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प्रथम खण्ड
लिखता है कि- 'राजस्थान के (बाद में) मुख्यमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री ने सेठी जी के यह कहने पर कि“ आँख बंद कर आजादी की लड़ाई के समुद्र में कूद जाओ तो तुम तिर जाओगे"। 7 दिसम्बर 1927 को अपना सरकारी महत्त्वपूर्ण पद त्याग दिया था। ★
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* 1920 में छह वर्षों की जेल के बाद सेठी जी मुक्त होकर पूना होते हुए बम्बई जा रहे थे। पूना स्टेशन पर बाल गंगाधर राव तिलक द्वारा सेठी जी का अभूतपूर्व स्वागत किया गया। तिलक जी इतने भावविभोर हुए कि उन्होंने अपने गले का रेशमी दुपट्टा सेठी जी के गले में डाल दिया और अभिनन्दन करते हुए कहा- 'आज महाराष्ट्रवासी सेठी जी को अपने बीच देखकर फूले नहीं समाते । ऐसे महान् त्यागी, देशभक्त और कठोर तपस्वी का स्वागत करते हुए महाराष्ट्र आज अपने को धन्य समझता है। ' ★ ★
वेलूर जेल
मुक्त होने के बाद जब सेठी जी इन्दौर पहुंचे तो उनके सम्मान में छात्रों ने बग्घी के घोड़े खोल दिये और खुद गाड़ी में घोड़ों की जगह जुतकर बग्घी को खींचा। उन जोशीले नौजवानों में से मेरा आशिक रहा है। ' श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी थे। ⭑
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1922 में सेठी जी को भेंट की गई गांधी टोपी नीलाम करने पर 1500/- रु0 में बिकी थी। ⭑ ★ ★
कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में सेठी जी के अनुयायियों का बहुमत हो गया। वहाँ हुए चुनाव को जब वर्किंग कमेटी ने रद्द कर दिया तो सेठी जी के नेतृत्व में लोग सत्याग्रह पर बैठ गये। स्वयंसेवकों ने सेठी जी को लाठियों से मारा, वे घायल हो गये तब उन्हें देखने गांधी जी पं() मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय, पं( ) जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू,
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शौकत अली आदि के साथ उनके निवास पर पहुंचे और सेठी जी से कहा- 'मुझे आपके चोट लगने का भारी दुःख है उसके प्रायश्चित स्वरूप मैं उपवास करना चाहता हूँ।' सेठी जी के समझाने पर गांधी जी ने उपवास के संकल्प का त्याग करते हुए कहा - ' आप धर्मशास्त्र के ज्ञान में मेरे गुरुतुल्य हैं। '
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★ सेठी जी शायरी का भी अच्छा शौक रखते थे। बातचीत के बीच मुंह का जायका बदलने और वातावरण नीरस न होने देने के लिए 'गालिब', 'जौक' आदि के शेर सुनाते थे। गोयलीय जी ने एक संस्मरण में उनके इस व्यक्तित्व को उजागर किया है। गोयलीय जी ने लिखा है- (सेठी जी) एक दिन जो मौज में आये तो बोले
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बेटा, हम भी तुकबन्दी कर लेते हैं। ' ' तुकबन्दी कैसी आप तो अच्छी खासी कविता कह लेते हैं। मैंने बचपन में आपकी बनाई कई कवितायें पढ़ी हैं। 'कब आयगा बोह दिन कि बनूँ साधु बिहारी' मुझे खास तौर से पसन्द थी।
वे हंसकर बोले- 'अच्छा तो बदमाश तू बचपन
'यह तो आपकी महती कृपा है, जो आप इस सम्बोधन से मुझे कृत कृत्य कर रहे हैं। हाँ, एक अकिंचन भक्त मैं आपका अवश्य रहा हूँ।'
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अच्छा तो बच्चू यह बात है जो दौड़-दौड़कर तुम जयपुर और अजमेर जाते रहे हो, और हजार ठिकाने छोड़कर मैं तुम्हारे पास ठहरने को मजबूर हुआ हूँ।'
'जी, आप शायद अपना कोई ताजा कलाम सुनाना चाह रहे थे ! '
'ताजा तो नहीं है, 5-6 वर्ष पूर्व कही गई, एक तुकबन्दी है। कुछ दोस्तों ने इस समस्या की - 'देखें कहाँ-कहाँ पै हथेली लगायेंगे' पूर्ति करने को मजबूर
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