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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AE नहीं हैं। प्रथम खण्ड 275 में संशोधन किया। यह सोचकर कि जब भारत स्वतंत्र प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी, साहित्यकार, पत्रकार, होगा तब इन कानूनों में क्या परिवर्तन किया जाएगा। जैन साहित्योद्धारक, प्रकाशक और श्री बनारसी दास हम लोग जेल के नियम नहीं मानते थे। इसलिए चतुर्वेदी के शब्दों में 'अखिल हमारी सारी सुविधाएं-पत्र लिखना, संबंधियों से मिलना भारत के चोटी के हिन्दी आदि बन्द कर दी गई थीं। मैंने कारावास में लगभग सेवक' महेन्द्र जी के नाम 100 पुस्तकें पढ़ी थीं। गुनहखाने में क्रांतिकारी सुरेन्द्र से आगरावासी अपरिचित नाथ सर्किल थे। उन्होंने मेरे पास पढ़ने के लिए एक पुस्तक भिजवाई थी जिसका नाम था 'दी वायेज आफ महेन्द्र जी का जन्म 19 कोमागाटा मारु'। उन्हीं दिनों मैंने मोपासा का कहानी L DER1 जनवरी 1900 को जारौली संग्रह पढ़ा था। जैन कट्टरता के खिलाफ बोलने से ग्राम में श्री भगवती प्रसाद जी के घर द्वितीय पुत्र के एक जैन कैदी ने मझ पर चाक से वार कर दिया था। रूप में हुआ। आपका लालन-पालन नाना के घर जब मेरी सजा की अवधि पूरी हो गई तब 22 आगरा में हुआ। हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अप्रैल सन् 1943 को मझे छोडा जाना था लेकिन छोडते आप स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गये। वक्त सुपरिटेंडेंट दाते ने पूछा कि क्या कैदी पिछली 1930 में आप 'सैनिक' के प्रकाशन के दौरान परेड में खड़ा हुआ था' जब उन्हें बताया गया कि प्रथम बार नजरबंद हुए और छ: माह की सजा सेन्टल नहीं खड़ा हुआ था तब उन्होंने नया वारंट मंगाने को जेल आगरा में काटी। ‘सैनिक' का प्रकाशन बंद होने कहा और प्रिजन्स एक्ट की दफा 52 के अन्तर्गत मुझे के बाद आपने 'सत्याग्रह समाचार' निकाला। जुलाई पुनः बंदी बना लिया गया। मैं जेल के बड़े चक्कर 1930 में महेन्द्र जी ने 'हिन्दुस्तान समाचार' पत्र से छोटे चक्कर में भेज दिया गया। इस समय मेरे कमरे प्रकाशित किया। जिसे अंग्रेजी सरकार ने 10 अंकों में जबलपुर के प्रसिद्ध पत्रकार हकमचंद नारद (जैन) के प्रकाशन के बाद ही बंद करा दिया। दिसम्बर 1930 थे। मेरे ऊपर मुकदमा चलने लगा। दो महीने तक आपके घर की 5 बार तलाशी ली गयी। पांचवीं विचाराधीन बंदी रहा। इस प्रकार कुल दस माह जेल तलाशी में उनके घर से ‘सिंहनाद' के मेटर का कार्बन में बंदी रहकर बाहर आया। एक बात और बतला दूं पेपर मिला, उन्हें छः माह की सजा तथा 250 रु0 राष्ट्रप्रेम के कारण मैं जेल में गया लेकिन एक का जुर्माना भुगतना पड़ा और प्रतापगढ़ जेल भेज दिया साहित्यकार होने के नाते मेरे मन में यह इच्छा थी गया। कि मैं जेल में जाकर कैदियों की जिंदगी का भी 1934 में आगरा में 'आरती-नमाज' के सन्दर्भ अध्ययन करूं।----आदि।' में आपकी सेवाओं की सर्वत्र सराहना हुई थी। आगरा आ- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-112 (2) में नूरी दरवाजे तथा फुलट्टी में होकर जैन रथयात्रा नहीं प0 जै) इ0, पृ0-387 (3) स्व0 प0 (4) सा0 (5) वि0 स्व० निकल पाती थी आपने आगरा दिगम्बर जैन स0 इ0, पृष्ठ-294 परिषद् के सभापति के नाते प्रयत्न किया और श्री महेन्द्र जी सफलता पाई। अपने मित्रों और प्रशंसकों में महेन्द्र कुमार से 1937 में कांग्रेस मंत्रिमण्डल बनने पर आपने 'महेन्द्र जी' कहलाने लगे आगरा (उ0प्र0) के ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य किये जिनकी प्रशंसा संबंधित For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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