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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 51 आपस में पुस्तकों के आदान-प्रदान व साप्ताहिक सभाओं आदि से विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ता गया । मोतीचंद अपनी वाक्पटुता, निर्भीकता और गंभीर गर्जना के कारण अनायास ही इनके नेता बन गये। वे विद्यार्थियों के बीच देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं और आदोलनों के बारे में बताते थे। मोतीचंद और देवचंद अकेले में बैठकर आंदोलन के बारे में सोचते थे। इनके बैठने के स्थान श्री कस्तूरचंद बोरामणीकर तथा कभी-कभी रावजी देवचंद के घर हुआ करते थे । विदेशी वस्त्रों का उपयोग नहीं करना, विदेशी शक्कर नहीं खाना आदि प्रतिज्ञायें ये लोग किया करते थे। सोलापूर की देखा-देखी अन्य स्थानों पर भी 'जैन बालोत्तेजक समाज' की स्थापना हुई। 1906 के आसपास लोकमान्य तिलक स्वदेशी का प्रचार करने के लिए सोलापूर आये। एक स्वयं सेवक के नाते मोतीचंद उनसे मिले और इकट्ठी की गयी कमाई स्वदेशी प्रचार के लिए तिलक जी को समर्पित कर दी, साथ ही अपने 'बालोत्तेजक समाज' की स्थापना की जानकारी तिलक जी को दी। इसी समय तिलक जी के कर-कमलों से मैकेनिक थियेटर में 'बालोत्तेजक समाज' की विधिवत् स्थापना हुई। मोतीचंद, देवचंद और उनके अधिकांश साथियों का जन्म जैनकुल में हुआ था । पारिवारिक संस्कार जैन धर्म से आप्लावित थे। भोगों के प्रति विरक्ति स्वाभाविक ही थी। एक दिन मोतीचंद ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लेने का विचार अपने मन में किया और अपने लंगोटिया यार देवचंद को बताया। 'जीवन की साधना के बीच ब्रह्मचर्य ही उत्तम साधना है।' इसका विश्वास मोतीचंद से पहले देवचंद को हो चुका था, अतः उन्होंने मोतीचंद के विचारों का अन्त:करण से स्वागत किया और कुन्थलगिरि जाकर बाल ब्रह्मचारी देशभूषण, कुलभूषण भगवान् के चरणों में एक-दूसरे की साक्षी पूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया । 1910 के आसपास रावजी देवचंद मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षा प्राप्ति हेतु बम्बई के विल्सन कॉलेज में चले गये। बाद में उन्होंनें फर्ग्युसन कॉलेज, पूना में शिक्षा प्राप्त की । मोतीचंद ने अपने ज्ञानार्जन की हवस दिन-रात किताबें पढ़कर ही पूरी की। इसी बीच 'दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा', सांगली के अधिवेशन का समाचार मोतीचंद ने पढ़ा और जाना कि प्रमुख व्यक्ति के रूप में जयपुर के पंडित अर्जुन लाल सेठी आ रहे हैं। सभा का अधिवेशन शोलापुर के श्री हीराचंद अमीचंद गाँधी की अध्यक्षता में होने वाला था । सेठी जी के बारे में उन दिनों बड़ी ख्याति फैल चुकी थी कि वे बी०ए० तक लौकिक शिक्षा प्राप्त अत्यन्त बुद्धिमान्, प्रतिभासम्पन्न, ओजस्वी वक्ता, लेखक, पत्रकार, अर्थसम्पन्न, धार्मिक ज्ञान प्राप्त, जैन शिक्षा प्रचार समिति नामक शिक्षण संस्था तथा बोर्डिंग चलाने वाले व्यक्ति हैं। उनसे मिलने की अभिलाषा लिये मोतीचंद और देवचंद सांगली अधिवेशन में उपस्थित हुए। सेठी जी का समाज और राष्ट्र सेवा की भावना से ओत-प्रोत व्याख्यान सुनकर दोनों तरुणों ने विचार किया कि हमारी आशा-अपेक्षायें इनके पास रहकर पूर्ण हो सकती हैं। दोनों ने अपने विचार सेठी जी को बताये, सेठी जी ने जयपुर आने को कहा । सब लोग एक साथ जयपुर पहुँचने की अपेक्षा धीरे-धीरे पहुँचे, ऐसा विचार कर तय हुआ कि पहिले देवचंद और माणिकचंद पहुँचे, बाद में मोतीचंद अन्य साथियों के साथ पहुँचेंगे। योजनानुसार तीनों जयपुर पहुँचे, साथ में श्री बालचंद शहा आदि भी थे। जयपुर की उक्त संस्था में कुछ राजपूत विद्यार्थी भी थे। राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केशरी सिंह बारहठ के दो तेजस्वी बालक प्रताप सिंह एवं जोरावर सिंह भी हाँ पढ़ते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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