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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 378 स्वतंत्रता संग्राम में जैन में आपके पिता ने अपनी दुकान का लगभग 50 हजार रखता आया हूँ।.... मैं अपने इन साथियों को मात्र का कपड़ा जला दिया था। त्रिपुरी कांग्रेस के अधिवेशन इसलिए क्रान्तिकारी नहीं मानता कि ये अपनी जान में हीरालाल जी ने स्वयंसेवक का कार्य किया था। पर खेलकर विस्फोटक सामग्री का आदान-प्रदान करते 1941 के लगभग घरेलू वातावरण से क्षुब्ध थे, वरन् इसलिए मानता हूँ कि क्रांतिकारियों के उसूल होकर श्री जैन वर्धा चले गये और वहीं गांधी आश्रम पर ये सवा सोलह आने खरे उतरे कि 'चाहे कितनी में रहने लगे। 19-12 के अगस्त आन्दोलन में हीरालाल ही यातनायें दी जायें और प्राणों का भी उत्सर्ग करना जी 20 युवकों के साथ बम्बई गये थे। किसी तरह पड़े तो भी राज-राज रहे, खुलने न पावे।" भेष बदलकर वे अहमदाबाद, जयपुर, आगरा होते हुए आ0-(1) मा) प्र) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-124 (2) जबलपुर आये और क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न स्व0 स0 ज), पृ0- 188 (3) नवभारत, रायपुर, दिनांक 26 जनवरी 1989 (4) नवभारत. जबलपुर 13 अगस्त 1995 हो गये। 'एम्पलायर थियेटर', जहाँ अक्सर अंग्रेज लोग सिनेमा देखने आते थे, में आपने बम फेंका था। श्री हीरालाल जैन टेलीफोन के तार काटना आपका मुख्य कार्य था। प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और समाजवादी नेता श्री 2 फरवरी 1943 को जब आप बाहर से आयी पिस्तोलों हीरालाल जैन का जन्म 25 अगस्त 1916 को कोटा की पेटी दमोह रेलवे स्टेशन पर लेने गये थे तब पुनः (राज0) में हुआ। आपने गिरफ्तार कर लिये गये और जबलपुर जेल में रखे कलकत्ता से बी0 ए0 ऑनर्स गये। पास किया और 1935 से हीरालाल जी की क्रान्तिकारी गतिविधियों का 1937 तक शान्तिनिकेतन में अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जबलपुर भी अध्ययन किया। 1938 के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी तथा स्वतंत्रता सेनानी, म0 प्र0 में कोटा रियासत के पुलिस स्वतंत्रता सेनानी संघ के संस्थापक मंत्री श्री रतनचंद । अधीक्षक कार्यालय में जैन ने हीरालाल जी के सम्बन्ध में (नवभारत, अंग्रेजी-लिपिक का कार्य किया, परन्तु 1938 के जबलपुर, दिनांक 13 अगस्त 1995) लिखा है-'इसी दिसम्बर में ही राजकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और प्रसंग में मोतीलाल एवं हीरालाल जैन को भी भुलाया प्रजामंडल की सदस्यता ग्रहण कर ली। नहीं जा सकता जो अपनी जानपर खेलकर विस्फोटक 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में श्री जैन ने सामग्री प्रदेश में और दसरे प्रदेशों में स्वयं जाकर पहुँचाते सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने विद्यार्थियों को संगठित थे। एक बार तो इन्होंने पुलिस को छकाने के लिए किया, फलस्वरूप 16 सितम्बर को उन्हें गिरफ्तार कर कोतवाली के पास बम विस्फोट भी किया था।... श्री लिया गया और भारत सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत सत्येन्द्र मिश्र के सुझाव पर वे भूमिगत से बाहर आ नजरबन्द कर दिया गया। 5 नवम्बर 1942 को आप गय अतः पकड़े गये। पुलिस के अनेक प्रयत्न करने रिहा हुए। जेल से बाहर आकर आपने छात्रों के साथ और त्रास देने पर भी इन्होंने कुछ नहीं बताया।..... मजदूर और किसानों को भी संगठित किया। उपरोक्त घटनाओं का बीते 50 वर्ष से अधिक हो गये 1942 में कोटा में चार दिन तक जनता का हैं। इनमें श्री दालचंद जैन अभी जबलपुर में है और राज रहा था। आजादी के मतवालों ने आजादी मिलने श्री हीरालाल जैन भिलाई में हैं। ये दोनों साथी यद्यपि से पांच वर्ष पूर्व ही पुलिस कोतवाली पर तिरंगा फहरा आय में मुझसे छोटे हैं, परन्तु मैं इनके प्रति श्रद्धाभाव दिया था और चार दिन तक जनता का राज कायम For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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