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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड कक्का साहित्य रत्न भंडार जाते और कहते 'बेटा महेन्द्र' महेन्द्र जी तुरन्त कहते 'आज्ञा दीजिये ' कक्का जी उनसे आवश्यकतानुसार 20-25 रु0 उधार ले आते और अपनी सुविधानुसार लौटा भी देते । एक बार हमारे घर में मेज की जरूरत आ पड़ी। कक्का ने महेन्द्र जी के पास जाकर कहा 'हमें एक छोटी मेज चाहिये' उसी समय महेन्द्र जी ने मेज खरीदकर हमारे घर भिजवा दी। वह वर्षों तक हमारे घर की शोभा बढ़ाती रही और उसका नाम पड़ गया 'महेन्द्र जी की मेज।' महेन्द्र जी बड़े विनयसंपन्न व्यक्ति थे और हमारी कई साहित्यिक योजनाओं में उन्होंने भरपूर सहायता भी दी थी। जब राजा लक्ष्मण सिंह की शताब्दी मनाने की बात हमें सूझी तो महेन्द्र जी ने तुरन्त उसके लिये आर्थिक व्यवस्था कर दी। बेशुमार पत्र व्यवहार की बीमारी तब तक मुझे लग चुकी थी और न मालूम कितने पत्र इस समय मैंने लिखे पर पोस्टेज का समस्त व्यय महेन्द्र जी ने नागरी प्रचारिणी सभा से मुझे दिलवा दिया। उन दिनों मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । इसलिए फिरोजाबाद से आगरा आने-जाने का खर्च भी महेन्द्र जी ही देते थे। मैंने यह नियम बना लिया था कि प्रत्येक यात्रा में तीन रुपये मैं महेन्द्र जी से वसूल कर लूंगा। वे मेरा आतिथ्य भी करना चाहते थे पर बन्धुवर हरीशंकर जी कभी यह सहन नहीं कर सकते थे कि मैं कहीं अन्यत्र ठहरू। वे भी क्या दिन थे! महेन्द्र जी मिशनरी भावना से ओतप्रोत होकर नागरी प्रचारिणी सभा के लिये चंदा करते थे और कभी-कभी गलतफहमी के शिकार हो जाते थे। हमारे देश में ऐसे आदमियों की कभी कमी नहीं रही जो 'बिन काज दाहिने बाऐं पर महेन्द्र जी ऐसे निराधार विरोध की कभी चिन्ता नहीं की। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 277 जब सत्यनारायण 'कविरत्न' की कविताओं के संग्रह के प्रकाशन का सवाल मेरे सामने आया तो मुझे फिर महेन्द्र जी की शरण लेनी पड़ी। इस शुभ कार्य को भी उन्होंने सम्पन्न कराया। 'हृदयतरंग' के दो संस्करण उन्हीं की देखरेख में छपे । दिगम्बर जैन इण्टर कॉलेज के लिये महेन्द्र जी ने जो कार्य किया वह आगरे की शिक्षा के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। नागरी प्रचारिणी सभा की उन्नति में महेन्द्र जी का योगदान सर्वोच्च स्थान रखता है। मैंने महेन्द्र जी से कहा 'अगर आपका पूरा-पूरा सहयोग मिले तो मैं आगरे को अपना कार्यक्षेत्र बनाने को तैयार हूँ' इस पर वे बोले 'चौबे जी ! अब मेरा स्वास्थ्य इस काबिल नहीं कि मैं कोई सक्रिय सहयोग दे सकूं।' उनके उस समय के थके थकाए चेहरे तथा क्षीण वाणी का मुझे अब भी स्मरण है। वे अपना काम कर चुके थे और पूर्ण विश्राम चाहते थे । वैसे तो महेन्द्र जी की गणना अखिल भारत के चोटी के हिन्दी सेवकों में की जा सकती है पर वे ब्रज की विभूति थे और आगरे के साहित्यिक तथा सांस्कृतिक जीवन के प्राण | आ०- (1) स्व0 महेन्द्रजी की धर्मपत्नी श्रीमती अंगूरी देवी द्वारा प्रदत्त परिचय, (2) श्रद्धेय पं0 बनारसीदास चतुर्वेदी की श्रद्धांजलि आदि। (3) जै० स० रा० अ० (4) उ0 प्र0 जै० ध०, पृष्ठ - 89 (5) गो० अ० ग्र०, पृष्ठ-224-225 श्री महेशचंद जैन आयुर्वेदाचार्य कानपुर (उ0प्र0) के श्री महेशचंद जैन प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी व देशभक्त वैद्य कन्हैयालाल के पुत्र थे। आपके पिता-माता व भाई सुन्दरलाल जी जेल यात्री रहे हैं। कानपुर का चांद औषधालय आपके तत्त्वावधान में शुरू हुआ था। नव-युवकों में स्वाधीनता आन्दोलन हेतु स्फूर्ति का संचार करने For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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