SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 207 सिनेमा हाल में रख दिया। 12 बजे रात ज्यों ही बम... आ0 (1) दिल्ली के स्वतंत्रता सेनानी, भाग-2, पृष्ठ-82 (2) अनेक प्रमाण पत्र (3) पत्नी श्रीमती चमेली देवी द्वारा प्रदत्त फटा, भगदड़ मच गई। परन्तु सादा वर्दी वाले पुलिस कर्मियों ने आपको तथा अन्य अनेक दर्शकों को पकड़ लिया। 5 नवम्बर 1942 को कोतवाली पुलिस ने श्री १०८ आचार्य नेमिसागर जी महाराज अभियुक्तों को अनेक यातनायें दी और जिला जेल भेज अपने गृहस्थ जीवन में 'गांधी की आंधी' में ।। दिया। मुकदमा चला। निचली अदालत ने श्री जैन को माह लाहौर जेल में रहे पूज्य आचार्य नेमिसागर जी. महाराज का जन्म वर्तमान सेशन सुपुर्द कर दिया। हरियाणा के अकेडा, 13 माह कारावास में रहने के बाद सैशन जज जिला-गुडगावां में 1907 में श्री के0 एम0 बान्च ने साक्ष्यों के अभाव में श्री जैन हुआ। अल्पायु में माता-पिता को मुक्त कर दिया। कांग्रेस के क्रिया-कलापों से जुड़े का देहावसान हो जाने से आप श्री जैन से हम आगरा में मिले। अपनी अन्तर्वेदना व्यक्त 3 वर्ष की आयु में देहली के करते हुए आपने कहा था कि 'स्वतंत्रता संग्राम में हमने जौहरी लाला रणजीत सिंह जो स्वप्न संजोये थे वह धूल-धूसरित होते जा रहे हैं। । जैन के यहाँ दत्तक पुत्र के रूप में आये, जहाँ आपकी बुआ श्रीमती रिक्खी बाई कुछ मुट्ठीभर लोग आतंकवाद-अलगाववाद की (लाला रणजीत सिंह की बहिन) ने आपका घिनोनी हरकतें करके हमारी एकता-अखण्डता को लालन-पालन किया। जब आप सिद्धक्षेत्र शिखर जी चुनौती दे रहे हैं। हमारा विश्वास है कि भारतमाता के की यात्रा पर गये थे तब वहीं बुआ के देहावसान का उज्ज्वल माथे पर कोई कालिख नहीं पोत सकेगा।' तार मिला। इस घटना से आपकी वैराग्य भावना बढ़ आ)-(1) जै। स) रा) अ) (2) उ0 प्र0 जै0 40, गई और आप घर नहीं लौटे। पृष्ठ-90 (3) गो) आ) ग्र), पृष्ठ-222 आपने 1940 में ब्रह्मचर्य व्रत, 1944 में क्षुल्लक श्री नेमचंद जैन दीक्षा और 1956 में आचार्य जयसागर महाराज से खेकडा, जिला-मेरठ (उ0प्र0) के श्री नेमचंद टाकाटोका (गुजरात) में मुनिदीक्षा ली थी। जैन, पुत्र-श्री भरतसिंह का जन्म 1903 में हुआ। अपने अपने गृहस्थ जीवन में आप सादा जीवन उच्च | गृहनगर से ही आप आन्दोलन विचार और स्वाधीनता के पक्षधर थे। 1931 में गांधी में सक्रिय हुए। 1930 के जी के आह्वान पर आप स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पडे और || माह लाहौर जेल में रहे। आप सदैव शुद्ध नमक आन्दोलन में आपने भोजन लेते थे, अतः जेल की रोटी नहीं खाई। कई 6 माह की सश्रम कारावास दिनों तक उपवास किया। अन्त में जेल में ही शुद्ध की सजा भोगी। आप भोजन की व्यवस्था हुई। 1982 में आपका चातुर्मास 11-8-30 से 12-9-30 सिकन्द्राबाद (बुलन्दशहर) उ0प्र0 में हुआ था, इस तक मेरठ तथा 13-9-30 से अवसर पर एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। 13-1-31 तक फैजाबाद जेल में रहे। आपने अमीनगर आ()-(1) परिचय पुस्तक, (2)जैन गजट, 23 फरवरी में गोली खाई थी व गोला सार्जेन्ट के सामने सत्याग्रह किया था। देहली कांफ्रेन्स में भी लाठियों के प्रहार श्री नेमीचंद आंचलिया सहे थे। बाद में आप दिल्ली प्रवासी हो गये और वहीं श्री नेमीचंद आंचलिया का जन्म तत्कालीन आपका निधन हुआ। बीकानेर रियासत के सरदार शहर (वर्तमान-राजस्थान) For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy