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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 402 स्वतंत्रता संग्राम में जैन इस प्रकार काम करके लौटते और दूसरे दिन समाचार पत्र में पढ़ते कि अमुक अमुक दुर्घटना? तब मन ही मन प्रसन्न होते। यह क्रम भी तीन चार दिन ही चला। इधर पुलिस द्वारा धरपकड़ जोरों से हो रही थी। चुन-चुन कर प्रमुख लोग पकड़ लिये गये। हमारा विद्यालय भी अब खुफिया पुलिस के कड़े पहरे में था। जरा से संदेह में, जेल के द्वार स्वागत को प्रस्तुत थे। मुझे जहाँ तक याद है, सबसे पहिले आपत्तिजनक परचे बितरित करने के अभियोग में भाई शीतल प्रसाद पकड़े गये। आप एम. ए. और दर्शनाचार्य के छात्र थे। आपको दो साल की सजा हुई। जेल जीवन में अपने स्वाभिमान के कारण आपको सबसे अधिक कड़ी यातनायें सहनी पड़ी। इसी कारण आपको जिला जेल से सेन्ट्रल भेज दिया गया। वहाँ इन्हें कई बार 'तनहाई' में रखा गया। इन्होंने 'सी' क्लास में ही रहना पसन्द किया। पर जब आपको दांतों का रोग अधिक उभर आया तो 'बी' क्लास में चले गये। जेल के सींकचों से जब आप बाहर आये तो टूटा हुआ स्वास्थ्य लेकर। तब से फिर आपका पढ़ना भी नहीं हो सका। उनके बाद सर्वश्री भाई घनश्यामदास, रतन चंद पहाड़ी, धन्यकुमार, हरीन्द्रभूषण, नाभिनंदन, दयाचंद, सुगमचंद आदि की गिरफ्तारियाँ हुईं। इनमें रतनचंद और सुगमचंद जी जिला जेल में सबसे छोटी उम्र के थे। "ठोस कार्य" की दृष्टि से भाई धन्यकुमार जी का नाम भी अधिक प्रशंसनीय रहा। दयाचंद जी टीकमगढ़ वाले बी क्लास में रहे, उन्हें अमर शहीद होने का भी सौभाग्य अपनी जीवितावस्था में ही मिल गया। एक दिन आप जब नहीं आये, तो यह खबर उड़ गई कि आप गोली के शिकार हो गये हैं। हिन्दू विश्व विद्यालय में शोक प्रस्ताव भी हो गया। पर दूसरे दिन आप सकुशल हम लोगों के बीच आ गये। __गिरफ्तारियों और सरकार के दमन कार्यों से, यद्यपि बाहर प्रदर्शन बंद हो गये, पर गुप्त आन्दोलन चलते रहे। 7 फरवरी 1943 को अचानक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विस्फोट हुआ। उसी सिलसिले में कप्तान बालचंद जी ऐरैस्ट कर लिये गये। इस आंदोलन में भाई बालचंदजी ने सबसे अधिक काम किया और उन्हें यातनाएँ भी खब सहनी पडीं। उन्हें अमानषिक उपायों से इस पडयंत्र में भाग लेने वालों के नाम बताने के लिये मजबूर किया गया। इस प्रसंग में पुलिस को हरीन्द्र जी के नाम का पता चला। आप कछ ही दिन पहिले जेल से छूटे थे। निदान उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़कर रातों-रात फरार होना पड़ा। भाई बालचंदजी ने कष्टों के बावजूद अधिक वीरता दिखाई। जेल जीवन की बीमारियां भी आपको प्रसाद में मिलीं। कहा जाता है, उनका संबंध देश के बड़े क्रांतिकारियों से रहा। यूनीवर्सिटी बम्बकाण्ड के मामले में आपको एक वर्ष बाद फिर ऐरैस्ट किया गया। पुलिस का यह भी अभियोग था कि उनके पास दर्जनों पिस्तोलें हैं। पूरे दो वर्ष की जेल-यातना भोग चुकने पर कांग्रेस मिनिस्ट्री होते ही, आप मुक्त कर दिये गये। __ सबसे संगीन घटना वह है, जब काशी के सी.आई.डी. स्टाफ ने एक दिन "खतरनाक हथियार" छिपाने के संदेह में विद्यालय की तलाशी ली। पर उसे कोई चीज नहीं मिली। उसे यह भी पता चला कि हथियार गंगा में फेंक दिये गये हैं। फलत: मल्लाह बुलाये गये और चढ़ी हुई “गंगा" में भी खोज हुई। पर निष्फल ! पर छेदीलालजी के मंदिर की तलाशी होने पर एक भरी हई पिस्तौल और कुछ तोडफोड का सामान मिल गया। सामान जब्त कर, तीन छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया। ये थे- गुलाबचंद जी एम० ए०, अमृतलाल जी दर्शनाचार्य और घनश्यामदास जी। 18 दिन को हवालात के बाद, सब लोग जमानत पर छोड़ For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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