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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 408 स्वतंत्रता संग्राम में जैन ने इस पर पाबन्दी लगा दी और आगे के लिए एक हजार की जमानत मांगी, जिसे देने से बाबू जी ने इन्कार कर दिया। इस सन्दर्भ में प्रभाकर जी ने अपने संस्मरण में लिखा है-- __ "डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट' ने उनसे कहा 'ऐडीटर साहब ! हमारे फादर ने, जब वह यहाँ कलेक्टर थे, आपके अखबार का डिक्लेरेशन मंजूर किया था। हम नहीं चाहते कि हमारे समय में वह बंद हो, इसलिए आप हमको एक खत लिखो कि उस लेख का वह मतलब नहीं है जो समझा गया है। बस हम अपना आर्डर वापस ले लेंगे।' बाबू जी ने उत्तर दिया- 'कलेक्टर साहब आप मुझसे सलाह करके पाबन्दी लगाते, तो उसे हटाने के लिए भी मेरे खत की जरूरत पड़ती। अब तो वह हटेगी तो वैसे ही हटेगी, जैसे लगी है।' और उठकर चले आये। नगर के एक बड़े रईस ने, जिसने कलेक्टर महोदय को नरम किया था, उसी दिन मुझसे कहा'आज ऐडीटर साहब ने हमारे किये-धरे पर चौका फेर दिया।' मैं तुरन्त उनके (बाबू जी के) घर गया, तो बहुत खुश थे। बोले- 'भाई, हम जेल नहीं जा सकते, तो इज्जत के साथ अपने घर तो रह सकते हैं।" इस प्रकार जैन प्रदीप 1930 में बन्द हो गया। उनके वंशजों ने अब उसे पुन: 5-6 वर्ष पूर्व हिन्दी में निकालना प्रारम्भ किया है, सम्प्रति सम्पादक श्री कुलभूषण कुमार जैन हैं। हमें भी पूज्य बाबू जी के कक्ष को देखने का सौभाग्य, सामग्री संचयन हेतु देवबन्द जाने पर, मिला। यह हमारा अहोभाग्य है। बाबू जी के योगदान के सन्दर्भ मे 'सहारनपुर सन्दर्भ' (पृष्ठ 535) लिखता है "देवबन्द में उत्पन्न बाबू ज्योति प्रसाद जैन सहारनपुर के वन्दनीय पुरुषों में हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देवबन्द में हुई। वहीं बाबू सूरजभान वकील की संगति से आप समाज सेवा में प्रवृत्त हुए। कवि के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली। 'जैन प्रचारक,' 'जैन प्रदीप', 'जैन नारी हितकारी' और 'पारस' के सम्पादक के रूप में उन्होंने अपनी लेखनी का परिचय दिया। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया और स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी बने। उनकी पुस्तकों की संख्या तीस से ऊपर है। 28 मई 1937 को उनका देहान्त हुआ।" उनकी सभी रचनाओं को एक ग्रन्थावली के रूप में प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। आगे के पृष्ठों में हम मूल उर्दू लेख के हिंदी रूपान्तरण के सम्पादित अंश दे रहे हैं। हिन्दी रूपान्तरण में मौ0 उमर, जिल्दसाज, खतौली से हमें सहयोग मिला है, हम उनके आभारी है। __आधार-(1) जै0 जा0 अ0, पृष्ठ-421-428, (2) जै0 स0 रा) अ), (3) स0 स) अनेक पृष्ठ, (4) जैन प्रदीप, 1930 के अंक, जैन प्रदीप, हिन्दी संस्करण के अनेक अंक, (5) श्री कुलभूषण जैन के नाम लिखा, श्री कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का व्यक्तिगत पत्र, दिनांक 10-10-1994 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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