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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 355 श्री श्यामलाल जैन बोझ। अपने जन्म स्थान नरसिंहपुर (म0प्र0) से रायभा, जिला-आगरा (उ0प्र0) निवासी श्री मुसीबत के मारे, रोजी- रोटी के लिए हम सब श्यामलाल जैन तत्कालीन क्रान्तिकारियों में अग्रगण्य भाईबहनों को लेकर वे 1930 में मण्डला (म0प्र0) थे। स्वतंत्रता सेनानी श्री पीतमचंद जैन के साथ आ गये। वहाँ मुझे सेठ मथुरा प्रसाद बैजनाथ अग्रवाल टेलीफोन के तार काटते समय 1942 में आपको की किराना की दुकान पर 10 रुपया माहवार नौकरी गिरफ्तार कर एक वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। पर लगा दिया। वहाँ सुबह 8 बजे से रात 9 बजे फिर भी सरकार अभियोग नहीं चला पाई। जेल में तक तखरी (तराजू) तौलना पड़ती थी। शिक्षा केवल ही आपको लकवा मार गया था। 6 वीं पास हिंदी थी। शरीर दुबला पतला था किन्तु आ) (1) प0 इ), पृष्ठ-130 (2) जै0 स0, रा) अ भाग्य अच्छा था। (3) उ0 प्र0 जै0 40. पृष्ठ-92 (4) श्री महावीर प्रसाद जी अलवर इस नौकरी के दरम्यान कुछ गलत तत्त्वों की द्वारा प्रेपित परिचय (5) गो0 अ0 ग्र0, पृष्ठ-226-227 संगत में पड़ गया। जुआ खेलने की आदत पड़ श्री श्यामलाल जैन गयी। 10 रुपया माहवार तो पिताजी ले लेते थे, अब जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे. मण्डला जुआ खेलने को पैसा कहां से आये? तो दुकान की (म0प्र0) के श्री श्यामलाल जैन 1930 से ही राष्ट्रीय चोरी करने लगा; किन्तु यह भय हमेशा बना रहता आन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। अनेक बार जेल था कि यदि पकड़ा गया तो नौकरी भी नहीं मिलेगी यात्रा करने वाले श्यामलाल जी ने कविताओं के और चोर कहलाऊँगा। इस गलत आदत से कैसे माध्यम से नवयुवकों में नवस्फति का संचार कर मुक्ति पाऊँ। यही सोचता रहता था। आन्दोलन में कदने को प्रेरित किया था। आपके मेरे एक मित्र श्री चम्मनलाल हलवाई ने दिनांक अनुज श्री अमीरचंद भी जेलयात्री रहे हैं। 14 फरवरी 1932 को रात में करीब 10 बजे (जब आ)-(1) जै) सा) रा0 अ) कि मैं घूमने निकला था) बुलाकर कहा कि क्यों श्याम! जेल चलोगे। मैंने तत्काल स्वीकृति दे दी एवं यह तय श्री श्यामलाल जैन हुआ कि दिनांक 15 फरवरी 1932 को प्रथम श्री किसी फिल्मी अन्दाज की तरह जीवन बिताने शंकरलाल शिवहरे आन्दोलन का श्रीगणेश करेंगे उनके वाले श्री श्यामलाल जैन, पुत्र- श्री फदाली लाल का पकड़े जाने के बाद श्री चम्मनलाल जी और मेरा नम्बर जन्म 1914 में नरसिंहपुर (म0प्र0) में हुआ। अपना तीसरा रहेगा। इस विषय में हम दोनों के बीच अग्नि - जीवन परिचय देने का निवेदन प्रतिज्ञा भी हई. कारणवशात मुझे न० 2 पर ही रखा करने पर आपने लिखा है लिखा ह गया। दि0 15 फरवरी 1932 की रात को ही श्री कि शंकरलाल शिवहरे गिरफ्तार कर लिये गये। दि० 16 'मैं इस भारत के उजड़े फरवरी को मैंने सुबह ही, शाम 5 बजे सभा का ऐलान हुए खंडहर का जर्रा हूँ। कर दिया। मेरे पू0 पिताजी बोले कि -'मैंने तुमसे अभी यही मेरा पता होगा, यही तक कुछ नहीं कहा, यदि तुम जेल जाना चाहते हो नामा निशा मेरा।।' तो शौक से जाओ, पर एक बात याद रखना कि कदम 'मेरे पिता की आर्थिक स्थिति अत्यंत शोचनीय वापिस न रखना। वरना मेरे घर में तुम्हारे लिए कोई थी, उस पर हम चार भाई और तीन बहिनों का स्थान नहीं रहेगा।' शाम 5 बजे गांधी चौक मण्डला For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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