र पं0 जुगलकिशोर उन दिनों अक्सर मेरे
फिक्र हमको भी उनके छुड़ाने की है। यहां ठहरा करते थे। एक रोज जब वह मेरे यहां थे तो
दिल में सच्ची लगन देश की हो लगी किसी ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। हम लोगों
क्या उल्फत फकत मुंह दिखाने की है।। को पुलिस के आने का पता लगा तो हम लोगों ने
चक्र चलता है तो उसको चलने भी दो, सभा करके जुलूस निकाल कर गिरफ्तार होने की
फिक्र हमको तो चर्खा चलाने की है। योजना बनाई। एक घंटे में सभा स्थल भर गया,
काम कुछ तो करो देश के वास्ते, भाषण होने लगा। पुलिस आई और सभा रोककर, हम
कोई सूरत तो फिर मुंह दिखाने की हो।।' सबको गिरफ्तार कर पुलिस चौकी ले गई। जनता ने
आ)- (1) जै0 सा) रा) अ), (2) स्व) पर) पुलिस पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया। पुलिस ने भी डंडे संभाले, कई पुलिस वालों और जनता को भी श्री गुलाबचंद जैन 'हलवाई' चोटें आयीं, पुलिस ने मुझे मुखिया बनाकर कुछ और। 'हलवाई' उपनाम से विख्यात श्री गुलाबचंद आदमियों के साथ चालान कर दिया और अंत में इस जैन, पुत्र-श्री वृन्दावन का जन्म 1920 में पिण्डरई, केस में मुझे 6 माह का कारावास और 50 रु0 जिला- मण्डला (म0प्र0) में हुआ। 1940 के व्यक्तिगत
सत्याग्रह में आपने सक्रिय भाग लिया पर गिरफ्तार अर्थदंड हुआ। जेल में रस्सी बटना, चक्की पीसना आदि काम करना पड़ता था।'
नहीं किये जा सके, पर 1942 के आन्दोलन में
तोड़-फोड़ करने के कारण आप गिरफ्तार कर लिये __अपना एक संस्मरण आपने इस प्रकार लिखा
गये और 2 वर्ष 4 माह का कारावास भुगतना पड़ा। है-'एक रात जब मैं सागर जेल में था, आधी रात को
आपके अग्रज श्री मुलायम चंद जैन भी 2 सित) जेल में खलबली मच गयी, कारण यह था कि
1942 से । मार्च 1943 तक जेल में रहे। गढ़ाकोटा से दो बसें भरकर सत्याग्रही आये थे, उनको
आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-206, जगह बनानी थी। कपड़ों का इंतजाम करना था। (2) जै0 स0 10 10 जैसे-तैसे सब हआ। सत्याग्रहियों में जैन लोग ज्यादा
श्री गुलाबचंद सिंघई थे, सब अपने साथ लोटा और पानी छानने का छन्ना
दमोह (म0प्र0) के श्री गुलाबचंद सिंघई, लिये हुये थे। (बुन्देलखण्ड में यह परम्परा अब भी
पुत्र-श्री राजाराम का जन्म 1923 में हुआ। आपने विद्यमान है) कुछ ही देर में सबको छोड़ दिया गया
___ माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की। आप विद्यार्थी
। क्योंकि सागर जेल में जगह ही नहीं थी उस दिन जेल जीरो
ल जीवन से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये थे में बड़ा हो-हल्ला हुआ।'
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में जबलपुर और वैद्य जी कवि हैं अतः आपका ओजपूर्ण सागर में 9 माह 10 दिन का कारावास तथा 50/ गायन लोगों में राष्ट्रीय गीत की तरह गूंजने लगता था। रुपये का अर्थदण्ड आपने भोगा। उस समय अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी राष्ट्रीय आ)-(1) म0 प्र) स्व0 सै), भाग 2 , पृष्ठ 8।
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147 श्री गुलाबचंद सेठ
श्री गेंदालाल छाबडा पिण्डरई, जिला- मण्डला (म0प्र0) के श्री जयपुर (राजस्थान) के श्री गेंदालाल छाबड़ा ने गुलाबचंद सेठ, ग्राम के प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे पर देश 1930 में, राष्ट्रसेवा में ही जीवन भर कर्मठ रहने की प्रेम के कारण आप आजादी की लड़ाई में कूद पड़े प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने सभी आन्दोलनों में भाग और 1942 के आंदोलन में 6 माह की जेल यात्रा को लिया, वे श्री कपूरचंद पाटनी के घनिष्ठ सहयोगी रहे आ) । । स) रा) 0
हैं। अनेक बार पलिस ने उन्हें पकड़ा (पर अपराध श्री गेंदमल देशलहरा
प्रमाणित न कर पाने के कारण) और 50-60 मील श्री गंदमल देशलहरा (जैन), पत्र-श्री हंसराज दूर जंगलों में छोड़ दिया। अनेक यातनायें भी उन्हें जन का जन्म 15 अगस्त 1902 ई0 को हआ। आप सहन करना पड़ा। ग्राम नेवारो (गुण्डरदेही), जिला- रायपुर (म0प्र0) आ- (1) रा) स्व) से0, पृ0-605 के निवासी है।
श्री गेंदालाल जैन 1920 में महात्मा गांधी के आदेशानुसार आपने इंदौर (म0प्र0) के गेंदालाल जैन, पुत्र श्री अंग्रेजी शिक्षण का बहिष्कार कर दिया और कांग्रेस बिरदीचंद जैन का जन्म 1 मार्च 1927 को हुआ। कार्यों में लग गये। 1930 में राष्ट्रीय कार्यों के उपलक्ष्य 1942 में आजादी के आन्दोलन में भाग लेने पर में सरकार द्वारा । साल सख्त कैद की सजा एवं 50/ दिनांक 23-2-43 से 23-6-43 तक आपको इन्दौर जर्माना की सजा आपने पाई और सेन्ट्रल जेल रायपुर जेल में रखा गया। में रहे। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर दुर्ग में स्वदेशी
आ) (1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-17 वस्त्रों का कारखाना (खादीभण्डार का कार्य) आपने
श्री गेंदालाल जैन प्रारम्भ किया। आपने रामगढ़ कांग्रेस की पैदल यात्रा को और आठ माह तक प्रान्तों का पैदल भ्रमण कर
इन्दौर (म0प्र0) के श्री गेंदालाल जैन, पुत्र-श्री कांग्रेस का प्रचार-कार्य किया।
शैतानमल जैन का जन्म 28 जून 1918 को हुआ। आ) (1) म0 प्र) स्व() सै0, भाग (05, पृष्ठ-109 (2)
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने सक्रिय योगदान दिया। आन्दोलन के दौरान ही आपको गिरफ्तार
कर लिया गया और 9 सितंबर 42 से 25 जनवरी 43 श्री गेंदमल पोखरना
तक के कारावास की सजा आपको दी गई। आपके श्री गंदमल पाखरना (ओसवाल) का जन्म अनुज श्री आनन्दी लाल ने भी जेलयात्रा की थी। रामपुरा, जिला-मन्दसौर (म0प्र0) में हुआ। श्री रामलाल
आ)-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-18 पोखरना, श्री मधुप, श्री रामबिला, किशन लाल पोरवाल आदि आपके प्रमुख साथियों में से थे।
श्री गोकलचंद जैन इन्होंने इंदौर तथा रामपुरा दोनों स्थानों पर आंदोलन में सिलवानी, जिला-रायसेन (म0प्र0) के श्री भाग लिया। अनेक बार पुलिस की मार खाई, किन्त गोकलचंद जैन, पुत्र-श्री जवाहरलाल जैन का जन्म प्रदर्शन करने में कभी पीछे नहीं रहे। पोखरना जी 1918 में हुआ। 1949 के भोपाल राज्य विलीनीकरण को भारत छोडो आंदोलन के मध्य इंदौर में गिरफ्तार आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा एक माह के किया गया व सेन्ट्रल जेल इंदौर में रखा गया। कारावास की सजा भोगी। आ) (1) स्व0 स0 म0, पृ०--137
आ)-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-71
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148
- स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री गोकुलचंद जैन
कहा जाता है कि 1916 में अंग्रेज पुलिस श्री गोकलचंद जैन का जन्म लडवारी, कप्तान दमोह जेल के सामने पुलिस लाइन के बगल जिला-ललितपुर (उ0प्र0) में हआ। आपके पिता का के बंगले में रहता था। उसने आदेश निकाला कि 'इस नाम श्री दमरू जैन था। 1941 के आंदोलन में एक रोड़ के कोई बैलगाड़ी नहीं निकलेगी। हमारी नींद में माह की सजा एवं 100 रु0 जुर्माना का दण्ड स्वीकार बाधा आती है।' सिंघई जी ने उसका विरोध किया, कर आपने देश को आजाद कराने में सहयोग दिया। कई आम सभायें की, जिससे वह अफसर इनका आ) (1) र0 नी), पृ0-100
दुश्मन बन गया और आपको मार डालने के लिए
एक भयंकर अपराधी को जेल से मुक्त कर दिया। श्री गोकुलचंद जैन
दूसरे दिन जब सिंघई जी साइकिल पर उस रास्ते से श्री गोकुलचंद जैन मेघपुर, जिला-आगरा जा रहे थे, तब उस कैदी ने उन्हें रोका और पैर (उ0प्र0) निवासी थे। 1942 के आन्दोलन में आपने
पकड़कर कप्तान का हुक्मनामा सुनाकर क्षमा मांगी। सक्रिय भाग लिया, गिरफ्तार हुए और एक साल की यह सिंघई जी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था। अन्त कडा सजा भीगी। आप मथुरा ब्लाक के, ब्लाक में वह रास्ता हर प्रकार के वाहनों के लिए खोल प्रमुख भी रहे।
दिया गया। आ0-(1) प0 इ0, पृष्ठ-142, (2) गो0 अ0 ग्र0, पृ0-220
आ0- (1) प0 जै) इ0, पृ0 519, (2) श्री सन्तोष सिंघई श्री गोकुलचंद जैन
द्वारा प्रेषित परिचय जबलपुर (म0प्र0) के श्री गोकुलचंद जैन,
श्री गोपालदास जैन पुत्र-श्री नोखेलाल ने 1932 के आन्दोलन में भाग पेशे से व्यापारी किन्तु स्वतंत्रता संग्राम में अपनी लिया तथा 5 माह के कारावास एवं 30 रु0 आहुति देने से पीछे न हटने वाले श्री गोपालदास जैन अर्थदण्ड की सजा पाई।
का जन्म 1912 में साढूमल, जिला-ललितपुर आ0-(1) म0 प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-42 (उ0प्र0) में हुआ, आपके पिता का नाम श्री सवाई जी श्री गोकुलचंद सिंघई
था। 1941 में व्यक्तिगत आंदोलन में भाग लेकर दमोह (म0प्र0) के श्री गोकुलचन्द सिंघई
डी0आई0 आर0 में 9 माह की सजा आपने भोगी।
1942 में 'करो या मरो' आन्दोलन में भी आप वकालत का व्यवसाय करते थे, उन पर अमर शहीद चौधरी भैयालाल का बड़ा प्रभाव था, उन्हीं के
पीछे नहीं रहे, फलतः पुनः 1942 में 1 वर्ष की सान्निध्य में आपने खादी आश्रम चलाना, गौरक्षा,
___ जेलयात्रा की। शराबबंदी आदि कार्य सक्रियता से किये। सिंघई जी।
आ)-(1) र) नी0, पृ0-46 की बुद्धि कुशाग्र थी अत: दमोह में शासकीय अधिकारी
श्री गोपाललाल कोटिया तक उनसे सलाह लेने आते थे। अखाड़ेबाजी के शौकीन मृत्यु से पूर्व दाने-दाने को मोहताज और मृत्यु सिंघई जी ने दमोह में सभी अखाड़ों का संगठन बनाकर के बाद ससम्मान राजकीय शोक के साथ अन्त्येष्टि, दशहरा महोत्सव प्रारम्भ कराया था। 1931 में आप यही दशा रही है इस देश के स्वातन्त्र्य सैनिकों गिरफ्तार हुए और रायपुर जेल भेज दिये गये। 1933 की। श्री गोपाल लाल कोटिया इसके जीते-जागते में 58 वर्ष की उम्र में आपका निधन हो गया। उदाहरण हैं।
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प्रथम खण्ड
149 श्री गोपाललाल कोटिया का जन्म पौष शुक्ल सहभागिता के कारण बूंदी राज्य ने पं0 नयनूराम पूर्णिमा वि0 सं0 1940 (1883 ई0) को वैभवशाली शर्मा और कोटिया जी को बूंदी कैदखाने में कैद कर धन-सम्पन्न परिवार में, श्री केसरीसिंह कोटिया के दिया और कड़ी यातनायें दीं। पैरों में दस-दस सेर बर बूंदी (राजस्थान) में हुआ, व्यायाम के विशेष की बेडियाँ डाली गईं और खाने को सड़े जौ की शौकीन गोपाललाल जी 5 किलो दुध पीकर प्रतिदिन रोटियाँ दी गईं। इस तरह तीन वर्ष तक बिना मुकदमें जन-जागृति की योजनाएं बनाया करते थे। उनका के ही आपको कैद में रहना पड़ा, कोटिया जी की वैभव उन्हें अपने में अवलिप्त न कर सका. वैभव सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई और 3 जबरदस्ती यह सम्पन्न परिवार को लात मारकर आप 15 वर्ष की लिखवाने का प्रयास किया गया कि 'यह सम्पत्ति उम्र में समाज सेवा हेतु निकल पड़े। उसी उम्र में एक सरकारी कर्जे की अदायगी में दी जाती है।' पुस्तकालय खोला और लोगों को घर-घर जाकर जेल से रिहा होने पर कोटिया जी को बूंदी राज्य निःशुल्क पढने की प्रेरणा देने लगे, गरीबों की सहायता से निर्वासित कर दिया गया, फिर भी वह चोरी-छिपे उनका मिशन बन गया।
बूंदी जाते रहे। 1942 के आंदोलन में भी आपको बंग भंग के विरोध में आन्दोलन प्रारम्भ होने पर गिरफ्तार कर एक वर्ष की सजा दी गई और रिहा आपने अपने विदेशी वस्त्र आग में जला दिये और होने पर पुनः बूंदी राज्य से निर्वासित कर दिया गया। स्वदेशी का प्रण किया. जो जीवन के अन्त तक चलता 1940 में आपने कोटा रहा। जब इतने से संतोष न हुआ तो बम्बई गये और छात्रावास खोला था, जिसमें क्रान्ति की शिक्षा दी वहाँ से पूना चले गये। पूना में श्री माधव राज सप्रे जाती थी। 1944 में कोटा में 144 धारा तोड़ने पर से आपकी मुलाकात हुई और वहीं आजन्म नि:स्वार्थ भी आप सात दिन जेल में रहे थे। कोटा व बूंदी में देशसेवा का प्रण लिया, क्रान्तिकारी होने का प्रशिक्षण प्रजामण्डल की स्थापना आपने ही की थी। भी वहीं पाया। लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, ठाकुर महात्मा गांधी के बलिदान के बाद कांग्रेस में केसरी सिंह, श्री अर्जुन लाल सेठी, श्री विजय सिंह बढ़ रही अवसरवादिता से खिन्न होकर कोटिया जी पथिक आदि से आपका सम्पर्क सप्रे जी ने ही कराया ने कांगेस व राजनीति से सन्यास ले लिया। था। कोटिया जी ने क्रान्तिकारियों को आर्थिक सहायता कोटिया जी विपुल सम्पत्ति के मालिक थे। और हथियार के क्रय में अपना धन लगाना श्रेयस्कर उस जमाने में उनके पास सिनेमाहाल, कोटा व समझा, उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियाँ चलती रहीं। केशवराम पाटन में भारी जमीन तथा बूंदी का वर्तमान पूज्य बापू के सम्पर्क में आने पर आपने क्रान्तिकारी तहसील भवन उन्हीं का था। देशहित के लिए यह रास्ता छोड़कर अहिंसक रास्ता अपनाया, पर अपने उग्र सब कुछ न्यौछावर करने में वे जरा भी नहीं स्वभाव को एकदम नहीं छोड़ सके।
हिचकिचाये। उनका एक पुत्र नवलखचंद व तीन 1920 में नरकेसरी श्री विजयसिंह पथिक बूंदी पुत्रियाँ थीं। जब तक पुत्र ने होश सम्हाला, गोपाल पधारे और आपके घर रहे। उन्हीं के हाथों कोटिया जी लाल जी सब कुछ होम कर चुके थे। उनके पुत्र को ने प्रजामण्डल का उद्घाटन कराया। कोटिया जी घर का खर्च चलाने के लिए एक टेलर मास्टर प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे। पथिक जी ने बूंदी राज्य मौहम्मद के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। कोटिया जी के बरड़ तथा मेवाड़ के बिजौलियाँ इलाके में किसानों की पुत्रवधु ने श्री महेशकुमार जैन, बूंदी को एक के आन्दोलनों का सूत्रपात किया था। आन्दोलनों में साक्षात्कार में बताया था 'मेरे श्वसुर जी को जब
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150
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन सरकार पकड़ती थी तो कंजरों (एक आपराधिक बूंदी में भी जुलूस निकालकर राजकीय सम्मान के जाति विशेष) के साथ रखती थी व बहुत भारी साथ अन्तिम संस्कार किया गया। बेडियाँ पहनाकर रखा जाता था। बेडियों के निशान आO- (1) रा) स्व) से), पृ) 115-117, (2) श्री व घाव उनको मृत्यु तक भोगना पड़े। उनके घाव महेशकुमार जैन (बरमुण्डा) द्वारा प्रेषित परिचय। पूरी जिन्दगी नहीं भरे थे, घावों पर हमेशा पट्टी बांधे
श्री गोपीचंद जैन रहते थे। आर्थिक परेशानी व सरकारी उपेक्षा के
आपका जन्म 1912 के लगभग हुआ। राष्ट्रीय कारण इलाज नहीं हो पाया। हाथों की अंगुलियाँ आन्दोलन में आप साढमल, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) हथेली की तरफ मड गईं थीं।'
के प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय रहे। 1941 व 42 1973 में प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलनों में आपने एक-एक वर्ष का कारावास के सेनानी' ग्रन्थ में पृष्ठ 117 पर श्री सुमनेश जोशी भोगा। ने 'दधीचि ऋषि की अंतिम आकांक्षा' शीर्षक में उनके आ()- (1) प) जै) इ), पृ0 473, (2) जी0सा0रा0अ00 संबंध में लिखा है-'इस समय भी कोटिया जी देशभक्ति में सर्वस्व अर्पण करने को उद्यत हैं। धन तो उनके
श्री गोपीलाल जैन पास है नहीं परन्तु देश की रक्षार्थ दधीचि ऋषि की
सागर (म0प्र0) के श्री गोपीलाल जैन, पुत्र-श्री तरह भक्ति पूर्वक अपनी अस्थियाँ देने का उपयोग वे .
किशोरीलाल का जन्म 1914 में हुआ। आपने 1942 देश की सभ्यता और अखण्डता की रक्षा के लिए करना
के भारत छोड़ो आन्दोलन में 6 माह का कारावास
भोगा। चाहते हैं। यही उनकी हार्दिक कामना है।' इससे पूर्व
आ0- (1) म0प्र0 स्व0 सै), भाग-2, पृष्ठ-20, जोशी जी पृष्ठ-115 पर लिखते हैं-'कोटिया जी
(2) आ) दी0, पृष्ठ-40 आध्यात्मिक साम्यवादी हैं, वे फिलासफर हैं, और उनका रहन सहन भी दार्शनिकों जैसा ही है। लेकिन __श्री गोर्धनदास जैन इस जमाने में, जबकि बुलबुलों को उल्लू न होने का पर्युषण पर्व, वी नि) सम्वत् 2522 गम है, श्री कोटिया जी जैसे व्यक्ति आप से आप (1996 ई0) में अपने आगरा प्रवास के दौरान दिO विस्मृति के गर्भ में छिपते चले जा रहे हैं।'
25-9-96 को एक भव्यात्मा ___हाड़ोती नागरिक मोर्चे की ओर से 15 अगस्त
के दर्शन का सौभाग्य मिला। 1972 को कोटिया जी का सार्वजनिक अभिनन्दन
वृद्धावस्था के कारण जीर्ण किया गया था। इस दिन आपने नयापुरा (कोटा)
होती देह, चेहरे पर झुर्रियां स्थित शहीद स्मारक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।
पर वाणी में ओज, और आज कोटिया जी के निधन की सही तिथि ज्ञात नहीं पर श्री
भी कुछ कर गुजरने की महेश कुमार जैन के आलेख के अनुसार 1975 के
अदम्य लालसा। ये थे श्री लगभग कोटिया जी इन्दिरा गांधी के शासन काल में गोर्धनदास जैन, जो अपनों के बीच 'मास्साब' या जयपुर रैली में उनसे मिलने गये थे, जहाँ उनकी मृत्यु
'मास्टर साहब' उपनाम से विख्यात हैं।
मास्टर र हो गई। इन्दिरा जी के आदेश पर जयपुर में राजकीय श्री गोर्धनदास जैन का जन्म कार्तिक शुक्ल एकम् सम्मान के साथ जुलूस निकाला गया और बाद में वि0 सं0 1970 तदनुसार 30 अक्टूबर 1913 ई0 को
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प्रथम खण्ड
151 गुदड़ी मंसूर खाँ, आगरा (उ) प्र()) में पिता श्रीचंद आपके जेल जीवन का एक संस्मरण है। एवं माता जीवनी बाई के यहाँ हुआ। अभी वे 4 वर्ष आपका नित्य देवदर्शन-पूजन का नियम था। पुलिस के बालक ही थे कि पिता का देहावसान हो गया, आपको रिमाण्ड पर लेना चाहती थी। जब पुलिस तब पितृव्य (चाचा) सुखाराम जी ने आपका आपको लेने जेल पहुँची, आप पूजन कर रहे थे, लालन पालन किया। 1931 में हाई स्कूल परीक्षा पास पूजन के बाद देखा! अचानक पुलिस गायब थी। इस करने के बाद आप श्री महावीर दि0 जैन स्कूल मोती प्रकार पूजा के प्रभाव से आप बच गये। श्री जैन के कटरा (आगरा) में अध्यापक और तीन वर्ष बाद वहीं जेल जीवन के साथी प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री प्रधानाचार्य हो गये। तभी अपनों ने 'मास्साव' नाम दिया चिम्मनलाल जैन ने लिखा है- 'आगरा में हर महीने जो आज तक चला आ रहा है। 1930 में श्री जैन की नौ तारीख को गिरफ्तारी तथा बम विस्फोट का की पहली कविता 'प्रेम से विजय' पल्लीवाल जैन, कार्यक्रम चलता था। मास्टर साहब ने विस्फोट के लेखमाला में छपी, बाद में अनेक लेख आपने लिखे। लिए एक बम एम०एससी) के विद्यार्थी हुकुमचन्द 1937 में आप प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी महेन्द्र जी के जैन को दिया, जो सेठ गली के सिटी पोस्ट आफिस संस्थान- 'साहित्य रत्न भण्डार' से जुड़ गये, तभी में बम का पार्सल करा आया था। जब वह फटा तो 'नागरी प्रचारिणी सभा' से सम्पर्क हुआ, साथ ही बाब आधा फर्नीचर उड़ गया था। मास्टर साहब के भेजे गुलाबराय, डॉ0 सत्येन्द्र जैसे साहित्यकारों के सम्पर्क एक विद्यार्थी ने आगरा कालेज के प्रिन्सीपल की में भी आये।
मेज की दराज में बम रखा था, जिससे मेज छत तक 1930 के आन्दोलन के समय आप 'जैन सेवा उड़कर टूट गई थी। मास्टर साहब ने जैन मन्दिरों से मण्डल' के अधिकारी थे। आपकी प्रेरणा से 'आगरा
अखबार का वितरण कराया, जिसमें मेरी माँ, और जैन मण्डल' ने यह निश्चय किया था कि जैन मंदिरों
बहिन दो-दो, तीन-तीन घण्टे पैदल चलकर अखबार में सभी दर्शनार्थी स्वदेशी वस्त्र पहनकर ही देव-दर्शन
यथास्थान पहुँचाती थीं।' (गो0 अ0 ग्र0, पृ0-123) को जावें तथा पूजन हेतु भी स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग
इसी तरह स्वाधीनता सेनानी श्री रोशन लाल गुप्त करें। 1940 के आन्दोलन में भी आपने भाग लिया
'करुणेश' ने श्री जैन के सन्दर्भ में लिखा हैथा। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में "(महेन्द्र जी के गिरफ्तार होने के बाद 'आजाद आगरा आन्दोलन का नेतृत्व महेन्द्र जी के हाथ में था। हिन्दुस्तान के प्रकाशन का दायित्व) मास्टर गोर्धनदास विशेषत: समाचार-पत्रों के माध्यम से वे जन-जागृति के सबल कंधों पर आ पड़ा। श्री गोर्धनदास साहित्यिक ला रहे थे। ऐसे समय में गोर्धनदास जी ने एक
परिवेश में परिपक्व हो चुके थे। ............ वे विगत साइक्लोस्टाइल समाचार पत्र का सम्पादन और प्रकाशन
सत्याग्रह संग्रामों में 'सिहंनाद' पत्र निकाल चुके थे। स्वयं किया, जिसका नाम 'आजाद हिन्दुस्तान' था। उस उसे बांटने वाले अनेक कार्यकर्ता पुलिस प्रशासन के समय जिसके पास इस पत्र की एक भी प्रति पाई
कोप-भाजन बन चुके थे। खुफिया विभाग के लोग जाती थी, उसे कठोर दण्ड दिया जाता था। गोर्धनदास
हर कोशिश करने पर भी उसके प्रकाशन का पता नहीं जी भूमिगत रहकर इस पत्र का संचालन कर
लगा सके थे। उसी प्रणाली को -'भारत छोड़ो जन-जागति करते रहे, पर अन्तत: 8 मार्च 1943 को आन्दोलन' में श्री जैन ने अपनाया। 'आजाद हिन्दुस्तान'
के बण्डल न जाने कहाँ से कहाँ पहँचा दिये जाते और गिरफ्तार कर आगरा जेल भेज दिये गये। 10 जून 1944 तक आपको जेल की दारुण यातनाऐं भोगनी पड़ीं। खुफिया विभाग के लोग देखते ही रह जाते। सन 1943
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152
स्वतंत्रता संग्राम में जैन की आठ मार्च को सरकार ने श्री गोर्धनदास को घर करते देखे जाते हैं। अनेक धार्मिक आयोजन आपकी दबोचा। आगरा के केन्द्रीय कारावास में जब उन्होंने ओर से हुए है। अनेक बार आपका सम्मान राज्य/नगर प्रवेश किया तो बारह ताला बैरकों में उनकी गिरफ्तारी की ओर से हुआ है। हाल ही में अक्टूबर 1996 में का समाचार बिजली की तरह फैल गया।........ उनकी 'आगरा दि) जैन परिषद्' और 'श्री दि) जैन शिक्षा गिरफ्तारी का पता चलते ही सैकड़ों की संख्या में भीड समिति. आगरा' की ओर से एक वहत अभिनन्दन कोतवाली के दरवाजे पर जमा हो गई।.........आगरा ग्रन्थ आपको भेंट किया गया है। के केन्द्रीय कारागार में अनेक क्रान्तिकारी भी थे। श्री आगे आने वाली पीढी से आप क्या कहना जैन सहित दर्जनों बन्धुओं के गले में पाँचवें कोलम चाहेंगे'। मेरे यह कहने पर आपने कहा कि 'मैं तीन का प्रश्न-चिह्न लगाकर पट्टा लटका दिया गया था। सत्र नई पीढी को अपने अनुभवों से देना चाहूँगायह गर्म अफवाह फैला दी गई थी कि जापानी आक्रमण
(1) दृढ़ संकल्पवान व्यक्ति के मार्ग की बाधायें के समय कांग्रेस जनों ने विद्रोह किया है। जिनके गले ।
स्वयमेव दूर होती रहती हैं। (2) अपने धर्म और इष्ट में तौक डाल दिया गया है, उन्हें शीघ्र ही लाहौर के है
के प्रति अटूट आस्था सभी विपत्तियों को दूर करती किले में (ले) जाकर गोली मार दी जायेगी।"
__ है। (3) देश और समाज की सेवा ऐसा कार्य है, जिसमें (गो) अ) ग्र), पृ0-155)
मनुष्य को विरोध और सहयोग प्राप्त होते हैं। समाजसेवी श्री जैन धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में को विरोध से न घबराते हुए सहयोगियों से सहयोग पटेव अग्रणी रहे हैं वे मनिराजों के परम भक्त हैं। साला सदैव खादी के वस्त्रों को उपयोग करते हैं और आ0-(1) गो) अ) ग्र0, (2) जै) स) रा0 अ0), रेशम चमडे जैसी हिंसक वस्तुओं के पूर्णत: त्यागी (3) प) इ., पृ0-141 (4) साक्षात्कार 25-9-1996 हैं। आप 'आगरा होलसोल कन्ज्यूमर्स' के प्रबन्धक,
श्री गोविन्ददास जैन 'दि) जैन शिक्षा समिति', आगरा के 20 वर्ष से महामंत्री 'आगरा कालेज' व 'नेहरू स्मारक' के ट्रस्टी आदि
श्री गोविन्ददास जैन का जन्म 8 -11-1909 को पदों पर रहे हैं।
पाली, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके जैन पत्रकारिता से आप आरम्भ से ही घनिष्ठ रूप
पिता का नाम श्री फूलचंद से जुड़े रहे हैं। आप 'पल्लीवाल जैन ' वे
था। आप प्रसिद्ध जैन कवि सम्पादक/प्रकाशक, 'जैनदर्शन' के प्रबन्धकर्ता, 'दिगम्बर
श्री हरिप्रसाद 'हरि' के बड़े जैन' के सम्पादक आदि पदों पर रहे हैं। 1963 में
भाई हैं। आपने 'अमर जगत' नाम से अपना स्वयं का पत्र
श्री रघुनाथ विनायक निकाला जो आज भी आपके पुत्र/पौत्र चला रहे हैं।
| धुलेकर से प्रेरणा पाकर जै0स0रा0अ0 के अनुसार “1942 के आन्दोलन में
आपने क्रान्ति स्थल पाली 'पल्लीवाल जैन' पत्र, प्रेस बन्द होने से बन्द हो गया के गौरव को बनाए रखा। 1930 में विदेशी वस्त्रों का था। 1947 तक सरकार ने उसे पुन: प्रकाशन की बहिष्कार किया और जल-विहार (एक जैन समारोह) अनुमति नहीं दी थी।"
के दिन पाली की गली-गली में घूमकर पिकेटिंग ___ जन्मपर्यन्त जिन-पूजा और स्वाध्याय का नियम की। अंग्रेज सरकार के स्थानीय चाटुकारों के आतंक लेने वाले श्री जैन 83 वर्ष की उम्र में भी नित्य पूजा के प्रति जनता में संघर्ष की ज्वाला फूंकी। 1936 के
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प्रथम खण्ड
153 जंगल सत्याग्रह में आपके साहस और धैर्य की पाली
श्री गोविन्दराम जैन की जनता ने भूरि-भूरि प्रशसा की थी। 1941 के आगरा (उ0 प्र0) के श्री गोविन्दराम जैन ने व्यक्तिगत आन्दोलन में 6 माह की सजा आपने झांसी 1942 के आन्दोलन में भाग लिया था। पुलिस के एवं रायबरेली की जेलों में काटी। जेल में अंग्रेजी अनुसार आप स्वाधीनता सेनानी श्री नेमीचंद के सरकार के विरोध में अनेक गीतों की रचना आपने सहयोगी थे। सरकार आपके घर से एक मशीन के की थी। अब भी आप संगीत के क्षेत्र में आध्यात्मिक पूर्जा उठाकर ले गई थी और आपको 2 माह नजर गीतों से प्रभावना करते रहते हैं। आपने अपने जीवन बंद रखकर छोड़ दिया था। का एकमात्र लक्ष्य समाज सेवा बनाया है।
आ)-(1) गो0 अ0 प्र(), पृ0-220, (2) जै0 स) रा) आ)- (1) ) नी0, पृष्ठ-27. (2) जैस0रा0अ0) (3) डॉ.) बाहुबलि कुमार द्वारा प्रेषित विवरण
अ), (3) उ0 प्र0 जै) ध0, पृष्ठ-90 श्री गोविन्ददास सिंघई
श्री गौतमप्रसाद गिल्ला गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित सिंघई जी का स्वयंसेवक के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में जन्म 19 -5 - 1913 को ललितपुर (उ0 प्र0) में हुआ। भागीदारी निभाने वाले होशगाबाद (म0 प्र0) के श्री आपके पिता श्री पन्नालाल जी थे। 1932 में आप एक गौतमप्रसाद गिल्ला, पुत्र-श्री कन्हैयालाल जैन का जन्म वर्ष तक जेल में रहे। परतंत्रता काल में आपने सेनानियों 1 जनवरी 1920 में हुआ। 1938 से ही आप आन्दोलन को यथाशक्ति सहयोग प्रदान किया। स्वतंत्रता प्राप्ति में सक्रिय हो गये। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के के पश्चात् भी आप गांधीवादी विचारधारा को दौरान भोजन-व्यवस्था का भार आप पर डाला गया। फलता-फूलता देखने की कामना करते हुए कार्य करते आपने श्री प्यारेलाल गुरु व डेरिया जी के साथ शराब
बंदी, किसान-संगठन आदि रचनात्मक कार्यों में भाग आ) (1) ) नी0, पृ)-26
लिया। 1942 के आन्दोलन में गिल्ला जी ने दो बार श्रीमती गोविन्ददेवी पटआ
जेल यात्रायें की। आप होशंगाबाद जेल में रहे। स्वतंत्रता की वेदी पर सहर्ष कष्ट झेलने वाली आपके भाई श्री बाबूलाल गिल्ला भी आन्दोलन में वीर महिलाओं में कलकत्ता की श्रीमती गोविन्ददेवी सक्रिय रहे थे। पटुआ अग्रगण्य थीं। गांधी जी ने जब 'असहयोग' का आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै, भाग-5, पृ0--328, (2) शंख फूंका तब श्रीमती पटुआ ने बड़ा बाजार, कलकत्ता स्व) स) हो), पृ0-113 की विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने वाले जत्थों
श्री चन्दनमल जैन का नेतृत्व किया। 1928 में जब साईमन कमीशन भारत
___श्री चन्दनमल जैन, पुत्र- श्री फतेहचंद जैन का आया तो उसका प्रबल प्रतिरोध हुआ एवं बहिष्कार किया गया। श्रीमती पट आ दम बहिष्कार में अगणी जन्म राजगढ़ (म0प्र0) में हुआ। आपने कक्षा 8 तक थीं। 1942 के करो या मरो आन्दोलन में भी वे अग्रणी शिक्षा प्राप्त की। आप प्रजामंडल की यूनिट के रहीं, फलत: आपको गिरफ्तार कर लिया गया एवं जेल अध्यक्ष भा रह। स्वतंत्रता आदालन में कुल 25 दिन की यातनाएं दी गईं।
की सजा आपने भुगती। आर)- (1) इ) अ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ- 373
आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0 5/112
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श्री चन्दनमल कूमठ
Led
श्री चन्दनमल कूमठ का जन्म 1914 में नारायणगढ़ (मन्दसौर) म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री मूलचंद कूमठ था। आपका मत था कि 'जब तक हम अपने देशवासियों में जागरण की भावना पैदा नहीं करेंगे, तब तक हमारे सत्याग्रह और आंदोलन उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते। अशिक्षा छुआछूत, कुरीतियां, सामाजिक रूढ़ियाँ और वर्गभेद आदि नहीं मिटाया गया तो हम कभी स्वराज्य नहीं ला सकते और यदि मिल भी गया तो उसे टिका नहीं सकते।'
प्रजामण्डलों के कार्यक्रमों को पूरे मनोयोग व योजनाबद्ध तरीके से चलाने में आप अपने साथियों में सदैव सराहे जाते थे। अफीम कटोत्री काण्ड में प्रजामण्डल के निर्देश पर विद्यार्थी जी के नेतृत्व में जब कूमठ जी ने गांव-गांव जाकर किसानों को संगठित किया और सरकार के विरुद्ध वातावरण बनाया तब सरकार तिलमिला उठी और खीजकर पुलिस ने विद्यार्थी जी व कूमठ जी को गिरफ्तार कर लिया। दो साल तक मुकदमा चला, बाद में दोनों को मनासा कोर्ट ने ससम्मान बरी करते हुए पुलिस को ताड़ना दी और भविष्य में इस प्रकार भूल नहीं दोहराने की हिदायत भी दी।
कूमठ सा) ने श्री हार्टन के सम्मुख नारे लगाए थे कि 'हार्टनशाही मुर्दाबाद', 'लालफीताशाही मुर्दाबाद', 'विदेशी गोरे लंदन जाओ', 'भारत माता की जय', 'महात्मा गांधी की जय'। यह उस समय की बात है जब भानपुरा (म0प्र0) में पुलिस आंदोलनकारियों पर जुल्म ढा रही थी। हार्टन स्वयं गरोठ गये थे और वहाँ से लौट रहे थे।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
कूमठ जी का साहसी व दबंग व्यक्तित्व त्याग तपस्या एवं राष्ट्रधर्म से अभिषिक्त था। वे जेल गये और जेल से छूटते ही फिर पहले से भी अधिक जोश के साथ काम में जुट गये। उन्हें जितना भी तपाया गया वे उतने ही अधिक खरे होते गये। विद्यार्थी जी के साथ निमाड़ तथा कुछ समय तक झाबुआ क्षेत्र में भी आपने सेवा कार्य तथा जनजागरण का कार्य किया था।
आ०- (1) म0प्र0 स्व) सै), भाग 4, पृष्ठ 214, (2) स्व) स) म०, पृ0 58-59
श्री चन्द्रभूषण पुरुषोत्तम बानाईत
विधि स्नातक श्री चन्द्रभूषण पुरुषोत्तम राव बानाईत का जन्म ग्राम - साबंगा, तहसील - सौंसर, जिला-छिन्दवाड़ा (म0प्र0) में 7 जून 1919 को हुआ। आपके पिता श्री पुरुषोत्तम राव इस क्षेत्र के गणमान्य तथा प्रभावशाली व्यक्ति थे, वे लोकल बोर्ड के अध्यक्ष जीवन के आखिरी काल तक रहे, परिणामतः चन्द्रभूषण जी को राजनीति विरासत में मिली। पुराने म०प्र० के नागपुर में 'राष्ट्रीय युवक 'संघ' नामक एक क्रान्तिकारी संगठन था । इसके माध्यम से चन्द्रभूषण जी पूज्य महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे, काका कालेलकर, दादा धर्माधिकारी आदि व्यक्तियों के सम्पर्क में आये ।
1942 में जब बानाईत जी लॉ कालेज में पढ़ते थे तब गांधी जी के आह्वान पर भारत छोडो आन्दोलन में सहभागी हुये। 1942 में ही नागपुर तेलनखेडी बमकाण्ड में आपको अभियुक्त बनाया गया, फलत: नागपुर जेल में ग्यारह माह तक बन्द रहे। जेल से छूटने के बाद 1943 में महाराष्ट्र के छात्रों का सम्मेलन आपने किया, जिसका उद्घाटन महाराष्ट्र के महान् क्रान्तिकारी नेता सेनापति बापड़ जी ने किया, इस सम्मेलन में यूनियन जैक जलाया गया था, परिणामस्वरूप पुनः आपकी गिरफ्तारी हेतु वारंट जारी किया गया, लेकिन
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प्रथम खण्ड
सरकार गिरफ्तार न कर सकी। 1946 में सम्पन्न 'अखिल भारतीय युवक सम्मेलन' के आप संयोजक तथा स्वागताध्यक्ष थे। इस सम्मेलन का उद्घाटन कांग्रेस अध्यक्ष डॉ() पट्टाभिसीतारामैया ने किया था। आप 1948 में पंडित जी एवं श्री रफी अहमद किदवई की प्रेरणा से निर्मित 'अखिल भारतीय युवक कांग्रेस' के भी स्वागताध्यक्ष थे।
रूस में सम्पन्न विश्व युवक महोत्सव में पं() जवाहर लाल नेहरू की प्रेरणा से भारत युवक समाज का एक प्रतिनिधि मण्डल भी गया था, जिसमें बानाईत जी भी थे। आप हंगरी और पोलेण्ड के युवकों के निमन्त्रण पर इन देशों में गये और भारत की सांस्कृतिक परम्परा को विशद् रूप से प्रस्तुत किया। आप सौंसर क्षेत्र जनपद पंचायत के अध्यक्ष रहे हैं। 'जनतन्त्र' (पाक्षिक पत्रिका) नागपुर के सम्पादक मण्डल के सदस्य भी आप रह चुके हैं लोकसेवा संघ के संयोजक के रूप में भी आपने काम किया है।
आ) - ( ! ) स्व) प), (2) श्री रतन चंद जैन जबलपुर द्वारा प्रदत्त परिचय
श्री चन्द्रसेन जैन 'नेताजी'
'नेताजी' उपनाम से विख्यात, भिण्ड (म0प्र0) के श्री चन्द्रसेन जैन का जन्म पिता श्री ललित बिहारी एवं माता श्रीमती रामश्री की बगिया में 1-1-1926 को हुआ। आप विद्यार्थी काल में ही पढ़ाई छोड़कर आन्दोलन में कूद पड़े, फलत: शिक्षा का क्रम टूट गया। आप ग्वालियर सार्वजनिक सभा स्टेट कांग्रेस
के कार्यकर्ता बन गये।
1942 में प्रदर्शन के समय लाठी चार्ज में आपके बायें पैर के घुटने की हड्डी टूट गई, आप पकड़े गये। थाने में पुलिस ने गांधी टोपी उतारने का आदेश दिया,
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पर आजादी के दीवाने ऐसे आदेशों की परवाह कहाँ करते, आपने टोपी नहीं उतारी, जिस पर पुलिस ने पिटाई की, शरीर पर चोटें आई, जिनके निशान आज भी हैं। कम उम्र होने के कारण आपको छोड़ दिया गया, बाद में आप भूमिगत रहकर कार्य करते रहे। आपके साथियों में श्री अमर सिंह एवं रघुवीर सिंह कुशवाह के नाम प्रमुख
आप सोशलिस्ट पार्टी भिण्ड के नगरमंत्री, दिगम्बर जैन मंदिर परेट के अध्यक्ष, दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मंदिर के मंत्री आदि पदों पर हैं। प्रमुख समाज सेवी हैं। म०प्र० शासन ने आपको सम्मानित किया है।
आ)- (1) स्व० प० तथा प्रमाण पत्र
श्री चम्पालाल फूलफगर
लाडनूँ नगरपालिका के जन्मदाता श्री चम्पालाल फूलफगर का जन्म 27 दिसम्बर 1905 को लाडनूँ (राजस्थान) के एक ओसवाल परिवार में हुआ। वे बचपन से ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे थे। लाडनूँ में निर्वाचित नगर परिषद् की स्थापना करवाने में उन्होंने अथक परिश्रम किया था। मारवाड़ लोकपरिषद् की स्थापना के बाद वे परिषद् के सदस्य बन गये और उसकी संगठनात्मक प्रवृत्तियों में भाग लेने लगे। वे लोकपरिषद् के आन्दोलन में भाग लेने की तैयारी कर चुके थे कि अकस्मात् 21 अक्टूबर 1942 को उनका देहावसान हो गया । लाडनूँ के एक मार्ग का नाम उन्ही के नाम पर 'चम्पालाल फूलफगर मार्ग' रखा गया है।
आ) (1) रा) स्व0 से), पृ0-717
श्री चाँदमल चोरड़िया
अन्याय के विरुद्ध जन्मजात बागी श्री चाँदमल चोरड़िया का जन्म 1874 में आगरा (उ0प्र) में हुआ। आपके पिता का नाम बाबू गुलाबचंद था, जो आगरा में जवाहरात का व्यवसाय करते थे और जिनकी फर्म
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन की बडी साख थी। चाँदमल जी बड़े निरभिमानी और का नाम श्री भागीरथ मेहता था। झाबुआ में आपने श्री विचारशील वकील थे। आप सदा सच्चे मुकदमे ही कन्हैया लाल वैद्य के साथ स्वतंत्रता के लिए काम लेते थे। आपके इस सिद्धांत से प्रभावित होकर जज किया, फलतः वहाँ का राजा नाराज हो गया और लायड़ साहब ने लिखित रूप में आपकी प्रशंसा की तरह-तरह के जुल्म ढाने लगा। उसके दमन से तंग थी। अक्सर आपको विवाद निपटाने हेतु कमिश्नर नियुक्त आकर आप रतलाम आ गये। आपकी शिक्षा मात्र मेट्रिक किया जाता था।
ही थी, पर प्रत्येक विषय की गहन पकड़ आप में चोरड़िया जी गांधी जी के अनन्य भक्त थे, आप थी। 193! से आप पूर्णतः राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ जीवन पर्यन्त खद्दरधारी रहे। आगरा में कांग्रेस के पाँच गये, 1938 में रतलाम में उत्तरदायी शासन की मांग वर्ष तक प्रधान रहे। 1921 से आप गाँधी जी के के साथ राज्य प्रजामंडल की स्थापना की व इसके असहयोग आन्दोलन से जुड़ गये, फलतः अनेक बार प्रथम महामंत्री हुए। कुछ कम्युनिस्ट साथियों के साथ जेल गए। एक बार बीच बाजार में गोरा (अंग्रेज) शासक मजदुर किसान आन्दोलन में भी आपने भाग लिया। एक व्यक्ति को कोड़े मार रहा था- आपसे रहा नहीं 1940 में 'रतलाम राज्य षडयंत्र केस' में आप गिरफ्तार गया और उस एवज में खद कोडों के शिकार ह। कर लिये गये। राजद्रोह षडयंत्र आदि अनेक धाराओं भरी- पूरी वकालत को लात मारकर स्वतंत्रता आन्दोलन के अन्तर्गत मुकदमा चला। वैरिस्टर मीनू मसानी आपके को समर्पित हो जाना उनकी देशभक्ति एवं गांधी जी बचाव पक्ष के वकील थे। कोर्ट द्वारा आपको 10 वर्ष के प्रति गहरी आस्था का परिचायक है। सामाजिक (या 7 वर्ष) की सजा मिली। पूज्य गांधी जी के कहने सुधारों के प्रति भी आप सदा जागरूक रहते थे। पर श्री के) एम) मुंशी ने हाईकोर्ट में पैरवी की, फलत: ओसवाल महासम्मेलन के मुखपत्र 'ओसवाल सुधारक' सजा घटाकर 3 वर्ष कर दी गई। 1942 में आपकी का आगरा से सफल सम्पादन आपने किया था। 1938 अन्य राज्यबन्दियों के साथ रिहाई हुई। 1978-79 में में आपका देहावासन हो गया।
आपका स्वर्गवास हो गया। आ)- (1) इ) आ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ 399-400, (2) आ0- (1) म.प्र) स्व) सै), भाग--4, पृष्ठ-192, (2) जै) स) रा) अ), (3) उ0 प्र0 जै0 ध0, पृष्ठ-89, (4) गो0 अ0 रतलाम के वरिष्ठ स्व0 सं) सै) श्री दलीचंद जैन द्वारा प्रेपित परिचय। ग्रा), पृष्ठ 220
श्री चितरंजन कुमार श्री चाँदमल जैन
संगीतकला प्रेमी मध्य प्रदेश (मालवा-प्रान्त) झाबुआ (म0प्र0) के श्री चाँदमल जैन, पुत्र--श्री के श्री चितरंजन कमार 1942 में विद्यार्थी अवस्था में रतनचंद का जन्म 1909 में हुआ। आपने 1930 से ही गिरफ्तार कर लिये गये थे। निर्माण पथ में 1947 तक के सभी आन्दोलनों में सक्रिय भाग चिरन्तन रत रहने वाले श्री कुमार काफी समय तक लिया। आजादी के बाद शासन ने प्रशस्ति पत्र प्रदान राष्ट्रीय सेवक दल के प्राणवान सदस्य रहे। आपने कर आपको सम्मानित किया है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम0 ए0 किया था। आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-4, पृ0 140
आ0-(1) जै0 स0 रा) अ), पृ0-75 श्री चाँदमल मेहता
श्री चिन्तामन जैन श्री चाँदमल मेहता का जन्म 23 फरवरी 1904 श्री चिन्तामन जैन, पत्र-श्री दशरथ लाल जैन को सारंगी (झाबुआ) म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का जन्म दमोह (म0प्र0) जिले के पटेरा के निकट
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प्रथम खण्ड
157 बमनपुरा ग्राम में 1913 में रहे हैं। शासन आपको क्रान्तिकारी मानता था। आप हुआ। आपकी रुचि सक्रिय सर्वोदय कार्यकर्ता के रूप में भी विख्यात हैं। देश-सेवा एवं सामाजिक आ0- (1) प0 50, पृ0-141, (2) जै0 स) रा) अ), कार्यों में बचपन से ही रही
ही (3) उ0 प्र0 जै) ध0, पृ0-90, (4) श्री महावीर प्रसराद जी
) 30
अलवर द्वारा प्रेषित परिचय, (5) गो0 अ0 ग्र0, पृ0 220 221 अत: आप घूम-घूमकर देश को स्वतंत्र कराने की भावना
श्री चिरंजीलाल वैद्य लोगों में जागृत करते रहे। श्री चिरंजीलाल जैन का जन्म 1917 में सोलह वर्ष की उम्र में ही आप भारतीय अधिनियम
ग्राम-पारना (बाह), जिला-आगरा (उ0प्र0) में हुआ। की धारा 379 आई0पी0सी0 के अन्तर्गत दिनाक बाह में विद्याध्ययन के समय आप रा0 आ0 में कद 4-9-1930 से 3-1-1931 तक केन्द्रीय जेल पडे। 1932 एवं 1942 के आन्दोलनों में आपने जबलपर में रहे। जल से छूटने क पश्चात् आपका सक्रिय भाग लिया था। 18 मार्च 1941 को आप बाह सम्पूर्ण जीवन कटई (दमोह) में बीता।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये और अक्टूबर में आ() (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-47 तथा
रिहा हुए। आप अपने निजी प्रेस 'कल्याण प्रिटिंग' (2) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-2, पृष्ठ-82, (3) श्री यशवंत शास्त्री, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय।
का संचालन भी करते थे, जिसमें शासन के विरुद्ध
पर्चे आदि छापते थे। पता लगने पर प्रेस बन्द हो श्री चिन्तामन जैन
गया। 1942 के आन्दोलन में आप भूमिगत रहकर आजादी के दीवाने श्री चिन्तामन जैन का जन्म कार्य करते रहे। उन दिनों आप भिण्ड, मुरैना ग्वालियर, टड़ा (सागर) म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का नाम मन्दसौर आदि स्थानों पर रहे। उसी समय आप पूज्य श्री लालचंद जैन था। लगभग 75 वर्ष की उम्र में बापू के सम्पर्क में आये और वर्धा में उनके सान्निध्य आपका निधन 1992 में हुआ। आप 30 वर्ष सागर में में रहकर देशसेवा, राजनीति और समाजसेवा का व्रत रहे। पुलिस चौकी में झंडा लगाने पर आपको लिया। व्यवसाय से वैद्य होने के कारण आप भदावर गिरफ्तार कर लिया गया अत: 18 सितम्बर 1942 से क्षेत्र में काफी लोकप्रिय नेता हैं। धार्मिक सेवा में 8 अक्टूबर 1942 तक जेल की दारुण यातनायें आपका सहयोग अग्रगण्य है। आपने स्कूल और आपको भोगनी पडी।
धर्मशालायें प्रारम्भ कराई हैं जो आज फल-फूल रही ___आ)- (1) सागर जिले के स्व) सेनानी-सूची, (2) श्री हैं। जिनमें भदावर (डिग्री) कालेज प्रमुख हैं। मुलायम चंद जैन टड़ा द्वारा प्रदत्त परिचय
आ) (1) श्री रामजीत जैन एडवोकेट द्वारा प्रेषित परिचय,
(2) 30 प्र) जै0 ध0, पृ0-92, (3) ल) जै।) इति0, (4) गो) बाबू चिम्मनलाल जैन 'नेताजी'
अ0 ग्र), पृ-221 'नेताजी' उपनाम से ख्यात, आगरा (उ0प्र0) निवासी बाबू चिम्मनलाल जैन, पुत्र- श्री गोपीचंद जैन
श्री चुन्नालाल जैन को 1942 के आन्दोलन में ध्वंसात्मक कार्य करने के चरथावल, जिला-मुजफ्फरनगर (उ0प्र0) के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। किन्तु जब श्री चुन्नालाल जैन का जन्म 1908 ई0 के लगभग अपराध साबित नहीं हो सका तो नजर बंद कर दिया हुआ। 1942 के आन्दोलन में 'अंग्रेजो भारत गया। आप वार्ड कांग्रेस कमेटी के उत्साही कार्यकर्ता छोड़ो' का नारा बुलन्द करने के कारण लम्बे समय
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तक आपको जेल की दारुण यातनाएं भोगनी पड़ीं। आजादी के बाद श्री जैन ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आप अन्तिम समय तक श्री गाँधी इन्टर कालेज चरथावल के प्रबन्ध क. अध्यक्ष, मार्ग-निर्देशक आदि पदों पर रहे। आपका निधन मई 1992 में हुआ।
आ) (1) जैन मित्र 10 अप्रैल 1941 (2) दैनिक अमर उजाला, मेरठ, 12 मई 1992
श्री चुन्नीलाल जैन
भारत माता गुलामी की जंजीरों से त्रस्त थी । भारत के गण्यमान नेता अपनी भारत माता को विदेशीय शक्ति से छुटकारा दिलाने के लिए भारत की जनता को जगा रहे थे। प्रत्येक ग्राम की जनता के हृदय में विदेशियों के प्रति अग्नि की ज्वाला भड़क उठी थी। इस पुनीत कार्य में ग्राम पिण्डरई का जनसमूह भी पीछे नहीं था । पिण्डरई के बाल, वृद्ध व नवयुवक राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत थे। इनमें श्री चुनीलाल जैन, पुत्र-श्री पन्नालाल जैन का नाम
अग्रगण्य है।
चुन्नीलाल जी का जन्म 1920 में हुआ। आप की शिक्षा पिण्डरई में ही हुई थी। राष्ट्रहित को प्रधानता देने के कारण आप अपनी पढ़ाई से पिण्ड छुडा कर कांग्रेस कार्य में व्यस्त रहने लगे। 1936 में आप पिण्डरई से नैनपुर आकर कपड़े की दुकान का भार सम्हालने लगे । त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में चुन्नीलाल जी ने स्वयंसेवक के रूप में कार्य किया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने सक्रिय भाग लिया। अगस्त 1942 के आन्दोलन में चुन्नीलाल जी पीछे नहीं रहे। आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण विदेशी सरकार ने 2 सितम्बर 1942 को आपको
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
मण्डला जेल में बन्द कर दिया। निरन्तर छः माह तक जेल के कष्टों को सहन कर 1 मार्च 1943 को जेल से रिहा हुए।
आण
(1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृ0 207, (2)
स्व) प)
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श्री चुन्नीलाल जैन
ग्राम-विनौका, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी और जबलपुर प्रवासी श्री चुन्नीलाल जैन, पुत्र श्री भागीरथ ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 1 माह का कारावास भोगा ।
(आ) (1) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-24, (2) आ दी), पृ0-42
श्री चुन्नीलाल जैन
जबलपुर ( म( प्र ( ) ) के श्री चुन्नीलाल जैन, पुत्र - श्री मूलचन्द ने भारत छोड़ो आन्दोलन में 17 सितम्बर 1942 से 15 जनवरी 1943 तक का कारावास सागर जेल में भोगा।
आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-1, पृ0-48
बाबू चेतराम जैन
जुर्माना अदा न करने पर जिनकी सारी सम्पत्ति ही नीलाम कर दी गई, पर जो झुके नहीं, ऐसे बाबू चेतराम जैन का जन्म कटंगी, तहसील - पाटन, जिला - जबलपुर (म0प्र0)) में हुआ। श्री जैन लगनशील, साहसी एवं कर्मठ राष्ट्रसेवी थे। 1930 से 1942 तक के सभी आन्दोलनों में वे जीवटता से सक्रिय रहे । प्रथमतः जंगल सत्याग्रह के दौरान आप गिरफ्तार हुए और चार माह की कठोर कैद तथा 100/- रु0 का जुर्माना पाया, पर ' आजादी के दीवानों ने कभी जुर्माना भरा है क्या?' आपने भी जुर्माना अदा नहीं किया फलतः आपकी सम्पत्ति नीलाम कर दी गई। पाटन तहसील में कांग्रेस संगठन को सशक्त बनाने में आपका प्रयास आज भी स्मरण किया जाता है। 1942 के आन्दोलन में आप पुनः गिरफ्तार हुए और सित
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प्रथम खण्ड
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1942 से दिसम्बर 1943 तक लगभग 15 माह की
जब आप अध्ययनरत दारुण यातनाएं जबलपुर जेल में भोगीं। बाद में आप
थे तब पं0 जवाहर लाल किसान आन्दोलन से भी सम्बद्ध रहे। 1966 में
नेहरू टीकमगढ़ (तत्कालीन आपका निधन हो गया।
ओरछा राज्य) आये। पर आy () म) 90 स्व) सै, भाग-1, पृ0-48.
निषेध के कारण टीकमगढ़ (2) स्वा मा पा), पृ. 117
की सीमा में प्रविष्ट नहीं हो श्री चैनदास लोढ़ा
सके, फलत: उत्तर प्रदेश के इन्दौर ( मा प्र0) के श्री चैनदास लोढा. पत्र-श्री सीमावर्ती ग्राम खिरिया में उन्होंने सभा की। श्री जैन हरिदास लाढा का जन्म । अक्टूबर 1922 को उस सभा में गये थे। पं) नेहरू के भाषण से हुआ। 1942 के स्वाधीनता संग्राम में भाग लने पर प्रभावित हो आपने 30 सितम्बर 1937 में टीकमगढ आप 2 माह इन्दौर जेल में नजरबंद रहे तथा मण्डले के झण्डा आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और वर जेल में एक वर्ष का कारावास आपने भोगा था। आरछा सवा संघ' के सक्रिय सदस्य बनकर अपने
आ) (1) मा प्र) स्वा) सै0, भाग 4, पृ0.20, सहपाठी प्रसिद्ध शहीद श्री नारायण दास खरे के साथ (2) पत्र श्री ज्ञा। सिंह लोढा द्वारा प्रेषित पत्र
कार्य करने लगे। राज्य सरकार ने इस पर आपको श्री छक्कीलाल जैन
पकड़वाकर उ0प्र0) के सीमावर्ती कस्वा मऊरानीपुर
में छुड़वा दिया और टीकमगढ़ से ढाई वर्ष को ग्राम लौंडी भड़ोकर (तत्कालीन-विन्ध्य प्रदेश)
निष्कासित कर दिया। आप समीपवर्ती ग्रामों में के श्री छक्कीलाल जैन, पुत्र- श्री दौलत जैन 1937_
घूम-फिर कर स्वतंत्रता की अलख जगाते रहे। से ही कांग्रेस के कार्यकर्ता हो गये थे। 1939 कं थौना लहारी झण्डा आन्दोलन के समय अपने गांव
पड़ौसी रियासतों में उत्तरदायी शासन हेतु चलाये
गये लगभग सभी आन्दोलनों में आपने भाग लिया, में झण्डा फहराने के कारण 22-2-193) को आपको
गिरफ्तार हुए और पुलिस की मार खायी। आपने गिरफ्तार किया गया। ओरछा अदालत ने 3-3-1939
मैहर, नागौद, चरखारी, रीवां आदि राज्यों में सत्याग्रह को तीन माह की सजा व 50/- रुपये का अर्थदण्ड
करवाये । आप 1942 से 47 तक टीकमगढ़ कांग्रेस आपको दिया था। 2-1)-1939 को आप जेल से
कमेटी के अध्यक्ष रहे। आपने वहाँ खादी भंडार भी रिहा हुए। आपके भाई श्री राजधर भी आपके साथ
संचालित किया। केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों ने जेल में रहे।
आपको सम्मानित किया है। आ) (1) वि) स्व) स0 10, पृ0-187
आ).. (1) म0 प्र0 स्त्र) सै), भाग-2, पृ0-127, (2) श्री छक्कीलाल जैन लोडुवा स्व) प) (3) वि) स्वा) स) इ), पृ)-152, 190, 305, 350 आदि श्री छक्कीलाल जैन लोडुवा, पुत्र- श्री दुलीचंद
श्री छीतरमल जैन लोडुवा का जन्म वि0सं0 1873 (1916 ई0) में
____ मुरैना (म) प्र0) के श्री छीतरमल जैन, पुत्र- श्री टीकमगढ़ (म) प्र()) में हुआ। आपने प्रारम्भिक
हरगोविन्द का जन्म 1893 में हुआ। आपने माध्यमिक शिक्षा जैन पाठशाला टीकमगढ़ में पाई और लौकिक शिक्षा कक्षा 7 वीं तक स्थानीय सवाई महेन्द्र हाई
तक शिक्षा ग्रहण की और राजनैतिक गतिविधियों में स्कूल में प्राप्त की।
सक्रिय भाग लेने लगे। आप सार्वजनिक सभा के
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सदस्य बने। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी भाषा-शास्त्री भी थे। राजपूताना निवासी होने से आपने भाग लिया एवं जेल में रहे।
उनकी मातृभाषा हिन्दी थी पर वह गुजराती, मराठी, आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सैरा, भाग-4, पृ0-262, बंगाली, तामिल, संस्कृत और अंग्रेजी भी जानते थे। (2) जै) इ.), पृ) 85. (i) जै) । युर), पृ()-228
नई भाषा या नया काम हाथ में लेने की उनकी जैसी श्री छोटेलाल जैन
शक्ति मैंने कहीं और नहीं देखी। आश्रम (साबरमती) 'दिल्ली षडयंत्र केस' अपरनाम 'हाडिॉस बम के स्थापना काल से ही छोटेलाल ने उससे अपना केस' को तो सभी जानते हैं। पर इस केस के एक
था। उनके शब्दकोष में थकान' अभियक्त रहे श्री छोटेलाल जैन को शायद ही कोई के लिये स्थान नहीं था....... ग्राम-उद्योग-संघ स्थापित जानता हो। छोटेलाल जी का जन्म 1892 ई) के हुआ तो घानी का काम दाखिल करने वाले छोटेलाल, आसपास जयपुर के भांवासा गोत्रीय श्री हकमचंद जैन धान दलने वाले छोटेलाल.............उन्हें हलके प्रकार के तृतीय पुत्र के रूप में हुआ। इनके बड़े भाइयों का
के मियादी बुखार ने पकड़ लिया। यह उनके प्राणों नाम आनन्दीलाल तथा नानूलाल था। छोटेलाल जी का
का ग्राहक निकला। मालूम होता है, उन्हें छ: सात विवाह मास्टर मोतीलाल सेठी की पुत्री से हुआ। बचपन
दिन अपनी सेवा कराना भी असह्य लगा। अतः 31 में ही पत्नी का देहान्त हो गया। छोटेलाल जी ने दूसरा
अगस्त, मंगलवार की रात को ग्यारह और दो बजे विवाह करने से इंकार कर दिया। देश के नवयवक के बीच में सब को सोता छोड़कर वह मगनवाडी के उस समय विदेशी सत्ता को आतंक एवं सशस्त्र क्रान्ति कुएं में कूद पड़े। आज पहली तारीख को शाम के द्वारा उलटने के स्वप्न देखा करते थे. छोटेलाल भी चार बजे लाश हाथ में आई। मैं सेगांव में बैठा रात ऐसे नवयुवकों में एक थे। उन्होंने जेल की यातनायें के आठ बजे यह लिख रहा हूँ। छोटेलाल की देह सहीं, अनेक युवकों को क्रान्ति की दीक्षा दी तथा का इस समय वर्धा में अग्नि-दाह हो रहा होगा। क्रान्तिकारी दलों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।
इस आत्मघात के लिये छोटेलाल को दोष देने छोटेलाल जी कान्तिकारी श्री अर्जन लाल सेठी की मुझे में हिम्मत नहीं। उनका नाम 1915 के के निकटवर्ती साथियों में थे। वे राजस्थान के तपस्वी दिल्ली षडयंत्र-केस में आया था. पर उसमें वह बरी जनसेवक श्री रामनारायण चौधरी के सहपाठी थे। श्री हो गये थे। किसी आफिसर को मार कर खुद फांसी जन सावरमती आश्रम में कुछ साल रहकर महात्मा क तख्त पर चढ़ने का स्वप्न वह उन दिनों देखते गांधी के साथ वर्धा चले गये और बाप जी के बदत थे।.............. अपनी तीव्र हिंसक बुद्धि को उन्होंने निकट सम्पर्क में रहे। कुछ दिनों तक आपको महादेव
बदल दिया और अहिंसा के पुजारी बन गये।........ भाई के साथ-साथ बापू के निजी मन्त्री का कार्य
.......... उन्हें इस बीमारी में अपनी सेवा लेना करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। वर्धा में ही आप असह्य मालूम दिया और गहरी पैठी हुई हिंसा को बीमार हो गये। आपने आजन्म देश सेवा की। खुद अपनी बलि दे दी................ छोटेलाल मुझ आपके निधन पर पूज्य बापू ने 'हरिजन सेवक'
अपना देनदार बना कर 45 वर्ष की उम्र में चल (1-9-1937) में लिखा है
बसे। उनसे मैं अनेक आशायें रखता था।" "छोटेलाल की मूक सेवा का वर्णन भाषा वद्ध
आ0- (1) राजस्थानी आजादी के दीवाने, पू) /3-1
तथा बी/117-118 (2) श्री ज्ञानचंद खिन्दूका, जयपुर का 26/10/2001 नहीं हो सकता। ऐसा करना मेरी शक्ति से बाहर है।. का पत्र तथा 'सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय' से पूज्य बापू द्वारा 'हरिजन ............... उनकी बुद्धि तीव्र थी।.............. वे सेवक' में लिखी टिप्पणी
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प्रपा खण्ड
161
छोटेलाल जैन
और प्रजामंडल के माध्यम से जब-तब मौका हाथ आते वीर छत्रसाल की भूमि बुन्देलखण्ड 'वीरप्रसूता ही- 'माँ भारती जिंदाबाद, अंग्रेजो भारत छोड़ो' आदि भूमि' के नाम से जानी जाती है। बुन्देलखण्ड में नारों को बुलंद करता आगे बढ़ता रहा। परिणामस्वरूप
पन्ना, छतरपुर, झाँसी, दतिया, अंग्रेज-शासन (तब इस क्षेत्र में नौगांव एजेंसी थी।) सागर जैसे कछ बडे राज्य के दमन का शिकार भी होता रहा. गिरफ्तार होता रहा उस समय थे, छोटी-छोटी जेल भुगतता रहा पर दमन चक्रों की मार सहते हुए रियासतें तो कई थीं। इसी भी स्वतंत्रता देवी का दामन नहीं छोड़ा। जेल से वापस वीर प्रसूता भूमि के छतरपुर आते देरी नहीं होती कि दूसरे कार्यक्रमों की अगुवाई जिले में प्रसिद्ध तीर्थ तथा करने के लिए तैयार हो जाते।
। मूर्तिकला की अनुपम धरोहर आपने 1939 के जंगल सत्याग्रह में अगुवाई खजुराहो है, जहाँ से 10-15 किलोमीटर दूर की, जंगल कटवाया और दो माह बिना मुकदमा चले शस्य-श्यामला भूमि पर है ग्राम अकोना। इसी अकोना ही राजनगर में बंद रहे। पनः जोर-शोर के साथ के श्री दरबारीलाल जैन के घर 1908 में एक आंदोलनों में भाग लिया। भतपूर्व लोकसभा सदस्य श्री दिन बधाईयां बजने लगीं, जब चार संतानों में इकलौते
रामसहाय तिवारी के साथ नौगांव एजेंसी जेल में पुत्र छोटेलाल का जन्म हुआ। लाडले-दुलारे
साथ-साथ रहे, क्योंकि 'चरण-पादुका गोलीकांड' में छोटेलाल को माता-पिता के स्नेह के साथ-साथ
आप शामिल थे। काफी मार पड़ी थी। पैरों में काफी अपने ताऊजी व बड़ी माँ का भी दुलार भरपूर मिला।
7 चोटें आई थीं, जिससे चलने-फिरने में तकलीफ क्योंकि परिवार में मात्र यही इकलौते पुत्र थे।
शुरू हो गई थी किन्तु भारत-माँ का सपूत बिना लाड्-प्यार ने कुछ विशिष्ठ उपलब्धियां भी दी। स्वतंत्रता प्राप्त करे-चुपचाप बैठने वाला कहां था। हर घर में ही सामान्य शिक्षा का प्रबन्ध हो गया। धीरे- बार एक नया जोश, नया संकल्प मन में उभरता धीरे शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न हुई और इतनी और पन: किसी सत्याग्रह-आंदोलन-धरना-पिकेटिंगबढ़ी कि जैन धर्म के ग्रंथों के अलावा आपने वैद्यक
जुलूस में सोत्साह शामिल हो जाते। 1939 से 1947 और ज्योतिष का गहन अध्ययन किया, जो अंत तक
तक आप कई बार जेल गए। बना रहा ।
___ गांधी जी के करो या मरो आंदोलन के दौरान देश में स्वातंत्र्य आंदोलन धीरे-धीरे चंहु और झंडा लेकर नेतृत्व करते हुए ग्रामवासियों को साथ फैल रहा था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक आवाज में
वाज लेकर आगे बढ़ते गए। जेल में आपका जनेऊ उतार पर देश के नौजवान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आंदोलन
लिया गया और खाने-पीने की जबरदस्ती की गई में भाग लेने हेतु अपने-अपने घरों की, गांवों की, कस्बों
किन्तु स्वतंत्रता की बलि-बेदी पर न्यौछावर होने की दीवारों को लांघ कर बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगे
वाले इस युवक ने सभी कैदियों के बीच सिंहनाद में थे। ऐसे वातावरण में वीर प्रसूता भूमि का यह लाड़ला
घोषणा की कि-'जब तक जनेऊ नहीं मिलेगा और कैसे अछूता रहता। वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद
छना हुआ पानी, तब तक मैं एक बूंद भी अन्न-जल पड़ा। ग्रामों में चुपचाप, स्वतंत्रता की अलख जगाता,
ग्रहण नहीं करूंगा' शासन को झुकना पड़ा और तब गांधी बाबा का संदेश सुनाता, लोगों को एकत्र करता
आपने अन्न-जल ग्रहण किया।
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162
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 1942 से 1944 के मध्य राज्य प्रजामंडल, का जनता में उफान और आक्रोश देखा, जिससे छतरपुर के आदेशानुसार हर आंदोलनों में आपने आपका मन देश की आजादी के लिए तड़फ उठा। शिरकत की, मारे पीटे गए और घायल हुए। 1946 1938 से आप स्थायी रूप से दमोह में बस गये, जैन में लाठी चार्ज में अत्यधिक घायलावस्था में प्रथम पाठशाला में शिक्षक का कार्य किया और खादी श्रेणी मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित किए गए और प्रचार में जुट गये। 10 माह जेल की सजा 30 अप्रैल 47 तक के लिए 1942 के अगस्त आंदोलन में आप खादी सुना दी गई। 300 रुपए जुर्माना किया गया। जुर्माना प्रचार के साथ गुप्त रूप से बुलेटिन बांटने का कार्य अदा न करने पर 2 माह सख्त मशक्कत कंद की करने लगे। 16 अक्टबर 1942 को आपके घर ओर सजा बढ़ा दी गई और फिर माँ भारती की स्वतंत्रता दुकान की असफल तलाशी हुई। पुलिस ने स्वयं की घोषणा के कुछ पहिले 15-5-47 को राज्य का दुकान में बलेटिन रखकर जप्ती की पर्ची बनाई और समझौता हो जाने के कारण रिहा कर दिये गये।।
.. थाने में बुलाकर बन्द कर दिया। चार माह की सख्त स्वतंत्रता की लालिमा बिखरी, देश नवगान में ।
सजा आपको भोगनी पड़ी, फरवरी 1943 में आप झूम उठा। केन्द्रीय एवं राज्य शासन द्वारा स्वतंत्रता
छोड़ दिये गये। संग्राम सेनानियों को कई सुविधायें प्रदान की गईं,
जेल से छूटने के पश्चात् आप खादी और किन्तु आरम्भ से ही स्वाभिमानी होने के कारण श्री
गांधी साहित्य का प्रचार करते रहे। 'गांधी चौक के जैन ने समस्त सुविधाओं को सधन्यवाद नकार दिया,
गांधी' के नाम से विख्यात भास्कर जी का निधन मात्र प्रशस्ति-पत्र सम्हाल कर रखे रहे।
74 वर्ष की अवस्था में दमोह में हुआ। 6 मई 1985 को इस नश्वर शरीर को छोड़कर
आ।)- (1) म0 प्र0 स्वा) से), भाग 2, 10 , (2) श्री आपने संसार से विदा ली।
संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रपित परिचय आ) (1) म.प्र) स्व। सै, भाग-2, पृ0-100, (2) पुत्र अभयकुमार द्वारा प्रषित परिचय एवं अनेक अनुशंसा तथा प्रशस्ति श्री छोटेलाल उर्फ रतनचन्द मलैया पर (3) वि) स्व) स) इ), पृ0-254)
गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र() ) के श्री छोटेलाल श्री छोटेलाल 'भास्कर'
उर्फ रतनचंद मलैया, पुत्र-श्री सजन कुमार का जन्म गांधी साहित्य के प्रचार-प्रसार के शौकीन श्री 1919 में हुआ। आपने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन
में भाग लिया तथा ) माह का कारावास भोगा। छोटलाल ‘भास्कर' का जन्म जबलपुर संभाग के म
आ) (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-2, 40-25. (2) या बिलाई ग्राम में 1912 ई) में
आ। दी), पृ. 44 हुआ। पिता श्री बृजलाल की अपेक्षा माँ का पूरा सहयोग
श्री जड़ावचंद जैन आपको मिला। आपने ब्यावर धार (म) प्र)) के श्री जड़ावचंद जैन, पुत्र- श्री (राजस्थान) में धार्मिक शिक्षा कस्तूरचंद जैन का जन्म फरवरी 1925 में हुआ। ली और 1928 से भारत माँ आपने बोरखेड़ा तथा उपरबाडा जागीरों में स्वतंत्रता
की सेवा में जुट गये। आपने आंदोलन हेतु सक्रिय कार्य किया। महात्मा गांधी के विदेशी वस्त्र बहिष्कार. नमक सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, आह्वान पर आपने हरिजनोद्धार के कार्य किये। भगतसिंह की फांसी, गांधी जी के अहिंसक आंदोलन फलत: आपकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई,
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प्रथम खण्ड
163 परिणामस्वरूप आपको अपना ग्राम भी छोड़ना पड़ा। हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने स्वाधीनता सेनानी श्री दलीचंद जैन, रतलाम की पर 15 दिन का कारावास आपको भोगना पड़ा। सुचनानुसार सम्प्रति आप मद्रास में रह रहे हैं।
आक- (1) म0 प्र0) स्व0 सै), भाग-1, पृ0-53 (2) जै) आ) (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृ0-192
स) रा) आ)
सिंघई जवाहरलाल जैन श्री जड़ावचंद जैन
सिंघई जवाहरलाल जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल जैन 'वृहत्तर निमाड़ आंदोलन' के जनक कहे जाने
1 का जन्म अगस्त 1928 में पनागर, जिला- जबलपुर वाले, विधायक और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष
(म0 प्र0) में हुआ। 1958 रहे श्री जड़ावचंद जैन का जन्म मध्यप्रदेश के
में आप जबलपुर अ गये। मण्डलेश्वर में 1901 में हुआ। शिक्षा-प्राप्ति के उपरान्त
वर्तमान में आप सूरत आप महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वाधीनता संग्राम
(गुजरात) में रह रहे है। आप में कूद पड़े। आपने कई बार जेल-यात्राएँ की थीं।
अनेक वर्षों तक पना र जैन आप 1948 तथा 1952 में दो बार मध्यप्रदेश विधान
समाज के मंत्री रहे। 1986 सभा के सदस्य चुने गये तथा 1948 से 1951 तक
में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे।
गजरथ महोत्सव के आप अध्यक्ष रहे। आपने अपनी प्रसिद्ध स्वतत्रता सनाना श्री हजारीलाल जाड़या जेल याचा के संदर्भ में लिखा है जब मंडलेश्वर किले की जेल में बन्द थे और उन्हें
___स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन 1942 की अगस्त अमानुषिक यातनायें दी जा रही थीं, तब उन्होंने जेल क्रान्ति के समय मेरी उम्र 14 वर्ष की थी. पनागर के के अन्दर से ही इस अत्याचार के समाचार भेजे।
ही भाई रतन चंद जैन, नागपुर कृषि विश्वविद्यालय उनके इस कार्य में श्री जैन ने सक्रिय सहयोग दिया
से एवं पनागर के ही भाई गणेश प्रसाद पांडे बनारस
हिंदू यूनिवर्सिटी से पनागर आये और हम सभी को ____ आप जिस तन्मयता से राजनीति के क्षेत्र में
एकत्रित कर यहां आंदोलन का संचालन किया। मैं अग्रणी रहे उसी तन्मयता से साहित्य तथा संस्कृति
2-9-42 को पनागर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। की भी सेवा की। आपन अनेक पुस्तकें लिखीं तथा
| मझे सैण्टल जेल जबलपर में धारा 129 (11 (A) निमाडी भाषा की अभिवृद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय
य DIR के अन्तर्गत रखा गया बाद में कलैक्टर के कार्य किया । निमाडी भाषा के मर्मज्ञ एवं अध्येता आर्डर से जेल में जो कम उम्र के लडके थे, सभी के रूप में आपकी सेवाएँ अभिनन्दनीय थीं। आपका दिनांक 28-11-42 के करीब छोड़ दिये गये।' निधन चार मई 198! को हो गया।
आपने लिखा है कि- 'आंदोलन करते समय मेरे आ) दिवङ्गत हिंदी सेवी, भाग-2, पृ0-296, (2) मर)
पिताजी एवं अन्य लोग यह कहा करते थे कि जेल प्रा। स्वा। सै0, 'भाग , प्रष्ठ 81 (3) नवभारत, इन्दौर, 1 10-1997, (4) नई दुनिया, इन्दौर, 2008-1997
जाओगे तो वहाँ पर खाने में कांच व मिट्टी मिलेगी।
जब जेल पहुँचा तो यह बात ध्यान में थी। वहाँ शाम श्री जयकुमार जैन
का खाना आया, उस दिन दाल जल गई थी, इसलिए कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री जय उसका स्वाद विचित्र लगा, मैंने बाज वालों से पूछा कुमार जैन, पुत्र- श्री हुकमचन्द का जन्म 1923 में तो पता लगा कि इसमें मिट्टी व कांच नहीं है, दाल
था।
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164
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन जल गई है, इसमें पानी डालकर वह पानी फेंक दो, लूणिया गोत्र के सेठ नागराज रूपराज के वंशज थे। कुछ ठीक हो जायेगी, मैंने वैसा ही किया।' सेठ पूनमचंद जी का अल्पायु में ही प्लेग के कारण
_ 'इस बीच पर्युषण पर्व आ गया, जेल के हमारे देहान्त हो गया था। सर्किल में करीब 40-45 भाई जैन थे। सभी ने इस लणिया जी एकान्त प्रिय और आध्यात्मिक बात को लेकर 'सत्याग्रह' का वातावरण बना डाला वत्ति सम्पन्न साधक थे। आपने एम0 ए0 तक शिक्षा कि 'हम अपने पर्व के दिनों में शुद्ध तथा अपने हाथ ग्रहण की और 1914 में इंदौर चले गये, वहाँ श्री का बना खाना ही खायेंगे।' आखिर सफलता मिली हरिभाउ उपाध्याय के साथ मिलकर 'मालव मयर तथा 10 दिन सामूहिक रूप से सभी बंधुओं ने खाना नामक मासिक पत्र का प्रकाशन किया। आपने इन्दौर बनाया। पूजन भजन साथ हुए।'
के धनकुबेर सेठ हुकुमचंद जी के यहाँ उनके स्वतंत्रता सेनानी होते हुए भी आज तक आपने
प्राइवेट सेक्रेटरी का भी पदभार सम्भाला था। 1916कोई पेंशन या सम्मान निधि नहीं ली है।
17 में आप सार्वजनिक क्षेत्र में कूद पड़े और देश आ)- (1) म) प्र0 स्व0 सै०, भाग-1, पृ0-53, (2) पर)
सेवा को अपना ध्येय बनाया। 1916 में आपने जै) स) इ), पृ0-452, (3) स्व0 40
'हिन्दी साहित्य मन्दिर' की स्थापना की। 1922 में श्री जिनेद्रकुमार मलैया इसका कार्यालय बनारस स्थानान्तरित हो गया। 1924 सागर (म0प्र0) के प्रसिद्ध व्यवसायी में देशभक्त सेठ जमनालाल बजाज से सम्पर्क होने
श्री जिनेन्द्र कुमार मलैया, पर इसका कार्यालय गुजरात स्थानान्तरित करने की पुत्र-श्री मूलचंद ने 1942 के
100 योजना बनाई किन्तु श्री अर्जुनलाल सेठी के सुझाव भारत छोड़ो आंदोलन में भाग
पर 1925 में अजमेर आ गये, बिड़ला एवं बजाज
बन्धुओं के सहयोग से यहीं 'सस्ता साहित्य मण्डल' लिया तथा 4 माह का
की स्थापना की। थोड़े ही समय में यह संस्था अपने कारावास भोगा
राष्ट्रीय प्रकाशनों के कारण देशभर में प्रसिद्ध हो गई। आ0- (1) म0 प्रा) स्व) सै0, भाग-2, पृ0-27, (2) आ)
1930 में अजमेर में आप कांग्रेस कमेटी के दी), पृ0-87
अध्यक्ष चुने गये। भारत सरकार ने इस कमेटी को गैर
कानूनी घोषित कर दिया था। आपका स्वास्थ्य भी श्री जीतमल लूणिया
खराब था, फिर भी आप आन्दोलन में कूद पड़े, 'सस्ता साहित्य मण्डल' नाम क सुप्रसिद्ध प्रकाशन गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और एक वर्ष के कठोर
संस्था के संस्थापक, देशभक्त कारावास की सजा दी गई । जेल से छूटकर श्री जीतमल लूणिया का जन्म सपरिवार सत्याग्रह में भाग लेने लगे। परिणामस्वरूप 15 नवम्बर 1895 ई0 को पत्नी श्रीमती सरदार कुवंर वाई व पुत्र प्रतापसिंह अजमेर (राजस्थान) में हुआ। लूणिया सहित जेल गये। आपके पिता का नाम श्री 1933 में आपने 'अजमेर सेवा भवन' नामक पूनमचंद लूणिया था, जो संस्था की स्थापना की और अछूतोद्धार एवं राष्ट्रोत्थान अजमेर के प्रसिद्ध ओसवाल सम्बन्धी रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। 1940 में पुन:
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प्रथम खण्ड
165 सत्याग्रह में भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो राज्यों की भांति भारत में विलीन किया जाये। इसके आन्दोलन में गिरफ्तार हुए और एक वर्ष के कारावास लिये भोपाल-नवाब श्री हमीदउल्ला खां किसी भी प्रकार की सजा पाई।
तैयार नहीं थे, अतएव यहां की जनता ने आंदोलन की लुणिया जी 'हिन्दी साहित्य कल', 'जैन नवयुवक राह पकड़ी। इस आंदोलन के चलते ही भोपाल-नवाब मण्डल', 'राष्ट्रीय प्रेम विद्यालय' आदि संस्थाओं के का दमन चक्र शुरू हो गया जो बढ़ते-बढ़ते पूरे भोपाल वर्षों तक सभापति रहे। 1938 व 1945 में जब राज्य में फैल गया जिसमें बरेली के पास बोरासघाट अजमेर में प0 जवाहर लाल नेहरू पधारे तब आप पर 14 जनवरी 1949 के दिन 7 लोग नवाब भोपाल स्वागताध्यक्ष थे। 1947 में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की पुलिस द्वारा शहीद हुये। चुने गये और अजमेर में भारत के स्वाधीन होने की जब यह आंदोलन प्रारम्भ हुआ उस समय में घोषणा 15 अगस्त 1947 को कांग्रेस अध्यक्ष की सातवीं कक्षा का छात्र था और मांडल हाईस्कूल में हैसियत से नया बाजार में राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए अध्ययनरत था, यहां पर श्री परमानंद शास्त्री, श्री आपके द्वारा ही की गई थी।
सुरेशचन्द जी एवं अन्य शिक्षक जो आंदोलन को गुप्त देश की आजादी के बाद आप अजमेर नगर रूप से चला रहे थे, गिरफ्तार कर लिये गये। हम लोग परिषद के अध्यक्ष चुने गये। 1973 में 78 वर्ष की जो इन्हीं से शिक्षा ग्रहण करते थे, इनकी गिरफ्तारी उम्र होने पर भी 'अजमेर शराब बन्दी सत्याग्रह से बैचेन हो गये और कुछ करने की स्थिति में विचार आन्दोलन' में आप जेल गये थे।
करने लगे। भाई रतनकुमार जी सम्पादक-'नई राह', . आ(). (1) इ) 0 ओ0, भाग-2, 9-394-395, (2) गुलाबचंद जी तामीट, विष्णुदत्त मिश्रा, डा0 शंकरदयाल अजमेर वार्षिकी एवं व्यक्ति परिचय, पृ0-49, (3) जै)स0रा0अ0 शर्मा आदि बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार किये जा चुके थे,
आंदोलन 14 जनवरी 1949 तक अपनी चरमसीमा पर श्री जीवनचंद जैन
पहुंच चुका था। जबकि आंदोलनकारी बोरासघाट पर साल स्वभावी श्री जीवनचंद जैन के पूर्वज हरदा शहीद हो चुके थे। (म0प्र()) तहसील के भादूगांव से आकर भोपाल में भोपाल में प्रतिदिन प्रभात फेरी निकलती और पदयात्रामा बस गये थे, यहीं श्री जैन का प्रतिदिन गिरफ्तारियां होतीं। उसमें मैं भी भाग लेता था
जन्म 3 जनवरी 1931 को किन्तु छोटी आयु का होने से हर समय गिरफ्तार कर हुआ। आपके पिता का नाम भोपाल नगर से 15-20 मील दूर ले जाकर छोड़ देते श्री हीरालाल जैन था। आपने थे। यह सब चलते हुए मुझे गुप्त रूप से समाचार मिला आई)काम) तथा हिन्दी कि 'बैरसिया जेल में आंदोलन शिथिल हो रहा है और विशारद तक शिक्षा ग्रहण की। वहां का कार्य तुम्हें देखना है' बैरसिया भोपाल से 40
1949 के भोपाल विलीनीकरण कि0मी0 दूर एक कस्बा है, उस समय वहां जाने का आन्दोलन में आपने भाग लिया और जेल यात्रा की। साधन केवल बैलगाड़ी थी। भोपाल से बाहर जाने वालों आपने अपने परिचय में लिखा है कि - 'भोपाल का की सघन चैकिंग होती थी। भोपाल नगर के लोगों को विलीनीकरण आंदोलन दिसम्बर 1948 से प्रारंभ हुआ बाहर ही रोक दिया जाता था, ऐसी स्थिति में वहां कैसे जो 6 फरवरी 1949 को समाप्त हुआ। यह आन्दोलन जाया जाये यह भी एक समस्या थी, किन्तु शीघ्र ही इस बात को लेकर था कि भोपाल स्टेट को भी अन्य इसका हल निकल आया। मेरे भानजे स्व0 श्री मोहन
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166
स्वतंत्रता संग्राम में जैन दास की बारात बैरसिया जा रही थी, मेरे एक भाई दमनकारी नीति और हठवादिता की निन्दा की गई। राजमल जी जैन (बुआ जी के लड़के) विदिशा निवासी तत्पश्चात् मेरी बारी आयी और मैंने भी भोपाल में मेरे पास आये, उनसे इस विषय में चर्चा हुयी और हो रहे नवाब के दमनचक्र का वर्णन किया। बोरास हम लोग बारात में, जो ठेलों में गई थी, निकल गये। घाट के शहीदों का वर्णन किया जिससे लोगों में यह 15 जनवरी 1949 की बात है। जब हम लोग वहां जोश आ गया और वे नवाब के विरुद्ध नारे लगाने पहुंच गये और वहां के लोगों से बातचीत की, जिसमें लगे, जो पुलिस के लिये असहनीय हो गया। अब वहां के निवासी श्री शंकरदयाल सक्सेना एडवोकेट उन्होंने मजिस्ट्रेट के आदेश से हम छः लोगों को प्रमुख थे, उन्होंने वहां की स्थिति से अवगत कराया। तत्काल गिरफ्तार कर लिया और ले जाकर हवालात उन्होंने बताया
में बंद कर उसी दिन चालान पेश कर दिया। हम पर "यहां के स्थानीय नेता सब गिरफ्तार हो चुके सुरक्षा अधिनियम के तहत छः माह की सजा व हैं और यहां कोई नेतृत्व करने वाला नहीं है। यहां 100/- रुपये जुर्माना किया गया, जुर्माना अदा न करने बाजार भी खुलने लगा है। अच्छा हुआ आप लोग आ पर एक माह की और सजा। तत्पश्चात् 18 जनवरी गये हैं मैं गुप्त रूप से आपकी पूरी सहायता कर सकता को भोपाल लाकर यहां के सेन्ट्रल जेल में भेज दिया हँ। अब उन्होंने वहां के उत्साही युवकों से हमारा परिचय गया, हमारे 2 साथी माफी मांगकर छट गये। कराया, जुलूस निकालने व आंदोलन को गति देने का हमें यहां छ: नम्बर की बेरिक में रखा गया यहां आह्वान किया, साथ ही बताया कि ये लोग भोपाल पर पहले से ही 396 आंदोलनकारी बंद थे, जब हम से आपका नेतृत्व करने आये हैं। अब वहां के स्थानीय लोग यहां पर पहुंचे तो सभी बंदियों ने स्वागत किया। लोगों में से चार लोग तैयार हुये जिनमें श्री छोगमल डा0 शंकरदयाल शर्मा जी भी बेरिक में थे। उनसे जी जैन, मन्नूलाल जी सोनी प्रमुख थे। सारी व्यवस्था मेरा घनिष्ठ संबंध हो गया उन्हें जब मालूम पड़ा होने के पश्चात् तय हुआ कि सुबह 7 बजे प्रभात फेरी कि मैं सातवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ तो उन्होंने मेरे घर गंज मौहल्ले से निकाली जायेगी, जो जनता का नेतृत्व से किताबें मंगवाईं और नियमित रूप से मुझे संस्कृत करती हुई पुलिस थाने की ओर बढ़ेगी, वहीं पर तहसील एवं इंगलिश पढ़ाने लगे। हम लोग यहां छ: फरवरी और कोर्ट हैं।
तक रहे। छ: फरवरी 1949 को रात्रि 9 बजे जेल से दिनांक 17 जनवरी 1949 को सुबह 7 बजे रिहा किया गया। मालूम हुआ कि गृहमंत्री सरदार पटेल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हम लोग गंज में एवं भोपाल नवाब के मध्य समझौता हो गया है, भोपाल एकत्रित हुये और वहीं से नारे लगाने शुरू किये, नवाब ने भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया है, जब भीड़ इकठ्ठी हो गई तो जुलूस के रूप में हम इस प्रकार भोपाल का विलीनीकरण आंदोलन समाप्त लोग आगे बढ़ने लगे, भीड़ इकट्ठी होती गई और हुआ, हम लोग फिर से अपने अध्ययन में व्यस्त हो चौपड़ा बाजार तक पहुंचते-पहुचते लगभग चार सौ गये।' । लोग इकट्ठे हो गये। जिनमें बच्चे अधिक थे। चौपड़ा देश की आजादी के बाद से श्री जैन अपने बाजार में पुलिस ने घेरा डालकर जुलूस को रोक व्यवसाय में सलंग्न हैं। 1985 में भोपाल में अन्य लिया, हम लोगों ने जुलूस को सभा के रूप में सेनानियों के साथ तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा0 शंकर परिवर्तित कर दिया और सबसे पहले भाई राजमल दयाल शर्मा द्वारा आपका सम्मान किया गया था। जी जैन ने संक्षिप्त भाषण दिया, जिसमें नवाब की आ)-(1) म0प्र0स्व070, भाग-5, पृ0-14, (2) स्व)पा)
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प्रथम खण्ड
167 श्री जुगमंदिर दास जैन
अपनी दुकान पर जन-जागरण हेतु वर्षों तक बिना श्री जुगमंदिर दास जैन का जन्म 1912 में एटा नागा राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार प्रतिदिन बोर्ड पर (उ) प्र.) में हुआ। अल्पायु में ही आप नौकरी के लिखते रहे। लिये कलकत्ता चले गये। शिक्षा के साधन होने पर कानपुर में अध्ययन-काल में वे क्रांतिकारियों भी जब आप अर्थाभाव के कारण पढ नहीं सके तो के संपर्क में भी आये। अगस्त 1942 के 'अंग्रेजो आपने शास्त्र-स्वाध्याय और जन-सम्पर्क से शिक्षा भारत छोड़ो' आन्दोलन में प्रजामंडल के नेताओं की ली। 1930 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु आप गिरफ्तारी के विरोध में कोतवाली पर प्रदर्शन करती देहली आये। वहाँ से पनः बंगाल गये। 1934 के जनता का नेतृत्व करते हुए इन्हें 13 अगस्त 1942 षडयंत्र केस में गिरफ्तार हए। विभिन्न राष्ट्रीय आन्दोलनों को गिरफ्तार करके कोटा केन्द्रीय कारागृह में नजरबंद में सक्रिय भाग लेकर भी आपने चरित्र, निष्ठा और कर दिया गया, जहां से अन्य नेताओं के साथ 24 धैर्य को सुरक्षित रखा।
अगस्त 1942 को इन्हें भी बिना शर्त रिहा कर दिया ___मनोहारी व्यक्तित्व, सौम्य मुखमुद्रा वाले जुगमंदिर
र गया। तत्पश्चात् श्री जैन स्वाधीनता आंदोलन में और दास जी विद्वानों के अनुरागी थे। आप पद्मावती
अधिक सक्रिय हो गये। 1943 में कोटा में होली के पुरवाल जाति के भूषण थे। 'पदमावती संदेश' के अवसर पर हुये साम्प्रदायिक दंगों में निर्दोष लोगों को जन्म और जीवनदाता आप ही थे।
बचाने के प्रयास में वे गंभीर रूप से घायल भी हो
गये थे। आ) (1) वि0 अ), पृ0-285
आप सत्ता की राजनीति से दूर रहे पर सिद्धान्त श्री जुगलकिशोर जैन
की राजनीति में अपना पूर्ण सहयोग देते रहे। श्री जैन ग्राम-नगला संज्ञा, पोस्ट-अकोस, जिला-मथुरा रूढ़िवाद, दिखावे और फिजूलखर्ची के विरोधी थे। (उ0प्र0) निवासी श्री जुगलकिशोर जैन, पुत्र-श्री स्त्रीशिक्षा के कट्टर समर्थक थे, इसीलिए उन्होंने अम्मन लाल जैन का जन्म एक अक्टू) 1921 को अपनी चारों लड़कियों को बहुत कष्ट सहकर भी हुआ। हाईस्कूल में अध्ययन के समय से ही आप उच्च शिक्षा दिलायी थी। राजस्थान सरकार की स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गये। 1942 के स्वतंत्रता सग्राम सेनानी पेन्शन आपको स्वीकृत हुई आन्दोलन में आप दो छोटे बच्चों की चिन्ता न कर थी। इनके निधन के बाद पेंशन इनकी पत्नी उमरावबाई कूद पडे, गिरफ्तार हुए और एक वर्ष जेल में रहे। को मिल रही है। कट्टर गांधीवादी श्री जैन का ।।
___ आ)- (1) प0 इ0, पृ0 143, (2) श्री महावीर प्रसाद सितम्बर 1985 में निधन का हो गया। जैन अलवर द्वारा प्रेषित प्रमाण पत्र
आ)-- श्री बागमल बांठिया, कोटा द्वारा प्रेषित परिचय एवं श्री जोरावर सिंह जैन श्री जोरावर सिंह जैन का जन्म 1911 में कोटा
श्री जोहरालाल झाझारया (राजस्थान) में हुआ। 1930 में छात्र जीवन से ही वे इन्दौर (म0प्र0) के श्री जौहरीलाल झांझरिया स्वतंत्रता आंदोलन से जुड गये थे। उन्हीं दिनों उन्होंने पुत्र-श्री पन्नालाल झांझरिया का जन्म 1918 में हुआ। राष्ट्रीय समाचार पत्रों की एजेन्सी का कार्य शुरू किया आपने बी0ए0 तक शिक्षा ग्रहण की। विद्यार्थी जीवन
और खादी पहनने का व्रत लिया, जिसे वे जीवन से ही आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। पर्यन्त निभाते रहे। कोटा नगर के केन्द्र में स्थित 1930 के सत्याग्रह आन्दोलन में आपने 1 वर्ष 3 माह
प्रमाण पत्र।
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168
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 6 दिन की सजा माहेश्वर जेल में भोगी। 1942 के जाने से आपका निधन हो गया। आप अपने पीछे आन्दोलन में भी आपने भाग लिया। आपके अन्य दो भरापूरा परिवार छोड़ गये। भाई भी जेल यात्री रहे हैं।
आ0 (1) पुत्र श्री विनोद जैन द्वारा प्रेषित परिचय एवं आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग 4, पृ0 22. प्रमाण पत्र आदि श्री ज्ञानचंद जैन
श्री ज्ञानचंद जैन श्री ज्ञानचंद जैन का जन्म बिजनौर (उ0प्र0) जबलपुर जैन समाज के उत्साही कार्यकर्ता रहे में 1910 में हुआ। आपके माता-पिता आपको श्री ज्ञानचंद जैन, पुत्र-श्री भोलानाथ का जन्म 1913 अल्पवय में ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गये, अतः में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आप 1932 के
आपका पालन-पोषण प्रारम्भ में आन्दोलन में सक्रिय हुये, राष्ट्रीय झंडे को आपके चाचा प्रसिद्ध सत्याग्रह का माध्यम बनाये जाने पर गिरफ्तार किये स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व गये और 6 माह की सजा पायी। 'नेशनल ब्वाय एम0एल0सी0 श्री रतनलाल स्काउट्स' के सदस्य के रूप में समाज के कार्यक्रमों
जैन, बिजनौर की देखरेख में में आपने प्रमुखता से भाग लिया था। 1942 के हुआ। वहीं पर आपने आन्दोलन में आप 1 वर्ष जबलपुर जेल में नजरबंद
इण्टरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त रहे। 1982 में आपका निधन हो गया। की। तत्पश्चात् अपने पूर्वजों की धरोहर की देखभाल आ().. (1) म) प्रा) स्व) सै), भाग-2, पृ0-127, (2) स्वा) के लिए अफजलगढ़ (बिजनौर) चले गये। वहां पर सा) ज(), पृ0-190 रहते हुए आपके हृदय में देश-प्रेम तथा अंग्रेजी
श्री ज्ञानचंद जैन दास्तां से छुटने की भावना प्रतिदिन बढती गयी।
श्री ज्ञानचंद जैन, पत्र-श्री मलायमचंद जैन आप नमक आंदोलन तथा सत्याग्रह में अपने चाचा का जन्म 1928 में जबलपूर (म0प्र0) में हुआ श्री रतनलाल जी के साथ अनेक बार जेल गये।
अपनी गिरफ्तारी के संदर्भ विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार व देशी वस्त्रों का प्रचार
में आपने लिखा हैआप जोर-शोर से करते थे।
'मैं सन् 1942 के ___कुछ समय बाद आप अफजलगढ़ से अपनी
आन्दोलन में भाग लेने के जमींदारी छोड़कर सहारनपुर आ गये और यहीं पर
कारण पकड़ा गया था। अपना व्यापार करने लगे। व्यापार के साथ ही
जबलपुर खादी आश्रम उन धार्मिक भावना भी आप में कम नहीं थी। प्रतिदिन
दिनों राष्ट्रीय गतिविधियों का जिनन्द्र भगवान् का पूजन और स्वाध्याय का आपका केन्द्र था. वहां से अंग्रेज सरकार के खिलाफ नित्य-प्रति नियम था। चारों प्रकार के दान देने की आपकी रुचि परचे, गुप्त रूप से छापे जाते थे और जनता में थी। 26-9-1976 को सहारनपुर में शहीद भगतसिंह गुप-चुप बांटे जाते थे। जी की विशाल प्रतिमा के अनावरण समारोह में परचा बांटने वालों में मैं भी था। मेरे हाथ से अचानक भगदड़ मच जाने से आपको साधारण सी पुलिस ने कुछ पर्चे जब्त किये तथा मुझे पकड़कर चोट लगी तथा रात्रि में ही एकाएक ब्रेन हेमरेज हो ले गये थे। मुझे एक माह 16 दिन जेल में रहना
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प्रथम खण्ड
169
पड़ा, पर सरकार मुझे अपराधी सिद्ध नहीं कर पायी गतिविधियों के कारण 1941 में टीकमगढ़ रियासत अतः छूट आया।'
से निर्वासित होना पड़ा था। आ) (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ--127, (2) आपका जन्म बड़ागांव, जिला-टीकमगढ़ स्व) स) ज(), पृ0-190 (3) स्व) पर)
(म0प्र0) में श्री हजारी लाल जैन के यहाँ फाल्गुन श्री ज्ञानचंद जैन
कृष्ण पंचमी वि0 स0 1978 (सन् 1921) में हुआ। चंदला, जिला-छतरपुर (म0प्र0) के श्री ज्ञानचंद 1942 में आप टीकमगढ़ में स्टेट कांग्रेस (ओरछा
। सेवा संघ) के संस्थापक सदस्य रहे। भारतीय विध जैन, पुत्र- श्री मोतीलाल जैन ने 1946-47 में चरखारी
न निर्मातृ परिषद्, नई दिल्ली के सदस्य एवं पूर्व एवं छतरपुर राज्य
सांसद, मंत्री श्री रामसहाय तिवारी के अनुसार आपने प्रजामण्डल के उत्तरदायी
1941 से 1944 तक भूमिगत रहकर कार्य किया। शासन की मांग को लेकर
आप बुन्देलखण्ड के अमर शहीद श्री नारायणदास छेड़े गये सत्याग्रह आन्दोलनों
ना खरे के निकट साथी रहे हैं। श्री खरे का एक पत्र में भाग लिया। पुलिस की यहां देना असमीचीन नहीं होगागिरफ्तारी से आप बचते रहे,
कैम्प निवाडी चाहकर भी पुलिस गिरफ्तार
10-10-42 न कर सकी। आपने भूमिगत रहकर आन्दोलन को
प्रिय ज्ञान सदा सुखी रहो, सक्रियता प्रदान की। शासन ने आपको स्वतंत्रता
दूसरी सभा श्री पाठक जी व मैं 2-10-42 सेनानी का दर्जा देकर सम्मानित किया है। को कर आया है. सारे समाचार ठीक हैं, राज्य आ)- (1)छतरपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूची .
खतरा जल्दी और
सी और सहज नहीं हो क्रमाङ्क 135 (2) स्व) पर)
सकता। धीरे-धीरे सफलता के आसार नजर आने श्री ज्ञानचंद जैन 'ज्ञानेन्द्र' लगे हैं।.........परचे छपे हुए झांसी रखे हुये हैं, उन्हें
जैन पत्र-पत्रिकाओं का थोडा भी अध्येता ता0 15-16 तक अवश्य अपने पास टीकमगढ़ ही 'ज्ञानेन्द्र' जी के नाम के अपरिचित नहीं होगा। मगवा लूगा। आपके पास उनक भेजने का प्रबन्ध उनकी सहसाधिक कवितायें क्या हो सो समझ में नहीं आता। आप ता0 20 के
अरीब-करीब किसी विश्वसनीय व्यक्ति को भेजकर जैन पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी लेखनी ।
1/- रु) फी सैकड़ा के हिसाब से जरूर मंगा ने अब भी विराम नहीं लिया
लीजिए। 200-250 परचे से ज्यादा न दे सकूँगा।
अगर आप न मंगा सकें तो उसका नमूना- नकल मैं है, वह आज भी उसी अजस्र
भेज दूंगा, अपने नाम से सागर भी छपवा सकते हो, तेज के साथ प्रवाहित है,
उत्तर देना जैसा ठीक हो वैसा किया जाय, डाकघर जैसी राष्ट्रीय आन्दोलन के
द्वारा भेजना ठीक नहीं जंचता.........। अभी जेल जाने समय थी। उनके गीतों को
का समय नहीं है, और न जेल जाना कोई कार्य ही लोग गाते हैं, गुनगुनाते हैं और अपने अन्दर एक है. आपको कार्य करना चाहिए। अलौकिक स्फूर्ति का संचार पाते हैं। पर कम ही
आपका लोग जानते होंगे कि ज्ञानेन्द्र जी को अपनी राजनैतिक
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___ अपने अरसठवें वर्ष पर (1991 में) आपने बड़ी सुन्दर और बहुचर्चित कविता लिखी थी, जो यहां दी जा रही है। इनकी एक कविता 'सुकवि' के मई 1946 के अंक में छपी थी, उसके बगल में ही श्री लाल बहादुर शास्त्री की कविता भी छपी थी।
अरसठवें वर्ष पर लो देख चुका अब तक अरसठ होली व दीपावली बसन्त ! शिशुपन में कुछ बालापन में कछ साक्षर होने में बीते है नाम भले ही ज्ञानचन्द पर रहे ज्ञान बिन ही रीते पड़गई 'करो या मरो' भनक गांधी बाबा का महामन्त्र लो देख चुका..............1 डिग्गी पीटी, चिल्लाये-गुंजाये जीभर नारे जयकारे स्वातन्त्र्य समर में जूझ रहे थे देश प्रेम के मतवारे ले दमन चक्र तब कूद पड़ा रियासत का पागल राज तंत्र लो देख चुका ...............2 तब लुटा-पिटा-बन्धन में रह निर्वासित होकर के भटका इस बीच अनेकों चिर वियोग के पड़े झेलने को झटका इस महायुद्ध की वेदी पर कितनों का असमय हआ अन्त लो देख चुका...............3 नेहरू ने लाल किले पर जब फहराई ध्वजा तिरंगी थी
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन तब पूछ दबाकर भाग गई भारत से सैन्य फिरंगी की वह अमिट हो गई जन-मन-गण पर इतिहासिक घटना ज्वलन्त लो दखे चुका......................... देखा है हमने गांधी को हमने देखे नेहरू-पटेल जिनके इङ्गित पर राजाओं के नाकों में डाली गई नकेल तब गूंज गया था दिग्-दिगन्त • भारत स्वतंत्र ! भारत स्वतंत्र !
