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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 52 स्वतंत्रता संग्राम में जैन इसी बीच सेठी जी की मुलाकात पं० विष्णुदत्त शर्मा से हुई। शर्मा जी स्थान-स्थान पर पहुंचकर सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्याख्यान देने वाले एक सीधे-साधे ब्राह्मण उपदेशक जान पड़ते थे, किन्तु वास्तव में उनका कार्य था देश के स्वाधीनता युद्ध के लिए सैनिकों की भरती करना। अपने इस कार्य की पूर्ति के लिए शर्मा जी भिन्न-भिन्न स्कूलों/कालेजों और गुरुकुलों/पाठशालाओं में घूमा करते थे। इन स्थानों पर उन्हें जो भी ऐसा युवक दिखाई देता, जिसके नेत्रों में दीप्ति और मुख पर दृढ़ता होती, उसी को वे अपने पंथ में दीक्षित कर लिया करते थे। इसी प्रकार घूमते-घामते वे एक दिन जयपुर के उक्त विद्यालय में पहुँचे, सेठी जी से मुलाकात हुई, दोनों का रास्ता एक था, दोनों ने एक दूसरे को पहिचाना, एक दूसरे की भावनाओं को अनुभव किया और परस्पर गहरे मित्र हो गये। शर्मा जी विद्यालय में क्रान्तिकारी व्याख्यान देने लगे, जो विद्यार्थियों के हृदय में भारी उथल-पुथल मचाते थे। शर्मा जी और सेठी जी के मुख से देश की दुर्गति का हाल सुन-सुन कर इन नवयुवकों का हृदय क्षोभ और वेदना से भरता गया। उन्होंने भारत माँ को स्वतन्त्र कराने का बीड़ा उठाया और क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित होने का निश्चय किया। ग्रीष्मावकाश में बारहट जी के ग्राम में जाकर गोली चलाना, लाठी चलाना आदि की शिक्षा इन नवयुवकों ने ली और क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित हो गये। उस समय क्रान्तिकारी दल का काम अर्थाभाव के कारण ठप्प होता जा रहा था। अतः इन युवकों ने किसी देशद्रोही धनिक को मारकर धन लाने का निश्चय किया। बंगाल में ऐसी घटनाओं का उदाहरण इनके सामने था ही। तय हुआ कि 'निमेज' जिला-शाहाबाद (बिहार) के महन्त का धन हस्तगत किया जाये। इस काम के अगुआ थे पं० विष्णुदत्त शर्मा। अन्य लोगों में थे जोरावार सिंह, मोतीचंद, माणिकचंद और जयचंद। जोरावर सिंह ने ऐन मौके पर स्वयं न जाकर अपने एक साथी को भेज दिया। यद्यपि योजना यह थी कि 'महन्त के मुँह में कपड़ा भरकर चाबी ले ली जाये और तिजोरी से माल निकालकर भाग आया जाये।' किन्तु वहाँ जाकर इन लोगों ने महन्त को मार दिया और चाबी ले ली। दुर्भाग्य! कि तिजोरी खोलने पर वह खाली मिली। यह घटना 20 मार्च 1913 की है। घटना के बाद डकैतों की छानबीन हुई, पर कुछ पता नहीं चल सका। इधर जयपुर के विद्यालय की हालत खस्ता होने लगी थी। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही सेठी जी जयपुर का विद्यालय छोड़कर इन्दौर चले गये और वहाँ त्रिलोकचंद जैन हाई स्कूल में काम करने लगे। यहाँ पर उनके साथ शिव नारायण द्विवेदी नामक एक युवक भी रहता था। एक दिन अकस्मात् ही इन्दौर की पुलिस ने इस युवक की तलाशी ली तो उसके पास कुछ क्रान्तिकारी पर्चे निकले। युवक को गिरफ्तार कर लिया गया, उसी से पुलिस को जयपुर के विद्यालय में संगठित क्रान्तिकारी दल तथा निमेज के महन्त की हत्या का सुराग हाथ लग गया। इधर मोतीचंद सेठी जी के साथ रोजाना की तरह घूमने निकले। मोतीचंद ने सेठी जी से प्रश्न किया 'यदि जैनों को प्राण-दण्ड मिले, तो वे मृत्यु का आलिंगन कैसे करें।' सेठी जी ने इसका उत्तर दिया ही था कि पुलिस ने घेरा डालकर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। अब सेठी जी की समझ में आया कि मोतीचंद ऐसा प्रश्न क्यों कर रहा था। बाद में पं० विष्णुदत्त शर्मा, माणिकचंद आदि को भी गिरफ्तार कर लिया गया। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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