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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 60 स्वतंत्रता संग्राम में जैन के अनुसार आन्दोलन चलाने लगी। जगह-जगह जुलूस, गिरफ्तारियाँ, धरना आम बात हो गई। इस आन्दोलन की यह विशेषता थी कि यह छोटे से छोटे गाँवों तक में फैल गया था। तब कडवी शिवापूर इससे अछूता कैसे रहता। 12 अगस्त 1942 को गाँव के लोगों ने साताप्पा के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला। निपट देहाती भी अब 'स्वराज्य' जैसे सम्मानपर्ण शब्दों का अर्थ जानने लगे थे. वे जानते थे कि स्वराज्य का अर्थ है. ग्राम की स्वतन्त्रता. प्रदेश की स्वतन्त्रता, देश की स्वतन्त्रता और स्वयं हमारी स्वतन्त्रता। जुलूस ने स्थानीय ग्राम-पंचायत (मराठी भाषा में चावडी) पर पहुँच कर एक सभा का रूप ले लिया, सभा के अन्त में 'ग्राम-स्वातन्त्र्य' की घोषणा की गई और ग्राम पंचायत के ऊपर तिरंगा धवज फहरा दिया गया। ग्राम-पंचायत में जितने भी दस्तावेज थे, उन पर कब्जा कर लिया गया और वहाँ नियुक्त सरकारी कारिन्दों को पंचायत छोड़ने पर विवश कर दिया गया। बेचारे कर्मचारी जान बचाकर भागे। सरकारी कर्मचारियों ने मुरगुड जाकर घटना की सारी जानकारी पुलिस-प्रशासन को दी। 15 अगस्त 1942 को पुलिस-प्रशासन ने लगभग 50 बन्दूकधारी और 10-15 लाठीधारी पुलिसवालों का दल बड़े सबेरे शिवापूर भेजा। इधर 50-60 युवकों की टोली सबेरे ही गाँव में साताप्पा के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकाल रही थी। गीत गाते और नारे लगाते युवकों का दल शान्तिपूर्वक ग्राम-पंचायत की ओर चला जा रहा था। दल के आगे साताप्पा राष्ट्रीय ध्वज लेकर चल रहे थे। बन्दूकधारी पुलिस दल ने युवकों को घेर लिया। युवक दल ने अपने ऊपर संकट आया जानकर जोर से जयकारा लगाया – 'भारत माता की जय'। युवक जान रहे थे कि साक्षात् मृत्यु उनके सामने खड़ी है, फिर भी उनका उत्साह ठण्डा नहीं पड़ा, अपितु हृदय आनन्द से भर गया। शिवापूर की जनता इन युवकों का साथ दे रही थी। पाषाण हृदय सशस्त्र पुलिस-दानवों ने स्वातन्त्र्योत्सुक नि:शस्त्र मानवों पर क्रूर हास्य किया। बड़ा ही हृदय-द्रावक दृश्य था वह। एक पुलिस अधिकारी गरजा-- 'तुम्हारा झण्डा नीचे करो नहीं तो नाहक गोली खाओगे' पर साताप्पा झुके नहीं, उन्होंने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा'चाहे जान भले ही चली जावे, झण्डा नीचा नहीं करेंगे' अंग्रेज अधिकारी इस उत्तर से और अधिक चिढ़ गया। उसने मजिस्ट्रेट का हुक्म दिखाया और गरज कर कहा 'फिर कहता हूँ, नाहक मारे जाओगे, झण्डा नीचा करो' वीर साताप्पा ने कड़ककर प्रत्युत्तर दिया'प्राण गेलातरी बेहेत्तर, पण झेंडा खाली घेणार नाही, घेऊँ देणार नाही' इधर सारे युवक गर्जना करने लगे'तिरंगी झेंड्याचा विजय असो। स्वतंत्र भारताचा विजय असो।।' यह सुनकर अफसर आग-बबूला हो गया। साताप्पा ने ध्वज को अपने से अलग नहीं किया, न ही नीचे की ओर झुकाया। बौखला कर अंग्रेज अफसर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। धांय.....धाय....दो तीन गोलियां For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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