लो देख चुका कुर्सी पाने अवसरवादी सत्पात्रों को पीछे धकेल निष्ठा-श्रद्धा को लिये जिये जिनका अभाव से रहा मेल छीना झपटी में सिद्धान्तों का हो जाये न दुखद अन्त लो देख चुका.................6 अब तन-तुरंग थक गाया किन्तु विद्रोही मन दौड़ा करता है अदृश रहकर सागर की लहरों जैसा उमड़ा करता है न जाने कब टूट जाय चंचल स्वासों का वाद्य यन्त्र लो देख चुका.....................7
आ0- (1) वि0 स्व0 स) इ0, पृ0-67 तथा 205, (2) स्व) प0, (3) अनेक प्रमाण पत्र आदि, (4) 'सुकवि' पत्रिका के प्रथम पृष्ठ का फोटोस्टेट
श्री ज्ञानप्रकाश काला जयपुर राज्य प्रजामण्डल के उत्साही स्वयंसेवक श्री ज्ञानप्रकाश काला का जन्म 1921 के लगभग
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171 हुआ। 16 वर्ष की उम्र में ही आप प्रजामण्डल से में हुआ। 1930 से ही आप स्वतंत्रता संग्राम में जुड़कर उसकी गतिविधियों में भाग लेने लगे। गोपनीय सक्रिय हो गये थे। 1932 में विदेशी वस्त्र आन्दोलन रूप से बुलेटिन बाँटने, जूलूसों तथा अन्य गतिविधि में आपने प्रमुखता से भाग लिया तथा साढ़े सात माह यों की गोपनीय सूचनाएं देने में आपको महारत का कारावास भोगा। आप नेशनल स्काउट एसोएियेशन हासिल थी। पुलिस का गुप्तचर विभाग आपके पीछे के सदस्य रहे तथा नगर निगम द्वारा सम्मानित हुए। सदैव लगा रहता था। प्रजामण्डल आंदोलन के दौरान आर)- (I) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृ0-54, (2) पलिस की लाठियों से आपका सर फट गया था. आप स्व० सा) जा), पृष्ठ-114 घायल होकर बेहोश हो गये, फिर भी गतिविधियाँ श्री बाबू झूमनलाल जैन जारी रखी।
या झुम्मनलाल जैन आ) (1) रा) स्वा) से), पृष्ठ-624)
स्मृतिशेष बाबू झूमनलाल जी के परिवारजनों की श्री ज्ञानीचंद मॉडल
तलाश में जब हम दि0 11-12-- 1994 को सहारनपुर गुना (म) प्र()) के श्री ज्ञानीचंद मॉडल, पुत्र-श्री
गये, तब वयोवृद्ध श्री विशालचंद जैन, जिन्होंने अप्रत्यक्ष कस्तूरचंद मॉडल का जन्म 29 नवम्बर 1926
रूप से सेनानियों की सहायता की थी, ने बताया कि को गना में हआ। अपने उनके पुत्र हसकुमार व शिवचन्द्र के सिवा अन्य पत्रादि विद्यार्थी जीवन में आपने नहा
नहीं थे। हंसकुमार भी जेल गये थे (इनका परिचय 1942 के भारत छोड़ो
इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) और अब वे भी नहीं हैं। आन्दोलन में भाग लिया।
झूमनलाल जी जैनधर्म और दर्शन पर दृढ़ आस्था तत्कालीन कलेक्टर ने
र में रखने वाले सहारनपुर के सम्मानित नागरिक थे। वे क्रोध आपको अन्य साथियों के साथ या ममता दोनों के अवसर पर कभी भी अपने सिद्धान बुलाकर आन्दोलन वापिस
से नहीं डिगे। 1920 में अपनी चमकती वकालत को लेने हेतु दबाव डाला, न मानने पर आप छह माह के
छोड़कर वे राजनीति में आये और जितना सम्भव था लिए गुना से निष्कासित कर दिये गये। निष्कासन उससे भी अधिक किया। वे सदैव कांग्रेस के साथ की सूचना पाकर आप भमिगत हो गये. वापिस आने
र रहे। स्पष्ट वक्ता, पैने लेखक और संयमी कार्यकर्ता पर आगामी पढ़ाई से वंचित रहे क्योंकि स्कूलों ने
श्री जैन ने अपने सेवाकर्म को कभी व्यवसाय नहीं प्रवेश देने से मना कर दिया। आपकी धर्मपत्नी
बनाया, उन्होंने कभी 'नेतागिरी' का भी प्रयत्न नहीं श्रीमती प्रसन्नलता मॉडल भी स्वतंत्रता सेनानी हैं।
किया, उसकी ओर से वे जैसे भूले ही रहे। आ)-(1) म) प्र0 स्व) सै0. भाग-4, पृष्ट 3099
श्री जैन का पूरा परिवार ही आन्दोलन में सक्रिय (2) स्वा) प0
था। एक पुत्र श्री हंसकुमार जैन अपनी बीमार कन्या
को छोड़कर 11-8-42 को जुलूस का नेतृत्व करते श्री झब्बूलाल जैन
हुए गिरफ्तार हुए, कुछ दिन पश्चात् कन्या स्वर्ग सिध विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में र गई। दसरे पत्र श्री शिवचन्द्र कुमार, जो उस समय अभिरुचि रखने वाले, जबलपुर (म0प्र0) के श्री कानपर कालेज में द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे थे, ने कालेज झब्बूलाल जैन पुत्र-श्री चैन्नी लाल का जन्म 1917 छोड़ दिया। श्री शिवचन्द्र कुमार ने 24-3-75 को दिये
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एक साक्षात्कार कहा था- 'मेरे साथ सात लड़कों ने भी कालेज छोड़ दिया था, और वे अपने-अपने स्थानों पर जाकर, असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये थे।' (सहारनपुर सन्दर्भ, भाग-1, पृ0-140)
1920 में गांधी जी ने अदालतों के बहिष्कार का निर्देश दिया था अतः सहारनपुर में अदालतों का बहिष्कार किया गया और कौमी अदालतें बनायी गईं, जिनका निर्णय सबको मान्य होता था। इस प्रकार की अदालत में झुम्मनलाल जी न्यायाधीश और मुंशी जहूर अहमद पेशकार थे।
1921 के आन्दोलन के बाद सहारनपुर में रचनात्मक कार्य जैसे अछूतोद्धार, चरखा चलाना, समाज सेवा करना आदि प्रारम्भ हुए। इन सभी में अपने अन्य साथियों के साथ श्री जैन ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 1927 में सहारनपुर में कांग्रेस का विधिवत् गठन हुआ इसमें श्री झुम्मन लाल जी सक्रिय कार्यकर्ता थे। 1932 के आन्दोलन में आप अपने पुत्र हंसकुमार के साथ जेल गये थे।
20 सितम्बर 1930 को सरसावा में कांग्रेस की ओर से एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया इसको सफल बनाने में श्री दीपचंद, श्री जम्बू था, प्रसाद (जैन) और श्री कैलाश चंद (जैन) के साथ आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब सम्मेलन की तैयारी शुरू हो गयी तो 19 सितंबर 1930 को सरकार ने दफा 144 लगा दी । यद्यपि कांफ्रेंस का स्थान बदलकर जमना का पुल निर्धारित किया गया किन्तु जत्थे और सत्याग्रही सरसावा एकत्रित हो गये। तभी एक पुलिस के सिपाही द्वारा वैद्य रामनाथ को सूचना मिली कि वैद्य रामनाथ, प्रभुदयाल, झुम्मनलाल, जम्बू प्रसाद (जैन) और कैलाश चंद (जैन) के सामने आने पर गोली मारने के आदेश हो गये हैं। पता चलते ही झूम्मनलाल जी अपने 3 साथियों के साथ फरार हो गये। 1934 में जिला
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
कांग्रेस कमेटी में आप प्रतिनिधि चुने गये। 1934 में ही नगर पालिका सहारनपुर की सीट पर भी आप चुनाव में जीते थे। म्यूनिसिपल विधान के बारे में आप उस समय जिले के महापण्डित माने जाते थे।
आ. (1) जै० स० रा० 30, (2) स० स०, भाग-2 पृष्ठ-140, 163, 176, 183, 544, (3) उ0 प्र0 जै० ध०, पृष्ठ- 85
श्री टीकमचंद जैन पहाडिया
श्रम कानून के विशेषज्ञ श्री टीकमचंद जैन पहाडिया का जन्म एक अप्रैल 1923 को कोटा ( राजस्थान) में हुआ । विद्यार्थी जीवन में ही आप स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और 1942 में पढ़ाई छोड़कर जेल यात्रा की। बाद में एम० ए० (अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र) तथा एल0एल0बी0 करने के बाद राजकीय सेवा में प्रवेश लिया और अन्त में राजकीय अधिकारी के पद से निवृत होकर श्रम सलाहकार के रूप में विख्यात हुए।
श्री जैन के श्रम समस्याओं पर अनेक लेख प्रकाशित हुये हैं। आप यूरोप, थाईलैण्ड, जापान, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं। लेबर कानून के आप विशेषज्ञ माने जाते हैं। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आपको राजस्थान सरकार द्वारा 13 अप्रैल 1988 को ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया है।
आ)- (1) जै० स० वृ० इ०, पृ0-240
श्री टीकाराम जैन
'सागर जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' के सचिव, श्री टीकाराम जैन, पुत्र- श्री राजाराम जैन का जन्म 18 नवम्बर 1923 को सागर (म0प्र0) में हुआ। आपने अंग्रेजी एवं पुरातत्त्व में स्नातकोत्तर उपाधियाँ अर्जित की हैं। अध्यापन के व्यवसाय से जुड़े श्री जैन ने शिक्षा सम्बन्धी अनेक पुस्तकों की रचना की है। 1942 के आन्दोलन में आपको 9
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प्रथम खण्ड
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दिसम्बर को गिरफ्तार कर लिया गया और कलेक्टर भङ्ग किया। आपको अन्य साथियों के साथ लाठी के समक्ष पेश किया गया। कलेक्टर ने माफी मांगने चार्ज, सड़कों पर घसीटे जाने तथा घोड़े-दौड़ाने आदि को कहा पर आपने माफी नहीं मांगी, फलतः आठ के कष्ट दिये गये। विनोदी जी ने कांग्रेस के प्रत्येक माह के सख्त कारावास की सजा आपको भोगनी रचनात्मक कार्य, पिकेटिंग आदि में भाग लिया था। पड़ी। कुछ समय आप जेल की काल कोठरी में भी 1930 के जंगल सत्याग्रह के प्रथम जत्थे में रखे गये। एक साक्षात्कार में श्री जैन ने प्रहलाद गिरफ्तार होकर छ: माह की सख्त जेल आपने पाई। एस) नायक से कहा था कि- 'आज के नेताओं में जेल से निकलकर शहर में नेशनल स्काउट पहले जैसी भ्रातृत्व भावना, देशभक्ति एवं सेवा देखने ऐसोसियेशन' के गठन में आपने प्रमख कार्य किया को नहीं मिलती। आज का नेता स्वयं के विकास में
था। पुरानी 'नवजवान सभा' तो गैर कानूनी घोषित हो उलझा रहता है, देश की किसी को परवाह नहीं है।'
ही चुकी थी, यह नवजात संस्था भी सरकार के कोप आ) (1) म) प्र0 स्व) सै), भाग-2, पृ)-27, (2)
से न बची, अतः आप अपने साथियों के साथ लगान दैनिक भास्कर, भोपाल, 20-11-94
बंदी आन्दोलन में गिरफ्तार किये गये। 1934 में बा) श्री टीकाराम "विनोदी' जयप्रकाशनारायण ने महाकौशल में सोशलिस्ट पार्टी अपने विनोदी स्वभाव के कारण 'विनोदी' उपनाम स्थापित की। आप उसके डेलीगेट ब से ख्यात, प्रख्यात समाजसुधारक और राष्ट्रीय कवि, आपका झुकाव समाजवाद की ओर हो गया था। श्री टीकाराम 'विनोदी' का जन्म 1907 में हुआ। मजदूर आन्दोलन में भी आपका जबरदस्त हाथ था। आपके पिता का नाम श्री किशोरी लाल जैन था। एक साल तक मजदर यनियन के सेक्रेटरी भी आप आपको आर्थिक कारणों से बचपन से ही व्यवसाय रहे। त्रिपुरी कांग्रेस में किसान तथा मजूदरों की रैली अपनाना पड़ा तथा कपड़े की फेरी लगाकर आप कराने में भी सहयोग दिया, उस रैली का नेतृत्व आत्मनिर्भर बने। समाज से हुए व्यापक संपर्क के स्वामी सहजानंद तथा प्रो0 रंगा ने किया था। कारण राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई और आपने 'विनोदी' 1942 में विनोदी जी व उनके साथियों के उपनाम से कवितायें लिखना प्रारम्भ किया। वारण्ट निकल चुके थे, पर सीधे गिरफ्तार होना
1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के आपको गंवारा नहीं था। अत: पलिस द्वारा घिरे रहने समय आपने अपने साथियों सहित स्कूल छोड़ दिया के बावजूद भी फरार हो गये और करीब एक माह
और आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे। 1923 के फरार रहे। इन दिनों आपने गांवों का दौरा कर झण्डा सत्याग्रह में बहुत प्रत्यन करने पर भी उम्र किसान आन्दोलन खड़ा किया। रात को अपने साथियों कम होने से आप सत्याग्रह नहीं कर सके। पर इससे के साथ क्रान्तिकारी बलेटिन छापते थे और आम आपके दिल में बलिदान की आकांक्षा और प्रबल जनता में वितरित करते थे। बहुत बार पुलिस घेर होती गई। 1929 में आप गांव छोड़ जबलपुर (म0प्र)) कर भी आपको पकड़ नहीं सकी। अन्त में 17 आ गये। लाहौर कांग्रेस की पूर्ण आजादी की घोषणा सितम्बर 1942 को आधी रात में पुलिस ने घेर के बाद आपने शहर के अपने नव जवान साथियों के लिया। डेढ साल तक जबलपुर सेण्ट्रल जेल में साथ 'नव जवान भारत सभा' की स्थापना की और नजरबंद रखने के बाद । दिसम्बर 1944 को आप सबसे पहले कैण्टोनमेंट एरिया में प्रवेश कर कानून रिहा हुए।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आजादी के पश्चात् आप 'भूदान' आन्दोलन 1937 में डोषी जी व्यापारार्थ झालौदा (गुजरात) की ओर सक्रिय हए और गढ़ाकोटा क्षेत्र की पैतक आ गये। 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में वे दोहद भूमि में से कुछ भाग दान में दे दिया तथा वहीं के आसपास के गांवों में घूम-घूमकर 'करो या मरो' निर्धन तथा बेसहारा महिलाओं के लिए 'मातृसदन' का प्रचार करने लगे। दोहद में ही बड़े साहस के साथ तथा 'अस्पताल' की स्थापना की। 1958 में असामान्य उन्होंने जिलाधीश के भवन की तीसरी मंजिल पर परिस्थितियों में आपका निधन हो गया।
तिरंगा झण्डा पहरा दिया। वे घटना स्थल पर ही आ) (1) म0 प्र0 स्व) सौ), भाग-1. पृष्ठ--55. (2) गिरफ्तार कर लिये गये और छह माह की सजा तथा स्व) स) ज0, पृष्ठ-115, (3) जै) सारा) अ0, पृष्ठ-58
एक सौ रुपये का अर्थदण्ड पाया। अर्थदण्ड न देन
· पर दो माह की सजा और भुगतनी पड़ी। इन दिनों श्री टेकचंद जैन
वे सावरमती जेल में रहे। जेल से निकलने के बाद श्री टेकचंद जैन, पुत्र-श्री वंशीलाल का जन्म छह माह वे पूज्य बापू के सम्पर्क में रहे। बाद में वे 1921 में वारासिवनी, जिला- बालाघाट (म0प्र0) में अपनी मातृभूमि कुशलगढ़ आ गये और आदिवासी हुआ। 1940 में युद्ध विरोधी सभाओं तथा 1941 में क्षेत्रों में जन-जागरण हेतु समर्पित भाव से काम करने व्यक्तिगत सत्याग्रहियों की सभाओं का आयोजन लगे। आपने किया। 1942 के आन्दोलन में 22 अगस्त को कुशलगढ़ में 1944 में प्रजामण्डल की स्थापना आप गिरफ्तार कर लिये गये तथा 17 अक्टूबर का श्रेय डोषी जी को ही है। प्रजामण्डल के माध्यम 1943 तक बालाघाट एवं अकोला जेलों में नजरबन्दी से उन्होंने जनता को नागरिक अधिकार और सुविधायें की सजा भोगी। आप नोटिफाइड एरिया कमेटी, देने हेतु आन्दोलन किया साथ ही प्रौढ़शालायें और वारासिवनी के सदस्य भी रहे।
चलते-फिरते दवाखाने शुरू करवाये। 1946 में हरिजन आ06) मा प्र) स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-178 उद्धार और अस्पृश्यता निवारण में भी उन्होंने महती
भूमिका निभाई। उनके प्रयास से ही कुशलगढ़ में श्री डाडमचंद डोषी
गांधी आश्रम एवं खादी केन्द्र की स्थापना हुई थी। दोहद (गुजरात) में जिलाधीश भवन की तीसरी
कुशलगढ़ प्रजामण्डल के अन्य जैन कार्यकर्ताओं में मंजिल पर चढ़कर तिरंगा झण्डा फहराने वाले कुशलगढ़ श्री कन्हैया लाल जैन, कान्तिलाल शाह, पन्नालाल शाह, (राजस्थान) के श्री डाडमचंद डोषी का जन्म एक किशनलाल डोषी, शोभागमल डोषी आदि के नाम दिसम्बर 1912 को हुआ! डोषी जी अपनी शिक्षा उल्लेखनीय हैं। समाप्त कर झाबुआ राज्य की राजकीय सेवा में लग आ0 (1) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ-313, (2) गये। अपनी राष्ट्रीय विचारधारा के कारण वे हर रा() स्वर) सं), पृष्ठ- 521, ( 3 ) इ.) अ) ओ), भाग-2, पृष्ठ-401 जन-आन्दोलन में भाग लेते थे। झाबुआ राज्य से जब
श्री डालचंद जैन श्री कन्हैयालाल वैद्य, बालेश्वर दयाल मामाजी और गोटेगांव, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के श्री भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी का निर्वासन हुआ तो डोषी जी ने डालचंद जैन, पुत्र-श्री छब्बीलाल का जन्म 1900 उन्हें अपने घर ठहरा लिया, इसी अपराध में उन्हें में हुआ। 1930 से ही आप रा0 आ0 में सक्रिय राजकीय संवा से हाथ धोना पड़े।
हो गये थे। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह व 1942 कं
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प्रथम खण्ड
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भारत छोड़ो आन्दोलन में आपकी कर्मठता इसी से ज्ञात होती है कि जब लगभग 14 माह का कारावास 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो डालचंद आपने भोगा। आपने श्री जी ने एक माह तक दमोह में परेड़ की और तीन फूलचन्द जैन व भागचंद जैन हफ्ते तक त्रिपुरी कांग्रेस के स्वयंसेवक सपत्नीक रहे। के साथ झांसी तक पैदल 1940 के दिल्ली चलो आन्दोलन में भी आप सम्मिलित यात्रा की थी और गिरफ्तार हुए थे। हुए थे।
1942 में करो या मरा तथा भारत छोडो आन्दोलन आ) ।।। म प्र) स्व) पै०, भाग--1, पृष्ठ ... 142, प्रारम्भ हुआ और पुलिस अपनी सूची के अनुसार नेताओं (2) ज) सा रा) 0
को पकड़कर जेल भेजने लगी तो आपने बचकर काम
करते हुए रोज नया डिक्टेटर ढूंढकर गांधी चौक की श्री डालचंद जैन
आम सभाओं का संचालन किया। आप सभा प्रारम्भ श्री डालचंद जेन मडावरा (ललितपुर) उ0प्र0 कराकर गायब हो जाते थे, फिर भी पुलिस की निगाहों के निवासी थे, आपके पिता का नाम श्री ठाकुर दास से न बच सके और दि) 19-8-42 की सभा में पकड़ जैन था। 1942 के करो या मरा आन्दोलन में आपने लिए गये तथा नौ माह की सजा भोगी। एक वर्ष की कठोर सजा भगती। आपकी आर्थिक दिनांक 24-7-66 को लम्बी बीमारी के बाद हृदय स्थिति अच्छी नहीं थी। आपकी माता जी अर्थाभाव रोग के कारण आपका निधन हो गया। के कारण स्वयं तिल-तिल आहुति देती रहीं और आ)- (1) म) प्र() स्व) रौ।), भाग--2, पृष्ठ 8.3, (2) श्री पत्र को सदैव देश पर प्राणोत्सर्ग की प्रेरणा देती रहीं। संतोष सिंघई, दमोह, द्वारा प्रेषित परिचय बाद में आप समाजवादी विचारधारा के बन गये।
श्रीमंत सेठ श्री डालचंद जैन आ (I) र) नी11, पृ0 94, (2) जै) स) रा() अ),
पन्ना-दमोह क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य रहे, {3) डा0 वाहबलि कुमार द्वारा प्रेषित परिचय
प्रसिद्ध सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ता, मृदुभाषी, श्री डालचंद जैन
सहिष्णु, सरल हृदय, दमोह (म0प्र0) के श्री डालचंद जैन, पुत्र-श्री
उदारमना श्री डालचंद जैन नन्दीलान का जन्म 1915 में हुआ । आप में राष्ट्रीय
का जन्म ग्यारह सितम्बर भावना इतनी अधिक थी कि जब आप 15 वर्ष के
1928 को सागर (म0प्र0) थे तभी देश की स्वतंत्रता के लिये आजीवन जुटे
में हुआ। आपके पिता रहने की प्रतिज्ञा कर ली थी। नमक कानून और
श्रीमंत समाजभूषण सेठ जंगल कानन तोड़ने के आन्दोलन में आप सम्मिलित
श्री भगवानदास जी अपने रह। उस समय गांधी जी के अहिंसक आन्दोलन की
समय के ख्यात पुरुष रहे हैं, वे स्वाधीनता सेनानियों मारो जनता खिल्ली उडाता था आर काग्रेस का से न केवल गहरी सहानभति रखते थे बल्कि शासन सभाओं का सनना भी नहीं चाहती थी। उस समय के भय को चिन्ता न करते हए उनकी सहायता भी भी दमोह के प्रसिद्ध सेनानी श्री मोदी जी सभाओं
करत थे। की अन्यक्षता करते और डालचंद जी अकेले ही ।
विद्यार्थी जीवन से ही श्री जैन राष्ट्रीय आंदोलन 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' राष्ट्रीय गान गाते रहते थे।
में सक्रिय हो गये। 1942 के भारत
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में पूज्य बापू के आह्वान पर आपने आन्दोलन में भाग लिया, उस समय आपकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी, पर आजादी के दीवानों को उम्र का बन्धन बांध सका है क्या ? सागर में उस समय आजादी परवाने अपनी जान न्यौछावर करके भी भारत माँ को आजाद कराने का प्रण लिये बैठे थे, रोज जुलूस, लाठी चार्ज और गिरफ्तारियां, यही क्रम सागर में चल रहा था। इसी बीच कुछ सेनानियों, जिनमें श्री पदमकुमार सर्राफ व श्री गौरीशंकर पाठक प्रमुख थे, ने तय किया कि आंदोलन प्रतिदिन चलता रहे, इसलिए सभी एकदम गिरफ्तार न होकर रोज दो या चार व्यक्ति गिरफ्तार हों। लगभग 40 दिन तक यह क्रम चलता रहा। अनेक सेनानी गिरफ्तार हो चुके थे । आन्दोलन ठण्डा न होने पावे इसलिए तय किया गया कि शहर में लगभग 100 व्यक्तियों का जुलूस निकाला जावे व कटरा मोटर स्टैण्ड पर सभा की जाये। जुलूस की जिम्मेवारी श्री पदमकुमार को दी गई।
ठीक 3 बजे लक्ष्मीपुरा में लक्ष्मीबाई के चौपड़ा से 100 व्यक्तियों का जुलूस निकाला गया, इनमें श्री बाबूलाल तिवारी, सिंघई सुरेशचंद जैन एवं श्री डालचंद जैन प्रमुख थे। लगभग डेढ घंटे बाद जुलूस कटरा मोटर स्टैण्ड पहुँचा, जहाँ मंच बनाकर सभा की गई, आध भाषण के दौरान पुलिस आ पहुँची, सर्वप्रथम श्री पदमकुमार सर्राफ को गिरफ्तार किया गया, उनके गिरफ्तार होते ही श्री बाबू लाल तिवारी ने भाषण देना प्रारम्भ किया, वे भी गिरफ्तार कर लिये गये, बाद में श्री सुरेश चंद जैन ने भाषण दिया, वे भी पकड़ लिये गये, बाद में श्री डालचंद जैन ने तिरंगा अपने हाथ में ले लिया अत: वे भी गिरफ्तार कर लिये गये। पुलिस ने लाठी चार्ज कर मैदान खाली करा लिया।
गिरफ्तार सेनानियों को लेकर इंसपेक्टर अवस्थी जा रहे थे, रास्ते में उन्होंने डालचंद जी को म्युनिसपल
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
हाईस्कूल के पास उतार दिया, क्योंकि उनकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी। इसके बाद तो डालचंद जी अनेक बार गिरफ्तार हुए व छोड़ दिये गये। कई बार आप डिटेन्शन में रखे गये। आजादी के आन्दोलन में इस प्रकार सक्रियता से भाग लेने के कारण स्कूल से उनका नाम काट दिया गया।
'सादा जीवन उच्च विचार' के पक्षधर श्री जैन ने विद्यार्थी जीवन में ही खादी पहनना शुरू किया था। वे 'भारत सेवक समाज' से भी जुड़े रहे और उसके सक्रिय कार्यकर्ता व पदाधिकारी रहे ।
सागर में उन दिनों आस-पास के क्षेत्रों से अनेक जैन सेनानी जेल में आते थे, उनके शुद्ध भोजनादि की व्यवस्था आप करते थे। 1942 के आन्दोलन के समय आपने अपने पूज्य पिता श्री के साथ जेल में बन्द सेनानियों को समय-समय पर वस्त्रादि भेंट किये थे एवं उनके आश्रित परिवारों को हर तरह की सहायता पहुँचाई थी।
सामाजिक और राजनैतिक कार्यों से आप आजादी के बाद और अधिक जुड़ गये । सागर क्षेत्र के विकास का बहुत कछ श्रेय आपको भी जाता है। नवयुवकों में नई स्फूर्ति का संचार करने वाले श्री जैन 1963 में सागर नगर पालिका के अध्यक्ष, 1967 में बीना विधान सभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए । 1984 में दमोह - पन्ना संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस (इ) ने आपको अपना प्रत्याशी बनाया, आप प्रचण्ड बहुमत से संसद सदस्य चुने गये। इस चुनाव में आपने पन्ना रियासत के पूर्व महाराजा को परास्त किया था।
आप विदेश मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। भारत सरकार की डायरेक्ट टैक्स सलाहकार समिति एवं प्रशासकीय वित्त समिति के भी आप सदस्य मनोनीत किये गये थे। मध्य प्रदेश कांग्रेस (इ) कमेटी के आप अनेक वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे हैं।
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प्रथम खण्ड
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अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से सम्बद्ध के भतीजे श्री ताजबहादुर महनोत अपने चाचा जी, चाची श्री जैन, विश्व अहिंसा संघ के अध्यक्ष, अखिल जी व उनके पुत्र श्री राजेन्द्रकुमार महनोत के जेल जाने भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् के अध्यक्ष, अखिल पर घर की व्यवस्था हेतु बनारस गये थे, भारतीय बीड़ी उद्योग संघ के कोषाध्यक्ष, अ०भा०दि0 पर स्वाधीनता की ऐसी लगन लगी कि आप भी परिवार जैन तीर्थ क्षेत्र, कमेटी के ट्रस्टी, म0प्र0 तीर्थक्षेत्र कमेटी वालों के साथ जेल में पहुँच गये और के अध्यक्ष, दि) जैन महासमिति के उपाध्यक्ष आदि 1945 में छूटे। पदों पर रहे हैं। आप डा0 हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय
आ()- (1) जै) स) रा. अ0, पृष्ठ-91 सागर के कुल सांसद एवं कार्यकारिणी सदस्य, रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य, म0प्र0 चेम्बर आफ
श्री ताराचंद जैन कामर्स के उपाध्यक्ष, गणेशवर्णी संस्कृत महाविद्यालय सागर (म0प्र0) के श्री ताराचंद जैन, पुत्र श्री के अध्यक्ष, म0प्र) स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ के दयाचंद का जन्म 1920 में हुआ। 1942 के भारत कार्यकारिणी सदस्य आदि अनेक पदों पर भी रहे हैं। छोड़ो आन्दोलन में आपने 6 माह का कारावास भोगा। श्री भगवानदास शोभा लाल जैन चेरिटेबिल ट्रस्ट के
आ) (1) म) प्र) स्वा) से।), भाग-2, पृष्ठ-28 आप अध्यक्ष हैं। आपने अमेरिका, कनाड़ा, इग्लेण्ड, आ पात जर्मनी, हांगकांग, सिंगापुर आदि देशों में सम्पन्न सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप
श्री ताराचंद जैन शान्ति, समन्वय एवं एकता के लिए समर्पित हैं। अमरपाटन, जिला सतना (म0प्र0) के श्री आ) (1) आ) दी), पृ.) 9-10, (2) स्व) पा)
ताराचंद जैन, पुत्र- श्री बलदेव प्रसाद का जन्म 1919
में हुआ। 101 के भारत छोड़ो आन्दोलन में तिरंगा श्री डालिमचंद सेठिया
झण्डा लेकर जुलूस निकालने पर आप गिरफ्तार कर सुजानगढ़ (राजस्थान) के श्री डालिमचंद सेठिया
लिये गये व 6 माह रीवां जेल में कारावास की सजा का राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में अग्रगण्य
भोगी। स्थान है। आपके पिता श्री मूलचंद सेठिया वैरिस्टर थे।
आ)-(1) म) प्रा) स्व) से), भाग 5, पृष्ठ-262 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में राष्ट्रनायक श्री जयप्रकाश नारायण और श्री राममनोहर लोहिया ने
श्री ताराचंद जैन फरार होकर आपके निवास पर ही शरण ली थी, सागर (म0प्र0) के श्री ताराचंद जैन, पत्र-श्री फलतः आपको ब्रिटिश शासन का कोपभाजन होना पड़ा मौजीलाल का जन्म 1910 में हुआ। आपने शिक्षा
और 54 दिन का कारावास भोगना पड़ा। कलकत्ता प्राथमिक तक ही ग्रहण कर पाई। 1932 के आंदोलन के मारवाड़ी छात्रसंघ के आप सभापति रहे थे।
में साढ़े पांच माह तथा 1942 के भारत छोड़ा आ) (1) इ) आ) ऑ0, भाग-2, पृ0-399
आन्दोलन में 6 माह का कारावास भागकर आपने श्री ताजबहादुर महनोत
राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। उज्जैन (म0प्र0) के स्वाधीनता सेनानी दम्पति
आ) (1) म) प्रा स्त्र) सै। भाग 2, पृ। । श्री सरदारसिंह महनोत और श्रीमती सज्जनदेवी महनोत (2) आ) दी. पा) 45
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री ताराचंद जैन
में रहने के कारण स्कूलों में आपको प्रवेश नहीं मिला श्री ताराचंद जैन का जन्म ग्राम कंजिया, अतः आगे की शिक्षा से वंचित रह गये। आजादी के तहसील-खुरई, जिला-सागर (म0प्र0) में श्री रामचंद बाद आप टीकमगढ़ (म0 प्र0) में आ गये तब से
जैन के यहाँ 1920 में हुआ। वहीं रह रहे हैं। बचपन में ही पिताजी का
आ0- (1) म) प्र) स्व0 स0, भाग-2, पृष्ठ-128 स्वर्गवास हो जाने के कारण (2) स्व) प0, (3) र) नी0, पृष्ठ-87 ललितपुर में मामा जी के घर
श्री ताराचंद जैन कासलीवाल आपका पालन-पोषण हआ।
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन एवं राजनीति में जब आप प्राथमिक कक्षाओं
इलाहाबाद जिले का अपना एक विशेष महत्त्व एवं में ही अध्ययनरत थे तब
स्थान रहा है। इस जिले ने 35-36 के विदेशी वस्त्र बहिष्कार आन्दोलन में आपने
देश को शीर्षस्थ एवं वरिष्ट भाग लिया। एक उत्साह था, लगन थी। आपने नारे
नेता व सिपाही दिए हैं। लगाये, जुलूस निकाले और आम सभायें की।
इलाहाबाद शहर से 65 ___1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने भाग
किलोमीटर दूर जिले का एक लिया, इस सत्याग्रह के सन्दर्भ में आपने लिखा है
प्रमुख कस्बा दारानगर है। जहाँ "गांधी जी का कहना था कि 'जो भी सत्याग्रही जहाँ
के लोगों ने स्वतंत्रता आन्दोलन से सत्याग्रह शुरू करें वहाँ से पैदल चलकर -दिल्ली में महत्त्वपूर्ण भमिका निभाकर आन्दोलन को एक पहुँचकर वायसराय भवन के सामने सत्याग्रह करें और राह प्रदान की और कस्बे का नाम रोशन किया। अपनी गिरफ्तारी देवें।'
उनमें सबसे ऊपर नाम है श्री ताराचन्द जैन ___ गांधी जी का यह भी कहना था कि -"हर (कासलीवाल) का। सत्याग्रही अपने साथ भोजन के लिए झोला में एक आपका जन्म दि0 17-6-1899 को दारानगर पाव भुने चने एवं एक पाव गुड़ रखे, इससे ज्यादा ग्राम में ही एक प्रतिष्ठित जमींदार परिवार में हुआ। कुछ भी नहीं'। भोपाल से आये अनेक सत्याग्रहियों आपके पिता जी लाला हरसुखराय जैन दारानगर टाउन की गिरफ्तारी ललितपुर में हुई, इससे हमें बहुत बल एरिया के चेयरमैन एवं इलाहाबाद जिला बोर्ड के मिला, हममें भी कुछ करने का उत्साह और बढ़ सदस्य थे। आपको राजनैतिक शिक्षा एवं प्रेरणा अपने गया।"
पिता जी से ही प्राप्त हुई। स्वतंत्रता आन्दोलन से पूर्व 1942 के आन्दोलन के समय आपकी उम्र आप अवध की एक रियासत के दीवान के पद पर लगभग 22 वर्ष थी। 12 अगस्त 42 को आपके ग्रुप कार्यरत थे। 1928 में बापू (महात्मा गांधी) की ने दफा 144 तोड़कर अहिंसात्मक सत्याग्रह द्वारा अपनी आवाज पर उक्त महत्त्वपूर्ण पद से त्यागपत्र देकर गिरफ्तारियां दीं। अदालत ने आपको एक साल की स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए कैद व 100 रु0 जुर्माना की सजा दी। जुर्माना न देने 1930 के आन्दोलन में अपनी सक्रिय पर दो माह की सजा आपको और काटनी पड़ी। पहले गतिविधियों के कारण आपको पहली बार गिरफ्तार आप झाँसी जेल में रहे फिर नैनी भेज दिये गये। जेल किया गया और इसी के तहत घर की तलाशी, कुर्की
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प्रथम खण्ड
179 एवं अन्य पुलिस अत्याचारों को आपने सहा किन्तु का आदर्शपूर्वक निर्वाह किया। राजनीति के साथ ही सबूतों एवं गवाहों के अभाव के कारण अंग्रेज सरकार सामाजिक क्रियाकलापों एवं प्रगति में आपकी दिलचस्पी आपको सजा नहीं दे पाई। इसके बाद भी आपने रही है। आपने पू0 बापू की याद में दारानगर कस्बे जनचेतना का क्रम जारी रखा और आन्दोलन हेतु में 'गांधी मेमोरियल हाई स्कूल' की स्थापना की जो स्वयं-सेवकों की भर्ती, उनका प्रशिक्षण, राजनैतिक आज भी उनकी याद अपने में संजोय इन्टर कालेज शिक्षा, प्रेरणा एवं मार्ग-दर्शन करते हुए 1942 के के रूप में भावी पीढ़ी को शिक्षा देने के कार्य में अनवरत आन्दोलन में पूरी ताकत से हिस्सा लिया और अंग्रेजों प्रगतिशील है। को अच्छा सबक सिखाया। फलस्वरूप आप गिरफ्तार स्वतंत्रता के बाद आपने कोई राजनैतिक पद हुए और 18 माह की कठोर सजा और जुर्माना सहित स्वीकार नहीं किया। आपकी आदर्शवादिता अनुकरणीय जेल गए, जहाँ 17 दिनों का अनशन करके आवश्यक है। आपका निधन णमोकार महामंत्र का जाप करते मांगों की पूर्ति कराई। 1943 में जेल से छूटते ही पुनः हुए 18-3-1974 को हुआ। आन्दोलन में संघर्षरत हो गए जिसके परिणामस्वरूप । आ0- (1) स्वतंत्रता संग्राम में इलाहाबाद, स्मारिका, सूची दि) 6-8-43 को पुन: गिरफ्तार कर नैनी सेन्टल जेल संख्या-310 (2) श्री मनोज कुमार जैन 'निर्लिप्त', अलीगढ द्वारा
प्रेषित परिचय। में 14 दिनों के लिए नजरबन्द कर दिए गए। वहाँ से छूटने के बाद भी आप स्वतंत्रता प्राप्ति तक हमेशा
डॉ० ताराचंद पांड्या संघर्ष करते रहे।
कोटा (राजस्थान) के डॉ0 ताराचंद पांड्या का ___कासलीवाल जी एकदम सरल, सौम्य, आकर्षक जन्म 15 अप्रैल 1928 को हुआ। आपके पिता का एवं प्रतिभावान व्यक्ति थे। आपकी कार्यप्रणाली से लोग नाम श्री जमनालाल एवं माता का नाम श्रीमती बरबस ही खिचे चले आते थे। राष्ट्र के स्वतंत्रता धापूबाई था। स्वतंत्रता आन्दोलन में 1944-1947 में
आन्दोलन में आपने अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया। आपने भाग लिया एवं जेल यात्रा की। राजस्थान के इलाहाबाद जिला कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी होने का गौरव आपको प्राप्त है। पद पर कार्य करते हुए आन्दोलन के बड़े-बड़े नेताओं आo-(1) जै0 स0 50 इ0, पृष्ठ-397 का ध्यान आकर्षित किया। पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल
श्रीमती ताराबाई जैन कासलीवाल बहादुर शास्त्री एवं डा0 कैलाश नाथ काटजू आदि
गर्भवती होने पर भी अपने पति के साथ जेल आपके अन्तरंग मित्रों में थे। आपका दारानगर स्थित जाने वाली श्रीमती ताराबाई जैन महिदपर जिला-उज्जैन आवास हमेशा आन्दोलन-राजनीति का अड्डा हुआ (म0प्र0) के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री नेमीचंद करता था। देश के शीर्षस्थ नेतागण भूमिगत होने की जैन कासलीवाल की पत्नी हैं। 1942 के आन्दोलन स्थिति में आपकी मेहमाननवाजी स्वीकार करते थे। में जब श्री जैन को गिरफ्तार किया गया तो पत्नी
आपका पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन भी श्रीमती जैन भी साथ जाने के लिए अड़ गईं, उस एकदम सादा एवं सरल था। आप धार्मिक प्रवृत्ति के समय वे गर्भवती थीं। पुलिस स्टेशन पर जब थानेदार व्यक्ति थे। आपके तीन पुत्रों एवं तीन बेटियों का भरा ने श्री जैन को तो जेल में रखना स्वीकार किया किन्तु पूरा परिवार था। जिन सभी को अपने पैरों खडा कर श्रीमती जैन को वापस जाने को कहा तो ताराबाई व शादी- ब्याह करके सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों गिरफ्तार होने के लिए थाने में ही अनशन पर बैठ
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INO
- स्वतंत्रता संग्राम में जैन गईं, तब उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में रखा गया।
श्री दयाचंद जैन बाद में उन्हें कोर्ट उठने तक की सजा दी गयी। खण्डवा (म0प्र0) के श्री दयाचंद जैन, पुत्र-श्री आ) (1) म0 स(), पृष्ठ ब-52
दुलीचंद का जन्म फरवरी 1910 में हुआ। आप
1930 से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। श्री तिलकचन्द्र तिरपंखिया
1930 में 4 माह का तथा 1932 में 15 माह का पंजाब के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री तिलकचंद्र तिरपंखिया का जन्म 1900 ई0 में हुआ।
__कारावास आपने भोगा। जेल में ही आप कैंसर आपके पिता का नाम लाला फग्गूमल था, जो धातु
से पीड़ित हो गये थे। 1963 में आपका स्वर्गवास हो के बर्तनों के प्रसिद्ध व्यापारी थे। तिरपंखिया जी की गया। शिक्षा गुजरानवाला के मिशन हाईस्कूल में हुई। वहीं
आO-(1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-103 से आपने क्रान्तिकारी विचारधारा लेकर जीवन में प्रवेश
श्री दयाचंद जैन (बागड़ी) किया। महात्मा गांधी ने जब नमक सत्याग्रह छेड़ा तो
श्री दयाचंद जैन, पुत्र-श्री जनूलाल जैन का जन्म आप उससे जुड़ गये एवं जेल यात्रा की। राष्ट्रीय आन्दोलन में पूरी तरह जुड़े होने के कारण आपको
22 जून 1923 को टीकमगढ़ (म0प्र0) में हुआ।
आपकी आरम्भिक शिक्षा म0प्र0 में हुई। 17 वर्ष की अनेक बार कारावास भुगतना पड़ा। तिरपंखिया जी राजनैतिक, सामाजिक एवं
अवस्था में आप बनारस के प्रसिद्ध श्री स्याद्वाद आध्यात्मिक विकास की सभी मुख्य धाराओं से जुड़े
महाविद्यालय में अध्ययनार्थ गये। वहाँ दो वर्ष ही थे। आत्मानन्द जैन गुरुकुल के आप प्रारम्भ से अवैतनिक ।
अध्ययन कर पाये थे कि 1942 का भारत छोड़ो मंत्री रहे एवं उसे उन्नति के शिखर तक पहुँचाने का आन्दोलन शुरू हो गया और आप आन्दोलन में कद श्रेय भी आपको ही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी पड़े। ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार हुए और धारा 38 के आप आजीवन सदस्य रहे। जिला कांग्रेस कमेटी D.I.R. तथा 39 D.IR में दो-दो वर्ष, कुल चार वर्ष के सचिव पद को भी आपने सुशोभित किया था। सजा हुई। आप बनारस जिला जेल और बनारस सेन्ट्रल देशसेवा के कार्यों में बेसुध जुट जाने के कारण आपका जेल में रहे। सी और बी दोनों क्लासों की जेलों में व्यापार और स्वास्थ्य दोनों ही चौपट हो गये। 1945 आपको रखा गया। एक वर्ष की सजा काटने पर ही में देश के स्वतंत्र होने के मात्र दो वर्ष पूर्व भारत का आपको छोड दिया गया, किन्तु बनारस जिले से आप यह स्वतंत्रता सेनानी सदा के लिए सो गया। निष्कासित कर दिये गये, यह निष्कासन देश की आ0-(1) इ0 अ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ-400 आजादी के बाद ही समाप्त हुआ। श्री थानमल जैन
___ आ) (1) म0प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-128 (2)स्व040 श्री थानमल जैन का जन्म 1926 में श्री लालचंद
श्री दयालचंद जैन जी के यहां सीहौर (म0प्र0) में हुआ। कक्षा-3 तक आपने शिक्षा ग्रहण की। भोपाल विलीनीकरण आंदोलन
'शेरे सागर' के नाम से विख्यात श्री दयालचंद ( 48-49) में भाग लेने के कारण जाना एवं जैन का जन्म म0प्र) के सागर जिलान्तर्गत पारगवां 17..1-40 से 6-2-49 तक की सजा आपको भोगनी ग्राम में दिनांक 11 अक्टूबर 1924 को श्री किशोरी पड़ी।
लाल एवं श्रीमती हीराबाई के यहाँ हुआ। आप जैन आ) (1) मर) प्र) स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-42 साहित्य के अग्रगण्य विद्वान् श्रीमान् पण्डित पन्नालाल
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प्रथम खण्ड
जी साहित्याचार्य के चचेरे भाई हैं। आपके पिता पारगुवां
से आकर सागर में बस गये, अतः आपकी शिक्षा सागर में ही हुई ।
उन दिनों देश में स्वतंत्रता प्राप्ति की लहर जोरों से चल रही थी 1942 के आन्दोलन में आप पढ़ाई की
चिन्ता छोड़ 'भारत माता' को मुक्त कराने के लिए कूद पड़े। भारत सुरक्षा कानून की धारा 38 / 10 के अन्तर्गत आपको 10/9/1942 को छह माह की सजा हुई।
9 अगस्त को गांधी जी के द्वारा " करो या मरो" का संदेश देने के बाद जब सारे देश में दुश्मनों को खदेड़ने की तैयारी हो रही थी तब सागर कैसे शांत रहता, सागर में भी तूफान उठ चुका था, जगह-जगह छोटे-बड़े जिले के सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारियाँ शुरू हो चुकी थीं। तभी कांग्रेस का सन्देश घर-घर पहुँचाने के लिये एक गुप्त संदेश प्रचारित करने की योजना बनी और वह संदेश बुलेटिन के रूप में प्रचारित करना तय हुआ ।
श्री जैन ने एक दिन स्वतंत्रता सम्बन्धी पर्चे बांटना शुरू किये, तभी आप पकड़े गये । अदालत में मुकदमा चला जहाँ आपने अदालत को भी अपने साथ आकर देश सेवा में कुछ करने के लिए कहा। 6 माह की सजा देकर इन्हें जेल भेज दिया गया। जेल में सरकारी कर्मचारियों को परेशान करना आपकी आदत बन गई और बड़ी निर्भीकता से जेल में संघर्षरत रहे । उस समय कलेक्टर एस0 एन0 मेहता जी थे, वह उदार थे, उनके कारण जेल अधिकारी सख्ती नहीं कर पाये परन्तु इस भारतीय कलेक्टर को ब्रिटिश सरकार ने सागर से हटा दिया।
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181
श्री मेहता के हटते ही जिलाधीश श्री कौल साहब पधारे उन्होंने पहले ही दिन जेल में रहकर खादी के वस्त्र पहनना अपराध बतलाकर कपड़े जब्त करवा लिये व जेल की ड्रेस दी। श्री जैन अपने 14 साथियों को मिली हुई ड्रेस कलेक्टर कौल के सामने फेंककर नग्न ही खड़े रहे; उसके बाद खादी के स्थान पर बोरों की ड्रेसें सिलवाकर दी गईं तीन दिन नग्न रहकर चौथे दिन जब बोरों की ड्रेसें मिलीं तो प्रतिशोध की भावना प्रबल हुई और सबने मिलकर निश्चय किया कि आज जब कलेक्टर साहब आयें तो यह ड्रेसें एक साथ जलाकर उनके ऊपर फेंक दी जावें। जेल में एक अपराधी कैदी ताम्रकार बन्धु थे उनसे जेल के ही स्टाक से मिट्टी का तेल प्राप्त कर लिया गया और ड्रेसों पर डालकर कैदियों की परेड में ड्रेसें सामने रखकर नग्न ही बैठे रहे जैसे ही कौल साहब आये सभी साथियों ने ड्रेसों में आग लगा दी। परिणाम यह हुआ कि बालक दयालचन्द को गुनाह खाना में रखने का आदेश दे दिया गया। जब गुनाहखाने में वह जाने लगा तो साथी मित्र प्रभातचन्द पेन्टर ने जेलर से विरोध किया और वह जेलर पर बरस पड़े, परिणाम यह हुआ कि उन्हें भी इनके साथ ही गुनाहखाना भेज दिया गया। रात को वह दोनों गुनाहखाने में अपने ऊँचे स्वर में गाते
अय मादरे हिन्द गमगीन न हो, अच्छे दिन आने वाले हैं। आजादी का पैगाम तुम्हें हम जल्द सुनाने वाले हैं ॥
देश की आजादी के बाद आप सदैव कांग्रेसी रहे । संगठन के चुनावों में सदैव जीतते रहे लगभग 30 वर्ष तक जिला कांग्रेस कमेटी में रहे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी होने के कारण म0प्र0 शासन ने 15-2-1964 को 15 एकड़ भूमि आपको प्रदान की। परन्तु आपने वह भूमि गरीबों को वितरित करने हेतु राज्य शासन को ही वापिस कर दी। आपकी
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182
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन उदारता और सच्ची राष्ट्रभक्ति का यह अनुपम उदाहरण 1940 में भारत रक्षा कानून के तहत तीन माह है। 1995 में आपका निधन हो गया।
तक सेना के पहरे में कैद रहे। वहीं आपने दो दिन ___ आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ट-29 अनशन (भूख हड़ताल) किया। पुनः 1942 में गांधी (2) आ0 दी0, पृष्ठ-46, (3) श्री जैन के अभिनन्दन रामारोह जयन्ती, दो अक्टूबर को हिन्दू मुस्लिम दंगा रोकने में 23-10-1989 के अवसर पर प्रकाशित संक्षिप्त परिचय पुस्तिका आप घायल व गिरफ्तार हए और दस दिन तक सेठ दरबारीलाल
पुलिस-जेल में बंद रहे। हथकड़ी डालने और शौचादि मंडल कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे. करावली. की असुविधा के विरोध में दो दिन भूख हड़ताल जिला-मैनपुरी (उ0प्र0) के श्री सेठ दरबारीलाल को की, पुलिस कमिश्नर ने आकर सुविधाएं दी व 1942 के आन्दोलन में एक वर्ष का कठिन कारावास अनशन तुड़वाया। 1931 से ही आपने आजीवन तथा 500 रु0 का अर्थदण्ड भुगतना पड़ा। आप प्रसिद्ध खादी-वस्त्र के उपयोग का व्रत लिया हुआ है। आप स्वतंत्रता सेनानी श्री देश दीपक जैन के सहयोगी रहे। 15-11-1942 से 16-11-1943 तक एक वर्ष के आप अपने घर में (चाची, बुआ और पत्नी) तीन लिए रतलाम राज्य से निर्वासित रहे थे। स्त्रियों के अतिरिक्त अकेले ही थे। जब आप जेल से श्री जैन की सेवायें अविस्मरणीय हैं। आप छूटकर आये तो चाची व बुआ का देहान्त हो चुका 1944 में नगर पालिका के आम चुनावों में सर्वाधिक था और घर से 10-12 हजार रुपये का गबन भी। मतों से विजयी हुए थे। तब से लगातार 1968 तक
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0, (2) उ0 प्र0 जै0 ध0, सदस्य निर्वाचित होते रहे। आप चेयरमैन व उपाध्यक्ष पृ०-93
भी रहे। जिला कांग्रेस महामंत्री, प्रजामण्डल के श्री दलीचंद जैन
महामंत्री, प्रजापरिषद् के प्रचार मंत्री, अनेक राजकीय हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच,
_ समितियों के सदस्य, रतलाम राज्य की अंतरिम मंत्रि गुजराती, मराठी, आदि अनेक भाषाओं के जानकार
परिषद् के सलाहकार, आदि अनेक पदों पर रहे।
आपने ही 1939 में सुभाषचंद बोस तथा 1962 में और तत्त्वार्थसूत्र जैसे गहन दार्शनिक ग्रन्थों का अध्ययन
भारत के प्रथम गवर्नर जनरल डॉ0 राजगोपालाचार्य
का भव्य स्वागत रतलाम में करवाया था। आप करने वाले कवि, लेखक श्री दलीचंद जैन (कटारिया)
1968 तक जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के
महामंत्री रहे थे। का जन्म चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, वि0 सं0 1972 (सन् 1915)
श्री जैन को पत्रकारिता का शौक है। आपने को रतलाम (म0प्र0) में 1938 से पत्रकार का सक्रिय कार्य 1972 तक हुआ। आपके पिता श्री समरथमल जैन (कटारिया) किया और यूनाइटेड़ प्रेस ऑफ इंडिया (बम्बई), उस समय रतलाम रियासत के नगर सेठ थे। भाइयों टाइम्स ऑफ इंडिया (बम्बई), सैनिक (आगरा), के बीच आप चौथे हैं। जब आप इण्टर में अध्ययनरत नई दुनिया (इन्दौर), इन्दौर समाचार (इन्दौर), जन्मभूमि, थे तभी विदेशी वस्त्र बहिष्कार, सत्याग्रह-प्रचार, मातृभूमि आदि पत्रों से जुड़े रहे। हरिजन आन्दोलन, प्रजामंडल, प्रजापरिषद् आदि के एक संस्मरण में आपने लिखा है कि-"दिसम्बर माध्यम से जनसेवा में आये।
___1940 में भारत सुरक्षा कानून 39 के अन्तर्गत मुझे
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प्रथम खण्ड
183
गिरफ्तार किया गया था। मेरे साथ ही श्री लहरसिंह इस अनशन का पहला दिन जैसे-तैसे बीत गया। भाटी (जैन) और श्री दीनदयाल भारतीय (हिन्दू) भी रात्रि को जमादार मेजर हमारे पास आकर बड़ी नम्रता पकड़े गये थे। तीनों ही को पुलिस ने बिना वारंट पकड़ से हमें समझाने लगा कि- 'आप रोटी न खायें पर लिया था। पूरा एक दिन पुलिस की कस्टेड़ी में बंद, दूध तो पी लें।' हमने कहा 'मेजर साहब, हम भगवान् रहे, दूसरे दिन रतलाम से 18 मील की दूरी पर महावीर के उपासक हैं, सत्याग्रही हैं, हम ऐसा नहीं सुनसान जंगल में बने मिलिट्री के विश्रामगृह में हमें कर सकते।' अनशन का दूसरा दिन भी समाप्त होने राजपत-रणजीत रेजिमेण्ट के एक दस्ते की देखरेख को आया, तभी रतलाम नरेश महाराजा सज्जन सिंह में बंद रखा गया था। हमें वहां किसी भी तरह की अपनी कार से घूमते हुऐ बंगले के बाहर सड़क पर मानवीय सुविधाएं, सिवाय भोजन और दूध-चाय के आकर ठहरे। जमादार ने महाराज को शंकर के दुर्व्यवहार कुछ भी नहीं दी गई थीं। न अखबार, न पुस्तकें। और भोजन में की जाने वाली सारी हरकतों एवं हमारे विश्रामगृह से लगे एक छोटे से गाँव जमुनियाँ के एक उपवास आदि की जानकारी दी तो महाराज ने तत्काल गड़रिये के यहाँ से बकरी का आधा सेर दूध तीनों आदेश दिया कि- 'तुम पूरा ध्यान रखो, इन लोगों को के लिए दोनों समय मिलाकर दिया जाता था। नहाने- खाने-पीने आदि की किसी प्रकार की तकलीफ नहीं धोने के नाम पर वहीं से दो फलांग की दूरी पर स्थित होना चाहिये। उनको अपना भोजन स्वयं बनाने की एक कुंए पर दो चार दिन में, जब भी फौजी जमादार सुविधा दे दो।' की इच्छा होती, वह हमें ले जाता।
मेजर भण्डार से राशन निकाल लाया और हमें पलिस ने एक ब्राह्मण, शंकर नामक सिपाही को भोजन बनाने के लिए आग्रह करने लगा। उस समय हमारे लिए रसोइया नियुक्त किया था, जो गप्तचरी भी शाम हो चुकी थी, मैंने मेजर को समझाते हुए कहा, करता था। वह भोजन अपनी इच्छानसार बनाता. कभी 'जमादार जो आप नहीं जानते, हम जेनी होने के नाते भी उसने हमारी इच्छा या राय के अनसार भोजन रात को नहीं खाते'। दूसरे दिन प्रातः बकरी के दूध बनाकर नहीं दिया। अनेक बार रोटी व दाल-सब्जी से हम ताना ने अपने दो दिन क उपवास (अनशन) में कंकड तथा छोटे-मोटे जीव निकलते और हमें भोजन का पारणा का। छोड़कर आधे भूखे उठ जाना पड़ता। शंकर वास्तव
हमारे साथी दीनदयाल भारतीय इस घटना से बहुत में 'कंकर' था, जो हमारे कहने-सनने पर अधिकाधि प्रभावित हुए, बोले- 'भाईयो वास्तव में यह तुम्हारी क खराब भोजन बनाकर देने लगा। हमें बाध्य होकर धर्म-साधना का चमत्कार था जो महाराज को यहाँ तक सरकार को, जमादार के मार्फत अल्टीमेटम का पत्र खींच लायी।' आज 55 वर्ष बाद भी यह घटना वास्तव भेजना पडा. 'कि हमारे भोजन की व्यवस्था सही करने में मुझे भी एक चमत्कार सी ही लगती है। जिसने के लिये या तो सिपाही शंकर को बदल दें या फिर अन्याय का मुँह काला किया।" हमारा राशन हमें दिया जावे ताकि हम अपना भोजन 9 अगस्त 1997 को रतलाम में स्वतंत्रता स्वयं बना लें।' किन्तु हमारी इस गुहार का सरकार सेनानियों के सम्मान में आयोजित समारोह को सम्बोधित पर कोई असर नहीं हुआ और समयावधि के बाद हमें करते हुए आपने कहा था कि-'देश में रूस जैसी खूनी बाध्य होकर अनशन याने भूखहड़ताल प्रारम्भ करनी क्रान्ति के हालात बन रहे हैं। वर्तमान में देश के पड़ी।
भटकाव को नौजवान पीढ़ी ही रोक सकती है।'
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन इस अवसर पर भी आपने जेल यात्रा के अनेक संस्मरण श्री दालचंद जैन या डालचंद जैन सुनाये।
गोटेगांव, जिला-नरसिंहपुर (म0 प्र0) के श्री सम्प्रति आप रतलाम में अपने भरे-पूरे परिवार दालचंद जैन, पुत्र-श्री पुनउलाल का जन्म 1907 में के साथ रहकर जैनग्रंथों के अध्ययन में लगे हुए हैं। हुआ। 1931 से ही आप रा0 आO में सक्रिय हो गये आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग 4, पृष्ठ 193 (2)नई
थे। गोटेगांव में स्वतंत्रता का दुनिया, इन्दौर 11-8-1997 (3) स्व0 प0
शंखनाद आपने फूंका था। श्री दलीपचंद जैन
1939-40 के व्यक्तिगत
आन्दोलन में आप तीन बार होशंगावाद (म0 प्र0) के श्री दलीपचंद
जेल गये थे। गोटेगांव से झाँसी जैन, पुत्र-श्री परसराम जैन का जन्म 1901 में हुआ।
तक पैदल यात्रा आपने की। 1932 में विदेशी वस्त्रों की पिकेटिंग करते हुए आप
तीसरे सत्याग्रह के समय गिरफ्तार कर लिये गये और 4 माह के कारावास
आपके भाइयों ने आपको रोका, न रुकने पर मार-पिटाई की सजा आपको दी गई। 1943 में अल्प आयु में
की, फिर भी आप विचलित नहीं हुए और सत्याग्रह ही आपका देहावसान हो गया। आपके पुत्र विजय
किया। त्रिपुरी कांग्रेस में आपने स्वयंसेवक बनकर कुमार जैन भी जेलयात्री रहे हैं।
सहयोग दिया। 1942 में आप जबलपुर जेल में आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृ0-349 रहे। गोटेगांव की जनता राष्ट्र के प्रति आपकी लगन (2) स्व0 स0 हो0, पृ0-118
देखकर आपको 'महात्मा' कहने लगी थी। . श्री दालचंद जैन
आजादी के बाद आप कृषि कार्य करते रहे। डिण्डोरी, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री जैन मंदिर रम्मेलाल सदानन्द में आपने एक मूर्ति व दालचंद जैन, पुत्र-श्री पन्नालाल का जन्म 1911 में एक वेदी बनवाई थी तथा स्कूल को 25000/हआ। आप घर के रईस होने के साथ ही दिल के रुपये का दान दिया था। आपने पेन्शन आदि कोई भी रईस थे। जै0 स0 रा0 अ0 के अनसार सन 17 सहायता शासन से नहीं ली। 7 फरवरी 1992 को से पहले आप कई बार जेल यात्रा कर चुके थे। आपने
अपना निधन हो गया।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-14? स्थानीय खादी केन्द्र खोल रखा था। 42 में आपको
(2) जै0 स) रा0 अ0 (3) भतीजे श्री सुगन चंद जैन द्वारा प्रेषित छ: माह की कैद एवं 200/- रुपये जुर्माना की सजा जानकारी हुई थी। जुर्माना वापसी की घोषणा सुनकर आपने वे
श्री दालचंद जैन रुपये खद्दर भण्डार में देना घोषित किया था। आप
श्री दालचंद जैन, पुत्र-श्री भुलई लाल का दिनाङ्क 21 अगस्त 1942 से 20 फरवरी 1943 तक
जन्म 1917 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 जेल में रहे। आजादी के बाद आपने ग्रामोत्थान का
के आन्दोलन में आप जबलपुर शस्त्र फैक्टरी में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। आप न्याय, जनपद एवं ग्राम राष्ट्रीय कार्य करते हये गिरफ्तार किये गये तथा । पञ्चायत के अध्यक्ष तथा सरपंच आदि पदों पर रहे। वर्ष मास नजरबन्दी में रहे। __आ0- (1) म) प्र0 स्व0 सै०, भाग-1, पृष्ठ-208
आ0- (1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-59 (2) जै0 स0 रा0 अ0
(2) स्व0 स) ज), पृष्ठ-116
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प्रथम खण्ड
185
श्री दालचंद जैन
दोनों बडे भाई भी स्वतंत्रता आंदोलन में कद पडे. जिससे सागर (म0प्र0) के श्री दालचंद जैन, पुत्र- श्री घर की माली हालत बिगड़ गई एवं पूरा परिवार मानकलाल जैन ने 1942 के भारत छोडो आन्दोलन दाने-दाने को मोहताज हो गया। में भाग लिया और 3 माह का कारावास भोगा।
अपनी जेलयात्रा के सन्दर्भ में आपने अतीत की आ- (1) मा) प्र) स्व) सै०, भाग-2, पृष्ठ- 30
को याद करते हुए लिखा है- 'मुझे याद है एक अंग्रेज
भक्त भारतीय अधिकारी को मेरे ऊपर की गई (2) आ) दी0, पृष्ठ-47
टिप्पणी- “यह 15--16 साल का लड़का बहुत श्री दालचंद सिंघई
खतरनाक है इसे सबसे अलग रखो।" और मुझे सतत् गढ़ाकोटा, जिला- सागर (म0प्र0) के श्री 4 दिन एक कालकोठरी में अकेला रखा गया।'
दालचंद सिंघई, पत्र-श्री जेल में लोहे के बर्तनों में खाना बनाया जाता वृन्दावन का जन्म 1908 में था, जिससे सभी खाद्य काला पड़ जाता था। पेट में हआ। आरम्भ से ही आप चूहे दौड़ा करते थे, परन्तु दिल-दिमाग उस खाने से जना में सरकार दूर भागता था। इसी बात को लेकर जेल में अनशन
शुरू कर दिया साथ ही नारेबाजी भी। इससे खिन्न होकर रहा 28 फरवरा 1953 स जेल अधिकारियों ने लाठीचार्ज करवा दिया मेरी पोट 24 नवम्बर 1933 तक एवं पैर जख्मी हो गये थे। मेरे बदन पर आज भी यह
आपने कठोर कारावास की निशान, जिसमें देश की स्वतंत्रता की भावना छुपी है, यातनायें सही थीं।
जिंदा हैं। आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-2, पृष्ठ-30 (2)
उस सयम हम कई गीत गाया करते थे, दूसरे आ) दी), पृष्ट- 47 (3) अनेक प्रमाण पत्र
के रचित भी एवं स्वरचित भी। मुझे एक गीत याद श्री दिगम्बरराव जैन, खड़के आता है।
'ओ दगावाज, मक्ककार, सितमगर, बेईमान ओ श्री दिगम्बरराव जैन (खड़के) पुत्र-श्री शांतीनाथ
हत्यारे दोजख के कुत्ते, खुदगर्जी, बेरहम, बेवफा, जैन का जन्म, ग्राम-प्रभातपट्टन, जिला-बैतूल (म0प्र0)
बदकारे, बद पिल्ले थोते चश्म हरामी, रह जालिम गद्दारे 7 के एक गरीब परिवार में
तुम्हीं हिन्द में बन सौदागर, आये थे टुकड़े खाने!!' हुआ। आपकी माता का नाम
यह बहुत बड़ा गीत था, पूरा याद नहीं है, जेल श्रीमती सकुबाई था। पन्द्रह में ही जब्त कर लिया गया था। वर्ष की अल्पायु में ही आपको एक गीत और याद आता है. जो मैंने अपनी शिक्षक की नौकरी मिल गई गिरफ्तारी के बाद गाया थाऔर इसी के साथ शुरू हो
'हथकड़ी जो हाथ में डाली गई सरकार है। गया स्वतंत्रता पाने की
देश को आजाद करने का यही हथियार है। दीवानगी का आलम। गाँव के महान् स्वतंत्रता सेनानी फेंक देगी इस तरह से मिस्ले लंका की तरह। श्री बिहारी लाल पटेल के निर्देशन में स्वआत्मा की आह पुरता (?) सिर, यह जंजीर की झंकार है। आवाज पर आपने लोगों को अंग्रेजों की खिलाफत करने देश को आजाद करने का यही हथियार है। के लिए उकसाया, फलस्वरूप आपको छ: माह के इसके पश्चात् आपने इंदौर के राजकुमार मिल कठोर कारावास की सजा दी गई। इसी बीच आपके में श्रमिक की नौकरी की। वहाँ स्वास्थ्य ने साथ नहीं
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन दिया अतः अपने पैतृक गाँव आना पड़ा। आप संस्थाओं से जुड़े रहकर आप सदैव गरीबों की सेवा 'सेवादल' एवं 'भारत सेवक समाज' जैसे अग्रणी में जुटे रहे। सेवा संगठनों से भी जुड़े रहे। आप पाँच वर्ष तक
आ0-(1) इ0 अ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ-395 ग्राम पंचायत प्रभातपट्टन के सदस्य एवं सरपंच भी
श्री दीपचंद जैन रहे। वर्तमान स्थिति के सन्दर्भ में आपके विचार हैं- श्री दीपचंद जैन, पुत्र-श्री धरमचन्द जैन का
'मुझे आज यह सोचकर दु:ख होता है कि देश जन्म 1917 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 में व्याप्त भ्रष्टाचार, आपराधिकता, सच्चाई का दमन के भारत छोड़ो आन्दोलन में 9 माह के कारावास किस हद तक हो रहा है। क्या इसीलिये हमने की सजा आपने काटी। काली दाल एवं लाठियां खाईं, यातनायें सहीं। मैं इस आ0-(1) पा) प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-59 (2) अन्याय एवं दुराचार के खिलाफ लड़ता रहूँगा। सतत स्व०
स्व० स० ज), पृष्ठ-118 संघर्ष का
श्री दीपचंद जैन आ0 (1) प0 जै0 इ0, पृष्ठ-536 (2) बैतूल जिला स्व0
जबलपुर (म0प्र0) के श्री दीपचंद जैन, पुत्र-श्री स0 सै० सूची (3) स्व0 पा) (4) पत्र श्री गुलाब राव जैन
बन्शीलाल का जन्म 1919 में हुआ। आप 'चर्खा संघ श्री दीपचंद गोठी
सेवाग्राम' में काफी समय तक रहे। 1940 के व्यक्तिगत पिता ने ब्रिटिश सरकार से सहयोग किया पर सत्याग्रह में नौ माह, आन्ध्र प्रदेश की महबूब नगर पुत्र विद्रोह पर उतर आया। ऐसे विद्रोही श्री दीपचंद जेल में तथा नौ माह खंडवा तथा अकोला की जेलों गोठी का जन्म 1897 में बैतूल (म0प्र0) में हआ। में आपने बिताये। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन आपके पिता का नाम श्री लक्ष्मीचंद था। आपके पूर्वज में आप पुन: गिरफ्तार हुए और || माह 20 दिन श्री शेर सिंह जी 1846 में रासबाबरा (जोधपुर) से का कारावास भोगा। खादी प्रचार में विशेष योगदान बैतल आकर बस गये थे। लक्ष्मीचंद जी प्रसिद्ध देने वाले श्री जैन जातिवाद के सख्त विरोधी थे। उद्योगपति एवं जमींदार थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै०), भाग-1, पृष्ठ-59 उन्होंने अंग्रेजों की अनेक तरह से सहायता की थी,
श्री दीपचंद बख्शी किन्तु पुत्र दीपचंद बचपन से ही दयावान एवं सेवाभावी थे। युवा होकर आप बैतूल सेवा समिति के नायक
जागीरदारों के परिवार में दिनांक 24 अगस्त बने। ब्रिटिश शासन के प्रति विद्रोह आपकी नस-नस
1920 को जन्मे श्री दीपचंद बख्शी , पुत्र- श्री में समाया हआ था। 1930 में आप राष्ट्रीय कांग्रेस चिरंजीलाल को सरकार का वफादार होना चाहिये के सदस्य बने एवं स्वतंत्रता-यज्ञ में भरपर योगदान था, लेकिन बख्शी जी ने स्वतन्त्रता संग्राम में कूदने दिया। समस्त वैभव को ठकरा कर नले पांवों राष्टीयता को अधिक श्रेयस्कर समझा और 8 वर्ष की आयु में का अलख जगाने के लिए पद यात्रायें की। 1934 हो राजनीति में सक्रिय कार्य करने लगे। आप के जंगल सत्याग्रह में आपको गिरफ्तार कर लिया गया। मित्र-मंडल, प्रेम-मंडल जैसी संस्थाओं के सदस्य 1936 में जब प्रांतीय धारासभाओं के चुनाव हुए बन गये। जयपुर में राज्य प्रजामंडल के आंदोलन में तो आप कांग्रेस की तरफ से एम0 एल0 ए0 चुने आपने सक्रिय योगदान के साथ ही आंदोलनकारियों गए। अनेक समाज हितकारी प्रवृत्तियों एवं की आर्थिक सहायता भी की। तत्कालीन राजनीति
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प्रथम खण्ड
प्रमुख श्री जमनालाल बजाज, श्री हीरालाल शास्त्री, श्री कपूरचन्द पाटनी, बाबा हरिचन्द्र एवं श्री हरिभाऊ उपाध्याय के आप विश्वस्त सहयोगी रहे हैं। 1937, 38, 40 व 42 में जेल यात्रायें करके देश के स्वतंत्रता सेनानियों में आपने अपना प्रमुख स्थान बना लिया। आपने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के आन्दोलन में भी भाग लिया था। 1939 में आप मोहनपुरा कैम्प जेल में रखे गये थे। बख्शी जी बहुत शांत एवं सरल परिणामी व्यक्ति हैं। प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा करने का आपका नियम है।
आ)- (1) जै० स० बृ0 इ0, पृष्ठ 249 (2) रा0 स्व०) से), पृष्ठ 609
श्री दीपचंद मलैया
गढ़ाकोटा, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी श्री दीपचंद मलैया (जैन), पुत्र श्री सज्जन कुमार का जन्म 1914 में हुआ । आपने 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। फलत: 6 माह का कारावास भोगा। 1971 में आपका निधन हो गया। आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-30 (2) आ() दी।), पृष्ठ-48
श्री दुलीचंद ओसवाल
रायपुर (म0प्र0) के श्री दुलीचंद ओसवाल, पुत्र श्री कन्हैयालाल का जन्म 1918 में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा तीन माह पच्चीस दिन का कारावास भोगा ।
आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-35
श्री दुलीचंद जैन
श्री दुलीचंद जैन, पुत्र- श्री मल्थूराम जैन तालबेहट, जिला - झाँसी (उ0 प्र0) के निवासी थे। आपने क्षेत्रीय नेताओं के साथ आन्दोलन में भाग लेकर भारत को आजाद कराने में अपना योगदान दिया था और 1941
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187
में 6 माह की सजा काटकर जैन समाज को इस पवित्र महायज्ञ में आहुति देने की प्रेरणा दी थी ।
आ) - (1) र0 नी) पृष्ठ 88 (2) जै) स) रा0 अ
श्री दुलीचंद जैन
ग्राम-कारी, जिला टीकमगढ़, (म0प्र0) के श्री दुलीचंद जैन, श्री पुत्रजैन का जन्म 1922 मूलचन्द में हुआ। ओरछा राज्य के उत्तरदायी शासन हेतु चलाये गये आन्दोलन के अन्तर्गत जंगल (महुआ ) आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा एक माह से अधिक का कारावास टीकमगढ़ जेल में भोगा । आ0 (1) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-128 (2) वि0 स्व० स० ३०, पृष्ठ 214
श्री दुलीचंद जैन
'कौशल कविराय' उपनाम से विख्यात, बुन्देली भाषा के प्रसिद्ध कवि श्री दुलीचंद जैन, पुत्र- श्री रनजीत लाल जैन का जन्म 18-6-1925 को देवरी कलां, जिला - सागर (म0प्र0) में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा देवरी के हिन्दी मिडिल हाई स्कूल में हुई। बी० ए० पास कर आप अध्यापन कार्य में संलग्न हो गये। 1939 से ही आपने खादी पहिनना एवं सूत कातना प्रारम्भ कर दिया था।
1942 के आन्दोलन में आप गिरफ्तार कर लिये गये और 5-9-42 से 8-4-43 तक सागर जेल में रहे। आपको 15 दिन की गुनाहखाना की सजा दी गई थी, आपने लिखा है कि 'जेल में रहकर गेंहू नुकाना, (साफ करना) रस्सी कातना आदि कार्य करने पड़ते थे । हफ्ते में 2 दिन रद्दी किस्म की ज्वार खाने को मिलती थी। जेल में हम सब एक दूसरे से स्नेह रखते
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन थे। तथा सीखने और सिखलाने की इच्छा बलबती थी। बीड़ा उठाया। आपने ग्रामीण क्षेत्रों में घूम-घूम कर कांग्रेस संगठित थे।'
की नीतियों एवं सिद्धान्तों का प्रचार किया और स्वातंत्र्य जेल से आने के बाद आप राष्ट्र हित के कार्यों महायुद्ध हेतु अनेक स्वयंसेवकों को तैयार किया। में लगे रहे, विनोबा जी के भूदान आन्दोलन में भाग 1941 में बापू ने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने लिया और सर्वोदय संस्था से जुड़े रहे। आज भी देश हेतु छिन्दबाड़ा जिले के सत्याग्रहियों की जो सूची जारी के एवं समाज के लिए कुछ करने और मर मिटने की थी, उसमें दुलीचंद भाई मेहता भी एक थे। की लालसा है। आप अच्छे कवि भी हैं। आपके सन्दर्भ फलस्वरूप आपको 6 माह का कारावास दिया गया में -'बुंदेलखण्ड में स्थित देवरी (सागर) के । इस दौरान आप छिंदबाड़ा और नागपुर के बंदीगृहों साहित्यकारों का साहित्यानुशीलन' शोध प्रबन्ध में लिखा में रखे गए। 1942 में आपका स्वास्थ्य अत्यधिक खराब गया है
हो जाने के कारण आप भारत छोड़ो आंदोलन में भाग ____ 'देवरी के नवीन साहित्यसेवियों में श्री दलीचंद न ले सके। इसका आपको जीवनपर्यन्त खेद रहा। जैन "कौशल कविराय" का नाम उल्लेखनीय है।आप स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान आपका महात्मा गाँध अपनी व्यंग्य कविताओं व कण्डलियों के लिए प्रसिद्ध । और अहमदाबाद में लोहपुरुष सरदार बल्लभभाई हैं। आपकी रचनाओं में स्थानीयता की प्रवत्ति विशेष पटेल का प्रेरणास्पद सान्निध्य प्राप्त हुआ था। 20 अगस्त रूप से देखने को मिलती है। बुन्देली भाषा को आपने 1974 को आपका निधन हो गया । अपनी अभिव्यक्ति का प्रधान माध्यम बनाया है। खड़ी
आO-(1) म) प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-9 (2) स्वाध बोली हिन्दी में भी आपने अनेक कविताएं लिखी हैं।' निता आन्दोलन में छिन्दवाड़ा जिले का योगदान, (टंकित शोध प्रबन्ध
___ आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-31 ) पृष्ठ-294-295 (2) आ) दी0, पृष्ठ-49 (3) 'बुन्लेदखण्ड में स्थित देवरी के
श्री दुनीचंद जैन । साहित्यकारों का साहित्यानुशीलन (टकित शोधप्रबंध) पृष्ठ-569-70 (4) स्व) प0
जयपुर (राजस्थान) के श्री दूनीचंद जैन का जन्म
संवत् 1961 (1904 ई0) में वर्तमान पाकिस्तान के श्री दुलीचंद भाई मेहता
बहालपुर में हुआ। देश के बटवारे के बाद वे जयपुर श्री दुलीचंद भाई मेहता आत्मज श्री खेमचंद का आ गये। नशाबंदी और समाजोत्थान को समर्पित श्री जन्म 1890 में कच्छ (गुजरात) में हुआ। आपका जैन ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और अनेक संबंध एक सम्पन्न परिवार से था। 1903 में आपके बार अनेक दिन पुलिस की हिरासत में रहे! पिता व्यवसाय की खोज में पांदुरना (जिला-छिंदबाड़ा)
आo-(1) रा0 स्व0 से0, पृष्ठ-611 म0प्र0 आ गये। गाँधी जी के विचारों से प्रभावित होने
श्री देवराज सिंघी के कारण आपका मन व्यापार में नहीं लगता था, अत:
राजस्थान के क्रान्तिकारियों में श्री देवराज सिंघी विचार-विमर्श के पश्चात् आप राष्ट्रीय संघर्ष में सक्रिय
का नाम बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता हो गये। नागपुर जैसे उच्च राजनैतिक केन्द्र के अत्यन्त
है। आपका जन्म 1922 में हुआ। बचपन से ही क्रांति निकट होने के बावजूद पांदुरना क्षेत्र के लोग राष्ट्रीय
का विचार आपके मानस को आन्दोलित करने लगा। चेतना की दृष्टि से कुछ शिथिल ही थे, अत: आपने
छात्र जीवन से ही आपने खादी के वस्त्र पहनना शुरू सर्वप्रथम इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करने का
कर दिया था।
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प्रथम खण्ड
189
____1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय जोध 1932 में पं0 जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी पुर में बम बनाने का काम आपके सुपुर्द किया गया। के बाद पुन: अजमेर 'बाबूजी' के नायकत्व में एक उस समय जोधपुर के हवाई अड्डे पर अंग्रेजी वायुसेना जत्था गया, वहाँ आप अपने साथिया के साथ गिरफ्तार की एक पूरी बटालियन थी, जो मनोविनोद के लिए हुये और जेल में बंद कर दिये गये। 1934 में बढ़े हर शनिवार को शहर के सिनेमागृह में आया करती हुये करों के खिलाफ इन्दौर की जनता ने आठ रोज थी। देवराजजी ने अध्ययन कर टाइम बम बनाया और की अभूतपूर्व हड़ताल की, उसमें 'बाबूजी' गिरफ्तार उसे थैले में रखकर बड़े भाई लालचन्द जी के हाथों हुये और बन्द कर दिये गये। इन्दौर में इसके बाद हाल में कुर्सी के नीचे रखवा दिया। विस्फोट हुआ, दीनानाथ शाही का दमन प्रारम्भ हुआ। प्रजापक्ष ने पर कोई आहत नहीं हुआ, किन्तु सरकार दहल गई। दीनानाथ शाही को चुनौती देकर कानून भंग करना धर-पकड़ शुरू हुई। दुर्भाग्य से दल का एक सदस्य शुरू किया। सभाबन्दी और जुलूसबन्दी के कानून मुखबिर बन गया। दोनों भाई पकड़े गए। जेल में आपको बाबूजी द्वारा तोडे गये। गौसीबाई की गिरफ्तारी के यातनाएं दी गई। सजा के दिन लालचन्द अदालत से दिन थाने तोड़े गये, शहरों में मजदूरों का राज्य था। फरार हो गए एवं अनेक दिन साधु बनकर रहे। दल गौसीबाई की गिरफ्तारी ने बतला दिया कि इस के अन्य सभी अभियुक्तों को सजाएं हुईं। देवराजजी हड़ताल का कारण क्रान्तिकारी नेता नारायण सिंह हैं, को दस साल की कैद हो गई। सिंघी जी ने अनेक जो देवेन्द्र कुमार जी के 'अनाथ-सदन' में छिपे हुए स्थानों पर घूमने के बाद कलकत्ता में अपना कारखाना हैं। फिर क्या था, बाबूजी समेत नारायण सिंह पकड़े स्थापित किया। सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यक्रमों गये और जेल में बन्द कर दिये गये। में आप भाग लेते रहे हैं।
अगस्त 1942 में कांग्रेस महासमिति की बैठक आ) ( 1 ) इ0 अ0 ओ), भाग-2, पृष्ठ-396, 397 में भारत छोडो आन्दोलन का प्रस्ताव पास होते ही बाब देवेन्टकमार जैन
दमन प्रारम्भ हुआ। बाबूजी बम्बई से इन्दौर लौटते 'बाबजी' उपनाम नाम से विख्यात इन्दौर हुए रास्ते में गिरफ्तार कर लिये गये और अजमेर (म0प्र()) के श्री बाबू देवेन्द्रकुमार जैन, पुत्र श्री
जेल में बंद कर दिये गये। जेल से छूटने के बाद ही
आपने शहर की तमाम लाइब्रेरियों के बाहर प्रचारक कंवर लाल का जन्म 1898 में हुआ। तत्कालीन
बोर्ड लगवाये जिसने नवीन जाग्रति पैदा की। राष्ट्रकार्यकर्ताओं में आपका सर्वोपरि स्थान था। 1924
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-24 में सहारनपुर जैन पाठशाला में आपने प्रधानाध्यापक
(2) जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-64 का काम किया। उसके बाद आपने अपना समस्त जीवन इन्दौर की नागरिक जागृति और राष्ट्रसेवा में
श्री देशदीपक जैन अर्पण कर दिया। 1930 में नमक कानून तोड़ने के
'वीरों की रगों में बहता खून कठिन समय में लिए इन्दौर से बाबू जी के नायकत्व में एक जत्था भी ठण्डा नहीं पड़ता' इस कहावत को चरितार्थ करने अजमेर गया। 62 आदमियों की गिरपतारियां हई। वाले, कुरावली, जिला-मैनपुरी (उ0प्र0) के श्री उनमें 36 व्यक्ति जेल भेज दिये गये। बाकी को देशदीपक जैन, पुत्र-श्री गुणधर लाल का जन्म 3 छोड दिया गया। बाब जी को तीन माह की सजा हई अक्टूबर 1919 को कायमगंज, जिला-फर्रुखाबाद और कोड़ों की मार पड़ी।
(उ0प्र0) में हुआ। आपके पिताश्री ने 1930 के नमक
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.. स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आन्दोलन में एक वर्ष की जेल यात्रा और 100/- रु) जो देश की सेवा में लीन रहे,
का जुर्माना भोगा था। गरीबी वह 'दीपक' ऐसा समाज हूं मैं। के कारण उन्हें अपना मकान स्वतंत्रता के जो हैं रोड़ा बने, भी बेचना पड़ा और 4 साल उन्हीं के लिए हुआ शूल हूँ मैं। सपरिवार बम्बई जीवनयापन हो जिसमें शहीदों का रक्त बहा, के लिए रहना पड़ा था।
उन वीरों की पावनी गल हूँ मैं। देशदीपक जी ने अपना गनों से जो 'दीपक' तोड़ा गया,
| परिचय देते हुए लिखा मुरझाया हुआ वह फूल हूं मैं, है 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में मैं कूद पड़ा जिस पथ पर पूज्य सुभाष चले,
और सक्रिय रूप से भाग लेने लगा। कुरावली का उस राज की पावन धूल हूं मैं।' दायित्व मेरे कंधों पर आ पड़ा। मेरी सक्रियता के कारण आपके संदर्भ में जैन संदेश लिखता है- 'सन् जिला स्तरीय नेतृत्व प्रसन्न हुआ। इस समय कुरावली 42 का तेजी का जमाना और घर में छः प्राणी, छोटे में भी हड़ताल एवं कुरावली बंद का आह्वान तथा भाई का इण्टर क्लास में पढ़ने का खर्च यह सब इनके गल्ला मण्डी में एक मीटिंग का आयोजन किया गया। ही ऊपर था। इनकी एक कपड़े की दुकान है जो कि स्कूल-कॉलेज बंद कराने के पश्चात् जैसे ही मण्डी इनके पश्चात् बंद रही।' में जनता ने एकत्र होना प्रारम्भ किया, मुझे बन्दी बना आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ) (2) उ0 प्र0 जै) ध0, लिया गया। मुकदमा चलाया गया, जिसमें मुझे 6+8= पृष्ठ-93 (3) स्व0 प0 14 माह का सश्रम कारावास तथा 150/- रु0 जुर्माना
श्री दौलतमल भंडारी की सजा दी गई। कारावास के दरम्यान तन्हाई, बेड़ी,
जयपुर (राज0) से लोकसभा सदस्य तथा अनशन इत्यादि के कार्यक्रम भी चलते रहते थे।
लता रहता था राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे श्री
, जेल से छूटने के बाद बन्दी जीवन की अनुभूतियों दौलतमल भंडारी का जन्म 16 दिसम्बर 1907 को को संजोये हुए मैं कुरावली आया ही था कि मैनपुरी जयपुर में हआ। आपने महाराजा कालेज, जयपुर से में एक कवि सम्मेलन में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त बी0ए0 तथा लखनऊ वि0वि0 से एम0ए0 (गणित) हआ। लब्धप्रतिष्ठित कवियों के कवित्व- पाउ के एवं एल0एल0बी0 की परीक्षायें पास की और वकालत पश्चात् मेरा नम्बर आया तो मंचासीन अध्यक्ष ने कुछ करने लगे। 1939 में जयपुर में पहली बार मौलिक उपेक्षित मुस्कान के साथ मेरा परिचय पूछा। मैंने कविता अधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रजामण्डल का संघर्ष में ही अपना परिचय इस प्रकार दिया था- राज्य सरकार से हुआ। जब सभी नेता गिरफ्तार कर पापी नराधम अनाचारियों के,
लिये गये तब भंडारी जी ने आन्दोलन का संचालन सिर पे गिरे वह गाज हूं मैं,
किया। जो वीरों के मन में उत्साह भरे,
1942 में आपने आजाद मोर्चे की स्थापना की रण ही में बजे, वह साज हूं मैं। और सूझबूझ से उसका संचालन किया। सरकार जो पर्दे की ओट शिकार करे, विरोधी कार्यवाही के कारण 1942 में ही आप गिरफ्तार उन पापियों का बना राज हूं मैं। कर लिये गये और 1943 के आरम्भ में रिहा हुए।
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प्रथम खण्ड
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जेल से मुक्त होने के बाद आप जयपुर राज्य में के छात्र सीना तानकर सामने आ गये और कहा कि प्रजातंत्रात्मक सरकार की स्थापना के लिए प्रयत्नशील 'पहले हमारी छाती पर गोली मारो फिर हमारे डिक्टेटर रहे। 1945 में भंडारी जी विधान सभा के लिए चुने को मारना।' इस पर पुलिस व अधिकारियों के पैर गये और वहां प्रजामण्डल दल का कुशल नेतृत्व किया। उखड़ गये और सभा में 'भारत छोड़ो' का प्रस्ताव पास 1947 में तत्कालीन जयपुर सरकार के मंत्रिमण्डल हुआ। किन्तु 23 अगस्त 1942 को आपको गिरफ्तार में सदस्य के रूप में विकास एवं रसद विभाग का कर लिया गया व 6 माह के कारावास की सजा दी कार्य संभाला। 1952 में वे जयपर निर्वाचन क्षेत्र से गई। 1943 में भी श्री जैन ने हथगोला फेंककर डाक लोकसभा के लिए कांग्रेस के टिकट पर भारी बहुमत बंगला जला दिया था और इस केस में भी ढाई वर्ष से चुने गये। 1955 में आप वकील से न्यायाधीश बने नजरबंद रहना पड़ा था।
और 1968 में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाध देश की आजादी के बाद आप विनोबा जी के शि नियुक्त हुए। 1969 में भारत सरकार द्वारा कृष्णा भूदान व सर्वोदय से जुड़ गये। आपके अनुज श्री गोदावरी ट्रिब्यूनल में न्यायाधीश बने। भूमि सुधार कानून राजकुमार जैन भी डाक बंगला जलाने के अभियोग में सुधार करने के लिए राजस्थान सरकार ने आपकी में लगभग 5 माह सेन्ट्रल जेल आगरा में रहे। अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। आपके आO-(1) जै) स) रा0 अ0 (2) उ0 प्र) जै) 40, पृष्ठ-91 विचार सदैव क्रान्तिकारी रहे हैं।
(3) 'अमृत' स्मारिका, पृष्ठ-24 (4) जै0 से0 ना0 अ0, पृष्ठ-3 आ) (1) रा) स्व0 से), पृष्ठ-566
श्री धन्नालाल गुढ़ा श्री धनवन्त सिंह जैन
श्री धन्नालाल गुढा, पुत्र- श्री मूलचंद गुढ़ा का 'सरदार' नाम से विख्यात फिरोजाबाद (उ0प्र0)
जन्म 25-1-1914 को ललितपुर (उ0 प्र0) में हुआ। के श्री धनवन्त सिंह जैन, फिरोजाबाद नगर में
अपने ओजस्वी भाषणों से जनता में आजादी की भावना आन्दोलन के प्रमुख नेता पं0 रामचन्द्र पालीवाल के
फैलाने वाले गुढ़ा जी हड़तालें करवाने में अगुआ रहे अनन्य सहयोगी थे। श्री जैन कांग्रेस के जुलूसों का
थे, विद्रोहात्मक गतिविधियों के कारण आप शासन के
सिर दर्द बन गये थे। 1942 के आन्दोलन में आपकी नेतृत्व घोड़ी पर बैठकर, झण्डा फहराते हुए करते थे। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आप होली की पूर्णिमा
गिरफ्तारी डी0 आई0 आर0 के अन्तर्गत हुई, जिसमें के दिन गिरफ्तार किये गये और एक वर्ष दो माह जेल
। वर्ष का कठोर कारावास तथा 100 रुपया का अर्थ
दण्ड हुआ। आजादी के उपरान्त आप समाजवादी पार्टी में रखे गये।
के सक्रिय कार्यकर्ता बन गये थे। साथ ही अनेक ___) अगस्त 1942 को जब सारा देश 'भारत छोड़ो
धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के भी सक्रिय आन्दोलन' में कूद पड़ा तब फिरोजाबाद अछूता कैसे
कार्यकर्ता हो गये थे। रहता. उस दिन एस0 आर0 के) कालेज के विद्यार्थियों
आO-(1) र0 नी0, पृष्ठ-33 (2) जै0 स0 रा) अ) का जुलूस सिनेमा के सामने होता हुआ गलैया पहुंचा।
(3) डॉ0 बाहुबली कुमार जैन द्वारा प्रेषित परिचय जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। श्री जैन र डिक्टेटर थे, उन्होंने अनाज की मण्डी मे बनी प्याऊ
श्री धन्नालाल जैन पर चढकर झण्डा फहरा दिया। एंग्लो इण्डियन मजिस्ट्रेट ग्राम-बकौरी, पोस्ट-फूलसागर, जिला-मण्डला ने श्री जैन की ओर पिस्तौल तान दी, इस पर कालेज (म0प्र0) के श्री धन्नालाल जैन, पुत्र-श्री बलदेव
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन लाल का जन्म 5 जनवरी 1906 को बरगी ग्राम में में विदिशा के नवयुवकों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग हुआ। 1930 के जंगल सत्याग्रह में 1 माह की सजा लेने के लिए प्रेरित किया, फलत: 19 सितम्बर 1942 एवं 20 रु0 का अर्थदण्ड आपको भोगना पड़ा। को गिरफ्तार किये गये और लगभग 9 माह का आ0-(1) म0 प्र) स्व) 30. भाग-1, पृष्ठ-208 कारावास आपने भोगा। श्री धन्नालाल जैन
आ0-(1) म) प्र) स्व) सै), भाग-5, पृष्ठ-96 इटारसी, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री
श्री धन्नालाल शाह भन्नालाल जैन, पुत्र-- श्री मन्नूलाल जैन का जन्म इन्दौर (म0प्र0) के श्री धन्नालाल शाह 1923 में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में का राष्ट्रीय आन्दोलन में अवतरण अखबार नवीसी से आपने ( माह का कठोर कारावास भोगा।
हुआ। आपने अनेक हिन्दी पत्रों के सम्पादकीय आ) (1) भ) प्रा) स्वा) सै), भाग-5, पृष्ठ-330
विभाग में तथा अनेक दैनिक अंग्रेजी पत्रों के संवाददाता श्री धन्नालाल जैन
के रूप में कार्य किया। त्रिपुरी कांग्रेस के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ की गतिविधियों में आपने श्री घनश्याम सिंह गुप्त, स्पीकर, मध्यप्रान्तीय निरन्तर रुचि रखने वाले तथा 'मोतीवाले' उपनाम से धारासभा और सेठ गोविन्द दास, एम0एल0ए0 विख्यात जबलपुर (म0प्र0) के श्री धन्नालाल जैन, के प्राइवेट सेक्रेट्री का भी कार्य किया था। 1942 पुत्र श्री गुलाब चंद मोतीवाले का जन्म 1915 में क आन्दोलन में राष्ट्रीय प्रवृत्तियों के कारण आप हुआ। 1930 के सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के गिरफ्तार कर लिये गये और खंडवा तथा नागपुर कारण तिलक भूमि तलैया पर आपको गिरफ्तार कर जेलों में रहे। लिया गया और छ: माह की जेल तथा 50 रुपया
आ)-(1) जै) स) रा() अ), पृष्ठ-63 अर्थ दण्ड को सजा दी गई। राष्ट्रीय गतिविधियों के
श्री धन्यकुमार जैन कारण 1932 में गन केरिज फैक्ट्री की नौकरी से भी
इस सदी के जैन दर्शन और न्याय के विख्यात आपको निष्कासित होना पड़ा। 1939 के त्रिपुरी
विद्वान् स्व0 डॉ0 महेन्द्र कुमार जैन न्यायाचार्य के कांगय अधिवेशन में सूचना एवं प्रकाशन के कार्यों गे आप सम्बद्ध रहे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन
। अनुज श्री धन्यकुमार जैन,
पुत्र श्री जवाहर लाल जैन का में पुन: गिरफ्तार कर लिए गये तथा । वर्ष 3 माह
जन्म 15 जुलाई 1924 को तक नजरबंद रखे गये। राष्ट्रीय कार्यक्रमों में आप
खुरई, जिला-सागर (म0प्र0) संदव सक्रिय रहे।
में हुआ। 8-9 वर्ष की आ) - 1 |) म0 प्र) स्व) मै0, भाग-1, पृष्ठ-62
अवस्था में ही आप सविनय 12) स्वा) सा) जा), पृष्ठ 125
अवज्ञा आंदोलन में जंगल श्री धन्नालाल जैन
गोडने वाले सत्याग्रहियों के साथ मीलों 'महात्मा विदिशा (म0प्रा)) के श्री धन्नालाल जैन, पुत्र-श्री गांधी की जय' बोलते जाते थे। कक्षा 8 पास करने रूपचन्द का जन्म 1922 में हुआ। माध्यमिक तक के बाद आप वाराणसी के प्रसिद्ध स्याद्वाद महाविद्यालय शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में संस्कृत पढ़ने के लिये बड़े भाई डॉ.) महेन्द्र कुमार
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प्रथम खण्ड
193
न्यायाचार्य के पास आ गये। यहीं राष्ट्रीयता का खुला कालेज वाराणसी से मेरा पृथक्करण पहले ही हो चुका था । ' वातावरण पाकर आजीवन खादी पहिनने एवं देश को स्वतंत्र कराने की प्रतिज्ञा ली।
आ)- (1) जै० स० रा० अ० ( 2 ) स्व0 प)
अगस्त 1942 की जनक्रान्ति में दमनचक्र अपनी चरम सीमा पर था । अखबार बन्द कर दिये गये थे। 16 अगस्त के 'सोनारपुरा गोलीकांड', जिसमें स्याद्वाद महाविद्यालय के सभी छात्र मौजूद थे, के उपरान्त सभी कार्यकर्ता अलग-अलग जिम्मेदारी लेकर गाँवों में फैल गये । क्रान्ति का अलख जगाने के लिये हाथ के प्रेस द्वारा 'रणभेरी', 'शंखनाद' जैसे परचे छापने एवं वितरण करने की जिम्मेदारी आपने अपने साथियों के साथ ली। जन्माष्टमी के दिन 3 सितम्बर 1942 को रात्रि में निशात सिनेमा हाल, गोदौलिया में एकत्रित जन समूह का आपने लाभ उठाया, फलतः परचे बांटते समय अनेक साथियों के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिये गये। आपको 3 सितम्बर 1942 से 7 अक्टूबर 1942 तक अन्डर ट्रायल, 8 अक्टूबर 42 से 6 फरवरी 1943 तक सश्रम कारावास की सजा हुई।
स्वतंत्रता आन्दोलन के सन्दर्भ में आपसे अनेक बार चर्चा हुई। आपने बताया कि - ' फरवरी 1943 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित एम०जी० ऑफिस को बम से उड़ाने के बाद, साथियों से शस्त्रास्त्र एवं अप्रयुक्त सामान लेकर उन्हें सामने गंगाघाट की बालू में छिपाने का कार्य मैंने व अन्य साथियों ने सफलता पूर्वक किया था। स्याद्वाद महाविद्यालय से संघर्ष जारी रखने की खबर सरकार को निरन्तर मिलती रही। जब 1944 में आन्दोलन समाप्तप्रायः था तब श्री टीकाराम
डी()आई()जी() (गुप्तचर) लखनऊ के नेतृत्व में जैन विद्यालय एवं निकटस्थ जैन मंदिर में छापा मारा गया। बड़ी संख्या में गंगा जी को भेंट चढ़ाने के बावजूद भारी मात्रा में शस्त्र बरामद हुये। तीन साथी अमृतलाल जैन, गुलाबचन्द जैन और घनश्यामदास गिरफ्तार हुये । मैं व अन्य साथी वहाँ से हटकर भूमिगत हो गये । आन्दोलन में भाग लेने के कारण क्वींस
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श्री धर्मचंद जैन
A
श्री धर्मचंद जैन, पुत्र - श्री गोपाल चंद का जन्म 1920 में ग्राम - दाहोद, जिला - रायसेन (म0प्र0) में हुआ। 1942 के आन्दोलन में आपने लगभग तीन माह भोगा। का कारावास
म0प्र0 के मुख्यमंत्री श्री प्रकाशचंद सेठी द्वारा आपको प्रशस्तिपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया था।
आ - ( 1 ) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृ0-73 (2) 740 40
श्री धर्मचंद जैन
श्री धर्मचन्द जैन का जन्म 1924 में पन्ना (म0प्र0) जिले के ककरहटी गांव में हुआ। आपके पिता का नाम श्री फदालीलाल जैन था। बाद में धर्मचंद
जी सागर (म0प्र0) में आकर रहने लगे और 'मस्त' उपनाम से विख्यात हो गये। आजादी के आन्दोलन में तन-मन-ध न से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले धर्मचंद जी ने आजादी की लड़ाई के दिनों की यादों बताया ‘16 वर्ष की उम्र में ही पढ़ना छोड़कर मैंने सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों और पुलिस से छिप-छिप कर जनता में आजादी की लहर फूंकने के लिए पर्चे बांटता रहा.
को ताजा करते हुए
1942 में गांधी जी के 'करो या मरो' के आह्वान पर चकराघाट पर आयोजित आम सभा के दौरान
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन
नारेबाजी और धारा 144 का उल्लघंन करने पर में बुढार, जिला-शहडोल (म0प्र0) में हुआ। अपने साथियों सहित आप गिरफ्तार कर लिये गये और कुछ समय के बुढ़ार के सबसे शिक्षित व्यक्ति श्री जैन ने दिन जेल में रहे। 2 अक्टूबर 1942 को आप मजिस्ट्रेट बी0 ए0 तक शिक्षा प्राप्तकर एक शिक्षक के रूप में के सामने उपस्थित हए। इनसे माफी मांगने को कहा अपना जीवन प्रारम्भ किया। (पारिवारिक परिचय हेत गया लेकिन धरमचंद जी ने माफी मांगने से साफ मना धर्मचंद जी के अग्रज श्री रतनचंद जैन का परिचय कर दिया, फलस्वरूप आपको 6 माह की सजा हुई। इसी ग्रन्थ में देखें) पर भारत माता की बेडियों के 2 माह डिटेशन में भी रखा गया जब यह जेल में थे कारण शिक्षक पद से त्यागपत्र देकर आप आजादी तो इनकी माता जी का निधन हो गया पर जेल से के आन्दोलन में कूद पड़े। बड़े भाई रतनचंद पहले नहीं छोड़ा गया और मां के निधन का दुख भी आप से ही आन्दोलन में सक्रिय थे। 1942 के आन्दोलन देश की खातिर हंसते-हंसते सह गये।
में 20-8-1942 को आप गिरफ्तार कर सेन्ट्रल जेल 'जिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन' के मंत्री रीवां भेज दिये गये, जहाँ 22-2-1943 तक धर्मचन्द जी कहते हैं आज के दौर में समाज सेवा अन्डरट्रायल रहे। बाद में 22-2-1943 को 200/-रुपये के नाम पर नेता पदों के लिये भाग-दौड़ और दांव-पेंच जुर्माना और छह माह कठोर कारावास की सजा आपको में उलझे रहते हैं। जनसेवा की भावना पहले जैसी सुनाई गई। यह सजा भी आपने सेन्ट्रल जेल रीवां में किसी में दिखाई नहीं देती। बिना पैसे के जरा सा काम काटी। नहीं होता। अधिकारी, कर्मचारी और तथाकथित नेता श्री जैन शहडोल जिला कांग्रेस कमेटी तथा भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। आज चारों ओर भ्रष्टाचार और कुछ समय धनपुरी कालरी मजदूर संघ के अध्यक्ष भाई-भतीजाबाद का बोलवाला है, अधिकांश युवा पीढ़ी रहे थे। 1944 के बाद आप मजदूरों के नेता कहे जाने स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान नहीं देती।' लगे थे। मजदूरों की आर्थिक स्थिति उन्नत करने में
धर्मचंद जी कहते हैं- 'आज की पीढी आजादी आपने महती भूमिका निभाई थी। 16-12-1987 को के महत्त्व को नहीं समझ रही है। कितनी कुर्बानियों भोपाल में आपका देहावसान हुआ। के बाद अंग्रेजों के दमन से मुक्ति मिली थी।' आपने
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-312 जनता से भाई-चारे, शांति और जनसेवा के लिए काम
(2) जै) स) रा0 अ0 (3) स्वा० आ0 श), पृष्ठ-103 करने का आह्वान किया।
श्री धर्मचन्द 'मस्त' को म0प्र0 सरकार ने ताम्रपत्र श्री धीरजमल के तुरखिया भेंट कर सम्मानित किया था, आप कांग्रेस सहित
ब्यावर (राजस्थान) के श्री धीरजमल के0 अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हुए थे। 1999 में तरखिया विद्यार्थी जीवन में ही राष्ट्रीय आन्दोलन में आपका निधन हो गया।
कूद पड़े। 1912 में जब आप जैन ट्रेनिंग कालेज ___ आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-32
रतलाम में पढ़ रहे थे तब गांधी जी ने साबरमती के (2) दैनिक भास्कर, भोपाल 22-8-94 (3) आ0 दी0, पृष्ठ-50
तट पर सत्याग्रह शुरू किया था, उसमें आपने भर्ती सवाई सिंघई श्री धर्मचंद जैन
होना चाहा। आश्रम में कुछ दिन रहे भी, चूंकि वहाँ शहडोल जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे पिताजी की बिना आज्ञा के भर्ती नहीं किया जाता श्री धर्मचंद जैन, पुत्र-श्री रामचंद जैन का जन्म 1913 था, अतः आज्ञा न मिलने से पुनः रतलाम में पढ़ाई
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प्रथम खण्ड
195
प्रारम्भ की। 1920 में बम्बई गये, उस समय
श्री नत्थू जैन चर्खा खादी खिलाफत की गूंज थी, तिलक स्वराज्य स्वतंत्रता सेनानी श्री नत्थू जैन (जामला) बैतूल फण्ड का आन्दोलन चल रहा था, आपने वहाँ (म0प्र0) निवासी थे। 1942 के देशव्यापी आंदोलन सभाओं में भाग लिया। आपने 'जागृति' मासिक में आप एक सप्ताह तक नजरबंद रहे। प्रारम्भ किया और घर पर ही खादी प्रचार के लिए आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग- 5, पृष्ठ-158 भंडार खोल दिया। ____ गांधी जी के पक्के अनुयायी तुरखिया जी किसी
श्री नत्थूलाल नारद दिन गेंहू की भूसी, किसी दिन मूंगफली, केला,
लखनादौन (सिवनी) म0प्र0 के श्री नत्थूलाल बाजरा, मंग, चना आदि एक-एक चीज पर निकालने नारद, पुत्र- श्री दुलीचंद का जन्म 1913 में हुआ। का अभ्यास करते रहे। मनुष्य 4 पैसे में भी अपना 1939 में जबलपुर त्रिपुरी कांग्रेस में आपने मैस दिन काट सकता है, इसका अनभव किया। जब इन्सपेक्टर का कार्य बहुत संलग्नता से किया । गांधी जी गिरफ्तार हुए तब उनके मुक्त होने तक घी 1941 में आपने व्यक्तिगत सत्याग्रह दिनांक छोड़ दिया। जैन समाज में राष्ट्रधर्म का प्रचार करने 19-4-1941 को लखनादौन तहसील के 'आदेगांव' की भावना से 'जैन ट्रेनिंग कालेज, बीकानेर' का ग्राम से शुरू किया। आप वहाँ से करीब 15 दिन संचालन हाथ में लिया। 1925 में ब्यावर (राज्य) में पैदल चलने के बाद होशंगाबाद जिला के डोगी ग्राम आपने जैन गुरुकुल आरम्भ किया, जिसके छात्रों से में गिरफ्तार कर छिंदबाड़ा जेल लाये गये। वहाँ खादी प्रचार, राष्ट्रीय जुलूसों और सभाओं में भाग लगभग 6 माह रखकर रिहा कर दिये गये। लेना, मद्यनिषेध और राष्ट्रीय विचारों का प्रचार गांव-गांव आ0-(1) म0 प्र) स्वसै0, भाग-1, पृष्ठ-235 (2) में कराते रहे।
जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-55 तुरखिया जी को 1944 के गुरुकुल उत्सव पर
श्री नथमल चोरड़िया मण्डप में नेताजी के फोटो लगाने का अपराध
राष्ट्रभक्त एवं प्रमुख समाजसेवी श्री नथमल बनाकर गिरफ्तार कर, अजमेर सेन्ट्रल जेल भेजा चोरडिया का जन्म विसं0 1932 (सन 1876) में गया और उत्सव के पश्चात् मुक्त किया गया।
नीमच (म0प्र0) में हुआ। आ0-(1) जै0 स) रा0 अ0, पृष्ठ-68
आपके पिता का नाम श्री श्री नगीनमल जैन
हेमराज था। आपके पूर्वजों ग्राम रानापुर, जिला-झाबुआ (म0प्र0) के श्री
का निवास डीडवाना था। नगीनमल जैन, पुत्र श्री चंपालाल जैन का जन्म
विक्रम संवत् 1775 के 5-10-1923 को हुआ। आपने 1942 के आन्दोलन
आसपास वे नीमच में सक्रिय भाग लिया। आपको शासन की ओर
आकर बस गये थे। से प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
चोरड़िया जी तन-मन और आपके अग्रज श्री बसन्तीलाल जैन भी स्वाधीनता ।
- धन तीनों से तो सम्पन्न थे ही, वे राष्ट्रप्रेम, निष्कलंक सेनानी हैं।
छवि, निर्भीक व्यक्तित्व, दृढ़ संकल्प एवं कुशल आ) (1) मा प्र) स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ-141
नेतृत्व क्षमता से भी सम्पन्न थे। अपनी समूची सम्पन्नता
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन का उपयोग उहोंने स्वतंत्रता संग्राम की सफलता के आपके नेतृत्व में सत्याग्रह और भी सबल हो लिए किया।
उठा। आपके उत्तेजक भाषणों से परेशान होकर 1930 नीमच क्षेत्र में सबसे पहले चोरड़िया जी ने ही में दफा 118 A के अन्तर्गत एक वर्ष की सजा सुनाई स्वराज्य प्राप्ति के लिए जयघोष किया। आपने 1920 गई। जेल में हथकड़ी पहनाकर कालकोठरी में रखा में नागपुर कांग्रेस में भाग लिया। यहीं आपका सम्पर्क गया। जब आप अजमेर की सेन्ट्रल जेल में कारावास राजस्थान में राष्ट्रीयता के जन्मदाता पं0 अर्जुन लाल भुगत रहे थे उसी दौरान 30 अक्टूबर 1930 को आपके सेठी से हुआ। जयपुर के श्री रामनारायण चौधरी, श्री युवा पुत्र माधवसिंह की मृत्यु हो गई। दुर्गाप्रसाद चौधरी, सीकर के श्री लादूराम जोशी आदि जेलर ने इन्हें यह दुखद सूचना देते हुए कहा से सम्पर्क भी नागपुर सम्मेलन में ही हुआ। इन सब कि 'यदि आप अपने कार्यों के लिए क्षमा याचना की सलाह पर चोरड़िया जी अपने अनेक साथियों को कर लें व भविष्य में राजनीति में भाग न लेने का लेकर 1922 में 'बिजोलिया किसान आंदोलन' में लिखित आश्वासन दे दें तो आपको रिहा कर दिया शामिल होने पहुंचे। वहाँ इनकी भेंट जब बिजोलिया जायेगा।' चोरडिया जी ने अपना हृदय मजबूत किया केसरी विजयसिंह पथिक से हई तब पथिक जी ने ..
ने व दृढ़ वाणी में उन्होंने जेलर को उत्तर देते हुए कहा इन्हें अपनी सारी योजना समझाकर वापिस नीमच यह 'माधवसिंह अब जीवित नहीं हो सकता। मेरी एक कहकर भेज दिया कि, 'यह आंदोलन लम्बा चलेगा। पत्री केसर पहले ही विधवा है। अब माधवसिंह की मुझे निश्चित ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा। यदि ऐसा पली भी मेरी बेटी बनकर रहेगी। मैं परिवार के लिए हो जाये तब आप तत्काल बिजोलिया पहुंचकर नेतृत्व देश का हित नहीं त्याग सकता।' उन्होंने क्षमा नहीं सम्हाल लेना। यहाँ रहने से तो दोनों को ही गिरफ्तार
मांगी। बाद में वृद्धावस्था के कारण छ: माह पूर्व ही कर लिया जायेगा।'
उन्हें मुक्त कर दिया गया। 1929 में नीमच में विधिवत कांग्रेस की स्थापना
हरिजन उत्थान के लिए आपने पाठशालायें शुरू की गई और चोरड़िया जी को नीमच में कांग्रेस का
की थीं। सत्तर हजार रुपये का अवदान देकर प्रदेश प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। नीमच छावनी में कांग्रेस
में कन्या गुरुकुल की स्थापना की थी। आपके तपस्वी की इस प्रकार घोषणा व स्थापना, कमांडिंग आफिसर
जीवन ने आपको लोकप्रिय बना दिया था। अखिल के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। चुनौती कांग्रेस
भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस ने आपको, के लिए भी बहुत बड़ी थी। संघर्ष शुरू हो गया। पहले
'समाज भूषण' की पदवी से सम्मानित किया था। 1936 दिन, पहली सभा से ही।।
में आपका निधन हो गया। इसी बीच नमक सत्याग्रह का आह्वान हो गया।
आ)-(1) म) प्र) स्व) सै0, भाग--4, पृष्ठ 215 निर्देश पाते ही चोरड़िया जी अजमेर चले गये। श्री (2) स्व) सा) म), पृष्ठ 75-77 (3) इ0 अ0 ओ0, भाग-2, छोटेलाल यादव, श्री दौलतराम, श्री प्रेमचंद व श्री बिहारी पृष्ठ-399 (4) राजस्थानी आजादी के दीवाने. पृष्ठ 125-127 लाल आदि सभी इनके साथ थे। चोरडिया जी ने जिस (5) दैनिक भास्कर, इन्दौर, 15 अगस्त 1997 निर्भीकता एवं कुशलता से सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व
श्री नथमल लोढ़ा किया उससे प्रभावित होकर पंडित हरिभाऊ उपाध्याय
जयपुर (राज.) के श्री नथमल लोढ़ा का जन्म के गिरफ्तार होते ही तत्काल चोरड़िया जी को डिक्टेटर भाद्रपद शुक्ल 14 संवत् 1975 (1918 ई0) को चुन लिया गया।
हुआ। जयपुर में प्रजामण्डल के पुनर्गठन के बाद वे
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प्रथम खण्ड
197
उससे सम्बद्ध हो गये। 1939 के प्रजामण्डल आन्दोलन
श्री नन्हेलाल जैन में वे सक्रिय रहे, अनेक बार गिरफ्तार हुए (पर
श्री नन्हे लाल, पुत्रा-- श्री कुन्दन लाल अपराध प्रमाणित न हो पाने के कारण) और छोड़
ग्राम-कर्रापुर, जिला-सागर (म0प्र0) के निवासी थे। दिये गये। ऐसी अवस्था में उन्हें बौखलायी पुलिस
आपने 1942 के आन्दोलन में थाना जलाया, फलतः की अमानुषिक क्रूरताओं का शिकार होना पड़ता था।
लगभग 15 माह का कारावास आपको भोगना पड़ा पुलिस उन्हें बिना अपराध के ही 1-2 दिनों तक
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-34 कोतवाली में रखती थी।
(2) प0 जै0 इ0, पृष्ठ-526 (3) आO दी0, पृष्ठ-52 आ0-(1) रा0 स्व0 से), पृष्ठ-216
श्री नन्हेलाल जैन श्री नन्दलाल पारख
सागर (म0प्र0) के श्री नन्हेलाल जैन, पुत्र-श्री आजादी के दीवाने श्री नंदलाल पारख का जन्म राजस्थान में हुआ। आप बचपन से ही भारत मां को
परमानन्द ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्त कराने की सोचा करते
लिया, फलत: 10 अक्टूबर 1942 से 9 अप्रैल 1943 थे। 1942 में जब पारख जी 12 वीं कक्षा के छात्र
तक का कारावास भोगा।
आ)-(1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-2, पृप्ट 34 (2) थ तब भारत छोड़ा आन्दालन' म छात्रा का नतृत्व प0 जै0 इ0, पृष्ठ-527 (3) आ0 दो0, पृष्ठ-87 करते हुये अन्य छात्रों एवं प्रजामंडल नेताओं के साथ 16 सितम्बर 1942 को 'भारत सुरक्षा अधिनियम' के
श्री नन्हेलाल जैन अन्तर्गत गिरफ्तार करके नजरबंद कर दिये गये। जहां कटंगी, तहसील- पाटन, जिला- जबलपुर से ये सबके साथ 5 नवंबर 1942 को रिहा किये गये। (म0प्र0) के श्री नन्हेलाल जैन, पुत्र-श्री भदईलाल रिहाई के बाद भी आप स्वाधीनता संग्राम से जुड़े रहे। जैन का जन्म पाटन में हुआ। 1942 के अगस्त क्रान्ति बी0 ए0 एल0 एल0 बी0 पास करके पारख जी ने आन्दोलन में आप 'आजादी के मतवाले' दल में शामिल वकालत शुरू कर दी। करीब 50 वर्ष की अवस्था हो गये और पुलिस थाने पर ही राष्ट्रीय ध्वज फहराने में इनका देहावसान हो गया। इनकी पत्नी श्रीमती चल पड़े, फलत: गिरफ्तार कर लिये गये और केंद्रीय प्रेमबाई को 'राजस्थान सरकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कारागार जबलपुर में 11 माह का बन्दी जीवन बिताया। सम्मान पेंशन' प्राप्त हो रही है।
रोगग्रस्त हो जाने पर कुछ समय बाद ही आपका निध आ0-(1) श्री बागमल बाठिया, कोटा द्वारा प्रेषित परिचय न हो गया। आपको शहीद कहा जाये तो कोई
अतिशयोक्ति नहीं होगी। श्रीमती नन्हीबाई जैन
आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ--63 देश की आजादी के लिए चलाये गये आन्दोलन (2) स्वा0 आ0 पा0, पृष्ठ-118 में जबलपुर (म0प्र0) से महिलायें भी पीछे नहीं रहीं। ग्राम-लथकाना (सिहोरा), जिला-जबलपर
श्री नन्हेलाल बुखारिया (म0प्र0) की श्रीमती नन्हीबाई जैन ने 1942 के बीना (सागर) म0प्र0 के श्री नन्हेलाल बुखारिया भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया तथा 8 माह 18 की बचपन से ही देश सेवा में रुचि रही। अनेक दिन जबलपुर जेल में गुजारे।
वर्षों तक बीना नगर में गांधी जी द्वारा चलाये गये ___ आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-63 सत्याग्रह व असहयोग आन्दोलन में आपने सक्रिय
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन भाग लिया। 1942 के आन्दोलन में छह माह के कराकर तितर-बितर करने की कोशिश की, नरेन्द्र भाई कारावास की सजा आपने भोगी। आप बीना के पर भी कलेक्टर ने मंच पर चढ़कर बेंतों के कई प्रहार सुप्रसिद्ध कार्यकर्ता रहे हैं। अनेक वर्षों तक नाभिनंदन किए। इस घटना ने आग में घी का काम किया। विरोध दि।) जैन सभा के मंत्री रहे हैं।
और विद्रोह की भावना बढ़ती चली गई। 1939-40 आ0-(1)म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-34 (2) में अमृतसर जाकर उस समय के महान् नेता पण्डित प) जै0 इ0, पृष्ठ-458
जवाहरलाल नेहरू का अखिल भारतीय स्काऊट जम्बूरी श्री नरहर कोठारी
में स्वागत किया। पण्डित जी के विचारों ने नरेन्द्र भाई विधि स्नातक, इन्दौर (म0प्र0) के श्री नरहर के हृदय में उत्पन्न विरोध और विद्रोह की भावना को कोठारी, पुत्र-श्री गणेश कोठारी का जन्म 1895 में मूर्तरूप दे दिया। हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने 1942 का स्वतंत्रता आन्दोलन छिड़ गया था। सक्रिय भाग लिया तथा दिनांक 22-8-42 से महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश के स्त्री, पुरुष, बच्चे 19-6-43 तक का कारावास भोगा। . 1949 में और बूढ़े सभी अपनी आजादी के लिए संगठित हो आपका स्वर्गवास हो गया।
रहे थे। नरेन्द्र जी जैसे देशभक्त के हृदय में क़ान्ति आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-25 की चिंगारी फूटकर शोला बन गई। अपने कालेज में श्री नरेन्द्रकुमार जैन
उन्होंने 'स्टूडेण्ट कांग्रेस' का संगठन किया। समाजसेवा, सहदयता, न्यायप्रियता, दानशीलता
देखते-देखते कालेज के अनेक छात्र स्टूडेन्ट कांग्रेस आदि के कारण पूरे उत्तराखंड में 'नरेन्द्र भाई' के
__ के सदस्य बन गये और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। नाम से विख्यात श्री
हिन्दुस्तान के इतिहास में मेरठ क्रांति का गढ़ रहा है। नरेन्द्रकुमार का जन्म 19
ऐसे नगर में नौजवानों के हृदय में क्रांति की फूंक भरते
हुए नरेन्द्र भाई ने अनेक स्थानों पर जनसभाओं और जुलाई 1923 को सहारनपुर . (उ0प्र0), जिले के कस्बे ।
आंदोलनों में भाग लेकर छात्र वर्ग को प्रोत्साहन देते
आ। हुए स्वतंत्रता संग्राम को तीव्र किया। फिल्म उद्योग के बाल्यावस्था में देवबन्द
लोकप्रिय कलाकार शेखर नरेन्द्र भाई के सहपाठी थे, और मुजफ्फरनगर में शिक्षा
जिन्होंने नरेन्द्र भाई के साथ आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण प्राप्त करने के बाद नरेन्द्र भाई ने अपनी उच्च शिक्षा
भूमिका निभाई। 1942 के आंदोलन में अपने अनेक मेरठ में ग्रहण की।
साथियों के साथ नरेन्द्र भाई मेरठ में गिरफ्तार कर जेल मुजफ्फरनगर में अपनी पढ़ाई के दौरान नरेन्द्र
भेज दिये गये। उ0 प्र0 के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री श्री कैलाश भाई ने 'स्टूडेन्ट फेडरेशन' की स्थापना की और स्वतंत्रता
। प्रकाश एवं अन्य नेता नरेन्द्र भाई के साथ जेल में थे। की लड़ाई के लिए जन सभाएं आयोजित करनी शुरू
जेल से छूटने के बाद नरेन्द्र जी फिर छात्र की। 1939 में मुजफ्फरनगर की 'स्टूडेन्ट फेडरेशन' आन्दोलन को संगठित करने में जुट गये किन्तु प्रशासन की ओर से आयोजित एक जनसभा में अंग्रेजों के विरुद्ध की शख्ती के कारण इनको मेरठ छोड़कर कुछ समय जब बोलना शुरू किया और आजादी की मांग उठाई के लिए उदयपुर जाना पड़ा। उदयपुर उस समय तक तो तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर ने पुलिस से आक्रमण एक रियासत थी। वहां पहुंचकर नरेन्द्र भाई ने 'भील
द
में हुआ। हुए स्वतंत्रता संग्राम
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प्रथम खण्ड
आन्दोलन' आरम्भ किया और अंग्रेजों के खिलाफ जनता में आग फैलाते रहे। कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए कुछ समय बाद नरेन्द्र जी पुनः मेरठ लौट आये।
मेरठ में पुराने साथियों की टोली फिर जुड़ने लगी। किन्तु आर्थिक कठिनाईयों के कारण छात्रों को पुनर्गठित करने की समस्या और स्वयं अपना खर्चा उठाने की समस्या ने नरेन्द्र भाई को चिन्तित कर दिया। अन्ततः प्रयास करने पर उनको एक बैंक में नौकरी मिल गई। बैंक से मिलने वाले वेतन का अधिकांश भाग तो युवक साथियों के संगठन पर व्यय हो जाता था और इधर होटल वालों का उधार बढ़ता रहता । इसी प्रकार जीवन चक्र चलता रहा। नरेन्द्र भाई दिन में बैंक की नौकरी करते और सुबह शाम कांग्रेस व स्वतंत्रता आंदोलन के चक्कर में लगे रहते।
1946 में युवकों की एक बैठक के सम्बन्ध में नरेन्द्र भाई देहरादून आये ! यहां आकर नरेन्द्र भाई ने यहीं रहने का निश्चय किया, क्योंकि वह बैंक की नौकरी से भी परेशान थे और बैंक वाले इनकी क्रांतिकारी गतिविधियों से।
1946 में ही नरेन्द्र जी देहरादून शिफ्ट कर गये। चूँकि विवाह के बाद जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, विशेष रूप से तब जबकि परिवार बढ़ने लगे। इसी कारण उन्होंने अपना छोटा सा व्यापार शुरू कर दिया, किन्तु राजनैतिक और सामाजिक कार्य यहां भी चालू रहा। अच्छा वक्ता और परिश्रमी होने के नाते अल्प समय में ही वे यहां भी लोकप्रिय हो गये और अपने जन-सेवी कार्यो के कारण सम्मान प्राप्त करने लगे।
15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष का विभाजन हुआ और देश आजाद हो गया। देहरादून में हिन्दु-मुस्लिम फिसाद न बढ़े इसलिए नरेन्द्र जी जगह-जगह स्थिति का काबू में रखने के लिए प्रयास करते रहे। इधर पाकिस्तान से शरणार्थी भाई बहुत बड़ी संख्या में भारत
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के विभिन्न स्थानों पर आकर बस गये। देहरादून आने वाले शरणार्थियों की संख्या बहुत अधिक थी, नरेंद्र जी ने शरणार्थियों की कठिनाई को देखते हुए तेजी से दौड़धूप शुरू की और नगर के विभिन्न लोगों को एकत्रित कर सहायता कार्य प्रारम्भ कर दिया। अपने व्यापार को छोड़कर वे जन-सेवा में जुट गये। उनकी लगन, परिश्रम और अटूट सेवा को देखते हुए शासन ने इनको देहरादून में शरणार्थी सहायता और पुनर्वास समिति का मन्त्री और स्पेशल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। नरेन्द्र भाई ने जितनी लगन और तपस्या के साथ पुनर्वा के लिए प्रयास किया, वह आज भी तत्कालीन शरणार्थी भाईयों के हृदय में है।
3 जनवरी 1959 को भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी0वी0गिरी ने रेडक्रास में महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिए नरेन्द्र भाई जैसे मित्र की बहुत प्रशंसा की थी।
समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से नरेन्द्र जी निरन्तर महत्त्वपूर्ण आयोजन करते रहे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये। राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में काफी बड़ी धनराशि एकत्रित कराने में उन्होंने अथक परिश्रम किया। 1968 में उ0प्र0 सरकार द्वारा नरेन्द्र जी को गैर सरकारी जेल निरीक्षक नियुक्त किया गया। 1968 में ही उ0प्र0 के राज्यपाल महोदय ने इन्हें जिला स्वास्थ्य सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया।
23 अक्तूबर 1972 को उ0प्र0 स्काउट्स एवं गाईड के अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय आयुक्त पद पर नरेन्द्र भाई की नियुक्ति हुई जो कि काफी गरिमा का विषय थी। 1973 में नरेन्द्र जी उ0प्र0 अपराध निरोधक समिति के चेयरमैन चुने गये। माननीय राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अहमद ने 6-12-66 को राष्ट्र का स्काउटिंग का सर्वोच्च पदक Silver Elephant प्रदान किया एवं 23 - 2 - 78 को कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री वी0डी0 जत्ती ने नरेन्द्र भाई को उद्योग पत्र प्रदान किया ।
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- स्वतंत्रता संग्राम में जैन सदैव प्रसन्नचित रहने वाले नरेन्द्र भाई केवल प्रारम्भ के कुछ दिनों में आप राज्य-सभासामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि एक लेखक भी सचिवालय में अनुवादक तथा सहायक सम्पादक रहे हैं। इन्होंने धार्मिक तथा सामाजिक विषयों पर अनेक फिर 'नवभारत टाइम्स' (नई दिल्ली) के संपादकीय पुस्तकें लिखी हैं। आपकी 'अपराधी' पुस्तक का विभाग से पूर्ण रूप से जुड गए थे। 'नवभारत टाइम्स' विमोचन, माननीय राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी ने की सेवा में आने से पूर्व आपने स्वतंत्र रूप से एक किया था।
अंग्रेजी मासिक पत्र 'कण्टेम्पोरेरी' का सम्पादन-प्रकाशन उ0प्र0 में स्काउट्स एवं गाइड्स आन्दोलन को भी 1956 और 1958 बीच किया था। आपका हिन्दी, समृद्ध बनाने में जितना योगदान आपका रहा, शायद अंग्रेजी और उर्दू आदि कई भाषाओं पर समान अधि ही उतना किसी अन्य का रहा हो। व्यापारी वर्ग में कार था। आपके द्वारा लिखित साहित्य 'दरीचा और भी आप बडे लोकप्रिय हैं। आप चेम्बर आफ कॉमर्स आईना' (1969) (उपन्यास), 'गुरु मेहमान, चेला एण्ड इण्डस्ट्री के प्रधान रह चुके हैं, आपने विश्व मेजबान' (1970) कहानी-संकलन आदि प्रमुख हैं। के अधिकांश देशों की यात्रायें की हैं।
17 फरवरी 1975 को नई दिल्ली में आपका धार्मिक क्षेत्र में भी आप पीछे नहीं रहे, आप निधन हो गया। उत्तराखण्ड भ) महावीर समारोह समिति के अध्यक्ष
आO-(1) दिवगंत हिन्दी सेवी, भाग-2, पृष्ठ 456 रहे। अनेक जैन संस्थाओं को आपने समृद्ध बनाया है।
डॉ० नरेन्द्र विद्यार्थी आपकी धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं के उपलक्ष्य
स्वच्छ-श्वेत मोटी खादी का धोती-कुर्ता और में 'अ)भा) नरेन्द्र भाई अभिनन्दन समारोह समिति'
टोपी, स्वाभिमान, सादगी एवं सरलता की प्रतिमूर्ति, ने 1983 में आपकी षष्ठीपूर्ति के अवसर पर आपका
दबंग तथा निर्भीक व्यक्तित्व, अभिनन्दन ग्रन्थ निकालकर आपको सम्मानित किया
'कौन बलिहारी न जाये इस था। इस ग्रन्थ में विस्तार से आपके व्यक्तित्व और कृतित्व
रूप पर' यह रूप था डॉ0 की चर्चा है।
नरेन्द्र कुमार का, जो आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) नरेन्द्र भाई अभिनन्दन ग्रन्थ (3) स0 स0 (4) रीजनल एक्सप्रेस 5-8-94 समाचार पत्र
जनसामान्य में 'विद्यार्थी जी' अनेक परिचय फोल्डर आदि
के नाम से लोकप्रिय रहे हैं
और अब हमारे बीच नहीं हैं श्री नरेन्द्र गोयल
__किन्तु उनके अविस्मरणीय सेवा कार्यों, जैन दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री दयाचन्द ..
साहित्य लेखन एवं परोपकारी धर्मनिष्ठ जीवन की गोयलीय के पुत्र श्री नरेन्द्र गोयल का जन्म समतियाँ सामाजिक चेतना का पर्याय बनकर मानसपटल 26 फरवरी 1925 को लखनऊ (उ0प्र0) में हुआ। पर सदैव अंकित रहेंगी। आपका सम्पूर्ण जीवन आपने काशी हिन्दु विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में सामाजिक एवं राजनैतिक सेवाओं का अनठा संगम एम)ए।) करने के उपरान्त पत्रकारिता तथा स्वतंत्र रहा है। आज भी वे अपने यशः शरीर से समग्र जैन लेखन प्रारम्भ कर दिया था। छात्रावस्था में ही 1942 समाज के हृदय में बसे हुए हैं। के अगस्त आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेकर
विद्यार्थी जी का जन्म छतरपर (म0प्र0) जिले आपने जेल-यात्रा की।
के लघु सम्मेद शिखर नाम से विख्यात 'द्रोणगिरि'
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प्रथम खण्ड
अचल के गांव धनगुवाँ में 15 अगस्त 1924 को हुआ था। आपने बचपन से ही अभाव, और समस्याओं से जूझकर स्वयं ही अपना मार्ग प्रशस्त किया । आप जब गुरुदत्त दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, द्रोणगिरि में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तभी आपको प्रातः स्मरणीय सन्त श्री गणेश प्रसाद जी 'वर्णी' के सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्णी जी के पारस स्पर्श से धनगुवां का यह अनपढ़ बालक 'कुंदन' बनने गणेश प्रसाद वर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, सागर, स्याद्वाद महाविद्यालय, बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय गया। जहां वर्णी जी के मार्गदर्शन से शास्त्री, साहित्याचार्य, काव्यतीर्थ एवं बी0ए0 आदि को उच्चतम परीक्षाएं उत्तीर्ण कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया और आर्थिक विपन्नता में भी स्व-अर्जित साधनों से अपना ज्ञान आगे बढ़ाते रहे। विद्यार्थी जी अल्पायु में ही दृढनिश्चयी, निस्पृही, लगनशील तथा मेघावी छात्र के रूप में विख्यात हो गए थे।
विद्यार्थी जी ने गांवों में व्याप्त अभाव, गरीबी, छुआछूत, अन्याय, डाकुओं का आतंक और निरीह जनता का शोषण निकट से देखा था, अतः यहां की जनता को खुशहाल, आत्मनिर्भर एवं शोषणमुक्त बनाने की जो आग अध्ययनकाल से उनके अन्तर्मन में सुलग रही थी, उसे साकार रूप देने की प्रतिज्ञा की। जैसे ही 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का बिगुल बजा, विद्यार्थी जी अपनी परीक्षा छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला में कूद पड़े और विदेशी शासन की बेड़ियो को तोड़ने के लिए जनमानस तैयार करने में लग गए। उस समय गांव की जनता से ब्रिटिश सरकार अवैध एवं अनुचित कर वसूली करती थी। आपने इस कर का जमकर विरोध किया एवं ब्रिटिश सरकार से टक्कर लेने हेतु ग्रामवासियों को उकसाया। फलस्वरूप उन्हें 'राजद्रोही' एवं 'राजविरोधी' मानकर गांव छोड़कर जाने का आदेश मिला।
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ग्राम निष्कासन की इस कार्यवाही से उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को हीरापुर ( जिला - सागर ) में रहकर घोर संकट का सामना करना पड़ा। विद्यार्थी जी यहाँ भी शान्त न रहे और राजनैतिक गतिविधि यों में लग जाने के कारण पुलिस द्वारा प्रताड़ित होते रहे, पुलिस लाठी चार्ज में हाथ टूटा, लेकिन उत्साह फिर भी कम न हुआ और न ही पुलिस की पकड़ में आसानी से आए ।
अगस्त 1942 से अक्टूबर 1943 तक विद्यार्थी जी ने भूमिगत रहकर मुक्ति आंदोलन में सक्रिय कार्य किया एवं गुपचुप ढंग से जनसमूह को ब्रिटिश शासन के अत्याचार न सहने के लिये उत्तेजक और भड़काने वाले ओजस्वी भाषण देते रहे। अपनी नई सूझबूझ से मातृभूमि पर मर मिटने का संदेश चारों ओर फैलाते रहे, जिससे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष का वातावरण निर्मित हुआ। आपने जेल यातनाएं सहीं, लेकिन देशसेवा और देशभक्ति से विमुख नहीं हुए ।
4
1945 में जब नेताजी सुभाष चंद बोस की 'आजाद हिन्द सेना' के सेनानी, स्वतंत्रता के पुजारी, देशभक्त सहगल, ढिल्लन, शाहनबाज आदि को ब्रिटिश सरकार ने लाल किले में बंद कर दिया था, तब सभी देशवासी तिलमिला उठे। विद्यार्थी जी से भी शान्त न बैठा गया और उन्होंने 'जैन भ्रातृसंघ' जबलपुर में जाकर सभाएं कीं। देश की रक्षा हेतु चन्दा इकट्ठा कर 'आजाद हिन्द फौज' के सेनानियों के लिए भेजा। उस समय जबलपुर की जैन समाज ने बनारस से अध्ययन छोड़कर आये नरेन्द्र जी को सम्मानित किया था। स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर 15 अगस्त 1973 को मध्यप्रदेश शासन ने आपको 'प्रशस्ति पत्र' भेंटकर सम्मानित किया था।
विद्यार्थी जी की कर्मठता, निस्वार्थ सेवाओं एवं देशप्रेम से प्रभावित होकर कांग्रेस ने 1954 के
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन
बड़ामलहरा विधानसभा उपचुनाव में आपको पार्टी समारोह में आपको 'ताम्र प्रशस्ति-पत्र' से सम्मानित का टिकट प्रदान किया और आप बहुमत से विजयी किया था। भी हुए। विधायक रहकर विद्यार्थी जी ने अपने विद्यार्थी जी म0प्र0 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विधानसभा क्षेत्र में अनेक प्राइमरी स्कूल, मिडिल संघ के कार्यकारिणी सदस्य, छतरपुर जिला स्वतंत्रता स्कूल और तीन हायर सेकेण्डरी स्कूल स्थापित संग्राम सेनानी संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, म0प्र0 कराए तथा इनके भवनों का निर्माण कराया। ग्रामीण मजदूर कांग्रेस, जिला छतरपुर के अध्यक्ष,
विद्यार्थी जी सामाजिक एवं धार्मिक अंधविश्वासों, म0प्र0 कांग्रेस कमेटी, भोपाल के सदस्य एवं जिला कुरीतियों और विकृतियों के उन्मूलन का निरंतर प्रयास कांग्रेस कमेटी के दो बार महामंत्री रहे। आप डॉ0 करते रहे। मृत्यु-भोज, दहेजप्रथा, अस्पृश्यता, बालविवाह, हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर की एफिलिएटिंग वृद्ध-विवाह एवं कन्या-विक्रय जैसी कुरीतियों के कमेटी के सदस्य भी रहे थे। । विरोध में ओजपूर्ण लेख लिखकर जनजागृति का समाज सुधार के साथ ही साहित्यिक क्षेत्र में अभियान छेड़ा। साधनहीन एवं अभावग्रस्त उदीयमान भी विद्यार्थी जी का योगदान अविस्मरणीय है। आपने युवा प्रतिभाओं को सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा तथा लगभग 25 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया। प्रोत्साहन दिया। आप कभी अवसरवादी बन कर 1949 से आपने अस्पृश्यता निवारण पर कार्य शुरू समय की लहर में नहीं बहे। कट्टर गांधीवादी किया एवं कौमी एकता को बढ़ावा देने, साम्प्रदायिक विचारधार से जुड़े रहकर संकट की घड़ी में भी भेदभाव और छूआछूत को मिटाने के उद्देश्य से अपने कार्य में अडिग रहे। आपका सम्पूर्ण जीवन 'छुआछूत कलंक है' तथा 'अछूत कोई नहीं' पुस्तकें एक खुली पुस्तक की भांति 'कथनी और करनी' लिखीं। इन दोनों पुस्तकों पर आपको शासन द्वारा को चरितार्थ करता रहा।
'छत्रसाल पुरस्कार' एवं 'प्रशस्ति-पत्र' से सम्मानित विद्यार्थी जी ने धार्मिक क्षेत्र में अविरल योगदान किया गया। उस समय 'हरिजन मंदिर प्रवेश' का दिया। जहाँ आपने नई प्रतिष्ठाओं एवं गजरथ महोत्सवों लेकर आंदोलन चल रहा था। इस जटिल समस्या को में उल्लेखनीय सहयोग दिया वहीं प्राचीन मंदिरों के सुलझाने हेतु विद्यार्थी जी ने शास्त्रीय तर्क एवं प्रमाण जीर्णोद्धार एवं ज्ञान प्रचार हेतु विद्यालयों की स्थापना देकर 'हरिजन मंदिर प्रवेश' पुस्तक लिखी, जिसने पर जोर दिया। आपने बड़ामलहरा में जनता हायर एक क्रांति पैदा कर दी थी। द्रोणगिरि दर्शन, सेकेण्डरी स्कूल का शुभारंभ कराया तथा 1960 से रेशंदीगिरि, बापू की अनोखी खोज आदि आपकी 1965 तक इस स्कूल के प्राचार्य भी रहे और कुशल अन्य पुस्तकें हैं। प्रशासन के द्वारा संस्था का संवर्धन किया। भगवान् विद्यार्थी जी ने प्रातः स्मरणीय सन्त गणेश प्रसाद महावीर के 2500वें निर्वाण महोत्सव के पावन अवसर जी वर्णी की डायरी, पत्रों, प्रवचन एवं लेखों से प्राप्त पर बुन्देलखण्ड के अनेक स्थानों पर नेत्र शिविरों के सामग्री द्वारा 'वर्णी साहित्य' का विद्वत्तापूर्ण सम्पादन सफल आयोजन में विद्यार्थी जी ने अपना अमूल्य कर वर्णी भक्तों में अग्रगण्य बनने का सौभाग्य प्राप्त योगदान दिया था। इस स्मरणीय भूमिका के लिए किया। आप 'वर्णी-साहित्य-विशेषज्ञ' माने जाते थे। 'द्रोण प्रान्तीय नवयुवक सेवा संघ', द्रोणगिरि आपके द्वारा सम्पादित 'वर्णी वाणी' चार भाग, 'वर्णी (जिला छतरपुर) ने 1 जून 76 को एक गरिमामय पत्र पारिजात', 'वर्णी जी का दिव्यदान' एवं
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प्रथम खण्ड
203 'जीवन-यात्रा' आदि पुस्तकें आज भी पाठकों को किया है। सही दिशाबोध करा रही हैं। अपने जीवन के अंतिम आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-141 समय में भी आप वर्णी जी के पत्रों पर आधारित
श्री नाथूराम महत्त्वपूर्ण पुस्तक के सम्पादन एवं प्रकाशन के कार्य में संलग्न थे।
श्री नाथूराम, पुत्र-श्री शान्तिराम जैन आमला
जिला-बैतूल (म0 प्र0) निवासी रहे हैं, जिन्होंने विद्यार्थी जी ने डॉ0 हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय,
जीवन का कर्तव्य समझकर देश सेवा की और सागर से सन् 1965 में 'महापुराण के आधार पर
1942 के देशव्यापी आंदोलन में सक्रिय सहयोग ऋषभ तथा भरत के जीवन चरित्रों का अध्ययन'
दिया, फलस्वरूप आपको दिनांक 19-8-42 से 4 विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखकर पी-एच0डी0 की।
' माह तक के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उपाधि प्राप्त की। आप रीवां एवं छतरपुर से
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-1610 प्रकाशित 'साप्ताहिक विंध्याचल' के अनेक वर्षों तक सम्पादक रहे थे।
श्री नाथूराम पुजारी सामाजिक उत्थान के प्रति जागरूक विद्यार्थी जी
बीना (म0प्र0) के 'पुजारी' उपनाम से प्रख्यात ने जीवन में अनेक उतार-चढाव देखे, लेकिन कभी श्री नाथूराम, पुत्र-श्री रामलाल 'आजाद सेवा-दल' के धैर्य नहीं खोया। जो भी दायित्व संभाला उसे परी निष्ठा. प्रमुख कार्यकर्ता थे। 1940 के आंदोलन में आपने जिम्मेदारी और कुशलता से निभाया। जैन समाज में सक्रिय भाग लिया और जेल गये। 1942 के आन्दोलन व्याप्त उपजाति-बन्धन और रूढिगत परम्पराओं को में आप 18-8-42 से 20-4-43 तक जेल में रहे। तोड़कर सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को एकता के सूत्र
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-35 (2) जै)
स0 रा) अ0 (3) आO दी0, पृष्ठ-28 (4) पा) जै0 50, पृष्ठ-528 में पिरोने की सार्थक पहल भी आपने की। इसी भावना
(5) पं0 वंशीधार जी शास्त्री, बीना द्वारा प्रेषित परिचय से प्रेरित हो आपने गोलापूर्व होकर भी कट्टर परम्परावादी 'परवार जैन' परिवार में विवाह कर एक
श्री नाथूलाल जैन अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया था। चार मई 1992 ___'राजस्थान लोक सेवा आयोग' के सदस्य रहे को आपका देहावसान हो गया।
कोटा (राजस्थान) के श्री नाथूलाल जैन का जन्म 29 ____ आ.. ( 1 ) जै) स) रा() अ0 (2) विद्वत् अभिनन्दन ग्रन्थ, दिसम्बर 1919 को हुआ। एम0 ए0, एल0 एल0 बी0 (3) तीर्थकरवाणी, जून 1995. (4) वीरवाणी, जयपुर (5) विद्यार्थी तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय जी के पुत्र श्री सुमति प्रकाश द्वारा प्रेषित सामग्री
आन्दोलनों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था और 16 श्री नाथमल मेहता
वर्ष की आयु में ही 1 अगस्त 1935 को तिलक दिवस ग्राम-उमरकोट, जिला-झाबुआ (म0प्र0) के पर कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता ग्रहण की थी। 1938 श्री नाथमल मेहता, पत्र-श्री बच्छराज मेहता का जन्म में मगरोल में आयोजित प्रजा मण्डल के पहले अधि 1912 में हुआ। 1928 से 1947 तक के सभी वेशन में स्वयं-सेवकों के दलपति के रूप में आप आन्दोलनों में आपने भाग लिया। एक बार आप पकड़े सम्मिलित हुए थे। गये पर 2 दिन ही हिरासत में रखकर छोड़ दिया गया। अगस्त 1942 में कांग्रेस महासमिति की बैठक शासन ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित में 'कोटा राज्य प्रजामण्डल' के प्रतिनिधि के रूप में
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपने भाग लिया परिणामस्वरूप इन्दौर के होल्कर में राज-प्रमुखों का पद समाप्त करने का प्रस्ताव रखा महाविद्यालय, जहाँ आप एल0 एल0 बी0 की फाईनल था। 1961 में प्रदेश कांग्रेस के अधिवेशन में राजाओं परीक्षा दे रहे थे, से ही नहीं होल्कर राज्य से भी के प्रिविपर्स समाप्त करने का प्रस्ताव भी आपके द्वारा निष्कासित होना पड़ा।
- रखा गया था। इन्दौर से लौटने पर अगस्त आन्दोलन की कोटा के सुप्रसिद्ध अभिभाषकों में रहे श्री बागडोर आपने संभाली और युवा शक्ति को जागृत जैन 'कोटा नगर सुधार न्यास' के अध्यक्ष रह चुके कर नगर का शासन अपने हाथ में लिया। उस समय हैं। आप भारत सरकार के विधि मन्त्रालय द्वारा कोटा ही भारत का एकमात्र वह नगर था, जहाँ जनता गठित 'राजभाषा विधायी आयोग' के सदस्य भी रहे। ने सेना एवं पुलिस को बाहर निकालकर शासन अपने 1974 में अजमेर में आप ‘राजस्थान लोक सेवा हाथ में ले लिया था। श्री जैन के नेतृत्व में लगभग आयोग' के सदस्य के रूप में रहे। बांग्ला सांस्कृतिक 15 दिन तक कोटा की कोतवाली पर तिरंगा ध्वज समारोह और अजमेर सांस्कृतिक समारोह का सफल फहराता रहा। भूमिगत साथियों को सहायता देना आपका आयोजन आपके संरक्षण और कुशल नेतृत्व में हुआ प्रमुख कार्य था।
था। अजमेर में 'भगवान् महावीर निर्वाणोत्सव वर्ष' 1942-43 में अवैध पत्रिकाओं एवं बलेटिनों में श्रेष्ठ सेवाओं के लिए 'अखिल भारतीय दिगम्बर के प्रकाशन व उनके प्रचार-प्रसार का कार्य आपने जैन सोसाइटी' द्वारा स्वर्ण पदक से आप सम्मानित
रणामस्वरूप फरवरी 1943 में अजमेर की किये जा चुके हैं। पुलिस ने गिरफ्तार किया और कोटा में 'भारत सुरक्षा
आ0- (1) रा० स्व0 से), पृष्ठ-533 (2) अ0 वा0, कानून' के अन्तर्गत नजरबंद रखा। भारत छोड़ो।
पृष्ठ-66 (3) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ' 343 (4) नई दुनिया,
इन्दौर, 9 अगस्त 1997 आन्दोलन के बाद एक निर्भीक पत्रकार के रूप में आपने कोटा से प्रकाशित 'लोक सेवक' का सम्पादन
श्री नाथूसाव जैन किया और कुछ समय बाद ही अपना निजी साप्ताहिक श्री नाथूसाव जैन, पुत्र- श्री नारायण जैन का पत्र 'दीन-बन्धु' प्रकाशित किया। दीन-बन्धु के जन्म 1915 में लोधीखेड़ा, जिला-छिन्दबाड़ा (म0प्र0) प्रकाशन में सरकार द्वारा बाधाएँ उपस्थित करने पर में हुआ। आपने इण्डियन स्कूल, लोधीखेड़ा में कक्षा 1945 में 'जयहिन्द' नाम से एक नया पत्र निकाला 7वीं तक शिक्षा प्राप्त की। बाल्यकाल से ही आपके
और जन-आन्दोलन का समर्थन किया तथा साम्प्रदायिक मानस में स्वातन्त्र्य प्रेम का उद्रेक हो गया था, परन्तु शक्तियों से जमकर लोहा लिया और अनेक बार पारिवारिक कारणों से आप प्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता जमानतें दीं।
आन्दोलन में आगे न आ सके। आप गाँव के सम्पन्न कोटा राज्य में विधान बनाने के निमित्त गठित व्यक्तियों में से एक थे, इसलिए आप अपने गाँव के परिषद में 'प्रजामण्डल' के प्रतिनिधि के रूप में आप आन्दोलनकारियों और सत्याग्रहियों को अप्रत्यक्ष रूप सदस्य सचिव बनाये गये। राजस्थान निर्माण के बाद से आर्थिक एवं अन्य सहयोग प्रदान करते रहे। प्रदेश में पहली बार कांग्रेस का गठन कोटा में ही हुआ आपने लोधीखेड़ा के स्वतंत्रता अनुरागियों के लिए और आप उसके अध्यक्ष बनाये गये। 1948 तक राष्ट्रीय दस्तावेजों एवं साहित्य का उत्कृष्ट पुस्तकालय कांग्रेस महासमिति के सदस्य रहे श्री जैन ने महासमिति स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त आप उनके
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प्रथम खण्ड
205 भोजन, आवास और आवागमन का भी प्रबंध किया न देने के कारण डेढ़ माह और कैद में रहना पड़ा करते थे।
तथा सरकार ने जबरन घर से माल उठाकर जुर्माना 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जो भी वसूल कर लिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन आन्दोलनकारी जेल गये, उनका अभिनन्दन करने के में आप भूमिगत रहकर कार्य करते रहे। शासन द्वारा लिए एक सभा का आयोजन आपने किया, परन्तु दी जा रही सम्मान निधि को आपने स्वीकार नहीं किया।
आपको गाँव की शांति भंग करने के संदेह में स्वार्थपरता एवं भाई भतीजावाद के कारण आप राजनीति गिरफ्तार कर 15 दिन के लिए छिन्दबाडा जेल भेज से उदासीन हो गये थे। एक दिसम्बर 1987 को आपका दिया गया। इस प्रकार आपको स्वातन्त्र्य महायद्ध में देहावसान हो गया। प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने एवं जेल जाने का सौभाग्य आ) (1) जै0 स) रा0 अ0, पृष्ठ 65 (2) प) जै0 मिल गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त मध्यप्रदेश इ), पृष्ठ-459 (3) स्वा) आ0 श0, पृष्ठ-126 कांग्रेस कमेटी के द्वारा प्रशस्ति-पत्र से आपको
श्री नारायणदास सम्मानित किया गया। दिनांक 28-4-1978 को
होशंगाबाद (म0प्र0) में 1913 में जन्मे श्री आपका स्वर्गवास हो गया।
नारायणदास, पुत्र- श्री मुन्नूलाल जैन ने प्राथमिक स्कूल आ) (1) म.) प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-9 (2) स्व) आर) में छिन्दवाड़ा जिले का योगदान, (टंकित शोध-प्रबन्ध)
तक शिक्षा ग्रहण की और राष्ट्र पृष्ठ 297
को स्वाधीन कराने में हमेशा
संलग्न रहे। आपने 1930 के सिंघई नानकचंद्र जैन
जंगल सत्याग्रह में सक्रिय 'मस्ताना' उपनाम से विख्यात तथा अपनी
भाग लिया। 1942 के भारत शेरो-शायरी से मनोरंजन के साथ देशप्रेम की भावना
छोड़ो आंदोलन में भी भाग फंकने वाले श्री सिंघई नानकचंद जैन, पुत्र-श्री फूलचंद
लिया जिसमें आपको 7 माह जैन का जन्म 1910 में एक सम्पन्न परिवार में उमरिया की सजा सुनायी गयी थी। (शहडोल) म0 प्र0 में हुआ। 1927 में जब उमरिया आ0-(1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-332 में प्लेग फैला तो आप परिवार के साथ ही उमरिया से बुढ़ार, जिला-शहडोल (म0 प्र0) आ गये।
श्री नारायणदास जैन
कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री नारायण साहित्यिक अभिरुचि सम्पन्न नानक चंद जी को गालिब
दास जैन 1930 के जंगल सत्याग्रह में सक्रिय रहे के अनेक शेर कण्ठस्थ थे। विन्ध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
और 3 माह का कारावास तथा 25 रु) का अर्थदण्ड रहे तथा नानकचंद जी के राजनीतिक गुरू पं) शम्भूनाथ
भोगा। शुक्ल ने आपको 'मस्ताना' नाम दिया था।
आO-(1) म) प्र) स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-67 बुढ़ार में विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने के कारण आपको 2-5-1932 को गिरफ्तार कर
श्री नारायणदास जैन लिया गया और 5-5--1932 को 3 माह का कठोर श्री नारायणदास जैन का जन्म सागर (म0प्र0) कारावास व 500/- रुपये जुर्माना की सजा सुनाई गयी। में हुआ। आपके पिता का नाम श्री झुन्नूलाल था। सजा आपने अमरपाटन कैम्प जेल में काटी थी। जुर्माना देशव्यापी कांग्रेस आंदोलन में आप सक्रिय रहे। सत्याग्रह
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आ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको गिरफ्तार किया आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया और गया। 1942 के देशव्यापी आंदोलन में आपने व्यक्तिगत 12 दिसम्बर 1948 से 23 अप्रैल 1949 तक भोपाल एवं पारिवारिक सुख का त्याग करते हुए भाग लिया। सेन्ट्रल जेल में बन्द रहे। इस बीच आपकी पत्नी सिद्धदोष कैदी के रूप में आपको 7 माह के कठोर भयंकर बीमार पड़ गईं, किसी तरह उन्हें जेल से छूटने कारावास की सजा सुनाई गई, जिसे आपने खुशी-खुशी के बाद बचाया। अपने घनिष्ठ जेल साथी श्रीमान् ताराचंद जैन (जिला ..
आ0-(1) म) प्र) स्व) सै), भाग-5, पृष्ठ-74 (2) वीर
___ हदय, पुस्तिका (3) स्व) पा) । जेल, सागर में) के साथ काटी। 26-6-91 को आपका स्वर्गवास हो गया। वर्तमान में आपका परिवार होशंगाबाद
श्री निर्मलकुमार जैन में है।
होशंगाबाद (म0 प्र0) के श्री निर्मलकुमार आO-(1) मा0 प्र0 स्व0 सै), भाग-5, पृष्ठ-332 जैन, पुत्र श्री बाबूलाल जैन का जन्म 1927 में हुआ। श्री नारायणदास जैन
जब आप मैट्रिक में अध्ययनरत थे तभी स्कूल छोड़कर
राजनीति में कूद पड़े। 1942 के आन्दोलन में आपने श्री नारायणदास जैन, पुत्र-श्री मन्नूलाल जैन का
9 माह के कठोर कारावास की सजा भोगी थी। 1975 जन्म 1907 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942
1. में अल्प आयु में ही आपका देहावसान हो गया। के आन्दोलन में जब पुलिस आपके पुत्र प्रसिद्ध स्वतंत्रता
आ)-(1) म) प्र) स्व० स), भाग-5, पृष्ठ-348 सेनानी श्री प्रेमचंद 'आजाद' को गिरफ्तार न कर सकी
(2) स्व) सं0 हो0, पृष्ठ-117 तो आपको पकड़ कर ले गई, कठोर यातनायें दी गई और 4 माह सैंट्रल जेल में रखा गया। 1982 में आपका
श्री निर्मलचंद जैन निधन हो गया। आपके पुत्र का अल्पायु में ही
आगरा (उ0 प्र0) के श्री निर्मलचंद जैन. निधन हो गया था।
पुत्र-श्री बंगालचंद जैन ने 1942 के आन्दोलन में अपने आ)-(1) म) प्रा) स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-67 (2)
क्रान्तिकारी कार्यों से देश स्व) स) ज), पृष्ठ-128 (3) श्री सिंघई रतनचंद द्वारा प्रेषित विवरण
की आजादी का मार्ग प्रशस्त श्री निर्मलकुमार जैन
किया था। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त और अपने गीतों से
जैन होते हुए भी श्री जैन जन-जन में स्वतंत्रता की ज्वाला फूकने वाले श्री
को देश की आजादी के लिए निर्मलकुमार जैन, पुत्र- श्री
अहिंसा का मार्ग पसन्द नहीं जुगल किशोर का जन्म
आ रहा था, फलत: उन्होंने 10 फरवरी 1929 को बरेली, क्रान्ति का मार्ग अपनाया। श्री जैन को यह पसन्द नहीं जिला-रायसेन (म0प्र0) में था कि एक ओर आजादी के दीवाने जेलों में बन्द हुआ। स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त हो रहे हों, दूसरी ओर लोग मनोरंजन के लिए सिनेमा श्री जैन ने अपने गीतों से देखें? उन्होंने नगर के तमाम सिनेमाघरों को पत्र लिखे
ग्रामीण अंचलों में स्वाधीनता और गोराशाही के जुल्मों का स्मरण कराया। इन गुमनाम के अनुकूल वातावरण बनाया। तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं पत्रों का जब कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो श्री जैन ने किसी में आपके काफी गीत छपे। भोपाल बिलीनीकरण तरह बम हासिल किया और उसे स्थानीय राक्सी
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प्रथम खण्ड
207
सिनेमा हाल में रख दिया। 12 बजे रात ज्यों ही बम...
आ0 (1) दिल्ली के स्वतंत्रता सेनानी, भाग-2, पृष्ठ-82
(2) अनेक प्रमाण पत्र (3) पत्नी श्रीमती चमेली देवी द्वारा प्रदत्त फटा, भगदड़ मच गई। परन्तु सादा वर्दी वाले पुलिस कर्मियों ने आपको तथा अन्य अनेक दर्शकों को पकड़ लिया। 5 नवम्बर 1942 को कोतवाली पुलिस ने
श्री १०८ आचार्य नेमिसागर जी महाराज अभियुक्तों को अनेक यातनायें दी और जिला जेल भेज
अपने गृहस्थ जीवन में 'गांधी की आंधी' में ।। दिया। मुकदमा चला। निचली अदालत ने श्री जैन को
माह लाहौर जेल में रहे पूज्य आचार्य नेमिसागर जी.
