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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 306 स्वतंत्रता संग्राम में जैन बड़े स्नेह से मुझे पास बिठाया और बोले मुझे तुम्हारी केन्द्रीय शासन व राज्य शासन ने स्वतंत्रता सेनानियों इस लगन को देखकर बड़ी खुशी होती है और को 'राजनीतिक पीड़ित' की संज्ञा दी थी। तुम्हारे ऊपर दया भी आती है, मेरा मन्तव्य पूछा, मैंने एक प्रस्ताव प्रांतीय सम्मेलन में रखा किदिल्ली में किसके यहां रुकते हो? मैंने कहा धर्मशाला 'हम लोग देश-सेवक हैं और आजादी की लडाई के बदलते रहना, हाथ से स्टोव पर भोजन बनाना, पैदल सेनानी हैं अत: हम 'राजनीतिक पीड़ित' नहीं 'स्वतंत्रता सांसदों के बंगलों पर अपना निवेदन करना आदि। संग्राम सेनानी' हैं। हम POLITICAL SUFFERER सभी बातें सुनकर वे द्रवित हो उठे और उन्होंने कहा नहीं हम FREEDOM FIGHTER हैं, अत: शासन 'बेटे तुम्हारा प्रस्ताव पार्लियामेन्ट में मैं रखूगां अगले अब हमारे लिये इसी नाम का उपयोग करे।' परन्तु सत्र में आना। अब तुम निराश मत हो।' अगला सत्र 1 वर्ष तक शासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी। शुरू होते ही मैं दिल्ली गया शिन्नन दादा से मिला तो अत: मैंने प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू को पत्र उन्होंने कहा -'तुम्हारा प्रस्ताव मैंने बनाकर दे दिया लिखा कि यदि 2 माह के भीतर हमारे नाम का है वह पटल पर आ रहा है।' उपयोग नहीं सुधारा गया तो हम देश भर में केन्द्रीय प्रस्ताव निर्धारित तिथि में रखा गया ज्यों ही व राज्य के मंत्रियों, सांसदों और विधायकों का प्रस्ताव पटल पर रखा गया देश के सभी पार्टियों के स्वागत बड़े-बड़े साइन बोर्डो से करेंगे, जिसमें लिखा सांसदों ने अपनी मेजों पर हाथ थपथपाकर उसका रहेगा --WELCOME POLITICAL GAINER स्वागत किया ऐसा लगा कि सारा देश इस प्रस्ताव मेरे इस पत्र से प्रधानमंत्री के मंत्रालय में पर एकमत है। इस विषय पर प्रायः सभी पार्टियों के सनसनी फैल गयी। पं0 जवाहरलाल जी की जानकारी सदस्यों ने समर्थन में अपने विचार प्रकट किये, में यह बात लाई गयी तो उन्होंने तत्काल यह नाम शासन पर रोष भी व्यक्त किया तथा समर्थन में परिवर्तित करने का आदेश दिया। राज्य सरकारों को अच्छी तकरीरें दी, उस समय की वार्ता ऐतिहासिक भी आदेश प्रसारित कर दिये गये। थी। किन्तु इस विषय का समय हो जाने पर विषय अब मैं 80 वर्ष में पहुंच चुका हूँ और एक अगले सत्र के लिये चला गया। काम हाथ में लिया है। उसे पूरा करने में जुटा हूँ वह सत्र के पूर्व ही प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी है 'राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में मध्यप्रदेश जैन समाज ने 15 अगस्त 1972 को लालकिले में प्रदेशों से का योगदान ।' मुझे आशा है कि वीर प्रभु की कृपा सीमित संख्या में विशिष्ट सेनानियों को आमंत्रित कर से उसे शीघ्र ही पूर्ण कर संकगा।" श्री जैन का 27 ताम्रपत्र से सम्मानित करने, 200/- माहवार पेंशन नवंबर 199) को देहवसान हो गया। देने तथा देश भर में ब्लाक स्तर पर शिलालेख आ0-- (1) मा0 प्र() स्व) सै), भाग 1, १४-95 (2) लगवाने का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। मध्यप्रदेश के सा() 19 जून 1994 (3) पा) जै।) ३), अनेक पृष्ट 41 सेनानियों को आमंत्रित किया गया, जिसका श्री रतनचंद जैन 'चंदेरा' नेतृत्व मुझे सौंपा गया। श्री रतनचंद जैन, पुत्र- श्री बुद्धलाल जैन का जन्म अपनी छत्तीस वर्षों की सेनानियों की सेवा के 16-5-1924 को तत्कालीन ओरछा राज्य (वर्तमान दौरान अनेक रोचक और रोमांचक प्रंसग हैं पर एक टीकमगढ़ जिला) में ग्राम-चन्देरा, तहसील-जतारा में ही का उल्लेख यहां कर देना पर्याप्त समझता हूँ। हुआ। आपने 1946 में चंदेरा में हुए आंदोलन में भाग For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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