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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 337 दौड़ाये। मैं घायल होकर बेहोश हो गया। एक मित्र वे मुझे अपनी कार से रामपुरा पुलिस स्टेशन ले गये। हमें उठाकर होल्कर स्टेट के रेवेन्यू मिनिस्टर श्री अपने पास बैठाकर मुझे प्रलोभन दिये 'तुम्हें अच्छी हीराचन्द जी कोठारी के घर मोरसली गली में ले गये। नौकरी दे देते हैं। तुम अपनी जिन्दगी क्यों बरबाद कर रात भर उनकी पत्नी ने हमें सेंका- सांका। सबेरे जब रहे हो।' मैंने उत्तर दिया कि 'आप हमारा देश छोड़ होश आया तो मालूम हुआ कि हम होल्कर स्टेट के दो, हम आन्दोलन छोड़ देते हैं।' रेवेन्यू मिनिस्टर के घर पर हैं। यह बात श्री कोठारी इसके बाद हमें भानपुरा वापस ले आये। यहाँ के लिये खतरनाक हो सकती थी। अत: तत्काल उसी पर मुकदमें चले और ढाई साल की सजा हुई। बाद वक्त हम होल्कर कालेज आ गये। में समझौता हुआ और जेल से छोड़ दिया गया। 29 होल्कर कालेज आने पर हमें प्रजामण्डल की जून 43 को उन्होंने हमें छोड़ा। ओर से आदेश मिले कि मैं और प्रद्युम्न कुमार त्रिपाठी आजादी की लड़ाई में बार-बार जेल आने जाने गरोठ और भानपुरा सर्कल सम्हालें। 20 या 22 अगस्त में बहुत सी चीजें सीखने को मिलीं। संस्कार और 1942 को हम लोग यहां पर आ गये। गांवों में मजबूत हुए। सबसे बड़ी बात कि न मैं किसी का प्रजामण्डल की गतिविधियों की वजह से सरकार को शोषण करूं और न ही मेरा कोई शोषण करे और जहां लगा कि यहां भी कुछ गड़बड़ हो सकती है। एक चाह है वहां राह है।। रोज हम लोग भानपुरा में बहुत बड़ा जुलूस लेकर एक बार इन्दौर सेंट्रल जेल में बहुत बडा वाकया निकले। मैं घोड़े पर था। जब बाजार में होता हुआ जुलूस हुआ, जन्माष्टमी थी। जेल के जिस बैरक में हम लोग तम्बोलियों के मन्दिर पहुंचा तो पुलिस ने बैरिकेड्स बन्द थे. उस बैरक में करीब दो सौ लोगों के ठहरने लगा दिये थे। वहीं पर पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर की व्यवस्था थी। चौथी बैरक में कीर्तन हो रहा था, लिया, घोड़ा भी जब्त कर लिया और यहां से पैदल जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में। रात को करीब साढे ग्यारह गरोठ तक लेकर गये। (गरोठ भानपुरा से 26 किमी0 बजे का समय होगा कि चौथी बैरक के लालटेन और दर है। वहां ले जाकर लाकअप में बंद कर दिया। कण्डील अचानक बझ गये। इस पर चौथी बैरक वालों चौबीस घण्टे तक खाना नहीं दिया। उस समय इन्दौर ने हल्ला कर दिया। हम समझे कि जेल टूट गयी। स्टेट का एक पालिसा था कि प्रजामण्डल म भाग लन हमने भी अपने-अपने टामलोट और थालियां इस आशा वाले युवकों को इतना तंग किया जाय कि वे आन्दोलन के साथ उहालनी शरू कर दी कि शायद छत की से दूर ही रहें। खपरैल टूट जाय और हम लोग यहां से भागें। जेल इस नीति के तहत पहले तो हमें काफी यातनाएं के पहरेदार भी यही समझे कि जेल टूट गयी है, वे दी गयीं। फिर होल्कर स्टेट के तत्कालीन होम मिनिस्टर भाग खड़े हुए। आनन-फानन में यह बात सब ओर श्री हर्टन स्वयं गरोठ आये। उस समय मैं अकेला बन्दी फैल गयी कि जेल टूट गयी। फोन खड़खड़ाये गये। था। गरोठ का अनुभव बड़ा दुःखद था। पता नहीं क्यों, आधे घण्टे में प्राइम मिनिस्टर, होम मिनिस्टर को खबर जनता में उन दिनों घट रही इन घटनाओं के प्रति कोई लग गयी। मिलिट्री आ गयी। पूछताछ चालू हुई। पहली चेतना नहीं थी। अधिकारियों से किसी ने इस घटना बैरक में आकर पूछा, कि क्या बात है, हमने कहा के बारे में पूछताछ नहीं की। तो श्री हर्टन ने सब कि दूसरी बैरक वालों से पूछो, दूसरी बैरक वालों ने हथकड़ी वगैरह हटवाईं। हथकड़ियां आदि हटवाकर कहा कि हम तो मजे में हैं, तीसरी बैरक वालों से For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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