महाराज का जन्म वर्तमान सेशन सुपुर्द कर दिया।
हरियाणा के अकेडा, 13 माह कारावास में रहने के बाद सैशन जज
जिला-गुडगावां में 1907 में श्री के0 एम0 बान्च ने साक्ष्यों के अभाव में श्री जैन
हुआ। अल्पायु में माता-पिता को मुक्त कर दिया। कांग्रेस के क्रिया-कलापों से जुड़े
का देहावसान हो जाने से आप श्री जैन से हम आगरा में मिले। अपनी अन्तर्वेदना व्यक्त
3 वर्ष की आयु में देहली के करते हुए आपने कहा था कि 'स्वतंत्रता संग्राम में हमने
जौहरी लाला रणजीत सिंह जो स्वप्न संजोये थे वह धूल-धूसरित होते जा रहे हैं।
। जैन के यहाँ दत्तक पुत्र के
रूप में आये, जहाँ आपकी बुआ श्रीमती रिक्खी बाई कुछ मुट्ठीभर लोग आतंकवाद-अलगाववाद की
(लाला रणजीत सिंह की बहिन) ने आपका घिनोनी हरकतें करके हमारी एकता-अखण्डता को
लालन-पालन किया। जब आप सिद्धक्षेत्र शिखर जी चुनौती दे रहे हैं। हमारा विश्वास है कि भारतमाता के
की यात्रा पर गये थे तब वहीं बुआ के देहावसान का उज्ज्वल माथे पर कोई कालिख नहीं पोत सकेगा।'
तार मिला। इस घटना से आपकी वैराग्य भावना बढ़ आ)-(1) जै। स) रा) अ) (2) उ0 प्र0 जै0 40,
गई और आप घर नहीं लौटे। पृष्ठ-90 (3) गो) आ) ग्र), पृष्ठ-222
आपने 1940 में ब्रह्मचर्य व्रत, 1944 में क्षुल्लक श्री नेमचंद जैन
दीक्षा और 1956 में आचार्य जयसागर महाराज से खेकडा, जिला-मेरठ (उ0प्र0) के श्री नेमचंद टाकाटोका (गुजरात) में मुनिदीक्षा ली थी। जैन, पुत्र-श्री भरतसिंह का जन्म 1903 में हुआ। अपने
अपने गृहस्थ जीवन में आप सादा जीवन उच्च | गृहनगर से ही आप आन्दोलन
विचार और स्वाधीनता के पक्षधर थे। 1931 में गांधी में सक्रिय हुए। 1930 के
जी के आह्वान पर आप स्वाधीनता आन्दोलन में कूद
पडे और || माह लाहौर जेल में रहे। आप सदैव शुद्ध नमक आन्दोलन में आपने
भोजन लेते थे, अतः जेल की रोटी नहीं खाई। कई 6 माह की सश्रम कारावास
दिनों तक उपवास किया। अन्त में जेल में ही शुद्ध की सजा भोगी। आप
भोजन की व्यवस्था हुई। 1982 में आपका चातुर्मास 11-8-30 से 12-9-30
सिकन्द्राबाद (बुलन्दशहर) उ0प्र0 में हुआ था, इस तक मेरठ तथा 13-9-30 से
अवसर पर एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। 13-1-31 तक फैजाबाद जेल में रहे। आपने अमीनगर आ()-(1) परिचय पुस्तक, (2)जैन गजट, 23 फरवरी में गोली खाई थी व गोला सार्जेन्ट के सामने सत्याग्रह किया था। देहली कांफ्रेन्स में भी लाठियों के प्रहार
श्री नेमीचंद आंचलिया सहे थे। बाद में आप दिल्ली प्रवासी हो गये और वहीं श्री नेमीचंद आंचलिया का जन्म तत्कालीन आपका निधन हुआ।
बीकानेर रियासत के सरदार शहर (वर्तमान-राजस्थान)
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208
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन में एक सम्पन्न ओसवाल जैन परिवार में हुआ। सम्पन्न सुधारने की दृष्टि से राजनैतिक बंदियों की रिहाई का होते हुए भी जनता के अभाव और दुःख उनसे देखे आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप श्री रघुवर दयाल नहीं गये, विशेषत: बीकानेर के राजा द्वारा जनता को गोयल, गंगादास कौशिक और दाऊदयाल आचार्य तो दिये जाने वाले दुखों से वे दुखी रहते थे। जेल से रिहा कर दिए गए परंतु श्री नेमीचंद आंचलिया
आंचलिया जी निर्भीकता के साथ बीकानेर को रिहा नहीं किया गया। आंचलिया जी ने जेल में महाराजा की निरकुंशता और शासनाधिकार की कटु भूख हड़ताल शुरू कर दी। अन्त में बीकानेर राज्य आलोचना किया करते थे। उन्होंने बीकानेर महाराजा प्रजा परिषद् के प्रयत्नों से आंचलिया जी जेल से रिहा की स्वेच्छाचारिता के विरुद्ध जनमत को जागृत और हो सके। जेल से रिहा होने के बाद वे अधिक दिन संगठित करने का साहस भरा कार्य किया था। बीकानेर नहीं जी सके। महाराजा गंगासिंह श्री आंचलिया की इस निर्भीकता
आ)-(1) रा) स्व0 से0, पृष्ठ-765 से अत्यंत सशंकित थे और उन्हें उचित सबक सिखाने
श्री नेमीचंद जैन का अवसर ढूंढ रहे थे।
जबलपुर (म0प्र0) कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष इसी बीच 1942 की क्रांति के समय अजमेर ।
रहे श्री नेमीचंद जैन, पुत्र-श्री इमरत लाल का जन्म से प्रकाशित होने वाले 'साप्ताहिक राजस्थान' में बीकानेर
नरसिंहपुर (म0प्र0) में हुआ। आपके पिताजी शासकीय शासन की अंधेरगर्दी को बेनकाब करने वाला एक
सेवा में थे, उनका स्वर्गवास होने पर आपके मामा जी तथ्यपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ! बीकानेर महाराज ने उस
आपको व आपके तीन भाईयों को जबलपुर ले आये राजद्रोहात्मक लेख के लिए आंचलिया जी को
थे, क्योंकि सभी छोटे थे। नेमीचंद जी सबसे बड़े थे। अपराधी ठहराया और राजद्रोह के अपराध में उन्हें गिरफ्तार करके 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा
आपका विवाह जबलपुर के प्रसिद्ध सामाजिक दी। सारे सरदार शहर में और बीकानेर में आतंक पैदा
कार्यकर्ता व काँग्रेसी नेता श्री शुभचन्द जी की पुत्री करने के लिए श्री आंचलिया के हाथों में हथकडी
के साथ हुआ था। शुभचंद जी विख्यात स्वतंत्रता सेनानी लगाकर सरदार शहर और बीकानेर में उनका प्रदर्शन
भी थे, जो 30,3241 एवं 42 के आन्दोलनों में जेल गये थे। किया गया।
नेमीचंद जी उत्साही युवक थे, आप 42 के
__ आन्दोलन में पकड़े गये थे तथा सेन्ट्रल जेल जबलपुर श्री नेमीचंद आंचलिया को जेल में खूनी,
___ में एक वर्ष रहे थे हत्यारे और डकैतों के साथ रखा गया और उनसे कठोर
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-68 शारीरिक श्रम करवाया गया। उन्होंने राजनैतिक कैदियों (2) स्व) स0 जा), पृष्ठ-132 (3) सिंघई रतनचंद जी द्वारा
प्रेषित परिचय। जैसे व्यवहार की जेल अधिकारियों से मांग की। परंतु उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. उल्टे उनके
श्री नेमीचंद जैन पैरों में बेड़ियां डाल दी गईं और उन्हें चौबीसों घंटे
श्री नेमीचंद जैन, पुत्र-श्री उदयचंद का जन्म 21 कालकोठरी में बंद रखा जाने लगा।
अगस्त 1926 को जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 2 फरवरी 1943 को बीकानेर के महाराजा के आन्दोलन में | वपे । माह के कारावास की सजा गंगासिंह का निधन हो गया और नए महाराजा शार्दल आपने काटी।
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-68 सिंह ने गद्दी पर बैठते ही राजनैतिक वातावरण का (2) स्व0 स0 जा. पष्ठ-132
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प्रथम खण्ड
209 श्री नेमीचंद जैन
में आप जौरा, जिला-मोरेना (म0प्र0) में आ बसे। डिंडोरी, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री नेमीचंद 1938 से आप रा0आ0 में सक्रिय हुए। 1942 के जैन का जन्म 1913 में हुआ। आपके पिता का नाम आन्दोलन में भूमिगत रहकर आपने आन्दोलन को
श्री कन्हैया लाल जैन था। गति दी। आप उपमंत्री गांधी वाचनालय, मंत्री हाईस्कूल धार्मिक विचार और आचार शिक्षा समिति, जौरा, उपसंयोजक अ0 भा0 खेत आपको वंश परम्परा से मिले। मजदूर किसान परिषद्, व्यवस्थापक महात्मा गांधी प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण सेवाश्रम, जौरा आदि अनेक पदों पर रहे। 23 मार्च कर आप राष्ट्रीय आन्दोलन 1990 को आपका देहावसान हो गया। में कद पडे। 1942 के भारत
आO-(1) श्री राम जीत जैन, एडवोकेट द्वारा प्रेषित
परिचय एवं प्रमाण पत्र। छोड़ो आन्दोलन में आपने 9 माह की सजा तथा 200/- रु0 का अर्थ दण्ड
श्री नेमीचंद जैन भोगा। डिन्डोरी के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी स्व0 जोतराज वसैया, जिला-आगरा (उ0प्र0) निवासी श्री दालचंद जैन, श्री प्रभाचंद उर्फ भदू भैया, श्री श्री बाबू नेमीचंद जैन, पुत्र-श्री जुगल किशोर जैन रघुनाथ वर्मन आदि आपके साथ जेल में थे। देश की धन के पक्के और कर्मठ कार्यकर्ता थे। 1930 से ही आजादी के बाद कृतज्ञ राष्ट्र ने जब स्वतंत्रता आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेना प्रारम्भ कर सेनानियों को सम्मानित किया, तब आपका नाम दिया था, परिणामस्वरूप गिरफ्तार हुए और एक वर्ष अभिलेखों से गायब पाया गया। पुन:- पुन: अभिलेखों कारावास की सजा काटी। मंडल कांग्रेस कमेटी के के अन्वेषण से आपका नाम प्रकाश में आया। आप प्रमुख कार्यकर्ता थे। 1940 में आप नजरबंद
आO-(1) म) प्र) स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-209 (2) रहे। 1942 में भी कागारोल का डाक बंगला जलाने स्व) पा) (3) जै0 स0 रा0 आ)
के जुर्म में आप 2 वर्ष नजरबंद रखे गये थे। इतने श्री नेमीचंद जैन
पर भी पुलिस अपराध साबित नहीं कर सकी थी। छिन्दवाड़ा (म0प्र0) के श्री नेमीचंद जैन,
आ0-(1) प0 इ0, पृष्ठ-139 (2) जै) सर) रा) अ)
(3) उ0 प्र0 जै0 40, पृष्ठ-92 (4) श्री महावीर प्रसाद, अलवर पुत्र- श्री खुशालचंद ने 1923 के 'झण्डा सत्याग्रह' में
द्वारा प्रेषित परिचय। (5) गो) 0 प्र0, पृष्ठ-202 भाग लिया फलस्वरूप इन्हें जबलपुर में 3 माह का सश्रम कारावास दिया गया।
श्री नेमीचंद जैन आ0-(1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-100 वारासिवनी, जिला-बालाघाट (म0प्र0) के श्री (2) आन्दोलन में छिन्दवाडा जिले का योगदान, (टंकित शोध नेमीचंद जैन, पत्र-श्री डालचंद 1932 के 'सविनय --प्रबन्ध), पृष्ठ-300
अवज्ञा आन्दोलन' में जबलपुर में गिरफ्तार हुए तथा श्री नेमीचंद जैन
लगभग साढे सात माह कारावास की सजा आपने भोगी। व्यवसाय से होम्योपैथिक चिकित्सक एवं नगर
आ()-(1) म) प्र) स्व) ), भाग-1, पृष्ठ-182 कांग्रेस अध्यक्ष आदि अनेक पदों पर रहे श्री नेमीचंद
सिंघई नेमीचंद जैन जैन, पुत्र श्री जमुना प्रसाद जैन का जन्म 1925 में जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष तथा लोकल कुरीचित्तरपुर, जिला- आगरा (उ0प्र0) में हुआ, बाद बोर्ड के चेयरमैन रहे सिंघई नमीचंद जैन, पुत्र-श्री
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210
स्वतंत्रता संग्राम में जैन मोहनलाल का जन्म 13 गवाह बनाकर श्री खेमचंद ठेकेदार और श्री गुलाबचंद जुलाई 1913 को पिण्डरई, हलवाई को ढाई-ढाई साल की सजा दी।' जिला-मण्डला (म0प्र0) में आपने आगे लिखा है कि 'मण्डला सब जेल हुआ। आपके पूर्वज वहाँ के में प्रथम श्रेणी नजरबंद के लिए उचित व्यवस्था जमींदार थे। 1930 के नहीं होने के कारण मुझे केन्द्रीय जेल जबलपुर भेज व्यक्तिगत सत्याग्रह से आपने दिया गया। वहाँ मुझे सेठ गोविन्ददास, काका कालेलकर
1 राष्टीय आन्दोलनों में भाग आदि महापुरुषों का सत्संग मिला। मैं 13 माह वहाँ लेना प्रारम्भ कर दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में रहा, इस अवधि में मुझे अनेक आघात सहने पड़े। मेरे पिण्डरई जैन समाज के योगदान को रेखांकित करते अनुज सुगमचंद की पत्नी प्रसव के चार घण्टे बाद ही हुए आपने अपने परिचय में लिखा है कि 'तात्कालिक चिकित्सा के अभाव में चल बसी, क्योंकि सुगमचंद लगभग तीन हजार की आबादी वाले पिण्डरई ग्राम भी भूमिगत था। नवजात शिशु का लालन-पालन से चौदह लोगों ने आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया. उसके नाना-नानी के यहाँ हुआ। जिनमें लगभग सभी जैन थे। झण्डा सत्याग्रह के मेरे एक मात्र पुत्र का स्वर्गवास हो गया, जिस समय सिंघई भवनचंद जैन के मकान में तिरंगा कारण से मेरी पत्नी विक्षिप्त सी हो गई। उसे देखने झण्डा फहराये जाने के अभियोग में उनकी बन्दूकें ।
ही उसके पिता (मेरे श्वसुर) डॉ0 भैयालाल जैन, (जो जमींदार होने के कारण सुरक्षार्थ उन्हें मिली
- साहित्यरत्न, पी-एच0डी0 गाडरवारा से आये, उनका थीं) जब्त कर ली गई। विदेशी वस्त्र बहिष्कार के
पिण्डरई में ही देहान्त हो गया। समय सेठ मुलायम चंद जैन, श्री पेमीलाल बजाज
दिनांक 19-9-43 को मुझे जबलपुर जेल से एवं सिंघई भुवनचंद जैन के नाम गिरफ्तारी वारण्ट
- जब छोड़ा गया तो जेल के फाटक पर ही एक आदेश निकले, बाद में वे न्यायालय से बरी कर दिये गये।
पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि "एक साल की
अवधि तक जब भी आप पिण्डरई से बाहर जावें, 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 16 अगस्त को यहाँ के सेठ केवलचंद जैन, श्री उत्तमचंद जैन,
पुलिस को सूचना देकर जावें।" श्री चुन्नीलाल जैन, सिंघई शिखरचंद जैन, श्री
आजादी के बाद सिंघई जी उपाध्यक्ष-जिला मुलायमचंद जैन हलवाई तथा मैं गिरफ्तार कर लिए काग्रेस के
कांग्रेस कमेटी, चेयरमैन मण्डला लोकल बोर्ड, जनपद गये। मेरे अनुज सिंघई सुगमचंद का भी वारण्ट था।
सदस्य, सरपंच-चेयमैन पिण्डरई न्याय पंचायत आदि हम सभी सशस्त्र पलिस बल के 20 जवानों के बीच पदों पर रहे। आपके परिवार में से अनेक लोगों ने में करके डिप्टी कलेक्टर श्री सरैया सा0 मण्डला के जेलयात्रायें कीं, जिनमें अनुज सिंघई संगमचंद एवं संरक्षण में स्टेशन तक ले जाये गये, वहाँ सगमचंद श्री शिखरचंद आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। को छोड दिया गया बाकी को मण्डला जेल भेज आ()-(1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग 1, पृष्ठ- 215 (2) दिया गया। इसी समय श्री छोटेलाल एवं श्री मिठूलाल __ जै0 स0 रा0 अ0 (3) स्व0 पा) जैन ने जबलपुर में गिरफ्तारी दी, उन्हें जेल की सजा
श्री नेमीचंद जैन हो गई, इससे पिण्डरई के सत्याग्रही और भड़क उठे। पुलिस आफिस तथा ग्राम पंचायत के रिकार्ड
श्री नेमीचंद जैन, पुत्र-श्री रतीराम जैन का जला दिये गये। इस काण्ड में शासन ने दो झठे जन्म 1921 में बिलहरी, तहसील-कटनी, जिला
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प्रथम खण्ड
211 जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आपने मैट्रिक तक 1938-39 के आते-आते नेमीचंद जी प्रजामण्डल शिक्षा प्राप्त की। भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने की गतिविधियों में सक्रिय हो गये। तत्कालीन होल्कर सक्रिय भाग लिया और 12 अगस्त 1942 से 20 रियासत के जिला मुख्यालय महिदपुर में जिला सितम्बर 1943 तक कारावास में रहे। 26 जनवरी प्रजामण्डल का प्रधान कार्यालय था। प्रजामण्डल के 1947 को आपका स्वर्गवास हो गया।
अधिवेशन के लिये नेमीचंद जी के निवास पर आ0- (!) म0 प्रा) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-68 1941 में एक गुप्त बैठक में महिदपुर में अधिवेशन श्री नेमीचंद जैन
करने का निर्णय लिया गया। लेकिन तत्कालीन श्री नेमीचंद जैन का जन्म 1929 में हुआ था,
होल्कर राज्य के प्रधानमंत्री कर्नल दीनानाथ ने अधि
वेशन प्रतिबंधित कर दिया, जिसका जमकर विरोध आप ग्राम चारूवा, तहसील-हरदा, जिला-होशंगाबाद
किया गया। फलस्वरूप बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां (म0प्र0) के मूल निवासी थे। आपके पिता का नाम
हुई और महिदपुर जेल कार्यकर्ताओं से खचाखच भए श्री लालचंद जैन था। 1942 में पूरे देश में राष्ट्रीय प्रेम की भावना जोर पकड़ रही थी। गांधी जी के
गई। दिल्ली से राजकुमारी अमृत कौर महिदपुर आईं
तथा 22 दिन के बाद सत्याग्रहियों को बिना शर्त 'करो या मरो' नारे ने जनता को आंदोलित कर दिया
- शासन ने मुक्त किया। निरंतर प्रयास से 1942 में था। गांव-गांव में क्रांतिकारी क्रांति की ज्वाला को
इन्दौर राज्य प्रजामण्डल का पहला अधिवेशन महिदपुर सुलगा रहे थे। सभी जगह जनता अपने-अपने ढंग से
में सम्पन्न हुआ। अंग्रेजी सरकार का विरोध कर रही थी। तब श्री
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की याद नेमीचंद जैन ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
करते हुए श्री जैन ने अपने एक साक्षात्कार में प्रसिद्ध आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जाना
पत्रकार श्री मौहम्मद आदिल खान को जो बताया था पड़ा। आजादी की इस लड़ाई में वह हमेशा अंग्रेजी
उसके अनुसार उन्हीं दिनों कासलीवाल जी ने स्थानीय सरकार का विरोध करते रहे। वे क्रांतिकारियों का
न्यायालय परिसर में लोगों को एकत्रित कर अंग्रेज साथ देते हुए तोड़-फोड़ की कार्यवाही में भी हिस्सा
हुकूमत के खिलाफ आंदोलन में कूदने हेतु भाषण दे लेते रहे। मार्च 1985 में श्री नेमीचंद जैन का
दिया। उस समय उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया स्वर्गवास हो गया।
लेकिन तीन चार दिन बाद उनके नाम वारण्ट जारी मध्य प्रदेश शासन द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों का
किया गया। गिरफ्तारी के लिये पुलिस घर पहुंची तो सम्मान किया गया। श्री नेमीचंद जैन को ताम्रपत्र
पत्नी श्रीमती ताराबाई भी साथ जाने के लिये अड़ प्रदान किया गया एवं ग्राम टेमलावाड़ी में 8-10
गईं। उस समय वे गर्भवती थीं। जब उन्हें गिरफ्तार एकड़ भूमि प्रदान की गयी।
कर पुलिस वाहन में ले जाया जा रहा था तब रास्ते आ0 (1) श्री शोभाचंद जैन द्वारा प्रेषित परिचय।
में कई साथियों ने उनसे मुलाकात करना चाही। साथ (2) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-332
में उपस्थित डी0आई0जी0 श्री दातरे से कासलीवाल श्री नेमीचंद जैन कासलीवाल जी ने निवेदन किया कि वे 'उन्हें वाहन से उतरकर
स्वतंत्रता के महासागर में महिदपुर, जिला-उज्जैन साथियों से मिलने दें', लेकिन उन्होंने इंकार करते (म0प्र0) से हिस्सेदारी निभाने वाले श्री नेमीचंद जैन हुए ड्राइवर से वाहन बढ़ाने को कहा। इतना सुनते कासलीवाल का जन्म 1903 के लगभग हुआ। ही नेमीचंद जी ने वाहन की चाभी खींच ली।
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212
.स्वतंत्रता संग्राम में जैन पुलिस और उनके बीच हाथापाई की नौबत था। सरकार के बहुत प्रयत्न करने पर भी आप आ गई, वे वर्षा के दिन थे। वहां उपस्थित लोगों की सेशन जज की अदालत से निर्दोष साबित हुए। परन्तु भीड़ ने अचानक डी0आई0जी0 दातरे को कीचड़ में नजरबन्द रहे। आप दिसम्बर 1942 में गिरफ्तार सान दिया। वे तत्काल कलेक्टर कर्णिकर के पास किये गये थे। आपको खतरनाक मानकर सरकार ने पहंचे व सख्त कार्रवाई करने के आदेश मांगे, फतहगढ़ जेल भेज दिया था। आप दो वर्ष के लेकिन कलेक्टर ने इंकार करते हुए स्वयं सत्याग्रहियों लगभग कारावास में रहे। आपके कोई सन्तान नहीं से चर्चा कर स्थिति को संभाला। पलिस स्टेशन पर थी. अतः परा जीवन देशसेवा व जैन स थानेदार ने श्री नेमीचंद को तो जेल में रखना स्वीकार सेवा में बीता। किया लेकिन पत्नी को वापस जाने को कहा। पत्नी
आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 0 ध0, श्रीमती ताराबाई गिरफ्तार होने के लिये थाने में ही पृष्ठ-90 (3) श्री महावीर प्रसाद जैन, अलवर द्वारा प्रेषित परिचय
(4) गो0 अ0 ग्र0, पृ0-222 अनशन पर बैठ गईं तब उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल । में रखा गया। बाद में उन्हें कोर्ट उठने तक की सजा
श्री पंचमलाल जैन दी गई। नेमीचंद जी व तीन अन्य साथियों, श्री दिगम्बर जैन ट्रस्ट, रीवां के कोषाध्यक्ष एवं कन्हैयालाल मपाटे, श्री मिश्रीलाल व श्री राजमल को मंत्री रहे श्री पंचमलाल जैन, पुत्र-श्री शिकरीलाल जैन तराना तथा इंदौर जेल में रखा गया। तीन माह की
का जन्म 1916 में रीवा सजा भुगत कर नेमीचंद जी और साथी छूटे। नेमीचंद
(म0 प्र0) में हुआ। 1932 में जी उस समय अपनी सक्रियता के कारण शासन की
आप रा0 आ0 से जुड़े। आंखों में खटकते रहे और बार-बार जेल जाते रहे।
1942 के आन्दोलन में आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग 4, पृष्ठ-165
आपने सक्रियता से भाग (2) म स), पृष्ठ ब-52
लिया। कुछ दिन इधर-उध लाला नेमीचंद मीतल
र छिपते रहे , अन्तत: 24 आगरा दि) जैन परिषद् के प्रधानमंत्री रहे सितम्बर 1942 को आप गिरफ्तार कर लिये गये। 15 नमक मण्डी, आगरा (उ0प्र0) निवासी लाला नेमीचंद दिसम्बर 1942 तक आप फलकनुमा कैम्प में नजरबंद जैन मीतल, पुत्र-श्री मंगूलाल 1930 के आन्दोलन रखे गये। रीवां के 'चावल-आन्दोलन' में भी आपने में आगरा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा साहित्यकार भाग लिया था। आप 1941 से 1951 तक रीवां नगर स्वर) महेन्द्र जी के साथ कांग्रेस विज्ञप्ति के प्रकाशन के पार्षद रहे थे। का कार्य करते थे। 'आगरापंच' के प्रकाशक रहे आO-(1) स्व) प0 (2) डॉ) नन्दलाल जैन रीवां द्वारा मीतल जी बार्ड कांग्रेस कमेटी के अनेकों बार अधि प्रेषित परिचय (3) सूची क्रमांक 445 (4) अनेक प्रमाणपत्र कारी रहे और 1945 से 47 तक नगर कांग्रेस
श्री पंचमलाल जैन कमेटी के सदस्य रहे थे। 1942 के आंदोलन में आपने सरकारी रिपोर्ट
श्री पंचमलाल जैन का जन्म तत्कालीन के अनुसार 'आजाद हिन्दुस्तान' और कांग्रेस विज्ञप्तियां बकापहाडी स्टेट (वर्तमान, उत्तर प्रदेश) में जनवरी प्रकाशित की थीं। आप उन 14 व्यक्तियों में से एक 1897 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जानकी प्रसाद थे, जिन पर 'आगरा षडयंत्र बम केस' चलाया गया
जैन था। 1911 में अपने मामा के यहाँ ग्राम सकरार
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प्रथम खण्ड
213 में रहकर आपने अध्ययन किया। 1912 में ग्राम भिटौरा टीकमगढ़ के नेता श्री लालाराम वाजपेयी, श्री में इमदादी स्कूल में अध्यापन कार्य किया। 1913 में श्यामलाल साहू, श्री चतुर्भुज पाठक श्री नारायण दास अपनी जन्म भूमि बंका पहाड़ी में लौट गये और खरे, श्री लक्ष्मीनारायण नायक आदि से सम्पर्क होने 1916-17 में राज्य की नौकरी कोठादारी के पद पर के कारण आपने अपने घर में ही कांग्रेस का दफ्तर रहकर की।
बना लिया था। 1940 में बंगापहाड़ी के शासक ने ___गाँधी जी के उपदेशों से प्रभावित होकर 1927 आपको पीटा तथा घायल अवस्था में चुम्बक में पैर में आपने राज्य की कोठादारी से त्यागपत्र दे दिया और देकर एक माह की सजा व 20/- रु0 जुर्माना किया। देश व जनता की सेवा में लग गये। 1928 से राज्य 1941 में बंकापहाड़ी के शासक ने भुमकलाल कामदार की नीतियों तथा अत्याचारों का विरोध करने लगे. से, इनके घर कांग्रेस दफ्तर से, कागजात जब्त कराये। आन्दोलन किया, 14 किसानों को लेकर 1929 में 1942 में रामदीन चौकीदार से धोखा देकर राजा ने पोलीटिकल एजेण्ट नौगाँव के पास जाकर राज्य के आपको बुलाया और कचहरी में हाथ पैर बंधवाकर अत्याचारों तथा नीतियों का दिग्दर्शन कराया और किसानों खूब पिटाई कराई, खून से लथपथ होने पर बेहोशी को पट्टे दिलाने तथा बेगार बन्द करने के लिए राजा की हालत में छोड़ दिया गया। को आदेश दिलाये। 1920 में आप अपनी पत्नी सहित
आO-(1) वि) स्व० स) इ0, पृ0 233-235 एवं अन्य झांसी आ गये और श्री आत्माराम खेर, श्री गोविन्द अनेक पृष्ठ खेर की कांग्रेस के सदस्य बने। 1930 में मऊरानीपुर आन्दोलन में आपने भाग लिया। 1931 में आप रहली, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री ललितपुर गये, वहाँ आन्दोलन में शामिल हुए व पंचमलाल बैसाखिया, पुत्र-श्री मोतीलाल ने 1932 के सत्याग्रह किया। वारडोरी सत्याग्रह में जुलूस निकालने आन्दोलन में पांच माह का कारावास तथा 50/-70 पर गिरफ्तार हुए और 3 माह की सजा पाई। अस्वस्थता का अर्थदण्ड भोगा। 1958 में आपका स्वर्गवास हो गया। के कारण समयावधि से पूर्व ही जेल से छोड़ दिया आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-41 गया। चंदनसिंह व नन्दन शर्मा के साथ धरना देने (2) आ0 दी) 40-50 पर संयुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा 15 वेंतो की पिटाई हुई। पुनः अंग्रेज सुप्रिंटेण्डेण्ट द्वारा गिरफ्तार हुए और 29-1-31
श्री पंचमसिंह जैन को 6 माह की कैद व 50 रु0 जुर्माना की सजा हुई।
एत्मादपुर (आगरा) उ0प्र0 के निकट 'रटना के
बास' नामक ग्राम के निवासी श्री पंचमसिंह जैन ने जेल से छूटकर आप पुनः बंकापहाडी गये।
1942 के आन्दोलन में सक्रिय हिस्सा लिया तथा एक 1934 से 1937 तक आपने रियासतों में बेगार प्रथा
वर्ष की सजा भोगी। आपने क्षेत्रीय जनता को आन्दोलन बन्द कराने हेतु आंदोलन चलाया। राज्य से कई प्रकार
के लिए संगठित करने में महती भूमिका निभाई थी। के दबाव आये, अत्याचार किये गये और लाठीचार्ज
आ) (1) प० इ०, पृष्ठ-140 (2) श्री महावीर प्रसाद किया गया, बलवानसिंह तथा जैपालसिंह आदि साथियों जैन द्वारा प्रेषित परिचय (स्मारिका, पृष्ठ-92) (3) गो) अ0 ग्र0, के साथ पाशविक व्यवहार किया गया और राज्य से पृ0 222-223 बाहर निकलवाने के आदेश पोलीटिकल एजेण्ट से
श्री पदमकमार जैन कराये गये। इन सभी की जमीनें जब्त कर ली गईं। 19 नवम्बर 1924 को सागर निवासी श्री पूरन फिर भी आप नहीं झुके।
चंद जैन के आंगन में एक फूल खिला, पिता ने इस
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214
• स्वतंत्रता संग्राम में जैन बालक का नाम पदम कुमार लाल जैन प्रमुख थे। इन सबके साथ श्री पदम कुमार रख दिया। पदम कुमार का जैन पैदल ही सागर से भापेल, जैसीनगर, वांसा, राजनैतिक जीवन बालकाल राहतगढ़, सीहोरा, नरयावली, जरुआखेड़ा, खुरई, बीना, से ही प्रारम्भ हो चुका था। मालथौन, खिमलासा, बांदरी आदि होते हुए सागर आपके पिता कांग्रेस के वापिस आये। इस प्रकार लगभग 150 मील पैदल सक्रिय कार्यकर्ता थे। वे भ्रमण किया व जनता में सभाएं कर अंग्रेजों को
1932 से ही जिला कांग्रेस मदद न करने हेतु जनता में प्रचार किया। कमटी के कोषाध्यक्ष रहे। 1930--32 में जब विदेशी 8 जलाई 1941 को श्री जैन को गिरफ्तार किया कपड़े का बहिष्कार प्रारंभ हुआ उस समय उनकी गया तथा 2 माह की सजा व 20/- रु0 जुर्माना किया कपड़े की दुकान थी।
गया। उन्हें जेल में बी श्रेणी में रखा गया। 11-7-41 उसी समय से पूरनचंद जी ने आजीवन विदेशी को उन्हें नागपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया। जेल कपड़े न बेचने की प्रतिज्ञा की। इसके परिणामस्वरूप में अ श्रेणी व ब श्रेणी साथ-साथ थी। प्रान्त के सभी दुकान का कारोबार बंद सा हो गया और लगभग पचास चोटी के नेता वहां थे। सागर के श्री स्वामी कृष्णानंद, हजार रुपये की हानि उठानी पड़ी।
श्री कृष्ण सेलंट आदि कई लोग वहां थे। जून 1995 में हम श्री जैन के गांधी बार्ड, 1942 के आन्दोलन में लक्ष्मीबाई के चौपड़ा सागर स्थित आवास पर उनसे मिले। आन्दोलन में भाग से 100 व्यक्तियों का जुलस इनके नेतृत्व में निकाला लेने के सम्बन्ध में आपने विस्तार से चर्चा की। आ0 गया। इनके साथ बाबूलाल तिवारी, सुरेश चद सिंघई दी), पृष्ठ-1। पर भी विस्तार से आपका परिचय दिया एवं सेठ डालचंद (पूर्व सांसद) थे। जलस पुलिस नाकों गया है।
से बचता हुआ लगभग डेढ़ घंटा बाद कटरा मोटर स्टेण्ड 1940 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ पहुंचा, वहां मंच बनाकर सभा की। आधे भाषण के सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया था। अन्य दौरान पुलिस लगभग तीन लारियों में जवानों को भरकर जिलों से सत्याग्रही सागर होते हुए देहली की ओर आ पहुंची। सर्वप्रथम श्री पदमकुमार को गिरफ्तार किया जाते थे। उन सत्याग्रहियों को देखकर श्री जैन का गया। उनके गिरफ्तार होते ही दूसरे भाषण देने आने इस आंदोलन में कूदने का मन हो रहा था। श्री जैन लगे और गिरफ्तार होते गये। ने अपनी इच्छा तत्कालीन जिला कांग्रेस अध्यक्ष इसके बाद पुलिस ने लाठी चार्ज करके बाकी स्वामी कृष्णानंद जी से जाहिर की, स्वामी जी ने जनता को वहां से हटने के लिये बाध्य किया। डालचंद कहा कि 'अभी तुम्हारी उमर बहुत छोटी है और इस जी को अवस्थी इंसपेक्टर ने रास्ते में ही गाड़ी से उतार आंदोलन में वही भाग ले सकता है जिसे पूज्य गांधी दिया। बाकी तीनों को पुलिस सिटी कोतवाली ले गई, जी इजाजत देते हैं। फिर भी तुम्हारी लगन देखकर जहां रात भर इन्हें हवालात में बंद करके रखा गया। तुम्हें देहातों में जाकर रचनात्मक कार्य करने की सुबह तीनों को जिला पुलिस कप्तान के समक्ष पेश इजाजत देता हूँ।' बस फिर क्या था। उन्होंने कुछ किया गया। पुलिस कप्तान एक अंग्रेज था 'आइंदा इस साथियों को इकट्ठा किया, जिनमें सिंघई स्वरूप तरह की हरकत न करने की जमानत देने पर छोड़ चंद, राधेलाल समैया, नारायण राव हार्डीकर, मिठू देने को कहा। इन तीनों ने कहा-पुनः इस प्रकार की
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प्रथम खण्ड
215 सभाओं और जुलूसों का आयोजन करेंगे चाहे आप गृहस्थ अवस्था में रहते हुए भी आपकी रुचि छोड़ें या बंद करें।'
सदा धार्मिक रही। जिनदर्शन, पूजा व स्वाध्याय आपका इसके बाद इन्हें सागर जिला जेल भेज दिया गया। नित्य-नियम था। खान-पान, आचार-विचार का परा 25-9-42 को तीनों को सजायें हो गई। श्री पदम कुमार ध्यान रखते थे। आपने आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज को नौ माह की सजा हुई, जो आपने सागर तथा जबलपुर
से उज्जैन मे दसवीं प्रतिमा एवं 1965 में श्री नेमसागर जेलों में काटी।
जी महाराज से देवगढ़ में क्षुल्लक पद की दीक्षा ली। जेल से वापिस आने के बाद अनेक वर्षों तक
आपका नाम 'पदमसागर' रखा गया। आप जिला कांग्रेस प्रबंध समिति के सदस्य एवं
आपकी प्रकृति अत्यन्त शान्त व सरल थी।
आपका निधन 1979 में कुर्रा चित्तरपुर में हुआ। कोषाध्यक्ष रहे साथ ही सागर ब्लाक कांग्रेस कमेटी के
आO- (1) श्री दि0 जैन वरैया समाज इतिहास, पृष्ठ-4) अध्यक्ष भी रहे। आ)-- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-36
श्री पन्नालाल जैन (2) आ0 दी), पृष्ठ-11 (3) सा0
श्री पन्नालाल जैन, पुत्र-श्री खेमचन्द का जन्म
1917 में हुआ। आप ग्राम हल्दीबाड़ी, पोस्ट-चिरमिरी, श्री पदमचंद जैन
जिला-सरगुजा (म0प्र0) के निवासी हैं। अपने समय बालाघाट (म0प्र0) के श्री पदमचंद जैन,
के सक्रिय और कर्मठ कार्यकर्ता रहे श्री जैन को 1942 पुत्र श्री पन्नालाल का जन्म 1930 में हुआ। 1942
हुआ 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण के आन्दोलन में नारे लगाने के कारण आप पकड़े गये
1 9 माह के कठोर कारावास की सजा भोगनी पड़ी। पर अल्पवय होने के कारण हवालात में ही रखे गये।
कारावास की अवधि में आप गुनहखाने में भी रखे 1944 के गोवा सत्याग्रह में भी आपने भाग लिया और
गये थे। गिरफ्तार हुए।
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सैo, भाग-3, पृ0-214 आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-182
श्री पन्नालाल जैन क्षुल्लक पदमसागर जी महाराज
खादी और गांधी साहित्य के प्रचार-प्रसार को राष्ट्रसेवा और धर्मसेवा दोनों को ही अपना मिशन समर्पित श्री पन्नालाल जैन का जन्म 31 दिसम्बर 1900 बनाने वाले क्षुल्लक पदमसागर जी महाराज का दीक्षा ई0 को सनावद, जिला-पश्चिम निमाड़ (म0प्र0) में पूर्व नाम श्री पन्नालाल जैन था। आपका जन्म 1894 हुआ। आपके पिता का नाम श्री पद्मसा था। में ग्राम- गढीरामवल (कुर्राचित्तरपुर) जिला-आगरा बाल्यावस्था में घर के नौकर ने आपको प्रसिद्ध (उ0 प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री चुन्नीलाल क्रान्तिकारी श्री खशीराम बोस की फांसी की रोमांचक एवं बाबा का नाम श्री हीरालाल था। आपने कक्षा कहानी सुनाई। तभी से आपके मन में अंग्रेजों के प्रति 4 तक शिक्षा ग्रहण की और कपड़े एवं साहूकारी का विद्रोह की भावना पनपने लगी। 1918 में इन्दौर में पैतृक व्यापार करने लगे। आप कांग्रेस के सक्रिय सदस्य अ0भा0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन हुआ, बन गये और आंदोलनों में भाग लिया। बड़ौदा में जिसकी अध्यक्षता पज्य बाप ने की थी। आपने उसमें धारा 144 को आपने तोड़ा था। नूरीदरवाला (आगरा) स्वयंसेवक के रूप में कार्य किया, आपने तिलक में 1942 में आपने जेल यात्रा की।
स्वराज्य फण्ड में धन एकत्रित करने का भी काम
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किया। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री अर्जुनलाल सेठी के भाषण से प्रभावित होकर आपने विदेशी टोपियों की होली जलाई, जिसमें अपनी टोपी भी होम कर दी और खादी पहनने का नियम लिया, जिसे अन्त समय तक निभाया।
1930 में आपने चर्खा चलाना सीखा और घर-घर जाकर खादी का प्रचार-प्रसार किया। नमक सत्याग्रह में भी आपने भाग लिया। खादी के प्रचार-प्रसार में आप सदैव समर्पित रहे। 1936 में इन्दौर नगर कांग्रेस कमेटी के मंत्री और बाद में एक साल तक उसके अध्यक्ष रहे। आप प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य और उसके वित्तमंत्री भी रहे। आपने त्रिपुरी, जयपुर, मेरठ आदि के कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लिया और कांग्रेस का प्रचार किया । इन्दौर राज्य में प्रचार की सख्त पाबंदी होने पर भी आपने गांधी जी की 'सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा,' पं० सुन्दरलाल जी की 'भारत में अंग्रेजी राज ' आदि पुस्तकों को घर-घर जाकर बेचने का काम किया। समय-समय पर अखण्ड चर्खा चलाने का आन्दोलन भी आपने किया ।
दूसरे विश्व युद्ध में जब गांधी जी ने - 'एक भी पैसा और एक भी आदमी देना पाप है' का नारा बुलन्द किया तब श्री कन्हैयालाल खादीवाला, श्री मिश्रीलाल गंगवाल ने निमाड़ आदि शहरों में पैदल ही व्यक्तिगत सत्याग्रह हेतु भ्रमण किया, तब दोनों का सारा प्रबन्ध आपने ही किया था। अजमेर में हरिजनों की हड़ताल होने पर आपने स्वयं अपने हाथों सफाई की। इन्दौर में भी ऐसी सफाई आपने की थी।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आपने भाग लिया। इन्दौर में होने वाली आम सभा को पुलिस नाकाम करना चाहती थी, उसने जनता पर घोड़े दौड़ाये, पानी की बौछार की, लाठियां बरसाईं, आपको भी चोट आई । 16 अगस्त को रात्रि में एक बजे पुलिस ने आपको घर से गिरफ्तार कर लिया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आप इन्दौर, मंडलेश्वर और मानपुर की जेलों में रहे।
मंडलेश्वर जेल में मागें न मानी जाने पर आपने अपने साथियों सहित सत्याग्रह किया। सत्याग्रहियों को मारा पीटा गया। यह अक्टूबर का महीना था। 51 सत्याग्रही जेल तोड़कर बाहर निकल गये और शहर में गांधी जयन्ती 2 अक्टूबर को मनाई। आप भी उनमें थे। दूसरे दिन कोर्ट में जेल लगी, सत्याग्रहियों ने उसमें भाग लिया, फलतः सबको दो-दो साल की कठोर कारवास की सजा दी गई।
श्री जैन का निधन 7-1-1986 को हो गया। आपके पुत्र श्री एन0पी0 जैन (नरेन्द्र जैन) विदेश सेवा में रहे। वे बेल्जियम में भारत के राजदूत भी रहे।
(आ) (1) म) प्र0 स्व0 सै0 भाग - 4, पृष्ठ 88 (2) पौत्र श्री रूप किशोर जैन द्वारा प्रेषित परिचय (3) जै स) रा० अ०, पृष्ठ-74
श्री पन्नालाल जैन
बरेली, जिला - रायसेन (म0प्र0) के श्री पन्नालाल जैन, पुत्र- श्री नन्हेलाल जैन का जन्म 1901 में हुआ। 1948 के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा कारावास की सजा भोगी ।
आ) - (1) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-74
श्री पन्नालाल जैन ( सेठ)
ग्राम-चन्देरा, जिला टीकमगढ़ (म0प्र0) के श्री पन्नालाल जैन, पुत्र - श्री भगवानदास का जन्म 1904 में हुआ। 1947 के चंदेरा काण्ड में आपने भाग लिया। म०प्र० शासन ने सम्मान पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित किया है।
आ) - ( 1 ) म) प्र() स्व0 सै), भाग 2, पृष्ठ-129 (2) प) जै) इ0, पृष्ठ-533 ( 3 ) वि) स्व() स० इ), पृष्ठ-111
वैद्य पन्नालाल जैन 'सरल'
सदैव मंच से नीचे और प्रचार से पीछे रहने वाले, फिरोजाबाद (उ0प्र0) के वैद्य पन्नालाल जैन
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प्रथम खण्ड
217
का जन्म तत्कालीन आगरा जन्म 1 अप्रैल 1921 को हुआ। 1938 से आप जिले के गढ़ी हंसराम, नारखी आंदोलन में सक्रिय हो गये और रचनात्मक कार्यों में में हुआ। 1942 के आन्दोलन भाग लिया। समय-समय पर आप लोगों की आर्थिक में आपने जेल यात्रा की। मदद भी करते रहे। 1942 के आन्दोलन में आपने आपने बताया कि -'मेरा 6 माह का कारावास भोगा। आप होशंगाबाद और राजनैतिक जीवन 1937 से अकोला जेलों में रहे थे। आपके पिता श्री कन्छेदीलाल
प्रारम्भ हुआ जब मुझे मंडल और चाचा श्री बाबूलाल भो जेल यात्री रहे हैं। कांग्रेस कमेटी, नारखी का कोषाध्यक्ष बनाया गया। आO-(1)म0 प्र0 स्व) सै०, भाग-5, पृष्ठ-33 सन् 1942 में मंत्री बना और 'करो या मरो' आन्दोलन (2) स्व) स0 होo, पृष्ठ-115 में एक माह भूमिगत रहकर सितम्बर 1942 में
श्री पन्नालाल पाईया गिरफ्तार हुआ तथा 2 माह जेल की यात्रा की।'
__श्री पन्नालाल पाईया का जन्म 1912 में वैद्य जी के सम्बन्ध में जै0 स0 रा) अ) लिखता
बुढ़ार, जिला-शहडोल (म0प्र0) में हुआ था।आपके है 'अपनी लोकप्रियता के कारण 1946 में भी
7 पिता का नाम श्री गोविन्द सर्वसम्मति से मंडल के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। सन्
दास पाईया था। ज्येष्ठ पुत्र 42 में निर्धन सेवा सदन स्थापित करके गांवों में फैली
होने के कारण पाईया जी हुई गल्ले की कमी को अपने खर्चे से मंगाकर पूरा
प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर किया। बाजारी के सिद्धान्ततः विरोधी होने के कारण
पिता के व्यवसाय में सहयोग कपड़े के सुचारू रूप से चलते हुए व्यवसाय को
देने लगे। आप धार्मिक, समाप्त कर दिया।' आपने औषधालय, खादी केन्द्र,
सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यो हिन्दी साहित्य विद्यालय आदि के माध्यम से राष्ट्र की
में भरपूर रुचि लेते थे। आप 'सादा जीवन उच्च सेवा की है। आज तक शासन से किसी भी प्रकार
विचार' वाले व्यक्ति थे। आप हर समय लोगों के की सहायता या लाइसेंस नहीं लिया। आजादी के बाद
दु:ख-तकलीफ में काम आने एवं सहायता करने के आप अनेक पदों पर रहे। आपने साप्ताहिक पत्र 'ग्राम्य
लिए तैयार रहते थे। जीवन' का सम्पादन किया। 'जैन मित्र,' 'जैन सन्देश', 'वीर', 'वीरभारत', 'युग परिवर्तन' आदि में आपकी
पन्नालाल जी ने 1932 में विदेशी वस्त्र विक्रेता रचनायें छपती रहीं हैं। सब कुछ करने के बाद भी
की दुकान पर धरना दिया, जिसके कारण उन्हें प्रचार से सदा पीछे रहने वाले वैद्य जी फिरोजाबाद
गिरफ्तार किया गया और बुढ़ार जेल में 15 दिन के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
तक बंद रखा गया, साथ में काफी यातनायें भी दी
गईं। उन्होंने देशहित, समाजहित और परिवारहित को आ)- (1) जै0 स) रा0 अ0 (2) अमृत, पृष्ठ-25-26, (3) उ. प्र) जै) ध0, पृष्ठ 92 (4) जै0 से) ना) अ), पृष्ठ-5 देखते हुए विधुर जीवन जीने की प्रतिज्ञा लेकर
अंतिम समय तक अपने को समर्पित रखा। 80 वर्ष श्री पन्नालाल डेरिया
की अवस्था में अपने कर्मठ जीवन की छाप छोड़कर, बाबई, जिला-होशंगाबाद (म0 प्र0) के श्री मोह-माया के बंधनों से मुक्त होकर 6/7/1992 को पन्नालाल डेरिया, पुत्र-श्री कन्छेदीलाल डेरिया का आप अंतिम यात्रा के लिए प्रयाण कर गये। आपने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन शासन की ओर से मिलने वाली सम्मान निधि को शासन द्वारा सागर में नजरबन्द कर दिए गये। आपको लेने से इंकार कर दिया था।
देवरी जाने अथवा देवरी से किसी भी तरह का . आ()- (1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-5, पृष्ठ-312 सम्पर्क रखने के लिये रोक लगा दी गई थी। इसके (2) पुत्र निर्मल कुमार पाईया द्वारा प्रेषित परिचय एवं प्रशस्ति पत्र
बाद आप कलकत्ता चले गए और वहाँ 'दूध बताशा' (3) स्वा) आ) श), पृ०-136
नामक बाल पत्रिका का सम्पादन किया, जिसमें श्री पन्नालाल बासल ।
अधिकतर राष्ट्रीय लेख एवं कवितायें ही छपती थीं। मंडी बामोरा, जिला सागर (म0प्र0) के प्रसिद्ध 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' लोकोक्ति समाज सुधारक श्री पन्नालाल बासल को 1942 के के अनुसार आप पुन: देवरी आ गये और स्वतंत्रता के आन्दोलन में भाग लेने के कारण छह माह का बाद नगर के विकास में सक्रिय योगदान दिया। आप कारावास दिया गया था। आप बामोरा कांग्रेस मण्डल कई वर्षों तक नगर पालिका के अवैतनिक मंत्री रहे के अधिपति व सागर जिला कांग्रेस कमेटी के और नगर विकास के लिए जीवन के अन्तिम क्षण सदस्य भी रहे।
तक प्रयासरत रहे। 1। अक्टूबर 1972 को आपका आ)- (1) जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-53
निधन हो गया।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-38 श्री परमानन्द सिंघई
(2) आ0 दी0, पृष्ठ-56, (3) श्री दुलीचंद जैन देवरी द्वारा प्रेषित देवरी कलां, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी परिचय। श्री परमानन्द सिंघई, पुत्र-श्री मूलचन्द सिंघई का
पं० परमेष्ठीदास जैन जन्म 1914 में हुआ।
- जैन समाज के सुविख्यात विद्वान् प्रसिद्ध विद्यार्थी जीवन से ही
समाज सुधारक, राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत, जैन आप में राष्ट्रीय भावनाएं
पत्रकारिता को आधुनिकता पल्लवित हो गईं थीं। 31
का स्पर्श देने वाले पं) दिसम्बर 1933 में जब राष्ट्रपिता बापू देवरी पधारे
परमेष्ठीदास जैन, पुत्र- श्री तब यहाँ के युवकों की
मौजीलाल का जन्म 1907 में स्वागत करने वाली टोली का
महरोनी, जिला- ललितपुर नेतृत्व श्री परमानन्द सिंघई ने किया था। बापू का
(उ0 प्र0) में हुआ। आपके आशीर्वाद पाकर आप स्वतंत्रता आन्दोलन में कद
पिता वैद्य थे। जब पं0 जी पड़े और जन-जागरण की दिशा में क्रियाशील हए। आठ वर्ष के थे तभी मौजीलाल जी ललितपुर आकर
1939-40 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान बस गये थे। आप जिला कांग्रेस कमेटी, सागर के मंत्रियों में से पं0 जी की प्रारम्भिक शिक्षा महरौनी में हुई। एक थे। बापू द्वारा स्वीकृत जिले के 56 व्यक्तिगत बाद में ललितपुर, साढूमल, मुरैना, जबलपुर और इंदौर सत्याग्रहियों की सूची में आपका नाम था। के जैन विद्यालयों में आपने शिक्षा प्राप्त की तथा
1942 के आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के 'जैन सिद्धान्तशास्त्री' और 'न्यायतीर्थ' जैसी उपाधियां कारण लगभग 6 माह आप बन्दी रहे एवं 6-7 माह प्राप्त की। डॉ0 जयकुमार 'जलज' ने ठीक ही
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219 लिखा है 'बुन्देलखण्ड अपनी प्रतिभाओं को कुछ भी पढ़ाया करते थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की देने में असमर्थ था। जो भी कोई पढ़ना-लिखना और स्थापना में भी आप सहयोगी रहे थे। कुछ करना चाहता था उसे दिल्ली, इन्दौर, मुरैना, 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में आप सूरत अहमदाबाद, सूरत, वाराणसी आदि स्थानों पर जाना में गिरफ्तार कर लिये गये। श्रीमती कमलादेवी भी पड़ता था। ये साधनहीन विद्यार्थी बहुत अल्पायु में ही सभाबन्दी कानन भंग करती हई गिरफ्तार कर ली गईं घर छोड देते थे। स्व0 गणेशप्रसाद वर्णी, इन्दौर के क्योंकि वे गांधी चौक में भाषण दे रहीं थीं। दोनों का स्व) पं0 वंशीधर, अकलतरा के स्व0 40 पन्नालाल सौभाग्य था कि दोनों को एक साथ साबरमती जेल और बाद की पीढी में पं0 बाबूलाल जमादार, मगनलाल में रखा गया। पर पण्डितानी जी बाजी मार गईं उन्हें जैन, प) सुखनन्दन जैसे सैकड़ों लोग इसी प्रकार बाहर पांच माह जेल में रहना पड़ा और पं0 जी को चार निकले थे। ये विद्वान् बीसों नगरों और कस्बों में आज
माह। जेल में आपके साथ आपका तीन वर्षीय पुत्र आजीविका के लिए संघर्ष करते हुए भी जैन चिन्तन
जैनेन्द्र भी था। परन्तु आपके मित्र श्री साकेरचन्द्र सरैया को गतिशील बनाये हुए हैं।
ने बालक को अपने पास जेल से वापिस बुला लिया पं0 परमेष्ठीदास ने भी बचपन में घर छोड़ा।
और भयंकर बीमारी में भी बहुत सेवा करके उसके पढ़ाई की। अनेक जैन ग्रन्थों का पाठसंशोधन-संपादन
प्राण बचा लिये थे। किया, कई मौलिक पुस्तकें लिखीं, सैकड़ों मित्र बनाये, पचासों को प्रेरणा और प्रोत्साहन दिया। संस्कृत, प्राकृत,
__ हिन्दीभाषा का प्रचार महात्मा गांधी के हिन्दी और गुजराती पर अपने असाधारण अधिकार
रचनात्मक कार्यों में से एक महत्त्वपूर्ण कार्य था। इस के कारण उन्हें सर्वत्र आदर और आत्मीयता मिली;
कार्य में आप दोनों पूरी तन्मयता से लगे रहे। जेल
में आप लगभग 500 साथियों को राष्ट्रभाषा की शिक्षा लेकिन वे शुद्ध उदास पण्डित कभी नहीं रहे। म आप लगभ हँसी-मजाक और नोकझोंक के बिना वे अधिक देर
देते थे। ये सभी गुजराती थे। जेल में ही परीक्षा भी नहीं रह सकते। इस मामले में उनकी समानता उनके ली और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की ओर से स्व0 मित्र पं0 नाथूराम 'प्रेमी' से की जा सकती है।' प्रमाणपत्र दिलवाये। ___पं0 जी का विवाह कमलादेवी के साथ हुआ
1944 में प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र कुमार जो सही अर्थों में पं0 जी की सहगामिनी बनीं। जब के साथ आपने 'लोक जीवन' मासिक पत्र का सम्पादन पं0 जी सूरत में जेल गये तो कमलादेवी भी उनके किया। 1932 से ही आप अ0 भा0 दि0 जैन परिषद् साथ जेल गईं।
के मुख पत्र 'वीर' से जुड़ गये। पहले सम्पादक रहे मात्र 22 वर्ष की अवस्था में परमेष्ठीदास जी और फिर प्रधान सम्पादक। परिषद् के 1938 में सतना सूरत (गुजरात) गये और प्रसिद्ध समाचार पत्र 'जैन तथा 1950 में दिल्ली में सम्पन्न हुए अधिवेशनों में मित्र' के सम्पादकीय कार्यालय में सहायक बन गये. 'मरण भोज विरोधी', 'हरिजन मंदिर प्रवेश' प्रस्तावों बाद में वे वर्षों तक जैनमित्र के सम्पादन से जड़े रहे। को पेश करने के कारण विरोधियों की कटु आलोचना 1932 में आपने सूरत में हिन्दी प्रचारक मण्डल की का शिकार आपको होना पड़ा था। स्थापना की। जिसके अन्तर्गत सूरत में अनेक हिन्दी - जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में पं0 जी का नाम स्कूल चलते थे। इन स्कूलों में आप सपत्नीक नि:शुल्क अग्रगण्य है। वे 'वीर' से अन्तिम समय तक जुड़े रहे,
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220
स्वतंत्रता संग्राम में जैन इस सन्दर्भ में डॉ0 जयकुमार 'जलज' का संस्मरण साल पुरानी डायरियाँ निकालते। किसी पृष्ठ पर हिसाब हम यहाँ साभार दे रहे हैं-"मृत्युभोज, दस्सापूजा- लिखा हुआ है, तब का जब वे इन्दौर में पढ़ते थे। निषेध, दहेजप्रथा और पर्दा-प्रथा जैसी बुराइयों के विरुद्ध वे बताते हैं-'दूध कितना सस्ता था, यह एक पैसे की लोग जमकर आक्रोश व्यक्त करते थे और जलेबी खायी थी पेट भर गया था।' जितने क्षण भी पं0 परमेष्ठीदास इस आक्रोश के पक्ष में शास्त्रों के लोग उनके साथ रहते हैं उम्र की दूरियाँ भूले रहते उद्धारण देकर इसे शास्त्र-सम्मत सिद्ध करते थे। वे हैं। पं0 जी छोटे-छोटे पारिवारिक सुख-दु:ख पूछते हैं जैनधर्म की उदारता को रेखांकित करते हुए सम्पूर्ण और उन्हें याद रखते हैं। उनकी आत्मीयता दिखाऊ जैन वाङ्मय को प्रमाणस्वरूप रख देते थे। धीरे-धीरे नहीं, सहज और भीतरी है। रूढ़िवादियों और प्रतिगामियों ने उनके विरुद्ध गिरोह वीर पाठशालावादी और परीक्षाफल-छापू बना लिया। कछेक सभाओं में उन्हें अपमानित करने अखबार नहीं था। उसके संपादक खुद और अदालतों में उनके पक्ष को पराजित करने की स्वतंत्रता-आन्दोलन में सपत्नीक जेल जा चुके थे। वे कोशिशें भी हुई। ये समाचार भी वीर में छपते और गांधीवादी थे। अब भी खद्दर पहनते हैं। उनका पत्र लोग इन्हें पढ़ने के लिए टूट पड़ते। पर इन समाचारों उनके राष्ट्रीय विचारों का वाहक बन गया था। आजादी, का तेवर सनसनीखेज कम ही होता था।
देशभक्ति, गांधी, नेहरू और सुभाष पर तथा ढिल्लन, जैन पत्रकारों में पं0 परमेष्ठीदास पहले सहगल, शाहनवाज की गिरफ्तारी के विरोध जैसे विषयों सम्पादक हैं जो लेखकों को निजी पत्र लिखते थे, रचना पर रचनाएँ छपती थीं। राष्ट्रीय समाचारों, निर्णयों और के लिए आग्रह करते थे और रचना-प्राप्ति पर धन्यवाद घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था। इसके देते हुए लेखक को अपनी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया भेजते साथ ताजे चित्र भी होते थे; लेकिन वीर राष्ट्रीय पत्र थे। रचना के साथ वे कभी-कभी रचनाकार का परिचय नहीं था। वह मूलतः जैन पत्र ही था। उसके सम्पादक और रचना का अपना आकलन भी छापते थे। भी मूलत: जैन सुधारवाद से सम्बन्धित थे। एक समय सम्पादकीय व्यस्तताओं के बावजूद अपने लेखकों से महात्मा गांधी ने दिगम्बर साधुओं के नग्न विचरण पर एक निजी स्तर पर संवाद स्थापित कर लेना सरल प्रतिकूल टिप्पणी की थी। तब पं0 परमेष्ठीदास उनसे नहीं था। उनके पास न टाइपराइटर था, न टाइपिस्ट, मिले थे और उनके समक्ष नग्नत्व के सम्बन्ध में जैन न निजी सचिव। उन दिनों की अपेक्षा आज थोडी दृष्टि को स्पष्ट किया था। परमेष्ठीदास जी के पास सुविधायें बढ़ गयी हैं, पर, तीर्थंकर के सम्पादक को ये स्मृतियाँ सुरक्षित हैं-'जैसे ही महात्माजी ने छोड़कर अन्य कोई भी जैन सम्पादक अपने लेखकों नग्नत्व-सम्बन्धी इस दृष्टि को समझा आश्चर्य से से निजी रूप में जुड़ा हुआ नहीं है। दिल्ली का उनका उनका मुंह खुल गया, जीभ कुछ बाहर निकल आयी (पं जी का) निवासस्थान वीर के कवियों, लेखकों और उन्होंने सरदार (सरदार बल्लभभाई पटेल) को का अड्डा बना हुआ था। उन्हीं दिनों वे एक बार आवाज दी ताकि वे भी इसे समझ सकें।' बाद में ललितपुर आये थे। सुबह से शाम तक मिलनेवालों गांधीजी ने अपनी प्रतिकूल टिप्पणी वापस ले ली। स्पष्ट का तांता लगा हुआ था। फिर जब वे ललितपुर में ही है कि ऐसा व्यक्ति जैन पत्र के मौलिक उद्देश्यों को आ बसे तब भी मिलने वालों की कमी नहीं रही। त्याग नहीं सकता था। उन्होंने त्यागा भी नहीं; लेकिन किसी को उनसे नयी किताबें मिलती, किसी को पुराने एक संकीर्ण दायरे में भी उन्होंने अपने-आप को कैद चित्र, किसी को कोई बहुत पुरानी चिट्ठी। वे साठेक नहीं होने दिया।"
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प्रथम खण्ड
221
अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित में सहकारिता विभाग में अगस्त 76 तक शासकीय श्रद्धेय पं0 जी को 'समाजरत्न' की उपाधि से अलंकृत सेवा की। किया गया था। पं0 जी का निधन 12 जनवरी 1978
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-46 (2)
स्व0 प० को ललितपुर (उ0 प्र0) में हुआ। आ0- (1) वि) अ0, पृ0-169 (2) र0 नी0,
श्री पीतमचंद जैन ) 30.31 (3) तीर्थंकर, इन्दौर, अगस्त-सितम्बर 1977 तथा फरवरी
रायभा, जिला-आगरा (उ0प्र0) के श्री पीतम 1978(4) जै) स) रा0 अ0, पृष्ठ 81-82 (5) वीर, 22 नवम्बर
चंद जैन तत्कालीन क्रान्तिकारियों में अग्रगण्य थे। 1992
आपने रेल पटरी उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने श्री पांढुरंग गजानन्द राव उमाठे
आदि की ट्रेनिंग ली थी। श्री श्यामलाल जैन के साथ (श्री पी०जी० जैन उमाठे)
टेलीफोन के तार काटते हुए आप पकड़ लिये गये
और कई महीने तक नजरबन्द रहे। पुलिस आप पर रायपुर (म0प्र0) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के
अभियोग साबित नहीं कर सकी थी। 1942 में भी संयुक्त मंत्री श्री पी0जी0 जैन उमाठे का जन्म दिनांक
आप एक वर्ष आगरा जेल में रहे थे। 10 अगस्त 1918 को हुआ।
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) प0 इ] पृष्ठ-139 आपने 'राष्ट्रीय कांग्रेस संस्था (3) उ0 प्र0 जै0 40, पृष्ठ-93 (4) गो0 अ0 ग्रा) पृष्ठ-223
(5) श्री महावीर प्रसाद जैन, अलवर द्वारा प्रेषित परिचय के अन्तर्गत वानर सेना तैयार की। उस समय हरिजन
श्री पुखराज सिंघी आदिवासी बच्चों को गांव की राजस्थान जैन संघ. सिरोही के अध्यक्ष रहे श्री शाला में सर्वसाधारण बच्चों के पुखराज सिंघी, पुत्र-श्री जुहारमल सिंघी का जन्म
साथ बैठने नहीं दिया जाता था। सिरोही (राजस्थान) में हुआ। आपने डी0ए0वी0 उक्त घटना का विरोध करके आपने शाला का कालेज, अजमेर से बी0काम) व डी0ए0वी0 कालेज, बहिष्कार किया, उसके पश्चात् अन्य बच्चों के साथ
कानपुर से एल0एल0बी0 परीक्षायें उत्तीर्ण की। 1939
में सिरोही राज्य के जन आन्दोलन में आप गिरफ्तार उन्हें भी बैठने दिया गया। यह घटना आपकी जीवन्तता
कर लिये गये। सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना होने को सूचित करती है। 1930 में आपने जंगल सत्याग्रह
पर आप उसके अध्यक्ष बने। 1942 के भारत छोड़ो में भाग लिया। किन्तु 12 वर्ष की आयु होने के कारण
आन्दोलन में आपको दो वर्ष के कठोर कारावास की बन्दी नहीं बनाया गया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह
यह सजा हुई। वकालत की डिग्री भी छीन ली गई। में आपने भाग लिया व गिरफ्तार हुए; परन्तु छोड़ दिये
बाद में सिरोही राज्य के मंत्रिमंडल में आप मंत्री गये। 1942 के आन्दोलन में 18 अगस्त 1942 को बने। सिंघी जी दिलवाडा जैन मन्दिर, आब पर्वत की वारासिवनी गांव में गिरफ्तार करके आपको मुख्यालय प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष रहे हैं। आपने सिरोही में रामटेक में लगभग 22 दिन रखा गया। बाद में केन्द्रीय गोशाला, जैन हास्टल आदि की स्थापना में महनीय कारागृह नागपुर में स्थानान्तरित कर दिया गया और भूमिका निभाई है। जून 1943 में रिहा किया गया। आपने नये मध्यप्रदेश
आO-(1)- रा0 स्व0 से0, पृ0-828 (2) राजस्थान में रचनात्मक कार्य, पृष्ठ-32
ner
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्रा पुखराज उफ पुष्पन्द्रकुमार
श्री पूनमचंद पटवा श्री पुखराज उर्फ पुष्पेन्द्रकुमार का जन्म बिलाड़ा, श्री पूनमचंद पन्नालाल पटवा का जन्म 15 जून जिला-जोधपुर (राज0) के ओसवाल जैन परिवार में 1888 ई0 को कुकडेश्वर, जिला-गरोठ (तत्कालीन असौज कृष्ण ।। संवत् 1969 (1912 ई0) में हुआ। होल्कर स्टेट, वर्तमान मध्यप्रदेश) में हुआ। पहले बिलाड़ा, आगरा एवं ब्यावर में आपकी शिक्षा हुई। आप छिपकर आन्दोलन में भाग लेते रहे। 1934 में 1930 के आन्दोलन से, जब आप विद्यार्थी थे, आपने खलकर कांग्रेस का काम करना शुरू कर राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय हुए। 1931 में पालीताना दिया व क्षेत्र में संगठन मजबूत करने लगे। रामपुरा और 1932 में मंगलदास मार्केट, बम्बई में विदेशी कपड़ों में प्रजामण्डल की स्थापना के बाद पटवा जी अधिक का बहिष्कार करने के कारण 7 मार्च 1932 को बम्बई सक्रिय हो गये। छआछत निवारण, बेगार प्रथा तथा में आप पकड़ लिए गये और 6 माह की सजा दी महाजनों के शोषण के विरुद्ध आपने अनेक बार गई। 1938 में बिलाड़ा में लोक परिषद् की स्थापना प्रदर्शन किये। पुलिस से इनकी अनेक झड़पें हुई। आपने ही की थी। 1942 में भी आप 4 माह 18
श्री सुन्दरलाल आजाद, इन्द्रमल भण्डारी, दिन जेल में रहे।
रतनलाल सोनी तथा कन्हैयालाल महन्त आदि आपके आo-(1) रा) स्वा0 से0, पृष्ठ-720
साथी थे। 1940 से 1948 के बीच आप दो बार श्रीमती पुष्पादेवी कोटेचा जेल गये। एक बार कंजाड़ी में तथा दूसरी बार स्वतंत्रता आन्दोलन में ओसवाल जैन समाज की मनासा में। भारत छोड़ो आन्दोलन में पटवा जी ने पूरे प्रथम महिला सत्याग्रही होने का श्रेय श्रीमती पुष्पा देवी क्षेत्र में प्रदर्शन करवाये अतः इन्हें गिरफ्तार कर कोटेचा को प्राप्त है। आप ओसवाल श्रेष्ठि श्री रतनलाल लिया गया किन्तु मनासा की जेल में रखकर बाद में जी कोटेचा की धर्मपत्नी थीं। 1941 में सूरत के उन्हें छोड़ दिया गया। जन-सत्याग्रह में भाग लेने के फलस्वरूप आपको पटवा जी जीवनपर्यन्त पुलिस तथा सामंतों के गिरफ्तार कर लिया गया। आप पर आर्थिक जुर्माना अत्याचारों के विरुद्ध लडते रहे। 30 सितम्बर 1977 लगाया गया. परन्त -'आजादी के दीवानों ने जुर्माना को आपका स्वर्गवास हो गया। या जेल में से जेल को ही गले लगाया।' इस उक्ति आ0-- (1) स्व0 स0 म0, पृष्ठ 119 120 को आपने चरितार्थ किया और जुर्माना अदा नहीं किया
ब्र० पूरणचंद लुहाड़िया बदले में जेल की कठोर यातनाएं सहीं।
जयपुर (राजस्थान) के जैन दर्शन के प्रसिद्ध आ0-(1) इ0 अ0 ओ0, खण्ड-2, पृष्ठ-373
विद्वान् ब्रह्मचारी पूरणचन्द लुहाड़िया का जन्म 2 श्री पूनमचंद नाहर
सितम्बर 1906 में हुआ। आपने बी0ए), एल0एल0बी0 जागीरदारी अत्याचारों के कट्टर विरोधी श्री करके वकालत में प्रसिद्धि प्राप्त की। लेकिन शिक्षा पूनमचंद नाहर का जन्म 10 जनवरी 1911 को छोटी प्राप्त करने में कितनी ही कठिनाईयों का सामना सादड़ी (राजस्थान) में हुआ। आपने 1938 और 1942 आपको करना पड़ा। देशसेवा का व्रत लेने के कारण के आन्दोलन में भाग लिया और 3 माह 6 दिन के कॉलेज से आपको निष्कासित कर दिया गया तथा कारावास की सजा भोगी।
22-2-1932 को अजमेर में सत्याग्रह करने के आ) (1) रा) स्व0 से), पृष्ठ-508
कारण 4 माह सख्त कैद की सजा दी गई। जब
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प्रथम खण्ड
223
आप जेल से छूटकर वापस अपने गाँव लौटे तो सारा आप गिरफ्तार कर लिये गये। म0 प्र0 स्व0 सै0, गाँव आपके स्वागत में उमड़ पड़ा था।
भाग-3, पृष्ठ-184 के अनुसार आपने पाँच वर्ष का 1945 में फुलेरा तहसील में आयोजित राजनैतिक कारावास भोगा था। सम्मेलन के आप महामंत्री थे। आपका जीवन बुढ़ार में कांग्रेस स्वयंसेवक दल के संचालक अत्यधिक धार्मिक रहा है। कोल्हापुर में आयोजित श्री जैन निष्णात और उत्साही नवयुवक कार्यकर्ता पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आप माता-पिता थे। विषम परिस्थितियों में भी कर्तव्य मार्ग पर डटे के पद पर अलंकृत किये गये। उसी पंचकल्याणक रहना आपकी विशेषता थी। में आचार्य देशभूषण महाराज ने आपको ब्रह्मचर्य व्रत आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-184, दिया। बाद में आचार्यकल्प श्रुतसागर जी महाराज से (2) स्व0 आ0 श0, पृष्ठ-106 सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा का व्रत लेकर आपने अपने
श्री पूरनचंद जैन जीवन की दिशा ही मोड़ दी।
श्री पूरनचंद जैन, पुत्र-श्री हजारीलाल का जन्म आ0-(1) जै0 स0 बृ0 इ0, पृ-278
1916 में नैनधरा, जिला-दमोह (म0प्र0) में हआ। श्री पूरनचंद जैन
बचपन से ही राष्ट्रीय जुलूसों में भाग लेना आपके सागर (म0प्र0) के श्री पूरनचंद जैन, पुत्र-श्री स्वभाव में शामिल था। आपने 1939 में हुई त्रिपुरी फदालीलाल का जन्म 1920 में हुआ। आपने कांग्रेस में समाज के बहुत से युवकों के साथ 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में 15 दिन का स्वयंसेवक बनकर दमोह में एक माह ट्रेनिंग ली और कारावास भोगा।
तीन सप्ताह त्रिपुरी कांग्रेस में कार्य किया. इसलिए आ0-(1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-41 सभी स्वयंसेवकों के समान शासन आपको खतरनाक (2) आ) दी0, पृष्ठ-58
व्यक्ति समझने लगा। दि0 4-9-42 को रास्ता चलते, श्री पूरनचंद जैन
नगरपालिका अध्यक्ष श्री द्वारका प्रसाद वकील के
मकान के पास से, पकड़कर आपको सागर जेल मूलतः बुढ़ार, जिला-शहडोल (म0 प्र0)
भेज दिया गया। 7 माह 14 दिन का कारावास निवासी और टिकरापारा, जिला-बिलासपुर (म0 प्र0)
भोगकर आप जेल से बाहर आये। देश की आजादी प्रवासी श्री पूरनचंद जैन, पुत्र-श्री रामलाल जैन का
तक आप कांग्रेस का कार्य करते रहे। जन्म 1908 में हुआ। बचपन में ही आप स्वतन्त्रता
आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-84 (2) श्री आंदोलन में कद पडे। बढार के सत्याग्रहियों में आप संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय । अग्रणी थे। 1932 में देशद्रोह के अपराध में आप गिरफ्तार हए और पीली कोठी उमरिया (शहडोल)
श्री प्रकाशचंद जैन में चार माह नजरबंद रहे। वहाँ से माधोगढ़ किला श्री प्रकाशचंद जैन, पुत्र-श्री रूपकिशोर जैन जेल (सतना) भेज दिये गये, जहाँ एक वर्ष और रामगढ़, जिला-अलवर (राजस्थान) के निवासी हैं। नजरबंद रहे। जंगल सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन 1946 में जब आप लगभग 15-16 साल के में भी आपने भाग लिया था।
विद्यार्थी थे तब अलवर राज्य प्रजामंडल ने 'गैर 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने जिम्मेदार मिनिस्टरो कुर्सी छोड़ो' आन्दोलन चलाया, भाग लिया तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में जिसमें लगभग 324 व्यक्ति पूरी स्टेट से जेल गये
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224
स्वतंत्रता संग्राम में जैन थे। विद्यार्थी कांग्रेस ने इस इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) और स्वतंत्रता सेनानी आन्दोलन में प्रजामंडल के श्रीमती सरदारबाई लूणिया के आप पुत्र थे। मां एवं तत्त्वावधान में पूर्ण रूप से पिता के साथ 1930-32 के सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया, रामगढ़ भी इस आपने जेल यात्रा की। आन्दोलन का केन्द्र बना। आo-(1) जै) स) रा0 अ) इसमें भीषण लाठीचार्ज हुआ
श्री प्रभाचंद जैन था। 15-20 व्यक्तियों को
__ डिण्डोरी, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री चोटें आई थीं, अनेकों के हाथ-पांव टूट गये व सर ।
- प्रभाचंद जैन, पुत्र-श्री हरचंद का जन्म 4 अगस्त फट गये थे। इस आन्दोलन में श्री प्रकाशचद जी भी
1920 को केवलारी (सिवनी) म0प्र0 में हुआ। बाद जेल गये थे। राज्य सरकार के हारने के बाद सभी ।
___ में आप डिण्डोरी आ गए। 17 वर्ष की उम्र में ही कार्यकर्ताओं के साथ आप छोड दिये गये थे।
आप आजादी के दीवाने बन गये थे। 1942 के आ0-(1) स्वतंत्रता सेनानी श्री महावीर प्रसाद जैन द्वारा प्रेषित परिचय (पत्र 27-12-94)। (2) अनेक प्रमाणपत्र (3)
'भारत छोड़ो आन्दोलन' में आपको 6 माह की सजा दैनिक भास्कर, अलवर प्लस, दि0 9-8-1997
हुई। आपको माफी मांगने के लिए डराया, धमकाया श्री प्रकाशचंद जैन
गया। आपने कहा-(अंग्रेजों) 'तुम मेरा कुछ नहीं सहारनपुर (उ0प्र0) के श्री प्रकाशचंद जैन बिगाड़ सकते, नौकरशाही का अन्त करके ही रहूंगा।' स्वभाव से माल और निष्कपट दंगान पर अंग्रेजी आपने माफी नहीं मांगी। 21-8-42 से 19-2-43 शासन ने उन्हें भी नहीं बख्शा, जेल की दारुण त
तक आप मण्डला जेल में रहे।
आO-(1)म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-209 यातनाएं उन्हें भी सहनी पडी। श्री जैन के सन्दर्भ में ।
(2) जै0 स0 रा) अ0 प्रसिद्ध साहित्यकार और स्वाधीनता सेनानी श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है
श्री प्रभाषचंद जैन 'पतला-दुबला वह तरुण 1942 के झकोरे में कांग्रेस श्री प्रभाषचंद जैन 1930 से कटनी (जबलपुर) में आया। पहले-पहल जेल में ही मैंने उसे देखा। म0प्र0 में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुये। आपने वह बोलता तो बोलता ही रहता और चप होकर पेड जंगल सत्याग्रह में भाग लिया तथा 10 माह का के नीचे जा बैठता तो वहीं बैठा रहता। उसमें शक्ति कारावास व 50 रुपये का अर्थदंड भोगा। चाहे कम थी, पर इरादे बुलन्द थे। दो दिन के बुखार आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-71 में वह हमसे हमेशा के लिए अलग हो गया।'
श्री प्रेमचंद 'उस्ताद' आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 जै) ध), पृष्ठ 86
दमोह (म0प्र0) में 'उस्ताद' नाम से विख्यात
सवाई सिंघई श्री प्रेमचंद, जबलपुर निवासी स०सि० श्री प्रतापसिंह लूणिया
श्री पन्नालाल के सुपुत्र थे। आपका जन्म 1904 ई0 राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक सेनानी ऐसे रहे, जो
में हुआ था। आपकी जबलपुर में हौजरी की दो दुकानें
में सकुटुम्ब जेल गये। ऐसे लोगों में श्री प्रतापसिंह
थीं। दमोह के श्री सुखलाल चौधरी की इकलौती बेटी लुणिया का नाम अग्रगण्य है। अजमेर के प्रसिद्ध से विवाह होने के कारण आपने दमोह में रहना प्रारम्भ स्वतंत्रता सेनानी श्री जीतमल लूणिया (इनका परिचय कर दिया। आपको बन्दक चलाने तथा फोटोग्राफी का
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प्रथम खण्ड
225 बहुत शौक था, अत: राष्ट्रीय आपके प्रयास से दमोह में जैन सेवादल बना, आन्दोलन के अनेक चित्र जिससे युवकों में समाज एवं राष्ट्रसेवा की भावना जागृत आपके पास ही थे। शायद ही हुई। इसमें लाठी, लेजिम, तलवार, भाला चलाना कोई कांग्रेस अधिवेशन आपके सिखलाया जाता था। देखे बिना रहा हो।
1939 में त्रिपुरी कांग्रेस में कंप्टिन ट्रेनिंग में 1923 में झण्डा आप त्रिपुरी में तीन हफ्ते रहे और फिर दमोह से
सत्याग्रह के अवसर पर 10 स्वयंसेवकों को लेकर तीन हफ्ते तक आपने जबलपुर विक्टोरिया टाउन हाल की गुम्बज अधिवेशन में काम किया। इसमें बाहुबली व्यायामशाला पर बिजली अवरोधक पट्टी पकड़कर झण्डा चढ़ाया। और जैन सेवादल के ही अधिक सदस्य थे। पलिस यह करिश्मा देखकर हैरान हो गई। पुलिस 1942 के बम्बई कांग्रेस अधिवेशन से करो या दल ने गोली से प्रेमचन्द को मार गिराने की इजाजत मरो का नारा, साइक्लोस्टाइल मशीनें, तार काटने तथा मांगी, परन्तु अंग्रेज सारजैंट समझ रहा था कि इस पटरी उखाड़ने के औजार एवं पिस्तौलें आदि लेकर, अपार जन समूह के क्रोध का शिकार केवल मैं ही दाढ़ी-मूंछ लगाकर, भेष बदलकर 'उस्ताद'जी दमोह बन जाऊँगा, अत: इजाजत नहीं दी। प्रेमचन्द को आये और काम शुरू कर दिया। बुलेटिन छपने लगे, नीचे उतरने को कहा गया, परन्तु वह ऊपर से ही तार कटने लगे तथा रेल पटरियां उखाडी जाने लगीं। चिल्ला रहे थे कि 'कोई मुझे उतारो मुझसे उतरते अनेक सेनानी गिरफ्तार हुए। नमक आन्दोलन में भी नहीं बनता।' बालक प्रेमचन्द टाउन हाल के पीछे से आपने भाग लिया था। 26-11-1980 को आपका आकर दीवार की खिड़कियों, दरवाजों और कंगूरों निधन हो गया। का सहारा लेकर ऊपर चढ़ तो गये थे परन्त उतर आ) (1) म() प्र.) स्वा) सै), 'भाग-2, पृष्ठ-85 (2) श्री
संताप सिंघई दमोह द्वारा प्रषित परिचय। (3) प() () इ.), पृष्ठ नहीं सके। निदान, सीढ़ियाँ लगाई गई. रस्सा गुम्बद के कलश से बांधा गया, तब प्रेमचन्द उतरे। पुलिस ने झण्डे को बांस में हंसिया बांधकर निकाला, जिस
श्री प्रेमचंद कापड़िया कारण गुम्बद में लगी छड़ टेड़ी हो गयी, जो आज श्री प्रेमचंद कापड़िया, पुत्र- श्री फूलचंद का भी देखी जा सकती है। इनके साथ चार साथी और जन्म 1923 में दमोह (म0 प्र0) में हुआ। आपके थे जो गम्बद के नीचे छत पर से ही इस फूर्तीले पूर्वज कपड़े का व्यापार करने के कारण 'कापड़िया' नौजवान की हिम्मत और फर्ती देखते रहे। सत्याग्रह कहलाते थ। आपने प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री कई दिनों तक चला पर गम्बद तक कोई नहीं पहुंच रघुवर प्रसाद मोदी के साथ भी वस्त्र-व्यापार किया सका। प्रेमचंद जी इस कारण गिरपतार हुए और था। अत: उन्हीं के विचारों के प्रभाव से आप । वर्ष (, माह का सी क्लास का कठिन कारावास स्वतंत्रता-प्रेमी बन गये और 193) में त्रिपुरी कांग्रेस पाया, जिसमें खड़े-खड़े पाँच सेर गेहूँ पीसना पड़ता में स्वयंसेवक के रूप में तीन हफ्ते कार्य किया। था। चक्की चलाने से शरीर पर निखार आ गया। आप कांग्रेस के हर कार्य में भाग लेते रहे। आप बाहुबली व्यायामशाला के सबसे शक्तिशाली 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन के पहलवान थे, अत: 'उस्ताद' कहलाने लगे। समय आप बम्बई में थे। वहां की आगजनी और लूटमारी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपने स्वयं देखी, नेताओं को भेष बदलकर बम्बई।
विदिशा के समीप किसी ग्राम छोड़ते देखा और टेलीफोन के तार काटते लोगों को
के निवासी थे, वे 'दमोडिया' आपने देखा था। .
उपनाम से प्रसिद्ध थे। 1857 बम्बई से आवश्यक जानकारी और सामग्री लेकर
की गदर के समय वे आप बीना की तरफ से दमोह आये और दूसरे दिन
अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति बागी जबलपुर जाने पर छोटे फुहारा के पास दिनांक 6-9-42
फौजियों को सौंपकर को खुफिया पुलिस द्वारा पकड़कर जेल भेज दिये गये।
गाडरवारा आ बसे थे। आवश्यक सामग्री पुलिस की नजर बचाकर आपने आपकं राजनैतिक जीवन का प्रारम्भ 1928 में ससुराल भेज दी, सिर्फ बुलेटिन पकड़ा गया। आपके विद्यार्थी जीवन से हुआ, जब आपने गाडरवारा 15-2-43 को आप जेल से मुक्त हुए।
से हावडा बम्बई मेल से निकल रहे पं0 जवाहरलाल मक्त होने के पश्चात आजाद हिन्द फौज के नेहरू का स्टेशन पर माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया! कमाण्डर के आदेश से आपने फौजी परेड सीखी और आपने अपनी अप्रकाशित 'आत्मकथा' में इसका विस्तार शान्ति सेना का गठन कर आन्दोलन का संचालन
से वर्णन किया है। 1929 के आंदोलन में आपने
गाडरवारा की राष्ट्रीय कांग्रेस के आमन्त्रण पर एक किया। आ) (1) म0 प्र) स्व) सै), भाग 2, पृष्ठ-85
राष्ट्रीय गीत गाया, आन्दोलनकारियों की इस सभा पर (?) श्री संतोष सिंघई दमोह द्वारा प्रेषित परिचय।
पुलिस ने धावा बोल दिया, श्री जैन भी पुलिस के
शिकंजे में फंस गये और अत्याचारों को हंसते-हंसते श्री प्रेमचंद जैन
झेला। 1932 में विदेशी वस्त्रों की होली आपने जलाई, श्री प्रेमचंद जैन, पुत्र-श्री उदयचंद का जन्म परिणामस्वरूप प्रथम बार गिरफ्तार हए और बेतों की 1919 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 के भारत सजा पाई। पिटते-पिटते जब श्री जैन बेहोश हो गये छोडा आन्दोलन दोलन में 20 दिन का कारावास आपने भोगा।
तो पुलिस उन्हें घर के सामने डालकर चली गई तन्य आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-73 आपकी आजी माँ ने सौगन्ध दिलाई... 'प्रण करो कि (2) स्व) स0 जा), पृष्ठ-136
जब तक जीवित रहूंगा अंग्रेजों के खिलाफ अपना श्री प्रेमचंद जैन
आन्दोलन जारी रखूगा।' आजी मां की इस सौगन्ध को जबलपुर (म0प्र0) के श्री प्रेमचंद जैन, पुत्र-श्री श्री जैन ने अन्त तक निभाया: छविलाल ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग 1939 में हुए चुनावों में आपने जोर शोर से भाग लिया तथा कारावास की कठोर सजा भोगी। लिया। पुलिस हर तरह से आपको व आपके परिवार
आ0- (1) म) प्र) रवसै), भाग-1, पृष्ठ-73 वालों को परेशान करने लगी। प्रतिकूल परिस्थितियां (2) स्वा स॥ ज), पृष्ठ 138
देख आप बम्बई भाग गये और भूमिगत रहकर श्री प्रेमचंद जैन
आन्दोलन जारी रखा। 1940-1941 के व्यक्तिगत बहमखी प्रतिभा के धनी, दृढ निश्चयी, परिश्रमी सत्याग्रह में आपने भाग लिया और पदयात्रा करते हुए एवं लगनशील श्री प्रेमचंद जैन, पत्र- श्री छोटे लाल देवरी तक गये, जहाँ आपको गिरपतार कर सागर जेल जैन का जन्म 15 दिसम्बर 1916 को गाडरवारा भेजा गया, बाद में नागपुर जेल में स्थानान्तरित कर जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) में हुआ। आपके पूर्वज दिया गया। नागपुर जेल से मुक्त होने के बाद आप
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प्रथम खण्ड
महात्मा गांधी से भेंट करने सेवाग्राम गये, गांधी जी का मार्गदर्शन प्राप्त कर पुनः और अधिक दृढ़ता से राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये।
1942 के आन्दोलन में आप पुन: गिरफ्तार हुए और जबलपुर तथा छिन्दवाड़ा की जेलों में 1944 तक रखे गये। जबलपुर जेल तोड़ने का प्रयास करने के कारण ऐसी-ऐसी अमानुषिक यातनायें आपको सहनी पड़ीं, जिन्हें पढ़कर दिल दहल जाता है। इनका उल्लेख आपने अपनी आत्मकथा में किया है।
छिन्दवाडा जेल से छूटने के बाद स्थानीय गोलगंज के निवासियों ने आपका भावभीना स्वागत किया, जिससे अभिभूत होकर आप छिन्दवाड़ा में ही बस गये । राजनैतिक गतिविधियों के कारण आपको आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर भी आप निराश नहीं हुए।
आजादी के बाद श्री जैन छिन्दवाड़ा नगरपालिका के अनेक वर्षों तक उपाध्यक्ष रहे। आपके कार्यकाल में नगर ने चहुँमुखी प्रगति की है। आप छिन्दवाड़ा जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनिक समिति के अध्यक्ष, अ० भा) दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष (1974), प्रान्तीय कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य आदि विभिन्न पदों पर रहे ।
1983 में आप पक्षाघात के शिकार हुए, इससे पूर्व चार बार दिल का दौरा पड़ चुका था। अपनी उत्कट जिजीविषा से आप इस अवस्था में भी सक्रिय रहे। 13 जुलाई 1988 को आपका देहावसान हो गया।
आए- (1) म) प्र) स्व) सै0 भाग-1, पृष्ठ-10 (2) हस्तलिखित आत्मकथा (3) स्वा() आन्दोलन में छिन्दवाड़ा जिले का योगदान ( टकित शोध-प्रबन्ध) पृष्ठ 300-301 (4) पुत्र श्री धन्यकुमार गोयल द्वारा प्रेषित परिचय आदि ।
श्री प्रेमचंद जैन
श्री प्रेमचंद जैन का जन्म 1930 में ग्राम चन्दला, तत्कालीन चरखारी राज्य, वर्तमान जिला- छतरपुर (म)प्र()) में हुआ | आपके पिता का नाम श्री नाथूराम
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जैन था। आपने चरखारी राज्य प्रजामंडल द्वारा चलाये गये आंदोलन में 1946 से 1948 तक सक्रिय भाग लिया। आपके खिलाफ 1946 में चरखारी राज्य शासन द्वारा गिरफ्तारी के लिये वांरट जारी निर्देश पर श्री जैन
किया गया था। पार्टी के नेताओं गिरफ्तार न होकर भूमिगत हो गये और 'चरखारी राज्य प्रजामंडल' द्वारा उत्तरदायी शासन हेतु चलाये जा रहे सत्याग्रह आंदोलन का कार्य किया। भूमिगत आंदोलन चलाते समय अनेक यातनायें सहनी पड़ीं, गांव-गांव जाकर सत्याग्रहियों को चरखारी भेजते रहे ताकि आंदोलन की डोर टूटने न पाये। शासन से आपको स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान मिला है।
आ) (1) श्री सुरेन्द्र कुमार, छतरपुर द्वारा भेजी गई छतरपुर जिले के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची (2) स्व() प( )
श्री प्रेमचंद जैन
जबलपुर (म0प्र0) के श्री प्रेमचंद जैन, पुत्र- श्री मुन्नालाल ने 1931 के आन्दोलन में भाग लिया तथा 3 माह के कारावास एवं 25 रुपये के अर्थदण्ड की सजा पाई।
आण (1) म) प्र) स्व) सै0 भाग-1 पृष्ठ- 73 (2) स्व) स० ज०), पृष्ठ- 136
श्री प्रेमचंद जैन
जबलपुर (म0प्र0) के श्री प्रेमचंद जैन, पुत्र-- - श्री लालचंद जैन को 1932 के आन्दोलन में भाग लेने के कारण 6 माह के कारावास तथा 50 रु0 के अर्थदण्ड की सजा दी गयी थी।
आधार (1) म(0) प्र() स्व0 सै0 भाग-1, पृष्ठ-74 (2) स्व) स) ज०, पृष्ठ-138
श्री प्रेमचंद जैन
जैनदर्शन और राजनीति दोनों में निष्णात श्री प्रेमचंद जैन, पुत्र श्री लोकमन जैन का जन्म
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 15-3-1915 को जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आप के कारण 4 माह 2 दिनों का कारावास आपको भोगना 1932 में कांग्रेस के डिक्टेटर बने थे अतः जुलूस पड़ा। निकालने में पकड़े गये और 9 माह की सजा तथा आ0- (1) म) प्र) स्वा सै), भाग 4. पृष्ठ-88 50 रु) जुर्माना हुआ था। 1942 में पुन: पकडे गये (2) जै0 सा) रा0 अ0, पृष्ठ-76 तथा डिटेन्शन में जबलपुर सेंट्रल जेल में छ: माह श्रीमती फूलकँअरबाई चोरडिया रहे। बाद में आप साम्यवादी विचारधारा के हो गये श्रीमती फूलकुअरबाई चोरड़िया का जन्म 1914 थे। आपकी वक्तृत्व कला अनुपम थी। जीवन के में हुआ। अपने पति श्री माधोसिंह की प्रेरणा से आप अन्तिम 8-10 वर्षों में आप जैनधर्म के अच्छे राष्ट्रीय कार्यों में हिस्सा लेने लगी थीं। आंदोलनकारी विद्वान् हो गये थे। आपके शास्त्र प्रवचन बड़े लोकप्रिय महिलाओं में वैचारिक चेतना पैदा करने के लिए श्रीमती होने लगे थे। 1988 के आसपास आपका निधन हो चोरडिया का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। नीमच में अनेक गया।
प्रदर्शनों की योजना श्रीमती चोरडिया ही बनाती थीं। आ) (1) म) प्रा) स्वा) सै), भाग ।, पृष्ठ- 146 (2) श्रीमती चोरडिया ऐसी महिला रहीं जिन्हें वर्धा में स्था सा ज), पृष्ठ-136 (3) सिंघई रतनचंद जी द्वारा प्रेषित विवरण।
गाँधीजी के सान्निध्य में रहने का अवसर मिला। श्री प्रेमसुख झांझरिया
वे वर्धा से लौटने के बाद इन्दौर में स्वतंत्रता इन्दौर (म) प्र) ) के श्री प्रेमसुख झाझरिया, संग्राम से जुड़ीं, अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा लेकर लाठियाँ पत्र श्री पन्नालाल झांझरिया ने 1942 के स्वाधीनता खाई. एक माह उन्नीस दिन जेल में रहकर यंत्रणा सही संग्राम में सक्रियता से भाग लिया, फलत: 21 दिन किन्तु हार न मानी। संयम, त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति इन्दौर जेल में रहे। आपके अन्य दो भाइयों ने भी जेल श्रीमती फलकँवर चोरडिया का विवाह नीमच के यात्रा की थी।
स्वतंत्रता संग्राम के पितृपुरुष श्री नथमल चोरड़िया के आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-29
पुत्र श्री माधोसिंह के साथ हुआ। मात्र 18 वर्ष की श्री प्यारचंद कासलीवाल उम्र में ही ये विधवा हो गई थीं। तदन्तर नथमलजी इन्दौर (म0 प्र0) के श्री प्यारचंद कासलीवाल, चोरडिया ने अपनी विधवा बहु को घुटन भरी पुत्र-श्री गुलाबचंद कासलीवाल ने भारत छोड़ो आन्दोलन जिन्दगी जीने के बजाय इनमें देशभक्ति की में भाग लिया था। आप सक्रिय कार्यकर्ता थे। म0प्र0 भावना जागृत की। जब वे 1930 के अजमेर शासन ने आपको सम्मानित किया है।
आंदोलन में जेल में रहे तो उन्होंने अपनी आ()-(1) म0 प्र) स्वर) सै), भाग-4, पृष्ठ-55 पुत्रवधू को वर्धा के आश्रम में भेज दिया जहाँ
एक वर्ष तक रहकर उन्होंने नई जिन्दगी की श्री फकीरचंद जैन उर्फ फणीन्द्रकुमार जैन
शुरुआत की। अंग्रेजों के लिये सचमुच ही फणीन्द्र (नाग) सिद्ध
वर्धा में आप जल्दी उठकर एक घंटा गाँधीजी हुये, सनावद (म0प्र0) के श्री फकीर चंद जैन उर्फ
के साथ प्रार्थना करती थीं। इसके बाद विभिन्न विषयों फणीन्द्रकुमार जैन, पुत्र-श्री दशरथ का जन्म 19 अप्रैल
की शिक्षा दी जाती थी। 12 बजे से एक बजे का समय 1923 को हआ। मैटिक में अध्ययन के समय 1938
चरखा चलाने व सूत कातने के लिए अनिवार्य था। से ही आप स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने व
वर्धा में आटा पीसना, कपड़ा बुनना, शौचालय की
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प्रथम खण्ड
229 सफाई व अन्य छोटे-बड़े बुनियादी कामों में ड्यूटी 1942 में गांधीजी ने करो या मरो का नारा देकर लगाई जाती थी। श्रीमती फूलकुँवर चोरड़िया वर्धा में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो फूलकुँवरजी इन्दौर गाँधीजी के सान्निध्य में बीते समय को अपने जीवन में सड़कों पर उतर आईं। कई जलसों में भाग लिया, की सर्वोत्तम उपलब्धि मानती हैं। यहीं से आपने अंग्रेजों ने आपको जेल में बंद कर दिया, वहां पर भी रचनात्मक कार्यों में अपना झकाव व्यक्त किया। आपने विरोध किया। जेल में आपको प्रसिद्ध गाँधीवादी
नेता कन्हेंयालाल खादीवाला, बैजनाथ महोदय, हरिभाऊ ज्ञातव्य है फूलकुँवर चोरड़िया का पूरा परिवार
उपाध्याय, रुक्मणी देवी, भागीरथी देवी आदि का देश के लिए समर्पित था। नथमल जी तो महान् स्वतंत्रता
सान्निध्य प्राप्त रहा था। ज्ञात रहे फूलकुँवरजी को सेठ सेनानी थे ही किन्तु उनके पुत्र केशरीमल चोरड़िया,
जमनालाल बजाज का विशेष स्नेह प्राप्त था, नीमच शोभागसिंह चोरडिया ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में
आकर बगैर लाभ-लोभ या पद-लिप्सा के फूलकँवरजी बढ़ चढ़कर भाग लिया। इनके श्वसुर नथमल जी इनके
ने कांग्रेस के लिए कार्य करते हुए स्व0 सीतारामजी पति माधवसिंह की मृत्यु पर भी माफी माँग कर जेल
जाजू व रघुनंदन प्रसाद वर्मा के चुनाव में सक्रिय भूमिका से नहीं आए। इन सभी घटनाओं का फूलकुँवर पर निभाई। जैन समाज आपकी अमल्य सेवाओं का ऋणी गहरा प्रभाव पड़ा। फलत: स्वतंत्रता की भावना विकसित है। स्थानकवासी जैन महिला संघ की आप अध्यक्षा होने का अवसर वर्धा में इन्हें मिला। वर्धा से लौटकर रहीं साथ ही महिला मंडल की कोषाध्यक्ष का पदभार आपने नीमच से 8 किमी दूर डूंगलावद गांव में अपने वहन किया। श्वसुर नथमल जी की इच्छानुसार जैन कन्या आश्रम नीमच में भी फलकँवरजी ने रचनात्मक कार्य खोला, यह कुछ समय तक चला पर नथमल जी की किए. श्रीमती चोरडिया सादा जीवन उच्च विचार मं मृत्यु के उपरांत इसे बंद करना पड़ा। एक के बाद आस्था रखती हैं। युवाओं के प्रति उनका संदेश था एक परिजनों की मृत्यु ने अपको गहरा आघात पहुँचाया कि 'वे बगैर किसी लाभ-लोभ के देश की सेवा करें।' पर इस साहसी महिला ने हार नहीं मानी। बापू का बुनियादी प्रशिक्षण ही उनकी नजर में एकमात्र ध्येय इनके सामने था। श्री नथमल चोरडिया के बेरोजगारी का समाधान था। लड़कियों की फैशनपरस्ती देहावसान के बाद आप इन्दौर चली गईं वहाँ से आपने की वे विरोधी थीं। इलाहाबाद से प्रथमा को परीक्षा उत्तीर्ण करके इन्दौर आ)- (1) म) प्र) स्व) सौ), भाग-4, पृष्ठ 216 (2) स्वा) में महिला कला मंडल' की स्थापना की साथ ही बाल सा म0, पृष्ठ 97 (3) नवभारत, इन्दौर, 18.) 1997 मंदिर, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई की कक्षाएँ प्रारंभ की,
श्री फूलचंद (गोयल) अग्रवाल जैन इन कार्यों के संचालन में आपको पग-पग पर कठिनाईयों भिण्ड (म0प्र0) के श्री फलचंद लोहिया का सामना करना पडा पर हिम्मत न हारी। कितनी (गोयल) अग्रवाल जैन का परिवार मूलत: शिवपुरी बेसहारा महिलाओं को आश्रय दिया, कितने ही को जिले के मगरौनी कस्बे का है। उनके बाबा नाथूराम रोजगार उपलब्ध कराया। आपके मार्गदर्शन में अनेक मगरौनी में ही रहते थे। किन्तु उनके पिता बट्टोमल बेसहारा-- बेरोजगार महिलाओं ने स्वावलम्बन का गुण गोयल व्यवसाय के सिलसिले में भिण्ड आ बसे। वहीं सीखा। वर्धा में जो रोल कस्तूरबा जी का था वही इन्दौर पुराना गुरहाई मौहल्ला में श्री फूलचंद लोहिया का 1903 में फूलकुँवर बाई का था
में जन्म हुआ।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री लोहिया ने हैदराबाद आपने आजादी की लड़ाई के दौरान जबकि इस में 1922 में महात्मा गांधी के अंचल में कोई अखबार नहीं था. अंग्रेजों के खिलाफ आशीर्वाद से चलाये जा रहे नियमित साइक्लोस्टाइल पर्चे बांटे जिनमें अंग्रजों की सत्याग्रह में पूर्ण रूप से खिलाफत होती थी। सहयोग दिया था। 1928 में लोहिया जी भदावर प्रांतिक जैन सभा व दिगम्बर महात्मा गांधी पड़ोसी जिला जैन वीर सेवा मंडल के अध्यक्ष, सहकारी बैंक के
इटावा में आमसभा करने आये संचालक, नगरपालिका पार्पद तथा कांग्रेस कमेटी के ता श्री गोयल हरिकिशन जाधव के साथ वहां गए। कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। 13-3-1996 को लोहिया ____ यह लोहिया जी के राजनैतिक जीवन का भी जी का देहावसान हो गया। शैशवकाल था। राजनीति की विधिवत् दीक्षा 1936 आy (1) स्वापy ( 2 ) पुत्र आनन्द गोयल द्वारा प्रपित में गोपीकृष्ण विजयवर्गीय ने भिण्ड आकर दी। उन्होंने परिचय (३) पंशन आदि के अनेक प्रमाणपत्र पहले श्री जैन को 'गांधीधर्म' में दीक्षित किया तदुपरान्त
श्री फूलचंद जैन उन्हें ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा का सदस्य बना दिया गया। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ही एक
21 मार्च 1911 को ग्राम बारिया, तहसील पाटन, संगठन था। सभा के सम्मेलन ग्वालियर, शिवपुरी,
जिला-जबलपुर (मप्र)) के श्री कस्तूरचंद जैन के बालाजी. मिहाना एवं भिण्ड में आयोजित किए गए।
घर एक फूल खिला वाद में उसका नाम ही 'फूलचंद' इन डॉ) पट्टाभिसीतारमैया, कृष्णदत्त पालीवाल,
पड़ गया। फूलचंद ने अपने नाम को फूल सा ही विद्यावती राठोर. आचार्य नरेन्द्र देव, बृजलाल वियाणी -
महकाया । फूलचंद जी ने राष्ट्रीय जागरण काल के
प्रारम्भ से ही आजादी के लिए साधना करते हए त्याग व महादेव देसाई मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे
का मार्ग अपनाया। और फलचंद लोहिया इन सबमें मौजूद रहे।
श्री जैन ग्राम की प्राथमिक शाला से उत्तीर्ण होकर 1942 में महात्मागांधी ने 'करो या मरो' के साथ
। हितकारिणी विद्यालय जबलपुर में प्रविष्ट हुए। अध्ययन 'अंग्रजा भारत छोड़ो' का नारा दिया। लोहिया जी के
के दौरान ही स्वतंत्रता संग्राम के नेता सेठ गोविन्ददास लघुभ्राता संपतराम लोहिया, रघुवीर सिंह कुशवाह व
एवं पा) द्वारकाप्रसाद मिश्र के सम्पर्क में आये। 1930 सृवालान मिहाना न रेल पटरियां उखाड़कर असहयोग
की 6 अप्रैल को जबलपुर के इतिहास में देशभक्तों आन्दालन में जान फ़को। फुलचंद जी न इन तीनों की
का जो अभतपूर्व जुलूस गनी दुर्गावती की समाधि और स लम्ब समय तक काननो लड़ाई लड़ो आर
बारहा) पर गया ओर जिसमें भारत को स्वतंत्रता क कासी के फन्द से बचाया। 1912 में आपन शराब
मिलो प्रतिज्ञा की गयी उसमें श्री फलचद भा सम्मिलित बन्दी का लेकर धरना दिया।
या इसके उपरान्त आपन जगल सत्याग्रह म भाग लिया न्वटेश्वरी दयाल शमा तथा आपका पलिस न
और 5 माह का कारावास पाया। कन्द्रय कारागार पकड़ लिया। पुलिसिया उत्पीड़न से लोहिया जो की
जबलपुर में दिनांक 30-8-193) R!-2-193/ हालत खराब हो गई। एस0पी0पुन सिंह ने लोहिया जी
तक कैद में रहे। 'रणभेरी'. 'रानी झांसी', 'गजगरु का रिहा ता कर दिया लेकिन घर में ही नजरबंद कर मखदेव भगतसिंह' जैसे कांतिकारी साहित्य का दिया।
प्रचारित करना आपका कार्य हो गया।
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प्रथम खण्ड
231
'भारत में अंग्रेजी राज' पुस्तक का प्रचार तथा
कार्यक्रमों का सुझाव देने वाले 'जो शासन इतने जुल्म करे उससे क्या नाता है'
श्री फूलचंद जैन 'मधुर' सागर शीर्षक वाली पुस्तिका का प्रचार करने पर आपका ON (म) प्र) ) का जन्म (6 एक वर्ष का कारावास मिला, किन्तु गांधी इरविन
अक्टूबर 1922 का चौधरी समझौते के कारण शीघ्र मुक्त हो गये। राष्ट्रीय कार्यों
श्री रामचरण लाल जैन के के सिलसिले में आप घूमते हुए बम्बई पहुंचे, जहाँ
यहाँ हुआ। श्री रामचरण लान 19.12 की अगस्त क्रांति में कार्य करते हुए दिनांक
साधारण आर्थिक स्थिति के | () 01) को गिरफ्तार हुए, आपको 5 माह के होते हए भी प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता ध. आप कारावास का दण्ड मिला, जो आपने थाना जिला श्री दि) जैन महिला श्रम सागर के संस्थापक मंत्री थे कारागृह में भागा। जेल से मुक्त होने पर आप राष्ट्रीय तथा स्पष्टवक्ता के रूप में प्रख्यात थे। गीतों का प्रचार करते रहे। बाद में आप बम्बई
आजादी के आन्दोलन में आप कंस कद प्रवासी हो गये और वहाँ कुटीर उद्योगों का प्रचार-प्रसार
पड़े?' मेरे यह पूछने पर मधुर जी उन दिनों की संजायी करने लगे।
स्मृतियों को ताजा करते हुए बोले- 'उन दिनों के ___आ) (1) म0 प्र) स्व) सै), भाग 1, पृष्ट ?
छोटे-छोटे बालकों का खल, झंडा लेकर जुलूस (2) स्वा) सा) पा), पृष्ठ- 108
निकालना, नारे लगाना, सभाओं जैसे दृश्य बनाना आदि श्री फूलचंद जैन
बन गया था। अत: बचपन से ही राष्ट्रीय भावना के पिपरोध (कटनी), जिला-जबलपुर (म0प्र0) संस्कार मुझ में पड़े। प्राइमरी उत्तीर्ण कर मैं मिडिल के श्री फूलचंद जैन, पुत्र - श्री दमड़ीलाल ने 1930 के में जब भर्ती हुआ तब वहाँ के कला के शिक्षक स्वामी जंगल सत्याग्रह में 3 माह का कारावास तथा कृष्णानन्द जी अवसर मिलते ही बालकों में राष्ट्रीय 20 रुपये का अर्थदण्ड भोगा।
चेतना जगाने हेतु भारत के पुरातन गौरव की बलिदानी आ) (1) गा) प्र) स्व) सै0, भाग 1, पृष्ठ 75 साशा तथा कातिकारियों की साशासमायाको (2) 70 सा) रा) अ)
उनसे मैं भी प्रभावित हुआ। स्वामी कृष्णानन्द ने स्वयं श्री फूलचंद जैन
भी रा()आ) में खुलकर भाग लिया था। वारासिवनी, जिला बालाघाट (म0प्र) ) के श्री जब मैं सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था, तब मैंने फूलचंद जैन, पुत्र-श्री पन्नालाल 1942 के आन्दोलन एक राष्ट्रीय गीत लिखा था, जो शाला की हस्तलिखित में 22 अगस्त को गिरफ्तार कर लिए गये थे। आप पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इस गीत पर मुझ खत्र 15 सितम्बर 42 तक नजरबन्दी में रहे।
सराहना मिली, यत: शाला के हेडमास्टर श्री भाव तथा आ) (।) II) 'प) रवा) (). भाग | पृष्ठ 185 उक्त पत्रिका के सम्पादक श्री ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी
श्री फूलचंद जैन 'मधुर' दोनों ही राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे। दुर्भाग्य कि अगलं 'मधुर' उपनाम मे हिन्दी साहित्य की 'गीति' वर्ष ही श्री भाव संवानिवृत हो गये। नये हेडमास्टर विधा का समृद्ध करने वाले, अपनी राष्टीय कविताओं न मुझ अपनी कक्षा में उत्तीर्ण होने पर भी पानी
.. कक्षा में उक्त कविता के कारण प्रवेश नहीं दिया और
चार करने वाले तथा कक्षा में उक्त कविता 'राष्ट्रीय सेवा योजना' व 'लाक अदालत' जैसे मरी पढ़ाई पर यहीं पूर्ण विराम लग गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन जब मैं करेली, जिला-होशंगाबाद (अब, शासन को हमारी मागें मानने को बाध्य होना पड़ा। जिला-नरसिंहपर) में अपनी दकान सम्हाल रहा था.
शासन ने माफी मांगने पर रिहाई का प्रस्ताव रखा
शासन ने माम ला तब वहाँ के राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं से मेरा सम्पर्क हो पर मैंने मना कर दिया। मेरी माता जी के आश्वासन गया था। 14 अगस्त 1942 को चांवरपाठा की एक भरे पत्रों से मुझे उस अवस्था में बड़ा आत्मिक बल महिला सत्याग्रही ने बरेली में सत्याग्रह किया, उसे मिलता था। मैं 9 माह 10 दिन जेल में रहा। इस गिरफ्तार कर लिया गया तथा पुलिस के सिपाहियों, समय मेरे काका चौ० भैरों प्रसाद को पुलिस ने इतना जिनकी संख्या मश्किल से 10-12 थी. ने परी बस्ती परेशान किया कि उन्हें उक्त करेली की दुकान बन्द में मेन रोड पर मार्च पास्ट किया तथा बस्ती वालों पर कर सागर आ जाना पड़ा, परिवार की आर्थिक स्थिति आतंक जमाने के लिए दुकानदारों को गंदी-गंदी गालियां बड़ी दयनीय हो गई। दी, पर किसी ने भी उसका प्रतिवाद नहीं किया। मुझे जेल से मुक्त होने के बाद मैं राष्ट्रीय आन्दोलन यह बात अपमानजनक लगी। मैंने अन्य साथियों के में सक्रिय रहा, अपने राष्ट्रीय गीतों के द्वारा साथ मिलकर रात में सभा की, तय हुआ कि कल जन-जागरण करना मेरा प्रमख कार्य था।' स्कूल के छात्रों के साथ जूलूस निकाला जाये। रात आजादी के बाद 'मधुर' जी ने अनेक रचनात्मक में ही हमारी दुकान पर पोस्टर बने और रात में ही सुझाव अपने लेखों के माध्यम से सरकार के पास भेजे। पुलिस कोतवाली, सर्किल इंस्पेक्टर के निवास तथा बिक्रीकर के सन्दर्भ में आपका एक लेख 'अमृत बाजार बस्ती के प्रमुख 3-4 स्थानों पर चिपका दिये गये। पत्रिका' के हिन्दी संस्करण 'अमृत पत्रिका' इलाहाबाद प्रात: ही वहाँ के प्रमुख कार्यकर्ता श्री रामसिंह चौहान के 6 सितम्बर 1951 के अंक में छपा। आपने सुझाव 'बेधडक' को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। दिया था कि 'टैक्स लगाना ही है तो उत्पादन शुल्क
मैंने अपने क्रांतिकारी साथियों व विद्यार्थियों के के रूप में लगाया जाये । भोपाल के साथ जलस निकाला। पुलिस ने हमें तितर-बितर होने कर्तव्यदान '(साप्ताहिक) में पुन: यह लेखा की चेतावनी दी, किन्तु विद्यार्थियों ने पत्थरों की बौछार 23-10-57 को छपा। तत्कालीन म0प्र) कांग्रेस अध्यक्ष शुरू कर दी। लाठीचार्ज हुआ, मैं अपने तीन साथियों ने इस पर एक कमेटी बनाई और कपड़ा, केरोसीन के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। यह वाकया 15
आदि कुछ वस्तुओं पर बिक्रीकर हटाकर उत्पादन शुल्क अगस्त 1942 का है। पहले हमें होशंगाबाद व नरसिंहपर बढ़ाने का निर्णय लिया गया। की जेलों में रखा गया बाद में 72 बंदियों के साथ
__ अपने एक अन्य लेख- 'चाचा नेहरू की जबलपुर जेल भेज दिया गया। जबलपुर जेल में रोटियों
वसीयत और उनका स्मारक' में मधुर जी ने राष्ट्रीय में कंकड़ों व सब्जी में घास-पात की बहुतायात थी,
सेवा का रचनात्मक सुझाव दिया था। इस पर तत्कालीन अतः सबके साथ भूख हड़ताल मैंने भी की, बैरकों
शिक्षामंत्री श्री छागला का पत्र मधुर जी को मिला कि में जाने से इंकार कर दिया, परिणामस्वरूप शहर से
'आपके सुझाव नोट कर लिये गये हैं।' मधुर जी के डी0एस0पी0 के नेतृत्व में पुलिस दस्ते ने पहुंचकर
अनुसार- 'उक्त सुझावों का कुछ समय परीक्षण कराने
के उपरान्त उसे महाविद्यालयीन छात्रों में 'राष्ट्रीय सेवा लाठी चार्ज किया और सभी को बैरकों में बन्द कर ।
योजना' के रूप में लाग कर दिया गया।' इसी तरह दिया। पांच दिन तक भूख हड़ताल चली, अन्त में
एक अन्य लेख- 'मुकदमाबाजी देहाती जनता को एक
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प्रथम खण्ड
अभिशाप' में मधुर जी ने कैम्प अदालतों का सुझाव दिया था।
1956 में उ0प्र0 शासन, सूचना विभाग द्वारा आयोजित द्वितीय 'अ0भा0 प्रगतिगीत प्रतियोगिता' में आपके दो गीतों 'आराम हराम है' और 'नींव का पत्थर' ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया था। लगभग 20 वर्ष पूर्व पुलिस ट्रेनिंग कालेज, सागर में पुलिस के कर्तव्यों की ओर ध्यान दिलाने वाला जो गीत आपने गाया था आज वह गीत अकादमी के उत्तीर्ण स्नातकों द्वारा वार्षिक परेड में गाया जाता है।
4
'नई दिशा नये कदम' तथा 'अमृत बरस गया' ये दो राष्ट्रीय कविता संग्रह आपके प्रकाशित हैं। राजुल आधारित खण्डकाव्य अपरिणीता धारावाहिक रूप में छप रहा है। अक्टू0 2000 में आपका निधन हो गया।
पर
,
आ) (1) आ) दी), पृष्ठ-19 (2) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 42 (3) अनेक कवितायें, प्रशंसापत्र आदि ( 4 ) स्व) प० (5) सा
श्री फूलचंद पोरवाल
नाथद्वारा ( राजस्थान ) कांग्रेस के अध्यक्ष रहे श्री फूलचंद पोरवाल, पुत्र श्री नाथूलाल का जन्म 1909 में हुआ। आपने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और उदयपुर सेन्ट्रल जेल में छह माह नजरबंद रहे।
आ) (1) रा० स्व०) से), पृष्ठ- 497
श्री फूलचंद बाफना
राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे श्री फूलचंद बाफना का जन्म 1915 में पाली (राज0) जिले के सादड़ी कस्बे में एक ओसवाल जैन परिवार में हुआ । उनकी शिक्षा सादड़ी और जोधपुर में हुई। जोधपुर में 'मारवाड़ लोक परिषद्' की स्थापना होने पर वे उससे जुड़े गये और सादड़ी आदि अनेक क्षेत्रों में परिषद् की स्थापना की। 1940 में परिषद् के पहले
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सत्याग्रह में बाफना जी ने सक्रियता से भाग लिया। 1942 में जब परिषद् ने 'जिम्मेवार हुकूमत आन्दोलन' चलाया तब आपको सक्रिय गतिविधियों के कारण, गिरफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा दी गई। 1944 में जेल से छूटने के बाद आप और अधिक सक्रिय हो गये तथा परिषद् के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए । विशाल राजस्थान के निर्माण के समय भी आप परिषद् के प्रधानमंत्री थे, अत: पहले मन्त्रिमंडल में आपने 2 वर्ष तक स्वायत्त शासन मंत्री का कार्य कुशलता पूर्वक सम्हाला ।
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1951 के बाद आप भूदान और सर्वोदय की ओर झुके। श्री सिद्धराज ढढ्ढा के नेतृत्व में भी आपने कार्य किया । 1967 में आप स्वतंत्र पार्टी के सहयोग से राजस्थान विधानसभा के लिए चुने गये।
आ) (1) रा) स्व() से), पृष्ठ-846
डॉo फूलचंद भदौरा
श्री फूलचंद भदौरा, पुत्र - श्री धर्मदास भदौरा का जन्म टीकमगढ़ (म0प्र0) में 1922 में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त कर आप राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ गये। | अपना परिचय देते हुए आपने लिखा है
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* 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह से प्रभावित होकर राजनीति में आया और 'ओरछा सेवा संघ' (स्थानीय
4
कांग्रेस) का सदस्य बना।
कुछ समय बाद नगर व राज्य ओरछा सेवा संघ का मंत्री बनाया गया। शोषित पीड़ित तबकों के प्रति विशेष रुझान के कारण हरिजन सेवक संघ का राज्यमंत्री बनाया गया । नगरपालिका परिषद् के हरिजन कर्मचारियों की मांगों हेतु कई बार हड़तालें कराईं व भूमिगत रहकर इन हड़तालों को सफल कराया। एक बार तो 6 दिन की भूख हड़ताल करना पड़ी और
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
जब दो दिन मुंह से लगातार खून आया तब समझौता संतोषस्वभावी भदौराजी एक योगाभ्यास केन्द्र हुआ। मैं 1943 से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चलाते हैं। सम्प्रति आप टीकमगढ़ में एक वृहद् योग सदस्य हूँ और उसके साथ आज भी हूँ। हरिजन केन्द्र की स्थापना के उपक्रम में लगे हुए हैं। हड़ताल के समय 7 फरवरी 1947 को ओरछा राज्य आ)- (1) वि) स्व0 सा) इ.), पृष्ट 90.124. 183, कम्युनिस्ट पार्टी गैर कानूनी करार कर दी गई और 14 (2) दैनिक भास्कर, भोपाल ।5 9 1972 (3) स्वा) पा) मैं अन्य साथियों के साथ जेल में नजरबंद कर दिया
श्री फलचंद वमोरहा गया। परन्तु जन आंदोलन व हरिजनों की बहादुरी के
___ वमो रहा' उपनाम से प्रसिद्ध गोटेगांव, कारण ।। फरवरी 47 को हम लोग जेल से रिहा
जिला नरसिंहपुर (म.प्र)) के श्री फूलंचद वमोरहा हुये। 19-46 47 में हुये साम्प्रदायिक दंगों की हवा
पुत्र- श्री डालचंद का जन्म टीकमगढ़ में आई परन्तु मैंने अन्य साथियों के साथ
11912 में हुआ। आप त्रिपुरी मिलकर जिले में जो शांति स्थापित की वह आज
कांगेस अधिवेशन में तक कायम है। 1946 में विद्यार्थियों की हड़ताल
स्वयंसेवक बनकर गये थे। करान म सक्रिय तौर पर भाग लेने पर जेल में भेजा
1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह गया और ) दिन हवालात में रहने के बाद टंद
में आपने दो बार जेल यात्रा मा, की सजा व 50 - रुपया जमाना तथा जुर्माना न
| की। आप गोटेगांव से झांसी - + माह की सजा और काटी।'
तक अनेक आन्दोलनकारियों (जिनमें अधिकांश जैन दोग जी कम्युनिस्ट आदालन से जुड़े थं) के साथ पैदल गये थे। झांसी में आप गिरफ्तार रह है और इस कारण आजादी के बाद भी उन्हें कई हए थे। आपने सागर होशंगाबाद. झांसी एवं जबलपुर बाः जेल जाना पडा। 1972 में दिल्ली म ताम्रपत्र जेलों में मजायें परी की थीं। लेने आने पर आपने तत्कालीन प्रधानमंत्री
आ।- ( म0प्र0 स्व) से०, भाग । पृष्ठ 140 (2) श्रीमती इन्दिरा गांधी से बन्देलखण्ड प्रान्त क मदभ में आंकड़े प्रस्तुत करते हुए पृथक् बुंदलखण्ड राज्य की मांग की थी। आपनं महामहिम राष्ट्रपति व्ही) पं० फूलचंद सिद्धान्ताचार्य व्ही। गिरि से टीकमगढ़ के अमर शहीद कामरेड 20वीं शताब्दी के दिगम्बर जैन विद्वानों में नारायणदास खर का स्मारक बनाने हत् भी निवेदन अग्रगण्य श्रद्धेय पर) फूलचंद सिद्धान्ताचार्य का जन्म किया था।
।। अप्रैल 190। का टीकमगढ़ की लगभग दो दर्जन संस्थाओं से
ग्राम-सिलावन, जिला - जुड़े भदौरा जी योग और प्राकृतिक चिकित्सा में
ललितपुर (उ0प्र0) में गहन आस्था रखते हैं। वे कहते है... 'विगत 59 वर्ष
हुआ। आपके पिता का नाम सं मैंने किसी दवा का प्रयोग नहीं किया है। प्राकृतिक
श्री सिंघई दरयाव लाल था। चिकित्गा और योग की क्रियाओं द्वारा स्वस्थ हूँ।'
आर्थिक रूप से कठिन टीकमगढ़ नगर में एक प्राकृतिक चिकित्सालय
परिस्थितियों में जीवन की । वपी तक आपने चलाया और अब उसे नगरपालिका विषमताआ को झेलत हुए पूज्य पं) जी ने जैन दर्शन को सौंप दिया है।
रूपी आत्मज्ञान को जिन ऊँचाईयों को प्राप्त किया,
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प्रथम खण्ड
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उसका दूसरा उदाहरण दुर्लभ है। वे अभिनन्दनीय और अस्पताल भेज दिया गया, वहाँ खाने में दूध व दलिया अभिवन्दनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी हैं। लगभग 91 दिया जाता था। दूध में मिलावट होने से आप उसे पी वार्य के जीवन काल में उन्होंने जैन दर्शन व साहित्य नहीं पाते थे तथा बगल में पड़े नाई को दे देते थे, की अनुपम सेवा की तथा (6) पुस्तकों/ग्रन्थों का प्रणयन/ अतः आप भूख से पीड़ित रहने लगे। नाई से जब सम्पादन, अनुवाद किया।
यह दशा नहीं देखी गई तो वह किसी अफसर की अनेक सामाजिक आन्दोलनों के जनक पण्डित सेवा करके दो रोटी व करेले की सब्जी ले आया और जी ने खजुरिया, इन्दौर, साढूमल, मुरैना आदि के आपसे कहा-'आपके लिए ही हम लाये हैं। आप खा प्रसिद्ध जैन विद्यालयों में शिक्षा पाई। दस्सा पूजा लो।' उस अवस्था में भी आपने मना करते हुए कहाअधिकार. हरिजन मंदिर प्रवेश, गजरथ महोत्सवों में 'तुमने इनको प्राप्त करने में श्रम किया है-- इसलिए धर्म के नाम पर किये जा रहे अपव्यय का विरोध तुम ही इन्हें खाओ।' अन्त में वह रोने लगा. तब दोनों आदि उनकं सामाजिक आन्दोलन थे।
ने बांटकर वह खाना खाया। खात हुए आपने कहा-- ___पं) जी का राजनैतिक जीवन 1920 से शुरू इस चहार दीवारी के भीतर तो हम तुम 'भाई - भाई हुआ, जब वे सादमल में विद्यार्थी थे। वहां वे ग्रामीणों हैं, किन्तु जेल से बाहर जाने पर हम जैन और तुम का एकत्र कर भाषण देने लगे, अंग्रेज अफसरों की नाई। फिर मैं तुम्हारे हाथ की नहीं खाऊँगा।' यह घटना ओर से विद्यालय बन्द कराने की नौबत आ गई। अतः 194। की है। आपने 'मुट्टी फण्ड' की स्थापना की और अनाज इकट्ठा - इसके बाद आप बनारस चले गये और जैन कर उसे गरीबों में वितरित करते रहने का कार्य प्रारम्भ सिद्धान्त के प्रौढ और प्रसिद्ध ग्रन्थ कषायपाहट के किया।
सम्पादन में लग गये। आजादी के बाद आपने 1928 के लगभग आप बनारस से बीना राजनैतिक जीवन छोड़ दिया और पूर्ण रूप से (म)प्र()) आ गये और कांग्रेस के आन्दोलनों में सक्रिय साहित्य-साधना में लग गये। सहयाग दन लग। आपने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार प्रसिद्ध पत्रकार डॉ0 नेमीचंद जैन, इंदौर को दिये किया, इसके लिए आपने एक युक्ति यह निकाली कि अपने एक इन्टरव्य में आपने स्वयं स्वीकार किया है _ 'मंदिर में देशी वस्त्रों को रखवा देते हैं, जो भी विदेशी कि - 'मैं शुरू से क्रान्तिकारी हुँ।' साडी पहिनकर आयें यहां उतार कर देशी साड़ी पहिन जायें।'
एक विदशी विद्वान् ने जन आपसे प्रश्न किया आप बीना, सागर, सोलापुर तथा अमरावती जिला कि जैन धर्म के माथ ही सभी धर्मों में हिंसा. झट, कांग्रेस के पदाधिकारी रह। जब आपक साल श्रारी आदि का निषिद बताया है फिर एसी कोन मी कलचंद का सत्याग्रह क कारण ललितपुर जल भंज
मज जात है, जिससे जन धर्म अन्य धर्मों से अलग समझा दिया गया और मकदम को गनवाइ हतु आप वीना
जाय। आपन उत्तर दिया- 'व्यक्ति स्वातंत्र्य जन ललितपर गय तन्त्र आपका भी वहाँ गिरफ्तार कर
मका उद्देश्य है और स्वावलम्बन उसकी प्राप्ति का लिया गया। आपका । माह का कद तथा 100/- )
माग है।' जमाना किया गया। आप कच्ची कंद में 19 दिन तथा
40 जी की प्रसिद्ध और क्रान्तिकारी रचना 'वण झांसी । उ0प्र0) जल म । माह ।। दिन रहे।
जाति और धर्म' भारतीय ज्ञानपोठ से प्रकाशित हुई थी। आपकं जेल जीवन की एक घटना है। झांसी
आपने अपने जीवन में अनेक संस्थाओं की स्थापना जेल में रहते हुए आप बीमार हा गर्य, अतः जेल से
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की, जिनमें प्रमुख हैं, सन्मति जैन निकेतन, नरिया, वाराणसी, (1946) श्री गणेश वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी (1944), संस्थापक सदस्य श्री गणेश वर्णी दि) जैन इंटर कालेज, ललितपुर (1946), श्री गणेश वर्णी दि) जैन (शोध) संस्थान, वाराणसी (1971) आदि।
आपने ‘शान्ति सिन्धु' (सोलापुर) और 'ज्ञानोदय' (वाराणसी) पत्रिकाओं का सम्पादन किया एवं 'जैन तत्त्वमीमांसा', 'जैन तत्त्व समीक्षा का समाधान', 'अकिञ्चितकर- एक अनुशीलन', 'परवार जाति का इतिहास' आदि ग्रन्थरत्न समाज को दिये।
पं() जी के व्यक्तित्व और सामाजिक, धार्मिक तथा राष्ट्रीय क्षेत्र में उनके अवदान को इस तथ्य से रेखाङ्कित किया जा सकता है, कि पं०) जी के समकालीन स्व() पं() कैलाशचंद शास्त्री, स्व0 पं0 जगमोहन लाल शास्त्री एवं स्व() पं() जी रत्नत्रयी के नाम से विख्यात रहे हैं। स्व() पं() कैलाशचंद शास्त्री ने लिखा है- 'हम तो उन्हीं के अनुवादों को पढ़कर सिद्धान्त ग्रन्थों के ज्ञाता बने हैं।' श्री पं() जगमोहन लाल जी के शब्दों में 'उम्र में तो वे हमसे चार माह बड़े हैं, परन्तु ज्ञान में तो सैकड़ों वर्ष बड़े हैं। '
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव अम्बेडकर बौद्ध धर्म अपनाने से पूर्व जैन धर्म स्वीकार करना चाहते थे। यह बात स्व0 पां) जी ने अपने एक साक्षात्कार में बताई थी। यह साक्षात्कार हमने पं() जी के हस्तिनापुर ( उ ) प्र0) स्थित आवास पर जनवरी 1989 में लिया था। इसका कैसेट हमारे पास सुरक्षित है। इस अवसर पर श्री नरेन्द्र भंडारी एडवोकेट, सागर भी उपस्थित थे। पं0 जी ने कहा कि 'अम्बेडकर से हम और महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य मिले थे। हम उनके पास गये, बातचीत के बाद हमने प्रश्न किया कि " आपने बौद्ध धर्म क्यों स्वीकार किया, जैन धर्म स्वीकार क्यों नहीं किया।" वे बोले - " जैनधर्म में जातिवाद आज मुख्य है। बौद्ध धर्म में जातिवाद की
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
मुख्यता नहीं है। यदि हम जैन बनते और अपने अनुयायियों से कहते कि जैन बन जाओ तो ये जातिवाद आडे आ जाता। हमें बराबरी का दर्जा नहीं मिलता और हम अछूत के अछूत बने रह जाते। इसलिए हमने जैन धर्म को नहीं चुना है, बौद्ध धर्म चुना है, बौद्धधर्म में ये जातिवाद की प्रथा नहीं है। यह अवश्य है कि हमने बम्बई के पास बौद्ध केन्द्र स्थापित किया है, वहाँ पर जैन मंदिर आप बनवा दें तो हम उसको स्वीकार कर लेंगे।" पं() जी की महनीय सेवाओं से अभिभूत और उपकृत जैन समाज ने उन्हें 1985 में एक विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ भेंटकर सम्मानित किया था। दिनांक 31 अगस्त 1991 को रुड़की में पं() जी का निधन हो गया ।
(आ) - (1) जै) स) रा0 अ0, (2) र) नी), पृष्ठ-66 (3) पं() फूलचंद शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ ( 4 ) सा() (5) प(0) जै) इ)
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श्री बंगालीमल जैन
अपने साथी ही जिनके मुखविर बन गये, ऐसे आगरा (उ0प्र0) के श्री बंगालीमल जैन को 1942
में पुलिस ने नजरबंद किया था तथा तोड़-फोड़ आदि
के मामलों में फँसाया था। इस केस में आपके अन्य तीन साथी मुखविर बन गये थे। बाद में जब अपराध प्रमाणित नहीं हो सका तो आप मुक्त कर दिये गये। आ)- (1) जै) स) रा) अं) (2) उ0 प्र0), जै०
ध०, पृष्ठ-90
श्री बंशीधर वैसाखिया
एक बार जेल की जली, कच्ची, मोटी ज्वार की रोटी खाकर तमाम जिंदगी वैसी ही मोटी ज्वार की रोटी खाने का व्रत लेने वाले श्री बंशीधर वैसाखिया का जन्म 1878 में नरसिंहपुर (म0प्र0)) में हुआ। आपके पूज्य पिता परमेश्वरदास वैसाखिया साधारण गृहस्थ थे। उस समय अंग्रेजी की चार क्लास पढ़ लेना भी बहुत समझा जाता था । वंशीधर जी इससे अधिक विद्यालाभ न कर सके। स्थानीय स्कूल में एक बार शिक्षक का
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प्रथम खण्ड
237 काम करने के पश्चात् आप बस्तर स्टेट पुलिस विभाग
आ)- (1) म) प्र) स्वा) सै), भाग-1 पृष्ठ-148 (2) में भरती हो गये। वहाँ आप अपनी योग्यता व कुशलता पर) जै) इ.), पृष्ठ-444 के कारण अल्प समय में ही सिपाही के पद से सब
पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य इन्सपेक्टर हो गये। कछ समय बाद आप तीर्थक्षेत्र कमेटी की तरफ से श्री मंदारगिरि जी के उद्धार के लिये वहां
जैन दर्शन के उद्भट विद्वान् पं0 बंशीधर जी चले गये और आपने बडी ही योग्यता के साथ उस का जन्म भाद्र शुक्ला 7, वि0सं0 1962 (सन् 1905) क्षेत्र को अधिकार में किया और सदैव के लिये जैन
में हुआ। पिता का नाम श्री पं)
मुकुन्दीलाल और माता का समाज को दिला दिया। इससे पहिले यह तीर्थ लुप्तप्राय:
नाम श्रीमती राधादेवी था। सा था और एक पाखंड़ी साधु उस पर अपना अधिकार
पिताजी उस क्षेत्र के माने हुए जमाये हुए था। जो यात्रियों को बहुत परेशान करता था।
विद्वान्, पंडित, शास्त्रप्रतिबाद में आप श्री सम्मेद शिखर जी की तेरहपंथी
लेखक और प्रतिष्ठाचार्य थे। कोठी का कार्यभार जो उस समय बडी दरवस्था में
समाज में जहाँ-कहीं था, संभालने चले गये। वहां का प्रबन्ध आपने बड़ी
जल यात्रा, सिद्धचक्र विधान, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा योग्यता व दक्षता के साथ किया। आपने वहां की
आदि धार्मिक कार्य होते थे उनमें उन्हें ससम्मान आमंत्रित धर्मशालाओं एवं मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया आपकी
किया जाता था। दशलक्षणा (पर्युषण) पर्व में भी तीर्थ सेवा आज भी स्मरणीय है।
शास्त्र-वचनिका के लिए वे समाज के आमंत्रण पर देश की पराधीनता को कोई कर्मठ पुरुष कसे जाते थे। उनके हाथ के लिखे हए शास्त्र आज भी कई सहन कर सकता था। फिर बैसाखिया जी तो महाकर्मठ मंदिरों में उपलब्ध हैं। थे, वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। नागपुर सत्याग्रह बंशीधर जी जब तीन माह के थे, पिताजी को के अवसर पर आपको एक वर्ष की कठोर सजा हुई दैव ने उनसे छीन लिया। जैसे-तैसे माता जी शिश का किन्तु आपके क्रियाकलापों को देखते हुए सरकार ने पालन-पोषण कर रही थीं, किन्तु 12 वर्ष की अवस्था आपको कुछ माह ही जेल में रखकर छोड़ दिया। में उनका भी साया पं0 जी पर से उठ गया। वे अभावों म0 प्र0 स्व0 सै0 के अनुसार झण्डा सत्याग्रह में भाग में पले-पसे और आगे बढे। लेने के कारण आपने डेढ माह का कारावास नागपुर
पंडित बंशीधर जी का जन्मस्थान सोरई है, जो में भोगा था।
बहुत पहले गढ़ाकोटा (सागर) म0प्र) की जागीर थी जल से बाहर आने के बाद भी आप जेल जैसा और अब उत्तर प्रदेश के ललितपर जिले का एक भोजन करते रहे। आप कहा करते थे कि - 'यदि प्रख्यात ग्राम है। यह ग्राम 'जैन जगत के गांधी' नाम सरकार ने हम छोड़ दिया तो क्या ? जब हम इस से विख्यात प्रसिद्ध संत श्री गणेशप्रसाद वर्णी (मनि बात पर तुले हुए हैं तो फिर भी जेल जाना पड़ेगा।' श्री 108 गणेशकीर्ति) की जन्मभमि हसेरा ग्राम इसलिए रूखी ज्वार की रोटी का ही भोजन करते रहे! (ललितपुर) से दो किलोमीटर पूर्व में अवस्थित है। सरकार ने पुन: आपको छ: माह की सख्त सजा दी
यह ग्राम है तो छोटा, लेकिन इसकी एक जिसे आपने सहर्ष स्वीकार किया। धर्मनिष्ठ बैसाखिया विशेषता है कि यह प्राच्य-विद्या, प्राकृत और संस्कृत जी का स्वभाव बड़ा ही मृदु एवं हंसमुख था।
विद्वानों की खान है। व्याकरणाचार्य जी, पं0 शोभारामजी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन महोपदेशक, विद्याभूषण पं0 रामलाल जी प्रतिष्ठारत्न से वह बनारस का अध्ययन छोड़ बीना आ गये थे, अशोकनगर, पं0 परमानन्द जी साहित्याचार्य बालाविश्राम मातृभूमि पुकार के सामने वह आकर्षण भी अशक्त आरा, पं0 बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री (सिद्धान्त ही सिद्ध हुआ। पच्चीस-छब्बीस साल की युवावस्था ग्रन्थों के सम्पादक-अनुवादक) हैदराबाद, में अपनों की सारी चिन्ता छोड़कर बंशीधर जी पं0 पद्मचन्द्रजी शास्त्री, बड़ा मलहरा, डॉ0 पं0 स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। देश की चिन्ता अपनी दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य, पं0 गुलझारीलाल सारी चिन्ताओं से ऊपर हो गई और मातृभूमि की पुकार जी न्यायतीर्थ, सागर, पं0 दुलीचन्द्र शास्त्री बीना के सामने घर गृहस्थी की सारी मनुहार बिखर कर रह अदि विद्वान् यहीं की देन हैं।
गई। चाहे 1931 का असहयोग आन्दोलन हो या 1937 पंडित जी की प्राथमिक शिक्षा स्थानीय प्राईमरी के एसेम्बली के चुनाव हों, 1941 का व्यक्तिगत स्कूल में कक्षा 4 तक हुई। चौथी कक्षा पास कर स
सत्याग्रह हो या 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन हो, आपको पूज्य पं0 गणेशप्रसाद जी वर्णी अपने साथ
बंशीधर ने तन, मन और धन सब कुछ उस महायज्ञ वाराणसी ले गये। वहाँ स्याद्वाद जैन महाविद्यालय में
में होम करते समय कोई संकोच नहीं किया। जैसी उनकी छत्र-छाया में 11 वर्ष तक व्याकरण, साहित्य,
निष्ठा और समर्पण के साथ उन्होंने ज्ञान की दर्शन और सिद्धान्त का उच्च अध्ययन किया। आपने
आराधना की थी, वैसी ही निष्ठा और समर्पण के साथ प्रथम श्रेणी में ही सभी विषयों में उत्तीर्णता पाप्त की मातृभूमि की सेवा में भी उन्होंने अपने आप को नियोजित है। व्याकरणाचार्य परीक्षा में तो प्रावीण्य सूची में द्वितीय '
कर दिया। स्थान प्राप्त किया है।
नगर कांग्रेस-कमेटी की अध्यक्षता से लेकर 1928 में आपका विवाह बीना में शाह मौजीलाल
प्रान्तीय कांग्रेस-कमेटी की सदस्यता तक उन्हें जब,
जहाँ, जो काम सौंपा गया उसे उन्होंने अपने व्यक्तिगत जी की सुपुत्री लक्ष्मीबाई के साथ सम्पन्न हुआ। पण्डित जी की धर्मपत्नी स्वभावतः उनकी समान-गुणधर्मा थीं।
स्वार्थों से परे, एक अनोखी गरिमा के साथ निभाया। उनमें गाम्भीर्य, सहज स्नेह, वात्सल्य, उदारता, दयालुता,
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में पंडित बंशीधर
जी की भूमिका इतनी स्पष्ट रही, उनका योगदान ऐसा सहनशीलता, अक्रोध, अमान, अलोभ जैसे गुण
अनुकरणीय रहा और उनका सेवा-संकल्प इतना दृढ़ विद्यमान थे। अस्वस्थ होने पर भी वे पण्डित जी की
रहा कि अपने ही साथियों में उदाहरण बनते चले गए। दिनचर्या और आतिथ्य में कभी शैथिल्य नहीं करती
कितनों ने उन विषम परिस्थितियों में उनसे प्रेरणा प्राप्त थीं। कुटुम्बियों और रिश्तेदारों के प्रति उनके हृदय में
+ की और कितने घरों में उनकी सहायता से मनोबल अगाध स्नेह एवं आदर रहा। यह देव का विडम्बना के दीप जलते रहे. इसकी कोई सूची न कमा बना, है कि वे 58 वर्ष की आयु में ही कालकवलित हो और न बन सकेगी। जहाँ सेवक ही मौन-व्रती हो वहाँ गयीं। अपने पीछे वे तीन सुयोग्य पुत्रों तथा तीन सुयोग्य
सेवा-कार्यों का लेखा-जोखा हो भी कैसे सकता है। पुत्रियों के भरे-पूरे परिवार को छोड़ गईं।
तथापि इस आन्दोलन में आपने म0प्र0 स्व0 सै) के स्वाधीनता संग्राम में पं0 जी का योगदान अनसार 10 माह का कारावास भोगा था। अविस्मरणीय है। जवानी की तरुणाई अभी प्रस्फुटित
आज तो रिवाज बदल गए हैं। देशसेवा एक हो ही रही थी कि भारत माता के मुक्ति-संग्राम का
लाभजनक व्यापार बनकर रह गई है। परन्तु 1921 बिगुल पूरे जोर से बज उठा। गृहस्थी के जिस आकर्षण से 1946 तक के पच्चीस साल स्वाधीनता-संग्राम के
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विकम कनयम
पाठ पढायो
प्रथम खण्ड
239 एसे साल थे, जब इस यज्ञ में आहुतियाँ तो थी परन्तु व्यवहार' उनकी बहुचर्चित कृति है। पं0 जी की अन्य जयकारे नहीं थे। समर्पित करने के लिए तो बहुत कुछ पुस्तकें हैं- 'जैन दर्शन में कार्यकारणभाव और कारक था, परन्तु उसके बदले में आत्म-संतोष ही एक मात्र व्यवस्था', 'पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध उपलब्धि मानी जाती थी। सागर और नागपुर की जेलों भी,' 'भाग्य और पुरुषार्थ: एक नया अनुचिन्तन,' 'जैन में बिताया गया बंदी जीवन हो या अमरावती जेल में तत्त्वमीमांसा की मीमांसा' आदि। सही गई दुर्दम यातनाएँ, पंडित जी का अपराजेय 1990 में आपकी विशिष्ट सेवाओं का अभिनन्दन व्यक्तित्व कहीं तनिक भी झुका नहीं। जेल की इन करने हेतु सागर (म0प्र0) में एक वृहत् अभिनन्दन यात्राओं ने उन्हें
ग्रन्थ भेंट कर आपको सम्मानित किया गया था। जीवन छुआछूत और दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध का अधिकांश भाग जैन-शासन की सेवा में लगाने के जूझने का साहस और संकल्प प्रदान किया। यहीं से बात
। बाद 11 दिसम्बर 1996 को रात्रि 9-10 बजे बीना उनके व्यक्तित्व में एक नया निखार प्रारम्भ हुआ।
में शान्त परिणामों के साथ आपका निधन हो गया। श्रद्धेय पं0जी के जीवन का एक चमकदार पहलू आ()- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-44 यह भी है कि उन्होंने स्वाधीनता-संग्राम की अपनी (2) आ0 दी), पृ0-62 (3) पं0 जी के सुपुत्र श्री विभवकुमार सेवाआ ने का कभी विचार तक नहीं किया। द्वारा प्राषत परिचय (4) बुकलेट, आभनन्दन ग्रन्थ
सागर, 19-3-1990 (5) प) जै) ३०, पृ०-527 उस योगदान के उपलक्ष्य में किसी प्रतिफल के लिये वे अपने प्रमाण पत्र हाथ में लेकर कभी सत्ताधीशों
श्री बंशीलाल जैन के द्वारपर दण्डवत् करने नहीं गये। उन्होंने यह मान ग्राम-बिलहरी (कटनी), जिला- जबलपुर लिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही वह लड़ाई समाप्त (म0प्र0) के श्री बंशीलाल जैन, पुत्र-श्री दसईलाल हो गई है, और यही सोचकर उन्होंने अपने आपको ने 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लिया तथा 3 सेवा के दूसरे कार्यों में नियोजित कर लिया। माह का कारावास एवं 25 रु0 का अर्थदण्ड भोगा।
पूज्य पं0 जी की जैन साहित्य/ समाज सेवा आ)-(1) म) प्रा) स्व0 से), भाग-1, पृष्ठ-109 अनुकरणीय है, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्
श्री बंशीलाल लुहाडिया कं इतिहास में पंडित वंशीधर जी की अध्यक्षता का काल गरिमा के साथ अंकित है। गुरु गोपालदास बरैया
जयपुर से लोकसभा सदस्य, अ0 भा) स्वतंत्रता का शताब्दी समारोह उसी बीच आयोजित हआ और सेनानी संगठन, नई दिल्ली के सचिव, राजस्थान भूतपूर्व उसकी सफलता में पंडित जी का महत्त्वपूर्ण योगदान
सांसद संघ के संयोजक आदि रहा। श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला के मंत्री के
पदों पर रहे श्री बंशीलाल नाते उन्होंने उस संस्था को निरन्तर आगे बढ़ाने का
लहाड़िया का जन्म तत्कालीन प्रयास किया।
जयपुर राज्य के नारायण ग्राम पं0 जी की मौलिक कतियां उनके गहन चिन्तन
में 4 फरवरी 1910 को हुआ। को प्रकट करती हैं। बीसवीं सदी के विद्वानों में पं।
आपके पिता श्री केशरलाल जी का स्थान अग्रगण्य है। 'खानिया तत्त्वचर्चा और
राष्ट्रीय विचाराधारा के व्यक्ति उसकी समीक्षा' लिखकर उन्होंने आगम का विशुद्ध थे, वे उन दिनों बम्बई से अखबार मंगाकर पक्ष सामने रखा है। 'जैन. समाज में निश्चय और पढ़ते/पढ़वाते थे। उनके राष्ट्रीय विचारों का प्रभाव
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन लुहाडिया जी पर पड़ना स्वाभाविक ही था। आरम्भिक करने गये। पं0 हरिभाऊ जी से सम्पर्क होने पर आप शिक्षा गांव के पास सांभर कस्बे में समाप्त कर आप 'सस्ता साहित्य मण्डल' अजमेर में 'त्यागभूमि' के जयपुर आ गये। इस प्रकार विद्यार्थी जीवन में ही सम्पादकीय विभाग में सह-सम्पादक बन गये। आप राजनीति में सक्रिय हो गये।
अजमेर में ही प्रथम बार 1931 में आपने अपने जयपुर प्रवास के दौरान हमने श्रद्धेय सत्याग्रह में भाग लिया। इस विषय में आपका कहना लुहाडिया जी से उनके निवास पर श्री पी0सी0 जैन है कि - 'जहाँ तक याद पड़ता है सातवें नम्बर पर के साथ 7-11-96 को मुलाकात की। अपने विद्यार्थी अजमेर मेरवाड़ा कौंसिल कांग्रेस कमेटी के डिक्टटर जीवन में कालेज से निष्कासन की प्रसिद्ध घटना के के रूप में मैंने सत्याग्रह में भाग लिया था। ......... सन्दर्भ में पूछे जाने पर लुहाड़िया जी ने बताया कि नया बाजार, अजमेर में हमने विदेशी कपड़ों की "विद्यार्थी जीवन से ही मुझे राष्ट्रीय आंदोलनों की होली जलाई, गिरफ्तार हुआ और मुकदमा चला, इस गतिविधियों की जानकारी रखने में रुचि थी, हालांकि समय मेरी आयु 22-23 वर्ष की रही होगी....। रियासतों में अंग्रेजों का पूरा दबदबा था, फिर भी मजिस्ट्रेट ने हमसे पूछा कि - 'तुमने कसूर किया हमारे विद्यार्थीकाल में कालेजों में कुछ प्रोफेसर ऐसे है?' मैंने कहा कि 'कसूर तो आप कर रहे हैं।' थे, जो विद्यार्थियों में राष्ट्रीय भावनाएं भरा करते थे, उन्होंने कहा हम कैसे कर रहे हैं ? तो मैंने कहाइनमें प्रोफेसर वामनकर का नाम मुझे आज भी याद 'हम सत्याग्रह में भाग ले रहे हैं, देश को आजाद है। जब साइमन कमीशन हिन्दुस्तान आया और लाला कराने के लिए लड़ रहे हैं, जब आप हमको सजा लाजपतराय का देहान्त हो गया तब हमने एक शोकसभा देंगे, तो ये कसूर तो आप कर रहे हैं।' .........इस का आयोजन रामनिवास बाग में किया. वहाँ विद्यार्थी प्रकार 24-2-1932 से 18-6- 1932 तक की सजा इकट्ठे हुए और तय हुआ कि राम निवास बाग से आपने सेन्ट्रल जेल अजमेर में काटी। चौपड़ तक एक जूलूस निकाला जाय।
1933 34 में आपने लखनऊ विश्वविद्यालय इण्टरमीडिएट के बाद मैंने खादी पहनना प्रारम्भ से एम0ए), एल0एल0बी0 की परीक्षायें एक साथ कर दिया था। 1931 में मैं महाराजा कालेज, जयपुर उत्तीर्ण की और जयपुर में वकालत करने लगे. आप में बी0ए) फाइनल का छात्र था। प्रिन्सिपल अंग्रेज देशी राज्य लोकपरिषद् और जयपुर राज्य प्रजामण्डल भक्त थे, उन्होंने हमें बुलाकर कहा कि- 'खादी की से भी सम्बद्ध रहे हैं। 1949) में आप एआई0सी0सी) टोपी पहिन कर मन आना।' हमने कहा 'ऐसा नहीं' के सदस्य निर्वाचित हुए। विधान निर्मातृ परिषद् की हो सकता, टोपी पहिन कर ही आवेंगे।' उन्हीं दिनों सदस्यता के लिए राजस्थान सरकार का प्रस्ताव भी हमने एक मेमारन्डम 'हिज हाईनेस' जयपुर को दिया, आपको प्राप्त हुआ था। आप अनेक बार जिला कांग्रेस जिसमें जबावदार हुकूमत कायम करने की बात थी कमेटी के अध्यक्षा मंत्री आदि पदों पर रहे हैं। 1955
और भी अनेक मार्ग थीं। गांधी टोपी लगाने और इस में आप जयपुर क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस की ओर प्रकार ज्ञापन देने के अपराध में मुझे और मेरे बड़े भाई से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। पूनमचंद जी को कालेज से पृथक् कर दिया गया।" सुप्रीम कोर्ट में वकील रहे लुहाडिया जी
लुहाडिया जी संठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा जयपुर में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना हेतु निरन्तर से हिन्दुस्तान टाइम्स में पत्रकारिता का अध्ययन संघर्षरत रहे थे। जयपुर बार एसोसिएशन एवं
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को आप पर कड़ी
प्रथम खण्ड
241 बार- कौंसिल राजस्थान के आप अनेक बार अध्यक्षा सिंह मेहता था। मेहता जी की प्रारम्भिक शिक्षा सदस्य आदि पदों पर रहे थे। अनेक गम्भीर विषयों भीलवाड़ा और उदयपुर में हुई बाद में वे उच्च पर आपने पुस्तकें भी लिखी हैं। 17 नव0 2000 शिक्षा के लिए फरग्यूसन कालेज, पूना गये। आपके को आपका निधन हो गया।
परिवार को राज्य की ओर से जागीर दी गई थी, आ) (1) साक्षात्कार 7-11-96 (2) आकाशवाणी आपका परिवार एक खानदानी सामन्ती परिवार था, बीकानेर का दिया साक्षात्कार (3) रा) स्व) से0, पृष्ठ-574
परन्तु मेहता जी अपनी 15 वर्ष की उम्र में एक श्री बरदीचंद जैन
विद्रोही के रूप में उभरे। उन्होंने सामन्ती जीवन का रानापुर, जिला-झाबुआ (म0प्र0) के श्री विरोध ही नहीं, बहिष्कार भी किया। बरदीचंद जैन, पुत्र- श्री मंगनीराम जैन का जन्म मेहता जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में जैन 7 अक्टूबर 1904 को हुआ। मिडिल तक शिक्षा विद्यालय में अध्ययन-अध्यापान किया था अत: उदयपुर ग्रहण कर आप 1927 से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय के लोगों में आप आज भी 'मास्टर जी' उपनाम से हो गये थे। 1936 के आन्दोलन में भाग लेने के विख्यात हैं। कारण आप गिरफ्तार किये गये तथा 5 माह का 1915 में प्रताप सभा के माध्यम से आप कारावास आपने भोगा।
राजनीति में आये। आप वर्षों तक इस सभा के आ) (1) म) प्रा) स्वा) सै), भाग-1, पृष्ठ-147 संचालक रहे. इस कारण रियासत की आप पर कडी
श्री बलवंतसिंह मेहता नजर रहने लगी। अजमेर में होने वाली राजनैतिक राजस्थान की संस्कारधानी उदयपुर में हमने ।
र गतिविधियों में तो आप भाग लेते ही थे 1929 में 10 सितम्बर 1997 को एक 98 वर्षीय कृषकाय,
- लाहौर कांग्रेस में उदयपुर से प्रतिनिधि बनकर आप ओजस्वी, जीवट और जीवन्त व्यक्तित्व के दर्शन
गये थे। पुलिस की कठोर निगाहें अब आप पर और किये। छरहरा शरीर, सौम्य
- अधिक रहने लगीं थीं। उन्हीं दिनों 'मेरठ षडयंत्र मुखाकृति, भव्य ललाट, आंखों
केस' के कुछ क्रान्तिकारी उदयपुर आ गये थे। 'नौजवान पर चश्मा, हाथ में छडी, भारत-सभा' के कुछ युवकों ने भी उदयपुर में डरा सिर पर सफेद टोपी. डाल रखा था। उनके मुखिया राधेश्याम उर्फ श्यामबिहारी स्वच्छ धवल खादी का न
ने मेहता जी के सहयोग से क्रान्तिकारियों के लिए कर्ता-धोती। आज भी वाणी उदयपुर से सैकड़ों की तादाद में पिस्तौलें खरीदीं।
में वही ओज और कल कर पिस्तौलों की जांच के लिए राधेश्याम के साथ मेहता गजरने की तमन्ना। यही थे प्रथम लोकसभा के जी पहाडियों में जाया करते थे। हल्दीघाटी में उन्होंने सदस्य, राजस्थान मंत्रिमण्डल में अनेक बार कैबिनेट एक शिविर भी लगाया था जहाँ बम बनाने की मंत्री रहे तथा संविधान निर्मात सभा के सदस्य मारमा प्रक्रिया समझाई जाती थी। बलवन्तसिंह मेहता।
अप्रैल 1932 में उदयपुर की जनता ने मेहता मेहता जी का जन्म 8 फरवरी 1900 को जी ने नेतृत्व में रियासत द्वारा लगाये गये कुछ नये उदयपुर के प्रसिद्ध नरवद मेहता जलसी मेहता के करों तथा शासनाधिकारियों की निरंकुशता और अभद्र खानदान में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जालिम व्यवहार के विरोध में एक विशाल प्रदर्शन किया।
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242
स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रदर्शन करता हुआ एक जुलूस महाराणा के महल की सरकार ने कोटडा भोपट में प्रजामंडल के किसी भी चहारदिवारी में पहुँच गया। पुलिस ने वहाँ भयंकर कार्यकर्ता का प्रवेश वर्जित कर दिया। मेहता जी ने लाठीचार्ज किया और जुलूस महल की चहारदिवारी अध्यापकों के रूप में अनेक कार्यकर्ताओं को वहाँ बैठा में ही घेर लिया गया। जो भी बाहर निकलता उसे बुरी दिया और अन्य क्षेत्रों में भी पाठशालायें खोली। 1943 तरह से पीटा जाता था। मेहता जी पर पुलिस की निगाह में मेहता जी ने उदयपुर में बनवासी छात्रालय की पहले से ही थी, अत: उनकी जमकर पिटाई हुई व स्थापना की, जिसका शिलान्यास श्री ठक्करबापा ने किया हाथ-पांव तोड़ दिये गये।
था। मेहता जी उम्रभर आदिवासियों में नव जागरण लाने इस प्रदर्शन के परिणामस्वरूप शहर में सात के लिए कार्य करते रहे हैं। 'रैन-बसेरा' के संस्थापक दिन तक पूर्ण हड़ताल रही। अन्त में सरकार को झुकना आप ही हैं। पड़ा और जनता की मांगें स्वीकार कर ली गईं।
आजादी के बाद आप प्रथम लोकसभा के अप्रैल 1938 में मेहता जी के घर पर सदस्य चुने गये। राजस्थान मंत्रिमण्डल में अनेक बार प्रजामण्डल की स्थापना हुई। पांच-सात दिन बाद ही कैबिनेट मंत्री रहे। आप राजस्थान भारत सेवक समाज, सरकार ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया। फलतः सरस्वती पुस्तकालय, नगर विकास न्यास के अध्यक्ष माणिक्य लाल वर्मा को उदयपर रियासत से निर्वासित तथा संसदीय लेखा समिति, राजस्थान विद्यत मण्डल. कर दिया गया। अक्टूबर 1938 में जब प्रजामण्डल भारत साधु समाज, आदि के संयोजक/सदस्य रहे हैं।
आंदोलन उग्र हुआ तो नवम्बर में बलवन्तसिंह जी को प्राकृत और जैन विद्या के अध्ययन-अध्यापन की गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कुछ दिन उदयपुर की व्यवस्था आपने अनेक स्थानों पर कराई। आप प्रताप गिराई की जेल में रखकर फिर सराडा जेल भेज दिया स्मारक मोतीनगरी, वनवासी सेवा संघ, शास्त्री कालेज गया, जहाँ वे एक वर्ष कैद रहे।
जयपुर, गांधी स्मृति मंदिर आदि के संस्थापक हैं। 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में मेहता भामाशाह की मूर्ति तथा भामाशाह मार्केट की स्थापना जी सक्रिय रहे। प्रजामण्डल ने महाराणा को जब 21 भी आपके प्रयासों से हुई है। अगस्त 1942 को अल्टीमेटम दिया तो उसी रात मेहता
मेहता जी का उक्त परिचय प्राप्तकर हम जी गिरफ्तार कर लिये गये। वे उदयपर सेन्टल जेल उनके प्रति नतमस्तक हो गये। आते-आते हमने पंछा तथा इसवाल जेल में डेढ़ वर्ष तक नजरबन्द रहे। कि-'संविधान सभा में आपका क्या योगदान रहा है।'
प्रसिद्ध भील नेता श्री मोतीलाल तेजावत मेहता जी बोले 'मैंने अनेक कानूनों पर चर्चा की थी (जैन) से आप बहत प्रभावित रहे हैं। भोपट में तेजावत पर जब आबू पर्वत गुजरात को दिया जाने लगा तो जी का प्रवेश निषिद्ध था और भील आन्दोलन के साथ मैंने उसका सख्त विरोध किया था। बताइये माउण्ट ए)जी0 जी0 ओगस्वी का जो समझौता हुआ था, उसका आबू को अगर राजस्थान से निकाल दिया जाय तो पालन नहीं हो रहा था। मेहता जी की अध्यक्षता में वया राजस्थान राजस्थान कहा जायेगा?' भोपट में आदिवासियों का एक बृहद् सम्मेलन हुआ मेहता जी का विचार है कि-'बिना जागृति और बैठ-बेगार की शर्ते न मानने पर सम्मेलन ने और संघर्ष के अधिकारों का मिलना मुश्किल है।' मेहता आन्दोलन करने का निर्णय लिया। परिणाम स्वरूप जी बढ़ते भ्रष्टाचार को समाज और देश के लिए भोपट के जागीरदार ने शर्ते स्वीकार कर लीं। परन्तु खतरनाक मानते हैं।
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प्रथम खण्ड
भारतीय संविधान सभा में आपने गहन चर्चा की थी। लगभग पांच पृष्ठ का आपका वक्तव्य संविधान सभा की कार्यवाही में पृष्ठ 4030-4034 पर दर्ज है।
मेहता जी को अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। आजादी की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर आपको संसद के केन्द्रीय कक्ष में सम्मानित किया गया था।
310 0 0,
आरा (1) रा स्वासेच, पृष्ठ-463-465 (2) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ 342 (3) जनसत्ता, दिल्ली, 8-2-1999 तथा 10 2 1999 (4) राष्ट्रदूत, उदयपुर, 29-12-1996 (5) राजस्थान पत्रिका, उदयपुर, 7-8-1994 (6) टाइम्स आफ इण्डिया 21 5 1997 आदि
श्री बलीराम जैन
श्री बन्नीराम जैन का जन्म 1902 में प्रभातपट्टन, जिला - बैतूल (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री नागोबा जैन था। गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी, कर्मठ कार्यकर्ता श्री जैन को 1942 के देशव्यापी भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने पर 2 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
आ) (1) मा) प्र) स्व) सै), भाग-5, पृष्ठ-162
श्री बसन्तलाल जैन
फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री बसन्तलाल जैन ने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया था। 20 अगस्त 1942 को फिरोजाबाद में एक जुलूस निकाला गया जो बड़े चौराहे पर एक सभा के रूप में परिणत हो गया। कोतवाल इम्दाद अली खाँ ने तभी घेरा डालकर आपको गिरफ्तार कर लिया। आप पर आरोप था कि आपने श्री सन्तलाल जैन एवं श्री रामबाबू जैन के साथ डाक बंगला जलाया है। जब अपराध साबित नहीं हो सका तो इस शर्त पर कि 'आप प्रतिदिन थाने में हाजिरी दिया करें 1943 में रिहा कर दिया गया। आपने शर्त नहीं मानी फलतः कुछ दिनों बाद ही पुनः गिरफ्तार कर लिये गये ।
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243
आO (1) जै० स० रा० अ० ( 2 ) उ0 प्र0 जै० भ०, पृष्ठ-91 (3) अमृत, पृष्ठ 24 (4) जै) से० ना० अ०, पृष्ठ-4
श्री बसन्तीलाल जैन
रानापुर, जिला झाबुआ (म0प्र0) के श्री बसन्तीलाल जैन, पुत्र- श्री चम्पालाल जैन का जन्म दिसम्बर 1920 में हुआ। आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रहे। म0प्र0 शासन ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित किया है। आपके अनुज श्री नगीन मल जैन भी स्वाधीनता सेनानी हैं।
आ) - ( 1 ) म० प्र०) स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ - 142
श्री बागमल जैन
-
भोपाल (म0प्र0) के श्री बागमल जैन, पुत्र श्री गुलाबचन्द्र जैन का जन्म 1920 में हुआ। 1940-41 के असहयोग आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा 1949 के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में सक्रिय रहे। कुल 22 दिन का कारावास आपने भोगा।
आ - (1) म) प्र०) स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ 18
श्री बागमल बांठिया
श्री बागमल बांठिया का जन्म 6 अक्टूबर 1924 को कोटा के मध्यमवर्गीय प्रतिष्ठित जैन परिवार में हुआ। उनके पिता श्री कल्याणमल बांठिया राज्य सरकार के कार्यकर्ता थे व सेवानिवृत्त होते समय वे राज्य के एकाउण्टेन्ट जनरल थे। बागमल जी के ताऊ श्री कस्तूरमल बांठिया का जैन
समाज में तो अच्छा स्थान था ही वे हिन्दी के प्रसिद्ध लेखकों में से एक थे। जैन धर्म पर अनेक पुस्तकें उन्होंने लिखीं।
सार्वजनिक जीवन में बागमल जी की अन्य
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244
स्वतंत्रता संग्राम में जैन परिवार के सदस्यों की भांति प्रारम्भ से ही दिलचस्पी में भाग लेने पर उन पर भी पुलिस की एक लाठी थी। पिता ने सरकारी नौकरी करने से पहले कोटा में पड़ी ओर गोली चलाए जाने के कारण उनके पास खादी भंडार खोलने का प्रयास किया था। बागमल जी ही खड़ा एक व्यक्ति मारा गया। के बड़े भाई राजमल बांठिया को 1942 में इंदौर बम्बई से वर्धा लौट आने पर उन्हें पता चला मेडिकल कालेज से स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने कि उनका कालेज सरकार ने सील कर दिया है के कारण निष्कासित कर दिया गया था, जिससे डेढ़ और हास्टल भी खाली करवा लिए हैं। उन्होंने वर्धा साल की पढ़ाई के बाद उनका मेडिकल में ही ठहरकर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेना शुरू कैरियर समाप्त हो गया। उन्हें कालेज में दुबारा कर दिया। वे इस संबंध में हिंगनघाट व पास क दाखिला नहीं मिला।
कुछ गांवों में एक ग्रुप बनाकर गए। वणी की एक उस समय बागमल जी की आयु मात्र 14 वर्ष सभा में उनके भाषण के तुरंत बाद उपस्थित भीड ने की थी जब एक सहपाठी की हैड मास्टर द्वारा बिना पुलिस कर्मियों की पिटाई कर दी। गिरफ्तारी से कारण डंडे से पिटाई कर देने के कारण वह कक्षा बचने के लिए बांठिया जी वर्धा जाकर कोटा लौट से बाहर आ गये। उनके उकसाने पर 5-6 अन्य आए। छात्रों ने भी कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। यह
अगस्त के अंत में जब वे कोटा पहुंचे तब यहां चीज कोटा के लिए उन दिनों अनहोनी सी थी और भी आंदोलन ठंडा पड चका था तब बांठिया जी इसकी खबर अजमेर के एक साप्ताहिक में बागमल अन्य लोगों के साथ इसे पुनरुज्जीवित करने में लग जी का नाम लेते हुए प्रकाशित हुई थी।
गए। जेल में हड़ताल करवाने और आंदोलन में कोटा से 1941 में मैट्रिक करने के बाद वे सक्रिय रहने के कारण पुलिस ने उन्हें 17 सितम्बर कॉमर्स की पढ़ाई के लिए वर्धा गए। वर्धा जाने का को गिरफ्तार कर लिया। जेल में उनके साथ वरिष्ठ मुख्य कारण पास ही सेवाग्राम आश्रम में गांधी जी प्रजामंडल नेता श्री मोतीलाल जैन, प्रमख समाजवादी का निवास था। गांधी जी के प्रति श्रद्धा स्कूल के नेता श्री हीरालाल जैन, कालेज यूनियन के अध्यक्ष दिनों से ही शुरू हो गई थी। वर्धा जाने के बाद हर श्री बजकिशोर मेहरा, किसान नेता श्री रतनलाल सप्ताह सेवाग्राम आश्रम जाना, गांधी जी की प्रार्थना गोठवाल व छात्र नेता श्री टीकमचंद जैन और श्री सभा में हिस्सा लेना बांठिया जी का एक नियम सा नंदलाल पारिख थे। 5 नवम्बर 1942 को उन्हें बिना बन गया था। दो तीन माह में एक बार पवनार शर्त जेल से रिहा कर दिया गया। बांठिया जी द्वारा आश्रम भी चले जाते थे जहां विनोबा जी रह रहे थे। आंदोलन में भाग लेने के कारण उनके पिता की
बांठिया जी ने 1942 के अखिल भारतीय सरकार ने पदावनति कर दी थी। जेल में उन्होंने कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन को प्रेस-पास हासिल अपने साथियों के साथ 3 दिन भूख हड़ताल भी की करके निकट से देखा था। 9 अगस्त को जब श्रीमती थी। अरुणा आसफअली ने सभी प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार जेल से छटने के कछ समय पश्चात वे अपने कर लिए जाने के बाद ग्वालियर टैंक पर झंडारोहण बड़े भाई के साथ करांची के पास स्थित एक शहर किया तब वे भी ग्वालियर टैंक पर उपस्थित थे। मोहतानगर चले गए, जहां उनके ताऊजी श्री कस्तूरमल बम्बई में वे तीन-चार दिन और रुके रहे जहां जुलूस बांठिया एक चीनी मिल के मैंनेजर थे। यहां 2-3
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प्रथम खण्ड
245
माह बाद खबर मिली कि वर्धा का कालेज खुल कार्य भी असफल रहे। वे 1972 में अपने पैतृक गया है अत: आप फरवरी 1943 में पुन: वर्धा लौट स्थान कोटा लौट आए। आए। 1945 के मध्य में उन्होंने वर्धा से बी0कॉम0 तब से आप लगातार कोटा में ही रह रहे हैं। किया। वर्धा में वे छात्र आन्दोलनों में भी अग्रणी रहे। बांठिया जी अविवाहित हैं। उन्हें 1982 से राज्य
एम0 कॉम0 करने के लिए उन्होंने 1945 के सत्र सरकार से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान पेंशन के प्रारम्भ में लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। मिल रही है और ताम्रपत्र भी सरकार द्वारा भेंट किया वहां उस समय 'यूनिवर्सिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन' की जा चुका है। पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष चल रहा था, इसमें उन्होंने
आ0- (1) स्व0 प0 (2) रा0 स्व) से0, पृष्ठ-535 सक्रिय भूमिका निभाई और कुछ ही समय बाद
श्री बापूलाल चौधरी 'लखनऊ स्टूडेन्ट्स कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। श्री बापूलाल चौधरी का जन्म गरोठ जिले आई0एन0ए0 पर चलने वाले मुकदमों के विरोध में (तत्कालीन) के रामपुरा नगर (म0प्र0) में आयोजित छात्र-प्रदर्शन का नेतृत्व करते समय पुलिस
30 जनवरी 1902 को हुआ। लाठी चार्ज में जख्मी हुए व कुछ समय उपचार के
आपके पिता का नाम श्री लिए मेडिकल कालेज हॉस्पिटल में भर्ती करवाए गए।
चम्पालाल चौधरी था। श्री स्वतंत्रता आंदोलन की समाप्ति और अपनी पढ़ाई
बापूलाल चौधरी ने इलाहाबाद पूरी कर लेने के पश्चात् उन्होंने पत्रकारिता क्षेत्र में
विश्वविद्यालय से प्रवेश किया और रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी के
मेट्रिकुलेशन किया। आपने सदस्य बने। 1948 में एक मजदूर आंदोलन में वे
एक निर्भीक, ईमानदार, लखनऊ में जेल भी गए। 1951 में उन्होंने 'नवजीवन' जुझारू एवं सफल वकील के रूप में न केवल हिन्दी दैनिक से त्यागपत्र देकर अपना स्वयं का एक गरोठ जिले में अपितु संपूर्ण होल्कर स्टेट में ख्याति साप्ताहिक पत्र 'मशाल' के नाम से निकाला और
__ अर्जित की थी। गरोठ उस समय इंदौर स्टेट का असेम्बली का चुनाव भी आर0सी0पी0आई0 के जिला मुख्यालय था, स्वराज्य आंदोलन का भी प्रत्याशी के रूप में लड़ा। इन दोनों में उन्हें असफलता
मुख्यालय था, अतः सारी कार्यवाही वहां से संचालित
होती थी। श्री चौधरी, श्री चन्दवासकर, श्री आर0डी0 मिली।
तेलग सारी कार्यवाही का संचालन करते थे। इन आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाने के कारण
तीनों ने मिलकर सारे जिले में स्वराज्य प्राप्ति आंदोलन वे लखनऊ छोड़कर 1953 में दिल्ली आ गए। वहां की अलख जगाई। गांव-गांव घमकर पूरे क्षेत्र का 1959 तक हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान' में काम किया। सर्वे किया तथा फिर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा करके 1959 में 'हिन्दुस्तान' से त्यागपत्र देकर 'इंडियन जगह-जगह संगठन स्थापित किये। एक्सप्रेस' अंग्रेजी दैनिक में चले गए जहां 1969 श्री बापूलाल चौधरी 1920 में इंदौर गये। यह तक कार्यरत रहे। दिल्ली में इसके बाद उन्होंने एक संयोग ही था कि इंदौर में महात्मा गांधी आने अपना प्रेस (साझीदारी में) लगाया और 'चाइस' के वाले थे। उस समय श्री चौधरी की आयु 18 वर्ष थी। नाम से एक अंग्रेजी साप्ताहिक निकाला। ये दोनों मजिस्ट्रेट से सभा के लिए अनुमति मांगी गई थी क्योंकि
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246
स्वतंत्रता संग्राम में जैन बिना अनुमति के सभा करना मना था। अनुमति नहीं दल के मुख्य सचेतक के रूप में कार्य किया। 60 मिली, फिर भी हजारों की संख्या में लोग गांधी जी सालों तक सफलतापूर्वक वकालत करने पर बार को सुनने व देखने आये हुये थे। पुलिस ने चारों ओर एसोसिएशन गरोठ ने आपका अभिनन्दन कर मानपत्र घेरा डाल रखा था। चौधरी जी भी उसी घेरे में घिरे भेंट किया था। थे। गांधी जी ठीक समय पर सभामंच पर आ गये। सार्वजनिक कार्यों में भी आप सदैव अग्रणी रहे। चौधरी जी पर उनके व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा। आपने जिला प्रौढ़ शिक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप गांधी जी का भाषण सुनकर सभा में उपस्थित लोगों में प्रौढ शिक्षा का सफल संचालन किया। आपने गरोठ में भी जोश भर गया। ‘महात्मा गांधी जिन्दाबाद' के में प्राइवेट हाई स्कूल कमेटी बनाई, उसके अध्यक्ष के नारों से सभा क्षेत्र गूंज उठा। सभा-क्षेत्र में विदेशी कपड़ों रूप में आठ सालों तक इसका कुशलता पूर्वक संचालन की होली जलाई गई और खादी पहनने की शपथ ली किया और बाद में उसे शासकीय घोषित करवाया। गई। श्री चौधरी ने भी खादी पहनने का संकल्प लिया अनेक गरीब विद्यार्थी इससे लाभान्वित हुए! आप कई जिसे उन्होंने अंतिम समय तक निभाया। सालों तक नगरपालिका परिषद् गरोठ के अध्यक्ष रहे। ... गरोठ में प्रजामंडल की स्थापना होने पर चौधरी आप मृत्युपर्यन्त बार एसोसिएशन गरोठ के अध्यक्ष रहे। जी उसके अध्यक्ष बने। श्री चौधरी प्रजामंडल की 1988 में आपका देहावसान हो गया। केन्द्रीय समिति के सदस्य भी रहे। इन्होंने सारे गरोठ आ)-(1) स्व) स) म), पृष्ठ 67-69 (2) श्री पी0सी0 जिले में घूमकर प्रचार-प्रसार किया तथा प्रजामण्डल चौधरी, एडवोकेट द्वारा प्रेषित परिचय। का काम सुचारू रूप से चलाते रहे।
श्री बाबु भाई आंदोलनकारियों पर चलाये जाने वाले मुकदमों
इन्दौर (म0प्र0) निवासी श्री बाबू भाई, पुत्र-श्री में श्री चौधरी नि:शुल्क पैरवी करते थे। उनकी संगठन
ईश्वर भाई का जन्म 1911 में हुआ। प्राथमिक शिक्षा क्षमता बड़ी विलक्षण थी जिसे देखकर राष्ट्रीय नेता दांतों
ग्रहण कर आपने 1930 में राष्ट्रीय आंदोलन में भाग तलं उंगली दबा लेते थे। श्री चौधरी एक कुशल
लिया और एक माह सोलह दिन का कारावास भोगा। प्रशासक भी थे, अधिकारी उनसे भय खाते थे। वे
इन्दौर के सर्राफा बाजार में आपकी जैन कैमिस्ट नाम अपने सिद्धान्तों पर हमेशा अडिग रहे।
से दुकान रही है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें शामिल
__ आ0-(1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-4, पृष्ठ-31 नहीं होने दिया गया। उन्होंने गरोठ में प्रदर्शन किया। सारे प्रमुख आंदोलनकारी गिरफ्तार हो चुके थे किन्त
श्री बाबुराम जैन चौधरी जी को भूमिगत होने के लिये विवश कर दिया श्री बाबूराम जैन, पुत्र-श्री बिहारी लाल जैन का गया। कहा गया कि –'आप अन्दर रहेंगे तो आंदोलन जन्म 1918 में पथरिया, जिला-दमोह (म0प्र0) में समाप्त हो जायेगा', अत: उन्हें भूमिगत होना पड़ा। हुआ। आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की। आप उन्होंने अपने गिरफ्तार साथियों के परिवारों की रसगुल्ला बेचने का काम करते थे। साथ में आपके बड़े सहायतार्थ जिले का सघन दौरा करके पर्याप्त धन इकट्ठा भाई श्री राजाराम उर्फ राजेन्द्र कुमार जी भी रहते थे। किया। स्वयं ने भी पर्याप्त धन दिया व सारा धन समान जंगल सत्याग्रह में आपने भाग लिया था और 42 के रूप से साथियों के परिवारों में बंटवा दिया। भारत छोड़ो आन्दोलन में 2 माह 8 दिन का कारावास स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1952 से 1957 तक
भोगा था। राजाराम जी को भी 2 वर्ष 4 माह का आप गरोठ के विधायक रहे और विधान सभा में कांग्रेस कारावास हुआ था।
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प्रथम खण्ड
247 आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-86 (2) हरिजन उद्धार आन्दोलन में भाग लेने के कारण श्री संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय ।
3 बार जेल यात्रा करनी पड़ी। जेल से लौटने के श्री बाबूराम जैन 'कागजी'
पश्चात् आप काफी कमजोर हो गये थे, फिर भी
आपने गाँव-गाँव की जनता को आजादी के लिये 'कागजी' उपनाम से विख्यात मैनपुरी (उ0प्र0)
जगाया। जब आप दूसरी बार जेल गये तब आपकी के श्री बाबूराम जैन का जन्म 1910 में हुआ। 1930
माता जी का स्वर्गवास हो गया। तभी आगने जेल में के स्वदेशी एवं 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में
एक कविता 'बेटों को कारावास माँ का स्वर्गवास' आपने जेल-यात्रायें की थी। प्रादेशिक कांग्रेस सेवादल
का प्रकाशन कराया था। से जुड़े श्री जैन को भारत सरकार ने सम्मान पत्र
होशंगाबाद जिले में खादी प्रचार, शराबबन्दी, प्रदान कर सम्मानित किया था। धार्मिक कार्यों में
राष्ट्रीय एकता आदि कार्यों में आपने बढ़-चढ़कर उत्साह से भाग लेने वाले श्री जैन का 1983 में ।
हिस्सा लिया था। ग्राम सधार केन्द्र बाबई द्वारा निधन हो गया।
उत्पादित खादी का आपने प्रचार किया व इस केन्द्र आ)--(1) जी0 स0 वृ० इ०, पृष्ठ-622 (2) स्वतंत्रता के अध्यक्ष रहे। आपके भाई ने भी जेल यात्रा को संनानी श्री रामस्वरूप जी खैरगढ़ द्वारा प्रेषित परिचया थी। बाबई में एक सार्वजनिक वाचनालय भी आप श्री बाबूलाल घी वाले
चलाते थे। 1932 में एक वर्ष की सजा व 200 देश प्रेम में अपना उन्नतशील व्यापार छोडकर रुपये जुर्माना तथा 1941 में तीन माह की सजा सत्याग्रही बने श्री बाबलाल जैन का जन्म 1915 में आपको हुई थी। 1942 में भी आप जेल गये। स्थिति ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम |
.अच्छी होने के कारण पेंशन लेने से आपने इंकार श्री धरमदास जैन था। 1942 के आंदोलन में करो।
कर दिया था और पुराने रीति-रिवाजों का जमकर या मरो की प्रेरणा पाकर दफा 144 का उल्लंघन
विरोध किया था। आपको एक पुत्र हुआ, उसका करने पर आपको | वर्ष की सजा तथा 100/- रु)
नाम संगठन रखा, किन्तु कुछ समय बाद संगठन का
देहान्त हो गया, जब दूसरा पुत्र हुआ तो उसका नाम गुर्माना हुआ।
भी संगठन रखा। 'अ0 भा0 दिगम्बर जैन परिपद्' आO-(1) 30 सा0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-38
को सफल बनाने में आपका पूरा सहयोग रहा। श्री बाबूलाल जैन डेरिया
परिषद् द्वारा आपकी सेवाओं के लिए सम्मान-पत्र पिता मनूलाल एवं माता जानकी बाई की भेंट किया गया था! सन्तान 'बाबूलाल' सचमुच ही बाबुओं के लाल थे। आपकी मृत्यु 2 नवम्बर 1975 को हो गई। उनकी सामाजिक एवं साहित्यिक सेवाओं से समाज मृत्यु से पूर्व आपने 2 अक्टूबर 1971 को आचार्य आज भी गौरवान्वित है। आपका जन्म 3 मार्च रजनीश का सन्यास धारण कर लिया था। आप 1907 को बाबई ग्राम, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) 'तारण बन्धु' के सम्पादक भी रहे थे। आप साहित्यकार में हुआ। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में एवं कवि भी थे। आपकी हर कविता राष्ट्रीयता से भाग लेने से आपका अध्ययन नहीं हो सका। आप ओत-प्रोत रहती थी। अपने समय के जाने-माने नेता थे। राजनीति के
आO-(1)म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-5, पृष्ठ-334 साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी सक्रिय डेरिया जी को (2) स्वा सं0 हो0, पृष्ठ-115 (3) वि0 अ0, पृष्ठ-393
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प्रमाण-पत्र
248
स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री बाबूलाल जैन
कारण पुलिस ने आपको दि0 15-9-42 को गिरफ्तार श्री बाबूलाल जैन, पुत्र- श्री इन्दीवर, निवासी कर लिया और सागर जेल से 5 माह 22 दिन के गौरझामर, जिला-सागर (म0प्र0) 1931 के आन्दोलन बाद मुक्त किया। में महात्मा गाँधी के आह्वान पर बी0ए0 की पढ़ाई आO-(1) म) प्रा स्का सै), भाग-2, पृष्ठ-46 (2) स्व) ५) छोड़कर स्वतत्रता संग्राम में कूद पडे। आपने धारासणां एव बड़ाला ग्राम के नमक सत्याग्रह के
श्री बाबूलाल जैन लिये कूच किया, किन्तु पुलिस की कृपा से आप
भोपाल (म0प्र0) के श्री बाबूलाल जैन, पुत्र-श्री को बम्बई के हास्पिटल में पहुँचना पड़ा। स्वस्थ
___ गोरेलाल जैन का जन्म 1-1-1927 को हुआ।
स्वाधीनता आन्दोलन में आपने सक्रियता से भाग होने पर फिर बाराडोली की ओर प्रयाण किया और
लिया। म0 प्र0 शासन ने आपको सम्माननिधि देकर वहाँ गिरफ्तार होकर 5 माह तक जेल में रहे। .
सम्मानित किया है। आ0 (1) जै0 सा) रा0 अ0 (2) प0 जै) इ.), पृष्ठ-528
आO-(1) श्री दीपचंद जैन, भोपाल द्वारा प्रेषित तीन श्री बाबूलाल जैन छिन्दबाड़ा (म0प्र0) के श्री बाबूलाल जैन ने त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में कार्य
श्री बाबूलाल जैन
मण्डल कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे श्री बाबूलाल किया तथा भारत छोड़ो आन्दोलन में 9 माह की सजा
जैन, पुत्र-श्री चंदनलाल जैन ग्राम मनेपुर (पुरामना) पाई।
तहसील-किरावली, जिला-आगरा (उ0प्र0) के निवासी आ)-(1) स्वाधीनता आन्दोलन में छिन्दबाड़ा जिले का
तथा आगरा प्रवासी थे। बचपन से ही देशभक्ति की योगदान (टंकित शोध-प्रबन्ध), पृष्ठ-337
भावना से ओतप्रोत तथा कर्मठ और साहसी श्री जैन श्री बाबूलाल जैन
को 1942 के आंदोलन में नजरबंद कर जेल भेज कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री दिया गया था, जहाँ से आप दो माह बाद मुक्त किये बाबूलाल जैन का जन्म 1912 में हुआ। आप जंगल गये । बाद में आपका मन त्याग की ओर लग गया सत्याग्रह में 11 जुलाई 1930 से 10 सितम्बर 1930 फलत: ब्रह्मचारी होकर समाज में जैन धर्म का तक कारावास में रहे।
प्रचार-प्रसार करने में महती भूमिका निभायी। आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-79
आO- (1)-जै0 स) रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 जै0 ध0, श्री बाबूलाल जैन
पृ0-92 (3) प0 इ0, पृ0-140 (4) गो0 अ0 प्र0, पृ0-224 खुरई, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री बाबूलाल
श्री बाबूलाल जैन जैन, पुत्र-श्री खुन्नीलाल जैन पतेरी, जिला- सतना (म0प्र0) के श्री बाबूलाल का जन्म 1916 में हुआ। जैन, पुत्र-श्री गुलाबचन्द जैन का जन्म 1910 में 1942 के भारत छोडो हुआ। माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने 1930 आन्दोलन के समय आपकी से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना प्रारम्भ किया।
प्रतिबन्ध के विरोध में जुलूस निकालने पर 1931 आयु 25 वर्ष की थी। प्रात आन्दोलन में पिकेटिंग, जुलूसों
में आप गिरफ्तार कर लिये गये व 6 माह के व सभाओं में सहयोग देने के
न कारावास की सजा आपको दी गई।
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-266
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प्रथम खण्ड
249 श्री बाबूलाल जैन
गिरफ्तार हुए तथा साढ़े सात माह के कारावास की सीहोर (म0प्र0) के श्री बाबूलाल जैन, पुत्र-श्री सजा आपने काटी। छगनलाल का जन्म 1920 में हआ। भोपाल
आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-79
(2) स्व) स० ज०, पृष्ठ-142 विलीनीकरण आन्दोलन में भाग लेने के कारण दि0 13-1-49 को आप बंदी बनाये गये तथा 6-2-49
श्री बाबूलाल जैन को रिहा हुए।
सागर निवासी तथा जबलपुर प्रवासी श्री बाबूलाल आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सैo, भाग-5, पृष्ठ-48 जैन, पुत्र-श्री फदालीलाल ने 1932 के आन्दोलन में श्री बाबूलाल जैन
भाग लिया और 4 माह का कारावास भोगा। श्री बाबूलाल जैन, पत्र-श्री डौनी लाल शहडोल आ0- (1) आ0 दी0, पृष्ठ-64, (2)-म0 प्र0 स्व0 सै0,
भाग-2, पृष्ठ-47 (म0प्र0) के निवासी थे। श्री जैन का जन्म 1882 में हुआ था। आपने प्राथमिक शिक्षा ही ग्रहण कर पायी।
श्री बाबूलाल जैन अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकना ही आपका
ग्रम-सिलौड़ी (जबलपुर) एकमात्र ध्येय था, यही कारण था कि आपने 1942
म0प्र0 के श्री बाबूलाल जैन, के आन्दोलन के समय बारफंड की सभा में अवरोध
पुत्र-श्री बिहारी लाल का जन्म पैदा किया, इस अपराध में आपको 4 माह की सजा
1896 ई0 में हुआ। भारत मिली। आपने यह सजा रीवां जेल में काटी।
छोड़ो आन्दोलन में 19 ____ आ0- (1) स्वा0 आ0 श0, पृष्ठ-150 (2) म0 प्र0
दिसम्बर 1942 से 18 स्व) सै0, भाग-5, पृष्ठ-313
1 फरवरी 1943 तक लगभग 2 श्री बाबूलाल जैन
माह का कारावास तथा 25 रु0 अर्थ दण्ड आपने भोगा। गाडरवारा, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के विधि आo-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-79 स्नातक श्री बाबूलाल जैन, पुत्र-श्री दामोदर प्रसाद का (2) अनेक प्रमाणपत्र (3) देखें पीछे प्रकाशित सिलौड़ी के शहीद जन्म 22 जुलाई 1919 को हुआ। आपने 1937 से स्तम्भ का चित्र स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था।
श्री बाबूलाल जैन विद्यार्थी कांग्रेस संगठन, किसान समाज, हरिजन उत्थान __ श्री बाबूलाल जैन का जन्म 1920 में सागर
आदि कार्यक्रमों में आपकी विशेष रुचि थी। 1942 (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री सुखराम में 1 वर्ष 6 माह का कारावास आपने भोगा। था। आपने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया तथा आ0--(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-147 - 23 सितम्बर 1942 से 3 जनवरी 1943 तक कारावास
में रहे। श्री बाबूलाल जैन
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-47 जबलपुर (म0प्र0) के श्री बाबूलाल जैन, पुत्र-श्री नन्हेलाल जैन का जन्म 1921 में जबलपुर में हुआ। श्री बाबूलाल जैन (पथरिया वाले) क्रान्तिकारी साहित्य का वितरण कर राष्ट्रीय कार्य में श्री बाबूलाल जैन के पूर्वज सिंघई वंशीधर जी आपने बड़ा योगदान दिया। भारत छोड़ो आन्दोलन के मैहर रियासत के कोषाध्यक्ष थे। 1857 में रियासत द्वारा समय आपत्तिजनक पर्चे वितरित करने पर आप अंग्रेजों का साथ दिये जाने के कारण आपने उसका
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250
स्वतंत्रता संग्राम में जैन विरोध किया अत: रियासत द्वारा निकाल दिये जाने श्री बाबूलाल जैन (मोदी) से सिंघई जी जबलपुर में रहने लगे थे। विद्रोही होने
पूज्य बापू के साथ दो दिन पैदल यात्रा का सुयोग से जबलपुर में भी अधिक न टिक सके और दमोह पाने वाले श्री बाबूलाल जैन, पुत्र- श्री प्यारे लाल का में आकर बस गये, जहाँ दि0 25-12-1898
जन्म 1898 ई0 में पटना (अथवा 1896) को बाबूलाल जी का जन्म हुआ।
बुजुर्ग, तहसील रहली, जिलापिता का नाम श्री गिरधारी लाल जैन था। पथरिया के
सागर (म0प्र0) में हुआ। श्री कन्छेटीलाल मास्टर की इकलौती पुत्री तुलसी बाई
1942 के आंदोलन में आपने से विवाह होने पर पथरिया आपका स्थायी निवास हो
भाग लिया और 25 दिन गया. परन्त रक्त में प्रवाहित देश-प्रेम की भावना उत्ताल तर लेती रही, फलतः नमक आन्दोलन में आपने
नजरबंदी में रहे। आपके भाग लिया, गिरफ्तार होने से बच गये पर 1930 के
परिवारजनों ने लिखा है कि वे जंगल सत्याग्रह में आपको एक दिन की सजा के साथ
दो दिन गांधी जी के साथ पूरे 40/- रु.) जुर्माना हुआ। इसके बाद आन्दोलन का केन्द्र ।
को सागर क्षेत्र में घूमे थे। सबसे विकट दशा तो तब हुई आपका घर बन गया।
थी जब उन्हें रहली से सागर तक पैदल ही हथकड़ी 1942 में मंडल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पहनाकर ले जाया गया था। म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-2, रूप में आमसभा में दि0 14-8-42 को भाषण देते पृष्ठ-47 के अनुसार आप सेठ कहलाते थे। 1955 समय आपको पकडकर सागर जेल भेज दिया गया। में आपका स्वर्गवास हो गया। बुलेटिन पोस्टर आदि बाँटने के आरोप में आपके ज्येष्ठ
आ0- (1)म) प्र) स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-47 (2)
स्वा) प0 (3) पर) जै।) इ), पृ.)-527 पुत्र पदमचन्द को भी पकड़ लिया गया। परन्तु उसे पुलिस थाने से छोड़ दिया गया। सागर से आपको नागपुर
श्री बाबूलाल जैन जेल भेजा गया, जहाँ सेठ गोविन्द दास, विनोबा भावे,
श्री बाबूलाल जैन, पुत्र-श्री सूरजमल जैन बृजलाल वियाणी, कुमारप्पा आदि महापुरुषों से आपकी भेंट हुई। मुकदमा चलाने के लिए फिर सागर भेजा का जन्म 1925 में ग्राम-रुसल्ली, जिला-विदिशा गया। दि) 4-1-43 को और एक वर्ष की सश्रम
(म0 प्र0) में हुआ। बाद में कारावास की सजा दी गई। जेल से छूटने पर पथरिया
आप ग्राम-दाहौद, तहसीलकी जनता ने आपका भव्य स्वागत किया। 1945 में
गौहरगंज, जिला-रायसेन आप ध्वज फहराते हुए गिरफ्तार हुए तथा 15 दिन
(म0प्र0) में रहने लगे। आपने तक हिरासत में रहे।
जैन समाज के प्रसिद्ध श्री जैन का शेष जीवन और घर भारत माँ की
गुरुकुल, चौरासी, मथुरा में सेवा का कार्यालय ही बना रहा। देश के हर कार्य में
शिक्षा प्राप्त की। आप आगे रहे। आजादी के बाद आप जनपद एवं ग्राम
1948-1949 के भोपाल पंचायत के विभिन्न पदों पर रहे। 85 वर्ष की आय विलीनीकरण आन्दोलन में आपने भाग लिया, गिरफ्तार में दि) ।6-3-83 को समता पूर्वक पद्मासन पर हुए और सरकारी रिकार्ड के अनुसार तीन दिन जेल बैठकर तथा सत्व को हाथ जोड़कर आपने इस नश्वर देह की यातनायें सहन की। श्री प्रकाश चंद सेठी के को त्यागा।
मुख्यमंत्रित्व काल में आपको प्रशस्तिपत्र प्रदान कर आ0- (1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-86 (2) सम्मानित किया गया था। श्री संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय।
आ0-(1) म) प्र) स्व) सै), भाग-5, पृष्ठ-75 (2) स्व) )
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प्रथम खण्ड
251
श्री बाबूलाल जैन 'रत्न' में प्रवेश करने से पहिले ही पुलिस ने पकड़ लिया। क्रांतिकारी, धुन के पक्के श्री बाबू लाल जैन का मेरा झंडा छीनकर झंडे के डंडे से मारते हुए बाहर जन्म ग्राम- नैनपुर, जिला- मण्डला (म0प्र0) में कर दिया। थाने में बंद करके भी मारा, जिससे मेरे
1 28-12-1912 को हरप्रसाद दांऐ पैर के घुटने की हड्डी टूट गयी थी जिससे यह
जी के घर हुआ। जेलर पैर अब भी टेढ़ा है। द्वारा माफीनामा लिखकर देने 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में नैनपुर से पर छोड़ देने के आश्वासन 22 दिन की स्वयंसेवक की ट्रेनिंग लेकर जनता की के बाद भी आपने माफीनामा नि:शुल्क सेवा करने हेतु मैं गया था। मेरी सेवा से नहीं लिखा और अवधि पूरी प्रभावित होकर श्री अब्दुल गफ्फार गांधी ने मंच पर
होने तक जेल की यातना बुलाकर मेरी प्रशंसा की थी। अधिवेशन के अध्यक्ष झली। बाबूलाल जी ने अपना राजनैतिक परिचय निम्न नेताजी सुभाषचंद बोस थे। पक्तियों में गूंथा है
1942 में बापू जी के असहयोग आंदोलन में "सन् 1926 में श्रीमान् मौ) अली, श्री सौकत मैंने भाग लिया। 12-13 अगस्त को तिरंगा झंडा लेकर अली एवं कांग्रेस के अन्य कार्यकर्ता कांग्रेस के प्रचार जुलूस निकाला, तब पुलिस की मार पड़ी। 14 ता0 हेतु जब नैनपुर पधारे थे, तब उन्होंने जुलूस में आगे-आगे के सुबह रेलवे प्लेटफार्म पर पुलिस ने मजिस्ट्रेट द्वारा मुझे राष्ट्रीय गीत गाने को बुलाया था। मैंने गाया भी वारंट बताकर गिरफ्तार कर लिया और ट्रेन से अन्य था। उस समय के विशेष गीत की मुझे दो पंक्तियां दो साथियों श्री कौशल प्रसाद तिवारी और श्री गणेश अब भी याद हैं
नारायण खंडेलवाल के साथ मंडला जेल भेज दिया। 'बोली अम्मा मुहोम्मद अली की, डिप्टी कलेक्टर मंडला द्वारा 6 माह की सख्त सजा जान बेटा खिलाफत में दे दो। दी गयी, मेरे भाई पैरवी के लिये एक वकील लाए साथ तेरे हैं, सौकत अली भी,
थे. मैंने पैरवी कराने से इंकार कर दिया था। जान बेटा खिलाफत में दे दो।।'
जेल से छूटने के एक माह पूर्व श्री एस0सी0 इस तरह हाथ में तिरंगा झंडा लेकर राष्ट्रीय गीत नेहाल जेलर ने आफिस में बुलाकर मुझसे कहा किगाते हए जलस के आगे-आगे चलता था, उसी समय 'आपके पिता की तबियत बहुत खराब है। आपके जेल से मैंने राजनीति में प्रवेश किया।
आने के बाद से ही वे बहुत बीमार हैं। आप एक 1930 में मैंने श्री केशवराव इंगले के नेतत्व में माफीनामा लिखकर दे दो तो आपको छुट्टी दे दी शराब की दुकानों पर धरना दिया था एवं विदेशी वस्त्रों जायेगी' मैंने जवाब दिया कि पिताजी तो क्या यदि की होली जलाई थी। 1930 में सभाषचंद बोस को पूरा परिवार भी समाप्त हो जाये तो भी मैं माफीनामा मंडला जेल से सिवनी जेल में रेलवे से ले जाते समय नहीं दूंगा। उनके दर्शनार्थ प्लेटफार्म के बाहर हजारों लोगों की मेरे जेल से आने के 25 दिन पश्चात् पिताजी भीड़ एकत्रित थी। पुलिस द्वारा प्लेटफार्म पर जाने की की मृत्यु हो गई। मेरी जो किराने की दुकान थी, लंबे मनाही थी। तब मैं पुलिस की निगाह बचाकर हाथ समय तक बंद रहने के कारण सारा सामान खराब में झंडा लेकर नेता जी के डिब्बे तक पहुंच गया। डिब्बे हो गया, दुकान में चोरी भी हो गई, इस कारण दुकान
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252
स्वतंत्रता संग्राम में जैन भी बंद हो गई। इस प्रकार जेल से आने के बाद मुझे आपने स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया था। 1941 बहुत कष्ट उठाने पड़े। देश के आजाद होने के बाद में महायुद्ध में अंग्रेजों की मदद न करने का संदेश आज भी में समाज एवं देशसेवा में संलग्न हूँ। पद लेकर आप गांव-गाव घूमे, गिरफ्तार हुए, परन्तु की कभी चाह नहीं रही। जैन समाज की सेवा भी सबूत न मिलने के कारण छोड़ दिये गये। 1942 यथाशक्ति करता रहा हूँ। पराधीनता के दिनों का स्मरण के आंदोलन में 13 अगस्त को आप गिरफ्तार हुए और कर प्रभु से यही प्रार्थना करता हूँ कि किसी देश को पहले सागर फिर नागपुर जेल भेज दिये गये, पुनः कभी पराधीन न बनायें।"
मुकदमा के लिए सागर जेल लाये गये। 4 जून 1943
को आप रिहा हुए। आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-210
दमोह जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री रहे (2) जै0 स0 रा0 अ0 (3) स्व0 प0
पलन्दी जी जैन समाज के प्रत्येक कार्य में अग्रणी रहते श्री बाबूलाल झाझरिया
थे। अपनी मृत्यु के समय 26-3-1985 तक आप इन्दौर (म0प्र0) के श्री बाबूलाल झांझरिया,
'कमला नेहरू कालेज' के सचिव एवं स्वतंत्रता संग्राम
सैनिक संघ' दमोह के उपाध्यक्ष रहे थे। पुत्र- श्री पन्नालाल का जन्म 10 अक्टूबर 1924 को
__ आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-86 हुआ। आपने बी0एस0सी0, एम0ए0, एल0एल0बी0
(2) श्री संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय की परीक्षायें उत्तीर्ण की। 1942 के आन्दोलन में भाग लेने के कारण 3 सप्ताह का कारावास आपने 'पद्मश्री' बाबूलाल पाटोदी भोगा। विद्यार्थी अवस्था से हो आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्ति नहीं संस्था' के रूप में विख्यात जैन विभिन्न गतिविधियों में आप संलग्न रहे। आपके समाज के प्रतिभावान, निर्भीक,कर्मठ, लोकप्रिय नायक, अन्य दो भाई भी जेलयात्री रहे हैं।
अमृत पुरुष, 'पद्मश्री' से आO-(1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-32
सम्मानित श्री बाबूलाल पाटोदी श्री बाबूलाल पलन्दी
का जन्म ग्राम-सू मठा, दमोह (म0 प्र0) के श्री बाबूलाल पलन्दी
तहसील-देवालपुर, जिलाका जन्म 4-2-1920 को श्री नाथूराम पलन्दी के घर
इन्दौर (म0प्र0) में 15 जून
1920 को पिता श्री छोगा हुआ। 1932 में जंगल
लाल पाटोदी के घर हुआ। सत्याग्रह में भाग लेने के
1936 में अजमेर बोर्ड से मैट्रिकुलेशन परीक्षा पास कारण न्यायाधीश जगन्नाथ प्रसाद ने पलन्दी जी को
कर आप कपड़ा मार्केट में फर्म दुलीचंद वीरचंद के
यहाँ सेवायोजित हुए। 1940 में नौकरी छोड़कर कपड़ा अदालत उठने तक की सजा दी थी, फलतः शासकीय
मार्केट इन्दौर में स्वतंत्र व्यवसाय प्रारम्भ किया। विद्यालय से भी आपको धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र के निकाल दिया गया।
सम्यक् अनुशास्ता पाटोदी जी की राजनैतिक क्षेत्र में पलन्दी जी श्री रघवर प्रसाद मोदी से अविस्मरणीय सेवायें रहीं हैं। आप जीवन के प्रारम्भिक अत्यधिक प्रभावित रहे। 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस में काल से ही कांग्रेस के निष्ठावान एवं सक्रिय सदस्य
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प्रथम खण्ड
253 रहे हैं। 1938 में वस्त्र व्यवसाय हेतु आपने रंगून की है, और वह करना आवश्यक भी होता है, लेकिन मैं यात्रा की थी। 1939 में तत्कालीन इन्दौर रियासत द्वारा आपको कह सकता हूँ ईमानदारी के साथ, कि मैंने जलकर के विरोध में जनहित में आंदोलन किया एवं राजनीति में रहकर भी हमारे जो बड़े नेता थे, उनकी हड़तालों में प्रमुख रूप से भाग लिया। प्रजामण्डल चाटुकारिता नहीं की। बावजूद इस सबके भी मैंने हमेशा आन्दोलन में भी आपने सक्रिय भाग लिया था। राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखा और जब कभी भी मेरी
103) से ही आप स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय पार्टी पर-मेरे पक्ष पर विरुद्ध पक्ष की तरफ से कोई हो गये थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी तीखे प्रहार होते थे, तो सरकार या मेरी पार्टी मुझे ही आपने सक्रियता से भाग लिया। फलत: गिरफ्तार हुए हमेशा खड़ा करती थी कि मैं उनके उत्तर देकर उनकी और 15 माह जेल की दारुण यातनायें सहीं। इससे समझाइस करूँ।' पूर्व भी लगभग 6 माह की जेल-यात्रायें आप कर चुके राजनीति में रहते हुए भी आपने चरित्र को सबसे थे। आप इन्दौर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मानपुर, महिदपुर ऊँचा माना। आपके अनुसार उसी चरित्र के बल पर आदि जेलों में रहे थे। 1947 में तत्कालीन इन्दौर समाज के बढे काम' कर सके हैं। आजादी के रियासत में 'आजादी दो' आन्दोलन के तार तम्य में तत्काल बाद 1948 और फिर 1952 में आप इन्दौर आपने राजमहल 'माणिक बाग' का घेराव किया था। नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गये। 1954-56 में म0
चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी पाटोदी जी अपना प्र0 कांग्रेस कमेटी के महामंत्री और 1957 में इन्दौर प्रेरणा स्रोत श्री मिश्रीलाल गंगवाल (पूर्व मुख्यमंत्री, में सम्पन्न हुए अ0भा0कांग्रेस के अधिवेशन के आप मध्यभारत) और बाबू लाभचंद जी को मानते हैं। इस स्वागत समिति के महामंत्री थे। 1957 और 1962 में सदर्भ में 18 मई 1995 को डॉ0 विक्रम जैन को आप म0 प्र0 विधान सभा के विधायक निर्वाचित हुए। दिये एक साक्षात्कार में आपने कहा है
1957 में आप लोक लेखा समिति तथा परिसीमन __ 'याद करता हूँ मैं बाबू लाभचंद जी और आयोग के सदस्य रहे। आप इन्दौर विश्वविद्यालय मिश्रीलाल जी गंगवाल को, जिन्होंने राजनीति में प्रवेश (वर्तमान नाम-देवी अहिल्या विश्व- विद्यालय) विध दिलाया। राजनीति में भी मैंने जमकर काम किया। कांग्रेस यक प्रबर समिति के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। का जनरल सेक्रेट्री रहा, प्रजामण्डल का प्रेसीडेन्ट रहा, वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और पुनः राजनीति अ)भा() कांग्रेस के (इन्दौर) महाधिवेशन का जनरल में आने के प्रश्न पर आपने कहा-'आज की जो सेक्रेटी रहा। ..................उसके बाद लोगों ने मुझे राजनीति है. वह वह राजनीति नहीं कि जिस वक्त हमने म्युनिसीपाल्टी में चुना, विधानसभा में चुना, वहाँ पर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। एक स्वतंत्रता भी मैंने अपनी पूरी शक्ति के साथ इन्दौर के एक सही संग्राम के सैनिक बनकर हम स्वराज्य प्राप्ति के लिए प्रतिनिधि के नाते काम किया। राजनीति के अन्दर इस देश के अन्दर कूदे थे। आज की राजनीति पावर रचपच गया।'
के पीछे है। आज जो व्यक्ति राजनीति में प्रवेश करता तत्कालीन राजनैतिक उठापटक के समय भी है, वह इसलिए करता है कि कल उसे कोई पद आप पूर्णत: ईमानदार रहे, जो आपके जीवन का सबसे मिलेगा और उसके लिए वह उठापटक करता है। यहाँ उजला पृष्ठ है। राष्ट्रहित को सदैव सर्वोपरि मानने वाले तक कि हम देखते हैं कि रोज मारपीट-छुरेबाजी भी पाटोदी जी के विचार हैं-- 'राजनीति में उठापटक होती होती है।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
मैं जब तक राजनीति में था, उठापटक भी यदि में कराया, तभी से आपका जीवन राजनीति से धर्म कोई होती थी, तो बहुत ही मर्यादा के साथ होती थी। की ओर मुड़ गया। आपने स्वयं स्वीकार किया है कि कभी राजनीति के अन्दर हमने विरोधी पक्ष वालों से -'उसके बाद अनेक अवसर चुनाव लड़ने के आये भी संघर्ष नहीं किया। हमारा जो भी संघर्ष रहता था, पर मेरे हृदय ने राजनीति में जाना स्वीकार नहीं किया। वह नीतियों का रहता था। द्वन्द-युद्ध नहीं होता था और उन महाराज (विद्यानन्द जी) के आशीर्वाद स्वरूप मैंने हम लोग आपस में मिल-जुलकर प्रेम और सद्भाव राजनीति के गन्दे नाले को छोड़कर उनके चिन्तन में से व्यवहार करते थे। वह राजनीति आज समाप्त हो प्रवेश किया।' गई है। इसलिए जीवन में कभी कल्पना भी नहीं कर सदैव स्पष्ट और निर्भीक वक्ता पाटोदी जी इन्दौर सकता कि कोई सन्त, यदि वह सन्त है, तो मुझे कभी एवं देश की लगभग 100 संस्थाओं से जुड़े है। 1957 कहेगा कि तुम पुनः राजनीति में आओ........... अगर में आपने इन्दौर नगर में विभिन्न अशासकीय कोई कह भी दे, तो आज की स्थिति में तो मैं राजनीति महाविद्यालयों की स्थापना की और कराई। इन्दौर में प्रवेश नहीं करूंगा।'
विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु अर्थसंग्रह के आप सिर पर सदैव गांधी टोपी और खद्दर के कपड़े प्रमुख कर्ता-धर्ता थे। इन्दौर में अशासकीय क्षेत्र में धारण करने वाले पाटोदी जी ने इसका कारण पॉलिटेकनिक की स्थापना आपने ही करवायी थी। अन्य बताया -'गांधी जी की एक आंधी चली थी। इस गांध प्रमुख सामाजिक कार्य हैं - कैंसर चिकित्सालय एवं ो की आंधी ने देश के नौजवानों के रक्त के अन्दर दन्त चिकित्सा महाविद्यालय के निर्माण में योगदान, एक नया प्रवाह दिया था। उस प्रवाह का यह परिणाम इन्दौर में नर्मदा लाने का प्रयत्न. 'माता विजासन' की था कि हमने बहुत कम उम्र में यानी जब मैं 19 साल टेकरी के निर्माण हेतु प्रयास, श्री बाल विनय मन्दिर', का था, तब गांधी जी के आन्दोलन से प्रेरित होकर 'देवी अहिल्या शिशु विहार,' 'श्री क्लाथ मार्केट कन्या यह नियम लिया कि हम हथकती खादी ही पहनेंगे। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय' एवं 'कन्या वाणिज्य तब से आज तक मुझे याद नहीं आता कि मैंने खादी . महाविद्यालय' की स्थापना एवं संचालन। इन्दौर क्लाथ के सिवाय किसी दूसरे वस्त्र को धारण किया होगा। मार्केट कोआपराबैंलि0 की स्थापना एवं अध्यक्षता, .......... यह टोपी मेरी नहीं, गांधी की टोपी है। इस 'सरूपचंद हुकुमचंद पारमार्थिक ट्रस्ट' एवं 'त्रिलोक चंद टोपी को मैं जीवन भर इज्जत के साथ निभाऊँगा, ऐसा कल्याण मल ट्रस्ट' के ट्रस्टी के रूप में अनेक मेरा विचार है, प्रण है।'
पारमार्थिक संस्थाओं का संचालन। मुक्ताकाश रंगमंच सक्रिय रचनात्मक ऊर्जा के धनी पाटोदी जी की स्थापना, गुमाश्तानगर एवं नेमीनगर की स्थापना 1971 में राजनीति से हटकर समाजसेवा के कार्य में आदि। आये, वहाँ भी आप ऊँचाइयों की चरम सीमा पर पहुंचे। जैन समाजसेवी के रूप में पाटोदी जी युगों युगों समाज विशेषत: जैन समाज के आप कण्ठहार हैं। तक स्मरण किये जायेंगे। आप अ0भा0 दि0 जैन समाजसेवा की ओर मोडने का श्रेय आप पूज्य आचार्य महासमिति के अनेक वर्षों तक महामंत्री रहे हैं। इन्दौर विद्यानन्द जी महाराज को देते हैं। 1967 में जब आप में गोम्मटगिरि नामक नवीन तीर्थक्षेत्र की स्थापना आपके विधान सभा चुनाव हार गये तब आचार्य श्री के पास अथक परिश्रम का मूर्तरूप है। बावनगजा की 84 फुट आगरा गये और फिर आचार्य श्री का चातुर्मास इन्दौर ऊँची भ) आदिनाथ की प्रतिमा के जीर्णोद्धार में भी
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प्रथम खण्ड
255
आपने महती भूमिका निभाई है। स्वयं आपके शब्दों
श्री बाबूलाल मलैया
गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री ___'गोम्मटगिरि तीर्थ की स्थापना मेरे जीवन की बाबूलाल मलैया, पुत्र- श्री दरबारीलाल ने 1932 के अद्भुत उपलब्धि है........ बावनगजा की विशाल मूर्ति स्वतंत्रता संग्राम में 5 माह का कारावास भोगा। का जीर्णोद्धार मेरे जीवन की प्रमुख उपलब्धियाँ मानता 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी आप नजरबंद हूँ' (वीर निकलक, मई 1995)
रहे थे।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-47 एक साथ, इतनी संस्थाओं का संचालन आप ।
17 (2) आ0 दी0, पृष्ठ-64 कैसे कर लेते हैं यह पूछे जाने पर आपने एक साक्षात्कार में कहा है--
श्री बाबूलाल संघी ____ 'सही व्यक्ति का चुनाव, लक्ष्य के प्रति समर्पण
गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी और और दृढ़ आत्मविश्वास एवं आत्मिक बल मेरी सफलता
जबलपुर प्रवासी श्री बाबूलाल संघी का जन्म प्रतिष्ठित के कारण हैं। खुली आंख और खुले कान नेतृत्व को
को जैन परिवार में 1908 में हुआ। आपके पिता का नाम रखना चाहिए।'
श्री मन्नूलाल था। 1930 और 1932 के आन्दोलन
में आपने भाग लिया, फलत: गिरफ्तार हुए और सागर वाणी के जादूगर श्रद्धे य पाटोदी जी को
जेल में 4 माह का कारावास आपने भोगा। 1985 के सम्मान और पुरस्कार देकर राष्ट्र / समाज ने
आसपास आपका निधन हो गया। उनकी सेवाओं की सराहना की है। 26 जनवरी 1991
आ0- (1) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-79 (2) को भारत सरकार ने आपकी नि:स्वार्थ सेवाओं के लिए सिंघई रतनचंद जी द्वारा प्रेपित विवरण ( 3 ) स्व0 स) जा), पृष्ठ-143 'पद्मश्री' प्रदान की। 1993 में श्रवणबेलगोल में भगवान् गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अवसर
श्री बाबूलाल सिंघई
आरी, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री सिंघई पर लाखों लोगों की उपस्थिति में 'समाजरत्न' की उपाधि
बाबूलाल, पुत्र-श्री सुखलाल 1920 से रा० आ0 में से अलंकृत किया गया था। मई 1995 में पचहत्तर
पचहतर कार्य करते रहे। 1941 में आप नजरबंद रहे। 1942 वर्ष पूर्ति प्रसंग-(अमृत महोत्सव) पर एक 'अन्तरंग में गांधी जी के आह्वान पर जब सारा देश 'करो या ग्रन्थ 'भेंट कर आपका सम्मान किया गया था। इस मरो' की भावना से आंदोलन कर रहा था, तब आप ग्रन्थ में जैन समाज के शीर्ष नेता साहू अशोक कुमार आन्दोलन में कूद पड़े और 18 दिन की जेल यात्रा जैन ने ठीक ही कहा है-'जब तक गोम्मटगिरि के शृंग की। रचनात्मक कार्यों में रुचि रखने वाले सिंघई जी उन्नत हैं और बाबनगजा के आदिनाथ की मनोहारी शुद्ध खादी के विक्रेता रहे हैं। छवि अंकित है, तब तक अमृत पुरुष पाटोदी जी की आ0- (1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-334 कीर्ति पताका फहराती रहेगी।'
(2) स्व) स) हा0, पृष्ठ-114 आ)- (1) म0 प्र) स्व० से), भाग-4, पृष्ठ-31 (2)
डॉ० बालचंद जैन जै!) स) ४) इ), पृ0-5010 (3) जैन संदेश, 18 अप्रैल 1991 (4) वीर निकलंक, मई 1995 (5) श्री बाबूलाल पाटोदी अन्तरंग
राष्ट्रीय आंदोलन की स्मृतियों को अपने हृदय में ग्रन्थ 1995 (6) दैनिक भास्कर, इन्दौर, 15 अगस्त 1997 (7) आज भी संजोकर रखने वाले श्री बालचंद जैन का चौथा संसार, इन्दौर, 22 अगस्त 1997
जन्म 15 अक्टूबर 1919 को सागर (म0प्र0) में
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन हुआ। आपके पिता का नाम मैट्रिक पास करने के बाद मैंने बनारस हिन्दू श्री कुन्दन लाल जैन था। विश्वविद्यालय में कला विषय में प्रवेश लिया। वहीं आपने पी एच0डी0 की से स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ा। वहां के मेरे समकालीन उपाधि प्राप्त की है तथा साथियों में श्री राजनारायण भी थे। छात्र-आन्दोलन के अनेक पुस्तकों का लेखन और माध्यम से ही मैं बनारस में पं0 कमलापति त्रिपाठी, संपादन किया है। अपने डॉ0 सम्पूर्णानन्द, आचार्य नरेन्द्रदेव जी, श्री श्रीप्रकाश
राजनैतिक जीवन का जी आदि के सम्पर्क में आया। इन्हीं दिनों मेरे पड़ोस परिचय देते हुये आप स्मृतियों में खो जाते हैं। आपने में पं0 जयचंद जी विद्यालंकार रहते थे, जो लाहौर के लिखा है
नेशनल कॉलिज में अमर शहीद भगतसिंह के गुरु रहे 'पूरा देश देश-प्रेम की भावना से उमड़ रहा था। थे। इन्हीं की प्रेरणा से मैं तभी से क्रान्तिकारी गतिविधि "मेरा रंग दे बसन्ती चोला मां............" के उद्घोष यों में संलग्न हो गया। सन् 1942 की अगस्त क्रान्ति से पूरा देश गुंजायमान हो रहा था। इस देश की सदियों के समय पं0 जयचन्द जी के आदेशानुसार संदेशों का की दासता से सुप्त पड़ी रागिनी के तार पुनः झंकृत आदान-प्रदान और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त तथा बर्मा हो रहे थे। स्वदेशी आन्दोलन ने पूरे देश को झकझोर फ्रन्ट से शस्त्रास्त्र लाना तथा उनको संग्रहीत कर उनके दिया था। विलायती चीजों, विशेषत: वस्त्रों, की होली उपयोग के समय आदान-प्रदान करने का कार्य गांव-गांव तक फैल गई थी। तब मैं गांव के एकमात्र मेरी जिम्मेदारी थी। संग्रहीत करने का कार्य भदैनी प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। उसी समय से देश-प्रेम स्थित एक जैन मन्दिर (छेदी लाल का मंदिर) का के बीज अंकुरित हुए। प्राइमरी की परीक्षा उत्तीर्ण होने तलघर था। के बाद आगे की पढ़ाई के लिये बनारस भेज दिया हमारे एक कार्यकर्ता की कमजोरी के कारण गया। उस समय गांव से बाहर जाना एक अदभत तथा पुलिस को पता चल गया। इस प्रकार एक वर्ष तक निराली घटना मानी जाती थी। बनारस ने मेरे सामने अगस्त 1942 से अगस्त 1943 तक मैं अन्डर ग्राऊण्ड अध्ययन, (पूर्वीय और पाश्चात्य दोनों) के कपाट खोल की गतिविधियों में संलग्न रहा था। 1943 में मैं गिरफ्तार दिये। यह एक नक्षत्र ही नहीं, एक समूचा आकाश हो गया। गिरफ्तारी के समय मेरे पास से मात्र एक
था। पश्चिमीकरण और पुनर्जागरण की दोनों बड़ा चाकू बरामद हुआ था। गिरफ्तार कर मुझे बनारस विचाराधाराओं ने मुझे प्रभावित किया। यह इन परस्पर की चौक में स्थित कोतवाली पुलिस थाना के लॉक-अप विरोधी विचारधाराओं के संगम का युग था।
में अगस्त-सितम्बर 1943 के दो महीनों के बाद, प्रारंभ में मझे बनारस के भदैनी महल्ला में स्थित 4-10-1943 को शस्त्र अधिनियम के तहत बनारस स्याद्वाद जैन विद्यालय में स्थान मिला। जैन धर्म-दर्शन की जिला जेल भेज दिया गया। के अध्ययन के लिये ही मझे बनारस भेजा गया था। प्रारंभ में विचाराधीन कैदी के रूप में मुझे अन्य लेकिन वहां रहते हए ज्ञान-विज्ञान की अन्य विद्याओं कैदियों से अलग एक कोठरी में रखा गया, जहां के द्वार खल गये। फलत: मैंने जैनधर्म-दर्शन के हथकड़ी और बेडिया ही मेरी साथिन थीं। अध्ययन के अतिरिक्त संस्कृत के व्याकरण और साहित्य विचाराधीन कैदी के रूप में दो माह तक अलग कोठरी के साथ अंग्रेजी के पढने का परा लाभ उठाया। में रखने के बाद पयाप्त साक्ष्य न मिलने के कारण मझे
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प्रथम खण्ड
257
अन्य नजरबन्द कैदियों के साथ बैरक में भेज दिया अपने देश के इतिहास की उस दहलीज पर खड़े हैं गया। इस बैरक में हम सभी काशी विश्वविद्यालय जहां स्वर्ग से वे लोग हमारे करम- धरम पर हंस रहे के छात्र थे। बैरक के भीतर ही एक अलग काल-कोठरी हैं मानों क्रान्ति हमसे रूठकर हमें छोड़कर चली गई थी जिसमें फांसी के सजायाफ्ता कैदी रखे जाते थे। है। हम राह छोड़कर अंधेरे में भटक रहे हैं। तूफानी
आठ माह बाद मुझे जिला जेल से बनारस के और अंधेरी रात में इस नैय्या पार लगाने के लिये अब केन्द्रीय कारागार भेज दिया गया। यहाँ मेरे वरिष्ठ और एक गांधी की जरूरत है।' सहयोगी श्री खशालचन्द जी गोरावाला भी थे। विद्यालय
आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-3, पृष्ठ-186 (2) के अन्य कनिष्ठ साथियों में श्री रतन पहाडी भी थे। ५) जी इ0, पृष्ठ-525 (3) स्व0 प) (4) जै0 स0 रा0 अ0 बनारस के अन्य क्रान्तिकारी भी यहीं रखे गये थे।
श्री बालचंद जैन इसी जेल में विशुद्ध गांधीवादी और सर्वोदयी भी थे! ग्राम-बलेह, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री यहीं मैंने श्री राजनारायण को बैरक के बाहर एक बालचंद जैन, पुत्र-श्री परमानंद जैन ने असहयोग चबूतरे पर रामायण का सस्वर पाठ करते सुना था। आंदोलन, जंगल सत्याग्रह एवं भारत छोड़ो आन्दोलन यहां समय-समय पर कविता-पाठ, वाद-विवाद, में भाग लिया। 16 मई 1941 से 27 मई 1941 समूह-चिन्तन आदि भी हुआ करते थे। मैं अपने स्वभाव तक का कारावास भोगकर आपने देश की आजादी के अनुसार यहां भी एकान्त पसन्द करता था, जिसके का मार्ग प्रशस्त किया। कारण लोग मुझे क्रान्तिकारी समझते थे।
आ)- (1) म) प्रा) स्वर) सै0, भाग-2, पृष्ठ--46 (2)
आ) दो0, पृष्ठ-63 उपरोक्त कारागार से एक वर्ष बाद मुझे नैनी (इलाहाबाद) के केन्द्रीय कारागार में स्थानान्तरित कर
श्री बालचंद जैन दिया गया। इस जेल में काकोरी कांड के बंदी भी श्री बालचंद जैन, पुत्र-श्री फूलचंद जैन का एक पिंजरे जैसी कोठरी में कैद थे, यहां मुझे नजरबंद जन्म 1912 में खुरई, जिला-सागर (म0प्र0) में कैदियों की बैरक में रखा गया, इस बैरक में श्री लाल
हुआ। आपने शिक्षा नाम मात्र बहादुर शास्त्री, श्री कमलापति त्रिपाठी, श्री राजाराम
की प्राप्त की लेकिन लाखों शास्त्री आदि नजरबंद थे। यहीं पं0 जवाहर लाल नेहरू
का हिसाब केवल मुँहजबानी एक दिन के लिये रफी साहब के साथ ही अन्य नेताओं
ही करते हैं। शेर की गर्जन से परामर्श के लिये रुके थे।
जैसी आवाज आज भी नैनी की केन्द्रीय जेल से 1945 में रिहा होने
बरकरार है। आप चिरकुमार के बाद हम सब सेनानियों का इलाहाबाद में राजर्षि
हैं। संयमित जीवन व्यतीत पुरुषोत्तम दास टण्डन की अध्यक्षता में स्वागत किया करना आपकी दिनचर्या है। भोजन भी आप एक बार गया। इधर मुझे पता चला कि मुझे बनारस से लेते हैं। जिला-बदर कर दिया गया है, फिर भी मैंने किसी 1930 की बात है, कई दिनों पूर्व से ही चर्चा तरह बनारस में ही रहकर अपना अध्ययन पूर्ण किया।' थी कि फलां दिन सत्याग्रहियों द्वारा नमक कानून का
मध्यप्रदेश के एक महाविद्यालय के प्राचार्य पद उल्लंघन होगा, कानून तोड़ा जायेगा। अतः एकलौती से सेवानिवृत डॉ.) साहब का कहना है-'आज तो हम संतान होने के कारण परिवार जनों द्वारा बालक
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258
- स्वतंत्रता संग्राम में जैन बालचंद को विशेष हिदायतें देकर एक कोठे में बंद पंडित बेचरदास जीवराज डोसी कर दिया गया, ताकि बालचंद सत्याग्रह में न पहुँच बीसवीं सदी के जैन दर्शन एवं प्राकृत के प्रख्यात सकें और न ही गिरफ्तार होकर अंग्रेजों की यातनायें विद्वान् श्रद्धेय पंडित बेचरदास डोसी का जन्म सहें। परिवार के लोग जैसे ही दैनिक कार्यों में लगे वल्लभीपुर में 1889 ई0 में हुआ। दस वर्ष की आयु आप कमरे के ऊपर की लकड़ी एवं पत्थरों से बनी में ही पिता का देहांत हो गया। माँ मेहनत-मजदूरी करके छत उधंड़कर साथी सत्याग्रहियों से जा मिले और घर चलातीं। आप भी माँ का हाथ बंटाने उनके साथ नमक बनाकर कानून तोड़ा। तिरंगा झंडा लेकर 'वन्दे जाते। तभी भाग्य ने पलटा खाया। गुजरात के प्रसिद्ध मातरम' 'इंकलाब जिन्दाबाद' आदि नारों का जयघोष जैन मुनि श्री विजय धर्म सूरि की नजर आप पर पडी करते हुए गिरफ्तारी दी। जब परिवार वालों को खबर और आप जैन दर्शन के शिक्षण के लिये चुन लिये लगी कि 'आपके बालचंद गिरफ्तार हो गये हैं' तब गये। पालीताना में कुछ महीने पढ़ने के बाद आप 'उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वे तो कमरे में बंद वाराणसी चले गए, वहां जैन दर्शन एवं प्राकृत का था बाद में जब कमरे में देखा तो विश्वास हआ। विशद अध्ययन किया। वाराणसी में अध्ययनरत रहते आपको ? माह का सश्रम कारावास सागर जेल में हुए आपने 'श्री यशोविजय जैन सीरीज' का सम्पादन मिला।
किया। इसके द्वारा प्रकाशित न्याय और व्याकरण की आ) (1) मा प्रा. स्व) सै), भाग-2. पष्ठ.45 पुस्तक कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के पाठयक्रम में
सम्मिलित की गयीं। यहीं से आपने 1913 में न्यायतीर्थ SRO दी), पृष्ट-1 (3) स्व) प।
और 1914 में व्याकरण तीर्थ की परीक्षायें उत्तीर्ण की। डॉ० बाहुबलकुमार जैन इसके बाद आप श्रीलंका गये और पाली भाषा और सम्प्रति न्यूयार्क (अमेरिका) प्रवासी प्रसिद्ध बुद्धत्व का विशेष अध्ययन किया। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.) बाहुबलकुमार जैन का जन्म इन्हीं दिनों महात्मा गांधी के क्रान्तिकारी विचारों
आषाढ कृष्णा 5 संवत् 1991 का प्रभाव आप पर पड़ा। 1919 में बम्बई नगर में (सन् 1934) में बरेली, 'जैन शास्त्रों के भ्रष्ट रूपान्तरों का समाज पर जिला-रायसेन (म0प्र0) में नुकसानकारक प्रभाव' विषय पर आपके व्याख्यानों ने हुआ। आपके पिता का नाम जैन समाज में हलचल मचा दी। धर्म के नाम पर चल श्री लक्ष्मीचंद जैन एवं माता रहे पाखण्ड के भंडाफोड़ से महन्त व आचार्य बौखला
का नाम चेनाबाई था। गए और आपको समाज बहिष्कृत कर दिया गया तथा
J एम0डी0 आदि अनेक 'खतरनाक', 'परम्पराधारी' एवं 'नास्तिक' जैसी गालियां चिकित्सक उपाधियों के धारक डॉ0 जैन ने 14 वर्ष दी गईं। परन्तु आप जैन युवकों एवं विचारकों के चेहते
की उम्र में भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन' में भाग बन गए। बहुतों ने उन व्याख्यानों से प्रेरणा ग्रहण की। लिया, फलत: गिरफ्तार कर 6 जनवरी 1949 को परन्तु पंडित जी ने हार नहीं मानी। मेन्टल जेल भोपाल में भेज दिये गये, जहाँ लगभग 1921 में आप गांधी जी द्वारा स्थापित 'पुरातत्त्व 37 दिन आपको यातनायें भोगनी पड़ी।
मन्दिर' में सम्मिलित हो गये और 40 सुखलाल आ) (1) म) प्र) स्वा। सं), भाग-5, पृष्ठ-86 संघवी के साथ प्रसिद्ध ग्रन्थ 'टीका सन्मति तर्क' का
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प्रथम खण्ड
250
सम्पादन किया। इसके बाद आपने गुजराती में अन्य आपको बैठना पड़ा; परन्तु आप पढ़ते रहे। हाईस्कूल आगमों का अनुवाद किया।
की परीक्षा में जयपुर में आपने सर्वोच्च अङ्क प्राप्त ___गांधी जी की दाण्डी यात्रा के दौरान आपने किए। अतः आपको 'ग्लासी गोल्डमेडल' प्रदान प्रसिद्ध समाचार पत्र 'नवजीवन' का सम्पादन किया किया गया। किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर और ) महीनों के लिए जेल गये। जेल से बाहर था। पिता की जब 'अमानत में खयानत' के मुकदमे आने के बाद 1936 तक ब्रिटिश शासन के राज्य में गिरफ्तार होने की नौबत आई तो माँ के गहने और क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सके। गुजरात में कांग्रेस अपना गोल्डमेडल बेचकर साहूकार की भरपाई सरकार के बनने के बाद ही आप वापिस आ सके। करनी पड़ी। वे सभी वर्ष आपने अत्यधिक वित्तीय परेशानियों में आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद गुजारे। बाद में आप अहमदाबाद के एल0डी0 आर्ट्स एवं साहित्यरत्न परीक्षाएं उत्तीर्ण की। तभी आपका कॉलेज में प्राकृत के व्याख्याता बने। वहाँ से सेवानिवृत सम्पर्क श्री कंवरलाल बापना से हुआ, जो प्रतिभावान हान के बाद अवैतनिक प्रफिसर के रूप में एल0 वकील थे एवं आजादी के बाद राजस्थान उच्च डी) इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, अहमदाबाद को न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश बने थे। उनके भी आपने अपनी सेवायें दीं। 1963 में केन्द्रीय सहयोग से सिंघी जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सरकार न सस्कृत के विशिष्ट विद्वान् का प्रशस्ति पढने चले गये। यहाँ उनकी भेंट हिन्दी के प्रसिद्ध पत्र एवं 5000 रु की वार्षिक पेंशन देकर आपको
उपन्यासकार श्री प्रेमचंद से हुई जिनकी प्रेरणा से सम्मानित किया। आपने 50 से अधिक पुस्तकों का सिंघी जी ने गद्य गीत लिखने आरम्भ किये जो 'हंस' सजन एवं सम्पादन किया है। आपका 1974 में में प्रकाशित हा 'वीर निर्वाण भारती' द्वारा 2500/. के पुरस्कार से
प्रेमचन्द की संवदेना एवं उदात्त मूल्यों के प्रति सम्मानित और अभिनन्दित किया गया था। अक्टूबर
आस्था ने सिंघी जी के जीवन की दिशा निर्धारित 1982 में आपका निधन हो गया।
कर दी। बनारस से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर आप आ)- (!) Progressive Jains, P. 64 (2) इ)
कलकत्ता आ गए। यहाँ आकर आपकी प्रतिभा 0 ओ), खण्ड -2. पृष्ठ--410-4।।
चमक उठी, क्षेत्र विस्तृत हो गया, अनेक सामाजिक श्री भंवरमल सिंघी
नेताओं और संस्थाओं (विशेषत: मारवाडी सम्मेलन) नये समाज के स्वप्नदृष्टा, कवि, चिन्तक, से आप जुड़े। 1937 में आपके गद्यकाव्यों का सामाजिक एवं धार्मिक क्रांतियों के प्रणेता एवं कलाकार संकलन 'वेदना' प्रकाशित हुआ। डॉ0 सुनीति कुमार श्री भंवरमल सिंघी का बहुआयामी संघर्षशील व्यक्तित्व चटर्जी ने इस काव्य- ग्रंथ की भूमिका लिखी थी। जैनों के लिए ही नहीं, समस्त भारतीय समाज के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ 'हिन्दी साहित्य लिए प्रेरणास्रोत है। सिंघी जी का जन्म 1914 ई) में का इतिहास' में सिंघी जी को गद्य गीतकार माना है जोधपुर (राज)) ने निकट बडू ग्राम की एक झोपड़ी (उनतीसवां संस्करण, पृष्ठ-304)। में हुआ। मिडिल की परीक्षा में आपको सर्वोच्च पत्रकारिता के क्षेत्र में सिंघी जी अग्रणी रहे, आपने अंक मिले किन्तु घर की हालत पतली थी। पहले 'तरुण जैन' पत्र का सम्पादन एवं प्रकाशन किया और बिसातखाने की और फिर पान की दुकान पर समाज को नवीन दिशा दी। 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति'
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वर्धा की एक बैठक में आप महात्मा गांधी से मिले पाकिस्तान में फंसे हजारों हिन्दुओं को पश्चिमी बंगाल थे। 1942 में गांधी जी ने 'करो या मरो' एवं 'अंग्रेजो में लाने की चुनौती सामने थी। पं0 बंगाल के मुख्यमंत्री भारत छोडो' का नारा दिया। सिंघी जी तनमन से डॉ0 विधानचंद्र राय ने बडे सोच-विचार के बाद सिंघी आन्दोलन में कूद पड़े। आन्दोलन के दरम्यान आप जी को इस अभियान की कमान सौंपी। बड़ी ही अनेक क्रांतिकारियों से मिले एवं भूमिगत राष्ट्रीय नेताओं खतरनाक परिस्थिति में 17 विशाल जहाजों का बेडा से आपका घनिष्ठ सम्पर्क रहा। जब नागपुर और बम्बई लेकर सिंघी जी रवाना हुए। जैसे-जैसे पूर्वी पाकिस्तान के बीच रेलवे ट्रेनों को डायनामाइट से उड़ाने की योजना का किनारा नजदीक आ रहा था, पानी में डूबती उतराती बनी तो सिंघी जी उसके सूत्रधार नियुक्त हुए। आप लाशें दिख रही थीं। साम्प्रदायिकता ने खुलकर खून डायनामाइट प्राप्त करने में सफल भी हुए परन्तु तभी की होली खेली थी। खुलना के पास पाकिस्तानी सेना पुलिस को इसकी भनक मिल गई, तलाशी हुई और ने आकर जहाजों को घेर लिया। नेहरू, लियाकत अली सिंघी जी गिरफ्तार कर लिये गये। प्रेसिडेंसी जेल में और डॉ0 विधानचंद्र राय से सम्पर्क किया गया, समझौतों उन्हें वर्षों रखा गया। पेट में दर्द के कारण जब तबीयत की याद दिलाई गई तब कहीं पाकिस्तानी सेना राजी बहुत शोचनीय हो गई तब अस्पताल में स्थानान्तरित हुई। कर दिया गया। अंतत: 1945 में रिहा किया गया। ढाका, नारायणगंज, चाँदपुर, बारीसाल के शरणार्थी
सामाजिक क्रान्ति के सूत्रधार सिंघी जी ने 1946 शिविरों में घोर दुर्दशा भोगते बीस हजार हिन्दुओं को में एक बालविधवा 'सुशीला जैन' से पुनर्विवाह किया जहाजों पर लादा गया। पर रसद और ईधन भला जिसे मारवाड़ी समाज के गणमान्य नेताओं का पाकिस्तानी क्यों देते। रसद खत्म होते देर न लगी और आशीर्वाद प्राप्त हुआ। 1946-47 में बंगाल में तब शुरू हुआ भूख से तड़पना और दम तोड़ती मौतों साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे तो सिंघी जी एवं सुशीला का सिलसिला। कलकत्ता पहुँचने तक 150 लाशों को जी ने 'बड़ा बाजार अमनसभा' के तहत मुसलमानों पानी में फेंकने के सिवाय अन्य कोई चारा नहीं था। की सुरक्षा व्यवस्था में अहम् भूमिका निभाई। देश ज्यों ही कलकत्ता पहुँचे डॉ.) राय ने सिंघी जी को आजाद होने के बाद जब नेतागण अपने राजनैतिक गले लगा लिया। बीस हजार निराश्रितों की आँखों से प्रभाव भुनाने में लग गये तब सिंघी जी राजनीति को प्रकट होता आभार पाकर सिंघी जी का सीना गर्व से ठोकर मारकर सामाजिक सुधारों के अभियान पर निकल पड़े। फूल गया।
'नया समाज' के माध्यम से सिंघी जी का लेखन सिंघी जी की जिस कार्य के लिए देशभर में एक बार फिर सक्रिय हुआ। 1949 में आपने कलकत्ता राष्ट्रीय स्तर पर सम्माननीय छवि बनी वह था परिवार में एक विराट सामाजिक क्रांति सम्मेलन का आयोजन नियोजन का प्रचार-प्रसार। इस अपूर्व विचार व कार्य किया जिसका सभापतित्व राजस्थान के तत्कालीन नव को पूर्णत: समर्पित दो चार लोग ही हुए हैं। 1948 नियुक्त उद्योगमंत्री श्री सिद्धराज में पहली परियोजना क्लीनिक खुली-मातृ सेवा सदन ढढा ने एवं उद्घाटन श्रीमती अरुणा आसफअली ने अस्पताल के भवन में। कहते हैं पहले सात महीनों किया था।
में मात्र दो स्त्रियाँ सलाह लेने आईं। पर सिंघी जी ने सिंघी जी के अदम्य साहस, क्षमता और निडरता हार न मानी, दर्जनों लेख लिखे, पेम्फलेट छपवाकर का एक उदाहरण 1950 में सामने आया। पूर्वी वितरित किए, घरों और फैक्ट्रियों में जाकर प्रशिक्षण
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प्रथम खण्ड
261 की व्यवस्था करवाई। उनकी लिखी 'राष्ट्र योजना और
श्री भंवरलाल जैन परिवार योजना' पुस्तक बेहद लोकप्रिय हुई। नियोजन बेगमगंज, जिला- रायसेन (म0प्र0) के श्री सम्बन्धी एक पत्रिका का नियमित प्रकाशन आपने भंवरलाल जैन, पुत्र-श्री नवरतनलाल जैन का जन्म किया। परिवार नियोजन संघ की स्थापना आपने ही 1919 में हुआ। श्री जैन ने 1949 के भोपाल राज्य
की थी। पन्द्रह वर्षों तक वे इस संघ के उपाध्यक्ष रहे। विलीनीकरण आन्दोलन में भाग लिया तथा 13 दिन इसी हेतु जापान, थाइलैंड, इंग्लैंड, फ्रांस, डेनमार्क, के कारावास की सजा पाई। स्वीडन, अमरीका, नाईजीरिया, ट्यूनिशिया, चिली,
आ0-(1) म) प्र० स्व) सै0, भाग-5, पृष्ठ-77 सूरीनाम आदि देशों की यात्राएं की।
श्री भागचंद जैन शिक्षा प्रसार में सिंघी जी की भमिका और भी श्री भागचंद जैन ग्राम मलावकी, तहसील महत्त्वपूर्ण रही। कलकत्ता स्थित नोपानी विद्यालय, लक्ष्मणगढ़ (अलवर) के निवासी थे। अलवर में बालिका शिक्षा सदन, टांटिया हाई स्कल, शिक्षायतन विद्यार्थी जीवन में ही महावीर प्रसाद जी के सम्पर्क कालेज पारिवारिकी आदि संस्थायें उनके निर्देशन से में आने के बाद आपने क्रांतिकारी गतिविधियों में उपकृत हुईं। सिंघी जी आडम्बरों के कटर विरोधी भाग लेना शुरू किया। 1942 के आन्दोलन में रेल थे। इसी कारण आपको अनेक बार अपमान और
और के तार काटे व पोस्ट ऑफिस में आग लगाई, प्राणघातक हमले भी सहने पड़े। आपने अपने जीवन
जिसके परिणामस्वरूप षडयंत्र केस में मुजरिम रहे। में अनेक सम्मान पाये। 1986 में जयपुर में आपका
किन्तु पुलिस इनको गिरफ्तार नहीं कर सकी और देहावसान हुआ।
भूमिगत रह कर कार्य करते रहे। भारत के स्वतंत्र
होने के बाद राजस्थान विधानसभा कांग्रेस पार्टी के आ) (1) इ) अ) ओ0. खण्ड-2, पृष्ठ-440-444
काफी समय तक आप सचिव रहे। बाद में आपने श्री भंवरलाल जैन
अलवर में ही वकालत शुरू कर दी थी। श्री भंवरलाल जैन, पत्र-श्री उत्तमचंद जैन आ0- (1) प0 इ0, पृ0-138 (2) श्री महावीर प्रसाद छापीखेडा, जिला-राजगढ (म0प्र0 )के निवासी थे। जैन, अलवर द्वारा प्रेषित परिचय आपका जन्म 1909 में हुआ। स्वतंत्रता एवं देशप्रेम
श्री भागचंद जैन की भावना से ओत-प्रोत, गांधी जी के अनुयायी श्री श्री भागचंद जैन, पत्र-श्री गज्जी जैन का जन्म जैन ने हरिजनों की सेवा की एवं प्रजामंडल का 1925 में ग्राम कटंगी, तहसील-पाटन, जिला-जबलपुर कार्य किया। 1936 में आपने आन्दोलन में भाग (म0प्र0) में हुआ। आपने 1942 के आन्दोलन में लेकर छापीखेड़ा का नाम देश-व्यापी बना दिया था। लगभग 8 माह का कारावास भोगा। आ-(1) मर) प्रा) स्व) सै), भाग-5, पृष्ठ-116
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1 पृष्ठ-85 श्री भंवरलाल जैन
श्री भागचंद जैन रायपुर (म0प्र0) के श्री भंवरलाल जैन, श्री भागचंद जैन, पुत्र-श्री दमरूलाल बैसाखिया पुत्र श्री उदयचंद जैन ने सन् 1942 के भारत छोड़ो का जन्म 4-2-1906 को नरसिंहपुर (म0प्र0) में आन्दोलन में भाग लिया तथा एक माह का कारावास भोगा। हुआ। आपने मिडिल तक शिक्षा ग्रहण की।
आ) (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-3, पृष्ठ-54 अध्ययन के समय ही 1922 में असहयोग आंदोलन
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वस्त्रों
करते
हुए
के समय विदेशी का बहिष्कार उनकी होली जलाई। 1931 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में आपने विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना दिया। 1930 के नमक आंदोलन
में भी आपने भाग लिया था। 1939 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर आप स्वयंसेवक बनाये गये। 1940-41 में गांधी जी के आदेशानुसार सत्याग्रह में ग्राम कमोद (गोटेगांव) जिला - नरसिंहपुर से आपने पद यात्रा प्रारम्भ की। नरसिंहपुर होते हुए आप रहली, जिला - सागर पहुँचे जहाँ 25-5-41 को गिरफ्तार कर लिया गया। 4 दिन सागर जेल में तथा 7 दिन तक होशंगाबाद जेल में रखा गया। आपने श्री फूलचंद जैन बमोरहा के साथ झाँसी तक पैदल यात्रा की, फलतः झाँसी में भी गिरफ्तार हुए; जहाँ 15 दिनों तक जेल में रहे। 20 दिन सेन्ट्रल जेल जबलपुर में धारा डी0 आई0 आर0 129 (ए) के तहत बन्द रहे। आप 1920 में नरसिंहपुर से गोटेगाँव आ गये थे यहीं 14-10-78 को आपका निधन हुआ।
आ)- (1) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-149 (2) जै) स0) रा) अ) (3) पौत्र आलोक कुमार जैन द्वारा प्रेषित परिचया
श्री भागचंद जैन
'सच्चे दादा' उपनाम से प्रसिद्ध श्री भागचंद जैन, पुत्र - श्री लीलाधर, निवासी तेंदूखेड़ा (सगोनी), तहसीलगाडरवारा, जिला - नरसिंहपुर ( म०प्र०) ने 1941 के आन्दोलन में भाग लिया। 1942 के आन्दोलन में भाग लेने पर आप गिरफ्तार हुए
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
और 10 माह जबलपुर जेल में बंद रहे। 1983 में आपका निधन हो गया।
(आ) (1) म) प्र) स्व0 सै0 भाग-1 पृष्ठ-149
वैद्य श्री भानुकुमार जैन
मौ. जिला-भिण्ड (म()()) के वैद्य भानुकुमार जैन, पुत्र श्री सुखवासी लाल जैन का जन्म 24-9-1917 को हुआ । आपके पिताजी का ग्वालियर राज्य में जमीदारी एवं खेती का कार्य था, फिर भी आप 1931 में कांग्रेस
के सदस्य बन गये। 1942 के आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया। जिले की कांग्रेस कार्यकारिणी ने प्रस्ताव किया कि 'कुछ कार्यकर्ता जेल जावें और 'कुछ भूमिगत रहकर आन्दोलन का संचालन करें व जेल जाने वालों के परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था करें।' आपका नाम भूमिगत कार्यकर्ताओं में आ गया । हरिजन पाठशाला का संचालन भी आपने किया था। 1939 में दि0 जैन पार्श्वनाथ मेला (पंचकल्याणक महोत्सव ) के आप अध्यक्ष रहे। आपने काफी समय तक 'खरौआ जैन हितैषी' पत्र का सम्पादन किया था।
आ) (1) ख) इ०), पृष्ठ 166 (2) स्व0 40) एवं अनेक प्रमाणपत्र श्री भीकमचंद जैन
अपने जीवन के मात्र 38 बसन्त देखने वाले श्री भीकमचंद जैन का जन्म 1922 में सिरसा (हरियाणा) में हुआ | आपके पिता का नाम श्री कालूराम नोलखा था। जन्म के कुछ समय बाद आप अपने मामा श्री लक्ष्मीचंद छाजेड़ के यहाँ ग्वालियर आ
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प्रथम खण्ड
263 गये। मामा नि:सन्तान थे। यहीं आपका लालन-पालन स्मारक न्यास' की स्थापना की गई है। हुआ। 1942 के आन्दोलन में आपने बढ़-चढ़कर हिस्सा आO- (1) म) प्र0 स्व0 सै), भाग-4, पृष्ठ-246 लिया और 11 माह की जेल काटी। आप कांग्रेस के (2) न्यास विधान पुस्तिका कर्मठ कार्यकर्ता थे। 1946 से 1948 तक आप
श्री भीकमचंद सिंघवी ग्वालियर कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे। इस दौरान आपके
गोटेगांव, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के प्रमुख नेतृत्व में ग्राम विलौआ जागीर के किसानों का एक बड़ा आन्दोलन हुआ, जिसमें भारी सफलता मिली और
शिक्षाविद् श्री भीकमचंद सिंघवी का जन्म एक मांगें मंजूर कर ली गईं।
संभ्रात एवं सम्पन्न मारवाड़ी
परिवार में 24-7-1915 को 1946 में कांग्रेस का 'अखिल भारतीय देशी राज्य
हुआ। आपके पिता का नाम लोक परिषद्' का अधिवेशन ग्वालियर में आयोजित
श्री मंगलचंद सिंघवी था, जो किया गया, जिसमें सक्रिय रूप से भाग लेकर उसे सफल बनाने का श्रेय आपको है। देश की आजादी
स्वंतत्रता सेनानी थे। आपने के बाद 1948 में समाजवादी विचारधारा से जुड़े लोगों
देशभक्ति का गुण अपने पिता
से विरासत में पाया, साथ में का कांग्रेस से सैद्धांतिक मतभेद हुआ तो आप उससे अछूते नहीं रहे और कांग्रेस छोड़कर समाजवादी दल
आपको व्यापारिक बुद्धि भी उनके संरक्षण से ही में शामिल हो गए।
प्राप्त हुई। अत: आपके मानस पटल पर दोनों ग्वालियर में 1950 में जब विद्यार्थी आंदोलन
विचारधाराओं का अद्भुत संगम दिखाई देता है। एक
तरफ आपकी राजनैतिक विचारधारा से गोटेगांव की प्रारम्भ हुआ तो श्री भीकमचंद भी इससे अलग न रह सके। पुलिस की गोली से मारे गए छात्र हरीसिंह
जनता आप्लावित है तो दूसरी तरफ व्यापारिक
विचारधारा से जन-जन सुपरिचित है। व दर्शनसिंह की मौत के विरोध में आरम्भ हुए
आपका राजनैतिक जीवन अध्ययन की आन्दोलन में आप गिरफ्तार कर लिये गये। 42 के
समाप्ति के पश्चात् ही प्रारम्भ हो गया। 8 अगस्त भारत छोड़ो आन्दोलन से शुरू हुआ जेल जाने का क्रम
1934 को आपके पिता श्री मंगलचंद सिंघवी जेल आजीवन चलता रहा।
में थे। तब आपको गिरफ्तार कर लिया गया और ___ आप ग्वालियर जिले के ग्रामों में जाकर सभा जेल की इस छोटी अवधि में आपको अमर शहीद व सम्मेलन कर वहाँ के कृषक-मजदूरों, हरिजन एवं श्री रुद्रप्रताप सिंह के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त शोषितों की कठिनाइयों को सुनते थे और शासन तक हआ। उनकी देशभक्ति से आपको प्रेरणा मिली। पहंचा कर हल कराने हेतु सतत प्रयत्नशील रहते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आपने राजनैतिक यह आपकी जिन्दगी का हिस्सा बन गया था। श्री जैन एवं सामाजिक कार्यों में विशेष रूप से भाग लिया। ने अपने जीवन में भेदभाव और छुआछूत को कभी अनेक शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थाओं को आपने स्थान नहीं दिया, वे मानव मात्र को समान मानते थे आर्थिक सहायता देकर अपने कर्तव्य का निर्वाह
और कहते थे-'जातिगत भेदभाव तो मानव ने निर्मित किया। आप स्थानीय नगरपालिका के उपाध्यक्ष एवं किये हैं।'
मंत्री रहे। उच्च शिक्षा के लिये आपने गोटेगांव में आपका निधन 23 जनवरी 1960 में हुआ। ठाकुर निरंजन सिंह महाविद्यालय की स्थापना 1968 आपकी स्मृति में ग्वालियर में 'श्री भीकम चंद जैन में की। 1984 में इस महाविद्यालय के शासनाधीन
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
होने तक आप इसके अध्यक्ष रहे।
करते थे। सागर में दि0 20-1-95 को जब हम आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-149, आपसे मिले, तो आपकी शालीनता/सौजन्यता/स्नेह (2) स्व) प०
से गद्गद् हो गये। फरवरी 1997 में आपको तिजारा श्री पं० भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री में 31000 रु.) के पुरस्कार से सम्मानित किया गया
आगम ग्रन्थों के तलस्पर्शी विद्वान् श्री पं० था, यह राशि भी आपने गरीब छात्रों की सहायतार्थ भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री का जन्म 1911 में सेवारा, दे दी थी। आपका निधन सागर में हुआ। जिला-सागर (म0प्र0) में
आO- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) प0 जै0 50. हुआ। दुर्दैव के कारण जब पृष्ठ-229 (3) स्व0 ५0 (4) सा) आप गर्भ में ही थे तभी
श्री भूरेलाल बया पिता जी का देहावसान हो स्वतंत्रता सेनानियों और राजस्थान के रचनात्मक गया, फलत: मामा ने बांदरी राजनीतिक कार्यकर्ताओं में श्री भूरेलाल बया का लाकर आपका पालन पोषण नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। साइमन कमीशन
किया और आपने पूज्य वर्णी के विरोध में उठ खड़े हुये श्री बया ने बम्बई में जो के विद्यालय (सागर) में शिक्षा ग्रहण की, बीना नमक सत्याग्रह में भाग लिया और आर्थर रोड तथा में अध्यापन कार्य किया और बाद में लखनऊ, यरवदा जेल में सजायें काटी। बम्बई कांग्रेस के इन्दौर, जबलपुर आदि स्थानों में रहकर जैनधर्म, सक्रिय कार्यकर्ता तथा 'संदेश' मासिक के सम्पादक साहित्य, समाज की सेवा करते रहे। सागर के अपने श्री बया वर्षों गांधी जी के सान्निध्य में रहे और विद्यार्थी जीवन में आपने स्वदेशी प्रचार का महनीय उसके बाद मेवाड़ प्रजामण्डल के आन्दोलनों में कार्य किया। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के भागीदार बने। आदिवासियों और किसानों के सत्याग्रहों कारण 6 माह का कठोर कारावास आपको सागर में आपने भाग लिया और आजादी के पश्चात जेल में भोगना पड़ा। आपके साथी पं0 वंशीधर जी श्री माणिक्यलाल वर्मा तथा श्री हीरालाल शास्त्री के बीना, श्री नन्हें लाल बुखारिया (जैन), श्री रामलाल साथ मंत्री बने। सराफ आदि थे।
आ0- (1) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ-342 अपनी निर्धनता के कारण आपको अनेक बार (2) रा0 स्व) से0, पृष्ठ-167 एक समय भोजन करना पड़ा. पर विचलित नहीं
श्री भेरूलाल वेदमूथा हुए। आपने अपनी धर्मपत्नी के सन्दर्भ में लिखा है
श्री भैरूलाल वेदमूथा का जन्म 7 नवम्बर 'सन 1942 में जब मैं गिरफ्तार होकर जेल चला 1910 को ग्राम-चीताखेड़ा, जिला-मन्दसौर (म0प्र0) गया तो उन्होंने महीनों दाल या चावल आदि एक-एक में श्री चन्नीलाल वेदमुथा के घर हुआ। नवीं कक्षा अनाज एक समय खाकर कभी दु:ख का अनुभव उत्तीर्ण कर श्री वेदमथा ने स्कल की पढाई छोड दी नहीं किया, न कभी कोई शिकायत मुझसे की।' और आंदोलनकारियों के साथ मिलकर स्वराज्य लाने धन्य हैं ऐसी गृहिणी।
की होड़ में शामिल हो गये। प्रतिदिन स्वाध्याय, सामायिक, चारों अनुयोगों इन्दौर में भारत छोडो आन्दोलन में आप शामिल का अध्ययन/लेखन आप करते थे। प्रवचन भी आप हुए। तराना में भी आपने आन्दोलन किया। होल्कर
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प्रथम खण्ड
265 स्टेट के होम मिनिस्टर हर्डन के समक्ष प्रदर्शन किया युवावस्था में आपने अपने ग्राम में विभिन्न व नारे लगाये -'हर्टनशाही नहीं चलेगी', 'जालिम साथियों सहित नागपुर के कांग्रेस सेवादल का प्रशिक्षण हर्टन वापिस जाओ।' आदि।
प्राप्त किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के अवसर पर श्री वेदमुथा एक माह तराना में, एक वर्ष दो गाँव की सरकारी सम्पत्ति नष्ट करने की क्रांतिकारी माह संण्टल जेल इन्दौर में, एक माह महिदपुर में योजना में आप सम्मिलित थे। परन्तु आप पुलिस की तथा एक वर्ष एक माह गरोठ की जेल में रहे। इनका दृष्टि से बचकर निकल गये। अंतत: गिरफ्तार किये सम्पर्क जेलवास में अनेक वरिष्ठ नेताओं व गये और आपको 15 दिनों का कारावास दिया गया। कार्यकर्ताओं से हुआ। फलस्वरूप आपका कार्यक्षेत्र इस दौरान आप छिन्दवाड़ा के बन्दीगृह में रखे गए। व कार्यशैली विकसित होती गई। आजादी के बाद स्वतंत्रता के पश्चात् सरदार बल्लभभाई पटेल ने आप महिदपुर में व्यवसाय करने लगे। आप राष्ट्र देशी रियासतों के विलीनीकरण के विराट कार्य का चंतना के कार्यों में संलग्न रहे हैं।
सूत्रपात किया। उनके आदेशानुसार आप हैदराबाद आ() (1) स्व। स) म), पृष्ठ-82-83 (2) म प्र) रियासत के भारत में विलीनीकरण के समय सेवादल स्व) 3. भाग-4. पृष्ठ-217
में एक स्वयंसेवक के रूप में सम्मिलित हुए। श्री भैयालाल गणपति देशकर ।
राजनैतिक, सामाजिक कार्यों के साथ आप कुश्ती
प्रेमी भी रहे। अनेक प्रसिद्ध पहलवान आपके शिष्य कुश्ती के शौक ने जिन्हें अंग्रेजों से भी दो-दो ।
हैं। स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर मध्यप्रदेश शासन हाथ करने के लिए विवश कर दिया, ऐसे श्री. भैयालाल गणपति देशकर |
ने आपको एक प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित
किया था। (जैन) का जन्म लोधीखेड़ा,
आ)-(1) म) प्र) स्व० सै), भाग-1, पृष्ठ-।। जिला- छिन्दबाड़ा (म0प्र0) (2) स्वा0 आ0 में छिन्दवाडा जिले का योगदान, (कित शोध में 1924 में हुआ। परिवार प्रबन्ध), पृष्ठ-308,309 (3) अनेक सम्मान/प्रमाण पत्र (4) पुत्र की दयनीय आर्थिक दशा संजय द्वारा प्रेपित जानकारी। होने पर भी अत्याचारी
श्री भैयालाल जैन अंग्रेजी शासन की गुलामी
मध्य प्रदेश विधानसभा में बण्डा, जिला-सागर की जंजीरे तोड़ने के लिए आप स्वाधीनता संग्राम में (म0प्र0) से विधायक रहे श्री भैयालाल जैन पत्र-श्री कूद पड़। बाल्यकाल से ही आपके ग्राम में राष्ट्रीय कन्हैयालाल का जन्म 1909 में हुआ। आप 1031-32 माहौल छाया हुआ था, परिणामस्वरूप 13 वर्ष की में जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। राज्य कांग्रेस अल्पाय में ही आप राष्ट्रीय गतिविधियों में सक्रिय हो कमेटी में अनेक बार सागर का प्रतिनिधित्व आपने गए। आप अपने बाल साथियों सहित ग्राम के अन्य किया। आप जिला कांग्रेस कमेटी के 1941 से 47 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों हेतु सभायें आयोजित कराने तक कोषाध्यक्ष भी रहे। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में वांछित सहयोग प्रदान करते थे। झण्डे लेकर में आपने भाग लिया था। सागर से दिल्ली सत्याग्रह में दोड़ना तथा घंटियाँ बजाना आपके नित्य-प्रति के जाने वाले सत्याग्रहियों की व्यवस्था का भार आपने कार्य थे। गाँव के कर्मठ स्वातंत्र्य प्रेमी श्री छोटेलाल ही बडी कशलता से सम्हाला था। 1942 के आन्दोलन छवरे आपकी प्रेरणा के प्रमुख स्तंभ थे। में आप पहले भूमिगत होकर कार्य करते रहे फिर 23
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सितम्बर को गिरफ्तार कर लिये गये। सागर व नागपुर
श्री भैयालाल परवार की जेलों में आपने यातनाएं सहीं। 26 नवम्बर 1943 साहूकार परिवार में जन्मे श्री परवार ने स्वतंत्रता को आप जेल से मुक्त हुए। 1985 के आसपास आपका संग्राम के महायज्ञ में जो आहुति दी उसे भुलाया नहीं निधन हो गया।
जा सकता। आपके पिता का नाम श्री मन्थूलाल आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-51 परवार था। आप सैदपुर, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) (2) जै) स() रा0 अ0, पृष्ठ-96 (3) श्री डालचंद जैन, पूर्व सांसद, के निवासी थे। 1947 में आपने 1 माह की सजा सागर द्वारा प्रेषित विवरण।
तथा 100 रुपये का अर्थदण्ड भोगा था। श्री भैयालाल जैन 'नेताजी'
आर)-(1) र) नी0, पृष्ठ-99 'नेताजी' उपनाम से विख्यात ग्राम-कटंगी,
श्री भोलानाथ जैन तहसील-पाटन, जिला--जबलपुर (म0प्र0) के श्री गौरझामर, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री भोलानाथ भैयालाल जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल जैन ने 5 बार जेल जैन, पुत्र-श्री राम रतन का जन्म 1909 में हुआ। यात्रायें की। 1930 में जंगल सत्याग्रह के दौरान आप 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 6 माह का गीत गाते हये गिरफ्तार कर लिये गये और 4 माह कारावास एवं | माह नजरबन्दी की सजा आपने भोगी। की कैद तथा 50/- रु) अर्थदण्ड पाया। दण्ड जमा ।
आ)- (1) मर) प्र) स्व) सै), भाग-2, पृष्ठ-51
(2) आ) दी0, पृष्ठ-69 न करने पर डेढ़ माह की कैद और भुगतनी पड़ी। 1932 में आप ग्राम-ग्राम भ्रमण करते हुए
श्री मंगलचंद जैन किसानों को लगान अदा न करने के लिए भड़काने
नरसिंहपुर (म0प्र0) निवासी और नागपुर प्रवासी के आरोप में पकडे गये और 6 माह के सश्रम कारावास श्रा मगलचद जन, पुत्र-श्रा कन्हयालाल ने 1930 की सजा पाई। रेलवे सत्याग्रह (जबलपुर में) में चलती पिकेटिंग एवं सत्याग्रह किया तथा 17 अगस्त 1930 टेन की जंजीर खींचकर आपने उस पर तिरंगा झण्डा से 17 नवम्बर 1930 तक का कारावास भोगा। फहराकर ब्रिटिश साम्राज्य को चनौती दी और 15 दिन आ0-(1)-म0 प्रा) स्व) स0, भाग-1, पृष्ठ-151 की कैद पाई। 1941 में व्यक्तिगत आंदोलन के दौरान
श्री मंगलचंद सिंघवी अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंकने और द्वितीय विश्वयुद्ध
गोटेगाँव, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के प्रसिद्ध में मदद न करने का प्रचार करने पर रीठी में गिरफ्तार शिक्षाविद् श्री मंगलचंद सिंघवी, पुत्र-श्री दयाचंद का कर लिये गये और तीन माह का कारावास पाया। 1942
जन्म 14-9-1890 ई0 को की जनक्रान्ति में अपने जत्थे के साथ पुलिस थाने पर
डीडवाना, जिला नागौर झण्डा फहराने के प्रयास में 'नेताजी' पुनः गिरफ्तार
(राजस्थान) में हुआ। बाद में कर लिये गये और केन्द्रीय कारागार जबलपुर में
आप गोटेगाँव आकर बस 8 माह का बन्दी जीवन बिताया। जेल से छूटने के
गये। 1928 में कांग्रेस द्वारा बाद भी आप सदैव राष्ट्रीय कार्यों में संलग्न रहे।
घोषित दो दिन की हड़ताल में आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-83 (2)
आपने पूर्ण सहयोग दिया, स्व) स) पा), पृष्ठ-104
अतः तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर 'बोर्न' के हृदय में
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प्रथम खण्ड
267 प्रतिशोध की भावना का उदय हुआ और उसने आपको
श्री मगनलाल कोठारी घोड़े से कुचलना चाहा किन्तु वह असफल रहा। विधि स्नातक श्री मगनलाल कोठारी, पुत्र- श्री
1940 4। को आपके राजनीतिक जीवन का कन्हैया लाल कोठारी का जन्म 1916 में हरदा, 'उत्सर्ग-वर्ष' कहा जा सकता है। इस वर्ष कांग्रेस ने जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) में हुआ। 1932 में पिकेटिंग द्वितीय विश्व युद्ध के समय सरकार को सहयोग देना करने पर 6 माह की सजा एवं 100/- रु0 जुर्माना अस्वीकार कर दिया था तथा महात्मा गाँधी के आदेश आपको भोगना पड़ा। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन पर समस्त देश में व्यक्तिगत सत्याग्रह का सूत्रपात हुआ। में पहले तो आप भूमिगत रहे परन्तु बाद में गिरफ्तार इस आंदोलन में सिंघवी जी इस क्षेत्र में कार्यरत रहे कर 18 माह नागपुर जेल में नजरबंद रखे गये। 50 जिससे आपको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और रु0 का अर्थदण्ड भी इस समय आपने भोगा। शहर 4 माह तक नागपुर जेल में बन्द रखा।
के प्रतिष्ठित वकील एवं पत्रकार कोठारी जी जनपद 1942 में कांग्रेस ने करो या मरो का नारा बुलंद सभा के उपसभापति/सभापति आदि पदों पर रहे हैं। किया तब सिंघवी जी को पुन: पुलिस ने गिरफ्तार आ) (1) म0 प्र0 स्वा सै०, भाग-5, पृष्ठ- 336
(2) हरदा और स्वतन्त्रता संग्राम, पृष्ठ-79 कर एक वर्ष दस माह का कारावास दिया। इस अवधि को आपने नरसिंहपुर, जबलपुर और होशंगाबाद के
श्री मगनलाल गोइल कारागृहों में बिताया। आपको इस जेल जीवन में पूज्य दो बार टीकमगढ़ विधान सभा क्षेत्र से म0प्र0 विनोबा भावे, पं0 द्वारका प्रसाद जी मिश्र और श्री विधानसभा के सदस्य (विधायक) रहे तथा लगभग बृजलाल बियाणी के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
16 वर्ष तक नगरपालिका स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आप नरसिंहपुर जनपद सभा
परिषद् टीकमगढ़ के सदस्य, के अर्थ सदस्य एवं नगरपालिका गोटेगाँव के अध्यक्ष
उपाध्यक्ष व अध्यक्ष आदि पद पर आसीन रहे।
पदों पर रहे श्री मगनलाल शिक्षा के प्रति अपनी असीम रुचि के कारण
गोइल, पुत्र-श्री चुन्नी आपने ठा) निरंजन सिंह महाविद्यालय में रु0 1500
लाल गोइल का जन्म की निधि अर्पित की थी जिसके ब्याज से डिग्री कोर्स
11-11-1927 को टीकमगढ़ के अंतिम वर्ष में प्रथम श्रेणी में उच्चतम अंक प्राप्त (म0प्र0) में हुआ। व्याकरण की मध्यमा और जैन करने वाले विद्यार्थी को स्वर्णपदक प्रदान किया जाता सिद्धांत शास्त्री जैसी महत्त्वपूर्ण परीक्षाएं आपने उत्तीर्ण है। आपने रु) 10,000 की निधि से एक ट्रस्ट की कीं।। स्थापना भी की थी जिसके ब्याज से उच्चतर माध्यमिक 1942 में आप टीकमगढ़ जिले की एक मात्र शाला के निर्धन एवं प्रतिभावान छात्रों को प्रतिवर्ष राजनैतिक संस्था 'स्टेट कांग्रेस' (ओरछा सेवा संघ) छात्रवृत्ति दी जाती है। आपका निधन 22-4-73 को के प्लेटफार्म से राजनैतिक गतिविधियों में संलग्न व हो गया। आपके पुत्र श्री भीकमचंद जी भी स्वतन्त्रता संघर्षरत हुए। राज्य शासन के विरुद्ध छात्र आन्दोलन सेनानी हैं।
में भूमिगत रहे। बाद में राज्यशासन के कर विरोधी आ- (I) 40 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-15। आंदोलन में भी आपको भूमिगत रहना पड़ा। अथक (2) जै0 सारा अ0 (3) पुत्र श्री भीकमचंद सिंघवी द्वारा प्रेषित
षत प्रयत्न करने पर भी पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं परिचय
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268
. स्वतंत्रता संग्राम में जैन कर सकी। 1945 से 1947 तक स्टेट कांग्रेस के में रहे। जेल में राष्ट्रीय झंडा स्वतंत्रता दिवस पर नगर महामंत्री रहे। 1951 से 1980 तक समाजवादी निकालने पर खड़ी हथकड़ी की कठोरतम सजा को आन्दोलन से जुड़े एवं पार्टी के विभिन्न उत्तरदायी आपने भोगा। पदों पर रहे श्री जैन ने आजादी के बाद भी जेल एक से एक पारिवारिक भीषण कठिनाइयों से यात्राएं की, भूमिगत रहे व आर्थिक प्रताड़नायें सहीं। न डिगने वाले मथुरा प्रसाद जी 1942 के आन्दोलन 5 जुलाई 1975 से आपातकाल के दौरान 19 माह में और अधिक सक्रिय हो उठे। कांग्रेस कमेटी, की जेल यात्रा आपने की।
ललितपुर के अध्यक्ष रहते हुए झांसी जेल में 10 माह श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पपोरा जी के नजरबंद रहे। 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस 1947 के आप दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुये। आप अनेक समय आप मंडल कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर थे। आप गजनैतिक एवं सामाजिक संस्थाओं के विभिन्न पदों ललितपुर नगरपालिका के लगभग 14 वर्ष तक सदस्य पर रहे व हैं। म0प्र0 शासन ने आपको सम्मान निधि रहे थे। प्रदान कर सम्मानित किया है। वर्तमान में आप
आ)- (1) ज।) स0 रा) आ0 (2) रा) नी. पृष्ठ-15 राजनैतिक रूप से 1980 से आज तक भारतीय
विद्यार्थी मथुरालाल जनता पार्टी से सम्बद्ध हैं। दो बार उसके जिला
'भगतजी', 'महात्माजी' जैसे उपनामों से सम्बोधि अध्यक्ष तथा दो बार प्रदेश कार्य समिति के सदस्य रह चुके हैं। 1998 में भी आप टीकमगढ़ से म)
त होने वाले झाबुआ (म0प्र0) के विद्यार्थी मथुरालाल प्रा) विधानसभा के सदस्य (विधायक) चुने गये हैं।
* विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो आ) (1) स्व) पा) (2) वि) स्व) स0 इ.), पृष्ठ-203
आ गये थे। आप गुजरात केसरी श्री वामन राव के साले (3) श्री जय निशान्त द्वारा प्रषित परिचय (4) शा) प) बुलेटिन, के साथ गोधरा 'लॉकप' में रहे। हिन्दुस्तानी सैनिकों मार्च 1999
की रक्षा और गवर्नर का निषेध करने के लिए विद्यार्थी
जी पर्चे बांटते हुए गोधरा शहर में सैनिकों के बीच श्री मथुराप्रसाद वैद्य
जा धंसे थे, उन्हें प्राणों की परवाह न थी। अंग्रेजी की श्री मथुराप्रसाद वैद्य का जन्म 1894 में महरौनी
पढ़ाई की अपेक्षा आपने देश सेवा को उचित समझा। (ललितपुर) उ0प्र) में हुआ। आपके पिता का नाम
आपने प्रतिज्ञा की थी कि 'मैं स्वतः किसी दुकान से श्री दौलत राम जैन था।
_ विदेशी कपड़ा या अन्य विदेशी वस्तु नहीं खरीदूंगा, वेंकटेश्वर समाचार का
जब तक स्वतंत्रता नहीं होगी, स्कूल में कोट सम्पादन करते हुए आप बापू
पहनकर नहीं जाऊँगा, मैं अंग्रेजी पुस्तक खरीद कर के सम्पर्क में आये, उनके आह वान पर 1930 के ।
नहीं पढूंगा, व्यर्थ पोस्ट और ट्रेन का खर्चा नही करूंगा।'
आ0- (1) जै) स) रा) अ), पृष्ठ-6) सत्याग्रह की ओर उन्मुख हुये। नन्द किशोर किलेदार के
श्री मदनलाल जैन प्रभाव में राष्ट्रीय जन आन्दोलन में पूर्णरूपेण संलग्न श्री मदनलाल जैन तलैन, जिला- राजगढ़ वैद्य जी 1930 में ही शराबबंदी के लिये पिकेटिंग (म0प्र0) निवासी थे। आपने कक्षा 8 तक शिक्षा करते हुये गिरफ्तार हुये तथा ललितपुर व उरई जेलों ग्रहण की और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी
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प्रथम खण्ड
269 निभाई। स्वतंत्रता की अलख जगाने का काम करते प्रजामण्डल के प्रेसीडेंट रहे। आपके भाई श्री पन्नालाल हुए अनेक यातनायें झेली और आर्थिक हानि भी जी तथा परिवार के अन्य सदस्य भी जेल गये। नवभारत उठाई।
ही लिखता है-'फरवरी 1943 में अपने मुखविरों से आ0-(1) मा प्र) स्व) से), भाग-5, पृष्ठ-117 सुराग मिलने के बाद पुलिस ने कुछ घरों पर ऐन सुबह श्री मन्नालाल जैन पंचोलिया
छापे मारे। श्री चितरंजन पंचोलिया (जिनके पिता श्री जागीरदार से अचानक कांग्रेसी बन बैठे श्री
र मन्नालाल पंचोलिया मंडलेश्वर जेल में बन्दी थे) और
श्री फकीरचंद (फणीन्द्रकुमार) जैन पकड़े गये और मन्नालाल जैन पंचोलिया, पुत्र-श्री पदमसा का जन्म 1896 में सनावद (म0प्र0) में हुआ। पहले पंचायत
उन्हें एक-एक माह की सजाएं हुईं। उनके तीन अन्य के मुखिया के नाते आपका अपना एक खास प्रभाव
साथी रूपचंद पारनी, सुमेरचंद जटाले और कुबेरचंद था। बारीक मलमल के कुरते, इन्दौरी चौंच पर पगड़ी
पंचोलिया चेतावनी देकर छोड़ दिये गये, ये सभी उस और बगुले सी सफंद महीन धोती के नीचे पावों में
- समय श्री दिगम्बर जैन हाईस्कूल में पढ़ते थे।'
समय पेटेण्टपम्प शू पहिने जब आप 'जागीरदार' (प्रचलित
आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-90 (2) सर्वश्रुत नाम) को कोई देखता तो किसी का रौब के जा) स0 रा0 अ0, पृष्ठ-75 (3) नवभारत, इन्दौर, 4 सित0 1997 कारण, किसी का प्रतिष्ठा और प्रतिभा के कारण हाथ
श्री मयाचंद जटाले अपने आप अभिवादन करने उठ जाता था। पर देश सनावद (म0प्र0) के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता की आजादी की ऐसी लगन लगी कि आप किसानी श्री मयाचंद जटाले, पुत्र- श्री रतनसा का जन्म 21 पूरी बांह की बंडी (वस्त्र विशेष) घुटनों तक खादी दिसम्बर 1915 को हुआ। 1940 से आप रा0आ0 की धोती, खादी की टोपी और वर्षों से बिना बदला में शामिल हो गये थे। आपने अपने जीवन का फ्रेम का चश्मा पहनने लगे और प्रजामण्डल के कार्यों प्रत्येक क्षण देशसेवा के लिए अर्पित कर दिया था। में सदैव संलग्न रहने लगे।
आप प्रजामण्डल के ठोस कार्यकर्ता रहे और निमाड़ 1942 में आपने लगभग डेढ़ वर्ष तक जिले के बड़वाह परगने में खोडे सा) के बाद जेल- यातनायें सहीं। नवभारत, इन्दौर, 4 सितम्बर 1997 उत्तरदायी शासन प्राप्ति के आन्दोलन में जेल जाने के अनुसार आपको जेल तोड़ने के आरोप में सात वर्ष वाले समाज के प्रथम व्यक्ति थे। आपको रचनात्मक की सजा हुई थी। पत्र लिखता है-'पांच जेलयात्री सर्वश्री कार्यक्रमों में पूर्ण विश्वास था। आपने सक्रिय रूप से मयाचंद जटाले, मन्नालाल पंचोलिया, नारायण दास सनावद में शुद्ध खादी व तेल भण्डार का सहकारिता जायसवाल, कमलचंद जैन और सुमेर चंद को जेल के सिद्धांत पर संचालन किया था। 1942 में आप में हो रही ज्यादतियों के खिलाफ बगावत करके 2 दूसरी बार गिरफ्तार किये गये व एक वर्ष एक माह अक्टूबर को मंडलेश्वर जेल तोड़ने, नगर में जाकर अट्ठाईस दिन बाद छोड़ दिये गये। मंडलेश्वर जेल गांधी जयन्ती की सभा में भाग लेने के आरोप में तोड़कर गांधी जयन्ती मनाने के कारण भी आपको सात-सात वर्ष की सजायें हुईं और उन्हें इन्दौर के 51 सात वर्ष की कैद हुई। आपका निधन 13 दिसम्बर सत्याग्रहियों के साथ सेन्ट्रल जेल भिजवा दिया गया।' 1988 को हो गया। कर्तव्य के कठोर और स्पष्टवादी पंचालिया जी राज्य आ()- (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ-91 प्रजामण्डल के प्राणवान् कार्यकर्ता रहे। आप सनावद (2) जै0 स0 रा) अ0 (3) नवभारत, इन्दौर, 4 सितम्बर 1997
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री महावीरप्रसाद जैन
आगे आपने बताया कि '1942 के भारत छोड़ो श्री महावीरप्रसाद जैन, पत्र- श्री कान्तिचन्द्र का आन्दोलन में अलवर प्रजामंडल ने मूक रहकर ही जन्म 10 जुलाई 1922 को ग्राम गोविन्दगढ़ (राजस्थान) आन्दोलन को देखने का तय किया, अत: हमने 17-18
में हुआ। आपने 1933 तक अक्टू0 42 की रात्रि को गुप्त बैठक में रेल के तार गांव में ही शिक्षा ग्रहण की। काटने व पोस्ट आफिस में आग लगाने का निर्णय किया, बाद में आप अलवर आ गये। फलत: 20-10-42 की रात्रि को विजय मंदिर रोड आपने अपने क्रान्तिकारी की रेलवे लाइन के तार काटे गये। 6-7 नवम्बर 1942 जीवन के सन्दर्भ में बताया कि की रात को तमाम पोस्ट ऑफिस व लैटर बॉक्सेज -1938 में मुझे क्रान्तिकारी में आग लगा दी गई।
साहित्य पढ़ने की रुचि उत्पन्न हमारा एक साथी अपनी गलती से 10-11-42 हुई, फलत: साहित्य पढ़ने वालों का एक सर्किल को गिरफ्तार कर लिया गया। उसने अपने दूसरे साथी बनाया। राज्य व जागीरदारों के विरुद्ध एक संगठन की का भी नाम बता दिया, वह भी गिरफ्तार हो गया। नींव डाली, जिसका उद्देश्य था कि राज्य व जागीरदारों तब तक हमें सूचना मिल गयी थी, अत: हीरालाल द्वारा जो अत्याचार। लगान। बेगार व सामाजिक व मैंने अपने सभी साथियों को कछ दिन के लिए अत्याचार किये जाते हैं, उनका विरोध करना। भूमिगत कर दिया व तय किया कि दोनों को कन्ट्रोल
संगठन का नाम पहले 'अजरदल' रखा फिर एक करने के लिए अपना गिरफ्तार होना जरूरी है, अत: साल बाद 'नवहिन्द पार्टी' व 1941 में 'रेवल्यूशनरी 11-11-42 को हम दोनों अपने-अपने घर से गिरफ्तार पार्टी ऑफ इण्डिया' रखा। संगठन में इस समय तक होकर कोतवाली पहुँच गये। तीन रोज तक हमें खडा 40-50 व्यक्ति हो गये थे। चूंकि हमारा सम्पर्क आगरा रखकर सोने न देकर यातनायें दी गई। हमसे जब कोई हो गया था जहाँ हम प्रोफेसर जंगबहादुर के सम्पर्क भेद मालूम नहीं हुआ तो हथकड़ी लगाकर पीटते हुए में आ गये थे, अतः उन्होंने अलवर में आकर हमें ट्रक तक ले गये और ट्रक में फेंक दिया। बम, बारूद, आदि बनाना सिखा दिया। हमारा कार्यालय दिनांक 14-12-42 को हमें 2 साल 9 माह पहाड़ों की गुफा में था, जहां रात को ही कार्य होता की कैद सुना दी गयी। जेल में 3 रोज की भूख हड़ताल था। हमारा संगठन चैन टाईप में था। केवल हम तीन जेल मैन्यूएल न दिखाने पर की। फिर 10-10 बेतों व्यक्ति थे जो सबको जानते थे। सदस्य एक दूसरे को की सजा दी गई व कालकोठरी में 15 दिन तक रखा जानते भी नहीं थे. पहचानते भी नहीं थे। हमारे सामने गया। मास्टर भोलानाथ जी का हमसे पूर्ण सम्पर्क जेल पैसों की बड़ी समस्या थी, कार्य बढ़ गया था, अतः में भी बना रहा। मैं तब दसवीं कक्षा में पढ़ता था। जब कार्य ठप्प होता नजर आने लगा तो मैं अपने घर अन्य साथी भी विद्यार्थी थे। अत: मास्टर भोलानाथ जी से 5 तोला सोने की जंजीर ले आया और हथियारों ने प्राईमिनिस्टर से मिलकर हमारे विद्यार्थी जीवन के के लिए साथी हीरालाल व किशन के द्वारा आधार पर हमें 5 माह बाद छुड़वा दिया। लक्ष्मणस्वरूप त्रिपाठी, जो क्रान्तिकारी विचारधारा के जेल से आते ही मैंने प्रजामंडल में विद्यार्थी मंच अलवर में अग्रणी नेता थे, को रिवॉल्वर खरीदने के पर कार्य करना आरम्भ किया। प्रारम्भ में मैं विद्यार्थी लिए दे दी।'
कांग्रेस का संयोजक हुआ, उसके बाद 1944 में अलवर
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प्रथम खण्ड
राज्य विद्यार्थी कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया। इसी बीच राज्य के सभी हाईस्कूलों व मिडिलस्कूलों में विद्यार्थी कांग्रेस की शाखायें खोली गयीं साथ ही 'राजस्थान विद्यार्थी कांग्रेस' की स्थापना के लिये जयपुर, उदयपुर, भरतपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा, शहपुरा, कोटा, बीकानेर आदि स्थानों पर मैंने सम्पर्क बढ़ाया।
1945 में 'ऑल इण्डिया स्टेट्स पीपुल' की कान्फ्रेंस पं0 जवाहरलाल नेहरू जी की अध्यक्षता में हो रही थी अतः यह तय किया गया कि उसी समय विद्यार्थी कांग्रेस का उद्घाटन कराया जाये । फलस्वरूप वहां राजस्थान के विद्यार्थी प्रतिनिधि इकट्ठे हुए और नेहरू जी के आदेश पर शेख अब्दुल्ला ने विद्यार्थी कांग्रेस का उद्घाटन किया। चुनाव में कु० सुशीला जी (श्री हीरालाल शास्त्री की साली) को अध्यक्ष बनाया गया, मैं उपाध्यक्ष हुआ व श्री शिवचरण माथुर मंत्री हुए। इस प्रकार राजस्थान विद्यार्थी कांग्रेस का संगठन
बन गया।
जैसे-जैसे अलवर रियायत में जागीरदारों के अत्याचार बढ़ते गये विद्यार्थियों का संगठन भी मजबूत होता गया। इसको शक्ति प्रदान करने के लिए मैं पहली बार डॉ() श्रीप्रकाश जी को देहली से कॉलेज पार्लियामेंट का उद्घाटन कराने अलवर लाया किन्तु तत्कालीन प्रिंसिपल श्री जयपाल सिंह राजपूत ने उनको कॉलेज में उद्घाटन करने की स्वीकृति नहीं दी तो कम्पनी बाग में ही उद्घाटन कराया गया। कुछ दिन बाद आगरा से श्री कृष्ण दत्त पालीवाल को विद्यार्थी कांग्रेस के तत्त्वावधान में बुलाया गया। बड़ी शानदार सभा हुई। इसके बाद प्रजामंडल के तत्त्वावधान में मेजर शाहनवाब आई (एनए) को बुलाया गया।
2-2-46 को खेड़ा मंगन सिंह में किसान सम्मेलन प्रजामंडल ने आयोजित किया। इस समय सरकार पूर्णरूप से झल्ला चुकी थी। उसने प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित कर दिया व सारे कार्यकर्ताओं
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को राज्य भर में गिरफ्तार कर लिया। हम 1-2-46 की रात को खेड़ा पहुंच गये थे, हमें वहां पता चला तो मैं मंडावर रेलवे स्टेशन पर गया क्योंकि मास्टर भोलानाथ जी जयपुर से आ रहे थे, उन्हें वहीं रोका और हम उनके साथ दौसा ( जयपुर ) चले गये जहाँ अलवर राज्य प्रजामंडल का कार्यालय स्थापित किया गया और आन्दोलन का संचालन वहीं से किया गया। एक माह बाद नेहरू जी के हस्तक्षेप पर जयनारायण जी व्यास आये और समझौता हो गया व प्रजामंडल के गैरकानूनी होने का आदेश वापिस ले लिया गया ।
प्रजामंडल ने आखिरी लड़ाई लड़ने का फैसला किया व 'गैरजिम्मेदार मिनिस्टरो कुर्सी छोड़ो' आन्दोलन शुरू करने का निर्णय ले लिया। राज्य सरकार ने झल्लाकर 24-8-46 को धारा 144 लगा दी। विद्यार्थी कांग्रेस ने चैलेंज स्वीकार कर 144 धारा तोड़ने का निश्चय किया।
हम लोगों ने नंगली के चौराहे से जुलूस शुरू किया। राज्यभर के स्कूल बन्द थे। करीब 20 हजार विद्यार्थी जुलूस में अनुशासन में तीन-तीन की कतार में चल रहे थे। जुलूस करीब एक मील लम्बा था । चारों ओर बाजारों में मुख्य-मुख्य स्थानों पर फौज खड़ी हुई थी। अपनी विजय की जयघोष करता हुआ जुलूस सुभाष चौक पहुँचा, जहाँ सभा में बदल गया। मेरी अध्यक्षता में ही सभा हुई, जो 12 बजे तक चली। वहां किसी को भी किसी के गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं हुई ।
करीब 2 बजे मैं अपने साथियों के साथ होप सर्कस आ रहा था । होप सर्कस में घुसने से पहले 10-15 सिपाही, कोतवाल, मजिस्ट्रेट ने आकर मुझे घेर लिया और गिरफ्तार कर लिया । आन्दोलन 26-8-46 से होना था मुझे पकड़कर उसी रोज जेल में बन्द कर दिया । आन्दोलन ता0 2-9-46 तक चला और राज्य सरकार ने अपनी पूर्ण रूप से हार
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स्वीकार कर ली। सभी कार्यकर्ताओं को, जो करीब 400 थे, छोड़ दिया गया।
आजादी के बाद मैंने राजनीति छोड़ दी और पुलिस में भर्ती हो गया, जहाँ से 24 फरवरी 1982 को सेवामुक्त हुआ हूँ।' अपने पुलिस जीवन के संस्मरण बताते हुए आपने कहा कि 'मैं पुलिस में उपनिरीक्षक के पद पर नियुक्त हुआ था। 1971 में एस एच ओ (O) ब्यावरा सिटी था। उस समय अफीम का अन्तरदेशीय नाजायज व्यापार करने वाले गिरोह को पकड़ा जिसके कब्जे से 319 किलो अफीम पकड़कर मैंने अपना विश्व रिकार्ड बनाया जो अभी तक कायम है'। आपने अपने जीवन में लगभग 250 प्रमाणपत्र व अवार्ड प्राप्त किये। धार्मिक भावना सम्पन्न श्री जैन ने लगभग सभी जैन तीर्थों के दर्शन किये हैं आपने 'पं) दौलतराम व्यक्तित्व व कृतित्व' तथा 'जैनधर्म द्रव्य - अवस्था' आदि पुस्तकें भी
लिखी हैं।
आ)- (1) प) ड), पृष्ठ-136 (2) जै० स० बृ० इ०, पृष्ठ 372 ( 3 ) स्व() प( ) (4) सा), तिजारा, 1 नव) 1998
श्री महावीरप्रसाद जैन
फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री महावीरप्रसाद जैन 1930 में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। नमक सत्याग्रह, शराब बन्दी, विदेशी वस्त्र बहिष्कार आदि आन्दोलनों में आपने खुलकर भाग लिया था । 26 जनवरी 1932 को जुलूस निकालते समय अनेक महिलाओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया और जुलूस पर डण्डे बरसाये। उसके विरोध में शाम की होने वाली सभा का ऐलान करते हुए आपको गिरफ्तार कर लिया गया और 3 माह की कैद व 100 रु० जुर्माना की सजा दी गई, जुर्माना न देने पर घर सारे सामान की कुर्की की गई थी।
आ)- (1) जै) से० ना० अ), पृष्ठ- 04 (2) अमृत,
पृष्ठ 25
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री महेन्द्रकुमार मानव
मध्य प्रदेश के प्रख्यात राजनेता, कुशल पत्रकार, सजग साहित्यकार, सहृदय समाज सेवी और राष्ट्रीय आन्दोलन के कर्मठ सिपहसालार श्री महेन्द्रकुमार मानव, पुत्र- श्री ब्रजलाल जैन का जन्म मध्य प्रदेश के छतरपुर में फाल्गुन शुक्ल 13 संवत् 1977 (1921 ई0 ) को हुआ। अल्पवय में ही पिता का साया उठ गया एवं 9 वर्ष बाद 1930 में विवाहिता बहिन व सबसे छोटे भाई की मृत्यु भी इन्हें अपने पथ से डिगा नहीं सकी। अपितु उसने भी इन्हें कर्मठता ही प्रदान की। संस्कृत पाठशाला के बाद महाराजा हाईस्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा पास की जिसमें सर्वोच्च स्थान मिला। 1939 में छतरपुर में नवयुग पुस्तकालय की स्थापना इनका साहसिक कदम था। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 'मानव' जी ने हिस्सा लिया और दस माह होशंगाबाद व जबलपुर की जेलों में बंद रहे।
'मानव' जी ने संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा प्रयाग वि) वि) से पासकर भारतीय विद्याभवन में रिसर्च फैलो और बाद में बम्बई के ही सिडनहम कालेज में अध्यापन का कार्य किया। 1949 में वे रीवा में संस्कृत के व्याख्याता बने। इसी बीच 'विन्ध्य प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना की और ठक्कर वापा तथा प्रसिद्ध साहित्यकार श्री वियोगी हरि के साथ सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड का दौरा किया। एल) एल) बी) की परीक्षा भी आपने पास की थी।
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देश की स्वाधीनता के बाद आप सर्वप्रथम छतरपुर नगर पालिका के सदस्य चुने गये। 1952 में लौंड (छतरपुर) से विन्ध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गये और विन्ध्य प्रदेश के पहले शिक्षा व
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प्रथम खण्ड
273 बाद में वित्त एवं समाजसेवा मंत्री बने। उन दिनों एक साक्षात्कार में आपने 1942 के आन्दोलन तथा आप पूरे भारत में सबसे छोटी उम्र के मंत्री थे। अपनी जेलयात्रा के सन्दर्भ में बताया था किआपने छतरपुर से साप्ताहिक 'विन्ध्याचल' पत्र निकाला। 'दिनांक 9 अगस्त 1942 को कांग्रेस के बम्बई आपने ही बुन्देलखण्ड की पंचवर्षीय योजना बनाई अधिवेशन में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का प्रस्ताव थी व खजुराहो के विकास में भारी योगदान दिया। पास किया गया। उसी दिन अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेस विन्ध्य प्रदेश जब मध्यप्रदेश बना तो उसमें आप के सभी बड़े नेताओं को बन्दी बना लिया। इसकी सहयोगी रहे। 1967 एवं 72 में पुन: म0प्र0 विधानसभा खबर सारे देश में बिजली की तरह फैल गई। उन के सदस्य निर्वाचित हुए। कई देशों का दौरा किया दिनों मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एल0एल0बी0 और म0प्र) की अनेक कमेटियों, बोर्डो, संघों के प्रीवियस का विद्यार्थी था और जैन होस्टल में रहता अध्यक्ष/मंत्री रहे। म0प्र0 स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ था। मेरी माँ और मेरा अनुज सुरेन्द्र कुमार भी इलाहाबाद के भी आप मंत्री रहे।
में रहते थे। नेताओं के जेल में बन्द हो जाने पर आचार्य रजनीश के दर्शन से भी आप कुछ जनता ने आन्दोलन अपने हाथ में ले लिया। गांधी दिनों प्रभावित रहे। रजनीश के साथ अनेक शहरों जी का आदेश था ही 'डू एण्ड डाई'। इलाहाबाद के की यात्रायें आपने की, शिविरों का संचालन किया छात्रों ने भी आन्दोलन बढ़ाने का निश्चय किया। और उनकी प्रारम्भिक पुस्तक 'पथ के प्रदीप' का दिनांक 12 अगस्त 1942 को विश्वविद्यालय प्रकाशन तथा मासिक पत्रिका 'सम्बोधि' का सम्पादन प्रांगण में छात्रों की सभा हुई, जिसमें निश्चय किया भी किया।
गया कि छात्रों के दो दल बनाये जायेंगे। एक दल आपने मारीशस के द्वितीय हिन्दी विश्व सम्मेलन चौक जाकर टावर पर तिरंगा झंडा फहराएगा और में भाग लिया था। नेपाल आदि अनेक देशों की यात्रा दूसरा दल जिला कचहरी जाकर कचहरी की इमारत की थी, पृथक् बुन्देलखण्ड राज्य के निर्माण के लिए पर तिरंगा झंडा फहराएगा। चौक पर जाने वाले छात्रों आप संघर्षरत रहे। 1952 से ही ‘पंचायत राज' मासिक के दल में मैं था और जिला कचहरी जाने वाले दल का सम्पादन/प्रकाशन कर रहे हैं। आपकी कृतियों में में मेरा अनुज सुरेन्द्र कुमार। दोनों दल नारे लगाते, 'मुझे मनुष्य की गन्ध आती है' (कविता संग्रह), गीत गाते, तोड़-फोड़ करते अपने पथ पर अग्रसर 'कलातीर्थ खजुराहो' आदि प्रमुख हैं। अनेक लेख, हुए। कचहरी जाने वाले दल में मेरे भाई के अलावा कविताये, कहानियाँ. यात्रावर्णन भी विविध छतरपुर के श्री जंगबहादुर सिंह भी थे। माधवगढ के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। हाल ही में लाल पद्मधार सिंह ने कचहरी की इमारत पर चढ़कर आपके अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रथम खण्ड 'THE GLORY तिरंगा फहरा दिया। वे गोली के शिकार हए और THAT WAS BUNDELKHAND' के नाम से प्रकाशित शहीद हो गए। छात्रों की भीड़ को तितर-बितर करने हुआ है जो लगभग 6500 पृष्ठ का है। जैन समाज के के लिए घोड़े दौड़ाए गए और लाठी चार्ज किया कार्यक्रमों में भी आप समय-समय पर भाग लेते रहे गया। हैं। विशेषत: जैन विद्वानों की संस्थाओं से आप जुडे विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थायें बंद कर रहे हैं। विद्वत्सम्मेलनों के अवसर पर हमें अनेकों दी गईं। होस्टल खाली कराने के आदेश हो गए। बार 'मानव' जी के दर्शनों का सौभाग्य मिला है। शहर में मुर्दनी छा गई, 'शूट एट साइट' का आर्डर
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन हो गया। सड़कें सुनसान हो गईं। शहर की ऐसी दशा रहे हैं। जबकि डी0आई0आर) अंग्रेजों के खिलाफ में मैं 18 अगस्त तक इलाहाबाद में रहा। 18 अगस्त लगाया जाना चाहिये क्योंकि वे भारत के लिए खतरा को हम तीनों इलाहाबाद छोड़कर अमरपाटन पहुंच हैं। पुलिस ने उपस्थित जनसमूह पर लाठीचार्ज किया। गए। अमरपाटन में भी आंदोलन शुरू हो गया था। मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और दो महीने होशंगाबाद राष्ट्रीय आंदोलन के साथ एक मांग और जोड़ ली जेल में विचाराधीन बंदी के रूप में रखा गया। मेरे गई थी। महाराज गुलाबसिंह को वापस करो। साथ जेल में माखनलाल चतुर्वेदी के भाई रामकुमार
हम दोनों भाई वहाँ आन्दोलन में शरीक हो चतुर्वेदी, हरीप्रसाद चतुर्वेदी, एन0कुमार, हजारीलाल गए। कुछ दिन बाद ही हम दोनों भाइयों के खिलाफ मस्ते, हरदा के दादा भाई नायक, बन्धे गुरू, रामेश्वर रीवां स्टेट का वारंट निकल गया। जब मामा ने यह अग्निभोज आदि अनेक नेता थे। सुना तब वे बहुत घबड़ा गए। 26 अगस्त को रक्षा मजिस्ट्रेट सुंदरलाल वर्मा ने मुझे छ: महीने की बंधन था। 25 अगस्त को हम दोनों माँ को रोती कठोर कारावास की सजा दी और मैं 7 दिसम्बर 1942 बिलखती छोडकर अज्ञात की ओर बढ़ गए। मैंने को सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। वहाँ मेरा कैदी नं0 अपनी माँ से वादा किया कि मैं ऐसी जगह काम 7305 था। मेरे बैरक में प्रोफेसर बी0एस) अधोलिया, करूंगा कि यदि मैं वहां गिरफ्तार हो गया तो आपको ठाकुरदास बंग, जनरल आवारी,हातेकर, मोहगांवकर, सूचना मिल जाएगी। हम दोनों मैहर पहुंचे। मैहर से ऋषभदास काले, हेमराज पांडे आदि अनेक नेता थे। मैं होशंगाबाद चला गया, जहां मेरे मौसा मस्ते जी चूंकि मैं जेल के कपड़े नहीं पहन रहा था इसलिए रहते थे और सुरेन्द्र बांदा चला गया, जहाँ मां के मुझे एक हफ्ते गुनाहखाने तन्हाई में रखा गया। तन्हाई मामा रहते थे।
में समय काटना एक समस्या थी। पहली रात मैंने, जो होशंगाबाद पहुंचकर मैंने आंदोलन में हिस्सा लेना कुछ मुझे याद था, उसका पाठ करके बिताई। दिन शुरू किया। हम लोग ट्रेनों में पर्चा चिपकाते और प्रचार में कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक सात कदम कार्य करते। उन्हीं दिनों मैं नागपुर गया और शहर रखकर जाता और लौटता था जैसे शेर अपने पिंजरे को जलते देखा। पोस्टआफिस जलाए जा रहे थे। में चक्कर लगाता है। सरकारी कार्यालयों पर धरना दिया जा रहा था। दूसरी कोठरी के एक बंदी ने मेरे पास एक सरकार का काम-काज ठप्प किया जा अंग्रेजी उपन्यास भिजवाया जिसका नाम 'टेन मिनिट रहा था और अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए कहा एलीबी' था। एक दो दिन उसे पढ़ने से काटे फिर जा रहा था।
बैरक में भेज दिया गया। बैरक में हम लोग गेहूं बीनते, उन्हीं दिनों मैं बम्बई गया, 8 दिन रहा और निवाड़ बनते , और इसी तरह के दूसरे आंदोलन की गर्मी और तेजी का प्रत्यक्षदर्शी रहा। फिर साधारण काम करते। क्योंकि मैं बी0ए) पास हो गया मैं होशंगाबाद लौट आया। 9 अक्टूबर 1942 को नर्मदा था इसलिए मुझे बी0क्लास में रखा गया था। नाश्ता तट पर विशाल जनसभा को संबोधित कर रहा था। और दोनों टाइम खाना मिलता था। नाश्ते में छह छटाक मैंने अपने भाषण में कहा था कि अंग्रेज भारतीयों पर दूध, दो तोला शक्कर और डबल रोटी के दो टुकड़े 39 डी0आई0आर0 डिफेंस आफ इंडिया रूल्स लगा मिलते थे। जनरल आवारी और मैंने 'सिविल प्रोसीजर रहे हैं और भारतीयों को भारत के लिए खतरा बता कोड' और 'इंडियन पीनल कोड' की प्रत्येक दफा
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AE नहीं हैं।
प्रथम खण्ड
275 में संशोधन किया। यह सोचकर कि जब भारत स्वतंत्र प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी, साहित्यकार, पत्रकार, होगा तब इन कानूनों में क्या परिवर्तन किया जाएगा। जैन साहित्योद्धारक, प्रकाशक और श्री बनारसी दास हम लोग जेल के नियम नहीं मानते थे। इसलिए
चतुर्वेदी के शब्दों में 'अखिल हमारी सारी सुविधाएं-पत्र लिखना, संबंधियों से मिलना
भारत के चोटी के हिन्दी आदि बन्द कर दी गई थीं। मैंने कारावास में लगभग
सेवक' महेन्द्र जी के नाम 100 पुस्तकें पढ़ी थीं। गुनहखाने में क्रांतिकारी सुरेन्द्र
से आगरावासी अपरिचित नाथ सर्किल थे। उन्होंने मेरे पास पढ़ने के लिए एक पुस्तक भिजवाई थी जिसका नाम था 'दी वायेज आफ
महेन्द्र जी का जन्म 19 कोमागाटा मारु'। उन्हीं दिनों मैंने मोपासा का कहानी L DER1 जनवरी 1900 को जारौली संग्रह पढ़ा था। जैन कट्टरता के खिलाफ बोलने से ग्राम में श्री भगवती प्रसाद जी के घर द्वितीय पुत्र के एक जैन कैदी ने मझ पर चाक से वार कर दिया था। रूप में हुआ। आपका लालन-पालन नाना के घर
जब मेरी सजा की अवधि पूरी हो गई तब 22 आगरा में हुआ। हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अप्रैल सन् 1943 को मझे छोडा जाना था लेकिन छोडते आप स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गये। वक्त सुपरिटेंडेंट दाते ने पूछा कि क्या कैदी पिछली 1930 में आप 'सैनिक' के प्रकाशन के दौरान परेड में खड़ा हुआ था' जब उन्हें बताया गया कि प्रथम बार नजरबंद हुए और छ: माह की सजा सेन्टल नहीं खड़ा हुआ था तब उन्होंने नया वारंट मंगाने को जेल आगरा में काटी। ‘सैनिक' का प्रकाशन बंद होने कहा और प्रिजन्स एक्ट की दफा 52 के अन्तर्गत मुझे के बाद आपने 'सत्याग्रह समाचार' निकाला। जुलाई पुनः बंदी बना लिया गया। मैं जेल के बड़े चक्कर 1930 में महेन्द्र जी ने 'हिन्दुस्तान समाचार' पत्र से छोटे चक्कर में भेज दिया गया। इस समय मेरे कमरे प्रकाशित किया। जिसे अंग्रेजी सरकार ने 10 अंकों में जबलपुर के प्रसिद्ध पत्रकार हकमचंद नारद (जैन) के प्रकाशन के बाद ही बंद करा दिया। दिसम्बर 1930
थे। मेरे ऊपर मुकदमा चलने लगा। दो महीने तक आपके घर की 5 बार तलाशी ली गयी। पांचवीं विचाराधीन बंदी रहा। इस प्रकार कुल दस माह जेल तलाशी में उनके घर से ‘सिंहनाद' के मेटर का कार्बन में बंदी रहकर बाहर आया। एक बात और बतला दूं पेपर मिला, उन्हें छः माह की सजा तथा 250 रु0 राष्ट्रप्रेम के कारण मैं जेल में गया लेकिन एक का जुर्माना भुगतना पड़ा और प्रतापगढ़ जेल भेज दिया साहित्यकार होने के नाते मेरे मन में यह इच्छा थी गया। कि मैं जेल में जाकर कैदियों की जिंदगी का भी 1934 में आगरा में 'आरती-नमाज' के सन्दर्भ अध्ययन करूं।----आदि।'
में आपकी सेवाओं की सर्वत्र सराहना हुई थी। आगरा आ- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-112 (2) में नूरी दरवाजे तथा फुलट्टी में होकर जैन रथयात्रा नहीं प0 जै) इ0, पृ0-387 (3) स्व0 प0 (4) सा0 (5) वि0 स्व० निकल पाती थी आपने आगरा दिगम्बर जैन स0 इ0, पृष्ठ-294
परिषद् के सभापति के नाते प्रयत्न किया और श्री महेन्द्र जी
सफलता पाई। अपने मित्रों और प्रशंसकों में महेन्द्र कुमार से
1937 में कांग्रेस मंत्रिमण्डल बनने पर आपने 'महेन्द्र जी' कहलाने लगे आगरा (उ0प्र0) के ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य किये जिनकी प्रशंसा संबंधित
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अधिकारियों ने की थी। 1940 के आंदोलन में आपको थे। इस संस्थान में लगभग 5 हजार जैन ग्रंथों की जेल में बंद कर दिया गया और आंदोलन समाप्त होने पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हैं। इस संस्थान को हमें देखने पर छोड़ा गया। 1941 में आप अप्रैल से नवम्बर तक का अवसर मिला है। नजरबन्द रहे।
आगरा कॉलेज एवं नागरी प्रचारणी सभा में 1942 के आंदोलन के समय आप पुनः प्रकाशन अनेक पदों पर रहकर आपने महत्त्वपूर्ण योगदान के कार्य में लग गये और 'लाल पर्चा' ऐसा छापा जिसने दिया। नगर महापालिका के शिक्षा अध्यक्ष पद पर भारतवर्ष के कोने-कोने में तहलका मचा दिया। 'आजाद भी रहे। महन्द्र जी के बड़े पुत्र श्री भारतेन्दु जैन भी हिन्दुस्तान' नाम से एक समाचार पत्र भी आपने आगरा नगर महापालिका के सदस्य रहे, उन्होंने चीन प्रकाशित किया। इस प्रकाशन से अंग्रेजी सरकार परेशान आक्रमण के समय स्टेशनों पर जाकर जवानों का हो गयी। महेन्द्र जी व उनके साथियों ने इन्कम टैक्स स्वागत किया था। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती अंगूरीदेवी के कागज जलाये व तोड़फोड़ आंदोलन में भाग लिया। ने भी स्वाधीनता संग्राम में आगे बढ़ कर हिस्सा
1942 के आंदोलन में 9 सितम्बर को गिरफ्तार लिया। (इनका परिचय पीछे दिया जा चुका है) कर आपको जेल भेज दिया गया तथा एक जेल में महेन्द्र जी के निधन पर प्रसिद्ध साहित्यकार नहीं रखा गया, बार-बार स्थान बदले गये। महेन्द्र जी श्री बनारसीदास चतुर्वेदी ने उन्हें जो श्रद्धांजलि अर्पित आगरा, उन्नाव, एटा, फर्रुखाबाद, प्रतापगढ़ आदि की की थी वह महेन्द्र जी के व्यक्तित्व को पूर्णत: जेलों में बंद रहे। जेल में उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं रेखांकित करती है। विशेषतः उनके हिन्दी दी गयीं और दो दिन के लिये काल कोठरी में रखा सेवी रूप को। श्रद्धांजलि के कछ अंश हम साभार गया, तब उनके साथियों ने अनशन और आंदोलन किया, यहाँ दे रहे हैंजिससे सरकार ने आपको 11 दिसम्बर 1942 को 'बन्धवर' महेन्द्र जी के चले जाने से हृदय पेरोल पर छोड़ दिया था। इस समय आपका 'साहित्य' को धक्का लगा। उनसे मेरा पचास वर्ष से संबंध प्रेस तथा मासिक 'साहित्य संदेश' बंद करा दिया गया था और वह कौटुम्बिक धरातल तक पहुँच गया था। था।
उनके पूज्य पिताजी को शमसाबाद में हमारे उन्नाव जेल से जब महेन्द्र जी को छोड़ा गया कक्का ने पढ़ाया था और हम मजाक में कभी-कभी तब ब्रिटिश सरकार से गांधी जी का समझौता हो चुका महेन्द्र जी से कहते थे- 'तुम तो हमारे परम्परागत था। महेन्द्र जी का स्वास्थ्य जेल में बहुत बिगड़ गया शिष्य हो' और महेन्द्र जी इसे सहर्ष स्वीकार कर था। जेल से छूटने के बाद उनका इलाज कराया गया। लेते थे। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य ठीक हुआ उसके बाद आप जब हमारे अनुज स्व) रामनारायण को आगरा पन: राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यों में लग गये। कॉलेज में अध्यापन कार्य मिला और वह गोकुल
साहित्य और प्रकाशन के क्षेत्र में महेन्द्रजी का पुरा में मकान किराये पर लेकर रहने लगा तो हमारे विशेष योगदान है। आपने जैन समाज के सुधार के कक्का भी वहीं पहुँच गये और तब महेन्द्र जी का
लये अनेक कार्य किये। आप अनेक वर्षों तक महावीर हम लोगों से और भी घनिष्ठ संबंध हो गया। महेन्द्र दिगम्बर कॉलेज के मैंनेजर रहे। आगरा में एक जैन जी ने अपने पिताजी के गुरु की सेवा करने का कोई शोध संस्थान है। महेन्द्र जी इसके संस्थापकों में एक मौका हाथ से नहीं जाने दिया।
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प्रथम खण्ड
कक्का साहित्य रत्न भंडार जाते और कहते 'बेटा महेन्द्र' महेन्द्र जी तुरन्त कहते 'आज्ञा दीजिये ' कक्का जी उनसे आवश्यकतानुसार 20-25 रु0 उधार ले आते और अपनी सुविधानुसार लौटा भी देते ।
एक बार हमारे घर में मेज की जरूरत आ पड़ी। कक्का ने महेन्द्र जी के पास जाकर कहा 'हमें एक छोटी मेज चाहिये' उसी समय महेन्द्र जी ने मेज खरीदकर हमारे घर भिजवा दी। वह वर्षों तक हमारे घर की शोभा बढ़ाती रही और उसका नाम पड़ गया 'महेन्द्र जी की मेज।'
महेन्द्र जी बड़े विनयसंपन्न व्यक्ति थे और हमारी कई साहित्यिक योजनाओं में उन्होंने भरपूर सहायता भी दी थी। जब राजा लक्ष्मण सिंह की शताब्दी मनाने की बात हमें सूझी तो महेन्द्र जी ने तुरन्त उसके लिये आर्थिक व्यवस्था कर दी।
बेशुमार पत्र व्यवहार की बीमारी तब तक मुझे लग चुकी थी और न मालूम कितने पत्र इस समय मैंने लिखे पर पोस्टेज का समस्त व्यय महेन्द्र जी ने नागरी प्रचारिणी सभा से मुझे दिलवा दिया। उन दिनों मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । इसलिए फिरोजाबाद से आगरा आने-जाने का खर्च भी महेन्द्र जी ही देते थे। मैंने यह नियम बना लिया था कि प्रत्येक यात्रा में तीन रुपये मैं महेन्द्र जी से वसूल कर लूंगा। वे मेरा आतिथ्य भी करना चाहते थे पर बन्धुवर हरीशंकर जी कभी यह सहन नहीं कर सकते थे कि मैं कहीं अन्यत्र ठहरू।
वे भी क्या दिन थे! महेन्द्र जी मिशनरी भावना से ओतप्रोत होकर नागरी प्रचारिणी सभा के लिये चंदा करते थे और कभी-कभी गलतफहमी के शिकार हो जाते थे। हमारे देश में ऐसे आदमियों की कभी कमी नहीं रही जो 'बिन काज दाहिने बाऐं पर महेन्द्र जी ऐसे निराधार विरोध की कभी चिन्ता
नहीं की।
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277
जब सत्यनारायण 'कविरत्न' की कविताओं के संग्रह के प्रकाशन का सवाल मेरे सामने आया तो मुझे फिर महेन्द्र जी की शरण लेनी पड़ी। इस शुभ कार्य को भी उन्होंने सम्पन्न कराया। 'हृदयतरंग' के दो संस्करण उन्हीं की देखरेख में छपे ।
दिगम्बर जैन इण्टर कॉलेज के लिये महेन्द्र जी ने जो कार्य किया वह आगरे की शिक्षा के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। नागरी प्रचारिणी सभा की उन्नति में महेन्द्र जी का योगदान सर्वोच्च स्थान रखता है।
मैंने महेन्द्र जी से कहा 'अगर आपका पूरा-पूरा सहयोग मिले तो मैं आगरे को अपना कार्यक्षेत्र बनाने को तैयार हूँ' इस पर वे बोले 'चौबे जी ! अब मेरा स्वास्थ्य इस काबिल नहीं कि मैं कोई सक्रिय सहयोग दे सकूं।'
उनके उस समय के थके थकाए चेहरे तथा क्षीण वाणी का मुझे अब भी स्मरण है। वे अपना काम कर चुके थे और पूर्ण विश्राम चाहते थे ।
वैसे तो महेन्द्र जी की गणना अखिल भारत के चोटी के हिन्दी सेवकों में की जा सकती है पर वे ब्रज की विभूति थे और आगरे के साहित्यिक तथा सांस्कृतिक जीवन के प्राण |
आ०- (1) स्व0 महेन्द्रजी की धर्मपत्नी श्रीमती अंगूरी देवी द्वारा प्रदत्त परिचय, (2) श्रद्धेय पं0 बनारसीदास चतुर्वेदी की श्रद्धांजलि आदि। (3) जै० स० रा० अ० (4) उ0 प्र0 जै० ध०, पृष्ठ - 89 (5) गो० अ० ग्र०, पृष्ठ-224-225
श्री महेशचंद जैन आयुर्वेदाचार्य
कानपुर (उ0प्र0) के श्री महेशचंद जैन प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी व देशभक्त वैद्य कन्हैयालाल के पुत्र थे। आपके पिता-माता व भाई सुन्दरलाल जी जेल यात्री रहे हैं। कानपुर का चांद औषधालय आपके तत्त्वावधान में शुरू हुआ था। नव-युवकों में स्वाधीनता आन्दोलन हेतु स्फूर्ति का संचार करने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वाले श्री जैन को 1940 में 2 माह का कारावास यों में सक्रिय रहे। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भुगतना पड़ा था।
आपने भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में आ0-- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) पं0 बच्चूलाल जी 14 माह की जेल यात्रा आपने काटी। द्वारा प्रदत्त परिचय
नवभारत, इन्दौर (दिनांक 4 सितम्बर 1997) श्री मांगीलाल उर्फ
आपकी गिरफ्तारी के सन्दर्भ में लिखता है- (19 अगस्त महेन्द्रकुमार बड़जात्या 'आजाद'
से सत्याग्रह के बाद) 'सत्याग्रह करते हए एक के 'आजाद' उपनाम से विख्यात इन्दौर (म0प्र0) बाद एक प्रजामण्डल के नेता गिरफ्तार होते रहे। पहले के श्री मांगीलाल उर्फ महेन्द्र कुमार बडजात्या, पत्र-श्री जत्थे में मयाचंद जटाले, मन्नालाल पंचोलिया और पूनमचंद जैन का जन्म 1915 में हुआ। 1942 के
नारायणदास जायसवाल पकड़े गये। फिर तीसरे दिन भारत छोड़ो आन्दोलन में आप सक्रिय रहे तथा 5
बारी आई अध्यक्ष कमलचंद जैन, मांगीलाल पाटनी,
सुमेरचंद जैन और छात्र नेता जगदीश चन्द्र विद्यार्थी माह से अधिक का कारावास आपने भोगा।
की...।' आप जड़ी बूटी विशेषज्ञ हैं और आ)-(1) म0 प्रा) स्व) सै, भाग-4, पृष्ठ-36
नि:शुल्क आयुर्वेदिक उपचार करते हैं। धर्म ग्रन्थो श्री मांगीलाल जैन
का अध्ययन, शास्त्र प्रवचन, मुनिसेवा में आपकी झाबुआ (म0प्र0) के श्री मांगीलाल जैन, पुत्र-श्री अभिरुचि है। वेणीचन्द जैन का जन्म 1927 में हुआ । 1944 से
आ) (1) म0 प्र0 स्व) और, भाग- 4, पृष्ठ- 01 (2) 48 तक पिपलौढ़ा, जिला-रतलाम में आपने विभिन्न स्व) प((3) नवभारत, इन्दौर, 4-9-1997
आन्दोलनों में भाग लिया, फलतः गिरफ्तार कर 12 दिन जेल में रखा गया पर नाबालिग होने के कारण
श्री माखनलाल जैन 'बन्दी' छोड दिया गया।
'बन्दी' उपनाम से प्रसिद्ध श्री माखनलाल जैन, आO-(1) म0 प्र0 स्व0 से0, -:, ए-144 पुत्र-श्री फदालीलाल का जन्म 1920 में सागर
(म0प्र0) में हुआ। आपने संस्कृत विशारद तक शिक्षा श्री मांगीलाल सदासुख पाटनी
प्राप्त की। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में 2 माह श्री मांगीलाल पाटनी, पुत्र-श्री सदासुख पाटनी तथा 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में लगभग नौ का जन्म 1906 में कुचामन (राजस्थान) में हुआ। माह का कारावास आपने भोगा। 1917 में माता-पिता के
आ) (1) म0 प्र0 स्व) 30, भाग-2, पप-53 (2) निधन के पश्चात् आप अपने
आ) दी0, पृष्ट-71 काका रिखवदास जी के पास सनावद (म0प्र0) आकर रहने
श्री माणकलाल जैन लगे। मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण शाजापुर (म0 प्र0) के श्री माणकलाल जैन, कर आपने 1930 में विदेशी पुत्र-श्री मौजीलाल जैन का जन्म 1916 में हुआ।
वस्त्रों की होली जलाने के विद्यार्थी जीवन से ही आप रा0 आO में सक्रिय हो आंदोलन से सार्वजनिक जीवन में कदम रखा। इन्दौर गये। आपने अनेक बार जेलयात्रायें की पर कर्तव्य पथ राज्य प्रजामण्डल के नेतृत्व में राजनीतिक गतिविधि से हटे नहीं। लेखन तथा पत्रकारिता से सदैव जुड़े रहे
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प्रथम खण्ड
279 श्री जैन जिला एवं नगर कांग्रेस के पदाधिकारी के आधार पर नेमावर, जिला-देवास को सिद्धक्षेत्र के रहे हैं।
रूप में विकसित करने के कार्य में सलंग्न हैं। आ0-(1) स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय जनजागरण में
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-345 शाजापुर जिले का योगदान (टंकित शोध-प्रबन्ध, 1996)
(2) स्व) स0 हो०, पृष्ठ-132 (3) हरदा और स्वतंत्रता संग्राम,
पृष्ठ-79 (4) स्व) प) श्री माणकलाल जैन
श्री माधवसिंह जैन 'संत' झाबुआ (म0प्र0) के श्री माणकलाल जैन, श्री माधवसिंह जैन का जन्म मंदसौर (म0 पुत्र-श्री गुलाबचंद जैन ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग प्र0) में 3 जून 1906 में हुआ था। आपके पिता श्री लिया। आजादी के बाद शासन ने प्रशस्ति पत्र प्रदान पन्नालाल जैन मंदसौर में ही एक साधारण व्यवसायी कर आपको सम्मानित किया है।
थे। स्वतंत्रता आंदोलन में श्री जैन ने 1924 के आ0--(1) म0प्र0 स्व) से), भाग-4, पृष्ठ-144
लगभग प्रवेश किया। श्री जैन, जिन्हें कालान्तर में
'संत' कहा जाने लगा था श्री हरिभाऊ उपाध्याय से श्री माणकलाल जैन
बहुत प्रभावित थे। उनके भाषणों से ही प्रभावित इन्दौर (म0प्र)) के श्री माणकलाल जैन, होकर श्री जैन आंदोलनकारियों के लिये महत्त्वपूर्ण पुत्र-श्री दीपचन्द का जन्म 1927 में हुआ। 1942 के आवश्कयता हो गये थे। 'जो काम किसी से न हो भारत छोड़ो आन्दोलन में दि) 11-10-42 से उसे माधव करेगा' ऐसी उक्ति उस समय प्रचलित 29-11-43 तक का कारावास आपने भोगा। थी। प्रचार साहित्य बांटना हो, दीवारों पर पोस्टर आ0-(1) म प्र) स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-36 चिपकाना हों, सूचनाएं लाना-ले जाना हों अथवा नारे
लगाना हों, सब में श्री जैन सबसे आगे रहते थे। श्री माणिकचंद जैन पाटनी
माधवसिंह जी कुछ समय राजस्थान भी रहे हरदा, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री माणिक और फिर बंगाल चले गये। कलकत्ता में रहकर चन्द जैन पाटनी, पुत्र-श्री बल्देव पाटनी का जन्म आपका सम्पर्क वहां के अनेक क्रांतिकारियों से
22 अक्टूबर 1922 को हुआ। हुआ। कलकत्ता उस समय क्रान्तिकारियों का प्रमुख पाटनी जी ने भारत छोड़ो केन्द्र था। इन्हें अनेक बार गिरफ्तार किया गया व आन्दोलन में भाग लिया और फिर कुछ दिनों बाद छोड़ भी दिया गया। नवभारत 14 अगस्त 1942 को टाइम्स, बम्बई के कार्यालय में भी आपने सेवा की गिरफ्तार कर होशंगाबाद जेल व बम्बई रहकर आंदोलन में भाग लेते रहे। आप में भेजे गये। कछ दिनों बाद एक सतर्क पत्रकार भी थे। जबलपर जेल भेज दिये गये। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान
आपने चार माह की सजा आपको कलकत्ता में गिरफ्तार कर लगभग 7 माह काटी। आपने शासकीय पेंशन लेने से इंकार कर कारावास में रखा गया। वहां से मुक्त होकर आप
वापिस मंदसौर आ गये व जीवनपर्यन्त राष्ट्रीय चेतना दिया क्योंकि आपका विचार है कि-'हमने देशहित वा
, के कार्य में लगे रहे। श्री जैन का देहावसान 1971 के लिये काम किया है, किसी लाभ के लिये नहीं।'
में जावरा में हुआ। सम्प्रति आप निर्वाण कांड गाथा में उल्लिखित
आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-217 - रावण के सुत आदि कुमार मुक्ति गये रेवा तटसार' (2) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-50-51
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री मानकचंद 'मुल्ला' जैन
श्री मानक लाल, श्री बाबूलाल वजनकस, श्री श्री मानकचंद जैन (मुल्ला जी) का जन्म मिती कैलाशचंद जैन, श्री धन्नालाल जैन, श्री लालचंद माघ वदी 14 शुक्रवार संवत् 1958 (सन् 1901) जैन, श्री हेमराज पांडे, श्री हरीशचंद जैन तथा श्री
को खरई, जिला-सागर (म0 चुन्नालाल जैन। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संत श्री प्र0) में हुआ था। आपके तुकड़ों जी महाराज आपके परम मित्र थे। पिता का नाम श्री रामचंद आजादी के बाद खुरई शहर के कई प्रमुख मुल्ला जैन एवं माता का नाम विकास कार्यों में आपने महत्वपूर्ण सहयोग दिया। गौरी बहू था।
आपने अपने मकान में कांग्रेस कार्यालय को जगह जलियांवाला काण्ड के भी दी थी। आपको प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी
कारण आपके हृदय में के द्वारा एवं सेठ गोविन्ददास जी के द्वारा ताम्रपत्र देश-प्रेम की आग पैदा हुई और आप 'वन्देमातरम्' प्रदान किया गया था। खुरई शहर में पॉलीटेकनिक के उद्घोष में शामिल हो गये। तब से आप लगातार कॉलेज तथा डिग्री कॉलेज की स्थापना में, म्युनिसिपल 1947 तक आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे और कमेटी, कृषि उपज मंडी समिति, तहसील कांग्रेस आजादी का बाद भी जीवन पर्यन्त समाज उत्थान कमेटी तथा सागर जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ का कार्य एक कटर कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में के कार्यों में आप हमेशा सक्रिय रहे तथा कभी करते रहे।
किसी पद पर रहने की अभिलाषा नहीं की। आपके खरई शहर से आपको हार्दिक लगाव रहा मस्तिष्क में ही यह विचार सबसे पहिले आया था तथा संपूर्ण सागर जिला आपका कार्यक्षेत्र रहा। आजादी कि खुरई में श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन गुरुकुल की से पहिले भारत के कई प्रमुख शहरों में आप कांग्रेस स्थापना होना चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाई गई। के अधिवेशनों में भाग लेने गये।आपने जीवन भर गुरुकुल कमेटी के आप प्रथम अध्यक्ष थे। समाज के खादी पहिनने का व्रत लिया था, जिसका पूर्णतः सहयोग से 1946 में यह गुरुकुल स्थापित हुआ था। निर्वाह किया। महात्मा गांधी के आह्वान पर नमक आपने लगभग सभी धर्मों का अध्ययन किया कानून तथा जंगल कानून तोड़ने, रतौना (सागर) के था। 'शेरो-शायरी' में भी काफी रुचि रखते थे। खुरई कसाई घर (पशुवध गृह) को बंद करवाने में आपने की राजनीति में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान था तथा सक्रिय रूप से कार्य किया। सत्याग्रह, शराबबंदी, प्रत्येक राजनीतिक दल के लोग आपसे सलाह लिया विदेशी वस्त्रों की होली जलाना, तथा 1942 के करते थे। एक बार आपने स्वयं के बारे में लिखा था'करो या मरो' आंदोलन में भी आपने भाग लिया 'अलग मैं सबसे रहता हूँ मिसाले तार तम्बूरा।
और दिनांक 20-8-42 से 14-7-43 तक लगभग मिलाने से मैं मिलता हूँ मिलाले जिसका जी चाहे।।' 11 माह सागर, जबलपुर और नागपुर की सेन्ट्रल आपकी पत्नी का देहांत लगभग 1939 में हो जेलों में कठोर यातनायें सहीं।
___ गया था। कोई संतान नहीं थी। घर में अकेले होने के सागर के भाई अब्दुल गनी तथा मुंशी सुन्दरलाल कारण आपने अपने बहनोई श्री केशरीमल ठेकेदार जी जैन और खुरई के निम्न सेनानी आपके साथी एवं बहिन श्रीमती बेटीबाई को सिरोंज से खुरई रहे- भाई दयाचंद वीर, श्री नन्हा जी समनापुर वाले, अपने पास बुला लिया था तथा आजीवन उन्हीं के
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प्रथम खण्ड
साथ रहते रहे। उनकी एक मात्र छोटी बहिन श्रीमति बेटीबाई ही उनकी उत्तराधिकारी बनीं। वर्तमान में श्रीमती बेटीबाई के पुत्र श्री विजयकुमार व्याख्याता एवं श्री जयकुमार उनके उत्तराधिकारी हैं।
मानकचंद जी का देहान्त दिनांक 31-05-1975 को लगभग 75 वर्ष की आयु में हुआ। जिस समय आपका देहान्त हुआ उस समय आप पूर्ण स्वस्थ थे। कहा जाता है कि मृत्यु का आभास आपको पहले से ही हो गया था। अतः आपने स्वयं ही अपने वस्त्र त्याग दिये थे और जमीन पर सो गये थे। जीवन पर्यन्त आप प्रतिदिन मंदिर जी गये तथा प्रतिदिन भगवान के ‘सहस्रनाम' का पाठ किया करते थे। जीवन के अंतिम दिनों में आपने अपनी डायरी के अंतिम पृष्ठ पर लिखा है'नक्शा उठाकर अब कोई नया शहर देखिये अपनी तो इस शहर में सबसे मुलाकात हो चुकी ।।' आ( ) ( 1 ) श्री विजयकुमार जैन व्याख्याता द्वारा प्रदत परिचय (2) म) प्र) स्व) सै0, भाग 2, पृष्ठ 53 (3) आ) दी0, पृष्ठ-71
श्री मानमल जैन
जोधपुर (राज0) के श्री मानमल जैन का जन्म 1907 में एक सम्पन्न ओसवाल जैन परिवार में हुआ। अपने विद्यार्थी जीवन से ही रा० आ० में सक्रिय रहे श्री जैन ने 1931-32 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में डिक्टेटर के रूप में भाग लिया, वे ब्यावर में गिरफ्तार किये गये और जेल भेज दिये गये। श्री अभयमल जैन आपके साथी थे।
1933 में श्री जैन ने मित्रों के सहयोग से जोधपुर में हरिजन संघ की स्थापना की। 1934 में उन्होंने जैन समाज में पर्दाप्रथा के विरोध में आन्दोलन किया। 1931 में मानमल जी द्वारा स्थापित 'यूथलीग' जब 1934 में गैरकानूनी घोषित हो गई तो उन्होंने समान उद्देश्य और विधान वाली 'बाल भारत सभा' की
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स्थापना की। 1935 में वे ' जोधपुर प्रजामंडल' की स्थापना होने पर उसके मंत्री चुने गये। 1935 में ही श्री जैन को 'गणगौर काण्ड' में गिरफ्तार कर कठोर शारीरिक यातनायें दी गईं। प्रजामंडल के गैरकानूनी घोषित होने पर 1936 में उन्होंने अपने मित्रों के सहयोग से 'सिविल लिबर्टीज यूनियन' की स्थापना की। 1936 में ही मानमल जी 'राजपूताना देशी राज्य प्रजापरिषद्' के मंत्री बनाये गये। इन सब राजनैतिक प्रवृत्तियों के कारण श्री जैन को एक वर्ष के लिए दौलतपुरा - किले में नजरबन्द कर दिया गया।
जोधपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा मंत्री एवं वर्षों तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे श्री जैन गहन बीमारी के कारण 1942 के आन्दोलन में भाग नहीं ले सके। उन दिनों वे रोग शय्या पर ही रहे थे।
आ - ( 1 ) रा० स्व० से०, पृष्ठ-692 (2) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ-344
श्री मानमल जैन
रहे
'मारवाड लोक परिषद्' के कर्मठ कार्यकर्ता श्री मानमल जैन का जन्म 1912 में लाडनूँ ( राजस्थान) के एक सम्पन्न ओसवाल जैन कुल में हुआ। उनके परिवार के लोग कलकत्ता के प्रसिद्ध व्यवसायी हैं, पर मानमल जी ने राजनैतिक प्रवृत्तियों को अपनाया और देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। लोक परिषद् द्वारा जागीरदारी प्रथा को समाप्त करने के आन्दोलन में उन्होंने उत्साह से भाग लिया था। 1942 के आन्दोलन में वे जिम्मेदार हुकूमत आन्दोलन में लाडनूँ से सत्याग्रहियों का जत्था लेकर जोधपुर गये और 12 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिये गये तथा लगभग सवा वर्ष जेल में रहने के बाद 11 नवम्बर 1943 को रिहा किये गये । आ) (1) रा० स्व० से०, पृष्ठ 849
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श्री मानमल मार्तण्ड
मदनगंज (राजस्थान) के प्रमुख राष्ट्रीय कार्यकर्ता और 'ओसवाल' पत्र के भूतपूर्व सम्पादक श्री मानमल मार्तण्ड 1942 के आन्दोलन में जेल गये। जेल जाने से पहले आपने गुप्त रूप से काफी कार्य किया था। आ) (1) जै० स० रा० अ०, पृष्ठ-69
हकीम मानिकचंद जैन
फिरोजाबाद (उ0प्र0) के हकीम मानिकचंद जैन को आयुर्वेदिक चिकित्सा का व्यवसाय अपने पिता से मिला। 1942 के आंदोलन में राष्ट्रीयता की लहर दौड़ रही थी और फिरोजाबाद नगर में सैकड़ों व्यक्ति आन्दोलन में भाग ले रहे थे। महेन्द्र जी, आगरा (जिनका परिचय इसी ग्रन्थ में है) के संरक्षण में एक बुलेटिन गुप्त रूप से प्रकाशित होकर जगह-जगह भेजा जाता था। हकीम जी के औषध लय से उसका गुप्त वितरण होता था। आखिर गुप्तचर विभाग ने पता लगाकर हकीम जी को गिरफ्तार कर लिया। आप चार माह कारावास में रहे। आप पी0डी0 जैन इण्टर कॉलेज, फिरोजाबाद के वर्षों तक अध्यक्ष रहे हैं।
आ()- (1) जै० स० रा० अ० (2) उ0 प्र0 जै० ध०, पृष्ठ-01 (3) जै० से० ना० अ० (4) अमृत, पृष्ठ-25
बाबू मानिकचंद जैन
आगरा ( उ ) प्र0 ) के बा) मानिकचंद जैन को 1930 के आन्दोलन में छः माह की सजा हुई थी। 1942 के आंदोलन में आपको सरकार ने इस जुर्म में नजरबंद किया था कि आप 'आजाद हिन्दुस्तान' के काम में सहयोग देते हैं। आपको 11 माह तक नजरबंद रखा गया था। आप वार्ड कांग्रेस कमेटी के
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सहायक मंत्री भी रहे थे। 80 वर्ष की उम्र में आपका निधन हो गया ।
आ0 (1) जै० स० रा० अ० (2) उ0 प्र0 जै० ध०, पृष्ठ-90 (3) श्री महावीर प्रसाद द्वारा प्रेषित परिचय (4) गो0 340 70, 70-225
श्री मामचंद जैन
श्री मामचंद जैन का जन्म देवबन्द, जिला-सहारनपुर (उ0प्र0) में श्री मित्रसेन जैन के यहाँ हुआ। 1930 में आप गम्भीर ऐलान के साथ राजनीति में आये। श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने लिखा है ' बड़ों के प्रति नम्रता और वाणी की स्पष्टता उनकी अपनी चीज है। शीघ्र ही उन्हें जिले के नेताओं का स्नेह मिल गया और सरकार का प्यार भी। '
1930 में नमक आन्दोलन के समय 2 से 4 सित0 1930 को देवबन्द में एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता आचार्य जुगलकिशोर जी की धर्मपत्नी शान्ति देवी ने की थी। इस कांफ्रेंस की समाप्ति के बाद पहले श्री कन्हैयालाल मिश्र, बाबू आनन्द प्रकाश बी०ए० तथा बाद में आपको व हरद्वारी लाल को गिरफ्तार किया गया। श्री हुलाशराय जैन भी इसी समय गिरफ्तार हुए थे। 5-3-1931 को देवबन्द के अन्य राजनैतिक बन्दियों के साथ आप रिहा कर दिये गये।
आ०- (1) स० स०, भाग-1, पृ0-179 (2) जै० स० रा० अ) (3) जैन प्रदीप, जून 1994 (4) उ0 प्र0 जै० भ०, पृ0-86
श्री मिट्ठूलाल जैन
सैंधवा, जिला - खरगौन (म0प्र0) के श्री मिठ्ठू लाल जैन, पुत्र- श्री नेनसी भाई का जन्म 10 फरवरी 1922 को हुआ, आपने मैट्रिक तक शिक्षा पाई और युवावस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये । 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण 7 माह 27 दिन का कारावास आपने भोगा । आ) - ( 1 ) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-91
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प्रथम खण्ड
283 श्री मिठूलाल जैन
श्री मिठूलाल नायक पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री नरसिंहपुर (म0प्र0) के श्री मिठूलाल नायक मिठूलाल जैन, पुत्र-श्री बंशीलाल का जन्म 1898 का जन्म । जनवरी 1900 ई0 को हुआ। 1920 में ई0 में हुआ । 1930 की क्रान्ति की लहर ने आपके
पूज्य बापू के असहयोग हृदय में हलचल मचा दी, आप आजादी के लिए मचल
आन्दोलन में आप कूद पड़े उठे और तभी से आन्दोलन में भाग लेने लगे। 1942
फलतः स्कूल छोड़ देना पड़ा। के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप तोड़-फोड़ की
तीन वर्ष तक आप कांग्रेस कार्यवाही तथा जबलपुर में जुलूस निकालने के कारण
के प्रचार एवं संगठनात्मक पकड़े गये फलत: लाठियों से पिटाई हुई और एक
कार्यों में लगे रहे। बाद में वर्ष के कठोर कारावास की सजा आपको भोगनी पड़ी।
आप विभिन्न पदों पर रहे। आ)-(1) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-212 आजादी के बाद म0प्र0 शासन ने स्वतंत्रता संग्राम में (2) जै0 स) रा) 0
स्मरणीय योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान कर श्री मिठूलाल जैन
आपको सम्मानित किया। 10 जनवरी 1995 को सागर (म) प्र0) के श्री मिठूलाल जैन, पुत्र-श्री आपका निधन हो गया। हजारीलाल जैन का जन्म 4 मार्च 1918 को हुआ। आ) (1) प्रशस्ति पत्र (2) श्री मुकेश जैन, द्वारा प्रेपित
परिचय । आपने पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा स्थापित सागर के
श्री मिश्रीलाल गंगवाल मोराजी विद्यालय में लौकिक तत्कालीन मध्यभारत (अब मध्य प्रदेश) के शिक्षा के साथ ही जैनधर्म की मुख्यमंत्री रहे, 'मालवा के गांधी' नाम से विख्यात, शिक्षा प्राप्त की। 1941 में
। अपने स्नेहिल व्यवहार से आपने व्यक्तिगत सत्याग्रह में
'भैय्या जी' उपनाम से प्रसिद्ध, भाग लिया। 1942 में आपने
नैतिक मूल्यों के देवदूत, चार माह का कारावास भोगा। आपने लिखा है
महावीर ट्रस्ट के पितृपुरुष, कि-'1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में अपने साथी
जैन जाति भूषण, स्वयंसेवक श्री मन्नूलाल के साथ मैंने गढ़ाकोटा तक पैदल यात्रा
रत्न, जैनवीर, जैनरत्न जैसी की। वहाँ आठ दिन तक बुलेटिन बांटे, परन्तु झण्डा
उपाधियों के धारक श्री चढ़ाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। मुझे चार माह मिश्रीलाल गंगवाल, पुत्र श्री बालचंद गंगवाल का की सजा हुई। डेढ माह सागर जेल में बगैर केस के जन्म देवास (म0प्र0) के सोनकच्छ गांव में 7 नजरबंद रहा। जेल में चक्की चलाना..... आदि कार्य अक्टूबर 1902 को हुआ। 5 वर्ष की आयु में आप करना पडते थे। पर्युषण पर्व में जेल में करीब 100 मातविहीन हो गये। की संख्या में जैन बन्धु थे, सभी अलग कमरे में पूजन 11 वर्ष की अल्पवय में भैय्या जी ने विद्यार्थी व शास्त्र स्वाध्याय करते थे।'
सहायक समिति के सभापति के रूप में सार्वजनिक आ)- (!) म) प्र) स्व() सै), भाग-2 पृष्ठ-54 (2) आ) दी0, पृष्ठ-71 (3) स्व) पर)
सेवा कार्य की दीक्षा ली। 1918 में अ0भा0 हिन्दी
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284
साहित्य सम्मेलन, इन्दौर के स्वयंसेवक बने। 1931 में अ० भा० खादी प्रदर्शनी के प्रमुख कार्यकर्ता रूप में तथा 1938 में पूज्य बापू के सभापतित्व में आयोजित अ ( भा() हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इन्दौर के अर्थमंत्री के रूप में आपकी सेवायें सराहनीय रहीं ।
गंगवाल जी ने 1939 में इन्दौर राज्य प्रजामण्डल द्वारा नवीन टैक्स विरोधी ( इन्दौर नगर में आयोजित 9 दिनों की हड़ताल के अवसर पर ) हड़ताल संचालन समिति के तृतीय डिक्टेटर के रूप में सत्याग्रह जत्थे का नेतृत्व किया। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के सन्दर्भ में खण्डवा, हरदा, इटारसी, होशंगाबाद, ललितपुर व झांसी की यात्रा की तथा झांसी जेल में तीन माह का कारावास भोगा। 19 अगस्त 1942 को उत्तरदायित्वपूर्ण शासन प्राप्त करने के लिए इन्दौर राज्यमण्डल के आहवान पर संगठित सत्याग्रह आन्दोलन में गिरफ्तार हुए और 15 माह के कठोर कारावास की सजा पाई। 23 मई 1947 को पुनः सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये और । माह के कारावास की सजा भोगी ।
1945 में रामपुरा में सम्पन्न हुए इन्दौर राज्य प्रजामण्डल अधिवेशन में आप अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। 1956 में भी अ0भा0 कांग्रेस कमेटी की ओर से आसाम राज्य के निर्वाचन प्रतिनिधि नियुक्त किये गये थे।
गंगवाल साO ने 1944 में सर्वप्रथम सत्ता में प्रवेश किया, जब आप इन्दौर राज्य विधानसभा में जनता की ओर से निर्विरोध प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। नवम्बर 1947 में होल्कर नरेश द्वारा उत्तरदायित्वपूर्ण शासन प्रदान किये जाने पर मंत्री बनाये गये। 1948 में मध्य भारत के निर्माण पर प्रान्त के प्रथम मंत्रि मण्डल में खाद्यमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए । 1951-52 में भारत के प्रथम आम चुनाव में धारा सभा हेतु बागली क्षेत्र से निर्वाचित होकर मध्यभारत के मुख्यमंत्री का पद सम्भाला। अप्रैल 55 तक वे मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद श्री तख्तमल जैन के मुख्यमंत्री चुने जाने पर आप कांग्रेस विधानदल के उपनेता तथा वित्तमंत्री बनाये गये ।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
1956 में नवीन मध्यप्रदेश बनने पर पं) रविशंकर शुक्ल के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री, 1956 में ही डॉ0 कैलाश नाथ काटजू के मंत्रिमण्डल में भी वित्तमंत्री और 1962 में श्री भगवंत राव मण्डलोई के मंत्रिमण्डल में भी वित्तमंत्री रहे। पं० द्वारका प्रसाद मिश्र के मुख्यमंत्री बनने पर भी उसमें आप वित्तमंत्री बनाये गये। इसका मूल कारण यह था कि जैसे आप अपने जीवन में मितव्ययी थे वैसे ही शासन में भी थे।
गंगवाल सा) के मितव्ययी स्वभाव के सन्दर्भ में उनके पुत्र श्री निर्मल गंगवाल ने लिखा है- 'हम जिस भी सरकारी बंगले में रहते, क्या मजाल है कि कहीं भी बिजली के बल्ब फालतू जलें । इसलिए बिजली और टेलीफोन का बिल पूरे मंत्रिकाल में मंत्रिपरिषद् की अपेक्षा सबसे कम आता था। कई बार पिता जी स्वयं उठकर फालतू जलती लाइट बंद करते । पिक्चर आदि जाने के लिए भोपाली तांगे में जाते थे, गाड़ी में नहीं। इसी कारण आर्वोटत पेट्रोल भी हर महीने वापस होता था । कभी-कभी स्वयं पत्र लिखते तो आने वाले लिफाफे को खोलकर, पीछे की तरफ में पत्र लिखते.... एक होलडाल और एक सूटकेस ही हमने उनके पास जीवन भर देखा।.....कभी हमने उन्हें साबुन का इस्तेमाल करते नहीं देखा, स्नान भी तीन या चार लोटे पानी में कर लेते। पानी के उपयोग पर बड़ी पाबन्दी थी।..... इस सबके बावजूद उनकी काया कंचन थी। '
होल्कर नरेश द्वारा राज्य में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन घोषित करने के समय से लगातार मध्यभारत के निर्माण तथा विलय और नवीन मध्यप्रदेश को साकार रूप प्रदान करने की सुखद वेला में 'यत्र-तत्र सर्वत्र प्रशासक गंगवाल जी की सुस्पष्ट छाप विशेष रूप से दृष्टिगोचर होती है।
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"
गंगवाल जी के करीबी प्रसिद्ध पत्रकार श्री 'मायाराम सुरजन' ने गंगवाल जी की निस्पृहता के सन्दर्भ में जो संस्मरण ( देशबन्धु, 15/10/87 ) लिखा है वह सचमुच अनुकरणीय है। संस्मरण का सारांश
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प्रथम खण्ड
285 यह है कि 1952 में जब बाबू तख्तमल जैन चुनाव आत्मीयता, निश्छल स्नेह आपके गुण थे। सेवापरायणता हार गये, श्री जैन मध्यभारत के मुख्यमंत्री थे और और विनम्रता तो जैसे आपके रक्त में मिली थी। जो कुशल मुख्यमंत्रियों में उनकी गणना होती थी, तब भी भी आपके सम्पर्क में एक बार आया वह आपका होकर नेहरू जी के करीबी होने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री ही रह गया। बनाने की कोशिशें हुईं। परन्तु कांग्रेस हाई कमान तैयार शैक्षणिक और साहित्यिक गतिविधियों से गंगवाल नहीं हुआ, फलत: गंगवाल जी ही मुख्यमंत्री बने। पुनः
बना पुनः सा) सदैव जुड़े रहे। गरीब विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन तख्तमल जी जब तीसरी बार चुनाव जीतकर आये तो
हेतु सहायता करना उन्हें अत्यन्त प्रिय था। इन्दौर के गंगवाल जी ने बिना 'ननु न च' किये अपना त्यागपत्र
कित ने ही विद्यालयो/पुस्तकाल यो के वे दे दिया और कहा कि वे भरत की तरह विरक्त होकर
संस्थापक/अध्यक्ष/मंत्री आदि थे। राजकाज चला रहे थे, अब राम की अयोध्या वापसी पर तख्तमल जी के लिए सिंहासन खाली करने में
नामानुरूप ही मिश्री की मिठास जिह्वा तथा सुख का अनुभव कर रहे हैं।
जीवन में उन्हें प्रिय थी। स्वादिष्ट भोजन और मिष्ठान्न 1967 में उन्होंने बागली से विधानसभा का उनक प्रिय थ। चुनाव लड़ा, जिसमें वे पराजित हो गये। इस पराजय
गंगवाल सा) जीवनपर्यन्त कट्टर शाकाहारी रहे। के बाद भैय्या जी ने संसदीय राजनीति छोड़ दी। उन्होंने उनकी दृढ़ता का एक उदाहरण दृष्टव्य है। वे जब फिर विधानसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा, किन्तु मध्य भारत के मुख्यमंत्री थे तब भारत के प्रथम राजनीति में जीवनपर्यन्त बने रहे और कांग्रेस के अनेक प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू का भैय्या के पास युवा नेताओं का मार्गदर्शन किया। 1968-71 में वे एक पत्र आया था, जिसमें भारत आये युगोस्लाविया मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। के राष्ट्रपति मार्शल टीटो का मध्यभारत के कुछ स्थल
___ आर्थिक मसलों पर उनकी सूझबूझ और वित्त देखने का कार्यक्रम था। विशिष्ट व्यक्तियों के दौरे के एवं योजना विकास मंत्री के रूप में उनके दीर्घकालीन कार्यक्रम के साथ उनके दिनभर की समय सारणी भी अनुभवों को मद्देनजर रखकर श्री प्रकाशचंद सेठी ने संलग्न थी। इसमें उनके भोजन में मांसाहार भी 1975 में गंगवाल जी को राज्य योजना मंडल का सदस्य सम्मिलित था। गंगवाल जी ने निडर होकर पंडित जी मनोनीत किया था।
को विनम्र निवेदन करते हुए पत्र लिखा कि-'मैं व्यायाम और संगीत भैय्या जी को विशेष प्रिय राजकीय अतिथि को शुद्ध जल व शाकाहारी भोजन थे। इतने ऊँचे पद पर आसीन होने के बाद भी वे ही उपलब्ध करा सकूँगा। मांसाहार उपलब्ध कराने में सभाओं में भजन गाने में संकोच नहीं करते थे। उनके असमर्थ हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें।' आज के युग में प्रिय भजनों में 'उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन तो प्रधानमंत्री को नाखश करने की कल्पना भी नहीं कहाँ तू सोबत है', 'तुम प्रभु दीन दयाल मैं दुखिया की जा सकती। संसारी', 'अब समकित सावन आयो रे' आदि थे।
जिनमें धर्म के प्रति आस्था होती है वे राजनीति फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस में भी उनकी विशेष
वशेष के लिए अनुपयुक्त होते हैं और राजनीति में जिनकी दिलचस्पी थी।
गति/ स्थिति/ रुचि होती है उनकी धर्म में अभिरुचि राजनीति के साथ सामाजिक व धार्मिक जगत नहीं होती। ऐसा सामान्य सिद्धान्त है पर गंगवाल के आप केन्द्र बिन्दु रहे। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अंतरंग ,
सा0 इसके अपवाद थे। प्रतिदिन दर्शन का नियम
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन उनका आजीवन चलता रहा। राजनीति की काली और धर्ममार्ग को छोड़ा नहीं। सादगी से जिया तथा कोठरी में से भैय्या जी उजले ही उजले निकले, यह स्वभाव में मितव्यता मूलतः रही। सचमुच आश्चर्य की बात है। तभी तो उनके निधन मेरा विश्वास स्वावलंबन और स्व-आश्रय में पर श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए श्री सुन्दरलाल पटवा रहा अत: बचत करके वृद्धावस्था के लिये कुछ संग्रह ने कहा था- 1957 और उसके बाद हम और वे रखा जो हुण्डियों में ब्याज पर नियोजित है। मेरे नाम राज्य विधानसभा में काफी समय तक आमने-सामने पर कोई मकान और जमीन नहीं है, अन्य भी कुछ बैठे। हम आंखों में अंजन डालकर उनकी कमियाँ नहीं है। अभी-अभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप खोजते रहे, लेकिन उनके खिलाफ कुछ भी हाथ में केवल नाम भर को एक मकान एम.आई.जी. ग्रुप नहीं लगा। राजनीति में ऐसे बहुत ही कम लोग मिलते में मेरे नाम पर लिया गया है। स्वामित्व के नाते मेरा हैं, जो काजल की कोठरी में रहकर भी अपने ऊपर उससे कोई संबंध नहीं है। कालिख की एक लकीर लगाए बिना साफ-सुथरे कुटुम्ब के लिए मेरा जीवन में जो योगदान बाहर निकल आते हैं।'
रहा, उसको लेकर मुझे कुछ कहना नहीं है। सब भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव, कुटुम्बीजन जानते हैं। (1974) धर्मचक्र प्रवर्तन, इन्दौर के समोशरण मंदिर रुपये 25,000 का ब्याज दु:खी-दर्दियों के तथा का पंच कल्याणक (1981), भगवान् बाहुबलि पारमार्थिक कार्यों के लिये है। इसमें जातिभेद नहीं प्रतिष्ठापना सहस्राब्दि एवं महामस्तकाभिषेक के अवसर रहेगा। यह राशि घर के ही लोग कमेटी बनाकर खर्च पर जनमंगल महाकलश (1980-81), महावीर ट्रस्ट करें। मुझे किसी का 1 रुपया भी देना नहीं है। का संगठन आदि आयोजनों में उनकी कर्मठता एवं मैंने जीवन में अनीति या अपवित्र प्रकार से धार्मिकता अभिव्यक्त हुई थी।
एक रुपया भी घर में नहीं आने दिया। सदा धर्म । उनके निस्पृही जीवन का अनुमान उनके द्वारा और जन्म-कुल तथा कांग्रेस-कुल की प्रतिष्ठा और अपनी मृत्यु (4/9/81) से 2 दिन पूर्व (2/9/81) शोभा का ध्यान रखा। यह मेरे लम्बे जीवन की कहानी लिखित उनकी वसीयत, जो पत्र रूप में है, से लगाया है। मेरी मृत्यु के बाद मेरे नाम पर कोई सामाजिक जा सकता है। वे लिखते हैं- 'मेरे जीवन का संध्याकाल क्रिया काण्ड न किया जावे। है, अत: जीवन का अन्त किसी क्षण, किसी रूप में राष्ट्रहित तथा समाजहित, सबसे स्नेह और ममता भी हो सकता है। मेरी जीवन दृष्टि बाल्यकाल से ही मेरे जीवन के संगीत रहे हैं, इसको गाता हुआ समताभाव सेवा की रही। धन्धे आदि में रुचि स्वल्पतम रही। से इस लोक से विदा होऊँ। यह मेरी भावना है। मेरा केवल गृहस्थ का उत्तदायित्व निभाने के लिये उपादान और ज्ञान इसमें सहायक हो, यही चाह है।' आजीविका उपार्जन करता रहा. जीवन सार्वजनिक किसी भी व्यक्ति द्वारा लिखे गये पत्र सेवा और राजनीति में ही बीता।
उसके जीवन-दर्शन की स्पष्ट कर देते हैं यहाँ हम आजीविका उपार्जन भी सवृत्ति और सद्बुद्धि गंगवाल सा0 के अपने पुत्र विमलचंद और निर्मल से किया। लोभ-लालच की भावना मन में नहीं जगी, बाबू के नाम लिखे कुछ पत्र साभार दे रहे हैं। जिनसे धनसंग्रह की लालसा नहीं रही। विचार और आचार गंगवाल सा0 के जीवन-दर्शन को भली-भांति समझा जा की पवित्रता का पूरा ध्यान रखा। कभी लोकमार्ग सकता है।
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प्रथम खण्ड
287
विमलचंद को लिखे 12 फरवरी 1958 के पत्र ही हैं। आती भी रहेंगी किन्तु हमारे पुरुषार्थ और कर्म में वे लिखते हैं-'.....मैं चाहता हूँ तुम इन्दौर लौट आवो। में निर्बलता नहीं रहनी चाहिए। जो कुछ रूखी-सूखी भगवान् देगा, उसे उसका प्रसाद मैंने यह देखा है कि तम हिसाब ठीक से मानकर संतोष कर लेंगे।.....'
सिलसिलेवार नहीं रख पाते। यह कमजोरी है, इसे दूर
करना चाहिए।.....' 21 दिसम्बर 1958 के पत्र में विमलचंद जी
इसी विषय में 24 मार्च 1965 के पत्र में वे को वे लिखते है-'.....पैसे को पूर्व से अधिक महत्त्व
लिखते हैं-'पिछले महीने से तुम्हारी मांग अधिक हो देने लगे हो। दुनियाई चीजों को आवश्यकतानुसार महत्त्व दिया जाना चाहिए। लेकिन वे मनुष्य के सिर पर
रही है। व्यय आवश्यकतानुसार ही रहे तो ठीक है।
फिजूलखर्च की गुंजाइश कम ही है। यों भी तुमने हिसाब चढ़कर नाचने लगें, उसके मन का सुख हर लें। इससे तो सदा मनुष्य को सावधान रहना है। तुम्हें भी इस
: नहीं भेजा है। आशा है व्यय में अतिरेक नहीं हुआ दोष से बचना है......'
होगा।.....'
28 जलाई 1959 के पत्र में गंगवाल जी ने ।। अगस्त 1965 के पत्र में निर्मलबाबू को लिखा है-....मैंने जीवन में किसी के सहारे की अपेक्षा गंगवाल सा0 ने लिखा थाही नहीं की, सिवा भगवान् के। आखिर मुनष्य स्वयं .... धर्म सदाचार तो जीवन का सार ही नहीं, एक खुदगर्ज निर्बल प्राणी है, वह क्या किसी को सहारा स्वयं जीवन है। जिसके हाथ में उसकी ध्वजा है, वह दे सकता है। इसी विश्वास के बल पर मैं सदा डूबेगा नहीं, सदा उभरेगा और सम्पन्न रहेगा। तुमने जिन्दा रहा हूँ और आज भी उसी का भरोसा कर पूजन प्रारम्भ किया है, यह अधिक सुख देने वाली निश्चिन्त हूँ।'
बात है।...'
विमलचंद को ही लिखे ।। अगस्त 1959 के
जीवन के अवसान से लगभग 3 वर्ष पूर्व 22 पत्र में उन्होंने लिखा है- '...निर्दोष और अच्छे से अच्छे । काम के भी टीकाकार होते ही हैं। ...प्रभाव का उपयोग
___ मार्च 1978 को निर्मल बाबू के नाम लिखा पत्र कितना बुरा नहीं और न वह पाप ही है फिर भी वह राजमार्ग ।
मार्मिक है। कुछ अंश देखेंनहीं। जो राजमार्ग नहीं, वह दीनों और असमर्थों का मार्ग
.... क्रियाशीलता भी प्रतिदिन घट रही है। है। हमें जहाँ तक सम्भव हो उससे बचना है। फिर भी शरीर-शक्ति में कमी आने लगी है। चलने-फिरने में स्वाभिमान से जीने के लिए कुछ करना तो पड़ेगा। उसका बहुत कठिनाई होती है। यह सब अवस्था के परिणाम जरिया जनमार्ग ही होना चाहिए।.....'
हैं। इनसे न चिन्तित हूँ न दु:खी। दु:ख-सुख का जो
अनुभव होता है, उसको विवेक के सहारे आनन्दपूर्वक श्री निर्मलबाब को लिखा 28 जनवरी 1965 का भुलाकर सब क्रियायें उत्साह और प्रमोद भाव से करता पत्र निम्न प्रकार है
रहता हूँ। मुझे न बंगला और न अन्य भौतिक चीजें ..... मनष्य को निराश और हतोत्साहित नहीं होना जीवन में लुभा सकीं। मैं अपने साधारण ढंग से जीया चाहिए। जीवन में सफलतायें और असफलतायें आती हूँ और जीऊंगा...'
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288
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 4 सितम्बर 1981 को इन्दौर में आपका निधन का नाम 'गंगवाल बस स्टैण्ड' रखा गया है। हो गया। तत्काल सभी सरकारी कार्यालय व बाजार
आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ-37 बन्द हो गये। भोपाल समाचार पहंचते ही सभी सरकारी (2) जै0 स0 रा) अ0. पृष्ठ-63 (3) वीर निकलंक. अगस्त 1995 कार्यालय बन्द कर दिये गये। 5 सित० को इन्दौर के (4) स्वदेश, इन्दौर 5/9/81 (5) नई दुनिया, इन्दौर ।-10-81,
5-9-81, (6-9-81, 3-9-82 (6) सन्मति वाणी, अक्टूबर 1981 सभी सरकारी कार्यालय व बाजार बंद रहे। उसी दिन ।
(7) शताब्दी सन्देश, इन्दौर, (पाक्षिक) 15 सित0 8। आपकी अन्त्येष्टि त्रिलोकचंद हाईस्कूल में हुई। अन्त्येष्टि (8) नवभारत, भोपाल, 5-9-81 (9) इन्दौर समाचार, 5-9-81 में भाग लेने उपमुख्यमंत्री श्री शिवभानु सिंह सोलंकी (10) लगभग बीस अभिनन्दन पत्र (11) साप्ताहिक देशबन्धु आदि शताधिक मंत्री/ विधायक। नेता/ अधिकारी 15-10-1987 (12) स्व) श्री भैया मिश्रीलाल गंगवाल स्मृति ग्रन्थ उपस्थित थे। लगभग बीस हजार लोगों ने अपने 'प्रिय
श्री मिश्रीलाल जैन भैय्या' को उस दिन अंतिम विदाई दी।
जयपुर (राजस्थान) के श्री मिश्रीलाल जैन का उन्हें श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए श्री बालकवि जन्म हरमाडा, जिला-अजमेर (राजस्थान) में 1917 वैरागी ने कहा- 'वे जो कुछ थे आचरण में थे। कथनी में हआ। श्री जैन ने रचनात्मक कार्यों का प्रशिक्षण श्री
और करनी में कोई विभेद इस व्यक्ति के जीवन में हरिभाउ उपाध्याय से प्राप्त किया। इसी कारण तत्कालीन कभी नहीं आया.... उनका कोई दुश्मन नहीं था, रचनात्मक कार्यों में श्री जैन की महती भूमिका रही विरोधी और आलोचक हजार थे।'
थी। बहुत समय तक उन्होंने डिग्गी ठिकाने की जनता श्री कन्हैया लाल खादीवाला ने कहा था- के बीच कार्य किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन 'सक्रिय राजनीति में रहते हुए भी उनकी प्रकृति के समय मिश्रीलाल जी सत्याग्रह करते हुये अजमेर साधु के समान थी। .....पं0 नेहरू और श्रीमती इन्दिरा में गिरफ्तार कर लिये गये और उन्हें एक वर्ष की गांधी जब भी उनसे मिलते भजन सुनाये बिना नहीं सजा दी गयी। स्वाधीनता के बाद श्री जैन खादी जाने देते। वे एक मितव्ययी मंत्री थे।'
ग्रामोद्योग से जुड़ गये और सदैव हरिजन सेवा आदि ___ म0प्र0 के पूर्वमंत्री श्री दशरथ जैन ने कहा- रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। 'एक निष्ठावान, सरल, सहृदय इंसान हमने खो दिया। आ)- (1) रा) स्व) से0. पृष्ठ-619 (2) जै0 स0 रा0 वे सच्चे शब्दों में 'अजातशत्रु' थे।'
अ0, पृष्ठ-69 समाजसेवी श्री बाबूलाल पाटोदी ने कहा था
श्री मुकुन्दीलाल बघेरवाल ''भैय्या एक सन्त पुरुष थे। मेरे जैसे अनेक कार्यकर्ताओं
__श्री मुकुन्दीलाल, पुत्र-श्री हजारी लाल बघेरवाल के पिता और मार्गदर्शक अब नहीं रहे।'
का जन्म गरोठ, जिला-मन्दसौर (म0प्र0) के चचावदा __नई दुनियां (इन्दौर) ने 5-9-8! के अपने
गांव में 1917 में हुआआपने इण्टरमीडिएट तक शिक्षा सम्पादकीय में लिखा है-'....उनकी सफलता की जड़
प्राप्त की थी। में उनका अजातशत्रु स्वभाव रहा है। यह बात वे सब
श्री बापूलाल चौधरी व श्री चन्दवासकर की प्रेरणा लोग अच्छी तरह जानते हैं, जिन्हें उनके साथ ही नहीं,
से श्री बघेरवाल स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए, खिलाफ भी काम करने का अवसर मिला है।' उनकी
प्रजामण्डल में आप सक्रिय रूप से सदस्य रहे व पूरे स्मृति में गोम्मटगिरि में गंगवाल विद्या निकेतन की स्थापना की गई है। इन्दौर के एक विशाल बस स्टैण्ट क्षेत्र में घूम-फिर कर उन्होंने प्रजामण्डल के लिए कार्य
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प्रथम खण्ड
289 किया। महिदपुर में 1934 में होने वाले प्रजामण्डल
श्री मुलायमचंद जैन के अधिवेशन में इन्हें क्षेत्र का विशेष प्रतिनिधि बनाकर श्री मुलायमचंद जैन, निवासी ग्राम-कान्हीवाड़ा, भेजा गया। गरोठ से और भी लोग इनके साथ वहाँ जिला-सिवनी (म0प्र0) ने 1930 में जंगल सत्याग्रह गये। श्री सर्वटे सा), श्री गंगवाल जी, श्री तोतला जी में भाग लिया। फलत: सिवनी व छिंदवाड़ा में 6 माह व श्री खादीवाला से इनका निकट सम्पर्क रहा। का कारावास भोगा।।
1942 के आंदोलन में शामिल होने के लिए आ)-(1) म0 प्र0 स्व0 सैo, भाग-1, पृष्ठ 241 आपने गांव-गांव जाकर लोगों को तैयार किया। पुलिस श्री मलामचंद जैन (या मलायमचंद जैन) की हिरासत में आप अनेक बार रहे। हर्टन के विरुद्ध
पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री उनक सामने हा हटन मुदाबाद', 'पुलिस क अत्याचार मुलायमचंद जैन, पुत्र-श्री जसकरणलाल जैन ने 1942 बन्द हों' आदि नारे लगाने पर आपको खूब पीटा गया के आन्दोलन में सक्रियता से भाग लिया। पहले आप व बन्द कर दिया गया। बाद में छोड़ दिया गया। भूमिगत रहे किन्तु 3-2-1943 को गिरफ्तार कर लिए
1943-44 में आप राज्य लेजिसलेटिव कौंसिल गये। आपको श्री के0सी0 श्रीवास्तव दण्डाधिकारी प्रथम के सदस्य रहे। 1944 में रामपुरा के प्रजामण्डल श्रेणी, मण्डला द्वारा तीन माह के सश्रम कारावास तथा अधिवेशन में आप कोषाध्यक्ष बनाये गये थे। 500/- जुर्माना की सजा दी गई थी। जुर्माना न देने आ)-(1) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-69-70
पर तीन माह की सजा और भुगतनी पड़ी। पहले आप
मण्डला जेल में रहे फिर 21-4-43 को जबलपुर श्री मुन्नालाल जैन
सेन्ट्रल जेल भेज दिये गये। देश प्रेम के कारण सागर (म0प्र0) के श्री मुन्नालाल जैन, पुत्र-श्री
आपने किसी तरह की पेन्शन आदि को स्वीकार नहीं फदाली लाल ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन
किया था। में 4 माह का कारावास भोगा यतः आपने सागर के
आ0-(1) अनेक प्रमाण पत्र पुलिस कप्तान के सिर पर डंडे से प्रहार किया था। आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-54 (2)
श्री मुलायमचंद जैन आ0 दी0, पृष्ठ-71
जबलपुर नगर निगम के महापौर और महाकौशल
चैम्बर ऑफ कॉमर्स एवं म0प्र) लघु उद्योग संगठन श्री मुन्नालाल जैन
के अध्यक्ष रहे श्री मुलायमचंद जैन का जन्म 19 छिन्दबाड़ा (म0प्र0) के श्री मुन्नालाल जैन,
जनवरी 1920 को जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आपके पुत्र-श्री बाबूलाल (या कालूराम जैन) को भारत छोड़ो
पिता का नाम श्री दालचंद जैन था। मुलायम चंद जी आन्दोलन में भाग लेने के कारण 12-11-42 स की शिक्षा जबलपर नागपुर और बनारस में हुई। 1942 11-8-1943 तक का कारावास देकर जबलपुर जेल
में आप बनारस में इंजीनियरिंग के विद्यार्थी थे, वहाँ में रखा गया था। आपका कार्य क्षेत्र जबलपुर कान्तिकारियों से आपका सम्पर्क हुआ। आप बम ही था। स्वतंत्रता के पश्चात् आप छिन्दबाड़ा जिले में
काण्ड में गिरफ्तार हुए तथा जबलपुर और बनारस की बस गये।
जेलों में रखे गये। आ0- (1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-1,
आपने अपने साथियों के साथ डायनामाइट पृष्ठ 12 (2) स्वा) आ) में छिन्दबाड़ा जिले का योगदान, (टंकित शोध-प्रबन्ध)पृष्ठ-314
लगाकर हवाई जहाज को उड़ा दिया था। इस सन्दर्भ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन में अपने एक सस्मरण में आपने श्री तपन मुखर्जी को मैंने तथा मेरे साथियों ने डायनामाइट लगाकर उस हवाई बताया था कि- "1939 में मैंने साईंस कालेज नागपुर जहाज को उड़ा दिया। घटना नवम्बर 42 के आसपास से इंटरमीडियट किया था। तीन साल वहां रहा। की है। गांधी जी का सेवा ग्राम वर्धा पास ही था। गांधी जी इस कांड की जांच कई महीनों तक चलती रही। का और अन्य नेताओं का नागपुर आना-जाना लगा हमारे साथी एक के बाद एक पकड़े गये। मैं अंतिम रहता था। मैं सभाओं में जाया करता था। मेरी रुचि वर्ष की परीक्षा देकर जबलपुर आ गया। मुझे जुलाई शुरू से ही आजादी की लड़ाई में थी। 1939 में त्रिपुरी 43 में बनारस कलेक्टर के वारंट पर जबलपुर में कांग्रेस का अधिवेशन जबलपुर में हुआ। इसका मेरे गिरफ्तार किया गया तथा जबलपुर सेंट्रल जेल में एक किशोर मन पर काफी प्रभाव पड़ा। फिर मैं बनारस माह रखने के बाद बनारस जिला जेल भेज दिया गया। में इंजीनियरिंग का अध्ययन करने चला गया। 1942 जहां से मुझे बनारस के सेंट्रल जेल स्थानान्तरित किया में मैं प्रशिक्षण के सिलसिले में गन कैरज फैक्ट्री से गया। जनवरी 45 में जब गांधी जी का ब्रिटिश सरकार संबद्ध हुआ। तब जबलपुर में रहा। हम फुहारे में रहते के साथ समझौता हुआ तब हमें छोड़ा गया। रिहा होने थे जो उन दिनों स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों के बाद मैं जबलपुर वापस आ गया।' का केन्द्र था। 14 अगस्त 1942 को मेरे घर के पास
आजादी के बाद आप प्रदेश की राजनीति में घमंडी चौराहे पर ठाकुर गुलाब सिंह की शहादत हुई। सक्रिय रहे! गांधीवादी विचारधारा होने के कारण उन्हीं दिनों फुहारे और आसपास के क्षेत्र में अंग्रेज
आप श्री जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर प्रजा सैनिकों की टुकड़ियाँ तैनात कर दी गई थीं। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने। आप नगर निगम की जो अत्याचार ढाये उन्हें भी मैंने नजदीक से देखा था। स्थायी समिति के अध्यक्ष, महापौर, म0प्र0 लघु इसी बीच श्री सीताराम जाधव और श्री सत्येन्द्र प्रसाद उद्योग संघ के संस्थापक-अध्यक्ष (आजीवन), मिश्र, जो कि भूमिगत रहकर नगर में आंदोलन चला जबलपर नगर स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ के अध्यक्ष रहे थे, उनसे भी मेरा सम्पर्क बना।'
आदि अनेक पदों पर रहे। आपने बताया था कि-'इन्हीं सब बातों से प्रेरणा
आ0- (1) म0प्र0 स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-92 (2) लेकर जब मैं अक्टूबर 42 में बनारस इंजीनियरिंग म0 स0, पृष्ठ ब-24 (3) स्वा) स॥ ज), पृष्ठ-150 (4) गजरथ कॉलेज वापस लौटा तब मेरे भीतर यह इच्छा बलवती महोत्सव स्मारिका, 1993, पृष्ठ-4। हो गई थी कि मैं गांधी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन
श्री मुलायमचंद जैन में किसी न किसी रूप में सक्रिय भाग लूं। मेरा श्री मुलायमचंद जैन का जन्म 1921 में टड़ा इंजीनियरिंग का फाइनल इयर था। फिर भी मैं (सागर) म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री विश्वविद्यालय में भूमिगत रहकर तोड़फोड़ करने वाले
नन्हाईलाल जैन था। देश को छात्रों के दल में शामिल हो गया। दल के साथ मैंने
स्वतंत्रता दिलाने के लिये रेलवे यार्ड में इंजिनों के तोड़फोड़ का प्रशिक्षण प्राप्त
1942 में आप कांग्रेस किया।
के सदस्य बने और देशव्यापी इसी बीच सरकार की ओर से कॉलेज में
आंदोलन में भाग लिया। एरोनाटिक्स (हवाई जहाज इंजीनियरिंग) का प्रशिक्षण
जुलूस में तोड़फोड की देने के लिए एक हवाई जहाज रखा गया। एक रात
कार्यवाही करने से
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प्रथम खण्ड
291 आपको गिरफ्तार किया गया। आपको 12 माह की अंग्रेज के बच्चे को, दुनिया से हटा देंगे।। सजा मिली, जिसे 6 माह सागर जेल में और 6 माह अहा, भारत पियारा है वह जग से नियारा है। दमोह जेल में काटी। इस घटना के बाद आपके पिता जी स्वर्गवासी हो गये। श्री जैन के साथी अमर शहीद ___ गांधी जी दूल्हा बने, और दुल्हन बनी सरकार। साबूलाल जैन गढ़ाकोटा में पुलिस की गोली से मारे सब कांग्रेस बने बराती और नाई बना थानेदार।। गये थे। आजादी की लड़ाई में श्री जैन अपने साथियों गंधी जी जेवन को बैठे, नेगन में मांगे स्वराज। के साथ गाते थे
लार्ड इर्विन कहत हैं जीजा, गउने में देंगे स्वराज।। हार गयी सरकार, जालिम हार गयी
अहा, भारत पियारा है वह जग से नियारा है। पकड़ पकड़ कर छोड़ रही है
यह लड़का था मुलायमचंद जैन। मुलायमचंद टूटे नाते जोड़ रही है
का जन्म शहडोल (म0 प्र0) में 1928 में हुआ। पिता लूटे बेशुमार
का नाम श्री मूलचंद था, जो कपड़े के व्यापारी थे। हार गई सरकार जालिम हार गई आ0- (1) म) प्रा) स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-55
मूलचंद जी के पिताजी 1882 के आसपास पनागर (2) स्व) प
से आकर शहडोल में बसे थे।
श्री मुलायमचंद विद्यार्थी जीवन से ही श्री मुलायमचंद जैन
पं0 शम्भूनाथ शुक्ल आदि नेताओं के सम्पर्क में रहने श्री मुलायमचद जैन, पुत्र-श्री वशीधर का जन्म से तिरंगा लेकर जलस निकालते थे और गीत गाते चलते 1918 में जबलपुर (म0प्र) में हुआ। 1942 के भारत
थे। वे भावुक, गर्म मिजाज, लगनशील व निर्भीक
से छोड़ो आन्दोलन में आप सक्रिय रहे और 6 माह की
कार्यकर्ता थे। सजा भोगी। इससे पूर्व 1932 में आप रेल की जंजीर
____1942 के आंदोलन में आप पढ़ाई छोड़कर खींचकर सत्याग्रह के जुल्म में भी पकड़े गये थे।
आंदोलन में कूद पड़े। शहडोल में जब 'बार-फण्ड' आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग 1, पृष्ठ 91 (2) स्व0 स0 ज), पृष्ठ-156
की मीटिंग चल रही थी तो आपने तिरंगा ऊंचा करके
'भारत माता की जय' उद्घोष कर दिया। तत्काल श्री मुलायमचंद जैन
आपको गिरफ्तार कर लिया गया और सेन्ट्रल जेल रीवां आज के नुक्कड़ नाटकों की तरह 1942 क भेज दिया गया. जहाँ आप पांच माह (|| अप्रैल 1942 आंदोलन के दिनों में एक 14 वर्ष का लड़का जहाँ ।
लड़का जहा से 11 सितम्बर 1942) कैद रहे। आपकी धर्मपत्नी भी 20-40 लोगों का जन-समूह देखता जोर-जोर से भी राष्टीय भावनाओं से ओतप्रोत थीं। अपने छात्र जीवन राष्टीय भावना से ओत-प्रोत गीत गाने लगता। गीत के में उन्होंने भी जलसों में सोत्साह भाग लिया था। बोल कुछ यूँ हुआ करते थे
आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-5, पृष्ठ-313 (2) अंग्रेज के बच्चे को दुनिया से हटा देंगे। स्वा0 आ) श), पृष्ठ-151-152 गोरी सी इसकी सूरत मिट्टी में मिला देंगे।।
श्री मुलायमचंद जैन 'हलवाई' हम शेर के बच्चे हैं मरने से नहीं डरते।
हलवाई' उपनाम से विख्यात पिण्डरई, वह एक को मारेगा हम दस को गिरा देगें।
__ जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री मुलायमचंद जैन, पानी की जगह अपना हम खून बहा देंगे।
पुत्र- श्री वृन्दावन का जन्म 1916 में हुआ। आप गाने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन गा-गा कर जनता में स्वतंत्रता का अलख जगाते थे।
श्री मूलचंद सिंघई 1940 के व्यक्तिगत सत्यागह में आपने खुलकर भाग बाबई, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री लिया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में तोड़-फोड़ मूलचंद सिंघई, पुत्र-श्री परमानन्द का जन्म 1910 की कार्यवाही में आप पकड़े गये, फलत: 2 सितम्बर में हुआ। माध्यमिक शिक्षा प्राप्त सिंघई जी ने 1942 से 1 मार्च 1943 तक मण्डला जेल में कारावास 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया। की सजा भुगतनी पड़ी। आपके अनुज गुलाबचंद जी 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में भी आपने भी जेलयात्री रहे हैं।
सक्रिय भाग लिया एवं एक वर्ष का कारावास भोगा। आ0 (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-213
सिंघई जी मण्डल तथा तहसील कांग्रेस कमेटी के (2) जै0 स0 रा0 अ0
लगातार 15 वर्ष अध्यक्ष रहे। खादी ग्रामोद्योग संघ के साव मूलचंद जैन
भी आप अवैतनिक मंत्री रहे। देश के निवासियों को अपमानित, उत्पीड़ित आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-337 (2) और पराधीनता के जीवन से उबारने के लिये जिन्होंने स्व0 स0 हा0, पृ0-112 स्वतंत्रता संग्राम में कष्ट उठाये और स्वतंत्र भारत के
श्री मेघराज जैन सपने सजाये- 'जहाँ सब सुखी होंगे, सब समान श्री मेघराज जैन, पत्र-श्री गणेशीलाल जैन का होंगे, कोई भूख से नहीं मरेगा, जहाँ न्याय का राज्य जन्म 10 जून 1921 को ग्राम-डीकेन, तहसील-जावद, होगा'- वे ही स्वतंत्रता रूपी भवन के निर्माता सैनिक
जिला-मन्दसौर (म0 प्र0) में अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए।
हुआ। अपने विद्यार्थी जीवन कटंगी के श्री साव मूलचंद जैन ऐसे ही दुखी
में मात्र 19 वर्ष की आयु में सेनानियों के एक उदाहरण रहे हैं। आपके पिता का
आप गांधी जी की विचारध नाम श्री फूलचंद जैन था। आपका जन्म 1902 में
रा से प्रभावित होकर आजादी कटंगी, तहसील- पाटन, जिला-जबलपुर (म0प्र0)
के आन्दोलन में कूद पड़े। में हुआ।
आपने 1939 में गांधी जी के सविनय अवज्ञा के दौरान कटंगी में अग्रणी कार्यकर्ता के रूप में साव जी आन्दोलन में
हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में भाग लिया। इस कारण सक्रिय हो गये। जंगल कानून भंग किया, फलतः
18 माह के कारावास की सजा हुई तथा दिनांक 22 पुलिस ने लाठियों से शरीर छलनी बना दिया जून को गुलबगो सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया किन्त आजीवन वह शारीरिक दौर्बल्य गया नहीं । चार माह इसी बीच नबाब हैदराबाद व आन्दोलनकारियों में की कठोर कारावास की सजा और 50 रुपये जर्माना समझौता हो जाने से श्री जैन 17 अगस्त को अन्य किया गया, जुर्माना न देने पर डेढ़ माह की सजा आंदोलनकारियों के साथ छोड़ दिये गये।
और भोगनी पड़ी। जबलपुर जेल में 5 1/2 माह वापस लौटने पर मेघराज जी ने सार्वजनिक भीषण यातनायें सहते हुए सजा पूरी की। सभा की स्थानीय कमेटी के मंत्री पद का कार्य हाथ
1942 के आन्दोलन में भी आपने भाग लिया में लिया और इसके साथ-साथ हरिजन सभा के और 6 माह के कारावास की सजा भोगी। अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भाला। 1942 के भारत
आ0 (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-123 (2) छोडो आंदोलन के दौरान डीकेन स्थित श्री जैन के स्व0 स0 पा०, पृष्ठ-102
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प्रथम खण्ड
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मकान की तलाशी पुलिस द्वारा ली गई तथा पुलिस के आन्दोलन में भाग लेने के कारण 9 माह का सभी कागजात तिरंगा व सीलें जब्त करके चली गई। कारावास आपको भोगना पड़ा था। पलिस श्री जैन को व उनके साथियों को गिरफ्तार
आ) (1) म(0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-93 करना चाहती थी किन्तु आप किसी प्रकार पलिस (2) स्वा) स0 जा), पृष्ठ-158 को चकमा देने में सफल हो गये और गिरफ्तारी से
श्री मोतीलाल जैन बच गये। बाद में रतनगढ़ पुलिस ने श्री जैन का नाम
कटनी, जिला- जबलपुर (म0प्र0) के हिस्ट्रीशीटर की सूची में जोड़ दिया। इस प्रकार श्री मोतीलाल जैन, पत्र-श्री कन्छेदी लाल का जन्म श्री जैन पर पुलिस हर समय कड़ी निगरानी रखने 1924 में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में लगी। यह क्रम लगभग 6 माह तक चला। अन्त में भाग ले। 1 6 माह का कारावास आपने मोगा। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री चन्द्रकान्त तिवारी ने
आ) (1) 40 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-93 निगरानी आदेश निरस्त किया।
श्री मोतीलाल जैन आ- (1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-217
बरली, जिला रायसेन (म0प्र0) के श्री मोतीलाल (2) स्वा। स) प), पृष्ठ-105
जैन, पुत्र- श्री खरगराम जैन का जन्म 1898 में हुआ। श्री मेरुलाल जैन
1948 के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में ग्राम- भाभरा, जिला- झाबुआ (म0प्र0) के आपने भाग लिया तथा एक माह के कारावास की श्री मेरुलाल जैन, पुत्र- श्री पृथ्वीराज जैन का जन्म सजा भोगी। 4 जून 1918 को हुआ। 1930 में विद्यार्थी जीवन से
आ0-(1) म0 प्र0 स्वा) सै0, भाग-5, पृष्ठ-79) ही आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये तथा
श्री मोतीलाल जैन बन्दी बनाये गये। म0प्र0 शासन ने सम्मानपत्र प्रदान
कटंगी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) निवासी कर आपको सम्मानित किया है।
श्री गुलाबचंद जैन के सुपुत्र श्री मोतीलाल का जन्म आ) (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग 4, पृष्ठ- 143
1923 में हुआ। 1942 की अगस्त क्रांति में आप मास्टर मोतीलाल
कूद पड़े। थाने पर तिरंगा झंडा फहराने के लिये जिन आगरा (उ0प्र0) के मास्टर मोतीलाल जी नवयुवकों का दल चल पड़ा था उनमें श्री मोतीलाल कांग्रेस के प्रसिद्ध कार्यकर्ता रहे हैं। 1942 के भी थे, वे निर्भीक रूप से थाने में बढ़ते ही गये, आन्दोलन में 'आजाद हिन्दुस्तान' पर्चे बांटने के बन्दूकें आपको भयभीत नहीं कर सकी। फलतः सन्देह में आपको छ: माह की सजा हुई थी, लेकिन आप पकड़े गये, हथकडी डाली गयी और बन्दी अपील में आप छोड़ दिये गये थे।
बनाकर केन्द्रीय कारागार जबलपुर ले जाये गये जहाँ आ).. (1) जै।) स0. रा) अ0 (2) उ0 प्र0 जे0 भारत रक्षा कानून की धारा 129 के अन्तर्गत दिनांक धा), पृष्ठ-1
8 सितम्बर 1942 से 31 मई 1943 तक अपने
सहयोगी बंधुओं के साथ कैद रहे। जेल से मुक्त होने श्री मोतीलाल जैन
पर रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। श्री मोतीलाल जैन, पुत्र-श्री उमराव लाल का ।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-93 जन्म 1904 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1930 (2) स्वा) सा) पा0, पृष्ठ-100
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2104
स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री मोतीलाल जैन
पन्ना राज्य की डी0एफ0 ओ0 में 2 माह (20) -8-42 श्री मोतीलाल जैन, पुत्र-श्री टोडरमल का जन्म से 20-10-42 तक) रहे। परन्तु सजा नहीं दी गई।' 1912 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1930 के नमक आ)-(1) स्व) पर) एवं प्रमाण पत्र। सत्याग्रह में आपने भाग लिया। 1932 के आन्दोलन
सेठ श्री मोतीलाल जैन में जेल यात्रा की। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन
हाडोती के सपूत श्री मोतीलाल जैन ने राष्ट्रीय में भूमिगत रहकर आन्दोलन को जागृत बनाये रखने
स्वाधीनता आन्दोलन की ज्वाला में तन-मन-धन के लिए अन्य कार्यकर्ताओं से सम्पर्क स्थापित कर
समर्पित कर देश की आजादी रा0आ0 में उल्लेखनीय योगदान आपने दिया। आप
में अप्रतिम योगदान दिया है। कुल मिलाकर लगभग 2 वर्ष कारावास में रहे।
श्री मोतीलाल जैन जिन्हें लोग श्री जैन राष्ट्रीय कार्यों में सदैव अग्रणी रहे थे।
आदर से 'सेठ साहब' कहकर आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-93
पुकारते हैं, का जन्म जोधपुर (2) स्व) स) ज), पृष्ठ-158
(राज0) के श्वेताम्बर जैन श्री मोतीलाल जैन
परिवार में श्री जयचंद ___ कटनी, जिला- जबलपुर (म0प्र0) के लुणावत के यहाँ 5 दिसम्बर 1908 को हुआ। माता श्री मोतीलाल जैन, पुत्र-श्री राजवट को 1930 के का नाम राजबाई था। इनकी माता धर्मपरायण महिला जंगल सत्याग्रह में भाग लेने पर गिरफ्तार कर लिया · थीं, जिसका असर सेठ साहब पर पड़ा। श्री जैन गया और 4 माह 20 दिन के कारावास तथा 15 रु0 की प्रारम्भिक शिक्षा जोधपुर में हुयी और ग्यारह वर्ष के अर्थदण्ड की सजा दी गई।
की अल्पायु में ही वे माँगरोल के सेठ धनराज वैद्य आ)-(1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृ()-93
के यहाँ गोद आये, जिनका मुख्य व्यवसाय लेन-देन
का था। पं० मोतीलाल जैन शास्त्री
श्री जैन की आगे की पढ़ाई माँगरोल में ही श्री पं0 मोतीलाल जैन शास्त्री का जन्म हयी। उन्होंने 1925 में एडवांस हिन्दी परीक्षा तथा |-1-1924 को ग्राम बगरोदा, तहसील- बंडा, जिला- 1935 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से
सागर (म0प्र0) में हुआ। विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की। आपके पिता का नाम श्री सेठ साहब को राजनीति में आने की प्रेरणा बट्टलाल जैन था। आपके सर्वप्रथम 1930 में महान् क्रान्तिकारी विजय सिंह सन्दर्भ में स्वाधीनता सेनानी 'पथिक' से मिली। श्री ऋषिदत्त मेहता व पण्डित और पूर्व लोकसभा सदस्य नयनराम शर्मा भी इनके राजनैतिक प्रेरणास्रोत रहे। श्री राम सहाय तिवारी ने 1938 में कोटा राज्य प्रजामण्डल के अध्यक्ष
लिखा है कि 'इन्होंने छतरपुर पं0 नयनूराम ने इन्हें मण्डल का सदस्य मनोनीत कर न्ना राज्य में भूमिगत रहते हुए कार्य किया। दिया। 193) के मई माह में मांगरोल में प्रजामण्डल विशेषत: चिट्ठी-पत्री बांटने का काम ये करते रहे, के सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें आप अत: स्वतंत्रता सेनानी की कैटिगरी में आते हैं। ये स्वागताध्यक्ष थे। बाद में आप सैक्रेटरी चुने गये। इसी
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प्रथम खण्ड
वर्ष से आप माँगरोल में खादी का कढ़ाई-बुनाई का कारखाना खोलकर खादी के प्रचार में लग गये। 1940 में कोटा रियासत के उत्तरी भाग में अकाल पड़ने पर आपने अकाल पीड़ित सहायता कमेटी खोली। इसी वर्ष आपको डी()आई()आर) में पकड़ा गया और चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
जून 1941 में सेठ साहब ने कोटा में प्रजामण्डल का फिर सम्मेलन आयोजित किया। दिसम्बर में आप एक शिष्टमण्डल लेकर महात्मा गांधी के पास सेवाग्राम (वर्धा) गये।
जनसत्ता, दिल्ली (14 जुलाई 1997) को दिये गये एक साक्षात्कार में अपनी गिरफ्तारी और कार्यकलाप के सन्दर्भ में आपने कहा था कि- 'मैंने 1938 में राज्य प्रजामण्डल का सदस्य बनकर जन-चेतना फैलाने का कार्य शुरू कर दिया था। इस दौरान माँगरोल में दो अधिवेशन भी किये थे। पदयात्रा भी की लेकिन यह सब शुरूआत थी । .... ..हमें इस क्षेत्र से हटने के लिए कई प्रलोभन मिलते थे । धमकियाँ और यातनाएँ भी मिलती थीं, लेकिन हमारे सिर पर एक ही जुनून था देश को आजाद कराने का । '
1942 के आन्दोलन में अपनी गिरफ्तारी के सन्दर्भ में आपने कहा था-- ‘1942 की अगस्त क्रांति के दौरान महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद इस आन्दोलन में प्रजामण्डल द्वारा जमकर हिस्सा लेने के कारण मुझे पहली बार 22 सितम्बर 1942 को माँगरोल में गिरफ्तार किया गया तथा कोटा लाकर 15 दिसम्बर तक जरायमपेशा घर में बंदी बनाकर नजरबंद रखा गया। इस दौरान हमने चार दिन भूख हड़ताल भी की थी।'
दूसरी बार श्री जैन को बम्बई से कोटा आते समय कोटा स्टेशन पर उतरते ही गिरफ्तार कर लिया गया और हथकड़ी डालकर अजमेर ले जाया गया। अजमेर में आपको आठ दिन जेल में रखा गया। बाद में न्यायालय के आदेश से रिहा किया गया।
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पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सेठ साहब अग्रणी थे। अप्रैल 1947 में कोटा से आपने 'जयहिन्द' साप्ताहिक पत्र निकाला था, जिसके सम्पादक भी आप स्वयं ही थे । इस पत्र के 26 अंक ही निकल पाये थे कि 30 सितम्बर 1947 के अंक में 'भरतपुर व अलवर रियासत की नेहरू सरकार के खिलाफ हथियारबन्द साजिश' शीर्षक से प्रकाशित समाचार पढ़कर सरकार ने उस अंक की प्रतियां व प्रेस की जमानत 450/- रु (0) जब्त कर ली।
1944 में श्री जैन को 'कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट' कोटा मंडल का संयोजक बनाया गया था। 1940 से 1950 तक कोटा केन्द्रीय सहकारी बैंक के संचालक सदस्य व 1943 से 1950 तक अध्यक्ष रहे। स्वतंत्रता के पश्चात् 1949 में बनी वृहद् राजस्थान सरकार के प्रधानमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री ने उन्हें मन्त्रिपरिषद् में शामिल करना चाहा था पर श्री जैन ने मनोनीत सदस्य के रूप में मंत्री बनने से मना कर दिया था।
समाजसेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से जुड़े सेठ साहब ने अनेक छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दीं, रोजगार दिलाये व निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय
चलाया। आज भी वे सरकार से प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी पेंशन जनहित के कार्यों में लगाते हैं पेंशन के रूप में एकमुश्त प्राप्त लगभग साठ हजार रुपये की धनराशि उन्होंने सार्वजनिक संस्थानों को अनुदान के रूप में दे दी थी। श्री जैन के विचार हैं- 'स्वतंत्रता से पहले किसानों, श्रमिकों को डराया जाता था, धमकाया जाता था। शासक वर्ग द्वारा उन पर अत्याचार किये जाते थे। सोचा था आजादी के बाद यह सब खत्म हो जाएगा, बेरोजगारी मिट जाएगी, किसानों की हालत सुधर जाएगी, पर हालात और बदतर होते जा रहे हैं।.....आज स्वतंत्रता सेनानियों को पूछता कौन
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन है? उनकी इज्जत क्या है? कोई भी इज्जत नहीं तेजावत जी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल । संवत् करता। आज देश को मौजूदा हालात से उबारने के 1944 ( 1886 ई0) को उदयपुर (राज)) जिले के लिए सबसे पहले व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार एक छोट से ग्राम कोलियारी में हुआ। उर्दू, हिन्दी एवं का उन्मूलन करना होगा।'
गुजराती तीनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। आ0-(1) रा0 स्व0 से0, पृ०-538 (2) जनसत्ता, दिल्ली, विवाह से पर्व ही वे झाडोल आकर स्थानीय जागीरदार दिनांक ।4 जुलाई 1997 (3) अनेक प्रमाण-पत्र (4) श्री महेश
के यहाँ कामदार का कार्य करने लगे। यहीं आपने कमार जैन (बरमुण्डा ) द्वारा प्रेषित परिचय।
जागीरदारों द्वारा किसानों एवं गरीबों पर किये जाने वाले श्री मोतीलाल टडैया
क्रूर अत्याचारों के वीभत्स रूप के दर्शन किये। अन्ततः साहूकार परिवार में जन्म लेने वाले टडैया जी उन्होंने ठिकाने की नौकरी छोड़ दी और मात्रीकुण्डिया को अर्थ-संयम की भावना ग्रसित नहीं कर सकी। (चित्तौड़गढ़) जाकर सर्वप्रथम मेवाड़ राज्य के जुल्मों आपका जन्म 10-10-1905 को ललितपुर (उ0प्र0) के खिलाफ 'एकी' नामक आन्दोलन का सूत्रपात में श्री किशोरी लाल टडैया के यहाँ हुआ। आप किया। कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे। यहीं पर श्री तेजावत ने एक किसान मेले में हजारों 1942 में देश हितार्थ आंदोलनों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं किसान भाईयों का राज्य के जल्म के खिलाफ खडे की गुप्त सहायता करने से पुलिस ने कुपित होकर होने के लिए आह्वान किया और हजारों की तादाद में भारत रक्षा कानून की दफा 38 में गिरफ्तार करके किसान काश्तकारों के साथ उदयपुर आकर महाराणा | वर्ष की सजा और 100) के दंड से आपको श्री फतेहसिंह को एक ज्ञापन दिया जिसमें मेवाड की डित किया। अर्थदंड अदा न करनेपर 3 माह का जनता पर लगान बंगार की 2। कलमें पेश कर यह अतिरिक्त कारावास मिला। जीवन भर अदम्य उत्साह निवेदन किया कि ये कलमें माफ होनी चाहिए। दरबार से कांग्रेस के कार्य करते रहने वाले टडैया जी ने ने उनमें से 18 कलमें माफ कर दी, तीन कलमें सामाजिक संस्थाओं की स्थापना में तन-मन-धन से जिनमें जंगलात, सूअर बैठ-बेगार थी, माफ नहीं की, सहयोग दिया। आपका निधन 15-5-60 को हआ।
हुआ। इन्होंने उदयपुर के जगदीश मंदिर की सीढ़ियों पर खड़े आ) (1) जै0 स) रा) अ) (2) र नी0, पृष्ठ-87
हो कर यह ऐलान कर दिया कि (3) 'टा) बाहुबलि कुमार द्वारा प्रेषित परिचय (4) पुत्र श्री जिनेन्द्र
18 शर्ते महाराणा साहब ने छोड़ दी हैं और 3 मेवाड़ कुमार द्वारा प्रेपित पत्र।
के पंचों ने। इस प्रकार अपनी शर्ते मंजूर हो चुकी हैं। श्री मोतीलाल तेजावत
इसके पश्चात् उदयपुर से रवाना होकर तेजावत _ 'राजस्थान के जलियांवाला काण्ड' नाम से जी नाई कोटड़ा, आगपुरा, मादड़ी, झाडोल आदि स्थानों विख्यात उदयपुर के भीलकाण्ड, जिसमें 1200 निहत्थे से भ्रमण करते हुये सैकड़ों भीलों के साथ आकड़ भील एक साथ मारे गये थे, के सूत्रधार श्री मोतीलाल गांव में पहुंचे। वहां पर झाडोल के राजा सा() कुबेरसिंह तेजावत की चर्चा के बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम व कोलियारी का कमालखां सिपाही उन्हें मारने हेतु का इतिहास अधूरा ही रहेगा। श्री अर्जुनलाल सेठी ने आये, वहां थोर की बाढ़ में इनसे उनका मुकाबला जिस क्रान्ति का सूत्रपात किया था, विशेषत: राजस्थान भी हुआ। वे गोली चलाने ही वाले थे कि एकदम हल्ला में उसी की अगली कड़ी थे श्री मोतीलाल तेजावत। हो जाने से भाग गये। इस प्रकार तेजावत जी शहीद
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JAINOLOGITAL DESEARCH SOCIETY RAJAST *NAR.BIKANER
ER.1570
भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के सदस्य, सांसद, स्वतंत्रता सेनानी श्री बलवन्त सिंह मेहता जैनोलॉजीकल रिसर्च सोसायटी में भाषण देते हुए
1938 ई. में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन का प्रतीक चिन्ह कमानिया गेट, जबलपुर ( म०प्र०) ( इस अधिवेशन में सैकड़ों जैन बन्धु स्वयंसेवक के रूप में सम्मिलित हुए थे )
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HABAR
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स्वतंत्रता सेनानी, विधायक बाबू रतनलाल जैन, बिजनौर (उ०प्र०) अपने निवास पर
तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय श्री मोरारजी देसाई के साथ
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भारत की आजादी की पच्चीसवीं सालगिरह पर महामहिम राष्ट्रपति श्री व्ही. व्ही. गिरि के साथ एक मुलाकात में स्वतंत्रता सेनानी श्री रतनचंद जैन, जबलपुर (म०प्र०) बायें से दूसरे
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सिविक सेन्टर, जबलपुर (म.प्र.) में म.प्र. शासन द्वारा स्थापित, पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री हुक्मचंद 'नारद' का स्टेच्यू
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SPERHIT
महावीर वाल संस्कार केन्द्र, टीकमगढ़ (म.प्र.) में स्थित स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व
मुख्यमंत्री भैया मिश्रीलाल जी गंगवाल का स्टेच्य
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1942 में जैन क्रान्तिकारियों का गढ रहा श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी (उ०प्र०)
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opeganetara
जबलपुर (म.प्र.) का तत्कालीन टाउन हाल (वर्तमान गांधी भवन) जहाँ क्रान्तिकारी
श्री प्रेमचंद जैन 'उस्ताद' ने ध्वजारोहण किया था
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artaman UMARWARDAN
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BUSIC
गांधी चौक, दमोह (म०प्र०) जहाँ 1942 में श्री रघुवर प्रसाद मोदी को जूतों की ठोकरों से
इतना पीटा गया था कि सारा प्रांगण लहूलुहान हो गया था
भारतीय संविधान निर्मात सभा के सदस्य (संविधान निर्माता) श्री बलवन्त सिंह मेहता
उदयपुर (राज.) से साक्षात्कार लेते हुए लेखक डॉ० कपूर चन्द जैन
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ممنون کے رشت
تاجوری رسائی کا بلو سه بار اس کا بال یہ
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که باز هم او جوش ما مانا
خامه
در ایران و خانواده
اردو زبان کا ایکستری تری دی۔ افتی اور تاریخی مقامات کو نہیں مان رانا نے میری بات میں رام رسالہ
کے ایڈیٹر جیو
پرشاه نجمین
جوائنٹ ایڈیٹر جین بالاتر و
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او
جمین روی کے واكد ان را به کشتی چینی در این میان سال به ا را پہر کا نام ہے اگر ہم کو منہ سے بون . او کیا کہ جان کر انسانی سے کی اس تسلیے اہم سادہ ملا اور اسی سے بانها من قبل اور م و
ت
کا
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را از روی سینے کے امهای دست
ساز در ایران دارند. اما میں امن و امان میم یا میرا یہ بین ایرانی که داد با
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د و سالا نه ولی رد پیش کی مجالس سکس اور کلی می توڑ رود .
فری خطاهایت مد شده برای پیاده در این پرو۔
بلی پتروشیمی میدان میں پیار سے امی اور بیوی پر دار بیان پر می شود و در سومین رسمی
و
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जैन प्रदीप, देवबन्द के अप्रैल 1930 के अंक का मुख पृष्ठ, जिसमें प्रकाशित श्री ज्योति प्रसाद जैन के लेख 'भ. महावीर और महात्मा गांधी' के कारण यह और इसके बाद का अंक (जिसमें उक्त लेख का अवशिष्ट
अंश छपा था) सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था। इसके बाद जेन प्रदीप का प्रकाशन बन्द हो गया था। जैन प्रदीप तब उर्दू में छपता था।
गाटगांव, जिला-नरसिंहपुर (म.प्र.) का स्वतंत्रता सेनानी कीर्ति स्तम्भ जिस पर वहाँ के सेनानियों के नाम अंकित हैं। साथ में खड़े हैं लेखक डॉ० कपूर चन्द जैन
चित्र सौजन्य - श्री शशांक जैन, गोटेगांव
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ANSLA
भारतीय संविधान की मूल प्रति में भगवान महावीर का चित्र
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ASAIRRRRRRIOR
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भारतीय संविधान की मूलप्रति का पृष्ठ 63 जिस पर भगवान् महावीर का चित्र अंकित है
Tashan
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RALA
Tamasha 4433
5
परम पूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज से 'अमर जैन शहीद' पुस्तक का लोकार्पण करने
हेतु निवेदन करते लेखक डॉ. कपूर चंद जैन
संयक्त जैन मिलने परि"
आपका हार्दिक पनि
LIKE
डॉ० (श्रीमती) ज्योति जैन की पुस्तक 'स्वराज्य और जैन महिलायें' का लोकार्पण करते
हुए श्री अरविन्द कुमार जैन, तत्कालीन स्वास्थ्य राज्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, लखनऊ
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प्रथम खण्ड
297 होते-होते बचे। इस आन्दोलन की जानकारी हर गांव पर मिलता रहता था। अत: पूज्य बापू के आदेशानुसार व आस-पास की रियासतों में तेजी के साथ फैल गयी। 1929 में ईडर रियासत के खेड़ ब्रह्मा गांव में तेजावत भील तेजावत जी के साथ सैकड़ों की तादाद में इकट्ठे जी ने स्वयं अपने आपको गिरप्तार करवाया। वहां से होकर आते जाते रहते थे।
उन्हें ईडर भिजवाया गया। ईडर रियासत न आबू धीरे-धीरे यह आंदोलन सिरोही, दांता, पालनपुर, ए0जी0जी0 को यह सूचना देते हुए लिखा कि हमारी ईडर, विजयनगर आदि रियासतों की जनता में भी फैल रियासत इन्हें नहीं रखना चाहती है, अत: आप जहां गया। इस प्रकार आदिवासी जनता के साथ भील नेता उचित समझें वहां भिजवा दें। इसी प्रकार दूसरी रियासतों विजयनगर रियासत के नीमड़ा गांव के पास पहुंच गये। ने भी उन्हें रखने से साफ इंकार कर दिया। अन्ततः वहां मेवाड़ रियासत की मिलेट्री व अन्य रियासतों की वे उदयपुर में 6 अगस्त 1920 से लेकर 23 अप्रैल पुलिस अपने-अपने अधिकारियों के साथ मौजूद थी। 1936 तक लगभग सात वर्ष जेल में रहे। जेल से वहां अन्य रियासतों की सरकारों व जनता के बीच रिहा होने के बाद भी उन्हें उदयपुर शहर में नजरबंद लगान व बेगार को लेकर सुलह की बात चल रही रखा गया। थी। इस कारण जनता शान्त थी।
1036 में प्रजामण्डल आन्दोलन में तेजावत जी अचानक मिलेट्री ने निहत्थी जनता पर मशीनगनों पुन: गिरफ्तार हुये। 1940 में जब उन्हें पता चला कि से फायरिंग प्रारम्भ कर दी। वहीं पर लगभग एक हजार भोमट के भील दुष्काल के कारण जानवरों को मारकर दो सौ से अधिक व्यक्ति शहीद हो गये। श्री तेजावत खाने लगे हैं तो वे वहां राज्य सरकार की आज्ञा के के भी पांव में गोली व छर्रे लगे थे। भील उसी समय बिना चले गये। अन्तत: सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें उठाकर भूमिगत (गुप्त) हो गये, वे 1929 तक उदयपुर लाकर उनके मकान पर पहरा बैठा दिया जो यानि 8 वर्ष तक गुप्त रहे। वह जगह जहां हत्याकांड 1947 क रहा। हुआ था वे दरख्त आज भी उन गोलियों की गवाही 1951-52 में आप साहडा निर्वाचन क्षेत्र से
विधानसभा के लिए खड़े हुये थे पर नेहरू जी के इस बीच सरकार ने किसी व्यक्ति का सिर समझाने पर कि आप वृद्ध हैं, एक कर्मठ कांग्रेस काटकर जनता में यह भ्रम फैला दिया कि मोतीलाल सिपाही के नाते आप कांग्रेसी उम्मीदवार के पक्ष में को मार दिया गया है और यह उनका सिर है। यह अपना नाम उठा लीजिए, आप चुनाव मैदान से इनके आन्दोलन को कमजोर करने की एक चाल थी। हट गये थे। 5 नवम्बर 1963 को आदिवासियों तेजावत जी की खोज में उदयपुर, सिरोही, ईडर आदि का यह मसीहा सदा-सदा के लिए इस संसार से राज्यों की सरकारों ने कई गांवों में आग लगा दी। इसमें चला गया। अनेक जानवर भी जलकर मरे, गरीबों का जो नुकसान आपके पत्र मोहनलाल तेजावत भी आपके हुआ सो अलग। मेवाड राज्य की सेना छह माह सिरोहा कदमों पर चले और उन्होंने भी जेल की दारुण यातनाये में डेरा डाले रही पर तेजावत 'जी को गिरफ्तार नहीं होती। किया जा सका।
आरा (1) रा) ३) सै0, पृ0 - 176-179 (2) इ) 0 ओ), इस आंदोलन का पूरा पता पूज्य बापू को श्री भाग-2, '11) - 401 (3) राजस्थान और जैन संस्कृति, पृ0-341 मणीलाल कोठारी. अहमदाबाद के जरिये समय-समय (4) राजस्थान में स्वतता संघर्ष, पृ0-144
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298
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री मोहनलाल जैन
का कारावास भोगा। 42 के आन्दोलन में भी ।)-8-42 'देशप्रेम उम्र पर नहीं भावना पर आधारित होता से 5-4) -44 तक लम्बी अवधि का कारावास आपने है' इस उक्ति को चरितार्थ करने वाले श्री मोहनलाल भोगा।
का जन्म 1927 में रीवा आ)- (!) म0प्र0 स्व) सै0, भाग 3, पृष्ट-128 (म0प्र0) में हुआ। आपके
श्री मौजीलाल जैन पिता का नाम श्री लक्ष्मी चंद
मनेन्द्र गढ़, जिला- सरगुजा (म0प्र0) के जैन था। आपने मैट्रिक तक
श्री मौजीलाल जैन, पुत्र-श्री राजधन जैन ने 1930 के शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही श्री जैन राजनैतिक कार्यो में नमक सत्याग्रह में भाग लिया तथा १ दिन का कारावास
एवं 3 माह 9 दिन नजरबंद रहने की सजा भोगी। रुचि लेने लगे थे। अंग्रेजी ए
ity (I) म0प्र0 स्व0 मै0, भाग 1, Yo ::15 सरकार का तख्ता उलटने के लिए उसकी शासन प्रणाली में व्यवधान डालना हर आंदोलनकारी का उस
श्री यादवचंद जैन समय कर्तव्य था। 1942 के देशव्यापी आन्दोलन की
श्री यादवचंद जैन, पुत्र-श्री बुद्धि लाल जैन ने गतिविधियों जैसे जुलूस निकालना, झंडा फहराना आदि 1942 में सिवनी (म0प्र0) जिले के ग्राम-पीट में जोखिम भरे कार्यो का नेतृत्व आपने किया। फलस्वरूप आन्दोलन के समय प्रचार सामग्री वितरित की, जलस 19 माह जेल में रहे।
में भाग लिया और पिकेटिंग की। फलत: आप गिरफ्तार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आप शासकीय सेवा में कर लिये गये और 6 माह का कारावास आपने भोगा। ग्राम सेवक के रूप में रहे। सेवानिवृत होने के पश्चात्
आ) (1) 10 प्र) स्व) सै), 'पाग 1, 2 152 आप धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में संलग्न रहे। रीवां में 1993 में विशाल इन्द्रध्वज विधान आपने ही कराया
श्री रंगलाल जैन (बोकाड़िया) था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से सम्बन्धित सारी सुविध
मन्दसौर (म0प्र0) के श्री रंगलाल जैन यें आपको प्राप्त हो रही हैं।
(बोकाड़िया), पुत्र- श्री चौथमल का जन्म 20 नवम्बर आ0- (1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-5, पृ0-220 1902 को मंदसौर में हुआ। आप 1932 से ही स्वतंत्रता (2) डा0 नन्दलाल जैन, रीवां द्वारा प्रेषित परिचय (3) वि0 स्व० संग्राम में सक्रिय हो गये थे, 1942 के भारत छोड़ो स0 50, पृ0--413
आन्दोलन में भाग लेने पर । माह का कारावास आपको
भोगना पड़ा। श्री मोहनलाल बाकलीवाल
आ) () 0 प्र0 स्व00, भाग 1,3017 दुर्ग (म0 प्र0) के श्री मोहनलाल बाकलीबाल का जन्म 4-11-1901 को हुआ। आपके पिता का
श्री रघुवर दयाल जैन नाम श्री प्रेमसुख बाकलीवाल था। राष्ट्रीय भावनाओं श्री रघुवर दयाल जैन, पुत्र-श्री राम दयाल जैन से ओत-प्रोत होने के कारण आप बचपन से ही राष्ट्रीय का जन्म 28-10-1889 को मउ (इन्दौर) में हुआ। आन्दोलन से जुड़ गये। सर्वप्रथम 1932 के आन्दोलन आपने 19।। में इन्दौर से एम0ए0 व 1913 में में आप 16-2-32 से 14-4-32 तक जेल में रहे। इलाहाबाट annonीधा जी की और 26-12-40 को आप पुन: गिरफ्तार हुए और 6 माह मिशन कॉलेज में प्राध्यापक रहे किन्त श्री अर्जन लाल
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प्रथम खण्ड सेठी के स्वतंत्रता संग्राम में गिरफ्तार हो जाने के बाद में 1902 ( या 1894) ई0 में हुआ। आपके पिता आप त्रिलोक चन्द जैन हाई स्कूल इन्दौर के हैड मास्टर श्री गोरे लाल गल्ले के व्यापारी थे तथा माता सुखरानी हो गये। आपने लाहौर में रेलवे में नौकरी की, जहाँ धर्म परायण महिला थीं। मोदी जी अपने माँ बाप के एक अंग्रेज ऑफीसर के किसी भारतीय से यह कह इकलौते बेटे थे। देने पर कि 'Your India Blady' उसको पीट दिया। 1918 में आपने मैट्रिक पास किया ही था कि फलतः आप 1930 में Personal Officer के पद से देश में रौलेट एक्ट की गूंज थी, उसी समय जलियांवाला सेवामुक्त कर दिये गये। आप महात्मा गांधी के बाग की भयानक मर्मस्पर्शी घटना हुई थी। अंग्रेजों साथ प्रसिद्ध दांडी मार्च में भी गये थे और जेल यात्रा की पाशविक दमन नीति से देश की जनता का खून की थी।
खौल उठा था, परिणामस्वरूप बच्चा-बच्चा कुर्बान बचपन में ही आपने चमड़े का प्रयोग जीवन होने को उमड़ पड़ा था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भर के लिए त्याग दिया था। आप अखिल भारतीय प्रभावित होकर मोदी जी भी आजादी की लड़ाई में दिगम्बर जैन परिषद् के महामंत्री भी रहे। आपने स्कूल छोड़कर कूद पड़े। आपके साथी प्रेमशंकर करीब एक लाख रुपये से 'रघुवर दयाल रामदयाल धगट, सिंघई गोकलचन्द वकील, दामोदर राव श्रीखण्डे, जैन चेरिटेबिल टस्ट' की स्थापना की. जिसके द्वारा देवकी नन्दन श्रीवास्तव. लक्ष्मीशंकर धगट आदि बहुत से जैन धर्मावलम्बियों को शिक्षा एवं अन्य नौकरी व स्कूल छोड़कर आजादी के दीवाने बन गये धार्मिक कार्यों में सहयोग दिया जाता है।
और दमोह जिले में स्वतंत्रता आन्दोलन ने विराट श्री जैन महात्मा गांधी के काफी सम्पर्क में रहे रूप ले लिया। और 1948 में गांधी जी की भस्मी को लेकर 1930 में आपने खादी का कार्य प्रारम्भ किया। कैलाश पर्वत व मानसरोवर झील गये थे। आप उस समय महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन ने अपने अन्तिम समय तक विनोबाजी के व्यक्तिगत जोर पकड़ा था, अंग्रेजों के अत्याचार पराकाष्ठा पर सचिव रहे। आपका निधन 9 जून 1969 को देहली थे। उनके अत्याचारों का दमन करने के लिए मोदी में हुआ।
जी के नेतृत्व में ग्राम रोड़ में कॉन्फ्रेंस हुई, जिसकी आ)-(1) प) इ०, पृष्ठ-135
अध्यक्षता पं० सुन्दरलाल तपस्वी, जिन्होंने 'भारत में
अंग्रेजी राज' नामक ग्रंथ लिखा था, और जिसे बाद श्री रघुवर प्रसाद मोदी
में अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था, ने की थी। प) रविशंकर शुक्ल ने एक बार कहा था 1930 में ही आपने स्थानीय गांधी चौक में
कि-'मैं दमोह को श्री रघुवर स्वदेशी काड़ों की दुकान खोली, जिसे शासन ने प्रसाद मोदी के नाम से जानता जला दिया और आपको गिरफ्तार कर लिया। इसी हूँ।' ऐसे व्यक्तित्व, अनेक समय आपके नेतृत्व में दमोह से नमक सत्याग्रह शैक्षणिक, सामाजिक एवं पास
। प्रारम्भ हुआ, शासन द्वारा भारी जुल्म ढाये गये। बाद सांस्कृतिक संस्थाओ क में आपने बनवारी लाल श्रीवास्तव, सुन्दरलाल स्वर्णकार संस्थापक, निर्भीक जन नेता आदि अनेक साथियों सहित जंगल सत्याग्रह प्रारम्भ
श्री रघुवर प्रसाद मोदी का किया। आपने जंगल कानून तोड़ने की योजना बनायी, जन्म दमोह (म0प्र0) के निकटवर्ती ग्राम खोजाखेड़ी जो मडियादों के जंगल काटने की थी। दमोह के एक
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300
स्वतंत्रता संग्राम में जैन गद्दार ठेकेदार ने गुप्त सूचना सरकार को दे दी। महाविद्यालय आपकी ही देन है। आपने राष्ट्रीय जैन नागपञ्चमी के दिन ज्यों ही आप जंगल कानून उच्चतर माध्यमिक कमला नेहरू महिला विद्यालय, तोड़ने को कटिबद्ध हुए त्यों ही तत्कालीन कलेक्टर जैन औषधालय के साथ ही अनेक संस्थाओं की डब्ल्यू0जे0एन0 ली0 तथा एस0पी0 हुर्र ने आपको स्थापना की। 1957 में कलेक्टर द्वारा कम्युनिस्ट और साथियों को गिरफ्तार कर लिया। मोदी जी को घोषित किये जाने पर आप पुनः गिरफ्तार हुए। दो दिन जेल में रखकर छोड़ दिया गया। आपातकाल में भी आपको अस्वस्थ अवस्था में ___इस गिरफ्तारी से जनता में और अधिक जागृति गिरफ्तार किया गया था। 17 दिसम्बर 1976 में आई जिसे अंग्रेज शासक सहन न कर सके। अमानुषिक आपने इस नश्वर शरीर को त्यागा। आपकी स्मृति में अत्याचार आजादी के दीवानों पर किये जाने लगे। शासन ने दमोह की राष्ट्रीय जैन उच्चतर माध्यमिक स्कूलों और टाउनहाल में तिरंगा झण्डा फहराने के शाला का नाम 'श्री रघुवर प्रसाद मोदी राष्ट्रीय जैन अभियोग में मोदी जी को गिरफ्तार कर लिया गया उच्चतर माध्यमिक' शाला रखा है। और निर्ममता से पीटा गया। इस सन्दर्भ में 'म0प्र0
(1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-88 के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक- भाग-2,' पृष्ठ 77 पर ।
7 (2) युवक क्रान्ति समान दमोह, स्मारिका, पृष्ठ- 06 (1) प0 जै)
___ इ0, पृष्ठ-431 (4) श्री संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेपित परिचय लिखा है- 'दमोह नगर के मध्य में निर्मित गांधी ।
(5) श्री खेमचंद कोमलचंद बजाज द्वारा प्रेषित परिचय चौक आजादी के संघर्ष का जीता-जागता स्मारक है, जो आजादी के लिए प्राणों की आहुति देने वालों की
प्रो० रघुवीरसिंह जैन स्मृति ताजा करता है। इसी स्थान पर 1942 में अ) भा0 दि) जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड के मंत्री पुलिस ने स्वतंत्रता सेनानी श्री रघुवर प्रसाद मोदी को रहे प्रो) रघुवीरसिंह जैन का जन्म 1909 में मेरठ जूतों की ठोकरों से इतना पीटा था कि सारा प्रांगण
(उ0प्र0) के एक सम्पन्न जैन लहूलुहान हो गया था।'
परिवार में हुआ। आपके मोदी जी की ऐसी पिटाई से जनता भड़क
पिताजी बड़ौत के रहने वाले उठी। आन्दोलन तीव्र होने की आशंका से प्रशासन ने
थे परन्तु वकालत के कारण इन्हें मुक्त कर दिया, किन्तु स्वस्थ होते ही पुन:
मेरठ में रहने लगे थे। गिरफ्तार कर लिया। मुकदमा चला और 6 माह की
आपने 1929 में बी0एससी0 जेल तथा 500/- रु) जुर्माना की सजा आपको दी
| की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तथा गई। इतने अत्याचारों के बाद भी आप घबड़ाये नहीं। विश्व-विद्यालय में द्वितीय स्थान के साथ मेरठ कॉलेज, इसी बीच क्रान्तिकारी श्री प्रेमचंद जैन 'आजाद' ने मेरठ से पास की और आगरा कालेज, आगरा के भौतिक आपका उत्साह बढ़ाया। आपके नेतृत्व में दमोह से विभाग । एम0एससी) में प्रवेश लिया। वहाँ अभी एक भारी तादाद में सेनानी जेल गये।
वर्ष ही बीता था कि गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आरम्भ 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। मोदी कर दिया। देश की पुकार पर आप पढ़ाई को अधूरा जी के नेतृत्व में विशाल मशाल जुलूस शहर में ही छोड़कर सत्याग्रह में कूद पड़े। मित्रों ने बहुत आजाद भारत का शंखनाद करता हुआ निकाला गया। समझाया कि वह अपनी सरकारी नौकरी का भविष्य
देश की आजादी के बाद आप 1952 से बिगाड़ रहे हैं' परन्तु गांधी जी की पुकार पर आपने 1957 तक दमोह से विधायक रहे। दमोह में शासकीय
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प्रथम खण्ड
301 अपनी चिन्ता नहीं की। नमक सत्याग्रह में आपको के उप-मंत्री, उपभोक्ता समिति के प्रधान तथा मंत्री, कारावास का दण्ड हुआ और कारावास काल मेरठ देवनागरी कॉलेज की प्रबंधकारिणी के सदस्य, राष्ट्रीय जेल में ही बीता। इस काल में आपको स्वर्गीय मौलाना कांग्रेस की प्रबंधकारिणी के सदस्य तथा मंत्री, अखिल आजाद, चौधरी चरणसिंह आदि मुख्य व्यक्तियों के साथ भारतीय हिन्दी सम्मेलन के मेरठ अधिवेशन के रहने का अवसर मिला। प्रो0 साहब का कहना था कि- स्वागत मंत्री आदि अनेक पदों पर रहे थे। 'इन छ: महीनों में जेल में जितना वह सीख पाये उतना नवम्बर 1946 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जीवन में सीखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।' मेरठ में हुआ था। उसकी स्वागत समिति में आप ___ एक वर्ष बाद गांधी इर्विन समझौता होने पर छपाई विभाग के मंत्री थे। उसी अवसर पर स्व0 आप एम0एससी0 का अध्ययन पूरा करने के लिए चन्द्रकुमार जैन शास्त्री तथा अन्य से मिलकर आपने पन: आगरा चले गये और वहाँ से 1932 में उपाधि मेरठ में जैन राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं के एक विशाल प्राप्त कर ली। एम0एससी) करते ही सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया था। अखिल भारत में श्री शान्ति स्वरूप भटनागर आपको लाहौर कांग्रेस में काम करने वाले जैनों का एक संगठन विश्व-विद्यालय में अनुसंधान के लिए ले गए। वहाँ बनाने की भी आपकी योजना थी परन्तु गढ़मुक्तेश्वर आपने अनुसंधान कार्य किया; परन्तु राष्ट्रीय कार्यों में में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने के कारण यह सम्मेलन भाग लेने के कारण लाहौर की पुलिस पीछे पड़ी नहीं हो पाया। उसी समय दंगे में एक गुण्डे ने आप रहती थी। अत: प्रो0 भटनागर ने आपको भौतिकी में पर प्रहार किया, प्रहार बहुत गम्भीर था; परन्तु अपनी अनुसंधान करने के लिए सर सी0वी0 रमन के पास वीरता के कारण आप मृत्यु से बच गए। बंगलौर भेज दिया।
1961 में आप मेरठ कॉलेज छोड़कर विदिशा बंगलौर में आप अधिक दिन नहीं रह सके। (म0प्र) ) में सेठ शिताबराय लक्ष्मी चन्द्र जैन स्नातकोत्तर 1934 में राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर में प्रवक्ता पद महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर चले गए, और वहाँ पर कार्य करने के लिए आ गए। कोल्हापर में आठ जून 1908 (क कार्य किया। बाद में आप मेरठ में वप तक रहे। यह काल अधिकतर पढने-पढाने में रहन लगा 1971 म आप पारषद् पराक्षा बाड क व्यतीत हुआ। बचा हुआ समय हिन्दी प्रचार में मंत्री रहे थे। 7 सितम्बर 1980 को मेरठ में आपका समस्त महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा कोंकण में लगता था। निधन हो गया। कोल्हापुर में आपको सुप्रसिद्ध जैन साहित्यकार प्रो0 आ)- (1) स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ, पृष्ठ-305 एएन0 उपाध्ये के सम्पर्क से बहुत लाभ हुआ (2) सन्मति संदेश, जून 197। (3) पुत्री द्वारा प्रेषित तिथियाँ वयोंकि वे भी उसी कॉलेज में कार्य करते थे।
श्री रतनचंद काष्ठिया 1942 में आप कोल्हापुर छोड़कर मेरठ कॉलेज, विस्फोटक बम बनाने के लिए बाजार में मेरठ में आ गए और वहाँ 1961 तक रहे। आप कॉलेज अनुपलब्ध रसायनों को महाराजा कॉलेज की प्रयोगशाला के प्रमुख कार्यकर्ताओं में थे। वहाँ यूनियन के चेयरमैन से पार करने वाले श्री रतनचंद काष्ठिया का जन्म तथा प्रोक्टर इत्यादि पदों पर कार्यरत रहे। 12 दिसम्बर 1922 को जयपुर (राज)) में हुआ।
कॉलेज के अलावा आप शहर में प्रमुख आप प्रजामंडल से जुड़े रहे। 1942 के भारत छोड़ो सार्वजनिक कार्यकर्ता माने जाते थे। आप जैन बोर्डिग आन्दोलन में आजाद मोर्चे की सभाओं में भाषण देने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
के कारण आप गिरफ्तार कर लिये गये और 1-2 जुलूस का नेतृत्व करते हुए, स्टेशन की ओर जाने दिन बाद ही छोड़ दिये गये। जयपुर में तोड़-फोड़ पर आपको गिरफ्तार कर दमोह थाने भेज दिया गया। के कामों में आपने सक्रिय भूमिका निभाई थी। दूसरे दिन सागर जेल भेजा गया, सागर से नागपुर आO-(1) रा0 स्व० से0, पृष्ठ-627
जेल भेजा गया और मुकदमा चलाने के लिए पुन:
सागर लाया गया। आपको 10 माह 20 दिन के श्री रतनचंद गोटिया (जैन)
। कारावास की सजा मिली, जो आपने अमरावती जेल पनागर, जिला- जबलपुर (म0प्र0) के श्री
___ में मासूम अली जेलर के दुष्ट शासन में काटी। रतनचंद गोटिया, पुत्र- श्री नत्थूलाल का जन्म 1920
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-88 (2) श्री 1 में हआ। विज्ञान स्नातक सन्तोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय गोटिया जी ने हटा, पटेरा, मझौली, हनुमना, दमोह आदि
सेठ रतनचंद जैन के राजकीय विद्यालयों में
छोटा कद, इकहरा बदन और 'रन्तू सेठ' के शिक्षण कार्य किया। वे अनेक नाम से विख्यात नरसिंहपुर (म0 प्र0) के तत्कालीन वर्षों तक प्राचार्य भी रहे।
मालगुजार सेठ रतनचंद, 1936 में आपने माडल
पुत्र-श्री छोटेलाल का जन्म हाईस्कूल पर तिरंगा फहराया। 1942 के
उनके ननिहाल कटनी, आंदोलन में आप गिरफ्तार हुए और | वर्ष 5 माह
जिला- जबलपुर (म0प्र0) में जेल में रहे। 1973 में आपका स्वर्गवास हो गया।
नाना श्री डेवड़िया दमड़ी लाल आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै०, भाग-1, पृष्ठ-95
के घर 25-1-1913 में (2) पुत्री सौ0 विमला जैन, नागपुर द्वारा प्रेषित परिचय। (3) 40
| हुआ। सेठ रतनचंद का मन जै() इ), पृष्ठ-522
अपने पैतृक कार्य खेती-किसानी में न लगा और वे सिंघई रतनचंद जैन
स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अनेक आमसभाओं में दमोह (म0प्र0) जिले में 'शान्ति युवक दल'
। भाग लिया, असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भूमिका का गठन करने वाले सिंघई रतनचंद जैन का कुटुम्ब
निभायी और जेल यात्रा की। ठाकुर रुद्रप्रताप सिंह, राष्ट्रीय सेवा में अग्रणी रहा है। आपके पिता सि)
श्यामसुन्दर मुशरान, डेवड़िया रतनचंद, चौधरी नेतराज गुलाबचंद अनेक सामाजिक संस्थाओं के संचालक सिंह आदि के विचारों से आप प्रभावित रहे। सेठ जी रह। इनका मूल निवास बांदकपर था और बनवार में अनक बार जेल गये और आन्दोलन में पर्ण रूपेण मालगुजारी थी। रतनचंद जी का जन्म 1918 में हुआ ।
तन-मन-धन से भाग लिया। आप जबलपर तथा
नरसिंहपर जेल में अनेक बार बंदी रहे। स्वतंत्रता आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की। आपके पिता सि0 गुलाबचंद और भाई शिव प्रसाद जी भी जेल जा चुके हैं। प्राप्ति के बाद आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो
हो गई, क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने आपकी सारी संपत्ति सि0 रतनचंद का राजनैतिक जीवन 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवक बनकर कार्य
1942 में ही जब्त कर ली थी। सम्प्रति आप मूक
सेनानी के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। करने से प्रारम्भ हुआ। 11 अगस्त 1942 को मधुर
आ) (1) श्री मुकेश जैन एवं श्री सुरेन्द्र जैन नरसिंहपुर और ओजस्वी गायक श्री राजाराम शुक्ल को लेने, टोपित पनि
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प्रथम खण्ड
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श्री रतनचंद जैन
श्री रतनचंद जैन, पुत्र- श्री दुलीचंद जैन निवासी- सिहोरा (म0प्र0) ने 1931 के आन्दोलन में भाग लिया, गिरफ्तार हुये और एक वर्ष का कारावास तथा 10 रुपये का अर्थदण्ड भोगा ।
आ() - ( 1 ) म) प्र०) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-95 श्री रतनचंद जैन
जबलपुर, 19 जून 1994; मैं रिक्शे से 42 कोतवाली वार्ड पहुंचा, दरवाजा खटखटाया, सहसा एक कृशकाय, शरीर से वृद्ध किन्तु चेहरे पर देदीप्यमान वीररसोचित आभा वाले व्यक्ति ने दरवाजा खोला, मुझे समझते देर न लगी कि यही श्री रतनचंद जी हैं, जिनसे मिलने मैं लगभग
1000 किमी0 दूर से आया हूँ। परिचयोपरान्त मैंने अपने आने का मकसद बताया कि मुझे मध्यप्रदेश के जैन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिचय चाहिए। जो सामग्री उनके पास थी सहर्ष मुझे दिखा दी।
श्री जैन मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ के संस्थापक - महामंत्री, अ० भा० स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समिति, नई दिल्ली के सचिव, जिला कांग्रेस कमेटी, जबलपुर के महामंत्री आदि अनेक पदों पर रहे। उनके सरल हृदय, साधारण वेशभूषा से लग ही नहीं रहा था कि यह व्यक्ति इतने बड़े पदों पर रहा होगा। पर 80 वर्ष की उम्र में भी उनकी बातचीत के जोश से यह जरूर लग रहा था कि इन्होंने भारत मां को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना तो सर्वस्व न्यौछावर किया ही होगा, साथ ही अपने ओजपूर्ण भाषणों से अन्य सपूतों को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिये प्रेरित किया होगा । साधारणतया लोग नहीं जानते कि श्री जैन ने 'स्वतंत्रता संग्राम
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सैनिक संघ' को जन्म दिया और देश सेवकों को 'स्वतंत्रता सेनानी' शब्द दिया। इससे पूर्व उन्हें 'राजनैतिक पीड़ित (POLITICAL SUFFERER)
कहा जाता था।
अपना परिचय देने का निवेदन करने पर उन्होंने कहा - " मेरे पिता का नाम श्री बट्टीलाल जैन था, जो दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के परवार जैन थे। वे 1932 में कलेक्टर कार्यालय में क्लर्क थे, पर मेरे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी थी।" आगे उन्होंने बताया कि "पैतृक सम्पत्ति कुछ नहीं होने से मुझे बिना पूंजी के व्यवसाय करना पड़ा। मैं साइकिल पर कपड़ा बांध कर गांवों के बाजार में ले जाता था, उन्हें बेचता व अपने कुटुम्ब का भरण पोषण करता था । परिवार में 5 भाई, 4 बहनें, माता, पिता, मेरे पिता के बड़े भाई की बाल विधवा पत्नी अर्थात् बड़ी माँ थीं। पिताजी का विछोह पहिले हुआ, मां का 20 वर्ष बाद।
17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय अंग्रेजों की मार से शहीद हो गये। सारे देश की जनता शोक में डूब गयी। मैंने सुबह झंडे की सलामी के समय प्रस्ताव रखा कि 'देश के नेता लाला लाजपत राय शहीद हो गये हैं, अतः झंडा आधा झुकाया जाये।' मेरी बातें सुनकर सब दंग रह गये, चाहते तो सभी थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि अंग्रेजी शासन का यूनियन जेक झंडा था। इतने में रैली आयोजन के अध्यक्ष श्री दुर्गाशंकर मेहता 'वकील' आए और मेरे प्रस्ताव पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए स्वयं जाकर झंडा आधा झुका दिया। बाद में सलामी हुई। डिप्टी कमिश्नर अंग्रेज था श्री पी0सी0 बोर्न। वह रैली का संयोजक और फील्ड मार्शल था। यह देखकर गुस्से में तमतमा गया। बोला कुछ नहीं पर सलामी न लेकर अपनी मोटर लेकर चला गया।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन ..1931 में क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न होने ने मुझे मरा समझकर थाने में रिपोर्ट की तब एक के कारण पिताजी को नौकरी छोड़कर घर बैठने को अस्पताली कैम्प में मेरी जांच कराई गई। मुझे जीवित मजबूर होना पड़ा। मैं गांवों में बाजार करके घर चलाता, पाकर भरती कर दिया गया। एक सप्ताह अस्पताल साथ में पढ़ाई भी करने लगा। फिर मैं बनारस गया, में रहा किंतु शासन को पता चलने पर मुझे कैम्प से निकलवा मैट्रिक की परीक्षा देने, परन्तु वहां परीक्षा व्यवस्था दिया गया। एक वर्ष तक घर पड़ा इलाज करवाता रहा। अधिकारी ने मुझे बुलाया। नाम-पता पूछा और कहा 1945-46 में कांग्रेस के चुनाव हुए। मैं जिला 'कि पुलिस तुम्हारी तलाश कर रही है,' मैं परीक्षा कांग्रेस का महामंत्री मनोनीत हुआ और लगातार 7 वर्षों अधूरी छोड़कर भाग आया।
तक मंत्री रहा। 1949 में अपना संविधान बनकर परा 1932 में जबलपुर में एक राजनैतिक कांग्रेस हुआ, इस बार के कांग्रेस चुनाव बड़े कशमकश में परिषद् हुई, मैं उसमें शामिल हुआ, पकड़ा गया, पर हुए, मैं जबलपुर का अध्यक्ष चुन लिया गया और 26 पुलिस की गाड़ी में बैठते समय भाग गया, पकड़ में जनवरी का गणतंत्र समारोह अभूतपूर्व रूप से मनाया नहीं आया।
गया, ऐसा कि आज भी लोग याद करते हैं। 14 अगस्त 1942 को धारा 144 तोड़ते हुए 1955 में कांग्रेस की एक बैठक में, जिसमें देश जुलूस निकला। फुहारे के समीप का डाकखाना तोड़ा के बड़े नेता आमन्त्रित थे, मैंने आजादी के महासागर गया, पैसा लूटा गया, कागज जलाये गये, लाठी चार्ज में जूझने वाले और अपना जीवन सौंप देने वाले देशभक्तों हुआ गोली चली। 14 वर्षीय बालक गुलाब सिंह पटेल विशेषकर जिन्होंने जेल भोगी, यातनाएं सहीं, को शासन शहीद हो गया। रात्रि में पुलिस ने मेरे घर छापा मारा। की ओर से सम्मान व सहायता दिये जाने का प्रस्ताव मैं जानता था कि पुलिस जरूर आयेगी अतः मैं घर किया। मेरे इस प्रस्ताव पर अनेक सदस्यों ने सहमति पर नहीं गया था। पुलिस ने घर छान डाला और वापिस प्रकट की परन्तु एक 'नेताजी' ने विचार व्यक्त करते हो गयी।
हुए कहा कि- 'यदि इन सबको शासकीय सहायता मैं 4 माह भूमिगत रहा और अनेक तोड़फोड़ देशसेवा के रूप में दी जायगी तो ये 'सुपर पार्टी के कार्यों में संलग्न रहा। फिर जबलपुर आया, वहां कांप्लेक्स' फील करने लगेंगे, अर्थात् इनमें अहंभावना 4-5 दिन छिपा रहा, परन्तु एक गली में पकड़ लिया जागृत हो जायेगी। गया। कोतवाली में पुलिसिया तरीके से पूछताछ की नेताजी की इस बात ने मेरे मानस को मथ डाला। गई, फिर जेल भेज दिया गया और दो वर्ष बाद जेल मुझे ऐसा लगा कि 'मेरे देश के नेता और नुमाइन्दे से छूटा। जेल के बाहर दरवाजे पर ही नया आदेश ही जब अपने ही लोगों के प्रति ऐसी भावना बना लेंगे शासन का मिला- 'आप जबलपुर म्युनिसपल सीमा तो देशसेवा की भावना ही मर जायेगी और इन के बाहर वगैर अनुमति लिये नहीं जा सकेंगे।' एक जीवनदानी देशभक्तों का क्या होगा ? 'इस विचार मंथन माह घर मैं कैद सा रहा परन्तु शासकीय आदेश तोड़ने ने मेरे मानस को मथ डाला और दूसरे दिन ही मैंने की इच्छा बलवती हो गयी और सागर जिले के बण्डा कांग्रेस के सभी पदों से त्याग पत्र दे दिया और अब ग्राम में एक राजनैतिक सम्मेलन में शामिल होने चल आगे के जीवन में केवल देश के लिये अपनी आहुति दिया। सागर से बस निकल जाने के कारण साइकिल देने वालों, जेल जाने वालों, यातानाएं भोगने वालों की से बण्डा चला। रास्ते में एक्सीडेंट हो गया। राहगीरों सेवा का संकल्प ले लिया।
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प्रथम खण्ड
मैंने अपने नगर के जेल यात्रियों की एक बैठक बुलाई, अपने विचार रखे, सभी ने समर्थन दिया। 'स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' नाम का संगठन बनाया। शहर के बाद जिला का संगठन बनाया, जिले की बैठक की। फिर मैंने मध्यप्रदेश का दौरा किया और 1956-57 में मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' की नींव
इसकी प्रथम बैठक इटारसी में हुई, इसके मुख्य अतिथि तत्कालीन वित्त मंत्री श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल (जैन) थे।
दौड़-धूप, निरंतर श्रम और भगीरथ प्रयत्न करने के बाद मैं प्रांतीय सम्मेलन करने में सफल हो गया। 19 एवं 20 सितम्बर 1957 का दो दिवसीय सम्मेलन भोपाल के नवाब शाही के दरबार हाल कक्ष में हुआ। इस सम्मेलन का उद्घाटन वित्त मंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल ने किया। मुख्यअतिथि मुख्यमंत्री डॉ0 कैलाशनाथ काटजू का उद्बोधन हुआ व अध्यक्षता सेठ गोविन्द दास जी ने की। सम्मेलन की सफलता के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद जी 'देशरत्न' ने अपना संदेश आशीर्वाद रूप में भेजा था।
मध्यप्रदेश के बाद मैंने सभी प्रांतों का दौरा किया। सभी प्रदेशों में संगठन बनवाये। 1958 का बंगाल प्रांतीय सम्मेलन कलकत्ते के म्यूनिसपल हाल में हुआ, जिसमें 10 से 20 साल की सजा वाले, फांसी की सजा, कालेपानी की सजा वाली महान् विभूतियां आईं, उसमें बड़े ही उत्तेजनापूर्ण भाषण हुए, मेरा सम्मान भी किया गया। मैंने वहाँ अपने भाषण में कहा- 'मैं आज आप देशभक्तों और महान् विभूतियों के दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया।' मैं तो आप जैसी महान् मूर्तियों की पैरों की धूल भी नहीं हूँ। मेरी अभिलाषा है कि बंगाल प्रान्त आगे आवे और इस संगठन को सम्हाले । '
प्रांतों के संगठन बनाने के बाद मैं राष्ट्रीय स्तर के संगठन बनाने पर सोचने लगा और इसके लिये सरल उपाय यह सोचा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मेलन
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राजधानी दिल्ली में हो। अब सम्मेलन बुलाने पर गंभीरता से भगीरथ प्रयत्न में लग गया।
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पुन: अखिल भारतीय सोचने लगा और दूसरे
यद्यपि मुझे अत्यधिक श्रम करना पड़ा, परन्तु अधिकतर प्रांतों में जाकर संगठन बनवाने के प्रत्यन से देशभर के नेताओं, संसद सदस्यों आदि से परिचित हो चुका था। मुझे लोग मेरे नाम से जानने लगे थे। एक वर्ष के निरंतर प्रयास के बाद उड़ीसा प्रदेश के सांसद सामान्त सिन्हयार को राजी करने में सफल हुआ। वे संयोजक बने और 1959 के 20-21 अक्टूबर को दिल्ली के टाउन हाल में देश का 'प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम सैनिक सम्मेलन' बाबू जगजीवन राम जी केन्द्रीय मंत्री की अध्यक्षता में हुआ।
सम्मेलन अभूतपूर्व रहा। सम्मेलन के अंत में चुनाव हुआ । सर्व सम्मति से महान् क्रांतिकारी राजा महेन्द्र प्रताप जी को अध्यक्ष चुना गया, उन्होंने बड़े स्नेह से मुझे मंत्री बनने का आदेश किया, परन्तु मैंने उन्हें अपनी असमर्थता बताते हुए दिल्ली के ही उपसभापति व मंत्री आदि विशेषकर सांसदों को ही बनाने का निवेदन किया। समिति भी बन गई, मैं राष्ट्रीय मुख्य समिति (वर्किंग कमेटी) का सदस्य हो गया।
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मैं लोकसभा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मानजनक राहत व सुविधायें दिये जाने का प्रस्ताव लाना चाहता था। मैं लोकसभा के अवसर पर दिल्ली आता, धर्मशाला ठहरता और प्रत्येक प्रांत के सांसदों से चर्चा करता कि इस विषय का प्रस्ताव आप संसद में रखें। पर दो वर्ष तक दिल्ली में सांसदों के चक्कर लगाये। किसी से कुछ भी सहायता न मिली। अपने हाथ से भोजन धर्मशाला में बनाता और सांसदों के चक्कर लगाता, यही क्रम काम का रहा। श्रम का फल मिला। प्रसिद्ध वयोवृद्ध श्रमिक नेता श्री शिन्ननलाल सक्सेना, वरिष्ठ सांसद से जब मैं तीसरी बार अपना निवेदन करने गया, तो उन्होंने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन बड़े स्नेह से मुझे पास बिठाया और बोले मुझे तुम्हारी केन्द्रीय शासन व राज्य शासन ने स्वतंत्रता सेनानियों इस लगन को देखकर बड़ी खुशी होती है और को 'राजनीतिक पीड़ित' की संज्ञा दी थी। तुम्हारे ऊपर दया भी आती है, मेरा मन्तव्य पूछा, मैंने एक प्रस्ताव प्रांतीय सम्मेलन में रखा किदिल्ली में किसके यहां रुकते हो? मैंने कहा धर्मशाला 'हम लोग देश-सेवक हैं और आजादी की लडाई के बदलते रहना, हाथ से स्टोव पर भोजन बनाना, पैदल सेनानी हैं अत: हम 'राजनीतिक पीड़ित' नहीं 'स्वतंत्रता सांसदों के बंगलों पर अपना निवेदन करना आदि। संग्राम सेनानी' हैं। हम POLITICAL SUFFERER सभी बातें सुनकर वे द्रवित हो उठे और उन्होंने कहा नहीं हम FREEDOM FIGHTER हैं, अत: शासन 'बेटे तुम्हारा प्रस्ताव पार्लियामेन्ट में मैं रखूगां अगले अब हमारे लिये इसी नाम का उपयोग करे।' परन्तु सत्र में आना। अब तुम निराश मत हो।' अगला सत्र 1 वर्ष तक शासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी। शुरू होते ही मैं दिल्ली गया शिन्नन दादा से मिला तो अत: मैंने प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू को पत्र उन्होंने कहा -'तुम्हारा प्रस्ताव मैंने बनाकर दे दिया लिखा कि यदि 2 माह के भीतर हमारे नाम का है वह पटल पर आ रहा है।'
उपयोग नहीं सुधारा गया तो हम देश भर में केन्द्रीय प्रस्ताव निर्धारित तिथि में रखा गया ज्यों ही व राज्य के मंत्रियों, सांसदों और विधायकों का प्रस्ताव पटल पर रखा गया देश के सभी पार्टियों के स्वागत बड़े-बड़े साइन बोर्डो से करेंगे, जिसमें लिखा सांसदों ने अपनी मेजों पर हाथ थपथपाकर उसका रहेगा --WELCOME POLITICAL GAINER स्वागत किया ऐसा लगा कि सारा देश इस प्रस्ताव मेरे इस पत्र से प्रधानमंत्री के मंत्रालय में पर एकमत है। इस विषय पर प्रायः सभी पार्टियों के सनसनी फैल गयी। पं0 जवाहरलाल जी की जानकारी सदस्यों ने समर्थन में अपने विचार प्रकट किये, में यह बात लाई गयी तो उन्होंने तत्काल यह नाम शासन पर रोष भी व्यक्त किया तथा समर्थन में परिवर्तित करने का आदेश दिया। राज्य सरकारों को अच्छी तकरीरें दी, उस समय की वार्ता ऐतिहासिक भी आदेश प्रसारित कर दिये गये। थी। किन्तु इस विषय का समय हो जाने पर विषय अब मैं 80 वर्ष में पहुंच चुका हूँ और एक अगले सत्र के लिये चला गया।
काम हाथ में लिया है। उसे पूरा करने में जुटा हूँ वह सत्र के पूर्व ही प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी है 'राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में मध्यप्रदेश जैन समाज ने 15 अगस्त 1972 को लालकिले में प्रदेशों से का योगदान ।' मुझे आशा है कि वीर प्रभु की कृपा सीमित संख्या में विशिष्ट सेनानियों को आमंत्रित कर से उसे शीघ्र ही पूर्ण कर संकगा।" श्री जैन का 27 ताम्रपत्र से सम्मानित करने, 200/- माहवार पेंशन नवंबर 199) को देहवसान हो गया। देने तथा देश भर में ब्लाक स्तर पर शिलालेख आ0-- (1) मा0 प्र() स्व) सै), भाग 1, १४-95 (2) लगवाने का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। मध्यप्रदेश के सा() 19 जून 1994 (3) पा) जै।) ३), अनेक पृष्ट 41 सेनानियों को आमंत्रित किया गया, जिसका श्री रतनचंद जैन 'चंदेरा' नेतृत्व मुझे सौंपा गया।
श्री रतनचंद जैन, पुत्र- श्री बुद्धलाल जैन का जन्म अपनी छत्तीस वर्षों की सेनानियों की सेवा के 16-5-1924 को तत्कालीन ओरछा राज्य (वर्तमान दौरान अनेक रोचक और रोमांचक प्रंसग हैं पर एक टीकमगढ़ जिला) में ग्राम-चन्देरा, तहसील-जतारा में ही का उल्लेख यहां कर देना पर्याप्त समझता हूँ। हुआ। आपने 1946 में चंदेरा में हुए आंदोलन में भाग
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प्रथम खण्ड
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लिया। लाठी चार्ज में चोटे, 1932 में विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना खायीं और 15 दिन तक थाने देने के कारण 2-5-1932 को आप गिरफ्तार हुए में बंद रहे। सामंतवादी तत्त्वों और 300/- रुपये का जुर्माना तथा 3 माह का कठोर का उत्पीड़न बढ़ने से आपको कारावास आपको अमरपाटन कैम्प जेल में काटना पैतृक ग्राम छोड़कर टीकमगढ़ पड़ा।
में शरण लेनी पड़ी। आपने पं0 शम्भुनाथ शुक्ल के साथ आप गांव गांव में
- राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस और गांधीजी का संदेश लेकर लोगों में समाज सेवा का कार्य चुना। 1965 से 1972 तक अलख जागते रहे। 1942 के आन्दोलन में पुलिस टीकमगढ़ नगरपालिका के पार्षद चुने गये और उपाध्यक्ष आपके पीछे लगी रही। एक दिन मकान को चारों पद पर रहे। 1964 से 1982 तक श्री दिगम्बर जैन ओर से घेर लेने पर आप वेश बदलकर भाग निकले अतिशय क्षेत्र पपौरा जी के महामंत्री रहे। नन्दीश्वर जैन और कटनी पहुंचे। कटनी में आपको दरोगा रमाशंकर मंदिर के निर्माण में आपने महती भूमिका निभाई थी। दिखा जो क्रान्तिकारियों के साथ अमानवीय और 10 जुलाई 1998 को आपका निधन हो गया। पशुवत् व्यवहार करता था। रतनचंद जी ने भरे बाजार
आ)- (1) वि) स्व) स) इ0, पृष्ठ-212, (2) स्व0 में उसको 5-7 चप्पल मारी और भाग निकले. अन्त प) (3) जैनमत दर्पण, सितम्बर 1998
तक पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकी। आप सवाई सिंघई श्री रतनचंद जैन अदम्य साहसी, ईमानदार, दूरदर्शी और परोपकार
वृत्ति के व्यक्ति थे। अपने पैसे से आपने बुढ़ार में जैन समाज में सिंघई की उपाधि उसे प्रदान एक विद्यालय की स्थापना की थी व जैन मन्दिर के की जाती है जो अकेले ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ऊपरी भाग का निर्माण कराकर उसमें भगवान पार्श्वनाथ करवाकर गजरथ चलवाता है। जो एक से अधिक की मर्ति स्थापित कराई थी। समाज ने आपको वार गजरथ चलवाता है उसे सवाई सिंघई की अनेक अलंकरणों से अंलकृत किया था। उपाधि से नवाजा जाता है। अपने पूर्वजों द्वारा प्राप्त
म0 प्र0 शासन द्वारा प्रदत्त 'सम्मान निधि' को सवाई सिंघई उपाधि धारक श्री रतनचंद जैन ने
आपने स्वीकार नहीं किया था। 15-3-1986 को धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं राजनैतिक क्षेत्र में भी ऐसी
आपका देहावसान हो गया। ख्याति अर्जित की थी, जो आज भी उनकी यश:
आ)- (1) म0 प्र0 स्व) 30, भाग-5, पृष्ठ-314 कौमदी को दिग- दिगन्त व्यापिनी बनाये हए है।
(2) जैसा राआ) (3) स्वा) आ() श), पृष्ठ 127-128 रतनचंद जी का जन्म बुढ़ार, जिला-शहडोल (म) प्र0) में 1911 में हुआ। आपके पूर्वज राजस्थान से
वैद्य रतनचंद जैन नागौद, वहाँ से खैरा (सीधी) और खैरा से व्यापार देशी औषधियों के व्यवसायी वैद्य रतनचंद के सिलसिले में 1890 के आसपास बुढ़ार आये थे। जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल जैन का जन्म 24 अक्टूबर पितामह श्री माधव प्रसाद को बुढ़ार में धन और यश 1919 को खनियांधाना, जिला-शिवपुरी (म)प्र)) में दोनों मिले। माधव प्रसाद के तीन पुत्रों में छोटे पुत्र हुआ। आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की और रामचन्द्र के यहाँ रतनचंद और धर्मचंद दो पुत्र हुए आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े। 1940 में आपने और दोनों ही स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहे। महाराष्ट्र चर्खा संघ द्वारा संचालित वस्त्र विद्यालय में
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 10 माह चर्खा चलाने की दिया। परन्तु वास्तविक जन जागृति का कार्य इस ट्रेनिंग ली। आप सेवाग्राम में राज्य में सन् 1938 में श्री रतनचंद जैन द्वारा प्रारम्भ गौ संवर्धन की ट्रेनिंग हेतु गये हुआ। कानून भंग आंदोलन 13 अक्टूबर 1946 को जहाँ आपको पूज्य बापू के प्रारम्भ हुआ जिसका वर्णन श्री लालाराम वाजपेयी ने सान्निध्य में प्रार्थना सभा तथा 'मध्य भारत देशी राज्य लोक परिषद् लश्कर' को
उनके साथ घूमने का सौभाग्य भेजी अपनी रिपोर्ट में निम्न प्रकार किया था:-"रतनचन्द्र
- मिला। इसे आप अपने जीवन जी जैन जो खनियांधाना के एक मात्र कार्यकर्ता हैं, की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। जुलाई 1941 में रियासत ने हिन्दू जैन का संघर्ष रचवाया और उन्हें आप अपने गृहनगर खनियांधाना लौट आये, जहाँ 1942 इसका कारण बताकर निर्वासित कर दिया था। मैं दो के आन्दोलन में भाग लिया, फलस्वरूप राज्य से एक तीन बार रियासत के दीवान से जाकर मिला। उसने वर्ष के लिए निष्काषित कर दिये गये।
एक भी न सुनी और उनके घरवालों को तरह-तरह 5 फरवरी 1943 को जब लौटे तो उसी दिन के कष्ट पहुंचाने शुरू कर दिये। इस पर मैंने उन्हें एक वर्ष की जेल की सजा दे दी गई। 20 मार्च 1945 इस पाबन्दी के तोड़ने की सलाह दी और इनकी को पुनः अनिश्चितकाल के लिए राज्य से निर्वासित इमदाद के लिये श्री प्रेमनारायण जी तिवारी समथर, कर दिया गया। आप हार मानने वाले नहीं थे, उत्कट लक्ष्मीनारायण जी नायक, गुजारीलाल जैन पृथ्वीपुर, जिजीविषा आप में थी अत: 13-10-1946 को कानून कामताप्रसाद जी समेले (गङ्गापुर) को भेजा। श्री जैन भंग कर आपने राज्य में प्रवेश किया, फलतः अपने घर (खनियांधाना) गये तो उन्हें गिरफ्तार कर 13-10-46 से 9-12-46 तक आपको नजरबन्द लिया। श्री प्रेमनारायन जी तिवारी समथर ने आकर किया गया।
मुझे सारी हालत सुनाई। मैंने उन लोगों को स्टेट श्री जैन के राजनैतिक कार्यों का विस्तार से खनियांधाना में प्रजामण्डल के प्रचारार्थ कुछ दिन उल्लेख करते हुए श्री श्यामलाल साह ने 'विन्ध्य प्रदेश रहने को कह दिया। मैं इस ओर कछ विशेष कारणवश के राज्यों का स्व0 स0 का इतिहास' ग्रन्थ में लिखा 15 दिन तक वहां न पहुंच सका तो यह लोग भी है-'यहाँ (खनियांधाना) पर स्वतंत्रता संग्राम का कार्य वहाँ से रियासत द्वारा तंग कराने से रियासत से निकलने श्री रतनचन्द जैन ने शुरू किया, यद्यपि खनियांधाना को मजबूर कर दिये गये। उन सौभाग्यशाली रियासतों में है जहाँ देशभक्त राजा इसके बाद मैंने श्री वीरसिंह जी धमना, हुये। यहाँ के नरेश श्री खलकसिंह ने 1922 में श्री लक्ष्मणप्रसाद जी दुबे मुड़ारा (ओरछा) को भेजा। इन्होंने रामेश्वर
द्वारा झांसी से जन जागृति करने रिपोर्ट दी कि श्री वैद्य बीमार हैं और उन्हें बहुत बुरी वाले राष्ट्रीय पत्र 'साहस' के प्रकाश में अपूर्व सहयोग तरह तंग किया जा रहा है। भोजन और दवा व बिस्तर तो दिया ही काकोरी काण्ड के पश्चात् छद्म वेश में (कपड़े) ठीक नहीं दिये जा रहे हैं। मैंने श्री पं0 रहने वाले चन्दशेखर आजाद को अपने शस्त्रागार से परमानन्द जी को साथ ले चलने की प्रार्थना की। वह ही प्रशिक्षण हेतु अस्त्रशस्त्र प्रदान किये। इस प्रकार बुन्देलखण्ड की रियासतों में अच्छा प्रभाव रखते हैं। की कार्यवाहियों का पता जब ब्रिटिश हुकूमत को बबीना से एक गाड़ी (कार) ली और खनियांधाना चला तो उन्होंने 1935 ई0 में राजगद्दी से उतार गया। दीवान साहब स्टेट से भेंट की और उनसे निर्दोष
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प्रथम खण्ड
309 श्री वैद्य को छोड़ने की प्रार्थना की तो उन्होंने कानून __श्री रतनचंद जैन की मजबूरी बताकर छोड़ने से इन्कार किया। मैंने इटारसी (म0 प्र0) के श्री रतनचंद जैन, पुत्र-श्री मुलाकात के लिये निवेदन किया तो उन्होंने इससे भी मूलचंद जै। का जन्म 1924 में हुआ। 1942 के इन्कार कर दिया। लाचार होकर हमें उनको यह कहना आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको नौ माह का पड़ा कि दीवान साहब हमें आप लड़ने की चुनौती कारावास भोगना पड़ा। 1944 में अल्पायु में ही आपका दे रहे हैं हम इसके लिए अब मजबूर हैं कि तुम्हारे देहावसान हो गया। यहां से श्री वैद्य जी को छडाने के लिये बन्देलखण्ड आ()- (1) म) प्र0 स्वर) से), भाग-5, पृष्ठ-348
(2) स्वा। स) हो), पृष्ठ-123 स्टेट के कार्यकर्ता इकट्ठ करें। बस मैं इतना कह कर पंडित जी के साथ चला आया। दीवान साहब
श्री रतनचंद जैन खनियांधाना पर जो भी असर हआ हो वह दसरे ही
जबलपुर (म0प्र0) के श्री रतनचंद जैन, पुत्र-श्री दिन श्री वैद्य को मोटर में बिठाकर झांसी बाजार में मूलचन्द का जन्म 1913 में हुआ। जबलपुर के नार्मल छोड़ गये और कहा कि आपके लिये खनियांधाना स्टेट स्कूल से शिक्षा समाप्त कर कर्मक्षेत्र में पैर रखते ही
1932 के सत्याग्रह में आप सम्मिलित हए तथा 6 माह पहले ही की तरह बन्द है। मैं इधर टीकमगढ़ के उस
की सजा पाई। आप पर 20/- रु) जुर्माना भी किया लाठी चार्ज के किस्से में फंसा था, वैद्य जी भी उसी
गया। न देने पर डेढ़ माह की सजा और भुगतनी पड़ी। में आकर लग गये। उससे फुरसत पाकर मैंने पुन:
आपने लिखा है 'जेल में 20 किलो पिसाई का काम वैद्य जी को खनियांधाना भेज दिया है। वह अब अपने
प्रतिदिन करना पड़ता था। जेल का सिपाही हरहर घर रहने लगे हैं। रियासत प्रगट में कुछ नहीं कर पा
नारायण मेरा प्रेम व स्नेह के साथ पालन करता था रही है, क्योंकि जनता पर इतना अच्छा प्रभाव पड़ा क्योंकि उसके कोई सन्तान न थी। वह रात को 2-4 कि वह अब इनका (श्री वैद्य जी का) साथ देने और पूड़ियाँ भी ले आता था। उस समय जेल में सेठ राजनैतिक हलचल में दिलचस्पी लेने लगी है।" गोविन्ददास भी थे।' आपने जबलपुर नगरपालिका में
वैद्य जी राज्य के राजा से हमेशा लोहा लेते शिक्षण कार्य किया। नगर निगम द्वारा आप सम्मानित रहे। आजादी के बाद आप शिवपुरी जाकर बस गये। हुए। 1978 में श्रीमती इंदिरागाँधी की गिरफ्तारी पर प्रस्तुत ग्रन्थ लेखकों का परम सौभाग्य है कि उनके विरोध प्रदर्शन करने पर अल्पावधि जेल-प्रवास भी पिता जी के चाचा स्व) श्री मूलचंद जैन बरधवाँ आपने किया। (तत्कालीन खनियांधाना स्टेट) जिला-दतिया
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 स0, भाग-1, पृष्ठ-95
(2) स्व0 स0 ज0, पृष्ठ-159 (3) स्व0 प0 (म0 प्र0) वैद्य जी के परम सहयोगी रहे। श्री मूलचंद जो भी अनेक बार खनियांधाना स्टेट से निष्काषित किये
श्री रतनचंद जैन गये थे। जुलाई 1995 में वैद्य जी का निधन
पनागर, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री हो गया।
रतनचंद जैन, पुत्र-श्री हजारीलाल का जन्म 1912 में
हुआ। 1930 के जंगल सत्याग्रह में लगभग 3 माह आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै०, भाग-4, पृष्ठ-300 (2) वि) स्व0 स0 इ), पृष्ठ-270-71 (3) जैन सन्देश, 26 जुलाई 1995 का कारावास आपने भोगा। (4) स्व) प०
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-95
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री रतनलाल कर्णावट जैन
बाबू रतनलाल जैन नाथद्वारा (उदयपुर) राजस्थान, कांग्रेस कमेटी उत्तरप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे, के अध्यक्ष रहे श्री रतनलाल कर्णावट का जन्म 1906 'बाबूजी' उपनाम से विख्यात श्री रतनलाल जैन का के आसपास हुआ। भारत छोड़ो आन्दोलन में आप
| जन्म 20 अगस्त 1892 को भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत 13 महीने उदयपुर
अफजलगढ़, जिला- बिजनौर जेल में नजरबन्द रहे।
(उ0 प्र0) के एक सम्पन्न आ0-(1) रा0 स्व0 से0, पृष्ठ-500
परिवार में लाला छज्जूमल
जैन के यहाँ हुआ। गांव में सेठ रतनलाल जैन
ही प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त नगर कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे आगरा
| कर रतनलाल जी उच्च(उ0प्र0) के श्री सेठ रतनलाल जैन, पुत्र-श्री छोटे
शिक्षार्थ अपने फूफा श्री हीरालाल जी के यहाँ लाल आगरा के बहुत बड़े लोहे के व्यापारी थे।
बिजनौर चले आये। बाद में हीगलाल जी ने रतनलाल 1936 से ही आप स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भाग जी को विधिवत गोद ले लिया। बिजनौर से मैट्रिक लेने लगे थे। 1942 के आन्दोलन में सरकार द्वारा परीक्षा पास कर रतनलाल जी इलाहाबाद नजरबंद कर कारागृह में भेज दिये गये और 6 माह विश्वविद्यालय चले गये जहाँ से बी-एससी) और बाद छोड़े गये। आप बार्ड कांग्रेस कमेटी के सदस्य
एल0 एल0 बी0 परीक्षायें पास की। तथा अधिकारी एवं नगर कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष
रतनलाल जी ने पहले नगीना और फिर मुरादाबाद रहे थे। आपने साप्ताहिक 'नव संदेश' एवं मासिक 'अग्रवाल लोहिया' पत्र भी निकाला था।
में वकालत प्रारम्भ की, किन्तु इस कार्य को उन्होंने आ0- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 जै0 40, धर्म और नैतिकता के विरुद्ध पाया। इधर गांधी जी पृष्ठ 89 (3) श्री महावीर प्रसाद द्वारा प्रेषित परिचय (4) गो0 अ0 का असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हो गया था। गांधी जी ग्र, पृष्ठ-225-226
ने वकीलों को वकालत छोड़कर आन्दोलन में भाग श्री रतनलाल जैन
लेने के लिए आमन्त्रित किया। फलतः रतनलाल जी स्थानीय कांग्रेस सेवादल के संचालक रेवाडी अपनी मुरादाबाद की जमी-जमाई वकालत छोड़कर (हरियाणा) के श्री रतनलाल जैन, पत्र-श्री फलचंद बिजनौर आ गये और अपने जीवन को राष्ट्र और समाज जैन का जन्म 1926 के आसपास हआ। विद्यार्थी की सेवा में पूरी तरह से लगा दिया। बाबू जी ने कांग्रेस जीवन में ही पूज्य गांधी जी के प्रभाव से आप के असहयोग आन्दोलन के अन्तगत चार बार जेल आन्दोलन में आयें। श्री प्रेम स्वरूप डाटा के संसर्ग यात्रायें की। 1930 में वे गोंडा जेल में एक वर्ष, 1932 से 1940 में आपने खादी पहनना प्रारम्भ किया। 1942 में बरेली तथा फैजाबाद कारागृहों में 18 मास तथा के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपको दो माह को बिजनौर के कारागृह में 1941 में ) माह तथा 1942 नजरबन्द किया गया परन्तु उपायुक्त महोदय ने 14 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सवा साल रहे। स्वतन्त्रता दिन बाद ही आपको छोड़ दिया। 10-8 1948 को सम्बन्धी सभी आन्दोलनों में उनकी भूमिका अग्रगण्य 21 वर्ष की अल्पवय में ही आपका निधन हो गया। रही। बिजनौर जनपद के सत्याग्रह आन्दोलनों के वे
आ-(1) रिवाडी सेनानी सूची, क्र0-43 प्राण थे। वं 1937 से 1940 तक उत्तर प्रदेश की
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प्रथम खण्ड
311
विधान परिषद् के सदस्य तथा 1952 से 1957 तक महत्त्वपूर्ण कार्य किये थे। दस्साओं के पूजा अधिकार विधान सभा के सदस्य रहे। बाबूजी जैन समाज की प्रसंग में भी उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। सुप्रसिद्ध सुधारक संस्था भारतवर्षीय दि0 जैन परिषद् नमक आन्दोलन में आपकी भूमिका के सन्दर्भ के प्रमुख संस्थापकों में एक थे। इस संस्था के पौध में जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी 1947)
को उन्होंने बड़े परिश्रम और लगन से सींचा, जिसके लिखता है-'बाबू रतन लाल जी के घर पर नमक फलस्वरूप यह संस्था पल्लवित और पुष्पित हुई तथा बनाया गया था। बिजनौर जिले के सभी कार्यकर्ता इसके माध्यम से जैन समाज में व्याप्त अन्धविश्वास उपस्थित थे। नमक बनाने को बाबू राजेन्द्र कुमार जी
और रूढ़ियाँ दूर हुई। बाबूजी बड़े अध्ययन प्रिय थे। लकड़ी ला रहे थे कि एक पुलिस के कांस्टेबल ने कारागृह के एकान्त जीवन का सदुपयोग उन्होंने जैन कहा कि "यदि तुमने इस काम में भाग लिया तो तुम्हें दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शनों के अध्ययन के कार्य भी हथकड़ी डाल दी जायगी।" किन्तु उसी समय में किया। उनके द्वारा लिखे गये 'आत्मरहस्य' तथा नमक तैयार किया गया और बाबू राजेन्द्रकुमार की 'जैन धर्म' ग्रन्थ उनके प्रगाढ़ अध्ययन के परिचायक माता जी ने 1200/- रुपये की बोली लगाकर उसे हैं तथा उनकी वैज्ञानिक एवं तुलनात्मक शैली का खरीद लिया और उसी समय बा) रतनलाल जी अपने परिचय देते हैं। बाबूजी का ग्रन्थ 'आत्म रहस्य' तो साथियों के साथ गिरफ्तार हो गये। लगभग तीन वर्ष इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके तीन संस्करण पाठकों की सजा पाकर वह शेर का सा बच्चा प्रफुल्लित घर तक पहुंच चुके हैं। उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त विभिन्न पर आ गया।' पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने निबन्धों आदि के इसी प्रकार जैनमित्र (वैशाख सुदी 15, 1970 द्वारा आपने समाज का मार्गदर्शन किया। ई0) लिखता है-'उस जमाने में वकालत करना पैसा
___ 'सादा जीवन उच्च विचार' उनका मूल मन्त्र था। कमाने का एक बड़ा माध्यम माना जाता था। बाबूजी संयम और सात्विकता उनके जीवन के आदर्श थे। ने वकालत करना शुरू भी किया लेकिन यह देखकर उनका अधिकांश जीवन राष्ट्र सेवा, समाज सेवा और कि वकालत का व्यवसाय झूठ का प्रयोग किये बगैर धर्म सेवा में व्यतीत हुआ। राष्ट्र सेवा के उपलक्ष में नहीं चलता है, कुछ ही समय बाद वकालत छोड़ दी। भारत सरकार ने उन्हें 15 अगस्त 1972 में ताम्रपत्र नैतिक जीवन का यह बहुत बड़ा उदाहरण है। भेंट किया। 2500 वाँ भगवान् महावीर निर्वाणोत्सव कोई व्यक्ति विद्वान् हो, धनिक हो और उदार पर किए जाने वाले कार्यों के उपलक्ष्य में समाज ने भी हो यह बहुत ही कम देखने में आता है। बाबूजी उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया, इसके अतिरिक्त में इन सभी चीजों का समावेश पाया जाने के अनेक सार्वजनिक और धार्मिक संस्थाओं ने कारण निश्चय ही सोने में सुगन्ध की बात चरितार्थ समय-समय पर उनका सम्मान कर अपने को हो जाती है।' गौरवान्वित अनुभव किया।
___ बाबू रतनलाल जी की पुत्री डॉ) ( श्रीमती) ___बाबूजी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे। सुधा जैन ने अपने एक संस्मरण में लिखा है- 'बाबू अ०भा०दि0 जैन परिषद् के माध्यम से उन्होंने जैन जी कहा करते थे कि जेल मेरा घर है और घर मेरी जातियों में अन्तर्जातीय विवाह करने, मरणभोज बन्द ससुराल है।' इसी प्रकार उनकी दूसरी पुत्री डॉ0 करने, मध्यप्रदेश में गजरथों की बाहुल्यता को अनुपयोगी (श्रीमती) ऊषा जैन ने लिखा है-'उनका जीवन अत्यधि ठहराने, विधवा विवाह का समर्थन करने आदि के क सरल था। खान-पान में सादगी, रहन-सहन में
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सादगी, 'सादा जीवन उच्च विचार' उनके जीवन का मूल मंत्र था। अपरिग्रह के सिद्वान्त को उन्होंने जीवन में उतार लिया था। वे बहुत ही सीमित वस्त्र रखते थे। 5-6 कुर्ते और इतने ही धोती व पाजामे ।' बाबूजी के दत्तक पुत्र श्री प्रदीप कुमार जैन ने अपने संस्मरणों में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है। वे लिखते - बाबूजी अकसर कहा करते थे कि मैं समाधिमरण लूंगा और उन्होंने यह चरितार्थ भी कर दिखाया। 4 मई 1976 को उन्होंने अन्तिम बार अन्न ग्रहण किया, उसके बाद केवल दूध और मौसमी का रस लेते रहे। 18 मई को दूध लेना भी बन्द कर दिया और 24 मई के प्रातः से पानी की बूंद तक नहीं ली। अपना मुंह कसकर बन्द कर लेते थे। शाम 6 बजकर 20 मिनट पर अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया। '
4
बाबूजी के संस्मरण उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर प्रकाशित 'पुण्य स्मरण' में प्रकाशित हुए हैं। गोंडा जेल का एक रोचक संस्मरण हम यहाँ दे रहे हैं* 1930 में गोंडा जेल में कितने ही साथी थे। उनमें एक बिजनौर जिले के ही 'मदीना' अखबार के सम्पादक नसरुल्ला खां और मेरठ जिले के लक्ष्मीनारायण जी थे। इन दोनों में आपस में बहस हो गई कि अगर लक्ष्मीनारायण अपनी चोटी कटवा लें तो नसरुल्ला खां अपनी दाढ़ी मुंडवा लेंगे। लक्ष्मीनारायण ने अपनी चोटी कटा दी और नसरुल्ला खां से कहा कि अब मुंडवाओ दाढ़ी। वे हिचकिचाने लगे। तब मामला मौलाना आजाद के पास पहुँचा, उन्होंने कहा “जब तुमने वचन दिया है तो पूरा करना होगा।'' और नसरुल्ला खां को दाढ़ी मुंडानी पड़ी। उसके बाद उन्हें पहचानना भी कठिन होने लगा ।'
आ)- (1) पुण्य स्मरण (स्मारिका) (2) जै० स० रा० अ) (3) जैन सन्देश, 1 जुलाई 1976 (4) जैन मित्र, वैशाख सुदी 15 वीर नि0 संवत् 2596 (1970 ई0 ) (5) वि० अ०, पृ0-462 (6) दिवंगत हिन्दी सेवी, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 410 (7) रु) कु० डा), पृष्ठ-52
पृष्ठ--91
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श्री रतनलाल बंसल
अपनी लेखनी से राष्ट्रीय साहित्य की अभिवृद्धि करने वाले तथा 'दिल्ली चलो' जैसी महनीय कृति के लेखक, फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री रतनलाल बंसल बचपन से ही राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेते रहे और 1942 में डी() आई (1) आर() में तीन माह तक सेन्ट्रल जेल, आगरा में नजरबंद रहे। स्व०) दादाजी बनारसी दास जी चतुर्वेदी के बाद फिरोजाबाद नगर के साहित्यकारों में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान था। आपके द्वारा लिखित खोजपूर्ण ग्रन्थ 'चन्द्रवार का इतिहास' भी प्रकाशित हुआ है।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आण (1) जै) स) रा) अ0 (2) उ0 प्र0 जै० ध0 (3) अमृत, पृष्ठ 25 (4) जै० से० ना० अ०, पृष्ठ 3-4
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श्री रतनलाल मालवीय
भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के सदस्य तथा केन्द्रीय उपश्रममंत्री रहे श्री रतनलाल मालवीय का जन्म 6 नवम्बर 1907 को मध्यप्रदेश के हृदय स्थल सागर में एक मध्यमवर्गीय जैन परिवार में श्री किशोरीलाल मलैया के घर हुआ। आपका वंश 'मलैया' के नाम से विख्यात है । परन्तु रतनलाल जी मलैया से 'मालवीय' कैसे बन गये इस सन्दर्भ में स्वयं रतनलाल जी ने लिखा है " सन् 1927 में जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी) ए) का विद्यार्थी था तब मेरे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ताराचन्द अग्रवाल ने यह प्रश्न पूछा 'मैं मलैया क्यों कहलाता हूँ. मैंने माँ से पूछकर बताया कि 'कुरवाई को मालव कहने पर और हमारे कुरवाई निवासी होने से हम मलैया कहलाये ।' हमारे प्रोफेसर ने कहा- 'तब तो हमें मालवीय कहलाना चाहिए था । ' उन्होंने हाजिरी का रजिस्टर उठाकर मलैया की जगह मालवीय लिख दिया। तभी से मैं मालवीय हो गया। "
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प्रथम खण्ड
313
__ "सन् 1948 में कान्सटीट्यूशनल असेम्बली और अध्ययन के बाद आप सागर में वकालत करने पार्लियामेन्ट का सदस्य बन जाने के बाद 'मलैया' शब्द लगे और हरिजन सेवक संघ के मन्त्री बन गये। 1934 प्रयोग करने का प्रयत्न मैंने किया पर सम्पूर्ण रिकार्ड, में महात्मा गांधी जब सागर पधारे और उनका भाषण जिसमें यूनिवर्सिटी की डिग्रियाँ भी शामिल हैं, में वर्णी जी द्वारा स्थापित श्री दि0 जैन संस्कृत विद्यालय मालवीय था इसलिए गवर्नमेन्ट के सेक्रेटेरिएट ने मोराजी, सागर में हुआ तब उसकी व्यवस्था हरिजन मालवीय ही कायम रखा। इससे कुछ विषमता होने सेवक संघ के नाते आपने ही की थी। गाँधी जी की पर भी मलैया शब्द का उपयोग नहीं कर सका। मुझे अपील पर महिलाओं ने अपने गहने उतार कर दे दिये जगह -जगह मालवीय शब्द के उपयोग का स्पष्टीकरण थे। अपने मजदूर नेता होने के सम्बन्ध में आपने लिखा करना पड़ता।"
है कि-'कुछ सालों बाद मेरा सम्बन्ध स्टेट प्यूपिल कांग्रेस मालवीय जी का परिवार कटर जैन है। इस को उड़ीसा और छत्तीसगढ़ रीजनल काउन्सिल से हो सन्दभ म श्री मालवीय जी ने लिखा है-"माँ कटर गया। सन् 1947 के बाद तो कांग्रेस के साथ मजदर
आन्दोलन में डूब सा गया।' 1948 में आप जैन धर्मावलम्बी थीं, गीता अध्ययन से उनका माथा ठनकता, गीता क्यों? अपने धर्म का अध्ययन क्यों
संविधान सभा के लिए चुने गये। आप मध्यप्रान्तों के नहीं? और इसी स्पर्धा में माँ ने सांध्यशाला जैन बच्चों
राज्यों की ओर से चुने गये थे। सभा में आपने मजदूरों
के हितों पर जोरदार बहस की थी। मालवीय जी के के लिए शुरू कर ली-अपने ही घर में। अब हमें गीता
अनुसार 'सन् 1948 में संविधान सभा का सदस्य के साथ भक्तामर स्तोत्र भी कण्ठस्थ कराया जाने लगा।
बनते ही मैंने कोयला खानों के बारे में पार्लियामेन्ट जब तक भक्तामर का एक श्लोक सुना न देते सुबह
में प्रश्न करना प्रारम्भ कर दिये थे। देश के का दूध न मिलता...... मुझे भक्तामर कण्ठस्थ है। उसके
संविधान पर दस्तखत होना मेरे जीवन का सबसे बड़ा 48 श्लोक बोलते समय किस श्लोक पर कितने आंसू
सू सौभाग्य है।' बाद में आप 'कोलयारी इक्यवायरी कमेटी' टपके थे आज भी याद आ जाता है।"
के भी सदस्य रहे। 'नेशनल कोल डवलपमेन्ट असहयोग आन्दोलन के दौरान आप कक्षा 8 में कॉरपोरेशन' की स्थापना का सुझाव आपका ही था। पढ़ते थे, प्रधानाध्यापक के लाख समझाने पर भी आपने मजदूरों के नेता के रूप में विख्यात मालवीय जी स्कूल का बहिष्कार कर दिया, बाद में प्रधानाध्यापक 1954 और 1960 में राज्यसभा के लिए चुने गये। श्री खूबचन्द सोधिया महोदय ने भी स्कूल से त्यागपत्र 1962 में नेहरू जी के मंत्रिमण्डल में पार्लियामेन्टरी दे दिया। अपनी देशभक्ति के कारण सोधिया जी बाद सचिव नियुक्त हुए और डिप्टी मिनिस्टर भी। शास्त्री में भारतीय संसद के लिए चुने गये थे। मालवीय जी मंत्रिमण्डल में भी आप डिप्टी मिनिस्टर रहे। 1966 वानर सेना में भी रहे, वे राष्ट्रीय शाला के विद्यार्थी में लेबर कमीशन के सदस्य और लेबर आर्गनाइजेशन रहे। 1925 में आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और (आई0एल0ओ0) से भी आप जुड़े रहे और जर्मनी, 1926 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुए, वहीं हालैण्ड, इंग्लैंड, रूस आदि देशों की यात्रा आपने की से कानून की पढ़ाई की और स्वतन्त्रता आन्दोलन में थी। मनीला में सम्पन्न आई0 एल0 ओ0 के एशियन भी सक्रिय रहे। आपने चांद के सम्पादकीय विभाग राउण्ड टेबुल काफ्रेंस (2 सितम्बर से 18 सितम्बर में 40/-रुपये मासिक पर नौकरी की। 'सरस्वती' में 1969) के चेयरमैन बनने का सौभाग्य भी आपको भी आपके कई लेख छपे हैं।
प्राप्त हुआ था।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
___ मालवीय जी की संविधान के प्रति अटूट आस्था राजनीति और क्षेत्र के कामों में अक्सर इतना थी। वे स्वयं सदैव संविधान के दायरे में देश सेवा में डूब जाता हूँ कि पढ़ नहीं पाता और मन इस कारण संलग्न रहे। उनकी सुपुत्री श्रीमती सुधा पटोरिया ने उद्विग्न हो उठता है, बेचैनी होने लगती है। तब रात उनकी स्मृतियाँ संजोते हुए लिखा है - 'वह के समय पढ़ना अनिवार्य हो जाता है इस समय मैं संविधान की सुनहरी जिल्दवाली वृहदाकार प्रति को कुछ सैद्धांतिक या महान् लेखकों की पुस्तकें पढ़ना शास्त्रों की तरह कपड़े में लपेटकर अपनी गोदरेज की पसंद करता हूँ जो राजनीति से बिल्कुल दुर हो। अलमारी में इतने प्यार और श्रद्धा से रखते थे जैसे कोई अपने जन्म भर की जमा पूंजी सहेज रहा हो। दीपावली की लक्ष्मी पूजा के समय भी वह
सफर करते हुए भी मैं काफी पढ़ने और लिखने संविधान की पुस्तक को वहाँ आदरपूर्वक रखते उसकी का कार्य कर लेता हूँ। काँग्रेस व क्षेत्र के कार्य से पजा करते. वही उनकी लक्ष्मी थी वही सरस्वती। संबंधित पत्र, घर पर राजी खुशी का पत्र अक्सर रेल दीपावली की डायरी में उनका यह महत्त्वपूर्ण अभिलेख के डिब्बे में ही लिखता हूँ। अतः स्थान की जगह मिला, जिसे पढकर मैं अभिभत हो गई- "लक्ष्मी पूजन लिखना पड़ता है 'दौड़ती हुई रेलगाड़ी अमुक से के नाम पर मैं सदैव ही भारत के विधान की पजा अमुक स्टेशन के बीच', कभी-कभी अधिक हिलने करता रहा हूँ। मेरे लिए यह गौरव की बात है कि मैं के कारण हस्ताक्षर बिगड़ जाते हैं। कुछ दिनों से मुझे संविधान सभा का सदस्य रहा हूँ तथा उस पर मेरे रेल में लिखने में तकलीफ होने लगी है आंखों से दस्तखत हैं। विधान निर्माता के रूप में उस पर श्रद्धा भी कम दिखने लगा है। शायद यह बढ़ती हुई उम्र रखना तथा उसके अनुसार काम करना मेरा प्रथम का कारण है। कर्तव्य है......संविधान में पूरे देश का हित निहित है।" * * * *
निरन्तर चिन्तनशील और अध्ययनशील मालवीय यदि मनुष्य सदा प्रयत्नशील रहा तो हिमालय जी सदैव अध्ययन और लेखन में संलग्न रहा करते को उसके सामने झुकना ही पडेगा। क्यों कि उसके थे। उनकी डायरी के कुछ अंश प्रेरणास्पद होने से हम दुबले-पतले शरीर में मस्तिष्क जैसी चीज है, जो यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
किसी बंधन को नहीं मानती। उसमें ऐसी भावना है मेरा जीवन एक क्षणिक मोमबत्ती की तरह नहीं जो पराजय को कभी स्वीकार नहीं करती। पर आज होगा। वह उस मशाल की तरह होगा, जिसे मैं भावी के युग में साहसिकता धीरे-धीरे विदा होती जा रही पीढियों के हाथ में थमा कर जा सकूँ और वह मशाल है। अभी भी यह विशाल संसार उन्हीं का साथ देता उनके पथ को आलोकित कर सके।
है, जिनमें भावुकता और साहसिकता होती है। तारे
समुद्र के पार उन्हीं का आवाहन करते हैं। वैसे साहस पढ़ना-लिखना तथा चिन्तन करना मुझे सदैव से दिखाने के लिए ध्रुवों पर या रेगिस्तान में जाने की पसंद है। कितना ही शरीर थका हो कुछ देर अवकाश जरूरत नहीं होती। जीवन के छोटे-छोटे मोड़ों पर ही निकाल कर यदि मैं पढ़ने बैठ जाता हूँ तो सारी थकान साहस की असली परीक्षा होती है। किसी लेखक ने उतर जाती है। शरीर में पुनः ऊर्जा प्रवाहित होने लगती कहा है 'बिना निराश हुए पराजय को सह लेना पृथ्वी है, ऐसा महसूस करता हूँ।
पर साहस की सबसे बड़ी विजय है'। अतः जीवन ★ ★ ★ ★ . में स्थितियों का सामना धैर्य, हिम्मत व साहस से
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प्रथम खण्ड
- 315 करना चाहिए। इस सिद्धांत ने जीवन भर मुझे सहायता देशों को एक दूसरे से अच्छी चीजें सीखनी होंगी। अगर और आत्मविश्वास दिया है।
साम्यवादी देशों में कुछ अच्छे कानून हैं यथा शहर को साफ सुथरा रखने, अस्पतालों में अमीर-गरीब की
एक सी देखभाल या मंहगाई पर रोकथाम तो हमें वह खेद होता यह देख कर कि स्वतंत्र भारत में
तरीके भी अपनाने चाहिए। किसी भी उपाय से हमें मानव भावना की स्वतंत्र वृद्धि और आनंद एवं बहुलता
अपने देश में आजादी के नाम पर जो अनुशासनहीनत के होते हुए भी जिस समाज की परिकल्पना हमने
हो रही है उसे रोकना होगा। की थी वह नहीं बन सका। स्वार्थ, भ्रष्टाचार आदि ने घुसपैठिये की तरह समाज की जड़ों तक अपने पंजे फैला दिये हैं।
जब एक नदी शान्ति से बहती है तो कैसा
सुहावना समा होता है। वही नदी जब सैलाब (बाढ़) मुझे इन्सान की निजी आजादी और उसके हकों लाती है तो कितनी तबाही कर देती है। गांव के गांव को जकड़ने पर भी एतराज है। अपनी इसी मान्यता उजड़ जाते हैं। खेती बरबाद हो जाती है और इन्सान के आधार पर मैं पूरी उम्र मजदूरों को उनके हक दिलाने भूख के मारे भीख मांगने पर विवश हो जाता है। हमारे के लिए लड़ता रहा। इन्सान के मानव-अधिकार पर देश में एकता और अखंडता का नारा आज बहुत आक्षेप करना मैं गलत समझता हूँ, परन्तु देश में कायदे, आवश्यक है। आपस में भाईचारा, जहाँ प्रदेश का भेद कानून मानना और देशवासियों में एकता और एक दूसरे न हो, रंगरूप का भेद न हो, जहाँ भाषा का भेद न के दु:खदर्द में सहायता देना भी जरूरी है। हो, जहाँ धार्मिक भावना एक दूसरे के बीच एक दीवार
न बन जाए। हमें ऐसा भारत बनाना है। जहाँ हम सब
देशवासी घुल मिल कर रहें, एक दूसरे की बात समझें, हमारे देश में जितने प्रदेश हैं उतनी प्रादेशिक
एक दूसरे के दु:खदर्द में साथ दें यही तो हमारी परंपरा भाषाएँ भी हैं परंतु एक राष्ट्रभाषा तो होनी ही चाहिए। रही है। कितने ही दर-दर देशों के लोग आए. भारत यह क्या तरीका है कि हम चार-छह भारतवासी कोई पर हमले हए, खून भी बहे परंतु ज्यादातर लोग यहीं बंगाल का, कोई मद्रास का, कोई महाराष्ट्र का जब के हो गए। हमारा प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास साथ बैठते हैं, तो आपस में अंग्रेजी में बात करते हैं। इसकी झाँकी प्रस्तुत करता है।
और देशों में जैसे- फ्रांस, इटली, जापान या अरब देशों में सब अपनी मातृभाषा में बातचीत करते हैं।
___ अपने लिए तो सभी जीते हैं पर दूसरों
का दु:ख कैसे मिटे ऐसा उपाय हमेशा अपने जीवन एक राष्ट्रभाषा सारे देश को, जो आज टुकड़ियों में खोजना चाहिए। हर मनुष्य का यह कर्तव्य है कि में है-हमारे महान् देश को एक विशाल नक्शे में जोड़ अपनी शक्ति के अनुसार जरूरतमंद या दीन-दु:खी देगी। बाबा आमटे का नारा सही है 'भारत जोडो'। प्राणियों के कष्ट निवारण में सहयोग दे। नहीं एकता में सामहिक शक्ति है। बिखरी चीज हमेशा तो मनुष्यजन्म पाना ही निरर्थक है। फिर मनुष्य कमजोर रहती है। जैसे बिजली के छोटे-छोटे कई बल्ब और पशु में वया फर्क? अपना जीवन तो पशु भी उतनी रोशनी और प्रकाश नहीं दे पाते जितना 100 जो लते हैं। कैन्डिल पावर का बल्ब देता है। हम सभी संसार के
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-स्वतंत्रता संग्राम में जैन ___ भले बनने की आकांक्षा तो सभी में होती है। श्री रमेशचंद जैन घोड़ावत पर बिना दूसरों की भलाई किये मनुष्य भला कैसे थांदला, जिला-झाबुआ (म0प्र0) निवासी बन सकता है। अतः हर मनुष्य का कर्तव्य है कि श्री रमेशचंद जैन घोडावत, पुत्र- श्री रखबचंद जैन जहाँ तक बने असहायों की सहायता तथा परोपकार का जन्म 1922 में हुआ। 1942 के आन्दोलन में करते रहना चाहिए। जो समर्थ नहीं हैं, उन्हें अपनी आप सक्रिय रहे। फलत: गिरफ्तार किये गये और शक्ति और सहयोग देना चाहिए। जब हम दूसरों को देश निकाले की सजा आपको दी गई। भलाई करेंगे तभी हमें यश प्राप्त होगा।
आ0-(!) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-146 __8 दिसम्बर 1984 को जबलपुर में आपका
श्री रवीन्द्रनाथ जैन देहावसान हो गया। रतनलाल जी की स्मृति को अध्यापन, पत्रकारिता और गैस वितरक जैसे चिरस्थायी बनाने के लिए चिरमिरी (म0 प्र0) में व्यवसायों से जुड़े, मूलतः महाराष्ट्र निवासी और 'मालवीय नगर' की स्थापना की गई है, जिसमें
भोपाल (म0प्र0), प्रवासी श्रमिकों व नागरिकों के लिए सुव्यवस्थित गृहों का
श्री रवीन्द्रनाथ जैन, पुत्रनिर्माण किया गया है। मालवीय जी पर दो पुस्तकें
श्री रतन साह जैन का भी प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रथम 'काले हीरे का
जन्म देऊल गांव राजा,
जिला- बुलढाना (महाराष्ट्र) में खम्भा' जो न्यायमूर्ति श्री गुलाब गुप्ता ने लिखी है
15-4-1917 को हुआ। बाद तथा जिसका सम्पादन मालवीय जी की पुत्री श्रीमती
| में आप कारजा आकर रहने सुधा पटोरिया ने किया है। द्वितीय 'श्री रतनलाल
लगे। आपने कारंजा, वाराणसी व पूना में शिक्षा पाई। मालवीय स्मृति ग्रन्थ' जिसका सम्पादन श्रीमती सुधा कुछ समय आपने सोलापुर गुरुकुल में अध्यापन पटोरिया तथा श्री राजेन्द्र पटोरिया ने किया है। कार्य किया। आप 1945 से 1452 तक 'लोकशक्ति'
आ0- (1) श्री रतनलाल मालवीय स्मृति ग्रन्थ (2) भारत (दैनिक) पुणे के उपसम्पादक, 'मातृभूमि' (अकोला) का संविधानिक विकास और स्वाधीनता संघर्ष
तथा 'राष्ट्रसेवा' (नाशिक) के सम्पादक रहे। श्री रमेशचंद जैन
आपने सागारधर्मामृत का मराठी भाषा में अनुवाद वारासिवनी, जिला-बालाघाट (म0प्र0) के श्री किया है। कुछ समय शोध कार्यों एवं जिला गजेटियर रमेशचंद जैन, पत्र श्री पन्नालाल जैन का जन्म 1926 के सम्पादन का काम भी आपने किया। स्वतंत्रता में हआ। विद्यार्थी जीवन में आपने शासकीय स्कल सेनानी होने के कारण सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपको का बहिष्कार किया एवं 1942 में 20 अगस्त को गैस वितरक का कार्य मिला है। धारा 144 का उल्लंघन कर विशाल जुलूस निकाला, 1942 के आन्दोलन के समय आप सोलापुर फलतः पुलिस की गोली से आपका दाहिना पैर में एम0ए0 द्वितीय वर्ष के छात्र थे। वहीं आपने जख्मी हो गया। फिर भी पुलिस आपको पकड़ नहीं आन्दोलन में हिस्सा लिया। फलत: गिरफ्तार हुए और सकी। आजादी के बाद शासन ने सम्मान पत्र देकर 6 माह का सश्रम कारावास आपने भोगा। अपनी आपका सम्मान किया।
जेलयात्रा की यादें ताजा करते हुए आपने लिखा है आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-189 कि -"बन्दी बनते ही जेल में पुलिस अधीक्षक ने मझसे
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प्रथम खण्ड
317 फरार नेताओं के पते पूछे, न बताने पर उन्होंने मेरी
श्री राजधर जैन खुब पिटाई की। विजापुर (कर्णाटक) जेल के जेलर शाहपुर, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्बन्ध में अभद्र राजधर जैन, पुत्र-श्री प्यारे लाल 1921 से ही शब्द का प्रयोग करने के कारण मैं भूख हड़ताल' स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये थे। 1942 के पर बैठ गया। हड़ताल तोड़ने हेतु काफी प्रलोभन दिये
भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने 6 माह का कारावास गये, मैं न उठा, अपितु अन्य बन्दी भी मेरे समर्थन ।
भोगा। आप शाहपुर ग्राम के मंडलेश्वर भी रहे थे। में हड़ताल पर बैठ गये। अन्त में जेलर द्वारा बिना
आ)-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) म0 प्र0 स्व0 सै0, शर्त अपने शब्द वापिस लेने और खेद प्रदर्शन के बाद
भाग-2, पृष्ठ-57 भूख हड़ताल समाप्त हुई। फलस्वरूप मेरा स्थानांतरण शीघ्र ही विसापुर (अहमदनगर) जेल में कर दिया
भाई राजधरलाल जैन गया।"
जाखलोन, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) के अमर 30 (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-23 सेनानी श्री राजधरलाल ने 1932 में कांग्रेस की नींव (2) स्व) प0 (3) अनेक प्रमाण पत्र
जाखलोन में डाली और अनेक वर्षों तक उसके मंत्री श्री राजकुमार जैन
पद को सुशोभित करते रहे। 1942 के आन्दोलन में फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री राजकुमार जैन आप बाबू शिवप्रसाद (इनका परिचय इसी ग्रन्थ में पर 1942 के आन्दोलन में अग्रज श्री अन्यत्र देखें) के साथ जेल गये तथा 11 माह झाँसी धनवन्त सिंह के साथ ही पुलिस ने यह अभियोग जेल में रहे। लगाया कि इन्होंने डाक बंगला जलाया है। परन्तु वह
आ0- (1) जै) स0 रा0 अ) उसको साबित करने में असमर्थ रही। फिर भी आपको अक्टूबर 1943 तक नजरबन्द रहना पड़ा। आप सेन्ट्रल
डॉ० राजमल कासलीवाल जेल आगरा में रहे।
'नेताजी' सुभाषचंद बोस के निजी चिकित्सक आ)- (1) 30 प्र0 0 ध0, पृष्ठ-91 (2) जै0 से0 रहे तथा Whos who in the world में उल्लिखित ना) अ0, पृष्ठ-4 (3) अमृत, पृष्ठ-28 (4) जै0 स0 रा0 अ)
एवं देश में चिकित्सा के श्री राजधर जैन
उत्कृष्ट पुरस्कार 'बी0 सी0 ग्राम लौंड़ी भड़ोकर (तत्कालीन-विन्ध्य प्रदेश)
राय अवार्ड' से सम्मानित के श्री राजधर जैन, पुत्र-श्री दौलत जैन 1937 से ही
डॉ0 राजमल कासलीवाल, कांग्रेस के कार्यकर्ता हो गये थे। 1939 के थौना लुहारी
पुत्र-श्री मुशी प्यारेलाल झण्डा आन्दोलन के समय अपने गाँव में झण्डा फहराने
कासलीवाल का जन्म 20 के कारण 22-2-1939 को आप गिरफ्तार कर लिये
नवम्बर 1906 को जयपुर गये। ओरछा अदालत ने 3-3-1939 को तीन माह (राजस्थान) में हुआ। 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय की सजा व 50/-रुपये का अर्थदण्ड दिया फिर भी से एम0बी0बी0एस0 पास करने के बाद आप आप 2-9-1939 को जेल से रिहा हो सके। आपके उच्चशिक्षार्थ इंग्लैंड चले गये जहाँ से 1931 में भाई श्री छक्कीलाल जैन भी आपके साथ जेल में रहे। डी0टी0एम0 एण्ड एच0 तथा 1932 में लंदन से
आ)-(1) वि.) स्व0 स0 इ0, पृष्ठ-187 ___ एम0आर0सी0सी0 की उपाधियाँ प्राप्त की। 1935
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन में 'इन्डियन मेडीकल सर्विसेज' के अन्तर्गत आप पत्रिकाओं में आपके प्रकाशित हुए हैं। अनेक देशों भारतीय सेना में सम्मिलित हुए, जहाँ लेफ्टिनेंट की यात्रा भी आपने की थी। प्रसिद्ध तीर्थ श्री कर्नल तक के विभिन्न पदों पर कार्य किया। महावीर जी के आप वर्षों तक अध्यक्ष/मंत्री रहे। द्वितीय विश्वयन में आपको मलाया भेजा आ()- (1) जी) स) रा() अ) (2) जैन गजट, (. मार्च
1967 (3) डॉ0 राजमल कासलीवाल पर प्रकाशित लघु पुस्तिका, गया, जहाँ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से आपकी भेंट
सौजन्य-श्री ज्ञानचंद जी सा) खिन्दुका, जयपुर। हुई। नेताजी की देशभक्ति से आप में देशभक्ति की भावना हिलोरें लेने लगी। इधर नेताजी भी आपकी
श्री राजमल कोठरी संवाओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी महिदपुर, जिला-उज्जैन (म0प्र0) के श्री राजमल 'आजाद हिन्द फौज' में सम्मिलित होने का आग्रह कोठारी, पुत्र- श्री चांदमल कोठारी ने महिदपुर जेल में किया। कासलीवाल जी तत्काल 'आजाद हिन्द फौज' 30-3-1941 से 20-4-1941 तक का कारावास में सम्मिलित हो गये, जहाँ 1945 तक आप निदेशक भोगा। 1942 में भी 50/- रुपये का अर्थदण्ड आपने 'चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा' के पद पर रहे। आप भोगा था नेताजी के निजी चिकित्सक भी थे।
आ0-(1) म0प्र0 स्व० सं०, भाग-4. पृष्ठ-171 कासलीवाल जी के सन्दर्भ में 'जैन संदेश' राष्ट्रीय अंक (जनवरी 19.17) लिखता है-'आप डाक्टरी
श्री राजमल कोठारी की सर्वोच्च डिग्री पास करने के बाद सरकार द्वारा
इंदौर (म0प्र0) के श्री राजमल कोठारी, पुत्र-श्री फौज को डाक्टरी सहायता देने के लिए विशेष पद
भेरूलाल कोठारी 1932 में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार' पर भेजे गये थे। किन्तु स्वतंत्रता का दीवाना कब
आंदोलन में सक्रिय रहे। 6 माह का कारावास तथा तक दम का गलौजों की निकिता 50 रु0 का अर्थदण्ड भोगकर आपने आंदोलन में रह सकता था। आजाद हिन्द फौज के निर्माण होते
सक्रियता का परिचय दिया।
आO-(1) म) प्र) स्वा सै), भाग-4, पृष्ठ-39 ही आप सरकारी नौकरी छोड़कर उसमें जा मिले और नेता जी सुभाषचन्द बोस के साथ उनके एक
श्री राजमल जालोरी विश्वस्त सहयोगी के रूप में भारत की मुक्ति के मध्यभारत के पूर्व मुख्यमंत्री श्री तख्तमल जैन लिए अनवरत प्रयत्न करते रहे। आप आजाद हिन्द के सुपुत्र श्री राजमल जालोरी का जन्म 15-9-1914 फोज सरकार के मंत्रिमंडल के एक सदस्य. डायरेक्टर
को हुआ। व्यवसाय से वकील आफ मेडीकल्स तथा नेताजी के पर्सलन डाक्टर की
श्री जालोरी के पूर्वज मूलतः हैसियत से सम्मानपूर्ण और दायित्वपूर्ण पदों पर रहे।'
राजस्थान के जोधपुर आजादी के बाद आप आगरा मेडीकल कालेज
जिलान्तर्गत अटिया (सेठों के प्राचार्य, जयपुर मेडीकल कालेज के संस्थापक
की रियां) के निवासी थे। प्राचार्य, अन्तर्राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी के
वहां से ओसवालों का यह अध्यक्ष, अ) भा) कांग्रेस कमेटी के सदस्य आदि
कुटुम्ब व्यवसाय के लिए अनेक पदों पर रहे। चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित उपयुक्त नई जगह तलाश करता हुआ तत्कालीन अनेक पुस्तकें तथा अनेक लेख देश-विदेश की ग्वालियर रियासत के भेलसा (वर्तमान विदिशा)
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प्रथम खण्ड
319 जिले के गंजवासांदा कस्बे में आकर बस गया था।
रहे। श्री जैन ने 1949) के इस परिवार के प्रथम व्यक्ति थे सेठ संतोपचंद
भोपाल राज्य विलीनीकरण उनके पुत्र ताराचंद --- पूनमचंद - लूणकरण --
आंदोलन में भाग लिया तखतमल --- राजमल हुए।
तथा 21 दिन कारावास में जालारी जी ने बी0ए।), एल0एल0बी) कर
बिताये। १) दिसम्बर 1992 वकालत का व्यवसाय अपनाया। स्वतंत्रता संग्राम में
को आपका देहावसान आपने सक्रिय भागीदारी निभाई। फलत: डिफेन्स
हो गया। इण्डिया एक्ट के तहत 10 माह तक नजरबन्द रहे।
आ)-( 1 ) मा प्र॥ स्व। सै), भाग-5, पृष्ठ-24 आप विदिशा नगर पालिका के अध्यक्ष (4 वर्ष), श्री राजाराम उर्फ राजेन्द्रकुमार जैन मध्य प्रदेश योजना मण्डल के सदस्य (1963 व
श्री राजाराम, पुत्र श्री बिहारीलाल जैन का 1965), सम्राट अशोक इंजीनियरिंग कालज के जन्म 1906 में ग्राम पथरिया, जिला-दमोह (म0प्र0) उपाध्यक्ष (3 वर्प), स0अ0 पोलीटेक्निक कालेज के में हुआ। आपने प्राथमिक तक ही शिक्षा ग्रहण की। उपाध्यक्ष ( 3 वर्ष), म0प्र0 स्वर) सं0 सैनिक संघ के आप अपने छोटे भाई श्री बाबराम जैन के साथ दमोह कार्यकारिणी सदस्य, विदिशा जिला स्व0सं() सै0संघ में रहकर झोली । 'चना जार गरम' की आवाज के अध्यक्ष, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आदि
लगाकर चोचते थे। 19.12 के आन्दोलन में पदों पर रहे हैं। शासन की ओर से अनेक बार
अपना शप्रम न रोक सकं तथा नारे लगाते हुए आपका सम्मान हुआ है।
पकड़े गये और दो वर्ष 4 माह का कारावास पाया। आ) (1) स्वा श्री तख्तमल जैन स्मति ग्रन्थ
193) के आन्दोलन में भी आपने भाग लिया था।
1973 में आपका निधन हो गया। श्री राजमल जैन
___(1) म0प्र0 स्वा) सै), भाग-2, पृष्ठ 9 उज्जैन (म0प्र0) के श्री राजमल जैन, पत्र श्री (2) श्री संतोष सिंघई. दमोह द्वारा प्रपित परिचय मोतीलाल जैन 1932 से राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय
श्री राजाराम बजाज हो गये थे। 1933 में बदनावर पोस्ट आफिस में
दमोह के प्रसिद्ध बजाज परिवार में श्री राजाराम तोड़ फोड़ करने पर आप गिरफ्तार हुए तथा डेढ़
बजाज का जन्म 1900 में श्री लोकमन बजाज के चौथे पाह का कारावास भोगा। 1941 के आन्दोलन में भी
पुत्र के रूप में हुआ। युवावस्था से ही समाज और उज्जैन कोठी पर आप गिरफ्तार हुए व जेल की
देश-प्रेम की भावना जागृत करने का श्रेय पड़ोसी श्री यातनायें सहीं।
गोकुलचंद जी वकील को है। आपने प्रभात फेरियों आ0 (1) म प्रा) स्व) सै), भाग-4. पृष्ठ-171
और गौ रक्षा आन्दोलन में भाग लेना, विदेशी माल श्री राजमल जैन
का बहिष्कार करना, शराब की दुकानों पर पिकेटिंग भोपाल (म0प्र0) के श्री राजमल जैन, पुत्र- करना आदि कार्य प्रारम्भ कर दिये थे। उसी समय श्री हजारी लाल जीन का जन्म 26 नवम्बर 1919 में विदेशी शिक्षा बहिाकार आन्दोलन चला तथा दमोह हा। जैन समाज में स्पष्ट विचारधारा और समाज में राष्ट्रीय पाठशाला खोली गई जिसमें बजाज जी ने सुधारों के लिए प्रसिद्ध श्री जैन जीवनपर्यन्त गांधीवादी अपने भतीजे श्री रूपचन्द ( इनका परिचय इसी ग्रन्थ
12)
३)
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में देखें) बजाज को भर्ती कराया; जिसके अध्यापक श्री गौरीशङ्कर पाराशर और बाद में श्री आयुप्रसाद जी रहे।
श्री बजाज ने श्री भैयालाल चौधरी के चर्खा प्रचार आन्दोलन को सम्भाला और इस कार्य में लगभग 15000/- का नुकसान भी उठाया।
बजाज जी को व्यायाम का अधिक शौक था, इन्होंने भिन्न-भिन्न मोहल्लों में व्यायाम शालाएं खुलवाईं तथा श्री दि0 जैन नन्हें मन्दिर जी और जैन धर्मशाला के बगल के आंगन में अपने खर्च से ही बाहुबलि व्यायामशाला बनवाई, जिसने 1942 के आन्दोलन में आशातीत सहयोग दिया। इस व्यायामशाला में जैन- अजैन सभी लाठी आदि चलाने की शिक्षा लेते थे और जुलूसों व सभाओं का प्रबंध करते थे।
1930 के आन्दोलन में आपने भाग लिया फलत: 4 माह की सजा तथा 80 रु0 का अर्थदण्ड पाया। 1942 के आन्दोलन में आपने - अपने भतीजे रूपचंद जी बजाज को जेल भेजा, जो 9 माह 15 दिन तक जेल में रहे। आप स्वयं भूमिगत रहे तथा श्री लीलाधर जी सर्राफ के सहयोग से जेलवासियों के घरों को आर्थिक सहायता जुटाते रहे, बुलेटिन छपवाकर बटवाते रहे।
श्री बजाज सम्पन्न घराने के होने के कारण अभी तक समाज के हर कार्य में अग्रसर रहते हैं। आप लगातार 30 वर्ष तक श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र कुण्डलपुर कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं।
आ - ( 1 ) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 89 (2) श्री संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय |
श्री राजेन्द्रकुमार महनोत
उज्जैन (म0प्र0) के स्वाधीनता सेनानी दम्पती श्री सरदारसिंह महनोत और श्रीमती सज्जनदेवी महनोत के ज्येष्ठ पुत्र श्री राजेन्द्रकुमार महनोत अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़कर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े, फलत: गिरफ्तार हुए और 1946 में छूटे। आO (1) जै० स० रा० अ०, पृष्ठ-90
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री रामचंद जैन
ललितपुर (उ0प्र0) निवासी श्री रामचंद जैन के पिता का नाम श्री प्रभुदास जैन था। आपका जन्म 24-9-1927 को हुआ । क्रांतिकारियों को सहयोग प्रदान करते-करते 'करो या मरो' की भावना के वशीभूत होकर 1942 के आन्दोलन में। वर्ष का कठोर कारावास तथा 100/- रुपये जुर्माना माह की और कठोर कारावास
अदा न करने पर 2 की सजा आपने भोगी।
आ० - र० नी०, पृष्ठ-28 (2) डा0 बाहुबलि जैन द्वारा प्रेषित परिचय
श्री रामचंद जैन कर्नावट
उज्जैन (म0प्र0) के श्री रामचंद जैन, पुत्र- श्री रघुनाथ का जन्म 1901 में हुआ। आपने माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। देश पराधीन था अतः आप विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय कार्यों में सक्रिय हो गये। 1930 के नमक सत्याग्रह में आपने भाग लिया तथा 3 माह का कारावास भोगा । डौंगरगांव में जंगल सत्याग्रह में भी 3 माह की सजा आपने काटी । प्रजामण्डल द्वारा तराना, महिदपुर में आयोजित एक सभा में भाषण देने पर आप पुनः गिरफ्तार कर लिये गये और 1 वर्ष 6 माह के कारावास का दण्ड भोगा ।
आ) - (1) म) प्र) स्व0 सै0, भाग 4, पृष्ठ 172
श्री रामचंद भाई शाह
छिन्दवाड़ा (म0प्र0) से सांसद और विधायक रहे श्री रामचंद भाई शाह, पुत्र- श्री नरहरि भाई शाह का जन्म 17 अक्टूबर 1917 को गांगवा, जिला - जामनगर (गुजरात) में हुआ। अपने छात्र जीवन से ही आप राष्ट्रीय आंदोलन में रुचि लेने लगे थे। श्री दुलीचंद भाई मेहता आपके मुख्य प्रेरणास्रोत थे। उनकी प्रेरणा से ही आपने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग
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321 लिया। 1941 में आपने श्री दुलीचंद भाई मेहता और सक्रियता से भाग लेने लगे और अनेक बार जेल गये। श्री नीलकण्ठराव झलके के साथ व्यक्तिगत सत्याग्रह वे भारतीय कांग्रेस कमेटी, सोनीपत कांग्रेस कमेटी आदि किया था। सत्याग्रह में भाग लेने के फलस्वरूप 1941 के सदस्य रहे। गुटबाजी से दूर रहने वाले सिंगल साहब में 6 माह के कारावास का दण्ड आपको दिया गया; की धर्मपत्नी श्रीमती लीला जी भी इस आन्दोलन में जो आपने नागपुर जेल में भोगा। भारत छोड़ो आन्दोलन कदम से कदम मिलाकर चलीं, लाठियों की मार सही में आप पुन: गिरफ्तार किए गए, फलतः 14 माह तक और जेल गईं। नजरबंद रखे गये।
सिंगल साहब दस्सा अग्रवाल जैन थे। जब स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात् आप अनेक
दिगम्बर जैन समाज ने उनके मंदिर-पूजन पर रोक राजनीतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे। 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव हुए। आप छिन्दबाड़ा जिले
लगाई तो वहाँ दस्सा समाज स्थानकवासी बन गई पर से लोकसभा प्रत्याशी बनाए गए और निर्वाचित भी
सिंगल साहब का सभी से समान प्रेमभाव और हए। इस प्रकार आपको छिन्दवाडा जिले के प्रथम सांसद मेल-जोल रहा। सिंगल सा0 का 18 अप्रैल 1970 को बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप विधानसभा सदस्य दिल्ली में अपने पुत्र वीरेन्द्र कुमार के निवास पर भी रहे। आप पांदर्ना नगरपालिका के अध्यक्ष, प्रदेश स्वर्गवास हो गया। कांग्रेस कमेटी के सदस्य तथा जिला कांग्रेस कमेटी आ0- (1) जैन सन्देश, अक्टू, 1971 के अध्यक्ष आदि पदों पर रहे। 1972 में स्वतंत्रता
श्री रामचरण जैन की 25वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा ताम्रपत्र प्रदान कर आपको
दमोह (म0प्र0) के श्री रामचरण जैन, पुत्र- श्री सम्मानित किया गया था।
नन्हे लाल का जन्म 1923 में हुआ। 1942 के
भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया, जेल आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-13
यात्रा की तथा पराधीनता की कठोर यातनायें सहीं। (2) स्वाधीनता आन्दोलन में छिन्दवाड़ा जिले का योगदान, (टंकित
शासन ने सम्मान पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित शोध-प्रबन्ध) पृष्ठ-321-322 (3) स्मारिका
किया है। श्री रामचंद सिंगल
आ) (1) म0 प्र0 स्वा) सै), भाग 2, पृष्ठ 89 _ 'सिंगल साहब' उपनाम से विख्यात श्री रामचंद
श्री रामचरण लाल जैन कुलैथ सिंगल, पुत्र- श्री तोताराम हलवाई का जन्म वर्तमान
पिता की छह सन्तानों में से मात्र एक ही देश हरियाणा के सोनीपत में संवत् 1960 (1903 ई0)
की आजादी पर मर-मिटने के में हुआ। गौरवर्ण, पतला शरीर सदैव खद्दर पहनने वाले
लिए बची। ऐसे व्यक्तित्व श्री सिंगल सा() धार्मिक नाटकों में विशेषकर मैना सुन्दरी
रामचरण जैन कुलैथ का जन्म नाटक में मैना सुन्दरी का अभिनय अपने साथियों के
10 अक्टूबर 1913 को ग्राम विरोध के बाद भी किया करते थे। श्री माईदयाल जैन
कुलैथ में एछिया परिवार में ने जैन सन्देश, अक्टू) 1971 में अपने संस्मरण में
हुआ। आपके पिता जी का जो लिखा है, उसका सार यह है कि श्री सिंगल 1930
नाम श्री कल्याण प्रसाद एवं में गांधी जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय युद्ध में एक सैनिक
माता का नाम श्रीमती जावित्री के रूप में कूद पड़े, वे अहिंसात्मक आन्दोलन में
+ आन्दोलन न था। आपके पांच भाई और थे जो अल्प अवस्था में
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ही स्वर्गवासी हो गये । यतः आप पिता के इकलौते पुत्र थे, इस कारण गांव से बाहर कहीं अध्ययन को नहीं भेजा गया और गांव में ही आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की। आपके जीवन पर माता के उपदेशों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा।
उन दिनों राजनैतिक हलचल के कारण थोड़े बहुत समाचार पत्र ही गांव में पहुंचते थे। जिन्हें पढ़कर आपके मन में देशप्रेम और गुलामी के बन्धनों को तोड़ने की ललक जागी ।
1938 में ग्वालियर राज्य में स्थापित 'राज्य सार्वजनिक सभा' का अधिवेशन उज्जैन में हुआ । ग्वालियर में भी राजनैतिक चेतना जागृत हुई। फलस्वरूप 1939 में श्री शिवशंकर रावत की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ, जिसका उद्घाटन डॉ० पट्टाभि सीतारमैया ने किया। जगह-जगह तिरंगे झण्डे लहराने लगे। जिन्हें देखकर आपने देश की आजादी पर मर-मिटने की कसम खाई। इस अधिवेशन के दो माह पश्चात् श्री मुरलीधर धुले कुलैथ गये, जिनसे प्रभावित होकर आप स्वतंत्रता आंदोलन में निर्भय होकर कूद पड़े। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप गिरफ्तार हुए और आपको 9 माह 10 दिन का कारावास हुआ, जो आपने सबलगढ़ तथा मुंगावली जेल में काटा। आप ग्वालियर राज्य, राज्यसभा के सदस्य रहे और तत्कालीन ग्वालियर राज्य में स्वदेशी की भावना और आजादी की अलख जगाने में निरन्तर ग्राम अंचलों से जुड़े रहे। आ) - (1) म) प्र) स्व० सै0 भाग - 4, पृष्ठ 249 (2) व (0) स) इ), पृष्ठ 103
श्री रामजीलाल जैन
स्वाधीनता आन्दोलन के साथ बलिप्रथा रोकने में महनीय भूमिका निभाने वाले रेवाड़ी के श्री रामजी लाल जैन का जन्म 1905 के आसपास हुआ, पिता का नाम श्री रामप्रसाद उर्फ सुखदेव जैन था। 1929 में आप कांग्रेस के सदस्य बने, खादी पहनना प्रारम्भ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
किया और श्री भगवानदास, फूलचंद अग्रवाल
आदि
के मार्गदर्शन में काम किया। 1930 में श्री हरसहाय मल चुन्नीलाल बजाजा बाजार की कपड़े की दुकान पर पिकेटिंग में जां 14 सत्याग्रही
गिरफ्तार किये गये उनमें आप भी थे। सबके साथ आपको भी 50/-रू0 का जुर्माना या एक माह की कैद की सजा सुनाई गई, आपने जेल जाना उचित समझा।
सत्याग्रह आन्दोलन में आप आसपास के गांवों भूड़पुर, भड़ावास, धारूहेड़ा आदि से सत्याग्रहियों को दिल्ली लाते थे अत: पुलिस ने पुनः गिरफ्तार कर लिया और दो वर्ष की सजा तथा 100/- रु0 जुर्माना या चार माह की और कैद की सजा दी । आपको ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया। 20-2-1991 को आपका निधन हो गया।
आ) (1) रेवाडी सेनानी सूची क्रमाङ्क- 5
श्री रामबाबू जैन
फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री रामबाबू जैन, पुत्र - श्री धूरी लाल जैन 1942 के आन्दोलन में सक्रिय रहे और 13 मार्च 1943 को डाक बङ्गला जलाने के आरोप में श्री धनवन्त सिंह जैन व श्री संत लाल जैन के साथ गिरफ्तार होकर सेन्ट्रल जेल आगरा में 6 माह तक नजरबंद रहे। आपके चाचा श्री महावीर प्रसाद जैन भी जेल यात्री रहे हैं।
(आ) (1) जै० स० स० 310 (2) जै) से० ना० अ०, पृष्ठ-5 (3) अमृत, पृष्ठ-25 (4) उ0 प्र0 जै) ६०, पृष्ठ-91 श्री रामराव जैन
इन्दौर (म0प्र0) निवासी श्री रामराव जैन, पुत्र - श्री आत्माराम जैन का जन्म 5-4-1913 को आबनेर, जिला- इन्दौर में हुआ। अपना परिचय देते हुए आपने लिखा है कि 'मेरे माता पिता बहुत ही गरीब
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प्रथम खण्ड
323
थे। हमारे भरण-पोषण के लिए
श्री रामलाल नायक हमें मजदूरी करनी पड़ती खुरई, जिला- सागर (म0प्र0) कांग्रेस कमेटी के थी, क्योंकि हमारे पास कोई अध्यक्ष रहे श्री रामलाल नायक, पुत्र-श्री बाला चन्द व्यवसाय या खेती-बाड़ी नहीं जैन, 1938 से ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय हो थी। रोजगार की तलाश में हम गये। आपको 1942 के आन्दोलन में छह माह के लोग जगह-जगह भटकते हुए कारावास की सजा हुई थी, जिससे आपका स्वास्थ्य
म0प्र0 के सबसे बड़े शहर बिगड़ गया था। आप त्रिपुरी कांग्रेस में सागर जिले इन्दौर आये तथा यहाँ राजकुमार कपड़ा मिल में काम से प्रतिनिधि बनकर गये थे। महाकौशल प्रान्तीय कांग्रेस करने लगे।
कमेटी के सदस्य, जिला कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य ___ महात्मा गांधी ने जब अंग्रेजो भारत छोड़ो का तथा तहसील (खुरई) कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी नारा दिया तब हम उस आंधी में बह चले तथा इन्दौर आप रहे। में आन्दोलन के तहत गिरफ्तार हुए। हमें 20-8-42 आ- (1) म0 प्र0 स्वा) सै0, भाग-2, पृष्ठ-61 को इन्दौर तथा दिनांक 22-8-42 को मंडलेश्वर जेल (2) आ) दी0, पृष्ठ-78 (3) जै) स) रा0 अ0 भेजा गया। मुझे । वर्ष सश्रम कारावास तथा 1 माह
श्री रामलाल पोखरना साधारण कारावास की सजा दी गयी थी। मंडलेश्वर
श्री रामलाल पोखारना का जन्म रामपुरा जेल में इन्दौर के श्री मिश्रीलाल गंगवाल जी हमारे
(मन्दसौर) म0प्र0 में 15 मार्च 1913 को एक सामान्य साथ थे। जेल में हमें जो खाना दिया जाता था, वह
परिवार में हुआ। आपकं पिता बहुत ही निम्न स्तर का होता था। इसके विरोध में हम
का नाम श्री रखबचंद पोखरना लोग जेल से कच्चा सामान लेकर स्वयं खाना पकाकर
था। किशोर अवस्था से ही खाते थे। एक बार हमारे एक साथी ने कमरे में बंद
आपके हृदय में अंग्रेजों के होने से इंकार किया तब जेल के कर्मचारी ने जबर्दस्ती
अत्याचारों तथा दमनपूर्ण की। इसके विरोध में सभी साथियों ने तोड़-फोड़ करते
नीतियों के विरुद्ध पर्याप्त हुए जेल का फाटक तोड़कर, जेल से निकलकर
आक्रोश था। गांधी जी द्वारा मंडलेश्वर बाजार में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करते हुए एक
चलाए गये अहिंसक आन्दोलन ने प्रभावित किया तथा सभा की तथा जेलर को आश्वासन दिया कि हम शान्ति
पूरे समर्पण भाव से आप स्वतंत्रता आंदोलन में कूद से विरोध प्रकट कर वापस जेल में आ जायेंगे। यह
पड़े। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में पोखरना जी भारतीय क्रांतिकारियों की ईमानदारी का बड़ा उदाहरण
का नेतृत्व प्रखर होकर सामने आया। प्रजामण्डल के था। हम सभी बड़ी ईमानदारी से जेल वापस पहुंच
माध्यम से आपने अपने संकल्प को सार्थक गये। दूसरे दिन हम सभी को हाथों में हथकड़ी तथा
करने का प्राण-प्रण से प्रयत्न शुरू किया। उस समय पैरों में बेड़ियां डाल दी गई।' आपके अग्रज श्री लक्ष्मण
पोखरना जी इन्दौर की भंडारी मिल में 'डिजाइन जी भी जेलयात्री रहे हैं।
गस्टर' थे। आ0- (1) म0 प्र0 स्व० सै), भाग-4, पृष्ठ-42
___आपके पास अनेक आन्दोलनकारी आया करते (2) स्व) प०
थे तथा आपके निर्देशों पर कार्य करते थे।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रचार-साहित्य के प्रकाशन एवं प्रसारण का कार्य भी जी ने कभी भी किसी सहायता या सहयोग की न आपके माध्यम से होता था। इन्हीं कार्यवाहियों के याचना की न कामना। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम कारण आपको गिरफ्तार कर लिया गया और के रूप में स्वीकृत पेन्शन राशि उन्होंने यह कहकर मण्डलेश्वर जेल भेज दिया गया। 2 अक्टूबर को नकार दी कि 'मैं अपने देश के प्रति की गई अपनी गांधी जयन्ती मनाने हेतु जेल के आन्दोलनकारियों ने अकिंचन सेवाओं का मूल्य लेकर अपने भावों को योजना बनाई। जेल अधिकारियों को जब इस योजना मारना नहीं चाहता। मैंने जो कुछ भी किया माँ-सेवा की सूचना मिली तो उन्होंने इसे पोखरना जी की मानकर किया। बालक के लिए तो माँ की सेवा खुराफात मानकर इन्हें खूब यातनाएं दीं। इस पर शेष अनिवार्य दायित्व होता है। उसका मूल्य लेकर मां के आन्दोलनकारी क्रुद्ध हो उठे और 'भारत माता की मातृत्व और दूध का अपमान मैं नहीं करना चाहता।' जय', 'महात्मा गांधी जिंदाबाद' तथा 'अंग्रेजों की इस हेतु दिया जाने वाला ताम्रपत्र भी इन्होंने अपने हाथों दमन नीति मुर्दाबाद' जैसे अनेक नारे लगाते हुए जेल में लेने के बजाए नगरपालिका को भेंट करवा दिया का फाटक तोडकर बाहर आ गये और उन्मक्त जो नगरपालिका की अमल्य निधि के रूप में आज वातावरण में गांधी जयन्ती मनाई गई।
भी सुरक्षित है। पोखरना जी की इस कार्यवाही से क्रद्ध होकर पोखरना जी का जीवन-दर्शन रामपुरा वालों तथा जेल अधिकारियों ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया सम्पूर्ण देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत है। 27 अगस्त और बदले में उन्हें 12 वर्ष की कठोर सजा दी गई 1980 को आपका स्वर्गवास आपके गृहनगर रामपुरा और पुनः जेल की सीखचों में बंद कर दिया गया। में हो गया। बाद में जेल की अवधि घटा दी गई व उन्हें मुक्त .....
आ0- (I) म0 प्र0 स्व. सै0, भाग-4, पृष्ठ-217
(2) स्वा स म), पृष्ठ-124-125 कर दिया गया।
जेल से मुक्त होने के पश्चात् श्री पोखरना अपने शाह श्री रामलाल मास्टर गृहनगर रामपुरा लौट आये। रामपुरा में प्रजामण्डल के स्वदेशी वस्तुओं के कट्टर समर्थक, प्रतापगढ़ पंचम सम्मेलन का सूत्रपात पोखरना जी की ही पहल (राजस्थान) के शाह श्री रामलाल मास्टर ने प्रतिज्ञा की पर हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पोखरना जी को थी-'जो भाई कन्या का दहेज लेगा उसके यहाँ जीमने नगरपालिका अध्यक्ष चुना गया। 1952-57 तक नहीं जाऊंगा।' आपने 1930 में प्रतापगढ प्रजामण्डल पोखरना जी विधानसभा सदस्य रहे। जिला मजदूर और तिरंगे झण्डे की स्थापना की थी, इस पर सरकार कांग्रेस के अध्यक्ष एवं जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष पद ने आपको अन्य व्यक्तियों के साथ जेल में लूंस दिया। पर भी आपने पूरी निष्ठा एवं सक्रियता से कार्य किया। आपने 1 माह तक जेल की हवा खाई। सरकार ने पोखरना जी सरल, स्वाभिमानी एवं गाँधीवादी प्रजामण्डल को भी खत्म कर दिया और आदेश विचारधारा से प्रभावित व्यक्तित्व के धनी थे। वे सदा निकाला कि 'जो इस झण्डे को अपनायेगा उसे जेल गरीबों एवं मजदूरों के पक्षधर रहे। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की सैर करनी पड़ेगी।' जब आप जेल से छूटे तब सेनानी के नाते राष्ट्र द्वारा सम्मानित किया गया। आपने यह प्रण किया कि- 'जब तक प्रतापगढ़ में
अपनी सामान्य आर्थिक स्थिति एवं पक्षाघात की प्रजामण्डल तथा तिरंगे झण्डे नहीं लगेंगे तब तक बीमारी से असहाय स्थिति के बावजूद भी पोखरना प्रतापगढ़ में कदम नहीं रखूगा।'
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प्रथम खण्ड
325
. इसके बाद आप इन्दौर चले गये। 1946 में
रामस्वरूप जी जारखी, प्रतापगढ़ में प्रजामण्डल की स्थापना हुई और तिरंगा
जिला-आगरा (उ0 प्र0) के झण्डा हर घर पर लहराने लगा। जब आपने सुना कि
निवासी थे। आपका जन्म 'प्रजामण्डल की स्थापना हो गई है तब आप 16 वर्ष
एक जमींदार परिवार में के बाद प्रतापगढ़ वापिस गये। जनता ने आपका जोरदार
हुआ था। परन्तु बचपन से स्वागत किया और जुलूस निकाला। रात्रि को एक विराट
ही राष्ट्रीय भावनायें कूट-कूट सभा हुई जिसमें सभापति पद से आपने घोषणा की
कर भरी हुई थीं। हिन्दी उर्दू कि 'मैंने जो प्रण किया था वह आज पूरा हो गया।' व अंग्रेजी में आपकी समान योग्यता थी। आप 2 अक्टूबर 1943 को आपके सभापतित्व में आजाद कवि-लेखक के साथ पत्रकारिता से जुड़े रहे। 'भारतीय' मैदान में गाँधी जयन्ती मनायी गयी थी।' जी ने 'पद्मावती संदेश' (आगरा), 'वीरभारत' आ)-(1) जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-67
(अलीगढ़ व जलेसर), 'ग्राम्य जीवन' (आगरा), श्री रामस्वरूप जैन
'अग्रवाल हितैषी' (देहली), 'देवेन्द्र' (अजिताश्रम
लखनऊ) आदि पत्रों का सम्पादन किया था। स्व० खौरगढ़, जिला- मैनपुरी (उ0प्र0) के श्री रामस्वरूप जैन, पुत्र-श्री छोटे लाल, जैन का जन्म 11
__पं0 कृष्णदत्त जी पालीवाल ने लखनऊ से 'दैनिक
केसरी' का प्रकाशन किया था, तब आपको प्रबन्ध अक्टूबर 1917 को हुआ।
सम्पादक नियुक्त किया था। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय आप अपने मण्डल के
1942 के आन्दोलन में सहयोग देने की शङ्का मंत्री थे। उस समय आप
के कारण आपको गिरफ्तार कर दो माह सेन्ट्रल जेल फरार हो गये और इधर
आगरा में नजरबंद रखा गया था। आप बेसवां किला उधर घूमते रहे, पुलिस (
(अलीगढ़) रियासत के वर्षों मैंनेजर रहे थे।
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 0 ध0, आपकी तलाश में रही अन्त पृष्ठ-92 (3) अमृत, पृष्ठ-25 (4) श्री पन्नालाल जी 'सरल' द्वारा में जनवरी 1943 में आपको फिरोजाबाद में गिरफ्तार प्रेषित परिचय कर लगभग एक वर्ष 6 माह नजरबंद रखा गया। जेल
श्री रायचंद नागड़ा में ही आपने 'मानव जीवन की सफलता' पुस्तक का
'खण्डवा जिले के गांधी' कहे जाने वाले तथा लेखन किया जो बाद में प्रकाशित भी हुई। आजादी ।
'भाईजी' उपनाम से विख्यात श्री रायचंद नागड़ा का के बाद आप ग्राम पंचायत के सरपंच आदि अनेक
- जन्म अपने ननिहाल पाचोरा पदों पर रहे। 1963 में आपने विशाल सिद्धचक्र
| में 23 जून 1904 को हुआ। मण्डल विधान का आयोजन कराया था।
वहीं रहकर आपने गुजराती आ0- (1) जै0 स0रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 0 धo, पृष्ठ-92 (3) जै) स0 वृ0 इ0, पृष्ठ-627 (4) स्व0 प0 .
का अभ्यास किया। आपके
पूर्वजों के सन्दर्भ में कहा श्री रामस्वरूप 'भारतीय'
जाता है कि 1880 के 'भारतीय' उपनाम से विख्यात, राष्ट्रभक्ति और LMAN - आसपास सुदूर कच्छ प्रान्त से पत्रकारिता को ही अपने जीवन का ध्येय बनाने वाले दो किशोर वय के भाई पदमसी एवं पीताम्बर अपनी
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन विमाता से परेशान होकर एक दिन चुपचाप जेब में गांधी खण्डवा पधारे तो आपके निवास 'नागड़ा विला' कुछ सिक्के रखकर जहाज में बैठकर बम्बई पहुँचे में ही रुके थे। और मजदूरी कर अपना जीवन यापन करने लगे। बम्बई आजादी की लड़ाई में जब सरकार ने सभी को रास नहीं आया तो एक दिन ट्रेन में बैठ गये। गन्तव्य जेलों में ठूसना शुरू किया तो आपके पिता ने बहुत तो कोई था नहीं सो खण्डवा स्टेशन पर उतर गये और समझाया और धमकी दी कि-'यदि तुम गिरफ्तार हए यहीं के होकर रह गये। पहले मजदूरी की फिर फटे तो मैं जेल की दीवार से माथा ठोककर मर जाउंगा।' पुराने बारदाने का काम किया। काम चल निकला, भाग्य पर आजादी के दीवानों को ऐसी धमकियां रोक सकी हैं क्या? ने साथ दिया और कुछ ही दिनों में वे एक प्रतिष्ठित
___ 13 अगस्त 1930 को सरकारी हाईस्कूल पर व्यापारी बन गये।
कांग्रेस का ध्वज फहराते हुए आप गिरफ्तार कर लिये पीताम्बर जी के यहाँ पुत्र हुआ जिसका नाम गये और छह माह की कैद तथा 500/- रु0 जुमाना 'रायचंद' रखा गया। रायचंद के नाना केशव जी तेजपार की सजा सनाकर आपको रायपुर जेल भेज दिया गया। पाचोरा के प्रतिष्ठित व्यापारी थे। नाना के घर लगभग
जेल जाते हुए आपने कहा था-'कमिश्नर मि0 10 वर्ष बिताकर रायचंद खण्डवा आ गये और यहीं
टर्नर को मेरी ओर से बधाई दीजियेगा कि उन्होंने मझे उनकी आगे की शिक्षा-दीक्षा हुई।
जिले में पहली गिरफ्तारी का सौभाग्य प्रदान किया।' 1917 में लोकमान्य तिलक खण्डवा पधारे उन्हीं
___31-3--1941 को अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध की प्रेरणा से अ0 भा० कांग्रेस कमेटी की स्थापना
जनता को भड़काने के अपराध में नागड़ा जी को पुनः खण्डवा में हुई। 1923 में रायचंद जी उसके सक्रिय
छह माह की सजा हुई, जिसे आपने नागपुर जेल में सदस्य बने तथा आजीवन खादी पहनने का व्रत लिया,
काटा। 1942 के आन्दोलन में वे पुन: गिरफ्तार कर जिसे अन्त तक निभाया। 1929 में क्रान्तिकारी,
लिये गये और 1944 में मुक्त हुए। राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी जिला कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये तो उन्होंने नागड़ा जी को प्रधानमंत्री नियुक्त
प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय किया। 1939 से 1945 तक तथा 1952 से 1957
ने 'सबके अपने भाई रायचंद नागड़ा' नाम से नागड़ा तक नागड़ा जी जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1929
जी के संस्मरण लिखे हैं। नागड़ा जी के व्यक्तित्व को में म्युनिसिपल कांऊसिल के चनाव में विजयी हए और रेखांकित करने वाले संस्मरणों के कुछ अंश देना यहाँ उपाध्यक्ष नियुक्त हुए। 1956 से 1966 तक आप नगर असमीचीन नहीं होगा। पालिका खण्डवा के सफल व लोकप्रिय अध्यक्ष रहे। वे (नागड़ा जी) नियम से चर्खा कातते, हाथ
1959 में नागडा जी ने खण्डवा गजराती समाज से अपना सब काम करते, जो बोलते उसे पूरा करते की स्थापना की और अन्त तक उसके अध्यक्ष रहे। और जो करते उसका श्रेय कभी नहीं लेते थे। 1954 से 1962 तक आप काटन मर्चेण्ट एसोसिएशन, 1956 से 1972 तक ग्रेन मर्चेन्ट एसोसिएशन, 1963 भाई पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने आजादी की से 1972 तक चेम्बर आफ कॉमर्स के अध्यक्ष रहे। लड़ाई में भाग लेने पर भी अपने आपको कभी विधायक
नागड़ा जी राजनीति की काली कोठरी में रहकर या सांसद पद का दावेदार नहीं माना भी सदा शुभ्र चादर के धनी रहे। 1933 में जब महात्मा * * * *
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प्रथम खण्ड
327 उन्होंने तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को दी जाने अपने जेल जीवन के अनुभव सुनाते हुये आपने वाली पेंशन लेने से भी इंकार कर दिया था। कहा कहा था-'जब मुझे पहली बार छह महीने की जेल था-'हमने कुछ पाने के लिए आजादी की लड़ाई नहीं हुई तब खिस्ती सुपरिन्टेण्डेट थे। 7-8 दिन खण्डवा लड़ी। देश आजाद हो गया, यही उसका सबसे बड़ा जेल में रखा, फिर एक दिन फोर्ड गाड़ी में बैठाकर मूल्य है।'
बड़े पुल के पास ले गये। वहाँ पर मेल को खड़ा किया
और गाड़ी चल दी। रास्ते में मैंने पुलिस वाले से पूछा 1940 में जब वे जेल गये तो वहाँ पर जाने कि-"कहाँ ले जा रहे हो" तो वह बोला "मुझे खुद कहाँ से मोची का सामान जुटा लिया। फिर तो आपकी भी नहीं मालूम है'' जब भुसावल पहुँकर नागपुर गाड़ी
। के पावों पर लगी रहतीं। (आज की तरह में बैठे तो पूछा "कहाँ ले जा रहे हो" तो वह बोला कुर्सी पर नहीं) वे जिसके पांव में भी फटा जता देखते "मालमू नहीं" जब गोंदिया निकल गया तो उसकी अत्यन्त ही विनम्रता से उससे उतरवा लेते और फिर झपकी लग गई। मैंने पता लगा लिया था कि रायपुर उसे सुधारकर उसके पांव में पहना देते।
ले जा रहे हैं। जब रायपुर स्टेशन आया और गाड़ी चलने लगी तो मैंने उसे जगाकर कहा "यह रायपुर है, यहाँ
भी उतरना है या तुम्हें मालूम नहीं" वह हडबडा कर मुझे राजनीति में लाने और राजनीति से दूर -
पूर उठा और बोला "कूदो'' मैंने कहा ''मैं चलती गाड़ी साहित्यिक क्षेत्र में पूरी ताकत से काम करने की प्रेरणा
करने का प्ररणा से नहीं कूद सकता।'' उसने चैन खींची और हम उतर
की सदा रायचंद भाई से मिलती रही। उनसे मैंने पिता की गये। वह रास्ते भर माफी मांगता रहा और बोला-"आज तरह आशीर्वाद पाया और भाई की तरह उन्होंने मुझे मेरी लाज रख ली। अगर हम आगे निकल जाते तो अन्त तक अपनाये रखा था। आज के युग में ऐसे सब जगह तार हो जाते और मेरी नौकरी चली जाती।" तपोनिष्ठ गांधीवादी दुर्लभ होते जा रहे हैं।
मैंने कहा-"भले आदमी, हम सत्याग्रही हैं, झूठ नहीं
बोलते। हमने मुकदमा भी नहीं लड़ा, मैं तो तुमसे कब स्वतंत्रता की 25वीं रजत जयन्ती के अवसर पर से पूछ रहा था पर तुम बतलाते ही नहीं थे।" प्रधानमंत्री के द्वारा देश के जिन चुने हुए सेनानियों को 'सादा जीवन उच्च विचार' के सत्र को अपने दिल्ली में सम्मानित करने का आयोजन किया गया, जीवन में उतारने वाले नागडा जी स्नान के बाद प्रतिदिन उनमें से एक रायचंद भाई भी थे। लेकिन आपने दिल्ली मंदिर जाते थे चाहे खण्डवा शहर हो या अन्य कोई जाने से इन्कार करते हुए कहा कि-'मैंने किसी सम्मान शहर। नागडा जी के पत्र श्री प्रफल्ल नागडा ने लिखा या पुरस्कार की आशा में स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं है कि वे सदैव चरखा कातते रहते थे. उनका भोजन लिया था। देश की आजादी ही मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार बडा सादा था. वे समय के बहत पाबंद थे। फोटोग्राफी, और सम्मान है।'
अभिनय, घुड़सवारी के वे शौकीन थे। कभी साइकिल,
मोटरसाइकिल, कार चलाते तो कभी सिलाई मशीन भैयाजी अक्सर अपनी डायरी लिखा करते थे, भी चलाने लगते थे। उनके कमरे में पूज्य बापू और जिसमें उन्होंने अपने सामाजिक और राजनैतिक जीवन श्रीमद् राजचंद का ही चित्र था। जैन धार्मिक पुस्तकों के संस्मरण लिखे हैं।
के अतिरिक्त अन्य धर्मों की पुस्तकें वे प्रायः पढ़ा करते
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328
स्वतंत्रता संग्राम में जैन थे। टी0 बी0 के मरीज कृष्णा को वे रक्तदान करने आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-102 (2) कई मास तक नियमित बम्बई गये। वे दो समय के स्व० स० ज0, पृष्ठ-161 (3)अनेक प्रमाण पत्र भोजन के बीच में पानी के सिवा कुछ नहीं लेते थे।'
श्री रूपचंद जैन 25 जून 1979 को नागड़ा जी का देहावसान हो गया।
सहारनपुर (उ0प्र0) के श्री रूपचंद जैन 1930 आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-111 (2) से ही स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय हो गये थे। सहारनपुर श्री रायचंद नागड़ा, पुण्य स्मरण (स्मारिका) (3) नई दुनिया, ? में 25 मार्च 1932 को धारा 144 तोड़ने के आरोप अक्टूबर 1997 (4) नवभारत, भोपाल 18 सितम्बर 1997 में वैद्य रतन लाल चातक, श्री रामरतन वर्मा तथा श्री रूपचंद जैन
आपको गिरफ्तार कर लिया गया था। इस सन्दर्भ में जबलपुर (म0प्र0) के श्री रूपचंद जैन, पुत्र
वैद्य जी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि- "(भाषण श्री नेमीचंद जैन का जन्म 1911 में हुआ। 1932 के
करने पर) श्री चन्द्रधर जियाल मजिस्ट्रेट ने आकर
मझसे कहा कि - 'आपको गिरफ्तार कर लिया गया आन्दोलन में आप गिरफ्तार हुए और जबलपुर जेल में 6 माह बन्द रहे।
है।' उसी समय रामरतन और रूपचंद मुझे माला
पहनाने आये अत: उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया' आ0-(1) स्व० स० ज०, पृष्ठ-192
तीनों की गिरफ्तारी पर बाहर खड़ी जनता ने श्री रूपचंद जैन
नारे लगाये तो उन पर लाठी चार्ज किया गया। जेल सागर (म0प्र0) के श्री रूपचंद , पुत्र-श्री में सुनवाई के बाद इन तीनों को सजा हुई और वृजलाल जैन का जन्म 1910 में हुआ। आपने बरेली जेल भेज दिया गया। बरेली जेल की एक माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की 1942 के भारत रोचक घटना है। जेल के फाटक पर जब ये तीनों छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा 6 माह पहुंचे तो उनके अनुसार- "हमने देखा कि वहाँ का कारावास भोगा।
राजनैतिक बन्दियों को पीले वस्त्र पहना रखे थे। आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-62 उनमें से किसी की आंख और किसी का मुंह सूजा सेठ श्री रूपचंद जैन
हुआ था। इस प्रकार ऐसी लम्बी कतार दिखाकर हमें श्री रूपचंद जैन, पुत्र-श्री लक्ष्मीचंद जैन का .
कहा गया कि - 'यह बरेली जेल है, यहाँ यही हाल जन्म 1927 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942
होता है।' और एक बड़ा जूता दिखाया गया कि के आन्दोलन में आपने भाग लिया और 6 माह का
इससे पिटाई होती है। फिर हमारा मुण्डन संस्कार
किया गया और उसके बाद हमें बैरक में भेजा गया।" कारावास भोगा। आप कुछ समय गुना जेल में भी रहे।
रूपचंद जी ने एक साक्षात्कार में कहा था किआपने अंग्रेजों के विरुद्ध परचे
"वहाँ कैदियों से चक्की पिसवायी जाती थी, कोल्हू छपवा कर ट्रेन में वितरित |
चलवाया जाता था और पानी की हौज में आदमी को किये थे। आप सेन्ट्रल जेल
डालकर बेतों से पिटाई की जाती थी। जो माफी नहीं जबलपुर के नीचे गिरफ्तार |
मांगता था, उसके साथ ऐसा (उपरोक्त) व्यवहार होता हो गये थे। आपका निधन
था।" आपने बताया था कि - "माफी न मांगने पर
हमारी भी खूब जमकर पिटाई हुई। पैरों पर लाठियाँ 30-3-1977 को हो गया।
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प्रथम खण्ड
329 बरसायी गईं, पर हम टस से मस नहीं हुए। मेरी एक
श्री रूपचंद जैन आंख और एक टांग खराब हो गयी थी।"
अपने भाषणों से नवयुवकों में क्रान्ति की ___बरेली जेल में इस प्रकार दी गई यातनाओं की ज्वाला फूंकने वाले श्री रूपचंद जैन, पुत्र-श्री रतनचंद जांच के लिए सर सीताराम, अध्यक्ष विधान परिषद् जैन का जन्म 1911 में शहडोल (म0प्र0) में हुआ। को नियुक्त किया गया था।
श्री रतनचंद सम्पन्न व सफल व्यवसायी थे, पर पुत्र 1942 में अपनी गिरफ्तारी के सन्दर्भ में विस्तार को देशप्रेम की लौ लग गई। झंडा सत्याग्रह में से बताते हुए एक साक्षात्कार में आपने कहा था-"मैंने रूपचंद जी ने भाग लिया। 1932 में कलकत्ता में भी और मेरे साथियों ने तार काटने, इमारतें तथा डाकखाना आपने आंदोलन में भाग लिया। 1942 के आंदोलन आदि जलाने का काम किया। मनानी स्टेशन को में सरकार ने आपको विद्रोहात्मक भाषण देने के आग लगा दी। उस समय काशीराम, बनारसीदास जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और सेन्ट्रल जेल रीवां और इन्द्रसेन (अम्बेहटा शेख) भी हमारे साथ थे। भेज दिया। सजा सुनाये जाने तक आप अन्डरट्रायल वहाँ से हम भाग गये......... मैंने कांग्रेस की डाक रहे। रीवां ट्रिव्यूनल द्वारा 100/- रु0 जुर्माना और छह का काम सम्भाल लिया। डाक लेकर दिल्ली से माह के कठोर कारावास की सजा आपको सुनाई आगरा गया। आगरे में मैंने डाक विलायतीराम को दे गई। जेल की विषम परिस्थितियों के कारण आपका दी। उन्होंने मझे 1200 रुपये और कछ सामान अम्बाला स्वास्थ्य खराब हो गया था। पत्रकारिता से विशेष रूप पहुंचाने के लिए दिया। वहाँ भी विलायतीराम ही थे। से जुड़े रहे श्री जैन का 1973 में देहावसान हो गया। उन्हें सामान सौंप दिया। वहाँ से उन्होंने एक पिस्तौल
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-5, पृष्ठ-315, (2) और दो कैंचियाँ दिल्ली कांग्रेस कमेटी में देने को दी। स्वा) आ0 श0, पृष्ठ-110 वहाँ से सहारनपुर आया और सिनेमा देख रहा था तो श्री रूपचंद पाटणी (जैन) सी0आई0डी0 इन्सपेक्टर तनखा साहब ने इन्टरवल रायपुर (म0प्र0) के श्री रूपचंद पाटणी, पुत्र-श्री में कन्धे पर हाथ रखकर कहा, 'मैं नौजवान को उदेलाल जैन का जन्म 1904 में ह आ आप गिरफ्तार करना नहीं चाहता। तुम मेरा स्टेशन तुरन्त
आरम्भ से ही राष्ट्रीय खली कर दो।' .... ..... वहाँ से पैदल
विचारधारा से जुड़े व्यक्ति थे, नागल आया और दिल्ली पहुँचकर सामान आफिस में
अत: 1930 के आन्दोलन जमनादास कायस्थ को सौंप दिया। ...........
में आपने खुलकर भाग . उनका सामान और रुपये लेकर आगरा गया .....
लिया, परिणामस्वरुप ..... आगरा से फिर 1200 रुपये और डाक गंगापुर
13-10-1930 को गिरफ्तार सिटी के लिए लेकर चला परन्तु बाहर निकलते ही
कर लिये गये और 5 माह के पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 1200 रुपये जुर्माना सश्रम कारावास एवं 10 रु0 अर्थदण्ड की सजा दी
और साढे चार महीने की सज़ा हो गयी। थैले के गई। रुपया जमा न करने पर एक माह और सजा भोगनी 1230 स ने ले लियो"
पडी। आपका निधन 3-1-1995 को हो गया। आ)-(1) स0 स0, भाग-1, पृष्ठ 162, 63, 192 (2) आO-(1) श्री पी0 जी0 उमाठे द्वारा प्रेपित परिचय एवं स्वाधीनता आन्दोलन और मेरट, पृष्ठ-371
प्रमाणपत्रा
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330
स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री रूपचंद बजाज
कांग्रेस में आपने स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया दमोह (म0प्र0) के बहुआयामी व्यक्तित्व श्री था तथा तीन सप्ताह तक अपनी सेवायें अर्पित की रूपचंद बजाज का जन्म प्रसिद्ध बजाज परिवार में 4 थीं।
अप्रैल 1912 को हुआ। 1942 में 13 अगस्त को दमोह के गांधी चौक आपके पिता श्री दुलीचंद में एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करते हुये तथा बजाज दमोह के प्रतिष्ठित दिल्ली का आंखों देखा हाल सुनाते हुये आपको गिरफ्तार नागरिक थे, वे जैन धर्म और कर लिया गया तथा उसी रात्रि सागर जेल भेज दिया दर्शन में गहरी आस्था रखने गया। 17-8-42 को नागपुर जेल में आपको वाले समाजसेवी भी थे। स्थानान्तरित कर दिया गया तथा 6-1-43 को मुकदमा
रूपचंद जी बचपन में बहुत चलाने हेतु फिर सागर जेल लाया गया और 16-3-43 कमजोर थे और प्राय: बीमार रहते थे, अत: श्री को तीन माह के कठोर कारावास की सजा सुनाकर दुलीचंद के मित्र अखाड़ेबाज श्री रम्मू उस्ताद की सलाह 25-3-43 को अमरावती जेल भेज दिया गया। पर रूपचंद जी को व्यायाम का शौक उत्पन्न करने के अमरावती जेल का जेलर मासूम अली अपनी लिए उनके चाचा प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री राजाराम क्रूरता के लिए भारतभर में प्रसिद्ध था। उसने कैदियों बजाज ने जैनधर्मशाला के पास बाहुबली व्यायामशाला को 1941 में अनशन करने पर पानी देना बंद कर स्वयं के खर्च से बनवाई, जिसमें लाठी, लेजिम, तलवार, दिया था और उन्हें पेशाब पीने पर मजबूर किया था। भाला आदि चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस बजाज जी ने मासम अली के स्वभाव पर निम्न कविता व्यायामशाला में जैन-अजैन का भेद नहीं था और इसके लिखी थी। पहलवान आजादी की लड़ाई में सदैव आगे रहे। इस आज हम मासम सैंया से मिलेगें। व्यायामशाला से सम्बद्ध अनेक सेनानियों का परिचय
___ इस मिलन पर देखाना क्या गुल खिलेंगे।। इस ग्रन्थ में दिया गया है।
तनी भौ है' चुस्त कद सर लाल टोपी। व्यायाम के बल पर रूपचंद जी इतने स्वस्थ हो
डिसीप्लिन के नाम पर क्या शान रोपी।। गये कि जब 1942 में सागर जेल पहुंचे तो जेलर की
झूमते बल खाये से वे क्या गजब की चाल चलते। प्रतिक्रिया थी- 'आज हमारी जेल में सबसे वजनदार
कोट के खोले बटन घबराये से आते टहलते।। कैदी आया है।'
जो सलामी दागने से बनाये कोई बहाना। आपने प्राथमिक शिक्षा राष्ट्रीय पाठशाला में पाई, जहाँ महापुरुषों की कहानियाँ सुनना और सूत कातना
रूठकर सैंया उसे झट भेज देते गुनाहखाना।। अनिवार्य था। बाद में इस शाला के बन्द होने पर आपने हैं बड़े चुह ली मजाकी सै या हमारे । नगर परिषद् की पाठशाला में पढ़ाई पूरी की। युवावस्था अब न जाने कब मिले सैया हमारे ।। में ही आप स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। खादी रात्रि अपनी बैरक में साथियों को सुनाते समय का प्रचार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं शराबबन्दी बाहर खड़े जेलर ने भी यह कविता सुन ली। दूसरे आन्दोलनों में भागीदारी आपके प्रमुख कार्य थे। 1930 दिन दोपहर में बजाज जी को दफ्तर में बुलवाया गया से आपने सिर्फ खादी पहनने का व्रत लिया। त्रिपुरी तथा रात्रि वाली गजल इस शर्त पर सुनाने का आग्रह
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प्रथम खण्ड
331 किया गया कि वे इसकी शिकायत किसी से नहीं करेंगे
जी ने जयपुर में ही वकालत तथा अपने मित्रों को ही सुनायेंगे। आखिर जेलर का
प्रारम्भ कर दी। हिन्दी, उर्दू, आग्रह बजाज जी को पूरा करना पड़ा।
अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि दिनांक 24-6-43 को जेल से रिहा होने पर
अनेक भाषाओं पर आपका बजाज जी सर्वप्रथम अमरावती के पास ही जैन तीर्थ
समान अधिकार है। 1932 से मुक्तागिरी के दर्शन करने गये और बाद में घर दमोह
आप राजनीति में सक्रिय हो आये। घर आते ही बजाज जी को पुलिस का नोटिस
गये थे। सौगानी जी ने 1937 मिला कि वे सुबह शाम पुलिस स्टेशन पर आकर में 'नागरिक संघ' की स्थापना की। 1939 से 1951 हाजिरी दिया करें तथा बिना आदेश प्राप्त किये दमोह तक आप 'जयपुर शहर प्रजामंडल' के मंत्री रहे। से बाहर न जावें। दिनांक 15-9-43 तक बजाज जी 'जयपुर शहर कांग्रेस' के मंत्री पद का दायित्व भी को इस आदेश का पालन करना पड़ा।
आपने सम्हाला था। स्वतंत्रता के बाद बजाज जी ने राजनीति से अपने 1939 में जयपुर राज्य प्रजामण्डल ने नागरिक को अलग कर लिया और जैन समाज के उत्थान के अधिकारों के लिए जो आन्दोलन छेड़ा था, उसमें सौगानी कार्यों में जट गये। आपने अनेक सामाजिक संस्थाओं जी ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। 12 फरवरी 1939 की स्थापना की और उनके विकास में योगदान दिया। को एक सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व करते हुए आप महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने स्वयं गिरफ्तार कर लिए गये और छह मास के कारावास के व्यय से 'उषा सिलाई कला महिला विद्यालय' की की सजा आपको भोगनी पड़ी। स्थापना की। 1974 में भगवान् महावीर के 2500वें सौगानी जी जयपुर राज्य प्रतिनिधि सभा के लिए निर्वाण महोत्सव के अवसर पर आपके सक्रिय सहयोग जयपुर शहर से निर्वाचित हुए और 1944 से 1949 के उपलक्ष्य में केन्द्रीय समिति ने आपको स्वर्ण पदक तक प्रजामंडल पार्टी के उपनेता और सचेतक रहे। से सम्मानित किया था। आप तीर्थभक्त की उपाधि से आपने प्रतिनिधि सभा जयपुर के पहले बजट पर ( प्रमुख विभूपित थे। आपने दमोह जिले के भूले बिसरे स्वतंत्रता वक्ता होने के कारण) पूरे सात घंटे तक लगातार भाषण संग्राम सेनानियों का इतिहास लिखना व उनके चित्रों दिया था। अपने इस संसदीय जीवन में सौगानी जी का संग्रह करना प्रारम्भ किया था। पर सम्भवतः यह को सर वी0टी0 कृष्णमाचारी और सर मिर्जा इस्माइल प्रकाशित नहीं हो सका। 7-1-1988 को आपका जैसे कुशल प्रशासकों के साथ काम करने का अवसर निधन हो गया।
मिला था। आ0 - (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ-90 आ0- (1) रा0 स्व) से0, पृष्ठ-587 (2) जै0 स0 q0 (2) प0 जै) इ.), पृष्ठ 429 (3) 'समर्पित सुमन' लघु पुस्तिका डा पाप्त 110 श्री रूपचंद सौगानी, एडवोकेट
श्री रोशनलाल बोर्दिया अस्पृश्यता निवारण और हरिजन शिक्षा के लिए मेवाड प्रजामण्डल व कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे, समर्पित श्री रूपचंद सौगानी, पुत्र-श्री जौहरी लाल का .
। उदयपुर (राजस्थान) के श्री रोशनलाल बोर्दिया का जन्म जन्म जयपुर (राजस्थान) में 14 जून 1907 को हुआ।
__1903 में हुआ। उदयपुर में सूखे मेवे का व्यवसाय एल0एल0बी) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सौगानी
करने वाले बोर्दिया जी 1932 में राजनीति में आये।
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332
स्वतंत्रता संग्राम में जैन उदयपुर के तत्कालीन शासन ने जब राजस्व शिक्षा प्राप्त कर आप 1930 के स्वतंत्रता संग्राम में सम्बन्धी नये कर लगाये तब पूरा उदयपुर इसके विरोध सक्रिय हो गये। 1932 में वेयर हाउस पिकेटिंग के में उठ खड़ा हुआ, लगभग दस हजार लोगों का विशाल समय हुये लाठीचार्ज में आप घायल तथा गिरफ्तार जुलूस ज्ञापन देने राजमहल की सीमा में प्रवेश ही कर हुये और साढ़े नौ माह का कारावास भोगा। त्रिपुरी रहा था कि भयंकर लाठी चार्ज प्रारम्भ हो गया। अनेकों कांग्रेस में भी आप स्वयंसेवक बनकर गये थे। के सिर फटे और अनेकों के हाथ में विरोध
आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-104 (2) रुका नहीं। श्री बोर्दिया उस प्रदर्शन के संयोजकों में स्वस0 ज0, पृष्ठ-168 एक थे । बोर्दिया जी के साथ 64 और व्यक्तियों को
श्री लक्ष्मीचंद जैन गिरफ्तार कर नजरबंद रखा गया। मेवाड़ प्रजामण्डल
जबलपुर (म0प्र0) के श्री लक्ष्मीचंद जैन, की स्थापना के बाद 1938 में नाथद्वारा में जो आन्दोलन पुत्र-श्री दमरूलाल जैन ने 1921 के आन्दोलन में हुआ उसमें बोदिया जी 8 दिन पुलिस कस्टडी में रहे। भाग लिया तथा जबलपुर जेल में | वर्ष का कारावास 1939 से 1954 तक वे मेवाड़ प्रजामण्डल व कांग्रेस भोगा। के कोषाध्यक्ष रहे।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-104 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी बोर्दिया (2) स्व0 स0 जा0, पृष्ठ-168 जी को एक वर्ष उदयपुर व इसवाल की जेलों में रहना
श्री लक्ष्मीचंद जैन पड़ा, उनके मेवे का व्यापार चौपट हो गया, पर इसकी परवाह उन्होंने नहीं की। 1948 में पुलिस की गोली
जबलपुर (म0प्र0) के श्री लक्ष्मीचंद जैन, से उनके पैर में भयानक चोट लगी। समाजसेवी के ..
पुत्र- श्री दुलीचन्द ने 1930 और 1932 के आन्दोलन
में भाग लिया, गिरफ्तार हुए और लगभग । वर्ष का रूप में विख्यात बोर्दिया जी महिला विद्यापीठ, कस्तूरबा
कारावास भोगा। मातृमण्डल, हरिजन सेवक संघ, आदिवासी संघ आदि
आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-105 संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं।
(2) स्व0 स0 ज0, पृष्ठ-168 आO- (1) इ0 अ0 ओ0, 2/400 (2) रा0 स्व0 से0, पृ०-480
- श्री लक्ष्मीचंद जैन श्री लक्ष्मण जैन
__ श्री लक्ष्मीचंद जैन, पुत्र-श्री रज्जीलाल का
जन्म 1914 में सागर (म0प्र0) में हुआ। विद्यार्थी इन्दौर (म0प्र0) के श्री लक्ष्मण जैन, पुत्र-श्री
जीवन से ही विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आन्दोलन आत्माराम जैन का जन्म 1910 में हुआ। 1942 के
में आपने भाग लिया तथा रचनात्मक कार्यों में भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया, फलतः
संलग्न रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन में आप गिरफ्तार | माह 8 दिन का कारावास आपको भोगना पड़ा।
हुये तथा एक वर्ष का कारावास भोगा। आपके अनुज श्री रामराव जैन ने भी जेल यात्रा की।
आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै०, भाग-2, पृष्ठ-63 आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै०, भाग-4, पृष्ठ-43
(2) आO दी0, पृष्ठ-79 श्री लक्ष्मीचंद जैन
श्री लक्ष्मीचंद जैन श्री लक्ष्मीचंद जैन, पुत्र-श्री टीकाराम का जन्म
सागर (म0प्र0) निवासी और विदिशा प्रवासी 1912 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। मिडिल तक श्री लक्ष्मीचंद जैन, पत्र-श्री हल्के लाल जैन ने 1942
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प्रथम खण्ड
333 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया तथा 18 सित) श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन 1942 से 6 मार्च 1943 तक का कारावास भोगा। सहारनपुर (उ0प्र0) की श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-63 (2) ने 1941-42 में जेल यात्रा की थी। आपके पति बाबू आ0 दी0, पृष्ठ-79
अजितप्रसाद जैन भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के श्री लक्ष्मीचंद नारद
सदस्य रहे थे। वे केन्द्र में पुनर्वास, खाद्य एवं कृषिमंत्री, सतना (म0प्र0) के श्री लक्ष्मीचंद नारद, पुत्र-श्री उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य, मुन्नालाल जैन ने 1931 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय केरल के राज्यपाल आदि अनेक पदों पर रहे थे। श्री रूप से भाग लिया व 15 दिन की सजा भोगी। जैन 1926 से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-275 हो गये थे उन्होंने अनेक बार जेल यात्रायें की। आप श्री लयीत सोया
उनकी सहधर्मिणी होते हुए भी स्वतंत्र विचारक थीं। जबलपुर (म0प्र0) नगर निगम के पार्षद रहे 1935 में जब स्वतंत्रता संग्राम के लिए सहारनपुर में श्री लक्ष्मीचंद समैया, पत्र-श्री बाबूलाल का जन्म 'स्त्री समाज' की स्थापना हुई तो आप इसकी प्रमुख 1906 में जबलपुर में हुआ। 1942 के आन्दोलन में कार्यकर्ची थीं। 1 वर्ष 1 माह 8 दिन का कारावास आपने काटा। 1941-42 में जब आपने जेल यात्रा की तो साम्प्रदायिक मेल-जोल बढ़ाने में आपका सक्रिय आपकी कुछ महीने की पुत्री आपके साथ थी। भगवान् योगदान रहा था। आपने 'हरिजन सेवक संघ' में अपनी महावीर की साधना और पूज्य बापू की सहनवृत्ति से सक्रिय भूमिका निभाकर अस्पृश्यता निवारण का प्रेरणा लेने वाली श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन के सन्दर्भ प्रयोगात्मक रूप प्रस्तुत किया था।
में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-105 (2) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने जैन संदेश में लिखा स्व० स० ज0, पृष्ठ-168
है-'आपका बाहरी परिचय यह कहकर दिया जा सकता श्री लक्ष्मीचंद सोधिया
है कि आप श्रीमती अजित प्रसाद जैन हैं पर सच पिताश्री का देहावसान होने पर सहानुभूति में जेलर यह है कि यह आपका कोई परिचय ही नहीं है। निश्चय द्वारा दिये गये अवकाश को भी स्वीकार न करने वाले ही यदि श्रीमती लक्ष्मीदेवी का विवाह किसी गरीब, सुरखी, जिला-सागर (म0प्र0)निवासी श्री लक्ष्मीचंद अशिक्षित से हुआ होता, तब भी वे उतनी ही सोधिया 1941 में जेल गये तथा 1942 में 20 अगस्त आदरणीय होती, जितनी आज हैं। पर यदि भाई को पुनः गिरफ्तार कर लिये गये। आपके जेल जाने अजितप्रसाद जी के साथ किसी इंग्लैण्ड रिटर्न बीबी के दो माह बाद आपके पिताश्री का देहान्त हो गया का विवाह हुआ होता तो आज उनका जीवन कछ और था। आपके घर में आपके सिवा कोई भी आदमी कमाने
तरह का होता। यही नहीं कि वे उनकी सब प्रकार वाला नहीं था, ऐसी दशा होते हुए भी आपने जेल की
नगल का की चिन्ताओं का बीमा हैं, उनका बल भी हैं। प्रतिदिन 15 दिन की छुट्टी डी0 सी0 के कहने पर मंजूर नहीं
जितने और जितने प्रकार के अतिथियों का स्वागत उन्हें की। आपके ऊपर पुलिस ने 6 केस चलाये थे, जिनमें
करना पड़ता है, और उसमें जो सफलता उन्हें मिलती 2 साल 6 माह की सजा हुई थी।
है उस पर ताजमहल होटल का मैंनेजर भी ईर्ष्या कर आ)- (1) जै0 स0 रा0 अ0
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334
- स्वतंत्रता संग्राम में जैन सकता है। फिर वह बेचारा वैसी ममता कहाँ से बहुत कम वेतन पर राजकुमार मिल में नौकरी करने लायेगा।'
लगे। इन्हीं दिनों स्वाधीनता आन्दोलन के सन्दर्भ में ___ आ0- (1) स0 स0, भाग-1, पृष्ठ-189, 544 (2) वे कांग्रेस और प्रजामण्डल की गतिविधियों में भाग जै) स) रा0 अ0 (3) उ0 प्र0 जै0 40. पृष्ठ-86 (4) स्वाधीनता लेने लगे फलतः यह नौकरी भी छोडनी पड़ी जो आन्दोलन और मेरठ, पृष्ठ-371
उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत थी। प्रजामंडल में श्री लक्ष्मीलाल जैन
संगठन की सर्वोच्च जिम्मेदारियों कर निर्वहन करने श्री लक्ष्मीलाल जैन का जन्म 1910 में गड़वेडा के बाद भी वे प्रचार से सदैव दूर रहे, कभी किसी (रायपुर) म0प्र0) में हुआ था। आपके पिता का नाम पद को नहीं स्वीकारा। प्रजामंडल की पत्रिका के अंकों श्री ज्ञानमल जैन था। 1942 का राष्ट्रीय आंदोलन, जो को गुपचुप साइक्लोस्टाइल करवाकर बंटवाने का कि गांव-गांव में फैल चुका था, गांधी जी के 'करो इन्तजाम लाभचंद जी ही करते थे। या मरो' नारे ने जनता को घर से बाहर निकलकर, युवावस्था में ही वे खादी प्रेमी बने। खादी की सड़क पर आंदोलन करने को प्रेरित कर दिया था। धोती, कुर्ता और सफेद टोपी, गौर वर्ण, स्वस्थ शरीर तब श्री लक्ष्मीलाल जैन भी सब कुछ भूलकर राष्ट्र और स्मित मुस्कान, यही उनका व्यक्तित्व था। दाढ़ी की सेवा में आगे आये और आंदोलन में सक्रिय हो नियमित बनाने का शौक उन्हें नहीं था, जो उनकी गये। आंदोलन में भाग लेने के कारण श्री जैन को 3 कर्मठता को प्रतिपादित करता है। माह 15 दिन का कारावास मिला था।
___ उन्होंने अपने लिए कभी विलासिता नहीं आ0- ( 1 ) मा0 प्र) स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-78 चाही। अपने जीवन के पचास वर्ष उन्होंने साइकिल
पर दफ्तर जाते हुए गुजारे थे। मनोरंजन के नाम पर श्री लाजपतराय जैन
उन्हें सिर्फ एक ही शौक था, ब्रिज खेलना, वह भी सहारनपुर (उ0प्र0) के मौहल्ला कायस्थान
रात साढ़े नौ बजे तक। अपने अंतिम दिनों में वे परिवार निवासी श्री लापजतराय जैन को 26 मार्च 1932 को के यवा और नन्हें सदस्यों के साथ मंदिर जाया करते साइक्लोस्टाइल पेपर छापकर बांटने के अपराध में , गिरफ्तार कर तीन माह का दण्ड दिया गया था।
1931-34 के मध्य के उनके राजनैतिक आ0-(1) स) स), भाग-1, पृष्ठ-163 एवं 544
कार्यों के सन्दर्भ में प्रसिद्ध पत्रकार श्री नरेन्द्र तिवारी श्री बाबू लाभचंद छजलानी ने लिखा है'बाबूजी' उपनाम से विख्यात, चुंबकीय व्यक्तित्व 'स्वाधीनता संग्राम के दौरान हम लोगों की एक के धनी, श्री लाभचंद छजलानी का जन्म 31 जुलाई क्रांतिकारी टोली थी। भाई नारायणसिंह सपूत,
1909 को वाराणसी में हुआ। महावीरसिंह आदि उसमें अग्रणी थे। उस टोली में और आपके पिता श्री हरकचंद भी कई लोग शामिल थे। यह बातें 1931 से 1934 छजलानी जौहरी थे और हीरे के बीच की हैं। जवाहरात के मामले में वे भाई नारायणसिंह वैसे तो दूधिया ग्राम के थे, इन्दौर के होल्करों के परन्तु उन्होंने जूनी कसेरा वाखल में एक मकान किराए सलाहकार थे। लाभचंद जी पर ले रखा था। हम अक्सर उसी मकान में इकट्टे 1922 में इन्दौर आये और हुआ करते थे। बाबूजी (लाभचंद जी) से मेरी पहली
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प्रथम खण्ड
335 मुलाकात उसी मकान पर हुई थी। वे सुबह बड़ी जल्दी आजादी के बाद छजलानी जी ने 1947 की साइकिल पर घर से निकल पड़ते और कार्यकर्ताओं अंतिम तिमाही में श्री कृष्णकान्त व्यास से 'नई दुनिया' के घर जाकर उनकी खैर-खबर लेते उनकी जरूरतों समाचार पत्र ले लिया। व्यास जी इसे चला नहीं पा की पूर्ति करवाते, हर तरह की मदद करते। यह उनका रहे थे। आज 'नई दुनिया' मध्य प्रदेश का सर्वाधिक रोज का एक नियम जैसा था। इसी कारण वे भाई प्रसार संख्या वाला दैनिक है। यह देश के भाषायी नारायणसिंह के घर भी अक्सर सुबह-सुबह आ जाते। समाचार पत्रों में भी बहुत आगे है। अखबार को कार्यकर्ताओं की क्या समस्याएं हैं, कैसी तबियत है, प्रभावशाली बनाने के लिए 'बाबूजी' ने कितने कष्ट उनके घर की क्या परिस्थिति है, आदि सब बातों की झेले, कितनी रातों तक जागरण किया यह बताना जानकारी वे पूछते और मदद करते, हौसला बढ़ाते। असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इस समाचार पत्र उनकी बातचीत सिर्फ भाई नारायणसिंह से होती। अन्य ने एक लम्बी यात्रा अपने वर्तमान स्वरूप को पाने में साथियों के नाम पते गुप्त रखे जाते। लाभचंद जी को की है। अपने साथियों से बाबूजी का जो मृदुल व्यवहार भी उनके नाम पते नहीं मालूम थे। फिर भी, वे आते रहा है वह भी इस समाचार पत्र की प्रगति में एक और सब की खैर-खबर पूछ जाते। पूछते कि सब कारण है। ठीक-ठाक तो है। भाई नारायणसिंह व हमको ऐसा छजलानी जी के व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण लगता मानो अपने परिवार का ही कोई बडा व्यक्ति पहलू है 'पर्दे के पीछे रहना'। उन्होंने जो किया, जो हमारी खैर-खबर रखता है। कार्यकर्ताओं में वे कोई दिया उसके बदले में कभी कुछ नहीं चाहा। 'जो व्यक्ति भेद नहीं करते। क्रांतिकारी हो या गांधीवादी या एक बार राजनीति में प्रवेश कर जाता है, वह प्राय: व्यवसायी, वे सबके पास साइकिल पर सुबह-सुबह जिन्दगी भर उससे लौट नहीं पाता।' छजलानी जी ने जाते, मिलते, पूछताछ करते, जरूरत के मुताबिक इसे झूठा साबित कर दिया। रियासतों के विलय के समानत : सबकी मदद करते। एक तरफ हम बाद जन्मा 'मध्यभारत' आठ वर्षों तक कायम रहा। पिस्तौल-बंदूक- हथगोले-बम वालों का क्रांति दल था, इस पूरे समय में लाभचंद जी 'किंगमेकर' कहलाते तो दूसरी ओर प्रजामंडल में कम्यनिस्ट कार्यकर्ता रहे। मंत्रिमंडल उनकी राय से बनते और बदलते रहे. दिवाकर, सरमंडल और खंडकर आदि भी थे. जिनकी लेकिन उन दिनों भी मंच पर या मंत्रिमंडल में या कैमरे विचारधारा और काम करने का तरीका गांधीवादियों
के सामने आने की वासना छजलानी जी में कभी पैदा से मेल नहीं खाता था। तीसरी तरफ सेठ ब्रदी भोला नहीं हुई। 1957 के आरम्भ में कांग्रेस के वार्षिक अधि जैसे व्यवसायी भी कार्यकर्ता, हमदर्द व मददगार थे।
और वेशन का सारा इन्तजाम उन्होंने किया, लेकिन दस्तावेजों लाभचंद जी सब से समानत: मिलते थे। यह उनका
में कहीं इसका उल्लेख नहीं मिलता। 19 जनवरी एक शौक कहिए या स्वयं का कर्तव्य बोध कहिए 1981 का छजलानी जी का देहावसान हो गया, पर जो भी था, था।'
यश:शरीर से वे आज भी हमारे बीच हैं।
आ3-(1) जै) स0 रा0 अ0 (2) नई दुनिया, 20-1-81 1942 के आन्दोलन में छजलानी जी ने खुलकर ।
एवं 15-887 तथा 10-10-97 भाग लिया। वे गिरफ्तार कर लिये गये, जेल में उनके साथ श्री नरेन्द्र तिवारी, श्री बाबूलाल पाटोदी, श्री
श्री लालचंद चोरड़िया बसन्तीलाल सेठिया, श्री राहुल बारपुते आदि थे। वे 'मन्दसौर जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' के लगभग एक साल जेल में रहे।
अध्यक्ष श्री लालचंद चोरडिया का जन्म मन्दसौर
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( म०प्र०) जिले के भानपुरा कस्बे में 30-12-1920 को हुआ | आपके पिता श्री मन्नालाल चोरड़िया राष्ट्रीय विचारधारा सम्पन्न सम्भ्रान्त नागरिक थे। 1938 में श्री वैजनाथ जी ने भानपुरा में प्रजामंडल की शाखा स्थापित की और श्री मन्नालाल चोरड़िया को अध्यक्ष बनाया। उस समय लालचंद जी 18 वर्ष के नवयुवक थे, अपने अनुज श्री विमल कुमार चोरड़िया (जो बाद में राज्यसभा के सदस्य रहे, जिनका परिचय इसी ग्रन्थ में दिया गया है ) के साथ आप आन्दोलन में सक्रिय हो गये। 1941 में आप होल्कर महाविद्यालय, इन्दौर के छात्र बने और वहाँ क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। अपने समग्र राजनैतिक जीवन को रेखांकित करता हुआ जो संस्मरण आपने श्री रविशर्मा को दिया था उसे हम साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। आपने बताया था
"सन् 1938-39 में जब मैं पिलानी पढ़ता था, तब श्री बैजनाथ महोदय और उनके साथ तोतलाजी भानपुरा आये और हमारे घर ठहरे। उनसे हमारी बड़ी आत्मीयता हो गयी और हम इसी कारण प्रजामण्डल की राजनीति में आये। हमारे पिताश्री मन्नालाल जी चोरड़िया प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे। हमारा सारा परिवार धीरे-धीरे इस आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया। मेरे छोटे भाई श्री विमल कुमार चोरड़िया सभाओं में वन्दे मातरम् गाते थे तथा सभा का संचालन करते थे ।
मेरे मन में बचपन से ही विद्रोह के संस्कार रहे। घर में भी मैं विद्रोही था, प्रजामण्डल के नेताओं ने उस समय इस विद्रोह को रचनात्मक दिशा दी। आज भी अन्याय सहन नहीं हो सकता, असत्य सहन नहीं हो सकता। गरीब और अमीर का भेद सहन नहीं हो मैं पहले मानवतावादी हूं और फिर राष्ट्रवादी
सकता।
।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
1942 के आन्दोलन के समय हम होल्कर कालेज में थे। कालेज के अधिकारी वन्दे मातरम् गाने को पसन्द नहीं करते थे। सर तेजबहादुर सप्रू और एक नामी वकील जयकर, होल्कर कालेज में पधारे। मैं उस समय शायद होल्कर कालेज यूनियन का वाइस प्रेसिडेंट था। हमने बैठक के शुरू में ही यह मांग रखी कि 'वन्दे मातरम्' होगा तो ही मीटिंग होगी। हमारी यह मांग नहीं मानी गयी। हम लोगों ने बैठक नहीं होने दी। सर सप्रू और श्री जयकर नहीं बोल सके। जब हम बाहर मिले तो हमने उनसे कहा कि इसको आपका अपमान न मानिये, भारत माता के सम्मान में हम लड़ रहे हैं और आपको तो हम सुनना चाहते हैं। आप यही कहिये वन्दे मातरम् होगा फिर आप मीटिंग करिये । सर सप्रू ने इस बात को बहुत सराहा ।
होल्कर कालेज में हम लोगों का एक ग्रुप था। पढ़ना लिखना एक तरफ, हमेशा यही सोचते रहते थे, कि किसी तरह राष्ट्र का सम्मान बढ़े। हमारे ग्रुप में उस समय न्यायमूर्ति श्री गोवर्धन लाल ओझा, श्री होमीदाजी, नन्दकिशोर भट्ट, कन्हैयालाल डूंगरवाला आदि लोग शामिल थे। तो उस वक्त यह सवाल उठा कि होल्कर कालेज पर तिरंगा झण्डा कौन फहराये। इस बात में कोई सन्देह नहीं था कि यदि ऐसा किया,
मार डाले जायेंगे। पर हम करीब दस छात्र एक दिन अचानक झण्डा फहराने के लिए चढ़ गये। कालेज प्रशासन के लोग बाद में हू-हां ही करते रहे।
9 अगस्त 1942 को इन्दौर राज्यप्रजामण्डल ने आन्दोलन छेड़ा। करो या मरो। इसके पहले एक घटना और हो चुकी थी। उस समय अश्रुगैस के गोले नहीं थे। तो सरकार क्या करती थी कि सभाओं और जुलूसों को विसर्जित करने लिए गर्म पानी फायर ब्रिगेड से डलवाती थी, घोड़े दौड़ाती थी। राजवाड़ा चौक पर हमारी एक मीटिंग होने वाली थी। सरकार ने उस बैठक को समाप्त करने के लिए गर्म पानी बरसाया, घोड़े
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प्रथम खण्ड
337 दौड़ाये। मैं घायल होकर बेहोश हो गया। एक मित्र वे मुझे अपनी कार से रामपुरा पुलिस स्टेशन ले गये। हमें उठाकर होल्कर स्टेट के रेवेन्यू मिनिस्टर श्री अपने पास बैठाकर मुझे प्रलोभन दिये 'तुम्हें अच्छी हीराचन्द जी कोठारी के घर मोरसली गली में ले गये। नौकरी दे देते हैं। तुम अपनी जिन्दगी क्यों बरबाद कर रात भर उनकी पत्नी ने हमें सेंका- सांका। सबेरे जब रहे हो।' मैंने उत्तर दिया कि 'आप हमारा देश छोड़ होश आया तो मालूम हुआ कि हम होल्कर स्टेट के दो, हम आन्दोलन छोड़ देते हैं।' रेवेन्यू मिनिस्टर के घर पर हैं। यह बात श्री कोठारी इसके बाद हमें भानपुरा वापस ले आये। यहाँ के लिये खतरनाक हो सकती थी। अत: तत्काल उसी पर मुकदमें चले और ढाई साल की सजा हुई। बाद वक्त हम होल्कर कालेज आ गये।
में समझौता हुआ और जेल से छोड़ दिया गया। 29 होल्कर कालेज आने पर हमें प्रजामण्डल की जून 43 को उन्होंने हमें छोड़ा। ओर से आदेश मिले कि मैं और प्रद्युम्न कुमार त्रिपाठी आजादी की लड़ाई में बार-बार जेल आने जाने गरोठ और भानपुरा सर्कल सम्हालें। 20 या 22 अगस्त में बहुत सी चीजें सीखने को मिलीं। संस्कार और 1942 को हम लोग यहां पर आ गये। गांवों में मजबूत हुए। सबसे बड़ी बात कि न मैं किसी का प्रजामण्डल की गतिविधियों की वजह से सरकार को शोषण करूं और न ही मेरा कोई शोषण करे और जहां लगा कि यहां भी कुछ गड़बड़ हो सकती है। एक चाह है वहां राह है।। रोज हम लोग भानपुरा में बहुत बड़ा जुलूस लेकर एक बार इन्दौर सेंट्रल जेल में बहुत बडा वाकया निकले। मैं घोड़े पर था। जब बाजार में होता हुआ जुलूस हुआ, जन्माष्टमी थी। जेल के जिस बैरक में हम लोग तम्बोलियों के मन्दिर पहुंचा तो पुलिस ने बैरिकेड्स बन्द थे. उस बैरक में करीब दो सौ लोगों के ठहरने लगा दिये थे। वहीं पर पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर की व्यवस्था थी। चौथी बैरक में कीर्तन हो रहा था, लिया, घोड़ा भी जब्त कर लिया और यहां से पैदल जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में। रात को करीब साढे ग्यारह गरोठ तक लेकर गये। (गरोठ भानपुरा से 26 किमी0 बजे का समय होगा कि चौथी बैरक के लालटेन और दर है। वहां ले जाकर लाकअप में बंद कर दिया। कण्डील अचानक बझ गये। इस पर चौथी बैरक वालों चौबीस घण्टे तक खाना नहीं दिया। उस समय इन्दौर ने हल्ला कर दिया। हम समझे कि जेल टूट गयी। स्टेट का एक पालिसा था कि प्रजामण्डल म भाग लन हमने भी अपने-अपने टामलोट और थालियां इस आशा वाले युवकों को इतना तंग किया जाय कि वे आन्दोलन के साथ उहालनी शरू कर दी कि शायद छत की से दूर ही रहें।
खपरैल टूट जाय और हम लोग यहां से भागें। जेल इस नीति के तहत पहले तो हमें काफी यातनाएं के पहरेदार भी यही समझे कि जेल टूट गयी है, वे दी गयीं। फिर होल्कर स्टेट के तत्कालीन होम मिनिस्टर भाग खड़े हुए। आनन-फानन में यह बात सब ओर श्री हर्टन स्वयं गरोठ आये। उस समय मैं अकेला बन्दी फैल गयी कि जेल टूट गयी। फोन खड़खड़ाये गये। था। गरोठ का अनुभव बड़ा दुःखद था। पता नहीं क्यों, आधे घण्टे में प्राइम मिनिस्टर, होम मिनिस्टर को खबर जनता में उन दिनों घट रही इन घटनाओं के प्रति कोई लग गयी। मिलिट्री आ गयी। पूछताछ चालू हुई। पहली चेतना नहीं थी। अधिकारियों से किसी ने इस घटना बैरक में आकर पूछा, कि क्या बात है, हमने कहा के बारे में पूछताछ नहीं की। तो श्री हर्टन ने सब कि दूसरी बैरक वालों से पूछो, दूसरी बैरक वालों ने हथकड़ी वगैरह हटवाईं। हथकड़ियां आदि हटवाकर कहा कि हम तो मजे में हैं, तीसरी बैरक वालों से
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पूछो। तीसरी बैरक वालों ने कहा कि यहां तो सब ठीक है, चौथी बैरक वालों से पूछो। चौथी बैरक वालों से पूछा, उन्होंने कहा कि कण्डील गिर गया था इसी से हो हल्ला हुआ था। सबेरे पूरे शहर में पेम्पलेट्स बंटे कि सरकार कैसे बेवकूफ बनी।
जेल में हमारे पत्रों का आना-जाना निरन्तर चलता रहता। घर से जो भोजन आता था, उसमें रोटियों के भीतर संदेश आते थे। रोटी इस ढंग से बनाई जाती थी कि उसके पुड़ में संदेश होता था। उस जमाने में भी ऐसी कलाकारियां चलती थीं। हम तीन-चार महीने तो इन्दौर सेन्ट्रल जेल में रहे, दो-तीन महीने गरोठ जेल में रहे और फिर भानपुरा जेल में, इस तरह कुल मिलाकर आठ महीने 6 दिन जेल में रहे ।
गरोठ में उस समय डी0 आई0 जी0 दांतरे थे। उसी समय के आसपास की बात है कि एक जुलूस हम लोगों ने निकाला। हमने अपने मकान पर तिरंगा झण्डा फहरा दिया। इसकी खबर डी0आई0जी0 दांतरे को मिल गयी। वे सदल-बल गरोठ से भानपुरा आये। उन्होंने अपने साथ आये जवानों से तिरंगा झण्डा उतारने के लिये कहा। उस समय सैकड़ों लोग बाहर खड़े झण्डा उतारने दृश्य को देख रहे थे। जैसे ही वे लोग झण्डे तक पहुंचे, झण्डे को अचानक तब एक चील लेकर उड़ गयी। सारे लोग तालियां बजाने लगे। सिटपिटाये डी0आई0जी0 ने तब हुक्म दिया कि -' झण्डा ही नहीं है तो जिस डण्डे पर झण्डा था, उसी को सबूत के तौर पर जब्त करो।'
हमें किसी तरह कॉलेज में प्रवेश मिला । सन् 43 की बात है यह। हमने कॉलेज की सोशल गैदरिंग शुरू की, यह गैदरिंग 41 के बाद बन्द हो गयी थी। इसके लिये हमने महान् वैज्ञानिक सर सी0वी0रमन को आमंत्रित किया। सर सी0वी0 रमन के आने की खबर पाकर महाराजा होल्कर भी इसमें
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आने को सहमत हो गये। उन्होंने कॉलेज में एक स्वीमिंग पूल के लिये 41 हजार रुपये का दान भी दिया था। उसी का उद्घाटन करना था। तो सोशल गैदरिंग के पहले दिन स्वीमिंग पूल का उद्घाटन हुआ। इसमें हमने भारतमाता की वन्दना के नाम से बड़ी तरकीब से 'वन्दे मातरम्' शुरू करवा दिया। हम कॉलेज के यूनियन अध्यक्ष और प्रिंसिपल साहब यह कार्यक्रम शुरू कराकर एक कमरे में आकर बैठ गये। इससे महाराजा होल्कर चिढ़ गये। कार्यक्रम छोड़कर बाहर आये। हमें ढुंढवाया। मिलने पर बड़े गुस्से से बोले कि आपने बगावत की है। हमने कहा कि हम लोग तो इन्तजाम में लगे थे, हमें मालूम ही नहीं कि क्या हुआ। उन्होंने कहा कि 'वन्दे मारतम्' का गायन हुआ और आपको पता नहीं। हमने कहा कि हमने कहीं लिखा नहीं कि 'वन्दे मातरम्' होगा फिर भी हम इसकी पूरी जांच करवा लेते हैं, पता लगा लेते हैं। किसी प्रकार महाराज साहब को शान्त किया। वे चल दिये हम लोग वापस आ गये।
सन् 46 में आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस थी, प्रजामण्डल की, उदयपुर में। इसमें पं० जवाहरलाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला आये थे। इस कांफ्रेंस से लौटकर आ रहे थे, हम लोग रतलाम में रेलवे के एक डिब्बे में जाकर बैठ गये । गाड़ी चलने के पांच सात मिनिट पहले ही एक व्यक्ति ने इस डिब्बे पर 'रिझर्व फार पोस्ट ऑफिस' चॉक से लिख दिया और कहा कि उतरो। हमने कहा कि हम नहीं उतरेंगे, आखिरकार डेढ़ घण्टा गाड़ी लेट होने के बाद हम सबको गिरफ्तार करके थाने में ले जाकर बन्द कर दिया। जैसे ही रतलाम में लोगों को खबर लगी वैसे ही डॉ० देवी सिंह आदि आये। उन्होंने हमारी जमानत ली तथा शाम को सात बजे हम लोग इन्दौर पहुंचे। मुकदमा चला। यह मुकदमा रेसीडेंसी में 9-10 महीने चला पर रेलवे को बाद में माफी मांगनी पड़ी।
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प्रथम खण्ड
339 हमारे आन्दोलन में भाग लेने की वजह से हमारे रहा, तभी आप जेल भी गये। बाद में आप जिला परिवारजनों को काफी परेशानी उठानी पड़ी। काफी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। आपके पूर्वजों ने श्री आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा।" कुण्डलपुर जी, श्री नैनागिरि जी एवं दमोह में मन्दिरों
___1948 में आपने एल0एल0बी0 की परीक्षा उत्तीर्ण का निर्माण कराकर पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की, किन्तु सजायाफ्ता होने से वकालत की सनद नहीं के साथ गजरथ भी चलवाये थे। मिली। 27-10-72 को प्रसारित रेडियोवार्ता में जब सेठ लालचंद जी धार्मिक अनुष्ठानों में नियम से आपसे प्रश्न किया गया कि - 'आजादी प्राप्ति के समय भाग लेते थे। श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर के अध्यक्ष पद आपको कैसा महसूस हुआ' तब आपने कहा था कि- पर 15 वर्षों तक रहकर आपने क्षेत्र की सेवा की 'आजादी प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य बन चुका था, थी। आपके सहयोग से दमोह जिला में कई संस्थायें अतः इस लक्ष्य की प्राप्ति पर आनन्दातिरेक हुआ और चल रही हैं। आपने श्री वर्णी दि0 जैन पाठशाला को मैं अनुभव करने लगा कि मेरी व मेरे देशवासिसों की 60 एकड़ भूमि देकर उसके सञ्चालन में लाखों प्रत्येक श्वास अब स्वतंत्र है।'
रुपयों का दान दिया था। ____आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-218 (2) पूज्य श्री वर्णी जी महाराज, 'जिन्होंने आजादी स्व0 स0 म0, पृष्ठ-62 (3) रेडियो वार्ता (4) म0 स0, पृष्ठ- के लिए अपनी चादर भी दे दी थी,' के दमोह ब 53 (5) नई दुनिया, (इन्दौर) अगस्त 1987 तथा 9 अगस्त 1997 (6) चिन्तन सुधा (7) जिनवाणी
पदार्पण के समय आपने उनके उपदेशों से प्रभावित
होकर उस समय एक मुस्त 50 हजार रुपये का दान नगर सेठ श्री लालचंद जैन
दिया था। आपकी धर्मपत्नी भी उदार एवं दानशीला राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले पहले देश थीं। श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर की 20 एकड़ जमीन, फिर समाज' के सिद्धांत को अपनाने वाले थे। श्री जो फतेपर के बगीचे के नाम से जानी जाती है, को लालचंद जैन ऐसे ही व्यक्तित्व थे, वे जहाँ राष्ट्रीय आपने ही दान में दिया था। उस बगीचे से क्षेत्र को आन्दोलन में जेल गये वहीं उन्होंने जैन संस्थाओं को आज भी हजारों रुपयों की वार्षिक आमदनी है। भी भरपूर दान दिया। शुभ्र खादी का कुर्ता, बंद गले
आ0- (1) प0 जै0 इ0, पृष्ठ-367 (2) श्री संतोष का कोट और ऊँची पट्टी की खादी की टोपी लगाये
सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय सेठ लालचंद जी प्रायः दमोह की हर सामाजिक सभा में सभापति बने दिखायी देते थे। जब जनता कांग्रेस
श्री लालचंद सोनी की सभाओं में आने से भी डरती थी और मजाक मदनगंज (किशनगढ़) राजस्थान के श्री लालचंद उड़ाती थी तब भी सेठ साहब तखत पर बैठे भाषण सोनी नागरिक अधिकारों के लिए आर्य समाज के देते रहते थे।
हैदराबाद सत्याग्रह में किशनगढ़ से सर्वप्रथम सत्याग्रही ____ आपका जन्म दमोह (म0प्र0) के सुप्रसिद्ध बनकर गये थे। स्थानीय 'उपकारक मण्डल' के द्वारा सेठ घराने में पिता श्री नाथूराम जी के यहाँ हुआ था। आपने राजपूताना के भंयकर अकाल में जो सराहनीय धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सेवा की थी, वह इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगी। आप निपुण थे और सिद्धान्त के पक्के थे। 1932 में आपने ही बाद में इस 'उपकारक मण्डल' का सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी ने जब असहयोग रूप परिवर्तन करके उसे प्रजामण्डल का रूप दे आन्दोलन चलाया, तब उसमें आपका विशेष योगदान दिया था।
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340
स्वतंत्रता संग्राम में जैन ___1939 में आपको राजनैतिक प्रवृत्तियों के कारण निवासस्थान से ही होता था। आपका कार्य पुलिस से डेढ़ वर्ष की कैद तथा जुर्माने की सजा हुई थी, मिलकर रहना और यह पता लगाना था कि आज जुर्माना अदा न करने के कारण आपको 6 माह जेल किसके पकड़े जाने की आशा है व कहाँ तलाशी में और रहना पड़ा। 1942 के आन्दोलन में आप होने वाली है। अजमेर में सत्याग्रह करने पर गिरफ्तार कर लिये जो सेनानी जेल चले जाते उनके घरों की गये और डेढ़ वर्ष की सजा हुई, लेकिन बीमारी के खान-पान सहायता की जिम्मेदारी श्री प्रेमचंद 'उस्ताद' कारण आपको सजा पूरी होने से पहले ही छोड़ के साथ श्री लीलधर सराफ और श्री राजाराम बजाज दिया गया। जेल में आपको बहुत यातनायें और मार की ही रहती थी। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण तक सहनी पड़ी थी।
म0प्र0 शासन ने आपको स्वतंत्रता सैनानी का ताम्रपत्रादि आपने हरिजन पाठशाला का संचालन भी किया। प्रदान कर सम्मानित किया था। 2-8-80 को आपका 1946 ई0 के फाल्गुन मास में आपके पिता सेठ निधन हो गया। नेमीचंद जी सोनी ने मन्दिर निर्माण करके आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 स0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-90 विशाल आयोजन के साथ पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा भी (2) श्री संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय कराई थी। आ0-(I) जै0 स0 रा) अ0, पृष्ठ-69
पंडित लोकमणि जैन श्री लीलाधर सराफ
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, जैन दर्शन के विद्वान्
और समाज सुधारक पं0 लोकमणि जैन का जन्म व्यायाम के शौक ने जिन्हें आजादी का दीवाना
ग्राम-हिनौतिया (म0प्र0) में बना दिया, ऐसे श्री लीलाधर सराफ, पत्र-श्री मल्थूराम
पिता आशाराम जी के घर सराफ का जन्म दमोह (म0प्र0) में 1895 में हुआ।
1890 में हुआ। आपका आपने जैन और अजैन सभी को श्री बाहुबली
प्रारम्भिक अध्ययन जैन व्यायामशाला का सदस्य बनाया। यहाँ तक कि श्री
बोर्डिंग हाऊस, जबलपुर में गजाधर प्रसाद मास्टर को प्रेरणा देकर लाठी, लेजिम,
हुआ। बाद में आपको तलवार, भाला, पटा, बनेटी और मलखम्म के खेल
वाराणसी के प्रसिद्ध श्री सीखने के लिए श्री हनुमान व्यायामशाला. अमरावती
स्याद्वाद महाविद्यालय में भेज दिया गया, जहाँ से भिजवाया और लौटने पर बाहुबली व्यायामशाला के
आपने मध्यमा, शास्त्री, आयुर्वेदरल और वैद्यविशारद सभी सदस्यों और अपनी लड़की सहित बहुत सी
की उपधियाँ प्राप्त की। जैन दर्शन के गहन अध्ययन लड़कियों को लेजिम आदि की ट्रेनिंग दिलवायी।।
से स्याद्वाद विद्यालय ने इन्हें खतौली, दिल्ली, मेरठ 1942 के आन्दोलन में आपने बाहुबली
एवं मोरेना आदि स्थानों पर भेजा। व्यायामशाला के सदस्यों को झौंक दिया। बहुत से
मोरेना में पं0 गोपालदास जी बरैया आपके गुरु पकड़े गये और बहुत से छिपकर बुलेटिन छापने का थे। उन्हीं दिनों गोटेगांव निवासी मुलायमचंद जी काम इनके निवासस्थान पर करते रहे। परन्तु पुलिस
चौधरी और दरबारी लाल जी बमोरहा मोरेना पहुँचे। को इसकी अंत तक भनक भी न हुई। दमोह में हान वहाँ पं0 जी की विलक्षण प्रतिभा को देखकर इन वाले अनेक क्रांतिकारी कार्यों का सञ्चालन आपके दोनों महानभावों ने पं0 जी को गोटेगांव की पाठशाला
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प्रथम खण्ड
341
में अध्यापन हेतु आग्रह किया। पं0 जी ने उनका मिश्र और रघुनाथ सिंह किलेदार से आपका निकट आग्रह स्वीकार कर गोटेगांव की पाठशाला में 1942 सम्पर्क था। तक अध्यापन किया।
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-154 आप 1921 से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय (2) ज0 स0
(2) जै0 स0 रा0 अ0 (3) प्रभावना-स्मारिका (श्री पंचकल्याणक
___ एवं गजराथ महोत्सव, गोटेगांव, वर्ष 1989 के अवर र पर प्रकाशित) हो गये थे। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने भाग लिया तथा 4 माह का कारावास काटा। कांग्रेस
श्री वृन्दावन इमलिया में अपनी बढ़ती हुई गतिविधियों के कारण ही इन्हें प्रथम पंक्ति के जिन रणबांकुरों ने आजादी के पाठशाला का कार्य छोड़ना पड़ा। 1942 के भारत संघर्ष में सब कुछ होम कर दिया था, उनमें श्री छोड़ो आन्दोलन में अपनी नेतृत्वशील भूमिका के वृन्दावन इमलिया का नाम विशेष श्रद्धा और सहानुभूति कारण इन्हें दो वर्ष का कारावास हुआ, जो आपने के साथ लिया जाता है। आपका जन्म 1912 में जबलपुर जेल में काटा। पंडित जी अपनी स्पष्टवादिता ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। एक बार आप अपने बड़े श्री परमानंद जैन था। 1930 में नमक सत्याग्रह तथा पुत्र को गोद में लिए तख्त पर बैठे थे, तभी घोड़े पर नशाबंदी एवं विदेशी वस्त्र बहिष्कार आंदोलन में आपने सवार होकर नरसिंहपुर जिले का तत्कालीन अंग्रेज भाग लिया और 1 वर्ष की कैद पाई। सत्याग्रह में कलेक्टर मि0 बोर्न सामने से गुजरा, पं0 जी ने शामिल हो आप देहली जैसे केन्द्रीय स्थल में भी सतत शिष्टाचारवश उसे अभिवादन किया, मगर उनका संघर्षरत रहे। बडा पुत्र निश्चिंत मन से बैठा रहा। इस पर अंग्रेज जलस और हडतालों से अपना जीवन-चरित कलेक्टर ने किंचित् व्यंग्य से कहा, 'क्यों पंडित
डित रचने के कारण देहली, उन्नाव व ललितपुर आदि की
न तमने अपने लडके को नमस्ते करना नहीं सिखाया।' सोमानी
सिखाया।' जेलों में इमलिया जी को रहना पड़ा । 1932 में जेल इस पर पं0 जी ने बिना हतप्रभ हुए कहा 'सिखाया में
में आप 6 माह रहे। कांग्रेस के वीर सिपाही इमलिया तो है पर वह उचित व्यक्ति को ही नमस्ते करता है।'
जी बयालीस के आंदोलन के सहयोगी रहे हैं। घोर और कलेक्टर भन्नाता हुआ चला गया।
आर्थिक कष्टों में भी आपने अपना संपूर्ण जीवन आजादी के बाद पं0 जी कांग्रेस पार्टी से जुड़े
साम्प्रदायिक सद्भाव, खादी प्रचार तथा सामाजिक रहे, किन्तु चुनावी राजनीति से दूर रहे। आप कई
कुरीतियों के विरोध में आवाज उठाने में लगा दिया। बार जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष रहे और 85
आप जिला कांग्रेस के सदस्य और मंत्री भी रहे हैं। वर्ष की उम्र में जनता शासन में इंदिरा गांधी की
आपके अनुज श्री सुखलाल इमलिया (इनका परिचय गिरफ्तारी के विरोध में चल रहे आन्दोलन के संदर्भ
इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) भी जेल गये। में जेल गये।
आ0- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-16 विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में जैन धर्म विषयक (2) डॉ0 बाहबलि जैन द्वारा प्रेषित परिचय पं0 जी के लेख प्रकाशित होते रहे हैं। जैन समाज की कुरीतियों पर भी आपने साहसपूर्ण ढंग से कठोर श्री वामनराव जैन (खड़के) प्रहार किया। कुछ समय तक आपने जैन गजट में श्री वामनराव खड़के का जन्म एक जुलाई 1921 सम्पादन का कार्य भी किया। अपने समय के को प्रभातपट्टन (म0प्र0) में हुआ था। आपके पिता राजनीतिक नेता डॉ निरंजन सिंह, पं0 द्वारका प्रसाद का नाम श्री राजाराम जैन था। आपकी माता जी ने
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन बचपन से ही आपको जैनध
श्री विजयकुमार जैन म के आदर्श सत्य, अंहिसा, राष्ट्रसेवा और सामाजिक कार्यों में गहरी अभिरुचि अस्तेय की शिक्षा प्रदान की वाले श्री विजयकुमार जैन, पुत्र-श्री दलीपचंद जैन का थी। आप बाल्यकाल से ही जन्म 25 जन 1923 को हुआ। आपके पिता भी जेल कांग्रेस के प्रति आकर्षित रहे यात्री रह हैं। 1942 में विजयकुमार जी एस0 एन0 हैं। क्योंकि आपके पिताजी भी जी0 हाईस्कल, होशंगाबाद में ग्यारहवीं के छात्र थे,
निष्ठावान् कांग्रेसी थे। तभी आन्दोलन में सक्रिय हो गये और स्कूल छोड़ आपकी शिक्षक के रूप में प्रथम नियुक्ति दिनांक
- दिया। 15 अगस्त 1942 को आप हरदा में गिरफ्तार 3-7-1939 में तिवरखेड़ ग्राम में हुई थी। लेकिन । कुछ समय के पश्चात् ही पूज्य महात्मा गांधी के कर लिये गये। पहले आप अन्डर ट्रायल कैदी के रूप आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। आपने शिक्षण में रहे फिर 6 माह की सजा आपको सुनाई गई। कार्य से त्याग पत्र देकर दिनांक 22-5-1941 को 15-3-1943 को आप जेल से रिहा हुए। व्यक्तिगत सत्याग्रह तिवरखेड़ ग्राम से किया था। अनेक आ0- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-5, पृष्ठ-27 तथा 348 स्थानों पर आजादी का शंखनाद करते हुए जनजागृति
7 (2) स्व। स) हो0, पृष्ठ-118 करने तथा ब्रिटिश शासन को बदलने के अभियोग । में इन्हें दिनांक 25-9-1941 से नौ माह का कारावास
श्री विजयचंद जैन हुआ था।
विधि स्नातक श्री विजयचंद जैन का जन्म 1916 आजादी के बाद दिनांक 23-8-1948 स पुनः में जयपर (राज.) के एक सम्पन्न जैन परिवार म आपकी नियुक्ति शासकीय बुनियादी माध्यमिक शाला, आमला में हुई। तब से आपका शिक्षकीय जीवन पनः श्री नाथूलाल जैन के घर हुआ। 1935 से वे राष्ट्रीय प्रारम्भ हुआ, आपने आमला, भौंसदेही, रेलवे प्रवृत्तियों में भाग लेने लगे तथा प्रजामण्डल के जनपदशाला आमला और मुलताई में शिक्षकीय कार्य स्वयंसेवक और बाद में कमाण्डर बने। 1939 में उन्हें किया है। दिनांक 17-12-1972 को महामहिम इस कारण अपनी रेलवे की नौकरी छोडनी पड़ी। 1942 माननीय राष्ट्रपति जी द्वारा आपको "राष्ट्रीय पुरस्कार" के भारत छोडो आन्दोलन के समय प्रजामण्डल की प्राप्त हुआ था। आप दिनांक 30-6-1979 को
नीतियों से असन्तोप होने पर कार्यकर्ताओं ने 'आजाद सेवानिवृत हुए हैं।
मोर्चा' बनाया। श्री जैन उसके कार्यकारिणी सदस्य थे। आपने जिन संस्थाओं में कार्य किया उनमें सामान्य सुधार लाने के लिए अपने-आपको समर्पित कर दिया। 9 दिसम्बर 1942 को मोर्चे की कार्यकारिणी के सभी आपने अपने निजी आदर्श द्वारा बच्चों के चरित्र निर्माण सदस्यों के साथ आप गिरफ्तार कर लिए गये और तथा स्वास्थ्य विकास के लिए एक आदर्श वातावरण भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत आपको एक वर्ष की बनाया था। 15-11-92 को माननीय दिग्विजय सिंह, सजा हई, परन्त हाईकोर्ट के निर्णयानुसार ) माह बाद अध्यक्ष, म0प्र0 कांग्रेस कमेटी (इ) वर्तमान मुख्यमंत्री
ही छोड़ दिया गया। श्री जैन प्रदेश कांग्रेस कमेटी तथा म0प्र0) ने शाल ओढ़ाकर, तिलक लगाकर आपका
जिला कांग्रेस की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। सम्मान किया था।
1955 में आप राजस्थान वित्त निगम में सचिव के आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृ0-175 (2) स्व0 प0 (3) महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्रदत्त प्रमाणपत्र एवं पद पर रह। अन्य (4) अनेक प्रमाणपत्र
आ)-(1) रा0 स्व) से), पृष्ठ-588
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FE
हुए थे।
प्रथम खण्ड
343 श्री विमलकुमार चोरड़िया गया तथा आंदोलनकारियों पर लाठी प्रहार कर जुलूस पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री विमलकुमार चोरडिया बिखेर दिया गया। उसमें अनेक लोग घायल हुए। बाद का जन्म 15 अक्टूबर 1924 को भानपुरा (म0प्र0) में लालचंद जी रिहा हो गये। सब लोग इन्दौर गये
में हुआ। आपके पिता श्री व वहां सुभाष चौक में प्रदर्शन किया। श्री विमलकुमार मन्नालाल जी चोरडिया व चोरडिया भी उसमें शामिल हुए। जयेष्ठ भ्राता श्री लालचन्द 1944 में प्रजामण्डल के 5वें अधिवेशन में जी चोरड़िया (इनका परिचय चोरड़िया जी शामिल हुए। आप 1946 में उदयपुर के इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) आल इण्डिया स्टेट पीपल्स कान्फ्रेन्स में भी शामिल भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े हुए तथा वहां राष्ट्रीय स्तर के अनेक नेताओं से आपका
परिचय हुआ। उदयपुर से लौटते हुए (इन्दौर जाते होल्कर स्टेट में कांग्रेस की प्रजामण्डल संस्था समय) रतलाम रेलवे स्टेशन पर श्री बी0व्ही द्रविड, सक्रियता से कार्य कर रही थी व सारी स्टेट में श्री शांतिलाल चेलावत, श्री नेमीचन्द चौधरी तथा श्री जगह-जगह प्रजामण्डल की शाखाएं खोली जा रही लालचन्द चोरडिया सहित इन्हें गिरफ्तार कर लिया थी। गरोठ जिले में प्रजामण्डल की स्थापना करने के गया। इन्दौर रेसीडेन्सी मजिस्टेट की अदालत में मकदमा लिए माननीय बैजनाथ महोदय, श्री हजारीलाल जी चला। श्री भरूचा व श्री चितले ने पैरवी की। गरोठ जड़िया, श्री रामेश्वर दयाल तोतला आदि भानपुरा आये से श्री बापलाल चौधरी (इनका परिचय इसी ग्रन्थ में व भानपुरा में श्री मन्नालाल जी चोरड़िया को अध्यक्ष देखें), जो जिला अध्यक्ष थे. इन्दौर आये तथा सारी बनाकर प्रजामण्डल की शाखा स्थापित की। उस समय
___ व्यवस्थाएं जुटाईं। बाद में इस मुकदमे में सब बरी हो श्री विमलकुमार की आयु 14 वर्ष की थी। इनके घर
गये। पर सदा प्रजामण्डल की बैठकें होती थीं व अनेक वरिष्ठ नेतागण इनके यहां ठहरते थे। इस कारण श्री
श्री विमलकुमार चोरड़िया स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु चोरडिया भी आंदोलन में जुड़ते गये। आपका अध्ययन
सदा प्रयत्नशील रहे तथा सदा राष्ट्रीय धारा से जुड़े
रहे। आपने अभिभाषक का व्यवसाय अपनाया। 1952 इन्दौर के प्रसिद्ध होल्कर कालेज में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में श्री विमल
से 62 तक आप म0प्र0 विधानसभा में विधायक रहे। कुमार चोरडिया, श्री लालचन्द चोरडिया, श्री प्रद्युम्न
1962 से 1968 तक आप राज्यसभा के सदस्य कुमार त्रिपाठी, श्री डी0ओ0 जोशी आदि इन्दौर से रहे। वहाँ पब्लिक अन्डरटेकिंग व अन्य महत्त्वपूर्ण भानपुरा आये व प्रजामण्डल के निर्देशानुसार प्रदर्शन कमा
न
कमेटियों के सदस्य रहे। बाद में आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक किया। बाजार में जलस निकाला जा रहा था। श्री संघ से जुड़ गये। धार्मिक क्रियाकलापों में आपकी गहरी लालचंद चोरडिया नेतत्व कर रहे थे। लहारों की कइया रुचि है। संगीत और सत्संग में भी आपकी अभिरुचि के निकट पुलिस ने सबको घेर लिया। सब इंसपेक्टर है। आपने जैन धर्म पर लगभग 10 पुस्तकें लिखी हैं। श्री मिश्रा ने दलबल सहित जलस को रोककर 'डिस्पर्स' सम्प्रति आप राजनीति से सन्यास लेकर साहित्य सृजन (बिखर जाओ) का आदेश दिया। आंदोलनकारी डटे में संलग्न हैं।
आ0-(1) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-64-66 (2) Rajya रहे। श्री लालचंद चोरडिया को गिरफ्तार कर लिया Satha-Who's who, 1966 (3) अनेक प्रमाण पत्र।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री विरधीचंद गोयल
वहीं सभी लोगों के बीच में गांधी जी के स्वराज्य पर पेशे से वकील श्री विरधीचंद गोयल का जन्म भी चर्चा होती थी, इस कारण विश्वराम जी को बचपन 5 जुलाई 1923 को ग्राम धूमा (सिवनी) म0 प्र0 में से ही देशप्रेम की बातें सुनने को मिली।
हुआ। आपके पिता का नाम आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव से । श्री हजारी लाल था। आपने किलोमीटर दूर धनगुवां गांव के स्कूल में हुई, उसी जबलपुर में विधि स्नातक स्कूल में आपकी मित्रता श्री नरेन्द्र कुमार विद्यार्थी तक शिक्षा ग्रहण की। (इनका विस्तृत परिचय इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें।) विद्यार्थी जीवन से ही आप से हई। श्री विश्वराम जैन ने लिखा है कि 'मैं तो आगे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय न पढ़ सका पर विद्यार्थी जी विभिन्न विद्यालयों में
हो गये थे। विद्यार्थी कांग्रेस के पढते हये बनारस पहुंच गये। जब भी वह छुट्टियों संगठन में आपने सहयोग किया था। 1941 में तिलक में घर आते या मैं उनसे मिलने जाता. देश की आजादी भूमि तलैया, जबलपुर में आपने सर रिजनाल्ड मैक्सवे के संबंध में हम ढेर सारी बातें करते। उनकी बातों का पुतला जलाया था। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से एवं जो किताबें उन्होंने मुझे पढाई इन सबसे लगने में आप भूमिगत रहकर जबलपुर, मण्डला, छिन्दबाडा लगा कि 'देश की आजादी के लिये प्राण देना पड़े आदि में तोड़-फोड़ का कार्य करते रहे, अन्ततः 26 या जेल में मरना पडे तो भी जीवन सार्थक है।" सितम्बर 1942 को गिरफ्तार कर लिये गये और 4 परिणामत: आपने अपने साथियों मई 1943 तक मण्डला, दमोह एवं जबलपुर म रामसहाय तिवारी, श्री बाबूलाल चतुर्वेदी, रामशिकन नजरबंद रहे। सिवनी तहसील भूदान समिति के आप जी आदि के साथ आन्दोलन में भाग लिया। देशप्रेम संयोजक थे। आपका स्वभाव बडा सरल एवं मद था।
की भावना मन में तो बचपन से ही थी लेकिन अल्प बीमारी के कारण 5 सितम्बर 1993 को आपका
आंदोलन के माध्यम से सक्रियता आई। अनेक बार सिवनी में निधन हो गया।
अंग्रेजी सरकार का विरोध करने पर पुलिस द्वारा आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-239 (2)
प्रताड़ना भोगनी पड़ी, जेल में रहना पड़ा। प्रजामंडल श्री नरेश दिवाकर द्वारा प्रेषित परिचय।
आंदोलन से भी आप जुड़े रहे। अनेक बार भूमिगत श्री विश्वराम जैन
भी होना पड़ा। श्री विश्वराम जैन का जन्म 30 अक्टूबर 1924 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आपकी देश सेवा में को ग्राम पिपरिया (छतरपुर)
कोई कमी नहीं आई। जनसेवा आपका धर्म बन गया। म0प्र0 में हुआ। आपके पिता अपने क्षेत्र में आपके प्रति जनता में एक सम्मान की का नाम श्री महाल जन भावना है। आयुर्वेद के प्रेमी होने के कारण आप अपने था। आपके पिता लोक नरखों से हजारों लोगों की प्रतिवर्ष नि:शुल्क सेवा करते संगीत के गायक थे। रात में हैं। आप संगीत प्रेमी हैं, साथ ही ज्योतिष के भी जानकर जब गांव के लोग फाग भजन हैं। अपने ग्राम में सैकड़ों वृक्षों को लगाना आपके प्रकृति आदि का आनंद उठाते थे, तब प्रेम का परिचायक है। 1975 से 90 तक बीस सूत्रीय
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प्रथम खण्ड समिति के माध्यम से अनेक-विकास कार्य व गरीबों प्रजामण्डल की स्थापना में श्री कटलाना की सहायता आपने की।
का महत्त्वपूर्ण योगदान था। श्री गौतम शर्मा, आ0- (1) श्री सुरेन्द्र कुमार द्वारा प्रदत्त छतरपुर जिले के डॉ. मिलिन्द, श्री हरिभाऊ उपाध्याय आदि को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची (2) स्व) प०
अनेक बार सीतामऊ लाकर उनकी सभाएं आपने ही श्री वीरचंद जैन
करवाई थीं। दो बार जेल यात्रा करने वाले कटनी कटलाना जी ने हरिभाऊ उपाध्याय के समक्ष जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री वीरचंद जैन पत्र-श्री अनक स्थानों पर रहकर सेवाकार्य एवं आंदोलन-प्रदर्शन वंशगोपाल का जन्म 1917 में शहडोल (म0प्र0) में।
में में शामिल होकर अपनी निष्ठा व कर्मशीलता का हुआ। मिडिल तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन 1932 से
परिचय दिया। सीतामऊ स्टेट में इनकी गतिविधियां ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये थे। 1941 के
जब अधिक तेज हो गई तब इन्हें अपने भाई श्री व्यक्तिगत सत्याग्रह में आप गिरफ्तार हुए तथा नागपुर
कन्हैयालाल कटलाना सहित स्टेट से निर्वासित कर
दिया गया। सीतामऊ से निर्वासित होकर कटलाना में 4 माह का कारावास भोगा। 1942 के भारत छोड़ो
बन्धु मन्दसौर आ गये व मन्दसौर के आन्दोलन से आन्दोलन में आप पुन: गिरफ्तार हुए एवं | वर्ष 3
जुड़ गय। आर्थिक रूप से आपकी स्थिति बिगड़ती माह का कारावास जबलपुर जेल में भोगा। दुकान
गई, जो अन्त तक सुधार पर नहीं आ सकी। फिर बंद हो जाने से आर्थिक कठिनाइयों का सामना भी
भी आप निराश नहीं हुए। 1942 के भारत छोड़ा आपको करना पड़ा।
आन्दोलन में 18 माह का कारावास आपको मंगावली आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-108
जेल में भोगना पडा। जेल से आने के बाद भी आप (2) जै) स) रा) अ)
आन्दोलन में सक्रिय रहे। श्री शंकरलाल कटलाना
___4 जुलाई 1982 को कटलाना जी का देहावसान शंकर के समान प्रचण्ड शक्ति-सम्पन्न श्री हो गया। शंकरलाल कटलाना का जन्म 1907 में सीतामऊ आ0- (1) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-138,139 (2) म) स्टेट [मन्दसौर (म0प्र0) ] में हुआ। इनके पिता श्री प्र0 स्व। सै0. भाग-1, पृष्ठ-219 मोतीलाल कटलाना स्वयं राष्ट्रीय विचारधारा के व्यक्ति थे, अत: उनके दोनों पुत्र श्री शंकरलाल कटलाना
श्री शंकरलाल जैन तथा श्री कन्हैयालाल कटलाना (इनका परिचय अन्यत्र
श्री शंकरलाल जैन, पुत्र- श्री गुलाबचंद जैन का
जन्म 1915 में ग्वालियार (म0 प्र0) में हआ। दिया गया है) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से प्रभावित । होकर स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु आंदोलन के मार्ग पर चल
आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की और 1937
से राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये। 1942 के पड़े। कटलाना जी व इनके सहयोगीगण पूरे जोश के
भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया, गिरफ्तार साथ जुलूस निकालते थे। नेतृत्व क्षमता के लिए श्री
हुए और 30 अगस्त 1942 से 29 जून 1943 तक कटलाना प्रसिद्ध थे। राजमहलों पर तथा सरकारी
करीब ।। माह की सजा ग्वालियर और सवलगढ़ भवनों पर तिरंगा लगाना, नारे लगाना, प्रभातफेरिया जेल में काटी। निकालकर जनजागृति करना इस समय आंदोलनकारियों
आ0- (1) म) प्र. स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-253 के प्रमुख कार्य थे।
(2) जै0 इ), पृष्ठ-85 (3) जै0जे0यु०, पृष्ठ-228
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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री शंकरलाल उर्फ ज्ञानचंद जैन अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में तथा 1942 के
श्री शंकरलाल उर्फ ज्ञानचंद जैन, पुत्र- श्री भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया एवं दुलीचंद का जन्म 14 जनवरी 1910 को सिहोरा अर्थदण्ड पाया। (म0प्र()) में हुआ। 1930 के जंगल सत्याग्रह में आप
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-90 सिहोरा से गिरफ्तार होकर जबलपुर केन्द्रीय जेल में
श्री शंकरलाल जैन रहे। जेल में आपके साथी श्री कन्हैयालाल, नन्ही लाल गाडरवारा, जिला- नरसिंहपर (म0प्र0) के
तिवारी व फूलचन्द बढ़ई श्री शंकरलाल जैन, पुत्र-श्री मानकलाल का जन्म आदि थे। आप 11-8-1930
1 1919 में हुआ। 1942 के से 10 11-1930 तक जेल
भारत छोड़ो आन्दोलन में 6 में रहे। 1932 में अखिल
माह का कारावास आपने भारतीय कांग्रेस कमेटी की
भोगा। आप मूलतः गौरझामर, मीटिंग धर्मतल्ला में थी जिसमें
तहसील- रहली, जिला-सागर आप सिहोरा से गये थे, सभा
के निवासी हैं। आप की अध्यक्षा श्रीमती नलनी सेनगुप्ता थीं। अंग्रेज सरकार
16-10-42 से 31-3-43 ने इस सभा को गैर कानूनी घोषित कर दिया, इस तक सागर जेल में रहे और अपने अच्छे आचरण के कारण आप सभा स्थल से गिरफ्तार कर लिये गये कारण 15 दिन पूर्व ही मुक्त कर दिये गये। एवं न्यू प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता में 20 दिन आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-159 बंद रहे।
(2) प्रमाण पत्र सिहोरा में आपका मकान झण्डा बाजार के पास
श्री शांतिलाल आजाद था, घर पर कांग्रेस की बैठकें होती थीं। आपने स्वर्गीय
श्री शांतिलाल आजाद का जन्म 4 मई 1926 काशी प्रसाद पांडे, भूतपूर्व विधानसभा अध्यक्ष म0प्र0 को रामपुरा, जिला-मन्दसौर (म0प्र0) में हुआ। इनके के साथ कांग्रेस का कार्य किया। महात्मा गांधी का पिता मोतीलाल जी अग्रवाल स्वयं भी राष्ट्रीय विचारध जब देश का दौरा हुआ उस समय वे सिहोरा भी गये रा के व्यक्ति थे। यही कारण था कि उनका पूरा घर थे तब आपने हरिजन फंड हेतु चंदा एकत्र किया था राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत होता गया। एवं रुपया 1100/- की थैली भेंट की थी एवं उनके
आजाद जी प्रारम्भ से ही उग्र स्वभाव के द्वारा सभा स्थल पर नीलाम किए सामान में से मानपत्र आंदोलनकारी थे। अनेक बार इन्होंने पुलिस के रखने का चाँदी का डिब्बा खरीदा था। सम्प्रति आप समक्ष प्रदर्शन आदि भी किये। पुलिस ने आपको अपने पुत्रों के पास जबलपुर में रह रहे हैं। अनेक बार हिरासत में लिया किन्त बाद में छोड
आ0-(1) म0 40 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-126 दिया। (2)स्व) प0
9 अगस्त 1942 को जिले के प्रमुखा श्री शंकरलाल जैन
आंदोलनकारी व संगठक श्री चन्दवासकर को चचावदा
में गिरफ्तार किया गया। पलिस की इस कार्यवाही के दमोह (म0प्र0) के श्री शंकरलाल जैन का जन्म 1921 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भैयालाल विरुद्ध रामपुरा में एक विशाल प्रदर्शन रैली निकाली था। आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की। त्रिपरी कांग्रेस गई। श्रा आजाद व इनके जयेष्ठ भ्राता श्री माणकलाल
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प्रथम खण्ड
347 अग्रवाल को उनके प्रमुख सहयोगीगण श्री मथुरालाल
राजमल जैन था। देशसेवा की सारू व श्री जोशी सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
भावना से ओतप्रोत श्री जैन पुलिस इन्हें गरोठ ले जाना चाहती थी। सम्भव न हो
1942 से कांग्रेस प्रजामंडल सकने पर हिंगलाजगढ़ के जंगल में छोड़ने की योजना
के कर्मठ सदस्य रहे और बनी वह भी सफल न हो सकी। फिर तीन दिन तक
देश की स्वतंत्रता के लिये श्री केशराम ठेकेदार की बगीची में रखकर मनासा
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। न्यायालय में पेश किया गया, जहां इन्हें साथियों सहित
1949 में भोपाल रिहा कर दिया गया। श्री आजाद सदा न्याय व निष्पक्षता विलीनीकरण आंदोलन में आपने भाग लिया और 2 के लिए जूझते रहे।
माह की सजा तथा 50/- रु0 जुर्माना न देने पर । आ)- (1) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-134
माह की और सख्त सजा के तहत जेल गये।
स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर स्वतंत्रता श्री शांतिलाल जैन
संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए म0प्र0 शासन श्री शांतिलाल, पुत्र-श्री दीपचंद जैन का जन्म
___ की ओर से आपको प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया। 1915 में बखेड, जिला-राजगढ़ (म0प्र0) में हुआ।
आ0- (1) स्वप्रेपित परिचय, प्रशस्ति एवं सम्मान पत्र आपने कक्षा 6 तक शिक्षा ग्रहण की। 1938 से (2) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-5, पृष्ठ-58 1947 तक प्रजामंडल में प्रचारमंत्री के पद पर कार्य किया। 1937 से ही मातृभूमि से अंग्रेजों को भगाने
श्री शांतिलाल जैन के लिये सक्रियता पूर्वक शासन विरोधी कार्यवाहियों
म0प्र0 विधान सभा के सदस्य एवं वारासिवनी में हिस्सा लेते रहे। इसी कारण रियासती जोर ज्यादतियों नगरपालिका के अध्यक्ष रहे श्री शांतिलाल जैन, के शिकार रहे।
पुत्र-श्री सबसुखलाल का जन्म 1920 में वारासिवनी आ0-(!) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-125
जिला-बालाघाट (म0प्र0) में हुआ। हरिजन दौरे के
समय गांधी जी के आगमन से आपको स्वाधीनता श्री शांतिलाल जैन (जव्हेरी)
संग्राम में कूदने की प्रेरणा मिली। 1941 में आपने इन्दौर (म0प्र0) के श्री शांतिलाल जैन, पुत्र-श्री वानरसेना का नेतृत्व किया। 1942 के आन्दोलन में मोतीलाल ने जी0 डी) फाइन आर्ट तक शिक्षा ग्रहण 17 मास की नजरबंदी और एक हजार रुपये का की। 1926 से ही आप राष्ट्रीय आन्दोलन के सक्रिय जुर्माना आपने भोगा। 1968 में आपका स्वर्गवास हो कार्यकर्ता हो गये। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन गया। में डेढ़ वर्ष का कारावास आपने भोगा। समाज में आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-192 छुआछूत का विरोध करने पर आप समाज से वर्षों
श्री शांतिस्वरूप 'कुसुम' बहिष्कृत रहे।
कवि, लेखक एवं क्रान्तिकारी श्री शांतिस्वरूप आ0-(1) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-46
जैन 'कुसुम', पुत्र-श्री सभाचन्द्र का जन्म 24 अक्टूबर श्री शांतिलाल जैन
1923 को घनौरा, सिलवर नगर, मेरठ (उ0प्र0) में सीहोर (म)प्र()) निवासी श्री शांतिलाल जैन हुआ। सम्प्रति आप बड़ौत प्रवासी हैं। आपने अपने का जन्म 1929 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री गीतों से नवयुवकों में जो क्रान्ति का मंत्र फूंका,
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उससे सैकड़ों नवयुवकों ने आजादी के आन्दोलन में लड़ने की प्रेरणा पाई। आपने 2 महाकाव्यों, 5 खण्डकाव्यों व 6 अन्य ग्रन्थों को लिखकर
माँ वाग्देवी का श्रृंगार किया है । शताधिक कवितायें
आपकी विभिन्न स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं। 26 संस्थाओं द्वारा आपको पुरस्कार/सम्मान / उपाधियाँ/ अभिनन्दन पत्र आदि प्रदान कर सम्मानित किया गया है।
1942 के आन्दोलन में आप क्रान्तिकारी बनकर उभरे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाना, तार काटना आदि आपके प्रमुख कार्य थे । 'सहारनपुर संदर्भ' भाग-1 ( पृ-193) लिखता है-" 1942 के आन्दोलन में छात्र भी किसी से पीछे नहीं रहे। छात्रों को साधारणतया पुलिस गिरफ्तार नहीं करती थी। परन्तु एक बालक शान्तिस्वरूप को 13-8-1942 को टेलीफोन के तार काटते हुए डी0आई0आर0 में बन्दी बना लिया गया। उन्हें 14 अगस्त से 21 नवम्बर 42 तक विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया और बाद में 18 बेतों की सजा देकर छोड़ दिया गया।'' इसी तरह जैन संदेश, राष्ट्रीय अंक में वरिष्ठ साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने लिखा है "जैन समाज के यशस्वी तरुण कवि श्री शान्तिस्वरूप जैन 'कुसुम' 1942 में हमारे जिले के उन थोड़े तरुणों में थे, जिन्होंने आन्दोलन के स्थान में क्रान्ति का रास्ता पकड़ा। कुछ ही दिनों में वे पुलिस की आंखों में चढ़ गये और पकड़े गये, पर पुलिस प्रमाण न पा सकी और वह छोड़ दिये गये । "
कुसुम
22 नवम्बर 1942 से 22 मार्च 1943 तक जी ने भूमिगत जीवन व्यतीत किया। जे0वी0 जैन कालेज सहारनपुर से आपका नाम काट दिया गया और फिर पढ़ने का क्रम ही टूट गया।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपने जेल में अनेक राष्ट्रीय गीत भी लिखे। कुछ अंश प्रस्तुत हैं
लो फिर जंजीरें बोल उठीं, लोहा लेने इन्सान चले, भारत के वीर जवान चले सन् सत्तावन की याद लिये, फिर से तकदीरें बोल उठीं।
लो फिर...
