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प्रथम खण्ड
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'नेताजी' उपनाम से पुकारना प्रारम्भ कर दिया। 1944 में नेताजी अंडमान निकोबार गये। उन्होंने वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया। आजाद हिन्द फौज के कुछ दस्ते मणिपुर (इम्फाल) तक पहुंचे।
___ 'आजाद हिन्द फौज' की सफलता आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि अणुबमों के आक्रमण से जापान परास्त हो गया था और फौज को रसद मिलना बन्द हो गया था। साथ ही फौज के सैनिक भारी संख्या में या तो मार दिये गये या गिरफ्तार कर लिये गये। 'आजाद हिन्द फौज' की संरचना ने ब्रिटिश सरकार पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव डाला कि भारतीय सिपाहियों के शासन से विमुख हो जाने पर उसकी हालत दयनीय बन सकती है।
'आजाद हिन्द फौज' के गिरफ्तार अफसरों शाह नबाज खान पी0के0सहगल जी0एस0 ढिल्लो आदि पर लाल किले में मुकदमा चलाया गया। शासन के इस कार्य का देशव्यापी विरोध हुआ। फरवरी 1946 में इण्डियन नेवी के नाविकों ने अनेक स्थानों पर विद्रोह किया। नेवी कर्मचारियों ने भी उनका साथ दिया। नाविकों, उनके समर्थकों एवं पुलिस के बीच संघर्ष में बम्बई में लगभग 300 व्यक्ति मारे गये। स्थिति अत्यधिक विस्फोटक हो जाती यदि सरदार पटेल ने मध्यस्थता कर मामले को नहीं संभाला होता, क्योंकि युद्ध के विद्रोही नाविक, अपनी भारी दूरी तक मार करने वाली तोपों का उपयोग करने को तैयार थे और बम्बई शहर का बहुत बड़ा हिस्सा उनकी मार में था।
निरन्तर आन्दोलन एवं उसे प्राप्त भारी समर्थन के कारण ब्रिटिश गुप्तचर विभाग इस नतीजे पर पहुंचा कि यदि उचित समाधान शीघ्र नहीं हुआ तो यह आन्दोलन हिंसक दौर में पहुंच सकता है और उस स्थिति में गोरी चमड़ी ही खतरे में पड़ सकती है। गांधी जी के बीमार होने से उन्हें आगाखां महल, जिसमें वह कैद थे एवं जहां 22 फरवरी 1944 को गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा का देहान्त हो गया था, से छोड़ दिया गया। यह गांधी जी की अन्तिम जेल-यात्रा थी। उन्होंने अपने जीवन के लगभग 2388 दिन जेल में बिताए थे।
1945 में लार्ड वेवेल, जो उस समय भारत के गवर्नर जनरल थे, ने यह घोषणा की कि निकट भविष्य में भारत को 'स्वायत्त शासन' प्रदान करने के लिये शिमला में सम्बन्धित पक्षों का एक सम्मेलन बुलाया जायेगा। उस समय सभी नेता जेल में थे। सभी को छोड़ दिया गया। शिमला सम्मेलन विफल रहा। जुलाई 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हुए, जिसमें सत्ता परिवर्तन हो गया। लेवर सरकार सत्ता में आई, उसने भारत की समस्या को गम्भीरता से हल करने पर विचार किया। भारत--सचिव ने घोषणा की 'भारत की स्वाधीनता पर विचार करने के लिए एक संसदीय आयोग शीघ्र ही भारत की यात्रा करेगा।' यह संसदीय प्रतिनिधि मण्डल बाद में 'केबीनेट मिशन' के रूप में जाना गया। मुस्लिम लीग अलग राज्य की मांग पर लगातार जोर दे रही थी। प्रतिनिधि मण्डल भारत आया, उसने अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को अलग राज्य देने की मांग मंजूर कर ली। अत: मुस्लिम लीग ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया किन्तु कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।
'केबीनेट मिशन' की योजना के अनुसार जब कांग्रेस, लीग एवं सरकार में संविधान की बात चल रही थी, तब अचानक लीग ने अपनी रणनीति बदल दी। वह 'केबिनेट मिशन योजना' की स्वीकृति से मुकर गई और 10 आस्त 1947 को 'सीधी कार्यवाही' दिवस मनाने की घोषणा कर दी। यह साम्प्रदायिक दंगों का निमंत्रण था। इसके साथ ही पूरे देश में दंगों का दौर प्रारम्भ हो गया।
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