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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड जी साहित्याचार्य के चचेरे भाई हैं। आपके पिता पारगुवां से आकर सागर में बस गये, अतः आपकी शिक्षा सागर में ही हुई । उन दिनों देश में स्वतंत्रता प्राप्ति की लहर जोरों से चल रही थी 1942 के आन्दोलन में आप पढ़ाई की चिन्ता छोड़ 'भारत माता' को मुक्त कराने के लिए कूद पड़े। भारत सुरक्षा कानून की धारा 38 / 10 के अन्तर्गत आपको 10/9/1942 को छह माह की सजा हुई। 9 अगस्त को गांधी जी के द्वारा " करो या मरो" का संदेश देने के बाद जब सारे देश में दुश्मनों को खदेड़ने की तैयारी हो रही थी तब सागर कैसे शांत रहता, सागर में भी तूफान उठ चुका था, जगह-जगह छोटे-बड़े जिले के सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारियाँ शुरू हो चुकी थीं। तभी कांग्रेस का सन्देश घर-घर पहुँचाने के लिये एक गुप्त संदेश प्रचारित करने की योजना बनी और वह संदेश बुलेटिन के रूप में प्रचारित करना तय हुआ । श्री जैन ने एक दिन स्वतंत्रता सम्बन्धी पर्चे बांटना शुरू किये, तभी आप पकड़े गये । अदालत में मुकदमा चला जहाँ आपने अदालत को भी अपने साथ आकर देश सेवा में कुछ करने के लिए कहा। 6 माह की सजा देकर इन्हें जेल भेज दिया गया। जेल में सरकारी कर्मचारियों को परेशान करना आपकी आदत बन गई और बड़ी निर्भीकता से जेल में संघर्षरत रहे । उस समय कलेक्टर एस0 एन0 मेहता जी थे, वह उदार थे, उनके कारण जेल अधिकारी सख्ती नहीं कर पाये परन्तु इस भारतीय कलेक्टर को ब्रिटिश सरकार ने सागर से हटा दिया। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 181 श्री मेहता के हटते ही जिलाधीश श्री कौल साहब पधारे उन्होंने पहले ही दिन जेल में रहकर खादी के वस्त्र पहनना अपराध बतलाकर कपड़े जब्त करवा लिये व जेल की ड्रेस दी। श्री जैन अपने 14 साथियों को मिली हुई ड्रेस कलेक्टर कौल के सामने फेंककर नग्न ही खड़े रहे; उसके बाद खादी के स्थान पर बोरों की ड्रेसें सिलवाकर दी गईं तीन दिन नग्न रहकर चौथे दिन जब बोरों की ड्रेसें मिलीं तो प्रतिशोध की भावना प्रबल हुई और सबने मिलकर निश्चय किया कि आज जब कलेक्टर साहब आयें तो यह ड्रेसें एक साथ जलाकर उनके ऊपर फेंक दी जावें। जेल में एक अपराधी कैदी ताम्रकार बन्धु थे उनसे जेल के ही स्टाक से मिट्टी का तेल प्राप्त कर लिया गया और ड्रेसों पर डालकर कैदियों की परेड में ड्रेसें सामने रखकर नग्न ही बैठे रहे जैसे ही कौल साहब आये सभी साथियों ने ड्रेसों में आग लगा दी। परिणाम यह हुआ कि बालक दयालचन्द को गुनाह खाना में रखने का आदेश दे दिया गया। जब गुनाहखाने में वह जाने लगा तो साथी मित्र प्रभातचन्द पेन्टर ने जेलर से विरोध किया और वह जेलर पर बरस पड़े, परिणाम यह हुआ कि उन्हें भी इनके साथ ही गुनाहखाना भेज दिया गया। रात को वह दोनों गुनाहखाने में अपने ऊँचे स्वर में गाते अय मादरे हिन्द गमगीन न हो, अच्छे दिन आने वाले हैं। आजादी का पैगाम तुम्हें हम जल्द सुनाने वाले हैं ॥ देश की आजादी के बाद आप सदैव कांग्रेसी रहे । संगठन के चुनावों में सदैव जीतते रहे लगभग 30 वर्ष तक जिला कांग्रेस कमेटी में रहे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी होने के कारण म0प्र0 शासन ने 15-2-1964 को 15 एकड़ भूमि आपको प्रदान की। परन्तु आपने वह भूमि गरीबों को वितरित करने हेतु राज्य शासन को ही वापिस कर दी। आपकी For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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