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सत्य अहिंसा मन्त्र बताते, सत्याग्रह की सीख सिखाते,
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युद्ध बाँकुरे झलक रहे हैं, मरना सौ बार
⭑
क्या
तुम्हारे हाथों में पतवार ।
आ)- (1) जै० स० रा० अ० (2) स० स०, भाग-1, पृ-193 (3) अनेक रचनाएं (4) स्व0 प0
सिंघई शिखरचंद जैन
सिंघई शिखरचंद जैन, पुत्र- श्री कुन्दनलाल का जन्म 3 जून 1912 को ललितपुर (उ0 प्र0) में हुआ। 1942 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी गिरफ्तारी के समय करो या मरो का नारा देशवासियों को दिया, तब शिखरचन्द जी का चुप बैठना कैसे संभव था । अतः सिंघई जी इस जन आंदोलन की धधकती आग में कूद पड़े। 28 अगस्त 1942 को धारा 144 का उल्लंघन कर जुलूस निकालने के खिलाफ उन्हें गिरफ्तार किया गया। जिसमें एक वर्ष का सश्रम कारावास एवं एक सौ रुपया अर्थदण्ड - वसूल न होने पर दो माह की सजा और दी गयी। आपको
5-4-43 को बी क्लास के बन्दी के रूप में जिला कारागार फैजाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया था।
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प्रथम खण्ड
349 जेल से मुक्त होने के बाद आपने जिला स्तर पर
श्री शिखरचंद जैन सेनानियों को संगठित किया और जिला स्वतंत्रता संग्राम
गाडरवारा, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के सेनानी समिति, ललितपुर नामक संस्था की स्थापना की। सम्प्रति आप भोपाल प्रवासी हैं।
शिखरचंद जैन, पुत्र-श्री हजारी लाल का जन्म 1921 आO-(1) प0 जै0 इ), पृ0-474 (2) स्व) प0 एवं प्रमाण पत्र
में हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में श्री शिखरचंद जैन
1940 से ही आप भाग लेने
लगे थे। 1942 में गिरफ्तार कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री शिखरचंद जैन, पुत्र-श्री जवाहरलाल का जन्म 1909
होकर 9 माह का कारावास में हुआ। जंगल सत्याग्रह में 15 अगस्त 1930 से
आपने भोगा। आप 13 दिसम्बर 1930 तक आपने सैन्ट्रल जेल तथा
नगरपालिका के सदस्य भी रिफारमेटरी में कारावास भोगा।
रहे। आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-111 (2)
आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-155 (2) जै0 स0रा0 अ0
जै0 स0 रा0 अ0 (3) प्रमाण पत्र श्री शिखरचंद जैन
श्री शिखरचंद जैन मिठया कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री पराधीन भारत की स्वतंत्रता के लिए जिसे शिखरचंद जैन, पुत्र- श्री बाबूलाल का जन्म 1917 में जेल जाने का सौभाग्य मिलना है, वह हर आपदा से हुआ। श्री जैन ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन
बच जाता है' इस उक्ति को में 2 माह का कारावास भोगा।
चरितार्थ करने वाले श्री आ0- (1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-111 (2)
शिखरचंद जैन, पुत्र-श्री जै0 स) रा0 अ0
खेतसिंह जैन (मिठया) का सिंघई शिखरचंद जैन
जन्म 4 नवम्बर 1922 को पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के सिंघई
तालबेहट, जिला- झाँसी शिखरचंद जैन, पुत्र- श्री भुवनचन्द का जन्म 1915
(उ0प्र0) में हुआ। 1942 में हुआ। 1936 में राष्ट्रीय में आप तालबेहट के तालाब के उस पार किसानों आन्दोलन की ओर आपका की एक सभा में शामिल होने डोंडा (छोटी सी नाव) झुकाव हुआ। 1942 के भारत से जा रहे थे। डोंड़ा पानी में डूब गया पर आप छोड़ो आन्दोलन में आपने किसी तरह बाहर निकलकर सभा में पहुंचे। सक्रियता से भाग लिया, 1939 में आप आल इण्डिया स्टडेन्ट फेडरेशन फलत: गिरफ्तार हुए और के जिला मंत्री रहे तथा बेगारी प्रथा के विरुद्ध संघर्ष मण्डला तथा जबलपुर की करते हुए तीन माह भूमिगत रहे। 1944 में 26
जेलों में 6 माह का कारावास जनवरी को प्रभात फेरी में गिरफ्तार कर जेल भेज काटा। आपके परिवार के श्री नेमीचंद, सुगमचंद दिये गये। आय 22 वर्ष की होने से आप उस जेल आदि अनेक व्यक्ति जेल गये थे।
में कम उम्र के कैदी थे। डी0आई0आर0 के अन्तर्गत आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-215 (2) मकदमा चला और कारावास की सजा मिली, जिसे जै0 स0 रा0 अ0
-minine BUNDANGANA
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350
स्वतंत्रता संग्राम में जैन झांसी तथा फैजाबाद जेल में आपने काटी। बाद में व कुम्हारों से मिट्टी खुदवाई। इस पर सिपाहियों ने सजा 4 माह और बढ़ा दी गई, नवम्बर 1944 में कुम्हारों से टोकनी छीन ली। आप फैजाबाद से रिहा हुए। बाद में आप झाँसी में 1942 के आन्दोलन में आपको ग्यारह माह जेल रहने लगे थे
में रहना पड़ा। यह अवधि आपने झाँसी व आगरा की आO- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) स्व0 प0 जेलों में काटी। अनेक वर्षों तक आप सरपंच रहे थे। श्री शिखरचंद बर्डिया
आ0- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-86 गोटेगांव, जिला-नरसिंहपुर (म0प्र0) के श्री
श्री शिवप्रसाद सिंघई शिखरचंद बर्डिया का जन्म 1911 में श्री नन्दराम के
दमोह के प्रसिद्ध सिंघई परिवार का राष्ट्रीय घर हुआ। 1930 के आन्दोलन में आपने सक्रिय
आन्दोलन में अग्रगण्य स्थान है। इस परिवार के श्री भूमिका निभाई। प्रयत्न करने के बाद भी पुलिस आपको
सिंघई गोकुलचंद वकील, सिं0 गुलाबचंद, सिं0 गिरफ्तार नहीं कर सकी किन्तु 1941 के व्यक्तिगत
शिवप्रसाद, सिं0 रतनचंद जी सत्याग्रह में आप गिरफ्तार कर लिये गये, फलस्वरूप
जेल गये। सिं0 गुलाबचंद के ढाई माह का कारावास आपको भोगना पड़ा।
पुत्र सिंघई शिवप्रसाद का जन्म आ-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-155
29-5-1921 को हुआ। आप श्री शिवप्रसाद जैन
माध्यमिक शाला में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने वालों में
अध्ययनरत थे कि दमोह में श्री शिवप्रसाद जैन कर्मठ कार्यकर्ता थे। आपके पिता
महात्मा गांधी का आगमन का नाम श्री उदयजीत था। आपका जन्म जाखलौन, हुआ, छात्र शिवप्रसाद भाषण सुनने चला गया। फिर जिला- ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ था। आप एक क्या था। हेडमास्टर ने बेतों से पीटा और स्कूल से बाहर सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता थे। 1934 में आप कांग्रेस निकाल दिया और यहीं समापन हो गया सिंघई जी में आये, 1937 में जाखलोन के जमींदार ने बेगार नहीं की शिक्षा का। देने की वजह से किसानों को हर तरह से तन किया। आप नमक सत्याग्रह के अवसर पर वानर सेना यहाँ तक कि जंगल से जलाने के लिये लकड़ी लाना में शामिल रहे। काग्रेस
में शामिल रहे। कांग्रेस कार्यालय में सचिव पद पर भी बन्द कर दिया, उस वक्त आपने 200 किसानों
भी आपने कार्य किया। 1942 में आपके छोटे भाई को साथ लेकर आबादी-जंगल कटवा दिया। जंगल सिघई रतनचद को पकड़ा गया तो आप भूमिगत हो में जागीरदार अपने सिपाहियों के साथ मय बन्दूकों
गये, घर की तलाशी ली गई, जब ये न मिले तो इनके के गये, बाद में जागीरदार की तरफ से कलेक्टर झांसी
पिता सिं0 गुलाबचंद जी को पुलिस पकड़कर ले गई।
दिनांक 1-10-1942 को शिवप्रसाद जी पकड लिये को तार दिया गया, 4 दिन तक बराबर तहकीकात
गये। बदले में पिता गुलाबचन्द जी को छोड़ दिया गया। हुई। आखिर में उस समय कांग्रेस की जीत हुई। कुम्हारों
शिवप्रसाद जी को 5 माह 5 दिन की सजा दी गई से भी जागीरदार ने बेगार में बर्तन मांगे। अत: उन्होंने
और सागर जेल में रखा गया। सजा पूरी होने पर दि0 मिट्टी खोदना शुरू कर दिया। जागीरदार सिपाहियों
16-3-1943 को छोड़ दिया गया। सहित मिट्टी की खदान पर गये। उधर आप भी कुम्हारों आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-90 को साथ लेकर अकेले ही मिट्टी की खदानों पर गये (2) श्री संतोष सिंघई, दमोह द्वारा प्रेषित परिचय (3) स्व) पा)
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प्रथम खण्ड
351 श्री शीतलप्रसाद जैन
अधिकारियों ने गिरफ्तार कर मैदागिन टाउन हाल में क्रान्तिकारियों का गढ़ रहे श्री स्याद्वाद जज के सामने प्रस्तुत किया। मेरे पास जो पैम्पलेट थे, महाविद्यालय वाराणसी के स्नातक श्री शीतलप्रसाद उनके आधार पर दो साल का कठोर कारावास तथा
का जन्म ग्राम-बड़ागांव, 50/- रु0 जुर्माना की सजा दी गई। जिला-मेरठ (उ0प्र0) में 5 जिला जेल में अस्वच्छ वस्त्र और गन्दे भोजन अगस्त 1918 को हुआ। के विरोध में दो बार चार-चार दिन की भूख हड़ताल आरम्भिक शिक्षा के बाद आप की। मांगें तो मान ली गईं, पर अन्यों के साथ मुझे उच्च शिक्षार्थ वाराणसी के भी सजा के वतौर केन्द्रीय कारागार में स्थानांतरित कर स्याद्वाद महाविद्यालय में दिया गया, जहाँ कातिल, डकैत जैसे अपराधी रखे जाते
1934 में प्रविष्ट हुए। आपने थे। वहाँ बैठने की अव्यवस्था का विरोध करने पर एम0ए0(हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी) एल0एल0बी0 आदि मेरी असह्य पिटाई हुई और हथकड़ी के साथ पैरों में परीक्षायें पास की। सम्प्रति आप मुजफ्फरनगर में रह बेड़ी पहनाकर काल कोठरी में डाल दिया गया। रहे हैं।
मुलाकातों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया। जुलाई 1943 ____20-9-95 को जब हम आपके घर पहुंचे तो में सरकार व कांग्रेस में समझौता होने के कारण भोगी संस्था-भाई होने मैं (कपूरचंद जैन) भी स्याद्वाद गई सजा को पर्याप्त मानकर मुक्त कर दिया गया पर महाविद्यालय का स्नातक रहा हूँ) के नाते वात्सल्य बनारस मण्डल से निष्कासित कर दिया। एम0ए0 भाव से आपने जो आत्मीय स्नेह दिया वह शब्दातीत अन्तिम वर्ष की परीक्षा देने की अनुमति तक शासन है। पुरानी स्मृतियों में खोते हुए आपने बताया- 'बनारस से नहीं मिली। यह निष्कासन प्रतिबन्ध आजादी के जाते ही मैं स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय हो गया बाद ही समाप्त हुआ।" था, विद्यालय की परम्परा भी यही थी। हमने छात्रावास
आ0- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) सा0 20-9-1995 में ही वीर सैनिक संघ (v.s.s.) की स्थापना की। थी, जिसमें छात्रों को सैनिक वर्दी में सैनिक शिक्षण
श्री पं० शीलचंद जैन शास्त्री की व्यवस्था थी। विभिन्न सार्वजनिक समारोहों में भी _ 'वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि' हम सेवा कार्य करते थे। 1942 के आन्दोलन में संघ व्यक्तित्व के धनी, प्रखरवक्ता, संघर्षशील परिवेश में के सदस्यों ने खुलकर भूमिगत रहते हुए कार्य किया।
जीने वाले पं0 शीलचंद जैन छात्रावास में लीथो प्रेस तैयार करके, उसमें हजारों की
शास्त्री जैन समाज की उन संख्या में क्रान्तिकारी पैम्पलेट छापे गये, जिनमें विदेशी
विभूतियों में से एक थे, जिन शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अपना सर्वस्व
पर हम सबको गर्व है। उनके बलिदान करने का आह्वान किया गया था। आठ-दस
हृदय में राष्ट्रोन्नायक व्यक्तित्व छात्रों की टोलियाँ प्रात: निकल पड़तीं और देर रात
और जीवन की प्रगति में लौटतीं। डाकखानों, रेलवे स्टेशनों, विद्युत कार्यालयों आदि
अखण्ड विश्वास रखने को ठप्प करने के साहसिक कार्य हमने किये। अनेक वाले सजहगुणों का रत्नाकर विद्यमान था। समाज अवसरों पर मरने से बाल-बाल बचे। 24 अगस्त 1942 हित और समाज सुधार की दृष्टि से वे नई पीढ़ी के को सारनाथ मेले में जाते हुए सी0आई0डी0 के आदर्श थे।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन __पंडित जी का जन्म उत्तर प्रदेश में बड़ौत के अपमानित भी होना पड़ा। फिर भी आप परिषद् के निकट ग्राम विजबाडा के धार्मिक प्रवृत्ति के व्यवसायी महामंत्री चुने गये। श्री कुन्दनलाल जैन के घर दिनांक 15 अक्टूबर 1915 तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू का को हुआ था। युवावस्था से ही होनहार, कुशाग्र मवाना में नागरिक अभिनंदन व स्वागत आपके सान्निध्य
कारण तथा आसपास विद्या का कोई में हआ था। स्वतंत्रता सेनानी के नाते ही मवाना में क्षेत्र न होने से परिवार ने प्रारम्भिक शिक्षा के उपरांत ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का पद सरकार द्वारा आपको दिया आपको स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में प्रवेश गया जो 4 वर्ष तक रहा। देश की अनेक शिक्षा दिलाया जहां से आपने न्यायतीर्थ और सिद्धांत शास्त्री संस्थाओं से संबद्ध रहते हुये आप लगभग 16 वर्ष की उपाधियां प्राप्त की।
तक ए0एस0 इंटर कालिज के अध्यक्ष रहे तथा वहां 1936 में आप श्री कुंदकुंद जैन विद्यालय, डिग्री कॉलेज की स्थापना कराई। आप उसके संस्थापकों खतौली में अध्यापक के पद पर कार्यरत हुये। 1937 में से हैं। 1986 में रामजानकी रथ के भ्रमण पर में हस्तिनापुर मेले में 'दस्सों को श्रीपूजा का अधिकार जिले में प्रतिबंध होते हुये भी आपने जबरदस्ती मवाना है' विषय पर भाषण देने के कारण आपको खतौली में भ्रमण कराया तथा जेल यात्रा की। 1990 में जिला विद्यालय की नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। 1939 कारसेवक अध्यक्ष के रूप में जेलयात्रा की। हस्तिनापुर में अ०भा०दि) जैन परिषद् के मुख्य पत्र वीर के तीर्थक्षेत्र कमेटी के वरिष्ठ सदस्य तथा मेला कमेटी के सहसंपादन का कार्य सम्भाला और राष्ट्रीय आन्दोलनों संरक्षक आप रहे। में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। कांग्रेस का साथ देते रहन-सहन में भारी सादगी और निर्भीक विचारों हुये नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन में से संपन्न पं0 जी समाज के उन बहुमुखी व्यक्तियों में आपने भाग लिया और जेल यात्रा की।
से थे, जो जैन-जगत और मानव कल्याण के कार्य ___1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में पुलिस बराबर में लगे रहे। वे आत्मप्रशंसा से मुक्त, निष्कलुष व्यक्तित्व आपके पीछे लगी रही मगर अपने बुद्धि चातुर्य से आप से संपन्न महापुरुष थे। आपने समाज में महिलाओं उसके पंजे में नहीं आये। प्रांतीय धारा सभाओं के चुनाव को सम्मानपूर्ण स्थान एवं समान अधिकार दिलाने के में आपने अपना सब कुछ कांग्रेस के प्रचार में लगा लिये सदैव पहल की। गंभीर चिंतक, ओजस्वी और दिया। आप मवाना तहसील कांग्रेस कमेटी के प्रमुख स्पष्टवक्ता, जिनवाणी विशेषज्ञ, शास्त्रों के मर्मज्ञ, कट्टर कार्यकर्ता रहे थे।
हिन्दुत्व की भावना से ओतप्रोत, अहिंसा-पुजारी, कारिता के क्षेत्र में 'वीर' का सम्पादन निडर एवं साहसिक व्यक्तित्व के धनी पंजी का 'विश्व-मित्र' का सहसंपादन तथा 'कुन्दनशील' के 77 वर्ष की आयु में 8 अगस्त 1992 को निधन हो संस्थापक-संरक्षक आप रहे। 1946 में आप मवाना गया। आपके परिवार ने आपके नाम पर एक ट्रस्ट नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुये। यह पद संभालने बनाया है, जो साहित्य सेवा में संलग्न है। मवाना में पर आपने यहां विद्यमान सभी हिंसक बूचडखानों को उनके नाम पर एक बाजार व सड़क हैं। प्रस्ताव है बन्द करवा दिया और अहिंसा की अखंड ज्योति कि मवाना में किसी चौराहे पर आपकी मूर्ति लगायी जलाई। 1950 में हुए आ0भा0दि0जैन परिषद् के अधि जाये। यह जानकारी आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री सुरेशचंद वेशन में हरिजन मंदिर प्रवेश के प्रस्ताव के कारण (जो इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं) ने मेरठ में एक आपने लोगों के आक्रोश को सहा तथा आपको मुलाकात में दी।
पीक
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प्रथम खण्ड
353 आ0- (1) जै() स0 रा) अ0 (2) वि0 अ0, पृष्ठ-520 सवमुच ही शुभ साबित हुए। आजादी के आंदोलनों (3) दि) जैन महासमिति पत्रिका 15-9-92 (4) पुत्र श्री सुरेश के दौरान उन दिनों जब कांग्रेस के जलस निकलते जो द्वारा प्रदत्त परिचय
थे तो शुभचंद जी को सैनिक लिवास में घोड़े पर श्रीमती शीलवती मित्तल | बैठाकर झंडा लेकर आगे चलाया जाता था। वे 'आजादी श्रीमती शीलवती मित्तल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी के सिपहसालार' के नाम से जाने जाते थे। बाबू नेमीशरण मित्तल की धर्मपत्नी थीं। अपने पति लगभग छह दशक पूर्व जबलपुर के उत्साही के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर आपने दो बार नौजवानों ने 'नेशनल बॉय स्काऊट्स' नाम से एक जेलयात्रा की। आप कांग्रेस की प्रत्येक सभा में भाग संस्था बनाई थी। पं0 भावनी प्रसाद तिवारी, सवाईमल लेती थीं। आपके पुत्र भी आपकी तरह राजनैतिक कार्यों जैन, बद्रीनाथ गुप्ता जैसे प्रतिभावान व्यक्ति उसके में लगे रहे।
सदस्य थे। यह एक राष्ट्रीय विचारवादी अनुशासित आ)-(1) जै0 स) रा) अ)
जनसेवी संगठन था। श्री शुभचंद जैन इसके अध्यक्ष
मनोनीत किये गये। (एक मत के अनसार शभचंद श्री शुभचंद जैन
जी इसके संस्थापक थे। वे त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के श्री में गांधी जी के अंगरक्षक रहे (स्वतंत्रता संग्राम और शुभचंद जैन भारतीय स्वाधीनता महासमर के ऐसे जबलपुर नगर, पृष्ठ-172, गजरथ महोत्सव स्मारिका
अग्रणी नौजवान थे, जिन्होंने पष्ठ-39)) 1930-32 के आंदोलनों के कार्यक्रमों आजादी के हर आंदोलन में खादी-प्रचार, विदेशी वस्त्र बहिष्कार, जंगल सत्याग्रह न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा और शराबबंदी में श्री जैन ने भाग लिया था। लिया बल्कि 1930-32 और शुभचंद जी ने सरकारी शराब गोदाम 'वेयर हाऊस' 1942 के आंदोलनों में लंबी पर धरना देने का कार्यक्रम बनाया, इनके साथ और
अवधि तक जेलों के सीखचों भी सत्याग्रही हो गये। पुलिस ने घसीट-घसीट कर
- म रह। यही नहीं उनक सबको अलग किया लेकिन सब फिर वहीं पहच ओजस्वी विचारों और क्रियाकलापों ने अनेक नौजवानों गये। इसके बाद घुडसवार बुलाये गये। शुभचंद जी में नई जान फूंकी, जिसके परिणामस्वरूप जबलपुर घोडों की टाप से जख्मी हो गये, लेकिन इस घटना की जैन समाज की तरूणाई रणक्षेत्र में उतर पड़ी के बाद आंदोलन उग्र हो उठा।
और उनकी अनुगामी होकर बढ़-चढ़ कर हिस्सा उन दिनों आंदोलन में सत्याग्रही गिरफ्तार कर लिया, यातनाओं को झेला, जेल यात्राएं कीं और जेल भेज दिये जाते और पेशी पर फौजदारी अदालत समाज का मस्तक ऊँचा किया।
में लाया जाता और उन्हें सजा सुनाई जाती थी। उस शुभचंद जी के पिता का नाम श्री गुलाबचंद समय हथकडी डालकर जेल से कचहरी लाया जाता था। श्री शुभचंद का प्रभावी व्यक्तित्व, रोबीला चेहरा, था। श्री शुभचंद ने हथकडी पहिनकर जाने का विरोध मांसल बदन एवं बुलंद आवाज में सहज आकर्षण किया तो अन्यों ने भी विरोध में साथ दिया। था। इनका पूर्व नाम अबीरचंद था। मुरैना विद्यालय परिणामस्वरूप इन लोगों को बैरक से कंकरीली सडक में गुरुणां गुरु गोपालदास बरैया ने अबीरचंद से इन्हें पर घसीटते हए फाटक तक लाकर मोटर में वोरों की शभचंद बना दिया था। बाद में वे देश के लिये तरह लादा गया फिर कचहरी में भी उतरने को तैयार
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन नहीं होने पर मोटर से नीचे उतार कर अदालत के का कभी मन नहीं बनाया। यही नहीं स्वराज्य प्राप्ति कमरे तक घसीटकर ले जाया गया। सभी के शरीर के बाद शासन ने स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक एवं लहूलुहान हो गये थे। पेशी पर जनता की भीड़ हो अन्य सुविधाएं प्रदान की, पर शुभचंद जी ने किसी गई, इनके शरीर खून से लथपथ देख जनता में रोष भी सुविधा को लेने से इंकार कर दिया यहाँ तक कि फैल गया, नारे लगने लगे, स्थिति की गंभीरता को इनकी त्यागमयी भावना की गहरी छाप इनके कुटुम्ब देखते हुए हथकड़ियां खुलवा दी गईं और आगे पर पड़े वगैर नहीं रही। शुभचंद जी के स्वर्गीय हो हथकड़ी न डालने के भी आदेश हो गये। जाने के बाद उनकी धर्मपत्नी ने राज्य एवं केन्द्रीय
सत्याग्रही राजनैतिक बंदियों को सामान्य कैदियों दोनों में से कोई भी पेंशन स्वीकार नहीं की, न पुत्रों के समान काम करना पड़ता था। इन्हें प्राय: चक्की पीसने ने कोई सहायता ली। दी जाती थी। चक्की दो व्यक्ति मिलकर पीसते, पर भारी आ)- (1) म0 प्र0 स्वा) सै0, भाग-1, पृष्ठ-112 (2) प) भरकम चक्की कमजोर और दुबले व्यक्ति न पीस पाते - जे0 इ0, पृष्ठ-413 (3) स्व0 स0 ज), पृष्ठ-172 (4) गजरथ
स्मारिका, जबलपुर (5) दैनिक भास्कर, जबलपुर 17-8-1995 तो सजा पाते थे। श्री शुभचंद एक तगड़े व्यक्ति थे, वे अपने कमजोर साथियों का भी आटा पीस देते थे।
श्री शेखरचंद जैन 1942 का आंदोलन अद्वितीय था। गांधी जी के जबलपुर (म0प्र0) के श्री शेखरचंद जैन, पुत्र-श्री दो नारों अंग्रेजो भारत छोड़ो और करो या मरो के साथ भोलेनाथ का जन्म 1916 में हुआ। आपने 1932 के आंदोलन की ज्वाला भड़क उठी। अनेक नेता और आन्दोलन में 6 माह के कारावास की सजा पाई। कार्यकर्ता भूमिगत हो गये। आन्दोलन की धारा बदल आ0-- (1) म0 प्र0 स्व) 30, भाग-1, पृष्ठ-112 गई, चारों ओर देश में तोड़फोड़ होने लगी। शुभचंद
श्री शोभालाल जैन कब चुप बैठने वाले थे, ये भी भूमिगत हो अनेक प्रकार
कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री के विध्वंसक कार्यों में संलग्न हो गये। एक बार रेल की पटरी उखाड़ते समय रात्रि में इन्हें देख लिया गया
शोभालाल जैन, पुत्र श्री कालूराम का जन्म 1925 में
हुआ। मिडिल तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने 1941 के और बंदूक का निशाना बनाया गया पर बाल-बाल बच
व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया। 1942 के भारत गये। एक छर्रा इनके पैर में घुस गया, जिसे एक ग्रामीण
छोड़ो आन्दोलन में भी आपने भाग लिया और लगभग नाई से नाखून काटने की नहन्नी से निकलवा कर
नौ माह के कारावास की सजा भोगी। पुनः सक्रिय हो गये, पकड़े जाने पर सेन्ट्रल जेल
आ)-(1) म) प्रा) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-113 जबलपुर में रहे। आपको नेताओं की बी क्लास दी गई पर आपने सामान्य सत्याग्रही साथियों के साथ रहना श्री श्याम बिहारी लाल जैन पसंद किया और स्वेच्छा से सी क्लास में दो वर्ष जेल में ब्यावरा, जिला-राजगढ़ (म0प्र0) के श्री श्याम रहे।
बिहारी लाल जैन, पुत्र-श्री मुकुट बिहारी लाल जैन जब देश आजाद हुआ तो इनके साथी शासन का जन्म 15 अक्टूबर 1922 को हुआ। में अपनी स्थिति बनाने के लिए दौडधप करने लगे। बी0आई0एम0एस) तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने 1942 विधानसभा, राज्यसभा, लोकसभा में स्थान पाने की में श्री रामलाल वैद्य, अलीगढ़ की प्रेरणा से स्वतंत्रता दौड़ शुरू हो गई परन्तु शुभचंद जी एक ऐसे व्यक्ति आंदोलन में भाग लिया तथा कठोर शारीरिक यातनायें सहीं। थे, जिन्होंने राजकीय सत्ता के किसी भी पद पर जाने
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-1, पृष्ठ-124
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प्रथम खण्ड
355
श्री श्यामलाल जैन
बोझ। अपने जन्म स्थान नरसिंहपुर (म0प्र0) से रायभा, जिला-आगरा (उ0प्र0) निवासी श्री मुसीबत के मारे, रोजी- रोटी के लिए हम सब श्यामलाल जैन तत्कालीन क्रान्तिकारियों में अग्रगण्य भाईबहनों को लेकर वे 1930 में मण्डला (म0प्र0) थे। स्वतंत्रता सेनानी श्री पीतमचंद जैन के साथ आ गये। वहाँ मुझे सेठ मथुरा प्रसाद बैजनाथ अग्रवाल टेलीफोन के तार काटते समय 1942 में आपको की किराना की दुकान पर 10 रुपया माहवार नौकरी गिरफ्तार कर एक वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। पर लगा दिया। वहाँ सुबह 8 बजे से रात 9 बजे फिर भी सरकार अभियोग नहीं चला पाई। जेल में तक तखरी (तराजू) तौलना पड़ती थी। शिक्षा केवल ही आपको लकवा मार गया था।
6 वीं पास हिंदी थी। शरीर दुबला पतला था किन्तु आ) (1) प0 इ), पृष्ठ-130 (2) जै0 स0, रा) अ भाग्य अच्छा था। (3) उ0 प्र0 जै0 40. पृष्ठ-92 (4) श्री महावीर प्रसाद जी अलवर इस नौकरी के दरम्यान कुछ गलत तत्त्वों की द्वारा प्रेपित परिचय (5) गो0 अ0 ग्र0, पृष्ठ-226-227
संगत में पड़ गया। जुआ खेलने की आदत पड़ श्री श्यामलाल जैन
गयी। 10 रुपया माहवार तो पिताजी ले लेते थे, अब जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे. मण्डला जुआ खेलने को पैसा कहां से आये? तो दुकान की (म0प्र0) के श्री श्यामलाल जैन 1930 से ही राष्ट्रीय चोरी करने लगा; किन्तु यह भय हमेशा बना रहता आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। अनेक बार जेल था कि यदि पकड़ा गया तो नौकरी भी नहीं मिलेगी यात्रा करने वाले श्यामलाल जी ने कविताओं के और चोर कहलाऊँगा। इस गलत आदत से कैसे माध्यम से नवयुवकों में नवस्फति का संचार कर मुक्ति पाऊँ। यही सोचता रहता था। आन्दोलन में कदने को प्रेरित किया था। आपके मेरे एक मित्र श्री चम्मनलाल हलवाई ने दिनांक अनुज श्री अमीरचंद भी जेलयात्री रहे हैं।
14 फरवरी 1932 को रात में करीब 10 बजे (जब आ)-(1) जै) सा) रा0 अ)
कि मैं घूमने निकला था) बुलाकर कहा कि क्यों श्याम!
जेल चलोगे। मैंने तत्काल स्वीकृति दे दी एवं यह तय श्री श्यामलाल जैन
हुआ कि दिनांक 15 फरवरी 1932 को प्रथम श्री किसी फिल्मी अन्दाज की तरह जीवन बिताने शंकरलाल शिवहरे आन्दोलन का श्रीगणेश करेंगे उनके वाले श्री श्यामलाल जैन, पुत्र- श्री फदाली लाल का पकड़े जाने के बाद श्री चम्मनलाल जी और मेरा नम्बर जन्म 1914 में नरसिंहपुर (म0प्र0) में हुआ। अपना तीसरा रहेगा। इस विषय में हम दोनों के बीच अग्नि
- जीवन परिचय देने का निवेदन प्रतिज्ञा भी हई. कारणवशात मुझे न० 2 पर ही रखा करने पर आपने लिखा है
लिखा ह गया। दि0 15 फरवरी 1932 की रात को ही श्री कि
शंकरलाल शिवहरे गिरफ्तार कर लिये गये। दि० 16 'मैं इस भारत के उजड़े फरवरी को मैंने सुबह ही, शाम 5 बजे सभा का ऐलान हुए खंडहर का जर्रा हूँ। कर दिया। मेरे पू0 पिताजी बोले कि -'मैंने तुमसे अभी यही मेरा पता होगा, यही तक कुछ नहीं कहा, यदि तुम जेल जाना चाहते हो
नामा निशा मेरा।।' तो शौक से जाओ, पर एक बात याद रखना कि कदम 'मेरे पिता की आर्थिक स्थिति अत्यंत शोचनीय वापिस न रखना। वरना मेरे घर में तुम्हारे लिए कोई थी, उस पर हम चार भाई और तीन बहिनों का स्थान नहीं रहेगा।' शाम 5 बजे गांधी चौक मण्डला
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356
स्वतंत्रता संग्राम में जैन में मैंने भाषण दिया अतः रात्रि साढ़े ग्यारह बजे गिरफ्तार अब धर्ममार्ग अपनाया है। 1979 में दर्शन प्रतिमा कर लिया गया। रात ही में जेल में बंद कर दिया गया। ग्रहण की। 1983 में आचार्य प्रवर श्री 108 विद्यासागर दूसरे दिन श्री कामताप्रसाद जज (मजिस्ट्रेट) की जी महाराज से व्रत प्रतिमा ग्रहण कर ली। उसी का अदालत में पेश किया गया, जहाँ 4 माह की सुजा यथाशक्ति पालन कर रहा हूँ" सुना दी गई।
__ श्री जैन के पिताजी आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाता थे। 1940 में मंडला में मेरे जीवन में एक सम्प्रति आप भी आयुर्वेद चिकित्सा करते हैं। फीस अप्रत्याशित घटना दशहरे के अवसर पर घटित हुई। नहीं लेते। मात्र दवा के पैसे लेते हैं। दशहरे का जुलूस जब 'जय काली' का जय घोष करते आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-192 (2) प0 जै0 हुए जा रहा था तब एक मजिस्द से कल पत्थर फेंक ३०, पृष्ठ-233 (3) स्व0 प0 (4) दैनिक भास्कर, जबलपुर, 22
अगस्त 1997 गये। हिंदू-मुस्लिम दंगे की स्थिति बन गई। मैं उग्र भीड़ को समझाने का प्रयास कर रहा था। दंगा तो श्री श्यामलाल जैन 'सत्यार्थी' नहीं हो पाया किंतु मेरे व भाई शंकरलाल शिवहरे (जो 'सत्यार्थी' उपनाम से प्रसिद्ध श्री श्यामलाल जैन, उस दिन मण्डला से 10 किमी0 दूर रामनगर में थे) पुत्र-श्री जौहरीलाल ग्राम-लड़ावना, जिला-आगरा के विरुद्ध दंगा भड़काने का आरोप लगाया गया और (उ0प0) के मूल निवासी थे। बाद में आप पथवारी हम दोंनो को इस आधारहीन तथा झूठे अपराध के लिए (आगरा) आकर रहने लगे। अध्यापन जैसे पवित्र 4-4 माह का कठोर कारावास भोगना पड़ा। व्यवसाय से जुड़े सत्यार्थी जी की रुचि बचपन से ही
1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में 12 अगस्त देश की आजादी की ओर थी। 1930-32 के आन्दोलनों 1942 को ही मेरी गिरफ्तारी हो गई। मेरा अनुज में आपने भाग लिया और छह माह का कारावास भोगा। अमीरचंद जैन फरार हो गया, क्योंकि उसकी गिरफ्तारी दुर्भाग्य देखिये कि इसी बीच आपकी पत्नी और युवा का भी वारण्ट था। हमारे यहाँ आजीविका का एक पुत्र का देहावसान हो गया, फिर भी आप विचलित मात्र साधन छोटा सा प्रिटिंग प्रेस था, ब्रिटिश सरकार नहीं हुए। 1942 के आन्दोलन में भी आपने जेल की द्वारा उस पर ताला लगा दिया गया। इस तरह परिवार यात्रा की थी। की रोजी-रोटी का एकमात्र साधन भी जाता रहा। आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) प० इ0, १0-142 उस समय परिवार में माता-पिता. छोटा भाई सगम (3) उ0 10 0 40. पृष्ठ-93 (4) गो0 अ0 ग्र), पृष्ठ 227 चंद उससे छोटी तीन बहिनें, मेरी पत्नी एवं ढेड़
श्री श्यामलाल पाण्डवीय साल का बच्चा था। तत्पश्चात् मैं 10 जनवरी 1944
मध्यभारत के प्रथम मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव को जबलपुर सेण्ट्रल जेल से रिहा किया गया।
रहे यशस्वी लेखक, प्रसिद्ध जेल से रिहा होने के पश्चात् कठिन संघर्ष
और प्रख्यात समाजसेवी, करते हुए मैंने प्रेस के कारोबार को सुदृढ़ किया। मैं
श्री श्यामलाल पाण्डवीय का 1939 से 1948 तक जिला कांग्रेस कमेटी का प्रधानमंत्री रहा। व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय करीब 8 माह
जन्म 14 दिसम्बर 1896 तक जिला कांग्रेस ऑफीसर इंचार्ज भी रहा। 1951
को मुरार (ग्वालियर) में कांग्रेस से अलग होकर पं0 द्वारका प्रसाद मिश्रा
म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का सहयोगी रहा।
श्री शंकरलाल ग्वालियर
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प्रथम खण्ड
357 रियासत में दीवान थे। दीवान शंकरलाल पाण्डवीय महामना मालवीय जी से प्रभावित, राजशाही के प्रखर दरबारे खास, पंचायत बोर्ड तथा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के सदस्य विरोधी पाण्डवीय जी ने 1940-42 के आन्दोलनों में रहे तथा चेम्बर आफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री के मानसेवी सक्रिय भाग लिया। अगस्त 1940 से अगस्त 1941 संयुक्त सचिव एवं श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर तथा अगस्त 1942 से फरवरी 1943 तक करीब । कमेटी के 1922 से 1924 तक मंत्री रहे थे। श्यामलाल वर्ष 8 माह की कैद आपने ग्वालियर और शिवपुरी जी की माता का नाम गोबल देवी एवं छोटे भाई का की जेलों में भोगी। आप ग्वालियर राज्य कांग्रेस एवं नाम रघुवर दयाल था, जो तहसीलदार थे। सार्वजनिक सभा के संस्थापक सदस्य थे तथा ग्वालियर
आपकी शिक्षा मुरार हाईस्कूल में हुई। ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा के अध्यक्ष चुने गये थे। रियासत के प्रथम बैच में आपने इण्टर पास किया तथा 1923 में जब अ0भा0दि0 जैन परिषद् की ग्वालियर राज्य की वकालत की परीक्षा भी आपने पास स्थापना का निश्चय हुआ तब आप उस सम्मेलन में की थी। पाण्डवीय जी शैशव से ही मेधावी, प्रगतिशील मौजूद थे, परिषद् के गठन प्रस्ताव के हस्ताक्षर कर्ताओं एवं राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे. 17 वर्ष की उम्र में में से आप एक थे। इस प्रकार आप उक्त परिषद के ही आप जैसवाल जैन सभा के विभागीय मंत्री तथा संस्थापक सदस्य थे। बाद में 'मुनि' के सम्पादक बनकर समग्र जैन समाज पाण्डवीय जी स्वाधीनता के पश्चात् मध्यभारत की सेवा में लग गये थे।
के गठन से विलय तक (1948-56) राजस्व, उद्योग, 1913 में मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में आपने व्यापार, खाद्य, कृषि, लोक-निर्माण तथा स्वास्थ्य विभाग ग्वालियर राज्य की प्रथम लोकपत्रिका 'गल्प पत्रिका' के मंत्री रहे। अनेक बार राजनीतिक उथल-पुथल में का प्रकाशन किया। 'गल्प पत्रिका' के कांग्रेस अंक नियंत्रण करके स्थिति को आपने संभाला था। को जब्त कर आपको जेल भेज दिया गया था। रियासत के जमाने में रियासत के एक जागीरदार
पाण्डवीय जी ने 1922 में साप्ताहिक 'समय' ने दशहरा जुलूस में निकालने हेतु जैन मंदिर का रथ निकाला और वीरांगना लक्ष्मीबाई की जयन्ती मनाई। मांगा, न दिये जाने पर उसने मन्दिर में तोड-फोड व वे खादी प्रचार के माध्यम से भी समाज में लोकप्रिय मल-मूत्र फेंकने की शर्मनाक घटना करवाई, इस पर हुए, मध्य प्रदेश और उसके बाहर भी उनकी कार्य जैन समाज क्षुब्ध हो गया। पाण्डवीय जी ने उस सेवा अजस्र भाव से चलती रही। सार्वजनिक सभाओं आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1924 से 26 तक आप में उनकी अध्यक्षता चर्चित होती थी। एक दिसम्बर सोनागिर सिद्धक्षेत्र कमेटी के मंत्री तथा 1957 से 1976 193) को उग्र भावनाओं के कारण बिना वारण्ट के तक उपाध्यक्ष रहे। अ0भा0 दिगम्बर जैन परिषद् के गिरफ्तार कर आपको जेल भेज दिया गया। 1941 में हस्तिनापुर अधिवेशन में आप राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित आप जेल से मुक्त हुए। 1940 में आप जब जेल में हुए थे। श्री वीर शिक्षा समिति, लश्कर के भी आप थे. तब आपको ग्वालियर स्टेट कांग्रेस का अध्यक्ष चना अध्यक्ष रहे थे। गया। आपकी अनुपस्थिति में आपके चित्र को रखकर 11 फरवरी 1980 को आपका निधन हुआ। उस अधिवेशन में जुलूस निकाला गया तथा कार्यवाही अन्तिम दिनों में आपने 'श्यामलाल पाण्डवीय सुकृत की गई।
सेवा न्यास' की स्थापना की और अपनी सम्पत्ति का इससे पूर्व 1917-18 के दिल्ली कांग्रेस अधिवेशन बहुतांश समाजसेवा हेतु इस न्यास को समर्पित कर में आप किसान प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। दिया।
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358
स्वतंत्रता संग्राम में जैन अगस्त 1981 में राज्य शासन ने 'शासकीय
चौधरी सगुनचंद जैन, पुत्र-श्री महाविद्यालय' मुरार को आपकी स्मृति में समर्पित
चौ0 दमरूलाल जैन वैद्य का कर 'श्यामलाल पाण्डवीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय'
जन्म 15 अगस्त 1925 को नाम रख दिया है।
मुगावली, जिला-गुना आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-253
(म0प्र0) में हुआ। आरम्भ (2) जै0 इ), पृष्ठ-83 (3) जै0 स0रा0 अ0 (4) वीर, भोपाल
से ही आप निडर और अधिवेशन विशेषाङ्क-1992 (5) प्रसिद्ध पत्रकार श्री रवीन्द्र मालव द्वारा प्रेषित परिचय (6) जै0 जै0 यु), पृष्ठ 227-228
स्वाभिमानी रहे। एक बार जब
आप 7-8 वर्ष के थे तब अपने बड़े भाई डॉ0 श्री श्रीचंद जैन
ताराचंद जी के साथ ठठेरे (मक्का के सूखे पौधे के श्री श्रीचंद जैन, पुत्र-श्री गेंदालाल जैन का सूखे डन्ठल ) की बन्दूक बनाकर जंगल में शेर जन्म 1924 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 मारने गये थे, खैर शेर तो नहीं मिला, दिन भर भखे के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप गिरफ्तार हुये और रहे, घर आकर पिटाई हुई सो अलग। यह घटना लगभग 8 माह का कारावास भोगा।
बाल्यकाल से ही आपकी जोखिम भरे साहसिक आ-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-127 कार्य करने की प्रवत्ति को अभिव्यक्त करती है। (2) स्व0 स) ज0, पृष्ठ-176
अपने राजनैतिक जीवन के सन्दर्भ में आपने जो श्री संपतलाल लूंकड
लिखा है. वह तत्कालीन राजनैतिक परिदृश्य को भी फलौदी (राज0) के एक ओसवाल जैन परिवार व्यक्त करता है। में वि0सं0 1957 (1900 ई0) की आश्विन कृष्ण आपने लिखा है- "कटनी में जब मैं पढ़ता था 7 को जन्मे श्री संपतलाल लुंकड़ बचपन से ही तब 1937 में देश की राजनीति में काफी परिवर्तन अन्याय का विरोध करने लगे थे। 1939 में फलौदी हुआ। आम चुनाव हुये और कांग्रेस ने आठ प्रान्तों में में लोकपरिषद् की स्थापना होने पर वे उसमें शामिल मंत्रिमंडल बनाया। इस समय पं0 रविशंकर शुक्ला, हो गये और अनेक वर्षों तक उसके अध्यक्ष रहे। जो मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री थे, कटनी आये। इसी उस समय अकाल में भी उन्होंने काफी काम किया, समय नवयुवक सम्राट् श्री सुभाष चंद बोस भी जागीरदारों से निरन्तर संघर्ष किया तथा मारवाड़ आये, जिन्होंने उग्र राष्ट्रभक्ति का मंत्र फूका। लेकिन लोकपरिषद् के जिम्मेवार हुकूमत आन्दोलन में 26 वर्ष 1939 का सितम्बर माह अधिक रहस्यपूर्ण था अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिये गये और 16 जब विश्व की महान् शक्तियों में द्वितीय महायुद्ध माह जोधपुर सेन्ट्रल जेल, बिजोलाई पैलेस आदि प्रारम्भ हुआ। इस समय कांग्रेस ने सरकार के विरोध स्थानों पर नजरबन्द रखे गये। शराबबन्दी आन्दोलन ___- स्वरूप त्यागपत्र दे दिया था, क्योंकि बिना कांग्रेसी में भी आपने सक्रिय भूमिका निभाई। मन्त्रिमंडल से पूछे अंग्रेजों ने भारत को दूसरे महायुद्ध आ) (1) रा. स्व0 से0, पृष्ठ-728
में झोंक दिया था। चौधरी सगुनचंद जैन
दूसरे महायुद्ध के चलते सन् 1942 तक देश साहू जैन कॉलेज, नजीबाबाद (बिजनौर) उ0प्र0 राजनीतिक दृष्टि से काफी जागृत हो चुका था। ब्रिटिश के राजनीतिशास्त्र विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवत्त द्वारा सरकार चारो तरफ हार रहा था आर जापान दक्षिण
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नहीं डा
प्रथम खण्ड
359 एशिया को रौंदता हुआ भारत के दरवाजे खटखटाने कि भारत माँ शीघ्र आजाद हो सके। इसलिए जब मैं लगा था। महात्मा गांधी और कांग्रेस के नेताओं को पुलिस व सेना के जवानों में विद्रोह को उत्पन्न करने लगा कि अब समय आ गया है कि देश में कोई की दृष्टि से पैम्पलेट बांट रहा था, तब 14 अगस्त निर्णायक आंदोलन प्रारम्भ किया जाय, ताकि भारत 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज को जापान के सम्भावित आधिपत्य से बचाया जा दिया गया। .. सके। अत: महात्मा गांधी ने 8 अगस्त सन् 1942 अदालत की कार्यवाही जेल के बंद कमरे में को बम्बई में कांग्रेस का खुला अधिवेशन किया और चली, मजिस्ट्रेट ने मुझसे बयान देने को कहा, लेकिन अंग्रेजों से कहा कि- 'आप भारत छोड़कर चले जायें मैंने कहा कि- "ब्रिटिश हुकूमत के गुलाम मजिस्ट्रेट और हमें आजादी दें। हम लोग अपनी रक्षा स्वयं कर कभी न्याय नहीं कर सकते।' अत: मैंने किसी प्रकार लेंगे।' इस प्रकार देश में भारत छोड़ो आन्दोलन का के बयान देने से इंकार कर दिया और किसी भी सूत्रपात पूज्य बाबू जी ने किया और हर देशवासी तरह की माफी मांगने से भी इंकार कर दिया। फलत: को 'करो या मरो' का नारा दिया। लेकिन कांग्रेस के मजिस्ट्रेट ने भारत रक्षा कानून की धारा 38 (5) और इस खुले अधिवेशन में किसी भी कार्यक्रम पर प्रकाश 39 (6) के अनुसार 16-9-1942 को दो वर्ष के
जा सका. क्योंकि विशेषकर बम्बई में और कठोर कारावास की सजा सनाई. लेकिन बाद में सम्पूर्ण भारत में कांग्रेसी नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत 4-7-1943 को जेल से मुक्त कर दिया गया, किन्तु ने रातों-रात गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के साथ ही साथ बनारस जिले से भी निष्कासित कर कारणों पर बोलते हुए इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री श्री चर्चिल दिया गया। ने कहा कि भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त जेल में मैं नाबालिग बार्ड में रखा गया। इस करने के लिए कांग्रेस ने तोड-फोड की कार्यवाही समय बनारस जेल में डॉ0 सम्पर्णानंद, श्री श्रीप्रकाश बनाई है।' अत: जनता नेता विहीन होकर हिंसक और प्रो) खुशाल चंद जी गोरावाला आदि नेता थे। कार्यवाही में जुट गई। रेल, डाक, तार, टेलीफोन आदि जेल अधिकारियों को परेशान करने की दृष्टि व्यवस्था को भंग करना और ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ से रात्रि में तसला बजाना, कम्बल व चटाइयों में आग फेंकने के लिए हर सम्भव कार्य करना उसका एक लगाकर तापना और जेल में दिये जाने वाले कामों नियमित कार्य बन गया।
को खराब करना आदि प्रमुख कार्य हम लोग करने इन दिनों श्री स्याद्वाद महाविद्यालय (इस संस्था लगे। इसलिए जेल अधिकारियों ने तन्हाई में रखने के दशाधिक क्रांतिकारियों का परिचय इस ग्रन्थ में की तथा बेड़ियां पहनाने की सजा दी। तन्हाई में हम दिया गया है, तथा एक आलेख भी।) वाराणसी लोग खूब राष्ट्रीय गीत गाते रहते थे और बेड़ियां पहने क्रन्तिकारी कार्यवाही का केन्द्र बन गया था। हम लोगों हुये पेड़ पर चढ़ जाया करते थे। पता नहीं जेल का ने पढ़ना-लिखना बंद कर दिया और रेलवे लाइनों सारा समय कब और कैसे व्यतीत हो गया। को उखाड़ना, पोस्ट ऑफिसों को फूंकना तथा तार व जेल से छूटने के बाद बनारस जिले से निष्काषित टेलीफोन लाइनों को छिन्न-भिन्न करना और पुलिस होने के कारण संस्कृत के अध्ययन का मार्ग अवरुद्ध तथा सेना के जवानों में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हो गया। अत: हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट, बी0ए0 तथा अभक्ति की भावना पैदा करना तथा विद्रोह करने को एम0ए0 परीक्षायें उत्तीर्ण की और शिक्षण कार्य प्रारम्भ तैयार करना आदि कार्य प्रारम्भ कर दिये थे, जिससे कर दिया।'
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360
स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रारम्भ में आप श्री महात्मा गांधी इण्टर कॉलेज आप नगर के प्रमुख राष्ट्रीय कार्यकर्ता रहे हैं। में नागरिकशास्त्र के प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हये। आ()-(1जा) सा रा() 0 (2) उ0 प्र) जै) 4(), इसके बाद श्री तारणतरण जैन इण्टर कॉलेज. पृष्ठ- 92 गंजबासौदा-(विदिशा) म0प्र0 में प्राचार्य के पद पर
श्री सन्तलाल जैन फिर एस०एस०एल) कॉलेज, विदिशा, सेठ आर0एन0 फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री सन्तलाल जैन ने रुइया कॉलेज, रामगढ़ (शेखावटी) राजस्थान, 1942 के आन्दोलन में डाक बंगला जलाने के पश्चात् बी0एस0एम0 कॉलेज रूड़की और अन्त में साहू श्री धनवंत सिंह के यहाँ बैठकर साथियों के साथ जैन कॉलेज नजीबाबाद (बिजनौर) उ0प्र0 में डाकखाना जलाने का कार्यक्रम बनाया। वहाँ तत्कालीन राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त सी0आई0डी0 इन्सपेक्टर रामप्रसाद भी कार्यकर्ता के हुए। नजीबाबाद से ही आप सेवानिवृत हुए। वेश में जानकारी प्राप्त कर गया और डाकखाना जलाने
आ0-(1) मा प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-307 से पर्व ही श्री धनवंत सिंह, श्री रामबाबू जैन एवं (2) स्व0 प0
आपको गिरफ्तार कर सेन्ट्रल जेल आगरा में रखा गया। श्रीमती सज्जन देवी महनोत मई 1943 में आपको इस शर्त पर छोड़ा गया कि आप
उज्जैन (म)प्र()) के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी थाने में हाजिरी दिया करें, परंतु आपने सरकार की श्री सरदार सिंह महनोत की धर्मपत्नी श्रीमती सज्जन इस आज्ञा को नहीं माना अत: पुन: नजरबंद कर दिया देवी महनोत का जन्म 1904 के आस-पास ग्वालियर गया और अक्टूबर 1946 में छोड़ा गया। राज्य के राजप्रतिष्ठित श्री सगनचंद भंडारी के यहाँ
आO-(!) जै) स) रा) अ) (2) उ0 प्र0 0 ध0. हुआ। तत्कालीन पर्दा-प्रथा. दिखाऊ कलीनता की पृष्ठ-1) (3) अमृत, पृष्ठ-24 (4) जै) 0 ना0 अ0, पृष्ठ- आपने चिन्ता नहीं की और मिडिल तक शिक्षा ग्रहण श्रीमती सरदार कुंवर बाई लूणिया की। 1930 के आन्दोलन में सरकारी आदेश की
अजमेर (राजस्थान) के प्रसिद्ध देशभक्त श्री अवहेलना कर आप चार माह जेल में बन्द रहीं। जीतमल लणिया की धर्मपत्नी श्रीमती सरदार कंवर 1932 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी आपने जेल बाई लणिया पर्दाप्रथा का बहिष्कार कर राष्टीय आन्दोलन यात्रा की। 1942 में आप अनेक बार गिरफ्तार हुई में भाग लेने वाली ओसवाल जैन समाज की
और छोड़ दी गई। 1943 में जब आप नजरबंद हुईं महिलारत्न थीं। 1933 में राष्टीय आन्दोलन में आपने ता 1946 में छूटी। आपके पुत्र श्री राजेन्द्र कुमार भाग लिया। जब लणिया जी जेल चले गये तो कछ नहनात और भतीजे श्री ताज बहादुर महनोत ने भी समय बाद आपने विदेशी कपड़ों की दुकानों पर जेल की दारुण यातनायें सहीं।
पिकेटिंग की, फलस्वरूप गिरप्तार हुईं और छह महीने आ0-(1) जै) स0 रा0 अ), पृष्ठ-90 (2) इ0 अ0
की सजा पाई। आप पांच-छह महिलाओं का जत्था आं), भाग-2, पृष्ठ-399
लेकर गई थीं, सभी गिरफ्तार कर ली गई। मजिस्ट्रेट लाला सन्तकुमार जैन
ने आपको 'ए' क्लास तथा अन्य महिलाओं को 'सी' स्थानीय कांग्रेस कमेटी के प्रधान रहे, अवागढ़, क्लास में रखा। आपने इसका विरोध किया और जिला-एटा (उ0प्र()) के ला0 सन्तकुमार जैन को अपने तीन वर्षीय पुत्र के साथ 'सी' क्लास में ही 1942 के आन्दोलन में 9 माह की जेल हुई थी। रहीं।
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प्रथम खण्ड
361 आ)- (1) इ) अ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ 373 (2) जै) मैंनेजर के पदों पर रहे, पर इस सबका उपयोग आपने स0रा0 अ0
देशसेवा के लिए ही किया। श्री सरदार सिंह महनोत
1930 के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय आप स्वाधीनता संग्राम में जहाँ देश में 'एक घर एक मजदूर आन्दोलन को लेकर गिरफ्तार हुए और पुलिस व्यक्ति' भी देश को अर्पण न कर सका, वहीं कुछ की मार खायी। इसके बाद आप अन्य आन्दोलनों के ऐसे भी जैन कुटुम्ब रहे हैं जो पूरे के पूरे देश के चरणों समय अन्य प्रकार से सहायता देते रहे। 1942 के पर चढ़ गये। उज्जैन का जैन महनोत परिवार भी उनमें भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको से एक था। इस परिवार के श्री सरदार सिंह महनोत, 4 वर्षों तक नजरबंद रखा गया। ओसवाल महासम्मेलन उनकी पत्नी श्रीमती सज्जन देवी महनोत, पुत्र श्री के मुखपत्र 'ओसवाल' का आपने अनेक वर्षों तक राजेन्द्र कुमार महनीत एवं भतीजे श्री ताजबहादुर महनोत सफलता पूर्वक सम्पादन किया। ने अनेक वर्षों तक जेल की दारुण यातनाएं सहीं। आ)-(1) जी) स0 रा0 अ0, पृष्ठ-90 (2) इ0 अ0 ओ,
उज्जैन के सेठ सौभाग्यचन्द्र महनोत अपने समय के उन लोगों में से थे जो ग्वालियर नरेश माधवराव
समाधिस्थ आर्यिका सर्वती बाई या शिन्दे के प्रियजनों में से थे। आपने अपनी धार्मिकता
सरस्वती देवी से जैन समाज, उदारता और सम्पत्ति से राज्य तथा
आर्यिका सर्वतीबाई का जन्म 1906 के आसपास संगीत-कला प्रेम से संगीतज्ञों में ऊँचा स्थान पाया था।
हुआ। आपके पिता का नाम श्री सांवलदास था। शादी 1900 के आस-पास आपको पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ जिसका नाम उस समय ज्योतिषी ने 'सरदार' रख दिया
के कुछ दिनों बाद ही वैधव्य का दारुण दु:ख आप था। उसे स्वप्न में भी यह ख्याल न आया होगा कि पर आ पड़ा, अत: आप अपने पिता के घर रहने राजप्रतिष्ठित घराने का युवक शिन्दे के दरबार की लगी। राष्ट्रीयता की भावना आप में जन्मजात थी ही, सरदारी छोडकर शोषण और दास्तां के प्रतीक स्वतंत्रता पति के निधन के बाद आपने देशसेवा का निश्चय प्रेमियों का भी सरदार बनेगा।
किया और विभिन्न आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया, आपकी शिक्षा उस समय की प्रथानसार केवल जिसके कारण आपको दो बार जेल यात्रा करनी पडी। मैट्रिक तक ही हुई। इसके बाद गुरुजनों ने घर का आपने अन्य महिलाओं को भी इन आन्दोलनों में धंधा देखने की सलाह दी। पर आश्चर्य कि महनोत भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। देशप्रेम के साथजी ने कॉटन- इण्डस्ट्रीज के किले उज्जैन में भी खद्दर साथ हृदय में विद्यमान धार्मिक संस्कार आपको सभी भण्डार खोला।
धार्मिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहते आपके जीवन का प्रारम्भ शिवपुरी (ग्वालियर) थे। एक बार एक मुनि-संघ आगरा आया, आपने विद्यालय की सुपरिटेण्डेण्टी से हुआ इसके बाद मुनिश्री के प्रवचनों को ध्यानपूर्वक सुना और वैराग्य
आप केशवराम कॉटन मिल, कलकत्ता के सेल्स धारण कर लिया। कहते हैं कि आप दीक्षा लेने से विभाग में रहे, बसन्त कॉटन मिल की जनरल मैंनेजरी पर्व अपने पिता के घर तक तो गईं, परन्त बाहर से की, सुगर सिण्डीकेट के ब्राञ्चों की व्यवस्था की ही आवाज देकर कह दिया कि- 'मैं दीक्षा ग्रहण और बनारस कॉटन तथा सिल्क मिल के जनरल कर रही हूँ' दीक्षोपरान्त आपने अनेक स्थानों पर
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362
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
भ्रमण कर आत्मकल्याण के साथ जैन धर्म के इस संगठन को भी ब्रिटिश सरकार ने गैर कानूनी घोषित
प्रचार- प्रसार की महती भूमिका निभाई।
कर दिया।
आ०- (1) प० इ०, पृष्ठ-125 तथा 142 (2) जै० स० रा0 अ0 (3) उ0 प्र0 जै० ध0, पृष्ठ-93 (4) श्री महावीर प्रसाद, अलवर द्वारा प्रेषित परिचय (5) गो0 अ० ग्र0, पृष्ठ-226
श्री सवाईमल जैन
मध्यप्रदेश विधान सभा के उपाध्यक्ष, जबलपुर नगर निगम के महापौर और स्थायी समिति के अध्यक्ष, म0प्र0 स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ के उपाध्यक्ष आदि पदों पर रहे श्री सवाईमल जैन का जन्म 30 नवम्बर 1911 को जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता श्री समल सांड, मेडता ( राजस्थान) से जबलपुर आये थे। श्वेताम्बर जैन परिवार में जन्मे पूसमल जी यहाँ राजा गोकुलदास के यहाँ मुनीम थे। सवाईमल जी के भाईयों ने विदेशी खिलौनों और मनिहारी का व्यवसाय प्रारम्भ किया था किन्तु 1930 के स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने वह व्यापार बन्द कर हिन्दी, संस्कृत और धार्मिक पुस्तकों का व्यापार प्रारम्भ किया
था।
सावईमल जी की शिक्षा जबलपुर, बनारस और कानपुर में हुई। छात्र जीवन से ही वे आजादी के लिए छटपटाने लगे थे। 1930 के आन्दोलन में वे पढ़ाई छोड़कर आन्दोलन में कूद पड़े। एक वर्ष जेल की यातनाऐं उन्होंने सहीं। 1932 में पुनः गिरफ्तार हुए और 6 माह के कठोर कारावास तथा 20 रुपया अर्थदण्ड की सजा पाई। अर्थदण्ड चुकता नहीं किया अत: अतिरिक्त डेढ़ माह की सजा और भुगतनी पड़ी।
कानपुर में उच्च शिक्षा पूर्णकर आप जबलपुर आये और राष्ट्रीय कार्यक्रमों को मूर्तरूप देने के लिए नेशनल ब्याय स्काउट्स एसोसिएशन नाम से संस्था का गठन किया, जिसके माध्यम से कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिये जाने के बाद भी सत्याग्रह सम्बन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये गये, अन्ततोगत्वा
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1933 तथा 1935 में इसी संस्था के माध्यम से आपने स्वदेशी प्रदर्शनियों का आयोजन किया था, जिसके उद्घाटन के लिए डॉ) राजेन्द्रप्रसाद तथा माता स्वरूपरानी नेहरू का जबलपुर आगमन हुआ था। इससे स्वदेशी प्रचार तथा राष्ट्रीय जागरण में अभूतपूर्व सफलता मिली। 1939 के त्रिपुरी कांग्रेस में आपने किसानों तथा नवयुवकों का प्रतिनिधित्व किया था।
1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आप पुन: पकड़े गये और 6 माह के लिए नागपुर जेल भेज दिये गये। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी कुछ समय तक भूमिगत रहने के बाद आप गिरफ्तार कर लिए गये और एक वर्ष दस माह 24 दिन जबलपुर जेल में नजरबन्द रहे। बाद में आपने समाजवादी दल का गठन किया और नगर निगम के चुनावों में बहुमत पाया। अनेक वर्षों तक स्थायी समिति के अध्यक्ष और दो बार महापौर भी आप रहे ।
आप जबलपुर नगर के मध्यक्षेत्र से दो बार विधायक चुने गये तथा विधान सभा के उपाध्यक्ष पद पर कार्य किया। अपने आदर्शों पर सदैव अडिग रहने वाले श्री जैन म() () स्व(सं) सैनिक संघ के अध्यक्ष, नगर स्व०सं०सं० संघ के कर्णधार, नगर कांग्रेस कमेटी के मंत्री, उप सभापति, अ0भा0 कांग्रेस कमेटी के सदस्य, जबलपुर विश्वविद्यालय की कुलसंसद और कार्यकारिणी के सदस्य, महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति के अध्यक्ष आदि अनेक पदों पर रहे। नेताजी सुभाष चन्द बोस से आप का निकट सम्पर्क रहा, श्री जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, राममनोहर लोहिया, अशोक मेहता, हरिविष्णु कामत आदि के आप विश्वासपात्र थे।
श्री जैन की जीवन शैली त्याग, बलिदान, समर्पण, सादगी जैसे मानवमूल्यों के उच्च आदर्शों पर गढी हुई
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प्रथम खण्ड
363 थी। अपने स्वभाव की प्रखरता और दो टूक बात कहने
श्री सागरमल जैन के कारण श्री जैन जीवनपर्यन्त अपनी अलग पहचान भोपाल (म0प्र0) के श्री सागरमल जैन, पुत्र- श्री बनाये रहे। वे साधारण होते हए भी असाधारण थे। धन्नालाल का जन्म 1920 में हुआ। 1949 के भोपाल
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-115 (2) राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा स्व0 स0 ज0, पृष्ठ-177-178 (3) 'शीतल सौरभ' स्मारिका, 16 दिन का कारावास भोगा। जबलपुर, फरवरी 1994, पृष्ठ-66 एवं 87
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5,पृष्ठ-30 श्री सागरचंद जैन
श्री साधूलाल जैन बुढ़ार, जिला-शहडोल (म0 प्र0) के श्री सागरचंद टीकमगढ़ (म0प्र0) के श्री साधूलाल जैन, जैन, पुत्र-श्री पल्टू उर्फ गुलाबचंद जैन का जन्म पुत्र-श्री मुन्नालाल का जन्म 1912 में हुआ। बुंदेलखण्ड 1918 में हुआ। आपके पिता एक अच्छे व्यवसायी की चरखारी रियासत में उत्तरदायी शासन हेतु चलाये थे। माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त श्री सागरचंद ने 1942 गय आन्दालना में भाग लन के कारण आपका के आन्दोलन में भाग लिया। आपने ब्रिटिश शासन ।
कारावास की सजा भोगनी पड़ी। के युद्ध-चन्दा (बार फण्ड) का विरोध किया।
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, स्वामी माधवानन्द सरस्वती के साथ आप शहडोल
पृष्ठ-137 (2) वि0 स्व0 स0 इ0, पृष्ठ-306 एवं 356 गये, जहाँ बार फण्ड हेतु सभा चल रही थी।
श्री साबूलाल कामरेड़ । स्वामी माधवानन्द ने अचानक खडे होकर जब हंसमुख स्वभावी श्री साबूलाल जैन कामरेड बार फण्ड के विरोध में भाषण देना प्रारम्भ किया,
का जन्म पथरिया, जिला-दमोह (म0प्र0) में दिनांक
14-9-1922 को श्री अनन्तराम जी के यहाँ हुआ। तब श्री जैन ने अन्य साथियों के साथ एक लकड़ी
1939 में आप दमोह जिला कांग्रेस कार्यालय में पर तिरंगा लहराकर नारे लगाना प्रारम्भ कर दिया।
कार्य करने लगे, जिसमें डंडी पीटने से लेकर दफ्तर सभा में व्यवधान आ पड़ा, अफरा-तफरी मच गई, का परा कार्य आपने संभाला। 1939 में त्रिपुरी फलतः आपको गिरफ्तार कर लिया गया और पाँच अधिवेशन में तीन हफ्ते स्वयंसेवक बनकर रहे। माह रीवां जेल में रखा गया।
साथ ही जैन सेवादल से जुड़ गये तथा सामाजिक ___ आ)-(1) म0 प्र0 स्व। सै0, भाग-5, पृष्ठ-317 (2) कार्यों में भी भाग लेने लगे। स्व) आO श), पृष्ठ- 154
दि) 11 अगस्त 1942 को आप जुलूस का
नेतृत्व करते हुए पकड़े गये, मुकदमा चला तथा श्री सागरचंद जैन
50/- जुर्माना की सजा हुई। पुत्र को छुड़ाने के लिए जबलपुर (म0प्र0) के श्री सागरचंद जैन, अनन्तराम जी ने बंजी (घोड़ा आदि पर सामान बांध पुत्र- श्री फूलचंद 1942 के आन्दोलन में तोड़फोड़ कर गांव-गांव बेचने का काम) करने का घोड़ा बेच के कार्यों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार हुए और डाला, परन्तु गांधी चौक की आम सभा का डिक्टेटर 13 सितम्बर 1942 से 17 जनवरी 1943 तक बनकर भाषण देते हुए आप फिर पकड़ लिये गये नजरबन्द रहे।
तथा सागर जेल में 7 माह नजरबन्द रहे, बाद में
मुकदमा चला तथा तीन माह की सजा दी गई। आ)-(1) म.प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-115 (2)
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-90 (2) स्वा) स) ज0. पृष्ठ-170
श्री संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री साबूलाल जैन
प्रवास में आप हरिजन उत्थान समिति के मंत्री तथा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण शिक्षक बंगाल हरिजन बोर्ड के सदस्य थे। उन्हीं दिनों आपने पद से निलम्बित किये गये, दमोह (म0प्र0) के श्री 'समाज-सेवक', 'ओसवाल' और 'तरुण जैन' जैसे साबलाल जैन, पुत्र-श्री सुखलाल जैन का जन्म 1906 पत्रों का सम्पादन किया। उन दिनों आप हिन्दुस्तान में हआ। अल्पवय में ही आप 1921 से स्वतंत्रता संग्राम टाइम्स, अमृतबाजार पत्रिका, विशाल भारत आदि में जबलपुर में सक्रिय हो गये। विदेशी वस्त्र बहिष्कार राष्ट्रीय समाचार पत्रों में लेख लिखा करते थे। तथा 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में आपने भाग 1942 के आन्दोलन के समय आपने इण्डियन लिया। आपने अध्यापन और प्रशिक्षण प्राप्त किया और चेम्बर कलकत्ता से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन शिक्षक बन गये, शिक्षण कार्य करते हुए भी जेल में में कूद पड़े। वाराणसी जेल में दो वर्ष का कारावास क्रांतिकारियों को सामग्री पहँचाते रहे और प्रचार साहित्य आपको भुगतना पड़ा तभी आपने अपना शेष जीवन का वितरण किया। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने सार्वजनिक सेवा में लगाने का निश्चय किया। अपने के कारण शिक्षक पद से आपको निलम्बित कर दिया जमे जमाये मंत्री पद को लात मारकर आन्दोलन में गया था।
कूदने वाले कितने हैं? आपके इस कार्य की प्रशंसा आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ 91 करते हुए जैन सन्देश (राष्ट्रीय अंक), 23 जनवरी
1947 लिखता हैश्री सिद्धराज ढढ्ढा
(राजस्थान के सिद्धराज ढढ्ढा) कलकत्ता के भारत सरकार द्वारा 2002 में घोषित पद्मभूषण ।
पद्मभूषण चेम्बर आफ कॉमर्स में सेक्रेटरी का भार संभाले हुए सम्मान को सरकार की नीतियों से असहमत होने के ।
__ थे, किन्तु स्वतंत्रता का दीवाना सेठों के चांदी और कारण अस्वीकार करने वाले
सोने के सट्टे का हिसाब रखने में ही अपनी प्रतिभा प्रसिद्ध गांधीवादी तथा सर्वोदय नेता श्री सिद्धराज ढढ्ढा का।
का व्यय कैसे करता रह सकता था, फलतः आप जन्म 12 फरवरी 1900 को वहा स जयपुर चल आये ओर यहाँ आकर जन-सेवा
और जन-जागति का कठिन व्रत स्वेच्छा से अंगीकार जयपुर (राजस्थान) में हआ। महाराजा हाईस्कल तथा किया और दैनिक 'लोकवाणी' का संस्थापन, संचालन महाराजा कालेज, जयपर में और सम्पादन करना आरम्भ कर दिया है। यहाँ
प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा आकर थोड़े ही दिनों में आपका विशिष्ट स्थान बन ग्रहण कर 1928 में आपने लखनऊ विश्वविद्यालय गया है। ऐसे राष्ट्रवादी युवकों को जेल तो प्रसाद में से बी0 ए0 व 1930 व 1931 में इलाहाबाद मिला ही करती है। इसलिए आपको भी सन् 42 में विश्वविद्यालय से क्रमश: एम0 ए0 व एल0 एल0 जेल मिली तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बी) परीक्षायें उत्तीर्ण की। ढढ्ढा जी अपने छात्र जीवन सामाजिक विचारों में आप बहुत क्रान्तिकारी सुधारक में इलाहाबाद यूथलीग व इलाहाबाद वि0 वि) छात्रसंघ हैं। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप 'तरुण जैन' के उपाध्यक्ष रहे। 1931-33 में आपने मैसूर, बंगलोर मासिक भी निकाल रहे हैं।' और जयपुर में वकालत की।
1943-45 में आप जेल में रहे तथा 1945 से 1934-1942 में आप इण्डियन चेम्बर आफ 1951 के मध्य राजपूताना देशी राज्य लोक परिषद् कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री कलकत्ता के मंत्री रहे। कलकत्ता के मंत्री, अ0 भा0 देशी राज्य लोक परिषद् के
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प्रथम खण्ड
365 कार्यकारिणी सदस्य, अ) भा० कांग्रेस कमेटी के पीड़ित रहा, लेकिन देश-प्रेम ने परिवार को प्रमुखता सदस्य, अ) भा० कांग्रेस अधिवेशन स्वागत समिति नहीं दी। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले योद्धाओं में जयपुर (1948) के संयुक्त मंत्री आदि अनेक पदों बहुत कम ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने परिवार को गौण पर रहे। इसी समय आप राजस्थान मंत्रिमण्डल में और देश को प्रमुखता प्रदान की। आजादी के प्रणेताओं उद्योग तथा व्यापार मंत्री रहे। राजस्थान ग्रामोद्योग बोर्ड ने जो भी कार्य सौंपा उसे आपने निर्भीकता पूर्वक के अध्यक्ष पद को भी आपने सुशोभित किया था। पूरा किया। करो या मरो आंदोलन में 1942 में
1051 में ढढढा जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र आपको एक वर्ष की कठोर सजा एवं 100/- जुर्माना देकर सर्वोदय आन्दोलन में प्रवेश किया और तभी हुआ। जुर्माना अदा न करने पर दो माह की और से इससे जुड़े हुए हैं। आपने श्री जयप्रकाश नारायण सजा झांसी जेल में काटी। के साथ इंग्लैण्ड, युरोप, अफ्रीका, जापान, दक्षिण आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-34
___(3) डॉ0 बाहुबलि कुमार द्वारा प्रेपित विवरण कोरिया आदि की यात्रायें की थीं। आप सर्व सेवा संघ, राजस्थान सेवक संघ, राजस्थान खादी संघ
श्री सुखलाल जैन आदि के अध्यक्ष रहे हैं। ढढ्ढा सा0 ने जयपुर में सागर (म0प्र)) के श्री सुखलाल जैन, पुत्र-श्री ग्रामीण अर्थशास्त्र का शोध तथा अध्ययन करने के हीरालाल का जन्म 1901 में हुआ। 1921 में लिए 'कमारप्पा ग्राम स्वराज्य संस्थान' की स्वतंत्रता संग्राम में आपने भाग लिया तथा 6 माह का स्थापना की। सम्प्रति आप इसके अध्यक्ष हैं। आप कारावास भोगा। 'सत्याग्रह मीमांसा' मासिक पत्रिका का सम्पादन भी
आ) (1) म0 प्र0 स्वाा सै0भाग-2, पृष्ठ- 68 कर रहे हैं।
(2) आ0 दी0, पृष्ठ 84 आ) (1) रा) स्वा से), पृष्ठ-592 (2) जै0 स) रा0
सिंघई सुगमचंद जैन अ0, पृष्ठ-70 (3) राजस्थान में रचनात्मक कार्य (परिचय ग्रन्थ)
पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के जमींदार पृष्ठ-64 (4) स्व) प0
सिंघई सुगमचंद जैन, पुत्र-श्री सिंघई मोहनलाल जैन श्री सुखलाल इमलिया
का जन्म 1916 में हुआ। 14 वर्ष की अल्पायु श्री सुखलाल इमलिया का जन्म 1919 में में आप स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। अपना ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम राजनैतिक परिचय देते हुए आपने लिखा है कि
श्री परमानंद था। अपने अग्रज 1930 की बात है, मेरे बड़े दादा, जिनके पास मैं श्री वृन्दावनलाल इमलिया रहता था, कट्टर कांग्रेसी थे, उन्होंने 1930 में विदेशी (इनका परिचय इसी ग्रन्थ वस्त्रों की होली जलाई थी, यह दृश्य देख पुरी में अन्यत्र देखें) की प्रेरणा जानकारी के लिए मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मेरा मन से आप परिवार के विदेशी शासन के प्रति विद्रोह से भर गया। भरण-पोपण की परवाह न विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के कारण हमारे
करते हुए भारत माता को पूर्वजों की दो बन्दूकों, जो जमींदार होने के कारण स्वतंत्र कराने हेतु स्वयं भी सेनानियों की कतार में सुरक्षार्थ हमें मिली थीं, को शासन ने जब्त कर लिया। खड़े हो गए। जिससे परिवार गहन अर्थाभाव से 1940 में मण्डला से श्री श्यामलाल जैन व श्री
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमीर चंद जैन माननीय के एक उत्साही कार्यकर्ता थे। कांग्रेस कार्यों में आप गिरिजाशंकर अग्निहोत्री के पर्ण तत्परता के साथ भाग लेते थे। 1942 के अगस्त निर्देश से पिण्डरई में प्राचार्य आंदोलन में सरकार ने आपको गिरफ्तार कर लिया, के रूप में भेजे गये। ये सभी फलतः जेल में आपने (, महीने की सख्त सजा मेरे यहाँ ही रहते थे, अतः मैं भोगी। भी प्रचार के लिए जाने लगा। आ0-(1) जैन) सा) रा) अ0 (2) आ) दी), पृष्ठ-84
चूंकि मेरी इन गांवों में (3) पं) वंशीधर जी शास्त्री द्वारा प्रेपित परिचय जमींदारी थी अत: सभी मेरी बात ध्यान से सुनते थे। श्री सुन्दरलाल छजलानी हमारे भाषण के मुख्य विषय सूत कातना और जमा महिदपुर, जिला- उज्जैन (म0प्र0) के श्री तकावी नहीं देना आदि थे।
सुन्दरलाल छजलानी, पुत्र-श्री लक्ष्मीचंद का जन्म 8 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का पिण्डरई जनवरी 1927 को हुआ। अल्पवय में ही आप में बड़ा असर हुआ, अनेक क्रान्तिकारी सेनानी जेल 1939 से राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। गये, जिन आठ कार्यकर्ताओं के नाम वारण्ट जारी हुए 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में आप गिरफ्तार उनमें मेरा नाम भी था। जानकारी प्राप्त होते ही मैं हुए व महिदपुर जेल में कारावास की सजा भोगी। भूमिगत हो गया, उस अवस्था में भी रेलवे के तार आ)-(1) म0 प्र0 स्व0 ). भाग-1, पृष्ठ-170 काटना, फिश प्लेट हटाना, ग्राम पंचायत भवन के रिकार्ड
श्री सुन्दरलाल जैन जलाना आदि गतिविधियों में संलग्न रहा। मेरे भूमिगत
जिनके विषय में कहा जा सकता है कि 'जन्म रहने के कारण, इलाज की समुचित व्यवस्था न होने से मेरी पत्नी ने प्रसव के चार घण्टे बाद ही दम तोड़
के समय उनके मुँह में सोने की चम्मच थी।' ऐसे
श्री सुन्दरलाल जैन, पुत्र-श्री दिया। मेरा एक मात्र भतीजा भी इस अवधि में स्वर्ग सिधार गया।' आपके परिवार के अनेक लोग जेलयात्री
लाला सरूपचंद जैन का जन्म रहे हैं जिनमें अग्रज सिंघई नेमीचंद का नाम प्रमुख है।
26 जुलाई 1914 को मेरठ
(उ0प्र0) में हुआ। आ0-(1) जै) मा) रा) अ) (2) स्व0 पा)
किशोरावस्था में ही आपने श्री सुजानमल जैन
नमक कानून तोड़ कर रतलाम (म0प्र0) के श्री सुजानमल जैन, पुत्र-श्री
गांधी जी के सिपाही के रूप केशरीमल जैन ने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय में आजादी का बिगुल बजाया था! भागीदारी निभायी, फलत: 1941 एवं 42 में । वर्ष 4माह आपको इन्दौर जेल में कारावास की सजा भुगतनी
सुन्दरलाल जी मात्र 15 वर्ष के थे तब अपने
समवयस्क 1। किशोरों का जत्था लेकर गाजियाबाद पड़ी।
में हिण्डन नदी के तट पर नमक बनाने गए थे। जत्थे आ)-(1) म0 प्र0 स्व० सं०, भाग-4, पृष्ठ-196
में शामिल सबसे अधिक आयु का किशोर 18 वर्ष ___ श्री सुन्दरलाल चौधरी का था। सभी किशोर मेरठ के प्रतिष्ठित परिवारों में
श्री सुन्दरलाल चौधरी, पुत्र-श्री सवईलाल से थे। मेरठ सदर में जत्थे को अभूतपूर्व विदाई दी का जन्म 1920 में हुआ। चौधरी जी बीना (म0प्र0) गई। मेरठ से पदयात्रा करते हुए और मार्ग में पड़ने
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प्रथम खण्ड
367
वाले गांवों में गांधी जी का संदेश पहुँचाते हुए गांधी इरविन पैक्ट के अंतर्गत श्री जैन के साथ हिण्डन तट पर पहुँचे । वहाँ जब यह नमक बना रहे के सभी राजनैतिक बंदी छोड़ दिए गए। श्री जैन को थे तब सैकड़ों कुतुहलभरी आँखें इनके जत्थे के जेल में छोड़कर आते समय सभी फफक-फफक साहस और लगन को निहार रही थीं। पुलिस ने इन्हें कर रोए। बाद में पं0 बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' के किशोर समझकर गिरफ्तार नहीं किया। लौटते हुए प्रयासों से श्री जैन एक माह बाद छूट सक। यह पिलखुआ, हापुड़ होते हुए गढ़मुक्तेश्वर गए और
जेल से रिहाई के बाद श्री जैन ने मेरठ कालेज वहाँ से वापिस लौटे।
में 11वीं कक्षा में प्रवेश ले लिया। 1932 में मेरठ श्री सुन्दरलाल जैन अधिक समय शांत नहीं कॉलेज के ) लडकों को क्रिमिनल ला एमेंडमेंट बैठ सके। जुलाई 1930 में वे उस समय के एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया, उनमें श्री जैन सुविख्यात 'रेड पास्टर केस' में पकड़े गए। मेरठ की एवं श्री राजेन्द्र पाल वारियर भी थे। इन छात्रों से कोतवाली के बाहर श्री जैन ने एक पोस्टर चिपकाया नेताओं के नाम और ठिकाने उगलवाने के लिए था, जिसमें घोषणा की गई थी कि 'हिन्दुस्तान यातनाएं देने हेत सबको जिले के अलग-अलग थानों सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना मेरठ में भी में ले जाया गया। श्री जैन को गढ़मुक्तेश्र थाने में ले हो गई है। यदि गांधी जी के निहत्थे सैनिकों पर
गए। हमले होंगे तब हम बदला लिए बिना नहीं रहेंगे।' ।
इसी बीच मेरठ कालेज के तत्कालीन प्रिंसिपल ___'रैड पोस्टर कंस' में इनकी गिरफ्तारी पर एक
कर्नल टी) एफ0 ओ0 डोनल ने जेल के अधिकारियों विरोधसभा जाने माने लेखक और स्वतंत्रता सेनानी
को पत्र लिखा कि मेरठ कालेज के इन छात्रों के वह श्री रामशरण शर्मा ने आयोजित की। उसी में श्री
संरक्षक हैं और उन्हें किसी प्रकार की यातना न दी शर्मा पकड़े गए और दण्डित हुए। लाल पोस्टरों के
जाए। कर्नल डोनल उस समय वाइसराय के मानद मामले में श्री जैन को दो वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट श्री बशीर अहमद ने
ए)डी0सी) भी थे। 15 दिन बाद सभी छात्रों को दिया था। इनकी अल्पायु को ध्यान में रखकर
छोड़ दिया गया। पन्द्रह-पन्द्रह हजार रुपये की दो जमानतें और मचलका. इसके बाद श्री जैन के विरुद्ध धारा 110 एफ, देने पर प्रोबेशन पर छोडे जाने का विकल्प रखा गया जाप्ता फौजदारी के अंतर्गत नौ अन्य व्यक्तियों के था, पर श्री जैन ने जमानत पर बाहर आना स्वीकार साथ-साथ मुकदमा चलाया गया। आरोप थे कि यह नहीं किया। उस समय इन्हें मेरठ तथा गाजीपुर की खतरनाक, दु:साहसी हैं, अपराधियों को संरक्षण देते जेलों में रखा गया। गाजीपुर में प्रसिद्ध कवि और हैं और सामाजिक जीवन के लिए संकटमय हैं। इन साहित्यकार पर) बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', 10 छात्रों में श्री दरयाव सिंह, लावड़ के श्री बंसल, सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी महिला श्रीमती प्रकाशवती के मुजफ्फरनगर के श्री ओमप्रकाश, श्री मक्खन लाल, पति श्री यशपाल, मैनपुरी के कुंवर गुलाब सिंह श्री मुन्नी लाल, श्री बनवारी लाल, श्री इनके जेल साथी थे। श्री जैन मुकदमे के सम्बन्ध में काशी राम खरे (बाद में एडवोकेट बने) भी थे। इन्हें जेल ही में थे जब इनका हाई स्कूल का परीक्षा तीन-तीन वर्ष की सजा जमानत देने से इन्कार करने परिणाम आया था।
पर हुई।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
श्री सुन्दरलाल जैन, श्री मुन्नी लाल तथा श्री साहित्य सम्मेलन अधिवेशन को स्वागत समिति के मक्खन लाल को छोड़कर बाकी लोग उच्च न्यायालय आप कोषाध्यक्ष थे। हिंदी भवन समिति के अध्यक्ष द्वारा बरी कर दिए गए। श्री मक्खन लाल और श्री रहे। पं0 प्यारे लाल शर्मा स्मारक ट्रस्ट और गंगा मोटर मुन्नी लाल ने जमानत दे दी। इस प्रकार अकेले श्री कमेटी के भी अध्यक्ष रहे। मेरठ की सुप्रसिद्ध शिक्षा जैन तीन वर्ष का कारावास भुगतने के लिए जेल में संस्था कनोहरलाल महिला महाविद्यालय की प्रबंध रह गए। तब शायद वह 17-18 वर्ष की आय के सामति क. भी आप सदस्य रहे। थे। इस बार उनको मेरठ के अलावा फैजाबाद और श्री जैन उन थोडे से स्वतंत्रता सेनानियों में थे बरेली की जेलों में रखा गया। 6 माह तक उनके जिन्होंने सरकार से मिलने वाली पेंशन नहीं ली। श्री पैरों में बेडियाँ भी डली रहीं। उच्च न्यायालय के जेन कहा करते थे, 1930-1932 की स्वतंत्रता आदेश से इनकी बेडियाँ काटी गईं। इस जेल यात्रा सेनानियों की पीढ़ी कुछ तो समाप्त हो गई, कुछ बहुत क दारान मौलाना आजाद. काजी नजमहीन. पं0 प्यारे वृद्ध हो गए, पर आज भी स्वतंत्रता सेनानी समाज को लाल शर्मा, हापुड़ के श्री लक्ष्मीनारायण तथा श्री साम्प्रदायिकता के विप से बचाए रखने और सामाजिक
कुरीतियों को मिटाने में योगदान कर सकते हैं।' आपका सरजू प्रसाद का इनको सान्निध्य और मार्गदर्शन
निधन 30 अगस्त 1989 को मेरठ में हुआ। मिला। श्री जैन अपनी राजनैतिक गतिविधियों के
आ)-(1) स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ, पाठ-300 कारण इण्टर भी नहीं कर पाए।
(2) जै0 स) रा) अ0 (3) जनसत्ता, 3-9-1989 (4) पुत्र श्री 1950-1951 में श्री जैन को ऑनरेरी मजिस्ट्रेट दिनेश जैन द्वारा प्रेषित परिचय बनाया गया। कुछ समय बैंच में रहे, फिर 1951 में ही द्वितीय श्रेणी के और लगभग 6 माह बाद ही
श्री सुन्दरलाल जैन
विधि स्नातक श्री सुन्दरलाल जैन कानपुर प्रथम श्रेणी के स्पेशल मजिस्ट्रेट बना दिए गए।
(उ0प्र0) के देशभक्त वैद्य कन्हैयालाल के बड़े पुत्र श्री जैन के अधिकांश निर्णयों के विरुद्ध अपीलें
थे। आपके पिता, माता व अनुज महेशचंद जेलयात्री खारिज होती थीं तथा इनके निर्णयों को सवेतन रहे हैं। आप ऑनरेरी मजिस्ट्रेट थे किन्तु कांग्रेस में भर्ती मजिस्ट्रेटों से भी कुछ मामलों में उत्कृष्ट समझा गया। होने पर उसकी आज्ञानसार आपने उस पद से त्याग-पत्र जब श्री चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर संयुक्त दे दिया था। 1940 के आन्दोलन में आपको एक वर्ष विधायक दल के नेता के रूप में उत्तर प्रदेश के की जेल-यात्रा करनी पड़ी थी। मुख्यमंत्री का पद सम्भाला तभी श्री जैन ने अपने आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) पं0 बच्चूलाल जी द्वारा इस पद से त्यागपत्र दे दिया। उस समय वह प्रदत्त परिचय। (3) कानपुर जैन डायरेक्टरी (1998) उत्तर भारत के प्रसिद्ध मेला नौचंदी के मेला
श्री समतचंद सौंधिया मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य कर रहे थे। मेरठ में
विधि स्नातक तक शिक्षा ग्रहण करने वाले सागर नागरिक सुरक्षा संगठन के वह सर्व प्रथम गैर-सरकारी
करा (म0प्र0) के श्री सुमतचंद सौंधिया, पुत्र- श्री खूबचन्द चीफ वार्डन रहे।
ने 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया और श्री जैन संयुक्त व्यापार संघ, मेरठ के संस्थापक- 6 माह के कारावास की सजा भोगी। अध्यक्ष थे, इस पद पर वह 1982 तक रहे। बाद में आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-69 उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। मेरठ में 1948 में हुए हिन्दी (2) आ0 दी0, पृष्ठ-84
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प्रथम खण्ड
369
श्री सुमतिचंद जैन
दास जायसवाल पकड़े गये, फिर तीसरे दिन बारी आई बढार, जिला-शहडोल (म0 प्र0) के श्री अध्यक्ष कमलचंद जैन, मांगीलाल पाटनी, सुमेरचंद जैन सुमतिचंद जैन, पुत्र-श्री परमोले लाल जैन का जन्म और छात्र नेता जगदीश विद्यार्थी की...
1916 में हुआ। 1932 में बुढ़ार में जब स्वाधीनता पाँच जेलयात्री सर्वश्री मयाचंद जटाले, मन्नालाल आन्दोलन उभार पर आया पंचोलिया, नारायणदास जायसवाल, कमलचंद जैन और तो आप उसमें कूद पड़े। समेरचंद को जेल में हो रही ज्यादतियों के खिलाफ आपने कटनी (जबलपुर) में बगावत करके 2 अक्टूबर को मंडलेश्वर जेल तोड़ने, विदेशी वस्त्रों की दुकान पर नगर में जाकर गांधी जयन्ती की सभा में भाग लेने
धरना दिया, तब आपको के आरोप में सात-सात वर्ष की सजायें हुईं और उन्हें गिरफ्तार कर सात दिन कटनी जेल में रखा गया। इन्दौर के सत्याग्रहियों के साथ सेन्टल जेल कि
ल भिजवा 1942 के आन्दोलन में आप 17-8-1942 को दिया गया।' बुढ़ार मजिस्ट्रेटी की इमारत पर तिरंगा झण्डा फहराने नगर में होने वाली सभाओं का ऐलान आप हाथ का प्रयास कर रहे थे, तब दो तीन पुलिस वाले वहाँ में ध्वनि प्रसारक यन्त्र लेकर सिपाही के सदृश बिगुल आ गये। आप कसरती पहलवान थे अत: पुलिस वालों बजाते हए करते थे। आप सनावद प्रजामण्डल के को एक तरफ झटककर आपने झण्डा फहरा दिया। सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। इस बीच कुछ पुलिस वाले और आ गये, फलत: आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-75 (2) नवभारत, आपको गिरफ्तार कर लिया गया और सेन्ट्रल जेल रीवां इन्दौर, 4 सितम्बर 1997 भेज दिया गया, जहाँ आप 5-3-1943 तक
श्री सरेन्द्रकमार जैन अन्डरट्रायल रहे। आपको 100/- रुपये जुर्माना और
जिला स्वतंत्रता सैनिक संघ के मंत्री, प्रसिद्ध छह माह के कठोर कारावास की सजा दी गई, जो
कवि, लेखक, पत्रकार एवं प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ आपने रीवां जेल में काटी। आजादी के बाद भी आप
श्री सुरेन्द्रकुमार जैन, पुत्र-श्री सामाजिक कल्याण के कार्यों में सहयोग देते रहे। 2
बृजलाल जैन का जन्म 7 अगस्त 1971 को आपका देहावसान हो गया।
फरवरी 1926 को छतरपुर आ0-(1) म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-5, पृष्ठ-316 (2)
(म0प्र0) में हुआ। पंचायत स्वा0 आ0 श), पृष्ठ-155-156 (3) जै०स०रा०अ०, पृष्ठ-65
राज, सहकारी समाज, श्री सुमेरचंद जैन
विन्ध्यवाणी, उत्सर्ग, जैसी सनावद (म0प्र0) के श्री सुमेरचंद जैन को
पत्र/पत्रिकाओं/स्मारिकाओं के 1942 के आन्दोलन में सात वर्ष की सजा हुई थी। सम्पादक श्री जैन लम्बे समय तक श्री दि) जैन इस सन्दर्भ में नवभारत, इन्दौर, दिनांक 4-सितम्बर अतिशय क्षेत्र खजुराहो के उपाध्यक्ष एवं मंत्री रहे थे। 1997 लिखता है-'सत्याग्रह करते हुए एक के बाद श्री जैन ने अपने राजनैतिक जीवन के सन्दर्भ एक प्रजामंडल के नेता गिरफ्तार होते रहे। पहले जत्थे में आकाशवाणी, छतरपुर को दिये एक साक्षात्कार में में मयाचंद जटाले, मन्नालाल पंचोलिया और नारायण कहा था कि 'सन् 1936-1937 में मैं कक्षा 5
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन का विद्यार्थी था। मेरे पिता जी राष्ट्रीय भावनाओं में मुल्ला की बेटी, एक पुलिस अफसर की बेटी, पगे थे। मेरे घर पर राष्ट्रीय नेताओं, जैसे महात्मा इलाहाबाद की त्रिवेणी में राष्ट्रीयता को यह त्रिवेणी। गांधी, सरोजनी नायडू, अली बन्धु आदि नेताओं के तीनों की साड़ी केसरिया और तीनों के हाथ में तिरंगे अनेक चित्र बने थे। एक चित्र था जिसमें सरोजनी झन्डे। लगता था छात्रों के जुलूस का नेतृत्व करती नायडू एक जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं। दूसरा भारतमाता की तीन पुत्रियाँ हों। जोश से उफनता चित्र था जिसमें नीचे लिखा था, "अली बन्धु जेल वातावरण। में रेंटिया काते छ", जिसे मैं बाल-सुलभ दृष्टि से हमारी टुकडी को कचहरी पर धावा बोलना संशोधन कर पढ़ा करता था, कि "अलीबन्धु जेल में था. लेकिन वहाँ पहुँच कर एक अजीब दृश्य उपस्थित रोटियां काते छे।" मन ही मन कहता था कि यह हो गया। एक ओर मजिस्ट्रेट डिक्सन, पुलिस प्रैस वालों ने गलत छाप दिया है। रेटियाँ के स्थान पर सपरिन्टेन्डैन्ट आगा और लाल पगड़ीधारी पुलिस रोटियाँ छपना चाहिये था।
हिंसक दृष्टि से देखती खड़ी थी। हम लोगों ने आगे विद्यार्थी जीवन में ही मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर
बढ़ना चाहा। पुलिस अफसर ने जुलूस को वापिस प्रसाद, सोहनलाल द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी,
जाने की आज्ञा दी, लेकिन उस पर किसी ने ध्यान शरद्चन्द्र चटर्जी, महादेवी वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा
नहीं दिया। उसने फिर से कहा “ दो मिनट का वक्त आदि अनेक साहित्यकारों के साहित्य से भली भाँति
है सब लोग वापिस चले जाओ, वरना गोलीबारी की परिचित हो गया था। उन्हीं दिनों मैक्सिम गोर्की के
जाएगी।" इसका भी हम लोगों पर कोई प्रभाव न उपन्यास "माँ" ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया और
पडा। डिक्सन क्रोध से लाल हो गया। उसने लाठी उस उपन्यास ने मुझमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट
चार्ज की आज्ञा दी और घोड़े दौड़ाये। पर जुलूस कर भर दी। सन 1941 में महाराजा इन्टर कालेज से 9वीं।
पीछे न हटा। इस पर मजिस्ट्रेट डिक्सन ने कड़ककर कक्षा उत्तीर्ण कर एंग्लो-बंगाली इंटर कालेज, इलाहाबाद
कहा "फायर" साथ धड़धड़ाया बन्दूकों ने आसमान। में कक्षा 10 में प्रवेश लिया। सन् 1942 में जब मैं
में लड़कियां घायल पर अकम्प, अडिग साहस। फिर उक्त कालज का विद्यार्थी था. तभी महात्मा गांधी ने गालिया आर लड़कियां घायल होकर जमीन पर। भारत छोड़ो आन्दालन का आह्वान किया जिसमें वातावरण सन्नाटे में। जुलूसशान्ति। चारों ओर से "करो या मरो" का नारा बुलन्द किया था।
लेटो-लेटा की आवाजें आने लगीं। दोनों हाथों से || अगस्त को विश्वविद्यालय परिसर में कपड़ा हटा, छाती नंगी और यह ललकार- "लड़कियों विद्यार्थियों ने एक बड़ी सभा का आयोजन किया पर गोलियाँ दागते तुम्हें शर्म नहीं आती ? वे अकेली जिसमें सभी शिक्षण संस्थाओं में हडताल किये जाने नहीं, हम भी उनके साथ हैं। मुझे गोली मारो।" का निर्णय लिया गया। 12 अगस्त को विश्वविद्यालय डिक्सन ने कहा-"मार दो, अकेला है।" वह बोलेएवं सभी शिक्षण संस्थाओं के छात्रों का एक जलस “वह अकेला नहीं है।" इतना कहकर उन्होंने अपने यूनीवर्सिटी पर एकत्रित हुआ। जुलूस को दो हिस्सों हाथ में झन्डा लं लिया और उसी समय कलक्टर में जाना था। एक हिस्सा चौक में घण्टाघर की ओर चिल्लाया- "शूट हिम, मारो उसे" और उसी समय
और दूसरा कचहरी की ओर। उस जुलूस में आगा ने उनके सीने पर गोली दाग दी। गोली सीने विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी, जस्टिस आनन्द नारायण के आर-पार हो गई। पद्मधर सिंह गिर पड़े।
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प्रथम खण्ड
शिक्षण संस्थायें बंद कर दी गईं। हम लोग आन्दोलन को जगह- जगह ले जाने लगे। इलाहाबाद से चलकर मैं अपने अग्रज महेन्द्र कुमार मानव के साथ अमरपाटन आया, जहाँ हम लोगों ने जुलूस निकाला और कटरा में बने मन्दिर पर एकत्रित जनसभा में जोशीले भाषण दिये। जिसके परिणामस्वरूप हम दोनों भाइयों के नाम रीवां राज्य का वारन्ट जारी कर दिया गया। मानव जी को होशंगाबाद में गिरफ्तार किया जाकर 2 माह विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया। बाद में सैन्ट्रल जेल में करीब 8 माह बन्दी रहे, जब कि मैंने अनेक स्थानों में भूमिगत रहकर कार्य किया। '
आपके शब्दों - 'उस आजादी की जंग में जो लोग शहीद हो गये, वे भाग्यशाली थे और उनके लिये स्वर्ग के द्वार हमेशा-हमेशा के लिये खुल गये । लेकिन जो लोग उस आजादी की जंग में कुछ कदम भी साथ रहे, वे भी कम भाग्यशाली नहीं, क्योंकि उनकी कुर्बानियों का ही फल आज की पीढ़ी 'स्वाधीन भारत" के रूप में भोग रही है।' 19 दिसम्बर 1994 को आपका निधन हो गया। आ() -(1) आकाशवाणी छतरपुर से प्रकाशित वार्ता, (2) प0 जै) इ0, पृष्ट-388 ( 3 ) अनेक प्रमाण पत्र आदि (4) पुत्र श्री शैलेन्द्र द्वारा प्रेपित परिचया
"
श्री सुरेशचंद सिंघई
देवरी, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी और कलकत्ता प्रवासी श्री सुरेशचंद सिंघई, पुत्र श्री - दुलीचंद सिंघई ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया, गिरफ्तार हुए और 25 सितम्बर 1942 से 11 अप्रैल 1943 तक का कारावास सागर जेल में काटा। बाद में आप कलकत्ता चले गये जहाँ जिनवाणी प्रचारक कार्यालय तथा जवाहर प्रिंटिंग प्रेस चलाया। आप प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री परमानन्द सिंघई के भतीजे थे।
आ) - ( 1 ) म) प्र0 स्व० सै0 भाग 2, पृष्ठ-69 ( 2 ) धर्मपत्नी द्वारा प्रेषित परिचय |
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श्री सुहागमल जैन भोपाल (म0प्र0) के श्री सुहागमल जैन, पुत्र- श्री बालमुकुन्द का जन्म 1928 में हुआ। 1949 के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा 16 दिन के कारावास की सजा पाई। आ)- (1) 40 प्र0 स्व0 सं0 भाग-5, पृष्ठ 31
श्री सूरजचंद जैन
जिस समय 'करो या मरो' का आह्वान किया गया था तथा पाटन, जिला- जबलपुर (म0प्र0) में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन भी राष्ट्रीय युवकों में लोकप्रिय हो रहा था, तब युवक सूरजचंद शहपुरा शाखा के मुख्य शिक्षक थे। संघ के देशभक्ति पूर्ण गीतों ने आपको 1942 की जनक्रांति
में कूद पड़ने की अदम्य प्रेरणा दी। स्वतंत्रता का मूल्य प्राण है, देखें कौन चुकाता है- देखें कौन सुमन शैय्या तज कण्टक पथ पर आता है।
श्री सूरजचंद का जन्म मई 1923 को शहपुरा जिला - जबलपुर (म0प्र0) में श्री रूपचंद जैन के यहां हुआ था। 18 वर्ष की आयु में आप क्रांति के उन्मेष से पूर्ण, निर्भीक रूप से ब्रिटिश सत्ता को चूर-चूर करने की कामना से गांधी जी के आन्दोलन में कूद पड़े।
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आप तोड़-फोड़ करने की तैयारी में लगे थे, किन्तु भाई गुलाबचंद एवं श्री हुल्लीराम के आकस्मिक रूप से गिरफ्तार कर लिये जाने से उक्त योजना असफल रही। फलतः आप अपने साथी श्री हुकुमचंद नामदेव के साथ पुलिस थाने पर स्वतंत्रता का झण्डा फहराने चल रड़े। जोश से भरे हुए अनेक नौजवानों की भीड़ पीछे-पीछे चल रही थी। अंग्रेजों का नाश
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन हो, भारत माता की जय के नारे शहपुरा की वायु में
श्री सूरजमल गंगवाल गूंज रहे थे।
लाडनूं (राजस्थान) के श्री सूरजमल गंगवाल थाने पर युवकों की भीड़ ने हिंसा पर आमादा ने 'मारवाड़ लोक परिषद्' के तृतीय लाडनूं अधिवेशन पुलिस को उत्तेजित किया। पुलिस ने हवाई फायर किये। में सक्रिय सहयोग दिया। 1942 के आन्दोलन में अपने पीछे आने वाले अपने साथियों को आपने वापिस जोधपुर में सत्याग्रह करने के अपराध में आप चले जाने का आग्रह किया और श्री हुकुमचंद नामदेव गिरफ्तार कर लिये गये तथा । वर्ष की सख्त कैद के साथ आगे बढ़े। पुलिस ने आप दोनों को गिरफ्तार की सजा आपने भोगी। किया। मिटोनी स्टेशन से आप बंदी बनाकर जबलपर
आO-(1) जे.) सर) रा) अ0, पृष्ठ-68 ले जाये जा रहे थे, उसी समय नवयुवक दल ने क्रुद्ध
श्री सुरजमल जैन हो स्टेशन पर पत्थर वर्षा कर, अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध भोपाल (म0प्र0) श्री सूरजमल जैन, पुत्र-श्री अपना क्षोभ निकाला। सशस्त्र सैनिकों के पहरे में आप सरदारमल जैन का जन्म 1928 में हुआ। बीकॉम, ट्रेन पर चढ़ाये गये। 2 सितम्बर 1942 को आप लोग एल0एल0बी0तक शिक्षा प्राप्त श्री जैन ने 1949 के जबलपुर कोतवाली में रखे गये, जहाँ आपने उग्र भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में भाग लिया सत्याग्रही के रूप में हलचल मचा दी। दूसरे दिन तथा 32 दिन का कारावास भोगा। 3 सितम्बर को धारा 129 व 26 के अन्तर्गत बंदी ___आ0--(1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-31 बनाकर केन्द्रीय कारागार में भेज दिये गये, जहाँ
श्री सूरजमल लुक्कड़ 16 जून 1943 तक कारावास का दण्ड भोगा।
ग्राम-अजड़, जिला-खरगौन (म0प्र0) के श्री आपने एक ओर कारावास काल में आर्थिक क्षति सरल
सूरजमल लुक्कड, पुत्र-श्री फूलचंद लुक्कड़ का उठायी, वहीं दूसरी ओर विद्वान् राजनैतिक बंदियों के जन्म 31 अगस्त 1924 को हुआ। आप प्रजामण्डल सानिध्य में ज्ञानार्जन भी किया। प्राथमिक स्तर तक के सक्रिय सदस्य रहे। 1942 के भारत छोडो अध्ययन करने पर भी आप राजनैतिक, सांस्कृतिक आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको 4 माह 12 एवं साहित्यिक विषयों पर भाषण देने में दक्ष हो गये। दिन का कारावास भोगना पड़ा। जेल से मुक्त होने पर आप तहसील के ग्रामों में कांग्रेस आ)-(!) म0 प्र0 स्व) 30. भाग-4, पृष्ठ-94 संगठन में जुट गये। कांग्रेस सेवादल के संयोजक,
श्री सेजमल जैन जनपद प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष, हरिजन
परतन्त्र भारत में विवाह न करने की प्रतिज्ञा करने सेवक संघ के तहसील प्रचारक आदि अनेक महत्त्वपूर्ण
__वाले श्री सेजमल जैन का जन्म 1913 में निम्बोद, पदों पर आप रहे। स्थानीय संस्थाओं यथा ग्राम, न्याय
जिला-मन्दसौर (म0प्र0) में हुआ। 17 वर्ष की उम्र पंचायत तथा जनपद सभा के सभासद भी आप रहे। में आपका मन सामन्तवाद के प्रति विद्रोह कर बैठा. बाद में आप सक्रिय राजनीति से तटस्थ होकर फलत: आपने निम्बोद के जागीरदार का विरोध करना साहित्यिक कार्यकलापों में संलग्न हो गये।
प्रारम्भ कर दिया। जागीरदार के अत्याचार आपक साथ आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-119 आपके परिवार पर भी होने लगे। अन्तत: विवश होकर (2) स्वा0 स0 पा0, पृष्ठ-03 (3) श्री राकेश जैन शहपुरा द्वारा ।
आपको निम्बोद छोड़ना पड़ा। आप इन्दौर आकर मालवा प्रपित परिचय।
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प्रथम खण्ड
373
मिल में काम करने लगे। इन्दौर आकर आप 18 वर्ष सम्मानित किया है। की उम्र में ही कांग्रेस से जुड़ गये और संगठन में आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 से0, भाग-4, पृष्ठ-148 अपना प्रमुख स्थान बना लिया। श्री मनोहर लाल मेहता,
श्री सौभाग्यमल जैन लक्ष्मण सिंह चौहान, बाबूलाल पाटोदी, कन्हैया लाल स्नातक तक शिक्षा प्राप्त ग्राम-दवोह (लहार), खादीवाला आदि के साथ रहकर काम करने का सौभाग्य जिला-भिण्ड (म0प्र0) के श्री सौभाग्यमल जैन, सेजमल जी को मिला।
पुत्र-श्री अनूपचन्द जैन का जन्म 17 दिसम्बर 1917 इन्दौर में आपको पूज्य बापू के दर्शन का को हुआ। 1946 में जागीर उन्मूलन आन्दोलन में सौभाग्य मिला। बापू के समक्ष आपने प्रतिज्ञा की कि आपने भाग लिया, फलतः गिरफ्तार होकर 15 दिन 'मैं असत्य नहीं बोलूंगा और धूम्रपान नहीं करूंगा साथ का कारावास भोगा। ही जब तक देश आजाद नहीं होगा तब तक विवाह
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-283 नहीं करूंगा।' जीवनपर्यन्त आपने ये प्रतिज्ञायें निभाई।
श्री सौभाग्यमल जैन 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में श्री जैन 20 शाजापुर (म0प्र0) के श्री सौभाग्यमल जैन, अगस्त 1942 से || अक्टूबर 1942 तक हिरासत पुत्र-श्री चुन्नीलाल जैन का जन्म 6 जनवरी 1904 में रहे। अपराध सिद्ध होने पर 29 नवम्बर 1943 तक को हुआ। ग्राम- थांदला (झाबुआ) म0प्र0 में 20 वर्ष आपको सेन्ट्रल जेल इन्दौर में रखा गया। जेल में कंकड की आयु से ही गांधी जी द्वारा संचालित रचनात्मक मिली रोटियाँ खाने से इन्हें पेट की बीमारी हो गई, कार्यक्रमों में आपने सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ कर फलतः सजा पूरी होने से पहले ही आपको मुक्त कर दिया था। झाबुआ राज्य में उत्तरदायी शासन हेतु दिया गया। आपके भाई श्री जोधराम वैसी ही स्थिति आंदोलन को आपने बल दिया, 1936 में सभा बंदी में आपको निम्बोद लाये जहाँ 1944 के प्रारम्भ में कानून तोड़ा तथा गिरफ्तार हुए और झाबुआ जेल में आपका देहावसान हो गया।
45 दिन बन्द रहे।
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-227 आ)-(1) स्व) स) म0, पृष्ठ-45-46
श्री सौभाग्यमल जैन श्री सोहनलाल जैन
मध्यभारत राज्य में वित्तमंत्री, राजस्वमंत्री तथा नादगांव, जिला-रायपुर (म0प्र0) के श्री
स्वायत्त-शासनमंत्री रहे श्री सौभाग्यमल जैन, पुत्र-श्री सोहनलाल जैन, पुत्र- श्री धवेरचन्द जैन का जन्म 10
बापूलाल जैन का जन्म 24 फरवरी 1910 को मई 1926 को हुआ। माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त श्री
शुजालपुर, जिला-शाजापुर (म0प्र0) में हुआ। एक जैन ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग
प्रतिभावान छात्र, योग्य वकील तथा स्वाधीनता आन्दोलन लिया तथा 6 माह का कारावास भोगा।
में तेजस्वी नेतृत्व के धनी श्री जैन प्रसिद्ध गांधीवादी आ0-(1) मा0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-93.
तथा म0 प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री श्री पं0 लीलाधर श्री सोहनलाल जैन
जोशी के बालसखा थे। मेघनगर, जिला-झाबुआ (म0प्र0) के श्री जैनधर्म एवं दर्शन के प्रतिष्ठित विद्वान् तथा सोहनलाल जैन, पुत्र- श्री वीरचन्द जैन ने 1942 के निरन्तर स्वाध्यायी सौभाग्यमल जी बचपन से ही आन्दोलन में भाग लिया। म0प्र0 शासन ने आपको राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे थे। वे पं0
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जैन
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन लीलाधार जोशी के अनुयायी थे। इस सन्दर्भ में प्राप्त हुआ। वह आदिवासियों में मुफ्त वितरण करके नवभारत, इन्दौर, दि) 7 सितम्बर 1997 लिखता लोगों को अकाल मृत्यु से बचाया।... अनाज वितरण है-'पं0 लीलाधर जोशी अपने सहयोगियों बालकृष्ण की बात राजा साहब के चापलूसों द्वारा राजा तक पहुँचाने शर्मा, नवीन चौधरी, सौभाग्यमल जैन के साथ कई से वे बौखला गये।... राजा साहब ने अपने चापलूसों बार जेल गये।' शुजालपुर में सौभाग्यमल जी के से सलाह करके 420 का मुकदमा बनाकर प्रजामंडल मार्गदर्शन में ही प्रवासी प्रजामण्डल का कार्यालय के श्री सौभागमल जी तथा अन्य लोगों को गिरफ्तार स्थापित किया गया था। गांधीवाद के कट्टर अनुयायी करके जेल में बन्द कर दिया।' श्री जैन का 31 अक्टूबर 1994 को निधन हो गया। उक्त समाचार पत्र के अनुसार पोलिटिकल एजेण्ट
आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-227 फ्टिज साहब के आने पर भी आप गिरफ्तार हुए थे। (2) स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय जन जागरण में शाजापुर जिल बाद में आप बडनगर चले गये, जहाँ 1965 के का योगदान (टकित शोधप्रबन्ध) (3) नई दुनिया. इन्दौर, है ।
आसपास आपका देहावसान हुआ। सितम्बर 1997 (4) नवभारत, इन्दौर, 7 सितम्बर 1997
आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृष्ठ-197
(2) रतलाम के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री दलीचंद जैन द्वारा प्रपित श्री सौभागमल पोरवाल जैन, पुत्र-श्री रखबचंद परिचय। (3) नवभारत, इन्दौर, दिनांक 4 दिसम्बर 1997 का जन्म 1889 में रतलाम (म0प्र0) में हुआ। आपके श्री सौभाग्य सिंह चोरड़िया पूर्वज रुई की दलाली का कार्य करते थे। सर्वप्रथम श्री सौभाग्य सिंह चोरडिया का जन्म 1912 ई0 श्री पोरवाल गुजरात के प्रसिद्ध कार्यकर्ता प्राणशंकर दवे, में नीमच (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जो रतलाम में रहकर प्रैक्टिस करते थे, द्वारा खादी नथमल चोरडिया (इनका परिचय इसी ग्रन्ध में अन्यत्र प्रचार और विदेशी वस्त्र बहिष्कार आन्दोलन में प्रजा देखें।) था। चारडिया जी को राष्ट्रीय विचारधारा की परिषद् के सदस्य बने। यह घटना 1933 की है। भावना पारिवारिक परिवेश से ही मिली। इनके परिवार
प्रजामंडल में आपने श्री चांदमल मेहता (इनका में लगभग सभी लोग देश भक्ति की भावनाओं से सिक्त परिचय इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) के साथी के रूप थे तथा अपने-अपने स्तर पर आंदोलन के कार्यों में में कार्य किया। प्रजामंडल के किसान आन्दोलन के तन-मन-धन से सहयोग करते थे। समय जुलूस निकालने पर राज्य द्वारा निपधाज्ञा का चोरडिया जी भारत छोडो आन्दोलन में इन्दौर नोटिस प्रजामंडल कार्यालय पर लगाया गया। पोरवाल गये थे। वहाँ प्रदर्शन के दौरान आपको गिरफ्तार किया जी ने उसे उखाड़कर फाड़ डाला, फलत: गिरफ्तार गया व 7 माह 23 दिन सेन्ट्रल जेल इन्दौर में कैद हुए और (माह (या 3 माह) का कठोर कारावास रखा गया। जब तक आप जीवित रहे अपनी पारिवारिक भागा।
परम्परा का निर्वाह करते हए देशसेवा करते रहे। पोरवाल जी के सन्दर्भ में नवभारत, इन्दौर, आ0-(1) स्व) स) म0, पृष्ट-87 (2) म) प्र0 स्व) दिनांक 4 दिस0 1997 लिखता है-'सन् 1933 में सै), भाग-4, पृष्ठ-219 सूखा पड़ने से आदिवासी भूखे मरने लगे, तब
श्री स्वरूपचंद जैन प्रजामंडल के सदस्य श्री टीकमचंद जैन, श्री सौभागमल श्री स्वरूपचंद जैन, पुत्र-श्री लोकमन का जन्म पोरवाल आदि ने दानदाताओं के नाम अपील निकालकर 1921 में जबलपुर (म0प्र0) में हआ। 1942 के सहायता मांगी, जिससे नगदी, अनाज, कपड़ा आदि आन्दोलन में आप नवयुवक कार्यकर्ताओं से प्रभावित
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प्रथम खण्ड
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होकर सक्रिय हुए तथा गिरफ्तार होकर जबलपुर आन्दोलन में सक्रिय होकर आपने अपने परिवार जेल में रहे।
को चिन्ता नहीं की। इस सन्दर्भ में सहारनपुर __ आ- (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग-1, सन्दर्भ' में लिखा है- 'श्री हंसकुमार जैन इस जनपद पृष्ठ 114 (2) स्व। स) ज), पृष्ट - 186 के पहले व्यक्ति थे, जो अपनी पारिवारिक परिस्थितियों श्री स्वरूपचंद सिंघई
का ध्यान न करते हुए, जुलूस निकालकर उसका सागर (म0प्र0) के श्री स्वरूपचंद सिंघई नेतृत्व करते हुए 11-8-1942 को गिरफ्तार हुए पुत्र-श्री झुत्रीलाल का जन्म 1921 में हआ। छात्र उस समय उनको कन्या कठिन रोग से आक्रान्त थी जीवन से ही आप राष्ट्रीय गतिविधियों में सक्रिय हो जो कुछ दिन पश्चात् ही स्वर्ग सिधार गई।' गये थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने
आ-(1) () स) रा0 0 (2) स) स0, भाग-1,
पृष्ठ-150, 163, 103 एवं 544 (3) उ0 प्र0 जै0 40, पृष्ठ-85 9 माह के कारावास की सजा भोगी। आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2,
श्री हंसराज कोठारी पृष्ठ-6) (2) आ) दी), पृष्ठ-82
ब्यावरा, जिला-राजगढ़ (म0 प्र0) के भाई हंसकुमार जैन
श्री हंसराज कोठारी, पुत्र- श्री छोगमल का जन्म
1910 में हुआ। कोठारी जी ने प्रजामंडल द्वारा 'भारत नौजवान सभा' के सक्रिय कार्यकर्ता रहे
चलाये गये आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग श्री हंसकुमार जैन, पुत्र- श्री झूम्मन लाल का जन्म
लिया था। सहारनपुर (उ0प्र0) में 1912 के आसपास हुआ।
आ-(1) 40 प्र) स्वा) से), भाग-5, पृष्ठ-120 आपके पिता स्वतंत्रता संग्राम में अनेक बार जेल गये। आपका पूरा परिवार ही आन्दोलन में सक्रिय
श्री हजारीलाल जैन रहा। नृत्यकला विशारद हंसकुमार जी ने अपनी कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री हजारी कला का उपयोग भी जेल के कैदियों को प्रसन्न लाल जैन, पुत्र-श्री मूलचंद जैन का जन्म 1910 में करने और उनमें राष्ट्रीय भावना भरने में किया। हआ। आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की और
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं स्वाधीनता सेनानी श्री 1930 से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे, जंगल कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने हंसकुमार जी के
__ सत्याग्रह में गिरफ्तार हुये और एक सप्ताह का संदर्भ में लिखा है- “17-18 साल की उम्र और
कारावास भोगा। पिद्दी सा शरीर। 1930 में रुड़की छावनी में फौजों
आ)-(D) म० प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-122 को भड़काने के अपराध में उन्हें 4 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गई तो जिले भर में सन्नाटा छा
श्री हजारीलाल जैन 'मस्ते' गया, पर वे हंसते हुए अपनी बैरक में लौटे और उस 'मस्तेजी' उपनाम से विख्यात होशंगाबाद रात में इतना बढिया नाचे कि कैदी साथियों को वह (म0 प्र0) के श्री हजारीलाल जैन का जन्म 4 आज भी याद है। 1932 और 1942 में भी वे जेल दिसम्बर 1917 को हुआ। आजादी के आन्दोलन के गये और सदैव वहाँ का कठोर वातावरण उनकी दौरान आप एक सभा में भापण कर रहे थे। तभी वंशी की ध्वनि और घंघरुओं की झंकार से थिरकता लाठीचार्ज हुआ, आप गिरफ्तार कर लिये गये और 9) रहा। 'अरे भाई. रोते हो. तो जेल आते ही क्यों हो।' माह के कारावास की सजा आपको दी गई। यह उनकी खास उक्ति है।"
आO-(1) स्व) स) हो, पृष्ठ-118
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मास्टर हरदयाल जैन
मदनगंज (किशनगढ़) राजस्थान के मास्टर हरदयाल जैन 1931-1932 में अलीगढ़ जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। इग्लास, कांग्रेस के सचिव की हैसियत से बेसबॉ, जिला - अलीगढ़ (उ0प्र0) में ग्राम प्रचार करते हुए 1932 में गिरफ्तार हुये और लखनऊ कैम्प तथा फैजाबाद जेलों में रहे।
(आ) (1) जै० स० रा० अ०, पृष्ठ-69 श्री हरिश्चन्द्र जैन
सागर (म0प्र0) के श्री हरिश्चन्द्र 1921 के आसपास स्थानीय कांग्रेस के सफल कार्यकर्ता थे। आपको इस कारण जेलयातनायें भी भोगनी पड़ी थीं। कुछ दिनों बाद ही आपका स्वर्गवास हो गया।
(आ) - (1) जै० स० रा० अ०, पृष्ठ-53
श्री हरिश्चन्द्र मालू (जैन)
सिवनी (म0प्र0) के श्री हरिश्चन्द्र मालू, पुत्र- श्री केसरीचंद मालू का जन्म 21-12-1913 को हुआ । 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप भोपा (धुरेश) से अपने साथियों सहित पदयात्रा हेतु निकलकर गांव-गांव में स्वतंत्रता का अलख जगाते
हुए जा रहे वे कि बरमान
"
जिला - नरसिंहपुर (म0प्र0) में गिरफ्तार कर लिये गये और छिन्दवाड़ा जेल भेज दिये गये, जहाँ आप 30 दिन तक हिरासत में रहे। आपका निधन 4-6-1981 को हो गया। .
मालू जी के मूल निवास स्थान, लोपा ग्राम में उनके घर को देखने का सौभाग्य लेखक दम्पति को 18 मार्च 2000 को प्राप्त हुआ।
आ)- (1) श्री नरेश दिवाकर, सिवनी द्वारा प्रेषित परिचय एवं प्रमाणपत्र
•
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
डॉo हरीन्द्रभूषण जैन
साहित्य की सर्वोच्च उपाधि 'महामहोपाध्याय' से अलंकृत, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संस्कृत विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत, सरल हृदय, सुयोग्य शिक्षक, कर्मट समाज सुधारक, आजादी के दीवाने डॉ0 हरीन्द्रभूषण जैन का जन्म 16 अगस्त 1921 को नरयावली, जिला - सागर (म0प्र0) में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री छोटेलाल था, वे नाम से जरूर छोटे थे, पर आपके जन्म के समय मालगुजार थे। नरयावली, रामछापरी एवं कन्हैरा गांव उनकी मालगुजारी में थे।
जब आप 14-15 वर्ष के ही थे, तब आपके पिता जी को पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी की सत्संगति से संसार के प्रति विरक्ति हो गई और वे घर-बार छोड़कर ब्रह्मचारी बन गये। माता जी का निधन पहले ही हो गया था। आपने सागर में प्रारम्भिक शिक्षा पाई बाद में आप स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में प्रविष्ट हुए। यह विद्यालय उन दिनों जैन क्रान्तिकारियों का गढ़ था। विद्यालय के लगभग सभी छात्र क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न थे। आपने सिद्धान्त शास्त्री, व्याकरण शास्त्री आदि परीक्षायें अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कीं साथ ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी0ए0 भी किया। 1939 से ही आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे और विद्यालय के छात्रों के नेता भी । बम बनाना आदि भी आपने सीख लिया था। 1942 के आन्दोलन में आपने सक्रिय भूमिका निभाई। प्रशासन ने आपको गिरफ्तार कर लिया, मुकदमा चला और 8-10-1942 से 7-1-1943 तक आप बनारस जेल में रहे।
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जेल से निकलने के बाद आप एक 'बम षडयन्त्र' में सम्मिलित हो गये। इस षडयंत्र का पता चल गया और इस कारण आपको बनारस छोड़कर भाग आना पड़ा। आप तीन वर्ष भूमिगत रहे, पुलिस ढूंढती रही पर गिरफ्तार नहीं कर सकी। 1947 में
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प्रथम खण्ड
देश की आजादी के बाद आप पुनः बनारस गये और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे!
शिक्षा प्राप्त करने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय सागर, वर्णी जैन इन्टर कॉलेज ललितपुर, एम0एल0 डिग्री कालेज बलरामपुर अध्यापन किया। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संस्कृत विभागाध्यक्ष पद से आप सेवानिवृत हुए।
में
आपने पीएच0डी0 की उपाधि 'जैन अंगशास्त्र' पर सागर वि0वि0 से प्राप्त की। अनेक पुस्तकों के रचयिता डॉ() जैन के लगभग 60 शोध निबन्ध स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। चित्रकला भी आपका रुचिपूर्ण विषय था। आपके निर्देशन में दशाधिक शोध छात्र पीएच (डी) की उपाधियां प्राप्त कर चुके हैं, इनमें अधिकांश शोध जैन विषयों पर हुए हैं। सेवानिवृति के पश्चात् कुछ वर्षों तक आप अनेकान्त शोधपीठ, बाहुबली (कोल्हापुर) के निदेशक भी रहे। आप अनेक वर्षों तक अ0भा0 दि0 जैन विद्वत्परिषद् के मंत्री रहे थे।
1977 में मैथिली विश्वविद्यापीठ, दरभंगा ने आपको महामहोपाध्याय की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। अनेक शैक्षिक, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के संस्थापक, पदाधिकारी डॉ० जैन प्रथम मिलन में ही सबको अपना बना लेते थे। 17 अक्टूबर 1989 को आपका निधन हो गया।
(आ) - ( 1 ) म०प्र० स्व0 सै0, भाग - 4, पृष्ठ - 178 (2) वि) अ), पृष्ठ-539 (3) प0 जै० इ), पृष्ठ-262
श्री हरीभाऊ कोठारी
श्री हरीभाऊ कोठारी, पुत्र - श्री टोकर सिंह जिला-बैतूल (म0प्र0) के निवासी थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले कोठारी जी जीवनपर्यन्त कर्मठ रहे। आजादी के इस दीवाने को अंग्रेज सरकार ने 11-9-42 से 8-5-44 तक कठोर कारावास दिया था। आप राष्ट्रभक्त और बैतूल के अच्छे जन आंदोलनकारी रहे थे।
आ) - (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ - 182
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श्री हीरालाल कोठारी
कुशल अर्थशास्त्री श्री हीरालाल कोठारी का जन्म 18 अक्टूबर 1917 को उदयपुर (राज)) के सम्पन्न ओसवाल जैन परिवार में हुआ, बचपन में ही पिता का साया उठ गया । बम्बई में मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना होने पर वे उसके उत्साही कार्यकर्ता बन गये। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय कोठारी जी श्री माणिक्य लाल वर्मा के निमंत्रण पर श्री रंगलाल मारवाड़ी के साथ उदयपुर गये और 2 अक्टूबर 1942 को गांधी जयन्ती समारोह मनाने के अपराध 6 महीने नजरबंद कर दिये गये। बैंकिंग सेवा से सम्बद्ध कोठारी जी ने यूरोप, इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि अनेक देशों की अनेक बार यात्रायें कीं।
आ०- (1) रा० स्व० से०, पृष्ठ-589
श्री हीरालाल जैन
जबलपुर (म0प्र0) निवासी और भिलाई प्रवासी श्री हीरालाल जैन, पुत्र- श्री अबीरचंद जैन का जन्म 19 सितम्बर 1915 को हुआ। छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण आप अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके। आपके काका प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री प्रेमचंद उस्ताद आपके प्रेरणास्रोत रहे। 1930 के झण्डा सत्याग्रह में हीरालाल जी ने भाग लिया और गिरफ्तार हुए, परन्तु अल्पवय होने के कारण कोर्ट उठने तक की सजा आपको दी गई।
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नमक आन्दोलन के दौरान आपके बड़े भाई कन्हैयालाल जैन को छह माह के कारावास की सजा दी गई थी। आप भी उस समय कुछ समय के लिए जेल भेज दिये गये थे, तभी जीवन भर खादी पहनने का व्रत लिया था। विदेशी वस्त्र बहिष्कार आन्दोलन
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन में आपके पिता ने अपनी दुकान का लगभग 50 हजार रखता आया हूँ।.... मैं अपने इन साथियों को मात्र का कपड़ा जला दिया था। त्रिपुरी कांग्रेस के अधिवेशन इसलिए क्रान्तिकारी नहीं मानता कि ये अपनी जान में हीरालाल जी ने स्वयंसेवक का कार्य किया था। पर खेलकर विस्फोटक सामग्री का आदान-प्रदान करते
1941 के लगभग घरेलू वातावरण से क्षुब्ध थे, वरन् इसलिए मानता हूँ कि क्रांतिकारियों के उसूल होकर श्री जैन वर्धा चले गये और वहीं गांधी आश्रम पर ये सवा सोलह आने खरे उतरे कि 'चाहे कितनी में रहने लगे। 19-12 के अगस्त आन्दोलन में हीरालाल ही यातनायें दी जायें और प्राणों का भी उत्सर्ग करना जी 20 युवकों के साथ बम्बई गये थे। किसी तरह पड़े तो भी राज-राज रहे, खुलने न पावे।" भेष बदलकर वे अहमदाबाद, जयपुर, आगरा होते हुए आ0-(1) मा) प्र) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-124 (2) जबलपुर आये और क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न स्व0 स0 ज), पृ0- 188 (3) नवभारत, रायपुर, दिनांक 26 जनवरी
1989 (4) नवभारत. जबलपुर 13 अगस्त 1995 हो गये। 'एम्पलायर थियेटर', जहाँ अक्सर अंग्रेज लोग सिनेमा देखने आते थे, में आपने बम फेंका था।
श्री हीरालाल जैन टेलीफोन के तार काटना आपका मुख्य कार्य था। प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और समाजवादी नेता श्री 2 फरवरी 1943 को जब आप बाहर से आयी पिस्तोलों हीरालाल जैन का जन्म 25 अगस्त 1916 को कोटा की पेटी दमोह रेलवे स्टेशन पर लेने गये थे तब पुनः
(राज0) में हुआ। आपने गिरफ्तार कर लिये गये और जबलपुर जेल में रखे
कलकत्ता से बी0 ए0 ऑनर्स गये।
पास किया और 1935 से हीरालाल जी की क्रान्तिकारी गतिविधियों का
1937 तक शान्तिनिकेतन में अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जबलपुर
भी अध्ययन किया। 1938 के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी तथा स्वतंत्रता सेनानी, म0 प्र0
में कोटा रियासत के पुलिस स्वतंत्रता सेनानी संघ के संस्थापक मंत्री श्री रतनचंद
। अधीक्षक कार्यालय में जैन ने हीरालाल जी के सम्बन्ध में (नवभारत, अंग्रेजी-लिपिक का कार्य किया, परन्तु 1938 के जबलपुर, दिनांक 13 अगस्त 1995) लिखा है-'इसी दिसम्बर में ही राजकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और प्रसंग में मोतीलाल एवं हीरालाल जैन को भी भुलाया प्रजामंडल की सदस्यता ग्रहण कर ली। नहीं जा सकता जो अपनी जानपर खेलकर विस्फोटक 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में श्री जैन ने सामग्री प्रदेश में और दसरे प्रदेशों में स्वयं जाकर पहुँचाते सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने विद्यार्थियों को संगठित थे। एक बार तो इन्होंने पुलिस को छकाने के लिए किया, फलस्वरूप 16 सितम्बर को उन्हें गिरफ्तार कर कोतवाली के पास बम विस्फोट भी किया था।... श्री लिया गया और भारत सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत सत्येन्द्र मिश्र के सुझाव पर वे भूमिगत से बाहर आ नजरबन्द कर दिया गया। 5 नवम्बर 1942 को आप गय अतः पकड़े गये। पुलिस के अनेक प्रयत्न करने रिहा हुए। जेल से बाहर आकर आपने छात्रों के साथ
और त्रास देने पर भी इन्होंने कुछ नहीं बताया।..... मजदूर और किसानों को भी संगठित किया। उपरोक्त घटनाओं का बीते 50 वर्ष से अधिक हो गये 1942 में कोटा में चार दिन तक जनता का हैं। इनमें श्री दालचंद जैन अभी जबलपुर में है और राज रहा था। आजादी के मतवालों ने आजादी मिलने श्री हीरालाल जैन भिलाई में हैं। ये दोनों साथी यद्यपि से पांच वर्ष पूर्व ही पुलिस कोतवाली पर तिरंगा फहरा आय में मुझसे छोटे हैं, परन्तु मैं इनके प्रति श्रद्धाभाव दिया था और चार दिन तक जनता का राज कायम
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प्रथम खण्ड
379
रखा था। इस सन्दर्भ में 'वार्ता' समाचार एजेन्सी को 1955 के 'गोवा मुक्ति संग्राम' में भी आपने दिय एक साक्षात्कार में हीरालाल जी ने कहा था-'कोटा भाग लिया था और 39 सत्याग्रहियों के जत्थे का नेतृत्व रियासत की सरकार ने 13 अगस्त 1942 को दोपहर किया था। अमर उजाला, मेरठ (दिनांक 10 जुलाई तक हडताल एवं जलस के कार्यक्रम में कोई 1997) को दिये एक साक्षात्कार में आपने इस सन्दर्भ बाधा खडी नहीं की थी, लेकिन 14 अगस्त को किसी म बताया था कि-'हम लोग 11 अगस्त 1955 को राजनीतिक एजेंट के यहाँ पहुँचने की खबर से वह
कोटा से देहरादून एक्सप्रेस रेलगाड़ी से रवाना हुए थे।
इस मुक्तिदल को यह निर्देश मिला था कि उन्हें 15 घबराई तथा अधिकारियों ने प्रजामंडल के नेता शम्भूदयाल
अगस्त को तिरंगा झंडा फहराना है। हमने पुर्तगालियों सक्सेना एवं एडवोकंट बेनीमाधव को 13 अगस्त की
की आखों में धूल झोंकते हुए एक सरकारी भवन पर शाम बुलाया और 14 को प्रदर्शन का कार्यक्रम स्थिगित
तिरंगा फहराया। इस दौरान हुई गोलाबारी में एक साथी रखने का अनुरोध किया लेकिन अधिकारियों की इस
पन्नालाल यादव शहीद हो गया। झंडा फहराने के बाद बात से सहमत नहीं होने पर दोनों को गिरफ्तार कर पुर्तगाली पुलिस और सेना ने हमें गिरफ्तार कर लिया। लिया गया।' (उक्त घटना के विस्तृत विवरण तथा श्री एक बदबूदार कोठरी में बन्दकर यातनायें दी, लेकिन जैन के पूरे साक्षात्कार के लिए देखें-नवभारत टाइम्स, हमें इसका कोई अफसोस नहीं है। देश की खातिर दिनांक 30 जुलाई 1997)
सब सहन कर लिया।' ध्यातव्य है कि हीरालाल जी उस समय छात्र श्री जैन गांधी जी के 'हिन्दुस्तान मजदूर सेवक थे और छात्रों में क्रान्ति का शंखनाद फंकना तथा संघ', 'हिन्दी मजदूर सभा', 'हिन्द मजदूर पंचायत', समन्वय का कार्य उनके जिम्मे था। श्री जैन के बड़े 'हिन्द मजदूर किसान पंचायत' आदि मजदूर संगठनों भाई जोरावर सिंह को भी 1942 के उक्त आन्दोलन से जुड़े रहे हैं। आजादी के बाद भी आपने अनेक बार में गिरफ्तार कर लिया गया था।
जल यात्रायें की हैं।
आ।-(1) रा) म्व) से), पृष्ठ-5-13 (2) नवभारत टाइम्स, 1946 में आपने राजस्थान में सोशलिस्ट पार्टी 30 जुलाई 1997 (3) अमर उजाला. 10 जुलाई 1997 (4) श्री की स्थापना कराई। आजाद हिन्द फौज के बंदियों की
र बागमल बांठिया, कोटा द्वारा प्रेपित परिचय रिहाई के लिए कोटा में आन्दोलन का संचालन भी
श्री हीरालाल जैन आपने किया था। कोटा रियासत में 'उत्तरदायी शासन' श्री हीरालाल जैन, पुत्र-श्री फूलचंद जैन का की स्थापना हेतु 1947 में गठित विधान निर्मातृ समिति जन्म पनागर, जिला- जबलपुर (म0 प्र0) में 1906 में प्रजामंडल की ओर से मजदूर प्रतिनिधि के रूप में हुआ। पिता के कपड़े के व्यवसाय के कारण में आप मनोनीत हुए थे।
आपको उनके साथ कटनी, जबलपुर, छतरपुर आदि 6 अप्रैल 1947 को 'जयहिन्द' नाम से एक
स्थानों पर जाना पड़ता था। इसी भ्रमण के कारण
आप नेताओं के सम्पर्क में आये, फलतः देश को साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आपने शुरू किया था 1955 में इस पत्र की जमानत जब्त हो गई थी। लेखन में
आजाद कराने की धुन आप पर सवार हो गई।
1930 के जंगल सत्याग्रह में हीरालाल जी ने आपकी गहरी रुचि रही। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं
भाग लिया तथा 15-8-1930 से 3-1-1931 तक में आपकी रचनायें छपी हैं।
की सजा आपको जबलपुर जेल में काटनी पड़ी।
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31-1-1986 को कोतमा (शहडोल) में आपका देहावसान हो गया।
आ - ( 1 ) म प्र स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-124 (2) स्व) आ० श० पृष्ठ- 163
श्री हीरालाल जैन
पचौर, जिला-राजगढ़ (म0प्र0) के श्री हीरालाल जैन, पुत्र- श्री कालूराम जैन का जन्म 1905 में हुआ। 1942 के आन्दोलन में आपने भाग लिया, जिसमें एक माह का कारावास आपको भोगना पड़ा।
आ - (1) म0 प्र0 स्व0 सै0 भाग 5 पृष्ठ-128
श्री हीरालाल जैन
होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री हीरालाल जैन, पुत्र - श्री चुन्नीलाल का जन्म 1924 में हुआ। 1942 के आंदोलन में आपने सक्रिय भाग लिया फलस्वरूप 6 माह का दंड आपको भोगना पड़ा।
आ) - (1) म०) प्र० स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ 343 श्री हीरालाल जैन
श्री हीरालाल जैन का जन्म 4 मई, 1922 को हरदा (म0प्र0) में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री हजारीमल जैन था, जो 'हजारी दादा' के नाम पहचाने जाते थे। आपके एक बड़े भाई एवं दो बहनें थीं। आपने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की। 1930 की मन्दी के समय आपके परिवार को रुई
में काफी घाटा (नुकसान) लगा, जिससे आपकी परिस्थिति खराब हो गई। आपका विवाह 1940 में हरदा में ही लक्ष्मीबाई जैन से हुआ।
श्री जैन ने 1942 के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया, हरदा में 144 धारा लगी थी, उसको तोड़ा व 'वन्दे मातरम्' का नारा देते हुए गिरफ्तार हुए। आपको
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
4 माह की सजा हुई जो होशंगाबाद की जेल में काटी। आपने जेल में ही कविता लिखनी शुरू की। जेल में दादा भाई नाईक, चम्पालाल सोंकल, महेशदत्त मिश्र, रामेश्वर अग्निभोज, मगनलाल जी कोठारी आपके साथ थे। आपकी कविताओं का संग्रह 'प्रणयकुमार' के नाम से छपा था। देश आजाद होने के बाद कुछ समय तक आपने कांग्रेस का काम किया बाद में 1954 से राजनीति छोड़ दी।
1972 में मध्य प्रदेश शासन ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया, जिसमें सभी को पेन्शन व जमीन दी गई, परन्तु आपने कोई पेन्शन व जमीन नहीं ली व कहते रहे कि - 'क्या हमने इसके लिये लड़ाई लड़ी थी, हमने तो मातृभूमि की रक्षा के लिए, आजादी के लिए लड़ी थी । '
सामाजिक व धार्मिक कार्यों में आप सदैव अग्रणी रहे। आप दिगम्बर जैन संस्था के न्यासी भी रहे बाद में कोषाध्यक्ष व मंत्री पद भी संभाला। समाज में आपकी काफी प्रतिष्ठा थी आपके सामने किसी को बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। प्रतिदिन मंदिर जाना आपका नियम था ।
आपका निधन दिनांक 24 मार्च 1988 को हार्ट अटैक हो जाने से हो गया।
आपकी मृत्यु के पश्चात् शासन द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सैनानी पेंशन मिलने लगी जो आपकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मीबाई जैन को मिल रही है। श्रीमती लक्ष्मीबाई जैन भी धार्मिक रुचि सम्पन्न महिला हैं। श्रीमती जैन पेंशन में प्राप्त समस्त राशि विद्यार्थियों को दे देतीं हैं।
(आ) - ( 1 ) म) प्र०) स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ 346 (2) स्व) स) हो, पृष्ठ-133 (3) हरदा और स्वतंत्रता संग्राम, पृष्ठ- 85 (4) पुत्र श्री महेन्द्रकुमार द्वारा प्रेषित परिचय
श्री हुकुमचंद जैन
जबलपुर (म0प्र0) निवासी तथा नागपुर प्रवासी श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र - श्री गोरेलाल का जन्म 1919
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प्रथम खण्ड
381 में जबलपुर में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन जबलपुर नगर से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई। में आप कटनी एवं आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय रहे, नगर कांग्रेस कमेटी के अनेक वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे फलतः आपको गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर श्री जैन विपरीत आर्थिक परिस्थितियाँ हो जाने पर भी में 6 माह के कारावास की सजा दी गई। अपने उद्देश्य तथा कार्यों के प्रति ईमानदार रहे। आ0-(1) म0 प्र) स्व) 30, भाग-1, पृष्ठ-126
आO--(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-125 (2)
स्व0 स0 जा0, पृष्ठ-189-90 श्री हुकुमचंद जैन श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र- श्री देवीचंद का जन्म
श्री हुकुमचंद बड़घरिया 1917 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1932 के
ललितपुर (उ0 प्र0) के आन्दोलन में आपने खुल कर भाग लिया, फलत:
श्री हुकुमचंद बड़ घरिया, गिरफ्तार हुए और 6 माह के कारावास की सजा पाई।
पुत्र- श्री परमानन्द का आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-126 (2)
जन्म 1921 में हुआ। 1942 स्वा) स) ज), पृष्ठ-188
के आन्दोलन में आपको एक __ श्री हुकुमचंद जैन
वर्ष की सजा और 100 कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री
रुपये जुर्माना भुगतना पड़ा। हुकुमचंद जैन, पुत्र-श्री नत्थूलाल का जन्म 1903 में जुर्माना न देने पर दो माह और कारावास में रहना पड़ा। हुआ। आप में राष्ट्रीय भावना बचपन से ही थी। जंगल
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-27 सत्याग्रह में जुलाई 1930 तक का कारावास तथा 50 रुपये का अर्थदण्ड आपने भोगा।
श्री हुकुमचंद बुखारिया 'तन्मय' आ(-(1) म0 प्र0 स्वा) सै0, भाग-1, पृष्ठ-126 'तन्मय' उपनाम से प्रसिद्ध और 'जैन राष्ट्रकवि' श्री हुकुमचंद जैन
पद के अधिकारी श्री हुकुमचंद बुखारिया का जन्म श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र-श्री बट्टी लाल का जन्म
24 जनवरी 1921 को 1914 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। राष्ट्रीय कार्यों
ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ।
आपके पिता का नाम श्री को गतिमान बनाये रखने के लिए 'नेशनल ब्याय
फूलचंद जैन था। कविवर स्काउट्स एसोसिऐशन' नाम से गठित नवयुवकों की
'तन्मय' बुखारिया जी ने संस्था के सदस्य बनकर आप 1932 के आन्दोलन
लगभग 19-20 वर्ष की में सक्रियता के कारण गिरफ्तार किये गये और छ:
अवस्था से ही राष्ट्रीय संग्राम माह का कारावास भोगा। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने
में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था। द्वितीय महायुद्ध के कारण आपने जरूरतमंद साथियों की यथासम्भव
के आस-पास राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में अपनी सम्पूर्ण सहायता की तथा राष्ट्रीय कार्यों में भी आर्थिक सहयोग
आन्तरिकता के साथ आप प्रयत्नशील हुये, फलतः राष्ट्रीय दिया।
भावनाओं के उन्मेष ने आपको कवि बना दिया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत कार्यकर्ताओं को सहायता पहुँचाकर गिरफ्तार होने पर
1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अर्न्तगत छ: डेढ वर्ष तक नजरबंद रहे। रिहा होने पर छ: माह तक माह की सख्त सजा 'तन्मय' जी ने भोगी थी। 1942
तन्मय
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के भारत छोड़ो आन्दोलन में एक वर्ष की कठोर . ........आजादी की लड़ाई में वे जेल गये। जेल और 100/- रु) जुर्माने की सजा काटी। जेल इन्दौर से व्यक्तिगत सत्याग्रह करते हुए ललितपुर के अन्दर आपकी संवेदना विद्रोह कर बैठी। जिजीविषा आये श्री मिश्रीलाल गंगवाल की अगवानी किशोर के अभिनव आयाम प्रस्फुटित हुये, फलत: 'आहुति', 'तन्मय' बुखारिया ने ही की थी और उन्हें अपने घर 'पाकिस्तान' और 'मेरे बापू' जैसी कृतियों में आपके ठहराया था। गंगवाल जी जीवन भर इस घटना को ही नहीं राष्ट्र के हृदय की वेदना सम्प्रेषित हई है। नहीं भल सके। लेकिन बाद में देश में बखारिया जी 'मरण मुक्ति का द्वार' आपकी अध्यात्मिक रचनाओं के सपनों के विपरीत जो कुछ होता रहा उससे उन्हें का संकलन है।
अपनी जेल यात्रा भी अधिक सार्थक नहीं लगी हो शृंगार वीर एवं शांत रस में छन्दबद्ध एवं तो कोई आश्चर्य नहीं..........आंदोलनों और जेल अतुकान्त दोनों ही शैलियों में आपने समान अधिकार यात्राओं के कारण उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पायी।' सं कवितायें लिखीं। देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित 'जलज' जी ने बुखारिया जी के व्यक्तित्व के पत्रपत्रिकाओं में आपकी रचनायें प्रकाशित हुई हैं। सन्दर्भ में आगे लिखा है- 'वे जिस ताकत से ललितपुर में आपके नागरिक अभिनंदन के अवसर महात्मा गांधी को सिद्ध करते थे, उसी ताकत से वे पर 'सरस्वती भूषण' की उपाधि से आपको अलंकृत आगे चलकर रजनीश को भी सिद्ध करते मिले। किया गया था। स्पष्टवादिता बुखारिया जी को उनके द्वारा लिखी गई रजनीश के ग्रन्थ 'महावीर विशेषता थी। वे स्वयं अपने शब्द परिचय में लिखते वाणी, भाग-1 ' (विशेष संस्करण 1988) की प्रस्तावना
रजनीश के प्रति उनके एकान्त समर्पण, उनके पक्ष गला नहीं है, मात्र कला है, इनकी अपनी शैली। में इस्तेमाल में आयी उनकी असाधारण तर्कशक्ति आधी चादर बहुत साफ है, आधी चादर मैली।। और उनके ताकतवर गद्य का अप्रितम नमूना है।...
निस्संदेह बुखारिया जी हिन्दी काव्य-जगत में .. ललितपुर में जैन मन्दिरों को सबके लिए खुलवाने, जैन समाज के सर्वाधिक प्रशंसित एवं ख्याति प्राप्त मृत्युभोज को बंद करवाने और जैन मात्र को प्रक्षाल कवि रहे हैं। एक समय था जब उनकी उपस्थिति का अधिकार दिलवाने में उन्होंने सक्रिय भूमिका भी कवि-सम्मेलनों की सफलता की पर्याय समझी जाती निभाई।' (तीर्थङ्कर, जनवरी 1998) थी। राष्ट्रीय, मानवीय, प्रणय और अध्यात्म की अनुभूतियों उत्कट जिजीविषा के धनी बुखारिया जी ने के गायक इस कवि की रचनाओं में कालजयी तत्त्व होटल, बर्फखाने की फैक्ट्री, आटा चक्की लगाने सहज मुखर हैं। सैकड़ों अभिनन्दन पत्रों और सम्मान जैसे अनेक कार्य किये। वे अध्यापक और प्राचार्य पत्रों से भिन्न-भिन्न संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी रहे और वकालत भी की। हस्तरेखाओं को पढ़ने किया गया।
तथा भविष्य बताने का भी उन्हें शौक था। प्लेटेंच बखारिया जी की कविता के सन्दर्भ में प्रसिद्ध यन्त्र पर मृत आत्माओं को भी वे बुलाते थे। 26 साहित्यकार डॉ0 जयकुमार 'जलज' ने लिखा है-'कवि नवम्बर 1997 को बुखारिया जी का देहावसान हो सम्मेलनों में वाहवाही लूटने वाली उनकी कवितायें गया। सीधे-सीधे तात्कालिकता से जुड़ी हुई थीं। वे आजादी बुखारिया जी के जीवन काल में जब हमने की लड़ाई के पक्ष में माहौल बनाती और जन-जागरण अपने प्रस्तुत ग्रन्थ की चर्चा करते हुए अपनी जेल करती थीं।
यात्रा का एक संस्मरण भेजने का निवेदन किया था,
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प्रथम खण्ड
तो उन्होंने अपनी सुन्दर हस्तलिपि में आज के परिवेश पर कटाक्ष करती हुई सम्भवतः सद्य:- प्रसूत निम्न कविता भेजी थी, जिसे हम साभार यहाँ दे रहे हैं।
संगठित सार अँधेरे हो गए हैं, एक मेरा दीप कब तक टिमटिमाए ! तम हटाए !
पतझरों ने संधि कर ली आँधियों से, अल्पमत में हो गई हैं अब बहारें, बाग के दुश्मन बने खुद बागबाँ अब, प्रश्न यह है बुलबुलें किसको पुकारें ! पद-प्रतिष्ठा बाँट ली है उल्लुओं इस चमन को कौन मरने से बचाए ! संगठित सारे...
..!
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रात ने चेहरा पहिन रक्खा सुबह का, जुगनुओं ने नाम सूरज रख लिया है, चाँदनी को कह रहीं 'वेश्या' तमिस्त्रा, रख लिया तम ने रहन हरइक दिया है, आँखवाली बन गई चमगादड़ें सब जन्म के अन्धे मशालों के पहरुए, और दृष्टा मौन नजरों को झुकाए । संगठित सारे
!
कंठ तक डूबे हुए जो गन्दगी में, स्वच्छता के वे निरीक्षक बन गए हैं, योजनाओं को निगल बैठे स्वयम् जो, वे विफलता के समीक्षक बन गए हैं ! आग लगने को विकल है आज या कल, हर तरफ चिनगारियाँ गुस्सा पिए हैं, कौन इनको बाँध कर सूरज बनाए ! संगठित सारं
I
शब्द के जादूगरो, तुम सोच लो तो, स्वाहियों का रंग बदले, ढंग बदले,
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383
पंगुओं को गति मिले, वाणी मुखर हो, पथ बदले, यात्रियों का संग बदले, स्वर्ण मृग-सी दूर, प्रतिपल दूर है जो, वही मंजिल कल्पना की जो चहेती, पाँव की पायल बने, घुँघरू बजाए ! संगठित सारे अँधेरे हो गए है,
एक मेरा दीप कब तक टिमटिमाए ! तम हटाए !
(आ)- (1) जै० स० रा) अ (2) वि० अ०, पृष्ठ-542 (3) र0 नी), पृष्ठ-20. (4) आधुनिक जैन कवि, पृष्ठ- 66 (5) मेरे बापू (6) स्वप्रेपित कविता ( 7 ) तीर्थकर, जनवरी 1998
श्री हुकमचंद नारद
अपनी निर्भीक पत्रकारिता, मनस्विता, कर्मठता और अपराजेय संकल्प शक्ति से देश के स्वाधीनता संग्राम के पथ को प्रशस्त करने वाले श्री हुक्मचंद नारद का जन्म 14 जनवरी 1903 को सतना (म0प्र0) में श्री मूलचंद नारद के यहाँ हुआ। अल्पायु में ही श्री हुक्मचंद नारद पितृछाया से वंचित हो
गये, लेकिन बजाय परिवार की चिन्ता करने के, वे स्वाधीनता संग्राम में कूद गये। जीवन के पूर्वार्ध में जहाँ एक ओर आपको सामन्तवादी तत्त्वों से संघर्ष करना पड़ा वहीं कालान्तर में आप ब्रितानी सत्ता के आक्रोश का भी शिकार बने।
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मैहर का तत्कालीन शासक बेहद अहम्मन्य और क्रूर था। राजाज्ञा थी कि रियासत के भीतर कोई भी व्यक्ति 'गाँधी टोपी पहनकर नहीं निकल सकता। स्वाधीनचेता नागरिकों और देशी राज्य प्रजापरिषद् के सदस्यों पर दमनचक्र पूरे जोर से चल रहा था। तब भी नारद जी गाँधी टोपी लगाकर मैहर की सड़कों से गुजरे और गाँधी टोपी लगाकर ही उन्होंने मैहर के
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शासक से बातचीत की। इस दुस्साहस का फल उन्हें भोगना पड़ा। मैहर रियासत के भीतर उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया।
1930 के सत्याग्रह - संग्राम के ऐतिहासिक दिनों में नारद जी जब सतना से जबलपुर आये, तब उनके पास केवल आठ आने की पूँजी थी और कपड़े की फेरी लगाकर उन्होंने काफी समय तक गुजारा किया। पर बाद में महात्मा गांधी के स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर और उनके द्वारा विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाने के आह्वान किये जाने से नारद जी ने वस्त्र व्यवसाय को सदैव के लिए तिलांजलि दे दी। यह घटना नारद जी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और यहीं से उनके अन्दर के 'पत्रकार' का उदय हुआ।
'लोकमत' का प्रकाशन तब जबलपुर से प्रारम्भ हुआ ही था। उसके सम्पादक पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र थे। वह परिवेश जहाँ एक ओर ब्रितानी साम्राज्यवाद के आतंक से बोझिल था, वहीं दूसरी ओर उसमें राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत होकर जूझ मरने का संकल्प भी भरा था। नारद जी को 'लोकमत' के माध्यम से अपनी चेतना को अभिव्यक्त करने का अवसर मिला। वे 'लोकमत' के सहायक सम्पादक नियुक्त हुए, लेकिन साथ ही तत्कालीन प्रखर दैनिकों ‘वर्तमान’, ‘स्श्विामित्र', 'जन्मभूमि', 'लीडर' और 'अमृत बाजार पत्रिका' के जबलपुर स्थित संवाददाता भी बन गये।
नारद जी के भेजे गये समाचार स्वाधीनता के लिए बेचैन भारतीयता की अभिव्यञ्जना होते थे, जिसका सम्यक् पुरस्कार गौराङ्गशाही ने उन्हें दिया। 1942 में बम्बई में कांग्रेस की बैठक की कार्यवाही के समाचार संकलन करते हुए नारद जी गिरफ्तार कर लिये गये और 15 दिन हिरासत में रखने के बाद रिहा किये गये। जबलपुर वापिस आने पर आन्दोलन से
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
सम्बन्धित समाचारों के प्रकाशन के कारण पुनः गिरफ्तार हुए और लगभग 7 माह नजर बन्द रहे।
पत्रकारिता के लिए निरन्तर जेल यात्रायें करने वाले नारद जी मध्यप्रदेश के अकेले पत्रकार थे। आपकी निर्भीक पत्रकारिता बेडगांव की एक घटना से सिद्ध होती है, जिसमें नारद जी ने कतिपय अंग्रेज सैनिकों द्वारा ग्रामीण महिलाओं को बेइज्जत करने का समाचार अपने अखबारों में भेजा था। बौखलाये अंग्रेजों ने उक्त घटना का प्रमाण देने अथवा परिणाम भुगतने की चेतावनी जब नारद जी को दी, तो नारद जी ने विस्तारपूर्वक पूरी घटना को हुकूमत के सामने पेश कर दिया । अन्ततः ब्रिटिश सत्ता को मिलिटरी ट्रिब्यूनल नियुक्त करना पड़ा और दोषी सैनिकों को दण्ड मिला।
नारद जी का व्यक्तिगत सम्पर्क राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद से था। आज से साठ वर्ष पूर्व केवल कलम के आधार पर जीविका अर्जित करने वाले वे मध्यप्रदेश के अकेले पत्रकार थे। कर्मठता, सजगता, दूरदर्शिता राष्ट्रीयता, लगन-शीलता, कर्त्तव्यपरायणता, मौलिकता और कलम की ईमानदारी उनके व्यक्तित्व के पर्याय बन गये थे।
नारद जी को अपने कार्यों के लिए प्रशंसा और पुरस्कार की अपेक्षा नहीं थी, वे उन सबसे बहुत दूर थे। उन्होंने कुर्बानियाँ दीं, क्योंकि यही देश में चल रही आजादी की लड़ाई का आह्वान था। 1939 में जबलपुर की त्रिपुरी कांग्रेस में प्रचार समिति के वे संयोजक थे और कांग्रेसाध्यक्ष के 52 हाथियों के जुलूस की व्यवस्था उन्होंने की थी । त्रिपुरी कांग्रेस के अध्यक्ष नेताजी सुभाषचन्द्र बोस नारद जी के अनन्य प्रशंसको में थे, जिन्होंने कहा था कि 'नारद जी की पत्रकारिता आजादी का शंखनाद है । '
नारद जी ने आजादी की लड़ाई में सबकुछ गवां दिया। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम की खातिर
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प्रथम खण्ड
385 अपने कुटुम्ब की भी चिन्ता नहीं की, जो उनके एक विश्रामकक्ष उनकी स्मृति में बनवाया गया है। आश्रित था। 26 नवम्बर 1953 में जब उनकी मृत्यु इसी प्रकार जबलपुर नगर निगम द्वारा एक मार्ग का हुई, तब उनकी आयु केवल पचास वर्ष की थी। नामकरण उनके नाम पर 'हुक्मचंद नारद मार्ग' बड़े परिवार को वे निस्सहाय छोड़ गये थे। किया गया है। नारद जी की स्मृति में 'स्मृतियों के ___पत्रकारिता के क्षेत्र में नारद जी के अवदान को रक्त पलास' नाम से एक स्मारिका प्रकाशित की गई इस तथ्य से आंका जा सकता है कि राष्ट्रपिता है, जिसमें नारद जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के महात्मा गांधी ने उनके विषय में कहा था-'संवाद आकलन के साथ ही नारद जी के सम्बन्ध में अनेक गढने का करिश्मा देखना हो तो हुक्मचंद नारद की नेताओं/साहित्यकारों के विचार दिये गये हैं। कलम में देखो।' इसी प्रकार नेताजी सुभाषचन्द्र बोस सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह है कि ने कहा था-'नारद जी की पत्रकारिता आने वाली मध्यप्रदेश शासन ने नारद जी की स्मृति में उनकी पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तम्भ होगी।'
मानवाकार कांस्य प्रतिमा का निर्माण कराया है। किसी पटाभिसीतारमैया ने अपने महाग्रन्थ 'कांग्रेस श्रमजीवी पत्रकार की स्मृति में शासन द्वारा निर्मित का इतिहास' में मध्यप्रदेश के जिन पुण्य-पुरुषों का सम्भवतः यह पहली प्रतिमा है। जबलपुर के हृदय उल्लेख किया है, उनमें नारद जी एक हैं। स्थल सिविक सेन्टर में स्थापित उक्त प्रतिमा का
नारद जी पद की आकांक्षा से सदैव दर रहे। अनावरण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं0 रविशंकर शक्ल ने सिंह ने 3 मई 1999 को किया था। मुख्यमंत्री जी बहुत चेष्टा की थी कि नारद जी विधायक बन जायें. ने इस अवसर पर कहा था कि-'नारद जी का लेकिन नारद जी को लिखकर ही जीविकोपार्जन व्यक्तित्व पत्रकारों और युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत करना अच्छा लगता था। इसी प्रकार विन्ध्यप्रदेश के रहेगा। आजादी के संघर्ष में नारद जी का अविस्मरणीय गवर्नर द्वारा प्रस्तावित मंत्रीपद को भी उन्होंने नम्रता योगदान रहा था।' मुख्यमंत्री जी ने इस अवसर पर पूर्वक अस्वीकार कर दिया था।
घोषणा की थी कि-'सन 2002 में स्वर्गीय श्री हक्मचंद श्री बनारसीदास चतुर्वेदी ने लिखा है कि-'पं0
नारद की जन्मशती मनाने का निर्णय राज्य शासन ने जवाहरलाल नेहरू नारद जी के व्यक्तिगत प्रशंसक थे।
लिया है और उनकी स्मृति में पत्रकारिता फाउन्डेशन उनकी बड़ी इच्छा थी कि नारद जी राज्यसभा में आ
की स्थापना की योजना भी राज्य शासन के जायें। लेकिन पं0 जी के इस प्रस्ताव को नारद जी के
विचाराधीन है।'
आO-(1) म0 प्र0 स्व० सै०, भाग-1, पृष्ठ-125 इंकार करने के बाद मझे राज्यसभा में मनानात किया (2) स्व० स० ज०. पष्ठ-189 (3) स्मतियों के रक्तपलाश गया। यह उल्लेख सिर्फ इसलिए कि लोग जानें वे पद (स्मारिका) (4) नई दुनिया, इन्दौर 2 मई 1999 एवं 4 मई 1999 या पैसे के आकांक्षी नहीं थे। वे मंत्री बन सकते थे. (5) सन्मतिवाणी, जून 1999 (6) अहिंसा सन्देश, जून 1999 कलम का सौदा कर करोड़ों कमा सकते थे, लेकिन ।
(7)डॉ0 कैलाश नारद द्वारा प्रेषित परिचय यह तो उनका स्वभाव ही नहीं था।'
श्री हुक्मीचंद पोरवाल ____ हर्ष का विषय है कि कृतज्ञ राष्ट्र ने नारद जी रानापुर, जिला-झाबुआ (म0प्र0) निवासी और की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए ठोस कार्य इन्दौर प्रवासी श्री हुक्मीचंद पोरवाल, पुत्र-श्री भागीरथ किये हैं। शासकीय विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर में पोरवाल का जन्म 28 फरवरी 1923 को हुआ।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 1947 में देशी राज्य लोक परिषद् द्वारा चलाये गये की पैरवी करने के लिए बाबू मेलाराम व काशीराम
आन्दोलन में आपने भाग लिया था। शासन ने प्रशस्ति कर्नीवाल वकील थे। बाबू मेलाराम के एक घण्टा पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित किया था। वहस करने के बाद मुकदमे की सुनवाई से एक घण्टा
आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-149 पहले ही हमें बरी कर दिया गया था।' श्री लाला हुलाशचंद जैन
1930 में नकुड़ तहसील में सरकार की ओर से
है एक अमन सभा बनाई गई थी। जिसमें लाला आजादी के काम को ही अपना काम मानने
कुलबन्तराय, लाला नारहसिंह, अब्दुल वहीद खाँ व वाले श्री हुलाश चंद जैन रामपुरमनिहारन,
आप अग्रगण्य थे। 1930 में ही नमक आन्दोलन के जिला-सहारनपुर (उ0प्र0) के निवासी थे। 1917 में
समय 2 से 4 सितम्बर को देबवन्द में एक कांग्रेस का वे राजनीति में आये और गोखले के 'भारत सेवक
आयोजन किया गया था जिसकी समाप्ति के बाद श्री समाज' (सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसायटी) के सदस्य
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, बाबू आनन्द प्रकाश, श्री बन गये। 1922 में गया कांग्रेस अधिवेशन में वे जिले
मामचंद जैन आदि के साथ आपको गिरफ्तार कर के प्रतिनिधि के रूप में गये थे। असहयोग आन्दोलन
लिया गया था। बाद में गांधी इरविन समझौता होने के के समय आपने बेगार के विरुद्ध आन्दोलन किया था।
बाद आप मुक्त हुए थे। 3-2-1975 को दिये एक साक्षात्कार में आपने कहा
जैन संदेश के अनुसार 1942 में भी काफी दिन था कि- 'बेगार न करने पर मुझ पर मुकदमा चलाया
आपको जेल में बिताना पड़े थे। गया था। मैं, ओमी अख्तार, रोड़ामल अख्तार और
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) स0 स0, भाग-1, गंगाविष्णु चारों पर मुकदमा चला था इस मुकदमे पृष्ठ-142, 177, 179 एवं 550 (3) उ0 प्र0 जै0 ध0, पृष्ठ-86
000
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परिशिष्ट-एक
संविधान सभा और जैन किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय संविधान उस देश की आत्मा होते हैं। पूर्ण प्रभुतासम्पन्न लोकतन्त्रात्मक देशों में जहाँ भी लिखित संविधान हैं, वहाँ उनका निर्माण जनता ने प्रायः संविधान सभाओं के माध्यम से ही किया है। भारतीय संविधान निर्माण की कहानी बहुत पुरानी नहीं है। आजादी के आन्दोलन के समय, भारतीयों द्वारा ही भारत का संविधान बनाने की मांग समय-समय पर की जाती रही है। स्वराज्य और स्वशासन की मांग के पीछे यह विचार भी किसी न किसी रूप में रहा था कि भारतीय ही अपनी वैधानिक व्यवस्था का निर्माण करें।
__ भारतीयों द्वारा भारत का संविधान बनाये जाने की स्पष्ट मांग सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने 5 जनवरी 1922 को की थी। 1924 में पं0 मोतीलाल नेहरू ने "राष्ट्रीय मांग'' नाम से प्रख्यात प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें गवर्नर जनरल से भारत में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना करने के उद्देश्य से भारत के लिए एक संविधान की योजना संस्तुत करने की मांग की गई थी। ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक "भारतीय संविधि आयोग" की स्थापना की थी, जिसे "साइमन कमीशन" के नाम से जाना जाता है। इस कमीशन में एक भी भारतीय नहीं था, अतः इसका व्यापक विरोध हुआ, परिणाम- स्वरूप 1927 में ही कांग्रेस के बम्बई और मद्रास अधिवेशनों में एक प्रस्ताव पास हुआ, जिसके अनुसार-'काँग्रेस कार्यकारिणी को केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान मण्डलों के निर्वाचित सदस्यों तथा विभिन्न दलों के नेताओं से मिलकर एक "स्वराज्य संविधान" बनाने का अधिकार सौंपा गया था।' 1928 में पं0 मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में बनी समिति ने भी संविधान निर्माण की चेष्टा की थी। 1934 में स्वराज्य पार्टी ने आत्मनिर्णय के अधिकार हेतु एकमात्र उपाय के रूप में भारतीय प्रतिनिधियों की एक संविधान सभा बुलाने का सुझाव दिया था। कांग्रेस ने भी इसका पूरा समर्थन किया था।
द्वितीय विश्वयद्ध के दौरान कांग्रेस ने 14 सितम्बर 1939 के अपने एक प्रस्ताव में पन: संविधान सभा की मांग दोहरायी। 1942 में सर स्टेफर्ड क्रिप्स ने विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद संविधान सभा की स्थापना का विचार स्पष्टरूपेण स्वीकार किया था। 1942 के 'भारत छोड़ो प्रस्ताव' में भी कांग्रेस ने घोषणा की थी कि-'स्वाधीनता के बाद कार्यकारी सरकार एक संविधान सभा बनाकर देश के लिए संविधान बनायेगी।' 19 सितम्बर 1945 को वाइसराय वेवेल ने घोषणा की थी कि-'सरकार शीघ्र ही संविधान सभा का आयोजन करना चाहती है, किन्तु इससे पूर्व केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान मण्डलों के चुनाव जरूरी हैं।' ।
____1945 के अन्त में केन्द्रीय सभा और 1946 के प्रारम्भ में प्रान्तीय विधान मण्डलों के चुनाव हुए। 16 मई 1946 को प्रकाशित अपनी योजना में "मंत्री मिशन' ने स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य-"एक ऐसी व्यवस्था को आरम्भ कर देना है जिसके द्वारा भारतीय भारतीयों के लिए संविधान बना सकें।" इस योजना के अनुसार ब्रिटिश भारत के लिए 296 और देशी राज्यों के लिए 93 स्थान रखे जाने थे। तदनुसार ब्रिटिश भारत के सदस्यों के 1946 में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए।
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388
स्वतंत्रता संग्राम में जैन संविधान सभा में सभी राजनैतिक दलों के प्रमुख नेता, सभी जातियों और धर्मों के लोग, वकील, डॉक्टर, शिक्षाविद्, उद्योगपति, व्यापारी, श्रमिक प्रतिनिधि, लेखक, पत्रकार आदि थे। देश की गणमान्य महिलायें भी यहाँ विराजमान थीं।
9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा का विधिवत् उद्घाटन हुआ। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद सभा के अध्यक्ष चुने गये। देशी राज्यों के प्रतिनिधि भी क्रमश: आते गये। इस प्रकार 15 अगस्त 1947 तक सभा पूर्ण रूप से प्रभुतासम्पन्न संस्था बन गयी। डॉ0 अम्बेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष चुने गये।
संविधान सभा लगभग 3 वर्ष (2 वर्ष 11 महीने 17 दिन) कार्यरत रही। उसके कुल ।। सत्र हुए और 165 बैठकें हुईं। प्रारूप समिति की 141 बैठकें हुईं। स्पष्ट है कि हमारी संविधान सभा ने बहुत ही कम दिनों में अपना संविधान बना लिया था।
संविधान सभा के अन्तिम दिन 24 जनवरी 1950 को सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हुए। संविधान की तीन प्रतियों, एक हस्तलिखित अंग्रेजी की, एक छपी अंग्रेजी की व एक हस्तलिखित हिन्दी की प्रति पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किये। अंग्रेजी की प्रति देखने का सौभाग्य हमें भी मिला है, पूरी प्रति चित्रों से सुसज्जित की गई है। चित्रों के माध्यम से क्रमशः पूरा इतिहास दर्शाया गया है। प्रथम पृष्ठ पर मोहनजोदड़ो से प्राप्त उस सील को दर्शाया गया है, जिस पर एक बैल अंकित है। पृष्ठ 63 पर भगवान् महावीर का चित्र अंकित है। पृष्ठ 151 पर महात्मा गांधी को तिलक करती एक महिला चित्रित है, जो सम्भवतः गांधी जी की दाण्डी यात्रा के समय का है। ध्यातव्य है कि गांधी जी की दांडी यात्रा के समय महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराभाई (जैन) ने किया था।
. संविधान-सभा में विभिन्न प्रान्तों से चुने हुए प्रतिनिधियों में कुछ जैन धर्मावलम्बी भी थे। पिछले पृष्ठों में संविधान सभा के सदस्य श्री अजित प्रसाद जैन, श्री कुसुमकान्त जैन, श्री बलवन्त सिंह मेहता और श्री रतनलाल मालवीय का परिचय दिया जा चुका है। संविधान सभा के एक और जैन सदस्य श्री भवानी अर्जुन खीमजी का परिचय यहाँ प्रस्तुत है।
कच्छ प्रान्त की ओर से संविधान सभा के सदस्य रहे श्री भवानी या भवन जी अर्जुन खीमजी संविधान सभा में भारतीय व्यापारी वर्ग का भी प्रतिनिधित्व करते थे। कांग्रेस के निर्माण में आपका भारी योगदान था। आपका जन्म 'खाम गाँव' में हुआ था। यूरोप की यात्रा से आपको संसार की विविध प्रवृत्तियों और समस्याओं का ज्ञान हुआ था।
___1930 के आन्दोलन ने मानों आपका जीवन ही बदल डाला था। तभी से आप व्यापार के साथ-साथ राजनीति एवं सार्वजनिक कार्यों में संलग्न हो गये। आपका रुई का व्यापार था। 1930 में बहिष्कार आन्दोलन में जब आपको गिरफ्तार किया गया तो रुई बाजार में गतिरोध पैदा हो गया, फलत: आपको अविलम्ब रिहा कर दिया गया।
श्री खीमजी तत्कालीन बम्बई कॉटन मर्चेण्ट व मुकद्दम ऐसोसिएशन लि0 के अध्यक्ष, ईस्ट इण्डिया कॉटन एसोसिएशन के निदेशक तथा अनेक दातव्य शिक्षा संस्थाओं के ट्रस्टी भी रहे थे।
1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आप एक वर्ष जेल में रहे थे। 1942 के आन्दोलन में भी आपको 2 वर्ष तक नजरबन्द रहना पड़ा था। गांधी जी और सरदार बल्लभ भाई पटेल से आपके घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
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प्रथम खण्ड
389 'जैन सन्देश' राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी, 1947) आपके विषय में लिखता है-"गांधी जी आपके विचारों में दृढ़ निष्ठा, एस0 के0 पाटिल आप में विश्वस्त साथी के योग्य गुण और सरदार बल्लभ भाई पटेल आपमें अपने विचारों को कार्यान्वित करने के योग्य परखी हुई प्रतिभा पाते हैं। अनेक सार्वजनिक दायित्वों का भार वहन करते हुए भी आप जैन समाज की अनेक धार्मिक, दातव्य और शिक्षा संस्थाओं के पदाधिकारी ट्रस्टी हैं।" (पृष्ठ 92)
000
हा रहा था।
चादर तीन हजार की आजाद हिन्द फौज के जांबाज सैनिकों को मुकदमें की पैरवी के लिए देता हूँ और मन से बंदी बनाया जा चुका था। उन पर लाल किले में परमात्मा का स्मरण करते हुए विश्वास करता हूँ राजद्रोह का मुकदमा चल रहा था। देश भर में कि सैनिक अवश्य ही कारागार से मुक्त होंगे।" असाधारण उत्तेजना, गुस्से और जोश की एक अन्त में उस चादर की नीलामी की गई जो लहर दौड़ गई थी, परिणामस्वरूप अनेक स्थानों उस सस्ते जमाने में भी तीन हजार में बिकी। साध पर विद्रोह हुए। मुकदमें के लिए काफी धन की क की भावना का फल यह हुआ कि शीघ्र ही आवश्यकता थी, अतः जगह-जगह धन एकत्रित आजाद हिन्द फौज के सैनिक मुक्त कर दिये गये। करने के लिए सभायें हो रही थीं।
ये साधक थे क्षु0 गणेश प्रसाद वर्णी, जो बाद. में
"जैन जगत के गांधी" नाम से विख्यात हुए और मध्य प्रदेश (तत्कालीन विन्ध्य प्रदेश) की
जिन्होंने लगभग ढाई सौ स्कूलों की स्थापना की संस्कारधानी जबलपुर में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं
तथा अनेक ग्रंथ लिखे। राजनीतिज्ञ पं0 द्वारका प्रसाद मिश्र की अध्यक्षता में "आजाद हिन्द फौज" की सहायतार्थ एक सभा
"वर्णी जी" का जन्म 1874 ई0 में का आयोजन किया गया। इसी सभा में दो चादर
हसेरा (वर्तमान-ललितपुर जिला) उ0प्र0 में एक
वैष्णव परिवार में हुआ। घर के पास स्थित जैन धारी एक साधक भी बैठा था। सभी अपना क्रम
मन्दिर के चबूतरे पर पढ़ी जाने वाली जैन रामायण आने पर बोलते जा रहे थे और कुछ राशि देते जा
__ (पद्म पुराण) को सुनकर वे वैष्णव से जैन रहे थे। अंत में इस साधक की भी बारी आई।
बने और गहन अध्ययन की लालसा में बनारस, मात्र दो चादर परिग्रह रखने वाला देता भी तो ।
॥ जयपुर, कलकत्ता, सागर आदि दशाधिक स्थानों क्या? पर देश की आजादी की उत्कट लालसा पर अध्ययन किया। बनारस में मात्र एक रुपये उसे लगी थी, साधक ने अपना भाषण पूर्ण किया के दान से उन्होंने 1905 में स्याद्वाद महाविद्यालय
और कहा-"मेरे पास देने को कुछ द्रव्य तो है की स्थापना की जिसके वे संस्थापक और प्रथम नहीं, केवल दो चादरें हैं, इनमें से एक चादर विद्यार्थी थे।
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परिशिष्ट-दो
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आजाद हिन्द फौज और जैन
भारतीय स्वातन्त्र्य समर की गाथा तब तक अपूर्ण ही कही जायेगी जब तक उसमें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज का जिक्र न हो। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से ब्रिटिश हुकूमत डर गई थी और उसे लगने लगा था कि हमें भारत छोड़ना पड़ेगा, किन्तु फिर भी किसी तरह वह लड़खड़ाते पैर जमाने की कोशिश कर रही थी। इधर आजाद हिन्द फौज की क्रान्तिकारी गतिविधियों से भी वह पूरी तरह घबरा गई। इन सबकी परिणति 1947 में देश की आजादी के रूप में हुई ।
1942 के आन्दोलन के समय भारत में क्रान्तिकारियों को जिस तरह की क्रूर सजायें दी जा रही थीं उन्हें देखते हुए कई क्रान्तिकारी जापान, चीन, मलाया, बर्मा आदि देशों की ओर चले गये थे और वहीं से अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन कर रहे थे। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस ने जापान में शरण ली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जापान ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तब टोकियो में एक सम्मेलन में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई और निर्णय लिया गया कि बर्मा, मलाया, थाईलैण्ड आदि देशों में भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन चलाया जाये।
जापानी फौजें जब मलाया की ओर बढ़ीं और सिंगापुर में अंग्रेज हार गये तब विजेता जापानी मेजर फूजीवारा ने भारतीय फौजों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि - 'जापान भारत के विरुद्ध नहीं है अतः भारतीय सैनिक हमारे युद्ध बन्दी नहीं।' तब कैप्टन मोहन सिंह और ज्ञानी प्रीतम सिंह भारतीय फौजों के कमाण्डर बना दिये गये और उन्होंने जापान की सहायता से भारत को आजाद कराने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। तभी मलाया में रहने वाले भारतीयों ने भी " इण्डिया इंडिपेंडेंस लीग" नामक संस्था की स्थापना की। इसी लीग के नियन्त्रण में " आजाद हिन्द सेना" संगठित करने का निर्णय लिया गया। कैप्टन मोहन सिंह इसके कमाण्डर बनाये गये और बीस हजार सैनिक इसमें शामिल हो गये। इसी समय सुभाषचन्द्र बोस गुप्त रीति से भारत से टोकियो पहुँचे। रास बिहारी बोस ने सिंगापुर में घोषणा कर दी कि - ' अब आगे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व सुभाषचन्द्र बोस करेंगे। '
26 जून 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने टोकियो रेडियो से प्रवासी भारतीयों के नाम अपना पहला भाषण प्रसारित किया। बीस हजार भारतीय सैनिकों की शानदार परेड में उन्हें सलामी दी गई। इस समारोह में जापानी प्रधानमंत्री भी उपस्थित हुए थे। सुभाषचन्द्र बोस ने " आजाद हिन्द फौज " के नाम की प्रसिद्ध अपील प्रकाशित की, जिसके अन्त में उन्होंने कहा था - " तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा।" इसी के बाद सभी ने सुभाषचन्द्र बोस को "नेताजी " उपनाम से पुकारना प्रारम्भ कर दिया था। जो लोग सेना में नहीं थे उन्होंने धन से व अन्य प्रकार से फौज की सहायता करना प्रारम्भ कर दिया। आजाद हिन्द फौज में जैनियों ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग दिया था। धन-धान्य की अपरिमित सहायता इस समाज ने की थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के निजी चिकित्सक रहे कर्नल डॉ) राजमल कासलीवाल अपनी अंग्रेज सेना की कर्नली छोड़कर आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित हो गये थे। (इनका परिचय पीछे दिया जा चुका है)
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प्रथम खण्ड
391
जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं कि जो प्रवासी भारतीय फौज में शामिल नहीं हो सके उन्होंने धनादि देकर आजाद हिन्द फौज की सहायता की थी। ऐसे व्यक्तियों में बर्मा में व्यापार के लिए गये एक प्रख्यात जैन उद्योगपति श्री चतुर्भुज सुन्दर जी दोशी के युवा छोटे भाई श्री मणिलाल दोशी का नाम अग्रगण्य है। मणिलाल जी नेताजी के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये। वे फौज में एक दायित्वपूर्ण विभाग के मन्त्री रहे। जब बर्मा जापान के अधिकार से निकलकर पुन: अंग्रेजों के अधिकार में आया तो बर्मा सरकार ने आपको गिरफ्तार करके रंगून जेल में डाल दिया। आजाद हिन्द फौज के तमाम कैदी रिहा हो जाने के बाद भी बर्मा की अडियल सरकार ने दोशी जी को रिहा नहीं किया, फलत: श्री शरच्चन्द्र बोस के नेतृत्व में एक जोरदार आन्दोलन हुआ और भारत से उनकी पैरवी करने के लिए प्रसिद्ध वकील श्री के) एम) मुन्शी और मि0 के0 एफ नरीमन गये । अन्त में बर्मा सरकार ने दोशी जी को रिहा किया।
नौ जुलाई 1943 को नेता जी ने एक विशाल जनसभा में महिलाओं को भी आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया, फलतः " रानी झॉसी रेजीमेन्ट" की स्थापना हुई। अक्टूबर, 1943 में सिंगापुर में महिला कैम्प लगा, फिर मलाया व बर्मा के अन्य भागों में भी कैम्प लगे। इनमें महिलाओं को चिकित्सा, नर्सिंग, ड्रिल, नक्शे देखना, युद्ध-तकनीक, शस्त्र-संचालन आदि सेना के सभी क्षेत्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था। आजाद हिन्द फौज की अस्थाई सरकार के नौ विभागों में नारी कल्याण भी एक विभाग रखा गया था। वह विभाग लेफ्टिनेन्ट कर्नल व रानी झॉसी रेजीमेन्ट की कमान्डेन्ट लक्ष्मी स्वामीनाथन् (सम्प्रति श्रीमती लक्ष्मी सहगल) को दिया गया था। तत्कालीन लोकप्रिय और प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ0 प्राणजीवन मेहता की पुत्री रमा बहन और पुत्रवधु श्रीमती लीलावती बहन आजाद हिन्द फौज की "रानी झाँसी रेजीमेन्ट" में सम्मिलित हो गयी थीं। 'जैन सन्देश', राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी 1947) ने श्रीमती लीलावती बहन और रमा बहन की कहानी उन्हीं के शब्दों प्रकाशित की थी, जिसे हम यथावत साभार यहां दे रहे हैं
श्रीमती लीलावती बहन :- जब ब्रिटिशों ने रंगून छोड़ दिया और जापानियों ने रंगून पर अधिकार जमा लिया तब कुछ समय के लिए अन्धाधुन्धी मच गयी थी। कई मास तक भारतीय स्त्रियाँ घर से बाहर नहीं निकल सकीं थीं। हमने अपने मकान पर एक बोर्ड लगा दिया था जिस पर लिखा था कि- " इस घर में महात्मा गांधी, पं0 जवाहर लाल नेहरू तथा अन्य भारतीय नेता आकर उतरे थे। इस घर में नेशनलिस्ट भारतीय रहते हैं।" इसे पढकर जापानी सोल्जर हमें कभी किसी भी तरह से हैरान नहीं करते थे ।
श्री सुभाष बाबू ने मलाया और बर्मा में " आजाद हिन्द फौज " और "झॉसी की रानी रेजीमैन्ट " स्थापित करने के लिए भाषण दिये तब हमारा सारा परिवार उनके भारतीय स्वातन्त्र्य संघ में सम्मिलित हो गया । 21 अक्टूबर 1943 को बर्मा और मलाया में " झॉसी की रानी रेजीमेन्ट" स्थापित करने का कार्य पूरा हुआ। रंगून में 10 बालकों को लेकर मेरे हाथ से कैम्प का उद्घाटन हुआ था। जब रात-दिन बम वर्षा होती थी तब भी आवश्यकता होने पर हम खुले मैदान में हथियारों के साथ सुसज्जित होकर खड़ी रहती थीं। हम घायलों की सेवा सुश्रुषा करने और अस्पताल ले जाने का काम करती थीं। मेरा मुख्य काम सबेरे 11 बजे से शाम 5 बजे तक घर-घर जाकर स्त्रियों, लड़कियों और पुरुषों को आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित होने के लिए
समझाना था।
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392
स्वतंत्रता संग्राम में जैन रमा बहन:-हमारा कैम्प मिलिट्री कैम्प था, उसमें हमें प्रत्येक प्रकार का शस्त्र-संचालन और अनुशासन-पालन सिखाया जाता था। झांसी की रानी रेजीमेन्ट में दो विभाग थे। एक युद्ध विभाग और दूसरा नर्सिंग विभाग। युद्ध विभाग में हमें मिलिट्री ड्रिल, रायफल के प्रेक्टिंस, पिस्तौल चलाना, टोमीगन चलाना तथा मशीनगन चलाना सिखाया जाता था। मोर्चे पर आक्रमण करना और आत्मरक्षा करना भी सिखाया जाता था। नर्सिंग विभाग में उक्त शिक्षा प्राप्त बालकों को रखा जाता था।
हमें घायलों की दवा-दारू और सेवा-सुश्रुषा करना सिखाया जाता था। हमें घंटों खड़े रहकर घायलों की सेवा करनी होती थी। प्रायः सभी बहिनें कैम्प में रहकर काम करने की अपेक्षा युद्ध क्षेत्र में जाकर लड़ने को अधिक आतुर रहती थीं। वे सब प्रसन्न थीं, इस आशा को लेकर कि उनके द्वारा भारत स्वतन्त्र होगा।
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आशाशाह
मेवाड़ के इतिहास में आशाशाह और उसकी वीर माता का नाम अमर है। महाराणा रत्नसिंह की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई विक्रमाजीत गद्दी पर बैठा किन्तु वह अयोग्य था और उसका छोटा भाई उदयसिंह नन्हा बालक। अतः सरदारों ने विक्रमाजीत को गद्दी से उतारकर दासीपुत्र बनवीर को राणा बना दिया। बनवीर ने विक्रमाजीत की हत्या कर जब उदयसिंह की हत्या करनी चाही तो पन्ना धाय अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बाहर ले आई। पन्ना धाय आश्रय की खोज में अनेक सामन्त-सरदारों के पास भटकी, पर अत्याचारी बनवीर के भय से आश्रय देने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। अन्ततः वह कुम्भलमेर पहुँची, जहाँ का दुर्गपाल आशाशाह (जैन) था। आशाशाह भी जब अपनी असमर्थता जाहिर करने लगा तो उसकी वीर माता कुपित होकर सिंहनी की भाँति आशाशाह पर झपटी और कहा-"तूं कैसा पुत्र है! जो विपत्ति के समय भी किसी के काम नहीं आता, एक माता पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लाई और तू उसकी रक्षा भी नहीं कर सकता। तुझे जीने का कोई अधिकार नहीं।" आशाशाह गद्गद होकर वीर जननी के चरणों में गिर पड़ा। आशाशाह ने कुमार को अपना भतीजा या भानजा कहकर प्रसिद्ध किया। कुछ काल के बाद उदयसिंह ने अन्य सामन्तों की सहायता से चित्तौड़ का सिंहासन प्राप्त कर लिया।
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परिशिष्ट-तीन
स्वतन्त्रता संग्राम और जैन पत्रकारिता आधुनिक युग में पत्रकारिता का महत्त्व स्पष्ट है। पत्र-पत्रिकायें व्यक्ति और व्यक्ति तथा शासक और शास्य के बीच में जन-सम्पर्क का सबसे बड़ा माध्यम हैं। महात्मा गांधी ने पत्र-पत्रिकाओं के तीन उद्देश्य बताये थे। प्रथम जनता की इच्छाओं-विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना, द्वितीय वांछनीय भावनाओं को जागृत करना और तृतीय सार्वजनिक दोषों को निर्भयता पूर्वक प्रकट करना। सामाजिक/सांस्कृतिक/धार्मिक/ आर्थिक दृष्टि से पत्र-पत्रिकाओं का जितना महत्त्व है उससे भी अधिक राजनैतिक दृष्टि से है। आजादी से पूर्व की पत्रकारिता राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति पूरी तरह समर्पित थी। तत्कालीन पत्रकारिता एक प्रकार से राष्ट्रीय आन्दोलन के ही विकास की कहानी है। पत्र-पत्रिकाओं के इसी महत्त्व को स्पष्ट करते हुए गांधी जी ने कहा था-"मेरा ख्याल है कि ऐसी कोई भी लड़ाई, जिसका आध पर आत्मबल हो अखबार की सहायता के बिना नहीं चलाई जा सकती। अगर मैंने अखबार निकालकर दक्षिण अफ्रीका में बसी हुई भारतीय जमात को उसकी स्थिति न समझाई होती और सारी दुनियां में फैले हुए भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में क्या कुछ हो रहा है, इससे 'इण्डियन ओपिनियन' के सहारे अवगत न रखा होता तो मैं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता था। इस तरह मुझे भरोसा हो गया है कि अहिंसक उपायों से सत्य की विजय के लिए अखबार एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य साधन है।" (सांस्कृतिक चेतना और जैन पत्रकारिता, पृष्ठ-222)
जैन पत्र-पत्रिकायें राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वातन्त्र्य की भावना जागृत करने में भी पीछे नहीं रही थीं। यह कहना कठिन है कि पहला जैन पत्र कौन है? अब तक प्राप्त अंकों और उल्लेखों के आधार पर सर्व प्रथम जैन पत्र गुजराती मासिक "जैन दिवाकर" था, जो अहमदाबाद से छगन लाल उमेश चन्द द्वारा 1875 ई0 में प्रकाशित हुआ था और लगभग 10 वर्ष बाद बन्द हो गया था। हिन्दी भाषा में निकलने वाला प्रथम जैन पत्र चौधरी पं0 जीयालाल जैन ज्योतिषी द्वारा फर्रूखनगर से 1884 ई0 के आरम्भ में "जैन" (साप्ताहिक) नाम से प्रकाशित हुआ था। कुछ समय बाद उन्होंने उर्दू में "जीयालाल प्रकाश' निकालना शुरू किया था। 1884 में ही सितम्बर मास में शोलापुर से सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने मराठी-गुजराती-हिन्दी मासिक "जैन बोधक' प्रकाशित किया। डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन ने लिखा है-"जैन बोधक" मराठी का तो सर्वप्रथम जैन पत्र-पुरखा है ही वर्तमान जैन पत्र-पत्रिकाओं में सर्वाधिक प्राचीन है और इने गिने सर्वाधिकजीवी भारतीय पत्रों में से भी एक है। (द्र0 तीर्थंकर, अगस्त-सित0 1977, पृष्ठ 10)
विश्व में आत्म स्वातन्त्र्य/व्यक्ति स्वातन्त्र्य की घोषणा करने वाला धर्म 'जैन धर्म' है। यहाँ प्रत्येक जीव अपने कर्म का कर्ता और भोक्ता स्वयं है और कर्म करने और कर्मफल भोगने में स्वतन्त्र। व्यापक अर्थ में देखें तो यहाँ मुक्ति का अर्थ ही स्वतन्त्रता है। कोई भी संस्कृति/धर्म/दर्शन राजनैतिक पराधीनता की अवस्था में फल-फूल नहीं सकता, इसीलिए जैन समाज ने कंधे से कंधा मिलाकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
और देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। जैन पत्र-पत्रिकायें भी इस दिशा में पीछे नहीं रहीं । परतन्त्रता के जमाने में भी जैन पत्र-पत्रिकायें स्वतन्त्रता के साथ निर्भय होकर स्वतन्त्रता का समर्थन करती रहीं । विश्वशान्ति, स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय भावना के जागरण में जैन पत्रिकायें सदैव अपना दायित्व निभाती रहीं । स्वदेशी की भावना को प्रचारित करने के लिए तो उसने विज्ञापन तक प्रकाशित किये।
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जैन पत्र-पत्रिकायें पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण, सर्वत्र प्रकाशित होती रहीं और लगभग 8-10 भाषाओं में इनका प्रकाशन होता आ रहा है। मणिपुर में हिन्दी पत्रकारिता का श्रीगणेश द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध की खबरों के लिए एक जैन पुजारी ने किया था ( द्र० कादम्बिनी, फरवरी 1996, पृष्ठ 42 पर डॉ) देवराज का लेख "मणिपुर की हिन्दी पत्रकारिता " ) | हिन्दी के प्रथम वैयाकरण और जीवट पत्रकार आचार्य किशोरी दास वाजपेयी का स्वातन्त्र्य समर में भाग लेने के कारण जो गोपनीय सम्मान हुआ था वह एक जैन, श्री उग्रसेन जैन, के घर पर हुआ था, (द्र) कादम्बिनी, सितम्बर 1995, पृष्ठ - 5 )
1900 ई0 से अनवरत प्रकाशित होने वाला "जैनमित्र" यद्यपि धार्मिक पत्र है किन्तु उसमें राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार न सिर्फ सुर्खियों में प्रकाशित हुए हैं, अपितु उन पर निर्भीक टिप्पणियाँ भी लिखी गयी हैं। इसके सम्पादक रहे पं० परमेष्ठीदास राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक बार जेल यात्रा कर चुके थे। पत्र के 10 जनवरी 1927 के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं
सर न रहे, सामान रहे या साज रहे। आजाद रहे, माता के सर पर ताज रहे ।।
"मेरी जान रहे फकत हिन्द मेरा ये किसान मेरे खुशहाल रहें, पूरी होबे फसल सुख काज रहे। मेरे भाई वतन पे निसार रहे, मेरी माँ बहनों की लाज रहे ।।
मेरी गाय रहे मेरे बैल रहें, घर-घर में भरा सब नाज रहे।
गारे (खद्दर) का कफन हो मुझपे पड़ा, बन्दे मातरम् आबाद रहे।। "
इसी पत्र के 6 जनवरी 1907 के अंक में विविध समाचार के अन्तर्गत सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन का वर्णन विस्तार से छपा था । स्वदेशी की भावना के प्रचार में तो पत्र ने अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई थी। अधिकांश अंकों में एतद्विषयक सामग्री प्रकाशित होती थी। 15 नवम्बर 1923 के अंक में प्रकाशित स्वदेशी का विज्ञापन द्रष्टव्य है
"
'अगर आप सच्चे अहिंसा व्रत के पालक हैं
अगर आप सच्चे स्वदेश भक्त हैं तो
विनोद मिल्स उज्जैन का
शुद्ध - जिसमें जानवरों की चरबी नहीं लगाई जाती स्वदेशी - जो देशी कारीगर, रुई व देश के धन से बना है, कपड़ा पहनिये और धन व धर्म बचाईये।
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प्रथम खण्ड
___
395 पता-विनोद मिल्स, उज्जैन" एक अन्य विज्ञापन भी देखें
"भारतीय कारीगरी की मदद करो-''
"जहाँ में गर वतन की लाज रखनी हो तो लाजिम है।
स्वदेशी वस्त्र पर हर एक बशर सौजां से शैदा हो।। जैन मित्र के नियमित प्रकाशन के सन्दर्भ में तीर्थंकर (अगस्त-सितम्बर 1977, पृष्ठ-160) लिखता है "लड़ाई के जमाने में अनेक पत्रों ने प्रेस की अव्यवस्था से अपना प्रकाशन बन्द किया, कितनों ही ने कागज के अभाव में गहरी नींद ले ली, पर "मित्र" बराबर प्रकट होता रहा। कापडिया जी सूर्योदय की तरह नियमित पत्रकारिता में विश्वास रखते हैं।"
भा0 दि) जैन महासभा का मुख पत्र "जैन गजट" 1895 में प्रारम्भ हुआ था, पत्र ने अपने सम्पादकीयों में स्वदेशी का खूब प्रचार किया। 16 मार्च 1905 के अंक में लिखा गया है कि-'हमें अपने देश में इतने कारखाने लगाना चाहिए जिससे विदेशों से माल मंगाने की आवश्यकता ही न पड़े।' इस पत्र ने 1947 के विविध अंकों में पाकिस्तान के जैन मन्दिरों के विनाश की जानकारी पाठकों को दी थी।
देवबन्द (उ0 प्र0) से प्रकाशित होने वाले "जैन प्रदीप'' (उर्दू) का उदय तो मानों विदेशी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए ही हुआ था। इसके सम्पादक श्री ज्योति प्रसाद जैन राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उन्होंने पत्र के अप्रैल 1930 तथा मई-जून 1930 के अंकों में भगवान महावीर और महात्मा गांधी" शीर्षक लेख उर्दू में लिखा। लेख का सारांश था कि-"जैसे महावीर ने यज्ञों से मुक्ति दिलाई वैसे ही गांधी जी विदेशी शासकों से मुक्ति दिलायें।" इस पर पत्र की जमानत जब्त होने की नौबत आई। कलक्टर ने बहुतेरा समझाया कि-"आप मेरे पिता के मित्र हैं, आप इतना लिखकर दे दो कि मेरे लिखने का भाव वह नहीं जो सरकार ने समझा है, बाकी मैं देख लूँगा" पर ज्योति प्रसाद जी ने कहा-"मैं झूठ कैसे लिख दूँ, मेरा भाव वही है जो सरकार ने समझा है।'' अन्त में लेख और जमानत जब्त हो गई और पत्र का प्रकाशन भी बन्द हो गया। श्री कुलभूषण जी ने पुन: उसका प्रकाशन प्रारम्भ किया है।
कुछ जैन पत्रों ने तो अंक ही नहीं अपने विशेषांक भी स्वाधीनता पर निकाले, इनमें "जैन प्रकाश" का नाम अग्रगण्य है। पत्र ने 25 नवम्बर 1930 को अपना राष्ट्रीय अंक निकाला। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का वह ऐतिहासिक काल था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में उस समय असहयोग आन्दोलन चल रहा था, ऐसे में राष्ट्रीय अंक निकालना कितने साहस का काम था। इसके सौ पृष्ठों की सामग्री में गुजराती और हिन्दी में स्वतन्त्रता पर ही पूरे लेख/कवितायें लिखी गईं हैं।
इसी तरह भा0 दि0 जैन संघ, मथुरा (उ0 प्र0) के मुख पत्र "जैन सन्देश'' ने भी 23 जनवरी 1947 को अपना राष्ट्रीय अंक निकाला। अनेक महत्त्वपूर्ण लेखों के साथ ही अनेक जैन शहीदों/जेल यात्रियों का परिचय इसमें है, कवितायें नव-जागृति लाने वाली हैं। प्रथम पृष्ठ पर "स्वाधीनता की प्रतिज्ञा'' नाम से स्वतन्त्रता के जन्म सिद्ध अधिकार का समर्थन किया गया है। राष्ट्रगीत की तर्ज पर एक सुन्दर गीत भी इसमें
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396
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
दिया गया है। पत्र ने अपने 16 मई 1946 के अंक में राष्ट्रीयता के विषय में लिखा था- " जैन समाज ने दूसरे समाजों की तरह अलग-अलग अपने राजनीतिक दावे नहीं रखे, विशेषाधिकार मांगकर कभी देश की प्रगति में बाधा नहीं पहुँचाई और धर्म संस्कृति आदि की स्वतन्त्रता होते हुए भी कभी अपने लिए किसी स्थान या स्वतन्त्र राष्ट्र की कल्पना नहीं की । "
जोधपुर से प्रकाशित होने वाले " ओसवाल " ( मई 1921 ) के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय गौरव से युक्त एक पद्य द्रष्टव्य है
44
" बढ़ो - बढ़ो पीछे मत हटना, भारत का कल्याण
"
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करो ।
जननी जन्म भूमि चरणों में जीवन का बलिदान करो ।। "
इसी तरह " तरुण ओसवाल" (जनवरी 1940) में प्रकाशित निम्न पंक्तियाँ भी कितनी उत्प्रेरक हैं
,
मोहपाश को तोड़ देश - हित, सह लो सब संकट अरु सुभाष जवाहर सम भारत के युवक वीर बनते योद्धा हम स्वतन्त्रता के, ध्येय मंत्र जपते ‘अनेकान्त” (सम्प्रति दिल्ली से प्रकाशित ) ने अपने अनेक अंकों में गांधी जी के जेल जाने पर पत्र के वर्ष 1 किरण 6-7 में लिखा गया है-
"
'तरुण नींद को छोड़ पहन लो सत्याग्रह का सैनिक वेष ।
क्लेश ।।
जाओ ।
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जाओ ।। '
राष्ट्रीयता का समर्थन किया था।
"महामना निष्पाप, राष्ट्रहित जग के प्यारे, हिंसा से अतिदूर, सौम्य बहुपूज्य हमारे।
गांधी से नररत्न जेल में ठेल दिये हैं, क्या आशा वे धरे नहीं जो जेल गये हैं ।। " “वीर” (सम्प्रति नई दिल्ली से प्रकाशित) जैन समाज में सुधारवादी पत्र के नाम से प्रसिद्ध था। उसे
जैन समाज के राजा राममोहन राय कहे जाने वाले ब्र0 शीतल प्रसाद जी जैसे समाज सुधारकों का सहयोग मिला। कुरीतियों उन्मूलन में पत्र अपनी उपमा आप था। इसके साथ यह राष्ट्रीय अखबार भी था। डॉ० जयकुमार 'जलज' ने ठीक ही लिखा है- " वीर पाठशालावादी और परीक्षाफलछापू अखबार नहीं था। वह जैन होते हुए भी एक व्यापक और उदार राष्ट्रीय अखबार था। उसके सम्पादक खुद स्वतन्त्रता आन्दोलन में सपत्नीक जेल जा चुके थे। वे गांधीवादी थे। ... उनका पत्र उनके राष्ट्रीय विचारों का वाहक बन गया था। आजादी, देशभक्ति, गांधी, नेहरू, सुभाष पर तथा ढिल्लन, सहगल, शाहनवाज की गिरफ्तारी के विरोध जैसे विषयों पर रचनायें छपती थीं। राष्ट्रीय समाचारों, निर्णयों और घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था ( द्र० तीर्थंकर, अगस्त - सितम्बर, 1977, पृष्ठ 169 )
""
"दिगम्बर जैन " (मासिक) भी राष्ट्रीय समाचारों को विस्तार से छापता था। पत्र के श्रावण, वि० सं० 1978 (1921 ई0) में समाचार छपा कि पिठोरिया (सागर) में हरिश्चन्द्र जैन को स्वराज्य कार्य में योग देने के लिए छह माह की सजा हुई है। इसी तरह पौष, वि० सं० 1988 ( 1931 ई0) के अंक में " जेल जा चुके हैं" शीर्षक से समाचार छपा है कि-'सरकारी वर्तमान आर्डीनेंस के कारण अनेक जैन भाई भी जेल जा चुके हैं, उसमें से कुछ नाम यह हैं-छोटालाल घेला भाई गांधी, अंकलेश्वर, शान्तिलाल हरजीवनदास सोलीसिटर
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प्रथम खण्ड
397 आमोद...।" पत्र के वीर सं0 2444 (19171) के अंक 1-2,6,8-9 तथा 2445 (1918 ई0) अक 1, 3, 13 तथा 2446 (1919 ई0) अंक ! में अर्जुन ला' सेठी का निरपराध गिरफ्तारी और उन्हें छोड़े जाने की मांग के समाचार विस्तार से छपे हैं। 1918 ई0 के अंक । महात्मा भगवानदीन की गिरफ्तारी का समाचार छपा है। वीर सं0 2450 (1923 ई0) के अंक 1-2 में श्री हजारों सारा सागर की प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित लम्बी कविता का अन्तिम छन्द पठनीय है।
"त्यागो स्वदेश सुख हेतु सभी विदेशी। धारो निजात्म बल हेतु अभी स्वदेशी।। देगी स्वराज्य हमको नियमेन खादी।
सम्पूर्ण मात्र जग के..........आदी।।9।।" इसी अंक के पृष्ठ 56 पर प्रकाशित छैकोडी लाल जैन, गोटीटोरिया की “विदेशी वस्त्रों की विदा" कविता भी देशप्रेम से ओत-प्रोत है। कविता की प्रथम दो पंक्तियाँ हैं
"टलो यहाँ से विदेशी वस्त्रो, न अब तुम्हारी है चाह हमको।
तुम्हीं से भारत हुआ है गारत, किया है तुमने तबाह हमको।।" जैन समाज की विशिष्ट महिला पत्रिका "जैन महिलादर्श'' (सम्प्रति लखनऊ से प्रकाशित) 1924 से निरन्तर प्रकाशित होती आ रही है। अगस्त 1946 के अंक का विषय था "स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं?'' इस विषय पर अनेक महिलाओं के लेख इस पत्रिका में छपे थे (विशेष विवरण के लिए डॉ0 ज्योति जैन की "स्वराज्य और जैन महिलायें'' पुस्तक देखें, प्राप्ति स्थान 'जैन बुक डिपो, सी-9 कनाट प्लेस, नई दिल्ली-1)
जैन महिलादर्श के 15 मई 1946 के अंक में "नहीं बनेगा पाकिस्तान' विषयक समस्यापूर्ति रखी गई थी, आगे के अंकों में इस विषय पर अनेक कवितायें प्रकाशित हुई हैं। इसी प्रकार "खड़ी द्वार पर आजादी" विषय पर महिलाओं ने अनेक कवितायें लिखी थीं। जनवरी 1942 के अंक में प्रकाशित "आज फिर संसार में सर्वत्र ही सुख शान्ति छाये' की एक समस्यापूर्ति द्रष्टव्य है
"प्रलय युद्ध प्रचण्ड विचलित कर रहा भूलोक को है। चण्डिका फैला रही, चहुँ ओर शोक-विशोक को है।। गगनबेधी बम कहीं विध्वंश करते लोक को हैं। जीव अगणित जा रहे इस लोक से परलोक को हैं।। विश्व गांधी के अहिंसावाद को यदि पथ बनाये। आज फिर संसार में सर्वत्र ही सुख शान्ति छाये।। युद्ध यह पाश्चात्य का अब विश्वव्यापी बन गया है। और जब जापान अमरीका इसी में सन गया है।।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन देश निज चहुँ ओर से आतंकशाला बन गया है। ज्ञान सारा नष्ट होकर दानवी रण ठन गया है।। ईश! मानव प्रेम की सुन्दर "कली'' मुरझा न जाये। आज फिर संसार में सर्वत्र ही सुख-शान्ति छाये।।"
-राम कली देवी "कली'', धामपुर इसी प्रकार ब्याबर से प्रकाशित "जैन शिक्षण सन्देश'' के अक्टूबर 1937 के अंक में प्रकाशित "जीवन की'' विषयक समस्यापूर्ति भी द्रष्टव्य है
"मा तुमको स्वाधीन बनाने दादा ने अपनी बलि दी। लोकमान्य ने कुर्बा हो स्वाधीनताग्नि उत्तेजित की।। तेरे हित पंजाब केसरी, "लाला" ने बहुकष्ट सहे। भारत भक्त "भगतसिंह'' "बी-के" जेलों में नित सड़ते रहे।। तो फिर हमको आज्ञा दे तूं बलिदानामृत जीवन की।
जिसको पीकर भारत हित हम, बलि दें अपने "जीवन की''।" इनके अतिरिक्त भी अनेक पत्र-पत्रिकायें हैं, जिनमें आजादी विषयक लेख/समाचार छपे हैं।
000
‘भाई मरने से डरे नहीं और जीवन की भी कोई साध नहीं है, भगवान् जब, जहाँ, जैसी अवस्था में रखेंगे, वैसी ही अवस्थान में सन्तुष्ट रहेंगे।'
- मृत्युदण्ड प्राप्त श्री मोतीचंद जैन का जेल से अपने विप्लवकारी साथियों को भेजे गये पत्र का एक अंश
जीवितात्तु पराधीनाज्जीवानां मरणं वरम्। मृगेन्द्रस्य मृगेन्द्रत्वं वितीर्णं केन कानने।।
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परिशिष्ट-चार : विशिष्ट लेख
राष्ट्रीयता क्या है
जैन जगत के तलस्पर्शी विद्वान् प० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ ने यह लेख 'जैन संदेश, राष्ट्रीय अंक' (23-1-1947) में लिखा था। उसे अविकल हम यहाँ दे रहे हैं।
जब हमें हमारी भाषा में Nationalism शब्द के अनुवाद करने की आवश्यकता हुई तब हमारे सामने यह शब्द आया। जिस भाषा का यह शब्द है उस भाषा के व्याकरण के अनुसार इसका शुद्ध रूप क्या है और
चीन काल में वह किस अर्थ में प्रयुक्त होता था इस पर बहस करने का यह समय नहीं है क्योंकि अब तो यह हिन्दी भाषा के शब्द कोष में एक आदरणीय स्थान प्राप्त कर चुका है। शब्दों के सर्जक तो भाव हैं। हमें भावों को लेकर ही आगे बढ़ना है।
राष्ट्रीयता एक सम्मान की वस्तु है। उसमें एक संस्कृति, एक कल्पना और एक परम्परा का अर्थ निहित है। संप्रदाय, जाति और वर्ग की अनेक भिन्नताओं को रखते हुए भी जो अभिन्न है, वह राष्ट्र है। वह एक विशाल जाति है जिसे अंगरेजी में Nation कहते हैं। राष्ट्र सर्वोपरि है, संप्रदाय, वर्ग और जाति की भूमिका, इससे बहुत नीची है। राष्ट्र वह है जिसके लिये इन सबका बलिदान किया जा सकता है किन्तु राष्ट्र का बलिदान इनमें से किसी के लिये भी नहीं किया जा सकता।
राष्ट्र ब्रह्म की तरह व्यापक है। वह समष्टि है, व्यष्टि नहीं, पर व्यष्टि समष्टि से भिन्न कहाँ है ? राष्ट्रीयता में समष्टि और व्यष्टि के व्यापक स्वार्थ भिन्न-भिन्न नहीं होते। कोटि-कोटि अथवा लक्ष-लक्ष नर-नारियों की एक भावना, एक विचार और एक उद्देश्य राष्ट्रीयता ही उत्पन्न कर सकती है। राष्ट्रीयता में समष्टि की स्वाधीनता का महान उद्देश्य सदा चमकता रहता है और उसमें "जीवतात्तुपराधीनाज्जीवानां मरणं वरम्, मृगेन्द्रस्य मृगेन्द्रत्वं वितीर्णं केन कानने'' (महाकवि बादीभसिंह) जैसी सूक्तियाँ सदा ही जीवन रस प्रदान करती रहती हैं।
सच्ची राष्ट्रीयता में किसी का शोषण नहीं होता। यहाँ विचार स्वातंत्र्य और व्यक्ति स्वातंत्र्य को दलित करने की चेष्टा नहीं की जाती। यह विमुक्त हस्त होकर सबको सब कुछ देने वाली है। इसमें श्रेणीराज्य, पूँजीवाद
और साम्राज्यवाद जैसी जघन्यताओं को कोई स्थान नहीं है। क्योंकि ये सभी चीजें व्यापक राष्ट्रहित की विघातक हैं। प्रजातन्त्र और साम्यवाद जैसी सुहावनी चीजों में भी यदि सच्ची राष्ट्रीयता नहीं है तो वह अमृत नहीं, हलाहल हैं और वह कभी न कभी राष्ट्र का प्राण जरूर लेंगी !
यह राष्ट्रीयता न पर का कुछ छीनना चाहती है और न अपना कुछ देना चाहती है। यह 'ओफेंस' नहीं किन्तु 'डिफेंस' करती है। कोई अपना कुछ छीनना चाहे तो वह अपने व्यापक ब्रह्म को लेकर उस पर टूट पड़ेगी और तब तक दम न लेगी जब तक आक्रमणकारी को पूरा परास्त न कर दे। रूस की राष्ट्रीयता ने विगत महायुद्ध में वही किया। जर्मनी में भी सच्ची राष्ट्रीयता नहीं थी, नहीं तो वह कभी न हारता। उसमें लुटेरापन था। उसने अन्य छोटे-बड़े राष्ट्रों पर बुरी तरह का आक्रमण किया। उसको तात्कालिक सफलता मिली। इसलिये इटली का मन भी ललचाया और वह भी उसका भागीदार बना ; सोचा कि संसार की लूट में उसे भी कुछ
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन मिलेगा। तब जापान से भी न रहा गया । वह भी इन दो आततायियों का साथी बना और तीनों मिलकर संसार की लूट पर उतर गये। पर तीनों बुरी तरह विफल हुए क्योंकि इनमें सच्ची राष्ट्रीयता नहीं थी। ये सारे संसार को लूटकर अपने भरे हुए पेट को और भी भरना चाहते थे। किन्तु इनकी बड़ी दुर्दशा हुई। ये औरों का तो कुछ भी न छीन सके पर अपने आपका सदा के लिये अन्त कर दिया।
आज जर्मन, इटालियेन और जापानीज राष्ट्र कहाँ हैं ? जो जापान संसार के उदाहरण की वस्तु बना हआ था. आज विदेशियों के द्वारा बरी तरह पददलित किया जा रहा है। इसका कारण यही है कि कई वर्षों से उसकी सच्ची राष्ट्रीयता नष्ट हो रही थी। रूस विजय के पहले उसमें सच्ची राष्ट्रीयता थी तभी उसने रूस पर विजय पायी थी। इसके बाद तो उसमें अहंकार आया और वह पतन की ओर जाने लगा। चीन, कोरिया आदि की राष्ट्रीयता पर जो उसने अत्याचार किये, उसका फल उसको अब मिल रहा है।
जर्मनी की सच्ची राष्ट्रीयता बहुत लम्बे समय से नष्ट हो चुकी थी। इसलिये वह 14-18 के महायुद्ध में हारा। इस 39-45 के संसार युद्ध में भी उसकी पराजय का कारण यही है कि वह अन्य सब राष्ट्रों की जन्मसिद्ध स्वाधीनता छीनकर उन पर अपना शासन करना चाहता था। ऐसी कलुषित मनोवृत्तियाँ अपने ही राष्ट्रहित के लिये विघातक हैं। ऐसे राष्ट्र अन्त में स्वयं ही पराधीन बनकर अपने पापों के दुष्परिणामों को बुरी तरह भोगते हैं।
सिकन्दर, मुहम्मद गजनवी, अलाउद्दीन, चंगेजखाँ, तैमूरलंग, नादिरशाह, कैसर, हिटलर, मुसोलिनी और टोजों आदि किसी में भी सच्ची राष्ट्रीयता नहीं थी। हाँ, ये लुटेरे अथवा नर-संहारक जरूर थे। सच्ची राष्ट्रीयता के उदाहरण हैं मुस्तफा कमालपाशा, अब्राहमलिंकन, जनरल वाशिंगटन, पीटर दी ग्रेट, गैरी वाल्डी, मेजिनी, काऊर, प्रिंस विस्मार्क, लेनिन और छत्रपति शिवाजी आदि। अपने स्वार्थ के लिये दूसरे देशों को अपने आधीन रखने वाला ब्रिटेन भी आज सच्ची राष्ट्रीयता से वंचित है। जो दूसरों की राष्ट्रीयता का अपहरण किये हुए है वह स्वयं अपने आपको कैसे राष्ट्रीय कह सकता है।
हमारा देश इस समय स्वतन्त्रता के द्वार पर है। इसका अब तब निर्माण हो रहा है। इस नवनिर्माण में इस बात का समावेश रहेगा कि सब स्वतन्त्र हों, कोई किसी के आधीन न रहे। प्रत्येक देश का स्वाधीन रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है। उस अधिकार को जो छीनना चाहे, उसका सम्पूर्ण शक्ति लगाकर सामना करना राष्ट्रीयता है। दूसरों की स्वाधीनता को छीनकर जो अपनी वृद्धि करना चाहते हैं वे कभी राष्ट्रीय नहीं है। संसार में शांति स्थापित तभी हो सकती है, जब कोई भी पराधीन नहीं रहे। दूसरे की स्वाधीनता का अपहरण करना अराष्ट्रीयता है। हमारे देश के नेता महात्मा गांधी आदि सदा से इसका विरोध करते रहे
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परिशिष्ट-पाँच : विशिष्ट लेख
अगस्त आन्दोलन और स्याद्वाद विद्यालय काशी
श्री स्याद्वाद महाविद्यालय जैन समाज का ऐसा महाविद्यालय है जिसने वर्तमान पीढ़ी के अधिकांश विद्वान दिये हैं। 1942 के आन्दोलन में यह विद्यालय जैन क्रान्तिकारियों का गढ़ था। 23 जनवरी 1947 को प्रकाशित 'जैन सन्देश' के राष्ट्रीय अंक में श्री देवेन्द्र जी का उक्त लेख छपा था, जिससे हम अविकल यहाँ दे रहे हैं।
9 अगस्त 1942 हमारे स्वातंत्र्य संग्राम के इतिहास की अमर घटना है। भारतीय इतिहास के पिछले समस्त गौरवशाली अध्याय इस दिन के घटना प्रवाह की भूमिका भर हैं। 'अगस्त आन्दोलन' किसने प्रारम्भ किया यह एक विवादग्रस्त बात है। पर यह सबने स्वीकार किया है कि उसके संचालक थे विद्यार्थी और उनके द्वारा प्रेरित ग्रामीण जनता। हमें अच्छी तरह स्मरण है कि 42 के 9 अगस्त के प्रभात में आकाश काली घटाओं से आच्छन्न था। वर्षा की रिमझिम बूंदों में किसी ने कल्पना न की थी कि ब्रिटिश बंदूकों की गोलियाँ उन पर सहसा बरस पड़ेंगी। वर्षा की बूंदों का स्वागत गृहस्थों ने अपने घरों में किया और ब्रिटिश संगीनों का सामना छात्रों ने खुली सड़कों पर किया। उस दिन समूचा देश क्रांति की ज्वाला में जल उठा था। आज अन्त:कालीन सरकार यदि सचमच में भारतीय स्वतंत्रता का द्वार प्रशस्त करती है तो हमें यह भी स्वीकार करना पडेगा कि उक्त द्वार यदि किसी ने खोला, तो 9 अगस्त ने !
पहिले दो दिन प्रायः हड़ताल और जुलूसों में बीते। इसमें विद्यालय के छात्र न केवल जुलूस में थे अपितु उन्होंने उनमें प्रमुख भाग लिया। उन्होंने सस्कृत की छोटी से छोटी पाठशाला से लेकर, क्वींस कालिज तक, हड़ताल के लिये धावा बोला। पर्चे छापे और बांटे। अभी तक हमारे सामने यही कार्यक्रम था। लेकिन पश्चात् सबका ध्यान गुप्तकार्यों की ओर गया। छात्रसंघ की बैठक हुई। सबने भाई बालचन्द जी को कप्तान चुना। चंदा हुआ, कुछ समितियां बनीं। यह भी निश्चय हुआ कि इसका सम्पर्क बड़े संगठनों से स्थापित कर लिया जाय।
__ अब छात्रों ने अपना कार्य क्षेत्र गांवों को बनाया। इसमें छोटे से लेकर बड़े सभी लड़कों ने भाग लिया। जैन इतिहास की यह पहली ही क्रान्तिकारी घटना होगी, जब उसके छात्रों ने धर्म क्षेत्र की तरह अपनी वीरता और निर्भीकता का परिचय राजनीति के क्षेत्र में भी दिया। इसमें सबसे अधिक कठिनाई उन छात्रों को आती थी जो दूसरे प्रान्त के थे। बनारस के आसपास की स्थिति का ज्ञान न होने से कभी-कभी वे भटक भी जाते थे। एक बार तो ऐसा हआ कि लोग रातभर चलते रहे और जब लक्ष्य पर पहुँचे तो पता चला कि वहाँ कार्य समाप्त हो चुका है। कभी ये क्रांतिकारी वीर चढ़ी हुई गंगा की लहरों पर नौका खेते होते और कभी खेतों की अनजान पगडंडियों में अंधेरी और बदली भरी रातों नंगे चलते होते ! खाने को सावन की कच्ची भुटियाँ और चने। कभी गुड़ मिल गया, तो समझिये भाग्य खुल गये।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन इस प्रकार काम करके लौटते और दूसरे दिन समाचार पत्र में पढ़ते कि अमुक अमुक दुर्घटना? तब मन ही मन प्रसन्न होते। यह क्रम भी तीन चार दिन ही चला।
इधर पुलिस द्वारा धरपकड़ जोरों से हो रही थी। चुन-चुन कर प्रमुख लोग पकड़ लिये गये। हमारा विद्यालय भी अब खुफिया पुलिस के कड़े पहरे में था। जरा से संदेह में, जेल के द्वार स्वागत को प्रस्तुत थे। मुझे जहाँ तक याद है, सबसे पहिले आपत्तिजनक परचे बितरित करने के अभियोग में भाई शीतल प्रसाद पकड़े गये। आप एम. ए. और दर्शनाचार्य के छात्र थे। आपको दो साल की सजा हुई। जेल जीवन में अपने स्वाभिमान के कारण आपको सबसे अधिक कड़ी यातनायें सहनी पड़ी। इसी कारण आपको जिला जेल से सेन्ट्रल भेज दिया गया। वहाँ इन्हें कई बार 'तनहाई' में रखा गया। इन्होंने 'सी' क्लास में ही रहना पसन्द किया। पर जब आपको दांतों का रोग अधिक उभर आया तो 'बी' क्लास में चले गये। जेल के सींकचों से जब आप बाहर आये तो टूटा हुआ स्वास्थ्य लेकर। तब से फिर आपका पढ़ना भी नहीं हो सका।
उनके बाद सर्वश्री भाई घनश्यामदास, रतन चंद पहाड़ी, धन्यकुमार, हरीन्द्रभूषण, नाभिनंदन, दयाचंद, सुगमचंद आदि की गिरफ्तारियाँ हुईं। इनमें रतनचंद और सुगमचंद जी जिला जेल में सबसे छोटी उम्र के थे। "ठोस कार्य" की दृष्टि से भाई धन्यकुमार जी का नाम भी अधिक प्रशंसनीय रहा। दयाचंद जी टीकमगढ़ वाले बी क्लास में रहे, उन्हें अमर शहीद होने का भी सौभाग्य अपनी जीवितावस्था में ही मिल गया। एक दिन आप जब नहीं आये, तो यह खबर उड़ गई कि आप गोली के शिकार हो गये हैं। हिन्दू विश्व विद्यालय में शोक प्रस्ताव भी हो गया। पर दूसरे दिन आप सकुशल हम लोगों के बीच आ गये।
__गिरफ्तारियों और सरकार के दमन कार्यों से, यद्यपि बाहर प्रदर्शन बंद हो गये, पर गुप्त आन्दोलन चलते रहे। 7 फरवरी 1943 को अचानक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विस्फोट हुआ। उसी सिलसिले में कप्तान बालचंद जी ऐरैस्ट कर लिये गये। इस आंदोलन में भाई बालचंदजी ने सबसे अधिक काम किया और उन्हें यातनाएँ भी खब सहनी पडीं। उन्हें अमानषिक उपायों से इस पडयंत्र में भाग लेने वालों के नाम बताने के लिये मजबूर किया गया। इस प्रसंग में पुलिस को हरीन्द्र जी के नाम का पता चला। आप कछ ही दिन पहिले जेल से छूटे थे। निदान उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़कर रातों-रात फरार होना पड़ा।
भाई बालचंदजी ने कष्टों के बावजूद अधिक वीरता दिखाई। जेल जीवन की बीमारियां भी आपको प्रसाद में मिलीं। कहा जाता है, उनका संबंध देश के बड़े क्रांतिकारियों से रहा। यूनीवर्सिटी बम्बकाण्ड के मामले में आपको एक वर्ष बाद फिर ऐरैस्ट किया गया। पुलिस का यह भी अभियोग था कि उनके पास दर्जनों पिस्तोलें हैं। पूरे दो वर्ष की जेल-यातना भोग चुकने पर कांग्रेस मिनिस्ट्री होते ही, आप मुक्त कर दिये गये।
__ सबसे संगीन घटना वह है, जब काशी के सी.आई.डी. स्टाफ ने एक दिन "खतरनाक हथियार" छिपाने के संदेह में विद्यालय की तलाशी ली। पर उसे कोई चीज नहीं मिली। उसे यह भी पता चला कि हथियार गंगा में फेंक दिये गये हैं। फलत: मल्लाह बुलाये गये और चढ़ी हुई “गंगा" में भी खोज हुई। पर निष्फल ! पर छेदीलालजी के मंदिर की तलाशी होने पर एक भरी हई पिस्तौल और कुछ तोडफोड का सामान मिल गया। सामान जब्त कर, तीन छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया। ये थे- गुलाबचंद जी एम० ए०, अमृतलाल जी दर्शनाचार्य और घनश्यामदास जी। 18 दिन को हवालात के बाद, सब लोग जमानत पर छोड़
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प्रथम खण्ड
403 दिये गये। तबसे उसकी दृष्टि विद्यालय पर कड़ी हो गई। इस घटना से शहर में प्रत्येक की जबान पर विद्यालय का नाम हो गया।
विद्यालय के अधिकारियों में सभी ने इसमें आन्तरिक सहानुभूति दिखाई। पर सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा अधिष्टाता बाबू हर्षचन्द जी को। एक ओर वे राष्ट्रीय कामों को नहीं रोक सकते थे और दूसरी ओर सरकार का दबाव था, विद्यालय बन्द होने की भी आशंका हो चली थी। पिस्तौलवाली घटना से तो समाज तक में तहलका मच गया। समाज के नेताओं के कड़े तार और पत्र उनके पास आये कि क्रांति में भाग लेने वाले छात्रों को फौरन निकाल दिया जाय। यह ध्यान रहे कि ये वे ही लोग थे, जो अब "राष्ट्रीय सरकार" में "जैन प्रतिनिधित्व" की मांग कर रहे हैं। लेकिन सब काम ठीक चलता रहा।
सच तो यह है कि- अगस्त क्रांति के वे दिन वे ही दिन रहेंगे। उन दिनों में एक आग थी, एक उमंग थी।
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इस संसा की मुला बनाने में रात को सा में 52रात महा रो मे स .की जरा समस्ती गदा से
जदार मदानी ng
श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के सन्दर्भ में डॉ० सम्पूर्णानन्द के विचार श्री स्याद्वाद विद्यालय संस्कृत भाषा और जैन धर्म की जो सेवा कई वर्षों से लगातार करता आ रहा है उससे न केवल काशी वरन् काशी के बाहर भी विद्याप्रेमी लोग परिचित हैं। इसके अधिकारी इस बात का भी सतत प्रयत्न करते हैं कि छात्रों में विद्याभ्यास कराने के साथ-साथ उनमें स्वदेशानुराग भी उत्पन्न किया जाय और वह उस प्रवाह के साथ चल सकें जो इस समय राष्ट्र को आन्दोलित कर रहा है। मुझे यहाँ का काम देखकर संतोष हुआ और आशा करता हूँ कि यह उत्तरोत्तर उन्नति करता जायेगा। 19.12.39
-सम्पूर्णानन्द
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परिशिष्ट-छहः विशिष्ट लेख
स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं ?
जैन समाज की प्रसिद्ध महिला पत्रिका 'जैन महिलादर्श' ने 'आज की एक विकट समस्या' । स्तम्भ प्रारम्भ किया था। अगस्त, 1946 के अंक का विषय था-'स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं ?' इस पर आये हुए अनेक निबन्धों में विजया देवी जैन, जगाधरी का निबन्ध सर्वोत्कृष्ट पाया गया था और उन्हें 25 रुपये का पुरस्कार दिया गया था। उक्त निबन्ध हम अविकल यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं
भारत न सहेगा हरगिज गुलाम-खाना, आजाद होगा, होगा, आता है वह जमाना। यह जेल औ' दमन की परवाह है अब किसको,
हँसते-हँसते होगा फाँसी पर झूल जाना।। आह ! कवि ने क्या ही मार्मिक शैली से भारत की वर्तमान राजनैतिक जागृति का वर्णन किया है। आज भारत पराधीन है, निरक्षर है, भूखा है, नंगा है। परन्तु इस हालत में भी उसकी आजादी की भूख नहीं दबी। जमाने बदल गये। उनके साथ वातावरण में भी परिवर्तन हुए। मनुष्यों की विचारधाराएँ भी बदलीं। बहुत सी पुरानी वस्तुओं की जगह नवीन बातों ने अपना आधिपत्य जमाया। लेकिन यह सब होने पर भी जमाना हमारी आजादी की भावना को न बदल सका। आज अनेक कष्टों एवं दमनों को सहकर भारत आजादी के मार्ग पर बढ़ता ही जा रहा है। उसके कानों में बालगंगाधर तिलक का यह वाक्य 'स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' गूंज रहा है। हमारी अन्तिम मंजिल आजादी है। उस पर पहुँचकर ही हम दम लेंगे। यह समय हमारे देशका एक बहुत की नाजुक समय है। यह बात देश के प्रत्येक नेता कह रहे हैं। आजादी की मंजिल तय होनेवाली है। सिर्फ एक ही गम्भीर खाई बनी है। धैर्य एवं साहस से इसे पार करना है। आज भारत में जो राजनैतिक जागृति है वह सराहनीय है। बाल-वृद्ध सब ही आजादी के मतवाले हैं। यह युग राजनैतिक क्रान्ति का है। भारत के इतिहास के यह पृष्ठ भावी सन्तान बड़े गौरव एवं चाव से पढ़ेगी। पर बहिनों, क्या हम नारियाँ इस इतिहास में, क्रान्ति में कुछ भी भाग न लेंगी ? क्या संसार एवं भारतीय पुरुषों से हम यही कहलावेंगी कि भारतीय नारी बिल्कुल अबला एवं कूपमण्डूक है। उन्हें अपने देश के उत्थान या पतन से कोई मतलब नहीं है ? नहीं! कभी नहीं ! हम संसार को दिखा देंगी कि हम वही वीर दुर्गा एवं लक्ष्मी की सन्तान हैं। हमारी धमनियों में वही माँ सुभद्रा का रक्त है जिसने अपने सोलह वर्षीय पुत्र को अपने हाथों से सजाकर रणक्षेत्र में भेज दिया था। हम आज भी भारत की इस राजनैतिक क्रान्ति में भाग लेंगी।
जिस तरह गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिये नर एवं नारी हैं। दोनों के सहयोग एवं ज्ञान से ही पारिवारिक जीवन सफल है, उसी तरह राजनैतिक क्षेत्र में भी जब तक नारी कदम न बढ़ावेंगी तब तक यह राजनैतिक युद्ध अधूरा है। यह कमी हमारे प्रत्येक नेता महसूस करते हैं। इसी कारण राजनैतिक क्षेत्र में वे नारी को अधिक
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प्रथमगण्ड
405
प्रोत्साहित करते हैं। नारियाँ भी अपने इस मान की आन जिस शान से निभा रहीं हैं वह भी सराहनीय एवं अनुकरणीय है। हमारे सामने श्री कमला नेहरू, कस्तूरबा व सत्यवती देवी के ज्वलन्त उदाहरण मौजूद हैं, जिनकी अन्तिम साँस में भी यही पुकार थी, 'भारत हो स्वतन्त्र हमारा।' श्रीमती विजयलक्ष्मी, अरुणा देवी आदि देवियाँ जिस दक्षता से इस राजनैतिक क्रान्ति का नेतृत्व कर रहीं हैं उससे यह स्पष्ट ज्ञात है कि भारतीय नारी की वह अतीत की योग्यता नष्ट नहीं हुई। पुरुषों की यह भावना, कि नारी में राजनैतिक एवं सामाजिक कार्य करने की योग्यता नष्ट हो गयी है, नितान्त गलत सिद्ध हुई।
नारी पुरुषों से अधिक त्याग एवं बलिदान कर सकती है। उसका अन्त:स्थल अत्यन्त कोमल होता है। एक विलासिनी नारी भी क्षणमात्र में पक्की क्रान्तिकारिणी बन सकती है। जिस वक्त भारत के नेता श्री सुभाष बाबू ने सन् 1944 में रंगून में भारतीयों की एक विराट सभा में यह माँग पेश की कि, 'जो भारत के स्वाधीनता संग्राम में हाथ बँटाना चाहते हैं वे आगे बढ़े एवं इस प्रतिज्ञा-पत्र पर अपने खून से हस्ताक्षर करें', सारी सभा में सन्नाटा छा गया। इसी समय जो सबसे आगे आयीं एवं इस युद्ध की सामग्री बनीं वे थीं इस शस्यश्यामला भारत की सत्रह वीरांगनायें जिन्होंने अपने रक्त से उस प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किये। बस! फिर क्या था। नारियों का साहस देखकर पुरुषों में भी जोश छा गया एवं थोड़ी सी ही देर में समस्त जनसमूह ने अपने रक्त से उस मातृभूमि के स्वतन्त्रता प्रतिज्ञा-पत्र पर मोहर लगायी। देखा आपने ! नारी के आगे कदम बढ़ाने से पुरुषों में कैसा जोश फैला। इसी कारण तो देश के कोने-कोने से यह आवाज आ रही है कि नारी को राजनैतिक क्रान्ति में अवश्य भाग लेना चाहिए।
अतीत में भारतीय नारी प्रत्येक राजनैतिक कार्य में भाग लेती थी। इस बात का साक्षी हमारा इतिहास है। राजा हर्षवर्धन की बहिन राजश्री भाई के साथ सभाभवन में आती थीं एवं राज्य की प्रत्येक समस्या सुलझाने में भाग लेती थीं। रानी दुर्गावती व लक्ष्मीबाई ने तो देश के स्वातन्त्र्य युद्ध में तोप एवं गोलेबारी के बीच इस शौर्य एवं दक्षता से तलवार चलायी कि उनके शत्रु भी उनकी योग्यता की सराहना करने लगे। प्राचीन भारत में महाराष्ट्र की अहिल्याबाई, झाँसी की लक्ष्मीबाई व दिल्ली की रजिया बेगम के ज्वलन्त उदाहरण पाये जाते हैं जो कि भारत में अंग्रेजी राज्य से पूर्व इस ऐतिहासिक काल में कुशल शासन करती थीं। हम अपने इस भूतकाल की भाँति भविष्य में भी भारतीय नारी के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेंगी।
___ नारी में योग्यता एवं साहस का अभाव नहीं है। उसे तो पुरुषों की उपेक्षा ने ही अबला बना दिया है। यदि उसे उचित शिक्षा दी जाये एवं उसके छोटे-छोटे महत्त्वपूर्ण कार्यों की हँसी व उपेक्षा न की जावे और उसे उत्साहित किया जावे तो आज भी भारतीय नारी अतीत के नारी इतिहास की पुनरावृत्ति कर सकती है। यह बात भारत के इस राजनैतिक संघर्ष ने स्पष्ट बता दी है। असहयोग आन्दोलन में, नमक कानून तोड़ने में, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में, पिकेटिंग व सत्याग्रह में, अंग्रेजी नौकरशाही की गोलियों के सामने सीना खोलकर खड़ी होने में, जेल तक जाने में भी भारतीय नारी नहीं हिचकी। जब श्री सुभाष बोस ने "आजाद हिन्द सेना'' की स्थापना की तब उन्होंने "झाँसी की रानी सैनिकाओं की एक रेजीमेन्ट' बनायी एवं "डा0 लक्ष्मीनाथन" उस रेजीमेन्ट की सेनानी थीं। इन्हें भी पुरुषों की भाँति युद्ध-शिक्षा दी गयी एवं जब स्वाधीनता संग्राम आरम्भ हुआ तब इनको फील्ड अस्पतालों में घायल सैनिकों की सेवा के लिए नियुक्त किया,
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन पर इन वीरांगनाओं को केवल सेवा से सन्तोष कैसे होता। उन्होंने नेताजी के पास प्रार्थना पत्र भेजा कि, "हम सैनिक शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं। हमारी शिक्षा सन्तोषजनक रही है। हमें मोर्चे पर जाने की आज्ञा दी जावे।"
नेताजी ने इन्हें बहुत समझाया। युद्ध क्षेत्र की कठिनाइयाँ बतायीं, पर इन वीरांगनाओं का यही उत्तर था, "हम झाँसी की रानी रेजीमेन्ट की सैनिकाएँ हैं। हमारी सेनानी भी 'लक्ष्मी' है। हम अवश्य युद्ध करेंगी।" अन्त में नेताजी ने उन्हें आज्ञा दे दी। इन वीर रमणियों ने 16 घण्टे तक ब्रिटिश फौजों से युद्ध किया, ऐसा विकट कि अन्त में ब्रिटिश फौज को पीछे हटना पड़ा।
मेरी समझ में नहीं आता कि जब भारतीय नारी में इतना साहस, आत्मत्याग एवं ज्ञान है तो वह राजनैतिक क्रान्ति में भाग वयों न ले ? यदि हममें कुछ अभाव है, कमजोरी है तो इसका यह अर्थ नहीं कि हम योग्य नहीं बन सकतीं। शिक्षा एवं अभ्यास से जो जानवर भी सीख जाते हैं तो क्या हम पशुओं से भी गयी-बीती हैं ? जबकि हमारी कई बहिनें इस स्वातन्त्र्य युद्ध में भाग ले रहीं हैं तो क्या हम उनसे भी शिक्षा नहीं ले सकते ? प्रत्येक बहिन इन देवियों को अपने मार्ग का प्रकाश स्तम्भ बनावें एवं आगे बढ़ें, देश की राजनैतिक क्रान्ति में अवश्य भाग लें ताकि हमारी आगामी पीढ़ी गर्व से माथा ऊँचा कर कह सकें कि हमारे भारत में नारियाँ पुरुषों की सच्ची अर्धांगिनी रहीं हैं। पारिवारिक समस्याओं के साथ ही साथ राजनैतिक समस्याओं के सुलझाने में भी उन्होंने अतीत की नारियों की भाँति पुरुषों की सदा सहायता की। बहनों उठो! एवं कवि के इन शब्दों को याद करके आगे बढ़ो। देश की राजनैतिक क्रान्ति में भाग लो।
जिसे न निज गौरव तथा देश का अभिमान है। वह नर नहीं नरपशु निरा, जीवित मृतक समान है।।
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संविधान, यदि अपरिवर्तनशील और गतिहीन है तो चाहे वह कितना भी अच्छा और पूर्ण क्यों न हो, उपयोगी नहीं रह सकता। वह पुराना पड़ जाता है और धीरे-धीरे अनुपयोगी हो जाता है। जीवंत संविधान को तो अनिवार्यतः विकासशील होना चाहिए, उसमें अनुकूलशीलता, लचीलापन और परिवर्तनशीलता के गुण होने चाहिए।
-पं० जवाहर लाल नेहरू (संविधान सभा, 8 नवम्बर, 1948)
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परिशिष्ट-सात : एक जब्तशुदा लेख
भगवान महावीर और महात्मा गांधी प्रस्तुत लेख उर्दू 'जैन प्रदीप' के अप्रैल एवं मई-जून 1930 के अंकों में उर्दू भाषा में ही छपा था। 'जैन प्रदीप' की स्थापना 1912 में बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने की थी। बाबू ज्योतिप्रसाद जैन अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण जैन समाज में 'समाज सुधारक' के नाम से विख्यात हुए हैं।
नाटा कद, भरा-उभरा शरीर, भरी-झूगी मूंछे, चौड़ा ललाट, भीतर तक झांकती-सी आंखें, धीमा बोल, सधी चाल, सदैव शान्त मुख-मुद्रा, मामूली कपड़े के जूते, कमीज और कभी-कभी बन्द गले का कोट, सिर पर गांधी-टोपी और कभी-कभी तिरछा साफा, चौड़ा पाजामा, नियमित जीवन, मिलनसार और अपनों को सबकुछ करने को तैयार यह व्यक्तित्व था बाबू ज्योतिप्रसाद का।
बाबू जी का जन्म आश्विन कृष्ण 10, वि0सं0 1939 (सन् 1882 ई0) को देवबन्द, जिला-सहारनपुर (उ0प्र0) में एक साधारण परिवार में हुआ था। बाल्यकाल में ही उन्हें जैन जागरण के दादा भाई बाबू सूरजभान वकील का संसर्ग मिला। वकील सा0 ने इस बालक में भविष्य को देखा और अपने पास रख लिया। जैन समाज में समाज-सुधार, पत्रकारिता, देशसेवा का बीजारोपण बाबू जी में यहीं से पड़ा। अपनी जबानी में बाबू जी लाला हरनाम सिंह के यहाँ मुनीम हो गये, जहाँ पहुँचकर वे बड़े अफसरों
और जिले के बड़े आदमियों के संसर्ग में आये। वे देवबन्द में 'जोती मुनीम' के नाम से पहचाने जाने लगे। 1912 में 'जैन प्रदीप' की स्थापना और उसके सम्पादक होने के नाते वे 'जोती मुनीम' से 'जोती एडीटर' बन गये और अपने जीवन के अन्तिम समय तक वे इसी नाम से विख्यात रहे। इससे पूर्व बाबू जी 'जैन प्रचारक', 'जैन नारी हितकारी', 'पारस' जैसे पत्रों का सम्पादन कर चुके थे। जैन प्रदीप के सन्दर्भ में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है- "जैन प्रचारक' के बाद. उन्होंने अपना 'जैन प्रदीप' मासिक निकाला, जिसके वे चपरासी भी थे और चेयरमैन भी। वे स्वयं डाक लाते, स्वयं उसका जवाब देते, आई-गई डाक रजिस्टर में चढ़ाते, लेख लिखते, कांट-छांट करते, पते लिखते, चिपकाते..... 'जैन प्रदीप' में उन्हें कभी आर्थिक लाभ नहीं हुआ, पर वह उनका क्षेत्र सारे जैन समाज को बनाये रहा, जिससे वे और 'जैन प्रदीप' दोनों निभते रहे। 1930 में 'गांधी जी और महावीर' नामक लेख के कारण सरकार ने जैन प्रदीप पर जो पाबन्दी लगाई उसी से वह बन्द हो गया, नहीं तो वह सदैव ठीक तारीख पर ही निकला।"
बाबू जी 1920 में समाज से राजनीति में आये, उन दिनों वे सभी जलसों में शरीक होते और कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने में हिस्सा लेते। तिलक स्वराज फण्ड का चन्दा और भाषण उस युग की राजनीति के मुख्य अंश थे, जो बाबू जी करते थे। 1920 में वे जेल जाना चाहते थे पर सरकार ने गिरफ्तार नहीं किया। 1930 में वे पारिवारिक परिस्थितियों के कारण जेल नहीं जा सके पर आन्दोलन में पूरी निष्ठा से सक्रिय रहे।
1930 में जैन प्रदीप में उर्दू भाषा में (उन दिनों जैन प्रदीप उर्दू में ही निकलता था) 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' लेख लिखा। इसके कई अंशों पर सरकार को कड़ी आपत्ति थी, फलतः सरकार
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन ने इस पर पाबन्दी लगा दी और आगे के लिए एक हजार की जमानत मांगी, जिसे देने से बाबू जी ने इन्कार कर दिया। इस सन्दर्भ में प्रभाकर जी ने अपने संस्मरण में लिखा है--
__ "डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट' ने उनसे कहा 'ऐडीटर साहब ! हमारे फादर ने, जब वह यहाँ कलेक्टर थे, आपके अखबार का डिक्लेरेशन मंजूर किया था। हम नहीं चाहते कि हमारे समय में वह बंद हो, इसलिए आप हमको एक खत लिखो कि उस लेख का वह मतलब नहीं है जो समझा गया है। बस हम अपना आर्डर वापस ले लेंगे।'
बाबू जी ने उत्तर दिया- 'कलेक्टर साहब आप मुझसे सलाह करके पाबन्दी लगाते, तो उसे हटाने के लिए भी मेरे खत की जरूरत पड़ती। अब तो वह हटेगी तो वैसे ही हटेगी, जैसे लगी है।' और उठकर चले आये।
नगर के एक बड़े रईस ने, जिसने कलेक्टर महोदय को नरम किया था, उसी दिन मुझसे कहा'आज ऐडीटर साहब ने हमारे किये-धरे पर चौका फेर दिया।' मैं तुरन्त उनके (बाबू जी के) घर गया, तो बहुत खुश थे। बोले- 'भाई, हम जेल नहीं जा सकते, तो इज्जत के साथ अपने घर तो रह सकते हैं।"
इस प्रकार जैन प्रदीप 1930 में बन्द हो गया। उनके वंशजों ने अब उसे पुन: 5-6 वर्ष पूर्व हिन्दी में निकालना प्रारम्भ किया है, सम्प्रति सम्पादक श्री कुलभूषण कुमार जैन हैं। हमें भी पूज्य बाबू जी के कक्ष को देखने का सौभाग्य, सामग्री संचयन हेतु देवबन्द जाने पर, मिला। यह हमारा अहोभाग्य है। बाबू जी के योगदान के सन्दर्भ मे 'सहारनपुर सन्दर्भ' (पृष्ठ 535) लिखता है
"देवबन्द में उत्पन्न बाबू ज्योति प्रसाद जैन सहारनपुर के वन्दनीय पुरुषों में हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देवबन्द में हुई। वहीं बाबू सूरजभान वकील की संगति से आप समाज सेवा में प्रवृत्त हुए। कवि के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली। 'जैन प्रचारक,' 'जैन प्रदीप', 'जैन नारी हितकारी' और 'पारस' के सम्पादक के रूप में उन्होंने अपनी लेखनी का परिचय दिया। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया और स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी बने। उनकी पुस्तकों की संख्या तीस से ऊपर है। 28 मई 1937 को उनका देहान्त हुआ।"
उनकी सभी रचनाओं को एक ग्रन्थावली के रूप में प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। आगे के पृष्ठों में हम मूल उर्दू लेख के हिंदी रूपान्तरण के सम्पादित अंश दे रहे हैं। हिन्दी रूपान्तरण में मौ0 उमर, जिल्दसाज, खतौली से हमें सहयोग मिला है, हम उनके आभारी है।
__आधार-(1) जै0 जा0 अ0, पृष्ठ-421-428, (2) जै0 स0 रा) अ), (3) स0 स) अनेक पृष्ठ, (4) जैन प्रदीप, 1930 के अंक, जैन प्रदीप, हिन्दी संस्करण के अनेक अंक, (5) श्री कुलभूषण जैन के नाम लिखा, श्री कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का व्यक्तिगत पत्र, दिनांक 10-10-1994
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प्रथम खण्ड
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भगवान् महावीर और महात्मा गांधी जैनप्रदीप (देवबन्द) के अप्रैल एवं मई-जून 1930 के अंकों में प्रकाशित उर्दू लेख के हिन्दी रूपान्तरण के सम्पादित अंश।
2500 साल पहले की तारीख से पता चलता है कि भारतवर्ष में अंधेरगर्दी थी। जुल्म व सितम का बाजार गर्म था। यह वह जमाना था कि देवी देवताओं के नाम पर खून की नदियां बहाई जाती थीं। देव मन्दिर तक तलघरों का काम देते थे। इनकी दीवारें बेजुवान जानवरों के खून से रंगी हुई दिखलाई देती थीं। घोर हिंसा फैली हुई थी और ऐसे पाप, अत्याचार धर्म के नाम पर, देवी-देवताओं के नाम पर किये जाते थे। तमाम जीव दुखी थे कोई रक्षक नजर नहीं आता था।
इस नाजुक जमाने में श्री महावीर भगवान् का जन्म हुआ। भगवान् ने कहा कि घबराओ नहीं तुम्हारा उद्धार मैं करूँगा। तुम सब बराबर हो, ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र सब इन्सान हैं, सबकी आत्माएं पवित्र हो सकती हैं। सब इन्सान एक बराबर हैं, सब का उद्धार शुद्ध आचरण से ही हो सकता है। क्या बादशाह! क्या रियाया! क्या अमीर! क्या गरीब! क्या विद्वान! क्या मूर्ख! सब ही इन्सान हैं और इन्सानी हैसियत से सब का दर्जा एक है। धर्म ही सच्चाई है। झूठ फरेब हिंसा चोरी जिनाकारी वगैरह पापों का तर्क करके धर्म का पालन करो।.......
___ भगवान् महावीर के बारे में साधू टी0 एल0 वास्वानी लिखते हैं-. "इन महावीर का, जैनियों के इस महापुरुष का चरित्र कितना सुन्दर है वह बादशाही घराने में जन्म लेते हैं और घर को त्याग देते हैं। वह अपना धन गरीबों को दान में दे देते हैं और सन्यासी होकर जंगल में आत्मध्यान और तपस्या के लिए चले जाते हैं। कुछ लोग उन्हें वहां मारते हैं, तकलीफें देते हैं, लेकिन वह शान्त और मौन हैं।"
___ भगवान् ने कहा कि इंसान मुकम्मिल नहीं है। इसमें बहुत सी कमियां हैं, इसलिये अगर मुझे इस जुल्मोसितम को दुनिया के तख्ते से उठा देना है तो पहिले मुझे आदर्श बनना चाहिए, मुकम्मिल बनना चाहिये, तभी काम होगा। इसलिये बारह साल सख्त रियाजत की और बहुत सी तकलीफों का सामना भी किया और आखिर मुकम्मिल होकर ही छोड़ा। आपने साबित कर दिया कि तशदुद को अदम तशदुद ही जीत सकता
आपने सन्यास लेते वक्त पांच महव्रत लिये थे। 1-अहिंसा, 2- सच बोलना, 3- चोरी नहीं करना, 4- ब्रह्मचर्य का पालन, 5- अपरिग्रही रहना, यानि दुनियां की चीजों में मोह न रखना या यूं कहो कि अपने पास जरूरत से ज्यादा सामान न रखना।
भगवान् महावीर ने केवलज्ञान हासिल करके उपदेश दिये और कहा कि हर एक प्राणी धर्म का पालन कर सकता है, क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र! क्या वैश्य! क्या गरीब! क्या राजा! क्या मर्द! क्या औरत! सिर्फ इन्सान ही क्यों बल्कि पशु-पक्षी भी धर्म का पालन कर सकते हैं। धर्म बेजुबान जानवरों और इन्सानों को कत्ल करके यज्ञ करने में नहीं है, बल्कि धर्म तो अहिंसा परम धर्म है। धर्म का स्वरुप “आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्" है। यानि जो अपनी आत्मा अपने जमीर के खिलाफ हो वह दूसरे के लिए हरगिज न करो। जैसे अगर तुम्हें कोई मारता है तो तुम कितना दु:ख महसूस करते हो, इस तरह हमारा धर्म है कि हम बेजुबान
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
जानवरों को कत्ल करने में धर्म न मानें, अगर कोई हमारे सामने झूठ बोलता है तो हम झुंझला उठते हैं, तो हमारा फर्ज है कि हम कभी झूठ न बोलें। वगैरह-वगैरह। अगर कोई हमारी चोरी करता है, तो हमें बहुत रंज होता है, तो हमारा फर्ज है कि हम खुद चोरी न करें। दुश्मनी कभी पापी इन्सान न करो लेकिन उसके पाप से करो। उस पर दया भाव रखकर उसको समझाओ और अच्छे रास्ते पर लाकर उसके पाप को धो डालो। दूसरे की माता - बहन को अपनी माता - बहन समझो जरूरत से ज्यादा सामान अपने पास मत इकट्ठा करो, गरीब की इमदाद करो, वगैरह-वगैरह।
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भगवान् महावीर का उपदेश कितना आला और सुन्दर था । उसका जिक्र करते हुए प्रसिद्ध कवि फरवे कौम रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं कि
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Mahavir proclaimed in India the message of salvation; that religion is a reality and not a mere social convention, that salvation comes from taking refuge in that true religion and not observing that external ceremonies of the community; that religion can not regard any barrier between man and man as an external verity, wonderous to relate, this leading rapidly overtopped the barrier of the races abiding instinct, conquered the influence of kshtriya period, now the infleunce of kshtriya teachers completely suppressed the Brahmin power.
भगवान् महावीर ने भारतवर्ष को बा-आवाज बुलन्द मोक्ष का संदेश सुनाया। उन्होंने कहा कि धर्म सिर्फ सामाजिक कराजात में नहीं है बल्कि दर हकीकत सच्चाई है। मोक्ष सिर्फ सामाजिक बाहरी क्रिया कांड से नहीं मिल सकता, लेकिन सच्चे धर्म के स्वरूप का सहारा लेने से मिलता है। धर्म के आगे इन्सान और इन्सान के दरमियान रहने वाले भेदभाव भी खड़े नहीं रह सकते। कहते हुए हैरानी होती है कि महावीर की इस तालीम ने समाज के दिलों पर काबू पा लिया और पहले के खराब संस्कारों से बने हुए भावताब को बहुत जल्द नेस्तनाबूद कर दिया और सारे मुल्क को अपने मती कर लिया।
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भगवान् महावीर ने जहां हिंसा को बन्द किया वहां मजहबी इखतलाफात को भी दूर कर स्याद्वाद का उपदेश दिया और कहा कि सत्य अनन्त हैं इसलिए हर एक सिद्धान्त में कुछ न कुछ सच्चाई है, उसको स्याद्वाद की कसौटी पर परखो। साधू टी०एल० वासवानी कहते हैं
'अनेकान्त - स्याद्वाद में महावीर ने सिखाया है कि दुनिया का कोई भी एक सिद्धान्त सच्चाई को पूरा-पूरा बयान नहीं कर सकता; क्योंकि सत्य अनन्त हैं हमने अभी कुछ मिसालों में धर्म के नाम से बहस मुवाहिसे और नफरत की वजह से आज तक तकलीफें उठाई हैं। महावीर की वाणी नौजवान लोग सुनें और उनकी हमदर्दी और बराबरी का संदेश गांव-गांव और शहर शहर ले जायें, अलहदा - अलहदा धर्मों के भेदों और झगड़ों का तसफिया करके वह आध्यात्मिक जीवन के बारे में नई देशभक्ति, नये राष्ट्रीय जीवन को पैदा करें, क्योंकि सत्य इन्तहा (अनन्त) है और धर्म का उद्देश्य फूट और झगड़ा करने का नहीं बल्कि उदारता और प्रेम का पाठ पढ़ाना है ।। "
भगवान् महावीर के बारे में महर्षि शिवव्रत लाल जी बर्मन एम0ए0 'साधूनाम' के माहवारी रिसाला, माह जनवरी 1911 में (प्रकाशित) हुए 'महावीर स्वामी के पवित्र जीवन' में फरमाते हैं कि "यह जबरदस्त रिफारमर और जबरदस्त उपकारी बड़े ऊँचे दर्जे के उपदेशक और प्रचारक थे। यह हमारी कौमी तारीख के
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प्रथम खण्ड
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रत्न हैं। तुम कहां और किन धर्मात्मा प्राणियों की खोज करते हो, इन्हीं को देखो। उनसे बेहतर साहबे कमाल तुमको और कहां मिलेगें ? इनमें त्याग था, वैराग्य था, धर्म का कमाल था । इन्सानी कमजोरियों से बहुत ही ऊँचे थे। इनका खिताब 'जिन' था। उन्होंने मोह-माया, मन और काया को जीत लिया था । यह तीर्थंकर थे। इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ-साफ थी। यह वह लाशानी शख्सियत हो गुजरी है जिनको इन्सानी कमजोरियों और ऐबों को छिपाने के लिए किसी जाहिरा पोशाक की जरूरत महसूस नहीं हुई क्योंकि उन्होंने तप करके, जप करके, योग का साधन करके, अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था।" वगैरह..........
भगवान् महावीर सब इन्सानों का एक जैसा ख्याल करते थे। क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र ! क्या क्षत्री ! क्या वैश्य! भगवान् महावीर के पैरोकार और चेले सब तबके के लोग थे । इन्द्रभूति वगैरह उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण कुल में से थे, उद्दापन मेघ कुमार वगैरह क्षत्री महावीर के चेले थे, शालिभद्र वगैरह वैश्य और हरीकेशी वगैरह शूद्र ने भी भगवान् की दी हुई पवित्र दीक्षा को हासिल कर ऊँचे पद को हासिल किया था। गृहस्थों में वैशालीपति राजा चेटक, मगध नरेश श्रेणिक और उनका लड़का कोतक वगैरह कई क्षत्री राजा थे । इसीलिए भगवान् उस जमाने की आमफहम भाषा में ही उपदेश दिया करते थे ताकि हर खास आम धर्म हासिल कर सके। जैन ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये थे ताकि सब लोग समझ सकें।
आजकल का जमाना आप सब लोगों के समाने मौजूद है। आज भारतवर्ष में लाखों बेजुबान जानवर मांस खाने के लिए रोज काटे जाते हैं। दूध देने वाली गायों के गलों पर छुरी चलाई जाती है। भारतवर्ष के आदमी भूखों मर रहे हैं, बेकारी की चक्की में दरड़े जा रहे हैं, मौजूदा हुकूमत ने हिन्दुस्तान के तमाम उद्योग हिरफत पर पानी फेर दिया, किसानों पर लगान और सौदागरों पर टैक्स इतना ज्यादा लगा दिया कि लोग टैक्स के बोझ से दबे जा रहे हैं। माल पर टैक्स, गल्ले पर टैक्स, घी-खांड पर टैक्स, दूध-दही पर टैक्स, बर्तन - भाँडे पर टैक्स, कपड़े पर टैक्स, खाने के सामान पर टैक्स, पीने के सामान पर टैक्स, रोटी-पानी पर टैक्स |
यहाँ तक की नमक जैसी कारआमद चीज पर भी टैक्स। इन टैक्सों की ज्यादती से हिन्दुस्तान इस कदर दब गया है कि छह करोड़ हिन्दुस्तानी एक वक्त भी पेट भरकर नहीं खा सकते। कहन (अकाल ) जुदा पड़ रहे हैं। बवाई (छूत की बीमारी) इमराज ने जुदा दम पी रक्खे हैं । आमदनी का यह हाल है कि हिन्दुस्तान की मजमुई आमदनी फोकस छह-सात पैसे दैनिक होती है, जिससे एक आदमी एक वक्त पेट भरकर रोटी नहीं खा सकता, फिर हिन्दुस्तानियों के सर पर साठ लाख मुफ्तखोर फकीरों का भार, जिनकी वजह से पन्द्रह लाख रुपया रोज इन गरीबों की पाकिट से निकलता है। यह सब होते हुए भी हिन्दुस्तान की हिफाजत के नाम पर फौज का करोड़ों रुपयों का खर्च। एक अंग्रेज की तनख्वाह हिन्दुस्तानी से कई गुनी ज्यादा ।
गरीब किसान गर्मी - सर्दी की सदा तकलीफ उठाकर कड़कती धूप में बदन को जलाकर रात दिन जाग जाग कर भूखा प्यासा रहकर जो कुछ जिन्स पैदा करता है उसका ज्यादातर हिस्सा तो लगान की नजर कर देता है। बाकी बचे-खुचे में कर्ज की अदायगी और दीगर लोगों की नजर नियाज का भुगतान। इस बेचारे पर क्या बचता है, यह मालूम करना हो तो गांव में जाकर मालूम करो। जहाँ देखोगे कि गरीब किसान के चूल्हे पर बर्तन नहीं, छान पर फूँस नहीं, तन को कपड़ा नहीं और पेट को पेटभर रोटी नहीं। लेकिन यह सब कुछ होते हुए भी हुकूमत के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। अगर कोई अपनी मुसीबत का रोना हुकूमत के आगे
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन रोता है, भूख-प्यास का सवाल पेश करता है, तो बिना पूँछ- प्रतीत किये जेल में लूंस दिया जाता है। अगर ज्यादा शोर मचाता है तो ठोकरें मारकर गिरा दिया जाता है, सच है
न तड़पने की इजाजत है न फरियाद की है। घुट के मर जाऊँ यह मर्जी मेरे सैय्याद की है।।
बेकारी का रोना कहां तक रोया जाय, न कोई तिजारत है, न धंधा, जिसको देखो वह ही बेकारी का शाकी है, मुफलिसी का शिकार, फिर ऐसी हालत में क्या किया जाये, कहां जाया जाये, ऐसे वक्त में कौन संभाल करेगा ? हमको तो गरीबी की वजह से अपना प्यारा धर्म भी छोड़ना पड़ रहा है। लाखों भारतवर्ष के लाल ईसाइयों की गोद में चले जा रहे हैं। हा भगवान! न हम दीन के रहे और न दुनियां के।
एक सदी में सारी दुनियां की लड़ाई में जितने इन्सान मर सकते हैं। इससे बहुत ज्यादा सिर्फ हमारे देश के अन्दर दस साल में भूख की वजह से मर जाते हैं। यह कितना बड़ा गजब है जो आला खानदान की औरतें हैं वह घर की चाहर दीवार के अन्दर भूख के मारे तड़फ कर प्राण पहले ही दे देती हैं, लेकिन किसी के आगे हाथ नहीं पसार सकती।
अब ऐसी हालत में हमारा उद्धार कौन करेगा, हमारी मुसीबतों का खात्मा किस आत्मा के जरिये होगा और हमको आजादी कौन दिलायेगा ? बस यह एक सवाल हिन्दुस्तानियों के रूबरू आता है कि फौरी ही एक महान् आत्मा यानि महात्मा गांधी जी का जहूर होता है, बैरिस्टरी पास कर लेने के बाद आपको एक महान् जैन विद्वान् कवि रायचन्द्र जी शतावधानी की सोहबत मिलती है और आप आत्मबल प्राप्त करके कहते हैं कि हिन्दुस्तान की मुसीबतों का खात्मा मैं करूँगा और मैं ही मुल्क को आजादी दिलाऊँगा, इस काम में मैं अपने को हर तरह से कुर्बान करूँगा। चूंकि सब इन्सान एक बराबर हैं, वह गोरे हों या काले, ब्राह्मण हों या शूद्र, छूत हों या अछूत, गरीब हों या अमीर, गर्ज सब कोई हक बराबर है, इन्सानी दर्जा एक है, एक को क्या हक है कि जब छह करोड़ हिन्दुस्तानी भर पेट खाना भी नहीं खा सकते, तो वह लाखों रुपया सालाना ऐसे गरीब देश से तनखाह के नाम से वसूल करे। यह अजीब तमाशा है कि घर वाले घर से बाहर मारे-मारे फिरें और दूसरे लोग बड़े-बड़े महलों में ऐशो आराम की जिन्दगी गुजारें।
महात्मा जी अपनी डायरी में तहरीर फरमाते हैं कि "सबसे ज्यादा सन्तोष तो मुझे कवि रायचन्द्र भाई के लेक्चरों से ही मिला है। उनके मजामीन मेरे ख्याल से सबके लिये मुफीद हैं। उनका चाल चलन टालस्टाय की तरह आला दर्जे का था।"
महात्मा गांधी फिर कहते हैं कि "मुझ पर तीन महापुरुषों ने गहरी छाप डाली है। टालस्टाय, रस्किन और रायचन्द्र भाई। टालस्टाय ने अपनी एक किताब व कुछ खतों किताबत से, रस्किन ने 'अन्टु दि लास्ट' किताब, जिसका नाम मैनें गुजराती में 'सर्वोदय' रखा है, से और रायचन्द्र भाई से तो मेरा बहुत संबंध हो गया था। जब 1897 ई0 में मैं जनूबी अफरीका में था तब मुझको चन्द ईसाई लोगों के साथ अपने कामकाज की वजह से मिलना होता था। वह लोग बहुत साफ रहते थे और धर्मात्मा था दूसरे धर्म वालों को ईसाई बनाना ही इनका काम था। मुझे भी ईसाई बन जाने के लिये कहा गया, लेकिन मैंने अपने दिल में पक्का इरादा कर लिया कि जब तक हिन्दू धर्म को न समझ लूँ, तब तक बाप-दादा के धर्म को नहीं छोडूंगा। हिन्दू धर्म पर
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प्रथम खण्ड
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मुझको बहुत शकूक पैदा हो चुके थे। मैंने रायचन्द्र भाई से खतो-किताबत शुरू की। उन्होंने मेरे तमाम शकूक रफै कर दिये। जिससे मुझको शान्ति हासिल हुई और हिन्दू धर्म की फिलासफी पर मेरा और दृढ़ श्रद्धान हो गया और मैंने समझा कि सिर्फ हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो शान्ति देने वाला है। इस वाकफियत के जरिये रायचन्द्र भाई थे। इसलिए रायचन्द्र भाई में और भी विश्वास बढ़ गया।"
___भारतवर्ष की दुर्गति देखकर महात्मा गांधी ने अपने जीवन का लक्ष्य पांच व्रत बनाये जो कि भगवान् महावीर ने धारण किये थे। उन पर अमल करना शुरू किया यानि अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। आज महात्मा जी अहिंसा, अदमतशदुद सत्याग्रह से अपने देश को हुकूमत की ज्यादतियों के नीचे से निकालने को तैयार हुए हैं, जिस तरह भगवान् महावीर ने उस जमाने के जानदारों को छुड़ाया था। महात्मा जी हमेशा सच बोलते हैं, इसका सबूत उनकी खुद की डायरी से मिल रहा है। महात्मा जी चोरी नहीं करते और शीलवान भी आप अरसे दराज से हैं; अपरिग्रही तो आप इस कदर हैं कि सिर्फ एक लंगोट के सिवाय और कुछ भी कपड़ा नहीं पहनते।
कई लोगों का कहना है कि अहिंसा कायरों और बुजदिलों का धर्म है। अहिंसा इन्सान को बुजदिल व डरपोक बना देती है, जिनमें से लाला लाजपतराय जी मरहूम एक शख्स थे, लेकिन आज महात्मा जी ने भगवान् महावीर की अहिंसा का सिंहनाद दुनियां के हर एक कोने में बजा दिया है और साबित करके दिखला दिया है कि अहिंसा धर्म बहादुरों व बेखोफ लोगों और धर्म पर कुर्बान हो जाने वाले परवानों का धर्म है। अहिंसा धर्म के जरिये से जबरदस्त से जबरदस्त मजालिम भी दूर हो जाते हैं।
आज महात्मा जी ने पन्द्रह साल सावरमती आश्रम में तपस्या करने के बाद अहिंसा धर्म का सुदर्शन चक्र लेकर हुकूमत के साथ टक्कर खाने की ठानी है। अहिंसा धर्म बुजदिली सिखाता है या बेखोफी और बहादुरी, यह आज कोई महात्मा गांधी से दरयाफ्त कर सकता है। आज महात्मा जी का त्याग और तप महावीर भगवान् के राजपाट के त्याग का नजारा फिर आंखों के सामने लाकर खड़ा कर देता है। जिस तरह भगवान् महावीर नंगे पांव, नंगे सर और नंगे जिस्म पैदल विहार करते थे आज इसी तरह महात्मा जी भी कूच कर रहे हैं। आज महात्मा जी की इस जबरदस्त हुकूमत के साथ टक्कर लेना भगवान् महावीर के उस जमाने की याद दिलाये बगैर नहीं रह सकती जबकि हिंसा के खिलाफ भगवान् महावीर ने बड़ी जबरदस्त टक्कर ली थी।
आज कई लोग फरमाते हैं कि महात्मा जी की हुकूमत पर चढ़ाई ऐसी है, जैसे कि रामचन्द्र जी की रावण पर, और कृष्ण जी की कौरवों पर, लेकिन नहीं! यह बिल्कुल गलत है। उन दोनों की जंग में खून की नदियाँ बह गईं थीं, लेकिन महात्मा गांधी प्रेम, अहिंसा, अदमतशदुद और सत्याग्रह के हथियार से लड़ाई लड़ रहे हैं, 'इस सादगी पै कौन न मर जाये ऐ खुदा। लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं।' इसी तरह से आज से तकरीबन अढाई हजार साल पहले भगवान् महावीर भी अहिंसा, प्रेम वगैरह के हथियार लेकर सामने डटे थे।
महात्मा जी ने जो एल्टीमेटम वायसराय हिन्द को दिया है, वह एक अंग्रेज के हाथ भेजा गया था। वह इसलिए कि मेरी दुश्मनी किसी अंग्रेज से नहीं है, बल्कि उन मुजालिमों से है जो हिन्दुस्तानियों को तहबोवाला (छोटी बड़ी) कर रहे हैं। मेरे नजदीक तो अंग्रेज भी मेरे ऐसे भाई हैं कि जैसे हिन्दुस्तानी।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
जिस तरह भगवान् महावीर नशीली चीजों के खिलाफ थे इसी तरह से आज महात्मा जी भी शराब, भंग, सिगरेट वगैरह के खिलाफ हैं और इनके बायकाट पर पूरा जोर लगा रहे हैं। महात्मा गांधी अछूत अद्धार के उतने ही जबरदस्त और कट्टर हामी हैं कि जैसे भगवान् महावीर थे। भगवान् महावीर जिस तरह हर तबके के इन्सान को एक जैसा ख्याल करते थे वैसे ही महात्मा गांधी भी करते हैं, जिसका जिन्दा सबूत यह है कि महात्मा जी ने एक शूद्र लड़की लक्ष्मीबाई को अपनी लड़की बनाया है। महात्मा जी सबसे पहले आत्मशुद्धि करके मैदान में निकले हैं।
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महात्मा गांधी सब इन्सानों को एक जैसा ख्याल करते हैं। क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र ! क्या क्षत्री ! क्या वैश्य ! क्या हिन्दू ! क्या मुसलमान ! क्या हिन्दुस्तानी ! और क्या अंग्रेज, महात्मा गांधी के सावरमती आश्रम में ब्राह्मण-क्षत्री - वैश्यशूद्र, मुसलमान, फारसी, ईसाई, अंग्रेज, गरज हर एक तबका के लोग रहते हैं। किसी से कोई नफरत नहीं की जाती। एक अमरीकन लेडी जिसका नाम महात्मा गांधी ने 'मीरा बहिन' रक्खा है, आश्रम में महात्मा जी के साथ रहती है और भी कई अंग्रेज लोग रहते हैं, जो कि महात्मा गांधी के बड़े भगत हैं।
जैसे भगवान् महावीर ने हर तरह के कष्ट सहन किये थे, लेकिन क्या मजाल जो उफ की हो, इसी तरह महात्मा जी भी अदमतशदुद से काम ले रहे हैं। चाहे हुकूमत क़ैद करे, पांव तले कुचले, लेकिन हम अपना हाथ बदला लेने के लिए नहीं उठायेंगे।
दरअसल देखा जाये तो महात्मा गांधी के अन्दर भगवान् महावीर के जीवन की सच्ची झलक दिखाई दे रही है। महात्मा जी को मेरे ख्याल से अगर भगवान् महावीर का पक्का भगत कहा जाये तो बिल्कुल बजा और दुरुस्त है। अगर जैन धर्म का मर्म समझा है, तो महात्मा गांधी ने समझा है। भगवान् महावीर की सन्तान कहलाने वालो ! अहिंसा धर्म की डींग मारने वालो ! महावीर के पुजारी बनने वालो! मन, वचन, काय धर्म को पालने का ठेका लेने वालो ! और भगवान् महावीर की जै-जैकार बोलने वालो! क्या तुम अपने ठण्डे दिल से अपने सीने पर हाथ रखकर बतला सकते हो कि क्या तुम भगवान् महावीर के सच्चे भक्त कहलाने के मुस्तहक हो ? मैं तो कहूँगा कि हरगिज भी नहीं । तुम्हारा फर्ज था कि सबसे पहले इन मजालियों को दूर कराने में, मुल्क को निजात दिलाने में और छह करोड़ भाईयों को भूख से मरते हुये बचाने में, आप खुद को खतरों में डालकर मैदाने अमल में आन उतरते। लेकिन अफसोस, कि तुम्हारे कान पर जूं भी नहीं रेंगी।
भगवान् महावीर का नाम ले लेना बहुत आसान है, मन्दिर में जाकर पूजा कर लेना भी बहुत सरल है। लेकिन कभी आपने इस पूजा के राज को भी समझा है ? अगर आप पहले कुछ नहीं कर सके, तो अब महात्मा गांधी जी का साथ दें और दुनियां को दिखला दें कि अहिंसा धर्म के मायने बुजदिली नहीं है, बल्कि सच्ची बहादुरी और वीरता का नाम अहिंसा है। अगर अब भी आपने दुनियां के साथ चलना न सीखा और अगर अब भी आपने अपनी पुरानी और दकियानूसी रफ्तार को न बदला तो मैं पुरजोर अलफाज से कहे देता हूँ कि आप इन सफाहहस्ती से मिट जायेंगे और आपका ढूंढे से भी पता न चलेगा। लिहाजा जागो ! समझो ! और काम करना सीखो।
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प्रथम खण्ड
__ 415 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची प्रस्तुत सूची में प्रदान काम इस प्रकार है। पुस्तक/पत्र-पत्रिका का नाम, लेखक/ सम्पादक,
सन स्थान, संस्करण, संस्करण वर्ष। संकेत निम्न प्रकार हैं। अनु0-अनुवादक, ले0-लेखक, सम्पा)-सम्पादक, प्रका0-प्रकाशक, सं0-संस्करण। 1. अचल चरित्र, सम्पा0-सूरजभान जैन 'प्रेम', प्रका0-सेठ जीवन परिचय, प्रकाशन समिति, आगरा, प्रथम
1958 2. अचल सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ, सम्पा0-प्रतापचन्द जैसवाल (पत्रकार), प्रका0-सेठ अचल सिंह अभिनन्दन
ग्रन्थ समिति, आगरा, 1974 अमर चंद बाँठिया, प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अमर शहीद, ले0-सूरजराज धाडीवाल, बाँठिया
फाउन्डेशन, कानपुर, 1986 4. अमर जैन शहीद, डॉ0 कपूरचंद जैन एवम् डॉ0 (श्रीमती) ज्योति जैन, श्री कैलाशचंद जैन स्मृति न्यास,
खतौली-251201 (उ0 प्र0), प्रथम, 1998 5. अमृत पुत्र, ले0-रतनलाल जोशी, प्रका0-रतनमणि ट्रस्ट, उद्बोधक ग्रन्थमाला, ए 303, पराडकर भवन,
गांव देवी रोड, भायन्दर (पं0) (थाणे, महाराष्ट्र) पिन-401101 6. अर्जुन लाल सेठी, डॉ0 विष्णु पंकज, राजस्थान प्रकाशन, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर, प्रथम, 1989 7. आजादी के दीवाने (सागर जिले के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी) प्रकाशक-जिला सहकारी संघ मर्यादित,
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 16. श्री कुसुमकान्त जैन : व्यक्तित्व एवम् जीवन संघर्ष, श्री कुसुमकान्त जैन अभिनन्दन समिति,
13 (एल0एफ0) कालेज रोड, नयी दिल्ली, 1989 17. खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास, सम्पा0- डॉ0 कस्तृरचन्द कासलीवाल, जैन इतिहास
प्रकाशन संस्थान, जयपुर, 1989 18. खारवेल प्रशस्ति : पुनर्मूल्यांकन, चन्द्रकांतबाली शास्त्री, प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली-7, 1988 19. गणेश प्रसाद वर्णी स्मृति ग्रन्थ, प्रका-भारतवर्षीय दि0 जैन विद्वत् परिषद्, 1974 20. श्री गोर्धनदास जैन अभिनन्दन ग्रंथ, सम्पा0-डॉ0 विश्वम्भर शरण आदि, प्रका0-श्री गोर्धनदास जैन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अभिनन्दन समारोह समिति, आगरा, 1996 21. गोलापूर्व जैन समाज : इतिहास एवं सर्वेक्षण, सम्पा0-सुरेन्द्र कुमार जैन, प्रका0- पारस शोध संस्थान,
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नेहरू मार्ग, जयपुर, प्रथम संस्करण, 1978 25. जिन खोजा तिन पाइयाँ, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली, चतुर्थ
संस्करण, 1966 26. जैन कला एवं स्थापत्य, खण्ड-1, सम्पा0-अमलानंद घोप, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, 1975 27. जैन जागरण के अग्रदूत, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1952 28. जैन ज्योति ऐतिहासिक व्यक्तिकोश, प्रथम खण्ड (अ-अं), सम्पा0-डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन, ज्ञानदीप
प्रकाशन, लखनऊ, 1988 29 जैनधर्म, पं0 कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतवर्षीय दि0 जैन संघ, मथुरा (उ0प्र0), षष्ठम, 1985 30. जैनधर्म और दर्शन, मुनि श्री प्रमाणसागर, राजपाल एण्ड सन्स, दिल्ली, प्रथम 1996 31. जैन संस्कृति और राजस्थान, सम्पा0-डॉ0 नरेन्द्र भानावत, प्रका)- सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू
बाजार, जयपुर-302003, 1975-76 जैन समाज का वृहद् इतिहास (प्रथम खण्ड), ले0-डॉ0 कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैन इतिहास प्रकाशन
संस्थान, जयपुर, 1992 33. जैन समाज वर्धा के सौ वर्ष (1895-1995), लेखक सम्पादक-श्री जमनालाल जैन, प्रकाशक-अध्यक्ष
श्री दिगम्बर जैन बोर्डिंग हाऊस, वर्धा (महाराष्ट्र), 1995 34. जैन साहित्य और इतिहास : पूर्व पीठिका, पं0 कैलाशचन्द्र शास्त्री, श्री गणेश वर्णी जैन ग्रन्थमाला,
वाराणसी (उ0प्र0), प्रथम, वीर निर्वाण संवत् 2489
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37.
प्रथम खण्ड
35. जैसवाल जैन इतिहास ले०- रामजीत जैन 'एडवोकेट', जैसवाल जैन समाज, ग्वालियर, 1988 36. जैसवाल जैन एक युग : एक प्रतीक, सम्पा) - श्री अशोक कुमार आदि, अलंकार प्रकाशन, 3611 सुभाष मार्ग, दरियागंज, नयी दिल्ली -2, 1993
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417
38.
श्री दिगम्बर जैन खरौआ समाज का इतिहास, लेखक - रामजीत जैन एडवोकेट, गयेलिया जैन धर्मार्थ ट्रस्ट, ग्वालियर, 1990
श्री तख्तमल जैन स्मृति ग्रन्थ, प्रकाशक - स्व0 बाबू तख्तमल जैन अभ्यर्थना समारोह समिति, सम्राट् अशोक आभियांत्रिकीय महाविद्यालय, विदिशा (म0प्र0), 1992
39.
श्री दि() जैन वरैया समाज, ले0- रामजीत जैन, मै0 लालमणि प्रसाद जैन एण्ड सन्स, ग्वालियर, 1987 40. दिवंगत हिन्दी सेवी ( प्रथम खण्ड), ले0 - क्षेमचन्द्र 'सुमन', शकुन प्रकाशन, नयी दिल्ली, 1981 41. दिवंगत हिन्दी सेवी (द्वितीय खण्ड), ले0 - क्षेमचन्द्र 'सुमन', शकुन प्रकाशन, नयी दिल्ली, 1983 42. दिल्ली के स्वतन्त्रता सेनानी, भाग - 2, सम्पा० डॉ० श्रीमती मालती शर्मा (हिन्दी संस्करण) गजेटियर यूनिट, दिल्ली प्रशासन, दिल्ली
43. धरती गाती है, ले0 - महाकवि शान्ति स्वरूप 'कुसुम', प्रका0- तरुण प्रकाशन, शान्ति निकेतन, एच-218, शास्त्री नगर, मेरठ - 250004, 1992,
50.
44.
धर्म का आदि प्रवर्तक, स्वामी कर्मानन्द, प्रका0 - भा0 दि0 जैन संघ, अम्बाला छावनी, 1940 45. धर्मचन्द सरावगी, सम्पा० - दीपचंद नाहटा, प्रका० - श्री धर्मचन्द सरावगी अभिनन्दन समिति, श्री जैन सभा, 7 शम्भू मल्लिक लेन, कलकत्ता - 7, 1986
46. नरेन्द्र कुमार जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, प्रका० - भगवान् महावीर बाल संस्कार केन्द्र, टीकमगढ़ (म0प्र0),
472001, 1983
47. नैतिक जीवन दर्पण, सेठ अचल सिंह, प्रका) - नैतिक नागरिक संघ, आगरा
48. पंडित जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ, प्रका० - पं0 जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद समिति, जैन केन्द्र, रीवा (म0प्र0), 1989
51.
49. पंडित फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रंथ, प्रका० - सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन समिति, वाराणसी
पन्ना धाय, ले (0 - क्षमा शर्मा, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1993
परवार जैन समाज का इतिहास, सम्पा) - सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री, श्री भारतवर्षीय दि० जैन
परवार सभा, 1992
52. प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें, ले0 - डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली,
1975
53. प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ, प्रका0- श्री यशपाल जैन, मंत्री - प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ समिति, टीकमगढ़ (म0प्र0), 1946
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418
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 54. पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास, लेखक-डॉ0 अनिल कुमार जैन, श्री पल्लीवाल इतिहास समिति,
अलवर (राज0), 1988 55. पीयूष कलश (काव्य संकलन), ले)-सुन्दर देवी जैन, प्रका0-लोक चेतना प्रकाशन, जबलपुर (म0प्र0), 1978 56. पुरुदेवचम्पू का आलोचनात्मक परिशीलन, डॉ0 कपूरचंद जैन, परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, प्रथम
1985 57. बन्दीनामा, भाग एक से तीन, श्री फूलचंद जैन, कन्सेप्ट पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली, प्रथम, 1998 58. श्री बाबूलाल पाटोदी : अंतरंग ग्रन्थ (पचहत्तर बरस पूर्ति प्रसंग), 1995, प्रका0- श्री बाबूलाल पाटोदी
:: अमृत महोत्सव समिति, पाटोदी परिवार, 70/3, मल्हारगंज, इन्दौर (म0प्र0), 1995 59. बुन्देलखंड में स्थित देवरी (सागर) के साहित्यकारों का साहित्यानुशीलन, डॉ0 मनीषा जैन, डॉ0 हरीसिंह
गौर विश्वविद्यालय सागर की पी एच0डी0 उपाधि हेतु स्वीकृत अप्रकाशित शोध प्रबंध, 1992 60. ब्यावर (भारत जैन महामण्डल के इकतालीसवें अधिवेशन पर प्रकाशित संक्षिप्त परिचय पुस्तिका),
प्रका0-जैन प्रकाशन, ब्यावर (राजस्थान), 1971 61. भगवान् महावीर स्मृति ग्रन्थ, सम्पा0-डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन, श्री महावीर निर्वाण समिति, उत्तर प्रदेश,
लखनऊ, 1975 भगवान् महावीर स्वामी की विश्व को देन, सम्पा0-आचार्य देशभूषण जी महाराज, प्रका0-शान्ति रोडवेज, 5, नवाब लेन, कलकत्ता श्रीमद्भागवतपुराण, गीता प्रेस, गोरखपुर (उ0प्र0) भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन एवं संवैधानिक विकास, डॉ0 के0 सी0 जैन, श्री पब्लिशिंग हाउस, नयी
दिल्ली, 1990 65. भारत का संवैधानिक विकास और स्वाधीनता संघर्ष, डॉ0 सुभाष कश्यप, रिसर्च, दिल्ली, 1972 66. भारत का स्वाधीनता आन्दोलन (भाग 2) ले0-आचार्य दीपंकर, प्रका0-जनमत प्रकाशन, मेरठ 67. भारत छोड़ो आन्दोलन, शंकर दयाल सिंह, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत
सरकार, नयी दिल्ली, तृतीय 1992 68. भारत में अंग्रेजी राज, प्रथम खण्ड, लेखक-पं0 सुन्दर लाल, प्रका0-प्रकाशन विभाग, सूचना और
प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1967 69. भारत में अंग्रेजी राज, द्वितीय खण्ड, लेखक-पं0 सुन्दर लाल, प्रका0-प्रकाशन विभाग, सूचना और
प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1970 70. भारत में न्यायिक पुनरावलोकन, डॉ. (श्रीमती) ज्योति जैन, राधा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, प्रथम, 1888 71. भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, डॉ0 पुखराज जैन, साहित्य भवन, आगरा, 1995 72. भारतना स्वातन्त्र्य संग्रामो अने तेना लडवैयाओ (गुजराती), ले0-डॉ0 मंगुभाई रा0 पटेल, यूनिवर्सिटी
ग्रन्थ निर्माण बोर्ड, गुजरात राज्य, अहमदाबाद, तृतीय संस्करण, 1994
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प्रथम खण्ड
419 73. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली, 1966 74. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, भाग-2, ले0-ताराचन्द, अनु0-मन्मथनाथ गुप्त, प्रकाशन
विभाग, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1969, पुनर्मुद्रण, 1982 75. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास, भाग-4, ले0-डॉ0 ताराचंद, प्रकाशन विभाग, सूचना और
प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, संस्करण-1984 76. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास (1857-1947), डॉ) ब्रजभूषण, पूनम प्रकाशन, दिल्ली, 1992 77. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, डॉ0 शंकर बसन्त मुद्गल, चन्द्रलोक प्रकाशन, कानपुर, 1989 78. मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक, खण्ड । (जबलपुर संभाग), सूचना तथा प्रकाशन संचालनालय
मध्यप्रदेश, भोपाल, 1978 79. मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक, खण्ड-।।, (सागर संभाग), भाषा संचालनालय मध्यप्रदेश,
भोपाल, 1983 80. मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक, खण्ड ।।। (रायपुर, बिलासपुर, बस्तर संभाग) भाषा संचालनालय,
संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1984 81. मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक, खण्ड-चतुर्थ, (इन्दौर, उज्जैन, ग्वालियर संभाग), भाषा
संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1984 82. मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक, खण्ड-पंचम (रीवां भोपाल, होशंगाबाद संभाग), भाषा संचालनालय,
संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1984 83. मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक संघ के चौंतीस साल, ले0-रतनचन्द जैन, श्रीपाल प्रिन्टर्स, जबलपुर
(म0प्र0), 1990 84. भारतीय स्वातंत्र्यालढ्यातील जैनांचे योगदान (मराठी), प्रकाशिका-सौ0 शरयू दफ्तरी, सम्पादिका-जैन
बोधक, मुम्बई, 1999 35. मन्दसौर जिले में स्वतन्त्रता संग्राम, डॉ0 पूरन सहगल, प्रकाo-मानव लोक संस्कृति अनुष्ठान, मनासा,
जिला-मन्दसौर (म0प्र0), 1987 86. महिलायें और स्वराज्य, आशा रानी व्होरा, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली,
1988
87. भैया मिश्रीलाल गंगवाल स्मृति ग्रन्थ, प्रका0-भगवान् महावीर बाल संस्कार केन्द्र, टीकमगढ़ (म0प्र0),
प्रथम, 1998 88. मेरे बापू, श्री तन्मय बुखारिया, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1951 89. मेरे साथी, महात्मा भगवानदीन, भारत जैन महामण्डल, वर्धा, 1952 90. मौर्य साम्राज्य के जैन वीर, श्री अयोध्याप्रसाद, गोयलीय 'दास', प्रका0-जैन मित्र मण्डल, धर्मपुरा,
देहली, 1932
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन. 91. ये अनमोल बोल, भेंट स्वरूप प्रकाशन, पद्मश्री वीरेन्द्र प्रभाकर, सी-11/32, बापानगर, नयी
दिल्ली -3, 1991 92. रजत-नीराजना, सम्पा0- डॉ0 परशुराम शुक्ल विरही, प्रका0-हरिनारायण चौबे, अध्यक्ष, नगर पालिका,
ललितपुर (उ0प्र0), स्वाधीनता रजत जयंती वर्ष (1972) 93. रतन लाल मालवीय स्मृति ग्रंथ, सम्पा०-श्रीमती सुधा पटोरिया, श्री राजेन्द्र पटोरिया, प्रका0-मालवीय
ग्रन्थ प्रकाशन समिति, ओ-1, आर0 एच0-4, 9, सी बी डी, बेलापुर, न्यू बाम्बे 400614, प्रथम, 1991 श्रीमद् राजचन्द्र (मूल गुजराती से हिन्दी अनुवाद), श्री हंसराज जैन, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास
(गुजरात), तृतीय, 1991 95. राजपूताने के जैन वीर, श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय 'दास', प्रका0-हिन्दी विद्या मन्दिर, पहाड़ी धीरज,
देहली, 1933 95. राजस्थान में स्वतन्त्रता संग्राम, ले0-बी0 एल0 पानगडिया, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर
(राजस्थान), 1988 96. राजस्थान में स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, सुमनेश जोशी, टीपू सुल्तान, प्रका0-ग्रन्थागार, नारनोली भवन,
सांगानेरी गेट, जयपुर-3, 1973 97. राजस्थान में स्वतन्त्रता संघर्ष, सम्पादक-जहूर खाँ मेहर, प्रका0-जगदीश सिंह गहलोत शोध संस्थान,
जगदीश सिंह गहलोत मार्ग, मेड़ती दरवाजा, जोधपुर, प्रथम, 1991 98. राजस्थानी आजादी के दीवाने, ले०-हरिप्रसाद अग्रवाल, प्रताप प्रकाशन, श्यामजी कृष्ण वर्मा पुस्तकालय,
महादेव जी की छत्री, व्यावर (राजस्थान), प्रथम, 1951 99. श्री रायचंद नागड़ा पुण्य स्मरण (स्मारिका), सम्पा0 डॉ0 श्रीराम परिहार, प्रका0-स्व0 रायचंद नागड़ा
श्रद्धा समिति, 19 म0 गा0 मार्ग, खण्डवा (म0प्र0), 1993 100. लबेंचू समाज, 1993 (अ0 भा0 दि0 जैन लबेंचू समाज का पारिवारिक दर्पण), सम्पा०-लबेंचू जनगणना
1993 समिति, 32, सदर बाजार, भिण्ड (म0प्र0) 10]. लाला लाजपत राय, (जीवनी तथा कार्य), ले0-फिरोज चन्द, प्रका0-प्रकाशन विभाग, सूचना और
प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1987 102. लाला लाजपत राय, ले0-डॉ0 भवान सिंह राणा, भारतीय ग्रन्थ निकेतन, 2713, कूचा चेलान, दरियागंज,
नयी दिल्ली-110002, 1988 103. लाला लाजपत राय, ले0-मुकुट बिहारी वर्मा, सस्ता साहित्य मण्डल, नयी दिल्ली, 1965 104. लाला लाजपत राय, ले0-विनोद, राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली, 1969 105. वरांग-चरित, अनुवाद-प्रो खुशाल चंद गोरावाला, प्रका0-मंत्री साहित्य विभाग, भा0 दिगम्बर जैन संघ,
चौरासी, मथुरा (उ0प्र0) संस्करण-प्रथम, 1953 106. विजयवर्गीय इतिहास : एक दृष्टि, लेखक-रामजीत जैन एडवोकेट, विजयवर्गीय (वैश्य) सभा, ___ ग्वालियर, 1992
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प्रथम खण्ड
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107. विजयसिंह पथिक, डॉ0 पद्मसिंह वर्मा, प्रका0- प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, भारत
सरकार, नयी दिल्ली, 1992 108. विद्वत् अभिनन्दन ग्रंथ, सम्पा0-डॉ0 लाल बहादुर शास्त्री, अखिल भारतवर्षीय दि0 जैन शास्त्रि परिषद्,
बड़ौत (उ0प्र0), 1976, 109. विन्ध्यप्रदेश के राज्यों का स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास, ले0-श्याम लाल साहू, राजेन्द्र प्रिंटिंग प्रेस,
निबाडी (म0प्र0), 1975 110. विमल प्रसाद जैन : क्रान्तिकारी जीवन की कुछ झांकियां, ले0-रूपवती जैन, प्रका0-शकुन प्रकाशन,
3625, सुभाष मार्ग, नयी दिल्ली-110002, प्रथम, 1994 111. वीर शासन के प्रभावक आचार्य, डॉ0 विद्याधर जोहरापुरकर, डॉ0 कस्तूर चंद कासलीवाल, भारतीय
ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली, 1975 112. वीर हृदय (गीत संकलन), श्री निर्मल कुमार जैन, श्री गजरथ महोत्सव, बरेली (रायसेन), म0प्र0 के
अवसर पर प्रकाशित 113. शशिकाव्य 'अन्तर्नाद', श्री कल्याण कुमार 'शशि', रामपुर, 1988-89 114. शहीद गाथा, सम्पा0- श्री नर्मदा प्रसाद खरे, प्रका0-स0 सिं0 सुरेश चंद जैन, मंत्री मध्यप्रदेशीय जैन
युवक सभा, जबलपुर (म0प्र0), 1951 115. शहीदों के खत, विनोद मिश्र, प्रका0-प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार,
नयी दिल्ली, 1990 116. संक्षिप्त जैन इतिहास, बाबू कामता प्रसाद जैन, प्रका0- मूलचंद किसनदास कापडिया, दिगम्बर जैन
पुस्तकालय, सूरत, वी0 नि0 सं0 2452 117. संक्षिप्त जैन इतिहास 2/2, बाबू कामता प्रसाद जैन, प्रका0-मूलचंद किसनदास कापडिया, दिगम्बर जैन
पुस्तकालय, सूरत, वी0नि0सं0, 2460 118. संक्षिप्त जैन इतिहास 3/5, बाबू कामता प्रसाद जैन, प्रका0-मूलचंद किसनदास कापडिया, दिगम्बर जैन
पुस्तकालय, सूरत, वी0नि0सं0, 2476 119. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास, डॉ0 कपिलदेव द्विवेदी, संस्कृत साहित्य संस्थान, 37 कचहरी
रोड, इलाहाबाद-2 120. सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा, ले0-मोहनदास, कर्मचंद गांधी, अनु0-काशीनाथ त्रिवेदी,
प्रका0- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद-14, प्रथम संस्करण 1957, पुनर्मुद्रण 1993 121. सन् सत्तावन के भूले बिसरे शहीद, भाग-2, डॉ0 विश्वमित्र उपाध्याय, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय,
भारत सरकार, नयी दिल्ली, 1990 122. सन् सत्तावन के भूले बिसरे शहीद, भाग-3, ले0-बनारसी दास, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत
सरकार, नयी दिल्ली, 1995
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
123. सहारनपुर सन्दर्भ, सम्पा0-डॉ0 के0के0 शर्मा, प्रका0-सन्दर्भ प्रकाशन, गिल कालोनी (नारायणपुरी)
निकट नारायण मन्दिर, सहारनपुर (उ0प्र0), 1986, 124. सहारनपुर सन्दर्भ (भाग-2), (सहारनपुर की महान् विभूतियाँ (1858-1988)) डॉ0 के0 के0 शर्मा,
डॉ0 सिप्रा बैनर्जी, संदर्भ प्रकाशन, 2/2510, गिल कालोनी, सहारनपुर (उ0प्र0), प्रथम, 1996 125. सांस्कृतिक चेतना और जैन पत्रकारिता, सम्पा0-डॉ0 संजीव भानावत, सिद्ध श्री प्रकाशन, जयपुर, 1990 126. सेठ मोतीशाह, प्रका0-जिनत्तसूरि मण्डल, दादावाडी, अजमेर, 1966 127. सौराष्ट्रना स्वातन्त्र्य सैनिको (गुजराती), सम्पा0-जयावेन बजुभाई शाह, प्रका0-सौराष्ट्र रचनात्मक समिति
सेवा ट्रस्ट राजकोट, 1988 128. स्वतन्त्रता संग्राम, ले0-बिपन चंद्र आदि, अनु0-रामसेवक श्रीवास्तव, नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया, नयी
दिल्ली, 1972 129. स्वतन्त्रता संग्राम और जबलपुर नगर, ले0- रामेश्वर प्रसाद गुरु, प्रका0-स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक संघ,
जबलपुर (म0प्र0), 1985 130. स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय जन-जागरण में शाजापुर जिले का योगदान (टंकित शोध-प्रबन्ध),
ले०-डॉ0 ऋचा उपाध्याय, 1996 131. स्वराज्य और जैन महिलायें, ले0-डॉ0 (श्रीमती) ज्योति जैन, प्रका0- श्री कैलाश चंद जैन स्मृति न्यास,
C/डॉ0 के0 सी0 जैन, के0के0 जैन डिग्री कालेज, खतौली-251201 (उ0प्र0), प्रथम, 1997 132. स्वातंत्र्य संग्रामना लडवैया (गुजराती) परिचय ग्रन्थ-2, प्रका0-माहिती घातुं, गुजरात सरकार सचिवालय
गांधीनगर, 1976 133. स्वातंत्र्य सैनिक चारित्र कोष (मराठी) (खण्ड 1 से 5), प्रका0-कार्यकारी सम्पादक व सचिव
(स्वातन्त्र्य सैनिक चारित्र कोष) दार्शनिका विभाग, महाराष्ट्र शासन, 27 बरजोर भरुचा मार्ग, महात्मा
गांधी रोड़, फोर्ट, मुम्बई-400001 134. स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ, ले0-आचार्य दीपंकर, जनमत प्रकाशन, 54/4, जागृति विहार, मेरठ,
प्रथम, 1993 135. स्वाधीनता आन्दोलन में छिन्दबाडा जिले का योगदान (1920 से 1947 तक), ले0-डॉ0 प्रितपाल सिंह
भाटिया, डॉ) हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर की पी एच0 डी0 उपाधि हेतु स्वीकृत शोध प्रबन्ध, 1995 136. स्वाधीनता आन्दोलन में शहडोल का योगदान, ले0सम्पा0-छेदी लाल सिंह, प्रका0-सुधीजन, इन्द्रकुंज,
मानपुर-शहडोल (म0प्र0), प्रथम, 1988 137. स्वाधीनता संग्राम और हमारे सेनानी, सम्पा0-ठाकुर भूपति सिंह, पाटन तहसील स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक
संघ, पाटन, जिला-जबलपुर (म0प्र0), 1968 138. हरदा और स्वतंत्रता संग्राम, सम्पा0-श्री महेशदत्त मिश्र आदि, प्रका0-गुलजार भवन ट्रस्ट, हरदा, 1988 139. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, उनतीसवां संस्करण,
वि0 सं0 2051
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प्रथम खण्ड
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140. होशंगाबाद जिले का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास एवं सेनानियों का परिचय, ले()- दुर्गाप्रसाद जायसवाल, प्रका(0) - गांधी भवन ट्रस्ट, इटारसी, (म0प्र0), प्रथम 1984
141. हिन्दी कक्षा 7, प्रका0 - गुजरात राज्य शाला, पाठ्यपुस्तक मण्डल, पुराना विधान सभा गृह, सेक्टर-17, गांधीनगर (गुजरात), प्रथम, 1990
142. Aspects of Jainology, Vol II, Pt. Bechardas Doshi, Commemoration Volume, Ed. Prof. M.A. Dhaky, Prof. Sagarmal Jain, Pub.- P.V. Research Institute, I.T.I. Road, B.H.U. Varanasi, Ist Edition, 1987.
143. History of Jaimsn, Edited by- Sh. Nihal Chand Jain, Pub - Bharatvar shiya Digamber Jain Sangh, Mathura (U.P.), 1999
144. Our National Songs, Publications Division Ministry of Information and Broadcasting Govt. of India, New Delhi, 2000
145. Progressive Jains, Satish Kumar Jain, Shraman Sahitya Sansthan, New Delhi, 1987 146. The Martyrs, Ratan lal Joshi, Pub - Udbodhak Granthmala, 4, Kh and eraowadi, Bombay 400002, First, 1994
147. Who's who of Indian Martyrs, Volume 1, Chief Editor - Dr. P. N. Chopra, Pub - Ministry of Education and youth Services, Govt. of India, New Delhi, 1969
148. Who's' who of Indian Martyrs, Vol. III, Chief Editor - Dr. P. N. Chopra, Pub— Deptt. of Culture, Ministry of Education and Social Welfare, Govt. of India, New Delhi
स्मारिकायें एवं पत्र-पत्रिकायें
149. अ० भा0 दि0 जैन शास्त्रि परिषद् बुलेटिन, सम्पा)- डॉ () कपूरचंद जैन, प्रका) - अ० भा0 दि0 जैन शास्त्रि परिषद्
150. अजमेर वार्षिकी एवं व्यक्ति परिचय, 1976-77, प्रधान सम्पा ()- श्री घीसूलाल पांड्या, प्रका) - आजाद प्रकाशन, पो) बा) नं0 88, पृथ्वीराज मार्ग, अजमेर (राजस्थान )
151. अनावरण एक सत्य का : श्री रतनचंद जैन, मुद्रक चौधरी प्रिंटिंग प्रेस, 13 कोतवाली वार्ड, जबलपुर 152. अनेकान्तपथ, भोपाल (म0प्र0)
153. अमर उजाला (दैनिक), आगरा एवं मेरठ संस्करण
154. अमृत (पी0 डी0 जैन इण्टर कालेज, वार्षिक पत्रिका, 1986 में प्रकाशित लेख 'स्वतंत्रता संग्राम में फिरोजाबाद जनपद के जैन समाज का योगदान') ले0- श्री पन्नालाल जैन 'सरल', प्रका0 पी0डी0 जैन इन्टर कालेज, फिरोजाबाद (उ0प्र0)
155. अवन्तीपुत्र: अवन्तीलाल, हीरक जयन्ती अभिनन्दन समारोह स्मारिका, उज्जैन, 1983 156. अहिंसा सन्देश (पाक्षिक), रांची (बिहार)
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157. इन्दौर समाचार, इन्दौर
158. उत्सर्ग (स्मारिका), सम्पा0 श्रीदशरथ जैन आदि, प्रका0 - स्वागत समिति, दसवां मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ अधिवेशन, चरणपादुका (छतरपुर, म0प्र0), 1978
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
159. कादम्बिनी, हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन, नई दिल्ली
160. कानपुर जैन डायरेक्टरी (1998), संयोजक - पं(०) बच्चूलाल शास्त्री, प्रका० - अशोक कुमार जैन एवं अरविन्द कुमार जैन, प्रथम, 1998
161. खनन भारती, अक्टू0 - 1994 ( कोल इण्डिया लिमिटेड की प्रतिनिधि हिन्दी पत्रिका ), सम्पा (0) - राजेन्द्र पटोरिया, प्रका0- वेटर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, कोल इस्टेट, सिविल लाइन्स, नागपुर - 440001
162. खनन भारती, अगस्त 1991 ( अंडमान-निकोबार, विशेषांक) प्रका0 वेस्टर्न कोलफील्ड्स लि0, नागपुर 163. चौथा संसार, इन्दौर ( म०प्र० )
164. जनसत्ता, नई दिल्ली, इण्डियन एक्सप्रेस ग्रुप का प्रमुख हिन्दी दैनिक
165. जिनवाणी (मासिक) जयपुर, (राज0 )
166. जैन गजट (साप्ताहिक), प्रका० - अ) भा0 दि0 जैन महासभा, वेंकटेश्वर फ्लोर मिल्स, ऐश बाग, लखनऊ (उ0प्र0)
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167. जैन दर्पण (मासिक), अ० भा० जैन वेलफेयर सोसायटी द्वारा प्रेमचंद बड़जात्या, जयपुर (राजस्थान ) 168 जैन प्रचारक, अ० भा० अनाथरक्षक सोसायटी, दरिया-गंज, नई दिल्ली का मासिक
169. जैन प्रतीक (मासिक), सम्पा० - नरेन्द्र रांका, 19/6 तुकोगंज, इन्दौर (म0प्र0)
170. जैन प्रदीप (मासिक), आद्य सम्पादक - स्व ० ज्योति प्रसाद जैन, सम्पा0 - श्री कुलभूषण कुमार जैन, प्रका० - ज्योति चेतना संस्थान, चाहपारस, देवबन्द, सहारनपुर (उ0प्र0)
171. जैन महिलादर्श (मासिक), प्रका0- अ) भा0 दि0 जैन महासभा, श्री वेंकटेश्वर फ्लोर मिल्स, ऐशबाग, लखनऊ (उ0प्र0)
172. जैन मित्र (साप्ताहिक), सूरत (गुजरात)
173. जैन समाज निर्देशिका, प्रका० - जैन मित्र मण्डल, छिन्दवाड़ा (म0प्र0), 1990
174. जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक, 23 जनवरी 1947 ई0 एवं अन्य अनेक अंक, प्रका() - भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ, मथुरा (उ0प्र0)
175. जैन स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का नागरिक अभिनन्दन (बुकलेट), प्रका0 चन्द्रवाड़ दि० जैन अतिशय क्षेत्र कमेटी, फिरोजाबाद - 283203
176. ज्ञानोदय (मासिक), प्रका() - भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, मई 1952 ( अमर शहीद भैयालाल चौधरी लेख ) । 177. Times of India (Daily), New Delhi
178. तीर्थंकर, जैन पत्र-पत्रिका विशेषांक (अगस्त-सित0-1977) एवं अन्य अनेक अंक, हीरा भैया प्रकाशन, इन्दौर (म0प्र0)
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प्रथम खण्ड
425 179. दिगम्बर जैन (मासिक), सूरत (गुजरात) 180. दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका (पाक्षिक), नई दिल्ली 181. देशबन्धु (साप्ताहिक), इन्दौर (म0 प्र0) 182. दैनिक जागरण (दैनिक), भोपाल (म0प्र0) 183. दैनिक भास्कर (दैनिक), जबलपुर, इन्दौर एवं भोपाल संस्करण 184. नई दुनियां (दैनिक), इन्दौर (म0प्र0) 185. नया खून, नागपुर (महाराष्ट्र) (पन्नालाल देवडिया श्रद्धान्जली परिशिष्ट), 27 मई 1960 186. नवभारत दैनिक, रायपुर एवं इन्दौर संस्करण 187. नवभारत टाइम्स (दैनिक), टाइम्स आफ इण्डिया, नई दिल्ली 188. नवीन दुनियां (दैनिक), जबलपुर (म0प्र0) 189. पंडित सुन्दरलाल अभिनन्दन एवं मुजफ्फरनगर सन्दर्भ (स्मारिका), मेरठ विश्वविद्यालय हिन्दी परिषद्
द्वारा डॉ0 विश्वनाथ मिश्र, मुजफ्फरनगर (उ0प्र0), 1978 190. पद्माकर (स्मारिका), संयोजक-डॉ0 प्रकाशचन्द जैन (नेहरू जन्म शताब्दी एवं सागर जिले में स्वतंत्रता
संघर्ष विशेषांक), प्रकाशक-शासकीय बालक महाविद्यालय, सागर (म0प्र0), 1989-90 191. पुण्य स्मरण (स्मारिका), सम्पा0-डॉ0 रामस्वरूप आर्य, प्रका0-प्रदीप कुमार जैन, मंत्री, बाबू रतन लाल
जैन स्मृति समारोह समिति, बिजनौर (उ0प्र0), 1977 192. मध्यप्रदेश सन्देश (स्वाधीनता आन्दोलन विशेषांक), 15 अगस्त 1987, जन सम्पर्क संचालनालय,
भोपाल (म0प्र0) 462003 193. राजस्थान पत्रिका (दैनिक), उदयपुर संस्करण 194. राष्ट्रदूत (दैनिक), उदयपुर (राजस्थान) 195. रीजनल एक्सप्रेस (साप्ताहिक), देहरादून (उ0प्र0) 196. रुहेलखंड-कुमायूं जैन डायरेक्टरी, सम्पा0-डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन, रुहेलखंड-कुमायूं जैन परिषद्,
काशीपुर (उ0प्र0), 1970 197. लखनऊ जैन निर्देशिका, सम्पा0-कैलाश चन्द जैन "पंचरत्न', पंचरत्न प्रिंटिग प्रेस, कैलाश कुटीर,
लखनऊ (उ0प्र0), 1991-92 198. विन्ध्यवाणी, शहीदअंक 1948, भोपाल (म0प्र0) 199. वीर (अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् का मुखपत्र), 204, दरीबां कला, दिल्ली-6 200. वीर, ऋषभ विशेषांक, अ0 भा0 दि0 जैन परिषद्, 10, दरिया गंज, नयी दिल्ली, 7 फरवरी 1996 201. वीर निकलंक (मासिक), सम्पा0-श्री रमेश कासलीवाल, 24/5, पारसी मौहल्ला, छावनी, इन्दौर-1,
(म0प्र0)
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426
स्वतंत्रता संग्राम में जैन 202. शताब्दी सन्देश, इन्दौर (म0प्र0) 203. शशि स्मारिका, सम्पा0-40 रतनचंद जैन शास्त्री, प्रका0-अन्तरंग प्रकाशन, 12 इन्दिरा कालोनी,
रामपुर-244901 (उ0प्र0), 1988 204. श्रद्धा सुमन (स्मारिका), सम्पा0-सुधीर जैन 'विद्यार्थी', युवक क्रान्ति संगठन, दमोह (म0प्र0), 1988 205. शीतल सौरभ (स्मारिका), प्रका0-पुनर्निर्मित श्री शीतलनाथ जैन श्वेताम्बर जिनालय, सराफा, जबलपुर
के प्रतिष्ठा महोत्सव पर प्रकाशित, 24 फरवरी, 1994 206. शोधादर्श (अनेक अंक), तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उत्तर प्रदेश, लखनऊ 207. सन्मति (मराठी), पो0-बाहुबली, जि0-कोल्हापुर, महाराष्ट्र-416110, दिसम्बर 1952 ई0 एवं अन्य
अनेक अंक 208. सन्मतिवाणी (इन्दौर), मिश्रीलाल गंगवाल विशेषांक, जनवरी 1982 एवं अन्य अनेक अंक 209. सन्मति संदेश (मासिक), सम्पा0- श्री पं० प्रकाश हितैषी शास्त्री, 535, गांधी नगर, दिल्ली 210. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन, नयी दिल्ली 211. सेनानी सूची, प्रका0-जिला रेवाडी स्वतंत्रता सेनानी परिषद्, गांधी अध्ययन केन्द्र, गोकुल बाजार,
रेवाडी-123401 212. स्मृतियों के रक्त पलाश (श्री हुक्मचंद नारद प्रतिमा अनावरण, दिनांक 2 मई 1999 के अवसर पर
प्रकाशित स्मारिका) सम्पा0-अरुण कान्त अग्रवाल, प्रका)-डॉ0 कैलाश नारद, हुक्मचंद नारद मार्ग,
जबलपुर (म0प्र0) 213. स्वदेश (दैनिक), इन्दौर (म0प्र0) 214. स्वतन्त्रता संग्राम में इलाहाबाद (स्मारिका), सम्पादन-डा. राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी, प्रका0-अ0 भा0
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन, इन्दिरा महानगर, प्रयाग, 18-19 नवम्बर 1985 215. स्वर्ण जयन्ती स्मारिका, श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी (उ0प्र0), 1955 216. हिन्दुस्तान (दैनिक), हिन्दुस्तान टाईम्स प्रकाशन, नयी दिल्ली, 17.12.1986 217. श्री हुक्मचंद नारद स्मृति प्रसंग, सम्पाo-शारदा पाठक आदि, प्रका0-डॉ0 कैलाश नारद, हुक्मचंद नारद मार्ग, जबलपुर (म0 प्र0), नवम्बर 1999
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राच्यश्रमण भारती द्वारा प्रकाशित एवं प्रचारित पुस्तकें 150/ 25/25/ 10/15/ 15/ 15/ 15/ 11 1. ती. महावीर और उनकी आ० परम्परा(4-भाग) 400/ 46. मादक पदार्थ व धूम्रपान 2. तिलोयपण्णति (तीनों भाग) 700/ 47. गर्भपात उचित या अनुचित : 3. डा. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य स्मृतिग्रंथ 48. धूम्रपान जहर ही जहर 4. प्र. आ- शान्तिसागर (छाणी) स्मृतिग्रंथ 100/ 49. शाकाहार सर्वोत्तम आहार 5.. आराधाना कथा प्रबन्ध 30/ 50. अहिंसा 6. महावीर रास 80/ 51. Vegetarian Nutrition 7. कुन्द कुन्द भारती सदु० 52. ज्योतिर्धरा 8. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 40/ 53. समाज निर्माण में महिलाओं का योगदान 9. मेरी जीवनगाथा (भाग दो) 100/ 54. भगवान राम 10. जैनधर्म 80/ 55. नानी-नानी कहो कहानी 11. जैनशासन 75/ 56. बैठो-बैठो सुनो कहानी 12. प्रमेय कमल मार्तण्ड परिशीलन 50/ 57. सफर की हम सफर 13. न्यायकुमुदचन्द्र परिशीलन 500/ 58. जग जा मेरे लाल 14. पट्खण्डागम लेखन-कथा 10/ 59. डुबकी लगाओ मोती पाओ 15. षट्खण्डागम की शास्त्रीय भूमिका 495/ 60. बुराई की विदाई 16. धर्मफल सिद्धान्त 30/ 61. लुढ़कन रपटन कम्पन का साथी 17. मानवता की धुरी 30/ 62. मन की आवाज 18. मध्यकालीन जैन सटक नाटक 24/ 63. झोपड़ी से महलों तक 19. मुक्ति पथ की ओर 15/ 64. अभिवंदना पुष्प 20. भा. वाङ्मय में पार्श्वनाथ विषयक साहित्य 10/ 65. अभय की साधना 21. सराक क्षेत्र 50/ 66. डॉ. हीरालाल जैन व्यक्तित्व एवं कृतित्व 22. सराक सर्वेक्षण 25/ 67. यह है जैन सिद्धान्त 23. सराकोत्थान प्रेरणा के स्वर 10/ 68. स्मर्णिका (डायरी) 24. सराक ज्ञानांजलि 10/ 69. ज्ञानसागर की कहानी चित्रों की जु० "चित्रकथा' 25. सराक प्रगति की राह पर 70. गुणों के आगर-ज्ञान के सागर 26. स्मारिका:सराक विद्वत्संगोष्ठी दिल्ली 71. डॉ. कामताप्रसाद व्यक्तित्व एवं कृतित्व 27. स्मारिका:आ.कुन्द कुन्द राष्ट्रीय संगोष्ठी 25/ 72. पं. जुगलकिशोर व्यक्तित्व एवं कृतित्व 28. स्मारिका:आचार्य समन्तभद्र संगोष्ठी मेरठ 25/ 73. पारिवारिक शांति और अनेकांत 29. जैन विज्ञान राष्ट्रीय संगोष्ठी सहारनपुर 25/ 74. ज्ञानायनी 30. जैन न्याय को आ. अकलंकदेव का अवदान 100/ 75. शारदा के सपूत 31. तीर्थकर पार्श्वनाथ 125/ 76. क्षणभंगुर जीवन 32. क्षुल्लक वर्धमान सागर जीवन परिचय 10/ 77. ज्ञान दर्पण (भाग-1 एवं 2) 33. आ• शान्तिसागर (छाणी) जीवन परिचय 15/ 78. पुष्पान्जलि (प्र०पं० गुलाबचन्द 'पुष्प') 34. भव्य कल्याणक 79. युग युग में जैन धर्म 35. खबरों के बीच 25/ 80. प्राकृत एवं जैन धर्म समीक्षा 36. आशा के सुरः जीवन का संगीत 81. सिद्धान्तसारसंग्रहः 37. उगता सूरज 10/ 82. अनमोल प्रवचन 38. जिन खोजा तिन पाइयां 83. मथुरा का जैन सांस्कृतिक पुरा-वैभव 39. ज्वलंत प्रश्न शीतल समाधान 10/ 84. आचार्य सुर्यसागरजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व 40. प्रवचन पढ़ो तनाव भगाओ 15/ 85. पंचकल्याणक बिहारी कालोनी (शाहदरा) 41. शाकाहार एक जीवन पद्धति 3/ 86. पंचकल्याणक दर्पण. सूर्य नगर (गाजियाबाद) 42. शाकाहार एवम् विश्व शान्ति 87. ज्ञान गंगा वर्षायोग-2001 मेरठ 43. विश्व शान्ति एवम् अहिंसा प्रशिक्षण 80/ 88. छहढाला 44. शाकाहार विजय 89. स्वतंत्रता संग्राम में जैन 45. शाकाहार या मांसाहार : फैसला आपका 5/ प्राच्य श्रमण भारती 12/ए-प्रेमपुरी, निकट जैन मन्दिर, मुजफ्फरनगर -251 001(उ.प्र.) फोनः (0131) 2450228, 2408901 15/15/15/15/150/15/25/10/85/25/100/ 60/200/ S/ 25/ 60/200/ 15/ 30/20/10/301/ 60/100/200/50/ 20/ 15/ 200/ 10/सदु० सदु० सदु० 25/ सदु० 15/ 200/ For Private And Personal Use Only