SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - प्रथम खण्ड 329 बरसायी गईं, पर हम टस से मस नहीं हुए। मेरी एक श्री रूपचंद जैन आंख और एक टांग खराब हो गयी थी।" अपने भाषणों से नवयुवकों में क्रान्ति की ___बरेली जेल में इस प्रकार दी गई यातनाओं की ज्वाला फूंकने वाले श्री रूपचंद जैन, पुत्र-श्री रतनचंद जांच के लिए सर सीताराम, अध्यक्ष विधान परिषद् जैन का जन्म 1911 में शहडोल (म0प्र0) में हुआ। को नियुक्त किया गया था। श्री रतनचंद सम्पन्न व सफल व्यवसायी थे, पर पुत्र 1942 में अपनी गिरफ्तारी के सन्दर्भ में विस्तार को देशप्रेम की लौ लग गई। झंडा सत्याग्रह में से बताते हुए एक साक्षात्कार में आपने कहा था-"मैंने रूपचंद जी ने भाग लिया। 1932 में कलकत्ता में भी और मेरे साथियों ने तार काटने, इमारतें तथा डाकखाना आपने आंदोलन में भाग लिया। 1942 के आंदोलन आदि जलाने का काम किया। मनानी स्टेशन को में सरकार ने आपको विद्रोहात्मक भाषण देने के आग लगा दी। उस समय काशीराम, बनारसीदास जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और सेन्ट्रल जेल रीवां और इन्द्रसेन (अम्बेहटा शेख) भी हमारे साथ थे। भेज दिया। सजा सुनाये जाने तक आप अन्डरट्रायल वहाँ से हम भाग गये......... मैंने कांग्रेस की डाक रहे। रीवां ट्रिव्यूनल द्वारा 100/- रु0 जुर्माना और छह का काम सम्भाल लिया। डाक लेकर दिल्ली से माह के कठोर कारावास की सजा आपको सुनाई आगरा गया। आगरे में मैंने डाक विलायतीराम को दे गई। जेल की विषम परिस्थितियों के कारण आपका दी। उन्होंने मझे 1200 रुपये और कछ सामान अम्बाला स्वास्थ्य खराब हो गया था। पत्रकारिता से विशेष रूप पहुंचाने के लिए दिया। वहाँ भी विलायतीराम ही थे। से जुड़े रहे श्री जैन का 1973 में देहावसान हो गया। उन्हें सामान सौंप दिया। वहाँ से उन्होंने एक पिस्तौल आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग-5, पृष्ठ-315, (2) और दो कैंचियाँ दिल्ली कांग्रेस कमेटी में देने को दी। स्वा) आ0 श0, पृष्ठ-110 वहाँ से सहारनपुर आया और सिनेमा देख रहा था तो श्री रूपचंद पाटणी (जैन) सी0आई0डी0 इन्सपेक्टर तनखा साहब ने इन्टरवल रायपुर (म0प्र0) के श्री रूपचंद पाटणी, पुत्र-श्री में कन्धे पर हाथ रखकर कहा, 'मैं नौजवान को उदेलाल जैन का जन्म 1904 में ह आ आप गिरफ्तार करना नहीं चाहता। तुम मेरा स्टेशन तुरन्त आरम्भ से ही राष्ट्रीय खली कर दो।' .... ..... वहाँ से पैदल विचारधारा से जुड़े व्यक्ति थे, नागल आया और दिल्ली पहुँचकर सामान आफिस में अत: 1930 के आन्दोलन जमनादास कायस्थ को सौंप दिया। ........... में आपने खुलकर भाग . उनका सामान और रुपये लेकर आगरा गया ..... लिया, परिणामस्वरुप ..... आगरा से फिर 1200 रुपये और डाक गंगापुर 13-10-1930 को गिरफ्तार सिटी के लिए लेकर चला परन्तु बाहर निकलते ही कर लिये गये और 5 माह के पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 1200 रुपये जुर्माना सश्रम कारावास एवं 10 रु0 अर्थदण्ड की सजा दी और साढे चार महीने की सज़ा हो गयी। थैले के गई। रुपया जमा न करने पर एक माह और सजा भोगनी 1230 स ने ले लियो" पडी। आपका निधन 3-1-1995 को हो गया। आ)-(1) स0 स0, भाग-1, पृष्ठ 162, 63, 192 (2) आO-(1) श्री पी0 जी0 उमाठे द्वारा प्रेपित परिचय एवं स्वाधीनता आन्दोलन और मेरट, पृष्ठ-371 प्रमाणपत्रा For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy