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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 301 अपनी चिन्ता नहीं की। नमक सत्याग्रह में आपको के उप-मंत्री, उपभोक्ता समिति के प्रधान तथा मंत्री, कारावास का दण्ड हुआ और कारावास काल मेरठ देवनागरी कॉलेज की प्रबंधकारिणी के सदस्य, राष्ट्रीय जेल में ही बीता। इस काल में आपको स्वर्गीय मौलाना कांग्रेस की प्रबंधकारिणी के सदस्य तथा मंत्री, अखिल आजाद, चौधरी चरणसिंह आदि मुख्य व्यक्तियों के साथ भारतीय हिन्दी सम्मेलन के मेरठ अधिवेशन के रहने का अवसर मिला। प्रो0 साहब का कहना था कि- स्वागत मंत्री आदि अनेक पदों पर रहे थे। 'इन छ: महीनों में जेल में जितना वह सीख पाये उतना नवम्बर 1946 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जीवन में सीखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।' मेरठ में हुआ था। उसकी स्वागत समिति में आप ___ एक वर्ष बाद गांधी इर्विन समझौता होने पर छपाई विभाग के मंत्री थे। उसी अवसर पर स्व0 आप एम0एससी0 का अध्ययन पूरा करने के लिए चन्द्रकुमार जैन शास्त्री तथा अन्य से मिलकर आपने पन: आगरा चले गये और वहाँ से 1932 में उपाधि मेरठ में जैन राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं के एक विशाल प्राप्त कर ली। एम0एससी) करते ही सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया था। अखिल भारत में श्री शान्ति स्वरूप भटनागर आपको लाहौर कांग्रेस में काम करने वाले जैनों का एक संगठन विश्व-विद्यालय में अनुसंधान के लिए ले गए। वहाँ बनाने की भी आपकी योजना थी परन्तु गढ़मुक्तेश्वर आपने अनुसंधान कार्य किया; परन्तु राष्ट्रीय कार्यों में में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने के कारण यह सम्मेलन भाग लेने के कारण लाहौर की पुलिस पीछे पड़ी नहीं हो पाया। उसी समय दंगे में एक गुण्डे ने आप रहती थी। अत: प्रो0 भटनागर ने आपको भौतिकी में पर प्रहार किया, प्रहार बहुत गम्भीर था; परन्तु अपनी अनुसंधान करने के लिए सर सी0वी0 रमन के पास वीरता के कारण आप मृत्यु से बच गए। बंगलौर भेज दिया। 1961 में आप मेरठ कॉलेज छोड़कर विदिशा बंगलौर में आप अधिक दिन नहीं रह सके। (म0प्र) ) में सेठ शिताबराय लक्ष्मी चन्द्र जैन स्नातकोत्तर 1934 में राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर में प्रवक्ता पद महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर चले गए, और वहाँ पर कार्य करने के लिए आ गए। कोल्हापर में आठ जून 1908 (क कार्य किया। बाद में आप मेरठ में वप तक रहे। यह काल अधिकतर पढने-पढाने में रहन लगा 1971 म आप पारषद् पराक्षा बाड क व्यतीत हुआ। बचा हुआ समय हिन्दी प्रचार में मंत्री रहे थे। 7 सितम्बर 1980 को मेरठ में आपका समस्त महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा कोंकण में लगता था। निधन हो गया। कोल्हापुर में आपको सुप्रसिद्ध जैन साहित्यकार प्रो0 आ)- (1) स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ, पृष्ठ-305 एएन0 उपाध्ये के सम्पर्क से बहुत लाभ हुआ (2) सन्मति संदेश, जून 197। (3) पुत्री द्वारा प्रेषित तिथियाँ वयोंकि वे भी उसी कॉलेज में कार्य करते थे। श्री रतनचंद काष्ठिया 1942 में आप कोल्हापुर छोड़कर मेरठ कॉलेज, विस्फोटक बम बनाने के लिए बाजार में मेरठ में आ गए और वहाँ 1961 तक रहे। आप कॉलेज अनुपलब्ध रसायनों को महाराजा कॉलेज की प्रयोगशाला के प्रमुख कार्यकर्ताओं में थे। वहाँ यूनियन के चेयरमैन से पार करने वाले श्री रतनचंद काष्ठिया का जन्म तथा प्रोक्टर इत्यादि पदों पर कार्यरत रहे। 12 दिसम्बर 1922 को जयपुर (राज)) में हुआ। कॉलेज के अलावा आप शहर में प्रमुख आप प्रजामंडल से जुड़े रहे। 1942 के भारत छोड़ो सार्वजनिक कार्यकर्ता माने जाते थे। आप जैन बोर्डिग आन्दोलन में आजाद मोर्चे की सभाओं में भाषण देने For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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