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प्रथम खण्ड
27 क्रांतिकारियों के संगठन भारत के बाहर लंदन, पेरिस, बर्लिन, उत्तरी अमेरिका में भी सक्रिय रहे थे। उन्होंने क्रांतिकारी विचारों को प्रचारित करने के लिए पत्र-पत्रिकाएं निकालीं एवं क्रांतिकारियों से सम्पर्क किया। इसमें संलग्न रहे। कुछ प्रमुख क्रांतिकारी हैं- श्याम जी वर्मा, मैडम कामा, मदाम भिकाजी बरकत उल्लाह, बी0बी0एस0 आयंगार, लाला हरदयाल, रास बिहारी बोस, सोहनसिंह भकना, विनायक दामोदर सावरकर, उनैतुल्ला सिंधी एवं मानवेन्द्र नाथ राय एवं मदन लाल धींगड़ा आदि।
1907 में 1857 के संघर्ष का 50वाँ वर्ष पड़ता था। केन्द्रीय शासन इस बारे में आवश्यकता से अधिक सावधान रहा था। उसे भय था कि इस समय देश में पुनः देशव्यापी दूसरा व्यापक विद्रोह भड़क सकता है। शासन कांग्रेस के 'नरम विचार धारा' के लोगों से आश्वस्त था, किन्तु गरम दल के सभी नेताओं को उनके कार्यक्षेत्र से अलग कर दिया गया। बाल गंगाधर तिलक एवं लाला लाजपतराय को गिरफ्तार कर बर्मा भेज दिया गया। विपिन चन्द्र पाल को भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इन सब के बाबजूद भी देश में अनेक जगह प्रदर्शन हुए, पुलिस को उन्हें शान्त करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा। तिन्नेवेली (तमिलनाडु) में एक सभा पर राजाज्ञा का विरोध करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई। चार लोग घटना स्थल पर ही शहीद हो गये।
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के दौरान क्रांतिकारी दलों ने सशस्त्र विद्रोह से ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए भारत में भारी मात्रा में चोरी छिपे हथियार लाने का प्रयत्न किया। बाधा जतीन, जो विदेशों से प्राप्त हथियारों से सत्ता को उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे, उन्हें मार दिया गया। इन सबकी भनक सरकार को पूर्व में ही लग गई थी। बहुत से पकड़े गये, अनेकों को आजीवन कारावास एवं अनेकों को फाँसी की सजा दी गई। जिन्हें फाँसी हुई, उनमें 19 वर्ष का करतार सिंह सरांगा भी था। काबुल में क्रांतिकारी दल ने स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार स्थापित की। इसके राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप सिंह एवं प्रधानमंत्री बरकत उल्लाह बने। यद्यपि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां किसी बड़ी सफलता को प्राप्त करने में असफल रहीं, किन्तु उनकी निर्भयता से भारत की जनता को बल मिला।
1914 में यूरोप के साम्राज्यवादी देशों के दो विरोधी गुटों के बीच शत्रुता के कारण प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ जो 1918 तक चला। ब्रिटेन ने इस युद्ध में भारतीय सिपाहियों एवं साधनों का पूरा उपयोग अपने हित में किया, यद्यपि भारत का कोई हित इससे संबंधित नहीं था।
सरकार ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया। उसका एक उद्देश्य हिन्दू और मुसलमानों में फूट डालना था। वह अपने इस उद्देश्य में सफल भी हुई, जिसका परिणाम था मुस्लिम लीग की स्थापना। इस संस्था का जन्म 1906 में मुसलमानों के एक सम्प्रदाय के प्रमुख आगा खां एवं ढाका के नबाब सलीमुल्ला के प्रयास से हुआ। इस संस्था को सदैव अंग्रेजों की शह मिलती रही। आगे चलकर यही भारत के बंटवारे का कारण बनी।
1917 में भारत मंत्री एडविन मान्टेग्यू ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत में 'उत्तरदायी सरकार' स्थापित करने के उद्देश्य से धीरे-धीरे 'स्वशासित संस्थाओं' की स्थापना की बात कही। इससे प्रभावित होकर भारतीय नेताओं ने ब्रिटेन के युद्ध-प्रयासों में मदद की। ब्रिटेन की यह घोषणा जल्दी ही झूठी साबित हो गई, जब 1918 में 'मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट' प्रकाशित हुई, जिसमें यह कहा गया कि भारतीय जनता उत्तरदायी शासन चलाने
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