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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड की इस पुस्तक में 70 शीर्षक हैं। जैनधर्म के प्रति उनकी गहन आस्था को लक्ष्य कर ही प्रसिद्ध पत्रकार श्री यशपाल जैन ने लिखा है 'सेठ जी में तड़प है कि जैन समाज ऊँचा उठे' (अभि) ग्र0), पृ0 62 ) सेठ जी की रचनाओं में 'जेल में मेरा जैनाभ्यास' के अतिरिक्त 1930 में लिखी 'सफल साधना' भी उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक राजनैतिक लेख भी लिखे हैं। 'नैतिक जीवन दर्पण' को सेठ जी की संक्षिप्त आत्मकथा कहा जा सकता है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भगवती देवी में वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक सद्गृहिणी में होना चाहिए। निर्भयता, तेजस्विता और राष्ट्रप्रेम उनमें कूट-कूट कर भरे थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी वे पीछे नहीं रहीं। इस सन्दर्भ में सेठ जी ने लिखा है 'मेरे जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि जब-जब मैं भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल गया तब मेरी धर्मपत्नी ने मेरी अनुपस्थिति में महिला आन्दोलन चलाकर देश सेवा में मुझे सहयोग दिया । ' 1930 में जब सेट जी सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये तब सदर में एक बड़ा जुलूस निकाला गया। श्रीमती भगवती देवी ने कोतवाली के सामने हँसते-हँसते फूलों की माला पहनाई और हर्ष के साथ विदाई दी। श्रीमती भगवती देवी का निधन 18 जून 1949 को हुआ पर उससे पूर्व ही सेठानी जी ने 1946 में ही अपनी चल-अचल सम्पत्ति का वसीयतनामा एक महिला शिक्षण संस्थान के लिए कर दिया था। 29 जनवरी 1949 को श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के कर-कमलों द्वारा 'भगवती देवी जैन शिक्षण संस्थान' का उद्घाटन हुआ। आज यह 'भगवती देवी जैन पोस्ट ग्रेजुएट कालेज' के नाम से आगरा वि० वि० का उत्कृष्ट महिला कालेज है। सेठानी जी की इच्छानुसार ही आपने 1952 में अपने भतीजे नरेन्द्र सिंह उर्फ मुन्ना बाबू को तत्कालीन गृहमंत्री माननीय गोविन्द 89 वल्लभ पन्त और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन की उपस्थिति में गोद लिया था। श्री मुन्ना बाबू इस समय उक्त कालेज के प्रबन्धक हैं। दि0 21/9/96 को अपने आगरा प्रवास के दौरान जब में मा0 रिखब चंद जैन (आगरा) के साथ श्री मुन्ना बाबू से मिलने गया तो यह देखकर दंग रह गया कि करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक होते हुए भी मुन्ना बाबू अपने हाथों से कालेज की बैन्चों की बैल्डिंग कर रहे थे। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठ जी की कुछ मौलिक विशेषतायें थीं. वे कभी कोई सार्वजनिक चुनाव नहीं हारे, सदैव शुद्ध खादी के वस्त्र धारण करते थे, आगरा में अनेक नेताओं की मूर्तियाँ उन्होंने स्थापित करवाईं। 1971 में इन्दिरा गांधी के समाजवाद के नारे पर उन्होंने 'सेठ' पदवी लिखना बन्द कर दिया था। 'नैतिक पतन' को देखकर वे सदैव चिन्तित रहा करते थे। पूज्य बापू और नेहरू जी से जब-तब उनका पत्राचार होता रहता था। बापू द्वारा 1935 सेठ जी को लिखा गया पत्र निम्न है राष्ट्रपिता म0 गांधी द्वारा सन् 1935 में लिखा वर्धा, 19-2-35 गया पत्र भाई अचलसिंह, समय आप एक एम0एल0 सी0 क्यों लिखते हैं? बहुत हि अनुचित लगता है। उत्तर लिखाते आपका खत मेरे सामने होने के कारण मेरी आँख छपी हुई चीज पर पड़ी, और यह देखा । इतने बड़े हर्फी में भी लेटरहेड नहीं छापे जाते । सुअर की बात पढ़कर मैं तो व्याकुल- चित्त बन गया हूँ। आपके खत को आज ही पहूँचा । उसका उत्तर ऐसे ही देता हूँ। क्या आपने यह दृश्य पहले हि देखा ? कितने हरिजन थे ? यह देखकर आपने कुछ किया ? यदि किया तो उन लोगों ने क्या उत्तर दिया यदि जिन्दा सुअर को आग में डालते थे तो For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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