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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 370 स्वतंत्रता संग्राम में जैन का विद्यार्थी था। मेरे पिता जी राष्ट्रीय भावनाओं में मुल्ला की बेटी, एक पुलिस अफसर की बेटी, पगे थे। मेरे घर पर राष्ट्रीय नेताओं, जैसे महात्मा इलाहाबाद की त्रिवेणी में राष्ट्रीयता को यह त्रिवेणी। गांधी, सरोजनी नायडू, अली बन्धु आदि नेताओं के तीनों की साड़ी केसरिया और तीनों के हाथ में तिरंगे अनेक चित्र बने थे। एक चित्र था जिसमें सरोजनी झन्डे। लगता था छात्रों के जुलूस का नेतृत्व करती नायडू एक जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं। दूसरा भारतमाता की तीन पुत्रियाँ हों। जोश से उफनता चित्र था जिसमें नीचे लिखा था, "अली बन्धु जेल वातावरण। में रेंटिया काते छ", जिसे मैं बाल-सुलभ दृष्टि से हमारी टुकडी को कचहरी पर धावा बोलना संशोधन कर पढ़ा करता था, कि "अलीबन्धु जेल में था. लेकिन वहाँ पहुँच कर एक अजीब दृश्य उपस्थित रोटियां काते छे।" मन ही मन कहता था कि यह हो गया। एक ओर मजिस्ट्रेट डिक्सन, पुलिस प्रैस वालों ने गलत छाप दिया है। रेटियाँ के स्थान पर सपरिन्टेन्डैन्ट आगा और लाल पगड़ीधारी पुलिस रोटियाँ छपना चाहिये था। हिंसक दृष्टि से देखती खड़ी थी। हम लोगों ने आगे विद्यार्थी जीवन में ही मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर बढ़ना चाहा। पुलिस अफसर ने जुलूस को वापिस प्रसाद, सोहनलाल द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी, जाने की आज्ञा दी, लेकिन उस पर किसी ने ध्यान शरद्चन्द्र चटर्जी, महादेवी वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा नहीं दिया। उसने फिर से कहा “ दो मिनट का वक्त आदि अनेक साहित्यकारों के साहित्य से भली भाँति है सब लोग वापिस चले जाओ, वरना गोलीबारी की परिचित हो गया था। उन्हीं दिनों मैक्सिम गोर्की के जाएगी।" इसका भी हम लोगों पर कोई प्रभाव न उपन्यास "माँ" ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया और पडा। डिक्सन क्रोध से लाल हो गया। उसने लाठी उस उपन्यास ने मुझमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट चार्ज की आज्ञा दी और घोड़े दौड़ाये। पर जुलूस कर भर दी। सन 1941 में महाराजा इन्टर कालेज से 9वीं। पीछे न हटा। इस पर मजिस्ट्रेट डिक्सन ने कड़ककर कक्षा उत्तीर्ण कर एंग्लो-बंगाली इंटर कालेज, इलाहाबाद कहा "फायर" साथ धड़धड़ाया बन्दूकों ने आसमान। में कक्षा 10 में प्रवेश लिया। सन् 1942 में जब मैं में लड़कियां घायल पर अकम्प, अडिग साहस। फिर उक्त कालज का विद्यार्थी था. तभी महात्मा गांधी ने गालिया आर लड़कियां घायल होकर जमीन पर। भारत छोड़ो आन्दालन का आह्वान किया जिसमें वातावरण सन्नाटे में। जुलूसशान्ति। चारों ओर से "करो या मरो" का नारा बुलन्द किया था। लेटो-लेटा की आवाजें आने लगीं। दोनों हाथों से || अगस्त को विश्वविद्यालय परिसर में कपड़ा हटा, छाती नंगी और यह ललकार- "लड़कियों विद्यार्थियों ने एक बड़ी सभा का आयोजन किया पर गोलियाँ दागते तुम्हें शर्म नहीं आती ? वे अकेली जिसमें सभी शिक्षण संस्थाओं में हडताल किये जाने नहीं, हम भी उनके साथ हैं। मुझे गोली मारो।" का निर्णय लिया गया। 12 अगस्त को विश्वविद्यालय डिक्सन ने कहा-"मार दो, अकेला है।" वह बोलेएवं सभी शिक्षण संस्थाओं के छात्रों का एक जलस “वह अकेला नहीं है।" इतना कहकर उन्होंने अपने यूनीवर्सिटी पर एकत्रित हुआ। जुलूस को दो हिस्सों हाथ में झन्डा लं लिया और उसी समय कलक्टर में जाना था। एक हिस्सा चौक में घण्टाघर की ओर चिल्लाया- "शूट हिम, मारो उसे" और उसी समय और दूसरा कचहरी की ओर। उस जुलूस में आगा ने उनके सीने पर गोली दाग दी। गोली सीने विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी, जस्टिस आनन्द नारायण के आर-पार हो गई। पद्मधर सिंह गिर पड़े। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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