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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड ___ 59 अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। " झण्डा ऊँचा रहे हमारा।।' श्री श्यामलाल पार्षद द्वारा रचित यह गीत हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रेरणा गीत बना था। इस गीत को गाते हुए न जाने कितने नौजवान आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े थे। अपने झण्डे को ऊँचा रखने के लिए ही तो हमारे शहीदों ने अपनी कुर्बानियाँ दी थीं। तिरंगा आज भी हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है। यही तिरंगा राष्ट्र- ध्वज हमारी कीर्ति को दिग्-दिगन्त व्यापिनी बनाता हुआ आज भी शान से लहरा रहा है। 'इसकी शान न जाने पाये। चाहे जान भले ही जाये।।' यह मूल-मंत्र आज भी हमें राष्ट्र-ध्वज पर मर-मिटने की प्रेरणा देता है। इसी राष्ट्र-ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इसकी शान को बनाये रखा था। दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य का एक छोटा सा ग्राम है 'कडवी शिवापूर'। मात्र 1500 लोगों की आबादी वाला यह ग्राम बेलगाँव जिले की मुरगुड तहसील में आता है। 'हमारे स्वतन्त्रता-आन्दोलन के नायक केवल शहरी ही नहीं रहे, निपट ग्रामीण क्षेत्र के शहीदों / क्रान्तिकारियों । स्वतन्त्रता सेनानियों ने भी इस आजादी-लता को अपने रक्त से सींचा है' इस उक्ति को चरितार्थ करने वाले साताप्पा का जन्म इसी कडवी शिवापूर में एक सामान्य जैन किसान परिवार में 1914 में हुआ। उनके पिता का नाम भरमाप्पा था। साताप्पा उन दिनों मात्र 16 वर्ष का था, तभी 1930 का असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ। इस आन्दोलन में जगह-जगह स्वयं सेवक संघ बनाये जा रहे थे। बालक साताप्पा ने भी अपना नाम मुरगुड के एक दल में लिखा दिया और यहीं से शुरू हुई उसकी क्रान्तिकारी यात्रा, जिसने 1942 में देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कराकर ही विराम लिया। राष्ट्रीय जन-जागरण के लिए साताप्पा निरन्तर गतिशील रहे। पास-पड़ोस के ग्रामों में जन-जागरण का सन्देश पहुँचाने का काम उन्हें सदैव सौंपा जाता रहा। धीरे-धीरे अपने गाँव कडवी शिवापूर के लोगों को तैयार कर उन्होंने एक 'स्वयं सेवक पंथ' बना लिया। यह पंथ रोज कोई न कोई कार्यक्रम करता : जागृत रहे। रोज रात्रि में बैठकर कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जाती थी। सरकारी अधिकारियों को इसकी खबर लगना स्वाभाविक था। साताप्पा को अनेक बार अनेक तरह की धमकियां दी गईं, तरह-तरह से डराया गया, पर वे रुके नहीं। 1940 में वे दो बार जेल में बन्द कर दिये गये, पर इससे भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई, अपितु दिन-प्रतिदिन उनकी देश-प्रेम की भावना उग्र और दृढ़ होती गई। सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 लिखता है -'सुमारे अट्ठाबीस वर्षाचा भरदार छातीचा ऊँचा पुरा उत्साही नि पाणीदार साताप्पा कडवी शिवापूरचंच नव्हे तर मुरगुड महालाच भूषण व स्फूर्ति-स्थान बनला होता।' अर्थात् करीब 28 साल का चौड़े सीने का ऊँचा-पूरा उत्साही व पानीदार (तेज या उग्र स्वभावी) साताप्पा केवल कडवी शिवापूर का ही नहीं मुरगुड का भी भूषण था। ___ अगस्त 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में 9 अगस्त को बापू ने 'करो या मरो' की घोषणा की और वे बन्दी बना लिये गये, साथ ही सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता भी बन्दी बना लिये गये, तो जनता अपने विवेक For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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