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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 382 स्वतंत्रता संग्राम में जैन के भारत छोड़ो आन्दोलन में एक वर्ष की कठोर . ........आजादी की लड़ाई में वे जेल गये। जेल और 100/- रु) जुर्माने की सजा काटी। जेल इन्दौर से व्यक्तिगत सत्याग्रह करते हुए ललितपुर के अन्दर आपकी संवेदना विद्रोह कर बैठी। जिजीविषा आये श्री मिश्रीलाल गंगवाल की अगवानी किशोर के अभिनव आयाम प्रस्फुटित हुये, फलत: 'आहुति', 'तन्मय' बुखारिया ने ही की थी और उन्हें अपने घर 'पाकिस्तान' और 'मेरे बापू' जैसी कृतियों में आपके ठहराया था। गंगवाल जी जीवन भर इस घटना को ही नहीं राष्ट्र के हृदय की वेदना सम्प्रेषित हई है। नहीं भल सके। लेकिन बाद में देश में बखारिया जी 'मरण मुक्ति का द्वार' आपकी अध्यात्मिक रचनाओं के सपनों के विपरीत जो कुछ होता रहा उससे उन्हें का संकलन है। अपनी जेल यात्रा भी अधिक सार्थक नहीं लगी हो शृंगार वीर एवं शांत रस में छन्दबद्ध एवं तो कोई आश्चर्य नहीं..........आंदोलनों और जेल अतुकान्त दोनों ही शैलियों में आपने समान अधिकार यात्राओं के कारण उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पायी।' सं कवितायें लिखीं। देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित 'जलज' जी ने बुखारिया जी के व्यक्तित्व के पत्रपत्रिकाओं में आपकी रचनायें प्रकाशित हुई हैं। सन्दर्भ में आगे लिखा है- 'वे जिस ताकत से ललितपुर में आपके नागरिक अभिनंदन के अवसर महात्मा गांधी को सिद्ध करते थे, उसी ताकत से वे पर 'सरस्वती भूषण' की उपाधि से आपको अलंकृत आगे चलकर रजनीश को भी सिद्ध करते मिले। किया गया था। स्पष्टवादिता बुखारिया जी को उनके द्वारा लिखी गई रजनीश के ग्रन्थ 'महावीर विशेषता थी। वे स्वयं अपने शब्द परिचय में लिखते वाणी, भाग-1 ' (विशेष संस्करण 1988) की प्रस्तावना रजनीश के प्रति उनके एकान्त समर्पण, उनके पक्ष गला नहीं है, मात्र कला है, इनकी अपनी शैली। में इस्तेमाल में आयी उनकी असाधारण तर्कशक्ति आधी चादर बहुत साफ है, आधी चादर मैली।। और उनके ताकतवर गद्य का अप्रितम नमूना है।... निस्संदेह बुखारिया जी हिन्दी काव्य-जगत में .. ललितपुर में जैन मन्दिरों को सबके लिए खुलवाने, जैन समाज के सर्वाधिक प्रशंसित एवं ख्याति प्राप्त मृत्युभोज को बंद करवाने और जैन मात्र को प्रक्षाल कवि रहे हैं। एक समय था जब उनकी उपस्थिति का अधिकार दिलवाने में उन्होंने सक्रिय भूमिका भी कवि-सम्मेलनों की सफलता की पर्याय समझी जाती निभाई।' (तीर्थङ्कर, जनवरी 1998) थी। राष्ट्रीय, मानवीय, प्रणय और अध्यात्म की अनुभूतियों उत्कट जिजीविषा के धनी बुखारिया जी ने के गायक इस कवि की रचनाओं में कालजयी तत्त्व होटल, बर्फखाने की फैक्ट्री, आटा चक्की लगाने सहज मुखर हैं। सैकड़ों अभिनन्दन पत्रों और सम्मान जैसे अनेक कार्य किये। वे अध्यापक और प्राचार्य पत्रों से भिन्न-भिन्न संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी रहे और वकालत भी की। हस्तरेखाओं को पढ़ने किया गया। तथा भविष्य बताने का भी उन्हें शौक था। प्लेटेंच बखारिया जी की कविता के सन्दर्भ में प्रसिद्ध यन्त्र पर मृत आत्माओं को भी वे बुलाते थे। 26 साहित्यकार डॉ0 जयकुमार 'जलज' ने लिखा है-'कवि नवम्बर 1997 को बुखारिया जी का देहावसान हो सम्मेलनों में वाहवाही लूटने वाली उनकी कवितायें गया। सीधे-सीधे तात्कालिकता से जुड़ी हुई थीं। वे आजादी बुखारिया जी के जीवन काल में जब हमने की लड़ाई के पक्ष में माहौल बनाती और जन-जागरण अपने प्रस्तुत ग्रन्थ की चर्चा करते हुए अपनी जेल करती थीं। यात्रा का एक संस्मरण भेजने का निवेदन किया था, For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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